Published by – DILLIP KUMAR BARIK
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Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta for OCTOBER 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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4 | Murali Dtd 3rd Oct- 2017 | 110074 | 2017-10-31 01:20:53 | |
5 | Murali 4-Oct - 2017 | 112577 | 2017-10-31 01:20:53 | |
6 | Murali 5-Oct- 2017 | 105105 | 2017-10-31 01:20:53 | |
7 | Murali 6-Oct 2017 | 118465 | 2017-10-31 01:20:53 | |
8 | Murali 7-Oct 2017 | 105204 | 2017-10-31 01:20:53 | |
9 | Murali 8-Oct 2017 | 104256 | 2017-10-31 01:20:53 | |
10 | Murali Dtd 9th Oct 2017 | 112439 | 2017-10-31 01:20:53 | |
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12 | Murali 11-Oct 2017 | 104462 | 2017-10-31 01:20:53 | |
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14 | Murali 13-Oct 2017 | 110098 | 2017-10-31 01:20:53 | |
15 | Murali 14-Oct 2017 | 103807 | 2017-10-31 01:20:53 | |
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30 | Murali 29-Oct-2017 | 113867 | 2017-10-31 01:20:53 | |
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Details ( Page:- Murali Dtd 1st Oct- 2017 )
Hinglish Summary
01/10/17 MADHUBAN , AVYAKT – BAPDADA – OMSHANTI ( 15-01-83 )
Headline 1 – Sahaj Yogi Aur Prayogi ki vyakhya
Headline -2 Sangam par baba aur Brahman sada sath sath.
Vardan – Sarv khajano ki vidhi purvak jama kar sampoornta ki siddhi prapt karnewale sidhhi swaroop BHav.
Slogan – Parmatam pyar ka anubhav hai toh koi bhi rukavat rok ni sakti.
Hindi Version in Details - 01/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 15-01-83
"सहजयोगी और प्रयोगी की व्याख्या"
आज बापदादा अपने सहयोगी भुजाओं को देख रहे हैं। कैसे मेरी सहयोगी भुजायें श्रेष्ठ कार्य को सफल बना रही हैं। हर भुजा के दिव्य अलौकिक कार्य की रफ्तार को देख बापदादा हर्षित हो रूहरिहान कर रहे थे। बापदादा देखते रहते हैं कि कोई-कोई भुजायें सदा अथक और एक ही श्रेष्ठ उमंग-उत्साह और तीव्रगति से सहयोगी हैं और कोई-कोई कार्य करते रहते लेकिन बीच-बीच में उमंग-उत्साह की तीव्रगति में अन्तर पड़ जाता है। लेकिन सदा अथक तीव्रगति वाली भुजाओं के उमंग-उत्साह को देखते-देखते स्वयं भी फिर से तीव्रगति से कार्य करने लग पड़ते हैं। एक दो के सहयोग से गति को तीव्र बनाते चल रहे हैं।
बापदादा आज तीन प्रकार के बच्चे देख रहे थे। एक सदा सहज योगी। दूसरे हर विधि को बार-बार प्रयोग करने वाले प्रयोगी। तीसरे सहयोगी। वैसें हैं तीनों ही योगी लेकिन भिन्न-भिन्न स्टेज के हैं। सहजयोगी, समीप सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति के कारण सहज योग का सदा स्वत: अनुभव करता है। सदा समर्थ स्वरूप होने के कारण इसी नशे में सदा अनुभव करता कि मैं हूँ ही बाप का। याद दिलाना नहीं पड़ता स्वयं को मैं आत्मा हूँ, मैं बाप का बच्चा हूँ। 'मैं हूँ ही' सदा अपने को इस अनुभव के नशे में प्राप्ति स्वरूप नैचुरल निश्चय करता है। सहजयोगी को सर्व सिद्धियाँ स्वत: ही अनुभव होती हैं इसलिए सहजयोगी सदा ही श्रेष्ठ उमंग-उत्साह खुशी में एकरस रहता है। सहजयोगी सर्व प्राप्तियों के अधिकारी स्वरूप में सदा शक्तिशाली स्थिति में स्थित रहते हैं।
प्रयोग करने वाले प्रयोगी सदा हर स्वरूप के, हर प्वाइंट के, हर प्राप्ति स्वरूप के प्रयोग करते हुए उस स्थिति को अनुभव करते हैं। लेकिन कभी सफलता का अनुभव करते, कभी मेहनत अनुभव करते। लेकिन प्रयोगी होने के कारण, बुद्धि अभ्यास की प्रयोगशाला में बिजी रहने के कारण 75 परसेन्ट माया से सेफ रहते हैं। कारण? प्रयोगी आत्मा को शौक रहता है कि नये ते नये भिन्न-भिन्न अनुभव करके देखें। इसी शौक में लगे रहने के कारण माया से प्रयोगशाला में सेफ रहते हैं, लेकिन एकरस नहीं होते। कभी अनुभव होने के कारण बहुत उमंग-उत्साह में झूमते और कभी विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति कम होने के कारण उमंग-उत्साह में फ़र्क पड़ जाता है। उमंग-उत्साह कम होने के कारण मेहनत अनुभव होती है इसलिए कभी सहजयोगी, कभी मेहनत वाले योगी। 'हूँ ही' के बजाय 'हूँ हूँ'। 'आत्मा हूँ', 'बच्चा हूँ', 'मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ' - इस स्मृति द्वारा सिद्धि को पाने का बार-बार प्रयत्न करना पड़ता है इसलिए कभी तो इस स्टेज पर स्थित होते जो सोचा और अनुभव हुआ। कभी बार-बार सोचने द्वारा स्वरूप की अनुभूति करते हैं। इसको कहा जाता है - प्रयोगी आत्मा। अधिकार का स्वरूप है सहजयोगी। बार-बार अध्ययन करने का स्वरूप है प्रयोगी आत्मा। तो आज देख रहे थे - सहज योगी कौन और प्रयोगी कौन हैं? प्रयोगी भी कभी-कभी सहजयोगी बन जाते हैं लेकिन सदा नहीं। जिस समय जो पोजीशन होती है, उसी प्रमाण स्थूल चेहरे के पोज़ भी बदलते हैं। मन की पोजीशन को भी देखते हैं और पोज को भी देखते हैं। सारे दिन में कितनी पोज़ बदलते हो। अपने भिन्न-भिन्न पोज़ को जानते हो? स्वयं को साक्षी होकर देखते हो? बापदादा सदा यह बेहद का खेल जब चाहे तब देखते रहते हैं।
जैसे यहाँ लौकिक दुनिया में एक के ही भिन्न-भिन्न पोज़ हंसी के खेल में स्वयं ही देखते हैं। विदेश में यह खेल होता है? यहाँ प्रैक्टिकल में ऐसा खेल तो नहीं करते हो ना। यहाँ भी कभी बोझ के कारण मोटे बन जाते हैं और कभी फिर बहुत सोचने के संस्कार के कारण अन्दाज से भी लम्बे हो जाते हैं और कभी फिर दिलशिकस्त होने के कारण अपने को बहुत छोटा देखते हैं। कभी छोटे बन जाते, कभी मोटे बन जाते, कभी लम्बे बन जाते हैं। तो ऐसा खेल अच्छा लगता है?
सभी डबल विदेशी सहजयोगी हो? आज के दिन का सहज योगी का चार्ट रहा? सिर्फ प्रयोग करने वाले प्रयोगी तो नहीं हो ना। डबल विदेशी मधुबन से सदाकाल के लिए सहजयोगी रहने का अनुभव लेकर जा रहे हो? अच्छा - सहयोगी भी योगी हैं इसका फिर सुनायेंगे।
सभी टीचर्स नीचे हाल में मुरली सुन रही हैं
बापदादा के साथ निमित्त सेवाधारी कहो, निमित्त शिक्षक कहो तो आज साथियों का ग्रुप भी आया हुआ है ना। छोटे तो और ही अति प्रिय होते हैं। नीचे होते भी सब ऊपर ही बैठे हैं। बापदादा छोटे वा बड़े लेकिन हिम्मत रखने वाले सेवा के क्षेत्र में स्वयं को सदा बिजी रखने वाले सेवाधारियों को बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं इसलिए त्यागी बन अनेकों के भाग्य बनाने के निमित्त बनाने वाले सेवाधारियों को बापदादा त्याग की विशेष आत्मायें देख रहे हैं। ऐसी विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बधाई के साथ-साथ यादप्यार। डबल कमाल कौन सी है? एक तो बाप को जानने की कमाल की। दूरदेश, धर्म का पर्दा रीति रसम, खान-पान सबकी भिन्नता के पर्दे के बीच रहते हुए भी बाप को जान लिया। इसलिए डबल कमाल। पर्दे के अन्दर छिप गये थे। सेवा के लिए अब जन्म लिया है। भूल नहीं की लेकिन ड्रामा अनुसार सेवा के निमित्त चारों ओर बिखर गये थे। नहीं तो इतनी विदेशों में सेवा कैसे होती। सिर्फ सेवा के कारण अपना थोड़े समय का नाम मात्र हिसाब-किताब जोड़ा, इसलिए डबल कमाल दिखाने वाले सदा बाप के स्नेह के चात्रक, सदा दिल से 'मेरा बाबा' के गीत गाने वाले, 'जाना है, जाना है,' 12 मास इसी धुन में रहने वाले, ऐसे हिम्मत कर बापदादा के मददगार बनने वाले बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
सेवाधारी भाई-बहनों से:- महायज्ञ की महासेवा का प्रसाद खाया? प्रसाद तो कभी भी कम होने वाला नहीं है। ऐसा अविनाशी महाप्रसाद प्राप्त किया? कितना वैरायटी प्रसाद मिला? सदाकाल के लिए खुशी, सदा के लिए नशा, अनुभूति ऐसे सर्व प्रकार का प्रसाद पाया? तो प्रसाद बांटकर खाया जाता है। प्रसाद आंखों के ऊपर, मस्तक के ऊपर रखकर खाते हैं। तो यह प्रसाद ऑखों मे समा जाए। मस्तक में स्मृति स्वरूप हो जाए अर्थात् समा जाए। ऐसा प्रसाद इस महायज्ञ में मिला? महाप्रसाद लेने वाले कितने महान भाग्यवान हुए, ऐसा चान्स कितनों को मिलता है? बहुत थोड़ों को, उन थोड़ों में से आप हो। तो महान भाग्यवान हो गये ना। जैसे यहाँ बाप और सेवा इसके सिवाए तीसरा कुछ भी याद नहीं रहा, तो यहाँ का अनुभव सदा कायम रखना। वैसे भी कहाँ जाते हैं तो विशेष वहाँ से कोई न कोई यादगार ले जाते हैं, तो मधुबन का विशेष यादगार क्या ले जायेंगे? निरन्तर सर्व प्राप्ति स्वरूप हो रहेंगे। तो वहाँ भी जाकर ऐसे ही रहेंगे या कहेंगे वायुमण्डल ऐसा था, संग ऐसा था। परिवर्तन भूमि से परिवर्तन होकर जाना। कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन आप अपनी शक्ति से परिवर्तन कर लो। इतनी शक्ति है ना। वायुमण्डल का प्रभाव आप पर न आवे। सभी सम्पन्न बन करके जाना। अच्छा।
माताओं के साथ - माताओं के लिए तो बहुत खुशी की बात है - क्योंकि बाप आया ही है माताओं के लिए। गऊपाल बनकर गऊ माताओं के लिए आये हैं। इसी का तो यादगार गाया हुआ है। जिसको किसी ने भी योग्य नहीं समझा लेकिन बाप ने योग्य आपको ही समझा - इसी खुशी में सदा उड़ते चलो। कोई दु:ख की लहर आ नहीं सकती क्योंकि सुख के सागर के बच्चे बन गये। सुख के सागर में समाने वालों को कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती है - ऐसे सुख स्वरूप।
01/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 21-01-83
संगम पर बाप और ब्राह्मण सदा साथ साथ
आज बापदादा अपने राइट हैन्डस से सिर्फ हैन्डशेक करने के लिए आये हैं। तो हैन्डशेक कितने में होती है? सभी ने हैन्डशेक कर ली? फिर भी एक दृढ़ संकल्प कर सच्चे साजन की सजनियाँ तो बन गई हैं। तब ही विश्व की सेवा का कार्य सम्भालने के निमित्त बनी हो? वायदे के पक्के होने के कारण बापदादा को भी वायदा निभाना पड़ा। वायदा तो पूरा हुआ ना। सबसे नजदीक से नजदीक गॉड के फ्रैन्डस कौन हैं? आप सभी गॉड के अति समीप के फ्रैन्डस हो क्योंकि समान कर्तव्य पर हो। जैसे बाप बेहद की सेवा प्रति है वैसे ही आप छोटे बड़े बेहद के सेवाधारी हो। आज विशेष छोटे-छोटे फ्रैन्डस के लिए खास आये हैं क्योंकि हैं छोटे लेकिन जिम्मेदारी तो बड़ी ली है ना इसलिए छोटे फ्रैन्डस ज्यादा प्रिय होते हैं। अभी उल्हना तो नहीं रहा ना। अच्छा। (बहनों ने गीत गाया - जो वायदा किया है, निभाना पड़ेगा)
बापदादा तो सदा ही बच्चों की सेवा में तत्पर ही है। अभी भी साथ हैं और सदा ही साथ हैं। जब हैं ही कम्बाइन्ड तो कम्बाइन्ड को कोई अलग कर सकता है क्या? यह रूहानी युगल स्वरूप कभी भी एक दो से अलग नहीं हो सकते। जैसे ब्रह्मा बाप और दादा कम्बाइन्ड हैं, उन्हों को अलग कर सकते हो? तो फालो फादर करने वाले श्रेष्ठ ब्राहमण और बाप कम्बाइन्ड हैं। यह आना और जाना तो ड्रामा में ड्रामा है। वैसे अनादि ड्रामा अनुसार अनादि कम्बाइन्ड स्वरूप संगमयुग पर बन ही गये हो। जब तक संगमयुग है तब तक बाप और श्रेष्ठ आत्मायें सदा साथ हैं इसलिए खेल में खेल करके गीत भले गाओ, नाचो गाओ, हंसो-बहलो लेकिन कम्बाइन्ड रूप को नहीं भूलना। बापदादा तो मास्टर शिक्षक को बहुत श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं, वैसे तो सर्व ब्राह्मण श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं लेकिन जो मास्टर शिक्षक बन अपने दिल व जान, सिक व प्रेम से दिन रात सच्चे सेवक बन सेवा करते वह विशेष में विशेष और विशेष में भी विशेष हैं। इतना अपना स्वमान सदा स्मृति में रखते हुए संकल्प, बोल और कर्म में आओ। सदा यही याद रखना कि हम नयनों के नूर हैं। मस्तक की मणि हैं, गले के विजय माला के मणके हैं और बाप के होठों की मुस्कान हम हैं। ऐसे सर्व चारों ओर से आये हुए छोटे-छोटे और बड़े प्रिय फ्रैन्डस को वा जो भी सभी बच्चे आये हैं, वह सभी अपने-अपने नाम से अपनी याद स्वीकार करना। चाहे नीचे बैठे हैं, चाहे ऊपर बैठे हैं, नीचे वाले भी नयनों में और ऊपर वाले नयनों के सम्मुख हैं इसलिए अभी वायदा निभाया, अभी सभी फ्रैन्डस से, सर्व साथियों से यादप्यार और नमस्ते। थोड़ा-थोड़ा मिलना अच्छा है। आप लोगों ने इतना ही वायादा किया था। (गीत - अभी न जाओ छोड़ के, कि दिल अभी भरा नहीं.....) दिल भरने वाली है कभी? यह तो जितना मिलेंगे उतना दिल भरेगी। अच्छा - (दीदी जी को देखते हुए) - ठीक है ना। दीदी से वायदा किया हुआ है, साकार का। तो यह भी निभाना पड़ता है। दिल भर जाए तो खाली करना पड़ेगा, इसलिए भरता ही रहे तो ठीक है।
(दीदी जी से) इनका संकल्प ज्यादा आ रहा था। आप सब छोटी-छोटी बहनों से दादी-दीदी का ज्यादा प्यार रहता है। दीदी-दादी जो निमित्त हैं, उन्हों का आप लोगों से विशेष प्यार है। अच्छा किया, बाप दादा भी आफरीन देते हैं। जिस प्यार से आप लोगों को यह चांस मिला है, उस प्यार से मिलन भी हुआ। नियम प्रमाण आना यह कोई बड़ी बात नहीं, यह भी एक विशेष स्नेह का, विशेष प्यार का रिटर्न मिल रहा है इसलिए जिस उमंग से आप लोग आये, ड्रामा में आप सबका बहुत ही अच्छा गोल्डन चांस रहा। तो सब गोल्डन चान्सलर हो गये ना। वह सिर्फ चांसलर होते हैं, आप गोल्डन चांसलर हो। अच्छा।
वरदान:
सर्व खजानों को विधिपूर्वक जमा कर सम्पूर्णता की सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव!
63 जन्म सभी खजाने व्यर्थ गंवाये, अब संगमयुग पर सर्व खजानों को यथार्थ विधि पूर्वक जमा करो, जमा करने की विधि है - जो भी खजाने हैं उन्हें स्व प्रति और औरों के प्रति शुभ वृत्ति से कार्य में लगाओ। सिर्फ बुद्धि के लॉकर में जमा नहीं करो लेकिन खजानों को कार्य में लगाओ। उन्हें स्वयं प्रति भी यूज करो, नहीं तो लूज़ हो जायेंगे इसलिए यथार्थ विधि से जमा करो तो सम्पूर्णता की सिद्धि प्राप्त कर सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:
परमात्म प्यार का अनुभव है तो कोई भी रूकावट रोक नहीं सकती।
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End of Page
Details ( Page:- Murali Dtd 2nd Oct - 2017 )
Hinglish Summary
02.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Apni unnati ke liye purusharth karte raho, gyan ratno ka daan kar sada apna aur dusro ka kalyan karne ke nimitt bano.
Q- Ishwariya seva karne ke liye kaun sa goon hona zaroori hai? Seva karne wale baccho me kaun sa khayal nahi hone chahiye?
A- Ishwariya service me swabhav bahut mitha chahiye. Krodh me aakar kisi ko aankh dikhlayi to bahuto ka nuksaan ho jata hai. Serviceable baccho me ahankar wa krodh bilkul nahi hona chahiye. Yahi bikar bahut bighna roop banta hai. Fir maya pravesh kar kai baccho ko sansay buddhi bana deti hai. Ishwariya service karne ke liye yah khayal na aaye ki naukri chhodkar yah service karoon. Agar naukri chhodkar fir yah service bhi na kare to bojh chadhega
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Anna kalyan karne ke liye service ka bahut-bahut souk rakhna hai. Thakkar baith nahi jana hai, manushya ko Devta banane ki seva zaroor karni hai.
2) Aisa koi karm nahi karna hai jo koi report nikale ya mata-pita ko furna ho, kisi bhi haalat me bighna roop nahi banna hai.
Vardaan:- - Baba sabd ki smruti se had ke merepan ko arpan karne wale Behad ke Bairagi bhava
Slogan:-- Apni seva ko Baap ke aagey arpan kar do to seva ka fal aur bal prapt hota rahega.
HINDI DETAILS VERSION 02-10-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे - अपनी उन्नति के लिए पुरूषार्थ करते रहो, ज्ञान रत्नों का दान कर सदा अपना और दूसरों का कल्याण करने के निमित्त बनो
प्रश्न:
ईश्वरीय सेवा करने के लिए कौन सा गुण होना जरूरी है? सेवा करने वाले बच्चों में कौन से ख्याल नहीं होने चाहिए?
उत्तर:
ईश्वरीय सर्विस में स्वभाव बहुत मीठा चाहिए। क्रोध में आकर किसी को ऑख दिखलाई तो बहुतों का नुकसान हो जाता है। सर्विसएबुल बच्चों में अंहकार वा क्रोध बिल्कुल नहीं होना चाहिए। यही विकार बहुत विघ्न रूप बनता है। फिर माया प्रवेश कर कई बच्चों को संशयबुद्धि बना देती है। ईश्वरीय सर्विस करने के लिए यह ख्याल न आये कि नौकरी छोड़कर यह सर्विस करूँ। अगर नौकरी छोड़कर फिर यह सर्विस भी न करे तो बोझ चढ़ेगा।
गीत: ओम् नमो शिवाए.... ओम् शान्ति।
भगत लोग जब ओम् नमो शिवाए कहेंगे तो शिव के लिंग और शिव के मन्दिर को याद करेंगे। नम: कहकर पूजा करेंगे। वो हुई भक्ति। हम तो शिवबाबा को कहेंगे तुम मात पिता... अब तुम चित्र को नहीं कहेंगे। तुम जानते हो वह शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। रात दिन का फ़र्क हो गया। यह दुनिया को पता नहीं है। शिवबाबा निराकार आकर पाठशाला में पढ़ाते हैं। क्या पढ़ाते हैं? सहज राजयोग और ज्ञान। जैसे क्राइस्ट का पुस्तक है। क्राइस्ट ने जो ज्ञान दिया उनका बाइबिल बना। यहाँ शिव पुराण है परन्तु वह तो दूसरे किसी ने बनाया है। वास्तव में सच्चा शिव पुराण गीता है। बाप ने तुमको समझाया है। तुमको फिर औरों को समझाना है। शिवबाबा ने क्या समझाया? शिव का जन्म भी सुनाते हैं। अब शिव पुराण गीता को कहें? वा शिव पुराण को कहें? दो तो हो न सकें। भारत का धर्मशास्त्र एक होना चाहिए। जो धर्म स्थापन करते हैं उनकी जीवन कहानी बनाते हैं। इसने यह-यह सुनाया। क्राइस्ट ने भी ज्ञान सुनाया होगा जिसका बाइबिल बना। तो उस पुराण में बहुत कथायें हैं। अब कथा सुनाई है बच्चों को, परन्तु पार्वती का नाम डाल दिया है। उसमें तो दिखाया नहीं है कि पवित्रता की प्रतिज्ञा कराई है। मनमनाभव अक्षर शिव पुराण में नहीं होगा। शिव पुराण अलग है। यह है श्रीमत भगवत गीता। भगवान तो एक सिद्ध करना है। उनका नाम शिव है। वह गीता फिर कृष्ण पुराण हो जाती है। वास्तव में कृष्ण तो पतित-पावन है नहीं। शिव पतित-पावन है। भारत का धर्म शास्त्र है गीता। शिव पुराण को तो सब नहीं मानेंगे। अब कहेंगे गीता से देवी-देवता धर्म स्थापन हुआ। वह तो शिव ही कर सकता है। कृष्ण भी सांवरे से गोरा बनता है। फ़र्क बहुत है। बच्चों को समझाया जाता है, जो समझते हैं उनका फ़र्ज है अलौकिक कार्य करना। खुशी होनी चाहिए। अथाह खजाना मिलता है तो दान देना है। बाप का परिचय देना बहुत सहज है। भगत भगवान को याद करते हैं। भगवान आकर फल देते हैं। फल कौन सा? भगवान जीवनमुक्ति ही देंगे। सर्व का सद्गति दाता कृष्ण को नहीं कहा जाता। परमपिता परमात्मा को कहेंगे। तुम जानते हो परमात्मा निराकार है। कृष्ण को परमात्मा नहीं कह सकते। कृष्ण सभी आत्माओं का बाप बन नहीं सकता। सभी आत्माओं का पिता परमपिता परमात्मा ही गाया हुआ है। बच्चों को अच्छी रीति बाप का परिचय देना है। वह तो सर्वव्यापी या लिंग कह देते हैं। भला लिंग का आक्यूपेशन क्या होगा? परमपिता परमात्मा की तो महिमा है पतित-पावन ज्ञान का सागर। यह पोस्टर बाहर लगा देना चाहिए। कोई भी आये तो पढ़े। तुम जाकर राधे कृष्ण वा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में समझाओ। हमारा लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है, इस पर समझाना चाहिए। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर वाले अक्सर गीता जरूर पढ़ते होंगे। अपनी उन्नति के लिए पुरूषार्थ करना है। बाप से ऊंच वर्सा पाने का शौक चाहिए। अपना और दूसरों का कल्याण करना है। शिवबाबा तो सभी का कल्याण करने वाला है। तुमको भी कल्याणकारी बनना है। बाबा कहते हैं मेरा अकल्याण कब होता नहीं। अकल्याणकारी रावण है, यह मनुष्य नहीं जानते। तुमको जाकर समझाना है। बादल भरकर फिर जाए बरसना है। शौक कितना होना चाहिए। अगर दान नहीं करते तो जरूर कहेंगे अपना कल्याण नहीं किया है, तब औरों का नहीं कर सकते हैं। सेन्टर्स पर बहुत अच्छे-अच्छे आते हैं। परन्तु औरों का कल्याण करें, वह नहीं करते। सुनते हैं फिर धन्धे में थक कर घर गये तो खलास। दान नहीं देते हैं तो वह कोई ब्राह्मण नहीं ठहरे। ब्राह्मण जानते हैं कि हमको देवता बनना है। हर एक को अपनी दिल से बात करनी है। अगर किसको देवता नहीं बनाया तो ब्राह्मण कैसा? शिवबाबा कहते हैं मैं तो हूँ ही कल्याणकारी। तुमको भी कल्याणकारी बनना है। भल जिनको धारणा नहीं होती, उनके लिए स्थूल सर्विस है। यहाँ बच्चे आते हैं - जिनकी सर्विस की हुई है। सर्विस सेन्टर्स पर बच्चों को अपने से पूछना है कि हमने कितनों का कल्याण किया? आते बहुत हैं। थोड़े बहुत हैं जो सर्विस करते हैं। बाकी धन्धे आदि में लग जाते हैं। समझते हैं पवित्र बनना है सिर्फ। परन्तु धन दान भी करना है। अपने से पूछना है - अगर हम किसका कल्याण नहीं करेंगे तो पद क्या पायेंगे। बहुत बच्चियाँ कल्याण कर पण्डा बनकर आती हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। कोई फर्स्टक्लास, कोई सेकण्ड, कोई थर्ड में रखेंगे। तो अपना कल्याण करना चाहिए। जिनको अपने कल्याण का नहीं, वह क्या पद पायेंगे! बहुत ऐसे सेन्टर्स हैं जिनमें कई बच्चे सर्विस नहीं करते। इतनी ताकत नहीं जो जाकर दान करें। सवेरे मन्दिरों में बहुत जाते हैं। जाकर ढूंढना पड़े - देवता धर्म वाला कौन है।
अब बाप कहते हैं मैं इस तन में आया हूँ। वह तो छोटे शरीर में जाकर आत्मा प्रवेश करती है। घोस्ट छाया के मुआफिक आते हैं। यह भी वन्डर है। कैसे घूमते-फिरते रहते हैं, कौन बैठ पता निकाले! ड्रामा में आत्मा को शरीर न मिलने कारण भटकती है। छाया रूप ले लेती है। जैसे परछाई होती है। घोस्ट की परछाई नहीं पड़ती। आया गुम हो गया। इन बातों में अपने को नहीं जाना है। दरकार ही नहीं है। इस खोज में जायें तो शिवबाबा भूल जाये। बाबा का फरमान है - निराकार बाप को याद करो। अपनी और दूसरों की देह को भूलना है। सबका प्यारा है शिवबाबा। बाप कहते हैं और कोई बात में न जाकर बाप को याद करो। यह है याद की यात्रा। मनमनाभव का अर्थ भी यह है। कृष्ण तो ऐसे कह न सके। कृष्ण को गाइड नहीं कहेंगे। निराकार ही गाइड बन सभी आत्माओं को ले जाते हैं - मच्छरों सदृश्य। आत्माओं का गाइड कृष्ण हो न सके। उनको पुनर्जन्म में जाना है, तो बाप का परिचय सबको देना है। भक्तों का भगवान एक है। वह बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश हों। सर्विस का बच्चों को शौक होना चाहिए।
बच्चे मधुबन में आते हैं - मुरली सुनने, तो सुनाने वाला जरूर चाहिए। बाबा जहाँ जायेंगे तो सर्विस ही करेंगे। सर्विस का शौक रहता है। बच्चे याद करते हैं। वह सम्मुख मुरली सुनकर खुश होंगे। एक पंथ 10 कार्य सिद्ध होते हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं में बाप नहीं जा सकता। वह बच्चों का काम है। बच्चों से सवाल जवाब करेंगे। सन्यासी आदि तो बाप के आगे आयेंगे ही नहीं। उनको तो मान चाहिए। बाप का पार्ट वन्डरफुल है। जो पास्ट हुआ ड्रामा। आगे चलकर बहुत बच्चे मिलने आयेंगे। पहले बच्चों को समझाना पड़े। गोप गोपियों को ही घर-घर में परिचय देना है। कोई भी उल्हना न दे, रह न जाये कि हमको पता नहीं पड़ा। राजा रानी तो कोई है नहीं जो इतला करें। नया हुनर निकालते हैं तो गवर्मेन्ट को दिखलाकर वृद्धि कराते हैं। यहाँ तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। निमंत्रण बच्चों को देना है। इसके लिए चित्र आदि छपाते रहते हैं। यह चित्र बाहर भी जायेंगे। बच्चों को मेहनत करनी है। जो जो भाषा जानता है, वह उस भाषा में जाकर समझाये। अनेक भाषायें हैं। बाबा राय देते हैं - पूना और बैंगलोर तरफ सर्विस को खूब बढ़ाओ। सबको मालूम पड़े, सब भाषाओं में पर्चे छपाने हैं। बेहद की बुद्धि चाहिए। ऐसे भी नहीं कि बाबा नौकरी छोड़ूं। नौकरी छोड़ी फिर यह सर्विस भी न कर सके तो बोझ चढ़ेगा। इसमें स्वभाव बहुत मीठा चाहिए। क्रोध बहुतों में है। ऑख दिखला देते हैं, फिर रिपोर्ट आती है। अच्छे-अच्छे बच्चे लिखते हैं कि हमारी सुनते नहीं हैं। यह अक्षर निकलना नहीं चाहिए। बच्चों में देह-अंहकार वा क्रोध है तो बहुतों को नुकसान पहुँचा देते हैं। बाप को बच्चों का कितना ख्याल रहता है। सब बच्चों पर नज़र रखनी होती है। मम्मा बच्ची थी, फिर भी माँ कहलाती थी, उनको फुरना रहता था। ज्ञान में भी कहाँ माया प्रवेश हो जाती है। फिर कई संशयबुद्धि भी बन पड़ते हैं। कितने कदम-कदम पर विघ्न पड़ते हैं। आज बच्चा है कल बदल जाता है। विकार पर कितना झगड़ा होता है। बहुत पूछते हैं इस संस्था की ग्लानि क्यों है? समझते नहीं हैं ना - शास्त्रों में कृष्ण की कितनी ग्लानि की है। फलानी को भगाया, यह हुआ। कृष्ण तो ऐसे कर न सके। यहाँ भी भगाने का कलंक लगाते हैं। घरबार छुड़ाते हैं। क्यों छुड़ाते हैं? वह तो कोई जानते नहीं। जब तक समझाया जाए - क्यों विघ्न पड़ते हैं? मुख्य है काम विकार, जिस पर तुम बच्चे विजय पाते हो।
यह वन्डरफुल बाप है। ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण रचे जाते हैं। पहले-पहले शिवबाबा का परिचय देना है। उनसे वर्सा मिलना है। माया ऐसी है तकदीर में नहीं है तो भूल जाते हैं, कितना माया के विघ्न पडते हैं। धारणा नहीं होती है। यह भी विघ्न है ना, क्यों नहीं इतनी सहज सर्विस कर सकते हैं। भगवान बाप तो वह है। उस अल्फ को याद करो। भगवानुवाच, मामेकम् याद करो तो मुझ से वर्सा मिलेगा। ओ गाड फादर, भगत कहते हैं ना। तो बाप से वर्सा मिल रहा है। कुछ सर्विस का शौक होना चाहिए। नहीं तो पद ऊंचा पा नहीं सकते। सर्विस तो ढेर है। रोला बहुत है। बाप का नाम भी गुम। नॉलेज भी गुम है। तो पहचान देनी पड़े। हमको बाप का हुक्म मिला है। निमंत्रण देना है। इसमें कोई क्रोध नहीं करेंगे। पोस्टर्स छपे हैं सर्विस के लिए, रखने के लिए नहीं बने हैं। शिवाए नम: अक्षर बहुत अच्छा है। पूरा शिवबाबा का परिचय है। निराकार शिवबाबा आया है, जरूर वर्सा दिया है। आकर पतित दुनिया को पावन बनाया है। ऐसे-ऐसे अपने से ख्याल कर फिर जाकर कोई को समझाना पड़ता है। शिव के मन्दिर भी बहुत हैं, गुप्त वेष में जाकर बोलना चाहिए। यह शिव कौन है? शिवबाबा को तो निराकार परमात्मा कहा जाता है। उन्होंने क्या किया जो इतना मन्दिर बनाया है। युक्ति से जाकर समझाना चाहिए। अब भल समझें वा न समझें, अन्त में याद आयेगा कि कोई ने हमको समझाया था। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना कल्याण करने के लिए सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है। थककर बैठ नहीं जाना है, मनुष्य को देवता बनाने की सेवा जरूर करनी है।
2) ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो कोई रिपोर्ट निकाले या मात-पिता को फुरना हो, किसी भी हालत में विघ्न रूप नहीं बनना है।
वरदान:
बाबा शब्द की स्मृति से हद के मेरेपन को अर्पण करने वाले बेहद के वैरागी भव!
कई बच्चे कहते हैं मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है, यह भी गलती है, परमात्म देन को मेरा मानना यह महापाप है। कई बच्चे साधारण भाषा में बोल देते हैं मेरे इस गुण को, मेरी बुद्धि को यूज नहीं किया जाता, लेकिन मेरी कहना माना मैला होना - यह भी ठगी है इसलिए इस हद के मेरे पन को अर्पण कर सदा बाबा शब्द याद रहे, तब कहेगे बेहद की वैरागी आत्मा।
स्लोगन:
अपनी सेवा को बाप के आगे अर्पण कर दो तो सेवा का फल और बल प्राप्त होता रहेगा।
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Details ( Page:- Murali Dtd 3rd Oct- 2017 )
Hinglish Summary
03.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Kacchue mishal sab kuch sametkar chup baith swadarshan chakra firao, Baap jo sarv sambandho ki sekrin hai, usey yaad karo to tumhare bikarm binash ho jayenge.
Q- Ishwariya kul ke baccho prati Baap ki shrimat kya hai?
A- Tum jab Ishwar ke bacche bane, unke samookh baithe ho to pyar se usey yaad karo. Unki shrimat par chalo. Jitna usey yaad karenge utna nasha rahega. Parantu maya Ravan dekhta hai mere grahak chhinte hain to wo bhi yudh karta hai. Baba kehte bacche kamzor mat bano. Main tumhe shakti dene liye baitha hun.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ki shrimat par chal, dehi-abhimani ban Baap ke gale ka haar banna hai. Baap ki yaad me rah atindriya sukh ka anubhav karna hai
2) Is duniya se poora nastmoha banna hai. Kisi ke bhi chi-chi sariro ko yaad nahi karna hai.
Vardaan:- Ishwariya sanskaro ko karya me lagakar safal karne wale Safaltamurt bhava.
Slogan:-- "Baap aur main" yah chhatrachaya saath hai to koi bhi bighna thahar nahi sakta.
HINDI DETAILS VERSION - 03-10-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - कछुये मिसल सब कुछ समेटकर चुप बैठ स्वदर्शन चक्र फिराओ, बाप जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे”
प्रश्न:
ईश्वरीय कुल के बच्चों प्रति बाप की श्रीमत क्या है?
उत्तर:
तुम जब ईश्वर के बच्चे बने, उनके सम्मुख बैठे हो तो प्यार से उसे याद करो। उनकी श्रीमत पर चलो। जितना उसे याद करेंगे उतना नशा रहेगा। परन्तु माया रावण देखता है कि मेरे ग्राहक छिनते हैं तो वह भी युद्ध करता है। बाबा कहते हैं बच्चे कमजोर मत बनो। मैं तुम्हें शक्ति देने लिए बैठा हूँ।
गीत:- धीरज धर मनुआ .... ओम् शान्ति।
यह कौन कहते हैं बच्चों को कि हे बच्चे, क्योंकि मनुआ कहा जाता है आत्मा को। आत्मा में ही मन-बुद्धि हैं। तो यह भी नाम रख दिया है। नाम तो बहुत चीज़ों के बहुत रखे हैं जैसे परमपिता परमात्मा, बाबा, कोई फिर फादर कहते हैं। तो बाबा है सबसे सिम्पुल। बाबा कहते हैं तुम किसकी सन्तान हो, वह याद आता है? अब तुम बच्चे बैठे हो, सामने कौन है? आत्मायें कहेंगी बाबा बैठा है। कितनी सिम्पुल बात है। बच्चे जानते हैं हम आत्माओं का परमपिता परम आत्मा पिता है। मनुष्य तो छोटे, बड़े सबको बाबा कह देते हैं और यह फिर आत्मा अपने बाबा को बाबा कहती है। ओ गॉड फादर कहते हैं। अब शरीर के फादर को तो गॉड फादर नहीं कहेंगे। तुम जानते हो हम उस बाबा के सामने बैठे हैं, यह आत्मा की बात है शिवबाबा समझाते हैं तो मैं कौन हूँ! मैं परम आत्मा हूँ। मैं तुम सभी आत्माओं का परमधाम में रहने वाला पिता हूँ, इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। इकट्ठा करने से हो जाता है परमात्मा। कितना सहज है। यह कौन बैठा है? शिवबाबा, वह न होता तो यह ब्रह्मा भी नहीं होता। तुम बच्चों की दिल में हमेशा उनकी याद रहती है। है वह भी आत्मा, कोई फ़र्क नहीं है। जैसे आत्मा स्टार है, उस स्टार का साक्षात्कार होता है। वैसे बाप का भी स्टॉर रूप में साक्षात्कार होगा। बाकी यह जो कहते हैं कि बहुत तेज है, सहन नहीं कर सकते। यह मन की भावना है। बाकी तो बाप यथार्थ करके समझाते हैं कि जैसे तुम आत्मा हो वैसे मैं भी आत्मा हूँ। मुझे भी इस तन में इस आत्मा के बाजू में भृकुटी में बैठना है। तो वह बैठ समझाते हैं कि तुम आत्माओं में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। सो भी हर एक में अपना-अपना पार्ट है। कहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... अब परम आत्मा अक्षर क्लीयर है। उनको परमात्मा कहने से मूँझ गये हैं। है तो आत्मा परन्तु सदा परमधाम में रहने वाली परम आत्मा है। ब्रह्मा को परम आत्मा नहीं कहेंगे। यह सब हैं जीव आत्मायें। इनमें कोई पाप आत्मा, कोई पुण्य आत्मा है। बाप कहते हैं मुझे पाप वा पुण्य आत्मा नहीं कहा जाता है। मुझे परमात्मा ही कहा जाता है। मेरा भी पार्ट है। एक बार आकर पतित दुनिया को पावन बनाता हूँ। याद भी करते हैं कि पतित-पावन आओ। परन्तु कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम पतित, रावण सम्प्रदाय हैं। कहते हैं रामराज्य चाहिए। रावण को जलाते भी हैं परन्तु यह नहीं जानते कि हम ही रावण सम्प्रदाय हैं। जरूर पतित हैं तब तो बुलाते हैं। कृष्ण को तो नहीं बुलाते। उनको तो परम आत्मा नहीं कहते। हम सबका बाप जो परमधाम से आया है, उसको ही परम आत्मा कहा जाता है। ईश्वर वा भगवान कहने से रोला पड़ जाता है। बाप इस जीव आत्मा द्वारा समझाते हैं। तुमको कहते हैं बच्चे अशरीरी भव। तुम मेरे बच्चे थे, जब तुमको भेजा था। स्वर्ग में शरीर धारण कर आये, चक्र लगाते-लगाते अब तुमने 84 का चक्र पूरा किया। इस समय सब रावण की सन्तान हैं। रावण ने ही पतित बनाया है। अब तुम बने हो ईश्वरीय सन्तान। अब बाबा आया है। कहते हैं मेरा पार्ट है आसुरी सम्प्रदाय को दैवी सम्प्रदाय बनाना। मैं भी ड्रामा अनुसार अपने टाइम पर आता हूँ - कल्प के संगमयुगे। कलियुग है पतित पुरानी तमोप्रधान दुनिया, तब मैं आता हूँ सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कुल का राज्य स्थापन करने। न हो तब तो स्थापन करूं। फिर जब सूर्यवंशी चन्द्रवशी होंगे तो वैश्य, शूद्र वंशी नहीं होंगे। अब तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, दैवी सन्तान बनने के लिए। तो बाप के साथ योग चाहिए जिससे विकर्म विनाश हों। एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनने के लिए स्वदर्शन चक्र फिराना पड़े। बाबा को याद करना है, इसमें ही मेहनत है। यह चार्ट रखो कि कितना समय बाबा को याद करते हैं? जितना याद में रहेंगे तो अतीन्द्रिय सुख की भासना आयेगी। तब कहा जाता है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो। वल्लभ कहा जाता है बाप को। बाप का रूप भी बेटे जैसा ही होता है। वैसे आत्माओं का बाप भी आत्मा ही है परन्तु परमधाम में रहने वाला है। अगर वह बीज नीचे चक्र में चला आये तो झाड़ ऊपर चला जाये। जैसे वह झाड़ होता है, उनका बीज नीचे झाड़ ऊपर। परन्तु यह उल्टा झाड़ है, जिसका बीजरूप परम आत्मा परमधाम में निवास करते हैं। आत्मायें भी पार्ट बजाने ऊपर से नीचे आती हैं। टाल टालियां निकलती जाती हैं, अब बाप कहते हैं तुमको रावण ने काला कर दिया है। अब तुमको गोरा बनना है। कृष्ण और नारायण दोनों को काला कर दिया है। लक्ष्मी को गोरा बनाते हैं, क्यों? काम चिता पर तो दोनों बैठे होंगे। कृष्ण के लिए कहते उनको तक्षक सर्प ने डसा, नारायण को फिर किसने डसा? कुछ भी समझते नहीं हैं। चित्र आदि भी सब रावण की मत पर बनाये हैं। अब बाबा आया है श्रीमत देकर रावण से लिबरेट करने के लिए। मैं सबका सद्गति दाता हूँ, श्री श्री 108 जगतगुरू का टाइटल भी इनका है, जगत की सद्गति करते हैं। ग्रंथ में इनकी महिमा बहुत लिखी है। सद्गुरु सच्चा पातशाह, सचखण्ड स्थापन करने वाला। बाबा को यह सब कण्ठ था। परतु अर्थ का पता नहीं था। अपने को बहुत रिलीजस माइन्डेड समझते थे। परन्तु थे रावण के कुल के। अब तुम ईश्वर के कुल के बने हो तो कितना प्यार से उनको याद करना चाहिए। बाबा आप कितने मीठे हो। हमको स्वर्ग में ले चलते हो, हेविनली गॉड फादर को जितना याद करेंगे तो नशा चढ़ेगा। अब किसके सामने बैठे हो? बाप कहते हैं हे लाडले बच्चे मैं तेरा परमपिता, तुम आत्माओं से बात कर रहा हूँ। अब मेरी श्रीमत पर क्यों नहीं चलते। परन्तु काम रूपी भूत गिरा देता है। बाप कहते हैं कमजोर क्यों बनते हो? श्रीमत मिल रही है फिर आसुरी मत पर क्यों चलते हो? यह युद्ध तो करनी है। माया समझती है मेरे ग्राहक छिनते हैं तो लड़ती है। तुमको बाप शक्ति दे रहा है। इतना पाठ पढ़ाते हैं, सब वेद शास्त्रों का सार समझाते हैं। सूक्ष्मवतन में तो नहीं सुनायेंगे। दिखाया है विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। सूक्ष्मवतन में नाभी कहाँ से आई? क्या-क्या बैठ लिखा है। अभी तुमको जो नॉलेज मिल रही है यह परम्परा नहीं चलती, यहाँ ही खलास हो जाती है। पीछे जो शास्त्र आदि बनाते हैं वह परम्परा से चलते हैं, यह ज्ञान तो प्राय:लोप हो जाता है।
अब बाप कहते हैं मेरी मत पर चलो, देही अभिमानी बनो, इसमें दौड़ी लगाकर मेरे गले का हार बनो। यह बुद्धि की दौड़ी है, सन्यासी नहीं कह सकते कि अशरीरी भव, मामेकम् याद करो। परमात्मा सभी को कहते हैं क्योंकि सभी मेरी सन्तान हैं, सबको वापिस ले जाने लिए आया हूँ। परन्तु सम्मुख तो बच्चे सुनते हैं, सारी दुनिया नहीं सुनती। शिवरात्रि मनाते हैं, शिव का मन्दिर भी है। जरूर आया है परन्तु शिव का इतना बड़ा चित्र नहीं है। वह तो स्टॉर है। अगर कहो तो कहेंगे कि क्या मन्दिर में चित्र रांग हैं? इसलिए बाप समझाते हैं बच्चे मैं भी आत्मा हूँ सिर्फ तुम जन्म-मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ, तब तो तुमको लिबरेट कर सकूँ। मैं पतित-पावन हूँ तो जरूर पतित दुनिया में आना पड़े ना। अगर पतित-पावन न कहें तो समझेंगे नई दुनिया बनाते हैं। प्रलय हो जाती है फिर नई सृष्टि क्रियेट करते हैं। परन्तु उनको पतित-पावन कहा जाता है, तो इससे सिद्ध होता है कि यह सृष्टि तो अनादि है, इसकी प्रलय नहीं होती है। सिर्फ पतित होती है, उनको पावन बनाता हूँ इसलिए मैं नंदीगण पर वा भाग्यशाली रथ पर आता हूँ - तुम्हें नर से नारायण बनाने। सब चाहते भी हैं हम सूर्यवंशी बनें। कथा भी है - एक भक्त ने कहा कि मैं लक्ष्मी को वर सकता हूँ! नारद भक्त था ना। तो कहा तुम अपनी शक्ल तो देखो, पहले बन्दर से मन्दिर तो बनो तब तो लक्ष्मी को वर सकेंगे। अभी तुम मन्दिर लायक बन रहे हो। यह इस समय की ही सारी बात है। यह सब तुमको कौन बता रहे हैं? शिवबाबा ब्रह्मा दादा की भ्रकुटी के बीच में बैठ तुमको समझा रहे हैं। जैसे इनकी आत्मा भ्रकुटी में बैठी है तो जरूर उनके बाजू में बैठा होगा ना। यह नॉलेजफुल बाप तुमको सारा राज़ आदि मध्य अन्त का समझा रहे हैं, जिससे तुमको स्वदर्शन चक्र फिराना सहज हो। स्वदर्शन चक्र फिराने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, नहीं तो सजायें खायेंगे। विजय माला में भी नहीं आयेंगे। कछुए मिसल जब फ्री हो तो चुप बैठकर चक्र को फिराओ। अब तुमको घर वापिस जाना है। यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो। इसको कहा जाता है लोकलाज, पतित बनने की मर्यादायें तोड़ो और कोई को याद नहीं करो। आप मुये मर गई दुनिया। अशरीरी बन मेरा बनो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। सबको मरना तो है ही फिर कौन किसके लिए रोयेगा। हिरोशिमा में सब मर गये, कोई रोने वाला बचा ही नहीं इसलिए अब रोने वाली दुनिया से वापिस जाना है। इस गन्दी दुनिया में तो हर एक के अंग-अंग में कीड़े पड़े हैं, उसको याद क्यों करें। स्वर्ग में थोड़ेही ऐसे शरीर होंगे। वहाँ तो अंग-अंग में खुशबू होती है। बाबा कैसे गन्दे बांसी को गुल-गुल (फूल) बनाते हैं, तो उनको आना भी ऐसे पुराने लांग बूट में पड़ता है। बाबा कहते हैं कि भल घर में रहो परन्तु श्रीमत पर चलो। विकार में मत जाओ। तुम्हारे सामने शिवबाबा बैठा है, उनको भूलो मत। अच्छा-
गीत - धरती को आकाश पुकारे.. धरती पर रहने वालों को आकाश में रहने वाला बाप पुकारते हैं। अब मेरे पास आना है इसलिए नष्टोमोहा बनो। मैं तुम्हें स्वर्ग के अथाह सुख दूँगा। बाप है सभी सुखों का सैक्रीन। मामा, चाचा यह सब तुमको दु:ख देने वाले हैं। तुम्हारा है सारी आसुरी दुनिया नर्क का सन्यास। सन्यासियों का है सिर्फ घर का सन्यास। तुमको इस डर्टी दुनिया नर्क को भूलना है।
इस समय मनुष्यों को थोड़ा भी धन मिलता है तो समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं। परन्तु इस दुनिया में कोई कितना भी साहूकार हो, देवाला निकला, एरोप्लेन आदि गिरा तो सब खलास, फिर रोने पीटने लग पड़ते हैं। वहाँ तो एक्सीडेंट की बात नहीं। कोई रोता पीटता नहीं। बाबा कहते हैं अच्छा तुम स्वर्ग में हो तो खुश रहो। मैं आया हूँ गरीबों के लिए, जो नर्क में हैं। दान भी गरीबों को दिया जाता है। साहूकार, साहूकार को दान करते हैं क्या? मैं तो सबसे साहूकार हूँ, मैं गरीबों को दान देता हूँ। इस समय के साहूकार तो अपने धन के, फैशन के नशे में ही चूर हैं।
अच्छा। बाबा समझानी देते हैं यह है इन्द्रप्रस्थ, यहाँ हंस मोती चुगेंगे। बाकी जो बगुले होंगे वह तो पत्थर ही उठायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं यहाँ हंस (गुणग्राही) ही आने चाहिए, बगुले (अवगुण देखने वाले) नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की श्रीमत पर चल, देही-अभिमानी बन बाप के गले का हार बनना है। बाप की याद में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है।
2) इस दुनिया से पूरा नष्टोमोहा बनना है। किसी के भी छी-छी शरीरों को याद नहीं करना है।
वरदान:
ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल करने वाले सफलता मूर्त भव
जो बच्चे अपने ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाते हैं उनके व्यर्थ संकल्प स्वत: खत्म हो जाते हैं। सफल करना माना बचाना या बढ़ाना। ऐसे नहीं पुराने संस्कार ही यूज करते रहो और ईश्वरीय संस्कारों को बुद्धि के लॉकर में रख दो, जैसे कईयों की आदत होती है अच्छी चीजें वा पैसे बैंक अथवा अलमारियों में रखने की, पुरानी वस्तुओं से प्यार होता है, वही यूज करते रहते। यहाँ ऐसे नहीं करना, यहाँ तो मन्सा से, वाणी से, शक्तिशाली वृत्ति से अपना सब कुछ सफल करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:
“बाप और मैं” यह छत्रछाया साथ है तो कोई भी विघ्न ठहर नहीं सकता।
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Details ( Page:- Murali 4-Oct - 2017 )
Hinglish Summary
04.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap aaye hain tumhe sab gutkho se chhodane, tum abhi is shok vatika se ashok vatika me chalte ho, is visay vaitarini nadi se paar jate ho.
Q-Yaad me baithte samay kis baat ka bighna nahi padta aur kis beat ka bighna padta hai?
A- Yaad me baithne ke samay kisi bhi awaz ka ya sorgul ka bighna nahi padta wo gyan me padta hai lekin yaad me maya ka bighna zaroor padta hai. Maya yaad ke samay he bighna daalti hai. Anek prakar ke sankalp-bikalp le aati hai isiliye Baba kehte hain bacche savdhan raho. Maya ka ghoonsa mat khao. Shiv Baba jo tumhe apaar sukh deta hai, sarv sambandho ki secrin hai - usey bahut-bahut pyar se yaad karo. Yaad me tikhi doud lagao.
Dharna Ke liye mukhya Saar:
1) Gyan ke sab alankaro ko dharan kar swadarshan chakradhari, trinetri, trikaldarshi arthat Master God banna hai.
2) Baap ke right hand Dharmraj ko smruti me rakh koi bhi bikarm nahi karne hain. Pawan banne ki pratigyan karke bikar me nahi jana hai.
Vardaan:- Brahman jeevan me sada khushi ki khurak khane aur khilane wale Shrest Nasibvan bhava
Slogan:--Har paristhiti me sahansil bano to mouj ka anubhav karte rahenge.
HINDI DETAILS VERSION- 04-10-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सब घुटकों से छुड़ाने, तुम अभी इस शोक वाटिका से अशोक वाटिका में चलते हो, इस विषय वैतरणी नदी से पार जाते हो”
प्रश्न:
याद में बैठते समय किस बात का विघ्न नहीं पड़ता और किस बात का विघ्न पड़ता है?
उत्तर:
याद में बैठने के समय किसी भी आवाज का या शोरगुल का विघ्न नहीं पड़ता वह ज्ञान में पड़ता है लेकिन याद में माया का विघ्न जरूर पड़ता है। माया याद के समय ही विघ्न डालती है। अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प ले आती है इसलिए बाबा कहते हैं बच्चे सावधान रहो। माया का घूंसा मत खाओ। शिवबाबा जो तुम्हें अपार सुख देता है, सर्व संबंधों की सैक्रीन है - उसे बहुत-बहुत प्यार से याद करो। याद में तीखी दौड़ी लगाओ।
गीत:- रात के राही..... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जो यात्रा पर हैं। वैसे जो बैठे हैं उनको यात्रा पर थोड़ेही कहा जाता। यह यात्रा कैसी वन्डरफुल है। शान्ति की यात्रा, शान्तिधाम में जाने की यात्रा। रावण के राज्य में घुटका खाकर मरना होता है। एक सत्यवान सावित्री की कहानी है ना कि काल से भी सावित्री, सत्यवान की आत्मा को वापिस ले आई। वास्तव में ऐसी कोई बात है नहीं। बाकी आधाकल्प काल खाता है। अन्त में घुटका आता है ना। रावण जिसको वर्ष-वर्ष जलाते रहते हैं, वह हमारा दुश्मन है, यह नहीं जानते। बाबा कहते हैं मैं आया हूँ तुमको शोक वाटिका से निकाल अशोक वाटिका में ले जाने, जहाँ घुटका खाना नहीं होता। यहाँ तो अनेक प्रकार के घुटके हैं। माँ बाप पति बच्चों के घुटके खाते रहते हैं। पति विकार में फंसाते हैं। बाप आकर इन सब घुटकों से छुड़ाते हैं और नई दुनिया में ले जाते हैं। अभी आत्मा के पंख टूट गये हैं। आत्मा उड़ नहीं सकती। फिर याद की यात्रा नहीं कर सकते हैं। बरोबर यह बुद्धियोग की यात्रा है, लिखा है ना - मनमनाभव। इसका अर्थ कोई यात्रा थोड़ेही समझते हैं। कहते हैं राम ने बन्दरों की सेना ली और बन्दरों ने पुल बनाई। बन्दर पुल कैसे बनायेंगे। यह तुम्हारी याद के यात्रा की पुल बन रही है, जिस पुल से तुम विषय वैतरणी नदी पार हो जाते हो। बाप इस नदी में तैरना सिखलाते हैं। खिवैया है ना। विषय वैतरणी नदी से पार कराए शिवालय में ले जाते हैं। कहते हैं अमृत छोड़ विष काहे को खाए। तो ज्ञान को अमृत कहा जाता है। ज्ञान से सद्गति होती है। शास्त्रों को ज्ञान नहीं कहेंगे। वह है भक्ति की सामग्री। शास्त्र पढ़ने से सतयुग आ नहीं सकता, सद्गति हो नहीं सकती इसलिए उनको ज्ञान अमृत नहीं कहेंगे, वह है भक्ति। ज्ञान में पहले 100 प्रतिशत सद्गति फिर धीरे-धीरे नीचे उतरते हैं। यह नहीं कहेंगे कि सतयुग में भी दुर्गति होती है, वहाँ दुर्गति का नाम नहीं होता। कलियुग में सबकी दुर्गति होती है।
तुम जानते हो सर्व पर दया करने वाला बाप एक ही है जिसको श्री-श्री कहा जाता है। फिर श्री श्री का टाइटल सब पर रख देते हैं। श्री कहा जाता है देवताओं को। श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री राम-सीता, तो ऐसा श्री बनाने वाले को श्री श्री कहा जाता है। तुम बाप के सामने प्रतिज्ञा करते हो कि हम कभी विकार में नहीं जायेंगे। अगर प्रतिज्ञा कर फिर भूल की तो बाप का राइट हैण्ड धर्मराज भी बैठा है। धर्मराज माफ नहीं करेगा। बाप भी गुप्त, ज्ञान भी गुप्त, मर्तबा भी गुप्त। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि हमको श्रीमत देने वाला कोई मनुष्य हो नहीं सकता। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बाप रचना रचते हैं। प्रजापिता सूक्ष्मवतन में तो होता नहीं। जरूर यहाँ ही होगा। तुम बच्चे समझ गये हो कि ब्रह्मा इस समय ब्राह्मण है। इनको भविष्य में बादशाही मिलती है। देवतायें पतित दुनिया में तो राजाई कर न सकें। तो पुरानी दुनिया का विनाश चाहिए, विनाश होना भी है जरूर। अभी थोड़ी देरी है। तुम्हारा अभी नये झाड़ का सैपलिंग ही पूरा नहीं लगा है। आगे गाते थे - त्वमेव माताश्च पिता... सबके आगे यह महिमा गाते रहते हैं। समझते कुछ भी नहीं। अच्छा विचार करो ब्रह्मा माता कैसे हो सकते? लक्ष्मी-नारायण की भी अपनी राजाई चलती है। तो उनको मात पिता कह न सकें। तो इस समय परमपिता परमात्मा प्रैक्टिकल में मात-पिता का पार्ट बजा रहे हैं। फिर भक्ति मार्ग में महिमा गाई जाती है। उसमें भी पहले-पहले शिवबाबा को त्वमेव माताश्च पिता कहते हैं। पीछे लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम सबको कहते रहते। अक्ल तो कुछ है नहीं। शिवबाबा है सैक्रीन। यह मनुष्य-मात्र सब आसुरी मत पर दु:ख ही देते हैं और मैं सबके एवज में सबसे जास्ती सुख देता हूँ। मैं दाता हूँ। मैं तुम बच्चों को श्रीमत देता हूँ कि बच्चे तुम जितना याद की यात्रा पर रहेंगे, स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे, कमल फूल समान बनेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। इन अलंकारों का अर्थ कोई समझा न सके। अलंकार तुम ही धारण करते हो। निशानी विष्णु को दे दी है। तीसरा नेत्र भी देवताओं को दे दिया है। वास्तव में तीसरा नेत्र भी तुमको मिलता है। त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी.... अक्षर है ना। इसका अर्थ भी इस समय तुम आत्मा की बुद्धि में है। आत्मा की बुद्धि में ही सब कुछ रहता है। मेरी आंख, नाक, कान भी शरीर नहीं कहता है। आत्मा कहती है यह मेरा शरीर रूपी महल है। आत्मा को मालूम पड़ा है कि मुझ आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूंधा हुआ है। कितनी गुप्त बातें हैं। आत्मा को राकेट भी कहते हैं, जिस आत्मा को शरीर छोड़ लण्डन में जाना होगा तो सेकेण्ड में चली जायेगी। उन्होंने कितना तीखा राकेट बनाया है, जो सुबह चले तो शाम को पहुँच जाये। आगे स्टीम्बर में 3-4 मास लग जाते थे। अभी भी स्टीम्बर में एक मास लग जाता है। एरोप्लेन में एक दिन। परन्तु आत्मा बहुत तीखा राकेट है, जो एक सेकेण्ड में पहुँच जाती है, जो कोई भी देख न सके। तुम आत्मा का आलराउन्ड पार्ट है। अच्छा परमात्मा का पार्ट क्या है? द्वापर से मेरा साक्षात्कार कराने का पार्ट है, जो-जो जिस भावना से मुझे याद करता है, उनकी मनोकामना पूर्ण करता हूँ। अभी मेरा ज्ञान देने का पार्ट है, पतितों को पावन बनाने का पार्ट है। तुमको मास्टर नॉलेजफुल गॉड के बच्चे मास्टर गॉड बनाता हूँ। जिन्होंने कल्प पहले पुरुषार्थ किया था, वहीं करेंगे। बच्चे कहते हैं कल्प पहले आये थे, अब फिर से वर्सा ले रहे हैं। किसके पास? मात-पिता के पास। सरस्वती सबकी माता है। उनकी माता यह ब्रह्मा। इनकी माता तो कोई है नहीं। शिवबाबा खुद कहते हैं तुम मेरी वन्नी (पत्नी) हो तो फिर मैं कहता हूँ पति बिगर खाना मैं कैसे खाऊंगा। तो अच्छा शिवबाबा और हम दोनों इकट्ठे खाते हैं। नशा तो रहता है ना। तुम भी खुद कहते हो कि बाबा दलाल बन आया है, अपने साथ सगाई कराने। तुम श्रीमत पर परमात्मा के साथ सबकी सगाई कराते हो। पण्डितों ने जो विकार का हथियाला बांधा है वह बाप कैन्सिल कराते हैं। बाप कहते हैं तुम ज्ञान चिता पर बैठो तो गोरे बनेंगे। काम चिता पर बैठ तुम काला मुँह क्यों करते हो! श्याम-सुन्दर का अर्थ तुम जानते हो। श्रीकृष्ण है सुन्दर, अभी तो वह भी श्याम है। अब बाप ने आकर अपना परिचय दिया है।
तुम हो पतित-पावन गॉड फादर के स्टूडेन्ट। तो यह पाठशाला है। पाठशाला में पढ़ाई होती है। मेहनत करनी पड़ती है और उन सतसंगों में मेहनत नहीं है। वहाँ तो गीता सुनी, ग्रंथ सुना और घर गया। वहाँ कोई थोड़ेही कहता है कि पवित्र बनो, यात्रा करो। आगे चल यह सब जिस्मानी यात्रायें आदि बन्द हो जायेंगी। बर्फ पड़ी वा एक्सीडेन्ट हुआ तो कोई जायेंगे नहीं क्योंकि तुम्हारी यात्रा जोर होती जायेगी। हमारी यात्रा है शिवालय तरफ। पहले शिव की पुरी शिवालय में जायेंगे। फिर शिव की स्थापन की हुई पुरी शिवालय (स्वर्ग) में जायेंगे। शिवपुरी और विष्णुपुरी दोनों को शिवालय कहेंगे क्योंकि मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों शिवबाबा ही देते हैं। तो सतयुगी दैवी घराना शिवबाबा स्थापन करते हैं।
अच्छा - याद में आवाज का विघ्न पड़ नहीं सकता। ज्ञान सुनने में शोर का विघ्न पड़ेगा। मनुष्य तो कहते हैं शान्ति करो, नहीं तो याद में विघ्न पड़ेगा। परन्तु योग में आवाज विघ्न नहीं डालता। विघ्न डालती है माया। बच्चों के साथ माया की युद्ध है। बच्चों को युद्ध के मैदान में हार नहीं खानी चाहिए। माया तो घूंसा लगाती रहती है। माया ने नाक पर घूंसा लगाया तो यह गिरा। फिर खड़े हुए फिर नाक पर लगाया तो यह गिरे। तो बाप कहते हैं यह माया काम क्रोध के घूंसे मारती है, इससे तुम्हें बहुत-बहुत सावधान रहना है। घूंसे नहीं खाने हैं। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान के सब अलंकारों को धारण कर स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी अर्थात् मास्टर गॉड बनना है।
2) बाप के राइट हैण्ड धर्मराज़ को स्मृति में रख कोई भी विकर्म नहीं करने हैं। पावन बनने की प्रतिज्ञा करके विकार में नहीं जाना है।
वरदान:
ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खिलाने वाले श्रेष्ठ नसीबवान भव!
विश्व के मालिक के हम बालक सो मालिक हैं - इसी ईश्वरीय नशे और खुशी में रहो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् नसीब। इसी खुशी के झूले में सदा झूलते रहो। सदा खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते भी हो। औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो। आपकी जीवन ही खुशी है। खुश रहना ही जीना है। यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है।
स्लोगन:
हर परिस्थिति में सहनशील बनो तो मौज का अनुभव करते रहेंगे।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य (23-1-57)
अभी तो यह सारी दुनिया जानती है कि परमात्मा एक है, उस ही परमात्मा को कोई शक्ति मानते हैं, कोई कुदरत कहते हैं मतलब तो कोई न कोई रूप में जरूर मानते हैं। तो जिस वस्तु को मानते हैं अवश्य वह कोई वस्तु होगी तब तो उनके ऊपर नाम पड़े हैं परन्तु उस एक वस्तु के बारे में इस दुनिया में जितने भी मनुष्य हैं उतनी मतें हैं, परन्तु चीज़ फिर भी एक ही है। उसमें मुख्य चार मतें सुनाते हैं - कोई कहता है ईश्वर सर्वत्र है, कोई कहता है ब्रह्म ही सर्वत्र है, कहते हैं सर्वत्र ब्रह्म ही ब्रह्म है। कोई कहता ईश्वर सत्यम् माया मिथ्यम्, कोई कहता ईश्वर है ही नहीं, कुदरत ही कुदरत है। वो फिर ईश्वर को नहीं मानते। अब यह हैं इतनी मतें। वो तो समझते हैं जगत् प्रकृति है, बाकी कुछ है नहीं। अब देखो जगत् को मानते हैं परन्तु जिस परमात्मा ने जगत् रचा उस जगत् के मालिक को नहीं मानते! दुनिया में जितने अनेक मनुष्य हैं, उन्हों की इतनी मतें, आखरीन भी इन सभी मतों का फैंसला स्वयं परमात्मा आकर करता है। इस सारे जगत् का निर्णय परमात्मा आकर करता है अथवा जो सर्वोत्तम शक्तिवान होगा, वही अपनी रचना का निर्णय विस्तारपूर्वक समझायेगा, वही हमें रचता का भी परिचय देते हैं और फिर अपनी रचना का भी परिचय देते हैं।
कई मनुष्य ऐसे प्रश्न पूछते हैं, हमको क्या साबती है कि हम आत्मा हैं! अब इस पर समझाया जाता है, जब हम कहते हैं अहम् आत्मा उस परमात्मा की संतान हैं, अब यह है अपने आपसे पूछने की बात। हम जो सारा दिन मैं मैं कहता रहता हूँ, वो कौनसी पॉवर है और फिर जिसको हम याद करते हैं वो हमारा कौन है? जब कोई को याद किया जाता है तो जरूर हम आत्माओं को उन्हों द्वारा कुछ चाहिए, हर समय उनकी याद रहने से ही हमको उस द्वारा प्राप्ति होगी। देखो, मनुष्य जो कुछ करता है जरूर मन में कोई न कोई शुभ इच्छा अवश्य रहती है, कोई को सुख की, कोई को शान्ति की इच्छा है तो जरूर जब इच्छा उत्पन्न होती है तो अवश्य कोई लेने वाला है और जिस द्वारा वो इच्छा पूर्ण होती है वो अवश्य कोई देने वाला जरूर है, तभी तो उनको याद किया जाता है। अब इस राज़ को पूर्ण रीति से समझना है, वह कौन है? यह बोलने वाली शक्ति मैं स्वयं आत्मा हूँ, जिसका आकार ज्योति बिन्दू मिसल है, जब मनुष्य स्थूल शरीर छोड़ता है तो वो निकल जाती है। भल इन ऑखों से नहीं दिखाई पड़ती है, अब इससे सिद्ध है कि उसका स्थूल आकार नहीं है परन्तु मनुष्य महसूस अवश्य करते हैं कि आत्मा निकल गई। तो हम उसको आत्मा ही कहेंगे जो आत्मा ज्योति स्वरूप है, तो अवश्य उस आत्मा को पैदा करने वाला परमात्मा भी उसके ही रूप मुआफिक होगा, जो जैसा होगा उनकी पैदाइस भी वैसी होगी। फिर हम आत्मायें उस परमात्मा को क्यों कहते हैं कि वो हम सर्व आत्माओं से परम हैं? क्योंकि उनके ऊपर कोई भी माया का लेप-छेप नहीं है। बाकी हम आत्माओं के ऊपर माया का लेप-छेप अवश्य लगता है क्योंकि हम जन्म मरण के चक्र में आती हैं। अब यह है आत्मा और परमात्मा में फर्क। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 5-Oct- 2017 )
Hinglish Summary
05.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Bharat jo sahookar tha wohi ab garib bana hai, Baap he is garib Bharat ko fir se sahookar banate hain.
Q-Tum Gop-Gopiyon me sabse khushnasib kaun aur kaise?
A- Sabse khushnasib wo hai jo godly gyan dance karte hain, wohi fir Satyug me jaakar Prince-Princess ke saath dance karenge. Aise khushnasib bacche abhi Baap par poora-poora bali chadhte hain, kehte hain Baba main tera, mera kuch bhi nahi. Aap humko Swarg ka mallik banate ho to main kyun nahi balihar jaun.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sada is nashe me rehna hai ki hum Brahmand aur Biswa me mallik ban rahe hain. Hum Brahman he fir Devta banenge.
2) Apni avastha mazboot banani hai. Mout se bhi darna nahi hai. Baap ki yaad me rehna hai. Dharna kar auro ki service karni hai.
Vardaan:- Dukh ko sukh, glani ko prasansa me parivartan karne wale Punya Aatma bhava.
Slogan:--Bapdada ko nayno me samane wale he jahan ke noor, Bapdada ka sakshatkar karane wali shrest aatma hain.
HINDI DETAILS VERSION- 05-10-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - भारत जो साहूकार था वही अब गरीब बना है, बाप ही इस गरीब भारत को फिर से साहूकार बनाते हैं”
प्रश्न:
तुम गोप-गोपियों में सबसे खुशनसीब कौन और कैसे?
उत्तर:
सबसे खुशनसीब वह हैं जो गॉडली ज्ञान डांस करते हैं, वही फिर सतयुग में जाकर प्रिन्स-प्रिन्सेज के साथ डांस करेंगे। ऐसे खुशनसीब बच्चे अभी बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ते हैं, कहते हैं बाबा मैं तेरा, मेरा कुछ भी नहीं। आप हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हो तो मैं क्यों नहीं बलिहार जाऊं।
ओम् शान्ति।
बाप बच्चों को धीरज दे रहे हैं कि हे भारतवासी बच्चे, कौन से बच्चे? जो देवताओं के पुजारी हैं। वह मानते हैं हमारे ईष्ट देव बड़े देवतायें थे। क्रिश्चियन क्राइस्ट की पूजा करेंगे। बौद्धी बुद्ध की पूजा करेंगे। जैन महावीर की पूजा करेंगे। हर एक अपने-अपने धर्म के बड़े की पूजा करेंगे अथवा याद करेंगे। देवी देवताओं के मन्दिर हैं। उनमें शिव का मन्दिर भी आ जाता है। वह है निराकार। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आकारी हैं और लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, जगत अम्बा, जगत पिता है साकार। इन बातों को दुनिया वाले नहीं जानते हैं। तो जो देवताओं के पुजारी हैं उनके लिए बाबा कहते हैं कि धीरज धरो, अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। भारत स्वर्ग था, लक्ष्मी-नारायण के राज्य को स्वर्ग कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण के राज्य को 5 हजार वर्ष हुए। सीताराम के लिए कहेंगे 3750 वर्ष हुए। यह तुम ब्रह्मा मुख वंशी ब्राह्मण कुल भूषण ही जानते हो। दुनिया में सब अंधकार में होने के कारण बुद्धिहीन हैं। उनको समझाना है कि तुम्हारा एक है लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। वह है नई दुनिया का रचयिता। बाप नया घर बनाते हैं ना। बेहद का बाप नई सृष्टि बनाते हैं। अभी वह भारतवासी धर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। देवताओं की महिमा गाते हैं - सर्वगुण सम्पन्न... यह महिमा और कोई धर्म वाले की नहीं है। कोई भी धर्म वाले अपने ईष्ट देव की ऐसी महिमा नहीं गाते हैं। उनको देवताओं के भक्त मिलेंगे भी लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में। श्रीकृष्ण के भगत कृष्ण के मन्दिर में मिलेंगे। तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण सतयुग में भारत के मालिक थे। गोया भारतवासी सतयुग के मालिक थे। भारत बहुत साहूकार मालामाल था। जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। यह है भारत का प्राचीन सहज राजयोग और सहज ज्ञान। देवी-देवता धर्म है पुराना। परन्तु मनुष्य भूल गये हैं कि देवी-देवता धर्म की स्थापना किसने की। बाबा ने समझाया है तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। वह कलियुगी ब्राह्मण भी कहते हैं कि हम प्रजापिता ब्रह्मा वंशी हैं। परन्तु वह यह नहीं जानते कि ब्रह्मा कब आये थे। तुम अब प्रैक्टिकल में हो। तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण इस भारत में ही राज्य करके गये हैं। उनसे ऊंच मनुष्य कोई है नहीं। मनुष्यों को यह मालूम ही नहीं कि सतयुग को कितने वर्ष हुए! वह तो सतयुग की आयु कितने अरब कह देते हैं। शास्त्र बनाने वालों ने अपनी मत डाल दी है। अब बाप तुम बच्चों को समझाते हैं जो भारत के असुल देवी-देवता धर्म के थे, उन्हें बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में यहाँ आना है जरूर। यह वर्ण हैं ही भारतवासी देवी-देवता धर्म वालों के। पिछाड़ी वाले और धर्मो के नहीं हैं। तुम अभी ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण बने हो। तुम पुजारी से पूज्य बन रहे हो। तुम माताओं को भारत माता शक्ति अवतार कहा जाता है। जगत अम्बा का भी रीइनकारनेशन कहेंगे। शिवबाबा ने इस संगमयुग में अवतार लिया है। तुमको अपना बच्चा बनाया है।
तुम बच्चे जानते हो परमपिता परमात्मा जो सभी आत्माओं का बाप है वह है ब्रह्माण्ड का मालिक। उनको सृष्टि का मालिक नहीं कह सकते। भल पिता है परन्तु मालिक नहीं बनता है। यह भी गुह्य बात है। वह क्रियेटर है तो क्रियेशन का मालिक होना चाहिए। परन्तु बाबा कहता है मैं जो स्वर्ग स्थापन करता हूँ, उनका मालिक नहीं बनता हूँ। मालिक तुम बच्चों को बनाता हूँ। दुनिया में सब कहेंगे कि भगवान सृष्टि का मालिक है, परन्तु वह मालिक है रचने के लिए। बाकी स्वर्ग का मालिक तो तुमको ही बनाते हैं। बाप का काम है बच्चों को सिर पर चढ़ाना। बाप सेवाधारी है ना। बच्चों को सब कुछ देकर चला जाता हूँ। बाप भी कहते हैं तुमको लायक बनाए नई सृष्टि रचवाकर उनका मालिक बनाए मैं रिटायर हो जाता हूँ। तुम ब्रह्माण्ड के भी मालिक कहलायेंगे क्योंकि तुम ब्रह्माण्ड के मालिक के बच्चे हो। तुम भी ब्रह्म महतत्व में जायेंगे तो ब्रह्माण्ड के मालिक कहलायेंगे। वहाँ भल तुम आत्मायें चैतन्य हो परन्तु आरगन्स नहीं हैं। जब परमधाम में हो तो ब्रह्माण्ड के मालिक हो फिर तुम सृष्टि के मालिक बनेंगे। फिर तुमको राज्य भाग्य गँवाना पड़ेगा। यह ज्ञान न देवताओं को, न शूद्रों को हो सकता है। यह ज्ञान सिर्फ तुम ब्राह्मणों को है। बाबा कितनी गुह्य बातें समझाते हैं। कहते हैं तुम्हारा ही हीरो पार्ट है। जगत अम्बा ज्ञान ज्ञानेश्वरी है। फिर राज-राजेश्वरी बनती है, ततत्वम्। ऐसे नहीं सिर्फ 2-4 का पार्ट है। सृष्टि का राज्य लेना और गँवाना यह भारतवासियों का खेल है। भारतवासी ही सृष्टि के मालिक थे, आज कंगाल बने हैं। अपवित्र राजाओं का भी राज्य नहीं है, पंचायती राज्य है। कहा जाता है रिलीजन इज माइट, सर्वशक्तिमान बाप बैठ देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। कितनी माइट देते हैं, जो हम सृष्टि के मालिक बन जाते हैं। भारत में तो अनेक धर्म हैं। गुजरात में रहने वाले कहते हैं हम गुजराती हैं। सतयुग में एक ही धर्म था। बाप कहते हैं तुमको फिर से गीता का ज्ञान सुनाता हूँ। जब तक जियेंगे तब तक ज्ञान अमृत पियेंगे। अनेक जन्मों का बोझा है, वह उतरने का है। उन्होंने तो युद्ध का मैदान दिखलाए कृष्ण का नाम डाल दिया है। भगवान कहते हैं तुम्हारे रथ में प्रवेश कर माया पर जीत पहनाने के लिए युद्ध के मैदान में खड़ा करता हूँ। साथ-साथ बच्चों को भी खड़ा करता हूँ। तुम जानते हो माया जीत बन स्वर्ग के मालिक बनेंगे। वह लोग फिर सिपाहियों को कहते हैं, कितना रात-दिन का फ़र्क है। तुमको मन्दिरों में जाकर सर्विस करनी चाहिए। उनको बताओ यह लक्ष्मी-नारायण ही भारत के मालिक थे। फिर ऐसे स्लोगन बनाओ कि भारतवासी स्वर्ग के मालिक थे। अब मिलकियत गँवा दी है। शास्त्रों में कृष्ण और महाभारत लड़ाई दिखा दी है। भक्ति में भगवान से मिलने के लिए साधना करते हैं। पुकारते हैं कि आकर माया रावण से लिबरेट करो। कितना हाहाकार मचा हुआ है। लड़ाई लगेगी तो अन्न, कपड़ा, कुछ भी नहीं मिलेगा। बाम्बे को क्वीन आफ इण्डिया कहते हैं क्योंकि उन्हें स्वर्ग के सुखों का पता नहीं है। हमको मालूम हैं तो हम अन्दर डांस करते रहते हैं। ज्ञान को सद्गति कहा जाता है। ज्ञान कौन सा? सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का। तुम अब बुद्धि से काम लो कि हम कैसे सबको समझायें। देवतायें जो पावन थे वही अब पतित बन गये हैं, उन्हों को ढूँढना पड़े। वह मन्दिरों में जल्दी मिलेंगे और वह भी खुश होंगे। जगत अम्बा का मन्दिर नीचे है वास्तव में दोनों का इकट्ठा होना चाहिए। तुम जानते हो ब्रह्मा की बेटी नम्बरवन प्रिन्सेज़ बनेगी। तुम जगत अम्बा के 84 जन्मों की बायोग्राफी बता सकते हो। तुम शिवबाबा की बायोग्राफी को जानते हो। ऐसे नहीं वह पत्थर-भित्तर में है। आगे हम भी ऐसे समझते थे। यह भी अभी कहते हैं। आगे तो अपने को बहुत ऊंचा समझते थे। सबसे ऊंचा जवाहरात का धन्धा है, उनसे ऊंचा यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा है। तुम 9 रत्न की अंगूठी भी पहनते हो। वह भी इनसे भेंट है। आगे तो कुछ पता नहीं था।
आज मुख्य बात समझाई कि ब्रह्माण्ड का मालिक सृष्टि का रचयिता परमात्मा है। वह राज्य नहीं करते। राज्य हम बच्चों को देते हैं। हमको ही राज्य लेना और गंवाना है। यह भी तो मालूम होना चाहिए ना। गँवाये हुए राज्य में कितना जन्म लेते हैं? फिर अपने राज्य में कितने जन्म लेते हैं? और बाकी क्या चाहिए। मनुष्य तो देह अभिमानी होने कारण उल्टे लटके हुए हैं। तुम अभी सुल्टे हुए हो। मनुष्य जब मरते हैं तो फिर उनका मुँह फेर देते हैं। अब हमारा मुँह है परमधाम तरफ। हम यह शरीर छोड़ सीधे चले जायेंगे। अच्छा, बाप कहते हैं मनमनाभव। मेरे को याद करने से तुम मेरे पास आ जायेंगे। यहाँ बेहद में क्लास अच्छा है। अन्दर कमरे में बाबा को जैसे गर्भजेल भासता है। बेहद के बाप को बेहद चाहिए। इतना बड़ा बेहद का मालिक इस हद (शरीर) में आकर बैठते हैं, तुम्हारी सर्विस करने। इनको आना ही है पतित शरीर, पतित दुनिया में। कहते हैं तुम बच्चों को पतित से पावन बनाए, स्वर्ग का मालिक बनाए फिर मैं चला जाता हूँ। अभी उथल-पाथल होगी। तो कई जो कच्चे हैं उनके तो देखकर ही प्राण निकल जायेंगे। किसको मरता हुआ देखकर भी कईयों को बड़ा शॉक आ जाता है और मर जाते हैं। तुमको तो बहुत मजबूत होना चाहिए। गाया भी जाता है कि मिरूआ मौत मलूका शिकार। स्वर्ग के लायक तो अब हम बन रहे हैं। बाप कहते हैं इस लड़ाई द्वारा ही गेट खुलते हैं। अब चलो वापिस, खेल पूरा हुआ। बाबा है रूहानी गाइड, रूहानी धाम में ले जाते हैं इसलिए अब बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। कोई-कोई का तो यहाँ बहुत छोटा जन्म होता है। गर्भ में बहुत सजायें खाते हैं। बाहर आया और बच्चा मर गया फिर दूसरा हिसाब-किताब भोगने जाता है। बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे इन ज्ञान रत्नों को बुद्धि में धारण करो। मन्दिरों में जाकर सर्विस करो, इसको मेहनत कहा जाता है। डरो मत। जो अपने धर्म के होंगे उनको तीर लगेगा। सन्यासियों के पास जाकर देखना चाहिए। (बिच्छू के डंक का मिसाल) देखो पत्थर है तो डंक नहीं लगाओ। ट्राई करनी चाहिए। कोशिश करते-करते सक्सेसफुल हो ही जायेंगे। अभी अजुन वह ज्ञान और योग की ताकत आई नहीं है इसलिए अभी सन्यासियों, राजाओं आदि को कहाँ समझाया है। जनक, परिच्छित, सन्यासी आदि सब पिछाड़ी में ही आते हैं। उनको ज्ञान देंगे तो फिर प्रभाव निकल जायेगा। फिर उस समय तुम कहेंगे टू लेट। बाबा आया था झोली भरने, परन्तु तुम आये ही नहीं। हमेशा विचार करो कि कैसे सर्विस करनी चाहिए। निमंत्रण छपाओ। आइडिया निकालो। सर्विस भी ड्रामा अनुसार ही होती है। हम साक्षी हो देखते हैं। भगवानुवाच बच्चों प्रति, गोप गोपियों प्रति। गोपी बल्लभ भगवान है। वह है बाप। गोप गोपियाँ सब तो यहाँ ही हैं। सतयुग में थोड़ेही होंगे। यह है गाडली ज्ञान का डांस। फिर वहाँ जाकर प्रिन्स प्रिन्सेज के साथ डांस करेंगे। तुम बच्चे बड़े ही खुशनसीब हो, सिर्फ बलि चढ़ जाओ। बाबा मैं तेरी हूँ, क्यों नही बलिहार जाऊंगी। आप हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हो। बड़ी जबरदस्त कमाई है। बाकी सब तो कब्रदाखिल होने हैं। कब्रिस्तान फिर परिस्तान होगा। देहली परिस्तान थी, परियों का स्थान था। देवी-देवताओं को परिस्तान की परियां कहा जाता है। अब कब्रिस्तान है। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा इस नशे में रहना है कि हम ब्रह्माण्ड और विश्व के मालिक बन रहे हैं। हम ब्राह्मण ही फिर देवता बनेंगे।
2) अपनी अवस्था मजबूत बनानी है। मौत से भी डरना नहीं है। बाप की याद में रहना है। धारणा कर औरों की सर्विस करनी है।
वरदान:
दु:ख को सुख, ग्लानि को प्रशंसा में परिवर्तन करने वाले पुण्य आत्मा भव!
पुण्य आत्मा वह है जो कभी किसी को न दुख दे और न दुख ले, ब्लिक दुख को भी सुख के रूप में स्वीकार करे। ग्लानि को प्रशंसा समझे तब कहेंगे पुण्य आत्मा। यह पाठ सदा पक्के रहे कि गाली देने वाली व दुख देने वाली आत्मा को भी अपने रहमिदल स्वरूप से, रहम की दृष्टि से देखना है। ग्लानि की दृष्टि से नहीं। वह गाली दे और आप फूल चढ़ाओ तब कहेंगे पुण्य आत्मा।
स्लोगन:
बापदादा को नयनों में समाने वाले ही जहान के नूर, बापदादा का साक्षात्कार कराने वाली श्रेष्ठ आत्मा हैं।
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Details ( Page:- Murali 6-Oct 2017 )
Hinglish Summary
06.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Is samay swayang Bhagwan tumhare saamne haazir-nazir hai, woh bahisat ki sougat lekar aya hai, isiliye apar khushi me raho
Q- Baap apne baccho par kaun si blessing karte hain?
A- Baccho ko aap samaan knowledgeful banana-yah unki blessing hai. Jis knowledge ke aadhar se nar se Sri Narayan ban jate hain. Baba kehte hain bacche main tumhe Rajyog ki shiksha dekar Rajaon ka Raja banata hun. Mere sivaye aisi blessing koi kar nahi sakta.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sachche saheb ko razi karne ke liye bahut-bahut sachchi dil rakhni hai, koi bhi bighna nahi dalna hai.
2) Sukh ka anubhav karne ke liye apna yog thik rakhna hai. Swadarshan chakra firate bikarmo ko bhasm karna hai.
Vardaan:-- Har sankalp, bol aur karm dwara punya karm karne wale Duwaon ke Adhikari bhava
Slogan:-S-Sada ek Baap ki company me raho aur Baap ko apna companion banao- yahi shresta hai.
Hindi Version in Details – 06-10-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - इस समय स्वयं भगवान तुम्हारे सामने हाज़िर-नाज़िर है, वह बहिश्त की सौगात लेकर आया है, इसलिए अपार खुशी में रहो”
प्रश्न:
बाप अपने बच्चों पर कौन सी ब्लैसिंग करते हैं?
उत्तर:
बच्चों को आप समान नॉलेजफुल बनाना - यह उनकी ब्लैसिंग है। जिस नॉलेज के आधार से नर से श्री नारायण बन जाते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे मैं तुम्हें राजयोग की शिक्षा देकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। मेरे सिवाए ऐसी ब्लैसिंग कोई कर नहीं सकता।
गीत:- मुझे गले से लगा लो.... ओम् शान्ति।
यह इस समय बांधेलियों का बुलावा है क्योंकि सारी दुनिया उदास है। उसमें भी गोपिकायें बहुत उदास हैं। वह गाती हैं हम सहन नहीं कर सकते। भक्ति में तो बुलाते रहते हैं परन्तु उनको मालूम नहीं है कि भगवान कौन है? यहाँ की गोपिकायें जानती हैं परन्तु बांधेली हैं, दु:खी हैं। चाहती हैं कि बाप हमको गले का हार बना दे। रुद्र माला शिव की मशहूर है। तो इस समय ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ चाहती हैं कि हम शिवबाबा के गले में पिरोये रहें क्योंकि इस समय स्त्री पुरुष आसुरी गले का हार हैं। बच्चियां चाहती हैं हम अब ईश्वरीय गले का हार बनें। जरूर जब बाप हाज़िर-नाज़िर है तब तो कहते हैं। जब कसम उठाते हैं तब कहते हैं ईश्वर को हाज़िर-नाज़िर जान सच कहेंगे। बड़े-बड़े गवर्मेन्ट के मिनिस्टर भी कसम उठाते हैं। गीता हाथ में लेते हैं क्योंकि भारत का धर्म शास्त्र है। तो एक ईश्वर का कसम उठाते हैं, ऐसे नहीं सब ईश्वर हैं, सबका कसम उठाते हैं। तो जरूर बाप कभी हाजिर-नाज़िर हुआ होगा। इस समय तो नहीं है। सिर्फ तुम्हारे लिए हाज़िर नाज़िर है, जो तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शिवरात्रि भी मनाते हैं, जरूर आया होगा! कैसे आया, क्या आकर किया? यह कोई को पता नहीं है। इतना बड़ा सोमनाथ का मन्दिर है परन्तु उसने क्या किया, वह पता नहीं क्योंकि शिव के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। संगमयुग निकाल द्वापर डाल दिया है। तुम बच्चे जानते हो कि वह निराकार है, उनका मनुष्य जैसा आकार नहीं। अब वह हमारे सामने बैठा है। तुम उनको हाजिर-नाज़िर देखती हो। बरोबर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। नॉलेज देते हैं, यही उनकी ब्लिस है। इस नॉलेज की ब्लिस से तुम नर से नारायण बनते हो। वह ब्रह्मा तन से खुद पढ़ा रहे हैं। बाप खुद कहते हैं लाडले बच्चे मैं तुमको राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। कृष्ण नहीं सिखला सकते। वह खुद राजाओं का राजा बना है। वह सिर्फ एक कृष्ण या लक्ष्मी-नारायण नहीं होगा। यह तो सारी सूर्यवंशी डिनायस्टी थी। उनका राज्य अब माया ने छीन लिया है। अब मैं फिर सम्मुख आया हूँ। अब तुम ब्राह्मणों के सम्मुख हाजिर-नाज़िर हूँ।
अब बाप जो इतना दूरदेश से आया होगा तो जरूर कोई सौगात लाई होगी। लौकिक बाप जब आते हैं तो कितनी सौगात लाते हैं। यह तो सबका बाप है, जिसको इतना सब याद करते हैं। दूरदेश से आते हैं तो हाथ खाली थोड़ेही आयेगा? बाप कहते हैं मैं तुम्हारे लिए सौगात लाता हूँ, जो कोई मनुष्य ला न सकें। मैं बहिश्त हेविन लाता हूँ। कितनी बड़ी सौगात है। बाबा साक्षात्कार भी कराते हैं, वहाँ कितना सुख है। अंग-अंग में सुगंध है। लक्ष्मी-नारायण के अंग-अंग में सुगंध है। यह तन तो कीड़ों से भरा हुआ है। बाबा कीड़ों को उठाकर भ्रमरी बनाते हैं। यहाँ के शरीर तो कीटाणुओं से भरे हुए रोगी हैं। वहाँ के शरीर कितने सुन्दर हैं। मन्दिरों में भी कितनी सुन्दर मूर्तियां बनाते हैं। कितना फ़र्क है - इस समय के शरीर और उन शरीरों में। 5 हजार वर्ष की बात है, यह भारत इन्द्रप्रस्थ था। वहाँ आत्मा भी पवित्र थी तो शरीर भी पवित्र था। बाबा ठिक्कर के बर्तन से तुमको सोने का बर्तन बनाते हैं। बाप तुम्हारी पूरी सर्विस कर क्या से क्या बनाते हैं। बाप का भी क्या पार्ट है फिर टीचर और सतगुरू का भी पार्ट बजाते हैं। उनको कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। तुम्हारे लौकिक बाप का तो बाप टीचर गुरू जरूर होगा। शिवबाबा कहते हैं मेरा कोई नहीं। परन्तु उनके आक्यूपेशन को कोई नहीं जानते। जब तक किसको स्वर्ग का मालूम न पड़े तब तक कोई भी जान नहीं सकते कि हम नर्क में हैं। ग्रंथ में पढ़ते हैं मूत पलीती... परन्तु अपने को वह नहीं समझते। बाप आया है ज्ञान देकर काले को गोरा बनाने के लिए। इस समय तुम ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा बन रहे हो। सन्यासी पवित्र प्रवृत्ति मार्ग नहीं बना सकते हैं, वह यह नहीं कह सकते कि हम तुमको राजाओं का राजा बनाते हैं। वह निवृत्ति मार्ग के हैं। डरकर घरबार छोड़ जाते हैं, यहाँ कोई डर नहीं। बाप के पास बच्चे आये हैं कहते हैं बाबा हमारे में ताकत है। इकट्ठे रह पवित्र रह सकते हैं। अगर कोई कन्या पर मार पड़ती है तो कन्या को बन्धन से छुड़ाकर गन्धर्वी विवाह कर सकते हैं, हम जल नहीं मरेंगे। ज्ञान तलवार बीच में रखेंगे। दोनों ब्राह्मण ब्राह्मणी, भाई-बहन कैसे विष पी सकते। शास्त्रों में भी गन्धर्वी विवाह के लिए लिखा है। परन्तु इसका अर्थ नहीं समझते। सन्यासी तो कह देते नारी नर्क का द्वार है। उन्हों के पास ज्ञान तलवार तो है नहीं जो इकट्ठे रह पवित्र रह सकें। तुम उनसे बहादुर हो, काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठते हो। तो काले से गोरे बन जाते हो। सन्यासी तो आजकल शादी भी कराते हैं, चर्च में भी शादियाँ होती हैं। नहीं तो क्राइस्ट को क्यों क्रास पर चढ़ाया? इस पवित्रता के कारण। कहा यह कौन है जो कहते हैं पवित्र बनो। आफतें तो आती हैं। यहाँ भी शिवबाबा पर नहीं आती हैं परन्तु जिसमें प्रवेश करते हैं लांग बूट में, उस पर आती हैं। वाट वेन्दे....(रास्ते चलते ब्राह्मण फंस गया) पुरानी जुत्ती है ना। यह थोड़ेही कहते हैं मैं कृष्ण हूँ। कहते हैं राजयोग सीखूंगा तो नर से नारायण बनूंगा, परन्तु अब नहीं हैं। वैसे बच्चों को निश्चय है कि हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। फेल नहीं होंगे जो क्षत्रिय बनें। राम को 33 से कम मार्क्स मिली तो चन्द्रवंशी में चले गये। ऐसे तो सूर्यवंशी भी चन्द्रवंशी घराने में आते हैं। उस समय (सतयुग के अन्त में) लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम को राज्य देते हैं, लक्ष्मी-नारायण भी पुनर्जन्म लेते-लेते त्रेता में आते हैं, रजवाड़े कुल में जन्म लेते रहते हैं। फिर सीता राम नाम चला आता है। लक्ष्मी-नारायण नाम खलास हो जाता है।
अब प्रश्न पूछता हूँ स्वदर्शन चक्र कौन सा है? (एक दो से पूछा) हाँ, यह है पा। कैसे देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र... अब ब्राह्मण वर्ण में आते हैं.. यह चक्र जितना फिरायेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे, इससे रावण का गला कटता है। तुम बच्चों का बेहद के बाप से अथाह प्यार है। तुम कहते भी हो बाबा हम आपका बिछुड़ना सहन नहीं कर सकते। ऐसी बच्चियां भी हैं जो बंधन में हैं, तड़फती हैं क्योंकि यह है मात-पिता... एक तो माता जगत अम्बा है, जिसको सब याद करते हैं। परन्तु जगत अम्बा का पिता कौन है, यह किसको पता नहीं कि ब्रह्मा, सरस्वती का बाप है। पुजारी लोग यह नहीं जानते हैं कि यह सरस्वती ही फिर लक्ष्मी बनती है। फिर 84 जन्म ले फिर यही सरस्वती बनती है। यह ज्ञान इस बाबा के पास थोड़ेही था। इसमें ज्ञान होता तो जरूर किसी गुरू से मिला हुआ होता। फिर उस गुरू की महिमा भी करते। फिर उस गुरू के शिष्य भी होते। वह भी बताते परन्तु बाबा का कोई साकार गुरू नहीं है। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू हूँ, मैं इस पुरानी जुत्ती में बैठ पढ़ाता हूँ। तो यह फिर माता हो गई इसलिए उनको मात-पिता कहते हैं। तुम मात-पिता जो गाते हैं वह ब्रहमा सरस्वती को नहीं कह सकते। ब्रह्मा थोड़ेही वैकुण्ठ का रचता है। बाप तो बाप है और यह ब्रह्मा तुम्हारी मम्मा है। कलष पहले इनको (ब्रह्मा को) मिलता है। परन्तु सरस्वती की महिमा बढ़ाने के लिए उनको आगे रखा है। सरस्वती का नाम गॉडेज ऑफ नॉलेज मशहूर है। विदुत मण्डली वाले भी सरस्वती का लकब रख लेते हैं।
अच्छा बाबा कहते हैं कितना समझाकर कितना समझायें, मनमनाभव। बस सिर्फ मुझे याद करो और मेरे वर्से को याद करो तो तुम स्वर्ग में चले जायेंगे। वहाँ भी तो नम्बरवार ही होंगे ना। सूर्यवंशी की रॉयल दास-दासियां भी तो हैं। तो प्रजा की भी दास-दासियां होंगी। चन्द्रवंशी राजा रानी की भी दास-दासियां तो हैं। वह सब यहाँ ही बन रही हैं। पूछो तो बता सकते हैं कि अगर अब तुम्हारा शरीर छूट जाए तो क्या जाकर बनेंगे? अच्छा कोई भी बात समझ में न आये तो पूछ सकते हो। याद रखना योग ठीक नहीं होगा तो वह सुख महसूस नहीं होगा। शोक वाटिका में बैठे होंगे, स्वर्ग है अशोक वाटिका। सीता अशोक वाटिका में नहीं, शोक वाटिका में थी। अब तो सब शोक वाटिका में बैठे हैं ना। मनुष्यों को चिंता रहती है कि पता नहीं लड़ाई होगी तो क्या होगा? हम तो कहते हैं कि लड़ाई लगे तो स्वर्ग के गेट्स खुलेंगे।
अच्छा - याद रखना, सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। अगर अन्दर शैतानी होगी तो विघ्न डालते रहेंगे। तो फिर कड़ी सजायें खायेंगे। ट्रेटर्स को हमेशा कड़ी सजायें मिलती हैं, यह तो सुप्रीम जज भी है। (कृष्ण का चित्र दिखलाकर) देखो इन पर भी कितने कलंक लगाये हैं। इसने तो न कपड़े चुराये और न ही कंस जरासंधी को मारा। उसका भी (कृष्ण का) मुँह काला कर दिया है। अच्छा।
बापदादा तो तुम बच्चों के सम्मुख हाजिर-नाज़िर है। तुम कहेंगे हमारी नज़र के सामने है। पतित बूट में आया है। भगवान खुद कहते हैं मैने पतित बूट में प्रवेश किया है तब तो पावन बने। अब ब्रह्मा की रात है, तो ब्रह्मा भी रात में होगा ना। फिर विष्णु बनेंगे तो दिन हो जायेगा। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार दे रहे हैं। दादा कहो वा गुप्त माँ कहो। वन्डरफुल राज़ है। बापदादा मीठे-मीठे बच्चों को नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार क्यों कहते? जानते हो बाबा प्यार तब करेंगे जब बाबा मुआफिक सर्विस करते होंगे। जो जैसी मदद करते हैं, वह भी तो प्रजा में आयेंगे ना। उसमें भी नम्बरवार साहूकार प्रजा भी होती है ना। अच्छा। गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चे साहेब को राज़ी करने के लिए बहुत-बहुत सच्ची दिल रखनी है, कोई भी विघ्न नहीं डालना है।
2) सुख का अनुभव करने के लिए अपना योग ठीक रखना है। स्वदर्शन चक्र फिराते विकर्मो को भस्म करना है।
वरदान: हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा पुण्य कर्म करने वाले दुआओं के अधिकारी भव!
अपने आपसे यह दृढ़ संकल्प करो कि सारे दिन में संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्म द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य ही करेंगे। पुण्य का प्रत्यक्षफल है हर आत्मा की दुआयें। तो हर संकल्प में, बोल में दुआयें जमा हों। सम्बन्ध-सम्पर्क से दिल से सहयोग की शुक्रिया निकले। ऐसे दुआओं के अधिकारी ही विश्व परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। उन्हें ही प्राइज़ मिलती है।
स्लोगन: सदा एक बाप की कम्पनी में रहो और बाप को अपना कम्पेनियन बनाओ - यही श्रेष्ठता है।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
“आत्मा कभी परमात्मा का अंश नहीं हो सकती है”
बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं, हम आत्मायें परमात्मा की अंश हैं, अब अंश तो कहते हैं टुकडे को। एक तरफ कहते हैं परमात्मा अनादि और अविनाशी है, तो ऐसे अविनाशी परमात्मा को टुकडे में कैसे लाते हैं! अब परमात्मा कट कैसे हो सकता है, आत्मा ही अज़र अमर है, तो अवश्य आत्मा को पैदा करने वाला अमर ठहरा। ऐसे अमर परमात्मा को टुकडे में ले आना गोया परमात्मा को भी विनाशी कह दिया लेकिन हम तो जानते हैं कि हम आत्मा परमात्मा की संतान हैं। तो हम उसके वंशज ठहरे अर्थात् बच्चे ठहरे वो फिर अंश कैसे हो सकते हैं? इसलिए परमात्मा के महावाक्य हैं कि बच्चे, मैं खुद तो इमार्टल हूँ, जागती ज्योत हूँ, मैं दीवा हूँ मैं कभी बूझता नहीं हूँ और सभी मनुष्य आत्माओं का दीपक जगता भी है तो बुझता भी है। उन सबको जगाने वाला फिर मैं हूँ क्योंकि लाइट और माइट देने वाला मैं हूँ, बाकी इतना जरुर है मुझ परमात्मा की लाइट और आत्मा की लाइट दोनों में फर्क अवश्य है। जैसे बल्ब होता है कोई ज्यादा पॉवर वाला, कोई कम पॉवर वाला होता है वैसे आत्मा भी कोई ज्यादा पॉवर वाली कोई कम पॉवर वाली है। बाकी परमात्मा की पॉवर कोई से कम ज्यादा नहीं होती है तभी तो परमात्मा के लिये कहते हैं कि वह सर्वशक्तिवान है अर्थात् सर्व आत्माओं से उसमें शक्ति ज्यादा है। वही सृष्टि के अन्त में आता है, अगर कोई समझे परमात्मा सृष्टि के बीच में आता है अर्थात् युगे युगे आता है तो मानो परमात्मा बीच में आ गया तो फिर परमात्मा सर्व से श्रेष्ठ कैसे हुआ। अगर कोई कहे परमात्मा युगे युगे आता है, तो क्या ऐसा समझें कि परमात्मा घड़ी घड़ी अपनी शक्ति चलाता है। ऐसे सर्वशक्तिवान की शक्ति इतने तक है, अगर बीच में ही अपनी शक्ति से सबको शक्ति अथवा सद् गति दे देवे तो फिर उनकी शक्ति कायम होनी चाहिए फिर दुर्गति को क्यों प्राप्त करते हो? तो इससे साबित (सिद्ध) है कि परमात्मा युगे युगे नहीं आता है अर्थात् बीच बीच में नहीं आता है। वो आता है कल्प के अन्त समय और एक ही बार अपनी शक्ति से सर्व की सद्गति करता है। जब परमात्मा ने इतनी बड़ी सर्विस की है तब उनका यादगार बड़ा शिवलिंग बनाया है और इतनी पूजा करते हैं, तो अवश्य परमात्मा सत् भी है चैतन्य भी है और आनंद स्वरूप भी है। अच्छा।
ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 7-Oct 2017 )
Hinglish Summary
07.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe Baap ko yaad karne ki race karni hai, Baap ko bhoolenge to maya ka gola lag jayega.
Q- Is drama ke kis guhya rahasya ko tum bacche he jaante ho?
A- Tum jaante ho is drama me bhinna-bhinna variety actor hain, har ek ka alag-alag part hai. Ek ka part, ek ka features dusre se nahi milte hain. Jo all-rounder hero part dhari hain unka he gayan hai. Baki jo thoda samay ek do janm part bajate woh kamzoor part dhari huye. 2. Sabhi partdhariyon me Parmatma byapak ho akela he dance nahi karta. Woh to is behad drama ka director hai. Wo naam roop se nyara nahi. Agar nyara ho to yah jo gayan hai - tumhari gat mat tum he jano........ wo wrong ho jaye.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Pavitra banne ki yukti apehi rachni hai. 21 janmo ki Rajai ke liye pavitrata ki pratigyan karni hai.
2) Shrest te shrest banne ke liye shrestachariyon se len-den karni hai. Baap ke sang me rahkar nirbhay banna hai.
Vardaan:-- Karm karte huye nyari aur pyari avastha me rah, halke pan ki anubhooti karne wale Karmathit bhava.
Slogan:--Sarv praptiyon se sada sampann raho to sada harshit, sada sukhi aur khushnasib ban jayenge.
Hindi Version in Details – 07/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - तुम्हें बाप को याद करने की रेस करनी है, बाप को भूलेंगे तो माया का गोला लग जायेगा
प्रश्न:
इस ड्रामा के किस गुह्य रहस्य को तुम बच्चे ही जानते हो?
उत्तर:
तुम जानते हो इस ड्रामा में भिन्न-भिन्न वैरायटी एक्टर हैं, हर एक का अलग-अलग पार्ट है। एक का पार्ट, एक के फीचर्स दूसरे से नहीं मिलते हैं। जो आलराउन्डर हीरो पार्टधारी हैं उनका ही गायन है। बाकी जो थोड़ा समय एक दो जन्म पार्ट बजाते वह कमजोर पार्टधारी हुए। 2. सभी पार्टधारियों में परमात्मा व्यापक हो अकेला ही डांस नहीं करता। वह तो इस बेहद ड्रामा का डायरेक्टर है। वह नाम रूप से न्यारा नहीं। अगर न्यारा हो तो यह जो गायन है - तुम्हारी गत मत तुम ही जानो...... वह रांग हो जाए।
ओम् शान्ति।
जैसे बाप ने कहा है कि मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ अर्थात् जिसकी वानप्रस्थ में रहने की अवस्था होती है। वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे, वह तो हुआ निर्वाणधाम। सुखधाम, दु:खधाम अर्थात् जहाँ मनुष्य रहते हैं। सुखधाम में मनुष्य रहते हैं। वहाँ उन्हों को सुख मिलता है तो नाम सुखधाम रखा है। धाम में कोई रहते हैं। अच्छा फिर शान्तिधाम कहते हैं। वहाँ तो मनुष्य रहने वाले नहीं हैं। शान्तिधाम कहने से फिर सिद्ध होता है वहाँ आत्मायें रहती हैं। वहाँ मनुष्य रह नहीं सकते। ऐसे नहीं कि मनुष्य सतयुग में शान्ति में रहते हैं तो कोई गुफा में रहते हैं वा मन को अमन कर देते हैं, नहीं। वहाँ तो है ही एक अद्वेत धर्म, द्वेत की बात नहीं। फिर जितने धर्म बढ़ते जाते हैं तो द्वेत बढ़ता जाता है, जहाँ द्वेत है वहाँ अशान्ति है। वानप्रस्थ, उनको कहा जाता है निर्वाणधाम। अब तुम बच्चों को पता है कि हम आत्माओं को रहना निर्वाणधाम में होता है, उनको फिर मुक्तिधाम कहा जाता है। वहाँ शान्ति में तो सिर्फ आत्मायें रहती हैं। सुखधाम में तो शरीर है ना। शरीर के साथ कभी शान्ति रह नहीं सकती। हठयोग, प्राणायाम आदि चढ़ाकर 10-20 दिन वा मास भी रहते हैं। परन्तु कहाँ तक शान्ति में रहेंगे? मुक्ति जीवनमुक्ति में तो जा न सकें। यह ड्रामा है ना। इस समय सभी आत्मायें यहाँ कर्मक्षेत्र पर आ जानी चाहिए क्योंकि नम्बरवार आना है। आत्मायें भी नम्बरवार हैं ना। कोई सतोप्रधान हैं, कोई सतो, रजो, तमो हैं। जो पिछाड़ी में थोड़ा पार्ट बजाते हैं वह तो जैसे कमजोर आत्मायें हैं। बिल्कुल थोड़ा पार्ट है। उनका इतना प्रभाव नहीं हो सकता, इतना गाये नहीं जाते हैं। विचार करो कौन-कौन गाये जाते हैं। ऊंचे ते ऊंचा है भगवान। भारत की ही बात है। दूसरी जगह किसका गायन करें? धर्म स्थापकों का। जैसे क्राइस्ट फिर पोप आते हैं, उनके भी चित्र हैं। गायन होता है जिन आत्माओं का, उनका भारी पार्ट है। तुम बच्चे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। ड्रामा में कौन से फर्स्ट क्लास एक्टर्स हैं। अखबार में भी डालते हैं तो मनुष्यों को खैंच हो कि फलाने को देखें। कोई को पता नहीं कि यह बेहद का 5 हजार वर्ष का ड्रामा है। विलायत वाले भी बहुत गपोड़े मारते हैं। सबसे जास्ती यहाँ वाले गपोड़े मारते हैं। तो बाप आकर हमको सारी नॉलेज देते हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह जरूर बैठना चाहिए। मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर कौन है? शिवबाबा। वही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। हम शिवबाबा को एक्टर कह सकते हैं। मनुष्य तो कहते कि वह कभी एक्ट करते ही नहीं। वह नाम रूप से न्यारा है। फिर कहते हैं वह तो सर्वव्यापी है। तो क्या एक ही एक्टर है जो सबमें डांस करता है? नहीं, यह तो हर एक की एक्ट भिन्न-भिन्न है। एक न मिले दूसरे से। कितने अनेक मनुष्य हैं, एक के फीचर्स दूसरे से मिल नहीं सकते। बच्चे जानते हैं यह वर्ल्ड ड्रामा हूबहू रिपीट होता रहता है। तुम्हारे पास गीत भी है कि फिर से गीता का ज्ञान सुनाना पड़ा। बाप कहते हैं तुमको मैं कितना बारी ज्ञान सुनाता हूँ! हम तुम और सारी दुनिया अब है, कल्प पहले भी थी। कल्प-कल्प फिर मिलते रहेंगे। दूसरी और दुनिया होती नहीं। बाप कहते हैं हम एक हैं तो रचना भी एक है। गाड इज वन। दूसरे नाम निशान नहीं। ऊंचे ते ऊंचा है ही एक शिवबाबा। फिर कहते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा। त्रिमूर्ति में ब्रह्मा को जास्ती रखते हैं। त्रिमूर्ति शंकर नहीं कहेंगे। गाया भी जाता है देव-देव महादेव। पहले ब्रह्मा आता है। इन तीन देवताओं में नम्बरवन है ब्रह्मा। ब्रह्मा को ही गुरू कहते हैं। शंकर को वा विष्णु को कभी गुरू नहीं कहेंगे। त्रिमूति में मुख्य ब्रह्मा है। वह सूक्ष्मवतनवासी तो है सम्पूर्ण ब्रह्मा। फीचर्स तो एक जैसे ही हैं। तो ऊंच ते ऊंच हुआ शिवबाबा, सभी का बाबा। फिर गाया जाता है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर, जिससे मनुष्य सृष्टि रूपी सिजरा निकलता है। यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है। पहले-पहले एडम अर्थात् आदि देव, आदि देवी, उनसे रचना रचते हैं। परन्तु ब्रह्माकुमार कुमारी कोई सब थोड़ेही बनते हैं। जो ब्राह्मण बनते हैं वही फिर देवता बनते हैं। यह पढ़ाई है। यज्ञ में चाहिए भी ब्राह्मण। वह ब्राह्मण लोग मैटेरियल यज्ञ रचने वाले हैं। तुम्हारा यज्ञ है रूहानी। उनका यज्ञ कुछ समय चलता है। फिर पिछाड़ी में आहुति डालते हैं - तिल, घृत आदि। यह तो बड़ा भारी यज्ञ है, इसमें सारी दुनिया स्वाहा हो जानी है। सतयुग, त्रेता में कभी यज्ञ होता नहीं। वह यज्ञ रचते हैं उपद्रव मिटाने के लिए। उपद्रव शुरू होते हैं द्वापर से। बाप कहते हैं इस यज्ञ के बाद फिर आधाकल्प कोई यज्ञ होता नहीं। समझाया जाता है अब जज करो - राइट कौन है? यह छोटे-छोटे यज्ञ सब हद के हैं। यह है बेहद का यज्ञ। इस यज्ञ में सारी आहुति पड़ेगी। फिर आधाकल्प कोई यज्ञ नहीं। कोई मन्दिर पूजा के लिए नहीं होता। मन्दिर बनते ही हैं भक्ति मार्ग में। तो ऊंचे ते ऊंच शिवबाबा को सब भगत याद करते हैं। परन्तु पहचान न होने कारण नेती-नेती कह देते हैं। रचना और रचता का पारावार हम पा नहीं सकते। और फिर गाते हैं भगवान तुम्हारी गत मत न्यारी, आपेही जानो। जरूर कोई चीज़ है तब तो कहते हैं ना आप ही जानो। जरूर नाम रूप वाला होगा तब तो कहते हैं हे भगवान - आपकी गत मत न्यारी। परन्तु मनुष्य तो इसका अर्थ समझते नहीं हैं। बाप समझाते हैं मेरी मत सबसे न्यारी है। तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाकर फिर श्रेष्ठ देवता बनाता हूँ। जीवनमुक्ति दाता हूँ। मैं सर्व का लिबरेटर हूँ। कलियुग पूरा हो फिर सतयुग होता है। सतयुग में दु:ख की बात होती नहीं। बाप अब दु:ख से लिबरेट करते हैं। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। कलियुग के अन्त में ही लिबरेटर आते हैं। आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं। यहाँ तो बहुत दु:ख है, इनको स्वर्ग नहीं कह सकते। पुरानी दुनिया को नई दुनिया थोड़ेही कहेंगे। नई दुनिया में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। पुरानी दुनिया में क्या लगा पड़ा है। यह फिर नई दुनिया बनती है। ऊंचे ते ऊंच बाबा ही आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया बनाते हैं। सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहते हैं। ऐसे कहाँ भी लिखा हुआ नहीं है कि प्रजापिता ब्रह्मा सूक्ष्मवतन वासी है। सूक्ष्मवतन में थोड़ेही प्रजा होती है। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ ही चाहिए। ऊंच ते ऊंच शिवबाबा फिर सेकेण्ड नम्बर में है ब्रह्मा। शिवबाबा इन ब्रह्मा द्वारा बैठ सर्विस करते हैं। ब्राह्मणों को देवता बनाते हैं। यह तो है ही पाप आत्माओं की दुनिया, रावण राज्य। जो कुछ करते हैं, उनसे मनुष्यों के पाप ही होते हैं भ्रष्टाचारियों से ही लेन-देन होगी। भ्रष्टाचार शुरू होता है द्वापर से। फिर अन्त में बाप आकर महान श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। कला कमती होने में 5 हजार वर्ष लगते हैं, जो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवता थे वही फिर नीचे उतरते हैं। यह खेल ही ऐसा है। कितना अच्छी रीति बाप बैठ समझाते हैं। कोई बैठ समझे तो अच्छी तरह से समझ सकते हैं। तुम तो कराची में भट्ठी में पड़े, समझने के लिए आते थे। पार्टीशन के बाद सब भाग गये, तुम तो वहाँ रहे पड़े थे। तुमको किसका संग नहीं था। संग से दूर होते भी नम्बरवार पुरूषार्थ किया। सब तो एक जैसा पुरूषार्थ कर भी नहीं सकते। स्कूल में भी सब एक जैसे नम्बर कोई लेते नहीं हैं। दो स्टूडेन्ट को 99 मार्क्स मिल नहीं सकते। क्लास में एक दो के ऊपर थोड़ेही बैठेंगे। घोड़ों की भी रेस होती है, उसमें भी एक जैसे दो हो नहीं सकते। इसका नाम रखा है राजस्व अश्वमेध, अश्व कहा जाता है घोड़े को, तुम हो रूहानी घोड़े। तुम्हारी दौड़ी है घर की तरफ कि पहले हम बाप के पास पहुंचे। वहाँ तो साइकिलों की, घोड़ों की रेस होती है। युद्ध की भी रेस होती है। तुम्हारी युद्ध की युद्ध, रेस की रेस है। तुम्हारी माया पर जीत पाने की युद्ध है और बाप को याद करने लिए ही कहा जाता है। कोई यह नहीं कहा जाता है कि गुरूनानक को याद करो या कोई और को याद करो। सर्व का सद्गति दाता एक है। वास्तव में सर्व पर दया करने वाला भी एक है। सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन भी एक है। उन्होंने अपने ऊपर नाम रखाया है तो झूठा हुआ ना। सर्व को सुख देने वाला एक है। सुखधाम में भी बाप ही ले जाते हैं। तो बाप से ही सुखधाम का वर्सा लेना चाहिए। आधाकल्प रावण ने श्राप दिया है। अब बाप से वर्सा लो। यह तो है ही पाप आत्माओं की दुनिया। देवताओं की है पुण्य आत्माओं की दुनिया। पाप की दुनिया में पुण्य होता नहीं। यह तो गपोड़ा मारते हैं कि फलाना मरा स्वर्गवासी हुआ। अरे स्वर्ग है ही नहीं तो फिर स्वर्ग में जन्म कैसे मिलेगा। यह भी समझने वाला समझे। समझने के लिए कोई यहाँ बैठना नहीं है। भल विलायत में रहो। परन्तु 7 रोज़ बाबा के संग में जरूर रहना पड़े क्योंकि संग तारे कुसंग बोरे। अगर तीर लग गया तो कहेगा और 7 रोज रहना है। तो बाबा परीक्षा भी लेते हैं कि पूरा निश्चय है, दिल लगती है, तीर लगता है - बाप पढ़ाते हैं। अरे बाप के पास तो रहना चाहिए ना। जब पक्का रंग लग जाए तो विलायत में भी जा सकते हैं। अभी पवित्र बनेंगे तो 21 जन्मों की राजाई मिलेगी। कम बात है क्या? एक जन्म पवित्र बनो, कोई बड़ी बात है। बाबा युक्तियां तो बहुत बताते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते युक्ति से चलो, जिससे खिटपिट न हो, दोस्ती भी रहे और अपने आपको छुड़ाते भी रहो। बाबा रांझू-रमजबाज है, तो रमज (युक्ति) बताते हैं - ऐसे-ऐसे करो। बहुत बच्चियाँ भूँ-भूँ करके पति को ले आती हैं। फिर पति स्त्री के चरणों पर गिरते हैं कि इसने मुझे बचाया। वह ब्राह्मण तो विकार का हथियाला बंधवाते हैं। यहाँ ब्रह्मा और ब्राह्मण हथियाला बांधते हैं पवित्रता का। वह कैन्सिल करते हैं। बच्चे कहते भी हैं बाबा आप हमको स्वर्ग में ले जाते हो। आपकी हम क्यों नहीं मानेंगे! खुशी से पवित्रता का कंगन बांधते हैं। अच्छा -
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पवित्र बनने की युक्ति आपेही रचनी है। 21 जन्मों की राजाई के लिए पवित्रता की प्रतिज्ञा करनी है।
2) श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने के लिए श्रेष्ठाचारियों से लेन-देन करनी है। बाप के संग में रहकर निर्भय बनना है।
वरदान:कर्म करते हुए न्यारी और प्यारी अवस्था में रह, हल्के पन की अनुभूति करने वाले कर्मातीत भव
कर्मातीत अर्थात् न्यारा और प्यारा। कर्म किया और करने के बाद ऐसा अनुभव हो जैसे कुछ किया ही नहीं, कराने वाले ने करा लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करने से सदा हल्कापन रहेगा। कर्म करते तन का भी हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन, जितना ही कार्य बढ़ता जाए उतना हल्कापन भी बढ़ता जाए। कर्म अपनी तरफ आकर्षित न करे, मालिक होकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना और संकल्प में भी हल्के-पन का अनुभव करना - यही कर्मातीत बनना है।
स्लोगन: सर्व प्राप्तियों से सदा सम्पन्न रहो तो सदा हर्षित, सदा सुखी और खुशनसीब बन जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali 8-Oct 2017 )
Hinglish Summary - 08/10/17 MADHUBAN , AVYAKT – BAPDADA – OMSHANTI ( 26-01-83 )
Headline – Datta ke bachhe ban sarb ko sahyog do
Vardan – Apne halkepan ki sthiti dwara har karya ko light bananewale baap saman nyare pyare bhav.
Slogan – Issi aloukik nashi mei raho “ wah re mai” toh man aur tan se natural dance hoti rahegi
Hindi Version in Details – 08/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति ( 26-01-83)
"दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग दो"
आज बापदादा अपने सेवाधारी साथियों से मिलने आये हैं, जैसे बापदादा ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा अर्थ निमित्त हैं, ऐसे ही आप सभी भी ऊंचे ते ऊंचे साकार स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा प्रति निमित्त हो। जिस स्थान के तरफ अनेक आत्माओं की नज़र है। जैसे बाप के यथार्थ स्थान को न जानते हुए भी फिर भी सबकी नजर ऊंचे तरफ जाती है, ऐसे ही साकार में सर्व आत्माओं की नजर इस महान स्थान पर ही जा रही है और जायेगी। 'कहाँ पर है' अभी तक इसी खोज में हैं। समझते हैं कि कोई श्रेष्ठ ठिकाना मिले। लेकिन यही वह स्थान है, इसकी पहचान के लिए चारों ओर परिचय देने की सेवा सभी कर रहे हैं। यह बेहद का विशेष कार्य ही इसी सेवा को प्रसिद्ध करेगा कि मिलना है वा पाना है तो यहाँ से। यही अपना श्रेष्ठ ठिकाना है। विश्व के इसी श्रेष्ठ कोने से ही सदाकाल का जीयदान मिलना है। इस बेहद के कार्य द्वारा यह एडवरटाइज विशाल रूप में होनी है, जैसे धरती के अन्दर कोई छिपी हुई वा दबी हुई चीजें अचानक मिल जाती हैं तो खुशी-खुशी से सब तरफ प्रचार करते हैं। ऐसे ही यह आध्यात्मिक खजानों की प्राप्ति का स्थान जो अभी गुप्त है, इसको अनुभव के नेत्र द्वारा देख ऐसे ही समझेंगे जैसे गँवाया हुआ, खोया हुआ गुप्त खजाने का स्थान फिर से मिल गया है। धीरे-धीरे सबके मन से, मुख से यही बोल निकलेंगे कि ऐसे कोने में इतना श्रेष्ठ प्राप्ति का स्थान। इसको तो खूब प्रसिद्ध करो। तो विचित्र बाप, विचित्र लीला और विचित्र स्थान, यही देख-देख हर्षित होंगे। वन्डरफुल बात है, वन्डरफुल कार्य है यही सबके मुख से सुनते रहेंगे। ऐसे सदाकाल की अनुभूति कराने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की हैं।
हाल तो तैयार कर रहे हैं, हाल के साथ चाल भी ठीक है? हाल के साथ चाल भी देखेंगे ना। तो हाल और चाल दोनों ही विशाल और बेहद है ना। जैसे मजदूरों से लेकर बड़े-बड़े इन्जीनियर्स, दोनों के सहयोग और संगठन से हाल की सुन्दर रूप रेखा तैयार हुई है, अगर मजदूर न होते तो इन्जीनियर भी क्या करते। वे कागज पर प्लैन बना सकते हैं, लेकिन प्रैक्टिकल स्वरूप तो बिना मजदूरों के हो नहीं सकता। तो जैसे स्थूल सहयोग के आधार पर सर्व की अंगुली लगने से हाल तैयार हो गया है। वैसे हाल के साथ वन्डरफुल चाल दिखाने के लिए ऐसा विशेष स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ। सिर्फ बुद्धि में संकल्प किया, यह नहीं। लेकिन जैसे इन्जीनियर के बुद्धि की मदद और मजदूरों के कर्म की मदद से कार्य सम्पन्न हुआ। इसी रीति मन के श्रेष्ठ संकल्प साथ-साथ हर कर्म द्वारा भी विचित्र चाल का अनुभव हो। प्रत्यक्ष स्वरूप हर कर्म द्वारा ही दिखाई देता है। तो ऐसे चलने और करने को संकल्प, वाणी हाथ वा पाँव द्वारा संगठित रूप में विचित्र स्वरूप से दिखाने का दृढ़ संकल्प किया है? ऐसी चाल का नक्शा तैयार किया है? सिर्फ 3 हजार की सभा नहीं लेकिन 3 हजार में सदा त्रिमूर्ति दिखाई दे। यह सब ब्रह्मा के समान कर्मयोगी, विष्णु के समान प्रेम और शक्ति से पालना करने वाले, शंकर के समान तपस्वी वायुमण्डल बनाने वाले हैं, ऐसा अनुभव हर एक द्वारा हो। ऐसा स्वंय में सर्व शक्तियों का स्टाक जमा किया है? यह भी भण्डारा भरपूर किया है? यह स्टाक चेक किया है? वा सभी ऐसे बिजी हो गये हो जो चेक करने की फुर्सत ही नहीं?
सेवा की अविनाशी सफलता के लिए स्वयं के किस विशेष परिवर्तन की आहुति डालेंगे? ऐसा अपने आप से प्लैन बनाया है? सबसे बड़े ते बड़ी देन है - दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग देना। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के सहयोगी बनना - यह है बड़े ते बड़ी विशेष देन। इसने यह कहा, यह किया, यह देखते, सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टाक द्वारा परिवर्तन कर देना, जैसे कोई खाली स्थान होता है तो आलराउन्ड सेवाधारी समय प्रमाण जगह भर देते हैं। ऐसे अगर किसी भी द्वारा कोई शक्ति की कमी अनुभव भी हो तो अपने सहयोग से जगह भर दो, जिससे दूसरे की कमी का भी अन्य कोई को अनुभव न हो। इसको कहा जाता है - दाता के बच्चे बन समय प्रमाण उसे सहयोग की देन देना। यह नहीं सोचना है, इसने यह किया, ऐसा किया, लेकिन क्या होना चाहिए वह करते रहो। कोई की कमी न देखना, लेकिन आगे बढ़ते रहना। अच्छे ते अच्छा क्या हो सकता है, वह भी सिर्फ सोचना नहीं है लेकिन करना है। इसको ही विचित्र चाल का प्रत्यक्ष स्वरूप कहा जायेगा। सदा अच्छे ते अच्छा हो रहा है और सदा अच्छे ते अच्छा करते रहना है - इसी समर्थ संकल्प को साथ रखना। सिर्फ वर्णन नहीं करना लेकिन निवारण करते नव निर्माण के कर्तव्य की सफलता को प्रत्यक्ष रूप में देखते और दिखाते रहना। ऐसी तैयारी भी हो रही है ना क्योंकि सभी की जिम्मेवारी होते हुए भी विशेष मधुबन निवासियों की जिम्मेवारी है। डबल जिम्मेवारी ली है ना। जैसे हाल का उद्घाटन कराया तो चाल का भी उद्घाटन हो गया है? वह भी रिर्हसल हुई वा नहीं। दोनों का मेल हो जायेगा तब ही सफलता का नगाड़ा चारों ओर तक पहुँचेगा। जितना ऊंचा स्थान होता है उतनी लाइट चारों ओर ज्यादा फैलती है। यह तो सबसे ऊंचा स्थान है तो यहाँ से निकला हुआ आवाज चारों ओर तक पहुंचे उसके लिए लाइट माइट हाउस बनना है। अच्छा -
सदा स्वंय को हर गुण, हर शक्ति सम्पन्न साक्षात् बाप स्वरूप बन सर्व को साक्षात्कार कराने वाले, सदा विचित्र स्थिति में स्थित हो साकार चित्र द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, ऊंचे ते ऊंची स्थिति द्वारा ऊंचे ते ऊंचे स्थान को, ऊंचे ते ऊंचे प्राप्तियों के भण्डार को प्रत्यक्ष करने वाले, सर्व के मन से मिल गया, पा लिया का गीत निकलने की सदा शुभभावना, शुभकामना रखने वाले - ऐसे सर्व श्रेष्ठ बेहद सेवाधारियों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
मधुबन निवासियों के साथ:- वरदान भूमि पर रहने वालों को सदा सन्तुष्ट रहने का वरदान मिला हुआ है ना। जो जितना अपने को सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करेंगे वह सदा सन्तुष्ट होंगे। अगर जरा भी कमी की महसूसता हुई तो जहाँ कमी है वहाँ असन्तुष्टता है। तो सर्व प्राप्ति है ना। संकल्प की सिद्धि तो फिर भी हो रही है ना। थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि अपना राज्य तो है नहीं। जितनी औरों के आगे प्राबलम आती है उतना यहाँ नहीं। यहाँ प्राबलम तो खेल हो गई है फिर भी समय पर बहुत सहयोग मिलता रहा है क्योंकि हिम्मत रखी है। जहाँ हिम्मत है वहाँ सहयोग प्राप्त हो ही जाता है। अपने मन मे कोई हलचल नहीं होनी चाहिए। मन सदैव हल्का रहने से सर्व के पास भी आपके लिए हल्कापन रहेगा। थोडा बहुत हिसाब-किताब तो होता ही है लेकिन उस हिसाब-किताब को भी ऐसे ही पार करो जैसे कोई बड़ी बात नहीं। छोटी बात को बड़ा नहीं करो। छोटा करना वा बड़ा करना यह अपनी बुद्धि के ऊपर है। अभी बेहद की सेवा का समय है तो बुद्धि भी बेहद की रखो। वातावरण शक्तिशाली बनाना है, यह हरेक आत्मा स्वयं को जिम्मेवार समझे। जबकि एक दो के स्वभाव संस्कार को जान गये हो, तो नॉलेजफुल कभी किसी भी स्वभाव-संस्कार से टक्कर नहीं खा सकते। जैसे किसको पता है कि यहाँ खड्डा है वा पहाड़ है तो जानने वाला कब टकरायेगा नहीं। किनारा कर लेगा। तो स्वयं को सदा सेफ रखना है। जब एक टक्कर नहीं खायेगा तो दूसरा स्वयं ही बच जायेगा। किनारा करो अर्थात् अपने को सेफ रखो और वायुमण्डल को सेफ रखो। काम से किनारा नहीं करना है। अपनी सेफ्टी की शक्ति से दूसरे को भी सेफ करना, यह है किनारा करना। ऐसी शक्ति तो आ गई है ना।
साकार रूप में फालो करने के हिसाब से सबको मधुबन ही दिखाई देता है क्योंकि ऊंचा स्थान है। मधुबन वाले तो सदा झूले में झूलते रहते। यहाँ तो सब झूले हैं। स्थूल प्राप्ति भी बहुत है तो सूक्ष्म प्राप्ति भी बहुत है, सदा झूले में होंगे तो कब भूलें नहीं होंगी। प्राप्ति के झूले से उतरते हैं तो भूलें अपनी भी दूसरे की भी दिखाई देंगी। झूले में बैठने से धरनी को छोड़ना पड़ता है। तो मधुबन वाले तो सर्व प्राप्ति के झूले में सदा झूलते रहते। सिर्फ प्राप्ति के आधार पर जीवन न हो। प्राप्ति आपके आगे भल आवे लेकिन आप प्राप्ति को स्वीकार नहीं कर लो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्ति होते भी कमी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे। तो ऐसा भाग्य है जो बिना मेहनत के प्राप्ति स्वयं आती है। तो इस भाग्य को सदा स्मृति में रखो। जितना स्वयं निष्काम बनेंगे उतना प्राप्ति आपके आगे स्वत: ही आयेगी। अच्छा।
सेवाधारियों से:- सेवाधारी का अर्थ ही है प्रत्यक्षफल खाने वाले। सेवा की और खुशी की अनुभूति की तो यह प्रत्यक्षफल खाया ना। सेवाधारी बनना - यह तो बड़े ते बड़े भाग्य की निशानी है। जन्म-जन्म के लिए अपने को राज्य अधिकारी बनने का सहज साधन है इसलिए सेवा करना अर्थात् भाग्य का सितारा चमकना। तो ऐसे समझते हुए सेवा कर रहे हो ना! सेवा लगती है या प्राप्ति लगती है? नाम सेवा है लेकिन यह सेवा करना नहीं है, मिलना है। कितना मिलता है? करते कुछ भी नहीं हो और मिलता सब कुछ है। करने में सब सुख के साधन मिलते हैं। कोई मुश्किल नहीं करना पड़ता है, कितना भी हार्ड वर्क हो लेकिन सैलवेशन भी साथ-साथ मिलती है तो वह हार्ड वर्क नहीं लगता, खेल लगता है इसलिए सेवाधारी बनना अर्थात् प्राप्तियों के मालिक बनना। सारे दिन में कितनी प्राप्ति करते हो? एक एक दिन की, एक एक घण्टे की प्राप्ति का अगर हिसाब लगाओ तो कितना अनगिनत है, इसलिए सेवाधारी बनना भाग्य की निशानी है। सेवा का चान्स मिला अर्थात् प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो गये। स्थूल प्राप्ति भी है और सूक्ष्म भी। कहीं भी कोई सेवा करो तो स्थूल साधन इतने नहीं मिलते जितने मधुबन में मिलते हैं। यहाँ सेवा के साथ-साथ पहले तो अपने आत्मा की, शरीर की पालना, डबल होती है। तो सेवा करते खुशी होती है या थकावट होती है? सेवा करते सदैव यह चेक करो कि डबल सेवा कर रहा हूँ! मंसा द्वारा वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने की और कर्म द्वारा स्थूल सेवा। तो एक सेवा नहीं करनी है। लेकिन एक ही समय पर डबल सेवाधारी बन करके अपना डबल कमाई का चांस लेना है।
सभी सन्तुष्ट हो? सभी अपने-अपने कार्य में अच्छी तरह से निर्विघ्न हो? कोई भी कार्य में कोई खिट-खिट तो नहीं है? कभी आपस में खिट-खिट तो नहीं करते हो? कभी तेरा मेरा, मैंने किया तुमने किया - यह भावना तो नहीं आती है? क्योंकि अगर किया और यह संकल्प में भी आया - कि मैंने किया, तो जो भी किया वह सारा खत्म हो गया। मेरा-पन आना माना सारे किये हुए कार्य पर पानी डाल देना। ऐसे तो नहीं करते हो? सेवाधारी अर्थात् करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं। करावनहार को नही भूलें। जहाँ मैं पन आया वहाँ माया भी आई। निमित्त हूँ, निमार्ण हूँ तो माया आ नहीं सकती। संकल्प या स्वप्न में भी माया आती है तो सिद्ध होता है कि कहाँ मैं-पन का दरवाजा खुला है। मैं-पन का दरवाजा बन्द रहे तो कभी भी माया आ नहीं सकती। अच्छा!
वरदान: अपने हल्केपन की स्थिति द्वारा हर कार्य को लाइट बनाने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव!
मन-बुद्धि और संस्कार - आत्मा की जो सूक्ष्म शक्तियां हैं, तीनों में लाइट अनुभव करना, यही बाप समान न्यारे-प्यारे बनना है क्योंकि समय प्रमाण बाहर का तमोप्रधान वातावरण, मनुष्यात्माओं की वृत्तियों में भारी पन होगा। जितना बाहर का वातावरण भारी होगा उतना आप बच्चों के संकल्प, कर्म, संबंध लाइट होते जायेंगे और लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता रहेगा। कारोबार का प्रभाव आप पर नहीं पड़ेगा, यही स्थिति बाप समान स्थिति है।
स्लोगन: इसी अलौकिक नशे मे रहो “वाह रे मैं” तो मन और तन से नेचुरल डांस होती रहेगी।
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Details ( Page:- Murali Dtd 9th Oct 2017 )
Hinglish Summary - 09.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum ho roohani yodhe, tumhe Baap se bahut bade-bade gyan ke gole mile hain jinse maya dushman par jeet pani hai.
Q- Kis raaz ko samajhne se tum befikar badshah ban gaye ho?
A- Sare drama ke raaz ko samajhne se befikar badshah ban gaye. Abhi tumhe pata hai ki hum purana hisaab-kitab chuktu karke 21 janmo ke liye gyan yog se apni jholi bhar rahe hain. Hum Shiv Baba ke potre, Brahma Baba ke bacche hain......to fikar kis baat ki kare.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Amritvele murli soonkar fir point repeat karni hai. Murli ke notes zaroor lene hain. Khushi me rehne ke liye aap samaan banane ki seva karni hai._
2) Brahma Baap ki dil par chadhne ke liye gyan yog me tikha banna hai. Number one pass hokar scholarship leni hai.
Vardaan:-- Baap ko apni sarv jimeevariyan dekar seva ka khel karne wale Master Sarv Shaktimaan bhava.
Slogan:--Murlidhar ki murli par deha ki bhi soodh-boodh bhoolne wale, khushi ke jhoole me jhoolne wali sachchi-sachchi gopika bano.
Hindi Version in Details – 09/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम हो रूहानी योद्धे, तुम्हें बाप से बहुत बड़े-बड़े ज्ञान के गोले मिले हैं जिनसे माया दुश्मन पर जीत पानी है”
प्रश्न: किस राज़ को समझने से तुम बेफिकर बादशाह बन गये हो?
उत्तर: सारे ड्रामा के राज़ को समझने से बेफिकर बादशाह बन गये। अभी तुम्हें पता है कि हम पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करके 21 जन्मों के लिए ज्ञान योग से अपनी झोली भर रहे हैं। हम शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा बाबा के बच्चे हैं... तो फिकर किस बात की करें।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ..... ओम् शान्ति।
बाप बैठ समझाते हैं मेरे लाडले बच्चे, तुम गुप्त सेना हो और तुम बच्चों को ज्ञान का बारूद बड़े-बड़े ज्ञान के गोले मिल रहे हैं। तुम जानते हो - यह वही गीता का एपीसोड अर्थात् वही ड्रामा का पार्ट फिर से बज रहा है। एक गीता शास्त्र ही है जिसका महाभारत लड़ाई से कनेक्शन है। तुम बच्चे गुप्त सेना हो। जैसे वो लोग प्रैक्टिस कर रहे हैं, गोले रिफाइन हो जाएं। वैसे शिवबाबा भी कहते हैं ब्रह्मा द्वारा तुमको बहुत अच्छे-अच्छे ज्ञान के गोले दे रहा हूँ। तो तुम मनुष्यों को अच्छी तरह से शंखध्वनि करो कि गीता का पार्ट फिर से बज रहा है और हेविनली डीटी किंगडम स्थापन हो रही है। तुम बच्चे अपने लिए राजाई स्थापन कर रहे हो। वह सेना मेहनत करती है राजा रानी के लिए, तुम अपने लिए ही माया पर जीत पहन 21 जन्मों की बादशाही लेते हो - 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक। यह तो तुम्हारी बुद्धि में है कि बरोबर हम अपनी तकदीर बना रहे हैं। वह तो अल्पकाल के लिए बड़ी तनखा लेते हैं। यहाँ तुम हर एक अपने लिए 21 जन्मों की प्रालब्ध बनाते हो। तुम मम्मा बाबा से भी ऊंच जा सकते हो। परन्तु विवेक कहता है - मम्मा बाबा से ऊंच कोई जा नहीं सकता है। भल सूर्य, चांद को ग्रहण लगता है परन्तु टूट नहीं सकते। सितारे तो टूट पड़ते हैं। बाबा कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, मैं तुम बच्चों को क्यों नहीं याद करुँगा। ऐसे सिकीलधे बच्चे क्यों नहीं याद आयेंगे! परन्तु अनुभव कहता है बच्चे बाप को याद करना भूल जाते हैं। अपने को सजनी समझने से भी बच्चे समझेंगे तो जास्ती ताकत मिलेगी क्योंकि सजनी तो हाफ पार्टनर है - साजन के साथ। बच्चे तो बाप के फुल वारिस हो जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं कि हमको ज्ञानी तू आत्मा से प्यार है। ध्यानी को साक्षात्कार की इच्छा रहती है जो सारा दिन बाबा-बाबा करते रहेंगे उनको तो ज्ञानी कहेंगे। बाबा को ज्ञान का बहुत शौक है। अभी तुम्हें ज्ञान के गोले मिल रहे हैं, यह नई बात है ना। ध्यान में बहुत साक्षात्कार आदि करते हैं, परन्तु उनको ज्ञान कुछ नहीं मिलता है। बाबा ऐसे भी नहीं कहते ध्यान खराब है। भक्ति मार्ग में साक्षात्कार होता है तो खुश हो जाते हैं, परन्तु मुक्तिधाम में जा नहीं सकते। बाबा कहते हैं तुम मेरे धाम में आने वाले हो। तुम जानते हो इस ज्ञान से हम भविष्य प्रिन्स बनेंगे। देवतायें यहाँ तो हैं नहीं जो इन आखाँ से देखें। चित्र तो हैं ना। कृष्ण को तुम देखते हो, वहाँ प्रिन्स-प्रिन्सेज की रास विलास होती है अथवा बाल लीला भी देखते हैं। परन्तु महारानी कब बनेंगे, कब वह प्रिन्स मिलेगा? वह तो पता ही नहीं है। बाबा साक्षात्कार कराते हैं कि निश्चय हो जाए कि हम भविष्य महारानी बन रहे हैं। ज्ञान से भी समझ सकते हैं कि वहाँ हमारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होंगे। यह जो “हम सो” का मंत्र है, वह अभी का है। शिवबाबा को याद करने से ताकत मिलती है। हातमताई का खेल दिखाते हैं - मुहलरा डालते थे तो माया उड़ जाती थी। बाबा खुद कहते हैं हे लाडले बच्चे, भल सब कुछ काम काज करो सिर्फ बुद्धि से बाप को याद करना है। तुम्हारा है एक परमधाम। वो लोग यात्रा पर जाते हैं तो बहुत फिरते रहते हैं। चारों ही धाम बुद्धि में होंगे। तुम्हारी बुद्धि में सिर्फ एक परमधाम है। कोई से पूछो तुम क्या चाहते हो? कहेंगे मुक्ति। सन्यासी भी शान्ति के कारण घरबार छोड़ते हैं। जंगल में जाते हैं। समझते हैं हम जन्म मरण से छूट जायें, मोक्ष मिल जाये। परन्तु हमेशा के लिए कोई छूट नहीं सकते। यह अनादि बना बनाया ड्रामा है। इस ड्रामा के राज़ को कोई जानते नहीं। क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर को नहीं जानते। तुम जानते हो इस ड्रामा के पूरे 4 भाग हैं। ऐसे नहीं सतयुग की आयु लम्बी है। जगन्नाथपुरी में चावल का हाण्डा चढ़ाते हैं तो उनके पूरे 4 भाग हो जाते हैं। यह दुनिया है ही 4 युगों का ड्रामा, उनके आदि मध्य अन्त को तुम ही जानते हो, यह खेल है। हम ही देवी-देवतायें राज्य करते थे। फिर हमने ही हराया फिर हम जीत पा रहे हैं। 5 हजार वर्ष की बात है। यहाँ हर एक अपने लिए पुरुषार्थ करते हैं। जितना जो आप समान बनायेंगे, उनको बाबा फिर इनाम भी देते हैं। बाबा कहते हैं योग अग्नि से तुम्हारे पाप आपेही विनाश हो जायेंगे, मैं कुछ नहीं करता हूँ। तुम अपने पुरुषार्थ से राजाई पाते हो, राजा जनक का मिसाल है ना। इनको कहा जाता है साक्षात्कार।
तुम जानते हो हम जीवनमुक्ति में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं, जिसमें ज्ञान की दरकार है। मुक्ति में हमको ठहरना नहीं है। हमारा आलराउन्ड पार्ट है। जैसे रेल में तुम आते हो तो वाया अहमदाबाद करते हो ना। हमको भी जीवनमुक्ति में जाना है वाया मुक्ति। घड़ी-घड़ी परमधाम को याद करो। उन स्कूलों में 5-6 घण्टा पढ़ते हैं यहाँ इतना नहीं पढ़ सकते इसलिए कहा है कि एक घड़ी-आधी घड़ी.... इसमें अमृतवेला अच्छा है। स्नान भी अमृतवेले किया जाता है। एक बार मुरली सुनकर फिर यह प्वाइंट्स रिपीट करते रहो। टेप में मुरली भरी जाती है। भल तुम 15 दिन के बाद सुनेंगे तो भी सुनने से रिफ्रेश हो जायेंगे। कोई प्वाइंट्स ध्यान में नहीं होगी तो झट ख्याल में आ जायेगा। मुरली के नोट्स अपने पास रखने अच्छे हैं, यह बारूद है ना। बहुत बच्चे तो नोट्स रखते हैं। जैसे बैरिस्टर, सर्जन लोग अपने पास भी बहुत किताब रखते हैं, जो बहुत किताब पढ़े होते हैं, वह अच्छी दवाई देते हैं। कोई तो अच्छी रीति नोट्स भी लेते हैं, कोई नोट्स भी नहीं ले सकते। बाबा कहेंगे यह भी तुम्हारा कर्मबन्धन है। वह भी उनके ही विकर्म हैं। तुम बच्चे जानते हो हमारी राजधानी स्थापन हो रही है। जैसे पहले अंग्रेज आये तो व्यापार के लिए, परन्तु व्यापार करते-करते देखा यह तो आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो क्यों न हम अपना लश्कर बनाकर राज्य ले लेवें। तुम्हारे लिए तो बहुत सहज है। कोई को मारने करने की बात नहीं। तुम योगबल से राज्य भाग्य लेते हो। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण को राजाई कहाँ से मिली? कलियुग की रात पूरी हो फिर सतयुग दिन होना है। दिन में राजाई, रात में धमपा, बाबा आते हैं तो हम धनके बन जाते हैं। कलियुग के बाद है सतयुग। अनेक धर्मो के बाद है एक धर्म। जिन्होंने कल्प पहले राजाई ली है, वही अब ले रहे हैं। उनको कहा जाता है हेविनली डीटी किंगडम। अभी तो है हेल और निर्वाणधाम है ब्रहमाण्ड, जहाँ तुम अण्डे मिसल रहते हो। तुम्हारी बुद्धि में सारे ब्रहमाण्ड और सृष्टि की नॉलेज हैं। कितनी सहज बात है। मुख्य है गीता की बात। गीता में भगवान का नाम बदल दिया है। यह है ज्ञान के गोले। एक बात को युक्ति से समझाओ। इस समय सब दुबन (दलदल) में फंसे हुए हैं। बाबा आकर दुबन से निकालने के लिए साधना कराते हैं। माया ने पंख तोड़ दिये हैं, उड़ नहीं सकते हैं। अभी सबको पवित्र बनकर वापिस जाना है।
तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - बाबा से फिर से राज्य-भाग्य लेने। बाप समझाते हैं कि तुमको खुशी रहनी चाहिए। जो अच्छी तरह धारण कर आप समान बनाते रहेंगे उनको बहुत खुशी रहेगी। नम्बरवन जो पास होगा उनको जरूर खुशी होगी ना। गवर्मेन्ट भी स्कालरशिप देती है। तुम्हारी भी माला बनी हुई है। 108 की भी माला होती है। 16108 की भी होती है। एक बॉक्स बनाते हैं, उसमें डाल देते हैं। अब तुम समझ गये हो यह माला किसकी है? रुद्राक्ष की माला किसको कहा जाता है। पहले हैं ब्रह्मा की माला। बाप रचना रच रहे हैं ना। जो ब्रह्मा की दिल पर चढ़ते वही शिवबाबा की दिल पर चढ़ेंगे। यह है ब्रह्मा की माला। सब बच्चे हैं ना। तो पहले उनकी माला फिर रुद्र माला बननी है, फिर जाकर विष्णु के गले में पिरोयेंगे। यह हेविनली किंगडम अब स्थापन हो रही है। यह मनुष्य सृष्टि ही स्वर्ग और नर्क बनती है। स्वर्ग में गॉड और गॉडेज रहते हैं, उनको हेविन कहा जाता है। हेविन वाले ही फिर हेल में आते हैं। फिर हम हेल से हेविन में जाते हैं। माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हैं। तुम कहेंगे कि हमने यह पार्ट अनेक बार बजाया है। कोई कहे क्या सिर्फ तुम ही स्वर्ग देखेंगे, हम स्वर्ग नहीं देखेंगे? बोलो, सब थोड़ेही वहाँ जा सकते हैं। इम्पासिबुल है। हर एक अपना सतो रजो तमो में पार्ट बजाते हैं। यह कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो कि हमारी राजाई स्थापन हो रही है। हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। ड्रामा तुमको अवश्य ही पुरुषार्थ करायेगा। ड्रामा में इनसे मुरली चलवा रहे हैं। पुरुषार्थ बिगर तुम रह नहीं सकेंगे। बैठ नहीं जायेंगे। कल्प पहले जैसे मुरली चलाई है वही ड्रामा अनुसार चलेगी। कितनी गुह्य बातें हैं। ड्रामा को रिपीट जरूर होना है। हम तो बेफिकर बादशाह हैं। परमपिता परमात्मा शिव के पोत्रे हैं। उनको क्या परवाह रखी है। यह है राजयोग। बाबा कहते हैं अब पुराना हिसाब-किताब खलास करो, इनसे बुद्धियोग हटा दो। फिर जितना ज्ञान योग से जमा करेंगे उतना तुम्हारी झोली 21 जन्मों के लिए भरती जायेगी, इसमें डरने की तो कोई बात नहीं है। बाबा तो देने वाला है। कहते हैं जो कुछ तुम्हारा है सो कुर्बान कर दो। यहाँ कोई महल तो नहीं बनाने हैं। इन पैसों से क्या करना पड़ता है। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी के लेकर सेन्टर खोल देते हैं। यह जबरदस्त युनिवर्सिटी अथवा हॉस्पिटल है। वह हॉस्पिटल तो अनेक होती हैं। यह तो एक ही हॉस्पिटल है। जो रिलीजस माइन्डेड होंगे वह तो कहेंगे कि क्यों नहीं हम ऐसा हॉस्पिटल खोलें जो मनुष्य एवरहेल्दी बन जायें, बाबा हेल्थ वेल्थ देते हैं तो वह कहते हैं कि बाबा यह तुम्हारी चीज़ है, जिस भी काम में चाहो लगाओ। तो निश्चय कर पूरा फालो करना चाहिए ना। हर एक अपनी जाति को चढ़ाते हैं ना। तुम कहते हो हम ब्राह्मण हैं, तो फिर क्यों नहीं सब कुछ ट्रांसफर कर देना चाहिए। बाबा 21 जन्म की बादशाही देते हैं। बाबा की सर्विस में लग जाने से तुम कभी भूख नहीं मरेंगे। हमारा खर्चा कुछ है थोड़ेही। तुम सिर्फ पेट के लिए दो रोटी खाते हो और क्या। मनुष्यों का तो खर्चा बहुत है। शादियों-मुरादियों पर कितना खर्चा करते हैं। हमारा कुछ भी खर्चा नहीं है। तुम्हारी सगाई होती है शिवबाबा के साथ। खर्चा पाई का भी नहीं। सगाई कर हम बाबा के पास चले जाते हैं। यहाँ भी तुम बच्चों को सर्विस करनी है। तुमको अपना यादगार देख खुशी होगी। यह हमारे बाबा मम्मा का यादगार है और हम देवी-देवताओं के भी यादगार है। मुख्य यादगार हैं ही 5-7, पहले-पहले मुख्य है शिवबाबा का यादगार। उस एक के ही अनेक नाम हैं। फिर है सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा विष्णु शंकर के यादगार, फिर मनुष्य सृष्टि में संगमयुगी जगत अम्बा, जगत पिता और तुम शक्तियां, बच्चे और सतयुग में हैं लक्ष्मी-नारायण बस। बाकी तो अनेक प्रकार के मन्दिर बनाये हैं। उसमें कितना भटकना पड़ता है। तुम सब बातों से छूट जाते हो और कितना खुशी में रहते हो। ऐसी कोई यूनिवर्सिटी नहीं जहाँ मनुष्य से देवता बनें। तुम्हारी है गाडली स्टूडेन्ट लाइफ। तुम पास होकर ट्रांसफर हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले मुरली सुनकर फिर प्वाइंट रिपीट करनी है। मुरली के नोट्स जरूर लेने हैं। खुशी में रहने के लिए आप समान बनाने की सेवा करनी है।
2) ब्रह्मा बाप की दिल पर चढ़ने के लिए ज्ञान योग में तीखा बनना है। नम्बरवन पास होकर स्कालरशिप लेनी है।
वरदान:
बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा का खेल करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!
कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो किसी भी प्रकार का भारीपन नहीं रहेगा। जब मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है इसलिए ब्राह्मण जीवन में अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को दे दो तो सेवा भी एक खेल अनुभव होगी। चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति से अथक रहेंगे।
स्लोगन:
मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध-बुध भूलने वाले, खुशी के झूले में झूलने वाली सच्ची-सच्ची गोपिका बनो।
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Mithe bacche - Tum ho roohani yodhe, tumhe Baap se bahut bade-bade gyan ke gole mile hain jinse maya dushman par jeet pani hai.
Q- Kis raaz ko samajhne se tum befikar badshah ban gaye ho?
A- Sare drama ke raaz ko samajhne se befikar badshah ban gaye. Abhi tumhe pata hai ki hum purana hisaab-kitab chuktu karke 21 janmo ke liye gyan yog se apni jholi bhar rahe hain. Hum Shiv Baba ke potre, Brahma Baba ke bacche hain......to fikar kis baat ki kare.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Amritvele murli soonkar fir point repeat karni hai. Murli ke notes zaroor lene hain. Khushi me rehne ke liye aap samaan banane ki seva karni hai._
2) Brahma Baap ki dil par chadhne ke liye gyan yog me tikha banna hai. Number one pass hokar scholarship leni hai.
Vardaan:-- Baap ko apni sarv jimeevariyan dekar seva ka khel karne wale Master Sarv Shaktimaan bhava.
Slogan:--Murlidhar ki murli par deha ki bhi soodh-boodh bhoolne wale, khushi ke jhoole me jhoolne wali sachchi-sachchi gopika bano.
Hindi Version in Details – 09/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम हो रूहानी योद्धे, तुम्हें बाप से बहुत बड़े-बड़े ज्ञान के गोले मिले हैं जिनसे माया दुश्मन पर जीत पानी है”
प्रश्न: किस राज़ को समझने से तुम बेफिकर बादशाह बन गये हो?
उत्तर: सारे ड्रामा के राज़ को समझने से बेफिकर बादशाह बन गये। अभी तुम्हें पता है कि हम पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करके 21 जन्मों के लिए ज्ञान योग से अपनी झोली भर रहे हैं। हम शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा बाबा के बच्चे हैं... तो फिकर किस बात की करें।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ..... ओम् शान्ति।
बाप बैठ समझाते हैं मेरे लाडले बच्चे, तुम गुप्त सेना हो और तुम बच्चों को ज्ञान का बारूद बड़े-बड़े ज्ञान के गोले मिल रहे हैं। तुम जानते हो - यह वही गीता का एपीसोड अर्थात् वही ड्रामा का पार्ट फिर से बज रहा है। एक गीता शास्त्र ही है जिसका महाभारत लड़ाई से कनेक्शन है। तुम बच्चे गुप्त सेना हो। जैसे वो लोग प्रैक्टिस कर रहे हैं, गोले रिफाइन हो जाएं। वैसे शिवबाबा भी कहते हैं ब्रह्मा द्वारा तुमको बहुत अच्छे-अच्छे ज्ञान के गोले दे रहा हूँ। तो तुम मनुष्यों को अच्छी तरह से शंखध्वनि करो कि गीता का पार्ट फिर से बज रहा है और हेविनली डीटी किंगडम स्थापन हो रही है। तुम बच्चे अपने लिए राजाई स्थापन कर रहे हो। वह सेना मेहनत करती है राजा रानी के लिए, तुम अपने लिए ही माया पर जीत पहन 21 जन्मों की बादशाही लेते हो - 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक। यह तो तुम्हारी बुद्धि में है कि बरोबर हम अपनी तकदीर बना रहे हैं। वह तो अल्पकाल के लिए बड़ी तनखा लेते हैं। यहाँ तुम हर एक अपने लिए 21 जन्मों की प्रालब्ध बनाते हो। तुम मम्मा बाबा से भी ऊंच जा सकते हो। परन्तु विवेक कहता है - मम्मा बाबा से ऊंच कोई जा नहीं सकता है। भल सूर्य, चांद को ग्रहण लगता है परन्तु टूट नहीं सकते। सितारे तो टूट पड़ते हैं। बाबा कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, मैं तुम बच्चों को क्यों नहीं याद करुँगा। ऐसे सिकीलधे बच्चे क्यों नहीं याद आयेंगे! परन्तु अनुभव कहता है बच्चे बाप को याद करना भूल जाते हैं। अपने को सजनी समझने से भी बच्चे समझेंगे तो जास्ती ताकत मिलेगी क्योंकि सजनी तो हाफ पार्टनर है - साजन के साथ। बच्चे तो बाप के फुल वारिस हो जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं कि हमको ज्ञानी तू आत्मा से प्यार है। ध्यानी को साक्षात्कार की इच्छा रहती है जो सारा दिन बाबा-बाबा करते रहेंगे उनको तो ज्ञानी कहेंगे। बाबा को ज्ञान का बहुत शौक है। अभी तुम्हें ज्ञान के गोले मिल रहे हैं, यह नई बात है ना। ध्यान में बहुत साक्षात्कार आदि करते हैं, परन्तु उनको ज्ञान कुछ नहीं मिलता है। बाबा ऐसे भी नहीं कहते ध्यान खराब है। भक्ति मार्ग में साक्षात्कार होता है तो खुश हो जाते हैं, परन्तु मुक्तिधाम में जा नहीं सकते। बाबा कहते हैं तुम मेरे धाम में आने वाले हो। तुम जानते हो इस ज्ञान से हम भविष्य प्रिन्स बनेंगे। देवतायें यहाँ तो हैं नहीं जो इन आखाँ से देखें। चित्र तो हैं ना। कृष्ण को तुम देखते हो, वहाँ प्रिन्स-प्रिन्सेज की रास विलास होती है अथवा बाल लीला भी देखते हैं। परन्तु महारानी कब बनेंगे, कब वह प्रिन्स मिलेगा? वह तो पता ही नहीं है। बाबा साक्षात्कार कराते हैं कि निश्चय हो जाए कि हम भविष्य महारानी बन रहे हैं। ज्ञान से भी समझ सकते हैं कि वहाँ हमारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होंगे। यह जो “हम सो” का मंत्र है, वह अभी का है। शिवबाबा को याद करने से ताकत मिलती है। हातमताई का खेल दिखाते हैं - मुहलरा डालते थे तो माया उड़ जाती थी। बाबा खुद कहते हैं हे लाडले बच्चे, भल सब कुछ काम काज करो सिर्फ बुद्धि से बाप को याद करना है। तुम्हारा है एक परमधाम। वो लोग यात्रा पर जाते हैं तो बहुत फिरते रहते हैं। चारों ही धाम बुद्धि में होंगे। तुम्हारी बुद्धि में सिर्फ एक परमधाम है। कोई से पूछो तुम क्या चाहते हो? कहेंगे मुक्ति। सन्यासी भी शान्ति के कारण घरबार छोड़ते हैं। जंगल में जाते हैं। समझते हैं हम जन्म मरण से छूट जायें, मोक्ष मिल जाये। परन्तु हमेशा के लिए कोई छूट नहीं सकते। यह अनादि बना बनाया ड्रामा है। इस ड्रामा के राज़ को कोई जानते नहीं। क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर को नहीं जानते। तुम जानते हो इस ड्रामा के पूरे 4 भाग हैं। ऐसे नहीं सतयुग की आयु लम्बी है। जगन्नाथपुरी में चावल का हाण्डा चढ़ाते हैं तो उनके पूरे 4 भाग हो जाते हैं। यह दुनिया है ही 4 युगों का ड्रामा, उनके आदि मध्य अन्त को तुम ही जानते हो, यह खेल है। हम ही देवी-देवतायें राज्य करते थे। फिर हमने ही हराया फिर हम जीत पा रहे हैं। 5 हजार वर्ष की बात है। यहाँ हर एक अपने लिए पुरुषार्थ करते हैं। जितना जो आप समान बनायेंगे, उनको बाबा फिर इनाम भी देते हैं। बाबा कहते हैं योग अग्नि से तुम्हारे पाप आपेही विनाश हो जायेंगे, मैं कुछ नहीं करता हूँ। तुम अपने पुरुषार्थ से राजाई पाते हो, राजा जनक का मिसाल है ना। इनको कहा जाता है साक्षात्कार।
तुम जानते हो हम जीवनमुक्ति में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं, जिसमें ज्ञान की दरकार है। मुक्ति में हमको ठहरना नहीं है। हमारा आलराउन्ड पार्ट है। जैसे रेल में तुम आते हो तो वाया अहमदाबाद करते हो ना। हमको भी जीवनमुक्ति में जाना है वाया मुक्ति। घड़ी-घड़ी परमधाम को याद करो। उन स्कूलों में 5-6 घण्टा पढ़ते हैं यहाँ इतना नहीं पढ़ सकते इसलिए कहा है कि एक घड़ी-आधी घड़ी.... इसमें अमृतवेला अच्छा है। स्नान भी अमृतवेले किया जाता है। एक बार मुरली सुनकर फिर यह प्वाइंट्स रिपीट करते रहो। टेप में मुरली भरी जाती है। भल तुम 15 दिन के बाद सुनेंगे तो भी सुनने से रिफ्रेश हो जायेंगे। कोई प्वाइंट्स ध्यान में नहीं होगी तो झट ख्याल में आ जायेगा। मुरली के नोट्स अपने पास रखने अच्छे हैं, यह बारूद है ना। बहुत बच्चे तो नोट्स रखते हैं। जैसे बैरिस्टर, सर्जन लोग अपने पास भी बहुत किताब रखते हैं, जो बहुत किताब पढ़े होते हैं, वह अच्छी दवाई देते हैं। कोई तो अच्छी रीति नोट्स भी लेते हैं, कोई नोट्स भी नहीं ले सकते। बाबा कहेंगे यह भी तुम्हारा कर्मबन्धन है। वह भी उनके ही विकर्म हैं। तुम बच्चे जानते हो हमारी राजधानी स्थापन हो रही है। जैसे पहले अंग्रेज आये तो व्यापार के लिए, परन्तु व्यापार करते-करते देखा यह तो आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो क्यों न हम अपना लश्कर बनाकर राज्य ले लेवें। तुम्हारे लिए तो बहुत सहज है। कोई को मारने करने की बात नहीं। तुम योगबल से राज्य भाग्य लेते हो। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण को राजाई कहाँ से मिली? कलियुग की रात पूरी हो फिर सतयुग दिन होना है। दिन में राजाई, रात में धमपा, बाबा आते हैं तो हम धनके बन जाते हैं। कलियुग के बाद है सतयुग। अनेक धर्मो के बाद है एक धर्म। जिन्होंने कल्प पहले राजाई ली है, वही अब ले रहे हैं। उनको कहा जाता है हेविनली डीटी किंगडम। अभी तो है हेल और निर्वाणधाम है ब्रहमाण्ड, जहाँ तुम अण्डे मिसल रहते हो। तुम्हारी बुद्धि में सारे ब्रहमाण्ड और सृष्टि की नॉलेज हैं। कितनी सहज बात है। मुख्य है गीता की बात। गीता में भगवान का नाम बदल दिया है। यह है ज्ञान के गोले। एक बात को युक्ति से समझाओ। इस समय सब दुबन (दलदल) में फंसे हुए हैं। बाबा आकर दुबन से निकालने के लिए साधना कराते हैं। माया ने पंख तोड़ दिये हैं, उड़ नहीं सकते हैं। अभी सबको पवित्र बनकर वापिस जाना है।
तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - बाबा से फिर से राज्य-भाग्य लेने। बाप समझाते हैं कि तुमको खुशी रहनी चाहिए। जो अच्छी तरह धारण कर आप समान बनाते रहेंगे उनको बहुत खुशी रहेगी। नम्बरवन जो पास होगा उनको जरूर खुशी होगी ना। गवर्मेन्ट भी स्कालरशिप देती है। तुम्हारी भी माला बनी हुई है। 108 की भी माला होती है। 16108 की भी होती है। एक बॉक्स बनाते हैं, उसमें डाल देते हैं। अब तुम समझ गये हो यह माला किसकी है? रुद्राक्ष की माला किसको कहा जाता है। पहले हैं ब्रह्मा की माला। बाप रचना रच रहे हैं ना। जो ब्रह्मा की दिल पर चढ़ते वही शिवबाबा की दिल पर चढ़ेंगे। यह है ब्रह्मा की माला। सब बच्चे हैं ना। तो पहले उनकी माला फिर रुद्र माला बननी है, फिर जाकर विष्णु के गले में पिरोयेंगे। यह हेविनली किंगडम अब स्थापन हो रही है। यह मनुष्य सृष्टि ही स्वर्ग और नर्क बनती है। स्वर्ग में गॉड और गॉडेज रहते हैं, उनको हेविन कहा जाता है। हेविन वाले ही फिर हेल में आते हैं। फिर हम हेल से हेविन में जाते हैं। माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हैं। तुम कहेंगे कि हमने यह पार्ट अनेक बार बजाया है। कोई कहे क्या सिर्फ तुम ही स्वर्ग देखेंगे, हम स्वर्ग नहीं देखेंगे? बोलो, सब थोड़ेही वहाँ जा सकते हैं। इम्पासिबुल है। हर एक अपना सतो रजो तमो में पार्ट बजाते हैं। यह कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो कि हमारी राजाई स्थापन हो रही है। हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। ड्रामा तुमको अवश्य ही पुरुषार्थ करायेगा। ड्रामा में इनसे मुरली चलवा रहे हैं। पुरुषार्थ बिगर तुम रह नहीं सकेंगे। बैठ नहीं जायेंगे। कल्प पहले जैसे मुरली चलाई है वही ड्रामा अनुसार चलेगी। कितनी गुह्य बातें हैं। ड्रामा को रिपीट जरूर होना है। हम तो बेफिकर बादशाह हैं। परमपिता परमात्मा शिव के पोत्रे हैं। उनको क्या परवाह रखी है। यह है राजयोग। बाबा कहते हैं अब पुराना हिसाब-किताब खलास करो, इनसे बुद्धियोग हटा दो। फिर जितना ज्ञान योग से जमा करेंगे उतना तुम्हारी झोली 21 जन्मों के लिए भरती जायेगी, इसमें डरने की तो कोई बात नहीं है। बाबा तो देने वाला है। कहते हैं जो कुछ तुम्हारा है सो कुर्बान कर दो। यहाँ कोई महल तो नहीं बनाने हैं। इन पैसों से क्या करना पड़ता है। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी के लेकर सेन्टर खोल देते हैं। यह जबरदस्त युनिवर्सिटी अथवा हॉस्पिटल है। वह हॉस्पिटल तो अनेक होती हैं। यह तो एक ही हॉस्पिटल है। जो रिलीजस माइन्डेड होंगे वह तो कहेंगे कि क्यों नहीं हम ऐसा हॉस्पिटल खोलें जो मनुष्य एवरहेल्दी बन जायें, बाबा हेल्थ वेल्थ देते हैं तो वह कहते हैं कि बाबा यह तुम्हारी चीज़ है, जिस भी काम में चाहो लगाओ। तो निश्चय कर पूरा फालो करना चाहिए ना। हर एक अपनी जाति को चढ़ाते हैं ना। तुम कहते हो हम ब्राह्मण हैं, तो फिर क्यों नहीं सब कुछ ट्रांसफर कर देना चाहिए। बाबा 21 जन्म की बादशाही देते हैं। बाबा की सर्विस में लग जाने से तुम कभी भूख नहीं मरेंगे। हमारा खर्चा कुछ है थोड़ेही। तुम सिर्फ पेट के लिए दो रोटी खाते हो और क्या। मनुष्यों का तो खर्चा बहुत है। शादियों-मुरादियों पर कितना खर्चा करते हैं। हमारा कुछ भी खर्चा नहीं है। तुम्हारी सगाई होती है शिवबाबा के साथ। खर्चा पाई का भी नहीं। सगाई कर हम बाबा के पास चले जाते हैं। यहाँ भी तुम बच्चों को सर्विस करनी है। तुमको अपना यादगार देख खुशी होगी। यह हमारे बाबा मम्मा का यादगार है और हम देवी-देवताओं के भी यादगार है। मुख्य यादगार हैं ही 5-7, पहले-पहले मुख्य है शिवबाबा का यादगार। उस एक के ही अनेक नाम हैं। फिर है सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा विष्णु शंकर के यादगार, फिर मनुष्य सृष्टि में संगमयुगी जगत अम्बा, जगत पिता और तुम शक्तियां, बच्चे और सतयुग में हैं लक्ष्मी-नारायण बस। बाकी तो अनेक प्रकार के मन्दिर बनाये हैं। उसमें कितना भटकना पड़ता है। तुम सब बातों से छूट जाते हो और कितना खुशी में रहते हो। ऐसी कोई यूनिवर्सिटी नहीं जहाँ मनुष्य से देवता बनें। तुम्हारी है गाडली स्टूडेन्ट लाइफ। तुम पास होकर ट्रांसफर हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले मुरली सुनकर फिर प्वाइंट रिपीट करनी है। मुरली के नोट्स जरूर लेने हैं। खुशी में रहने के लिए आप समान बनाने की सेवा करनी है।
2) ब्रह्मा बाप की दिल पर चढ़ने के लिए ज्ञान योग में तीखा बनना है। नम्बरवन पास होकर स्कालरशिप लेनी है।
वरदान:
बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा का खेल करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!
कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो किसी भी प्रकार का भारीपन नहीं रहेगा। जब मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है इसलिए ब्राह्मण जीवन में अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को दे दो तो सेवा भी एक खेल अनुभव होगी। चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति से अथक रहेंगे।
स्लोगन:
मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध-बुध भूलने वाले, खुशी के झूले में झूलने वाली सच्ची-सच्ची गोपिका बनो।
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Details ( Page:- Murali 10-Oct 2017 )
Hinglish Summary – 10.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum Karmyogi ho, karm karte huye Baap ki yaad me raho, yaad me rehne se koi bhi bikarm nahi hoga.
Q- Baap se buddhi yog na lagne ka mukhya ek kaaran hai - wo kaun sa?
A- Lobh. Koi bhi binashi chizo me lobh hoga., khane ka wa pehnne ka souk hoga to unki buddhi Baap se nahi lag sakti isiliye Baba biddhi batate hain bacche lobh rakho- behad ke Baap se varsha lene ka. Baki kisi bhi chiz me lobh nahi rakho. Nahi to jis chiz se adhik pyar hoga wohi chiz ant me bhi yaad ayegi aur pad bhrast ho jayega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Lobh ke bas koi bhi chiz chhipakar apne pas nahi rakhni hai. Baap ke farmaan par chalte rehna hai._
2) Baba jo khilaye, jo pehnaye, ek Shiv Baba ke bhandare se he lena hai. Deha-abhimaan me nahi aana hai. Mamma Baba ko poora follow karna hai.
Vardaan:-- Satyata ki himmat se biswas ka patra banne wale Baap wa Parivar ke snehi bhava.
Slogan:--Sabse adhik dhanvan wo hai jiske pas shanti wa pavitrata ka khazana hai.
Hindi Version in Details – 10/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम कर्मयोगी हो, कर्म करते हुए बाप की याद में रहो, याद में रहने से कोई भी विकर्म नहीं होगा”
प्रश्न:
बाप से बुद्धियोग न लगने का मुख्य एक कारण है - वह कौन सा?
उत्तर:
लोभ। कोई भी विनाशी चीज़ों में लोभ होगा, खाने का वा पहनने का शौक होगा तो उनकी बुद्धि बाप से नहीं लग सकती इसलिए बाबा विधि बताते हैं बच्चे लोभ रखो - बेहद के बाप से वर्सा लेने का। बाकी किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखो। नहीं तो जिस चीज़ से अधिक प्यार होगा वही चीज़ अन्त में भी याद आयेगी और पद भ्रष्ट हो जायेगा।
गीत:- जाग सजनियां जाग... ओम् शान्ति।
अभी यह तो बच्चे जानते हैं यूँ तो सारी दुनिया में सब कहते हैं कि हम सभी आपस में भाई-भाई हैं। वी आर आल ब्रदर्स। परन्तु क्यों नहीं उन आत्माओं को यह समझ में आता है कि हम बाप के बच्चे हैं। वह रचयिता है, हम रचना हैं। जानवर तो नहीं कहेंगे हम ब्रदर्स हैं। मनुष्य ही समझते हैं और कहते भी हैं कि हम सब ब्रदर्स हैं। रचता बाप एक है। उसको कहा जाता है परमपिता परमात्मा। ऐसे हो नहीं सकता कि बहन को भाई कहें। जब सब अपने को आत्मा समझते हैं तब कहते हैं हम आपस में भाई-भाई हैं। सिवाए आत्मा के और कुछ हो नहीं सकता। एक बाप के जिस्मानी बच्चे तो इतने नहीं हो सकते। अभी तुमको अच्छी तरह याद है कि हम आपस में भाई-भाई हैं। बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - हे बच्चों, तो बहुतों को पढ़ाते हैं ना। सिर्फ ऐसे नहीं कहेंगे हे अर्जुन, एक का नाम नहीं लेंगे। सबको पढ़ाते हैं। स्कूल में मास्टर कहेंगे ना - हे बच्चों, अच्छी तरह पढ़ो। हैं तो स्टूडेन्ट। परन्तु टीचर बड़ा, बुजुर्ग है इसलिए स्टूडेन्ट को बच्चे-बच्चे कहते हैं। वहाँ कोई अपने को आत्मा तो समझते नहीं हैं। वहाँ तो जिस्मानी सम्बन्ध ही रहता है। जैसे गांधी को बापू का मर्तबा दे दिया है। मेयर को भी फादर कहते हैं। ऐसे मर्तबे तो बहुतों को देते हैं। यहाँ तो तुम समझते हो हम आत्मायें भाई-भाई हैं। तो भाईयों का बाप जरूर चाहिए। सब आत्मायें जानती हैं वह हमारा बाप है जिसको गॉड फादर कहते हैं। यह आत्मा ने कहा हमारा गॉड फादर। लौकिक फादर को गॉड नहीं कहेंगे। तुम जानते हो हम आत्मा हैं। बाबा हमको पढ़ाने आये हैं अर्थात् पतितों को पावन बनाने आये हैं। हमको पतित से पावन बनाकर और फिर पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। यह बातें कोई भी जानते नहीं। यहाँ तुम बच्चे जानते हुए भी फिर कर्म करने में भूल जाते हो। याद में रहो तो विकर्म नहीं होगा। कर्मयोगी तो तुम हो ही। सन्यासियों का है कर्म सन्यास। सिर्फ ब्रह्म तत्व से योग लगाते हैं। परन्तु सारा दिन तो योग लगा नहीं सकते। ब्रह्म में जाने के लिए योग रखते हैं। समझते हैं ब्रह्म को याद करने से हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। परन्तु सारा दिन तो ब्रह्म को याद कर नहीं सकते और उस याद से विकर्म भी विनाश नहीं होते हैं। गाया हुआ है पतित-पावन। वह तो बाप ही है। ऐसे तो नहीं कहते पतित-पावन ब्रह्म अथवा पतित-पावन तत्व। सब बाप को ही पतित-पावन कहते हैं। ब्रह्म को कोई फादर नहीं कहते। न ब्रह्म की कोई तपस्या करते। शिव की तपस्या करते हैं। शिव का मन्दिर भी है। तत्व का मन्दिर बन सकेगा क्या? ब्रह्म में तो अण्डे सदृश्य आत्मायें रहती हैं इसलिए शास्त्रों में ब्रह्माण्ड कहा है। यह नाम कोई है नहीं। वो घर है, जैसे आकाश तत्व में कितने साकारी मनुष्य रहते हैं वैसे वहाँ फिर आत्मायें रहती हैं।
तुम बच्चे जानते हो बाबा से हम ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज ले सारे राज़ को जानकर, सारे झाड़ की नॉलेज समझकर मास्टर बीजरूप बन जाते हैं। परमपिता परमात्मा में सारी नॉलेज है, हम उनके बच्चे हैं। वह बैठ समझाते हैं। इस कल्प वृक्ष की उत्पत्ति, पालना और संहार कैसे होता है, उत्पत्ति कहने से जैसे नई दुनिया उत्पन्न करते हैं। स्थापना अक्षर ठीक है। ब्रह्मा द्वारा पतितों को पावन करते हैं। पतित-पावन अक्षर जरूर चाहिए। सतयुग में सब सद्गति में हैं, कलियुग में सब दुर्गति में हैं। क्यों, कैसे दुर्गति हुई? यह कोई को पता नहीं। गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। आत्मा समझती है - यह एक खेल है। बाप की महिमा गाते हैं “सदा शिव।” सुख देने वाला शिव, गाते भी हैं दु:ख हर्ता सुख कर्ता। भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब तो नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को भगवती भगवान कहते हैं, उन्हों की राजधानी किसने स्थापन की? भगवान निराकार है, उनसे आत्मायें वर्सा पाती हैं। आत्मा ही 84 जन्म लेते-लेते गिरती आती है। गिरते-गिरते दुर्गति को पाती है। यह बात समझानी है, परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। वह बाप सद्गति दाता है, हम सब भाई-भाई हैं, न कि बाप। ऐसे थोड़ेही कहा जाता है - फादर ने ब्रदर्स का रूप धरा है। नहीं, इसलिए पहले यह बताओ कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? लौकिक सम्बन्ध को तो सब जानते हैं। आत्माओं का है निराकार बाप। उनको हेविनली गॉड फादर कहते हैं। फादर ने जरूर नई रचना का मालिक बनाया होगा। अभी हम मालिक नहीं हैं। हम सुखी थे। दु:खी किसने बनाया? यह नहीं जानते। आधाकल्प से रावण का राज्य चला है तो भारत की यह हालत हुई है। भारत परमपिता परमात्मा की बर्थ प्लेस है। भारत में भगवान आया है। जरूर स्वर्ग स्थापन किया होगा। शिव जयन्ती भी मनाई जाती है। तुम लिख भी सकते हो - हम फलाना बर्थ डे मना रहे हैं। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे, यह क्या कहते हैं? बधाई भी दो। बताओ हम पतित-पावन, सद्गति दाता परमपिता परमात्मा शिव की जयन्ती मना रहे हैं। उस दिन बहुत शादमाना करना चाहिए। सर्व के सद्गति दाता की जयन्ती कम बात है क्या? एरोप्लेन द्वारा पर्चे बड़े-बड़े शहरों में गिराने चाहिए। तो अखबारों में भी पड़ेगा। बहुत सुन्दर-सुन्दर कार्ड बनाने चाहिए। मोस्ट बिलवेड बाप की बहुत महिमा लिखनी चाहिए। भारत को फिर से स्वर्ग बनाने आया है। वही बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वर्सा भी वही देते हैं। बहुत भभके के शिव जयन्ती के कार्ड छपाने चाहिए। प्लास्टिक पर भी छप सकते हैं। परन्तु अजुन छोटी बुद्धि हैं, राजा रानी तो कोटों में कोई बनेगा। बाकी जरूर अलबेले जो होंगे वह प्रजा बनेंगे। माला 108 की है, बाकी प्रजा तो बहुत होगी। ऐसे भी नहीं हम तो अलबेले हैं, खूब पुरुषार्थ करना चाहिए। बाबा समझाते बहुत हैं परन्तु अमल में मुश्किल लाते हैं। यहाँ अपने को अल्लाह के बच्चे समझते हैं, बाहर निकलने से माया उल्लू बना देती है, इतनी कड़ी माया है। राजाई लेने वाले थोड़े निकलते हैं। चन्द्रवंशी को भी हम नापास कहेंगे। तुम सबकी पढ़ाई और पद को जानते हो। दुनिया में रामचन्द्र के पद को कोई जानता होगा? बाबा अच्छी तरह समझाते हैं। कैसे हम शिव जयन्ती के लिए फर्स्टक्लास निमंत्रण बनावें जो मनुष्य चक्रित हो जाएं। विचार सागर मंथन गाया हुआ है। शिवबाबा को थोड़ेही विचार सागर मंथन करना है। यह बच्चों का काम है। बाबा राय देते हैं - किसकी बुद्धि में आये और काम न करे तो बाबा उनको अनाड़ी कहेंगे। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा हमको ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं। शंकर द्वारा विनाश होना है। त्रिमूर्ति ऊपर खड़ा है।
तुम सब पण्डे हो जो रूहानी यात्रा सिखलाते हो। तुम भी लिख सकते हो - सत्य मेव जयते... बरोबर सत्य बाबा हमको विजय पाना सिखलाते हैं अथवा विजय प्राप्त कराते हैं। कोई एतराज उठावे तो उनको समझाना है। बाबा का ख्याल चला कि शिव जयन्ती कैसे मनानी चाहिए। गीता का भगवान शिव है, न कि कृष्ण - इसका बहुत प्रचार करना है। वह रचयिता, वह रचना। वर्सा किससे मिलेगा? श्रीकृष्ण है पहली रचना। दिखाया है सागर में पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया। यह है गर्भ महल की बात। स्वर्ग में गर्भ महल में मौज रहती है। यहाँ नर्क में गर्भ जेल में फथकते हैं। सतयुग में गर्भ महल, कलियुग में गर्भ जेल होता है। कृष्ण का चित्र कितना अच्छा है। नर्क को लात मार रहे हैं। कृष्ण के 84 जन्म भी लिखे हुए हैं। भगवानुवाच, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बतलाता हूँ। तो जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं उनको ही समझाता हूँ। कितना सहज है। साथ में मैनर्स भी चाहिए। लोभ रखना चाहिए - बेहद के बाप से वर्सा लेने का और कोई चीज़ का लोभ नहीं इसलिए ऐसी कोई चीज़ अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो बुद्धि जाये। नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। देह सहित जो कुछ है सबसे बुद्धि निकालनी है। एक बाप को याद करना है। कोई मनुष्य बहुत फर्नीचर रखने वाला होगा तो मरने समय वह याद आता रहेगा। जिस वस्तु से जास्ती प्यार होगा वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेगी। बाप बच्चों को समझाते हैं कोई भी चीज़ लोभ के वश छिपाकर मत रखो। यज्ञ से हर चीज़ मिल सकती है। छिपाके कुछ रखा तो बुद्धि जरूर लटकेगी। बाबा का फरमान है - शिवबाबा का भण्डारा है - बच्चों को सब कुछ मिलना है। ऐसा भी ख्याल नहीं आना चाहिए कि फलाने को साड़ी अच्छी पड़ी है, हम भी पहनें। अरे तुम बाप से राजाई का वर्सा लेने आई हो कि साड़ी का वर्सा लेने आई हो? जो अच्छी सर्विस करते हैं उन पर सब कुर्बान जाते हैं। बोलो, हम सिवाए शिव के भण्डारे से मिले हुए और कुछ पहन नहीं सकती। हम यज्ञ से ही लेंगी तो बाबा की याद रहेगी। शिवबाबा के भण्डारे से यह मिला। नहीं तो चोरी आदि की आदत पड़ जाती है। अरे यहाँ पीफाइज़ (त्याग) करेंगे तो वहाँ बहुत फर्स्टक्लास चीज़ें मिलेंगी। शिवबाबा कहाँ-कहाँ बच्चों की परीक्षा भी लेते हैं। देखें कितना देह-अभिमान है। तुम्हारा वायदा है - जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे... आदि। दिल में समझना चाहिए - यह शिवबाबा देते हैं। इतनी फर्स्टक्लास अवस्था होनी चाहिए। बाबा से पूरा वर्सा लेना है तो श्रीमत पर पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो। बाबा की राय पर चलो। बाबा मम्मा कहते हो तो पूरा-पूरा फालो करो। सबको रास्ता बताओ। बाबा से वर्सा मिला था, अब फिर मिल रहा है। याद की यात्रा करते रहो। बाबा समझाते हैं - तुम जितना रूसतम बनेंगे उतना माया ज़ोर से आयेगी। तुम मूँझते क्यों हो? कोई-कोई बच्चे को बाबा लिखते हैं तुम तो बहुत अच्छी सर्विस करने वाले हो। माया के तूफान आयेंगे - क्या सारी आयु ब्रह्मचर्य में रहेंगे? बुढ़ापे में भी आकर चकरी लगेगी। शादी करें, यह करें। माया बूढ़े को भी जवान बना देगी। ऐसा फथकायेगी। तुम डरते क्यों हो? भल कितना भी तूफान आये, बाबा को याद करने से बच जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) लोभ के वश कोई भी चीज़ छिपाकर अपने पास नहीं रखनी है। बाप के फरमान पर चलते रहना है।
2) बाबा जो खिलाये, जो पहनाये, एक शिवबाबा के भण्डारे से ही लेना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। मम्मा बाबा को पूरा फालो करना है।
वरदान: सत्यता की हिम्मत से विश्वास का पात्र बनने वाले बाप वा परिवार के स्नेही भव!
विश्वास की नांव सत्यता है। दिल और दिमाग की ऑनेस्टी है तो उसके ऊपर बाप का, परिवार का स्वत: ही दिल से प्यार और विश्वास होता है। विश्वास के कारण फुल अधिकार उसको दे देते हैं। वे स्वत: ही सबके स्नेही बन जाते हैं इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बनो। सत्य को सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ तो तीव्रगति से आगे बढ़ते रहेंगे।
स्लोगन: सबसे अधिक धनवान वह है जिसके पास शान्ति व पवित्रता का खजाना है।
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Mithe bacche - Tum Karmyogi ho, karm karte huye Baap ki yaad me raho, yaad me rehne se koi bhi bikarm nahi hoga.
Q- Baap se buddhi yog na lagne ka mukhya ek kaaran hai - wo kaun sa?
A- Lobh. Koi bhi binashi chizo me lobh hoga., khane ka wa pehnne ka souk hoga to unki buddhi Baap se nahi lag sakti isiliye Baba biddhi batate hain bacche lobh rakho- behad ke Baap se varsha lene ka. Baki kisi bhi chiz me lobh nahi rakho. Nahi to jis chiz se adhik pyar hoga wohi chiz ant me bhi yaad ayegi aur pad bhrast ho jayega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Lobh ke bas koi bhi chiz chhipakar apne pas nahi rakhni hai. Baap ke farmaan par chalte rehna hai._
2) Baba jo khilaye, jo pehnaye, ek Shiv Baba ke bhandare se he lena hai. Deha-abhimaan me nahi aana hai. Mamma Baba ko poora follow karna hai.
Vardaan:-- Satyata ki himmat se biswas ka patra banne wale Baap wa Parivar ke snehi bhava.
Slogan:--Sabse adhik dhanvan wo hai jiske pas shanti wa pavitrata ka khazana hai.
Hindi Version in Details – 10/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम कर्मयोगी हो, कर्म करते हुए बाप की याद में रहो, याद में रहने से कोई भी विकर्म नहीं होगा”
प्रश्न:
बाप से बुद्धियोग न लगने का मुख्य एक कारण है - वह कौन सा?
उत्तर:
लोभ। कोई भी विनाशी चीज़ों में लोभ होगा, खाने का वा पहनने का शौक होगा तो उनकी बुद्धि बाप से नहीं लग सकती इसलिए बाबा विधि बताते हैं बच्चे लोभ रखो - बेहद के बाप से वर्सा लेने का। बाकी किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखो। नहीं तो जिस चीज़ से अधिक प्यार होगा वही चीज़ अन्त में भी याद आयेगी और पद भ्रष्ट हो जायेगा।
गीत:- जाग सजनियां जाग... ओम् शान्ति।
अभी यह तो बच्चे जानते हैं यूँ तो सारी दुनिया में सब कहते हैं कि हम सभी आपस में भाई-भाई हैं। वी आर आल ब्रदर्स। परन्तु क्यों नहीं उन आत्माओं को यह समझ में आता है कि हम बाप के बच्चे हैं। वह रचयिता है, हम रचना हैं। जानवर तो नहीं कहेंगे हम ब्रदर्स हैं। मनुष्य ही समझते हैं और कहते भी हैं कि हम सब ब्रदर्स हैं। रचता बाप एक है। उसको कहा जाता है परमपिता परमात्मा। ऐसे हो नहीं सकता कि बहन को भाई कहें। जब सब अपने को आत्मा समझते हैं तब कहते हैं हम आपस में भाई-भाई हैं। सिवाए आत्मा के और कुछ हो नहीं सकता। एक बाप के जिस्मानी बच्चे तो इतने नहीं हो सकते। अभी तुमको अच्छी तरह याद है कि हम आपस में भाई-भाई हैं। बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - हे बच्चों, तो बहुतों को पढ़ाते हैं ना। सिर्फ ऐसे नहीं कहेंगे हे अर्जुन, एक का नाम नहीं लेंगे। सबको पढ़ाते हैं। स्कूल में मास्टर कहेंगे ना - हे बच्चों, अच्छी तरह पढ़ो। हैं तो स्टूडेन्ट। परन्तु टीचर बड़ा, बुजुर्ग है इसलिए स्टूडेन्ट को बच्चे-बच्चे कहते हैं। वहाँ कोई अपने को आत्मा तो समझते नहीं हैं। वहाँ तो जिस्मानी सम्बन्ध ही रहता है। जैसे गांधी को बापू का मर्तबा दे दिया है। मेयर को भी फादर कहते हैं। ऐसे मर्तबे तो बहुतों को देते हैं। यहाँ तो तुम समझते हो हम आत्मायें भाई-भाई हैं। तो भाईयों का बाप जरूर चाहिए। सब आत्मायें जानती हैं वह हमारा बाप है जिसको गॉड फादर कहते हैं। यह आत्मा ने कहा हमारा गॉड फादर। लौकिक फादर को गॉड नहीं कहेंगे। तुम जानते हो हम आत्मा हैं। बाबा हमको पढ़ाने आये हैं अर्थात् पतितों को पावन बनाने आये हैं। हमको पतित से पावन बनाकर और फिर पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। यह बातें कोई भी जानते नहीं। यहाँ तुम बच्चे जानते हुए भी फिर कर्म करने में भूल जाते हो। याद में रहो तो विकर्म नहीं होगा। कर्मयोगी तो तुम हो ही। सन्यासियों का है कर्म सन्यास। सिर्फ ब्रह्म तत्व से योग लगाते हैं। परन्तु सारा दिन तो योग लगा नहीं सकते। ब्रह्म में जाने के लिए योग रखते हैं। समझते हैं ब्रह्म को याद करने से हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। परन्तु सारा दिन तो ब्रह्म को याद कर नहीं सकते और उस याद से विकर्म भी विनाश नहीं होते हैं। गाया हुआ है पतित-पावन। वह तो बाप ही है। ऐसे तो नहीं कहते पतित-पावन ब्रह्म अथवा पतित-पावन तत्व। सब बाप को ही पतित-पावन कहते हैं। ब्रह्म को कोई फादर नहीं कहते। न ब्रह्म की कोई तपस्या करते। शिव की तपस्या करते हैं। शिव का मन्दिर भी है। तत्व का मन्दिर बन सकेगा क्या? ब्रह्म में तो अण्डे सदृश्य आत्मायें रहती हैं इसलिए शास्त्रों में ब्रह्माण्ड कहा है। यह नाम कोई है नहीं। वो घर है, जैसे आकाश तत्व में कितने साकारी मनुष्य रहते हैं वैसे वहाँ फिर आत्मायें रहती हैं।
तुम बच्चे जानते हो बाबा से हम ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज ले सारे राज़ को जानकर, सारे झाड़ की नॉलेज समझकर मास्टर बीजरूप बन जाते हैं। परमपिता परमात्मा में सारी नॉलेज है, हम उनके बच्चे हैं। वह बैठ समझाते हैं। इस कल्प वृक्ष की उत्पत्ति, पालना और संहार कैसे होता है, उत्पत्ति कहने से जैसे नई दुनिया उत्पन्न करते हैं। स्थापना अक्षर ठीक है। ब्रह्मा द्वारा पतितों को पावन करते हैं। पतित-पावन अक्षर जरूर चाहिए। सतयुग में सब सद्गति में हैं, कलियुग में सब दुर्गति में हैं। क्यों, कैसे दुर्गति हुई? यह कोई को पता नहीं। गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। आत्मा समझती है - यह एक खेल है। बाप की महिमा गाते हैं “सदा शिव।” सुख देने वाला शिव, गाते भी हैं दु:ख हर्ता सुख कर्ता। भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब तो नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को भगवती भगवान कहते हैं, उन्हों की राजधानी किसने स्थापन की? भगवान निराकार है, उनसे आत्मायें वर्सा पाती हैं। आत्मा ही 84 जन्म लेते-लेते गिरती आती है। गिरते-गिरते दुर्गति को पाती है। यह बात समझानी है, परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। वह बाप सद्गति दाता है, हम सब भाई-भाई हैं, न कि बाप। ऐसे थोड़ेही कहा जाता है - फादर ने ब्रदर्स का रूप धरा है। नहीं, इसलिए पहले यह बताओ कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? लौकिक सम्बन्ध को तो सब जानते हैं। आत्माओं का है निराकार बाप। उनको हेविनली गॉड फादर कहते हैं। फादर ने जरूर नई रचना का मालिक बनाया होगा। अभी हम मालिक नहीं हैं। हम सुखी थे। दु:खी किसने बनाया? यह नहीं जानते। आधाकल्प से रावण का राज्य चला है तो भारत की यह हालत हुई है। भारत परमपिता परमात्मा की बर्थ प्लेस है। भारत में भगवान आया है। जरूर स्वर्ग स्थापन किया होगा। शिव जयन्ती भी मनाई जाती है। तुम लिख भी सकते हो - हम फलाना बर्थ डे मना रहे हैं। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे, यह क्या कहते हैं? बधाई भी दो। बताओ हम पतित-पावन, सद्गति दाता परमपिता परमात्मा शिव की जयन्ती मना रहे हैं। उस दिन बहुत शादमाना करना चाहिए। सर्व के सद्गति दाता की जयन्ती कम बात है क्या? एरोप्लेन द्वारा पर्चे बड़े-बड़े शहरों में गिराने चाहिए। तो अखबारों में भी पड़ेगा। बहुत सुन्दर-सुन्दर कार्ड बनाने चाहिए। मोस्ट बिलवेड बाप की बहुत महिमा लिखनी चाहिए। भारत को फिर से स्वर्ग बनाने आया है। वही बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वर्सा भी वही देते हैं। बहुत भभके के शिव जयन्ती के कार्ड छपाने चाहिए। प्लास्टिक पर भी छप सकते हैं। परन्तु अजुन छोटी बुद्धि हैं, राजा रानी तो कोटों में कोई बनेगा। बाकी जरूर अलबेले जो होंगे वह प्रजा बनेंगे। माला 108 की है, बाकी प्रजा तो बहुत होगी। ऐसे भी नहीं हम तो अलबेले हैं, खूब पुरुषार्थ करना चाहिए। बाबा समझाते बहुत हैं परन्तु अमल में मुश्किल लाते हैं। यहाँ अपने को अल्लाह के बच्चे समझते हैं, बाहर निकलने से माया उल्लू बना देती है, इतनी कड़ी माया है। राजाई लेने वाले थोड़े निकलते हैं। चन्द्रवंशी को भी हम नापास कहेंगे। तुम सबकी पढ़ाई और पद को जानते हो। दुनिया में रामचन्द्र के पद को कोई जानता होगा? बाबा अच्छी तरह समझाते हैं। कैसे हम शिव जयन्ती के लिए फर्स्टक्लास निमंत्रण बनावें जो मनुष्य चक्रित हो जाएं। विचार सागर मंथन गाया हुआ है। शिवबाबा को थोड़ेही विचार सागर मंथन करना है। यह बच्चों का काम है। बाबा राय देते हैं - किसकी बुद्धि में आये और काम न करे तो बाबा उनको अनाड़ी कहेंगे। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा हमको ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं। शंकर द्वारा विनाश होना है। त्रिमूर्ति ऊपर खड़ा है।
तुम सब पण्डे हो जो रूहानी यात्रा सिखलाते हो। तुम भी लिख सकते हो - सत्य मेव जयते... बरोबर सत्य बाबा हमको विजय पाना सिखलाते हैं अथवा विजय प्राप्त कराते हैं। कोई एतराज उठावे तो उनको समझाना है। बाबा का ख्याल चला कि शिव जयन्ती कैसे मनानी चाहिए। गीता का भगवान शिव है, न कि कृष्ण - इसका बहुत प्रचार करना है। वह रचयिता, वह रचना। वर्सा किससे मिलेगा? श्रीकृष्ण है पहली रचना। दिखाया है सागर में पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया। यह है गर्भ महल की बात। स्वर्ग में गर्भ महल में मौज रहती है। यहाँ नर्क में गर्भ जेल में फथकते हैं। सतयुग में गर्भ महल, कलियुग में गर्भ जेल होता है। कृष्ण का चित्र कितना अच्छा है। नर्क को लात मार रहे हैं। कृष्ण के 84 जन्म भी लिखे हुए हैं। भगवानुवाच, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बतलाता हूँ। तो जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं उनको ही समझाता हूँ। कितना सहज है। साथ में मैनर्स भी चाहिए। लोभ रखना चाहिए - बेहद के बाप से वर्सा लेने का और कोई चीज़ का लोभ नहीं इसलिए ऐसी कोई चीज़ अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो बुद्धि जाये। नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। देह सहित जो कुछ है सबसे बुद्धि निकालनी है। एक बाप को याद करना है। कोई मनुष्य बहुत फर्नीचर रखने वाला होगा तो मरने समय वह याद आता रहेगा। जिस वस्तु से जास्ती प्यार होगा वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेगी। बाप बच्चों को समझाते हैं कोई भी चीज़ लोभ के वश छिपाकर मत रखो। यज्ञ से हर चीज़ मिल सकती है। छिपाके कुछ रखा तो बुद्धि जरूर लटकेगी। बाबा का फरमान है - शिवबाबा का भण्डारा है - बच्चों को सब कुछ मिलना है। ऐसा भी ख्याल नहीं आना चाहिए कि फलाने को साड़ी अच्छी पड़ी है, हम भी पहनें। अरे तुम बाप से राजाई का वर्सा लेने आई हो कि साड़ी का वर्सा लेने आई हो? जो अच्छी सर्विस करते हैं उन पर सब कुर्बान जाते हैं। बोलो, हम सिवाए शिव के भण्डारे से मिले हुए और कुछ पहन नहीं सकती। हम यज्ञ से ही लेंगी तो बाबा की याद रहेगी। शिवबाबा के भण्डारे से यह मिला। नहीं तो चोरी आदि की आदत पड़ जाती है। अरे यहाँ पीफाइज़ (त्याग) करेंगे तो वहाँ बहुत फर्स्टक्लास चीज़ें मिलेंगी। शिवबाबा कहाँ-कहाँ बच्चों की परीक्षा भी लेते हैं। देखें कितना देह-अभिमान है। तुम्हारा वायदा है - जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे... आदि। दिल में समझना चाहिए - यह शिवबाबा देते हैं। इतनी फर्स्टक्लास अवस्था होनी चाहिए। बाबा से पूरा वर्सा लेना है तो श्रीमत पर पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो। बाबा की राय पर चलो। बाबा मम्मा कहते हो तो पूरा-पूरा फालो करो। सबको रास्ता बताओ। बाबा से वर्सा मिला था, अब फिर मिल रहा है। याद की यात्रा करते रहो। बाबा समझाते हैं - तुम जितना रूसतम बनेंगे उतना माया ज़ोर से आयेगी। तुम मूँझते क्यों हो? कोई-कोई बच्चे को बाबा लिखते हैं तुम तो बहुत अच्छी सर्विस करने वाले हो। माया के तूफान आयेंगे - क्या सारी आयु ब्रह्मचर्य में रहेंगे? बुढ़ापे में भी आकर चकरी लगेगी। शादी करें, यह करें। माया बूढ़े को भी जवान बना देगी। ऐसा फथकायेगी। तुम डरते क्यों हो? भल कितना भी तूफान आये, बाबा को याद करने से बच जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) लोभ के वश कोई भी चीज़ छिपाकर अपने पास नहीं रखनी है। बाप के फरमान पर चलते रहना है।
2) बाबा जो खिलाये, जो पहनाये, एक शिवबाबा के भण्डारे से ही लेना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। मम्मा बाबा को पूरा फालो करना है।
वरदान: सत्यता की हिम्मत से विश्वास का पात्र बनने वाले बाप वा परिवार के स्नेही भव!
विश्वास की नांव सत्यता है। दिल और दिमाग की ऑनेस्टी है तो उसके ऊपर बाप का, परिवार का स्वत: ही दिल से प्यार और विश्वास होता है। विश्वास के कारण फुल अधिकार उसको दे देते हैं। वे स्वत: ही सबके स्नेही बन जाते हैं इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बनो। सत्य को सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ तो तीव्रगति से आगे बढ़ते रहेंगे।
स्लोगन: सबसे अधिक धनवान वह है जिसके पास शान्ति व पवित्रता का खजाना है।
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Details ( Page:- Murali 11-Oct 2017 )
Hinglish Summary – 11.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Sada isi nashe me raho ki hum Shiv banshi Brahma mukh bansabali Brahman hai, humara Ishwariya kul sabse ooncha hai.
Q- Upar ghar jaane ki lift kab milti hai? Us lift me kaun baith sakte hain?
A- Abhi Sangamyug par he ghar jaane ki lift milti hai. Jab tak koi Baap ka na bane, Brahman na bane tab tak lift me baith nahi sakte. Lift me baithne ke liye pavitra bano, dusra swadarshan chakra ghumao - yahi jaise pankh hai, inhi pankho ke aadhar se ghar ja sakte ho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Mala ka dana banne ke liye yah dharana pakki karni hai ki mera to ek Shiv Baba, dusra na koi. Smrutilabdha banna hai.
2) Sri Sri 108 Shiv Baba ki shrimat par poora-poora chalna hai. Mera-mera chhod grahan se mukt hona hai.
Vardaan:-- Sarv shaktiyon roopi birth right ko har samay karya me lagane wale Master Sarv Shaktimaan bhava.
Slogan:-- Umang aur utsah ke bina koi bhi mahan karya nahi ho sakta hai.
Hindi Version in Details – 11/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सदा इसी नशे में रहो कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा ईश्वरीय कुल सबसे ऊंचा है”
प्रश्न:
ऊपर घर में जाने की लिफ्ट कब मिलती है? उस लिफ्ट में कौन बैठ सकते हैं?
उत्तर:
अभी संगमयुग पर ही घर जाने की लिफ्ट मिलती है। जब तक कोई बाप का न बने, ब्राह्मण न बने तब तक लिफ्ट में बैठ नहीं सकते। लिफ्ट में बैठने के लिए पवित्र बनो, दूसरा स्वदर्शन चक्र घुमाओ - यही जैसे पंख हैं, इन्हीं पंखों के आधार से घर जा सकते हो।
गीत:- धीरज धर मनुआ.... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे संगमयुगी ब्राह्मण जिनको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है वह अभी गुप्त वेष में पढ़ रहे हैं। तुमको कोई समझ न सके कि यह संगमयुगी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तुम बच्चे जानते हो हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तो कुल का भी नशा चढ़ता है क्योंकि तुम ही ईश्वरीय कुल के हो। ईश्वर ने ही बैठ तुमको अपना बनाया है, अपने साथ ले जाने के लिए। बच्चे जानते हैं तो बाप भी जानते हैं कि आत्मा पतित बन गई है, अब पावन बनना है। अब बच्चों को निश्चय हो गया है कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुखवंशावली हैं। तुम्हारा नाम भी है ब्रह्माकुमार कुमारी। सारी दुनिया शिव वंशी है। ब्राह्मण कुल भूषण भी बनें तब जब पहले शिवबाबा को पहचानें। इस समय तुम साकार में बाबा के बने हो। यूं तो जब निराकारी दुनिया में हो तो सर्वोत्तम शिव वंशी हो। परन्तु जब बाबा साकार में आते हैं तो तुम ब्रह्मा मुख वंशावली बनते हो। एक सेकेण्ड में बाबा क्या से क्या बनाते हैं। बाबा कहा और बच्चे बन गये। जैसे आत्मा मुख से बोलती है परन्तु देखने में नहीं आती। वैसे मैं भी इस समय साकार में आया हूँ, बोल रहा हूँ। जैसे तुमको जब तक शरीर न मिले तब तक पार्ट कैसे बजा सको। तुम तो बाल, युवा और वृद्ध अवस्था में आते हो। मैं इन अवस्थाओं में नहीं आता हूँ, तब तो कहा जाता है मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है। तुम तो गर्भ में प्रवेश करते हो। मैं खुद कहता हूँ कि मैं ब्रह्मा तन में, इनके बहुत जन्मों के अन्त के समय वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ और तुमको बैठ पढ़ाता हूँ। तुमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते क्योंकि किसी भी मनुष्य में ज्ञान नहीं है। कहते हैं पतित-पावन आओ तो पतित-पावन कौन? कृष्ण तो सतयुग का पहला प्रिन्स है। वह पतित-पावन हो न सके। जब मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं राम-राम कहो, जब किसको फांसी पर चढ़ाते हैं तो भी पादरी लोग कहते हैं गॉड फादर को याद करो क्योंकि गॉड फादर ही सुखदाता है। बाप ही सब राज़ आकर समझाते हैं कि अब संगमयुग है और हमारे सुख के दिन आ रहे हैं। 84 जन्म पूरे हुए। अभी संगम का सुहावना समय है। यही एक युग है ऊपर चढ़ने का। जैसेकि ऊपर जाने की लिफ्ट मिलती है। परन्तु जब तक पवित्र न बनें, स्वदर्शन चक्रधारी न बनें तब तक लिफ्ट पर बैठ न सकें। इस समय जैसे पंख मिल रहे हैं क्योंकि माया ने पंख काट दिये हैं। जब बाबा के बनते हैं, ब्राह्मण बनते हैं तब ही पंख मिलते हैं। अब संगम पर ब्राह्मण हैं फिर देवता बनते हैं। तो तुम अभी संगमयुगी हो और सतयुगी राजधानी में जाने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाकी सुख के दिन सबके लिए आ रहे हैं। तुमको धीरज मिल रहा है। बाकी दुनिया तो घोर अन्धियारे में है।
तुमको बाप कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषण। यह कोई नया सुने तो कहे यह कैसे स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हैं? स्वदर्शन चक्रधारी तो विष्णु है तो कितना फ़र्क हो गया। तुम्हारी बुद्धि में तो सारा चक्र है। इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान फिर बनते हो दैवी सन्तान फिर वैश्य, शूद्र सन्तान बनते हो। इस समय सबसे ऊंचा है ईश्वरीय कुल। वास्तव में महिमा सारी शिव की है। फिर शिव शक्तियों की फिर देवताओं की क्योंकि तुम इस समय सेवा करते हो। जो सेवा करते हैं उनको ही पद मिलता है। तुम हो रूहानी सोशल वर्कर, जिस्मानी सोशल वर्कर बहुत हैं। तुमको अब रूहानी नशा है कि हम अशरीरी आये थे, आकर अपना स्वराज्य लिया था। तुमको अब बाप द्वारा नॉलेज मिली है। स्मृति आई है - इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा। अब बाप ही आकर स्मृति दिलाते हैं कि तुम ही देवता, क्षत्रिय बने हो। अब 84 जन्मों के बाद आकर मिले हो। यह है संगमयुगी कुम्भ मेला, आत्मा और परमात्मा का। परमात्मा आकर पढ़ा रहे हैं अर्थात् सर्व शास्त्र मई शिरोमणी गीता ज्ञान दे रहे हैं। उन्होंने गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। अगर कृष्ण हो तो सब उनको चटक जायें क्योंकि उनमें बहुत कशिश है। सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है। कृष्ण की आत्मा अब सुन रही है और जो भी कृष्णपुरी की आत्मायें हैं वह भी सुन रही हैं। अब तुमको स्मृति आई है कि हम ही कृष्णपुरी अथवा लक्ष्मी-नारायणपुरी के हैं। बाप नॉलेजफुल है, बाप में जो नॉलेज है वह हमको दे रहे हैं। कौन सी नॉलेज? परमात्मा को बीजरूप कहा जाता है, तो सारे झाड़ की नॉलेज दे देते हैं। ज्ञान सागर है तब ही पतित-पावन है। जब लिखते हो तो समझ से लिखो। पहले पतित-पावन कहें या ज्ञान सागर कहें? जरूर ज्ञान है तब तो पतितों को पावन बनायेंगे। तो पहले ज्ञान सागर फिर पतित-पावन लिखना चाहिए। यह ज्ञान सागर बाप ही सुनाते हैं तो मनुष्य 84 जन्म कैसे लेते हैं। एक का थोड़ेही बतायेंगे। यह राजयोग की पाठशाला है। पाठशाला में तो बहुत होंगे। एक को थोड़ेही पढ़ायेंगे। हम कहते हैं बाप है, टीचर है तो बहुतों को पढ़ाते हैं। देखते हो बेहद के बच्चों को पढ़ाते हैं और वृद्धि होती जाती है। झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। जब थोड़ा निकलता है तो चिड़ियायें खा जाती हैं। तुम देखते हो इस झाड को माया का तूफान ऐसा आता है जो अच्छे-अच्छे बिखर जाते हैं। बाबा शुरू में बच्चों की ऐसी चलन देखते थे तो कहते थे तुम्हारी चलन ऐसी है जो तुम ठहर नहीं सकेंगे, इसलिए श्रीमत पर चलो। वह कहते थे कुछ भी हो जाये हम भाग नहीं सकते। फिर भी वह भाग गये। तब गाया हुआ है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती। तो तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो। ऐसे होता जा रहा है क्योंकि माया सामने खड़ी है, मल्लयुद्ध होती है। दोनों तरफ से पहलवान होते हैं। फिर कभी किसी की हार, कभी किसी की जीत। तुम्हारी अब माया से युद्ध है। माया से जीत पहन तुम राजाई स्थापन कर रहे हो।
बाप कहते हैं यह विनाश की निशानी है - बाम्ब्स। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पेट से मूसल निकाल अपने कुल का विनाश किया। तुम जानते हो कि बाबा आया है पावन दुनिया बनाने। तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर चाहिए। नहीं तो हम राजाई कहाँ करेंगे। इस पढ़ाई की प्रालब्ध है भविष्य नई दुनिया के लिए। और जो भी पुरुषार्थ करते हैं वह इस दुनिया के लिए है। सन्यासी जो पुरुषार्थ करते हंक वह भी इस दुनिया के लिए है। तुम कहते हो हम यहाँ आकर राजाई करेंगे। परन्तु गुप्त रूप होने के कारण घड़ी-घड़ी बच्चे भूल जाते हैं। नहीं तो बड़े आदमी कहाँ जाते हैं तो कितनी स्वागत करते हैं। लण्डन से रानी आई तो कितने धूमधाम से स्वागत की। परन्तु बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है, लेकिन बच्चों बिगर कोई जानते नहीं। हम शो भी नहीं कर सकते क्योंकि नई बात है। मनुष्य मूँझते भी हैं कि यहाँ ब्रह्मा कहाँ से आया? क्योंकि आजकल तो टाइटिल बहुत रख देते हैं। बाबा कहते अन्धेर नगरी है... कुछ भी नहीं जानते हैं। अगर समझो साधू सन्त, गुरूओं को मालूम पड़ जाए कि बाप आया है, जिसको हम सर्वव्यापी कहते थे, वह अब मुक्ति-जीवनमुक्ति आकर दे रहे हैं। अच्छा जान जायें तो आकर लेने लग जायें, ऐसा पांव पकड़ लें, जो मैं छुड़ा भी न सकूं। ऐसा हो तो सब कहें कि इनके पास जादू है और गुरू का माथा खराब हो गया है। परन्तु अभी ऐसा होना नहीं है, यह पिछाड़ी में होना है। कहते हैं ना कन्याओं ने भीष्मपितामह को बाण मारे। यह भी दिखाते हैं - बाण मारने से गंगा निकल आई। तो सिद्ध है पिछाड़ी में ज्ञान अमृत सबको पिलाया है। मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं। कह देते हैं परमात्मा तो सर्वव्यापी है। बुद्ध को भी सर्वव्यापी कह देते हैं। इसको कहा जाता है पत्थर बुद्धि। हम भी पहले पत्थर बुद्धि थे। तो बाप आकर समझाते हैं कि गॉड फादर को कभी भी साकारी वा आकारी नहीं कहेंगे, वह तो निराकार है। उन्हें सुप्रीम सोल कहा जाता है। आधाकल्प तुमने भक्ति की। कहते हैं ना - भक्ति करते-करते भगवान मिलेगा तो जरूर है कि भक्ति करते-करते दुर्गति को पाया है फिर बाप आता है सद्गति करने। कहते भी हैं ना - सर्व का सद्गति दाता। तो मनुष्य थोड़ेही समझते हैं कि परमात्मा कब और किस रूप में आया, कह देते हैं द्वापर युग में कृष्ण रूप में आयेगा, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा। कहते हैं ना - कुम्भकरण को नींद से जगाया तो जागे नहीं। तो बाप ने अब डायरेक्शन निकाला है कि पवित्र बनो और भगवान से डायरेक्ट गीता सुनो। 7 रोज़ क्वारनटाइन में बिठाओ। दे दान तो छूटे ग्रहण। अभी सबको 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है इसलिए पतित बन गये हैं। रावणराज्य है ना। अब बाप कहते हैं बच्चे तुम मेरा बनो, दूसरा न कोई। श्री-श्री 108 की श्रीमत पर चलने से तुम 108 विजयी माला का दाना बन जायेंगे। मैं माला का दाना नहीं बनता हूँ। मैं तो न्यारा हूँ जिसकी निशानी फूल है। युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। प्रवृत्ति मार्ग है ना। निवृत्ति मार्ग वाले माला के दाने में आ नहीं सकते। हाँ, पवित्रता को धारण करते हैं तो फिर भी अच्छे हैं। परन्तु यह गुरू सद्गति दे न सकें। सद्गति दाता एक ही सतगुरू है। सतगुरू अकाल कहते हैं, सद्गुरू तो एक परमात्मा को कहा जाता है। साकार गुरू लोग अकालमूर्त थोड़ेही बन सकते हैं। लौकिक बाप, टीचर, गुरू को तो काल खा जाता है। मुझको तो काल खा न सके। बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो इतनी सहज बातें नहीं समझ सकते तो बाबा उनको कहते अच्छा बाप को याद करो। चक्र को भी याद करना पड़े। बाप के साथ वर्से को भी याद करना पड़े। बाप को याद करो तो विकर्म भस्म हो। बाप तो सम्मुख आया हुआ है। बाप को अशरीरी कहा जाता है। ब्रह्मा विष्णु शंकर सबको अपना-अपना शरीर है। मुझे तो अपना शरीर है नहीं। तुम्हारे तो मामे, काके सब हैं। मेरा मामा, चाचा तो कोई है नहीं। आता भी हूँ। परन्तु तुम कैसे आते हो, मैं कैसे आता हूँ। बुलाते हैं गॉड फादर। परन्तु कहाँ से आता हूँ? परमधाम से। जहाँ से तुम आते हो, जिसको ब्रह्माण्ड कहा जाता है। इस समय तुम ब्रह्मा मुख वंशावली रूद्र यज्ञ के रक्षक हो। राजयोग की शिक्षा देने वाले, राजयोग सिखलाने वाले तुम टीचर हो गये ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) माला का दाना बनने के लिए यह धारणा पक्की करनी है कि मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। स्मृतिर्लब्धा बनना है।
2) श्री श्री 108 शिवबाबा की श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है। मेरा-मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होना है।
वरदान: सर्व शक्तियों रूपी बर्थ राइट को हर समय कार्य में लगाने वाले मा.सर्वशक्तिमान् भव!
सर्व शक्तियां बाप का खजाना हैं और उस खजाने पर बच्चों का अधिकार है। अधिकार वाले को जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। ऐसे ही सर्वशक्तियां जब अधिकार में होंगी तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। तो चेक करो कि हर शक्ति समय पर काम में आती है! हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति को यूज़ करो। बहुतकाल से शक्तियों रूपी रचना को कार्य में लगाने का अभ्यास हो तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्।
स्लोगन: उमंग और उत्साह के बिना कोई भी महान कार्य नहीं हो सकता है।
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Mithe bacche - Sada isi nashe me raho ki hum Shiv banshi Brahma mukh bansabali Brahman hai, humara Ishwariya kul sabse ooncha hai.
Q- Upar ghar jaane ki lift kab milti hai? Us lift me kaun baith sakte hain?
A- Abhi Sangamyug par he ghar jaane ki lift milti hai. Jab tak koi Baap ka na bane, Brahman na bane tab tak lift me baith nahi sakte. Lift me baithne ke liye pavitra bano, dusra swadarshan chakra ghumao - yahi jaise pankh hai, inhi pankho ke aadhar se ghar ja sakte ho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Mala ka dana banne ke liye yah dharana pakki karni hai ki mera to ek Shiv Baba, dusra na koi. Smrutilabdha banna hai.
2) Sri Sri 108 Shiv Baba ki shrimat par poora-poora chalna hai. Mera-mera chhod grahan se mukt hona hai.
Vardaan:-- Sarv shaktiyon roopi birth right ko har samay karya me lagane wale Master Sarv Shaktimaan bhava.
Slogan:-- Umang aur utsah ke bina koi bhi mahan karya nahi ho sakta hai.
Hindi Version in Details – 11/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सदा इसी नशे में रहो कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा ईश्वरीय कुल सबसे ऊंचा है”
प्रश्न:
ऊपर घर में जाने की लिफ्ट कब मिलती है? उस लिफ्ट में कौन बैठ सकते हैं?
उत्तर:
अभी संगमयुग पर ही घर जाने की लिफ्ट मिलती है। जब तक कोई बाप का न बने, ब्राह्मण न बने तब तक लिफ्ट में बैठ नहीं सकते। लिफ्ट में बैठने के लिए पवित्र बनो, दूसरा स्वदर्शन चक्र घुमाओ - यही जैसे पंख हैं, इन्हीं पंखों के आधार से घर जा सकते हो।
गीत:- धीरज धर मनुआ.... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे संगमयुगी ब्राह्मण जिनको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है वह अभी गुप्त वेष में पढ़ रहे हैं। तुमको कोई समझ न सके कि यह संगमयुगी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तुम बच्चे जानते हो हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तो कुल का भी नशा चढ़ता है क्योंकि तुम ही ईश्वरीय कुल के हो। ईश्वर ने ही बैठ तुमको अपना बनाया है, अपने साथ ले जाने के लिए। बच्चे जानते हैं तो बाप भी जानते हैं कि आत्मा पतित बन गई है, अब पावन बनना है। अब बच्चों को निश्चय हो गया है कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुखवंशावली हैं। तुम्हारा नाम भी है ब्रह्माकुमार कुमारी। सारी दुनिया शिव वंशी है। ब्राह्मण कुल भूषण भी बनें तब जब पहले शिवबाबा को पहचानें। इस समय तुम साकार में बाबा के बने हो। यूं तो जब निराकारी दुनिया में हो तो सर्वोत्तम शिव वंशी हो। परन्तु जब बाबा साकार में आते हैं तो तुम ब्रह्मा मुख वंशावली बनते हो। एक सेकेण्ड में बाबा क्या से क्या बनाते हैं। बाबा कहा और बच्चे बन गये। जैसे आत्मा मुख से बोलती है परन्तु देखने में नहीं आती। वैसे मैं भी इस समय साकार में आया हूँ, बोल रहा हूँ। जैसे तुमको जब तक शरीर न मिले तब तक पार्ट कैसे बजा सको। तुम तो बाल, युवा और वृद्ध अवस्था में आते हो। मैं इन अवस्थाओं में नहीं आता हूँ, तब तो कहा जाता है मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है। तुम तो गर्भ में प्रवेश करते हो। मैं खुद कहता हूँ कि मैं ब्रह्मा तन में, इनके बहुत जन्मों के अन्त के समय वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ और तुमको बैठ पढ़ाता हूँ। तुमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते क्योंकि किसी भी मनुष्य में ज्ञान नहीं है। कहते हैं पतित-पावन आओ तो पतित-पावन कौन? कृष्ण तो सतयुग का पहला प्रिन्स है। वह पतित-पावन हो न सके। जब मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं राम-राम कहो, जब किसको फांसी पर चढ़ाते हैं तो भी पादरी लोग कहते हैं गॉड फादर को याद करो क्योंकि गॉड फादर ही सुखदाता है। बाप ही सब राज़ आकर समझाते हैं कि अब संगमयुग है और हमारे सुख के दिन आ रहे हैं। 84 जन्म पूरे हुए। अभी संगम का सुहावना समय है। यही एक युग है ऊपर चढ़ने का। जैसेकि ऊपर जाने की लिफ्ट मिलती है। परन्तु जब तक पवित्र न बनें, स्वदर्शन चक्रधारी न बनें तब तक लिफ्ट पर बैठ न सकें। इस समय जैसे पंख मिल रहे हैं क्योंकि माया ने पंख काट दिये हैं। जब बाबा के बनते हैं, ब्राह्मण बनते हैं तब ही पंख मिलते हैं। अब संगम पर ब्राह्मण हैं फिर देवता बनते हैं। तो तुम अभी संगमयुगी हो और सतयुगी राजधानी में जाने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाकी सुख के दिन सबके लिए आ रहे हैं। तुमको धीरज मिल रहा है। बाकी दुनिया तो घोर अन्धियारे में है।
तुमको बाप कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषण। यह कोई नया सुने तो कहे यह कैसे स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हैं? स्वदर्शन चक्रधारी तो विष्णु है तो कितना फ़र्क हो गया। तुम्हारी बुद्धि में तो सारा चक्र है। इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान फिर बनते हो दैवी सन्तान फिर वैश्य, शूद्र सन्तान बनते हो। इस समय सबसे ऊंचा है ईश्वरीय कुल। वास्तव में महिमा सारी शिव की है। फिर शिव शक्तियों की फिर देवताओं की क्योंकि तुम इस समय सेवा करते हो। जो सेवा करते हैं उनको ही पद मिलता है। तुम हो रूहानी सोशल वर्कर, जिस्मानी सोशल वर्कर बहुत हैं। तुमको अब रूहानी नशा है कि हम अशरीरी आये थे, आकर अपना स्वराज्य लिया था। तुमको अब बाप द्वारा नॉलेज मिली है। स्मृति आई है - इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा। अब बाप ही आकर स्मृति दिलाते हैं कि तुम ही देवता, क्षत्रिय बने हो। अब 84 जन्मों के बाद आकर मिले हो। यह है संगमयुगी कुम्भ मेला, आत्मा और परमात्मा का। परमात्मा आकर पढ़ा रहे हैं अर्थात् सर्व शास्त्र मई शिरोमणी गीता ज्ञान दे रहे हैं। उन्होंने गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। अगर कृष्ण हो तो सब उनको चटक जायें क्योंकि उनमें बहुत कशिश है। सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है। कृष्ण की आत्मा अब सुन रही है और जो भी कृष्णपुरी की आत्मायें हैं वह भी सुन रही हैं। अब तुमको स्मृति आई है कि हम ही कृष्णपुरी अथवा लक्ष्मी-नारायणपुरी के हैं। बाप नॉलेजफुल है, बाप में जो नॉलेज है वह हमको दे रहे हैं। कौन सी नॉलेज? परमात्मा को बीजरूप कहा जाता है, तो सारे झाड़ की नॉलेज दे देते हैं। ज्ञान सागर है तब ही पतित-पावन है। जब लिखते हो तो समझ से लिखो। पहले पतित-पावन कहें या ज्ञान सागर कहें? जरूर ज्ञान है तब तो पतितों को पावन बनायेंगे। तो पहले ज्ञान सागर फिर पतित-पावन लिखना चाहिए। यह ज्ञान सागर बाप ही सुनाते हैं तो मनुष्य 84 जन्म कैसे लेते हैं। एक का थोड़ेही बतायेंगे। यह राजयोग की पाठशाला है। पाठशाला में तो बहुत होंगे। एक को थोड़ेही पढ़ायेंगे। हम कहते हैं बाप है, टीचर है तो बहुतों को पढ़ाते हैं। देखते हो बेहद के बच्चों को पढ़ाते हैं और वृद्धि होती जाती है। झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। जब थोड़ा निकलता है तो चिड़ियायें खा जाती हैं। तुम देखते हो इस झाड को माया का तूफान ऐसा आता है जो अच्छे-अच्छे बिखर जाते हैं। बाबा शुरू में बच्चों की ऐसी चलन देखते थे तो कहते थे तुम्हारी चलन ऐसी है जो तुम ठहर नहीं सकेंगे, इसलिए श्रीमत पर चलो। वह कहते थे कुछ भी हो जाये हम भाग नहीं सकते। फिर भी वह भाग गये। तब गाया हुआ है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती। तो तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो। ऐसे होता जा रहा है क्योंकि माया सामने खड़ी है, मल्लयुद्ध होती है। दोनों तरफ से पहलवान होते हैं। फिर कभी किसी की हार, कभी किसी की जीत। तुम्हारी अब माया से युद्ध है। माया से जीत पहन तुम राजाई स्थापन कर रहे हो।
बाप कहते हैं यह विनाश की निशानी है - बाम्ब्स। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पेट से मूसल निकाल अपने कुल का विनाश किया। तुम जानते हो कि बाबा आया है पावन दुनिया बनाने। तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर चाहिए। नहीं तो हम राजाई कहाँ करेंगे। इस पढ़ाई की प्रालब्ध है भविष्य नई दुनिया के लिए। और जो भी पुरुषार्थ करते हैं वह इस दुनिया के लिए है। सन्यासी जो पुरुषार्थ करते हंक वह भी इस दुनिया के लिए है। तुम कहते हो हम यहाँ आकर राजाई करेंगे। परन्तु गुप्त रूप होने के कारण घड़ी-घड़ी बच्चे भूल जाते हैं। नहीं तो बड़े आदमी कहाँ जाते हैं तो कितनी स्वागत करते हैं। लण्डन से रानी आई तो कितने धूमधाम से स्वागत की। परन्तु बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है, लेकिन बच्चों बिगर कोई जानते नहीं। हम शो भी नहीं कर सकते क्योंकि नई बात है। मनुष्य मूँझते भी हैं कि यहाँ ब्रह्मा कहाँ से आया? क्योंकि आजकल तो टाइटिल बहुत रख देते हैं। बाबा कहते अन्धेर नगरी है... कुछ भी नहीं जानते हैं। अगर समझो साधू सन्त, गुरूओं को मालूम पड़ जाए कि बाप आया है, जिसको हम सर्वव्यापी कहते थे, वह अब मुक्ति-जीवनमुक्ति आकर दे रहे हैं। अच्छा जान जायें तो आकर लेने लग जायें, ऐसा पांव पकड़ लें, जो मैं छुड़ा भी न सकूं। ऐसा हो तो सब कहें कि इनके पास जादू है और गुरू का माथा खराब हो गया है। परन्तु अभी ऐसा होना नहीं है, यह पिछाड़ी में होना है। कहते हैं ना कन्याओं ने भीष्मपितामह को बाण मारे। यह भी दिखाते हैं - बाण मारने से गंगा निकल आई। तो सिद्ध है पिछाड़ी में ज्ञान अमृत सबको पिलाया है। मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं। कह देते हैं परमात्मा तो सर्वव्यापी है। बुद्ध को भी सर्वव्यापी कह देते हैं। इसको कहा जाता है पत्थर बुद्धि। हम भी पहले पत्थर बुद्धि थे। तो बाप आकर समझाते हैं कि गॉड फादर को कभी भी साकारी वा आकारी नहीं कहेंगे, वह तो निराकार है। उन्हें सुप्रीम सोल कहा जाता है। आधाकल्प तुमने भक्ति की। कहते हैं ना - भक्ति करते-करते भगवान मिलेगा तो जरूर है कि भक्ति करते-करते दुर्गति को पाया है फिर बाप आता है सद्गति करने। कहते भी हैं ना - सर्व का सद्गति दाता। तो मनुष्य थोड़ेही समझते हैं कि परमात्मा कब और किस रूप में आया, कह देते हैं द्वापर युग में कृष्ण रूप में आयेगा, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा। कहते हैं ना - कुम्भकरण को नींद से जगाया तो जागे नहीं। तो बाप ने अब डायरेक्शन निकाला है कि पवित्र बनो और भगवान से डायरेक्ट गीता सुनो। 7 रोज़ क्वारनटाइन में बिठाओ। दे दान तो छूटे ग्रहण। अभी सबको 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है इसलिए पतित बन गये हैं। रावणराज्य है ना। अब बाप कहते हैं बच्चे तुम मेरा बनो, दूसरा न कोई। श्री-श्री 108 की श्रीमत पर चलने से तुम 108 विजयी माला का दाना बन जायेंगे। मैं माला का दाना नहीं बनता हूँ। मैं तो न्यारा हूँ जिसकी निशानी फूल है। युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। प्रवृत्ति मार्ग है ना। निवृत्ति मार्ग वाले माला के दाने में आ नहीं सकते। हाँ, पवित्रता को धारण करते हैं तो फिर भी अच्छे हैं। परन्तु यह गुरू सद्गति दे न सकें। सद्गति दाता एक ही सतगुरू है। सतगुरू अकाल कहते हैं, सद्गुरू तो एक परमात्मा को कहा जाता है। साकार गुरू लोग अकालमूर्त थोड़ेही बन सकते हैं। लौकिक बाप, टीचर, गुरू को तो काल खा जाता है। मुझको तो काल खा न सके। बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो इतनी सहज बातें नहीं समझ सकते तो बाबा उनको कहते अच्छा बाप को याद करो। चक्र को भी याद करना पड़े। बाप के साथ वर्से को भी याद करना पड़े। बाप को याद करो तो विकर्म भस्म हो। बाप तो सम्मुख आया हुआ है। बाप को अशरीरी कहा जाता है। ब्रह्मा विष्णु शंकर सबको अपना-अपना शरीर है। मुझे तो अपना शरीर है नहीं। तुम्हारे तो मामे, काके सब हैं। मेरा मामा, चाचा तो कोई है नहीं। आता भी हूँ। परन्तु तुम कैसे आते हो, मैं कैसे आता हूँ। बुलाते हैं गॉड फादर। परन्तु कहाँ से आता हूँ? परमधाम से। जहाँ से तुम आते हो, जिसको ब्रह्माण्ड कहा जाता है। इस समय तुम ब्रह्मा मुख वंशावली रूद्र यज्ञ के रक्षक हो। राजयोग की शिक्षा देने वाले, राजयोग सिखलाने वाले तुम टीचर हो गये ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) माला का दाना बनने के लिए यह धारणा पक्की करनी है कि मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। स्मृतिर्लब्धा बनना है।
2) श्री श्री 108 शिवबाबा की श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है। मेरा-मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होना है।
वरदान: सर्व शक्तियों रूपी बर्थ राइट को हर समय कार्य में लगाने वाले मा.सर्वशक्तिमान् भव!
सर्व शक्तियां बाप का खजाना हैं और उस खजाने पर बच्चों का अधिकार है। अधिकार वाले को जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। ऐसे ही सर्वशक्तियां जब अधिकार में होंगी तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। तो चेक करो कि हर शक्ति समय पर काम में आती है! हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति को यूज़ करो। बहुतकाल से शक्तियों रूपी रचना को कार्य में लगाने का अभ्यास हो तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्।
स्लोगन: उमंग और उत्साह के बिना कोई भी महान कार्य नहीं हो सकता है।
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Details ( Page:- Murali 12-Oct 2017 )
Hinglish Summary –12/10/17 Pratah Murali OMSHANTI Bapdada Madhuban
Mithe bache tumhe iss patit duniya se apna budhiyog nikal behad ka sanyasi banna hai, sanyasi mana poore pavitra aur pakke yogi.
Q- Kaunsi Abastha ate hi maya ke toofan samapt ho jate hai.
Ans – Jab mera pati , mera bacha …. Iss mere mere se budhhi yog tut jayega. Mera toh ek shivbaba dusra n koi. Yah buddhi mei pakka hoga. Ek baap se hi poora buddhiyog laga hoga tab maya k toofan samapt hojayegi.
Dharna k lie mukhya sar:-
1- Iss poorani duniya ka complete sanyash karna hai. Pavitrata aur yog ki subject mei first number lena hai.
2- Gyan ganga ban patiton ko pavan banana ki sewa karni hai. Mamma baba ko follow kar badi nadi bano.
Vardan – samay ke gyan ko smruti mei rakh sab prashno ko samapt karnewale swadarshan chakradhari bhav.
Slogan – Anek atmao ko sachhi sewa karni hai toh subhchintak bano.
“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पतित दुनिया से अपना बुद्धियोग निकाल बेहद का सन्यासी बनना है, सन्यासी माना पूरे पवित्र और पक्के योगी”
प्रश्न:
कौन सी अवस्था आते ही माया के तूफान समाप्त हो जाते हैं?
उत्तर:
जब मेरा पति, मेरा बच्चा.... इस मेरे-मेरे से बुद्धियोग टूट जायेगा। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई - यह बुद्धि में पक्का होगा। एक बाप से ही पूरा बुद्धियोग लगा होगा तब माया के तूफान समाप्त हो जायेंगे।
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे.... ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - यह तो बच्चे समझ गये हैं कि आत्माओं का बाप, उसे कहा जाता है परमपिता परम आत्मा। बाप खुद समझाते हैं - मेरा कोई आकार में बड़ा रूप नहीं है। जैसे आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है, भ्रकुटी के बीच में रहती है। वैसे मैं भी परम आत्मा हूँ, उसकी महिमा बड़ी है। ज्ञान सागर है। बाकी इतना बड़ा चित्र जैसे नहीं है। इतना बड़ा होता तो इस शरीर में घुस नहीं सकता। यह तो शिवलिंग की पूजा करते हैं तो बड़ा बनाते हैं। अंगूठे सदृश्य कहते हैं। आत्मा माना आत्मा सिर्फ उनको परम कहते हैं, जो परमधाम में रहते हैं। तुम जानते हो इस समय है डेविल वर्ल्ड, आसुरी सम्प्रदाय। सतयुग में इस भारत पर देवताओं का राज्य था, अब तो आसुरी राज्य है। देखो, क्या-क्या खा जाते हैं! मास मदिरा यह राक्षसी आहार है, इस बात को भी नहीं समझते हैं। स्कूल में भी कोई के अच्छे ख्यालात, कोई के रजोगुणी, कोई के तमोगुणी होते हैं। जो दूसरों को समझा नहीं सकते उनको बुद्धू कहेंगे। ब्रह्माकुमार कुमारियों में भी नम्बरवार महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे बहुत हैं जो अच्छी रीति समझा नहीं सकते हैं। ज्ञान पूरा न होने कारण डिससर्विस करते हैं। जितना जिसमें ज्ञान है, उतना समझायेंगे। नम्बरवार तो हैं। कहाँ भूलें भी करते हैं। बच्चों को नशा होना चाहिए कि हम तो देवता बन रहे हैं। बाप खुद कहते हैं मैं पतितों की दुनिया में आता हूँ। सतयुग में यही नारायण था - अब फिर इनके तन में आया हूँ, इनको ही नर से नारायण बनाता हूँ। नम्बरवन पूज्य भी यह था, अब नम्बरवन पुजारी भी यह बना है। फिर इनका ही आलराउन्ड पार्ट है। यह मेरा मुकरर तन है। यह चेन्ज नहीं हो सकता। ऐसे नहीं कब दूसरे को चांस दूँ। यह ड्रामा बना बनाया है। इसमें चेन्ज नहीं हो सकती। बाबा कहते हैं मैं आता हूँ पतितों की दुनिया में, परन्तु कोई को पतित कहो तो बिगड़ पड़ेंगे। परन्तु जब भगवानुवाच है कि सब आसुरी सम्प्रदाय हैं तो मानना पड़ेगा। भगवान माना भगवान निराकार, न ब्रह्मा, न विष्णु, न शंकर, न कृष्ण... कहते हैं मैं परमात्मा भी तुम्हारे जैसा हूँ। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाने आया हूँ। योग की कितनी महिमा है। बहुत योग आश्रम खुले हैं। उसमें हठयोग आदि सिखलाते हैं। परन्तु तुम योगबल से सारे विश्व को स्वर्ग बनाते हो। विश्व को परिवर्तन करते हो। सारी दुनिया तो योग में नहीं रहती, योग की कितनी महिमा है, जिससे खास भारत स्वर्ग बनता है। परन्तु कोई को पता नहीं तो इसको स्वर्ग किसने बनाया है? जरूर ऐसा कोई स्वर्ग बनाने वाला होगा। बाप कहते हैं मैं ही आकर देवता बनने का कर्म सिखलाता हूँ। यह तो बड़ा सहज है। वह बहुत यज्ञ करते हैं। यहाँ तुम कोई यज्ञ हवन करते हो क्या? धूप भी खुशबू के लिए जलाते। बाकी यहाँ कर्मकाण्ड की कोई बात नहीं। तो बाप अपना परिचय देते हैं कि मैं आत्मा हूँ जैसे तुम हो। परन्तु मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ, जन्म लेता हूँ परन्तु मरण में नहीं आता, मेरी जयन्ती मनाते हैं। मैं इस तन में पढ़ाने के लिए आता जाता रहता हूँ तो इसको मृत्यु नहीं कहेंगे। मैं आता हूँ देवता बनाने। अब जो आकर पढ़ेंगे..., पढ़ेंगे भी वही जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा होगा। बहुतकाल से बिछुड़े हुए वही सिकीलधे बच्चे हैं, दूसरे थोड़ेही 84 जन्मों में आते हैं, हम ही सारा 84 का चक्र लगाते हैं। मनुष्य तो बहुत जन्म लेने से तंग होते हैं, तुमको कहेंगे हम 84 के चक्र में नहीं आने चाहते हैं। परन्तु हम कितने पहलवान हैं जो और ही खुश होते हैं। हम इस 84 के चक्र को याद करते-करते चक्रवर्ती राजा बन जाते हैं। उन्हों के झण्डे में भी चक्र है, फिर उन्होंने चर्खा बना दिया है। उनके सामने तुम्हारा कोट आफ आर्मस ठीक है। ऊपर में शिवबाबा, नीचे त्रिमूर्ति और चक्र बिल्कुल ठीक लगा है। यह तुम्हारा शिव का झण्डा बिल्कुल ठीक है।
तुमको समझाया है सन्यास दो प्रकार का है। एक है निवृत्ति मार्ग का सन्यास जो जंगल में जाते हैं, वह है हाफ सन्यास। तुम्हारा है फुल सन्यास। किसका? सारी आसुरी दुनिया का सन्यास करते हो मेरा पति, मेरा बच्चा, मेरा गुरू... उन सब मेरे-मेरे से बुद्धियोग तोड़ते हो। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। जब तक यह अवस्था नहीं आयेगी तब तक तूफान आते रहेंगे। झोके खाते रहेंगे। बाप सारी आसुरी दुनिया का सन्यास कराते हैं क्योंकि यह सब भस्म होना है। वह ऐसे नहीं कहते सब भस्म होना है। तुम रहते सम्बन्धियों के बीच में हो परन्तु उनको देखते बुद्धि वहाँ लगी हुई है। मेरा कुछ है नहीं। तो काम क्रोध किससे होगा! यह युक्ति बहुत अच्छी है, परन्तु जब बुद्धि में बैठे। इसको राजयोग कहा जाता है। तुम योग लगाते हो, राजाई लेते हो। वह है हठयोग। यह गुह्य प्वाइंट्स हैं। योगी तो दुनिया में बहुत हैं। परन्तु बाबा कहते हैं एक का भी मेरे से योग नहीं है। मेरे बदले मेरे निवास स्थान ब्रह्म तत्व से योग है। जैसे भारतवासी अपने निवास स्थान, हिन्दुस्तान को अपना धर्म समझ बैठे हैं। वैसे वह भी अपने को ब्रह्म का बच्चा समझते हैं। बच्चे भी नहीं कहते। बच्चा कहें तो फिर वर्सा चाहिए। वह तो कहते कि तत्व में लीन होंगे। बाबा को तो अनुभव है। बहुत सन्यासियों, गुरूओं से अनुभव किया। अर्जुन को भी दिखाते हैं बहुत गुरू थे। तुम सब अर्जुन हो। इस समय सारी दुनिया पर रावण का राज्य है, सारी दुनिया लंका है। एक सीलान का बेट (द्विप) लंका नहीं। वह हद की लंका है। परन्तु बेहद की लंका तो सारी दुनिया है। अब सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। राम के राज्य में इतने मनुष्य नहीं थे। जब रामराज्य है तो रावणराज्य नहीं। कहाँ चला जाता है? नीचे पाताल में चला जाता है। फिर रावण राज्य आता है तो रामराज्य नीचे चला जाता है। यह ड्रामा है ना। जब चक्र फिरता है तब सतयुग ऊपर आ जाता है। द्वापर, कलियुग नीचे चला जायेगा तो सतयुग त्रेता नीचे से ऊपर आ जायेगा। है चक्र की बात, उन्होंने ऐसे लिख दिया है। बाकी कोई सागर में नहीं चला जाता है वा सागर से निकल नहीं आता है।
बाप समझाते हैं यह बड़ी गुह्य समझने की बातें हैं। इसमें पवित्रता है फर्स्ट और योग पक्का चाहिए। इसको कहा जाता है कम्पलीट सन्यास। इस दुनिया से बुद्धियोग खलास। यह बातें तुम्हारे में भी कोई समझते होंगे। सब समझें तो ज्ञान गंगा बन जायें। छोटी नदी बनें, कैनाल्स बनें। अच्छा टुबका बन घर में सुनायें तो भी समझें कि कुछ समझा है। परन्तु घर में भी नहीं बता सकते। बाप कहते हैं कि कैसा भी गरीब हो परन्तु घर में गीता पाठशाला खोल सकते हैं। भल एक ही कमरा हो उसमें खाते पीते सोते हो। अच्छा काम उतार सफाई कर फिर यह क्लास लगाओ। तीन पैर पृथ्वी में इतनी बड़ी हॉस्पिटल खोल सकते हो। साहूकार की बातें छोड़ो। बाप तो गरीब निवाज़ है ना। साहूकार तो बोलते कि हमें तो यहाँ ही स्वर्ग है। तो बाबा कहते हैं अच्छा तुम अपने स्वर्ग में ही खुश रहो। मैं तुमको क्यों दूँ। दान भी गरीब को दिया जाता है। बड़ा आदमी तो यहाँ जमीन में बैठने से चमकेंगे। तो बाबा कहते हैं कि भल अपने महलों में रहो। मेरे पास तो गरीब आयें जो अच्छी तरह पढ़ें। अगर दूसरे को नहीं सुना सकते तो छोटा तालाब भी नहीं ठहरे। तुमको तो बड़ी नदी बनना है। मम्मा बाबा को फालो करना है। परन्तु घर में भी नहीं सुना सकते तो चुल्लू पानी (हथेली में पानी) की तरह भी नहीं ठहरे। बाबा को तो मजा आयेगा ज्ञान गंगाओं के सामने। कई बाबा के सम्मुख सुनते हैं तो खुश होते हैं। परन्तु यहाँ से उठे सीढ़ी नीचे उतरे तो नशा भी उतरता जाता है। फिर घर पहुँचे तो फिर वही झरमुई झगमुई (परचिंतन) चालू। बाबा तो चलन से समझ जाते हैं। आते हैं मिलने। कहते हैं मेरा पति, मेरा बच्चा है। अरे तुमको पति कहाँ से आया? आती हो स्वर्ग में चलने फिर भी मेरे-मेरे में फंसी हो। अच्छा इतना डोज़ काफी है। देना इतना चाहिए जितना हज़म कर सकें। बाबा ने नटशेल में बताया है। योग से तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो। बाकी बादशाही के लिए नॉलेज चाहिए। दो सब्जेक्ट हैं। बाबा भी योग में रहने का पुरुषार्थ करते हैं तब कहते ना - न बिसरो न याद रहो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चो को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1- इस पुरानी दुनिया का कम्पलीट सन्यास करना है। पवित्रता और योग की सब्जेक्ट में फर्स्ट नम्बर लेना है।
2- ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है। मम्मा बाबा को फालो कर बड़ी नदी बनो।
वरदान: समय के ज्ञान को स्मृति में रख सब प्रश्नों को समाप्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव!
जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे स्व का दर्शन कर लेते हैं उन्हें सृष्टि चक्र का दर्शन स्वत: हो जाता है। ड्रामा के राज़ को जानने वाले सदा खुशी में रहते हैं, कभी क्यों, क्या का प्रश्न नहीं उठ सकता क्योंकि ड्रामा में स्वयं भी कल्याणकारी हैं और समय भी कल्याणकारी है। जो स्व को देखते, स्वदर्शन चक्रधारी बनते वह सहज ही आगे बढ़ते रहते हैं।
स्लोगन: अनेक आत्माओं की सच्ची सेवा करनी है तो शुभचिंतक बनो।
1) 'ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है उनके लिये अनेक साबती (सबूत)'
अब यह जो शिरोमणी गीता में भगवानुवाच है बच्चे, जहाँ जीत है वहाँ मैं हूँ, यह भी परमात्मा के महावाक्य हैं। पहाड़ों में जो हिमालय पहाड़ है उसमें मैं हूँ और सांपों में काली नाग मैं हूँ इसलिए पर्वत में ऊंचा पर्वत कैलाश पर्वत दिखाते हैं और सांपों में काली नाग, तो इससे सिद्ध है कि परमात्मा अगर सर्व सांपों में केवल काले नाग में है, तो सर्व सांपों में उसका वास नहीं हुआ ना। अगर परमात्मा ऊंचे ते ऊंचे पहाड़ में है गोया नीचे पहाड़ों में नहीं है और फिर कहते हैं जहाँ जीत वहाँ मेरा जन्म, गोया हार में नहीं हूँ। अब यह बातें सिद्ध करती हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। एक तरफ ऐसे भी कहते हैं और दूसरे तरफ ऐसे भी कहते हैं कि परमात्मा अनेक रूप में आते हैं, जैसे परमात्मा को 24 अवतारों में दिखाया है, कहते हैं कच्छ मच्छ आदि सब रूप परमात्मा के हैं। अब यह है उन्हों का मिथ्या ज्ञान, ऐसे ही परमात्मा को सर्वत्र समझ बैठे हैं जबकि इस समय कलियुग में सर्वत्र माया ही व्यापक है तो फिर परमात्मा व्यापक कैसे ठहरा? गीता में भी कहते हैं कि मैं फिर माया में व्यापक नहीं हूँ, इससे सिद्ध है कि परमात्मा सर्वत्र नहीं है।
2) 'निराकारी दुनिया अर्थात् आत्माओं के रहने का स्थान'
अब यह तो हम जानते हैं कि जब हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो निराकार का अर्थ यह नहीं कि उनका कोई आकार नहीं है, जैसे हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो इसका मतलब है जरूर कोई दुनिया है, परन्तु उसका स्थूल सृष्टि मुआफिक आकार नहीं है, ऐसे परमात्मा निराकार है लेकिन उनका अपना सूक्ष्म रूप अवश्य है। तो हम आत्मा और परमात्मा का धाम निराकारी दुनिया है। जब हम दुनिया अक्षर कहते हैं, तो इससे सिद्ध है वो दुनिया है और वहाँ रहते हैं तभी तो दुनिया नाम पड़ा, अब दुनियावी लोग तो समझते हैं परमात्मा का रूप भी अखण्ड ज्योति तत्व है, वो हुआ परमात्मा के रहने का ठिकाना, जिसको रिटायर्ड होम कहते हैं। तो हम परमात्मा के घर को परमात्मा नहीं कह सकते हैं। अब दूसरी है आकारी दुनिया, जहाँ ब्रह्मा विष्णु शंकर देवतायें आकारी रूप में रहते हैं और यह है साकारी दुनिया, जिनके दो भाग है - एक है निर्विकारी स्वर्ग की दुनिया जहाँ आधाकल्प सर्वदा सुख है, पवित्रता और शान्ति है। दूसरी है विकारी कलियुगी दु:ख और अशान्ति की दुनिया। अब वो दो दुनियायें क्यों कहते हैं? क्योंकि यह जो मनुष्य कहते हैं स्वर्ग और नर्क दोनों परमात्मा की रची हुई दुनिया है, इस पर परमात्मा के महावाक्य है बच्चे, मैंने कोई दु:ख की दुनिया नहीं रची जो मैंने दुनिया रची है वो सुख की रची है। अब यह जो दु:ख और अशान्ति की दुनिया है वो मनुष्य आत्मायें अपने आपको और मुझ परमात्मा को भूलने के कारण यह हिसाब किताब भोग रहे हैं। बाकी ऐसे नहीं जिस समय सुख और पुण्य की दुनिया है वहाँ कोई सृष्टि नहीं चलती। हाँ, अवश्य जब हम कहते हैं कि वहाँ देवताओं का निवास स्थान था, तो वहाँ सब प्रवृत्ति चलती थी परन्तु इतना जरूर था वहाँ विकारी पैदाइस नहीं थी, जिस कारण इतना कर्मबन्धन नहीं था। उस दुनिया को कर्मबन्धन रहित स्वर्ग की दुनिया कहते हैं। तो एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है आकारी दुनिया, तीसरी है साकारी दुनिया। अच्छा - ओम् शान्ति।
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Mithe bache tumhe iss patit duniya se apna budhiyog nikal behad ka sanyasi banna hai, sanyasi mana poore pavitra aur pakke yogi.
Q- Kaunsi Abastha ate hi maya ke toofan samapt ho jate hai.
Ans – Jab mera pati , mera bacha …. Iss mere mere se budhhi yog tut jayega. Mera toh ek shivbaba dusra n koi. Yah buddhi mei pakka hoga. Ek baap se hi poora buddhiyog laga hoga tab maya k toofan samapt hojayegi.
Dharna k lie mukhya sar:-
1- Iss poorani duniya ka complete sanyash karna hai. Pavitrata aur yog ki subject mei first number lena hai.
2- Gyan ganga ban patiton ko pavan banana ki sewa karni hai. Mamma baba ko follow kar badi nadi bano.
Vardan – samay ke gyan ko smruti mei rakh sab prashno ko samapt karnewale swadarshan chakradhari bhav.
Slogan – Anek atmao ko sachhi sewa karni hai toh subhchintak bano.
Hindi Version in Details –12/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पतित दुनिया से अपना बुद्धियोग निकाल बेहद का सन्यासी बनना है, सन्यासी माना पूरे पवित्र और पक्के योगी”
प्रश्न:
कौन सी अवस्था आते ही माया के तूफान समाप्त हो जाते हैं?
उत्तर:
जब मेरा पति, मेरा बच्चा.... इस मेरे-मेरे से बुद्धियोग टूट जायेगा। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई - यह बुद्धि में पक्का होगा। एक बाप से ही पूरा बुद्धियोग लगा होगा तब माया के तूफान समाप्त हो जायेंगे।
गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे.... ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - यह तो बच्चे समझ गये हैं कि आत्माओं का बाप, उसे कहा जाता है परमपिता परम आत्मा। बाप खुद समझाते हैं - मेरा कोई आकार में बड़ा रूप नहीं है। जैसे आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है, भ्रकुटी के बीच में रहती है। वैसे मैं भी परम आत्मा हूँ, उसकी महिमा बड़ी है। ज्ञान सागर है। बाकी इतना बड़ा चित्र जैसे नहीं है। इतना बड़ा होता तो इस शरीर में घुस नहीं सकता। यह तो शिवलिंग की पूजा करते हैं तो बड़ा बनाते हैं। अंगूठे सदृश्य कहते हैं। आत्मा माना आत्मा सिर्फ उनको परम कहते हैं, जो परमधाम में रहते हैं। तुम जानते हो इस समय है डेविल वर्ल्ड, आसुरी सम्प्रदाय। सतयुग में इस भारत पर देवताओं का राज्य था, अब तो आसुरी राज्य है। देखो, क्या-क्या खा जाते हैं! मास मदिरा यह राक्षसी आहार है, इस बात को भी नहीं समझते हैं। स्कूल में भी कोई के अच्छे ख्यालात, कोई के रजोगुणी, कोई के तमोगुणी होते हैं। जो दूसरों को समझा नहीं सकते उनको बुद्धू कहेंगे। ब्रह्माकुमार कुमारियों में भी नम्बरवार महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे बहुत हैं जो अच्छी रीति समझा नहीं सकते हैं। ज्ञान पूरा न होने कारण डिससर्विस करते हैं। जितना जिसमें ज्ञान है, उतना समझायेंगे। नम्बरवार तो हैं। कहाँ भूलें भी करते हैं। बच्चों को नशा होना चाहिए कि हम तो देवता बन रहे हैं। बाप खुद कहते हैं मैं पतितों की दुनिया में आता हूँ। सतयुग में यही नारायण था - अब फिर इनके तन में आया हूँ, इनको ही नर से नारायण बनाता हूँ। नम्बरवन पूज्य भी यह था, अब नम्बरवन पुजारी भी यह बना है। फिर इनका ही आलराउन्ड पार्ट है। यह मेरा मुकरर तन है। यह चेन्ज नहीं हो सकता। ऐसे नहीं कब दूसरे को चांस दूँ। यह ड्रामा बना बनाया है। इसमें चेन्ज नहीं हो सकती। बाबा कहते हैं मैं आता हूँ पतितों की दुनिया में, परन्तु कोई को पतित कहो तो बिगड़ पड़ेंगे। परन्तु जब भगवानुवाच है कि सब आसुरी सम्प्रदाय हैं तो मानना पड़ेगा। भगवान माना भगवान निराकार, न ब्रह्मा, न विष्णु, न शंकर, न कृष्ण... कहते हैं मैं परमात्मा भी तुम्हारे जैसा हूँ। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाने आया हूँ। योग की कितनी महिमा है। बहुत योग आश्रम खुले हैं। उसमें हठयोग आदि सिखलाते हैं। परन्तु तुम योगबल से सारे विश्व को स्वर्ग बनाते हो। विश्व को परिवर्तन करते हो। सारी दुनिया तो योग में नहीं रहती, योग की कितनी महिमा है, जिससे खास भारत स्वर्ग बनता है। परन्तु कोई को पता नहीं तो इसको स्वर्ग किसने बनाया है? जरूर ऐसा कोई स्वर्ग बनाने वाला होगा। बाप कहते हैं मैं ही आकर देवता बनने का कर्म सिखलाता हूँ। यह तो बड़ा सहज है। वह बहुत यज्ञ करते हैं। यहाँ तुम कोई यज्ञ हवन करते हो क्या? धूप भी खुशबू के लिए जलाते। बाकी यहाँ कर्मकाण्ड की कोई बात नहीं। तो बाप अपना परिचय देते हैं कि मैं आत्मा हूँ जैसे तुम हो। परन्तु मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ, जन्म लेता हूँ परन्तु मरण में नहीं आता, मेरी जयन्ती मनाते हैं। मैं इस तन में पढ़ाने के लिए आता जाता रहता हूँ तो इसको मृत्यु नहीं कहेंगे। मैं आता हूँ देवता बनाने। अब जो आकर पढ़ेंगे..., पढ़ेंगे भी वही जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा होगा। बहुतकाल से बिछुड़े हुए वही सिकीलधे बच्चे हैं, दूसरे थोड़ेही 84 जन्मों में आते हैं, हम ही सारा 84 का चक्र लगाते हैं। मनुष्य तो बहुत जन्म लेने से तंग होते हैं, तुमको कहेंगे हम 84 के चक्र में नहीं आने चाहते हैं। परन्तु हम कितने पहलवान हैं जो और ही खुश होते हैं। हम इस 84 के चक्र को याद करते-करते चक्रवर्ती राजा बन जाते हैं। उन्हों के झण्डे में भी चक्र है, फिर उन्होंने चर्खा बना दिया है। उनके सामने तुम्हारा कोट आफ आर्मस ठीक है। ऊपर में शिवबाबा, नीचे त्रिमूर्ति और चक्र बिल्कुल ठीक लगा है। यह तुम्हारा शिव का झण्डा बिल्कुल ठीक है।
तुमको समझाया है सन्यास दो प्रकार का है। एक है निवृत्ति मार्ग का सन्यास जो जंगल में जाते हैं, वह है हाफ सन्यास। तुम्हारा है फुल सन्यास। किसका? सारी आसुरी दुनिया का सन्यास करते हो मेरा पति, मेरा बच्चा, मेरा गुरू... उन सब मेरे-मेरे से बुद्धियोग तोड़ते हो। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। जब तक यह अवस्था नहीं आयेगी तब तक तूफान आते रहेंगे। झोके खाते रहेंगे। बाप सारी आसुरी दुनिया का सन्यास कराते हैं क्योंकि यह सब भस्म होना है। वह ऐसे नहीं कहते सब भस्म होना है। तुम रहते सम्बन्धियों के बीच में हो परन्तु उनको देखते बुद्धि वहाँ लगी हुई है। मेरा कुछ है नहीं। तो काम क्रोध किससे होगा! यह युक्ति बहुत अच्छी है, परन्तु जब बुद्धि में बैठे। इसको राजयोग कहा जाता है। तुम योग लगाते हो, राजाई लेते हो। वह है हठयोग। यह गुह्य प्वाइंट्स हैं। योगी तो दुनिया में बहुत हैं। परन्तु बाबा कहते हैं एक का भी मेरे से योग नहीं है। मेरे बदले मेरे निवास स्थान ब्रह्म तत्व से योग है। जैसे भारतवासी अपने निवास स्थान, हिन्दुस्तान को अपना धर्म समझ बैठे हैं। वैसे वह भी अपने को ब्रह्म का बच्चा समझते हैं। बच्चे भी नहीं कहते। बच्चा कहें तो फिर वर्सा चाहिए। वह तो कहते कि तत्व में लीन होंगे। बाबा को तो अनुभव है। बहुत सन्यासियों, गुरूओं से अनुभव किया। अर्जुन को भी दिखाते हैं बहुत गुरू थे। तुम सब अर्जुन हो। इस समय सारी दुनिया पर रावण का राज्य है, सारी दुनिया लंका है। एक सीलान का बेट (द्विप) लंका नहीं। वह हद की लंका है। परन्तु बेहद की लंका तो सारी दुनिया है। अब सारी दुनिया पर रावण का राज्य है। राम के राज्य में इतने मनुष्य नहीं थे। जब रामराज्य है तो रावणराज्य नहीं। कहाँ चला जाता है? नीचे पाताल में चला जाता है। फिर रावण राज्य आता है तो रामराज्य नीचे चला जाता है। यह ड्रामा है ना। जब चक्र फिरता है तब सतयुग ऊपर आ जाता है। द्वापर, कलियुग नीचे चला जायेगा तो सतयुग त्रेता नीचे से ऊपर आ जायेगा। है चक्र की बात, उन्होंने ऐसे लिख दिया है। बाकी कोई सागर में नहीं चला जाता है वा सागर से निकल नहीं आता है।
बाप समझाते हैं यह बड़ी गुह्य समझने की बातें हैं। इसमें पवित्रता है फर्स्ट और योग पक्का चाहिए। इसको कहा जाता है कम्पलीट सन्यास। इस दुनिया से बुद्धियोग खलास। यह बातें तुम्हारे में भी कोई समझते होंगे। सब समझें तो ज्ञान गंगा बन जायें। छोटी नदी बनें, कैनाल्स बनें। अच्छा टुबका बन घर में सुनायें तो भी समझें कि कुछ समझा है। परन्तु घर में भी नहीं बता सकते। बाप कहते हैं कि कैसा भी गरीब हो परन्तु घर में गीता पाठशाला खोल सकते हैं। भल एक ही कमरा हो उसमें खाते पीते सोते हो। अच्छा काम उतार सफाई कर फिर यह क्लास लगाओ। तीन पैर पृथ्वी में इतनी बड़ी हॉस्पिटल खोल सकते हो। साहूकार की बातें छोड़ो। बाप तो गरीब निवाज़ है ना। साहूकार तो बोलते कि हमें तो यहाँ ही स्वर्ग है। तो बाबा कहते हैं अच्छा तुम अपने स्वर्ग में ही खुश रहो। मैं तुमको क्यों दूँ। दान भी गरीब को दिया जाता है। बड़ा आदमी तो यहाँ जमीन में बैठने से चमकेंगे। तो बाबा कहते हैं कि भल अपने महलों में रहो। मेरे पास तो गरीब आयें जो अच्छी तरह पढ़ें। अगर दूसरे को नहीं सुना सकते तो छोटा तालाब भी नहीं ठहरे। तुमको तो बड़ी नदी बनना है। मम्मा बाबा को फालो करना है। परन्तु घर में भी नहीं सुना सकते तो चुल्लू पानी (हथेली में पानी) की तरह भी नहीं ठहरे। बाबा को तो मजा आयेगा ज्ञान गंगाओं के सामने। कई बाबा के सम्मुख सुनते हैं तो खुश होते हैं। परन्तु यहाँ से उठे सीढ़ी नीचे उतरे तो नशा भी उतरता जाता है। फिर घर पहुँचे तो फिर वही झरमुई झगमुई (परचिंतन) चालू। बाबा तो चलन से समझ जाते हैं। आते हैं मिलने। कहते हैं मेरा पति, मेरा बच्चा है। अरे तुमको पति कहाँ से आया? आती हो स्वर्ग में चलने फिर भी मेरे-मेरे में फंसी हो। अच्छा इतना डोज़ काफी है। देना इतना चाहिए जितना हज़म कर सकें। बाबा ने नटशेल में बताया है। योग से तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो। बाकी बादशाही के लिए नॉलेज चाहिए। दो सब्जेक्ट हैं। बाबा भी योग में रहने का पुरुषार्थ करते हैं तब कहते ना - न बिसरो न याद रहो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चो को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1- इस पुरानी दुनिया का कम्पलीट सन्यास करना है। पवित्रता और योग की सब्जेक्ट में फर्स्ट नम्बर लेना है।
2- ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है। मम्मा बाबा को फालो कर बड़ी नदी बनो।
वरदान: समय के ज्ञान को स्मृति में रख सब प्रश्नों को समाप्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव!
जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे स्व का दर्शन कर लेते हैं उन्हें सृष्टि चक्र का दर्शन स्वत: हो जाता है। ड्रामा के राज़ को जानने वाले सदा खुशी में रहते हैं, कभी क्यों, क्या का प्रश्न नहीं उठ सकता क्योंकि ड्रामा में स्वयं भी कल्याणकारी हैं और समय भी कल्याणकारी है। जो स्व को देखते, स्वदर्शन चक्रधारी बनते वह सहज ही आगे बढ़ते रहते हैं।
स्लोगन: अनेक आत्माओं की सच्ची सेवा करनी है तो शुभचिंतक बनो।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्
1) 'ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है उनके लिये अनेक साबती (सबूत)'
अब यह जो शिरोमणी गीता में भगवानुवाच है बच्चे, जहाँ जीत है वहाँ मैं हूँ, यह भी परमात्मा के महावाक्य हैं। पहाड़ों में जो हिमालय पहाड़ है उसमें मैं हूँ और सांपों में काली नाग मैं हूँ इसलिए पर्वत में ऊंचा पर्वत कैलाश पर्वत दिखाते हैं और सांपों में काली नाग, तो इससे सिद्ध है कि परमात्मा अगर सर्व सांपों में केवल काले नाग में है, तो सर्व सांपों में उसका वास नहीं हुआ ना। अगर परमात्मा ऊंचे ते ऊंचे पहाड़ में है गोया नीचे पहाड़ों में नहीं है और फिर कहते हैं जहाँ जीत वहाँ मेरा जन्म, गोया हार में नहीं हूँ। अब यह बातें सिद्ध करती हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। एक तरफ ऐसे भी कहते हैं और दूसरे तरफ ऐसे भी कहते हैं कि परमात्मा अनेक रूप में आते हैं, जैसे परमात्मा को 24 अवतारों में दिखाया है, कहते हैं कच्छ मच्छ आदि सब रूप परमात्मा के हैं। अब यह है उन्हों का मिथ्या ज्ञान, ऐसे ही परमात्मा को सर्वत्र समझ बैठे हैं जबकि इस समय कलियुग में सर्वत्र माया ही व्यापक है तो फिर परमात्मा व्यापक कैसे ठहरा? गीता में भी कहते हैं कि मैं फिर माया में व्यापक नहीं हूँ, इससे सिद्ध है कि परमात्मा सर्वत्र नहीं है।
2) 'निराकारी दुनिया अर्थात् आत्माओं के रहने का स्थान'
अब यह तो हम जानते हैं कि जब हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो निराकार का अर्थ यह नहीं कि उनका कोई आकार नहीं है, जैसे हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो इसका मतलब है जरूर कोई दुनिया है, परन्तु उसका स्थूल सृष्टि मुआफिक आकार नहीं है, ऐसे परमात्मा निराकार है लेकिन उनका अपना सूक्ष्म रूप अवश्य है। तो हम आत्मा और परमात्मा का धाम निराकारी दुनिया है। जब हम दुनिया अक्षर कहते हैं, तो इससे सिद्ध है वो दुनिया है और वहाँ रहते हैं तभी तो दुनिया नाम पड़ा, अब दुनियावी लोग तो समझते हैं परमात्मा का रूप भी अखण्ड ज्योति तत्व है, वो हुआ परमात्मा के रहने का ठिकाना, जिसको रिटायर्ड होम कहते हैं। तो हम परमात्मा के घर को परमात्मा नहीं कह सकते हैं। अब दूसरी है आकारी दुनिया, जहाँ ब्रह्मा विष्णु शंकर देवतायें आकारी रूप में रहते हैं और यह है साकारी दुनिया, जिनके दो भाग है - एक है निर्विकारी स्वर्ग की दुनिया जहाँ आधाकल्प सर्वदा सुख है, पवित्रता और शान्ति है। दूसरी है विकारी कलियुगी दु:ख और अशान्ति की दुनिया। अब वो दो दुनियायें क्यों कहते हैं? क्योंकि यह जो मनुष्य कहते हैं स्वर्ग और नर्क दोनों परमात्मा की रची हुई दुनिया है, इस पर परमात्मा के महावाक्य है बच्चे, मैंने कोई दु:ख की दुनिया नहीं रची जो मैंने दुनिया रची है वो सुख की रची है। अब यह जो दु:ख और अशान्ति की दुनिया है वो मनुष्य आत्मायें अपने आपको और मुझ परमात्मा को भूलने के कारण यह हिसाब किताब भोग रहे हैं। बाकी ऐसे नहीं जिस समय सुख और पुण्य की दुनिया है वहाँ कोई सृष्टि नहीं चलती। हाँ, अवश्य जब हम कहते हैं कि वहाँ देवताओं का निवास स्थान था, तो वहाँ सब प्रवृत्ति चलती थी परन्तु इतना जरूर था वहाँ विकारी पैदाइस नहीं थी, जिस कारण इतना कर्मबन्धन नहीं था। उस दुनिया को कर्मबन्धन रहित स्वर्ग की दुनिया कहते हैं। तो एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है आकारी दुनिया, तीसरी है साकारी दुनिया। अच्छा - ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 13-Oct 2017 )
Hinglish Summary –13.10.17 Pratah Murali OMSHANTI Bapdada Madhuban
Mithe bacche - Bholanath Baap ek hai jo tumhari jholi gyan ratno se bharte hain, wohi kalp vriksh ka beej roop hai, unki bhent aur kisse kar nahi sakte.
Q- Bahut bacche Baap ko bhi thaghne ki koshis karte hain, kaise aur kyun?
A- Baap ko yathart na pehechanne ke kaaran bhool karke bhi chhipate hain, sach nahi batate hain, sabha me chhipkar baith jate hain. Unhe pata he nahi ki dharmraj Baba sab kuch jaanta hai. Yah bhi sazaon ko kam karne ki yukti hai ki sachche Baba ko sach sunao.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Apna sab kuch Baap hawale kar poora shrimat par chalna hai. Koi bhi bura kaam karke chhipana nahi hai, judge ko sach batane se saza kam ho jayegi.
2) Baap se kabhi roothna nahi hai, serviceable banna hai. Apne karmbandhan swayang kaatne hain.
Vardaan:-- Shaktishali yaad dwara parivartan, khushi aur halkepan ki anubhooti karne wale Smruti so Samarth Swaroop bhava
Slogan:-- Anubhavi wo hai jiski dil mazboot aur bujurg hai.
“
“मीठे बच्चे - भोलानाथ बाप एक है जो तुम्हारी झोली ज्ञान रत्नों से भरते हैं, वही कल्प वृक्ष का बीजरूप है, उनकी भेंट और किससे कर नहीं सकते”
प्रश्न: बहुत बच्चे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं, कैसे और क्यों?
उत्तर:
बाप को यथार्थ न पहचानने के कारण भूल करके भी छिपाते हैं, सच नहीं बताते हैं, सभा में छिपकर बैठ जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं कि धर्मराज बाबा सब कुछ जानता है। यह भी सजाओं को कम करने की युक्ति है कि सच्चे बाबा को सच सुनाओ।
गीत:- भोलेनाथ से निराला.... ओम् शान्ति।
बच्चे समझ गये हैं कि भोलानाथ सदा शिव को कहा जाता है। शिव भोला भण्डारी। शंकर को भोलानाथ नहीं कहेंगे। न और कोई को ज्ञान सागर कह सकते हैं। बाप कहते हैं मैं ही आकर बच्चों को आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज अथवा ज्ञान सुनाता हूँ। तो एक ही ज्ञान का सागर ठहरा, न शंकर, न अव्यक्त ब्रह्मा। अव्यक्त ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में रहता है। बहुत इस बात में मूंझते हैं कि दादा को भगवान ब्रह्मा क्यों कहते हैं? लेकिन अव्यक्त ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कह सकते। अब बाप समझाते हैं कि मैं ही तुम्हारा पारलौकिक पिता हूँ। परलोक न स्वर्ग को, न नर्क को कहेंगे। परलोक है परे ते परे लोक, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं इसलिए उनको कहते हैं परमप्रिय पारलौकिक परमपिता क्योंकि वह परलोक में रहने वाले हैं। भक्तिमार्ग वाले भी प्रार्थना करेंगे तो ऑखे ऊपर जरूर जायेंगी। तो बाप समझाते हैं कि मैं सारे कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ। एक शिव के सिवाय किसको भी क्रियेटर नहीं कह सकते। वही एक क्रियेटर है बाकी सब उनकी क्रियेशन हैं। अब क्रियेटर ही क्रियेशन को वर्सा देते हैं। सब कहते हैं हमको ईश्वर ने अथवा खुदा ने पैदा किया है। तो उस एक ईश्वर को सब फादर कहेंगे। गाँधी को तो फादर नहीं कहेंगे। बेहद का रचता बाप एक ही है। वही समझाते हैं कि मैं तुम्हारा पारलौकिक परमपिता हूँ। बाकी आत्मायें तो सब एक जैसी हैं, कोई बड़ी छोटी नहीं होती। जैसे ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे.. तो उस सूर्य चांद की साइज़ में तो फर्क है लेकिन आत्माओं का साइज़ एक जैसे है। बाबा कहते हैं मैं कोई साइज़ में बड़ा नहीं हूँ लेकिन परमधाम का रहने वाला हूँ इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। परमात्मा में ही सारा ज्ञान है। वह कहते हैं जैसे मैं अशरीरी हूँ वैसे आत्मा भी कुछ समय परमधाम में अशरीरी रहती है। बाकी स्टेज पर जास्ती समय रहती है। तो जैसे तुम आत्मा सितारे सदृश्य हो वैसे मैं भी हूँ। अगर मैं बड़ा होता तो इस शरीर में फिट नहीं होता। जैसे और सभी आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं, वैसे मैं भी आता हूँ। बाबा का भक्तिमार्ग से पार्ट शुरू होता है। सतयुग त्रेता में तो पार्ट ही नहीं। अब खुद आकर हमको पूरा वर्सा देते हैं। अपने से भी दो रत्ती ऊपर ले जाते हैं। हमको ब्रह्माण्ड और सृष्टि दोनों का मालिक बनाते हैं। यह तो हर एक बाप का फ़र्ज होता है बच्चों को लायक बनाना, कितनी सेवा करते हैं। कोई के 7 बच्चे होते हैं, कोई डाक्टर, इन्जीनियर, वकील बनता है तो बाप फूला नहीं समाता। लोग भी उनकी सराहना करते हैं कि बाप ने सब बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाया है। परन्तु सब एक जैसे तो नहीं बनते। कोई क्या बनता, कोई क्या। वैसे बाबा कहते हैं मैं तुमको कितना लायक बनाता हूँ। यह बाबा देखो कैसा है! इसका स्थूल नाम रूप कोई है नहीं। दूसरे के तन में प्रवेश कर पढ़ाते हैं। यह हूबहू कल्प पहले वाली पाठशाला है, तो जरूर गीता के भगवान ने गीता पाठशाला बनाई है। जहाँ सबको ज्ञान घास, ज्ञान अमृत खिलाया है। कोई कहते कृष्ण की गऊशाला, कोई कहते ब्रह्मा की। लेकिन है क्या, जो शिवबाबा को शरीर न होने कारण ब्रह्मा से मिला दिया है। बाकी कृष्ण को तो गऊ पालने की दरकार नहीं। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहते। गाँधी भी गीता को उठाए मुख से सीताराम उच्चारते रहते थे क्योंकि वह राम, कृष्ण, कच्छ-मच्छ सबमें भगवान मानते हैं। पहले हम भी ऐसे समझते थे। हमारा भी बुद्धि का ताला बन्द था। अब बाप ने आकर जगाया। सभी को कब्र से निकाल वापिस ले जाते हैं, मच्छरों के सदृश्य। फिर उतरते धीरे-धीरे अपने समय पर हैं।
तुमको बाप समझाते हैं कि मुझ एक को याद करो। स्टूडेन्ट को भी बाप टीचर याद रहता है। तुमको तो बाप पढ़ाते हैं। यही तुम्हारा गुरू भी है। तीनों का ही फोर्स है। फिर भी ऐसे बाप को भूल जाते हो! ऐसे भी (फुलकास्ट कहलाने वाले) बच्चे हैं - जो 5 मिनट भी याद नहीं करते हैं। तब कहते हैं अहो मम माया मैं बच्चों का ताला खोलता हूँ, तुम बंद कर देती हो। जरा भी विकार में गया तो बुद्धि का ताला लाकप हो जाता है। फिर भी सच सुनाने से सज़ा कम हो जाती है। अगर आपेही जाकर जज को अपना दोष बताये तो कम सजा देंगे। बाबा भी ऐसे करते हैं, अगर कोई बुरा काम कर छिपाता है तो उसको कड़ी सजा मिलती है। तो धर्मराज से कुछ छिपाना नहीं चाहिए। ऐसे बहुत हैं जो विकार में जाकर फिर छिपकर सभा में बैठ जाते हैं लेकिन धर्मराज से क्या छिपा सकते हैं? निश्चय नहीं है तो ऐसे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं। लेकिन साकार को भल ठग लें, निराकार बाबा तो सब जानते हैं, तुम्हें इस तन से शिक्षा भी वही दे रहे हैं। तुमसे बहुत पूछते हैं कि दादा के तन में परमात्मा कैसे आते हैं? यह तो गृहस्थी था। बाल बच्चे थे, इसमें कैसे आते हैं, क्यों नहीं कोई साधू सन्त के तन में आते हैं? लेकिन परमात्मा को तो पतितों को पावन बनाना है। जो पुजारी से पूज्य बना रहे हैं, ये भी जैसे बाजोली खेलते हैं। ब्राह्मण ही देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य.... यह वर्ण भी भारत में हैं। और कहाँ वर्ण नहीं। अब मैने 15 मिनट भाषण किया। ऐसे तुम भी समझा सकते हो। बाबा करके डायरेक्ट बात करते हैं। तुम कहेंगे शिवबाबा ऐसे समझाते हैं शिव अलग है, शंकर अलग है - यह भी साफ-साफ समझाना है। यह है बाबा का परिचय देना। जब गर्वमेन्ट का किताब निकलता है - हू इज हू। वैसे ही हू इज हू प्रीआर्डीनेट ड्रामा। हम कहेंगे ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता फिर धर्म स्थापन करने वाले। इस रीति दुनिया पुरानी होती जाती है। तुम देवतायें वाममार्ग में चले जाते हो। अब बाप आकर जगाते हैं कहते हैं सब मेरे हवाले कर दो और मेरी मत पर चलो। श्रीमत तो उनकी कहेंगे।
बाकी लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, जिनको याद करते वह सब वाममार्ग में चले गये और कौन श्रीमत दे सकता है। भक्तों की मनोकामना भी बाबा ही पूरी करते, भल कोई कच्छ-मच्छ में भावना रखे तो उनकी भी भावना मैं पूरी करता हूँ। उसका अर्थ यह निकाला है कि कच्छ-मच्छ सबमें भगवान है। बाबा बहुत राज़ समझाते हैं। लेकिन समझने वाले नम्बरवार हैं तो पद भी नम्बरवार हैं। ये डीटी किंगडम स्थापन हो रही है, धर्म नहीं। धर्म तो दूसरे धर्म वाले स्थापन करते हैं। शिवबाबा तो ब्रह्मा द्वारा राजाओं का राजा बनाते हैं। राजाओं का राजा का अर्थ भी तुमको समझाया है। तुमको विकारी राजायें पूजते हैं, तो कितना बड़ा पद तुमको मिलता है। बाबा की मीठी-मीठी बातें तुमको बहुत अच्छी लगती हैं परन्तु फिर उठकर चाय पी तो नशा कम हो जाता है। गांव में गये तो एकदम उतर जाता है। यहाँ तो जैसे तुम शिवबाबा के घर में बैठे हो। वहाँ बहुत फ़र्क पड़ जाता है। जैसे पति जब परदेश जाते हैं तो पत्नि ऑसू बहाती है। वह तो कोई सुख देते नहीं, यह बाबा तो तुम्हें कितना सुख देते हैं, तो इनको छोड़ने में भी रोना आता है! बहुत कहते हैं हम यहाँ ही बैठ जायें। फिर आपके बाल बच्चे कहाँ जायेंगे? कहते हैं आप सम्भालो। हम कितनों के बच्चे सम्भालेंगे! लेकिन ठहरो, सर्विसएबुल बनो तो तुम्हारे बच्चों का भी प्रबन्ध हो जायेगा। शुरू में थोड़े थे तो उनके बच्चे सम्भाले, अब कितने हैं। उन्हों के बच्चे बैठ सम्भालें, उनसे कोई गुम हो जाये तो कहेंगे हमारा बच्चा गुम कर दिया। जिसको सम्भालने रखें - वह भी कहेंगे हम औरों का कर्मबंधन क्यों सम्भालें। अच्छा फिर तो एक ही शिव बच्चे को सम्भालो तो वह तुम्हारे बच्चे सम्भालेंगे। बाकी ऐसे बाबा को कभी फारकती मत देना। ऐसे बहुतों ने फारकती दी है। उन्हों को मूर्खों के अवतार कहें। भल कोई ब्रह्माकुमार कुमारी से रूठ जाओ लेकिन शिवबाबा से कभी नहीं रूठना। वह तो तुमको राज्य-भाग्य देने आया है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना सब कुछ बाप हवाले कर पूरा श्रीमत पर चलना है। कोई भी बुरा काम करके छिपाना नहीं है, जज को सच बताने से सजा कम हो जायेगी।
2) बाप से कभी रूठना नहीं है, सर्विसएबुल बनना है। अपने कर्मबन्धन स्वयं कांटने हैं।
वरदान: शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्के पन की अनुभूति करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव!
शक्तिशाली याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी व हल्के पन का अनुभव कराती है। ऐसे विधिपूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है। ऐसी यथार्थ याद में रहने वाले स्मृति स्वरूप बच्चे ही समर्थ हैं। यह स्मृति सो समर्थी ही नम्बरवन प्राइज का अधिकारी बना देती है।
स्लोगन: अनुभवी वह है जिसकी दिल मजबूत और बुजुर्ग है।
1) 'भगवान के आने का अनादि रचा हुआ प्रोग्राम'
यह जो मनुष्य गीत गाते हैं ओ गीता के भगवान अपना वचन निभाने आ जाओ। अब वो स्वयं गीता का भगवान अपना कल्प पहले वाला वचन पालन करने के लिये आया है और कहते हैं हे बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ, अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ। सभी युगों में तो कोई धर्म ग्लानि नहीं होती, धर्म ग्लानि होती ही है कलियुग में, तो मानो परमात्मा कलियुग के समय आता है। और कलियुग फिर कल्प कल्प आता है तो मानो मैं कल्प कल्प आता हूँ। कल्प में फिर चार युग हैं, इसको ही कल्प कहते हैं। आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरुरत नहीं। और फिर तीसरा द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरुआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है। उसी समय परमात्मा आए अधर्म विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करता है। अगर द्वापर में आया हुआ होता तो फिर द्वापर के बाद तो अब सतयुग होना चाहिए फिर कलियुग क्यों? ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा ने घोर कलियुग की स्थापना की, अब यह तो बात नहीं हो सकती इसलिए परमात्मा कहता है मैं एक हूँ और एक ही बार आए अधर्म का विनाश कऱ कलियुग का विनाश कर सतयुग की स्थापना करता हूँ तो मेरे आने का समय संगमयुग है।
2) 'किस्मत बनाने वाला परमात्मा किस्मत बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है'
अब यह तो हम जानते हैं कि मनुष्य आत्मा की किस्मत बनाने वाला कौन है? और किस्मत बिगाड़ने वाला कौन है? हम ऐसे नहीं कहेंगे कि किस्मत बनाने वाला, बिगाड़ने वाला वही परमात्मा है। बाकी यह जरैर है कि किस्मत को बनाने वाला परमात्मा है और किस्मत को बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है। अब यह किस्मत बने कैसे? और फिर गिरे कैसे? इस पर समझाया जाता है। मनुष्य जब अपने को जानते हैं और पवित्र बनते हैं तो फिर से वो बिगड़ी हुई तकदीर को बना लेते हैं। अब जब हम बिगड़ी हुई तकदीर कहते हैं तो इससे साबित है कोई समय अपनी तकदीर बनी हुई थी, जो फिर बिगड़ गई है। अब वही फिर बिगड़ी तकदीर को परमात्मा खुद आकर बनाते हैं। अब कोई कहे परमात्मा खुद तो निराकार है वो तकदीर को कैसे बनायेगा? इस पर समझाया जाता है, निराकार परमात्मा कैसे अपने साकार ब्रह्मा तन द्वारा, अविनाशी नॉलेज द्वारा हमारी बिगड़ी हुई तकदीर को बनाते हैं। अब यह नॉलेज देना परमात्मा का काम है, बाकी मनुष्य आत्मायें एक दो की तकदीर को नहीं जगा सकती हैं। तकदीर को जगाने वाला एक ही परमात्मा है तभी तो उन्हों का यादगार मन्दिर कायम है। अच्छा। ओम् शान्ति।
Mithe bacche - Bholanath Baap ek hai jo tumhari jholi gyan ratno se bharte hain, wohi kalp vriksh ka beej roop hai, unki bhent aur kisse kar nahi sakte.
Q- Bahut bacche Baap ko bhi thaghne ki koshis karte hain, kaise aur kyun?
A- Baap ko yathart na pehechanne ke kaaran bhool karke bhi chhipate hain, sach nahi batate hain, sabha me chhipkar baith jate hain. Unhe pata he nahi ki dharmraj Baba sab kuch jaanta hai. Yah bhi sazaon ko kam karne ki yukti hai ki sachche Baba ko sach sunao.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Apna sab kuch Baap hawale kar poora shrimat par chalna hai. Koi bhi bura kaam karke chhipana nahi hai, judge ko sach batane se saza kam ho jayegi.
2) Baap se kabhi roothna nahi hai, serviceable banna hai. Apne karmbandhan swayang kaatne hain.
Vardaan:-- Shaktishali yaad dwara parivartan, khushi aur halkepan ki anubhooti karne wale Smruti so Samarth Swaroop bhava
Slogan:-- Anubhavi wo hai jiski dil mazboot aur bujurg hai.
Hindi Version in Details –13/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“
“मीठे बच्चे - भोलानाथ बाप एक है जो तुम्हारी झोली ज्ञान रत्नों से भरते हैं, वही कल्प वृक्ष का बीजरूप है, उनकी भेंट और किससे कर नहीं सकते”
प्रश्न: बहुत बच्चे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं, कैसे और क्यों?
उत्तर:
बाप को यथार्थ न पहचानने के कारण भूल करके भी छिपाते हैं, सच नहीं बताते हैं, सभा में छिपकर बैठ जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं कि धर्मराज बाबा सब कुछ जानता है। यह भी सजाओं को कम करने की युक्ति है कि सच्चे बाबा को सच सुनाओ।
गीत:- भोलेनाथ से निराला.... ओम् शान्ति।
बच्चे समझ गये हैं कि भोलानाथ सदा शिव को कहा जाता है। शिव भोला भण्डारी। शंकर को भोलानाथ नहीं कहेंगे। न और कोई को ज्ञान सागर कह सकते हैं। बाप कहते हैं मैं ही आकर बच्चों को आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज अथवा ज्ञान सुनाता हूँ। तो एक ही ज्ञान का सागर ठहरा, न शंकर, न अव्यक्त ब्रह्मा। अव्यक्त ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में रहता है। बहुत इस बात में मूंझते हैं कि दादा को भगवान ब्रह्मा क्यों कहते हैं? लेकिन अव्यक्त ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कह सकते। अब बाप समझाते हैं कि मैं ही तुम्हारा पारलौकिक पिता हूँ। परलोक न स्वर्ग को, न नर्क को कहेंगे। परलोक है परे ते परे लोक, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं इसलिए उनको कहते हैं परमप्रिय पारलौकिक परमपिता क्योंकि वह परलोक में रहने वाले हैं। भक्तिमार्ग वाले भी प्रार्थना करेंगे तो ऑखे ऊपर जरूर जायेंगी। तो बाप समझाते हैं कि मैं सारे कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ। एक शिव के सिवाय किसको भी क्रियेटर नहीं कह सकते। वही एक क्रियेटर है बाकी सब उनकी क्रियेशन हैं। अब क्रियेटर ही क्रियेशन को वर्सा देते हैं। सब कहते हैं हमको ईश्वर ने अथवा खुदा ने पैदा किया है। तो उस एक ईश्वर को सब फादर कहेंगे। गाँधी को तो फादर नहीं कहेंगे। बेहद का रचता बाप एक ही है। वही समझाते हैं कि मैं तुम्हारा पारलौकिक परमपिता हूँ। बाकी आत्मायें तो सब एक जैसी हैं, कोई बड़ी छोटी नहीं होती। जैसे ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे.. तो उस सूर्य चांद की साइज़ में तो फर्क है लेकिन आत्माओं का साइज़ एक जैसे है। बाबा कहते हैं मैं कोई साइज़ में बड़ा नहीं हूँ लेकिन परमधाम का रहने वाला हूँ इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। परमात्मा में ही सारा ज्ञान है। वह कहते हैं जैसे मैं अशरीरी हूँ वैसे आत्मा भी कुछ समय परमधाम में अशरीरी रहती है। बाकी स्टेज पर जास्ती समय रहती है। तो जैसे तुम आत्मा सितारे सदृश्य हो वैसे मैं भी हूँ। अगर मैं बड़ा होता तो इस शरीर में फिट नहीं होता। जैसे और सभी आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं, वैसे मैं भी आता हूँ। बाबा का भक्तिमार्ग से पार्ट शुरू होता है। सतयुग त्रेता में तो पार्ट ही नहीं। अब खुद आकर हमको पूरा वर्सा देते हैं। अपने से भी दो रत्ती ऊपर ले जाते हैं। हमको ब्रह्माण्ड और सृष्टि दोनों का मालिक बनाते हैं। यह तो हर एक बाप का फ़र्ज होता है बच्चों को लायक बनाना, कितनी सेवा करते हैं। कोई के 7 बच्चे होते हैं, कोई डाक्टर, इन्जीनियर, वकील बनता है तो बाप फूला नहीं समाता। लोग भी उनकी सराहना करते हैं कि बाप ने सब बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाया है। परन्तु सब एक जैसे तो नहीं बनते। कोई क्या बनता, कोई क्या। वैसे बाबा कहते हैं मैं तुमको कितना लायक बनाता हूँ। यह बाबा देखो कैसा है! इसका स्थूल नाम रूप कोई है नहीं। दूसरे के तन में प्रवेश कर पढ़ाते हैं। यह हूबहू कल्प पहले वाली पाठशाला है, तो जरूर गीता के भगवान ने गीता पाठशाला बनाई है। जहाँ सबको ज्ञान घास, ज्ञान अमृत खिलाया है। कोई कहते कृष्ण की गऊशाला, कोई कहते ब्रह्मा की। लेकिन है क्या, जो शिवबाबा को शरीर न होने कारण ब्रह्मा से मिला दिया है। बाकी कृष्ण को तो गऊ पालने की दरकार नहीं। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहते। गाँधी भी गीता को उठाए मुख से सीताराम उच्चारते रहते थे क्योंकि वह राम, कृष्ण, कच्छ-मच्छ सबमें भगवान मानते हैं। पहले हम भी ऐसे समझते थे। हमारा भी बुद्धि का ताला बन्द था। अब बाप ने आकर जगाया। सभी को कब्र से निकाल वापिस ले जाते हैं, मच्छरों के सदृश्य। फिर उतरते धीरे-धीरे अपने समय पर हैं।
तुमको बाप समझाते हैं कि मुझ एक को याद करो। स्टूडेन्ट को भी बाप टीचर याद रहता है। तुमको तो बाप पढ़ाते हैं। यही तुम्हारा गुरू भी है। तीनों का ही फोर्स है। फिर भी ऐसे बाप को भूल जाते हो! ऐसे भी (फुलकास्ट कहलाने वाले) बच्चे हैं - जो 5 मिनट भी याद नहीं करते हैं। तब कहते हैं अहो मम माया मैं बच्चों का ताला खोलता हूँ, तुम बंद कर देती हो। जरा भी विकार में गया तो बुद्धि का ताला लाकप हो जाता है। फिर भी सच सुनाने से सज़ा कम हो जाती है। अगर आपेही जाकर जज को अपना दोष बताये तो कम सजा देंगे। बाबा भी ऐसे करते हैं, अगर कोई बुरा काम कर छिपाता है तो उसको कड़ी सजा मिलती है। तो धर्मराज से कुछ छिपाना नहीं चाहिए। ऐसे बहुत हैं जो विकार में जाकर फिर छिपकर सभा में बैठ जाते हैं लेकिन धर्मराज से क्या छिपा सकते हैं? निश्चय नहीं है तो ऐसे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं। लेकिन साकार को भल ठग लें, निराकार बाबा तो सब जानते हैं, तुम्हें इस तन से शिक्षा भी वही दे रहे हैं। तुमसे बहुत पूछते हैं कि दादा के तन में परमात्मा कैसे आते हैं? यह तो गृहस्थी था। बाल बच्चे थे, इसमें कैसे आते हैं, क्यों नहीं कोई साधू सन्त के तन में आते हैं? लेकिन परमात्मा को तो पतितों को पावन बनाना है। जो पुजारी से पूज्य बना रहे हैं, ये भी जैसे बाजोली खेलते हैं। ब्राह्मण ही देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य.... यह वर्ण भी भारत में हैं। और कहाँ वर्ण नहीं। अब मैने 15 मिनट भाषण किया। ऐसे तुम भी समझा सकते हो। बाबा करके डायरेक्ट बात करते हैं। तुम कहेंगे शिवबाबा ऐसे समझाते हैं शिव अलग है, शंकर अलग है - यह भी साफ-साफ समझाना है। यह है बाबा का परिचय देना। जब गर्वमेन्ट का किताब निकलता है - हू इज हू। वैसे ही हू इज हू प्रीआर्डीनेट ड्रामा। हम कहेंगे ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता फिर धर्म स्थापन करने वाले। इस रीति दुनिया पुरानी होती जाती है। तुम देवतायें वाममार्ग में चले जाते हो। अब बाप आकर जगाते हैं कहते हैं सब मेरे हवाले कर दो और मेरी मत पर चलो। श्रीमत तो उनकी कहेंगे।
बाकी लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, जिनको याद करते वह सब वाममार्ग में चले गये और कौन श्रीमत दे सकता है। भक्तों की मनोकामना भी बाबा ही पूरी करते, भल कोई कच्छ-मच्छ में भावना रखे तो उनकी भी भावना मैं पूरी करता हूँ। उसका अर्थ यह निकाला है कि कच्छ-मच्छ सबमें भगवान है। बाबा बहुत राज़ समझाते हैं। लेकिन समझने वाले नम्बरवार हैं तो पद भी नम्बरवार हैं। ये डीटी किंगडम स्थापन हो रही है, धर्म नहीं। धर्म तो दूसरे धर्म वाले स्थापन करते हैं। शिवबाबा तो ब्रह्मा द्वारा राजाओं का राजा बनाते हैं। राजाओं का राजा का अर्थ भी तुमको समझाया है। तुमको विकारी राजायें पूजते हैं, तो कितना बड़ा पद तुमको मिलता है। बाबा की मीठी-मीठी बातें तुमको बहुत अच्छी लगती हैं परन्तु फिर उठकर चाय पी तो नशा कम हो जाता है। गांव में गये तो एकदम उतर जाता है। यहाँ तो जैसे तुम शिवबाबा के घर में बैठे हो। वहाँ बहुत फ़र्क पड़ जाता है। जैसे पति जब परदेश जाते हैं तो पत्नि ऑसू बहाती है। वह तो कोई सुख देते नहीं, यह बाबा तो तुम्हें कितना सुख देते हैं, तो इनको छोड़ने में भी रोना आता है! बहुत कहते हैं हम यहाँ ही बैठ जायें। फिर आपके बाल बच्चे कहाँ जायेंगे? कहते हैं आप सम्भालो। हम कितनों के बच्चे सम्भालेंगे! लेकिन ठहरो, सर्विसएबुल बनो तो तुम्हारे बच्चों का भी प्रबन्ध हो जायेगा। शुरू में थोड़े थे तो उनके बच्चे सम्भाले, अब कितने हैं। उन्हों के बच्चे बैठ सम्भालें, उनसे कोई गुम हो जाये तो कहेंगे हमारा बच्चा गुम कर दिया। जिसको सम्भालने रखें - वह भी कहेंगे हम औरों का कर्मबंधन क्यों सम्भालें। अच्छा फिर तो एक ही शिव बच्चे को सम्भालो तो वह तुम्हारे बच्चे सम्भालेंगे। बाकी ऐसे बाबा को कभी फारकती मत देना। ऐसे बहुतों ने फारकती दी है। उन्हों को मूर्खों के अवतार कहें। भल कोई ब्रह्माकुमार कुमारी से रूठ जाओ लेकिन शिवबाबा से कभी नहीं रूठना। वह तो तुमको राज्य-भाग्य देने आया है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना सब कुछ बाप हवाले कर पूरा श्रीमत पर चलना है। कोई भी बुरा काम करके छिपाना नहीं है, जज को सच बताने से सजा कम हो जायेगी।
2) बाप से कभी रूठना नहीं है, सर्विसएबुल बनना है। अपने कर्मबन्धन स्वयं कांटने हैं।
वरदान: शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्के पन की अनुभूति करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव!
शक्तिशाली याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी व हल्के पन का अनुभव कराती है। ऐसे विधिपूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है। ऐसी यथार्थ याद में रहने वाले स्मृति स्वरूप बच्चे ही समर्थ हैं। यह स्मृति सो समर्थी ही नम्बरवन प्राइज का अधिकारी बना देती है।
स्लोगन: अनुभवी वह है जिसकी दिल मजबूत और बुजुर्ग है।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्
1) 'भगवान के आने का अनादि रचा हुआ प्रोग्राम'
यह जो मनुष्य गीत गाते हैं ओ गीता के भगवान अपना वचन निभाने आ जाओ। अब वो स्वयं गीता का भगवान अपना कल्प पहले वाला वचन पालन करने के लिये आया है और कहते हैं हे बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ, अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ। सभी युगों में तो कोई धर्म ग्लानि नहीं होती, धर्म ग्लानि होती ही है कलियुग में, तो मानो परमात्मा कलियुग के समय आता है। और कलियुग फिर कल्प कल्प आता है तो मानो मैं कल्प कल्प आता हूँ। कल्प में फिर चार युग हैं, इसको ही कल्प कहते हैं। आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरुरत नहीं। और फिर तीसरा द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरुआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है। उसी समय परमात्मा आए अधर्म विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करता है। अगर द्वापर में आया हुआ होता तो फिर द्वापर के बाद तो अब सतयुग होना चाहिए फिर कलियुग क्यों? ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा ने घोर कलियुग की स्थापना की, अब यह तो बात नहीं हो सकती इसलिए परमात्मा कहता है मैं एक हूँ और एक ही बार आए अधर्म का विनाश कऱ कलियुग का विनाश कर सतयुग की स्थापना करता हूँ तो मेरे आने का समय संगमयुग है।
2) 'किस्मत बनाने वाला परमात्मा किस्मत बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है'
अब यह तो हम जानते हैं कि मनुष्य आत्मा की किस्मत बनाने वाला कौन है? और किस्मत बिगाड़ने वाला कौन है? हम ऐसे नहीं कहेंगे कि किस्मत बनाने वाला, बिगाड़ने वाला वही परमात्मा है। बाकी यह जरैर है कि किस्मत को बनाने वाला परमात्मा है और किस्मत को बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है। अब यह किस्मत बने कैसे? और फिर गिरे कैसे? इस पर समझाया जाता है। मनुष्य जब अपने को जानते हैं और पवित्र बनते हैं तो फिर से वो बिगड़ी हुई तकदीर को बना लेते हैं। अब जब हम बिगड़ी हुई तकदीर कहते हैं तो इससे साबित है कोई समय अपनी तकदीर बनी हुई थी, जो फिर बिगड़ गई है। अब वही फिर बिगड़ी तकदीर को परमात्मा खुद आकर बनाते हैं। अब कोई कहे परमात्मा खुद तो निराकार है वो तकदीर को कैसे बनायेगा? इस पर समझाया जाता है, निराकार परमात्मा कैसे अपने साकार ब्रह्मा तन द्वारा, अविनाशी नॉलेज द्वारा हमारी बिगड़ी हुई तकदीर को बनाते हैं। अब यह नॉलेज देना परमात्मा का काम है, बाकी मनुष्य आत्मायें एक दो की तकदीर को नहीं जगा सकती हैं। तकदीर को जगाने वाला एक ही परमात्मा है तभी तो उन्हों का यादगार मन्दिर कायम है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 14-Oct 2017 )
Hinglish Summary –14.10.17 Pratah Murali OMSHANTI Bapdada Madhuban
Mithe bacche - Heere jaisa jeevan banane wale Baap ko bahut khushi-khushi se yaad karo to junk nikal jayegi.
Q- Mala ka dana kaun banenge, uska purusharth kya hai?
A-Mala ka dana wohi banenge jise ant me kuch bhi yaad na pade. Aise bacche jo karmathit avastha ko payenge wohi mala ka dana banenge. Koi bahut dhanvan hain, anek karkhane adi hain...... to wo sab bhoolna pade. Kisi se bhi mamatwa na rahe. Mera-mera na ho. Bas yah bhai (aatma) hai, yahi roohani connection hai aur koi connection nahi. Aise roohani connection rakhne wale, sab kuch bhoolne wale bacche he mala me aa sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Oonch pad paane ke liye bahut-bahut shantchit rehna hai, mitha banna hai, sabke saath pyar se chalna hai.
2) Jo kuch Baba ko arpan kar diya, usey bhool jana hai, uski yaad bhi na aaye. Kabhi yah sankalp bhi na aaye ki hum Baba ko dete hain.
Vardaan:-- Smruti swaroop ke vardan dwara sada shaktishali sthiti ka anubhav karne wale Sahaj Purusharthi bhava
Slogan:-- Gyan ki parakastha par pahunchna hai to gupt roop se purusharth karo.
“मीठे बच्चे - हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को बहुत खुशी-खुशी से याद करो तो जंक निकल जायेगी”
प्रश्न: माला का दाना कौन बनेंगे, उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:
माला का दाना वही बनेंगे जिसे अन्त में कुछ भी याद न पड़े। ऐसे बच्चे जो कर्मातीत अवस्था को पायेंगे वही माला का दाना बनेंगे। कोई बहुत धनवान हैं, अनेक कारखाने आदि हैं... तो वह सब भूलना पड़े। किसी मे भी ममत्व न रहे। मेरा-मेरा न हो। बस यह भाई (आत्मा) है, यही रूहानी कनेक्शन है और कोई कनेक्शन नहीं। ऐसे रूहानी कनेक्शन रखने वाले, सब कुछ भूलने वाले बच्चे ही माला में आ सकते हैं।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो जरूर पक्का निश्चय हो गया होगा कि हम आत्मा हैं और परमात्मा बाप के बच्चे हैं, तो सभी ब्रदर्स ही हैं। ब्रदर्स को बाप ने डायरेक्शन दिया है कि मुझ पतित-पावन बाप को याद करो। तो याद करते हो या बुद्धि का योग कहाँ और जगह भटकता है? माया भटकायेगी जरूर, न चाहते हुए भी तुम्हारी बुद्धि कहाँ न कहाँ भागती रहेगी। बच्चों के अन्दर चलना चाहिए कि बाबा ने हमको सृष्टि चक्र का ज्ञान दिया है, 84 जन्मों की कहानी पढ़ाई है। यह 84 का चक्र पूरा हुआ है। हम फिर से घर जाते हैं, अनेक बार हम याद की यात्रा से पवित्र बन करके घर गये हैं। तुम्हारी बुद्धि में आता है कि हम सब भाई-भाई हैं, इसमें जिस्म की कोई बात ही नहीं है। तुम जिस्म को याद नहीं करो। सिर्फ हम आत्मा हैं - हम ही पावन, सतोप्रधान थे, अब पतित बने हैं तो हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को खुशी से याद करना है, जिससे जंक निकल जाये। तो बाप समझाते हैं बच्चे पहले-पहले अपने को आत्मा समझो, यह भी ज्ञान है फिर बाप को याद करो - यह है विज्ञान क्योंकि आत्मा को ज्ञान से परे विज्ञान में, शान्त घर में जाना है। आत्मा का स्वधर्म भी शान्त है और घर भी शान्त है। तो पहले हमको वहाँ पहुंचने का है। बाबा भी वहाँ से आये हुए हैं। परन्तु मनुष्यों को इन सब बातों का पता नहीं है।
यह पारलौकिक बाप सन्मुख बैठ करके समझाते हैं, बच्चों मैं परमधाम से तुम बच्चों के पास आया हुआ हूँ, ड्रामा के प्लैन अनुसार। क्यों आया हूँ? तुमको वापस ले जाने के लिये। अभी तुम पतित विकारी हो गये हो। जन्म-जन्मान्तर विकार से ही पैदा हुए हो इसलिए भ्रष्टाचारी कहा जाता है। तो हम भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी कैसे बनें - यह बाप समझाते हैं, बच्चे मुझे याद करो तो पवित्र श्रेष्ठचारी बन जायेंगे। इस याद में तुम सबकुछ कर सकते हो। ऐसे नहीं कि धन्धाधोरी नहीं कर सकते हो।
बच्चे, बाप से पूछते हैं बाबा माला के दाने कौन बनेंगे? बच्चे, माला का दाना वही बनेंगे जो कर्मातीत अवस्था को पायेंगे। जिसको अन्त में कुछ भी याद न पड़े। कोई बहुत धनवान हैं, अनेक कारखाने आदि हैं... तो वह सब भूलना पड़े। तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है। तुम जानते हो हम बाप के बच्चे हैं, भाई हैं। हमारा किसी में भी ममत्व नहीं है। मेरा-मेरा तो नहीं है ना! बस यह भाई है, यही कनेक्शन है और कोई कनेक्शन नहीं। इसे कहा जाता है रूहानी कनेक्शन। इतनी सारी आयु तो देह ही याद आई, आत्मा तो किसको याद ही नहीं आई। यह भी ड्रामा बना हुआ है, तो यह बातें बाप समझाते हैं और पावन बनने के लिए पुरुषार्थ कराते हैं। बाबा तुम बच्चों को टाइम तो देते हैं सिर्फ 8 घण्टा मुझे याद करो। वह है हद की सर्विस, यह है सारे वर्ल्ड की सर्विस। जरूर खायेंगे, पियेंगे, सोयेंगे, घूमेंगे.... सारा दिन तो कोई याद भी नहीं कर सकते। तुम बरोबर अभी बेहद की सर्विस करते हो। जैसे बाप विचार सागर मंथन करते हैं, ऐसे तुम बच्चों को भी मंथन करना सिखलाते हैं, करन-करावनहार है ना, तो तुमको करके ही सिखलाते हैं। पुरुषार्थ करते-करते तुम्हारी विजयी माला बन जायेगी। सतयुग त्रेता में जो भी आते हैं वह विजयी होते हैं। फिर सब एक्टर्स इस नाटक में पार्ट बजाने के लिए नम्बरवार आते हैं। सब इकट्ठे तो नहीं आ जायेंगे। तुम सभी एक्टर्स के रहने का स्थान ब्रह्म लोक है, वहाँ से यहाँ आ करके शरीर लेते हो। यह सब बातें बहुत सहज हैं, जो तुम बच्चों को ही याद रहती हैं। तुम्हारा घर स्वीट होम, साइलेन्स होम है। दूसरा कोई भी अपने घर को नहीं जानता है। वह तो कह देते हैं हम लीन हो जायेंगे। जैसे सागर से बुदबुदा निकलता है फिर उसी में समा जाता है, ऐसे हम भी उस ब्रह्म में लीन हो जाते हैं.. फिर कह देते हैं जहाँ देखो वहाँ ब्रह्म ही ब्रह्म है। वो ब्रह्म को ही ईश्वर समझते हैं इसलिए तुम्हारी बातें उनकी बुद्धि में बैठती नहीं हैं। तुम उनको उल्टा समझेंगे वो तुमको उल्टा समझेंगे क्योंकि उनका धर्म ही अपना है। परन्तु तुम जानते हो सभी आत्मायें शान्तिधाम में जरूर जायेंगी। बाकी हर एक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। इसको ही तो वन्डर कहते हैं। तुम बच्चे अभी कितनी महीनता में जाते हो, आत्मा कितनी छोटी है, कैसे पार्ट बजाती है। तो यह ज्ञान जैसे बाप के पास है, वह ज्ञान का सागर है, ऐसे तुम बच्चों के पास भी है, तुम अभी ऐसे ज्ञानवान बनते जाते हो। वह हैं भक्तिवान, तुम हो ज्ञानवान। भक्तिवान माना रात के रहने वाले और ज्ञानवान माना दिन के रहने वाले। आधाकल्प तुम सुखधाम में रहते हो, आधाकल्प दु:खधाम में रहते हो, इसको कहा जाता है दूरांदेशी, तुम्हारी बुद्धि अभी बहुत दूर-दूर जाती है - हम आत्मा स्वीट होम, ब्रह्माण्ड के रहने वाले हैं। बाप इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, क्योंकि वह नॉलेजफुल है, उनको झाड़ की नॉलेज है। तुम अभी शरीर का भान मिटाने के लिये अपने को आत्मा समझते हो। दूसरी कोई भी चीज़ याद न आये। पूरा आत्म-अभिमानी बन जाना है। मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, मेरे पास कुछ है ही नहीं जो आत्मा को याद पड़े। गाया जाता है अन्तकाल जो जो सिमरे, तो अगर कोई भी चीज़ होगी तो जरूर वह याद आयेगी। यह विचार करने की बात है। अगर कुछ भी है, कोई मित्र सम्बन्धी आदि भी हैं तो याद आयेगा जरूर। तुमने तो अपना सब कुछ शिवबाबा को दे दिया, फिर ऐसे नहीं समझो कि यह मेरी चीज़ है। जब बाबा को दे दिया फिर तुमको याद ही क्यों आये, तुम भूल जाओ। अगर वह याद पड़ता रहता है तो वो भी पिछाड़ी में नुकसान कर देगा। अभी तुमको यह सब नई-नई बातें मिलती हैं। पुरानी कोई भी चीज़ तुम्हारे पास नहीं है। जैसे पुरानी चीजें सब करनीघोर को दे देते हैं ना। ऐसे तुम भी अपना सब कुछ दे देते हो फिर याद नहीं आनी चाहिए। बस यही याद रहे कि मैं भाई (आत्मा) हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, मेरे पास कुछ भी है ही नहीं। शरीर भी नहीं है। फिर नई दुनिया में सब नई चीज़ें मिलेंगी। वहाँ तो हीरे जवाहरात के महलों में जायेंगे। तो वह भविष्य की बात हुई। बाबा पूछते हैं बच्चे तुम क्या बनेंगे, तो बच्चे कहते हैं बाबा हम तो नारायण बनेंगे। यह तो खुशी की बात हुई ना। परन्तु अभी जब कोई भी पुरानी चीज़ याद न आये तब माला का दाना बनेंगे। 108 की माला तो राजाई की है। मन्दिरों में फिर 16108 की भी माला रखी होती है। तो माला के दाने बहुत ही बनेंगे। जितना जल्दी आयेंगे उतना सुख पायेंगे। जो पीछे आते हैं उन्होंने इतना सुख नहीं पाया है, उनके लिए थोड़ा टाइम सुख है तो दु:ख भी कम ही पायेंगे।
तो बाबा कहते हैं बच्चे यह ख्याल रखो कि पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये। जो अर्पण किया हुआ है वह भी याद नहीं आना चाहिए। बाप कहते हैं मैं ऐसी कोई चीज़ नहीं लेता हूँ जो रह जावे और उसका वहाँ भरकर देना पड़े, क्योंकि मैं गरीबनिवाज़ हूँ। कई हैं जो देकरके फिर जब कोई कारण से भागन्ती हो जाते हैं तो मांगने लग पड़ते हैं। माया उनको एकदम डस लेती है। नहीं तो कहते हैं चाहे मारो चाहे प्यार करो, यह मस्ताना तुम्हारा दर कभी नहीं छोड़ेगा। कभी नहीं भूलेगा। तुम बच्चे यहाँ नर से नारायण बनने के लिये आये हो, तुम्हें कितना बड़ा वर्सा मिलता है, फिर यह क्यों कहते हो कि हम देते हैं। तुम तो लेते हो ना। कौन कहता है तुम कुछ दो। बाकी कोई एक पैसा भी देंगे तो वहाँ उनके लिए महल बन जायेगा। जैसे सुदामा ने चावल मुट्ठी दी। तो बच्चे सुदामा मिसल दाल चावल ले आते हैं, समझते हैं कि हमको महल मिल जायेंगे। ऐसे बच्चों पर बाप बहुत खुश होते हैं वाह! इनके नई दुनिया में महल बनने वाले हैं क्योंकि बहुत प्यार और सद्भावना से ले आते हैं। अहो भाग्य ऐसे बच्चों का, बहुत ऊंचा पद पायेंगे।
अभी ड्रामा के प्लैन अनुसार बाबा और तुम बच्चों की कदम-कदम वही चाल चलती है जो कल्प-कल्प चली है। तुम्हारे कदम-कदम में पदम हैं। देवताओं के पैर में पदम दिखाते हैं तो इसका भी कोई अर्थ होगा ना। अभी तुम्हारी पदमों की आमदनी होती रहती है। तुम बाबा के पास पदमापदमपति बनने के लिए आते हो। तो तुम इतने महान, महान, महान भाग्यशाली हो परन्तु उसमें भी फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं। तुम्हारा पुरुषार्थ कल्प-कल्प वही ड्रामा के प्लैन अनुसार चलता है, जैसेकि ड्रामा तुमको पुरुषार्थ कराता रहता है। ईश्वर भी ड्रामा के अनुसार तुम्हें मत देते हैं। तो ड्रामा के वश हुए ना। फिर यह ड्रामा किसके वश है? बच्चे, ड्रामा अनादि बना हुआ है, यह कोई नहीं कह सकता है कि ड्रामा कब बना? यह तो चलता ही रहता है। ड्रामा में नम्बरवन मत मिलती है ईश्वर की इसलिए उसको कहा जाता है - ईश्वरीय मत, जो तुम्हें देवता बनाती है और मनुष्य की मत छी-छी बनाती है। ईश्वरीय मत से तुम मनुष्य से देवता बनते हो। फिर 21 जन्मों के बाद मनुष्य मत पर मनुष्य बन जाते हो। अभी यह गीता का एपीसोड संगमयुग है जबकि दुनिया बदलती है। तो यह बच्चों की बुद्धि में होना चाहिए और बच्चों को बहुत-बहुत मीठा बनना चाहिए। प्यार से चलना होता है। जो बच्चे शान्त और मीठे हैं, उनका पद भी ऊंचा होगा। अभी तुम्हें ईश्वरीय बुद्धि मिली है, तुम समझते हो कि हम बेहद के बाबा की सन्तान बने हैं, बाबा से वर्सा ले रहे हैं। तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं बच्चे स्वर्ग से भी यहाँ तुम्हारा बहुत-बहुत ऊंच पद है। बाप सिर्फ तुमको पढ़ाते हैं। भगवानुवाच, मैं तुमको डबल सिरताज राजाओं का राजा बनाता हूँ, तो अपनी तकदीर पर तुमको बहुत खुश रहना चाहिए। वाह! बाबा आ करके क्या हमारी तकदीर बनाते हैं, जो पत्थर जैसे जीवन को हीरे जैसा बना देते हैं! अच्छा !
मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ऊंच पद पाने के लिए बहुत-बहुत शान्तचित रहना है, मीठा बनना है, सबके साथ प्यार से चलना है।
2) जो कुछ बाबा को अर्पण कर दिया, उसे भूल जाना है, उसकी याद भी न आये। कभी यह संकल्प भी न आये कि हम बाबा को देते हैं।
वरदान: स्मृति स्वरूप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करने वाले सहज पुरुषार्थी भव!
सदा शक्तिशाली, विजयी वही रह सकते हैं जो स्मृति स्वरूप हैं, उन्हें ही सहज पुरुषार्थी कहा जाता है। वे हर परिस्थिति में सदा अचल रहते हैं, भल कुछ भी हो जाए, परिस्थिति रूपी बड़े से बड़ा पहाड़ भी आ जाए, संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जाएं, प्रकृति भी पेपर ले लेकिन अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलने नहीं देते। बीती की हलचल को भी स्मृति में लाने के बजाए फुलस्टॉप लगा देते हैं। उनके पास कभी अलबेलापन नहीं आ सकता।
स्लोगन: ज्ञान की पराकाष्ठा पर पहुंचना है तो गुप्त रूप से पुरुषार्थ करो।
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Mithe bacche - Heere jaisa jeevan banane wale Baap ko bahut khushi-khushi se yaad karo to junk nikal jayegi.
Q- Mala ka dana kaun banenge, uska purusharth kya hai?
A-Mala ka dana wohi banenge jise ant me kuch bhi yaad na pade. Aise bacche jo karmathit avastha ko payenge wohi mala ka dana banenge. Koi bahut dhanvan hain, anek karkhane adi hain...... to wo sab bhoolna pade. Kisi se bhi mamatwa na rahe. Mera-mera na ho. Bas yah bhai (aatma) hai, yahi roohani connection hai aur koi connection nahi. Aise roohani connection rakhne wale, sab kuch bhoolne wale bacche he mala me aa sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Oonch pad paane ke liye bahut-bahut shantchit rehna hai, mitha banna hai, sabke saath pyar se chalna hai.
2) Jo kuch Baba ko arpan kar diya, usey bhool jana hai, uski yaad bhi na aaye. Kabhi yah sankalp bhi na aaye ki hum Baba ko dete hain.
Vardaan:-- Smruti swaroop ke vardan dwara sada shaktishali sthiti ka anubhav karne wale Sahaj Purusharthi bhava
Slogan:-- Gyan ki parakastha par pahunchna hai to gupt roop se purusharth karo.
Hindi Version in Details –14/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को बहुत खुशी-खुशी से याद करो तो जंक निकल जायेगी”
प्रश्न: माला का दाना कौन बनेंगे, उसका पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:
माला का दाना वही बनेंगे जिसे अन्त में कुछ भी याद न पड़े। ऐसे बच्चे जो कर्मातीत अवस्था को पायेंगे वही माला का दाना बनेंगे। कोई बहुत धनवान हैं, अनेक कारखाने आदि हैं... तो वह सब भूलना पड़े। किसी मे भी ममत्व न रहे। मेरा-मेरा न हो। बस यह भाई (आत्मा) है, यही रूहानी कनेक्शन है और कोई कनेक्शन नहीं। ऐसे रूहानी कनेक्शन रखने वाले, सब कुछ भूलने वाले बच्चे ही माला में आ सकते हैं।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो जरूर पक्का निश्चय हो गया होगा कि हम आत्मा हैं और परमात्मा बाप के बच्चे हैं, तो सभी ब्रदर्स ही हैं। ब्रदर्स को बाप ने डायरेक्शन दिया है कि मुझ पतित-पावन बाप को याद करो। तो याद करते हो या बुद्धि का योग कहाँ और जगह भटकता है? माया भटकायेगी जरूर, न चाहते हुए भी तुम्हारी बुद्धि कहाँ न कहाँ भागती रहेगी। बच्चों के अन्दर चलना चाहिए कि बाबा ने हमको सृष्टि चक्र का ज्ञान दिया है, 84 जन्मों की कहानी पढ़ाई है। यह 84 का चक्र पूरा हुआ है। हम फिर से घर जाते हैं, अनेक बार हम याद की यात्रा से पवित्र बन करके घर गये हैं। तुम्हारी बुद्धि में आता है कि हम सब भाई-भाई हैं, इसमें जिस्म की कोई बात ही नहीं है। तुम जिस्म को याद नहीं करो। सिर्फ हम आत्मा हैं - हम ही पावन, सतोप्रधान थे, अब पतित बने हैं तो हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को खुशी से याद करना है, जिससे जंक निकल जाये। तो बाप समझाते हैं बच्चे पहले-पहले अपने को आत्मा समझो, यह भी ज्ञान है फिर बाप को याद करो - यह है विज्ञान क्योंकि आत्मा को ज्ञान से परे विज्ञान में, शान्त घर में जाना है। आत्मा का स्वधर्म भी शान्त है और घर भी शान्त है। तो पहले हमको वहाँ पहुंचने का है। बाबा भी वहाँ से आये हुए हैं। परन्तु मनुष्यों को इन सब बातों का पता नहीं है।
यह पारलौकिक बाप सन्मुख बैठ करके समझाते हैं, बच्चों मैं परमधाम से तुम बच्चों के पास आया हुआ हूँ, ड्रामा के प्लैन अनुसार। क्यों आया हूँ? तुमको वापस ले जाने के लिये। अभी तुम पतित विकारी हो गये हो। जन्म-जन्मान्तर विकार से ही पैदा हुए हो इसलिए भ्रष्टाचारी कहा जाता है। तो हम भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी कैसे बनें - यह बाप समझाते हैं, बच्चे मुझे याद करो तो पवित्र श्रेष्ठचारी बन जायेंगे। इस याद में तुम सबकुछ कर सकते हो। ऐसे नहीं कि धन्धाधोरी नहीं कर सकते हो।
बच्चे, बाप से पूछते हैं बाबा माला के दाने कौन बनेंगे? बच्चे, माला का दाना वही बनेंगे जो कर्मातीत अवस्था को पायेंगे। जिसको अन्त में कुछ भी याद न पड़े। कोई बहुत धनवान हैं, अनेक कारखाने आदि हैं... तो वह सब भूलना पड़े। तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है। तुम जानते हो हम बाप के बच्चे हैं, भाई हैं। हमारा किसी में भी ममत्व नहीं है। मेरा-मेरा तो नहीं है ना! बस यह भाई है, यही कनेक्शन है और कोई कनेक्शन नहीं। इसे कहा जाता है रूहानी कनेक्शन। इतनी सारी आयु तो देह ही याद आई, आत्मा तो किसको याद ही नहीं आई। यह भी ड्रामा बना हुआ है, तो यह बातें बाप समझाते हैं और पावन बनने के लिए पुरुषार्थ कराते हैं। बाबा तुम बच्चों को टाइम तो देते हैं सिर्फ 8 घण्टा मुझे याद करो। वह है हद की सर्विस, यह है सारे वर्ल्ड की सर्विस। जरूर खायेंगे, पियेंगे, सोयेंगे, घूमेंगे.... सारा दिन तो कोई याद भी नहीं कर सकते। तुम बरोबर अभी बेहद की सर्विस करते हो। जैसे बाप विचार सागर मंथन करते हैं, ऐसे तुम बच्चों को भी मंथन करना सिखलाते हैं, करन-करावनहार है ना, तो तुमको करके ही सिखलाते हैं। पुरुषार्थ करते-करते तुम्हारी विजयी माला बन जायेगी। सतयुग त्रेता में जो भी आते हैं वह विजयी होते हैं। फिर सब एक्टर्स इस नाटक में पार्ट बजाने के लिए नम्बरवार आते हैं। सब इकट्ठे तो नहीं आ जायेंगे। तुम सभी एक्टर्स के रहने का स्थान ब्रह्म लोक है, वहाँ से यहाँ आ करके शरीर लेते हो। यह सब बातें बहुत सहज हैं, जो तुम बच्चों को ही याद रहती हैं। तुम्हारा घर स्वीट होम, साइलेन्स होम है। दूसरा कोई भी अपने घर को नहीं जानता है। वह तो कह देते हैं हम लीन हो जायेंगे। जैसे सागर से बुदबुदा निकलता है फिर उसी में समा जाता है, ऐसे हम भी उस ब्रह्म में लीन हो जाते हैं.. फिर कह देते हैं जहाँ देखो वहाँ ब्रह्म ही ब्रह्म है। वो ब्रह्म को ही ईश्वर समझते हैं इसलिए तुम्हारी बातें उनकी बुद्धि में बैठती नहीं हैं। तुम उनको उल्टा समझेंगे वो तुमको उल्टा समझेंगे क्योंकि उनका धर्म ही अपना है। परन्तु तुम जानते हो सभी आत्मायें शान्तिधाम में जरूर जायेंगी। बाकी हर एक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। इसको ही तो वन्डर कहते हैं। तुम बच्चे अभी कितनी महीनता में जाते हो, आत्मा कितनी छोटी है, कैसे पार्ट बजाती है। तो यह ज्ञान जैसे बाप के पास है, वह ज्ञान का सागर है, ऐसे तुम बच्चों के पास भी है, तुम अभी ऐसे ज्ञानवान बनते जाते हो। वह हैं भक्तिवान, तुम हो ज्ञानवान। भक्तिवान माना रात के रहने वाले और ज्ञानवान माना दिन के रहने वाले। आधाकल्प तुम सुखधाम में रहते हो, आधाकल्प दु:खधाम में रहते हो, इसको कहा जाता है दूरांदेशी, तुम्हारी बुद्धि अभी बहुत दूर-दूर जाती है - हम आत्मा स्वीट होम, ब्रह्माण्ड के रहने वाले हैं। बाप इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, क्योंकि वह नॉलेजफुल है, उनको झाड़ की नॉलेज है। तुम अभी शरीर का भान मिटाने के लिये अपने को आत्मा समझते हो। दूसरी कोई भी चीज़ याद न आये। पूरा आत्म-अभिमानी बन जाना है। मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, मेरे पास कुछ है ही नहीं जो आत्मा को याद पड़े। गाया जाता है अन्तकाल जो जो सिमरे, तो अगर कोई भी चीज़ होगी तो जरूर वह याद आयेगी। यह विचार करने की बात है। अगर कुछ भी है, कोई मित्र सम्बन्धी आदि भी हैं तो याद आयेगा जरूर। तुमने तो अपना सब कुछ शिवबाबा को दे दिया, फिर ऐसे नहीं समझो कि यह मेरी चीज़ है। जब बाबा को दे दिया फिर तुमको याद ही क्यों आये, तुम भूल जाओ। अगर वह याद पड़ता रहता है तो वो भी पिछाड़ी में नुकसान कर देगा। अभी तुमको यह सब नई-नई बातें मिलती हैं। पुरानी कोई भी चीज़ तुम्हारे पास नहीं है। जैसे पुरानी चीजें सब करनीघोर को दे देते हैं ना। ऐसे तुम भी अपना सब कुछ दे देते हो फिर याद नहीं आनी चाहिए। बस यही याद रहे कि मैं भाई (आत्मा) हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, मेरे पास कुछ भी है ही नहीं। शरीर भी नहीं है। फिर नई दुनिया में सब नई चीज़ें मिलेंगी। वहाँ तो हीरे जवाहरात के महलों में जायेंगे। तो वह भविष्य की बात हुई। बाबा पूछते हैं बच्चे तुम क्या बनेंगे, तो बच्चे कहते हैं बाबा हम तो नारायण बनेंगे। यह तो खुशी की बात हुई ना। परन्तु अभी जब कोई भी पुरानी चीज़ याद न आये तब माला का दाना बनेंगे। 108 की माला तो राजाई की है। मन्दिरों में फिर 16108 की भी माला रखी होती है। तो माला के दाने बहुत ही बनेंगे। जितना जल्दी आयेंगे उतना सुख पायेंगे। जो पीछे आते हैं उन्होंने इतना सुख नहीं पाया है, उनके लिए थोड़ा टाइम सुख है तो दु:ख भी कम ही पायेंगे।
तो बाबा कहते हैं बच्चे यह ख्याल रखो कि पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये। जो अर्पण किया हुआ है वह भी याद नहीं आना चाहिए। बाप कहते हैं मैं ऐसी कोई चीज़ नहीं लेता हूँ जो रह जावे और उसका वहाँ भरकर देना पड़े, क्योंकि मैं गरीबनिवाज़ हूँ। कई हैं जो देकरके फिर जब कोई कारण से भागन्ती हो जाते हैं तो मांगने लग पड़ते हैं। माया उनको एकदम डस लेती है। नहीं तो कहते हैं चाहे मारो चाहे प्यार करो, यह मस्ताना तुम्हारा दर कभी नहीं छोड़ेगा। कभी नहीं भूलेगा। तुम बच्चे यहाँ नर से नारायण बनने के लिये आये हो, तुम्हें कितना बड़ा वर्सा मिलता है, फिर यह क्यों कहते हो कि हम देते हैं। तुम तो लेते हो ना। कौन कहता है तुम कुछ दो। बाकी कोई एक पैसा भी देंगे तो वहाँ उनके लिए महल बन जायेगा। जैसे सुदामा ने चावल मुट्ठी दी। तो बच्चे सुदामा मिसल दाल चावल ले आते हैं, समझते हैं कि हमको महल मिल जायेंगे। ऐसे बच्चों पर बाप बहुत खुश होते हैं वाह! इनके नई दुनिया में महल बनने वाले हैं क्योंकि बहुत प्यार और सद्भावना से ले आते हैं। अहो भाग्य ऐसे बच्चों का, बहुत ऊंचा पद पायेंगे।
अभी ड्रामा के प्लैन अनुसार बाबा और तुम बच्चों की कदम-कदम वही चाल चलती है जो कल्प-कल्प चली है। तुम्हारे कदम-कदम में पदम हैं। देवताओं के पैर में पदम दिखाते हैं तो इसका भी कोई अर्थ होगा ना। अभी तुम्हारी पदमों की आमदनी होती रहती है। तुम बाबा के पास पदमापदमपति बनने के लिए आते हो। तो तुम इतने महान, महान, महान भाग्यशाली हो परन्तु उसमें भी फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं। तुम्हारा पुरुषार्थ कल्प-कल्प वही ड्रामा के प्लैन अनुसार चलता है, जैसेकि ड्रामा तुमको पुरुषार्थ कराता रहता है। ईश्वर भी ड्रामा के अनुसार तुम्हें मत देते हैं। तो ड्रामा के वश हुए ना। फिर यह ड्रामा किसके वश है? बच्चे, ड्रामा अनादि बना हुआ है, यह कोई नहीं कह सकता है कि ड्रामा कब बना? यह तो चलता ही रहता है। ड्रामा में नम्बरवन मत मिलती है ईश्वर की इसलिए उसको कहा जाता है - ईश्वरीय मत, जो तुम्हें देवता बनाती है और मनुष्य की मत छी-छी बनाती है। ईश्वरीय मत से तुम मनुष्य से देवता बनते हो। फिर 21 जन्मों के बाद मनुष्य मत पर मनुष्य बन जाते हो। अभी यह गीता का एपीसोड संगमयुग है जबकि दुनिया बदलती है। तो यह बच्चों की बुद्धि में होना चाहिए और बच्चों को बहुत-बहुत मीठा बनना चाहिए। प्यार से चलना होता है। जो बच्चे शान्त और मीठे हैं, उनका पद भी ऊंचा होगा। अभी तुम्हें ईश्वरीय बुद्धि मिली है, तुम समझते हो कि हम बेहद के बाबा की सन्तान बने हैं, बाबा से वर्सा ले रहे हैं। तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं बच्चे स्वर्ग से भी यहाँ तुम्हारा बहुत-बहुत ऊंच पद है। बाप सिर्फ तुमको पढ़ाते हैं। भगवानुवाच, मैं तुमको डबल सिरताज राजाओं का राजा बनाता हूँ, तो अपनी तकदीर पर तुमको बहुत खुश रहना चाहिए। वाह! बाबा आ करके क्या हमारी तकदीर बनाते हैं, जो पत्थर जैसे जीवन को हीरे जैसा बना देते हैं! अच्छा !
मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ऊंच पद पाने के लिए बहुत-बहुत शान्तचित रहना है, मीठा बनना है, सबके साथ प्यार से चलना है।
2) जो कुछ बाबा को अर्पण कर दिया, उसे भूल जाना है, उसकी याद भी न आये। कभी यह संकल्प भी न आये कि हम बाबा को देते हैं।
वरदान: स्मृति स्वरूप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करने वाले सहज पुरुषार्थी भव!
सदा शक्तिशाली, विजयी वही रह सकते हैं जो स्मृति स्वरूप हैं, उन्हें ही सहज पुरुषार्थी कहा जाता है। वे हर परिस्थिति में सदा अचल रहते हैं, भल कुछ भी हो जाए, परिस्थिति रूपी बड़े से बड़ा पहाड़ भी आ जाए, संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जाएं, प्रकृति भी पेपर ले लेकिन अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलने नहीं देते। बीती की हलचल को भी स्मृति में लाने के बजाए फुलस्टॉप लगा देते हैं। उनके पास कभी अलबेलापन नहीं आ सकता।
स्लोगन: ज्ञान की पराकाष्ठा पर पहुंचना है तो गुप्त रूप से पुरुषार्थ करो।
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Details ( Page:- Murali 15-Oct 2017 )
Hinglish Summary 15/10/17 – AVYAKT BAPDADA MADHUVAN PRATAH MURLI
Headline – Viswa Shanti sammelan ke samapti samaroh par pran avyakt bapdada ke madhur anmol mahavakya.
Vardan – Baap dwara prapt hue sarb khajano ko karya mei lagakar badhanewale gyani-yoi tu atma bhav.
Slogan – Swabhav aur vicharo mei antar hote hue bhi sneh mei antar ni hona chahiye.
Hindi Version in Details –15/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 15-02-83
विश्व शान्ति सम्मेलन के समाप्ति समारोह पर प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य
आज बेहद का बाप सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी बच्चों को देख रहे हैं। जिस भी बच्चे को देखें, हरेक, एक दो से श्रेष्ठ आत्मा है। तो बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की, सेवाधारी आत्मा की विशेषता को देख रहे हैं। बापदादा को हर्ष है कि हरेक बच्चा इस विश्व परिवर्तन के कार्य में आधारमूर्त, उद्धारमूर्त है। सभी बच्चे बापदादा के कार्य में सदा सहयोगी आत्मा हैं। ऐसे सहयोगी, सहजयोगी श्रेष्ठ विशेष आत्माओं को वा सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को देख बापदादा अति स्नेह के सुनहरी पुष्पों से बच्चों की स्वागत और मुबारक की सेरीमनी मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे को मस्तकमणि, सन्तुष्ट मणि, हृदयमणि जैसे चमकते हुए स्वरूप में देखते हैं। बापदादा भी सदा एक गीत गाते रहते हैं, कौन सा गीत गाते हैं, जानते हो ना? यही गीत गाते - वाह मेरे बच्चे वाह! वाह मीठे बच्चे वाह! वाह प्यारे ते प्यारे बच्चे वाह! वाह श्रेष्ठ आत्मायें वाह! ऐसा ही निश्चय और नशा सदा रहता है ना। सारे कल्प में ऐसा भाग्य प्राप्त नहीं हो सकता जो भगवान बच्चों के गीत गाये। भक्त, भगवान के गीत बहुत गाते हैं। आप सबने भी बहुत गीत गाये हैं। लेकिन ऐसे कब सोचा कि कब भगवान भी हमारे गीत गायेंगे! जो सोचा नहीं था वह साकार रूप में देख रहे हो। विश्व शान्ति की कानफ्रेन्स कर ली। सभी बच्चों ने मुख द्वारा बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाई और मन द्वारा सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना के शुभ संकल्प के वायब्रेशन भी चारों ओर ज्ञान सूर्य बन फैलाए। लेकिन बाप दादा सभी भाषण करने वालों का सार सुना रहे हैं। आप लोगों ने तो चार दिन भाषण किये और बापदादा एक सेकण्ड का भाषण करते हैं। वह दो शब्द हैं “रियलाइजेशन और सोल्युशन”। जो भी आप सबने बोला उसका सार रियलाइजेशन ही है। आत्मा को नहीं भी समझें लेकिन मानव के मूल्य को जानें तो भी शान्ति हो जाए। मानव विशेष शक्तिशाली स्वरूप है। अगर यह भी रियलाइज कर लें तो मानव के हिसाब से भी मानव धर्म 'स्नेह' है न कि लड़ाई झगड़ा। इससे आगे चलो - मानव जीवन का व मानवता का आधार आत्मा पर है। मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ, यह रियलाइज कर लें तो शान्ति तो स्वधर्म हो जायेगा। फिर आगे चलो - मै श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्व शक्तिवान की सन्तान हूँ, यह रियलाइजेशन निर्बल से शक्ति स्वरूप बना देगी। शक्ति स्वरूप आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकती है, इसलिए सुनाया कि सारे भाषणों का सार एक ही है 'रियलाइजेशन' तो बापदादा ने सभी भाषण सुने हैं ना।! बाप दादा सदा बच्चों के साथ हैं ही। अच्छा।
सभी सेवा में समर्पित बच्चों को, सभी ज़ोन से आये हुए बच्चों को, एक-एक यही समझे कि बापदादा मेरे को कह रहे हैं। एक एक से बात कर रहे हैं। सभी बच्चों ने जो प्रत्यक्ष सबूत दिखाया, उसके रिटर्न में बापदादा हरेक बच्चे को नाम सहित, रूप तो देख रहे हैं, नाम सहित मुबारक दे रहे हैं। अब तो जब आप समय परिवर्तन की सूचना दे रहे हो, तो बापदादा के मिलने का भी परिवर्तन होगा ना। आप सबका संकल्प है हमारा परिवार वृद्धि को पाए तो पुरानों को त्याग करना पड़ेगा। लेकिन यह त्याग ही भाग्य है। दूसरों को आगे बढ़ाना ही स्वंय को आगे बढ़ाना है। ऐसे नहीं समझना क्यों बाप दादा को विदेशी बच्चे प्रिय हैं, देश वाले नहीं हैं! वा कोई विशेष बच्चे प्रिय हैं। बापदादा के लिए तो हरेक बच्चा दिल का सहारा, मस्तक के ताज की मणि है इसलिए बापदादा सबसे पहले अपने राइट हैण्डस सहयोगी बच्चों को अति दिल व जान, सिक व प्रेम से याद दे रहे हैं। यह तो जरूर है दूर से आने वाले, सम्पर्क में आने वालों को सम्बन्ध में लाने के लिए आप सभी खुशी-खुशी उन्हीं को आगे बढ़ा रहे हो और बढ़ाते रहेंगे।
इस समय सब सेवा के प्रति आये हो इसलिए यह भी सेवा हो गई। हरेक ज़ोन का नाम लेवें क्या? अगर एक नाम लेंगे तो कोई रह जाए तो? इसलिए सभी ज़ोन समझें कि बापदादा मुझे पहला नम्बर रख रहे हैं। सर्व देश के वा विदेश के, अब तो सभी मधुबन निवासी हो, इसलिए सर्व विश्व शान्ति हाल में उपस्थित बच्चों को, ओम् शान्ति भवन निवासी बच्चों को बाप दादा, सदा याद में रहो, याद दिलाते रहो, हर कदम यादगार चरित्र बनाते चलते चलो। हर सेकेण्ड अपने प्रैक्टिकल लाइफ के आइने द्वारा सर्व आत्माओं को 'स्व' का, बाप का साक्षात्कार कराते चलो, ऐसे वरदानी महादानी सदा सम्पन्न बच्चों को बापदादा का याद प्यार ओर नमस्ते।
राबर्ट मूलर (असिस्टेन्ट पोट्री जनरल यू.एन.ओ) के प्रति महावाक्य
सेवा में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हो। जैसे मन में यह श्रेष्ठ संकल्प रखा कि जिस कार्य के लिए निमित्त बने हो वह करके ही दिखायेंगे। यह संकल्प बापदादा और सारे ब्राह्मण परिवार के सहयोग से साकार में आता ही रहेगा। संकल्प बहुत अच्छा है। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे सोचते हो। अभी इसी प्लैन के बीच में जब यह प्रिचुअल पावर एड हो जायेगी तो यह प्लैन साकार रूप लेते रहेंगे। बापदादा के पास बच्चों के सभी उमंग पहुंचते रहते हैं। सदा अटल रहना। हिम्मतवान बनकर आगे बढ़ते जाना। वह दिन भी इस ऑखों से दिखाई देगा कि विश्व शान्ति का झण्डा विश्व के चारों ओर लहरायेगा इसलिए आगे बढ़ते चलो। दुनिया वाले दिलशिकस्त बनायेंगे। आप मत बनाना। एक बल एक भरोसा, इसी निश्चय से चलते रहना। जिस समय कोई भी परिस्थिति आये तो बाप को साथी बना लेना, तो ऐसा अनुभव करेंगे कि मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ विशेष शक्ति है। स्वप्न पूरा हो जायेगा। जहाँ बाप है, वहाँ कितने भी चाहे तूफान हों, वह तोफा बन जायेंगे। 'निश्चय बुद्धि विजयन्ति' - यह टाइटल याद रखना कि मैं निश्चय बुद्धि विजयी रत्न हूँ। अच्छा
स्टीव नारायण (वाइस प्रेजिडेन्ट, गयाना) के प्रति महावाक्य:- अपने को बाप के दिलतख्तनशीन समीप रत्न अनुभव करते हो? दूरदेश में रहते भी दिल से दूर नहीं हो। बच्चों का सर्विस में उमंग उल्लास देख बापदादा हर्षित होते हैं और नम्बरवन देते हैं। सदा उड़ती कला में रहने वाले, बापदादा के नूरे रत्न हो इसलिए बापदादा मुबारक देते हैं।
(आन्टी बेटी से) - आपको नया जन्म लेते ही आशीर्वाद मिली हुई है कि आप सर्विसएबुल हो। अनुभवीमूर्त हो। ग्याना में रहते हुए भी विश्व सेवा अर्थ निमित्त मूर्त हो और रहेंगी। याद द्वारा बाप के सहयोग और वरदानों का अनुभव होता है ना! आपकी याद बाप को पहुंचती रहती है। सर्व संकल्प सिद्ध होते रहते हैं ना! आप एक श्रेष्ठ आत्मा के एक ही श्रेष्ठ संकल्प से सारा परिवार श्रेष्ठ पद को पा रहा है। पद्मापद्म भाग्यशाली हो।
“विश्व शान्ति सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले भाई-बहनों के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश” - (गुल्जार दादी जी)
सदा की रीति प्रमाण आज जैसे ही मैं वतन में पहुँची तो बापदादा बहुत मीठी नज़र से दृष्टि द्वारा सर्व बच्चों को यादप्यार दे रहे थे। बाबा की दृष्टि से आज ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे अति शान्ति, शक्ति, प्रेम और आनन्द की किरणें निकल रही हों। ऐसे रूहानी दृष्टि जिससे चार ही बातों की प्राप्ति हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे हम बहुत कुछ पा रहे हैं। ऐसे बापदादा ने हम सभी बच्चों का स्वागत किया और बोले बच्ची, सभी की याद लाई हो? मैंने कहा - याद तो लाई हूँ लेकिन सबके आह्वान का संकल्प भी लाई हूँ, तो बाबा बोले इस समय तो मेरे इतने प्यारे बच्चे, जो भी आये हैं, जानने के लिए आये हैं, ऐसा भी दिन आयेगा जो फिर मिलने के लिए आयेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों का दृश्य वतन में रहते ही भी सदा देखते रहते हैं। ऐसा कहते बाबा ने एक दृश्य दिखाया - जैसे भारत देश में भक्त लोग मन्दिरों में शिवलिंग की प्रतिमा बनाते हैं। ऐसे वतन में भी एक प्रतिमा दिखाई दी लेकिन उस प्रतिमा का गोल आकार था और उस गोल आकार में अनेक चमकते हुए हीरे चारों ओर नज़र आ रहे थे। उन चमकते हुए हीरों पर चार प्रकार की लाइट पड़ रही थी। एक रंग था सफेद, दूसरा हरा, तीसरा हल्का ब्ल्यु और चौथा गोल्ड। थोड़े समय में वह लाइट शब्दों में बदल गई। सफेद लाइट के अक्षरों से लिखा था 'शान्ति'। दूसरे पर 'उमंग', तीसरे पर 'उत्साह' और चौथी लाइट से 'सेवा'।
तो बाबा बोले सभी बच्चों ने बहुत ही उमंग-उत्साह और शान्ति के संकल्प द्वारा विश्व की सेवा की। एक-एक आत्मा संगठित रूप में देखो कितनी चमक रही है। फिर बाबा ने कहा मेरे बच्चे मुझे यथा शक्ति जान पाये हैं, फिर भी हैं तो मेरे ही बच्चे। मेरे सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार देना। जो भी बच्चे आये हैं। सबके मुख से यह आवाज तो निकलनी है कि हम अपने घर में आये हैं - बापदादा बच्चों की यह आवाज़ सुनकर मुस्कराते हैं। जब बच्चे घर में आये हैं तो पूरा अधिकार लेने आये हैं, या थोड़ा सा? तो बाबा ने कहा - सागर के किनारे पर आकर गागर भरकर नहीं जाना लेकिन मास्टर सागर बनकर जाना। खान पर आकर दो मुट्ठी भर नहीं जाना। फिर बापदादा ने तीन प्रकार के बच्चों को तीन प्रकार की सौगात दी।
1. बाबा बोले - मेरे कलमधारी बच्चे (प्रेस वाले) जो आये हैं उन्हें बापदादा कमल पुष्प की सौगात देते हैं। मेरे कलमधारी बच्चों को कहना कि सदा कमल आसनधारी बन सारे विश्व के तमोगुणी वायब्रेशन से न्यारे और पिता परमात्मा के प्यारे बनें। अगर ऐसी स्थिति में स्थित हो कलम चलायेंगे तो आपका व्यवहार भी सिद्ध हो जायेगा और परमार्थ भी सिद्ध हो जायेगा।
2. वी.आई.पी. बच्चे जो भी आयें, उन्हों को बाबा ने सिंहासन नहीं लेकिन हंस-आसन दिया। बाबा बोले - यह जो भी मेरे वी.आई.पी. बच्चे आये हैं उन्हों के मुख में शक्ति है। इन्हें मैं हंस-आसन देता हूँ। इस आसन पर बैठकर फिर कोई कार्य करना। हंस-आसन पर बैठने से आपकी निर्णय शक्ति श्रेष्ठ होगी और जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता होगी। जैसे कुर्सी पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस-आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी।
3. सरेन्डर सेवाधारी बच्चों को बापदादा ने एक बहुत अच्छा लाइट के फूलों का बना हुआ हार दिया। हरेक लाइट पर कोई न कोई दिव्यगुण लिखा था। तो बाबा बोले, ये मेरे बच्चे सर्वगुण धारण करने वाले गुणमूर्त बच्चे हैं। सभी बच्चों ने एक बल एक मत होकर जो यह बेहद की सेवा की, उसके रिटर्न में बापदादा यह दिव्यगुणों की माला सभी बच्चों को सौगात रूप में देते हैं। और लास्ट में कहा सभी बच्चों को बापदादा के यही महावाक्य सुनाना कि सदा खुश रहना, खुशनसीब बनना और सर्व को खुशी के वरदानों से, खज़ानों से सम्पन्न बनाते रहना। ऐसे मधुर महावाक्य सुनते, यादप्यार देते और लेते मैं अपने साकार वतन में पहुंच गई।
वरदान: वरदान: बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले ज्ञानी-योगी तू आत्मा भव!
बापदादा ने बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है लेकिन जो समय पर हर खजाने को काम में लगाते हैं उनका खजाना सदा बढ़ता जाता है। वे कभी ऐसे नहीं कह सकते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। खजानों से सम्पन्न ज्ञानी-योगी तू आत्मायें पहले सोचती हैं फिर करती हैं। उन्हें समय प्रमाण टच होता है वे फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हैं। एक सेकण्ड भी करने के बाद सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।
स्लोगन: स्वभाव और विचारों में अन्तर होते हुए भी स्नेह में अन्तर नहीं होना चाहिए।
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Headline – Viswa Shanti sammelan ke samapti samaroh par pran avyakt bapdada ke madhur anmol mahavakya.
Vardan – Baap dwara prapt hue sarb khajano ko karya mei lagakar badhanewale gyani-yoi tu atma bhav.
Slogan – Swabhav aur vicharo mei antar hote hue bhi sneh mei antar ni hona chahiye.
Hindi Version in Details –15/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 15-02-83
विश्व शान्ति सम्मेलन के समाप्ति समारोह पर प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य
आज बेहद का बाप सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी बच्चों को देख रहे हैं। जिस भी बच्चे को देखें, हरेक, एक दो से श्रेष्ठ आत्मा है। तो बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की, सेवाधारी आत्मा की विशेषता को देख रहे हैं। बापदादा को हर्ष है कि हरेक बच्चा इस विश्व परिवर्तन के कार्य में आधारमूर्त, उद्धारमूर्त है। सभी बच्चे बापदादा के कार्य में सदा सहयोगी आत्मा हैं। ऐसे सहयोगी, सहजयोगी श्रेष्ठ विशेष आत्माओं को वा सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को देख बापदादा अति स्नेह के सुनहरी पुष्पों से बच्चों की स्वागत और मुबारक की सेरीमनी मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे को मस्तकमणि, सन्तुष्ट मणि, हृदयमणि जैसे चमकते हुए स्वरूप में देखते हैं। बापदादा भी सदा एक गीत गाते रहते हैं, कौन सा गीत गाते हैं, जानते हो ना? यही गीत गाते - वाह मेरे बच्चे वाह! वाह मीठे बच्चे वाह! वाह प्यारे ते प्यारे बच्चे वाह! वाह श्रेष्ठ आत्मायें वाह! ऐसा ही निश्चय और नशा सदा रहता है ना। सारे कल्प में ऐसा भाग्य प्राप्त नहीं हो सकता जो भगवान बच्चों के गीत गाये। भक्त, भगवान के गीत बहुत गाते हैं। आप सबने भी बहुत गीत गाये हैं। लेकिन ऐसे कब सोचा कि कब भगवान भी हमारे गीत गायेंगे! जो सोचा नहीं था वह साकार रूप में देख रहे हो। विश्व शान्ति की कानफ्रेन्स कर ली। सभी बच्चों ने मुख द्वारा बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाई और मन द्वारा सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना के शुभ संकल्प के वायब्रेशन भी चारों ओर ज्ञान सूर्य बन फैलाए। लेकिन बाप दादा सभी भाषण करने वालों का सार सुना रहे हैं। आप लोगों ने तो चार दिन भाषण किये और बापदादा एक सेकण्ड का भाषण करते हैं। वह दो शब्द हैं “रियलाइजेशन और सोल्युशन”। जो भी आप सबने बोला उसका सार रियलाइजेशन ही है। आत्मा को नहीं भी समझें लेकिन मानव के मूल्य को जानें तो भी शान्ति हो जाए। मानव विशेष शक्तिशाली स्वरूप है। अगर यह भी रियलाइज कर लें तो मानव के हिसाब से भी मानव धर्म 'स्नेह' है न कि लड़ाई झगड़ा। इससे आगे चलो - मानव जीवन का व मानवता का आधार आत्मा पर है। मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ, यह रियलाइज कर लें तो शान्ति तो स्वधर्म हो जायेगा। फिर आगे चलो - मै श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्व शक्तिवान की सन्तान हूँ, यह रियलाइजेशन निर्बल से शक्ति स्वरूप बना देगी। शक्ति स्वरूप आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकती है, इसलिए सुनाया कि सारे भाषणों का सार एक ही है 'रियलाइजेशन' तो बापदादा ने सभी भाषण सुने हैं ना।! बाप दादा सदा बच्चों के साथ हैं ही। अच्छा।
सभी सेवा में समर्पित बच्चों को, सभी ज़ोन से आये हुए बच्चों को, एक-एक यही समझे कि बापदादा मेरे को कह रहे हैं। एक एक से बात कर रहे हैं। सभी बच्चों ने जो प्रत्यक्ष सबूत दिखाया, उसके रिटर्न में बापदादा हरेक बच्चे को नाम सहित, रूप तो देख रहे हैं, नाम सहित मुबारक दे रहे हैं। अब तो जब आप समय परिवर्तन की सूचना दे रहे हो, तो बापदादा के मिलने का भी परिवर्तन होगा ना। आप सबका संकल्प है हमारा परिवार वृद्धि को पाए तो पुरानों को त्याग करना पड़ेगा। लेकिन यह त्याग ही भाग्य है। दूसरों को आगे बढ़ाना ही स्वंय को आगे बढ़ाना है। ऐसे नहीं समझना क्यों बाप दादा को विदेशी बच्चे प्रिय हैं, देश वाले नहीं हैं! वा कोई विशेष बच्चे प्रिय हैं। बापदादा के लिए तो हरेक बच्चा दिल का सहारा, मस्तक के ताज की मणि है इसलिए बापदादा सबसे पहले अपने राइट हैण्डस सहयोगी बच्चों को अति दिल व जान, सिक व प्रेम से याद दे रहे हैं। यह तो जरूर है दूर से आने वाले, सम्पर्क में आने वालों को सम्बन्ध में लाने के लिए आप सभी खुशी-खुशी उन्हीं को आगे बढ़ा रहे हो और बढ़ाते रहेंगे।
इस समय सब सेवा के प्रति आये हो इसलिए यह भी सेवा हो गई। हरेक ज़ोन का नाम लेवें क्या? अगर एक नाम लेंगे तो कोई रह जाए तो? इसलिए सभी ज़ोन समझें कि बापदादा मुझे पहला नम्बर रख रहे हैं। सर्व देश के वा विदेश के, अब तो सभी मधुबन निवासी हो, इसलिए सर्व विश्व शान्ति हाल में उपस्थित बच्चों को, ओम् शान्ति भवन निवासी बच्चों को बाप दादा, सदा याद में रहो, याद दिलाते रहो, हर कदम यादगार चरित्र बनाते चलते चलो। हर सेकेण्ड अपने प्रैक्टिकल लाइफ के आइने द्वारा सर्व आत्माओं को 'स्व' का, बाप का साक्षात्कार कराते चलो, ऐसे वरदानी महादानी सदा सम्पन्न बच्चों को बापदादा का याद प्यार ओर नमस्ते।
राबर्ट मूलर (असिस्टेन्ट पोट्री जनरल यू.एन.ओ) के प्रति महावाक्य
सेवा में श्रेष्ठ से श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हो। जैसे मन में यह श्रेष्ठ संकल्प रखा कि जिस कार्य के लिए निमित्त बने हो वह करके ही दिखायेंगे। यह संकल्प बापदादा और सारे ब्राह्मण परिवार के सहयोग से साकार में आता ही रहेगा। संकल्प बहुत अच्छा है। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे सोचते हो। अभी इसी प्लैन के बीच में जब यह प्रिचुअल पावर एड हो जायेगी तो यह प्लैन साकार रूप लेते रहेंगे। बापदादा के पास बच्चों के सभी उमंग पहुंचते रहते हैं। सदा अटल रहना। हिम्मतवान बनकर आगे बढ़ते जाना। वह दिन भी इस ऑखों से दिखाई देगा कि विश्व शान्ति का झण्डा विश्व के चारों ओर लहरायेगा इसलिए आगे बढ़ते चलो। दुनिया वाले दिलशिकस्त बनायेंगे। आप मत बनाना। एक बल एक भरोसा, इसी निश्चय से चलते रहना। जिस समय कोई भी परिस्थिति आये तो बाप को साथी बना लेना, तो ऐसा अनुभव करेंगे कि मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ विशेष शक्ति है। स्वप्न पूरा हो जायेगा। जहाँ बाप है, वहाँ कितने भी चाहे तूफान हों, वह तोफा बन जायेंगे। 'निश्चय बुद्धि विजयन्ति' - यह टाइटल याद रखना कि मैं निश्चय बुद्धि विजयी रत्न हूँ। अच्छा
स्टीव नारायण (वाइस प्रेजिडेन्ट, गयाना) के प्रति महावाक्य:- अपने को बाप के दिलतख्तनशीन समीप रत्न अनुभव करते हो? दूरदेश में रहते भी दिल से दूर नहीं हो। बच्चों का सर्विस में उमंग उल्लास देख बापदादा हर्षित होते हैं और नम्बरवन देते हैं। सदा उड़ती कला में रहने वाले, बापदादा के नूरे रत्न हो इसलिए बापदादा मुबारक देते हैं।
(आन्टी बेटी से) - आपको नया जन्म लेते ही आशीर्वाद मिली हुई है कि आप सर्विसएबुल हो। अनुभवीमूर्त हो। ग्याना में रहते हुए भी विश्व सेवा अर्थ निमित्त मूर्त हो और रहेंगी। याद द्वारा बाप के सहयोग और वरदानों का अनुभव होता है ना! आपकी याद बाप को पहुंचती रहती है। सर्व संकल्प सिद्ध होते रहते हैं ना! आप एक श्रेष्ठ आत्मा के एक ही श्रेष्ठ संकल्प से सारा परिवार श्रेष्ठ पद को पा रहा है। पद्मापद्म भाग्यशाली हो।
“विश्व शान्ति सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले भाई-बहनों के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश” - (गुल्जार दादी जी)
सदा की रीति प्रमाण आज जैसे ही मैं वतन में पहुँची तो बापदादा बहुत मीठी नज़र से दृष्टि द्वारा सर्व बच्चों को यादप्यार दे रहे थे। बाबा की दृष्टि से आज ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे अति शान्ति, शक्ति, प्रेम और आनन्द की किरणें निकल रही हों। ऐसे रूहानी दृष्टि जिससे चार ही बातों की प्राप्ति हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे हम बहुत कुछ पा रहे हैं। ऐसे बापदादा ने हम सभी बच्चों का स्वागत किया और बोले बच्ची, सभी की याद लाई हो? मैंने कहा - याद तो लाई हूँ लेकिन सबके आह्वान का संकल्प भी लाई हूँ, तो बाबा बोले इस समय तो मेरे इतने प्यारे बच्चे, जो भी आये हैं, जानने के लिए आये हैं, ऐसा भी दिन आयेगा जो फिर मिलने के लिए आयेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों का दृश्य वतन में रहते ही भी सदा देखते रहते हैं। ऐसा कहते बाबा ने एक दृश्य दिखाया - जैसे भारत देश में भक्त लोग मन्दिरों में शिवलिंग की प्रतिमा बनाते हैं। ऐसे वतन में भी एक प्रतिमा दिखाई दी लेकिन उस प्रतिमा का गोल आकार था और उस गोल आकार में अनेक चमकते हुए हीरे चारों ओर नज़र आ रहे थे। उन चमकते हुए हीरों पर चार प्रकार की लाइट पड़ रही थी। एक रंग था सफेद, दूसरा हरा, तीसरा हल्का ब्ल्यु और चौथा गोल्ड। थोड़े समय में वह लाइट शब्दों में बदल गई। सफेद लाइट के अक्षरों से लिखा था 'शान्ति'। दूसरे पर 'उमंग', तीसरे पर 'उत्साह' और चौथी लाइट से 'सेवा'।
तो बाबा बोले सभी बच्चों ने बहुत ही उमंग-उत्साह और शान्ति के संकल्प द्वारा विश्व की सेवा की। एक-एक आत्मा संगठित रूप में देखो कितनी चमक रही है। फिर बाबा ने कहा मेरे बच्चे मुझे यथा शक्ति जान पाये हैं, फिर भी हैं तो मेरे ही बच्चे। मेरे सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार देना। जो भी बच्चे आये हैं। सबके मुख से यह आवाज तो निकलनी है कि हम अपने घर में आये हैं - बापदादा बच्चों की यह आवाज़ सुनकर मुस्कराते हैं। जब बच्चे घर में आये हैं तो पूरा अधिकार लेने आये हैं, या थोड़ा सा? तो बाबा ने कहा - सागर के किनारे पर आकर गागर भरकर नहीं जाना लेकिन मास्टर सागर बनकर जाना। खान पर आकर दो मुट्ठी भर नहीं जाना। फिर बापदादा ने तीन प्रकार के बच्चों को तीन प्रकार की सौगात दी।
1. बाबा बोले - मेरे कलमधारी बच्चे (प्रेस वाले) जो आये हैं उन्हें बापदादा कमल पुष्प की सौगात देते हैं। मेरे कलमधारी बच्चों को कहना कि सदा कमल आसनधारी बन सारे विश्व के तमोगुणी वायब्रेशन से न्यारे और पिता परमात्मा के प्यारे बनें। अगर ऐसी स्थिति में स्थित हो कलम चलायेंगे तो आपका व्यवहार भी सिद्ध हो जायेगा और परमार्थ भी सिद्ध हो जायेगा।
2. वी.आई.पी. बच्चे जो भी आयें, उन्हों को बाबा ने सिंहासन नहीं लेकिन हंस-आसन दिया। बाबा बोले - यह जो भी मेरे वी.आई.पी. बच्चे आये हैं उन्हों के मुख में शक्ति है। इन्हें मैं हंस-आसन देता हूँ। इस आसन पर बैठकर फिर कोई कार्य करना। हंस-आसन पर बैठने से आपकी निर्णय शक्ति श्रेष्ठ होगी और जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता होगी। जैसे कुर्सी पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस-आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी।
3. सरेन्डर सेवाधारी बच्चों को बापदादा ने एक बहुत अच्छा लाइट के फूलों का बना हुआ हार दिया। हरेक लाइट पर कोई न कोई दिव्यगुण लिखा था। तो बाबा बोले, ये मेरे बच्चे सर्वगुण धारण करने वाले गुणमूर्त बच्चे हैं। सभी बच्चों ने एक बल एक मत होकर जो यह बेहद की सेवा की, उसके रिटर्न में बापदादा यह दिव्यगुणों की माला सभी बच्चों को सौगात रूप में देते हैं। और लास्ट में कहा सभी बच्चों को बापदादा के यही महावाक्य सुनाना कि सदा खुश रहना, खुशनसीब बनना और सर्व को खुशी के वरदानों से, खज़ानों से सम्पन्न बनाते रहना। ऐसे मधुर महावाक्य सुनते, यादप्यार देते और लेते मैं अपने साकार वतन में पहुंच गई।
वरदान: वरदान: बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले ज्ञानी-योगी तू आत्मा भव!
बापदादा ने बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है लेकिन जो समय पर हर खजाने को काम में लगाते हैं उनका खजाना सदा बढ़ता जाता है। वे कभी ऐसे नहीं कह सकते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। खजानों से सम्पन्न ज्ञानी-योगी तू आत्मायें पहले सोचती हैं फिर करती हैं। उन्हें समय प्रमाण टच होता है वे फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हैं। एक सेकण्ड भी करने के बाद सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।
स्लोगन: स्वभाव और विचारों में अन्तर होते हुए भी स्नेह में अन्तर नहीं होना चाहिए।
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Details ( Page:- Murali 16-Oct 2017 )
Hinglish Summary - 16.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Maya ke bighna gyan me nahi, yog me padte hain, yog ke bina padhai ki dharana nahi ho sakti, isiliye jitna ho sake yog me rehne ka purusharth karo.
Q- Baba gire huye baccho ko kis biddhi se upar utha lete hain?
A- Baba un baccho ki class me mahima karta, poochkar "pyar" deta, himmat dilata. Bacche tum to bahut achche ho. Tum to gyan ganga ban sakte ho. Tum Biswa ka mallik banne wale ho. Main to tumhe muft badshahi dene aaya hun. Tum fir kyun nahi lete? Raaho ka grahan laga hai kya? Murli padho, yog me raho to grahan utar jayega. Aise himmat dilane se bacche fir se yaad aur padhai me lag jaate hain. Is biddhi se kai baccho ki grahachari utar jati hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Deha ke sambandho ko bhool apne ko akeli aatma samajhna hai. Baap par poora-poora bali chadhna hai, isme darna nahi hai._
2) Dharmraj ki sazaon se bachne ke liye aaj ka kaam kal par nahi chhodna hai. Padhai ke aadhar se Baap ki blessing lete rehna hai.
Vardaan:- Karm aur yog ke balance dwara nirnay shakti ko badhane wale Sada Nischint bhava.
Slogan:-- Ek Baba se sarv sambandho ka ras lo aur kisi ki bhi yaad na aaye.
Hindi Version in Details –16/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - माया के विघ्न ज्ञान में नहीं, योग में पड़ते हैं, योग के बिना पढ़ाई की धारणा नहीं हो सकती, इसलिए जितना हो सके योग में रहने का पुरूषार्थ करो''
प्रश्न: बाबा गिरे हुए बच्चों को किस विधि से ऊपर उठा लेते हैं?
उत्तर:
बाबा उन बच्चों की क्लास में महिमा करता, पुचकार ''प्यार'' देता, हिम्मत दिलाता। बच्चे तुम तो बहुत अच्छे हो। तुम तो ज्ञान गंगा बन सकते हो। तुम विश्व का मालिक बनने वाले हो। मैं तो तुम्हें मुफ्त बादशाही देने आया हूँ। तुम फिर क्यों नहीं लेते? राहू का ग्रहण लगा है क्या? मुरली पढ़ो, योग में रहो तो ग्रहण उतर जायेगा। ऐसे हिम्मत दिलाने से बच्चे फिर से याद और पढ़ाई में लग जाते हैं। इस विधि से कई बच्चों की ग्रहचारी उतर जाती है।
गीत:- दूर देश का रहने वाला.... ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - दो ही अक्षर गीता के बताते हैं, जो सुनते आते हैं। यूँ गीता शास्त्र कोई स्वर्ग में था नहीं। यह तो बैठकर बाद में मनुष्यों ने बनाये हैं। तो भगवानुवाच - क्या कहते? बच्चे, मनमनाभव। अक्षर वही संस्कृत बोलते हैं जो तुम सुनते आये हो। उनका कोई अर्थ नहीं समझते। आते ही कहते हैं मनमनाभव। अगर कहे श्रीकृष्ण भगवानुवाच़ तो कृष्ण कहेंगे क्या कि मुझ परमात्मा को याद करो? तो यह झूठ हो गया ना। यहाँ परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं सालिग्रामों को कि मनमनाभव, मुझ परमात्मा को याद करो क्योंकि अब सबका मौत है। गुरू लोग, भाई-बन्धु सब जब कोई मरने की हालत में होते हैं तो कहते हैं राम कहो, कृष्ण कहो या चित्र सामने रख देते हैं, राम का, कृष्ण का, हनूमान का, गुरू आदि का। यहाँ तो सारे मनुष्य मात्र का मौत है। सभी वानप्रस्थ अवस्था में हैं। छोटे बड़े सबको वाणी से परे परमधाम, साइलेन्स वर्ल्ड में जाना है। उसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं। वह है अहम् आत्मा की दुनिया। यहाँ जब आते हैं तो आत्मा साकारी बनती है। वहाँ चोला नहीं है। यहाँ चोला धारण कर पार्ट बजाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चों को वापिस ले चलने आया हूँ। मैं कालों का काल हूँ। अमृतसर में एक अकालतख्त भी रखा है। अकाल जिसको काल खा न सके। अब कालों का काल कहते हैं, मैं तुमको वापिस ले जाता हूँ। तुमको फिर पार्ट बजाने आना है। सृष्टि के आदि में पहले किसका पार्ट चला? क्योंकि यह सृष्टि वैरायटी धर्मो का झाड़ है। सब नम्बरवार आते ह़ैं पहले है देवता धर्म। अब वह धर्म प्राय:लोप है, उसका ज्ञान भी लोप है। तो शास्त्रों में कहाँ से आया? जिस सहज राजयोग से वह देवता बने वह भी गुम है। बाकी यह गीता आदि है भक्ति की सामग्री क्योंकि यह ज्ञान तुमको यहाँ ही मिलता है। फिर उसका शास्त्र सतयुग त्रेता में होता नहीं। तो द्वापर में कहाँ से आये? वहाँ कोई तुम्हारी सच्ची गीता आदि नहीं होती है। वहाँ फिर ड्रामा अनुसार वही भक्ति मार्ग की गीता आदि बनाते हैं। कहते हैं आगे साधू महात्माओं की बुद्धि अच्छी थी। तो उन्हों ने बैठ यह शास्त्र आदि बनाये। ड्रामा अनुसार बनने ही थे। उस समय रीयल चीज़ कहाँ से आये। जैसे गांधी के साथ मोतीलाल आदि का पार्ट था। अब अगर उसका नाटक बनायें तो वह कहाँ से आयें। वह ऐसे ही आर्टीफीशियल बनायेंगे। अब ब्रह्मा का स्थापना का पार्ट चल रहा है। किस चीज़ की स्थापना? बच्चे जानते हैं देवी-देवता धर्म की स्थापना सतयुग के लिए हो रही है इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मेरे पास आ जायेंगे। यहाँ बैठे हो तो बैठकर टेप सुननी चाहिए या मुरली रिपीट करनी चाहिए या योग में बैठना चाहिए तो विकर्म विनाश हों। सारा दिन तो काम में रहते हो। वहाँ योग में मुश्किल रहते होंगे। इसमें माया विघ्न बहुत डालती है। माया ज्ञान से नहीं हटाती, योग से हटाती है। संकल्प-विकल्प योग में रहने नहीं देते। पढ़ाई में इतने विघ्न नहीं पड़ते हैं। हाँ अगर योग में नहीं होगा तो पढ़ाई की धारणा नहीं होगी। ज्ञान से योग सहज भी है। बूढ़ी मातायें जो कहती हैं हमारी बुद्धि में इतनी प्वाइंट्स नहीं बैठती हैं। तो बाबा कहते हैं अच्छा मेरी याद में रहो।
बाप कहते हैं हे भक्तों, भगत तो सब हैं। परन्तु तुम सिकीलधे भगत हो, जिन्होंने पूरा आधाकल्प भक्ति की है। सब तो पूरी भक्ति नहीं करते। कल तक जो आते रहेंगे, वह इतना समय ही भक्ति करेंगे। परन्तु तुम ही पूज्य और पुजारी बनते हो। वह भी बच्चों से मालूम पड़ जाता है। जो बच्चे बनते हैं, श्रीमत पर चलते हैं। समझते हैं यह हमारे कुल के हैं, जिनको पूरा निश्चय है कि हमको परमात्मा पढ़ाते हैं वह हैं सगे बच्चे। सगे बच्चे बलि चढ़ते, लगे बलि नहीं चढ़ते। इसमें डरना नहीं है। भक्ति में तो बलि चढ़ते आये हो, कुछ न कुछ ईश्वर अर्थ दान करते आये हो। यह भी बलि चढ़ना हुआ। फिर कहते हो परमात्मा ने पुत्र दिया, धन दिया। परन्तु मनुष्य इसका अर्थ नहीं समझते हैं। तुम अब जानते हो कि यह भी बाप भक्ति का रिटर्न अल्पकाल के लिए देते आये हैं। सतयुग में ऐसे नहीं होता। तुम भक्ति में जो करते आये हो वह सतयुग में होता नही। न कोई गरीब होता जिसको दान करें। न कोई शास्त्र होते, न मन्दिर होते। यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, जो सतयुग में होती नहीं। यह ज्ञान भी प्राय: लोप हो जाता है। वहाँ कोई पुरूषार्थ नहीं, जिसकी प्रालब्ध मिले। सारी प्रालब्ध इस समय के पुरूषार्थ की है। इस्लामी, बौद्धियों की नॉलेज तो परम्परा चलती है क्योंकि उनकी स्थापना पीछे विनाश नहीं है। तो उनको सब पता रहता है। परन्तु तुम्हारे पीछे विनाश होता है तो इसमें सब खलास हो जाता है। फिर द्वापर में वही वेद शास्त्र आदि निकलेंगे। यह सब गीता के बाल बच्चे हैं। उन सबको धर्म शास्त्र नहीं कहेंगे, क्योंकि धर्मशास्त्र उसे कहा जाता है जिससे धर्म की स्थापना हो। जैसे क्राइस्ट के महावाक्यों को कहते हैं यह मैसेन्जर के महावाक्य हैं। क्राइस्ट को गॉड फादर नहीं कहेंगे, उनको गॉड का सन (बच्चा) समझते हैं। कहते हैं गॉड ने क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने के लिए भेजा। तो उनको अपने धर्म की पालना भी करनी है। सतो, रजो, तमो में आना ही है। यह ज्ञान उनको नहीं है कि वापिस कोई नहीं जा सकते।
अच्छा - बाबा समझाते थे कि उन्होंने गीता भल बनाई है, यादगार है। देवता धर्म का शास्त्र है। परन्तु उनको झूठा बना दिया है। सच तो आटे में नमक मिसल है क्योंकि पीछे बैठ बनाये हैं। सतयुग त्रेता में किसको ज्ञान है नहीं। वह थोड़ेही समझते हैं सतयुग के इतने सोने हीरे के महल कहाँ चले गये? क्यों गये? कहते हैं द्वारिका नीचे सागर में चली गई। परन्तु सागर में नहीं जाती। अर्थक्वेक आदि में सब खलास हो जाते हैं। फिर स्वर्ग का नामनिशान नहीं रहता। प्रालब्ध भोगकर खलास कर दी तो उनका नामनिशान नहीं रहता। न हिस्ट्री रहती। जैसे मन्दिर बनते हैं तो उनकी हिस्ट्री है। पूजा कब से शुरू हुई? मोहम्मद गजनवी कब आया? कैसे भारत का धन लूटा, यह सब ज्ञान है बुद्धि के लिए भोजन। परन्तु योग ठीक नहीं होगा तो सुनने समय खुश होगा परन्तु ठहरेगा नहीं, पवित्र नहीं होगा तो ठहरेगा नहीं। इसमें किसका वश नहीं। यह शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। वह तो सभी कण्ठ कर लेते हैं। यह तो पढ़ाई है 21 जन्मों के लिए। वहाँ भल बाप के तख्त पर बैठेंगे परन्तु वह भी यहाँ की कमाई की प्रालब्ध है। देवतायें एक दो को वर्सा नहीं देते, इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो। मौत सामने खड़ा है। तुमको मम्मा बाबा को फालो करना है। वह सन्यासी के नाम मात्र फालोअर्स बनते हैं। वहाँ गॉड गाडेज का राज्य है। यथा राजा रानी भगवती भगवान तथा प्रजा, इसके लिए फादर पढ़ा रहे हैं। ऐसे नहीं आशीर्वाद करेंगे। उनका पढ़ाना ही ब्लैसिंग है। टीचर को कहेंगे क्या आशीर्वाद करो तो 100 मार्क्स मिल जायें। बाबा तो पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई सबके लिए है। क्रिश्चियन हो, बौद्धी हो - कहते हैं सर्व धर्मानि... यह सब देह के धर्म हैं ना। कहते हैं इन सबको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा तो सभी इमार्टल हैं। एक बाप के बच्चे हैं ना इसलिए कहते हैं जो देह के धर्म हैं मामा, काका छोड़ अपने को अकेला आत्मा निश्चय करो और मेरे को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई रास्ता नहीं, इसको योग अग्नि कहते हैं।
बाबा के पत्रों में तो चिटचैट होती है जो मधुबन में रात को सुनाई जाती है। मधुबन में बाबा हंसायेंगे भी, उमंग भी दिलायेंगे, कहेंगे तुम बड़ी अच्छी हो, ज्ञान गंगा बन सकती हो। क्या टेलीफोन ऑफिस में नौकरी करती हो? तुम तो महारानी बनने वाली हो। गिरने वाले को भी उठायेंगे। बाबा कहते हैं मैं जानता हूँ कि बहुतों को राहू का ग्रहण लगता है। समाचार आते हैं तो बाबा उनको उठाते हैं। मुफ्त बादशाही देने आया हूँ, तुम्हारे को क्या हुआ है! राहू का ग्रहण लगा हुआ है। योग में रहो, मुरली सुनो। ऐसे पत्र लिखने पड़ते हैं। बहुत प्रकार के पत्र आते हैं। कोई की कोई साथ दिल लग जाती है तो आपस में प्लैन बनाते हैं अच्छा हम आपस में गन्धर्वी विवाह करेंगे। मैं तुमको बचाता हूँ, बंधन से छुड़ाता हूँ। बाबा कहे तुम कैसे बचा सकते हो? पहले तुम माया से बचे हो? बाबा से राय ली है? श्रीमत ली नहीं है और आपस में सगाई की बातें करते हो! तो मुर्दे, माया घसीट कर ले जायेगी। सूक्ष्म में दिल लग जाती है तो ऐसी-ऐसी बातें करते हैं। बाबा समझ जाते हैं यह रसातल में जा रहा है। सगाई तो माता-पिता करते हैं, तुम मुट्ठे आपस में ही सगाई कर रहे हो - गुपचुप में। तुमको पता नहीं कि ऐसे-ऐसे विघ्न आते हैं। गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। बाबा तो सभी बच्चों को जानते हैं, कोई भी पूछ सकते हैं - बाबा मैं मातेला हूँ वा सौतेला हूँ! अब शरीर छूट जाये तो क्या पद मिलेगा? शरीर पर किसका भरोसा नहीं है। स्टीम्बर डूब जाता है, ऐरोप्लेन गिर जाता है तो क्या गति होती है! मौत तो सबके सिर पर खड़ा है, इसलिए आज का काम कल पर नहीं रखना है। नहीं तो धर्मराजपुरी में साक्षात्कार होगा। देखो, कल-कल करते काल खा गया। श्रीमत पर न चले तो राज्य पद गँवा लिया। थोड़ा भी सुनने वाला हो तो स्वर्ग में आ जायेगा। फिर जो जितनी स्थापना में मदद करेंगे तो उतना पद पायेंगे। जैसे गांधी जी को मदद की, कितने जेल में गये। कितने मरे, रिटर्न में क्या मिला? कोई साहूकार कांग्रेसी के पास जाकर जन्म लिया होगा। अब समय बाकी कितना थोड़ा है। फिर क्या सुख मिला? ज्ञान सुनकर जाते तो व्यर्थ नहीं जायेगा। यहाँ कुछ छुड़ाया नहीं जाता है। यह तो उन्होंने तंग किया, विकारों के लिए, तब लाचारी में उनको छोड़ना पड़ा। नहीं तो क्या करें! तो बाप को शरण देनी पड़ी। ऐसे तो अब तक भी शरण लेते रहते हैं, इसमें भगाने की तो बात ही नहीं। यह तो ड्रामा अनुसार गऊशाला बननी थी। हैं तो बच्चे, परन्तु उन्होंने नाम गऊशाला डाला है। कहते हैं कृष्ण ने नदी पार की तो गऊओं ने भी पार की होगी। है सारी बात इस समय की। इन सब बातों से पहले ज्ञान लो और बाप से वर्सा लो। भल धन्धा करो, साथ-साथ यह सेकेण्ड कोर्स उठाओ। विलायत में रहते भी मुरली जरूर पढ़ो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह के सम्बन्धों को भूल अपने को अकेली आत्मा समझना है। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है, इसमें डरना नहीं है।
2) धर्मराज़ की सजाओं से बचने के लिए आज का काम कल पर नहीं छोड़ना है। पढ़ाई के आधार से बाप की ब्लैसिंग लेते रहना है।
वरदान: कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ाने वाले सदा निश्चिंत भव
सदा निश्चिंत वही रह सकते हैं जिनकी बुद्धि समय पर यथार्थ जजमेंट देती है क्योंकि दिन-प्रतिदिन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स होगा तो निर्णय शक्ति द्वारा सहज पार कर लेंगे। बैलेन्स के कारण बापदादा की जो ब्लैसिंग प्राप्त होगी उससे कभी संकल्प में भी आश्चर्यजनक प्रश्न उत्पन्न नहीं होंगे। ऐसा क्यों हुआ, यह क्या हुआ..यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। सदैव यह निश्चय पक्का होगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण छिपा हुआ है।
स्लोगन: एक बाबा से सर्व संबंधों का रस लो और किसी की भी याद न आये।
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Mithe bacche - Maya ke bighna gyan me nahi, yog me padte hain, yog ke bina padhai ki dharana nahi ho sakti, isiliye jitna ho sake yog me rehne ka purusharth karo.
Q- Baba gire huye baccho ko kis biddhi se upar utha lete hain?
A- Baba un baccho ki class me mahima karta, poochkar "pyar" deta, himmat dilata. Bacche tum to bahut achche ho. Tum to gyan ganga ban sakte ho. Tum Biswa ka mallik banne wale ho. Main to tumhe muft badshahi dene aaya hun. Tum fir kyun nahi lete? Raaho ka grahan laga hai kya? Murli padho, yog me raho to grahan utar jayega. Aise himmat dilane se bacche fir se yaad aur padhai me lag jaate hain. Is biddhi se kai baccho ki grahachari utar jati hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Deha ke sambandho ko bhool apne ko akeli aatma samajhna hai. Baap par poora-poora bali chadhna hai, isme darna nahi hai._
2) Dharmraj ki sazaon se bachne ke liye aaj ka kaam kal par nahi chhodna hai. Padhai ke aadhar se Baap ki blessing lete rehna hai.
Vardaan:- Karm aur yog ke balance dwara nirnay shakti ko badhane wale Sada Nischint bhava.
Slogan:-- Ek Baba se sarv sambandho ka ras lo aur kisi ki bhi yaad na aaye.
Hindi Version in Details –16/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - माया के विघ्न ज्ञान में नहीं, योग में पड़ते हैं, योग के बिना पढ़ाई की धारणा नहीं हो सकती, इसलिए जितना हो सके योग में रहने का पुरूषार्थ करो''
प्रश्न: बाबा गिरे हुए बच्चों को किस विधि से ऊपर उठा लेते हैं?
उत्तर:
बाबा उन बच्चों की क्लास में महिमा करता, पुचकार ''प्यार'' देता, हिम्मत दिलाता। बच्चे तुम तो बहुत अच्छे हो। तुम तो ज्ञान गंगा बन सकते हो। तुम विश्व का मालिक बनने वाले हो। मैं तो तुम्हें मुफ्त बादशाही देने आया हूँ। तुम फिर क्यों नहीं लेते? राहू का ग्रहण लगा है क्या? मुरली पढ़ो, योग में रहो तो ग्रहण उतर जायेगा। ऐसे हिम्मत दिलाने से बच्चे फिर से याद और पढ़ाई में लग जाते हैं। इस विधि से कई बच्चों की ग्रहचारी उतर जाती है।
गीत:- दूर देश का रहने वाला.... ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - दो ही अक्षर गीता के बताते हैं, जो सुनते आते हैं। यूँ गीता शास्त्र कोई स्वर्ग में था नहीं। यह तो बैठकर बाद में मनुष्यों ने बनाये हैं। तो भगवानुवाच - क्या कहते? बच्चे, मनमनाभव। अक्षर वही संस्कृत बोलते हैं जो तुम सुनते आये हो। उनका कोई अर्थ नहीं समझते। आते ही कहते हैं मनमनाभव। अगर कहे श्रीकृष्ण भगवानुवाच़ तो कृष्ण कहेंगे क्या कि मुझ परमात्मा को याद करो? तो यह झूठ हो गया ना। यहाँ परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं सालिग्रामों को कि मनमनाभव, मुझ परमात्मा को याद करो क्योंकि अब सबका मौत है। गुरू लोग, भाई-बन्धु सब जब कोई मरने की हालत में होते हैं तो कहते हैं राम कहो, कृष्ण कहो या चित्र सामने रख देते हैं, राम का, कृष्ण का, हनूमान का, गुरू आदि का। यहाँ तो सारे मनुष्य मात्र का मौत है। सभी वानप्रस्थ अवस्था में हैं। छोटे बड़े सबको वाणी से परे परमधाम, साइलेन्स वर्ल्ड में जाना है। उसको निराकारी दुनिया भी कहते हैं। वह है अहम् आत्मा की दुनिया। यहाँ जब आते हैं तो आत्मा साकारी बनती है। वहाँ चोला नहीं है। यहाँ चोला धारण कर पार्ट बजाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चों को वापिस ले चलने आया हूँ। मैं कालों का काल हूँ। अमृतसर में एक अकालतख्त भी रखा है। अकाल जिसको काल खा न सके। अब कालों का काल कहते हैं, मैं तुमको वापिस ले जाता हूँ। तुमको फिर पार्ट बजाने आना है। सृष्टि के आदि में पहले किसका पार्ट चला? क्योंकि यह सृष्टि वैरायटी धर्मो का झाड़ है। सब नम्बरवार आते ह़ैं पहले है देवता धर्म। अब वह धर्म प्राय:लोप है, उसका ज्ञान भी लोप है। तो शास्त्रों में कहाँ से आया? जिस सहज राजयोग से वह देवता बने वह भी गुम है। बाकी यह गीता आदि है भक्ति की सामग्री क्योंकि यह ज्ञान तुमको यहाँ ही मिलता है। फिर उसका शास्त्र सतयुग त्रेता में होता नहीं। तो द्वापर में कहाँ से आये? वहाँ कोई तुम्हारी सच्ची गीता आदि नहीं होती है। वहाँ फिर ड्रामा अनुसार वही भक्ति मार्ग की गीता आदि बनाते हैं। कहते हैं आगे साधू महात्माओं की बुद्धि अच्छी थी। तो उन्हों ने बैठ यह शास्त्र आदि बनाये। ड्रामा अनुसार बनने ही थे। उस समय रीयल चीज़ कहाँ से आये। जैसे गांधी के साथ मोतीलाल आदि का पार्ट था। अब अगर उसका नाटक बनायें तो वह कहाँ से आयें। वह ऐसे ही आर्टीफीशियल बनायेंगे। अब ब्रह्मा का स्थापना का पार्ट चल रहा है। किस चीज़ की स्थापना? बच्चे जानते हैं देवी-देवता धर्म की स्थापना सतयुग के लिए हो रही है इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मेरे पास आ जायेंगे। यहाँ बैठे हो तो बैठकर टेप सुननी चाहिए या मुरली रिपीट करनी चाहिए या योग में बैठना चाहिए तो विकर्म विनाश हों। सारा दिन तो काम में रहते हो। वहाँ योग में मुश्किल रहते होंगे। इसमें माया विघ्न बहुत डालती है। माया ज्ञान से नहीं हटाती, योग से हटाती है। संकल्प-विकल्प योग में रहने नहीं देते। पढ़ाई में इतने विघ्न नहीं पड़ते हैं। हाँ अगर योग में नहीं होगा तो पढ़ाई की धारणा नहीं होगी। ज्ञान से योग सहज भी है। बूढ़ी मातायें जो कहती हैं हमारी बुद्धि में इतनी प्वाइंट्स नहीं बैठती हैं। तो बाबा कहते हैं अच्छा मेरी याद में रहो।
बाप कहते हैं हे भक्तों, भगत तो सब हैं। परन्तु तुम सिकीलधे भगत हो, जिन्होंने पूरा आधाकल्प भक्ति की है। सब तो पूरी भक्ति नहीं करते। कल तक जो आते रहेंगे, वह इतना समय ही भक्ति करेंगे। परन्तु तुम ही पूज्य और पुजारी बनते हो। वह भी बच्चों से मालूम पड़ जाता है। जो बच्चे बनते हैं, श्रीमत पर चलते हैं। समझते हैं यह हमारे कुल के हैं, जिनको पूरा निश्चय है कि हमको परमात्मा पढ़ाते हैं वह हैं सगे बच्चे। सगे बच्चे बलि चढ़ते, लगे बलि नहीं चढ़ते। इसमें डरना नहीं है। भक्ति में तो बलि चढ़ते आये हो, कुछ न कुछ ईश्वर अर्थ दान करते आये हो। यह भी बलि चढ़ना हुआ। फिर कहते हो परमात्मा ने पुत्र दिया, धन दिया। परन्तु मनुष्य इसका अर्थ नहीं समझते हैं। तुम अब जानते हो कि यह भी बाप भक्ति का रिटर्न अल्पकाल के लिए देते आये हैं। सतयुग में ऐसे नहीं होता। तुम भक्ति में जो करते आये हो वह सतयुग में होता नही। न कोई गरीब होता जिसको दान करें। न कोई शास्त्र होते, न मन्दिर होते। यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, जो सतयुग में होती नहीं। यह ज्ञान भी प्राय: लोप हो जाता है। वहाँ कोई पुरूषार्थ नहीं, जिसकी प्रालब्ध मिले। सारी प्रालब्ध इस समय के पुरूषार्थ की है। इस्लामी, बौद्धियों की नॉलेज तो परम्परा चलती है क्योंकि उनकी स्थापना पीछे विनाश नहीं है। तो उनको सब पता रहता है। परन्तु तुम्हारे पीछे विनाश होता है तो इसमें सब खलास हो जाता है। फिर द्वापर में वही वेद शास्त्र आदि निकलेंगे। यह सब गीता के बाल बच्चे हैं। उन सबको धर्म शास्त्र नहीं कहेंगे, क्योंकि धर्मशास्त्र उसे कहा जाता है जिससे धर्म की स्थापना हो। जैसे क्राइस्ट के महावाक्यों को कहते हैं यह मैसेन्जर के महावाक्य हैं। क्राइस्ट को गॉड फादर नहीं कहेंगे, उनको गॉड का सन (बच्चा) समझते हैं। कहते हैं गॉड ने क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने के लिए भेजा। तो उनको अपने धर्म की पालना भी करनी है। सतो, रजो, तमो में आना ही है। यह ज्ञान उनको नहीं है कि वापिस कोई नहीं जा सकते।
अच्छा - बाबा समझाते थे कि उन्होंने गीता भल बनाई है, यादगार है। देवता धर्म का शास्त्र है। परन्तु उनको झूठा बना दिया है। सच तो आटे में नमक मिसल है क्योंकि पीछे बैठ बनाये हैं। सतयुग त्रेता में किसको ज्ञान है नहीं। वह थोड़ेही समझते हैं सतयुग के इतने सोने हीरे के महल कहाँ चले गये? क्यों गये? कहते हैं द्वारिका नीचे सागर में चली गई। परन्तु सागर में नहीं जाती। अर्थक्वेक आदि में सब खलास हो जाते हैं। फिर स्वर्ग का नामनिशान नहीं रहता। प्रालब्ध भोगकर खलास कर दी तो उनका नामनिशान नहीं रहता। न हिस्ट्री रहती। जैसे मन्दिर बनते हैं तो उनकी हिस्ट्री है। पूजा कब से शुरू हुई? मोहम्मद गजनवी कब आया? कैसे भारत का धन लूटा, यह सब ज्ञान है बुद्धि के लिए भोजन। परन्तु योग ठीक नहीं होगा तो सुनने समय खुश होगा परन्तु ठहरेगा नहीं, पवित्र नहीं होगा तो ठहरेगा नहीं। इसमें किसका वश नहीं। यह शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। वह तो सभी कण्ठ कर लेते हैं। यह तो पढ़ाई है 21 जन्मों के लिए। वहाँ भल बाप के तख्त पर बैठेंगे परन्तु वह भी यहाँ की कमाई की प्रालब्ध है। देवतायें एक दो को वर्सा नहीं देते, इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो। मौत सामने खड़ा है। तुमको मम्मा बाबा को फालो करना है। वह सन्यासी के नाम मात्र फालोअर्स बनते हैं। वहाँ गॉड गाडेज का राज्य है। यथा राजा रानी भगवती भगवान तथा प्रजा, इसके लिए फादर पढ़ा रहे हैं। ऐसे नहीं आशीर्वाद करेंगे। उनका पढ़ाना ही ब्लैसिंग है। टीचर को कहेंगे क्या आशीर्वाद करो तो 100 मार्क्स मिल जायें। बाबा तो पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई सबके लिए है। क्रिश्चियन हो, बौद्धी हो - कहते हैं सर्व धर्मानि... यह सब देह के धर्म हैं ना। कहते हैं इन सबको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा तो सभी इमार्टल हैं। एक बाप के बच्चे हैं ना इसलिए कहते हैं जो देह के धर्म हैं मामा, काका छोड़ अपने को अकेला आत्मा निश्चय करो और मेरे को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई रास्ता नहीं, इसको योग अग्नि कहते हैं।
बाबा के पत्रों में तो चिटचैट होती है जो मधुबन में रात को सुनाई जाती है। मधुबन में बाबा हंसायेंगे भी, उमंग भी दिलायेंगे, कहेंगे तुम बड़ी अच्छी हो, ज्ञान गंगा बन सकती हो। क्या टेलीफोन ऑफिस में नौकरी करती हो? तुम तो महारानी बनने वाली हो। गिरने वाले को भी उठायेंगे। बाबा कहते हैं मैं जानता हूँ कि बहुतों को राहू का ग्रहण लगता है। समाचार आते हैं तो बाबा उनको उठाते हैं। मुफ्त बादशाही देने आया हूँ, तुम्हारे को क्या हुआ है! राहू का ग्रहण लगा हुआ है। योग में रहो, मुरली सुनो। ऐसे पत्र लिखने पड़ते हैं। बहुत प्रकार के पत्र आते हैं। कोई की कोई साथ दिल लग जाती है तो आपस में प्लैन बनाते हैं अच्छा हम आपस में गन्धर्वी विवाह करेंगे। मैं तुमको बचाता हूँ, बंधन से छुड़ाता हूँ। बाबा कहे तुम कैसे बचा सकते हो? पहले तुम माया से बचे हो? बाबा से राय ली है? श्रीमत ली नहीं है और आपस में सगाई की बातें करते हो! तो मुर्दे, माया घसीट कर ले जायेगी। सूक्ष्म में दिल लग जाती है तो ऐसी-ऐसी बातें करते हैं। बाबा समझ जाते हैं यह रसातल में जा रहा है। सगाई तो माता-पिता करते हैं, तुम मुट्ठे आपस में ही सगाई कर रहे हो - गुपचुप में। तुमको पता नहीं कि ऐसे-ऐसे विघ्न आते हैं। गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। बाबा तो सभी बच्चों को जानते हैं, कोई भी पूछ सकते हैं - बाबा मैं मातेला हूँ वा सौतेला हूँ! अब शरीर छूट जाये तो क्या पद मिलेगा? शरीर पर किसका भरोसा नहीं है। स्टीम्बर डूब जाता है, ऐरोप्लेन गिर जाता है तो क्या गति होती है! मौत तो सबके सिर पर खड़ा है, इसलिए आज का काम कल पर नहीं रखना है। नहीं तो धर्मराजपुरी में साक्षात्कार होगा। देखो, कल-कल करते काल खा गया। श्रीमत पर न चले तो राज्य पद गँवा लिया। थोड़ा भी सुनने वाला हो तो स्वर्ग में आ जायेगा। फिर जो जितनी स्थापना में मदद करेंगे तो उतना पद पायेंगे। जैसे गांधी जी को मदद की, कितने जेल में गये। कितने मरे, रिटर्न में क्या मिला? कोई साहूकार कांग्रेसी के पास जाकर जन्म लिया होगा। अब समय बाकी कितना थोड़ा है। फिर क्या सुख मिला? ज्ञान सुनकर जाते तो व्यर्थ नहीं जायेगा। यहाँ कुछ छुड़ाया नहीं जाता है। यह तो उन्होंने तंग किया, विकारों के लिए, तब लाचारी में उनको छोड़ना पड़ा। नहीं तो क्या करें! तो बाप को शरण देनी पड़ी। ऐसे तो अब तक भी शरण लेते रहते हैं, इसमें भगाने की तो बात ही नहीं। यह तो ड्रामा अनुसार गऊशाला बननी थी। हैं तो बच्चे, परन्तु उन्होंने नाम गऊशाला डाला है। कहते हैं कृष्ण ने नदी पार की तो गऊओं ने भी पार की होगी। है सारी बात इस समय की। इन सब बातों से पहले ज्ञान लो और बाप से वर्सा लो। भल धन्धा करो, साथ-साथ यह सेकेण्ड कोर्स उठाओ। विलायत में रहते भी मुरली जरूर पढ़ो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह के सम्बन्धों को भूल अपने को अकेली आत्मा समझना है। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है, इसमें डरना नहीं है।
2) धर्मराज़ की सजाओं से बचने के लिए आज का काम कल पर नहीं छोड़ना है। पढ़ाई के आधार से बाप की ब्लैसिंग लेते रहना है।
वरदान: कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ाने वाले सदा निश्चिंत भव
सदा निश्चिंत वही रह सकते हैं जिनकी बुद्धि समय पर यथार्थ जजमेंट देती है क्योंकि दिन-प्रतिदिन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स होगा तो निर्णय शक्ति द्वारा सहज पार कर लेंगे। बैलेन्स के कारण बापदादा की जो ब्लैसिंग प्राप्त होगी उससे कभी संकल्प में भी आश्चर्यजनक प्रश्न उत्पन्न नहीं होंगे। ऐसा क्यों हुआ, यह क्या हुआ..यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। सदैव यह निश्चय पक्का होगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण छिपा हुआ है।
स्लोगन: एक बाबा से सर्व संबंधों का रस लो और किसी की भी याद न आये।
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Details ( Page:- Murali 17-Oct 2017 )
Hinglish Summary 17.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Aapas me ek do ka regard rakhna hai, apne ko miya mitthu nahi samajhna hai, buddhi me rahe jo karm me karunga, mujhe dekhkar sab karenge.
Q- Kaun si avastha zamane ke liye bahut-bahut mehnat karni hai?
A- Grihast byavahar me rehte stri purush ka bhaan samapt ho jaye, mansa me bhi sankalp bikalp na chale. Hum aatma bhai-bhai hain. Prajapita Brahma ke bacche bhai-bahen hai, yah avastha zamane me time lagta hai. Saath me rehte bikaro ki aag na lage. Criminal assault na ho, iska abhyas karna hai. Mata-Pita jo sarv sambandho ki secrin hai, usey yaad karna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Ek do ka haath pakad, sahayogi ban Baap ki shrimat par chalte rehna hai. Baap jo sarv sambandho ki secrin hai, usey bade pyaar se yaad karna hai.
2)Jaise Baap har bacche ko regard dete hain, aise follow karna hai. Apne bado ko regard zaroor dena hai.
Vardaan:-- Ek ke paath ko smruti me rakh tapasya me safalta prapt karne wale Nirantar Yogi bhava.
Slogan:-- Agyankari wo hai jo mann aur buddhi ko manmat se sada khali rakhte hain.
Hindi Version in Details –17/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - आपस में एक दो का रिगार्ड रखना है, अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है, बुद्धि में रहे जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देखकर सब करेंगे''
प्रश्न: कौन सी अवस्था जमाने के लिए बहुत-बहुत मेहनत करनी है?
उत्तर:
गृहस्थ व्यवहार में रहते स्त्री पुरूष का भान समाप्त हो जाए, मन्सा में भी संकल्प विकल्प न चलें। हम आत्मा भाई-भाई हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहिन हैं, यह अवस्था जमाने में टाइम लगता है। साथ में रहते विकारों की आग न लगे। क्रिमिनल एसाल्ट न हो, इसका अभ्यास करना है। मात-पिता जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे याद करना है।
गीत:- बदल जाये दुनिया न बदलेंगे हम.... ओम् शान्ति।
यह बच्चों की गैरन्टी वा प्रतिज्ञा है। प्रतिज्ञा कोई मुख से नहीं की जाती है। जब बच्चे बाप को पहचान लेते हैं तो प्रतिज्ञा हो ही जाती है। हर एक इन्डिपेन्डेंट (स्वतत्र) पुरूषार्थ करता है पद पाने लिए। स्कूल में सब इन्डिपेन्डेंट पुरूषार्थ करते हैं कि हम ऊंच पद पायें। यहाँ आत्मा पढ़ती है और परमात्मा पढ़ाने लिए जीवात्मा बनते हैं। और इनमें प्रवेश कर इनको (ब्रह्मा को) और ब्रह्मा मुख वंशावली को पढ़ाते हैं। स्वयं ब्रह्मा को मुख वंशावली नहीं कहेंगे। ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। ब्रह्मा शिव की मुख वंशावली नहीं है। शिवबाबा तो आकर इनमें प्रवेश कर अपना बनाते हैं। यह भी क्रियेशन है। पहले ब्रह्मा को रचते हैं, विष्णु को नहीं रचते। गाया भी जाता है ब्रह्मा, विष्णु और शंकर। विष्णु, शंकर और ब्रह्मा नहीं कहा जाता है। पहले ब्रह्मा को रचते हैं। ब्रह्मा का आक्यूपेशन अलग है। यह हर एक बात समझने की है। इनको त्वमेव माताश्च पिता.... कहा जाता है। तो वह निराकार है ना। तो साकार में मात-पिता चाहिए तब पूछते हैं - मम्मा को माँ है? कहेंगे हाँ। ब्रह्मा, मम्मा की भी माँ है। ब्रह्मा की कोई माँ नहीं। यह माँ (ब्रह्मा) फीमेल न होने कारण सरस्वती को मम्मा कहते हैं। बाप पढ़ाते हैं तो यह भी पढ़ते हैं। जैसे तुम स्टूडेन्ट हो वैसे यह भी है। शिवबाबा कोई स्टूडेन्ट नहीं है।
तुम बच्चे ब्रह्मा का मर्तबा भी देख रहे हो कि यह सबसे जास्ती पढ़ता है। देखते हो यह बरोबर नजदीक हैं। पहले किसके कान सुनते हैं? यह ब्रह्मा सबसे नजदीक है। तो कहेंगे कि मम्मा बाबा जास्ती पढ़ते हैं, फिर नम्बरवार सब बच्चे पढ़ते हैं। भले ही बाबा कहते हैं जगदीश बच्चा मम्मा बाबा से भी अच्छा समझाता है। बाबा की मुरली पढ़कर, धारण कर फिर गीता मैगजीन आदि बनाते हैं क्योंकि यह शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। अंग्रेजी में भी होशियार है। इसको कहा जाता है रिगार्ड। स्टूडेन्ट को एक दो का रिगार्ड रखना है। बाबा भी रिगार्ड रखते हैं ना। तो फादर को फालो करना चाहिए। भले अभी 16 कला नहीं बनें हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। कोई न कोई भूलें सबसे होती रहती हैं इसलिए अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। जैसे कर्म बाप करते हैं अथवा मैं करूंगा, मुझे देख सब करेंगे। तो एक दो का रिगार्ड रखना है। बाबा को भी रिगार्ड रखना पड़ता है। लोग कहते हैं कि यह स्त्री पुरूष को भाई-बहिन बनाते हैं। तो जो बुद्धिवान बच्चा होगा तो झट कहेगा कि परमात्मा के बच्चे तो सब हैं तो भाई-बहन ठहरे ना। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई बहन हुए ना। भाई-बहिन बनना अच्छा है ना। बाबा के बच्चे बनेंगे तो वर्सा ले सकेंगे। वर्सा मिलना है - शिवबाबा से ब्रह्मा बाबा द्वारा। तो ब्रह्माकुमार कुमारी बनना पड़े। फिर कभी भी विकार में जा नहीं सकते। नहीं तो क्रिमिनल एसाल्ट हो जाए। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। पवित्र रहने की युक्तियाँ भी बताते हैं। स्त्री भी कहती है बाबा, पुरूष भी कहते हैं बाबा। तो स्त्री पुरूष का भान टूट जायेगा। यह भी कहते हैं कि आदम और बीबी द्वारा सृष्टि की स्थापना हुई तो सब उनकी सन्तान ठहरे। भाई बहन ठहरे। कुमार कुमारी के लिए इतनी मेहनत नहीं है। जो सीढ़ी चढ़ गया है तो उनको उतरना पड़े। तो उतरने में मेहनत है। ऐसे नहीं दोनों को अलग-अलग रहना है। सिर्फ कम्पेनियन होकर रहो। सतयुग में कोई अपवित्र नहीं होते। और वहाँ बच्चे का भी इन्तजार नहीं होता है। यहाँ बच्चे का इन्तजार करते हैं। वहाँ समय अनुसार आपेही साक्षात्कार होता है। मनुष्य तो कहते यह कैसे हो सकता है। भला यहाँ के सम्पूर्ण विकारी कैसे समझें कि वहाँ निर्विकारी होते हैं। वहाँ देह-अभिमान होता नहीं। यहाँ देह-अभिमान रहता है। देह छोड़ने पर लोग कितना रोते हैं। वहाँ रोना होता नहीं। वहाँ समय पर साक्षात्कार होता है कि शरीर छोड़ जाकर प्रिन्स बनना है। यहाँ भी तुम साक्षात्कार करते हो कि तुम भविष्य में जाकर महाराजा महारानी बनेंगे। कृष्ण जैसा बालक गोद में देखते हो। साक्षात्कार से यह मालूम नहीं पड़ता कि सूर्यवंशी महाराजा महारानी बनेंगे या चन्द्रवंशी क्योंकि यह बिल्कुल नई बात है इसलिए कहा जाता है कि पहले बाप को पहचानो, बाप कहते हैं देखो मैं कितना लवली हूँ!
बाप कहते हैं कि सभी सम्बन्धों की सैक्रीन मैं हूँ, मैं कहता हूँ मुझे याद करो। कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता... एक-एक बात में निश्चय बिठाना चाहिए। परन्तु कोई न कोई बात में संशय आ जाता है। फिर राजाई पद पा न सकें इसलिए बाप कहते हैं मनमनाभव। बाप को याद करो तो तुम आशिक ठहरे। यह है रूहानी आशिक माशूक। यह पक्का करना चाहिए कि हम आत्मा परमात्मा की आशिक हैं। कृष्ण सबका माशूक हो न सके। कृष्ण को सब नहीं याद करते हैं। यह बाप कहते हैं मनमनाभव। अब मेरे पास आना है, नाटक पूरा होना है, घर जाना है। तो घर जरूर याद आयेगा। हर एक बात की समझानी मुरली में मिलती रहती है। बच्चे मुरली नोट नहीं करते फिर वही बातें बाबा से पूछते रहते हैं। मुख्य बात है आशिक और माशूक की। सभी भगत आशिक हैं क्योंकि परमात्मा को याद करते हैं। कहते मेरा तो एक दूसरा न कोई। तुम बच्चे इस समय सब नई-नई बातें सुनते हो। परन्तु सुनते-सुनते माया थप्पड़ लगा देती है। रावण कम थोड़ेही है। बाप सर्वशक्तिमान है, माया भी सर्वशक्तिमान है। आधाकल्प माया का राज्य चलता है। अब बाप कहते हैं 5 विकारों का दान दे दो तो ग्रहण छूटे। फिर भी एकदम छूटता नहीं है। कई दान देकर फिर वापिस ले लेते हैं। यह पैसों की बात नहीं, विकारों की बात है। साधू सन्यासी पैसे के लिए कहते हैं कि दान देकर वापिस नहीं लेना चाहिए क्योंकि इसमें उनकी कमाई है। कई मनुष्य फिर सन्यासियों के पास जाकर कहते हैं बच्चा चाहिए। कहेंगे हमारी आशीर्वाद से हो जायेगा। अगर बच्चा हो गया तो कहेंगे हमने दिया। मर गया तो कहेंगे भावी। अगर एक का कुछ काम हो गया तो बहुतों का विश्वास बैठ जाता है। ऐसे उन्हों की वृद्धि होती है। एक तरफ अपनी महिमा करते दूसरे तरफ भावी कहते हैं। तुम इस समय अन-नोन वारियर्स हो। वह जो अन-नोन वारियर्स होते हैं, उनका यादगार बनाते हैं और बड़े-बड़े जाते हैं। कहते हैं सोल्जर्स पर फूल चढ़ाओ। अरे जिसका पता ही नहीं, उनका यादगार कैसे बनेगा। अभी तुम अन-नोन हो फिर तुम वेरी वेल नोन बनते हो। तुम्हारे मन्दिर बनते हैं अभी तुम गुप्त में ही रामराज्य स्थापन कर रहे हो। अच्छा-
मीठे-मीठे बच्चे - सिकीलधे बच्चे बने हो ना! 5 हजार वर्ष के बाद मिले हो। किसी का गुम हुआ बच्चा मिल जाए तो माँ बाप को कितनी खुशी होगी, बच्चा भी बाबा-बाबा कहता रहेगा। तो अभी विनाश होता है और तुम गुम हो जाते हो अर्थात् बाप से बिछुड़ जाते हो। फिर कल्प के बाद बाप से मिलते हो तो माँ बाप का कितना प्यार रहता है। आधाकल्प तुम सुख भोगते हो, फिर धीरे-धीरे दु:खी होते हो। सन्यासी कहते हैं ना - सुख काग विष्टा समान है। वह भी विकार के लिए कहते हैं। गुरूनानक ने भी कहा है - मूत पलीती कपड़ धोये, तो कौन धोयेगा! वह एक परमात्मा ही है, जिसको कहते ही हैं एकोअंकार... सिक्ख लोग यह गाते रहते हैं। इस ज्ञान में तुम बच्चों की बुद्धि बड़ी शुरूड़ (सयानी) चाहिए क्योंकि आत्मा को जगाना होता है। तो आत्मा भी शुरूड बनती है। कोई-कोई तो बहुत अच्छे शुरूड बुद्धि हो जाते हैं। मातायें, कन्यायें बहुत अच्छी खड़ी हो जाती है। नहीं तो मातायें बैठ पति को समझायें इसमें बड़ी हिम्मत और निर्भयता चाहिए। बाकी तो सब नर्कवासी हैं, दुर्गति में हैं। वह तो भक्ति में खूब नाचते ताली बजाते रहते हैं, सद्गति तो होती नहीं। तुम बच्चे सद्गति में जाने के लिए बिल्कुल चुप रहते हो। नारद ने कहा मैं लक्ष्मी को वरूँ। वास्तव में लक्ष्मी को वरने के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। भगत तो वर न सकें। लक्ष्मी-नारायण को कैसे राज्य मिला, कब मिला और वह अब कहाँ गये, यह सिर्फ तुम जानते हो इसलिए तुम मन्दिर में जाकर माथा नहीं टेकते हो। समझते हो कि हम ही लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। तुम्हारा माथा टेकना बन्द हो गया है। वह कहते हैं यह नास्तिक हैं, जो माथा नहीं टेकते। वास्तव में तुम ही आस्तिक हो - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। वह तो नास्तिक हैं जो परमात्मा को नहीं जानते। अभी तुम धणके बने हो फिर भी माया थप्पड़ लगा देती है तो आरफन, निधनके बन पड़ते हैं। भले ही बूढ़े हैं परन्तु माया उनको भी जवान बना देती है। माया के तूफान आते हैं। तुम्हें एक दो का हाथ पकड़कर, सहयोगी बन इस नई यात्रा पर, बाप की श्रीमत पर चलते रहना है। सारा मदार है बुद्धि की यात्रा पर। अचल-अडोल अंगद की तरह बनना है। अन्त में वह अवस्था आनी है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक दो का हाथ पकड़, सहयोगी बन बाप की श्रीमत पर चलते रहना है। बाप जो सर्व संबंधों की सैक्रीन है, उसे बड़े प्यार से याद करना है।
2) जैसे बाप हर बच्चे को रिगार्ड देते हैं, ऐसे फालो करना है। अपने बड़ों को रिगार्ड जरूर देना है।
वरदान:एक के पाठ को स्मृति में रख तपस्या में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर योगी भव!
तपस्या की सफलता का विशेष आधार वा सहज साधन है - एक शब्द का पाठ पक्का करो। तपस्या अर्थात् एक का बनना, तपस्या अर्थात् मन-बुद्धि को एकाग्र करना, तपस्या अर्थात् एकान्तप्रिय रहना, तपस्या अर्थात् स्थिति को एकरस रखना, तपस्या अर्थात् सर्व प्राप्त खजानों को व्यर्थ से बचाना अर्थात् इकॉनामी करना। इस एक के पाठ को स्मृति में रखो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे। मेहनत से छूट जायेंगे।
स्लोगन: आज्ञाकारी वो हैं जो मन और बुद्धि को मनमत से सदा खाली रखते हैं।
1) 'सतयुग में यह ईश्वरीय नॉलेज नहीं मिलती'
अगर कोई यह प्रश्न पूछे कि यह जो अपने को इस संगम समय पर ईश्वरीय नॉलेज मिल रही है वो फिर से अपने को सतयुग में मिलेगी? अब इस पर समझाया जाता है कि सतयुग में तो हम स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं। देवताई प्रालब्ध भोग रहे हैं, वहाँ ज्ञान की लेन देन नहीं चलती, अब ज्ञान की जरूरत है अज्ञानियों को। परन्तु वहाँ तो सब ज्ञान स्वरूप हैं, वहाँ कोई अज्ञानी रहता ही नहीं है, जो ज्ञान देने की जरूरत रहे। अब तो इसी समय अपन सारे विराट ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। आदि में हम कौन थे, कहाँ से आये, और मध्य में कर्मबन्धन में फंसे फिर कैसे गिरे, अन्त में हमको कर्मबन्धन से अतीत हो कर्मातीत देवता बनना है। जो पुरुषार्थ अब चल रहा है जिससे हम भविष्य प्रालब्ध सतयुगी देवतायें बनते हैं। अगर वहाँ हमको यह मालूम होता कि हम देवतायें गिरेंगे तो यह ख्याल आने से खुशी गायब हो जाती, तो वहाँ गिरने की नॉलेज नहीं है। यह ख्यालात वहाँ नहीं रहती, हमको इस नॉलेज द्वारा अब मालूम पड़ा है कि हमको चढ़ना है और सुख की जीवन बनानी है। फिर आधाकल्प के बाद अपनी प्रालब्ध भोग फिर अपने आपको विस्मृत कर माया के वश होकर गिर जाते हैं। यह चढ़ना और गिरना अनादि बना बनाया खेल है। यह सारी नॉलेज अब बुद्धि में है बाकी सतयुग में नहीं रहती।
2) 'प्रैक्टिकल ईश्वर का बच्चा बनने बिगर ईश्वरीय दरबार में कुछ भी जमा नहीं होता'
बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं कि हम जो भी कुछ कर्म करते हैं, चाहे अच्छे चाहे बुरे कर्म करते हैं उनका फल अवश्य मिलता है। जैसे कोई दान पुण्य करते हैं, यज्ञ हवन करते हैं, पाठ पूजा करते हैं वो समझते हैं कि हमने ईश्वर के अर्थ जो भी दान किया वो परमात्मा के दरबार में दाखिल हो जाता है। जब हम मरेंगे तो वो फल अवश्य मिलेगा और हमारी मुक्ति हो जायेगी, परन्तु यह तो अपन जान चुके हैं कि इस करने से कोई सदाकाल के लिये फायदा नहीं होता। यह तो जैसे जैसे कर्म करेंगे उससे अल्पकाल क्षणभंगुर सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। मगर जब तक यह प्रैक्टिकल जीवन सदा सुखी नहीं बनी है तब तक उसका रिटर्न नहीं मिल सकता। भल हम किससे भी पूछेंगे यह जो भी तुम करते आये हो, उन करने से तुम्हें पूरा लाभ मिला है? तो यह सुनने से वो लाजवाब हो जाते हैं। अब परमात्मा के पास दाखिल हुआ या नहीं हुआ वो हमें क्या मालूम? जब तक अपनी प्रैक्टिकल जीवन में कर्म श्रेष्ठ नहीं बने हैं तब तक कितनी भी मेहनत करेंगे तो भी मुक्ति जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं करेंगे। अच्छा, दान पुण्य किया लेकिन उस करने से कोई विकर्म तो भस्म नहीं हुए, फिर मुक्ति जीवनमुक्ति कैसे प्राप्त होगी। भले इतने संत महात्मायें हैं जब तक उन्हों को कर्मों की नॉलेज नहीं है तब तक वो कर्म अकर्म नहीं हो सकते, न वह मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करेंगे। उन्हों को भी यह मालूम नहीं है कि सतधर्म क्या है और सतकर्म क्या है, सिर्फ मुख से राम राम कहना इससे कोई मुक्ति नहीं होगी। बाकी ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी, ऐसे को भी बेसमझ कहा जायेगा। उन्हों को यह पता ही नहीं कि मरने के बाद क्या फायदा मिलेगा? कुछ भी नहीं। बाकी तो मनुष्य अपने जीवन में चाहे बुरे कर्म करें, चाहे अच्छा कर्म करें वो भी इस ही जीवन में भोगना है। अब यह सारी नॉलेज हमें परमात्मा टीचर द्वारा मिल रही है कि कैसे शुद्ध कर्म करके अपनी प्रैक्टिकल जीवन बनानी है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Mithe bacche - Aapas me ek do ka regard rakhna hai, apne ko miya mitthu nahi samajhna hai, buddhi me rahe jo karm me karunga, mujhe dekhkar sab karenge.
Q- Kaun si avastha zamane ke liye bahut-bahut mehnat karni hai?
A- Grihast byavahar me rehte stri purush ka bhaan samapt ho jaye, mansa me bhi sankalp bikalp na chale. Hum aatma bhai-bhai hain. Prajapita Brahma ke bacche bhai-bahen hai, yah avastha zamane me time lagta hai. Saath me rehte bikaro ki aag na lage. Criminal assault na ho, iska abhyas karna hai. Mata-Pita jo sarv sambandho ki secrin hai, usey yaad karna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Ek do ka haath pakad, sahayogi ban Baap ki shrimat par chalte rehna hai. Baap jo sarv sambandho ki secrin hai, usey bade pyaar se yaad karna hai.
2)Jaise Baap har bacche ko regard dete hain, aise follow karna hai. Apne bado ko regard zaroor dena hai.
Vardaan:-- Ek ke paath ko smruti me rakh tapasya me safalta prapt karne wale Nirantar Yogi bhava.
Slogan:-- Agyankari wo hai jo mann aur buddhi ko manmat se sada khali rakhte hain.
Hindi Version in Details –17/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - आपस में एक दो का रिगार्ड रखना है, अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है, बुद्धि में रहे जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देखकर सब करेंगे''
प्रश्न: कौन सी अवस्था जमाने के लिए बहुत-बहुत मेहनत करनी है?
उत्तर:
गृहस्थ व्यवहार में रहते स्त्री पुरूष का भान समाप्त हो जाए, मन्सा में भी संकल्प विकल्प न चलें। हम आत्मा भाई-भाई हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहिन हैं, यह अवस्था जमाने में टाइम लगता है। साथ में रहते विकारों की आग न लगे। क्रिमिनल एसाल्ट न हो, इसका अभ्यास करना है। मात-पिता जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे याद करना है।
गीत:- बदल जाये दुनिया न बदलेंगे हम.... ओम् शान्ति।
यह बच्चों की गैरन्टी वा प्रतिज्ञा है। प्रतिज्ञा कोई मुख से नहीं की जाती है। जब बच्चे बाप को पहचान लेते हैं तो प्रतिज्ञा हो ही जाती है। हर एक इन्डिपेन्डेंट (स्वतत्र) पुरूषार्थ करता है पद पाने लिए। स्कूल में सब इन्डिपेन्डेंट पुरूषार्थ करते हैं कि हम ऊंच पद पायें। यहाँ आत्मा पढ़ती है और परमात्मा पढ़ाने लिए जीवात्मा बनते हैं। और इनमें प्रवेश कर इनको (ब्रह्मा को) और ब्रह्मा मुख वंशावली को पढ़ाते हैं। स्वयं ब्रह्मा को मुख वंशावली नहीं कहेंगे। ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। ब्रह्मा शिव की मुख वंशावली नहीं है। शिवबाबा तो आकर इनमें प्रवेश कर अपना बनाते हैं। यह भी क्रियेशन है। पहले ब्रह्मा को रचते हैं, विष्णु को नहीं रचते। गाया भी जाता है ब्रह्मा, विष्णु और शंकर। विष्णु, शंकर और ब्रह्मा नहीं कहा जाता है। पहले ब्रह्मा को रचते हैं। ब्रह्मा का आक्यूपेशन अलग है। यह हर एक बात समझने की है। इनको त्वमेव माताश्च पिता.... कहा जाता है। तो वह निराकार है ना। तो साकार में मात-पिता चाहिए तब पूछते हैं - मम्मा को माँ है? कहेंगे हाँ। ब्रह्मा, मम्मा की भी माँ है। ब्रह्मा की कोई माँ नहीं। यह माँ (ब्रह्मा) फीमेल न होने कारण सरस्वती को मम्मा कहते हैं। बाप पढ़ाते हैं तो यह भी पढ़ते हैं। जैसे तुम स्टूडेन्ट हो वैसे यह भी है। शिवबाबा कोई स्टूडेन्ट नहीं है।
तुम बच्चे ब्रह्मा का मर्तबा भी देख रहे हो कि यह सबसे जास्ती पढ़ता है। देखते हो यह बरोबर नजदीक हैं। पहले किसके कान सुनते हैं? यह ब्रह्मा सबसे नजदीक है। तो कहेंगे कि मम्मा बाबा जास्ती पढ़ते हैं, फिर नम्बरवार सब बच्चे पढ़ते हैं। भले ही बाबा कहते हैं जगदीश बच्चा मम्मा बाबा से भी अच्छा समझाता है। बाबा की मुरली पढ़कर, धारण कर फिर गीता मैगजीन आदि बनाते हैं क्योंकि यह शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। अंग्रेजी में भी होशियार है। इसको कहा जाता है रिगार्ड। स्टूडेन्ट को एक दो का रिगार्ड रखना है। बाबा भी रिगार्ड रखते हैं ना। तो फादर को फालो करना चाहिए। भले अभी 16 कला नहीं बनें हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। कोई न कोई भूलें सबसे होती रहती हैं इसलिए अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। जैसे कर्म बाप करते हैं अथवा मैं करूंगा, मुझे देख सब करेंगे। तो एक दो का रिगार्ड रखना है। बाबा को भी रिगार्ड रखना पड़ता है। लोग कहते हैं कि यह स्त्री पुरूष को भाई-बहिन बनाते हैं। तो जो बुद्धिवान बच्चा होगा तो झट कहेगा कि परमात्मा के बच्चे तो सब हैं तो भाई-बहन ठहरे ना। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई बहन हुए ना। भाई-बहिन बनना अच्छा है ना। बाबा के बच्चे बनेंगे तो वर्सा ले सकेंगे। वर्सा मिलना है - शिवबाबा से ब्रह्मा बाबा द्वारा। तो ब्रह्माकुमार कुमारी बनना पड़े। फिर कभी भी विकार में जा नहीं सकते। नहीं तो क्रिमिनल एसाल्ट हो जाए। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। पवित्र रहने की युक्तियाँ भी बताते हैं। स्त्री भी कहती है बाबा, पुरूष भी कहते हैं बाबा। तो स्त्री पुरूष का भान टूट जायेगा। यह भी कहते हैं कि आदम और बीबी द्वारा सृष्टि की स्थापना हुई तो सब उनकी सन्तान ठहरे। भाई बहन ठहरे। कुमार कुमारी के लिए इतनी मेहनत नहीं है। जो सीढ़ी चढ़ गया है तो उनको उतरना पड़े। तो उतरने में मेहनत है। ऐसे नहीं दोनों को अलग-अलग रहना है। सिर्फ कम्पेनियन होकर रहो। सतयुग में कोई अपवित्र नहीं होते। और वहाँ बच्चे का भी इन्तजार नहीं होता है। यहाँ बच्चे का इन्तजार करते हैं। वहाँ समय अनुसार आपेही साक्षात्कार होता है। मनुष्य तो कहते यह कैसे हो सकता है। भला यहाँ के सम्पूर्ण विकारी कैसे समझें कि वहाँ निर्विकारी होते हैं। वहाँ देह-अभिमान होता नहीं। यहाँ देह-अभिमान रहता है। देह छोड़ने पर लोग कितना रोते हैं। वहाँ रोना होता नहीं। वहाँ समय पर साक्षात्कार होता है कि शरीर छोड़ जाकर प्रिन्स बनना है। यहाँ भी तुम साक्षात्कार करते हो कि तुम भविष्य में जाकर महाराजा महारानी बनेंगे। कृष्ण जैसा बालक गोद में देखते हो। साक्षात्कार से यह मालूम नहीं पड़ता कि सूर्यवंशी महाराजा महारानी बनेंगे या चन्द्रवंशी क्योंकि यह बिल्कुल नई बात है इसलिए कहा जाता है कि पहले बाप को पहचानो, बाप कहते हैं देखो मैं कितना लवली हूँ!
बाप कहते हैं कि सभी सम्बन्धों की सैक्रीन मैं हूँ, मैं कहता हूँ मुझे याद करो। कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता... एक-एक बात में निश्चय बिठाना चाहिए। परन्तु कोई न कोई बात में संशय आ जाता है। फिर राजाई पद पा न सकें इसलिए बाप कहते हैं मनमनाभव। बाप को याद करो तो तुम आशिक ठहरे। यह है रूहानी आशिक माशूक। यह पक्का करना चाहिए कि हम आत्मा परमात्मा की आशिक हैं। कृष्ण सबका माशूक हो न सके। कृष्ण को सब नहीं याद करते हैं। यह बाप कहते हैं मनमनाभव। अब मेरे पास आना है, नाटक पूरा होना है, घर जाना है। तो घर जरूर याद आयेगा। हर एक बात की समझानी मुरली में मिलती रहती है। बच्चे मुरली नोट नहीं करते फिर वही बातें बाबा से पूछते रहते हैं। मुख्य बात है आशिक और माशूक की। सभी भगत आशिक हैं क्योंकि परमात्मा को याद करते हैं। कहते मेरा तो एक दूसरा न कोई। तुम बच्चे इस समय सब नई-नई बातें सुनते हो। परन्तु सुनते-सुनते माया थप्पड़ लगा देती है। रावण कम थोड़ेही है। बाप सर्वशक्तिमान है, माया भी सर्वशक्तिमान है। आधाकल्प माया का राज्य चलता है। अब बाप कहते हैं 5 विकारों का दान दे दो तो ग्रहण छूटे। फिर भी एकदम छूटता नहीं है। कई दान देकर फिर वापिस ले लेते हैं। यह पैसों की बात नहीं, विकारों की बात है। साधू सन्यासी पैसे के लिए कहते हैं कि दान देकर वापिस नहीं लेना चाहिए क्योंकि इसमें उनकी कमाई है। कई मनुष्य फिर सन्यासियों के पास जाकर कहते हैं बच्चा चाहिए। कहेंगे हमारी आशीर्वाद से हो जायेगा। अगर बच्चा हो गया तो कहेंगे हमने दिया। मर गया तो कहेंगे भावी। अगर एक का कुछ काम हो गया तो बहुतों का विश्वास बैठ जाता है। ऐसे उन्हों की वृद्धि होती है। एक तरफ अपनी महिमा करते दूसरे तरफ भावी कहते हैं। तुम इस समय अन-नोन वारियर्स हो। वह जो अन-नोन वारियर्स होते हैं, उनका यादगार बनाते हैं और बड़े-बड़े जाते हैं। कहते हैं सोल्जर्स पर फूल चढ़ाओ। अरे जिसका पता ही नहीं, उनका यादगार कैसे बनेगा। अभी तुम अन-नोन हो फिर तुम वेरी वेल नोन बनते हो। तुम्हारे मन्दिर बनते हैं अभी तुम गुप्त में ही रामराज्य स्थापन कर रहे हो। अच्छा-
मीठे-मीठे बच्चे - सिकीलधे बच्चे बने हो ना! 5 हजार वर्ष के बाद मिले हो। किसी का गुम हुआ बच्चा मिल जाए तो माँ बाप को कितनी खुशी होगी, बच्चा भी बाबा-बाबा कहता रहेगा। तो अभी विनाश होता है और तुम गुम हो जाते हो अर्थात् बाप से बिछुड़ जाते हो। फिर कल्प के बाद बाप से मिलते हो तो माँ बाप का कितना प्यार रहता है। आधाकल्प तुम सुख भोगते हो, फिर धीरे-धीरे दु:खी होते हो। सन्यासी कहते हैं ना - सुख काग विष्टा समान है। वह भी विकार के लिए कहते हैं। गुरूनानक ने भी कहा है - मूत पलीती कपड़ धोये, तो कौन धोयेगा! वह एक परमात्मा ही है, जिसको कहते ही हैं एकोअंकार... सिक्ख लोग यह गाते रहते हैं। इस ज्ञान में तुम बच्चों की बुद्धि बड़ी शुरूड़ (सयानी) चाहिए क्योंकि आत्मा को जगाना होता है। तो आत्मा भी शुरूड बनती है। कोई-कोई तो बहुत अच्छे शुरूड बुद्धि हो जाते हैं। मातायें, कन्यायें बहुत अच्छी खड़ी हो जाती है। नहीं तो मातायें बैठ पति को समझायें इसमें बड़ी हिम्मत और निर्भयता चाहिए। बाकी तो सब नर्कवासी हैं, दुर्गति में हैं। वह तो भक्ति में खूब नाचते ताली बजाते रहते हैं, सद्गति तो होती नहीं। तुम बच्चे सद्गति में जाने के लिए बिल्कुल चुप रहते हो। नारद ने कहा मैं लक्ष्मी को वरूँ। वास्तव में लक्ष्मी को वरने के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। भगत तो वर न सकें। लक्ष्मी-नारायण को कैसे राज्य मिला, कब मिला और वह अब कहाँ गये, यह सिर्फ तुम जानते हो इसलिए तुम मन्दिर में जाकर माथा नहीं टेकते हो। समझते हो कि हम ही लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। तुम्हारा माथा टेकना बन्द हो गया है। वह कहते हैं यह नास्तिक हैं, जो माथा नहीं टेकते। वास्तव में तुम ही आस्तिक हो - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। वह तो नास्तिक हैं जो परमात्मा को नहीं जानते। अभी तुम धणके बने हो फिर भी माया थप्पड़ लगा देती है तो आरफन, निधनके बन पड़ते हैं। भले ही बूढ़े हैं परन्तु माया उनको भी जवान बना देती है। माया के तूफान आते हैं। तुम्हें एक दो का हाथ पकड़कर, सहयोगी बन इस नई यात्रा पर, बाप की श्रीमत पर चलते रहना है। सारा मदार है बुद्धि की यात्रा पर। अचल-अडोल अंगद की तरह बनना है। अन्त में वह अवस्था आनी है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक दो का हाथ पकड़, सहयोगी बन बाप की श्रीमत पर चलते रहना है। बाप जो सर्व संबंधों की सैक्रीन है, उसे बड़े प्यार से याद करना है।
2) जैसे बाप हर बच्चे को रिगार्ड देते हैं, ऐसे फालो करना है। अपने बड़ों को रिगार्ड जरूर देना है।
वरदान:एक के पाठ को स्मृति में रख तपस्या में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर योगी भव!
तपस्या की सफलता का विशेष आधार वा सहज साधन है - एक शब्द का पाठ पक्का करो। तपस्या अर्थात् एक का बनना, तपस्या अर्थात् मन-बुद्धि को एकाग्र करना, तपस्या अर्थात् एकान्तप्रिय रहना, तपस्या अर्थात् स्थिति को एकरस रखना, तपस्या अर्थात् सर्व प्राप्त खजानों को व्यर्थ से बचाना अर्थात् इकॉनामी करना। इस एक के पाठ को स्मृति में रखो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे। मेहनत से छूट जायेंगे।
स्लोगन: आज्ञाकारी वो हैं जो मन और बुद्धि को मनमत से सदा खाली रखते हैं।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
1) 'सतयुग में यह ईश्वरीय नॉलेज नहीं मिलती'
अगर कोई यह प्रश्न पूछे कि यह जो अपने को इस संगम समय पर ईश्वरीय नॉलेज मिल रही है वो फिर से अपने को सतयुग में मिलेगी? अब इस पर समझाया जाता है कि सतयुग में तो हम स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं। देवताई प्रालब्ध भोग रहे हैं, वहाँ ज्ञान की लेन देन नहीं चलती, अब ज्ञान की जरूरत है अज्ञानियों को। परन्तु वहाँ तो सब ज्ञान स्वरूप हैं, वहाँ कोई अज्ञानी रहता ही नहीं है, जो ज्ञान देने की जरूरत रहे। अब तो इसी समय अपन सारे विराट ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। आदि में हम कौन थे, कहाँ से आये, और मध्य में कर्मबन्धन में फंसे फिर कैसे गिरे, अन्त में हमको कर्मबन्धन से अतीत हो कर्मातीत देवता बनना है। जो पुरुषार्थ अब चल रहा है जिससे हम भविष्य प्रालब्ध सतयुगी देवतायें बनते हैं। अगर वहाँ हमको यह मालूम होता कि हम देवतायें गिरेंगे तो यह ख्याल आने से खुशी गायब हो जाती, तो वहाँ गिरने की नॉलेज नहीं है। यह ख्यालात वहाँ नहीं रहती, हमको इस नॉलेज द्वारा अब मालूम पड़ा है कि हमको चढ़ना है और सुख की जीवन बनानी है। फिर आधाकल्प के बाद अपनी प्रालब्ध भोग फिर अपने आपको विस्मृत कर माया के वश होकर गिर जाते हैं। यह चढ़ना और गिरना अनादि बना बनाया खेल है। यह सारी नॉलेज अब बुद्धि में है बाकी सतयुग में नहीं रहती।
2) 'प्रैक्टिकल ईश्वर का बच्चा बनने बिगर ईश्वरीय दरबार में कुछ भी जमा नहीं होता'
बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं कि हम जो भी कुछ कर्म करते हैं, चाहे अच्छे चाहे बुरे कर्म करते हैं उनका फल अवश्य मिलता है। जैसे कोई दान पुण्य करते हैं, यज्ञ हवन करते हैं, पाठ पूजा करते हैं वो समझते हैं कि हमने ईश्वर के अर्थ जो भी दान किया वो परमात्मा के दरबार में दाखिल हो जाता है। जब हम मरेंगे तो वो फल अवश्य मिलेगा और हमारी मुक्ति हो जायेगी, परन्तु यह तो अपन जान चुके हैं कि इस करने से कोई सदाकाल के लिये फायदा नहीं होता। यह तो जैसे जैसे कर्म करेंगे उससे अल्पकाल क्षणभंगुर सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। मगर जब तक यह प्रैक्टिकल जीवन सदा सुखी नहीं बनी है तब तक उसका रिटर्न नहीं मिल सकता। भल हम किससे भी पूछेंगे यह जो भी तुम करते आये हो, उन करने से तुम्हें पूरा लाभ मिला है? तो यह सुनने से वो लाजवाब हो जाते हैं। अब परमात्मा के पास दाखिल हुआ या नहीं हुआ वो हमें क्या मालूम? जब तक अपनी प्रैक्टिकल जीवन में कर्म श्रेष्ठ नहीं बने हैं तब तक कितनी भी मेहनत करेंगे तो भी मुक्ति जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं करेंगे। अच्छा, दान पुण्य किया लेकिन उस करने से कोई विकर्म तो भस्म नहीं हुए, फिर मुक्ति जीवनमुक्ति कैसे प्राप्त होगी। भले इतने संत महात्मायें हैं जब तक उन्हों को कर्मों की नॉलेज नहीं है तब तक वो कर्म अकर्म नहीं हो सकते, न वह मुक्ति जीवनमुक्ति को प्राप्त करेंगे। उन्हों को भी यह मालूम नहीं है कि सतधर्म क्या है और सतकर्म क्या है, सिर्फ मुख से राम राम कहना इससे कोई मुक्ति नहीं होगी। बाकी ऐसे समझ बैठना कि मरने के बाद हमारी मुक्ति होगी, ऐसे को भी बेसमझ कहा जायेगा। उन्हों को यह पता ही नहीं कि मरने के बाद क्या फायदा मिलेगा? कुछ भी नहीं। बाकी तो मनुष्य अपने जीवन में चाहे बुरे कर्म करें, चाहे अच्छा कर्म करें वो भी इस ही जीवन में भोगना है। अब यह सारी नॉलेज हमें परमात्मा टीचर द्वारा मिल रही है कि कैसे शुद्ध कर्म करके अपनी प्रैक्टिकल जीवन बनानी है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 18-Oct 2017 )
Hinglish Summary - 18.10.17- Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Abhi tumhe divya dhristi mili hai-tum jaante ho yah purani duniya khatam honi hai, isiliye isse mamatwa mita dena hai, poora-poora bali chadhna hai.
Q- Jo abinashi Baap par poora bali chadhe huye bacche hain unki nishani kya hogi?
A- Wo apna paisa adi faltu kharch nahi karenge. Bhakti marg me dipawali adi par kitna barood jalate hain. Alpkaal ki khushi manate hain. Tum jaante ho yah sab waste of time, waste of money, waste of energy hai. Yahan tumhe aisi khushiyan nahi manani hai kyunki tum to banvas me ho. Tumhe in kaaton ki duniya se phoolon ki duniya me jana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Mata-pita ko poora follow kar padhai me oonch pad pana hai. Is duniya me koi bhi souk nahi rakhna hai. Banvas me rehna hai.
2) In aankho se jo kuch dikhayi deta hai usey dekte huye bhi nahi dekhna hai. Poora nastmoha banna hai. Sangam par kuch bhi waste nahi karna hai.
Vardaan:-- Bapdada ke sneh ke return me samaan banne wale Tapasvimurt bhava.-
Slogan:--Sital ban dusro ko sital dhristi se nihal karne wale sital yogi bano.
Hindi Version in Details –18/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अभी तुम्हें दिव्य दृष्टि मिली है - तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है, इसलिए इससे ममत्व मिटा देना है, पूरा-पूरा बलि चढ़ना है''
प्रश्न: जो अविनाशी बाप पर पूरा बलि चढ़े हुए बच्चे हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह अपना पैसा आदि फालतू खर्च नहीं करेंगे। भक्ति मार्ग में दीपावली आदि पर कितना बारूद जलाते हैं। अल्पकाल की खुशी मनाते हैं। तुम जानते हो यह सब वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट आफ मनी, वेस्ट आफ एनर्जी है। यहाँ तुम्हें ऐसी खुशियाँ नहीं मनानी हैं क्योंकि तुम तो वनवास में हो। तुम्हें इन कांटों की दुनिया से फूलों की दुनिया में जाना है।
गीत:- तुम्हें पाके हमने...... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत का अर्थ समझा। अब तुम बच्चों ने बाप को पाया है, तुमको बाप मदद देते हैं। 5 विकारों को जीतने की अर्थात् माया पर जीत पहन जगतजीत बनने की। जगत सारी दुनिया को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हम सारे जगत के मालिक बनने वाले हैं। मालिक कब बनेंगे? जब रावणराज्य पूरा हो जायेगा। रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं क्योंकि संगमयुग पर बाप आकर आत्मा का दीवा जगाए सतयुग का मालिक बनाते हैं। दशहरे के बाद दीपावली के दिन मनुष्य बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं। अक्सर करके लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण और देवियों के मन्दिर में जाते हैं। परन्तु देवियों को और लक्ष्मी-नारायण को जानते नहीं। देवियाँ हैं शिव शक्तियाँ, ब्राह्मणियाँ। देवियों के हाथ में अस्त्र शस्त्र दिखाते हैं। वास्तव में देवियों के हाथ में कोई अस्त्र शस्त्र हैं नहीं। वे तो गुप्त हैं। रावण पर जीत पाते हैं तो तुम्हारी आधाकल्प के लिए खुशियाँ कायम हो जाती हैं। अभी तुम खुशियाँ नहीं मनायेंगे। यह कोई दीपमाला थोड़ेही है क्योंकि यह तो आज दीवे जलाते, कल बुझ जाते हैं। दशहरा भी हर वर्ष मनाते रहते हैं। तुम ब्राह्मण कोई अपने घरों में दीपक नहीं जलाते हो। मन्दिरों आदि में तो दीपक, बिजलियाँ आदि जलाते हैं। मनुष्य नहीं जानते कि दीप माला, दशहरा क्या है। उस समय सारा भारत ही नया होता है। दीपक आदि जगाना, यह सब भक्ति मार्ग है। भक्ति मार्ग में कितने पैसे वेस्ट करते हैं। उस दिन बारूद कितना जलाते हैं। वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट आफ मनी, वेस्ट ऑफ एनर्जी करते रहते हैं। यह है फारेस्ट आफ थार्नस। (कांटों का जंगल) सब जंगली बन गये हैं। तुम भी पहले ऐसे थे, कुछ भी नहीं समझते थे। सतयुग में फ़जूल (व्यर्थ) खर्चा नहीं करेंगे। यहाँ तो फ़जूल खर्चा बहुत है। दान पुण्य करने से भी अल्पकाल का फल मिलता है। तुम जानते हो हम अविनाशी बाप पर बलि चढ़े हैं तो हमारा सब कुछ अविनाशी बन जाता है। पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। तुम बच्चों ने मोह जीत राजा की कथा तो सुनी है ना। यह कहानी सतयुग के लिए नहीं हैं क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता। यह सिर्फ मिसाल देने के लिए कहानी बनाई है कि उस समय सब नष्टोमोहा, मोहजीत रहते हैं। शरीर सहित पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाना है क्योंकि तुम नई दुनिया में जा रहे हो। पुरानी दुनिया के साथ किसका ममत्व होता है क्या? इसको बेहद का सन्यास कहा जाता है। सिर्फ बाबा यह नहीं कहते कि देह से ममत्व मिटाओ। परन्तु जो भी इन ऑखों से देखते हो सबको भूलो क्योंकि अब दिव्य दृष्टि मिली है कि सब खत्म होना है। पुरानी दुनिया विनाश हुई पड़ी है और नया विश्व बनेगा। शिवबाबा हमको राज्य देते हैं। शिवबाबा का नाम सदैव शिव है क्योंकि उनको अपना शरीर तो है नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी अपना शरीर है। वह है ऊपर। अमरनाथ अमर बनाने की कथा सुनाते हैं। अमरलोक में ले जाने लिए। तुम बच्चे अभी फूल बन रहे हो। कांटों को फूल बनाने में मेहनत तो लगती है। यहाँ तो सब कांटे हैं। एक दूसरे को कांटा लगाते रहते हैं, बात मत पूछो। तो बाप कहते हैं तुम्हें अब किसी को कांटा नहीं लगाना है। काम कटारी नहीं चलाना है। यह काम की हिंसा आदि-मध्य-अन्त दु:ख देती है। वैसे तो किसको मारो तो जान से खत्म हो जाते हैं। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर दु:खी होते रहते हैं। बाप कहते अभी तुम्हें काम कटारी नहीं चलाना है।
अभी तुम दशहरा मना रहे हो फिर दीपावली हो जाती है। सतयुग में दीपावली नहीं मनायेंगे। वहाँ लक्ष्मी स्वयं राज्य करती है, फिर उसकी बैठ पूजा नहीं करेंगे। मनुष्य जो मन्दिरों में रहते हैं वह देवताओं की बायोग्राफी को नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो। तुम बच्चे हो रूप-बसन्त। बाप कहते हैं मैने भी शरीर धारण किया है। परन्तु मेरा धारण करने का तरीका अलग है। अभी हमको दीपावली की खुशी नहीं होती क्योंकि हम वनवास में हैं। हम पियरघर से ससुराल घर जाते हैं। बाबा ने कहला भेजा था, 108 चत्ती वाला कपड़ा पहनो तो देह-अभिमान टूट जाए। इस समय तुम कांटों की दुनिया से फूलों की दुनिया में जा रहे हो। कहते हैं पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब। बाप कहते हैं मैं तुमको नर से नारायण बनाता हूँ। तो पुरुषार्थ ऊंच करना है। जब मैं पढ़ाता हूँ तो क्यों पद खराब करते हो? मात-पिता को क्यों नहीं फालो करते हो? बाबा ने साक्षात्कार कराया है कि जो अच्छी तरह पढ़ेंगे वह डिनायस्टी में आयेंगे। तुम जानते हो हम पढ़ते हैं स्वर्गवासी बनने के लिए। लोग समझते हैं मनुष्य मरते हैं तो स्वर्गवासी होते हैं। तुम जानते हो कि बाबा ही आकर स्वर्ग में ले जाते हैं और रावण फिर नर्कवासी बना देते हैं। मनुष्य कहते हैं हिन्दू चीनी भाई-भाई, फिर एक दो को दु:ख देते रहते हैं। तुम जानते हो मात-पिता से सुख घनेरे मिल रहे हैं। फिर घीरे-धीरे कला कमती होती जाती है। कहते हैं चढ़ती कला सर्व का भला... तो अभी सबका भला होता है। कोई नर्क से निकल स्वर्गवासी बनते, कोई शान्तिधाम निवासी बनते हैं तो भला हो गया। सतयुग में कोई दु:ख देने वाली चीज़ होती नहीं। बड़े आदमियों का फर्नीचर भी बढ़िया होता है। वहाँ दु:खदाई जानवर आदि होते नहीं क्योंकि फर्नीचर अच्छा चाहिए। उसको हेविन कहा जाता है। अल्लाह अवलदीन का खेल है, ठका करने से राजाई मिलती है। तो अल्लाह बाप अवलदीन अर्थात् आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। तो बाप सेकेण्ड में वैकुण्ठ का मालिक बना देते हैं। बाबा अवलदीन का साक्षात्कार कराते हैं। ऐसे नहीं बच्चे कहें साक्षात्कार में जायें। बाबा ने कहा है ध्यानी से ज्ञानी मुझे प्रिय हैं। ध्यान में माया प्रवेश करती है। ज्ञान में माया नहीं आती। जो नौंधा भक्ति करते हैं उनको बाप साक्षात्कार कराते हैं। यहाँ कोई नौंधा भक्ति नहीं की जाती है। छोटी-छोटी बच्चियों को साक्षात्कार हो जाता है। यहाँ तो कहा जाता है अगर ध्यान की आदत पड़ गई तो पढ़ाई नहीं पढ़ सकते। शुरू में कितना ध्यान के प्रोग्राम ले आते थे। परन्तु आज हैं नहीं। ज्ञानी तू आत्मा को किसी बात में संशय नहीं आता, संशय आया पढ़ाई छोड़ी गोया बाप को छोड़ा। अब सूर्यवंशी देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। और धर्म स्थापक कोई राजधानी स्थापन नहीं करते, वह तो जब धर्म की वृद्धि हो जाती है तब राजाई चलती है। तो तुम अब विश्व का मालिक बन रहे हो। कोई नया आये तो पूछो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? कहेंगे बाबा है। बाबा स्वर्ग स्थापन करते हैं और रावण नर्क बनाते हैं, जिसने स्वर्ग बनाया उसकी पूजा करते हैं, जिसने नर्क बनाया उसको जलाते हैं क्योंकि नर्क में मनुष्य काम चिता पर जलते हैं, तो गुस्से में आकर रावण को जलाते हैं। परन्तु रावण जलता नहीं। सिर्फ कहते हैं परम्परा से चला आता है। परन्तु परम्परा का अर्थ नहीं जानते। दुश्मन की एफीज़ी जलाते हैं। रावण को भला क्यों जलाते हो? क्योंकि रावण तुमको जलाते हैं। तुम रावण को जलाते हो, परन्तु मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। सतयुग में तो सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं तो वहाँ रावण को नहीं जलाते हैं। उसको कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड, हम पैराडाइज़ वासी बनने के लिए बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। श्राप देने वाला है रावण। रावण किसको कहा जाता है? 5 विकार स्त्री के 5 विकार पुरुष के। सतयुग में यह विकार नहीं थे। सन्यासी तो बाद में आते हैं। अभी तो देवता धर्म है नहीं। वह फिर से स्थापन हो रहा है। 108 की माला बन रही है तो प्रजा भी तो चाहिए ना। जयपुर का राजा एक था, प्रजा कितनी थी। अभी माला तो बनती है, प्रजा भी चाहिए। जो यहाँ बच्चे बनकर फिर चले जाते हैं, वह हल्की प्रजा में चले जाते हैं। कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते जीवनमुक्ति चाहिए। जीवनमुक्त तो एक नहीं होंगे। पूरा घराना चाहिए। अष्टापा गीता में लिखा है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली। लेकिन कैसे मिली? वह नहीं जानते। आदि सनातन देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। जबकि राजाई मिल रही है तो फिर हम क्यों न श्रीमत पर चलें! क्यों न कमल फूल समान बनें! तुम ब्राह्मण हो ना। तो शंख, पा, गदा, पदम तुम्हारे पास हैं।
मनुष्य दीपमाला पर सिर्फ एक दिन नया कपड़ा पहनते हैं, मन्दिरों में जाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर नये कपड़े नहीं पहनते, दीपावली के दिन नये कपड़े पहनते हैं, एवरीथिंग न्यु। उस दिन दुकानदार अपना पुराना खाता खत्म कर नया खाता शुरू करते हैं। तुम भी अब पुराना खाता खत्म कर नया शुरू कर रहे हो। बाप फायदा कराते हैं, रावण घाटा कराते हैं। फायदा कैसे होगा? मनमनाभव, मध्याजीभव। विष्णु मध्य में है ना। मध्याजीभव माना बाप ब्रह्मा द्वारा विष्णु पुरी स्थापन करते हैं। तो पुरानी दुनिया विनाश हो जाती है। तो शिवबाबा कलियुग के अन्त में आते हैं फिर सतयुग की आदि होती है। लिखा भी है कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना। ब्रह्मा तो प्रजापिता है ना। तो तुम किसके बच्चे हो? शिव के हो या ब्रह्मा के बच्चे हो? कहते भी हैं तुम मात-पिता.... बरोबर प्रैक्टिकल में मात-पिता अब हैं। पढ़ाई पढ़कर फिर वर्सा पा रहे हो फिर रावण आकर दु:खी बनाते हैं। दु:ख भी धीरे-धीरे बढ़ता है। विषय सागर यह कलियुग है। सतयुग है क्षीरसागर। विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं। तुम जानते हो बरोबर - वह क्या जाने दशहरे, दीपावली को..... हम तो राज़ को समझ गये हैं। जानते हो कल हम स्वर्ग में थे, अब नर्क में हैं। फिर कल स्वर्ग में होंगे। कल क्यों कहते हैं? क्योंकि रात के बाद दिन आता है। कोई आये तो पूछो यह आश्रम किसका है? नाम सुना है प्रजापिता ब्रह्मा? इतने ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं तो ब्रह्मा बाप हुआ। बाप से वर्सा ही मिलेगा। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मध्याजी भव। बाप धन्धे की मना नहीं करते। बाबा कहते हैं कि धन्धा भल करो। परन्तु बाबा को याद करो क्योंकि उनसे वर्सा मिलता है। यह भीती है ना, और जगह भीती नहीं होती। स्कूल में भी भीती होती है, तभी कहते हैं कि स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट। यह बेहद की पढ़ाई है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तुम जानते हो। स्कूलों में जाकर बताओ कि बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी क्या है। उनको कहना है कि आप तो हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ाते हो। हम आपको लक्ष्मी-नारायण की बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बतायें कि लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे पाया। आगे चल तुमको कॉलेजों में भी निमंत्रण मिलेंगे। यह है ईश्वरीय विश्व विद्यालय। वह है स्पिरिचुयल फादर। तो रूहों को स्पिरिचुयल नॉलेज देते हैं। निराकार साकार में आकर सुनाते हैं। कृष्ण की तो इसमें कोई बात नहीं है। किसी बात को समझते नहीं हैं। सूत मूँझा हुआ है। स्वतंत्र होने चाहते हैं परन्तु झगड़ा बढ़ता ही जाता है। कहते हैं फ्रीडम चाहिए। सच्ची-सच्ची फ्रीडम तुमको मिलती है रावण से। भारतवासी समझते हैं कि हमने क्रिश्चियन से फ्रीडम पाई, परन्तु फ्रीडम है कहाँ? फ्रीडम तुमको मिलती है, इंडिपिडेंट राजाई। गीत सुना ना कि तुम मिले तो धरती, आसमान, सागर सब हमारा हो जाता है। उसमें हदें हैं नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे पाँच हजार वर्ष बाद फिर से मिले हुए, वर्सा पाने वाले बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मात-पिता को पूरा फालो कर पढ़ाई में ऊंच पद पाना है। इस दुनिया में कोई भी शौक नहीं रखना है। वनवास में रहना है।
2) इन ऑखों से जो कुछ दिखाई देता है उसे देखते हुए भी नहीं देखना है। पूरा नष्टोमोहा बनना है। संगम पर कुछ भी वेस्ट नहीं करना है।
वरदान:बापदादा के स्नेह के रिटर्न में समान बनने वाले तपस्वीमूर्त भव!
समय की परिस्थितियों के प्रमाण, स्व की उन्नति वा तीव्रगति से सेवा करने तथा बापदादा के स्नेह का रिटर्न देने के लिए वर्तमान समय तपस्या की अति आवश्यकता है। बाप से बच्चों का प्यार है लेकिन बापदादा प्यार के रिटर्न स्वरूप में बच्चों को अपने समान देखना चाहते हैं। समान बनने के लिए तपस्वीमूर्त बनो। इसके लिए चारों ओर के किनारे छोड़ बेहद के वैरागी बनो। किनारों को सहारा नहीं बनाओ।
स्लोगन: शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल करने वाले शीतल योगी बनो।
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Mithe bacche - Abhi tumhe divya dhristi mili hai-tum jaante ho yah purani duniya khatam honi hai, isiliye isse mamatwa mita dena hai, poora-poora bali chadhna hai.
Q- Jo abinashi Baap par poora bali chadhe huye bacche hain unki nishani kya hogi?
A- Wo apna paisa adi faltu kharch nahi karenge. Bhakti marg me dipawali adi par kitna barood jalate hain. Alpkaal ki khushi manate hain. Tum jaante ho yah sab waste of time, waste of money, waste of energy hai. Yahan tumhe aisi khushiyan nahi manani hai kyunki tum to banvas me ho. Tumhe in kaaton ki duniya se phoolon ki duniya me jana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Mata-pita ko poora follow kar padhai me oonch pad pana hai. Is duniya me koi bhi souk nahi rakhna hai. Banvas me rehna hai.
2) In aankho se jo kuch dikhayi deta hai usey dekte huye bhi nahi dekhna hai. Poora nastmoha banna hai. Sangam par kuch bhi waste nahi karna hai.
Vardaan:-- Bapdada ke sneh ke return me samaan banne wale Tapasvimurt bhava.-
Slogan:--Sital ban dusro ko sital dhristi se nihal karne wale sital yogi bano.
Hindi Version in Details –18/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अभी तुम्हें दिव्य दृष्टि मिली है - तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है, इसलिए इससे ममत्व मिटा देना है, पूरा-पूरा बलि चढ़ना है''
प्रश्न: जो अविनाशी बाप पर पूरा बलि चढ़े हुए बच्चे हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह अपना पैसा आदि फालतू खर्च नहीं करेंगे। भक्ति मार्ग में दीपावली आदि पर कितना बारूद जलाते हैं। अल्पकाल की खुशी मनाते हैं। तुम जानते हो यह सब वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट आफ मनी, वेस्ट आफ एनर्जी है। यहाँ तुम्हें ऐसी खुशियाँ नहीं मनानी हैं क्योंकि तुम तो वनवास में हो। तुम्हें इन कांटों की दुनिया से फूलों की दुनिया में जाना है।
गीत:- तुम्हें पाके हमने...... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत का अर्थ समझा। अब तुम बच्चों ने बाप को पाया है, तुमको बाप मदद देते हैं। 5 विकारों को जीतने की अर्थात् माया पर जीत पहन जगतजीत बनने की। जगत सारी दुनिया को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हम सारे जगत के मालिक बनने वाले हैं। मालिक कब बनेंगे? जब रावणराज्य पूरा हो जायेगा। रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं क्योंकि संगमयुग पर बाप आकर आत्मा का दीवा जगाए सतयुग का मालिक बनाते हैं। दशहरे के बाद दीपावली के दिन मनुष्य बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं। अक्सर करके लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण और देवियों के मन्दिर में जाते हैं। परन्तु देवियों को और लक्ष्मी-नारायण को जानते नहीं। देवियाँ हैं शिव शक्तियाँ, ब्राह्मणियाँ। देवियों के हाथ में अस्त्र शस्त्र दिखाते हैं। वास्तव में देवियों के हाथ में कोई अस्त्र शस्त्र हैं नहीं। वे तो गुप्त हैं। रावण पर जीत पाते हैं तो तुम्हारी आधाकल्प के लिए खुशियाँ कायम हो जाती हैं। अभी तुम खुशियाँ नहीं मनायेंगे। यह कोई दीपमाला थोड़ेही है क्योंकि यह तो आज दीवे जलाते, कल बुझ जाते हैं। दशहरा भी हर वर्ष मनाते रहते हैं। तुम ब्राह्मण कोई अपने घरों में दीपक नहीं जलाते हो। मन्दिरों आदि में तो दीपक, बिजलियाँ आदि जलाते हैं। मनुष्य नहीं जानते कि दीप माला, दशहरा क्या है। उस समय सारा भारत ही नया होता है। दीपक आदि जगाना, यह सब भक्ति मार्ग है। भक्ति मार्ग में कितने पैसे वेस्ट करते हैं। उस दिन बारूद कितना जलाते हैं। वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट आफ मनी, वेस्ट ऑफ एनर्जी करते रहते हैं। यह है फारेस्ट आफ थार्नस। (कांटों का जंगल) सब जंगली बन गये हैं। तुम भी पहले ऐसे थे, कुछ भी नहीं समझते थे। सतयुग में फ़जूल (व्यर्थ) खर्चा नहीं करेंगे। यहाँ तो फ़जूल खर्चा बहुत है। दान पुण्य करने से भी अल्पकाल का फल मिलता है। तुम जानते हो हम अविनाशी बाप पर बलि चढ़े हैं तो हमारा सब कुछ अविनाशी बन जाता है। पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। तुम बच्चों ने मोह जीत राजा की कथा तो सुनी है ना। यह कहानी सतयुग के लिए नहीं हैं क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता। यह सिर्फ मिसाल देने के लिए कहानी बनाई है कि उस समय सब नष्टोमोहा, मोहजीत रहते हैं। शरीर सहित पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाना है क्योंकि तुम नई दुनिया में जा रहे हो। पुरानी दुनिया के साथ किसका ममत्व होता है क्या? इसको बेहद का सन्यास कहा जाता है। सिर्फ बाबा यह नहीं कहते कि देह से ममत्व मिटाओ। परन्तु जो भी इन ऑखों से देखते हो सबको भूलो क्योंकि अब दिव्य दृष्टि मिली है कि सब खत्म होना है। पुरानी दुनिया विनाश हुई पड़ी है और नया विश्व बनेगा। शिवबाबा हमको राज्य देते हैं। शिवबाबा का नाम सदैव शिव है क्योंकि उनको अपना शरीर तो है नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी अपना शरीर है। वह है ऊपर। अमरनाथ अमर बनाने की कथा सुनाते हैं। अमरलोक में ले जाने लिए। तुम बच्चे अभी फूल बन रहे हो। कांटों को फूल बनाने में मेहनत तो लगती है। यहाँ तो सब कांटे हैं। एक दूसरे को कांटा लगाते रहते हैं, बात मत पूछो। तो बाप कहते हैं तुम्हें अब किसी को कांटा नहीं लगाना है। काम कटारी नहीं चलाना है। यह काम की हिंसा आदि-मध्य-अन्त दु:ख देती है। वैसे तो किसको मारो तो जान से खत्म हो जाते हैं। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर दु:खी होते रहते हैं। बाप कहते अभी तुम्हें काम कटारी नहीं चलाना है।
अभी तुम दशहरा मना रहे हो फिर दीपावली हो जाती है। सतयुग में दीपावली नहीं मनायेंगे। वहाँ लक्ष्मी स्वयं राज्य करती है, फिर उसकी बैठ पूजा नहीं करेंगे। मनुष्य जो मन्दिरों में रहते हैं वह देवताओं की बायोग्राफी को नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो। तुम बच्चे हो रूप-बसन्त। बाप कहते हैं मैने भी शरीर धारण किया है। परन्तु मेरा धारण करने का तरीका अलग है। अभी हमको दीपावली की खुशी नहीं होती क्योंकि हम वनवास में हैं। हम पियरघर से ससुराल घर जाते हैं। बाबा ने कहला भेजा था, 108 चत्ती वाला कपड़ा पहनो तो देह-अभिमान टूट जाए। इस समय तुम कांटों की दुनिया से फूलों की दुनिया में जा रहे हो। कहते हैं पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब। बाप कहते हैं मैं तुमको नर से नारायण बनाता हूँ। तो पुरुषार्थ ऊंच करना है। जब मैं पढ़ाता हूँ तो क्यों पद खराब करते हो? मात-पिता को क्यों नहीं फालो करते हो? बाबा ने साक्षात्कार कराया है कि जो अच्छी तरह पढ़ेंगे वह डिनायस्टी में आयेंगे। तुम जानते हो हम पढ़ते हैं स्वर्गवासी बनने के लिए। लोग समझते हैं मनुष्य मरते हैं तो स्वर्गवासी होते हैं। तुम जानते हो कि बाबा ही आकर स्वर्ग में ले जाते हैं और रावण फिर नर्कवासी बना देते हैं। मनुष्य कहते हैं हिन्दू चीनी भाई-भाई, फिर एक दो को दु:ख देते रहते हैं। तुम जानते हो मात-पिता से सुख घनेरे मिल रहे हैं। फिर घीरे-धीरे कला कमती होती जाती है। कहते हैं चढ़ती कला सर्व का भला... तो अभी सबका भला होता है। कोई नर्क से निकल स्वर्गवासी बनते, कोई शान्तिधाम निवासी बनते हैं तो भला हो गया। सतयुग में कोई दु:ख देने वाली चीज़ होती नहीं। बड़े आदमियों का फर्नीचर भी बढ़िया होता है। वहाँ दु:खदाई जानवर आदि होते नहीं क्योंकि फर्नीचर अच्छा चाहिए। उसको हेविन कहा जाता है। अल्लाह अवलदीन का खेल है, ठका करने से राजाई मिलती है। तो अल्लाह बाप अवलदीन अर्थात् आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। तो बाप सेकेण्ड में वैकुण्ठ का मालिक बना देते हैं। बाबा अवलदीन का साक्षात्कार कराते हैं। ऐसे नहीं बच्चे कहें साक्षात्कार में जायें। बाबा ने कहा है ध्यानी से ज्ञानी मुझे प्रिय हैं। ध्यान में माया प्रवेश करती है। ज्ञान में माया नहीं आती। जो नौंधा भक्ति करते हैं उनको बाप साक्षात्कार कराते हैं। यहाँ कोई नौंधा भक्ति नहीं की जाती है। छोटी-छोटी बच्चियों को साक्षात्कार हो जाता है। यहाँ तो कहा जाता है अगर ध्यान की आदत पड़ गई तो पढ़ाई नहीं पढ़ सकते। शुरू में कितना ध्यान के प्रोग्राम ले आते थे। परन्तु आज हैं नहीं। ज्ञानी तू आत्मा को किसी बात में संशय नहीं आता, संशय आया पढ़ाई छोड़ी गोया बाप को छोड़ा। अब सूर्यवंशी देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। और धर्म स्थापक कोई राजधानी स्थापन नहीं करते, वह तो जब धर्म की वृद्धि हो जाती है तब राजाई चलती है। तो तुम अब विश्व का मालिक बन रहे हो। कोई नया आये तो पूछो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? कहेंगे बाबा है। बाबा स्वर्ग स्थापन करते हैं और रावण नर्क बनाते हैं, जिसने स्वर्ग बनाया उसकी पूजा करते हैं, जिसने नर्क बनाया उसको जलाते हैं क्योंकि नर्क में मनुष्य काम चिता पर जलते हैं, तो गुस्से में आकर रावण को जलाते हैं। परन्तु रावण जलता नहीं। सिर्फ कहते हैं परम्परा से चला आता है। परन्तु परम्परा का अर्थ नहीं जानते। दुश्मन की एफीज़ी जलाते हैं। रावण को भला क्यों जलाते हो? क्योंकि रावण तुमको जलाते हैं। तुम रावण को जलाते हो, परन्तु मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। सतयुग में तो सम्पूर्ण निर्विकारी होते हैं तो वहाँ रावण को नहीं जलाते हैं। उसको कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड, हम पैराडाइज़ वासी बनने के लिए बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। श्राप देने वाला है रावण। रावण किसको कहा जाता है? 5 विकार स्त्री के 5 विकार पुरुष के। सतयुग में यह विकार नहीं थे। सन्यासी तो बाद में आते हैं। अभी तो देवता धर्म है नहीं। वह फिर से स्थापन हो रहा है। 108 की माला बन रही है तो प्रजा भी तो चाहिए ना। जयपुर का राजा एक था, प्रजा कितनी थी। अभी माला तो बनती है, प्रजा भी चाहिए। जो यहाँ बच्चे बनकर फिर चले जाते हैं, वह हल्की प्रजा में चले जाते हैं। कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते जीवनमुक्ति चाहिए। जीवनमुक्त तो एक नहीं होंगे। पूरा घराना चाहिए। अष्टापा गीता में लिखा है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली। लेकिन कैसे मिली? वह नहीं जानते। आदि सनातन देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। जबकि राजाई मिल रही है तो फिर हम क्यों न श्रीमत पर चलें! क्यों न कमल फूल समान बनें! तुम ब्राह्मण हो ना। तो शंख, पा, गदा, पदम तुम्हारे पास हैं।
मनुष्य दीपमाला पर सिर्फ एक दिन नया कपड़ा पहनते हैं, मन्दिरों में जाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर नये कपड़े नहीं पहनते, दीपावली के दिन नये कपड़े पहनते हैं, एवरीथिंग न्यु। उस दिन दुकानदार अपना पुराना खाता खत्म कर नया खाता शुरू करते हैं। तुम भी अब पुराना खाता खत्म कर नया शुरू कर रहे हो। बाप फायदा कराते हैं, रावण घाटा कराते हैं। फायदा कैसे होगा? मनमनाभव, मध्याजीभव। विष्णु मध्य में है ना। मध्याजीभव माना बाप ब्रह्मा द्वारा विष्णु पुरी स्थापन करते हैं। तो पुरानी दुनिया विनाश हो जाती है। तो शिवबाबा कलियुग के अन्त में आते हैं फिर सतयुग की आदि होती है। लिखा भी है कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना। ब्रह्मा तो प्रजापिता है ना। तो तुम किसके बच्चे हो? शिव के हो या ब्रह्मा के बच्चे हो? कहते भी हैं तुम मात-पिता.... बरोबर प्रैक्टिकल में मात-पिता अब हैं। पढ़ाई पढ़कर फिर वर्सा पा रहे हो फिर रावण आकर दु:खी बनाते हैं। दु:ख भी धीरे-धीरे बढ़ता है। विषय सागर यह कलियुग है। सतयुग है क्षीरसागर। विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं। तुम जानते हो बरोबर - वह क्या जाने दशहरे, दीपावली को..... हम तो राज़ को समझ गये हैं। जानते हो कल हम स्वर्ग में थे, अब नर्क में हैं। फिर कल स्वर्ग में होंगे। कल क्यों कहते हैं? क्योंकि रात के बाद दिन आता है। कोई आये तो पूछो यह आश्रम किसका है? नाम सुना है प्रजापिता ब्रह्मा? इतने ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं तो ब्रह्मा बाप हुआ। बाप से वर्सा ही मिलेगा। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मध्याजी भव। बाप धन्धे की मना नहीं करते। बाबा कहते हैं कि धन्धा भल करो। परन्तु बाबा को याद करो क्योंकि उनसे वर्सा मिलता है। यह भीती है ना, और जगह भीती नहीं होती। स्कूल में भी भीती होती है, तभी कहते हैं कि स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट। यह बेहद की पढ़ाई है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तुम जानते हो। स्कूलों में जाकर बताओ कि बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी क्या है। उनको कहना है कि आप तो हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ाते हो। हम आपको लक्ष्मी-नारायण की बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बतायें कि लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे पाया। आगे चल तुमको कॉलेजों में भी निमंत्रण मिलेंगे। यह है ईश्वरीय विश्व विद्यालय। वह है स्पिरिचुयल फादर। तो रूहों को स्पिरिचुयल नॉलेज देते हैं। निराकार साकार में आकर सुनाते हैं। कृष्ण की तो इसमें कोई बात नहीं है। किसी बात को समझते नहीं हैं। सूत मूँझा हुआ है। स्वतंत्र होने चाहते हैं परन्तु झगड़ा बढ़ता ही जाता है। कहते हैं फ्रीडम चाहिए। सच्ची-सच्ची फ्रीडम तुमको मिलती है रावण से। भारतवासी समझते हैं कि हमने क्रिश्चियन से फ्रीडम पाई, परन्तु फ्रीडम है कहाँ? फ्रीडम तुमको मिलती है, इंडिपिडेंट राजाई। गीत सुना ना कि तुम मिले तो धरती, आसमान, सागर सब हमारा हो जाता है। उसमें हदें हैं नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे पाँच हजार वर्ष बाद फिर से मिले हुए, वर्सा पाने वाले बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मात-पिता को पूरा फालो कर पढ़ाई में ऊंच पद पाना है। इस दुनिया में कोई भी शौक नहीं रखना है। वनवास में रहना है।
2) इन ऑखों से जो कुछ दिखाई देता है उसे देखते हुए भी नहीं देखना है। पूरा नष्टोमोहा बनना है। संगम पर कुछ भी वेस्ट नहीं करना है।
वरदान:बापदादा के स्नेह के रिटर्न में समान बनने वाले तपस्वीमूर्त भव!
समय की परिस्थितियों के प्रमाण, स्व की उन्नति वा तीव्रगति से सेवा करने तथा बापदादा के स्नेह का रिटर्न देने के लिए वर्तमान समय तपस्या की अति आवश्यकता है। बाप से बच्चों का प्यार है लेकिन बापदादा प्यार के रिटर्न स्वरूप में बच्चों को अपने समान देखना चाहते हैं। समान बनने के लिए तपस्वीमूर्त बनो। इसके लिए चारों ओर के किनारे छोड़ बेहद के वैरागी बनो। किनारों को सहारा नहीं बनाओ।
स्लोगन: शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल करने वाले शीतल योगी बनो।
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Details ( Page:- Murali 19-Oct 2017 )
Hinglish Summary 19.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap ke madadgar ban sabko nayi duniya ka purusharth karao - jaise khud knowledgeful bane ho, aise auro ko bhi banate raho.
Q- Tum baccho ko abhi kis smruti me rehna hai? Smruti ki kamaal kya hai?
A- Tumhe abhi beej aur jhaad ki jo knowledge mili hai, us knowledge ki smruti me rehna hai. Is smruti se tum Chakravarti Raja ban jate ho - yah hai smruti ki kamaal. Baap baccho ko smruti dilate hain - bacche smruti ayi tumne adhakalp bahut bhakti ki hai. Ab main tumhe bhakti ka fal dene aya hun. Tum fir se Vaikunth ka mallik bante ho. Jaise Baap mitha hai - aise Baap ki knowledge bhi mithi hai, jiska simran kar simar-simar sukh pana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap samaan bahut mitha banna hai. Sabko mithi dhristi se dekhna hai. Kisi ka bhi avgoon nahi dekhna hai._
2)Godly student life ki khushi me rehna hai. Jab tak jeena hai padhai roz padhni hai.
Vardaan:- Bapdada ki ashaon ka dip jagakar sachchi dipawali manane wale Kul Dipak bhava.
Slogan:--Pavitrata he Brahman jeevan ka mukhya foundation hai, dharat pariye dharm na chhodiye.
Hindi Version in Details –19/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बाप के मददगार बन सबको नई दुनिया का पुरूषार्थ कराओ - जैसे खुद नॉलेजफुल बने हो, ऐसे औरों को भी बनाते रहो''
प्रश्न: तुम बच्चों को अभी किस स्मृति में रहना है? स्मृति की कमाल क्या है?
उत्तर:
तुम्हें अभी बीज और झाड़ की जो नॉलेज मिली है, उस नॉलेज की स्मृति में रहना है। इस स्मृति से तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो - यही है स्मृति की कमाल। बाप बच्चों को स्मृति दिलाते हैं - बच्चे स्मृति आई तुमने आधाकल्प बहुत भक्ति की है। अब मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तुम फिर से वैकुण्ठ का मालिक बनते हो। जैसे बाप मीठा है - ऐसे बाप की नॉलेज भी मीठी है, जिसका सिमरण कर सिमर-सिमर सुख पाना है।
गीत:- जाग सजनियाँ जाग.... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। आज दीपमाला है। दीपमाला कहा जाता है नये युग को। सतयुग में कोई दीपमाला नहीं मनाई जाती क्योंकि वहाँ सभी की आत्मा रूपी ज्योति जगी हुई होती है। बच्चे जानते हैं कि हम नई दुनिया में राज्य भाग्य लेने का पुरूषार्थ कर रहे हैं - श्रीमत पर। तुम अभी त्रिकालदर्शी बने हो। त्रिकालदर्शी कहा जाता है पास्ट, प्रजेन्ट, फ्यूचर को जानने वाले को। तुमको अब तीनों कालों की नॉलेज है। तो तुमको औरों को भी समझाना है। खुद भी कांटों से फूल बनते हो। औरों को भी बनाना है। पास्ट की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानने से फ्यूचर क्या होने वाला है, वह भी जान जाते हो। फ्यूचर को जानने से पास्ट, प्रेजन्ट को भी जान जाते हो - इसको कहा जाता है नॉलेजफुल। पास्ट था कलियुग, प्रेजन्ट है संगमयुग, फिर फ्युचर सतयुग त्रेता को आना है। तो तुम बच्चों ने इस चक्र को जान लिया है और नई दुनिया में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो और औरों को भी पुरूषार्थ कराने में लगे हुए हो, बाबा के मददगार बन। बाप है सिकीलधा और तुम भी सिकीलधे हो क्योंकि पाँच हजार वर्ष के बाद मिले हो। तो बाप आया है सजनियों को श्रृगांर कर नई दुनिया में ले जाने। बच्चों की बुद्धि में ऊपर से लेकर मूलवतन, सूक्ष्मवतन की नॉलेज है। बच्चे जानते हैं कि कौन-कौन धर्म स्थापक कब और कैसे ऊपर से आकर धर्म स्थापन करते हैं। बाप ने तुमको नॉलेजफुल बनाया है। उसको मोस्ट बिलवेड कहा जाता है। मीठे ते मीठा है। तुम जानते हो कितना मीठा है। उसकी महिमा अपरमअपार है तो उनके वर्से की महिमा भी अपरमअपार है। नाम ही है स्वर्ग, हेविन, पैराडाइज, बहिश्त। परमात्मा को कहते हैं गॉड फादर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता। तो उनको कितना याद करना चाहिए। परन्तु ड्रामा अनुसार याद नहीं आता। यह गीत कितना अच्छा है। घर में 3-4 रिकार्ड जरूर हों। यह रिकार्ड भी बाप की याद दिलाते हैं। ब्राह्मण ही जानते हैं कि नई दैवी दुनिया स्वराज्य अर्थात् आत्मा को अब राज्य मिल रहा है। लौकिक बाप द्वारा जो वर्सा मिलता है वह यह नहीं कहते कि परमात्मा द्वारा मिला है। तुम जानते हो बाप से राज्य लिया फिर गॅवाया। अब फिर ले रहे हैं। सतयुग में गोरे थे फिर काले बने। गाते भी हैं श्याम सुन्दर। श्याम था - अब सुन्दर बनने के लिए सतगुरू मिला है। अब सतगुरू और गोविन्द दोनों खड़े हैं। फिर कहते हैं बलिहारी गुरू आपकी... तुम कृष्ण बन रहे हो। बलिहारी तुम बच्चों की जो तुम ऐसा बन रहे हो। वह तो कह देते कृष्ण गऊ चराते थे। फिर ब्रह्मा के लिए भी कहते उनकी गऊशाला थी। तो गऊशाला न है कृष्ण की, न ब्रह्मा की। गऊशाला शिवबाबा की है।
अभी तुम बच्चे त्योहारों का रहस्य भी समझते हो। तुम जानते हो कि दीपमाला होती है सतयुग में। वहाँ ज्योति जगी रहती है। तुम्हारी 21 जन्म दीपमाला है। यहाँ वर्ष-वर्ष मनाते हैं। आज मनाते, कल दीवा बुझ जाता। अगर सतयुग में मनायेंगे तो भी कारोनेशन, उस दिन आतशबाजी जलाते हैं। यहाँ तो पाई पैसे की आतशबाजी खेलते हैं, जिससे कई एक्सीडेन्ट हो जाते हैं। वहाँ तो बड़ी कारोनेशन होती है। यहाँ राजाई मिलती है तो वर्ष-वर्ष मनाते हैं। परन्तु इस राजाई में सुख नहीं। यह है भ्रष्टाचारी दुनिया, वह थी श्रेष्ठाचारी दुनिया। बाप कहते हैं देखो तुमको कितना समझदार बनाते हैं। बाप को कहा जाता है त्रिलोकीनाथ। त्रिलोकी के मालिक नहीं बनते। उनमें नॉलेज है। तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए। आधाकल्प तुमने भक्ति की, अब बाप मिला है। बाप अब स्मृति दिलाते हैं - कहते हैं, सिमरो, सिमरो... किसको? बाप को और बाप के रचना की नॉलेज को। बीज और झाड़ को। इस स्मृति से तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो। देखा स्मृति की कमाल, क्या से क्या बनाती है। इसको कहा जाता है प्रीचुअल नॉलेज। आत्मा का जो बाप है वह नॉलेज सुनाते हैं। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। परन्तु बाप तुमको नॉलेज दे अपने से भी ऊंचा बनाते हैं। तुम वैकुण्ठ के मालिक बनते हो। जैसे वह पढ़ाई पढ़ते हैं तो बुद्धि में रहता है कि हम बैरिस्टर बनेंगे। तुम जानते हो हम बेगर से प्रिन्स बनेंगे। फिर महाराजा बनेंगे। अब बाप टीचर रूप से पढ़ा रहे हैं। लौकिक में बच्चा 5 वर्ष बाप के पास रहता है फिर टीचर के पास जाता है, बुढ़ापे में फिर गुरू करते हैं। यहाँ तो बाप के बने और बाप, टीचर रूप में शिक्षा देते हैं और सद्गति के लिए साथ ले जाते हैं। वह गुरू साथ नहीं ले जाते। खुद ही मुक्ति में नहीं जाते। वह यात्रा में ले जाते हैं, तुम भी पण्डे वह भी पण्डे। परन्तु वह ठिक्कर ठोबर की यात्रा है। यह ज्ञान तुमको है। तुमको खुशी रहनी चाहिए। यह स्टूडेन्ट लाइफ है तो भूलना क्यों चाहिए। परन्तु माया वह खुशी रहने नहीं देती है क्योंकि कर्मातीत अवस्था अन्त में आयेगी। कहा है ना स्मृतिलब्धा। सिमर-सिमर सुख पाओ, वहाँ क्लेष होता नहीं। कहा जाता है जीवनमुक्ति। जैसे बाप मीठा है वैसे बाप की नॉलेज मीठी है। बाबा की महिमा अपरमअपार है अर्थात् पार नहीं पाया जाता है। यह भक्ति में कहा जाता है। तुम यह नहीं कह सकते हो क्योंकि तुमको सारी नॉलेज मिली हुई है। तुमको बहुत मीठा बनना है। अपने को देखो कि मेरे में कोई विकार तो नहीं है? किसी का अवगुण तो नहीं देखते? बहुत मीठी दृष्टि रखनी है। बाबा के कितने बच्चे हैं। सब पर मीठी दृष्टि है ना। तुमको भी ऐसी रखनी है। मनुष्य यह नहीं जानते कि राधे कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण का क्या सम्बन्ध है इसलिए चित्र भी बनाया है। छोटेपन में राधे कृष्ण स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बाप आकर स्मृति दिला रहे हैं कि बच्चे तुम देवता थे। बच्चे कहते बरोबर थे। कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:, ब्राह्मण लोग कहते हैं परन्तु जानते नहीं कि ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय तीन धर्म स्थापन करते हैं। तो ब्राह्मणों का बाप है - ब्रह्मा और शिव। बाप साधारण रूप में आते हैं। यह रथ मुकरर है, भाग्यशाली रथ।
मनुष्य दीपावली के दिन लक्ष्मी से पैसे मांगने के लिए आवाह्न करते हैं। पहले तुम भी मांगते थे। अब तुम लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो। यहाँ पर तो भीख ही भीख मांगते हैं। चिल्लाते हैं, पुत्र दो, धन दो। सतयुग में ऐसे नहीं मांगते। शिवबाबा बच्चों के सब भण्डारे भरपूर कर देते हैं। बाप तो स्वर्ग रचेंगे - नर्क थोड़ेही रचेंगे। अभी नर्क में बाबा आया है स्वर्गवासी बनाने। सभी पतित हैं, यह नहीं जानते कि हम नर्कवासी हैं। जो स्वर्गवासी थे, अब वह नर्कवासी बने हैं। अब फिर स्वर्गवासी बन रहे हैं। शिवबाबा का अकालतख्त यह ब्रह्मा है, जिसमें अकालमूर्त परमात्मा आकर बैठते हैं। आत्मा भी अकालमूर्त है। आत्मा का तख्त यह भ्रकुटी है। निशानी भी है जो मस्तक में तिलक देते हैं, आजकल बैल को भी तिलक देते हैं। तो यह भ्रकुटी ब्रह्मा और शिवबाबा दोनों का तख्त है। तो मैं आकर नॉलेज देता हूँ, नॉलेजफुल हूँ। मैं कोई सभी के दिलों को नहीं जानता हूँ, थाट रीडर नहीं हूँ। हाँ दिल का मालिक कह सकते हो क्योंकि दिल कहा जाता है आत्मा को। तो मै आत्मा का मालिक हूँ, शरीर का मालिक नही हूँ। ऐसा साधू लोग कहते हैं ना - मैं मालिक। तो मैं आविनाशी आत्मा का मालिक हूँ क्योंकि मैं खुद अविनाशी हूँ। तुम विनाशी चीज़ के मालिक बनते हो क्योंकि तुम एक विनाशी शरीर छोड़ दूसरा लेते हो। तुम अभी वैकुण्ठ में जाते हो, इसलिए पढ़ाई पढ़ रहे हो। कहते हैं ना - जब तक जीना है तब तक पीना है। जब पढ़ाई पूरी होगी तब यह शरीर ही छूट जायेगा। कहते हैं कि परमात्मा को संकल्प उठा सृष्टि रचने जाऊं। जब समय होगा तब ही एक्ट करने का विचार आयेगा और आकर पार्ट बजायेगा। बाप कहते हैं - जैसे तुम पार्ट बजाते हो, वैसे मैं भी बजाता हूँ। बाकी मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ इसलिए मेरी कितनी महिमा है। वैकुण्ठ की भी महिमा है। सन्यासियों को सतयुग के सुख का मालूम नहीं है। वहाँ का सुख उन्हों को मिलना ही नहीं है। सतयुग के लिए भी उन्होंने सुना है ना कि कंस थे। तो समझते हैं वहाँ भी सुख नहीं था। तो औरों को भी ऐसे सुनाते कि काग विष्टा समान सुख है। तो ऐसे सुनाकर औरों को सन्यास कराते हैं। तुम बच्चे तो स्वर्ग के सुख पाते हो। यह तो अन्तिम जन्म है। मरेंगे भी सभी। मैं आया ही हूँ लेने लिए तो क्या तुम यहाँ ही बैठे रहेंगे। मच्छरों सदृश्य सबको ले जाऊंगा। तो मम्मा बाबा सदृश्य पुरूषार्थ कर पद ले लेना चाहिए। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना। जितने सतयुग, त्रेतायुग में देवतायें होंगे उतने ही अब ब्रह्मा मुख वंशावली बनने हैं। तो कायदे अनुसार मात-पिता भी है फिर किसको मुकरर किया जाता है सम्भाल के लिए। नये-नये बच्चे तो आते रहेंगे, पढ़ाई चलती रहेगी। पिछाड़ी तक वृद्धि को पाते रहेंगे। परवरिश बहुत अच्छी करनी चाहिए। वह है बागवान। तुम जो सेन्टर पर रहते हो वह हुए माली। माली को तो पौधों की सम्भाल करनी चाहिए। जो माली ही ठीक नहीं होगा तो वह पौधों की क्या सम्भाल करेगा। जो माली अच्छा-अच्छा बगीचा बनाते हैं, तो बागवान देख बहुत खुश होते हैं। फिर बागवान जाते हैं देखने कि किस-किस ने बड़ा अच्छा बगीचा बनाया है। तुम भी जानते हो कि कौन-कौन अच्छे माली हैं। जो अच्छे-अच्छे माली हैं उनको इनाम भी मिलता है। तुम मालियों की पघार (तनखा) बढ़ती जाती है।
अभी तुम बच्चों को अपनी मंजिल को याद करना है क्योंकि तुम्हें अभी वापिस घर जाना है तो घर को याद करना पड़े। सिवाए याद के शान्तिधाम नहीं जा सकते। नहीं तो मोचरा (सज़ा) बहुत खाना पड़ेगा, पद भी अच्छा पा नहीं सकेंगे। इस समय जो सूक्ष्मवतन में जाते हैं, सर्विस अर्थ जाते हैं। पहले नम्बर में बाबा सर्विस करते हैं, सेकेण्ड नम्बर में मम्मा क्योंकि मम्मा को सेकेण्ड नम्बर में आना है। तो तुम बच्चों को भी मम्मा बाबा को फालो करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान बहुत मीठा बनना है। सबको मीठी दृष्टि से देखना है। किसी का भी अवगुण नहीं देखना है।
2) गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ की खुशी में रहना है। जब तक जीना है पढ़ाई रोज़ पढ़नी है।
वरदान: बापदादा की आशाओं का दीप जगाकर सच्ची दीपावली मनाने वाले कुल दीपक भव!
चार प्रकार के दीपक गाये हुए हैं:1- अंधियारे को मिटाकर रोशनी करने वाला मिट्टी का स्थूल दीपक 2- आत्मा रूपी दीपक, 3- कुल का दीपक और चौथा आशाओं का दीपक। मिट्टी के दीपक तो कई जन्म जगाये हैं। अब आत्मा रूपी दीपक सदा जगा रहे। ऐसा कोई भी कर्म न हो जो कुल का दीपक बुझ जाये, ऐसी कोई चलन न हो जो बापदादा की आशाओं का दीपक बुझ जाये। तो अब ऐसे कुल दीपक बन बापदादा की आशाओं का दीप जगाते हुए सच्ची दीपावली मनाओ।
स्लोगन: पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन का मुख्य फाउन्डेशन है, धरत परिये धर्म न छोड़िये।
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Mithe bacche - Baap ke madadgar ban sabko nayi duniya ka purusharth karao - jaise khud knowledgeful bane ho, aise auro ko bhi banate raho.
Q- Tum baccho ko abhi kis smruti me rehna hai? Smruti ki kamaal kya hai?
A- Tumhe abhi beej aur jhaad ki jo knowledge mili hai, us knowledge ki smruti me rehna hai. Is smruti se tum Chakravarti Raja ban jate ho - yah hai smruti ki kamaal. Baap baccho ko smruti dilate hain - bacche smruti ayi tumne adhakalp bahut bhakti ki hai. Ab main tumhe bhakti ka fal dene aya hun. Tum fir se Vaikunth ka mallik bante ho. Jaise Baap mitha hai - aise Baap ki knowledge bhi mithi hai, jiska simran kar simar-simar sukh pana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap samaan bahut mitha banna hai. Sabko mithi dhristi se dekhna hai. Kisi ka bhi avgoon nahi dekhna hai._
2)Godly student life ki khushi me rehna hai. Jab tak jeena hai padhai roz padhni hai.
Vardaan:- Bapdada ki ashaon ka dip jagakar sachchi dipawali manane wale Kul Dipak bhava.
Slogan:--Pavitrata he Brahman jeevan ka mukhya foundation hai, dharat pariye dharm na chhodiye.
Hindi Version in Details –19/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बाप के मददगार बन सबको नई दुनिया का पुरूषार्थ कराओ - जैसे खुद नॉलेजफुल बने हो, ऐसे औरों को भी बनाते रहो''
प्रश्न: तुम बच्चों को अभी किस स्मृति में रहना है? स्मृति की कमाल क्या है?
उत्तर:
तुम्हें अभी बीज और झाड़ की जो नॉलेज मिली है, उस नॉलेज की स्मृति में रहना है। इस स्मृति से तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो - यही है स्मृति की कमाल। बाप बच्चों को स्मृति दिलाते हैं - बच्चे स्मृति आई तुमने आधाकल्प बहुत भक्ति की है। अब मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तुम फिर से वैकुण्ठ का मालिक बनते हो। जैसे बाप मीठा है - ऐसे बाप की नॉलेज भी मीठी है, जिसका सिमरण कर सिमर-सिमर सुख पाना है।
गीत:- जाग सजनियाँ जाग.... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। आज दीपमाला है। दीपमाला कहा जाता है नये युग को। सतयुग में कोई दीपमाला नहीं मनाई जाती क्योंकि वहाँ सभी की आत्मा रूपी ज्योति जगी हुई होती है। बच्चे जानते हैं कि हम नई दुनिया में राज्य भाग्य लेने का पुरूषार्थ कर रहे हैं - श्रीमत पर। तुम अभी त्रिकालदर्शी बने हो। त्रिकालदर्शी कहा जाता है पास्ट, प्रजेन्ट, फ्यूचर को जानने वाले को। तुमको अब तीनों कालों की नॉलेज है। तो तुमको औरों को भी समझाना है। खुद भी कांटों से फूल बनते हो। औरों को भी बनाना है। पास्ट की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानने से फ्यूचर क्या होने वाला है, वह भी जान जाते हो। फ्यूचर को जानने से पास्ट, प्रेजन्ट को भी जान जाते हो - इसको कहा जाता है नॉलेजफुल। पास्ट था कलियुग, प्रेजन्ट है संगमयुग, फिर फ्युचर सतयुग त्रेता को आना है। तो तुम बच्चों ने इस चक्र को जान लिया है और नई दुनिया में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो और औरों को भी पुरूषार्थ कराने में लगे हुए हो, बाबा के मददगार बन। बाप है सिकीलधा और तुम भी सिकीलधे हो क्योंकि पाँच हजार वर्ष के बाद मिले हो। तो बाप आया है सजनियों को श्रृगांर कर नई दुनिया में ले जाने। बच्चों की बुद्धि में ऊपर से लेकर मूलवतन, सूक्ष्मवतन की नॉलेज है। बच्चे जानते हैं कि कौन-कौन धर्म स्थापक कब और कैसे ऊपर से आकर धर्म स्थापन करते हैं। बाप ने तुमको नॉलेजफुल बनाया है। उसको मोस्ट बिलवेड कहा जाता है। मीठे ते मीठा है। तुम जानते हो कितना मीठा है। उसकी महिमा अपरमअपार है तो उनके वर्से की महिमा भी अपरमअपार है। नाम ही है स्वर्ग, हेविन, पैराडाइज, बहिश्त। परमात्मा को कहते हैं गॉड फादर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता। तो उनको कितना याद करना चाहिए। परन्तु ड्रामा अनुसार याद नहीं आता। यह गीत कितना अच्छा है। घर में 3-4 रिकार्ड जरूर हों। यह रिकार्ड भी बाप की याद दिलाते हैं। ब्राह्मण ही जानते हैं कि नई दैवी दुनिया स्वराज्य अर्थात् आत्मा को अब राज्य मिल रहा है। लौकिक बाप द्वारा जो वर्सा मिलता है वह यह नहीं कहते कि परमात्मा द्वारा मिला है। तुम जानते हो बाप से राज्य लिया फिर गॅवाया। अब फिर ले रहे हैं। सतयुग में गोरे थे फिर काले बने। गाते भी हैं श्याम सुन्दर। श्याम था - अब सुन्दर बनने के लिए सतगुरू मिला है। अब सतगुरू और गोविन्द दोनों खड़े हैं। फिर कहते हैं बलिहारी गुरू आपकी... तुम कृष्ण बन रहे हो। बलिहारी तुम बच्चों की जो तुम ऐसा बन रहे हो। वह तो कह देते कृष्ण गऊ चराते थे। फिर ब्रह्मा के लिए भी कहते उनकी गऊशाला थी। तो गऊशाला न है कृष्ण की, न ब्रह्मा की। गऊशाला शिवबाबा की है।
अभी तुम बच्चे त्योहारों का रहस्य भी समझते हो। तुम जानते हो कि दीपमाला होती है सतयुग में। वहाँ ज्योति जगी रहती है। तुम्हारी 21 जन्म दीपमाला है। यहाँ वर्ष-वर्ष मनाते हैं। आज मनाते, कल दीवा बुझ जाता। अगर सतयुग में मनायेंगे तो भी कारोनेशन, उस दिन आतशबाजी जलाते हैं। यहाँ तो पाई पैसे की आतशबाजी खेलते हैं, जिससे कई एक्सीडेन्ट हो जाते हैं। वहाँ तो बड़ी कारोनेशन होती है। यहाँ राजाई मिलती है तो वर्ष-वर्ष मनाते हैं। परन्तु इस राजाई में सुख नहीं। यह है भ्रष्टाचारी दुनिया, वह थी श्रेष्ठाचारी दुनिया। बाप कहते हैं देखो तुमको कितना समझदार बनाते हैं। बाप को कहा जाता है त्रिलोकीनाथ। त्रिलोकी के मालिक नहीं बनते। उनमें नॉलेज है। तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए। आधाकल्प तुमने भक्ति की, अब बाप मिला है। बाप अब स्मृति दिलाते हैं - कहते हैं, सिमरो, सिमरो... किसको? बाप को और बाप के रचना की नॉलेज को। बीज और झाड़ को। इस स्मृति से तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो। देखा स्मृति की कमाल, क्या से क्या बनाती है। इसको कहा जाता है प्रीचुअल नॉलेज। आत्मा का जो बाप है वह नॉलेज सुनाते हैं। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। परन्तु बाप तुमको नॉलेज दे अपने से भी ऊंचा बनाते हैं। तुम वैकुण्ठ के मालिक बनते हो। जैसे वह पढ़ाई पढ़ते हैं तो बुद्धि में रहता है कि हम बैरिस्टर बनेंगे। तुम जानते हो हम बेगर से प्रिन्स बनेंगे। फिर महाराजा बनेंगे। अब बाप टीचर रूप से पढ़ा रहे हैं। लौकिक में बच्चा 5 वर्ष बाप के पास रहता है फिर टीचर के पास जाता है, बुढ़ापे में फिर गुरू करते हैं। यहाँ तो बाप के बने और बाप, टीचर रूप में शिक्षा देते हैं और सद्गति के लिए साथ ले जाते हैं। वह गुरू साथ नहीं ले जाते। खुद ही मुक्ति में नहीं जाते। वह यात्रा में ले जाते हैं, तुम भी पण्डे वह भी पण्डे। परन्तु वह ठिक्कर ठोबर की यात्रा है। यह ज्ञान तुमको है। तुमको खुशी रहनी चाहिए। यह स्टूडेन्ट लाइफ है तो भूलना क्यों चाहिए। परन्तु माया वह खुशी रहने नहीं देती है क्योंकि कर्मातीत अवस्था अन्त में आयेगी। कहा है ना स्मृतिलब्धा। सिमर-सिमर सुख पाओ, वहाँ क्लेष होता नहीं। कहा जाता है जीवनमुक्ति। जैसे बाप मीठा है वैसे बाप की नॉलेज मीठी है। बाबा की महिमा अपरमअपार है अर्थात् पार नहीं पाया जाता है। यह भक्ति में कहा जाता है। तुम यह नहीं कह सकते हो क्योंकि तुमको सारी नॉलेज मिली हुई है। तुमको बहुत मीठा बनना है। अपने को देखो कि मेरे में कोई विकार तो नहीं है? किसी का अवगुण तो नहीं देखते? बहुत मीठी दृष्टि रखनी है। बाबा के कितने बच्चे हैं। सब पर मीठी दृष्टि है ना। तुमको भी ऐसी रखनी है। मनुष्य यह नहीं जानते कि राधे कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण का क्या सम्बन्ध है इसलिए चित्र भी बनाया है। छोटेपन में राधे कृष्ण स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बाप आकर स्मृति दिला रहे हैं कि बच्चे तुम देवता थे। बच्चे कहते बरोबर थे। कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:, ब्राह्मण लोग कहते हैं परन्तु जानते नहीं कि ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय तीन धर्म स्थापन करते हैं। तो ब्राह्मणों का बाप है - ब्रह्मा और शिव। बाप साधारण रूप में आते हैं। यह रथ मुकरर है, भाग्यशाली रथ।
मनुष्य दीपावली के दिन लक्ष्मी से पैसे मांगने के लिए आवाह्न करते हैं। पहले तुम भी मांगते थे। अब तुम लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो। यहाँ पर तो भीख ही भीख मांगते हैं। चिल्लाते हैं, पुत्र दो, धन दो। सतयुग में ऐसे नहीं मांगते। शिवबाबा बच्चों के सब भण्डारे भरपूर कर देते हैं। बाप तो स्वर्ग रचेंगे - नर्क थोड़ेही रचेंगे। अभी नर्क में बाबा आया है स्वर्गवासी बनाने। सभी पतित हैं, यह नहीं जानते कि हम नर्कवासी हैं। जो स्वर्गवासी थे, अब वह नर्कवासी बने हैं। अब फिर स्वर्गवासी बन रहे हैं। शिवबाबा का अकालतख्त यह ब्रह्मा है, जिसमें अकालमूर्त परमात्मा आकर बैठते हैं। आत्मा भी अकालमूर्त है। आत्मा का तख्त यह भ्रकुटी है। निशानी भी है जो मस्तक में तिलक देते हैं, आजकल बैल को भी तिलक देते हैं। तो यह भ्रकुटी ब्रह्मा और शिवबाबा दोनों का तख्त है। तो मैं आकर नॉलेज देता हूँ, नॉलेजफुल हूँ। मैं कोई सभी के दिलों को नहीं जानता हूँ, थाट रीडर नहीं हूँ। हाँ दिल का मालिक कह सकते हो क्योंकि दिल कहा जाता है आत्मा को। तो मै आत्मा का मालिक हूँ, शरीर का मालिक नही हूँ। ऐसा साधू लोग कहते हैं ना - मैं मालिक। तो मैं आविनाशी आत्मा का मालिक हूँ क्योंकि मैं खुद अविनाशी हूँ। तुम विनाशी चीज़ के मालिक बनते हो क्योंकि तुम एक विनाशी शरीर छोड़ दूसरा लेते हो। तुम अभी वैकुण्ठ में जाते हो, इसलिए पढ़ाई पढ़ रहे हो। कहते हैं ना - जब तक जीना है तब तक पीना है। जब पढ़ाई पूरी होगी तब यह शरीर ही छूट जायेगा। कहते हैं कि परमात्मा को संकल्प उठा सृष्टि रचने जाऊं। जब समय होगा तब ही एक्ट करने का विचार आयेगा और आकर पार्ट बजायेगा। बाप कहते हैं - जैसे तुम पार्ट बजाते हो, वैसे मैं भी बजाता हूँ। बाकी मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ इसलिए मेरी कितनी महिमा है। वैकुण्ठ की भी महिमा है। सन्यासियों को सतयुग के सुख का मालूम नहीं है। वहाँ का सुख उन्हों को मिलना ही नहीं है। सतयुग के लिए भी उन्होंने सुना है ना कि कंस थे। तो समझते हैं वहाँ भी सुख नहीं था। तो औरों को भी ऐसे सुनाते कि काग विष्टा समान सुख है। तो ऐसे सुनाकर औरों को सन्यास कराते हैं। तुम बच्चे तो स्वर्ग के सुख पाते हो। यह तो अन्तिम जन्म है। मरेंगे भी सभी। मैं आया ही हूँ लेने लिए तो क्या तुम यहाँ ही बैठे रहेंगे। मच्छरों सदृश्य सबको ले जाऊंगा। तो मम्मा बाबा सदृश्य पुरूषार्थ कर पद ले लेना चाहिए। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना। जितने सतयुग, त्रेतायुग में देवतायें होंगे उतने ही अब ब्रह्मा मुख वंशावली बनने हैं। तो कायदे अनुसार मात-पिता भी है फिर किसको मुकरर किया जाता है सम्भाल के लिए। नये-नये बच्चे तो आते रहेंगे, पढ़ाई चलती रहेगी। पिछाड़ी तक वृद्धि को पाते रहेंगे। परवरिश बहुत अच्छी करनी चाहिए। वह है बागवान। तुम जो सेन्टर पर रहते हो वह हुए माली। माली को तो पौधों की सम्भाल करनी चाहिए। जो माली ही ठीक नहीं होगा तो वह पौधों की क्या सम्भाल करेगा। जो माली अच्छा-अच्छा बगीचा बनाते हैं, तो बागवान देख बहुत खुश होते हैं। फिर बागवान जाते हैं देखने कि किस-किस ने बड़ा अच्छा बगीचा बनाया है। तुम भी जानते हो कि कौन-कौन अच्छे माली हैं। जो अच्छे-अच्छे माली हैं उनको इनाम भी मिलता है। तुम मालियों की पघार (तनखा) बढ़ती जाती है।
अभी तुम बच्चों को अपनी मंजिल को याद करना है क्योंकि तुम्हें अभी वापिस घर जाना है तो घर को याद करना पड़े। सिवाए याद के शान्तिधाम नहीं जा सकते। नहीं तो मोचरा (सज़ा) बहुत खाना पड़ेगा, पद भी अच्छा पा नहीं सकेंगे। इस समय जो सूक्ष्मवतन में जाते हैं, सर्विस अर्थ जाते हैं। पहले नम्बर में बाबा सर्विस करते हैं, सेकेण्ड नम्बर में मम्मा क्योंकि मम्मा को सेकेण्ड नम्बर में आना है। तो तुम बच्चों को भी मम्मा बाबा को फालो करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान बहुत मीठा बनना है। सबको मीठी दृष्टि से देखना है। किसी का भी अवगुण नहीं देखना है।
2) गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ की खुशी में रहना है। जब तक जीना है पढ़ाई रोज़ पढ़नी है।
वरदान: बापदादा की आशाओं का दीप जगाकर सच्ची दीपावली मनाने वाले कुल दीपक भव!
चार प्रकार के दीपक गाये हुए हैं:1- अंधियारे को मिटाकर रोशनी करने वाला मिट्टी का स्थूल दीपक 2- आत्मा रूपी दीपक, 3- कुल का दीपक और चौथा आशाओं का दीपक। मिट्टी के दीपक तो कई जन्म जगाये हैं। अब आत्मा रूपी दीपक सदा जगा रहे। ऐसा कोई भी कर्म न हो जो कुल का दीपक बुझ जाये, ऐसी कोई चलन न हो जो बापदादा की आशाओं का दीपक बुझ जाये। तो अब ऐसे कुल दीपक बन बापदादा की आशाओं का दीप जगाते हुए सच्ची दीपावली मनाओ।
स्लोगन: पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन का मुख्य फाउन्डेशन है, धरत परिये धर्म न छोड़िये।
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Details ( Page:- Murali 20-Oct 2017 )
Hinglish Summary -- 20.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Is samay tumhara yah janm heere samaan hai kyunki tum Ishwariya santan bane ho, swayang Ishwar tumhe padhate hain, tum dooradeshi, vishal buddhi bante ho
Q- Tum bacche kis purusharth se dooradeshi aur vishal buddhi ban rahe ho?
A- Baap ki yaad se dooradeshi aur padhai se vishal buddhi bante ho. Dooradeshi arthat door desh me rehne wale Baap ko yaad karna. Manmana bhava ka arth hai dooradeshi hona. Vishal buddhi arthat shristi ke adi-madhya-ant ka gyan buddhi me ho. Tumhe pehle dooradeshi fir vishal buddhi banna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Dooradeshi ban Baap ki yaad me rehna hai aur dusro ko door desh me rehne wale Baap ka parichay dena hai.
2) Kalyankari yug me sabhi ka kalyan karne ki yukti nikaalni hai. Sabko duban (daldal) se nikaalne ki seva karni hai.
Vardaan:- Sada oonchi sthiti ki shrest aasan par sthit rehne wali Mayajeet Mahan Aatma bhava.
Slogan:-Shanti ka doot ban sabko shanti ka daan do - yahi aapka occupation hai.
Hindi Version in Details –20/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे, इस समय तुम्हारा यह जन्म हीरे समान है क्योंकि तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, स्वयं ईश्वर तुम्हें पढ़ाते हैं, तुम दूरादेशी, विशाल बुद्धि बनते हो''
प्रश्न:तुम बच्चे किस पुरुषार्थ से दूरादेशी और विशाल बुद्धि बन रहे हो?
उत्तर:
बाप की याद से दूरादेशी और पढ़ाई से विशालबुद्धि बनते हो। दूरादेशी अर्थात् दूरदेश में रहने वाले बाप को याद करना। मनमना भव का अर्थ है दूरादेशी होना। विशालबुद्धि अर्थात् सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में हो। तुम्हें पहले दूरादेशी फिर विशाल बुद्धि बनना है।
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं........ ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि हमारे तीर्थ न्यारे हैं। हमारा तीर्थ बहुत दूर है इसलिए बच्चों को कहा जाता है दूरादेशी भव। दूरदेश में रहने वाले फिर कहते हैं विशालबुद्धि भव। सबकी बुद्धि इस समय तुच्छ है ना। माया ने तुच्छ बुद्धि बना दिया है। तो बच्चों की है दूरादेशी बुद्धि अर्थात् दूर के रहने वाले की याद और विशालबुद्धि अर्थात् सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। और सब हैं अल्पज्ञ बुद्धि अर्थात् अल्प बुद्धि, सिर्फ कहते हैं परमात्मा, परन्तु जानते नहीं। यहाँ कोई महात्मा नहीं है। यह तो बाप आकर दूरादेशी बनाते हैं, परन्तु दूरादेशी बच्चे कम हैं। भल ज्ञान बहुत है परन्तु दूरादेशी कम हैं अर्थात् बाप की याद में कम रहते हैं। बाकी साधू तो साधना करते हैं यथा राजारानी तथा प्रजा सारी दुनिया इस समय पतित है। भल महात्मा नाम डाल देते हैं परन्तु महान आत्मा कोई है नहीं। कई फिर कृष्ण को महात्मा कहते हैं। यह फिर भी राइट है क्योंकि वहाँ श्रेष्ठाचारी दुनिया है। यह तो है भ्रष्टाचारी दुनिया। यथा राजा रानी तथा प्रजा परन्तु इस समय राजा कोई है नहीं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। बाप कहते हैं शास्त्र पढ़ने से तुम मेरे से मिल नहीं सकते और ना ही कोई मुक्ति में जा सकते हैं। जब तक मेरे द्वारा कोई मेरे को न जाने और जब तक कल्प के अन्त में मैं न आऊं। मनुष्य तो कृष्ण को याद करते हैं वह तो इस देश का है। दूरादेशी है नहीं। तो बाप को याद करना माना दूरादेशी बनना। मनमनाभव का अर्थ है दूरादेशी भव। जो बाप को जानते नहीं तो बाप से वर्सा कैसे मिले। अगर आये नहीं तो रास्ता कैसे मिले। बड़ी समझ की बात है। साजन से बड़ा प्यार चाहिए। कहते हैं एक तू जो मिला तो सब कुछ मिला। तो एक से ही सब कुछ प्राप्ति हो जाती है। ऐसे साजन से बहुत लव चाहिए। यह है बेहद की नॉलेज। विराट ड्रामा अर्थात् वैराइटी, जिसमें अनेक मतभेद हैं तभी कहते हैं द्वेत राज्य, द्वेत या दैत्य एक ही बात है। दैत्य कहा जाता है रावण को। देवता बनाने वाला एक ही बाप है। कहते हैं मनुष्य से देवता, कितनी सहज बात है। तुम हो विशाल बुद्धि। शास्त्र पढ़ने वाले को विशाल बुद्धि नहीं कहेंगे। वह है भक्ति। ज्ञान अलग चीज़ है, भक्ति अलग चीज़ है। ज्ञान तो ज्ञान सागर बाप देते हैं। तुम हीरे जैसा थे, अब कौड़ी जैसे बन गये हो। अब बाप हीरे जैसा बनाते हैं। तुम विशाल बुद्धि होने से विश्व पर राज्य करते हो। वहाँ अखण्ड अटल राज्य है, तो विशाल बुद्धि ज्ञान में होते हैं।
तुम जानते हो सतयुग में सुख था फिर धीरे-धीरे नीचे सीढ़ी उतरनी है। चढ़ने में एक सेकेण्ड जम्प लगाना पतित से पावन बनने की छलांग लगाना। उतरने में 5 हजार वर्ष। तुम सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार विशालबुद्धि बने हो। यह ज्ञान अभी मिलता है, सतयुग में यह ज्ञान होता नहीं। संगम पर बाप आते हैं - हूबहू कल्प पहले मुआफिक। सतयुग में विशालबुद्धि नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म भी सतयुग में नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म इस समय है क्योंकि इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान। ईश्वर तुमको पढ़ाते हैं। यह महिमा बाप की है जबकि परमात्मा पतित-पावन है तो सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। परन्तु मनुष्य अल्पज्ञ बुद्धि हैं, कितना भी समझाओ, समझते नहीं हैं। तो समझो वह ब्राह्मण कुल का नहीं है। जो देवता कुल का होगा वही ज्ञान को समझ ब्राह्मण बनेंगे। बाप ज्ञान का सागर है। तुम भी ज्ञान के सागर बनते हो, फिर तुम सुख शान्ति के सागर बनते हो। सतयुग में सुख अपार रहता है। तो बाप द्वारा तुमको सर्व सुखों की प्राप्ति होती है। सो भी अन्त में ज्ञान, सुख, शान्ति के सागर बनेंगे क्योंकि औरों को भी देते हो। अभी देखो कितना दु:ख अशान्ति है। बड़ों-बड़ों को नींद नहीं आती है। तुम बच्चों को तो कितनी खुशी है क्योंकि तुम बाप को जानते हो। दुनिया कहती है ओ गॉड फादर, परमपिता परमात्मा परन्तु जानती नहीं। कितने समय से भक्त भक्ति करते, याद करते आये हैं, जानते कुछ नहीं। बाप अपना और अपनी रचना का परिचय खुद आकर देते हैं। तुमको औरों को देना है। तुम जानते हो यह बाप है, कोई महात्मा नहीं है। बाबा को ख्याल आया, फार्म में लिखा हो तो आप किससे मिलने आये हो? तो कहेंगे महात्मा से। बोलो, महात्मा तो यह है नहीं। नाम है ब्रह्माकुमार कुमारियाँ तो इनका बाप प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना। तो महात्मा कैसे हुआ। आरग्यू करने वाले अच्छे चाहिए। बुद्धि वाला चाहिए। समझो वह लिखकर भी जाते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं, बिल्कुल बुद्धू हैं। शक्ल से मालूम पड़ जाता है - बुद्धि में ज्ञान नहीं है। शिवबाबा तो जानते हैं, अन्तर्यामी है। यह बाबा तो बाहरयामी हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही उस तन में हूँ जो पहला नम्बर है। अब लास्ट में है। इनमें प्रवेश करता हूँ क्योंकि इनको फिर वही नारायण बनना है। तो इनको इस तन को देने की किराया मिलती है तब तो कहते हैं सौभाग्यशाली रथ, भागीरथ ने कोई पानी की गंगा नहीं लाई। यह गुह्य ज्ञान की बातें हैं, जो रावण मत पर होने कारण मनुष्य समझते नहीं हैं। अब तुमने समझा है तो औरों को समझाने की युक्ति निकालो। तुमको ख्याल आना चाहिए कि औरों को कैसे दूरादेशी बनायें। कैसे बाप का परिचय दें। वह ब्रह्म को याद करते हैं। ब्रह्म तो तत्व है जहाँ परमात्मा रहते हैं। परन्तु वह ब्रह्म को ही परमात्मा समझते हैं। जैसे हिन्दू कोई धर्म नहीं है। हिन्दुस्तान में रहने के कारण हिन्दू नाम रख दिया है। वास्तव में हिन्दुस्तान तो रहने का स्थान है। ब्रह्म तत्व भी परमात्मा के रहने का स्थान है। परन्तु मनुष्यों की अल्प बुद्धि होने के कारण समझते नहीं। यहाँ ज्ञान की बात है। दुनिया की बातों को तो सब अच्छी तरह जानते हैं। यह खुद जौहरी था तो सब कुछ जानता था। बाकी ज्ञान की बातों में अल्प बुद्धि, तुच्छ बुद्धि थे, कुछ नहीं जानते थे। तो बाबा आकर पहचान देते हैं। जब तक कोई ब्राह्मण न बनें तो बाप से वर्सा ले न सके, प्रजा तो बननी है। किसी ने भी थोड़ा सुना तो प्रजा बन जायेंगे। अगर विकार में जाता रहेगा तो उनको सजा भोगनी पड़ेगी। फिर आकर साधारण प्रजा बनेंगे। अभी सबका मौत है। कब्रदाखिल होना ही है। कब्रिस्तान बनना ही है। इस समय मनुष्यों की कोई वैल्यू नहीं है। तुम्हारी भी नहीं थी। अब वैल्यु बन रही है। बाकी जब विनाश होगा तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे। जैसे दीपावली पर मच्छर कितने मरते हैं, तो सबको मरना है ही क्योंकि सबको घर वापिस जाना है। सतयुग में यह नहीं कहेंगे कि यह मरा क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। काल पर जीत पाते हैं। मरना शब्द वहाँ नहीं होता। सतयुग में जानते हैं कि हम मरते नहीं हैं। सिर्फ एक पुराना चोला छोड़, नया लेते हैं - सो भी समय पर। सर्प का मिसाल है कि पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं तो सर्प का मिसाल सतयुग से लगता है, यहाँ से नहीं। भ्रमरी का मिसाल यहाँ का ही है, सन्यासी भी यह मिसाल देते हैं क्योंकि यहाँ का ही यादगार भक्ति मार्ग में चलता है।
अभी तुम बच्चे जितनी-जितनी धारणा करेंगे उतना विशाल बुद्धि बनेंगे, उतनी कमाई करेंगे। जैसे सर्जन जितनी विशाल बुद्धि वाला होता है, जितनी दवाई आदि बुद्धि में अधिक रखता है उतना कमाई करता है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। कोई 250 रूपया कमाई करते, कोई तो फिर हजारों कमाते हैं। कोई राजा को ठीक कर दिया तो लाख-लाख भी दे देते हैं। यहाँ भी ऐसे ही है। कोई को तो ज्ञान के प्वाइंट्स की धारणा नहीं और कोई तो बड़े दूरादेशी, विशालबुद्धि हैं तो औरों को भी बनाते हैं। पहले दूरादेशी पीछे विशाल बुद्धि कहेंगे। समझने की बात है ना। ब्राह्मणों जैसा सौभाग्यशाली कोई है नहीं। एकदम सबको ऊपर ले जाते हैं। ऊपर में परमात्मा है ना, तो उसका परिचय देते हो। तो तुम जानकार हो ना। बच्चों को तो बाप की जानकारी होती ही है। अब पारलौकिक बाप आये हैं तुमको पावन बनाकर वापस ले जाने के लिए। एक खेरूत (खेती करने वाले) बच्ची की कहानी है ना - कि राजा बच्ची को ले आया उसे अच्छा नहीं लगा, तो उनको वापिस भेज दिया। यहाँ भी ऐसे हैं। जिनकी बुद्धि में ज्ञान की धारणा नहीं होती है तो वह खुद ही चले जाते हैं, इसमें बाप क्या करे। समझाने वाला है तो परमपिता परमात्मा। वह ब्रह्मा द्वारा वेदों शास्त्रों का सार सुनाते हैं कि वेद शास्त्र कोई धर्म शास्त्र है नहीं। यह तो पत्ते हैं, बाल बच्चे हैं। मुख्य धर्म हैं चार। उसमें ब्राह्मण धर्म भी है मुख्य। हीरे जैसा जन्म देवताओं का नहीं कहेंगे क्योंकि यह कल्याणकारी लीप धर्माऊ युग है। लीप मास, धर्माऊ को कहते हैं। यह है संगमयुग, कल्याणकारी और जितने भी युग हैं वहाँ अकल्याण ही होता है क्योंकि डिग्री कम होती जाती है। दिनप्रतिदिन कला कम ही होती जाती है। यह युग ही है कल्याणकारी। तो हर एक को माथा मारना पड़े कि औरों को कैसे समझायें। यूं तो उस्ताद बता रहे हैं कि रास्ता कैसे बताओ फिर हर एक का धन्धा अपना-अपना है। तो यह आना चाहिए कि कैसे औरों को दुबन (दलदल) से निकालूँ। कई तो दल-दल से निकालने जाते फिर खुद फंस जाते हैं। तो समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। पहले अल्फ को समझाओ तो बे बादशाही को भी जान जायें और सृष्टि चक्र को भी जान जायें। पहले अल्फ को तो जानो। कोई हजार दफा लिखकर दें कि अल्फ कौन है, तब यहाँ बैठ सके। कई तो ब्लड से भी लिखकर देते हैं फिर चले जाते है। माया कोई कम थोड़ेही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) दूरादेशी बन बाप की याद में रहना है और दूसरों को दूरदेश में रहने वाले बाप का परिचय देना है।
2) कल्याणकारी युग में सभी का कल्याण करने की युक्ति निकालनी है। सबको दुबन (दलदल) से निकालने की सेवा करनी है।
वरदान:सदा ऊंची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहने वाली मायाजीत महान आत्मा भव!
जो महान आत्मायें हैं वह सदैव ऊंची स्थिति में रहती हैं। ऊंची स्थिति ही ऊंचा आसन है। जब ऊंची स्थिति के आसन पर रहते हो तो माया आ नहीं सकती। वो आपको महान समझकर आपके आगे झुकेगी, वार नहीं करेंगी, हार मानेंगी। जब ऊंचे आसन से नीचे आते हो तब माया वार करती है। आप सदा ऊंचे आसन पर रहो तो माया के आने की ताकत नहीं। वह ऊंचे चढ़ नहीं सकती।
स्लोगन:शान्ति का दूत बन सबको शान्ति का दान दो - यही आपका आक्यूपेशन है।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
हम मनुष्य आत्माओं को पहले पहले कौनसी मुख्य प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी है, जिस पर खूब अटेन्शन रखना है? पहले-पहले तो अपने को यह पक्का निश्चय रखना है कि हमको पढ़ाने वाला कौन है? दूसरी प्वाइन्ट है, हम सभी मनुष्य आत्मायें हैं और परमात्मा हमारा पिता है। हम आत्मा बच्चे और परमात्मा बाप दोनों अलग-अलग चीज़ है। तीसरी प्वाइन्ट ईश्वर बेअंत भी नहीं है, ईश्वर सर्वत्र भी नहीं है, अब यही नॉलेज बुद्धि में रखनी है इसलिए अपनी नॉलेज औरों से न्यारी है, भले दुनियावी मनुष्य समझते हैं हमको परमात्मा का ज्ञान है, अब उनसे पूछो आप में कौनसा ज्ञान है? तो कहेंगे ईश्वर सर्वव्यापी है। अब परमात्मा तो कहता है मेरा ज्ञान मेरे द्वारा ही मिलता है, जैसे बैरिस्टर द्वारा बैरिस्ट्री, डॉ. द्वारा डॉक्टरी सीखी जाती है, भल वहाँ बैरिस्टर भी अनेक होते हैं, एक बैरिस्टर से न पढ़ा तो दूसरा पढ़ायेगा। एक डॉक्टर से न पढ़ा तो दूसरा डॉक्टर पढ़ायेगा, मगर यह ईश्वरीय नॉलेज सिवाए एक परमात्मा बिगर कोई भी मनुष्य आत्मा चाहे साधू, संत, महात्मा हो वो भी नहीं पढ़ा सकेगा। तो हम कैसे समझें कि इन्हों में कोई परमात्मा का ज्ञान है और चौथी प्वाइन्ट परमात्मा युगे युगे नहीं आता बल्कि परमात्मा कल्प कल्प एक ही बार इस संगमयुग पर अर्थात् कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि संगम समय पर आता है, और अनेक अधर्मों का विनाश कराए एक आदि सनातन सतधर्म की स्थापना कराता है। अब लोग कैसे कहते हैं कि परमात्मा युगे युगे आता है और ऐसे भी कहते हैं गीता का भगवान श्रीकृष्ण, वो द्वापर में आया है। अब इन सभी बातों को सिद्ध करना है, गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं है, शिव परमात्मा है और वो भी द्वापर में नहीं आता संगम समय पर आया है। पाँचवी प्वाइन्ट गुरु बिगर घोर अन्धियारा कैसे हुआ है, वो गुरु कौन है? मनुष्य सृष्टि उल्टा झाड़ कैसे है और हमको अपने पाँच विकारों पर जीत कैसे पहननी है? छटवीं प्वाइन्ट हम वही पाण्डव यौद्धे हैं, जिसके साथ साक्षात् परमात्मा है उसी तरफ ही जीत है और सातवीं प्वाइन्ट परमात्मा खुद सर्वशक्तिवान है तो जिन्होंने परमात्मा का पूरा साथ लिया है, उन्हों को ही परमात्मा द्वारा लाइट माइट दोनों ताज मिलते हैं। अब यह सभी बातें बुद्धि में रखना इसको ही ज्ञान कहा जाता है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Mithe bacche - Is samay tumhara yah janm heere samaan hai kyunki tum Ishwariya santan bane ho, swayang Ishwar tumhe padhate hain, tum dooradeshi, vishal buddhi bante ho
Q- Tum bacche kis purusharth se dooradeshi aur vishal buddhi ban rahe ho?
A- Baap ki yaad se dooradeshi aur padhai se vishal buddhi bante ho. Dooradeshi arthat door desh me rehne wale Baap ko yaad karna. Manmana bhava ka arth hai dooradeshi hona. Vishal buddhi arthat shristi ke adi-madhya-ant ka gyan buddhi me ho. Tumhe pehle dooradeshi fir vishal buddhi banna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Dooradeshi ban Baap ki yaad me rehna hai aur dusro ko door desh me rehne wale Baap ka parichay dena hai.
2) Kalyankari yug me sabhi ka kalyan karne ki yukti nikaalni hai. Sabko duban (daldal) se nikaalne ki seva karni hai.
Vardaan:- Sada oonchi sthiti ki shrest aasan par sthit rehne wali Mayajeet Mahan Aatma bhava.
Slogan:-Shanti ka doot ban sabko shanti ka daan do - yahi aapka occupation hai.
Hindi Version in Details –20/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे, इस समय तुम्हारा यह जन्म हीरे समान है क्योंकि तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, स्वयं ईश्वर तुम्हें पढ़ाते हैं, तुम दूरादेशी, विशाल बुद्धि बनते हो''
प्रश्न:तुम बच्चे किस पुरुषार्थ से दूरादेशी और विशाल बुद्धि बन रहे हो?
उत्तर:
बाप की याद से दूरादेशी और पढ़ाई से विशालबुद्धि बनते हो। दूरादेशी अर्थात् दूरदेश में रहने वाले बाप को याद करना। मनमना भव का अर्थ है दूरादेशी होना। विशालबुद्धि अर्थात् सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में हो। तुम्हें पहले दूरादेशी फिर विशाल बुद्धि बनना है।
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं........ ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि हमारे तीर्थ न्यारे हैं। हमारा तीर्थ बहुत दूर है इसलिए बच्चों को कहा जाता है दूरादेशी भव। दूरदेश में रहने वाले फिर कहते हैं विशालबुद्धि भव। सबकी बुद्धि इस समय तुच्छ है ना। माया ने तुच्छ बुद्धि बना दिया है। तो बच्चों की है दूरादेशी बुद्धि अर्थात् दूर के रहने वाले की याद और विशालबुद्धि अर्थात् सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। और सब हैं अल्पज्ञ बुद्धि अर्थात् अल्प बुद्धि, सिर्फ कहते हैं परमात्मा, परन्तु जानते नहीं। यहाँ कोई महात्मा नहीं है। यह तो बाप आकर दूरादेशी बनाते हैं, परन्तु दूरादेशी बच्चे कम हैं। भल ज्ञान बहुत है परन्तु दूरादेशी कम हैं अर्थात् बाप की याद में कम रहते हैं। बाकी साधू तो साधना करते हैं यथा राजारानी तथा प्रजा सारी दुनिया इस समय पतित है। भल महात्मा नाम डाल देते हैं परन्तु महान आत्मा कोई है नहीं। कई फिर कृष्ण को महात्मा कहते हैं। यह फिर भी राइट है क्योंकि वहाँ श्रेष्ठाचारी दुनिया है। यह तो है भ्रष्टाचारी दुनिया। यथा राजा रानी तथा प्रजा परन्तु इस समय राजा कोई है नहीं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। बाप कहते हैं शास्त्र पढ़ने से तुम मेरे से मिल नहीं सकते और ना ही कोई मुक्ति में जा सकते हैं। जब तक मेरे द्वारा कोई मेरे को न जाने और जब तक कल्प के अन्त में मैं न आऊं। मनुष्य तो कृष्ण को याद करते हैं वह तो इस देश का है। दूरादेशी है नहीं। तो बाप को याद करना माना दूरादेशी बनना। मनमनाभव का अर्थ है दूरादेशी भव। जो बाप को जानते नहीं तो बाप से वर्सा कैसे मिले। अगर आये नहीं तो रास्ता कैसे मिले। बड़ी समझ की बात है। साजन से बड़ा प्यार चाहिए। कहते हैं एक तू जो मिला तो सब कुछ मिला। तो एक से ही सब कुछ प्राप्ति हो जाती है। ऐसे साजन से बहुत लव चाहिए। यह है बेहद की नॉलेज। विराट ड्रामा अर्थात् वैराइटी, जिसमें अनेक मतभेद हैं तभी कहते हैं द्वेत राज्य, द्वेत या दैत्य एक ही बात है। दैत्य कहा जाता है रावण को। देवता बनाने वाला एक ही बाप है। कहते हैं मनुष्य से देवता, कितनी सहज बात है। तुम हो विशाल बुद्धि। शास्त्र पढ़ने वाले को विशाल बुद्धि नहीं कहेंगे। वह है भक्ति। ज्ञान अलग चीज़ है, भक्ति अलग चीज़ है। ज्ञान तो ज्ञान सागर बाप देते हैं। तुम हीरे जैसा थे, अब कौड़ी जैसे बन गये हो। अब बाप हीरे जैसा बनाते हैं। तुम विशाल बुद्धि होने से विश्व पर राज्य करते हो। वहाँ अखण्ड अटल राज्य है, तो विशाल बुद्धि ज्ञान में होते हैं।
तुम जानते हो सतयुग में सुख था फिर धीरे-धीरे नीचे सीढ़ी उतरनी है। चढ़ने में एक सेकेण्ड जम्प लगाना पतित से पावन बनने की छलांग लगाना। उतरने में 5 हजार वर्ष। तुम सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार विशालबुद्धि बने हो। यह ज्ञान अभी मिलता है, सतयुग में यह ज्ञान होता नहीं। संगम पर बाप आते हैं - हूबहू कल्प पहले मुआफिक। सतयुग में विशालबुद्धि नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म भी सतयुग में नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म इस समय है क्योंकि इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान। ईश्वर तुमको पढ़ाते हैं। यह महिमा बाप की है जबकि परमात्मा पतित-पावन है तो सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। परन्तु मनुष्य अल्पज्ञ बुद्धि हैं, कितना भी समझाओ, समझते नहीं हैं। तो समझो वह ब्राह्मण कुल का नहीं है। जो देवता कुल का होगा वही ज्ञान को समझ ब्राह्मण बनेंगे। बाप ज्ञान का सागर है। तुम भी ज्ञान के सागर बनते हो, फिर तुम सुख शान्ति के सागर बनते हो। सतयुग में सुख अपार रहता है। तो बाप द्वारा तुमको सर्व सुखों की प्राप्ति होती है। सो भी अन्त में ज्ञान, सुख, शान्ति के सागर बनेंगे क्योंकि औरों को भी देते हो। अभी देखो कितना दु:ख अशान्ति है। बड़ों-बड़ों को नींद नहीं आती है। तुम बच्चों को तो कितनी खुशी है क्योंकि तुम बाप को जानते हो। दुनिया कहती है ओ गॉड फादर, परमपिता परमात्मा परन्तु जानती नहीं। कितने समय से भक्त भक्ति करते, याद करते आये हैं, जानते कुछ नहीं। बाप अपना और अपनी रचना का परिचय खुद आकर देते हैं। तुमको औरों को देना है। तुम जानते हो यह बाप है, कोई महात्मा नहीं है। बाबा को ख्याल आया, फार्म में लिखा हो तो आप किससे मिलने आये हो? तो कहेंगे महात्मा से। बोलो, महात्मा तो यह है नहीं। नाम है ब्रह्माकुमार कुमारियाँ तो इनका बाप प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना। तो महात्मा कैसे हुआ। आरग्यू करने वाले अच्छे चाहिए। बुद्धि वाला चाहिए। समझो वह लिखकर भी जाते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं, बिल्कुल बुद्धू हैं। शक्ल से मालूम पड़ जाता है - बुद्धि में ज्ञान नहीं है। शिवबाबा तो जानते हैं, अन्तर्यामी है। यह बाबा तो बाहरयामी हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही उस तन में हूँ जो पहला नम्बर है। अब लास्ट में है। इनमें प्रवेश करता हूँ क्योंकि इनको फिर वही नारायण बनना है। तो इनको इस तन को देने की किराया मिलती है तब तो कहते हैं सौभाग्यशाली रथ, भागीरथ ने कोई पानी की गंगा नहीं लाई। यह गुह्य ज्ञान की बातें हैं, जो रावण मत पर होने कारण मनुष्य समझते नहीं हैं। अब तुमने समझा है तो औरों को समझाने की युक्ति निकालो। तुमको ख्याल आना चाहिए कि औरों को कैसे दूरादेशी बनायें। कैसे बाप का परिचय दें। वह ब्रह्म को याद करते हैं। ब्रह्म तो तत्व है जहाँ परमात्मा रहते हैं। परन्तु वह ब्रह्म को ही परमात्मा समझते हैं। जैसे हिन्दू कोई धर्म नहीं है। हिन्दुस्तान में रहने के कारण हिन्दू नाम रख दिया है। वास्तव में हिन्दुस्तान तो रहने का स्थान है। ब्रह्म तत्व भी परमात्मा के रहने का स्थान है। परन्तु मनुष्यों की अल्प बुद्धि होने के कारण समझते नहीं। यहाँ ज्ञान की बात है। दुनिया की बातों को तो सब अच्छी तरह जानते हैं। यह खुद जौहरी था तो सब कुछ जानता था। बाकी ज्ञान की बातों में अल्प बुद्धि, तुच्छ बुद्धि थे, कुछ नहीं जानते थे। तो बाबा आकर पहचान देते हैं। जब तक कोई ब्राह्मण न बनें तो बाप से वर्सा ले न सके, प्रजा तो बननी है। किसी ने भी थोड़ा सुना तो प्रजा बन जायेंगे। अगर विकार में जाता रहेगा तो उनको सजा भोगनी पड़ेगी। फिर आकर साधारण प्रजा बनेंगे। अभी सबका मौत है। कब्रदाखिल होना ही है। कब्रिस्तान बनना ही है। इस समय मनुष्यों की कोई वैल्यू नहीं है। तुम्हारी भी नहीं थी। अब वैल्यु बन रही है। बाकी जब विनाश होगा तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे। जैसे दीपावली पर मच्छर कितने मरते हैं, तो सबको मरना है ही क्योंकि सबको घर वापिस जाना है। सतयुग में यह नहीं कहेंगे कि यह मरा क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। काल पर जीत पाते हैं। मरना शब्द वहाँ नहीं होता। सतयुग में जानते हैं कि हम मरते नहीं हैं। सिर्फ एक पुराना चोला छोड़, नया लेते हैं - सो भी समय पर। सर्प का मिसाल है कि पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं तो सर्प का मिसाल सतयुग से लगता है, यहाँ से नहीं। भ्रमरी का मिसाल यहाँ का ही है, सन्यासी भी यह मिसाल देते हैं क्योंकि यहाँ का ही यादगार भक्ति मार्ग में चलता है।
अभी तुम बच्चे जितनी-जितनी धारणा करेंगे उतना विशाल बुद्धि बनेंगे, उतनी कमाई करेंगे। जैसे सर्जन जितनी विशाल बुद्धि वाला होता है, जितनी दवाई आदि बुद्धि में अधिक रखता है उतना कमाई करता है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। कोई 250 रूपया कमाई करते, कोई तो फिर हजारों कमाते हैं। कोई राजा को ठीक कर दिया तो लाख-लाख भी दे देते हैं। यहाँ भी ऐसे ही है। कोई को तो ज्ञान के प्वाइंट्स की धारणा नहीं और कोई तो बड़े दूरादेशी, विशालबुद्धि हैं तो औरों को भी बनाते हैं। पहले दूरादेशी पीछे विशाल बुद्धि कहेंगे। समझने की बात है ना। ब्राह्मणों जैसा सौभाग्यशाली कोई है नहीं। एकदम सबको ऊपर ले जाते हैं। ऊपर में परमात्मा है ना, तो उसका परिचय देते हो। तो तुम जानकार हो ना। बच्चों को तो बाप की जानकारी होती ही है। अब पारलौकिक बाप आये हैं तुमको पावन बनाकर वापस ले जाने के लिए। एक खेरूत (खेती करने वाले) बच्ची की कहानी है ना - कि राजा बच्ची को ले आया उसे अच्छा नहीं लगा, तो उनको वापिस भेज दिया। यहाँ भी ऐसे हैं। जिनकी बुद्धि में ज्ञान की धारणा नहीं होती है तो वह खुद ही चले जाते हैं, इसमें बाप क्या करे। समझाने वाला है तो परमपिता परमात्मा। वह ब्रह्मा द्वारा वेदों शास्त्रों का सार सुनाते हैं कि वेद शास्त्र कोई धर्म शास्त्र है नहीं। यह तो पत्ते हैं, बाल बच्चे हैं। मुख्य धर्म हैं चार। उसमें ब्राह्मण धर्म भी है मुख्य। हीरे जैसा जन्म देवताओं का नहीं कहेंगे क्योंकि यह कल्याणकारी लीप धर्माऊ युग है। लीप मास, धर्माऊ को कहते हैं। यह है संगमयुग, कल्याणकारी और जितने भी युग हैं वहाँ अकल्याण ही होता है क्योंकि डिग्री कम होती जाती है। दिनप्रतिदिन कला कम ही होती जाती है। यह युग ही है कल्याणकारी। तो हर एक को माथा मारना पड़े कि औरों को कैसे समझायें। यूं तो उस्ताद बता रहे हैं कि रास्ता कैसे बताओ फिर हर एक का धन्धा अपना-अपना है। तो यह आना चाहिए कि कैसे औरों को दुबन (दलदल) से निकालूँ। कई तो दल-दल से निकालने जाते फिर खुद फंस जाते हैं। तो समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। पहले अल्फ को समझाओ तो बे बादशाही को भी जान जायें और सृष्टि चक्र को भी जान जायें। पहले अल्फ को तो जानो। कोई हजार दफा लिखकर दें कि अल्फ कौन है, तब यहाँ बैठ सके। कई तो ब्लड से भी लिखकर देते हैं फिर चले जाते है। माया कोई कम थोड़ेही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) दूरादेशी बन बाप की याद में रहना है और दूसरों को दूरदेश में रहने वाले बाप का परिचय देना है।
2) कल्याणकारी युग में सभी का कल्याण करने की युक्ति निकालनी है। सबको दुबन (दलदल) से निकालने की सेवा करनी है।
वरदान:सदा ऊंची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहने वाली मायाजीत महान आत्मा भव!
जो महान आत्मायें हैं वह सदैव ऊंची स्थिति में रहती हैं। ऊंची स्थिति ही ऊंचा आसन है। जब ऊंची स्थिति के आसन पर रहते हो तो माया आ नहीं सकती। वो आपको महान समझकर आपके आगे झुकेगी, वार नहीं करेंगी, हार मानेंगी। जब ऊंचे आसन से नीचे आते हो तब माया वार करती है। आप सदा ऊंचे आसन पर रहो तो माया के आने की ताकत नहीं। वह ऊंचे चढ़ नहीं सकती।
स्लोगन:शान्ति का दूत बन सबको शान्ति का दान दो - यही आपका आक्यूपेशन है।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
हम मनुष्य आत्माओं को पहले पहले कौनसी मुख्य प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी है, जिस पर खूब अटेन्शन रखना है? पहले-पहले तो अपने को यह पक्का निश्चय रखना है कि हमको पढ़ाने वाला कौन है? दूसरी प्वाइन्ट है, हम सभी मनुष्य आत्मायें हैं और परमात्मा हमारा पिता है। हम आत्मा बच्चे और परमात्मा बाप दोनों अलग-अलग चीज़ है। तीसरी प्वाइन्ट ईश्वर बेअंत भी नहीं है, ईश्वर सर्वत्र भी नहीं है, अब यही नॉलेज बुद्धि में रखनी है इसलिए अपनी नॉलेज औरों से न्यारी है, भले दुनियावी मनुष्य समझते हैं हमको परमात्मा का ज्ञान है, अब उनसे पूछो आप में कौनसा ज्ञान है? तो कहेंगे ईश्वर सर्वव्यापी है। अब परमात्मा तो कहता है मेरा ज्ञान मेरे द्वारा ही मिलता है, जैसे बैरिस्टर द्वारा बैरिस्ट्री, डॉ. द्वारा डॉक्टरी सीखी जाती है, भल वहाँ बैरिस्टर भी अनेक होते हैं, एक बैरिस्टर से न पढ़ा तो दूसरा पढ़ायेगा। एक डॉक्टर से न पढ़ा तो दूसरा डॉक्टर पढ़ायेगा, मगर यह ईश्वरीय नॉलेज सिवाए एक परमात्मा बिगर कोई भी मनुष्य आत्मा चाहे साधू, संत, महात्मा हो वो भी नहीं पढ़ा सकेगा। तो हम कैसे समझें कि इन्हों में कोई परमात्मा का ज्ञान है और चौथी प्वाइन्ट परमात्मा युगे युगे नहीं आता बल्कि परमात्मा कल्प कल्प एक ही बार इस संगमयुग पर अर्थात् कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि संगम समय पर आता है, और अनेक अधर्मों का विनाश कराए एक आदि सनातन सतधर्म की स्थापना कराता है। अब लोग कैसे कहते हैं कि परमात्मा युगे युगे आता है और ऐसे भी कहते हैं गीता का भगवान श्रीकृष्ण, वो द्वापर में आया है। अब इन सभी बातों को सिद्ध करना है, गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं है, शिव परमात्मा है और वो भी द्वापर में नहीं आता संगम समय पर आया है। पाँचवी प्वाइन्ट गुरु बिगर घोर अन्धियारा कैसे हुआ है, वो गुरु कौन है? मनुष्य सृष्टि उल्टा झाड़ कैसे है और हमको अपने पाँच विकारों पर जीत कैसे पहननी है? छटवीं प्वाइन्ट हम वही पाण्डव यौद्धे हैं, जिसके साथ साक्षात् परमात्मा है उसी तरफ ही जीत है और सातवीं प्वाइन्ट परमात्मा खुद सर्वशक्तिवान है तो जिन्होंने परमात्मा का पूरा साथ लिया है, उन्हों को ही परमात्मा द्वारा लाइट माइट दोनों ताज मिलते हैं। अब यह सभी बातें बुद्धि में रखना इसको ही ज्ञान कहा जाता है। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 21-Oct 2017 )
Hinglish Summary 21.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Zara bhi gaflat ki to maya aisa haf kar legi jo Ishwariya sang se bhi door chale jayenge, isiliye apni sambhal karo, khabardar raho.
Q- Is Ishwariya class me baithne ka kayda kaun sa hai?
A- Is class me wohi baith sakta hai jisne Baap ko yathart pehechana hai. Yahan baithne walo ki abyavichari yaad chahiye. Agar yahan baithe auro ko yaad karte rahe to wo bayumandal ko kharab karte hain. Yah bhi bahut badi dis service hai. Yahan ke kayde kade hone ke kaaran tumhari bruddhi kam hoti hai.
Q- Kis ek baat se baccho ki avastha ka pata padta hai?
A- Is rogi bhogi duniya me kabhi koi paper aata aur rone lagte to avastha ka pata pad jata. Tumhe rone ki mana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Chandrama samaan 16 kala sampann banne ke liye 5 bikaro ka poora daan de grahan se mukt ho jana hai.
2) Baap ka bankar koi paap karm nahi karna hai. Sarir se bhi mamatva nikaal mohjeet ban jana hai.
Vardaan:- Brahman jeevan me badhaiyon ki palana dwara sada bruddhi ko prapt karne wale Padmapadam Bhagyawan bhava.
Slogan:--Sachchi seva dwara sarv ki aashirvad prapt karne wale he takdeervan hain.
Hindi Version in Details –21/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज़रा भी ग़फलत की तो माया ऐसा हप कर लेगी जो ईश्वरीय संग से भी दूर चले जायेंगे, इसलिए अपनी सम्भाल करो, खबरदार रहो''
प्रश्न: इस ईश्वरीय क्लास में बैठने का कायदा कौन सा है?
उत्तर: इस क्लास में वही बैठ सकता है जिसने बाप को यथार्थ पहचाना है। यहाँ बैठने वालों की अव्यभिचारी याद चाहिए। अगर यहाँ बैठे औरों को याद करते रहे तो वह वायुमण्डल को खराब करते हैं। यह भी बहुत बड़ी डिससर्विस है। यहाँ के कायदे कड़े होने के कारण तुम्हारी वृद्धि कम होती है।
प्रश्न: किस एक बात से बच्चों की अवस्था का पता पड़ता है?
उत्तर: इस रोगी भोगी दुनिया में कभी कोई पेपर आता और रोने लगते तो अवस्था का पता पड़ जाता। तुम्हें रोने की मना है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.... ओम् शान्ति।
यह किसने कहा प्राणी अथवा आत्मा, कहते हैं ना इनके प्राण निकल गये। तो आत्मा निकल गई ना। तो प्राण आत्मा को कहेंगे, न कि शरीर को। बाप आत्माओं से पूछते हैं - पाप आत्मा हो वा पुण्य आत्मा हो? सभी अपने को पतित तो मानते हैं। तो बाप कहते हैं कि अपनी आत्मा से पूछो कि हमने कौन-कौन से पाप किये हैं? कब किये हैं? पाप आत्मा तो सभी हैं ना। परन्तु नम्बरवार तो होते ही हैं। तो नम्बरवार पुण्य आत्मा कौन हैं? नम्बरवन पाप आत्मा कौन है? भारत पावन था, अब पतित है। आज सभी मनुष्य मात्र माया के गुलाम बन गये हैं। आधाकल्प माया के गुलाम बनते हैं, फिर माया को गुलाम बनाते हैं, तब उन्हों को पुण्य आत्मा कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण को भगवान-भगवती कहा जाता है। वह अब कहाँ गये? सतयुग में सिर्फ लक्ष्मी-नारायण तो नहीं थे, परन्तु उनकी पूरी डिनायस्टी थी। उस समय के भारत को पावन कहा जाता था। वहाँ दैवी गुण वाले मनुष्य थे। कहते हैं सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... तो पुण्य आत्मा ठहरे ना। फिर कहते हैं अहिंसा परमोधर्म:। तो वह अहिंसक भी थे। हिंसा के दो अर्थ हैं - हिंसा माना किसका घात करना, मारना। घात भी दो प्रकार का होता है। एक काम कटारी से मारना, दूसरा किसको क्रोध से मारना। यह भी हिंसा है। इस समय सब पाप आत्मा हैं। कहते हैं ना मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। तो नम्बरवार होते हैं ना। परन्तु हैं पाप आत्मा, तो जब बाप आता है तो बाप को पहचानना चाहिए। कहते हैं - परमपिता, तो उनको कोई पिता नहीं, वह सबका पिता है, वह सबका टीचर है। परमपिता जो परमधाम में रहते हैं, उनको कोई बाप नहीं है। बाकी सबका बाप होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप है। कहते हैं शिवाए नम: तो बाप हुआ ना। बाप पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। परन्तु वह कल्प में एक बार जन्म लेते हैं। कहते हैं शिव जयन्ती, तो जन्म हुआ ना। शास्त्रवादी तो नहीं जानते हैं शिव कैसे जन्म लेते हैं? कहते हैं शिवरात्रि, रात्रि कौन सी? रात्रि में मनुष्य अंधकार वश धक्का खाते हैं फिर भक्ति मार्ग में भी कहते हैं गंगा स्नान करो। चार धाम की यात्रा करो, यह करो। तो धक्के हुए ना। यह हो गई रात। सतयुग त्रेता है दिन। सतयुग में है सुख। वहाँ परमात्मा को याद करने की दरकार नहीं। कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें, तो भक्त बाप का सिमरण करते हैं, साधना करते हैं तो पतित ठहरे ना। तो पतित भारत को ही कहेंगे क्योंकि भारत ही पावन था। जब देवी-देवता धर्म था, पवित्र आत्मायें थे। सतयुग में और धर्म होते नहीं। बाकी और धर्म की जो पतित आत्मायें हैं वह सजायें खाकर परमधाम में रहती हैं। सतयुग में आती नहीं। सतयुग में सुख-शान्ति-सम्पत्ति सब थी। वहाँ है ही प्रालब्ध।
यहाँ तुम बच्चों की अभी है एक मत। वहाँ एक घर में हैं अनेक मत। बाप गणेश को याद करेगा तो बच्चा हनूमान को, तो अनेक मत हुई ना। यहाँ बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है। ऐसे तो किसको भी बाबा कह देते हैं। गाँधी भी बापू था ना - परन्तु सबका बाप नहीं था। यह है बेहद का बाप। बाप आकर जंजीरों से छुड़ाते हैं। भक्ति की भी जंजीरें हैं। यह समझते थोड़ेही है कि हम पतित हैं। पतितों को पावन बनाने वाला एक बाप है। तुम एक सत्य बाप को मानते हो। और सतसंग में जाओ तो कोई मना नहीं करेंगे। यहाँ तो बिल्कुल मना की जाती है। जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक क्लास में नहीं बैठ सकते क्योंकि जब तक याद नहीं तब तक लायक नहीं। माया नालायक बना देती है। कहते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। यह सब गाते हैं। गोया सब पतित हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी गाली देते हैं। उन्हों की जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि दिखाई पड़ती है। अगर यहाँ कोई बैठकर भी औरों को याद करता रहे तो वह व्यभिचारी याद हो गई ना। भल याद पूरी रीति ठहरती नहीं है क्योंकि माया बुद्धियोग तोड़ देती है। फिर भी बाप तुम्हें बुद्धियोग लगाना सिखलाते हैं। अन्त में तुम्हारी याद ठहर जायेगी। तब अन्त के लिए गायन है कि अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो। यह संस्था इसलिए वृद्धि को नहीं पाती क्योंकि यहाँ के कायदे कड़े हैं। जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक क्लास में बैठ नहीं सकते क्योंकि यहाँ अव्यभिचारी याद चाहिए। कोई सचखण्ड का मालिक नहीं बना सकता है। तुम सचखण्ड के मालिक बाप द्वारा बनते हो। अब तो झूठ खण्ड है, कहते हैं ना - झूठी काया, झूठी माया... आधाकल्प ऐसे ही चलता है। समझो बाप ज्ञान में आता है तो रचना को भी पावन बनाना पड़े। अगर बच्चे पवित्र नहीं बनें तो कपूत ठहरे। घर में अगर एक पवित्र बने, दूसरा न बनें तो झगड़ा हो पड़ता है इसलिए मनुष्यों का हृदय विदीरण होता है। यहाँ सुनते तो अच्छा-अच्छा कहते हैं परन्तु फिर बाहर गया तो फिर वैसे ही बन पड़ते। समझते हैं - सन्यासी तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र हो नहीं सकते। तो हम कैसे रह सकेंगे। परन्तु यहाँ तो प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। बच्चे भी कहते हैं हम पवित्र बनेंगे। आधाकल्प तो हमने पुकारा है कि सद्गति दाता आओ। तो अब वह आये हैं। तो अब उनकी मानेंगे कि भला किसी दूसरे की मानेंगे! बाप कहते हैं अगर नहीं मानेंगे तो सतयुग में कैसे चल सकेंगे। अगर बाप का बच्चा नहीं तो कपूत ठहरे ना, फिर ठहर नहीं सकेंगे। उनका रहना मुश्किल हो पड़ेगा। हंस और बगुले हो गये, इकट्ठे कैसे रह सकेंगे। अच्छा कहाँ स्त्री पवित्र बनती। पति पवित्र नहीं बनता तो स्त्री पुकारती है। बाप कहते हैं बच्चे, तुमको सहन करना पड़ेगा। अच्छा जाकर काम करो, बर्तन मांजो। रोटी टुकड़ा ही तो चाहिए ना। विकार में जाने से तो बर्तन मांजना अच्छा है ना। बच्ची को लौकिक बाप भी एशलम नहीं देते हैं। वह भी कहेंगे हमने तेरा हाथ इसलिए बांधा है, विकार में जाना पड़े। परन्तु पारलौकिक बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण उतरे। चन्द्रमा मुआफिक 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। श्रीकृष्ण 16 कला सम्पूर्ण है ना। अभी नो कला। अभी तो सब पतित हैं। कहते हैं ना - हम पतित हैं फिर कहो कि तुम नर्कवासी हो, तो बिगड़ते हैं। इस समय यथा राजा तथा प्रजा सब पतित हैं। सतयुग है श्रेष्ठाचारी। सतयुग में कोई रोता नहीं। तो तुमको यहाँ भी रोने का हुक्म नहीं। रोते हो गोया अवस्था की कमी है। जब बाप 21 जन्मों की बादशाही देते हैं। फिर रोने की क्या दरकार है, परन्तु यह भूल जाते हो। यह रोगी दुनिया है, भोगी दुनिया है। सतयुग निरोगी, योगी दुनिया है। यहाँ तो बाप को याद करना है। याद नहीं करते तो डिससर्विस करते हो क्योंकि वायुमण्डल खराब करेंगे। यहाँ तो सब हैं ही पतित। तो पतित को दान करने से तो पावन बन न सकें। पतित को दिया तो वह काम ही पतित करेंगे। यहाँ तो पतितों का पतितों के साथ व्यवहार है। वहाँ तो पावन का पावन के साथ व्यवहार होगा। व्यभिचारी अक्षर तो बुरा है ना। पहले भक्ति भी अव्यभिचारी थी। शिव की ही पूजा करते थे। पीछे देवताओं की भक्ति शुरू की, पीछे रजोगुणी भक्ति कहा जाता है। अभी तो मनुष्यों की पूजा करने लग पड़े हैं। सन्यासियों के चरण धोकर पीते हैं। मनुष्यों की पूजा को भूत पूजा कहा जाता है अर्थात् 5 तत्वों के बने हुए शरीर की पूजा। समझते कुछ भी नहीं। तब कहा जाता है अन्धे की औलाद अन्धे। तुम हो सज्जे की औलाद सज्जे। तो वह अन्धेरे में धक्के खाते रहते हैं। कहते हैं गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, गुरू शंकर... यह भी कहना रांग है। विष्णु तो है सतयुग में रहने वाला। वह तो अपनी प्रालब्ध भोगते हैं। बाकी है ब्रह्मा गुरू, वह भी तब जब इस तन में बाप आये। जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक यह भी किस काम के।
बेहद का बाप कहते हैं जो मेरी श्रीमत पर चलता है वही मेरा सपूत बच्चा है। जैसे गवर्मेन्ट आर्डीनेन्स निकालती है, ऐसे यह पाण्डव गवर्मेन्ट भी आर्डीनेन्स निकालती है कि पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। तो बाप कहते हैं कि देह सहित देह के सब संबंध भूल मामेकम् याद करो, इस शरीर से बुद्धियोग तुड़वाते हैं और आत्मा की परमात्मा से सगाई कराते हैं। तो बाप को याद करना चाहिए और शरीर से भी ममत्व निकालना है। मोहजीत की एक कहानी है ना, तो तुमको भी मोहजीत बनना है। यह है युद्ध का मैदान, इस युद्ध में जरा भी गफलत की तो माया हप कर लेती है। कहते हैं कि गज को ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ा। कोई ऐसी बात नहीं कि गज अर्थात् हाथी कोई पानी में गया, ग्राह ने पकड़ लिया। नहीं, यह यहाँ की बात है। अच्छे-अच्छे महारथी हैं, बहुतों को समझाते भी हैं, सेन्टर्स भी सम्भालते हैं। अगर उन्होंने भी जरा गफलत की तो माया हप कर लेती है। ऐसा हप करती है जो बाप के संग से ही भगा ले जाती है। पुरानी दुनिया में चले जाते हैं इसलिए बड़ी सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि माया से बॉक्सिंग है। और यह बिल्कुल समझने की बातें हैं। सिर्फ सत-सत करने की बात नहीं है। सत-सत तो भक्ति मार्ग में करते हैं कि फलाना नाक से पैदा हुआ, यह भी सत, हनूमान पवन से पैदा हुआ, हाँ जी सत्य। वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। यहाँ तो ज्ञान की बातें हैं जो धारण करना है। माया से युद्ध करनी है। अगर बाप का बनकर कोई पाप कर्म किया तो और ही सौ गुणा दण्ड मिलेगा। तो बाबा बहुत खबरदार करते हैं। देखो, अब तो बापदादा सम्मुख बैठ पढ़ा रहे हैं। अब यह थोडेही कहेंगे हे भगवान। नहीं। शिवबाबा का बच्चा एक ब्रह्मा है फिर ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चन्द्रमा समान 16 कला सम्पन्न बनने के लिए 5 विकारों का पूरा दान दे ग्रहण से मुक्त हो जाना है।
2) बाप का बनकर कोई पाप कर्म नहीं करना है। शरीर से भी ममत्व निकाल मोहजीत बन जाना है।
वरदान:ब्राह्मण जीवन में बधाईयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव!
संगमयुग पर विशेष खुशियों भरी बधाईयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाईयां हैं। बाप के स्वरूप में हर समय बधाईयां हैं, शिक्षक के स्वरूप में हर समय शाबास-शाबास का बोल पास विद् आनर बना रहा है, सद्गुरू के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआयें सहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं, इसलिए पदमापदम भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता भगवान के बच्चे, सम्पूर्ण भाग्य के अधिकारी बन गये।
स्लोगन: सच्ची सेवा द्वारा सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाले ही तकदीरवान हैं।
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Mithe bacche - Zara bhi gaflat ki to maya aisa haf kar legi jo Ishwariya sang se bhi door chale jayenge, isiliye apni sambhal karo, khabardar raho.
Q- Is Ishwariya class me baithne ka kayda kaun sa hai?
A- Is class me wohi baith sakta hai jisne Baap ko yathart pehechana hai. Yahan baithne walo ki abyavichari yaad chahiye. Agar yahan baithe auro ko yaad karte rahe to wo bayumandal ko kharab karte hain. Yah bhi bahut badi dis service hai. Yahan ke kayde kade hone ke kaaran tumhari bruddhi kam hoti hai.
Q- Kis ek baat se baccho ki avastha ka pata padta hai?
A- Is rogi bhogi duniya me kabhi koi paper aata aur rone lagte to avastha ka pata pad jata. Tumhe rone ki mana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Chandrama samaan 16 kala sampann banne ke liye 5 bikaro ka poora daan de grahan se mukt ho jana hai.
2) Baap ka bankar koi paap karm nahi karna hai. Sarir se bhi mamatva nikaal mohjeet ban jana hai.
Vardaan:- Brahman jeevan me badhaiyon ki palana dwara sada bruddhi ko prapt karne wale Padmapadam Bhagyawan bhava.
Slogan:--Sachchi seva dwara sarv ki aashirvad prapt karne wale he takdeervan hain.
Hindi Version in Details –21/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज़रा भी ग़फलत की तो माया ऐसा हप कर लेगी जो ईश्वरीय संग से भी दूर चले जायेंगे, इसलिए अपनी सम्भाल करो, खबरदार रहो''
प्रश्न: इस ईश्वरीय क्लास में बैठने का कायदा कौन सा है?
उत्तर: इस क्लास में वही बैठ सकता है जिसने बाप को यथार्थ पहचाना है। यहाँ बैठने वालों की अव्यभिचारी याद चाहिए। अगर यहाँ बैठे औरों को याद करते रहे तो वह वायुमण्डल को खराब करते हैं। यह भी बहुत बड़ी डिससर्विस है। यहाँ के कायदे कड़े होने के कारण तुम्हारी वृद्धि कम होती है।
प्रश्न: किस एक बात से बच्चों की अवस्था का पता पड़ता है?
उत्तर: इस रोगी भोगी दुनिया में कभी कोई पेपर आता और रोने लगते तो अवस्था का पता पड़ जाता। तुम्हें रोने की मना है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.... ओम् शान्ति।
यह किसने कहा प्राणी अथवा आत्मा, कहते हैं ना इनके प्राण निकल गये। तो आत्मा निकल गई ना। तो प्राण आत्मा को कहेंगे, न कि शरीर को। बाप आत्माओं से पूछते हैं - पाप आत्मा हो वा पुण्य आत्मा हो? सभी अपने को पतित तो मानते हैं। तो बाप कहते हैं कि अपनी आत्मा से पूछो कि हमने कौन-कौन से पाप किये हैं? कब किये हैं? पाप आत्मा तो सभी हैं ना। परन्तु नम्बरवार तो होते ही हैं। तो नम्बरवार पुण्य आत्मा कौन हैं? नम्बरवन पाप आत्मा कौन है? भारत पावन था, अब पतित है। आज सभी मनुष्य मात्र माया के गुलाम बन गये हैं। आधाकल्प माया के गुलाम बनते हैं, फिर माया को गुलाम बनाते हैं, तब उन्हों को पुण्य आत्मा कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण को भगवान-भगवती कहा जाता है। वह अब कहाँ गये? सतयुग में सिर्फ लक्ष्मी-नारायण तो नहीं थे, परन्तु उनकी पूरी डिनायस्टी थी। उस समय के भारत को पावन कहा जाता था। वहाँ दैवी गुण वाले मनुष्य थे। कहते हैं सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... तो पुण्य आत्मा ठहरे ना। फिर कहते हैं अहिंसा परमोधर्म:। तो वह अहिंसक भी थे। हिंसा के दो अर्थ हैं - हिंसा माना किसका घात करना, मारना। घात भी दो प्रकार का होता है। एक काम कटारी से मारना, दूसरा किसको क्रोध से मारना। यह भी हिंसा है। इस समय सब पाप आत्मा हैं। कहते हैं ना मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। तो नम्बरवार होते हैं ना। परन्तु हैं पाप आत्मा, तो जब बाप आता है तो बाप को पहचानना चाहिए। कहते हैं - परमपिता, तो उनको कोई पिता नहीं, वह सबका पिता है, वह सबका टीचर है। परमपिता जो परमधाम में रहते हैं, उनको कोई बाप नहीं है। बाकी सबका बाप होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप है। कहते हैं शिवाए नम: तो बाप हुआ ना। बाप पुनर्जन्म में नहीं आते हैं। परन्तु वह कल्प में एक बार जन्म लेते हैं। कहते हैं शिव जयन्ती, तो जन्म हुआ ना। शास्त्रवादी तो नहीं जानते हैं शिव कैसे जन्म लेते हैं? कहते हैं शिवरात्रि, रात्रि कौन सी? रात्रि में मनुष्य अंधकार वश धक्का खाते हैं फिर भक्ति मार्ग में भी कहते हैं गंगा स्नान करो। चार धाम की यात्रा करो, यह करो। तो धक्के हुए ना। यह हो गई रात। सतयुग त्रेता है दिन। सतयुग में है सुख। वहाँ परमात्मा को याद करने की दरकार नहीं। कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें, तो भक्त बाप का सिमरण करते हैं, साधना करते हैं तो पतित ठहरे ना। तो पतित भारत को ही कहेंगे क्योंकि भारत ही पावन था। जब देवी-देवता धर्म था, पवित्र आत्मायें थे। सतयुग में और धर्म होते नहीं। बाकी और धर्म की जो पतित आत्मायें हैं वह सजायें खाकर परमधाम में रहती हैं। सतयुग में आती नहीं। सतयुग में सुख-शान्ति-सम्पत्ति सब थी। वहाँ है ही प्रालब्ध।
यहाँ तुम बच्चों की अभी है एक मत। वहाँ एक घर में हैं अनेक मत। बाप गणेश को याद करेगा तो बच्चा हनूमान को, तो अनेक मत हुई ना। यहाँ बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है। ऐसे तो किसको भी बाबा कह देते हैं। गाँधी भी बापू था ना - परन्तु सबका बाप नहीं था। यह है बेहद का बाप। बाप आकर जंजीरों से छुड़ाते हैं। भक्ति की भी जंजीरें हैं। यह समझते थोड़ेही है कि हम पतित हैं। पतितों को पावन बनाने वाला एक बाप है। तुम एक सत्य बाप को मानते हो। और सतसंग में जाओ तो कोई मना नहीं करेंगे। यहाँ तो बिल्कुल मना की जाती है। जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक क्लास में नहीं बैठ सकते क्योंकि जब तक याद नहीं तब तक लायक नहीं। माया नालायक बना देती है। कहते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। यह सब गाते हैं। गोया सब पतित हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी गाली देते हैं। उन्हों की जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि दिखाई पड़ती है। अगर यहाँ कोई बैठकर भी औरों को याद करता रहे तो वह व्यभिचारी याद हो गई ना। भल याद पूरी रीति ठहरती नहीं है क्योंकि माया बुद्धियोग तोड़ देती है। फिर भी बाप तुम्हें बुद्धियोग लगाना सिखलाते हैं। अन्त में तुम्हारी याद ठहर जायेगी। तब अन्त के लिए गायन है कि अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो। यह संस्था इसलिए वृद्धि को नहीं पाती क्योंकि यहाँ के कायदे कड़े हैं। जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक क्लास में बैठ नहीं सकते क्योंकि यहाँ अव्यभिचारी याद चाहिए। कोई सचखण्ड का मालिक नहीं बना सकता है। तुम सचखण्ड के मालिक बाप द्वारा बनते हो। अब तो झूठ खण्ड है, कहते हैं ना - झूठी काया, झूठी माया... आधाकल्प ऐसे ही चलता है। समझो बाप ज्ञान में आता है तो रचना को भी पावन बनाना पड़े। अगर बच्चे पवित्र नहीं बनें तो कपूत ठहरे। घर में अगर एक पवित्र बने, दूसरा न बनें तो झगड़ा हो पड़ता है इसलिए मनुष्यों का हृदय विदीरण होता है। यहाँ सुनते तो अच्छा-अच्छा कहते हैं परन्तु फिर बाहर गया तो फिर वैसे ही बन पड़ते। समझते हैं - सन्यासी तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र हो नहीं सकते। तो हम कैसे रह सकेंगे। परन्तु यहाँ तो प्रतिज्ञा करनी पड़ती है। बच्चे भी कहते हैं हम पवित्र बनेंगे। आधाकल्प तो हमने पुकारा है कि सद्गति दाता आओ। तो अब वह आये हैं। तो अब उनकी मानेंगे कि भला किसी दूसरे की मानेंगे! बाप कहते हैं अगर नहीं मानेंगे तो सतयुग में कैसे चल सकेंगे। अगर बाप का बच्चा नहीं तो कपूत ठहरे ना, फिर ठहर नहीं सकेंगे। उनका रहना मुश्किल हो पड़ेगा। हंस और बगुले हो गये, इकट्ठे कैसे रह सकेंगे। अच्छा कहाँ स्त्री पवित्र बनती। पति पवित्र नहीं बनता तो स्त्री पुकारती है। बाप कहते हैं बच्चे, तुमको सहन करना पड़ेगा। अच्छा जाकर काम करो, बर्तन मांजो। रोटी टुकड़ा ही तो चाहिए ना। विकार में जाने से तो बर्तन मांजना अच्छा है ना। बच्ची को लौकिक बाप भी एशलम नहीं देते हैं। वह भी कहेंगे हमने तेरा हाथ इसलिए बांधा है, विकार में जाना पड़े। परन्तु पारलौकिक बाप कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण उतरे। चन्द्रमा मुआफिक 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। श्रीकृष्ण 16 कला सम्पूर्ण है ना। अभी नो कला। अभी तो सब पतित हैं। कहते हैं ना - हम पतित हैं फिर कहो कि तुम नर्कवासी हो, तो बिगड़ते हैं। इस समय यथा राजा तथा प्रजा सब पतित हैं। सतयुग है श्रेष्ठाचारी। सतयुग में कोई रोता नहीं। तो तुमको यहाँ भी रोने का हुक्म नहीं। रोते हो गोया अवस्था की कमी है। जब बाप 21 जन्मों की बादशाही देते हैं। फिर रोने की क्या दरकार है, परन्तु यह भूल जाते हो। यह रोगी दुनिया है, भोगी दुनिया है। सतयुग निरोगी, योगी दुनिया है। यहाँ तो बाप को याद करना है। याद नहीं करते तो डिससर्विस करते हो क्योंकि वायुमण्डल खराब करेंगे। यहाँ तो सब हैं ही पतित। तो पतित को दान करने से तो पावन बन न सकें। पतित को दिया तो वह काम ही पतित करेंगे। यहाँ तो पतितों का पतितों के साथ व्यवहार है। वहाँ तो पावन का पावन के साथ व्यवहार होगा। व्यभिचारी अक्षर तो बुरा है ना। पहले भक्ति भी अव्यभिचारी थी। शिव की ही पूजा करते थे। पीछे देवताओं की भक्ति शुरू की, पीछे रजोगुणी भक्ति कहा जाता है। अभी तो मनुष्यों की पूजा करने लग पड़े हैं। सन्यासियों के चरण धोकर पीते हैं। मनुष्यों की पूजा को भूत पूजा कहा जाता है अर्थात् 5 तत्वों के बने हुए शरीर की पूजा। समझते कुछ भी नहीं। तब कहा जाता है अन्धे की औलाद अन्धे। तुम हो सज्जे की औलाद सज्जे। तो वह अन्धेरे में धक्के खाते रहते हैं। कहते हैं गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, गुरू शंकर... यह भी कहना रांग है। विष्णु तो है सतयुग में रहने वाला। वह तो अपनी प्रालब्ध भोगते हैं। बाकी है ब्रह्मा गुरू, वह भी तब जब इस तन में बाप आये। जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक यह भी किस काम के।
बेहद का बाप कहते हैं जो मेरी श्रीमत पर चलता है वही मेरा सपूत बच्चा है। जैसे गवर्मेन्ट आर्डीनेन्स निकालती है, ऐसे यह पाण्डव गवर्मेन्ट भी आर्डीनेन्स निकालती है कि पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। तो बाप कहते हैं कि देह सहित देह के सब संबंध भूल मामेकम् याद करो, इस शरीर से बुद्धियोग तुड़वाते हैं और आत्मा की परमात्मा से सगाई कराते हैं। तो बाप को याद करना चाहिए और शरीर से भी ममत्व निकालना है। मोहजीत की एक कहानी है ना, तो तुमको भी मोहजीत बनना है। यह है युद्ध का मैदान, इस युद्ध में जरा भी गफलत की तो माया हप कर लेती है। कहते हैं कि गज को ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ा। कोई ऐसी बात नहीं कि गज अर्थात् हाथी कोई पानी में गया, ग्राह ने पकड़ लिया। नहीं, यह यहाँ की बात है। अच्छे-अच्छे महारथी हैं, बहुतों को समझाते भी हैं, सेन्टर्स भी सम्भालते हैं। अगर उन्होंने भी जरा गफलत की तो माया हप कर लेती है। ऐसा हप करती है जो बाप के संग से ही भगा ले जाती है। पुरानी दुनिया में चले जाते हैं इसलिए बड़ी सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि माया से बॉक्सिंग है। और यह बिल्कुल समझने की बातें हैं। सिर्फ सत-सत करने की बात नहीं है। सत-सत तो भक्ति मार्ग में करते हैं कि फलाना नाक से पैदा हुआ, यह भी सत, हनूमान पवन से पैदा हुआ, हाँ जी सत्य। वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। यहाँ तो ज्ञान की बातें हैं जो धारण करना है। माया से युद्ध करनी है। अगर बाप का बनकर कोई पाप कर्म किया तो और ही सौ गुणा दण्ड मिलेगा। तो बाबा बहुत खबरदार करते हैं। देखो, अब तो बापदादा सम्मुख बैठ पढ़ा रहे हैं। अब यह थोडेही कहेंगे हे भगवान। नहीं। शिवबाबा का बच्चा एक ब्रह्मा है फिर ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चन्द्रमा समान 16 कला सम्पन्न बनने के लिए 5 विकारों का पूरा दान दे ग्रहण से मुक्त हो जाना है।
2) बाप का बनकर कोई पाप कर्म नहीं करना है। शरीर से भी ममत्व निकाल मोहजीत बन जाना है।
वरदान:ब्राह्मण जीवन में बधाईयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव!
संगमयुग पर विशेष खुशियों भरी बधाईयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाईयां हैं। बाप के स्वरूप में हर समय बधाईयां हैं, शिक्षक के स्वरूप में हर समय शाबास-शाबास का बोल पास विद् आनर बना रहा है, सद्गुरू के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआयें सहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं, इसलिए पदमापदम भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता भगवान के बच्चे, सम्पूर्ण भाग्य के अधिकारी बन गये।
स्लोगन: सच्ची सेवा द्वारा सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाले ही तकदीरवान हैं।
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Details ( Page:- Murali 22-Oct 2017 )
Hinglish Summary
22.10.17 Pratah Murli Om Shanti AVYAKT Babdada Madhuban- 18-02-83
Headline – Sada umang utsah mei rehne ka yuktiyan.
Bardan – Yatharth Bidhi dwara vyarth ko samapt kar numberone lenewale parmatam suddhi swaroop bhav.
Slogan – Apkari par bhi upkar karnewala hi gyanitu atma hai.
Hindi Version in Details –
22/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " अव्यक्त-बापदादा " मधुबन-18-02-83
"सदा उमंग-उत्साह में रहने की युक्तियाँ"
आज सर्व बच्चों के दिलाराम बाप, बच्चों के दिल की आवाज, दिल की मीठी-मीठी बातों का रेसपाण्ड देने के लिए बच्चों के बीच आये हैं। अमृतवेले से लेकर बापदादा चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न राज़ भरे हुए साज़ सुनते रहते हैं। सारे दिन में कितने बच्चों के और कितने प्रकार के साज़ सुनते होंगे। हरेक बच्चे के भी समय-समय के भिन्न-भिन्न साज़ होते हैं। सबसे ज्यादा नैचुरल साज़ कौन सुनता है? नैचुरल वस्तु सदा प्रिय लगती है। तो सब बच्चों के भिन्न-भिन्न साज़ सुनते हुए बापदादा बच्चों को सार में मुख्य बातें सुनाते हैं।
सभी बच्चे यथाशक्ति लगन में मगन अवस्था में स्थित होने के लिए वा मगन स्वरूप के अनुभवी मूर्त बनने के लिए अटेन्शन बहुत अच्छा रखते चल रहे हैं। सबकी दिल का एक ही उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सदा सपूत बच्चे का सबूत दूँ। यह उमंग-उत्साह सर्व के उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में बहुत सहयोग देता है। यह उमंग का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है इसलिए सदा दिल में उमंग-उत्साह को वा इस उड़ती कला के साधन को कायम रखना। कभी उमंग-उत्साह को कम नहीं करना। उमंग है - मुझे बाप समान सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व ज्ञान के खजानों से सम्पन्न होना ही है - क्योंकि कल्प पहले भी मैं श्रेष्ठ आत्मा बना था। एक कल्प की तकदीर नहीं लेकिन अनेक बार के तकदीर की लकीर भाग्य विधाता द्वारा खींची हुई है। इसी उमंग के आधार पर उत्साह स्वत: होता है। उत्साह क्या होता? 'वाह मेरा भाग्य'। जो भी बापदादा ने भिन्न-भिन्न टाइटिल दिये हैं, उसी स्मृति स्वरूप में रहने से उत्साह अर्थात् खुशी स्वत: ही और सदा ही रहती है। सबसे बड़े ते बड़े उत्साह की बात है कि अनेक जन्म आपने बाप को ढूंढा लेकिन इस समय बापदादा ने आप लोगों को ढूंढा। भिन्न-भिन्न पर्दों के अन्दर छिपे हुए थे। उन पर्दों के अन्दर से भी ढूंढ लिया ना? बिछुड़कर कितने दूर चले गये। भारत देश को छोड़कर कहाँ चले गये! धर्म, कर्म, देश, रीति-रसम, कितने पर्दों के अन्दर आ गये। तो सदा इसी उत्साह और खुशी में रहते हो ना! बाप ने अपना बनाया या आपने बाप को अपना बनाया? पहले मैसेज तो बाप ने भेजा ना! चाहे पहचानने में कोई ने कितना समय, कोई ने कितना समय लगाया। तो सदा उमंग और उत्साह में रहने वाली आत्माओं को एक बल एक भरोसे में रहने वाले बच्चों को, हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा ही अनुभव होता रहता है। ''होना ही है'' यह हिम्मत। इसी हिम्मत से मदद के पात्र स्वत: ही बन जाते हैं। और इसी हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है। पता नहीं, होगा या नहीं होगा, मैं कर सकूंगा या नहीं, यह संकल्प करना, माया का आह्वान करना है। जब आह्वान किया तो माया क्यों नहीं आयेगी। यह संकल्प आना अर्थात् माया को रास्ता देना। जब आप रास्ता ही खोल देते हो तो क्यों नहीं आयेगी। आधाकल्प की प्रीत रखने वाली रास्ता मिलते कैसे नहीं आयेगी इसलिए सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली हिम्मतवान आत्मा बनो। विधाता और वरदाता बाप के सम्बन्ध से बालक सो मालिक बन गए। सर्व खजानों के मालिक, जिस खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। ऐसे मालिक उमंग-उत्साह में नहीं रहेंगे तो कौन रहेगा। यह स्लोगन सदा मस्तक में स्मृति रूप में रहे - 'हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।' याद है ना। इसी स्मृति ने यहाँ तक लाया है। सदा इसी स्मृति भव। अच्छा !
आज तो डबल विदेशी, सबसे ज्यादा में ज्यादा दूरदेशवासी, दूर से आने वाले बच्चों से विशेष मिलने के लिए आये हैं। वैसे तो भारत के बच्चे भी सदा अधिकारी हैं ही। फिर भी चान्सलर बन चान्स देते हैं इसलिए भारत में महादानी बनने की रीति-रसम अब तक भी चलती है। सबने अपने-अपने रूप से विश्व सेवा के महायज्ञ में सहयोग दिया। हरेक ने बहुत लगन से अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया। सर्व के एक संकल्प द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को बाप के समीप आने का सन्देश मिला। अभी इसी सन्देश द्वारा जगी हुई ज्योति अनेकों को जगाती रहेगी। डबल विदेशी बच्चों ने अपने दृढ़ संकल्प को साकार में लाया। भारतवासी बच्चों ने भी अनेक नाम फैलाने वाले, सन्देश पहुँचाने वाले विशेष आत्माओं को समीप लाया। कलमधारियों को भी स्नेह ओर सम्पर्क में समीप लाया। कलम की शक्ति और मुख की शक्ति दोनों ही मिलकर सन्देश की ज्योति जगाते रहेंगे। इसके लिए डबल विदेशी बच्चों को और देश में समीप रहने वाले बच्चों को, दोनों को बधाई। डबल विदेशी बच्चों ने पावरफुल आवाज़ फैलाने के निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को लाया उसके लिए भी विशेष बधाई हो। बाप तो सदा बच्चों के सेवाधारी हैं। पहले बच्चे। बाप तो बैकबोन है ना। सामने मैदान पर तो बच्चे ही आते हैं। मेहनत बच्चों की मुहब्बत बाप की। अच्छा।
ऐसे सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा बापदादा की मदद के पात्र, हिम्मतवान बच्चे, सदा सेवा की लगन में मगन रहने वाले, सदा स्वंय को प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तियों की प्राप्ति कराने वाले, ऐसे बाप के सदा अधिकारी वा बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।
जानकी दादी से:- बाप समान भव की वरदानी हो ना। डबल सेवा करती हो। बच्ची की मंसा सेवा की सफलता बहुत अच्छी दिखाई दे रही है। सफलता स्वरूप का प्रत्यक्ष सबूत हो। सभी बाप के साथ-साथ बच्ची के भी गुण गाते हैं। बाप साथ-साथ चक्कर लगाते हैं ना। चक्रवर्ती राजा हो। प्रकृतिजीत का अच्छा ही प्रत्यक्ष पार्ट बजा रही हो। अब तो संकल्प द्वारा भी सेवा का पार्ट अच्छा चल रहा है। प्रैक्टिकल सबूत अच्छा है। अभी तो बहुत बड़े-बड़े आयेंगे। विदेश का आवाज़ देश वालों तक पहुँचेगा। सभी विदेशी बच्चों ने सर्विस के उमंग-उत्साह का अच्छा ही प्रैक्टिकल सबूत दिखाया है इसीलिए सभी के तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाई हो। अच्छा माइक लाया, याद का स्वरूप बनकर सेवा की है, इसलिए सफलता है। अच्छा बगीचा तैयार किया है। अल्लाह अपने बगीचे को देख रहे हैं।
जयन्ती बहन से:- जन्म से लकी और लवली तो हो ही। जन्म ही लक से हुआ है। जहाँ भी जायेंगी वह स्थान भी लकी हो जायेगा। देखो लण्डन की धरती लकी हो गई ना। जहाँ भी चक्कर लगाती हो तो क्या सौगात देकर आती हो? जो भाग्य विधाता द्वारा भाग्य मिला है वह भाग्य बाँटकर आती हो। सभी आपको किस नज़र से देखते हैं, मालूम है? भाग्य का सितारा हो। जहाँ सितारा चमकता है वहाँ जगमग हो जाता है। ऐसे अनुभव करती हो ना। कदम बच्ची का और मदद बाप की। फालो फादर तो हो ही लेकिन फालो साथी (जानकी दादी को) भी ठीक किया है। यह भी समान बनने की रेस अच्छी कर रही है। अच्छा !
गायत्री बहन (न्यूयार्क):- गायत्री भी कम नहीं, बहुत अच्छा सर्विस का साधन अपनाया है। जो भी निमित्त बन करके आत्मायें मधुबन तक पहुँचाई, तो निमित्त बनने वालों को भी बापदादा और परिवार की शुभ स्नेह के पुष्प की वर्षा होती रहती है। जितना ही शैली अच्छी आत्मा है, उतना ही यह जो बच्चा आया (राबर्ट मूलरी) यह भी बहुत अच्छा सेवा के क्षेत्र में सहयोगी आत्मा है। सच्ची दिल पर साहेब राजी। साफ दिल वाला है इसलिए बाप के स्नेह को, बाप की शक्ति को सहज कैच कर सका। उमंग-उत्साह और संकल्प बहुत अच्छा है। सेवा में अच्छा जम्प लगायेगा। बापदादा भी निमित्त बने हुए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। उनको कहना कि सेवा में उड़ती कला वाले फरिश्ते स्वरूप हो और ऐसे ही अनुभव करते रहना। अच्छा - सभी के सहयोग से सफलता मधुबन तक दिखाई दे रही है। नाम किसका भी नहीं ले रहे हैं। लेकिन सब समझना कि हमें बाबा कह रहे हैं। कोई भी कम नहीं है। समझो पहले हम सेवा में आगे हैं। छोटे बड़े सभी ने तन-मन-धन-समय संकल्प सब कुछ सेवा में लगाया है।
मुरली भाई और रजनी बहन से: - बापदादा के स्नेह की डोर ने खींच लाया ना। सदा अभी क्या याद रहता है? श्वासों श्वांस सेकण्ड-सेकण्ड क्या याद रहता? सदा दिल से बाबा ही निकलता है ना। मन की खुशी, याद के अनुभव द्वारा अनुभव की। अभी एकाग्र हो जो सोचेंगे वह सब आगे बढ़ने का साधन हो जायेगा। सिर्फ एक बल एक भरोसे से एकाग्र हो करके सोचो। निश्चय में एक बल और एक भरोसा, तो जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा। बापदादा सदा साथ हैं और सदा रहेंगे। बहादुर हो ना। बाप दादा बच्चे की हिम्मत और निश्चय को देखके निश्चय और हिम्मत पर बधाई दे रहे हैं। बेफिकर बादशाह के बच्चे बादशाह हो ना। ड्रामा की भावी ने समीप रत्न तो बना ही दिया है। साथ भी बहुत अच्छा मिला है। साकार का साथ भी शक्तिशाली है। आत्मा का साथ तो है ही बाप। डबल लिफ्ट है इसलिए बेफिकर बादशाह। समय पर पुण्यात्मा बन पुण्य का कार्य किया है। इसलिए बापदादा के सहयोग के सदा पात्र हो। कितने पुण्य के अधिकारी बने। पुण्य-स्थान के निमित्त बने। किसी भी रीति से बच्चे का भाग्य बना ही दिया ना। पुण्य की पूँजी इक्टठी है। मुरलीधर का मुरली, मास्टर मुरली है। बाप का हाथ सदा हाथ में है। सदा याद करते और शक्ति लेते रहो।
बाप का खजाना सो आपका, अधिकारी समझकर चलो। बापदादा तो घर का बालक सो घर का मालिक समझते हैं। परमार्थ और व्यवहार दोनों साथ-साथ हों। व्यवहार में भी साथ रहे। अच्छा।
यू.के. ग्रुप से:- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी समझते हो? वैसे भी लण्डन राजधानी है ना। तो राजधानी में रहते हुए अपना राज्य सदा याद रहता है ना। रानी का महल देखते अपने महल याद आते हैं। आपके महल कितने सुन्दर होंगे, जानते हो ना। ऐसा आपका राज्य है जो अब तक कोई ऐसा राज्य न हुआ है, न होगा। ऐसा नशा है? भल अभी तो सब विनाश हो जायेगा। लेकिन आप तो भारत में आ जायेंगे ना। यह तो पक्का है ना। जहाँ भी ब्राहमण आत्माओं ने इतनी सेवा की है वह पिकनिक स्थान जरूर रहेंगे। आदमशुमारी कम होगी, इतने विस्तार की आवश्यकता नहीं होगी। अच्छा - अपना घर, अपना राज्य, अपना बाप, अपना कर्तव्य सब याद रहे।
प्रश्न: - सदा आगे बढ़ने का साधन क्या है?
उत्तर:- नॉलेज और सेवा। जो बच्चे नॉलेज को अच्छी रीति धारण करते हैं और सेवा की सदा रूचि बनी रहती है वह आगे बढ़ते रहते हैं। हजार भुजा वाला बाप आपके साथ है, इसलिए साथी को सदा साथ रखते आगे बढ़ते रहो।
प्रश्न:- प्रवृत्ति में जो सदा समर्पित होकर रहते हैं - उनके द्वारा कौन सी सेवा स्वत: हो जाती है?
उत्तर:- ऐसी आत्माओं के श्रेष्ठ सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। सबका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिले तो वृक्ष से फल कितना अच्छा निकलता है, ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत हो जाता है। तो ऐसे बापदादा के दिलतख्तनशीन सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में भी समर्पित रहने वाले बच्चे हो ना। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान: यथार्थ विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त कर नम्बरवन लेने वाले परमात्म सिद्धि स्वरूप भव!
जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है। ऐसे समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वत: समाप्त हो जाता है, क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना। तो श्रेष्ठ तरफ लगाने वाले व्यर्थ पर विन कर नम्बरवन ले लेते हैं। उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यही परमात्म सिद्धि है। वह रिद्धि सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप यथार्थ विधि द्वारा परमात्म सिद्धि को प्राप्त करते हो।
स्लोगन: अपकारी पर भी उपकार करने वाला ही ज्ञानी तू आत्मा है।
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22.10.17 Pratah Murli Om Shanti AVYAKT Babdada Madhuban- 18-02-83
Headline – Sada umang utsah mei rehne ka yuktiyan.
Bardan – Yatharth Bidhi dwara vyarth ko samapt kar numberone lenewale parmatam suddhi swaroop bhav.
Slogan – Apkari par bhi upkar karnewala hi gyanitu atma hai.
Hindi Version in Details –
22/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " अव्यक्त-बापदादा " मधुबन-18-02-83
"सदा उमंग-उत्साह में रहने की युक्तियाँ"
आज सर्व बच्चों के दिलाराम बाप, बच्चों के दिल की आवाज, दिल की मीठी-मीठी बातों का रेसपाण्ड देने के लिए बच्चों के बीच आये हैं। अमृतवेले से लेकर बापदादा चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न राज़ भरे हुए साज़ सुनते रहते हैं। सारे दिन में कितने बच्चों के और कितने प्रकार के साज़ सुनते होंगे। हरेक बच्चे के भी समय-समय के भिन्न-भिन्न साज़ होते हैं। सबसे ज्यादा नैचुरल साज़ कौन सुनता है? नैचुरल वस्तु सदा प्रिय लगती है। तो सब बच्चों के भिन्न-भिन्न साज़ सुनते हुए बापदादा बच्चों को सार में मुख्य बातें सुनाते हैं।
सभी बच्चे यथाशक्ति लगन में मगन अवस्था में स्थित होने के लिए वा मगन स्वरूप के अनुभवी मूर्त बनने के लिए अटेन्शन बहुत अच्छा रखते चल रहे हैं। सबकी दिल का एक ही उमंग-उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रत्न बन सदा सपूत बच्चे का सबूत दूँ। यह उमंग-उत्साह सर्व के उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में बहुत सहयोग देता है। यह उमंग का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है इसलिए सदा दिल में उमंग-उत्साह को वा इस उड़ती कला के साधन को कायम रखना। कभी उमंग-उत्साह को कम नहीं करना। उमंग है - मुझे बाप समान सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व ज्ञान के खजानों से सम्पन्न होना ही है - क्योंकि कल्प पहले भी मैं श्रेष्ठ आत्मा बना था। एक कल्प की तकदीर नहीं लेकिन अनेक बार के तकदीर की लकीर भाग्य विधाता द्वारा खींची हुई है। इसी उमंग के आधार पर उत्साह स्वत: होता है। उत्साह क्या होता? 'वाह मेरा भाग्य'। जो भी बापदादा ने भिन्न-भिन्न टाइटिल दिये हैं, उसी स्मृति स्वरूप में रहने से उत्साह अर्थात् खुशी स्वत: ही और सदा ही रहती है। सबसे बड़े ते बड़े उत्साह की बात है कि अनेक जन्म आपने बाप को ढूंढा लेकिन इस समय बापदादा ने आप लोगों को ढूंढा। भिन्न-भिन्न पर्दों के अन्दर छिपे हुए थे। उन पर्दों के अन्दर से भी ढूंढ लिया ना? बिछुड़कर कितने दूर चले गये। भारत देश को छोड़कर कहाँ चले गये! धर्म, कर्म, देश, रीति-रसम, कितने पर्दों के अन्दर आ गये। तो सदा इसी उत्साह और खुशी में रहते हो ना! बाप ने अपना बनाया या आपने बाप को अपना बनाया? पहले मैसेज तो बाप ने भेजा ना! चाहे पहचानने में कोई ने कितना समय, कोई ने कितना समय लगाया। तो सदा उमंग और उत्साह में रहने वाली आत्माओं को एक बल एक भरोसे में रहने वाले बच्चों को, हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा ही अनुभव होता रहता है। ''होना ही है'' यह हिम्मत। इसी हिम्मत से मदद के पात्र स्वत: ही बन जाते हैं। और इसी हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है। पता नहीं, होगा या नहीं होगा, मैं कर सकूंगा या नहीं, यह संकल्प करना, माया का आह्वान करना है। जब आह्वान किया तो माया क्यों नहीं आयेगी। यह संकल्प आना अर्थात् माया को रास्ता देना। जब आप रास्ता ही खोल देते हो तो क्यों नहीं आयेगी। आधाकल्प की प्रीत रखने वाली रास्ता मिलते कैसे नहीं आयेगी इसलिए सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली हिम्मतवान आत्मा बनो। विधाता और वरदाता बाप के सम्बन्ध से बालक सो मालिक बन गए। सर्व खजानों के मालिक, जिस खजाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। ऐसे मालिक उमंग-उत्साह में नहीं रहेंगे तो कौन रहेगा। यह स्लोगन सदा मस्तक में स्मृति रूप में रहे - 'हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।' याद है ना। इसी स्मृति ने यहाँ तक लाया है। सदा इसी स्मृति भव। अच्छा !
आज तो डबल विदेशी, सबसे ज्यादा में ज्यादा दूरदेशवासी, दूर से आने वाले बच्चों से विशेष मिलने के लिए आये हैं। वैसे तो भारत के बच्चे भी सदा अधिकारी हैं ही। फिर भी चान्सलर बन चान्स देते हैं इसलिए भारत में महादानी बनने की रीति-रसम अब तक भी चलती है। सबने अपने-अपने रूप से विश्व सेवा के महायज्ञ में सहयोग दिया। हरेक ने बहुत लगन से अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया। सर्व के एक संकल्प द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को बाप के समीप आने का सन्देश मिला। अभी इसी सन्देश द्वारा जगी हुई ज्योति अनेकों को जगाती रहेगी। डबल विदेशी बच्चों ने अपने दृढ़ संकल्प को साकार में लाया। भारतवासी बच्चों ने भी अनेक नाम फैलाने वाले, सन्देश पहुँचाने वाले विशेष आत्माओं को समीप लाया। कलमधारियों को भी स्नेह ओर सम्पर्क में समीप लाया। कलम की शक्ति और मुख की शक्ति दोनों ही मिलकर सन्देश की ज्योति जगाते रहेंगे। इसके लिए डबल विदेशी बच्चों को और देश में समीप रहने वाले बच्चों को, दोनों को बधाई। डबल विदेशी बच्चों ने पावरफुल आवाज़ फैलाने के निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को लाया उसके लिए भी विशेष बधाई हो। बाप तो सदा बच्चों के सेवाधारी हैं। पहले बच्चे। बाप तो बैकबोन है ना। सामने मैदान पर तो बच्चे ही आते हैं। मेहनत बच्चों की मुहब्बत बाप की। अच्छा।
ऐसे सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा बापदादा की मदद के पात्र, हिम्मतवान बच्चे, सदा सेवा की लगन में मगन रहने वाले, सदा स्वंय को प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तियों की प्राप्ति कराने वाले, ऐसे बाप के सदा अधिकारी वा बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।
जानकी दादी से:- बाप समान भव की वरदानी हो ना। डबल सेवा करती हो। बच्ची की मंसा सेवा की सफलता बहुत अच्छी दिखाई दे रही है। सफलता स्वरूप का प्रत्यक्ष सबूत हो। सभी बाप के साथ-साथ बच्ची के भी गुण गाते हैं। बाप साथ-साथ चक्कर लगाते हैं ना। चक्रवर्ती राजा हो। प्रकृतिजीत का अच्छा ही प्रत्यक्ष पार्ट बजा रही हो। अब तो संकल्प द्वारा भी सेवा का पार्ट अच्छा चल रहा है। प्रैक्टिकल सबूत अच्छा है। अभी तो बहुत बड़े-बड़े आयेंगे। विदेश का आवाज़ देश वालों तक पहुँचेगा। सभी विदेशी बच्चों ने सर्विस के उमंग-उत्साह का अच्छा ही प्रैक्टिकल सबूत दिखाया है इसीलिए सभी के तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाई हो। अच्छा माइक लाया, याद का स्वरूप बनकर सेवा की है, इसलिए सफलता है। अच्छा बगीचा तैयार किया है। अल्लाह अपने बगीचे को देख रहे हैं।
जयन्ती बहन से:- जन्म से लकी और लवली तो हो ही। जन्म ही लक से हुआ है। जहाँ भी जायेंगी वह स्थान भी लकी हो जायेगा। देखो लण्डन की धरती लकी हो गई ना। जहाँ भी चक्कर लगाती हो तो क्या सौगात देकर आती हो? जो भाग्य विधाता द्वारा भाग्य मिला है वह भाग्य बाँटकर आती हो। सभी आपको किस नज़र से देखते हैं, मालूम है? भाग्य का सितारा हो। जहाँ सितारा चमकता है वहाँ जगमग हो जाता है। ऐसे अनुभव करती हो ना। कदम बच्ची का और मदद बाप की। फालो फादर तो हो ही लेकिन फालो साथी (जानकी दादी को) भी ठीक किया है। यह भी समान बनने की रेस अच्छी कर रही है। अच्छा !
गायत्री बहन (न्यूयार्क):- गायत्री भी कम नहीं, बहुत अच्छा सर्विस का साधन अपनाया है। जो भी निमित्त बन करके आत्मायें मधुबन तक पहुँचाई, तो निमित्त बनने वालों को भी बापदादा और परिवार की शुभ स्नेह के पुष्प की वर्षा होती रहती है। जितना ही शैली अच्छी आत्मा है, उतना ही यह जो बच्चा आया (राबर्ट मूलरी) यह भी बहुत अच्छा सेवा के क्षेत्र में सहयोगी आत्मा है। सच्ची दिल पर साहेब राजी। साफ दिल वाला है इसलिए बाप के स्नेह को, बाप की शक्ति को सहज कैच कर सका। उमंग-उत्साह और संकल्प बहुत अच्छा है। सेवा में अच्छा जम्प लगायेगा। बापदादा भी निमित्त बने हुए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। उनको कहना कि सेवा में उड़ती कला वाले फरिश्ते स्वरूप हो और ऐसे ही अनुभव करते रहना। अच्छा - सभी के सहयोग से सफलता मधुबन तक दिखाई दे रही है। नाम किसका भी नहीं ले रहे हैं। लेकिन सब समझना कि हमें बाबा कह रहे हैं। कोई भी कम नहीं है। समझो पहले हम सेवा में आगे हैं। छोटे बड़े सभी ने तन-मन-धन-समय संकल्प सब कुछ सेवा में लगाया है।
मुरली भाई और रजनी बहन से: - बापदादा के स्नेह की डोर ने खींच लाया ना। सदा अभी क्या याद रहता है? श्वासों श्वांस सेकण्ड-सेकण्ड क्या याद रहता? सदा दिल से बाबा ही निकलता है ना। मन की खुशी, याद के अनुभव द्वारा अनुभव की। अभी एकाग्र हो जो सोचेंगे वह सब आगे बढ़ने का साधन हो जायेगा। सिर्फ एक बल एक भरोसे से एकाग्र हो करके सोचो। निश्चय में एक बल और एक भरोसा, तो जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा। बापदादा सदा साथ हैं और सदा रहेंगे। बहादुर हो ना। बाप दादा बच्चे की हिम्मत और निश्चय को देखके निश्चय और हिम्मत पर बधाई दे रहे हैं। बेफिकर बादशाह के बच्चे बादशाह हो ना। ड्रामा की भावी ने समीप रत्न तो बना ही दिया है। साथ भी बहुत अच्छा मिला है। साकार का साथ भी शक्तिशाली है। आत्मा का साथ तो है ही बाप। डबल लिफ्ट है इसलिए बेफिकर बादशाह। समय पर पुण्यात्मा बन पुण्य का कार्य किया है। इसलिए बापदादा के सहयोग के सदा पात्र हो। कितने पुण्य के अधिकारी बने। पुण्य-स्थान के निमित्त बने। किसी भी रीति से बच्चे का भाग्य बना ही दिया ना। पुण्य की पूँजी इक्टठी है। मुरलीधर का मुरली, मास्टर मुरली है। बाप का हाथ सदा हाथ में है। सदा याद करते और शक्ति लेते रहो।
बाप का खजाना सो आपका, अधिकारी समझकर चलो। बापदादा तो घर का बालक सो घर का मालिक समझते हैं। परमार्थ और व्यवहार दोनों साथ-साथ हों। व्यवहार में भी साथ रहे। अच्छा।
यू.के. ग्रुप से:- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी समझते हो? वैसे भी लण्डन राजधानी है ना। तो राजधानी में रहते हुए अपना राज्य सदा याद रहता है ना। रानी का महल देखते अपने महल याद आते हैं। आपके महल कितने सुन्दर होंगे, जानते हो ना। ऐसा आपका राज्य है जो अब तक कोई ऐसा राज्य न हुआ है, न होगा। ऐसा नशा है? भल अभी तो सब विनाश हो जायेगा। लेकिन आप तो भारत में आ जायेंगे ना। यह तो पक्का है ना। जहाँ भी ब्राहमण आत्माओं ने इतनी सेवा की है वह पिकनिक स्थान जरूर रहेंगे। आदमशुमारी कम होगी, इतने विस्तार की आवश्यकता नहीं होगी। अच्छा - अपना घर, अपना राज्य, अपना बाप, अपना कर्तव्य सब याद रहे।
प्रश्न: - सदा आगे बढ़ने का साधन क्या है?
उत्तर:- नॉलेज और सेवा। जो बच्चे नॉलेज को अच्छी रीति धारण करते हैं और सेवा की सदा रूचि बनी रहती है वह आगे बढ़ते रहते हैं। हजार भुजा वाला बाप आपके साथ है, इसलिए साथी को सदा साथ रखते आगे बढ़ते रहो।
प्रश्न:- प्रवृत्ति में जो सदा समर्पित होकर रहते हैं - उनके द्वारा कौन सी सेवा स्वत: हो जाती है?
उत्तर:- ऐसी आत्माओं के श्रेष्ठ सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। सबका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिले तो वृक्ष से फल कितना अच्छा निकलता है, ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत हो जाता है। तो ऐसे बापदादा के दिलतख्तनशीन सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में भी समर्पित रहने वाले बच्चे हो ना। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान: यथार्थ विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त कर नम्बरवन लेने वाले परमात्म सिद्धि स्वरूप भव!
जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है। ऐसे समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वत: समाप्त हो जाता है, क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना। तो श्रेष्ठ तरफ लगाने वाले व्यर्थ पर विन कर नम्बरवन ले लेते हैं। उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यही परमात्म सिद्धि है। वह रिद्धि सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप यथार्थ विधि द्वारा परमात्म सिद्धि को प्राप्त करते हो।
स्लोगन: अपकारी पर भी उपकार करने वाला ही ज्ञानी तू आत्मा है।
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Details ( Page:- Murali 23-Oct 2017 )
Hinglish Summary
23.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe bacche - Tumhari padhai buddhi ki hai, buddhi ko suddh karne ke liye prabriti me bahut yukti se chalna hai, khaan-paan ki parhej rakhni hai.
Q- Ishwar ki karobar badi wonderful aur gupt hai kaise?
A-Har ek ke karmo ka hisaab-kitaab chuktu karwane ki karobar badi wonderful aur gupt hai. Koi kitna bhi apne paap karm chhipane ki koshish kare lekin chhip nahi sakta. Saza zaroor bhogni padegi. Har ek ka khata upar me rehta hai, isiliye Baap kehte hain - Baap ka banne ke baad koi paap hota hai to sach batane se aadha maaf ho jayega. Sazayein kam ho jayengi. Chhipao mat. Kaha jata hai kakh ka chor so lakh ka chor. Chhipane se dharana ho nahi sakti.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Is binash kaal me dil ki sachchi preet ek Baap se rakhni hai. Ek ki he yaad me rehna hai.
2) Sachche Baap se sada sachche rehna hai. Kuch bhi chhipana nahi hai. Dehi-abhimani rehne ki mehnat karni hai. Apavitra kabhi nahi banna hai.
Vardaan:-- Mahavir ban har samasya ka samadhan karne wale Sada Nirbhay aur Bijay bhava.
Slogan:-- Sarv ke prati sada kalyan ki bhavana rahe - yahi gyani, yogi aatma ke lakshan hain.
Hindi Version in Details –
23/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा " मधुबन-18-02-83
“मीठे बच्चे - तुम्हारी पढ़ाई बुद्धि की है, बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रवृत्ति में बहुत युक्ति से चलना है, खान-पान की परहेज रखनी है”
प्रश्न: ईश्वर की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है कैसे?
उत्तर:
हर एक के कर्मो का हिसाब -किताब चुक्तू करवाने की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कोई कितना भी अपने पाप कर्म छिपाने की कोशिश करे लेकिन छिप नहीं सकता। सजा जरूर भोगनी पड़ेगी। हर एक का खाता ऊपर में रहता है, इसलिए बाप कहते हैं - बाप का बनने के बाद कोई पाप होता है तो सच बताने से आधा माफ हो जायेगा। सजायें कम हो जायेंगी। छिपाओ मत। कहा जाता है कख का चोर सो लख का चोर...... छिपाने से धारणा हो नहीं सकती।
ओम् शान्ति।
किसकी याद में बैठे हो? बच्चे समझते हैं मात-पिता बापदादा अभी आयेंगे, आकर हम बच्चों को अपना वर्सा देंगे। बाबा से हम फिर से 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह तो हर एक के दिल में होगा ना। अभी इस नर्क रूपी भंभोर को आग लगने वाली है। तुम्हारा इस दुनिया वालों से कोई भी तैलुक नहीं है। तुम्हारे लिए ज्ञान भी गुप्त है तो वर्सा भी गुप्त है। लौकिक बाप का वर्सा तो प्रत्यक्ष होता है। बाप की यह जायदाद है। ऑखों से देखते हैं। बाप को भी देखते हैं और वर्से को भी देखते हैं। अब हमारी आत्मा भी गुप्त है। इन ऑखों से न आत्मा को न परमात्मा को देख सकते हैं। लौकिक सम्बन्ध में अपने को शरीर समझ इनको (शरीर को) भी इन ऑखों से देखते हैं और शरीर देने वाले बाप को भी देखते हैं। टीचर गुरू को भी देखते हैं यहाँ तो यह बाप टीचर गुरू सब है गुप्त। बच्चे जानते हैं हम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। आगे तीसरा नेत्र नहीं था। आत्मा सोई पड़ी थी। अब आत्मा को जगाते हैं, तो आत्मा भी गुप्त है। जैसे आत्मा आकर शरीर में प्रवेश करती है वैसे शिवबाबा भी इस शरीर में आकरके हमको फिर स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। बुद्धि भी कहती है हमने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है - आधाकल्प के लिए। फिर आधाकल्प गँवा देते हैं। अब फिर से हम श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। श्रीमत देने वाला भी गुप्त है। तुम्हारी आत्मा जानती है कि हम परमपिता परमात्मा से गुप्त रूप से सुन रहे हैं। आत्म-अभिमानी जरूर बनना है। पहले आत्मा है, पीछे शरीर है। आत्मा अविनाशी, बाप भी अविनाशी। बाप जो शरीर लेता है वह विनाशी है। इस शरीर में आकर बच्चे-बच्चे कहते हैं और स्मृति दिलाते हैं कि मैं आया हूँ तुमको दैवी सतयुगी स्वराज्य के लिए पुरूषार्थ कराने। पुरूषार्थ भी पूरा करना है। सतयुग में सिर्फ तुम्हारा ही राज्य होगा। तुम राज्य करते थे। फिर पुनर्जन्म तो लेना होता है। जो श्रीकृष्ण की वंशावली अथवा दैवी कुल के थे वही फिर रहेंगे। दूसरा फिर कोई नहीं होगा। चन्द्रवंशी कुल भी नहीं होगा। यह तो बहुत सहज बातें हैं समझने की। बरोबर सतयुग में कोई धर्म नहीं था। अभी तो ढेर धर्म हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अनेक तालियाँ बजती रहती हैं। सतयुग में धर्म ही एक है तो ताली बजती नहीं। तो तुम बच्चे गुप्त ही अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। हर एक कहेंगे हम अपने राज्य में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। तो इतनी बहादुरी भी चाहिए। तुम्हारा नाम ही है शिव शक्तियाँ, शेर पर सवारी कोई होती नहीं है, यह महिमा दिखाई है इसलिए शक्ति को शेर पर बिठाते हैं। तुम कोई शेर पर तो नहीं बैठते हो। तुम तो माया पर जीत पाने वाले हो। यह पहलवानी दिखाते हो इसलिए तुम्हारा नाम शिव शक्ति सेना रखा है। यूँ तो गोप भी हैं परन्तु मैजारिटी माताओं की है। अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग से पवित्र प्रवृत्तिमार्ग में तुम ले जाते हो। तुम जानते हो सतयुग विष्णुपुरी में हम बहुत सुखी थे। पवित्रता, सुख, शान्ति सब कुछ था। यहाँ तो कितना दु:ख है। घर में बच्चे कपूत होते हैं तो कितना तंग करते हैं। वहाँ तो सदैव हर्षित रहते हैं। तुम जानते हो बेहद का बाप फिर से बेहद का सुख देने आया है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो सिर्फ बुद्धि में यह धारणा करो - यह पढ़ाई बुद्धि की है। घर में रहते श्रीमत पर चलो। खान-पान से भी असर लग जाता है इसलिए युक्ति से चलना है। हर एक का कर्मबन्धन अपना है। कोई बांधेली है, कोई बन्धनमुक्त है। कोई तो चतुराई से भूँ-भूँ कर छुटटी ले लेती हैं। युक्तियां तो बहुत समझाई हैं। बोलो बाप का फरमान है पवित्र बनो, मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तो जरूर भगवान की मत पर चलना पड़े तब ही बिगर सजा खाये हम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे। जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर है। जैसे बाप एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं, वैसे सजायें भी एक सेकेण्ड में मिल जाती हैं, परन्तु भोगना बहुत होती है। जैसे काशी कलवट खाते हैं तो वह थोड़े समय में बहुत सजायें खाते हैं परन्तु हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है। तुमको तो बिगर सजा खाये हिसाब-किताब चुक्तू करना है इसलिए ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए जो सजा न खानी पड़े। बाबा को याद करना अच्छा है। विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश काले पाण्डवों की प्रीत बुद्धि। बाप ने सम्मुख आकर प्रीत रखवाई है। बाकी औरों से प्रीत रख क्या करेंगे! वह सब खलास हो जाने हैं। एक बाप को याद करने का हड्डी पुरूषार्थ करना है। बाहर से करके मित्र सम्बन्धियों से खुश खैराफत पूछी जाती है, परन्तु दिल एक बाप से। जिस्मानी आशिक माशूक घर में रहते एक दो को याद करते हैं। तुम आशिक बने हो शिवबाबा के। वह तुम्हारे सम्मुख है। वह तुमको याद करते, तुम उनको याद करो। शिवबाबा इस शरीर में आकर आत्माओं की सगाई स्वयं से कराते हैं। इसको कहा जाता है आत्माओं का परमपिता परमात्मा के साथ कल्याणकारी मेला। तुम ज्ञान गंगायें हो, ज्ञान सागर बाप एक है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। बाप और कोई तकलीफ नहीं देते, सिर्फ पवित्र रहना है। काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम कृष्णपुरी के मालिक बनेंगे। बाप का फरमान है पवित्र बनो तो 21 जन्म की राजाई पायेंगे। पतित बनने से तो बर्तन मांजकर रहना अच्छा है। परन्तु देह-अभिमान न टूटने के कारण वर्से को भी गँवा देते हैं। देखो बाप कितना बड़ा है, पतित दुनिया, पतित शरीर में आया है। शिवबाबा को सोमनाथ के मन्दिर में पूज रहे हैं। वही बाबा इस समय देखो कितना साधारण बैठे हैं। अब परमात्मा खुद शिक्षा दे रहे हैं, इस पर भी नहीं चलेंगे तो पद को लकीर लगा देंगे।
बाप कहते हैं बच्चे पवित्र बनो। अभी सब भ्रष्टाचारी हैं, श्रेष्ठाचारी उनको कहा जाता है जो पवित्र रहते हैं। गवर्मेन्ट ने सन्यासियों का झुण्ड बनाया है कि तुम सबको श्रेष्ठाचारी बनाओ। परन्तु श्रेष्ठाचारी तो होते ही सतयुग में हैं। यहाँ कोई हो न सके। पवित्र ही श्रेष्ठ कहे जाते हैं। सन्यासी पवित्र हैं परन्तु फिर भी अपवित्र से जन्म लेते हैं क्योंकि है ही माया का राज्य। कोई योगबल से जन्म तो लेते नहीं हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं दिल हमेशा साफ रहनी चाहिए। जरा भी अंहकार न रहे। बिल्कुल गरीब बन जाना अच्छा है। बाप है गरीब निवाज़, वाह गरीबी वाह! गरीबों को साहूकार बनाना है। बाप कहते हैं भारत को गरीब से साहूकार बनाता हूँ। भारतवासी ही बनेंगे और बनेंगे वह जो श्रीमत पर चलेंगे। वही स्वर्ग के मालिक बन सकेंगे। बाप सहज राजयोग सिखलाते ही हैं कृष्णपुरी अथवा स्वर्ग का मालिक बनने के लिए। बाप का फरमान है पवित्र बनो और कोई मनुष्य को हम गुरू नहीं मानते। जास्ती खिटपिट होती है पवित्रता पर। किसको मार मिलेगी, घर से निकाल देंगे तो वह क्या करेगी? बाप उनको शरण देते हैं, परन्तु ऐसे भी नहीं कि बाबा पास आकर फिर सम्बन्धी याद पड़े और नुकसान करते रहें। फिर दोनों जहानों से निकल जाते हैं। ज्ञान की धारणा नहीं करते तो सुधरते नहीं। पुरानी ही चाल चलते रहते हैं। यहाँ तो कोई भी पाप नहीं करना चाहिए। तुमको तो पुण्य आत्मा बनना है। श्रीमत के आधार पर अपने आपसे पूछो - यह पाप है वा पुण्य है? बाबा समझाते हैं जो भी पाप किये हैं वह बाप को सुनाने से आधा पाप मिट जायेगा। बहुत बच्चे बताते हैं हमने यह किया है। यह गुनाह है, फलाने से पतित बने हैं। बाप तो जानते हैं ना कितने विकर्म किये हैं। समझाते हैं अभी कोई पाप नहीं करो, नहीं तो सज़ा एकदम सौगुणी हो जायेगी फिर धर्मराजपुरी में साक्षात्कार करायेंगे। तुम ऐसे-ऐसे पाप करके छिपाते थे। छिप तो नहीं सकता। भल नहीं देखते हैं, वह बाप तो अच्छी रीति जानते हैं ना। धर्मराज के पास सारा खाता रहता है। ईश्वरीय कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कहते हैं ना - जरूर पाप किया है तब दूसरे जन्म में छी-छी घर में जन्म मिला है। तो जरूर जमा होता है ना। ऊपर में खाता तो है ना। अभी वह खाता यहाँ है इसलिए बाप समझाते रहते हैं कि अब कोई पाप नहीं करना। कख का चोर सो लख का चोर कहा जाता है। समझना चाहिए कि हम बहुत बड़ा पाप करते हैं फिर पद भ्रष्ट हो जायेंगे। धारणा नहीं होती तो ईश्वरीय सर्विस कर नहीं सकते औरों का भी कल्याण करना है। ऐसे समय बरबाद करेंगे, पाप करते रहेंगे तो पद कम हो पड़ेगा। फिर कल्प-कल्पान्तर के लिए वह पद हो जायेगा इसलिए जितना हो सके पुरूषार्थ करना है। पूछते हैं बाबा के पास क्यों आते हो? कहते हैं सूर्यवंशी राजधानी का वर्सा लेने, तो श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। देखना है कि मेरे से कोई बुरा काम वा पाप तो नहीं होता है? नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा, फिर दास दासी जाकर बनेंगे। यहाँ इसलिए थोड़ेही आये हो। मम्मा बाबा कहते हो तो नर से नारायण बनना चाहिए ना। बिगर धारणा के पद कैसे पायेंगे। मम्मा बाबा कहते भी माँ बाप के तख्त पर न बैठे तो समझेंगे पूरा पढ़ते नहीं हैं। मम्मा बाबा तो नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं ना। तुमको भी बाप वही पढ़ाते हैं ना। तो बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। बहुत हैं जो छिप-छिप करके पाप करते रहते हैं, बतलाते नहीं हैं। कितना भी समझाओ फिर भी छोड़ते नहीं। चोर को आदत पड़ जाती है तो चोरी बिगर, झूठ बोलने बिगर रह नहीं सकते। सच्चे बाप के साथ सच ही बोलना चाहिए। बाप को बतलाना चाहिए कि हमसे यह पाप हुआ है, क्षमा करो। माया ने पाप करा लिया। अच्छा फिर भी सच बोला है तो पाप आधा माफ हो सकता है। नहीं तो पाप बढ़ता ही जायेगा। कोई कहते हैं धन्धे में पाप होता है। व्यापारी लोग पाप करते हैं तो धर्माऊ निकालते हैं कि पाप कम हो जाये। पाप करके फिर पुण्य में पैसा लगा दिया वह भी अच्छा ही है। डूबी नांव से लोहा निकले वह भी अच्छा। यह बाप तो स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो सब पुण्य में ही चला जायेगा। दान पुण्य करने वाले को मिलता तो है ना। बाप हर एक को समझाते हैं, बाप हर एक बात में मत देते हैं तो बच्चों को कभी ऐसा काम नहीं करना चाहिए। परन्तु माया छोड़ती नहीं है। अच्छी-अच्छी चीज़ देखेंगे तो झट खा लेंगे वा उठा लेंगे। ऐसे-ऐसे पाप कर्म करने से अपना ही पद भ्रष्ट कर लेते हैं। कई बच्चे बाबा-बाबा कह कर फिर हाथ छोड़ देते हैं। हाथ छोड़ा फिर क्या हाल होगा? माया एकदम ही कच्चा खा लेगी फिर वह कौड़ी का भी नहीं रहता। नम्बरवार तो होते हैं ना। सुखधाम में कोई तो राजाई करते हैं, कोई फिर साधारण भी होंगे। दास दासियां भी होंगी ना। अभी तुम बच्चों को बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिल रहा है, इसलिए बाप की श्रीमत पर चलकर पूरा वर्सा लो। मौत तो सामने खड़ा है। अकाले मृत्यु तो होती है ना। एरोप्लेन गिरा तो सब मर गये। किसको पता था कि यह होगा। मौत सिर पर खड़ा है इसलिए कोशिश करके बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। श्रीमत पर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भल करो। साथ-साथ यह पढ़ाई भी पढ़ो। बाप युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। पुरूषार्थ कर पवित्र भी रहना है। झाड़ू लगाना, बर्तन मांजना अच्छा है - अपवित्र बनने से। परन्तु देही-अभिमानी बनना पड़े। पवित्रता का मान तो है ना। पवित्र नहीं बनेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे। यह सब बच्चों को समझानी दी जाती है। बच्चे तो वृद्धि को पाते रहेंगे। प्रजा भी बहुत बननी है। एक राजा को प्रजा तो हजारों की अन्दाज में चाहिए ना। राजा बनने में मेहनत है। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है। एक की ही याद में रहना है।
2) सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है। कुछ भी छिपाना नहीं है। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। अपवित्र कभी नहीं बनना है।
वरदान:महावीर बन हर समस्या का समाधान करने वाले सदा निर्भय और विजयी भव
जो महावीर हैं वह कभी यह बहाना नहीं बना सकते कि सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गई। समस्या का काम है आना और महावीर का काम है समस्या का समाधान करना न कि हार खाना। महावीर वह है जो सदा निर्भय होकर विजयी बनें, छोटी-मोटी बातों में कमजोर न हो। महावीर विजयी आत्मायें हर कदम में तन से, मन से खुश रहते हैं वे कभी उदास नहीं होते, उनके पास दु:ख की लहर स्वप्न में भी नहीं आ सकती।
स्लोगन:सर्व के प्रति सदा कल्याण की भावना रहे - यही ज्ञानी, योगी आत्मा के लक्षण हैं।
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23.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe bacche - Tumhari padhai buddhi ki hai, buddhi ko suddh karne ke liye prabriti me bahut yukti se chalna hai, khaan-paan ki parhej rakhni hai.
Q- Ishwar ki karobar badi wonderful aur gupt hai kaise?
A-Har ek ke karmo ka hisaab-kitaab chuktu karwane ki karobar badi wonderful aur gupt hai. Koi kitna bhi apne paap karm chhipane ki koshish kare lekin chhip nahi sakta. Saza zaroor bhogni padegi. Har ek ka khata upar me rehta hai, isiliye Baap kehte hain - Baap ka banne ke baad koi paap hota hai to sach batane se aadha maaf ho jayega. Sazayein kam ho jayengi. Chhipao mat. Kaha jata hai kakh ka chor so lakh ka chor. Chhipane se dharana ho nahi sakti.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Is binash kaal me dil ki sachchi preet ek Baap se rakhni hai. Ek ki he yaad me rehna hai.
2) Sachche Baap se sada sachche rehna hai. Kuch bhi chhipana nahi hai. Dehi-abhimani rehne ki mehnat karni hai. Apavitra kabhi nahi banna hai.
Vardaan:-- Mahavir ban har samasya ka samadhan karne wale Sada Nirbhay aur Bijay bhava.
Slogan:-- Sarv ke prati sada kalyan ki bhavana rahe - yahi gyani, yogi aatma ke lakshan hain.
Hindi Version in Details –
23/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा " मधुबन-18-02-83
“मीठे बच्चे - तुम्हारी पढ़ाई बुद्धि की है, बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रवृत्ति में बहुत युक्ति से चलना है, खान-पान की परहेज रखनी है”
प्रश्न: ईश्वर की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है कैसे?
उत्तर:
हर एक के कर्मो का हिसाब -किताब चुक्तू करवाने की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कोई कितना भी अपने पाप कर्म छिपाने की कोशिश करे लेकिन छिप नहीं सकता। सजा जरूर भोगनी पड़ेगी। हर एक का खाता ऊपर में रहता है, इसलिए बाप कहते हैं - बाप का बनने के बाद कोई पाप होता है तो सच बताने से आधा माफ हो जायेगा। सजायें कम हो जायेंगी। छिपाओ मत। कहा जाता है कख का चोर सो लख का चोर...... छिपाने से धारणा हो नहीं सकती।
ओम् शान्ति।
किसकी याद में बैठे हो? बच्चे समझते हैं मात-पिता बापदादा अभी आयेंगे, आकर हम बच्चों को अपना वर्सा देंगे। बाबा से हम फिर से 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह तो हर एक के दिल में होगा ना। अभी इस नर्क रूपी भंभोर को आग लगने वाली है। तुम्हारा इस दुनिया वालों से कोई भी तैलुक नहीं है। तुम्हारे लिए ज्ञान भी गुप्त है तो वर्सा भी गुप्त है। लौकिक बाप का वर्सा तो प्रत्यक्ष होता है। बाप की यह जायदाद है। ऑखों से देखते हैं। बाप को भी देखते हैं और वर्से को भी देखते हैं। अब हमारी आत्मा भी गुप्त है। इन ऑखों से न आत्मा को न परमात्मा को देख सकते हैं। लौकिक सम्बन्ध में अपने को शरीर समझ इनको (शरीर को) भी इन ऑखों से देखते हैं और शरीर देने वाले बाप को भी देखते हैं। टीचर गुरू को भी देखते हैं यहाँ तो यह बाप टीचर गुरू सब है गुप्त। बच्चे जानते हैं हम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। आगे तीसरा नेत्र नहीं था। आत्मा सोई पड़ी थी। अब आत्मा को जगाते हैं, तो आत्मा भी गुप्त है। जैसे आत्मा आकर शरीर में प्रवेश करती है वैसे शिवबाबा भी इस शरीर में आकरके हमको फिर स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। बुद्धि भी कहती है हमने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है - आधाकल्प के लिए। फिर आधाकल्प गँवा देते हैं। अब फिर से हम श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। श्रीमत देने वाला भी गुप्त है। तुम्हारी आत्मा जानती है कि हम परमपिता परमात्मा से गुप्त रूप से सुन रहे हैं। आत्म-अभिमानी जरूर बनना है। पहले आत्मा है, पीछे शरीर है। आत्मा अविनाशी, बाप भी अविनाशी। बाप जो शरीर लेता है वह विनाशी है। इस शरीर में आकर बच्चे-बच्चे कहते हैं और स्मृति दिलाते हैं कि मैं आया हूँ तुमको दैवी सतयुगी स्वराज्य के लिए पुरूषार्थ कराने। पुरूषार्थ भी पूरा करना है। सतयुग में सिर्फ तुम्हारा ही राज्य होगा। तुम राज्य करते थे। फिर पुनर्जन्म तो लेना होता है। जो श्रीकृष्ण की वंशावली अथवा दैवी कुल के थे वही फिर रहेंगे। दूसरा फिर कोई नहीं होगा। चन्द्रवंशी कुल भी नहीं होगा। यह तो बहुत सहज बातें हैं समझने की। बरोबर सतयुग में कोई धर्म नहीं था। अभी तो ढेर धर्म हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अनेक तालियाँ बजती रहती हैं। सतयुग में धर्म ही एक है तो ताली बजती नहीं। तो तुम बच्चे गुप्त ही अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। हर एक कहेंगे हम अपने राज्य में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। तो इतनी बहादुरी भी चाहिए। तुम्हारा नाम ही है शिव शक्तियाँ, शेर पर सवारी कोई होती नहीं है, यह महिमा दिखाई है इसलिए शक्ति को शेर पर बिठाते हैं। तुम कोई शेर पर तो नहीं बैठते हो। तुम तो माया पर जीत पाने वाले हो। यह पहलवानी दिखाते हो इसलिए तुम्हारा नाम शिव शक्ति सेना रखा है। यूँ तो गोप भी हैं परन्तु मैजारिटी माताओं की है। अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग से पवित्र प्रवृत्तिमार्ग में तुम ले जाते हो। तुम जानते हो सतयुग विष्णुपुरी में हम बहुत सुखी थे। पवित्रता, सुख, शान्ति सब कुछ था। यहाँ तो कितना दु:ख है। घर में बच्चे कपूत होते हैं तो कितना तंग करते हैं। वहाँ तो सदैव हर्षित रहते हैं। तुम जानते हो बेहद का बाप फिर से बेहद का सुख देने आया है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो सिर्फ बुद्धि में यह धारणा करो - यह पढ़ाई बुद्धि की है। घर में रहते श्रीमत पर चलो। खान-पान से भी असर लग जाता है इसलिए युक्ति से चलना है। हर एक का कर्मबन्धन अपना है। कोई बांधेली है, कोई बन्धनमुक्त है। कोई तो चतुराई से भूँ-भूँ कर छुटटी ले लेती हैं। युक्तियां तो बहुत समझाई हैं। बोलो बाप का फरमान है पवित्र बनो, मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तो जरूर भगवान की मत पर चलना पड़े तब ही बिगर सजा खाये हम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे। जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर है। जैसे बाप एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं, वैसे सजायें भी एक सेकेण्ड में मिल जाती हैं, परन्तु भोगना बहुत होती है। जैसे काशी कलवट खाते हैं तो वह थोड़े समय में बहुत सजायें खाते हैं परन्तु हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है। तुमको तो बिगर सजा खाये हिसाब-किताब चुक्तू करना है इसलिए ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए जो सजा न खानी पड़े। बाबा को याद करना अच्छा है। विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश काले पाण्डवों की प्रीत बुद्धि। बाप ने सम्मुख आकर प्रीत रखवाई है। बाकी औरों से प्रीत रख क्या करेंगे! वह सब खलास हो जाने हैं। एक बाप को याद करने का हड्डी पुरूषार्थ करना है। बाहर से करके मित्र सम्बन्धियों से खुश खैराफत पूछी जाती है, परन्तु दिल एक बाप से। जिस्मानी आशिक माशूक घर में रहते एक दो को याद करते हैं। तुम आशिक बने हो शिवबाबा के। वह तुम्हारे सम्मुख है। वह तुमको याद करते, तुम उनको याद करो। शिवबाबा इस शरीर में आकर आत्माओं की सगाई स्वयं से कराते हैं। इसको कहा जाता है आत्माओं का परमपिता परमात्मा के साथ कल्याणकारी मेला। तुम ज्ञान गंगायें हो, ज्ञान सागर बाप एक है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। बाप और कोई तकलीफ नहीं देते, सिर्फ पवित्र रहना है। काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम कृष्णपुरी के मालिक बनेंगे। बाप का फरमान है पवित्र बनो तो 21 जन्म की राजाई पायेंगे। पतित बनने से तो बर्तन मांजकर रहना अच्छा है। परन्तु देह-अभिमान न टूटने के कारण वर्से को भी गँवा देते हैं। देखो बाप कितना बड़ा है, पतित दुनिया, पतित शरीर में आया है। शिवबाबा को सोमनाथ के मन्दिर में पूज रहे हैं। वही बाबा इस समय देखो कितना साधारण बैठे हैं। अब परमात्मा खुद शिक्षा दे रहे हैं, इस पर भी नहीं चलेंगे तो पद को लकीर लगा देंगे।
बाप कहते हैं बच्चे पवित्र बनो। अभी सब भ्रष्टाचारी हैं, श्रेष्ठाचारी उनको कहा जाता है जो पवित्र रहते हैं। गवर्मेन्ट ने सन्यासियों का झुण्ड बनाया है कि तुम सबको श्रेष्ठाचारी बनाओ। परन्तु श्रेष्ठाचारी तो होते ही सतयुग में हैं। यहाँ कोई हो न सके। पवित्र ही श्रेष्ठ कहे जाते हैं। सन्यासी पवित्र हैं परन्तु फिर भी अपवित्र से जन्म लेते हैं क्योंकि है ही माया का राज्य। कोई योगबल से जन्म तो लेते नहीं हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं दिल हमेशा साफ रहनी चाहिए। जरा भी अंहकार न रहे। बिल्कुल गरीब बन जाना अच्छा है। बाप है गरीब निवाज़, वाह गरीबी वाह! गरीबों को साहूकार बनाना है। बाप कहते हैं भारत को गरीब से साहूकार बनाता हूँ। भारतवासी ही बनेंगे और बनेंगे वह जो श्रीमत पर चलेंगे। वही स्वर्ग के मालिक बन सकेंगे। बाप सहज राजयोग सिखलाते ही हैं कृष्णपुरी अथवा स्वर्ग का मालिक बनने के लिए। बाप का फरमान है पवित्र बनो और कोई मनुष्य को हम गुरू नहीं मानते। जास्ती खिटपिट होती है पवित्रता पर। किसको मार मिलेगी, घर से निकाल देंगे तो वह क्या करेगी? बाप उनको शरण देते हैं, परन्तु ऐसे भी नहीं कि बाबा पास आकर फिर सम्बन्धी याद पड़े और नुकसान करते रहें। फिर दोनों जहानों से निकल जाते हैं। ज्ञान की धारणा नहीं करते तो सुधरते नहीं। पुरानी ही चाल चलते रहते हैं। यहाँ तो कोई भी पाप नहीं करना चाहिए। तुमको तो पुण्य आत्मा बनना है। श्रीमत के आधार पर अपने आपसे पूछो - यह पाप है वा पुण्य है? बाबा समझाते हैं जो भी पाप किये हैं वह बाप को सुनाने से आधा पाप मिट जायेगा। बहुत बच्चे बताते हैं हमने यह किया है। यह गुनाह है, फलाने से पतित बने हैं। बाप तो जानते हैं ना कितने विकर्म किये हैं। समझाते हैं अभी कोई पाप नहीं करो, नहीं तो सज़ा एकदम सौगुणी हो जायेगी फिर धर्मराजपुरी में साक्षात्कार करायेंगे। तुम ऐसे-ऐसे पाप करके छिपाते थे। छिप तो नहीं सकता। भल नहीं देखते हैं, वह बाप तो अच्छी रीति जानते हैं ना। धर्मराज के पास सारा खाता रहता है। ईश्वरीय कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कहते हैं ना - जरूर पाप किया है तब दूसरे जन्म में छी-छी घर में जन्म मिला है। तो जरूर जमा होता है ना। ऊपर में खाता तो है ना। अभी वह खाता यहाँ है इसलिए बाप समझाते रहते हैं कि अब कोई पाप नहीं करना। कख का चोर सो लख का चोर कहा जाता है। समझना चाहिए कि हम बहुत बड़ा पाप करते हैं फिर पद भ्रष्ट हो जायेंगे। धारणा नहीं होती तो ईश्वरीय सर्विस कर नहीं सकते औरों का भी कल्याण करना है। ऐसे समय बरबाद करेंगे, पाप करते रहेंगे तो पद कम हो पड़ेगा। फिर कल्प-कल्पान्तर के लिए वह पद हो जायेगा इसलिए जितना हो सके पुरूषार्थ करना है। पूछते हैं बाबा के पास क्यों आते हो? कहते हैं सूर्यवंशी राजधानी का वर्सा लेने, तो श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। देखना है कि मेरे से कोई बुरा काम वा पाप तो नहीं होता है? नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा, फिर दास दासी जाकर बनेंगे। यहाँ इसलिए थोड़ेही आये हो। मम्मा बाबा कहते हो तो नर से नारायण बनना चाहिए ना। बिगर धारणा के पद कैसे पायेंगे। मम्मा बाबा कहते भी माँ बाप के तख्त पर न बैठे तो समझेंगे पूरा पढ़ते नहीं हैं। मम्मा बाबा तो नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं ना। तुमको भी बाप वही पढ़ाते हैं ना। तो बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। बहुत हैं जो छिप-छिप करके पाप करते रहते हैं, बतलाते नहीं हैं। कितना भी समझाओ फिर भी छोड़ते नहीं। चोर को आदत पड़ जाती है तो चोरी बिगर, झूठ बोलने बिगर रह नहीं सकते। सच्चे बाप के साथ सच ही बोलना चाहिए। बाप को बतलाना चाहिए कि हमसे यह पाप हुआ है, क्षमा करो। माया ने पाप करा लिया। अच्छा फिर भी सच बोला है तो पाप आधा माफ हो सकता है। नहीं तो पाप बढ़ता ही जायेगा। कोई कहते हैं धन्धे में पाप होता है। व्यापारी लोग पाप करते हैं तो धर्माऊ निकालते हैं कि पाप कम हो जाये। पाप करके फिर पुण्य में पैसा लगा दिया वह भी अच्छा ही है। डूबी नांव से लोहा निकले वह भी अच्छा। यह बाप तो स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो सब पुण्य में ही चला जायेगा। दान पुण्य करने वाले को मिलता तो है ना। बाप हर एक को समझाते हैं, बाप हर एक बात में मत देते हैं तो बच्चों को कभी ऐसा काम नहीं करना चाहिए। परन्तु माया छोड़ती नहीं है। अच्छी-अच्छी चीज़ देखेंगे तो झट खा लेंगे वा उठा लेंगे। ऐसे-ऐसे पाप कर्म करने से अपना ही पद भ्रष्ट कर लेते हैं। कई बच्चे बाबा-बाबा कह कर फिर हाथ छोड़ देते हैं। हाथ छोड़ा फिर क्या हाल होगा? माया एकदम ही कच्चा खा लेगी फिर वह कौड़ी का भी नहीं रहता। नम्बरवार तो होते हैं ना। सुखधाम में कोई तो राजाई करते हैं, कोई फिर साधारण भी होंगे। दास दासियां भी होंगी ना। अभी तुम बच्चों को बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिल रहा है, इसलिए बाप की श्रीमत पर चलकर पूरा वर्सा लो। मौत तो सामने खड़ा है। अकाले मृत्यु तो होती है ना। एरोप्लेन गिरा तो सब मर गये। किसको पता था कि यह होगा। मौत सिर पर खड़ा है इसलिए कोशिश करके बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। श्रीमत पर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भल करो। साथ-साथ यह पढ़ाई भी पढ़ो। बाप युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। पुरूषार्थ कर पवित्र भी रहना है। झाड़ू लगाना, बर्तन मांजना अच्छा है - अपवित्र बनने से। परन्तु देही-अभिमानी बनना पड़े। पवित्रता का मान तो है ना। पवित्र नहीं बनेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे। यह सब बच्चों को समझानी दी जाती है। बच्चे तो वृद्धि को पाते रहेंगे। प्रजा भी बहुत बननी है। एक राजा को प्रजा तो हजारों की अन्दाज में चाहिए ना। राजा बनने में मेहनत है। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है। एक की ही याद में रहना है।
2) सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है। कुछ भी छिपाना नहीं है। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। अपवित्र कभी नहीं बनना है।
वरदान:महावीर बन हर समस्या का समाधान करने वाले सदा निर्भय और विजयी भव
जो महावीर हैं वह कभी यह बहाना नहीं बना सकते कि सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गई। समस्या का काम है आना और महावीर का काम है समस्या का समाधान करना न कि हार खाना। महावीर वह है जो सदा निर्भय होकर विजयी बनें, छोटी-मोटी बातों में कमजोर न हो। महावीर विजयी आत्मायें हर कदम में तन से, मन से खुश रहते हैं वे कभी उदास नहीं होते, उनके पास दु:ख की लहर स्वप्न में भी नहीं आ सकती।
स्लोगन:सर्व के प्रति सदा कल्याण की भावना रहे - यही ज्ञानी, योगी आत्मा के लक्षण हैं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 24-Oct 2017 )
Hinglish Summary
24.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe bachhe , iss napak ( patit) bharat ko pak ( pavan ) banana ki sewa par rehna hai, bighno ko mitana hai. Dilskist ni hona hai.
Q.1- Grihast vyvahar mei rehte kaunsi smruti mei rehna baut jaruri hai ?
Ans.1 – grihast vyavahar mei rahte yeh smruti rahe ki hum godly student hai. Student ko padai aur teacher sada yad rahta hai. Wah kabhi gaflat mei apna time weist ni karte, unhe samay ka bahut kadar rahta hai.
Q.2 – Manusya mei sabse bade te bada agyan kaun sa hai ?
Ans.2- Jiski Pooja karte hai use hi naam roop se nyara keh dete hai. Yeh sabse bade te bade agyan hai, mandir banakr pujte hai, toh bhala wah naam rup se nyara kese ho sakta hai? Tumhe sabko parmatma ka satya parichay dena hai.
Song – bachpan k din bhula na dena………..Om shanti
Dharna k lie mukhya sar
1- Alf aur be ko yad karne ki simple parai parni aur parani hai. Avyabichari yaad mai rahna hai. Iss jhutkhand ko buddhi se bhulna hai.
2- Khudai khidmadgar ban bharat ko napak se pak banana ki sewa karni jai. Baap ka poora poora madadgar banna hai.
Vardan – deh, deh k sambandh aur padartho ke bandhan se mukt rehnewale Jeevan mukt farista bhav.
Slogan – sthul sampatti se bhi adhik mulyavan hai- ruhani sneh ki sampatti.
Hindi Version in Details – 24/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " बापदादा " मधुबन-
“मीठे बच्चे - इस नापाक (पतित) भारत को पाक (पावन) बनाने की सेवा पर रहना है, विघ्नों को मिटाना है, दिलशिकस्त नहीं होना है”
प्रश्न: गृहस्थ व्यवहार में रहते कौन सी स्मृति में रहना बहुत जरूरी है?
उत्तर:
गृहस्थ व्यवहार में रहते यह स्मृति रहे कि हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। स्टूडेन्ट को पढ़ाई और टीचर सदा याद रहता है। वह कभी ग़फलत में अपना टाइम वेस्ट नहीं करते, उन्हें समय का बहुत कदर रहता है।
प्रश्न: मनुष्यों में सबसे बड़े ते बड़ा अज्ञान कौन सा है?
उत्तर:
जिसकी पूजा करते हैं उसे ही नाम रूप से न्यारा कह देते हैं - यह सबसे बड़े ते बड़ा अज्ञान है। पुकारते हैं, मन्दिर बनाकर पूजते हैं, तो भला वह नाम रूप से न्यारा कैसे हो सकता है। तुम्हें सबको परमात्मा का सत्य परिचय देना है।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना....... ओम् शान्ति।
यह बेहद के बाप ने बच्चों को शिक्षा दी अथवा सावधान किया जबकि राम के बने हो तो इस बचपन अथवा ईश्वरीय बचपन को भुला नहीं देना। ऐसे न हो कि राम के बचपन से हटकर रावण की तरफ चले जायें। फिर तो बहुत-बहुत पछताना पड़ेगा। यह भी समझाया है कि अगर महान ते महान मूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो जो पढ़ाई छोड़ देते हैं। तो तुम समझ सकते हो कि उनकी क्या गति होगी। यहाँ के महारथी हैं गज, उनको ग्राह रूपी माया खा लेती है। यह बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे माया बड़ी दुश्तर है। ऐसा न हो कहाँ बेहद के बाप का हाथ छोड़ दो। यह है परमपिता परे ते परे रहने वाला पिता, पतित-पावन। ऐसे बाप का हाथ कभी छोड़ना नहीं। नहीं तो बहुत रोना पड़ेगा। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे जिनको बाबा बड़े-बड़े टाइटिल देते, वह भी हाथ छोड़ देते हैं। बाबा कोई को जास्ती प्यार करते हैं कि कहाँ गिर न जाये। गीत भी गाया हुआ है। ऐसा न हो माया तुमको घसीट ले फिर बहुत पछताना पड़ेगा। वास्तव में सच्ची-सच्ची युद्ध तुम्हारी है, तुम माया पर जीत पाते हो।
अभी तुम नापाक से पाक बने हो। पतित स्थान को तुम पावन स्थान बनाते हो। पाक स्थान तो यहाँ है नहीं। इस समय सारी दुनिया नापाक स्थान है। पावन तो हैं देवी-देवतायें। तुम नापाक (पतित) भारत को पावन बना रहे हो। यह जो प्रदर्शनी आदि करते हो, नापाक को पाक बनाने। तुम भारत की सच्ची सेवा करते हो ना। हाँ विघ्नों को भी मिटाना होता है, इसमें हार्टफेल अथवा सुस्त नहीं होना है। कोई भी हालत में सर्विस जरूर करनी है, पतितों को पावन बनाने की। तुम्हारा धन्धा ही यह है और कोई बातों से तुम्हारा तैलुक नहीं। देखना है हमने कितनों को नापाक से पाक बनाया है। यह भारत स्वर्ग था, पावन दुनिया थी। इस समय नापाक और पाक का किसको भी ज्ञान नहीं है। पाक स्थान है ही नई दुनिया, फिर पुरानी होने से नापाक, पतित तमोप्रधान बन पड़ते हैं।
तो रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को सम्मुख समझाते हैं। अब तुम्हारी बुद्धि में है बरोबर हम पवित्र स्थान स्थापन कर रहे हैं। पवित्र स्थान भारत था, अब अपवित्र स्थान बना है। मकान नया है फिर पुराना जरूर बनेगा। यह समझ नई दुनिया में नहीं रहती। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है। भल लाखों वर्ष कहते हैं आखिर पुराना तो होगा ना। पुराना नाम ही कलियुग का है। नवयुग और पुराने युग को सिर्फ तुम जानते हो। अभी नव युग आ रहा है। हम फिर से यह नॉलेज बाप द्वारा ले रहे हैं, पवित्र बन स्वराज्य पाने के लिए। स्टूडेन्ट कभी पढ़ाई और टीचर को भूल सकते हैं क्या? तुम भी स्टूडेन्ट हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते यह याद रहे कि हम पढ़ रहे हैं। इस पढ़ाई में टाइम बहुत लगता है। बीच में कोई गिर पड़ता है, कोई हरा देता है। मुख से कहते, लिख भी देते हैं शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। बाप को बड़े प्रेम से पत्र लिखते हैं, हम जीव की आत्मा परमपिता परमात्मा को पत्र लिखती हैं। वह पुकार रहे हैं हे परमात्मा रक्षा करो, शान्ति दो। सिवाए बाप के कोई शान्ति दे न सके। बाबा को तो आना ही है। भक्तों का रक्षक भी गाया हुआ है। जीवनमुक्ति दो, शान्ति दो, मुक्त करो, हम जीते जी मुक्त हों। वह तो सतयुग में होते हैं। यहाँ तो जीवनबंध हैं। इन बातों को तुम अच्छी तरह समझते हो और स्वयं बाप समझा रहे हैं, और कोई की बुद्धि में ड्रामा का राज़ नहीं है। तीनों कालों, आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते हैं। तुम सब कुछ जानते हो परन्तु हो साधारण, गुप्त, वह बाहर में जाकर जिस्मानी ड्रिल करते हैं, सीखते हैं। तुम्हारी ड्रिल है रूहानी। कोई को पता ही नहीं है कि यह कोई वारियर्स हैं, लड़ाई करने वाले। महाभारत की लड़ाई दिखाते हैं, वह कैसे हुई? महाभारत की लड़ाई भगवान ने कराई है, ऐसे कहते हैं। अब भगवान हिंसक युद्ध कैसे करायेगा। भगवान ने युद्ध सिखलाई है, रावण पर जीत पाने की। समझाते हैं तुम 16 कला सम्पूर्ण थे। तुम मूलवतन से अशरीरी आये फिर यहाँ चोला धारण कर पहले सतयुग में राज्य किया। स्मृति में आता है ना? कहते हैं हाँ बाबा, अब हमको स्मृति आई है कि बरोबर हम दैवी राज्य के मालिक थे। फिर हराया। अब हम युद्ध के मैदान में खड़े हैं। माया पर जीत जरूर पायेंगे। काम चिता पर चढ़ने से मनुष्य का मुँह काला हो जाता है। काला अक्षर कड़ा है इसलिए सांवरा कहा जाता है। कृष्ण और नारायण को सांवरा रंग देते हैं, ऐसा कोई मनुष्य होता नहीं। मनुष्य तो गोरे सांवरे होते हैं। आइरन एजड को सांवरा कहेंगे। लौकिक बाप भी कहते हैं तुम काला मुँह करके कुल को कलंक लगाते हो। बेहद का बाप कहते हैं तुमने आसुरी मत पर चलकर दैवीकुल को कलंकित किया है, इसलिए तुम सांवरे बन गये हो। पूरा सांवरा बनने में आधाकल्प लगता है और गोरा बनने में सेकण्ड। बच्चों को ड्रामा के आदि मध्य अन्त की स्मृति आई है और धर्म वालों को स्मृति नहीं आ सकती। विस्मृति भी तुमको हुई, स्मृति भी तुमको आई। तुम दैवी राज्य स्थान के मालिक थे। यहाँ राजायें ढेर थे, इसलिए नाम रखा है राजस्थान। अभी यह पंचायती राज्य है। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो - महारानी महाराजा बनने का। ड्रामा प्लैन अनुसार ऐसे ही हुआ था। स्वर्ग चक्र लगाए नर्क बनता है। अब तुम नापाक से पाक स्थान में जाकर राज्य करने का पुरूषार्थ कर रहे हो। तुम्हारी पढ़ाई सिम्पुल है। अल्फ बे को याद करना है। बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। राजाई को याद करो तो राजाई मिलेगी। वह लोग कहते हैं कहो मैं भैंस हूँ, भैंस हूँ.. यह बात तो सत्य नहीं है। तुम आत्मा कहती हो हम विष्णु बनेंगे, कैसे बनेंगे? कहते हैं मुझे याद करो और विष्णु-पुरी राजधानी को भी याद करो। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण विष्णु का नाम लिया जाता है। वहाँ भी लक्ष्मी-नारायण के तख्त पिछाड़ी विष्णु का चित्र निशानी रहती है। चित्रों में भी ऐसे-ऐसे बनाते हैं। बाबा ने राज़ समझाया है - वहाँ की ऐसी रसम-रिवाज़ है फिर वह लक्ष्मी-नारायण चक्र लगाए ब्रह्मा सरस्वती वा जगत पिता, जगत अम्बा बनते हैं। ब्रह्मा को कहते हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। शिव को फादर कहेंगे। सभी आत्मायें ब्रदर्स हैं। ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर मनुष्य बनते हैं। तो अब देह-अभिमान निकाल आत्म-अभिमानी बनना है। आत्म-अभिमानी परमात्मा बाप बनाते हैं। यहाँ तुमको डबल लाइट है, नॉलेज है। आत्म-अभिमानी भी बनते हो फिर बाप को भी याद करते हो क्योंकि वर्सा लेना है। देवताओं ने पुरुषार्थ कर पास्ट जन्म में बाप से वर्सा लिया है। उनको याद करने की दरकार नहीं। तो बच्चों को नई-नई प्वाइंट्स बुद्धि में धारण करनी है। युक्तियाँ बहुत मिलती रहती हैं। पहले-पहले बुद्धि में यह बात बिठाओ कि ऊंचे ते ऊंचा कौन सा स्थान है? निर्वाणधाम। हम आत्मायें निर्वाणधाम के निवासी हैं। परमपिता परमात्मा है ऊंचे ते ऊंच। उनका ऊंच ते ऊंच स्थान है। ऊंचे ते ऊंचा नाम है। ऊंचे ते ऊंची उनकी महिमा है। वह आया भी भारत में है, तब तो यहाँ यादगार बना है ना। जिसका कोई नाम रूप ही नहीं तो वह चीज़ कहाँ से आयेगी जो उनको पूजेंगे। तो यह भी भूल है ना। परमात्मा को नामरूप से न्यारा कहना, यह तो अज्ञान हो गया। शिवरात्रि भी भारत में मनाते हैं। भारत ही प्राचीन सतयुग था, अब नहीं है। तो जरूर बाप ने ही सतयुग की स्थापना की होगी। फिर दु:ख कौन देता है? कब से शुरू होता है? यह कोई नहीं जानते। बाप बैठकर समझाते हैं। अब वह 21 पीढ़ी का फिर से तुमको बेहद का वर्सा देने आया हूँ। तुमने कल्प-कल्प यह पुरूषार्थ किया है। बेहद सुख का वर्सा, बेहद के बाप से लिया है, जबकि यह अन्तिम जन्म है तो क्यों न पवित्र बन भविष्य के लिए पूरा वर्सा लेना चाहिए। भक्त भगवान को याद करते हैं तो जरूर वर्सा पाने के लिए। भगवान है ही पतित-पावन, सद्गति दाता। नर से नारायण बनाने वाला और कोई तो बना न सके। सतयुग में फट से लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता है तो जरूर कहेंगे पिछले जन्म में पुरुषार्थ किया है इसलिए बाप अब तुमको पुरुषार्थ करा रहे हैं, भविष्य में ऐसा पद पाने लिए। पतित दुनिया की अन्त में ही आकरके पावन बनायेंगे ना। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। फिर कलायें कमती होती जाती हैं। अब है विशश वर्ल्ड।
बाप कहते हैं इन 5 विकारों का दान दो और पवित्र बनो। याद भी करो और पवित्र भी बनो। बी होली, बी राजयोगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते एक शिव बाबा को याद करो और कब किसको याद किया तो व्यभिचारी बनें। भक्ति मार्ग में गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कब किसी को, कब किसी को याद करते हैं। तो वह व्यभिचारी याद हो जाती है और फिर वह पवित्र भी नहीं रहते हैं तो बाप कहते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में याद मुझ एक बाप को करो। यह अन्तिम जन्म मेरे नाम पर कमल फूल समान पवित्र बन सिर्फ मुझे याद करते रहो। यह एक जन्म मेरे मददगार बनो, जो मदद करेंगे वही फल पायेंगे। तुम हो गये ईश्वरीय खुदाई खिदमतगार। बाप भारत की खुद खिदमत करते हैं ना। बाप कहते हैं बच्चे तुमको लायक बनना है। गुण भी जरूर चाहिए। यहाँ गुणवान बनना है। फिर 21 जन्मों के लिए देवता बन राज्य करेंगे। बाबा ने समझाया है कृष्ण का चित्र बड़ा अच्छा है। नर्क को लात मारते हैं, स्वर्ग हाथ में है। भारत में ही यह कायदा है। कोई मरता है तो मुँह शहर की तरफ, पैर शमशान तरफ करते हैं। फिर जब शमशान के नजदीक आते हैं तो मुँह फिराकर शमशान तरफ करते हैं। अभी तो तुम जीते जी जाने के लिए तैयार हो तो तुम्हारा मुँह नई दुनिया तऱफ होना चाहिए। सुखधाम जाना है वाया शान्तिधाम। यह है बेहद की बात। पुरानी दुनिया को लात मार रहे हो, नई दुनिया में जा रहे हो इसलिए दु:खधाम को भूलना पड़ता है। सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है। दु:खधाम में भल तुम रहे पड़े हो, परन्तु याद उनको करो। अव्यभिचारी योग चाहिए, एक बाप दूसरा न कोई। समझानी तो बहुत सहज अच्छी मिलती है। अर्जुन बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ था, तो उनको कहा यह सब भूल जाओ और पढ़ाने वालों को भी भूल जाओ। बाप भी ऐसे कहते हैं। अभी जो कुछ सुना है सब भूलो। हम तुमको सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं। सचखण्ड का मालिक बनाते हैं। वह तुमको झूठखण्ड का मालिक बनाते हैं। बाप कहते हैं अब जज करो कि हम राइट हैं या वह तुम्हारे चाचे, मामे वा शास्त्रवादी राइट हैं? वह लड़ाई है हद की, तुम्हारी है बेहद की। जिससे तुम बेहद की राजाई लेते हो। बाप कहते हैं यह विकार अब दान में दे दो। अभी पुरुषार्थ नहीं करेंगे तो बहुत-बहुत पछतायेंगे इसलिए ग़फलत छोड़ो, सर्विस में लग जाओ, कल्याणकारी बनो। इस कलियुग में महान दु:ख है। अब तो अजुन बहुत दु:ख के पहाड़ गिरने वाले हैं फिर सतयुग में सोने के पहाड़ खड़े हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अल्फ और बे को याद करने की सिम्पल पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। अव्यभिचारी याद में रहना है। इस झूठखण्ड को बुद्धि से भूल जाना है।
2) खुदाई खिदमतगार बन भारत को नापाक से पाक बनाने की सेवा करनी है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
वरदान: देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त फरिश्ता भव!
फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं। देह से आत्मा का रिश्ता तो है लेकिन लगाव का संबंध नहीं। कर्मेन्द्रियों से कर्म के सबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना। फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त। न देह का बन्धन, न देह के संबंध का बन्धन, न देह के पदार्थो का बन्धन - ऐसे बन्धन मुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त फरिश्ता हैं।
स्लोगन: स्थूल सम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवान है - रूहानी स्नेह की सम्पत्ति।
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24.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe bachhe , iss napak ( patit) bharat ko pak ( pavan ) banana ki sewa par rehna hai, bighno ko mitana hai. Dilskist ni hona hai.
Q.1- Grihast vyvahar mei rehte kaunsi smruti mei rehna baut jaruri hai ?
Ans.1 – grihast vyavahar mei rahte yeh smruti rahe ki hum godly student hai. Student ko padai aur teacher sada yad rahta hai. Wah kabhi gaflat mei apna time weist ni karte, unhe samay ka bahut kadar rahta hai.
Q.2 – Manusya mei sabse bade te bada agyan kaun sa hai ?
Ans.2- Jiski Pooja karte hai use hi naam roop se nyara keh dete hai. Yeh sabse bade te bade agyan hai, mandir banakr pujte hai, toh bhala wah naam rup se nyara kese ho sakta hai? Tumhe sabko parmatma ka satya parichay dena hai.
Song – bachpan k din bhula na dena………..Om shanti
Dharna k lie mukhya sar
1- Alf aur be ko yad karne ki simple parai parni aur parani hai. Avyabichari yaad mai rahna hai. Iss jhutkhand ko buddhi se bhulna hai.
2- Khudai khidmadgar ban bharat ko napak se pak banana ki sewa karni jai. Baap ka poora poora madadgar banna hai.
Vardan – deh, deh k sambandh aur padartho ke bandhan se mukt rehnewale Jeevan mukt farista bhav.
Slogan – sthul sampatti se bhi adhik mulyavan hai- ruhani sneh ki sampatti.
Hindi Version in Details – 24/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " बापदादा " मधुबन-
“मीठे बच्चे - इस नापाक (पतित) भारत को पाक (पावन) बनाने की सेवा पर रहना है, विघ्नों को मिटाना है, दिलशिकस्त नहीं होना है”
प्रश्न: गृहस्थ व्यवहार में रहते कौन सी स्मृति में रहना बहुत जरूरी है?
उत्तर:
गृहस्थ व्यवहार में रहते यह स्मृति रहे कि हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। स्टूडेन्ट को पढ़ाई और टीचर सदा याद रहता है। वह कभी ग़फलत में अपना टाइम वेस्ट नहीं करते, उन्हें समय का बहुत कदर रहता है।
प्रश्न: मनुष्यों में सबसे बड़े ते बड़ा अज्ञान कौन सा है?
उत्तर:
जिसकी पूजा करते हैं उसे ही नाम रूप से न्यारा कह देते हैं - यह सबसे बड़े ते बड़ा अज्ञान है। पुकारते हैं, मन्दिर बनाकर पूजते हैं, तो भला वह नाम रूप से न्यारा कैसे हो सकता है। तुम्हें सबको परमात्मा का सत्य परिचय देना है।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना....... ओम् शान्ति।
यह बेहद के बाप ने बच्चों को शिक्षा दी अथवा सावधान किया जबकि राम के बने हो तो इस बचपन अथवा ईश्वरीय बचपन को भुला नहीं देना। ऐसे न हो कि राम के बचपन से हटकर रावण की तरफ चले जायें। फिर तो बहुत-बहुत पछताना पड़ेगा। यह भी समझाया है कि अगर महान ते महान मूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो जो पढ़ाई छोड़ देते हैं। तो तुम समझ सकते हो कि उनकी क्या गति होगी। यहाँ के महारथी हैं गज, उनको ग्राह रूपी माया खा लेती है। यह बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे माया बड़ी दुश्तर है। ऐसा न हो कहाँ बेहद के बाप का हाथ छोड़ दो। यह है परमपिता परे ते परे रहने वाला पिता, पतित-पावन। ऐसे बाप का हाथ कभी छोड़ना नहीं। नहीं तो बहुत रोना पड़ेगा। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे जिनको बाबा बड़े-बड़े टाइटिल देते, वह भी हाथ छोड़ देते हैं। बाबा कोई को जास्ती प्यार करते हैं कि कहाँ गिर न जाये। गीत भी गाया हुआ है। ऐसा न हो माया तुमको घसीट ले फिर बहुत पछताना पड़ेगा। वास्तव में सच्ची-सच्ची युद्ध तुम्हारी है, तुम माया पर जीत पाते हो।
अभी तुम नापाक से पाक बने हो। पतित स्थान को तुम पावन स्थान बनाते हो। पाक स्थान तो यहाँ है नहीं। इस समय सारी दुनिया नापाक स्थान है। पावन तो हैं देवी-देवतायें। तुम नापाक (पतित) भारत को पावन बना रहे हो। यह जो प्रदर्शनी आदि करते हो, नापाक को पाक बनाने। तुम भारत की सच्ची सेवा करते हो ना। हाँ विघ्नों को भी मिटाना होता है, इसमें हार्टफेल अथवा सुस्त नहीं होना है। कोई भी हालत में सर्विस जरूर करनी है, पतितों को पावन बनाने की। तुम्हारा धन्धा ही यह है और कोई बातों से तुम्हारा तैलुक नहीं। देखना है हमने कितनों को नापाक से पाक बनाया है। यह भारत स्वर्ग था, पावन दुनिया थी। इस समय नापाक और पाक का किसको भी ज्ञान नहीं है। पाक स्थान है ही नई दुनिया, फिर पुरानी होने से नापाक, पतित तमोप्रधान बन पड़ते हैं।
तो रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को सम्मुख समझाते हैं। अब तुम्हारी बुद्धि में है बरोबर हम पवित्र स्थान स्थापन कर रहे हैं। पवित्र स्थान भारत था, अब अपवित्र स्थान बना है। मकान नया है फिर पुराना जरूर बनेगा। यह समझ नई दुनिया में नहीं रहती। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है। भल लाखों वर्ष कहते हैं आखिर पुराना तो होगा ना। पुराना नाम ही कलियुग का है। नवयुग और पुराने युग को सिर्फ तुम जानते हो। अभी नव युग आ रहा है। हम फिर से यह नॉलेज बाप द्वारा ले रहे हैं, पवित्र बन स्वराज्य पाने के लिए। स्टूडेन्ट कभी पढ़ाई और टीचर को भूल सकते हैं क्या? तुम भी स्टूडेन्ट हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते यह याद रहे कि हम पढ़ रहे हैं। इस पढ़ाई में टाइम बहुत लगता है। बीच में कोई गिर पड़ता है, कोई हरा देता है। मुख से कहते, लिख भी देते हैं शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। बाप को बड़े प्रेम से पत्र लिखते हैं, हम जीव की आत्मा परमपिता परमात्मा को पत्र लिखती हैं। वह पुकार रहे हैं हे परमात्मा रक्षा करो, शान्ति दो। सिवाए बाप के कोई शान्ति दे न सके। बाबा को तो आना ही है। भक्तों का रक्षक भी गाया हुआ है। जीवनमुक्ति दो, शान्ति दो, मुक्त करो, हम जीते जी मुक्त हों। वह तो सतयुग में होते हैं। यहाँ तो जीवनबंध हैं। इन बातों को तुम अच्छी तरह समझते हो और स्वयं बाप समझा रहे हैं, और कोई की बुद्धि में ड्रामा का राज़ नहीं है। तीनों कालों, आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते हैं। तुम सब कुछ जानते हो परन्तु हो साधारण, गुप्त, वह बाहर में जाकर जिस्मानी ड्रिल करते हैं, सीखते हैं। तुम्हारी ड्रिल है रूहानी। कोई को पता ही नहीं है कि यह कोई वारियर्स हैं, लड़ाई करने वाले। महाभारत की लड़ाई दिखाते हैं, वह कैसे हुई? महाभारत की लड़ाई भगवान ने कराई है, ऐसे कहते हैं। अब भगवान हिंसक युद्ध कैसे करायेगा। भगवान ने युद्ध सिखलाई है, रावण पर जीत पाने की। समझाते हैं तुम 16 कला सम्पूर्ण थे। तुम मूलवतन से अशरीरी आये फिर यहाँ चोला धारण कर पहले सतयुग में राज्य किया। स्मृति में आता है ना? कहते हैं हाँ बाबा, अब हमको स्मृति आई है कि बरोबर हम दैवी राज्य के मालिक थे। फिर हराया। अब हम युद्ध के मैदान में खड़े हैं। माया पर जीत जरूर पायेंगे। काम चिता पर चढ़ने से मनुष्य का मुँह काला हो जाता है। काला अक्षर कड़ा है इसलिए सांवरा कहा जाता है। कृष्ण और नारायण को सांवरा रंग देते हैं, ऐसा कोई मनुष्य होता नहीं। मनुष्य तो गोरे सांवरे होते हैं। आइरन एजड को सांवरा कहेंगे। लौकिक बाप भी कहते हैं तुम काला मुँह करके कुल को कलंक लगाते हो। बेहद का बाप कहते हैं तुमने आसुरी मत पर चलकर दैवीकुल को कलंकित किया है, इसलिए तुम सांवरे बन गये हो। पूरा सांवरा बनने में आधाकल्प लगता है और गोरा बनने में सेकण्ड। बच्चों को ड्रामा के आदि मध्य अन्त की स्मृति आई है और धर्म वालों को स्मृति नहीं आ सकती। विस्मृति भी तुमको हुई, स्मृति भी तुमको आई। तुम दैवी राज्य स्थान के मालिक थे। यहाँ राजायें ढेर थे, इसलिए नाम रखा है राजस्थान। अभी यह पंचायती राज्य है। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो - महारानी महाराजा बनने का। ड्रामा प्लैन अनुसार ऐसे ही हुआ था। स्वर्ग चक्र लगाए नर्क बनता है। अब तुम नापाक से पाक स्थान में जाकर राज्य करने का पुरूषार्थ कर रहे हो। तुम्हारी पढ़ाई सिम्पुल है। अल्फ बे को याद करना है। बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। राजाई को याद करो तो राजाई मिलेगी। वह लोग कहते हैं कहो मैं भैंस हूँ, भैंस हूँ.. यह बात तो सत्य नहीं है। तुम आत्मा कहती हो हम विष्णु बनेंगे, कैसे बनेंगे? कहते हैं मुझे याद करो और विष्णु-पुरी राजधानी को भी याद करो। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण विष्णु का नाम लिया जाता है। वहाँ भी लक्ष्मी-नारायण के तख्त पिछाड़ी विष्णु का चित्र निशानी रहती है। चित्रों में भी ऐसे-ऐसे बनाते हैं। बाबा ने राज़ समझाया है - वहाँ की ऐसी रसम-रिवाज़ है फिर वह लक्ष्मी-नारायण चक्र लगाए ब्रह्मा सरस्वती वा जगत पिता, जगत अम्बा बनते हैं। ब्रह्मा को कहते हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। शिव को फादर कहेंगे। सभी आत्मायें ब्रदर्स हैं। ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर मनुष्य बनते हैं। तो अब देह-अभिमान निकाल आत्म-अभिमानी बनना है। आत्म-अभिमानी परमात्मा बाप बनाते हैं। यहाँ तुमको डबल लाइट है, नॉलेज है। आत्म-अभिमानी भी बनते हो फिर बाप को भी याद करते हो क्योंकि वर्सा लेना है। देवताओं ने पुरुषार्थ कर पास्ट जन्म में बाप से वर्सा लिया है। उनको याद करने की दरकार नहीं। तो बच्चों को नई-नई प्वाइंट्स बुद्धि में धारण करनी है। युक्तियाँ बहुत मिलती रहती हैं। पहले-पहले बुद्धि में यह बात बिठाओ कि ऊंचे ते ऊंचा कौन सा स्थान है? निर्वाणधाम। हम आत्मायें निर्वाणधाम के निवासी हैं। परमपिता परमात्मा है ऊंचे ते ऊंच। उनका ऊंच ते ऊंच स्थान है। ऊंचे ते ऊंचा नाम है। ऊंचे ते ऊंची उनकी महिमा है। वह आया भी भारत में है, तब तो यहाँ यादगार बना है ना। जिसका कोई नाम रूप ही नहीं तो वह चीज़ कहाँ से आयेगी जो उनको पूजेंगे। तो यह भी भूल है ना। परमात्मा को नामरूप से न्यारा कहना, यह तो अज्ञान हो गया। शिवरात्रि भी भारत में मनाते हैं। भारत ही प्राचीन सतयुग था, अब नहीं है। तो जरूर बाप ने ही सतयुग की स्थापना की होगी। फिर दु:ख कौन देता है? कब से शुरू होता है? यह कोई नहीं जानते। बाप बैठकर समझाते हैं। अब वह 21 पीढ़ी का फिर से तुमको बेहद का वर्सा देने आया हूँ। तुमने कल्प-कल्प यह पुरूषार्थ किया है। बेहद सुख का वर्सा, बेहद के बाप से लिया है, जबकि यह अन्तिम जन्म है तो क्यों न पवित्र बन भविष्य के लिए पूरा वर्सा लेना चाहिए। भक्त भगवान को याद करते हैं तो जरूर वर्सा पाने के लिए। भगवान है ही पतित-पावन, सद्गति दाता। नर से नारायण बनाने वाला और कोई तो बना न सके। सतयुग में फट से लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता है तो जरूर कहेंगे पिछले जन्म में पुरुषार्थ किया है इसलिए बाप अब तुमको पुरुषार्थ करा रहे हैं, भविष्य में ऐसा पद पाने लिए। पतित दुनिया की अन्त में ही आकरके पावन बनायेंगे ना। वह है वाइसलेस वर्ल्ड। फिर कलायें कमती होती जाती हैं। अब है विशश वर्ल्ड।
बाप कहते हैं इन 5 विकारों का दान दो और पवित्र बनो। याद भी करो और पवित्र भी बनो। बी होली, बी राजयोगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते एक शिव बाबा को याद करो और कब किसको याद किया तो व्यभिचारी बनें। भक्ति मार्ग में गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कब किसी को, कब किसी को याद करते हैं। तो वह व्यभिचारी याद हो जाती है और फिर वह पवित्र भी नहीं रहते हैं तो बाप कहते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में याद मुझ एक बाप को करो। यह अन्तिम जन्म मेरे नाम पर कमल फूल समान पवित्र बन सिर्फ मुझे याद करते रहो। यह एक जन्म मेरे मददगार बनो, जो मदद करेंगे वही फल पायेंगे। तुम हो गये ईश्वरीय खुदाई खिदमतगार। बाप भारत की खुद खिदमत करते हैं ना। बाप कहते हैं बच्चे तुमको लायक बनना है। गुण भी जरूर चाहिए। यहाँ गुणवान बनना है। फिर 21 जन्मों के लिए देवता बन राज्य करेंगे। बाबा ने समझाया है कृष्ण का चित्र बड़ा अच्छा है। नर्क को लात मारते हैं, स्वर्ग हाथ में है। भारत में ही यह कायदा है। कोई मरता है तो मुँह शहर की तरफ, पैर शमशान तरफ करते हैं। फिर जब शमशान के नजदीक आते हैं तो मुँह फिराकर शमशान तरफ करते हैं। अभी तो तुम जीते जी जाने के लिए तैयार हो तो तुम्हारा मुँह नई दुनिया तऱफ होना चाहिए। सुखधाम जाना है वाया शान्तिधाम। यह है बेहद की बात। पुरानी दुनिया को लात मार रहे हो, नई दुनिया में जा रहे हो इसलिए दु:खधाम को भूलना पड़ता है। सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है। दु:खधाम में भल तुम रहे पड़े हो, परन्तु याद उनको करो। अव्यभिचारी योग चाहिए, एक बाप दूसरा न कोई। समझानी तो बहुत सहज अच्छी मिलती है। अर्जुन बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ था, तो उनको कहा यह सब भूल जाओ और पढ़ाने वालों को भी भूल जाओ। बाप भी ऐसे कहते हैं। अभी जो कुछ सुना है सब भूलो। हम तुमको सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं। सचखण्ड का मालिक बनाते हैं। वह तुमको झूठखण्ड का मालिक बनाते हैं। बाप कहते हैं अब जज करो कि हम राइट हैं या वह तुम्हारे चाचे, मामे वा शास्त्रवादी राइट हैं? वह लड़ाई है हद की, तुम्हारी है बेहद की। जिससे तुम बेहद की राजाई लेते हो। बाप कहते हैं यह विकार अब दान में दे दो। अभी पुरुषार्थ नहीं करेंगे तो बहुत-बहुत पछतायेंगे इसलिए ग़फलत छोड़ो, सर्विस में लग जाओ, कल्याणकारी बनो। इस कलियुग में महान दु:ख है। अब तो अजुन बहुत दु:ख के पहाड़ गिरने वाले हैं फिर सतयुग में सोने के पहाड़ खड़े हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अल्फ और बे को याद करने की सिम्पल पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। अव्यभिचारी याद में रहना है। इस झूठखण्ड को बुद्धि से भूल जाना है।
2) खुदाई खिदमतगार बन भारत को नापाक से पाक बनाने की सेवा करनी है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
वरदान: देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त फरिश्ता भव!
फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं। देह से आत्मा का रिश्ता तो है लेकिन लगाव का संबंध नहीं। कर्मेन्द्रियों से कर्म के सबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना। फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त। न देह का बन्धन, न देह के संबंध का बन्धन, न देह के पदार्थो का बन्धन - ऐसे बन्धन मुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त फरिश्ता हैं।
स्लोगन: स्थूल सम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवान है - रूहानी स्नेह की सम्पत्ति।
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Details ( Page:- Murali 25-Oct 2017 )
Hinglish Summary
25.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe Bachhe tumhe ruhani kamai mei bahut bahut dhyan dena hai, shir par bikarmo ka bojha bahut hai, isilie samay west ni karna hai.
Question – Jin bachho ka dhyan ruhani kamai mei hoga, unki nisani kya hogi ?
Ans – wah kabhi bhi jharmui jhagmui mei apna samay barbaad ni karenge. Sarir nirbah karte hue bhi ruhani kamai mei samay lagayenge. Subah uthkar bahut bahut pyar se baap ko yaad karenge. Yaad se atma udti rahegi. 2- wah baap saman rahamdil ban apne upar aur sarb k upar raham karenge. Sabko baap ka parichay denge.
Dharna k lie mukhya sar
.1- Swadarshan chakradhari banna hai.hum brahman choti hai, iswariya sampradaya ke hai, iss nashe m rahna hai ?
.2- Apna samay baap ki yaad mei safal karna hai. Ruhani service mei busy rahna hai. Baap par poora poora balihar jana hai.
Vardan – Akaltakhat sho diltakhatnasin ban swarajya ke nashi mei rahnewale prakrutijit , mayajit bhav.
Slogan – sankalpon ki siddhi prapt karni hai toh atam Shakti ki udan bharte raho.
Hindi Version in Details – 25/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " बापदादा " मधुबन-
“मीठे बच्चे - तुम्हें रूहानी कमाई में बहुत-बहुत ध्यान देना है, सिर पर विकर्मो का बोझा बहुत है, इसलिए समय वेस्ट नहीं करना है”
प्रश्न: जिन बच्चों का ध्यान रूहानी कमाई में होगा, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह कभी भी झरमुई झगमुई में अपना समय बरबाद नहीं करेंगे। शरीर निर्वाह करते हुए भी रूहानी कमाई में समय लगायेंगे। सुबह उठकर बहुत-बहुत प्यार से बाप को याद करेंगे। याद से आत्मा उड़ती रहेगी। 2. वह बाप समान रहमदिल बन अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहम करेंगे। सबको बाप का परिचय देंगे।
गीत:- तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो......... ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत में मात-पिता की महिमा सुनी, जैसे कोई घर में बच्चे रहते हैं तो मात-पिता, दादा होता है ना। दादे से वर्सा मिलता है - बाप द्वारा, क्योंकि दादे की मिलकियत बड़ों की मिलकियत होती है। तो यह भी सबसे बड़ा है। दुनिया वालों को तो पता ही नहीं। बच्चों को पता है। तुम्हीं हो माता पिता ... तो यह दादे के लिए शब्द हैं। तो उनका परिचय देना पड़े। चाहे सम्मुख हो, चाहे चित्रों द्वारा, चाहे प्रोजेक्टर द्वारा तो दादे का परिचय देना बहुत जरूरी है। जिस्मानी दादा साकार होता है। अब तुम्हारी बुद्धि में पहले कौन आया? दादा। भल प्रोजेक्टर द्वारा समझाओ, वह भी नम्बरवार चित्र दिखाना है। पहले-पहले परमपिता परमात्मा की समझानी देनी है। तो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? और फिर प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? तो पहले-पहले शिव का चित्र दिखाना चाहिए फिर है लिखत, जो प्रदर्शनी पर समझाते हैं वा मैगजीन भी बनाते हैं तो पहले-पहले परिचय देना है। गीता में लिखा हुआ है भगवानुवाच। तो पहले भगवान का परिचय देना चाहिए। तुम सबकी बुद्धि चली गई है ऊपर। सबसे ऊंचा है परमपिता परमात्मा निराकार शिवबाबा। फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यहाँ आओ तो जैसे घर में मात-पिता और दादा बैठे होते हैं। वह है हद का, यह है बेहद का। चित्र सहित सारी लिखते होनी चाहिए। फ़र्क भी बताना चाहिए कि अनेक मनुष्य हठयोग सिखाते आये हैं और एक परमात्मा राजयोग सिखाते हैं, जिससे मुक्ति जीवनमुक्ति मिल रही है। यहाँ है ही एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव भगवानुवाच की बात। जैसे लौकिक माँ-बाप, दादा बच्चों की बुद्धि में याद पड़ते हैं। हूबहू तुम्हारी बुद्धि में भी ऐसे है। यह सिर्फ पारलौकिक है, वह है लौकिक। तुमको निश्चय है कि यह है शिवबाबा। हमारा बाप है तो उनको याद करना चाहिए, परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। टाइम बहुत वेस्ट करते हैं। वेस्ट टाइम नहीं करना चाहिए क्योंकि विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। आत्मा में खाद पड़ गई है। तो लिखना चाहिए परमात्मा कौन है? परमात्मा के चित्र और कृष्ण के चित्र पर घड़ी-घड़ी समझाना चाहिए। स्वर्ग और नर्क के गोले बड़े अच्छे मशहूर हैं। नर्क के गोले पर लिख देना चाहिए कि यह है रावण राज्य, भ्रष्टाचारी दुनिया और स्वर्ग के गोले पर लिखो कि यह है श्रेष्ठाचारी दुनिया, तो टाइम लिखना चाहिए स्वर्ग इतना समय, नर्क इतना समय। देखो चढ़ती कला, उतरती कला का भी चित्र है क्योंकि उतरती कला में 5 हजार वर्ष और चढ़ती कला एक सेकेण्ड में, तो यह जम्प हो गया। यह मुख्य बात समझाने की है, फिर है विराट रूप, जिसमें ब्राह्मण चोटी ईश्वरीय सम्प्रदाय हैं। ब्रह्मा मुख द्वारा रचा हुआ तुम्हारा ब्राह्मण कुल मशहूर है, सर्वोत्तम है। तो सबको समझाने के लिए यह चित्र बहुत जरूरी हैं। वैरायटी धर्मों का झाड़ है, वह भी अच्छा है। बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। तो चक्र का भी ज्ञान देना है कि चक्र कैसे फिरता है। ब्रह्मा-सरस्वती का हीरो हीरोइन का पार्ट कैसे है। तो गोले का भी चित्र बड़ा होना चाहिए। बहुत में बहुत एक डेढ़ घण्टा प्रोजेक्टर दिखाना चाहिए क्योंकि मनुष्य इन बातों में थक जाते हैं। स्टोरी तो कोई नहीं - यह तो ज्ञान की बात है। पहले जब लिखे तब अन्दर में आ सके। तो दिखाने के लिए टिकट रखना चाहिए। पैसे वाली टिकेट नहीं, परन्तु एन्ट्रीपास हो, बड़े-बड़े आदमियों को तो निमंत्रण दे बुलाना चाहिए क्योंकि बड़ों-बड़ों से ओपीनियन लिखाना है। झुण्ड के झुण्ड में कैसे लिखायेंगे और कैसे दिखायेंगे क्योंकि समझाना भी है इसलिए पहले-पहले बड़े आदमियों को बुलाकर लिखाना है फिर जनरल कर देना चाहिए। प्रदर्शनी में भी ऐसे तो प्रोजेक्टर में भी ऐसे, मैगजीन में भी इन अच्छे-अच्छे चित्रों को बनाकर साथ-साथ समझानी लिखो फिर किसको प्रेजेन्ट दे देना चाहिए। हठयोग और राजयोग का कान्ट्रास्ट भी अच्छी तरह लिखना चाहिए। हठयोग भी एक प्रकार की हिंसा है क्योंकि शरीर को कष्ट देते हैं, तकलीफ देते हैं। तुम्हारा यह है अहिंसक योग जो अति सहज है। चलते-फिरते बाप को याद करते रहो। हिंसक और अहिंसक को भी सिद्ध करना है। कई तो शरीर की तन्दरूस्ती के लिए क्रिया करते हैं। वह कोई फिर परमात्मा से नहीं मिलते, हठयोग को भी योग कह देते हैं। योगाश्रम है ना। यह है फिर सहज राजयोग। ईश्वर का सिखाया हुआ योग। तो यह बहुत अच्छी तरह से समझाना चाहिए। जिनका बुद्धियोग सारा दिन झरमुई, झगमुई में होगा वह क्या समझा सकेंगे। जिनकी बुद्धि में होगा कि सर्विस करनी है, वह करेंगे। 8 घण्टा धन्धा किया फिर यह कमाई करनी चाहिए। वह है जिस्मानी कमाई, यह है रूहानी कमाई। तो इस कमाई में बहुत ध्यान देना चाहिए। योग में बहुत प्रैक्टिस करनी चाहिए। सुबह उठ बाप को बड़े प्यार से याद करना चाहिए। जिनको बाप एक दो नम्बर में रखते, वह भी याद नहीं करते हैं। भाषण तो बहुत अच्छा कर लेते हैं परन्तु याद में नहीं रहते। आत्मा तो याद से ही उड़ेगी, ज्ञान से थोड़ेही उड़ेगी। ध्यान में भी याद से ही जाते हैं। ज्ञान की तो इसमें कोई बात ही नहीं। ध्यान तो एक पाई पैसे की बात हो जाती है। कईयों को तो फट से कृष्ण का साक्षात्कार हो जाता है। कई बच्चियां लिखती हैं कि बाबा हमने आपको पहचाना है। वह ध्यान में ब्रह्मा को भी देखती हैं और प्रेरणा भी मिलती है। तो फिर उनको निश्चय हो जाता है। जिसने बाबा को कभी देखा भी नहीं है वह भी लिखती हैं हम बाबा को बहुत याद करते हैं। हम आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। आप तो जानते हैं हम याद करते हैं। जब कहती हैं आप... तो शिवबाबा ही याद आता है। तो बांधेली बच्चियां बहुत याद करती हैं, उतना सामने वाले भी याद नहीं करते। एक बात है याद की। फिर गांधी जी कहते थे कि रामराज्य हो। अभी तो रावणराज्य है। इस पर तुम समझा सकते हो। चढ़ती कला तो परमात्मा ही करा सकते हैं। बाकी तो सब एक दो को गिराते ही रहते हैं। देवतायें भी गिरते जाते हैं। भल सुख में ही हैं परन्तु कला तो कम होती जाती है ना। जूँ की तरह गिरते जाते हैं क्योंकि ड्रामा भी जूँ के मिसल चलता ही रहता है। तो चढ़ती कला एक के ही द्वारा होती है। समझाने के लिए प्रोजेक्टर बहुत अच्छा है। सेन्टर भी बहुत बढ़ते जायेंगे। बाबा कहते हैं कि हर एक भाषा में स्लाईड्स बनाते जाओ। परन्तु काम करने वाला ऐसा कोई है नहीं। बाबा युक्ति तो बता देते हैं। परन्तु काम करने वाला चाहिए तो सर्विस बहुत बढ़ सकती है।
बच्चों को अपने भाई-बहिनों पर बहुत रहम करना चाहिए। बाबा रहमदिल है ना। मेरा आना भी भारत में ही होता है, और जगह आना मेरा नहीं होता। शिवजयन्ती भी भारत में मनाई जाती है। परन्तु जानते नहीं हैं, समझो क्राइस्ट की जयन्ती मनाते हैं तो उनके कर्तव्य को जानते हैं। परन्तु शिव का कर्तव्य नहीं जानते। वही पतित-पावन है। भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ है। गीता में कृष्ण का नाम डालने से इतने बड़े तीर्थ भारत की महिमा गुम हो गई है। देखो, मुहम्मद गजनवी ने मन्दिर लूटा था, अगर उनको यह मालूम होता कि यह हमारे बाबा का मन्दिर है तो लूटते थोड़ेही। अल्लाह के मन्दिर को कौन लूटेगा, जिसने स्वर्ग की स्थापना की। अगर शिवबाबा को जाने तो कभी मन्दिर को हाथ न लगायें। भल वह शिव को माथा टेकते हैं परन्तु जान गये तो कभी न लूटें। सिर्फ गीता में कृष्ण का नाम डालने से यह सब कुछ हुआ है। गीता खण्डन होने से देखो क्या हाल हुआ है। अगर शिव का नाम होता कि वही गति सद्गति दाता है। यह एक की ही महिमा है। अगर वह न आता तो पावन कैसे बनते? भारत को कैसे स्वर्ग बना सकते। यह गुप्त बात है ना। जानते हैं हम दुर्गति में थे। अब यहाँ बैठे हैं परन्तु जा रहे हैं। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम अपने लिए राजाई स्थापन कर रहे हैं, तो औरों को भी रास्ता दिखाकर प्रजा बनानी चाहिए। बड़ी मेहनत करनी चाहिए। है तो बहुत सहज। सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। स्वर्ग को याद करो, यह तो नर्क है। हम सो का अर्थ भी बाबा ने समझाया है, हम सो देवता, हम सो क्षत्रिय...... और कोई तो इन सब बातों को समझते नहीं। तो विराट रूप में यह समझाना है कि हम सो देवता.... बनते हैं। अभी हम स्वर्ग में गये कि गये। बहुत लोग पूछते हैं कितनी देरी है? बाबा कहते हैं तुम अब तैयार कहाँ हुए हो जो स्वर्ग में जा सको। ड्रामा तो बना हुआ है। जितनी-जितनी स्थापना होती जा रही है तो विनाश ज्वाला भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। धर्मों में झगड़ा शुरू होता जा रहा है। पहले पार्टीशन थोड़ेही था। तुम जानते हो पहले एक देवता धर्म था। गीत है ना - आप मिले तो हम स्वर्ग का राज्य, योग बल से ले रहे हैं। बाहूबल से कोई ले नहीं सकता। उनके पास बाहुबल है। रशिया, अमेरिका आपस में मिल जाएं तो सारा राज्य ले सकते हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं है। जब देवताओं का राज्य है तो वहाँ क्रिश्चयिन, बौद्धी नहीं होते। अब देवता धर्म की स्थापना हो रही है। भारत अविनाशी खण्ड है। बाप भी यहाँ आये हैं ना। ड्रामा में ऐसे ही है कि योगबल से राजाई मिलती है। भारत का प्राचीन योग मशहूर है, परन्तु योग सिखाया किसने और कैसे, वह नहीं जानते। कृष्ण ने तो योग नहीं सिखाया। परमपिता परमात्मा ही योग सिखला रहे हैं। यह कितनी अटपटी बात है जो बुद्धि से खिसक जाती है। कई तो जानते भी छोड़ देते हैं। तब बाप कहते हैं समझदार देखना हो तो यहाँ देखो... समझदार वर्सा लेते हैं। बेसमझ छोड़ देते हैं। स्वर्ग का वर्सा गँवा देते हैं। महान मूर्ख, महान सुजान देखना हो तो यहाँ देखो। स्वर्ग में वह भी जायेंगे परन्तु प्रजा में जायेंगे। तुम जानते हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी प्रजा कैसे बनती है। बाप की गोद यहाँ मिलती है। मूलवतन में गोद का हिसाब नहीं है। बच्चा जब पैदा होता है तो गुरू की गोद में देते हैं। समझते हैं गुरू की गोद में नहीं गया तो दुर्गति को पायेगा। छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं। गुरू बिगर गति नहीं, यह गुरूओं ने समझाया है। पता नहीं कब शरीर छूट जाए। वहाँ तो जन्म ले फिर गुरू के पास जाते हैं। यहाँ तीनों कम्बाइन्ड हैं। यह कोई शास्त्रों में लिखा नहीं है कि वही बाप टीचर गुरू की गोद है। बाप ने पूछा शिवबाबा को बाप है? कहते हैं हाँ। अच्छा शिवबाबा को टीचर है? गुरू है? नहीं। सिर्फ माँ बाप मिलते हैं। यह गुह्य हिसाब है। बाप बच्चों पर बच्चे बाप पर बलिहार जाते हैं। लौकिक में बच्चे बाप पर बलिहार नहीं जाते हैं, बाप जाते हैं। तो यह समझने की बात है कि बरोबर परमात्मा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनसे ही वर्सा मिलता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। हम ब्राह्मण चोटी हैं, ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं, इस नशे में रहना है।
2) अपना समय बाप की याद में सफल करना है। रूहानी सर्विस में बिजी रहना है। बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है।
वरदान:अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन बन स्वराज्य के नशे में रहने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव!
अकालतख्त नशीन आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है। जैसे राजा बिना नशे के राज्य नहीं चला सकता, ऐसे आत्मा यदि स्वराज्य के नशे में नहीं तो कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य नहीं कर सकती इसलिए अकालतख्त नशीन सो दिलतख्तनशीन बनो और इसी रूहानी नशे में रहो तो कोई भी विघ्न वा समस्या आपके सामने आ नहीं सकती। प्रकृति और माया भी वार नहीं कर सकती। तो तख्तनशीन बनना अर्थात् सहज प्रकृतिजीत और मायाजीत बनना।
स्लोगन:संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करनी है तो आत्म शक्ति की उड़ान भरते रहो।
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25.10.17 Pratah Murli ,Om Shanti , Babdada Madhuban.
Mithe Bachhe tumhe ruhani kamai mei bahut bahut dhyan dena hai, shir par bikarmo ka bojha bahut hai, isilie samay west ni karna hai.
Question – Jin bachho ka dhyan ruhani kamai mei hoga, unki nisani kya hogi ?
Ans – wah kabhi bhi jharmui jhagmui mei apna samay barbaad ni karenge. Sarir nirbah karte hue bhi ruhani kamai mei samay lagayenge. Subah uthkar bahut bahut pyar se baap ko yaad karenge. Yaad se atma udti rahegi. 2- wah baap saman rahamdil ban apne upar aur sarb k upar raham karenge. Sabko baap ka parichay denge.
Dharna k lie mukhya sar
.1- Swadarshan chakradhari banna hai.hum brahman choti hai, iswariya sampradaya ke hai, iss nashe m rahna hai ?
.2- Apna samay baap ki yaad mei safal karna hai. Ruhani service mei busy rahna hai. Baap par poora poora balihar jana hai.
Vardan – Akaltakhat sho diltakhatnasin ban swarajya ke nashi mei rahnewale prakrutijit , mayajit bhav.
Slogan – sankalpon ki siddhi prapt karni hai toh atam Shakti ki udan bharte raho.
Hindi Version in Details – 25/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " बापदादा " मधुबन-
“मीठे बच्चे - तुम्हें रूहानी कमाई में बहुत-बहुत ध्यान देना है, सिर पर विकर्मो का बोझा बहुत है, इसलिए समय वेस्ट नहीं करना है”
प्रश्न: जिन बच्चों का ध्यान रूहानी कमाई में होगा, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह कभी भी झरमुई झगमुई में अपना समय बरबाद नहीं करेंगे। शरीर निर्वाह करते हुए भी रूहानी कमाई में समय लगायेंगे। सुबह उठकर बहुत-बहुत प्यार से बाप को याद करेंगे। याद से आत्मा उड़ती रहेगी। 2. वह बाप समान रहमदिल बन अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहम करेंगे। सबको बाप का परिचय देंगे।
गीत:- तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो......... ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत में मात-पिता की महिमा सुनी, जैसे कोई घर में बच्चे रहते हैं तो मात-पिता, दादा होता है ना। दादे से वर्सा मिलता है - बाप द्वारा, क्योंकि दादे की मिलकियत बड़ों की मिलकियत होती है। तो यह भी सबसे बड़ा है। दुनिया वालों को तो पता ही नहीं। बच्चों को पता है। तुम्हीं हो माता पिता ... तो यह दादे के लिए शब्द हैं। तो उनका परिचय देना पड़े। चाहे सम्मुख हो, चाहे चित्रों द्वारा, चाहे प्रोजेक्टर द्वारा तो दादे का परिचय देना बहुत जरूरी है। जिस्मानी दादा साकार होता है। अब तुम्हारी बुद्धि में पहले कौन आया? दादा। भल प्रोजेक्टर द्वारा समझाओ, वह भी नम्बरवार चित्र दिखाना है। पहले-पहले परमपिता परमात्मा की समझानी देनी है। तो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? और फिर प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? तो पहले-पहले शिव का चित्र दिखाना चाहिए फिर है लिखत, जो प्रदर्शनी पर समझाते हैं वा मैगजीन भी बनाते हैं तो पहले-पहले परिचय देना है। गीता में लिखा हुआ है भगवानुवाच। तो पहले भगवान का परिचय देना चाहिए। तुम सबकी बुद्धि चली गई है ऊपर। सबसे ऊंचा है परमपिता परमात्मा निराकार शिवबाबा। फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यहाँ आओ तो जैसे घर में मात-पिता और दादा बैठे होते हैं। वह है हद का, यह है बेहद का। चित्र सहित सारी लिखते होनी चाहिए। फ़र्क भी बताना चाहिए कि अनेक मनुष्य हठयोग सिखाते आये हैं और एक परमात्मा राजयोग सिखाते हैं, जिससे मुक्ति जीवनमुक्ति मिल रही है। यहाँ है ही एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव भगवानुवाच की बात। जैसे लौकिक माँ-बाप, दादा बच्चों की बुद्धि में याद पड़ते हैं। हूबहू तुम्हारी बुद्धि में भी ऐसे है। यह सिर्फ पारलौकिक है, वह है लौकिक। तुमको निश्चय है कि यह है शिवबाबा। हमारा बाप है तो उनको याद करना चाहिए, परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। टाइम बहुत वेस्ट करते हैं। वेस्ट टाइम नहीं करना चाहिए क्योंकि विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। आत्मा में खाद पड़ गई है। तो लिखना चाहिए परमात्मा कौन है? परमात्मा के चित्र और कृष्ण के चित्र पर घड़ी-घड़ी समझाना चाहिए। स्वर्ग और नर्क के गोले बड़े अच्छे मशहूर हैं। नर्क के गोले पर लिख देना चाहिए कि यह है रावण राज्य, भ्रष्टाचारी दुनिया और स्वर्ग के गोले पर लिखो कि यह है श्रेष्ठाचारी दुनिया, तो टाइम लिखना चाहिए स्वर्ग इतना समय, नर्क इतना समय। देखो चढ़ती कला, उतरती कला का भी चित्र है क्योंकि उतरती कला में 5 हजार वर्ष और चढ़ती कला एक सेकेण्ड में, तो यह जम्प हो गया। यह मुख्य बात समझाने की है, फिर है विराट रूप, जिसमें ब्राह्मण चोटी ईश्वरीय सम्प्रदाय हैं। ब्रह्मा मुख द्वारा रचा हुआ तुम्हारा ब्राह्मण कुल मशहूर है, सर्वोत्तम है। तो सबको समझाने के लिए यह चित्र बहुत जरूरी हैं। वैरायटी धर्मों का झाड़ है, वह भी अच्छा है। बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। तो चक्र का भी ज्ञान देना है कि चक्र कैसे फिरता है। ब्रह्मा-सरस्वती का हीरो हीरोइन का पार्ट कैसे है। तो गोले का भी चित्र बड़ा होना चाहिए। बहुत में बहुत एक डेढ़ घण्टा प्रोजेक्टर दिखाना चाहिए क्योंकि मनुष्य इन बातों में थक जाते हैं। स्टोरी तो कोई नहीं - यह तो ज्ञान की बात है। पहले जब लिखे तब अन्दर में आ सके। तो दिखाने के लिए टिकट रखना चाहिए। पैसे वाली टिकेट नहीं, परन्तु एन्ट्रीपास हो, बड़े-बड़े आदमियों को तो निमंत्रण दे बुलाना चाहिए क्योंकि बड़ों-बड़ों से ओपीनियन लिखाना है। झुण्ड के झुण्ड में कैसे लिखायेंगे और कैसे दिखायेंगे क्योंकि समझाना भी है इसलिए पहले-पहले बड़े आदमियों को बुलाकर लिखाना है फिर जनरल कर देना चाहिए। प्रदर्शनी में भी ऐसे तो प्रोजेक्टर में भी ऐसे, मैगजीन में भी इन अच्छे-अच्छे चित्रों को बनाकर साथ-साथ समझानी लिखो फिर किसको प्रेजेन्ट दे देना चाहिए। हठयोग और राजयोग का कान्ट्रास्ट भी अच्छी तरह लिखना चाहिए। हठयोग भी एक प्रकार की हिंसा है क्योंकि शरीर को कष्ट देते हैं, तकलीफ देते हैं। तुम्हारा यह है अहिंसक योग जो अति सहज है। चलते-फिरते बाप को याद करते रहो। हिंसक और अहिंसक को भी सिद्ध करना है। कई तो शरीर की तन्दरूस्ती के लिए क्रिया करते हैं। वह कोई फिर परमात्मा से नहीं मिलते, हठयोग को भी योग कह देते हैं। योगाश्रम है ना। यह है फिर सहज राजयोग। ईश्वर का सिखाया हुआ योग। तो यह बहुत अच्छी तरह से समझाना चाहिए। जिनका बुद्धियोग सारा दिन झरमुई, झगमुई में होगा वह क्या समझा सकेंगे। जिनकी बुद्धि में होगा कि सर्विस करनी है, वह करेंगे। 8 घण्टा धन्धा किया फिर यह कमाई करनी चाहिए। वह है जिस्मानी कमाई, यह है रूहानी कमाई। तो इस कमाई में बहुत ध्यान देना चाहिए। योग में बहुत प्रैक्टिस करनी चाहिए। सुबह उठ बाप को बड़े प्यार से याद करना चाहिए। जिनको बाप एक दो नम्बर में रखते, वह भी याद नहीं करते हैं। भाषण तो बहुत अच्छा कर लेते हैं परन्तु याद में नहीं रहते। आत्मा तो याद से ही उड़ेगी, ज्ञान से थोड़ेही उड़ेगी। ध्यान में भी याद से ही जाते हैं। ज्ञान की तो इसमें कोई बात ही नहीं। ध्यान तो एक पाई पैसे की बात हो जाती है। कईयों को तो फट से कृष्ण का साक्षात्कार हो जाता है। कई बच्चियां लिखती हैं कि बाबा हमने आपको पहचाना है। वह ध्यान में ब्रह्मा को भी देखती हैं और प्रेरणा भी मिलती है। तो फिर उनको निश्चय हो जाता है। जिसने बाबा को कभी देखा भी नहीं है वह भी लिखती हैं हम बाबा को बहुत याद करते हैं। हम आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। आप तो जानते हैं हम याद करते हैं। जब कहती हैं आप... तो शिवबाबा ही याद आता है। तो बांधेली बच्चियां बहुत याद करती हैं, उतना सामने वाले भी याद नहीं करते। एक बात है याद की। फिर गांधी जी कहते थे कि रामराज्य हो। अभी तो रावणराज्य है। इस पर तुम समझा सकते हो। चढ़ती कला तो परमात्मा ही करा सकते हैं। बाकी तो सब एक दो को गिराते ही रहते हैं। देवतायें भी गिरते जाते हैं। भल सुख में ही हैं परन्तु कला तो कम होती जाती है ना। जूँ की तरह गिरते जाते हैं क्योंकि ड्रामा भी जूँ के मिसल चलता ही रहता है। तो चढ़ती कला एक के ही द्वारा होती है। समझाने के लिए प्रोजेक्टर बहुत अच्छा है। सेन्टर भी बहुत बढ़ते जायेंगे। बाबा कहते हैं कि हर एक भाषा में स्लाईड्स बनाते जाओ। परन्तु काम करने वाला ऐसा कोई है नहीं। बाबा युक्ति तो बता देते हैं। परन्तु काम करने वाला चाहिए तो सर्विस बहुत बढ़ सकती है।
बच्चों को अपने भाई-बहिनों पर बहुत रहम करना चाहिए। बाबा रहमदिल है ना। मेरा आना भी भारत में ही होता है, और जगह आना मेरा नहीं होता। शिवजयन्ती भी भारत में मनाई जाती है। परन्तु जानते नहीं हैं, समझो क्राइस्ट की जयन्ती मनाते हैं तो उनके कर्तव्य को जानते हैं। परन्तु शिव का कर्तव्य नहीं जानते। वही पतित-पावन है। भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ है। गीता में कृष्ण का नाम डालने से इतने बड़े तीर्थ भारत की महिमा गुम हो गई है। देखो, मुहम्मद गजनवी ने मन्दिर लूटा था, अगर उनको यह मालूम होता कि यह हमारे बाबा का मन्दिर है तो लूटते थोड़ेही। अल्लाह के मन्दिर को कौन लूटेगा, जिसने स्वर्ग की स्थापना की। अगर शिवबाबा को जाने तो कभी मन्दिर को हाथ न लगायें। भल वह शिव को माथा टेकते हैं परन्तु जान गये तो कभी न लूटें। सिर्फ गीता में कृष्ण का नाम डालने से यह सब कुछ हुआ है। गीता खण्डन होने से देखो क्या हाल हुआ है। अगर शिव का नाम होता कि वही गति सद्गति दाता है। यह एक की ही महिमा है। अगर वह न आता तो पावन कैसे बनते? भारत को कैसे स्वर्ग बना सकते। यह गुप्त बात है ना। जानते हैं हम दुर्गति में थे। अब यहाँ बैठे हैं परन्तु जा रहे हैं। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम अपने लिए राजाई स्थापन कर रहे हैं, तो औरों को भी रास्ता दिखाकर प्रजा बनानी चाहिए। बड़ी मेहनत करनी चाहिए। है तो बहुत सहज। सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। स्वर्ग को याद करो, यह तो नर्क है। हम सो का अर्थ भी बाबा ने समझाया है, हम सो देवता, हम सो क्षत्रिय...... और कोई तो इन सब बातों को समझते नहीं। तो विराट रूप में यह समझाना है कि हम सो देवता.... बनते हैं। अभी हम स्वर्ग में गये कि गये। बहुत लोग पूछते हैं कितनी देरी है? बाबा कहते हैं तुम अब तैयार कहाँ हुए हो जो स्वर्ग में जा सको। ड्रामा तो बना हुआ है। जितनी-जितनी स्थापना होती जा रही है तो विनाश ज्वाला भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। धर्मों में झगड़ा शुरू होता जा रहा है। पहले पार्टीशन थोड़ेही था। तुम जानते हो पहले एक देवता धर्म था। गीत है ना - आप मिले तो हम स्वर्ग का राज्य, योग बल से ले रहे हैं। बाहूबल से कोई ले नहीं सकता। उनके पास बाहुबल है। रशिया, अमेरिका आपस में मिल जाएं तो सारा राज्य ले सकते हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं है। जब देवताओं का राज्य है तो वहाँ क्रिश्चयिन, बौद्धी नहीं होते। अब देवता धर्म की स्थापना हो रही है। भारत अविनाशी खण्ड है। बाप भी यहाँ आये हैं ना। ड्रामा में ऐसे ही है कि योगबल से राजाई मिलती है। भारत का प्राचीन योग मशहूर है, परन्तु योग सिखाया किसने और कैसे, वह नहीं जानते। कृष्ण ने तो योग नहीं सिखाया। परमपिता परमात्मा ही योग सिखला रहे हैं। यह कितनी अटपटी बात है जो बुद्धि से खिसक जाती है। कई तो जानते भी छोड़ देते हैं। तब बाप कहते हैं समझदार देखना हो तो यहाँ देखो... समझदार वर्सा लेते हैं। बेसमझ छोड़ देते हैं। स्वर्ग का वर्सा गँवा देते हैं। महान मूर्ख, महान सुजान देखना हो तो यहाँ देखो। स्वर्ग में वह भी जायेंगे परन्तु प्रजा में जायेंगे। तुम जानते हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी प्रजा कैसे बनती है। बाप की गोद यहाँ मिलती है। मूलवतन में गोद का हिसाब नहीं है। बच्चा जब पैदा होता है तो गुरू की गोद में देते हैं। समझते हैं गुरू की गोद में नहीं गया तो दुर्गति को पायेगा। छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं। गुरू बिगर गति नहीं, यह गुरूओं ने समझाया है। पता नहीं कब शरीर छूट जाए। वहाँ तो जन्म ले फिर गुरू के पास जाते हैं। यहाँ तीनों कम्बाइन्ड हैं। यह कोई शास्त्रों में लिखा नहीं है कि वही बाप टीचर गुरू की गोद है। बाप ने पूछा शिवबाबा को बाप है? कहते हैं हाँ। अच्छा शिवबाबा को टीचर है? गुरू है? नहीं। सिर्फ माँ बाप मिलते हैं। यह गुह्य हिसाब है। बाप बच्चों पर बच्चे बाप पर बलिहार जाते हैं। लौकिक में बच्चे बाप पर बलिहार नहीं जाते हैं, बाप जाते हैं। तो यह समझने की बात है कि बरोबर परमात्मा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनसे ही वर्सा मिलता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। हम ब्राह्मण चोटी हैं, ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं, इस नशे में रहना है।
2) अपना समय बाप की याद में सफल करना है। रूहानी सर्विस में बिजी रहना है। बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है।
वरदान:अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन बन स्वराज्य के नशे में रहने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव!
अकालतख्त नशीन आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है। जैसे राजा बिना नशे के राज्य नहीं चला सकता, ऐसे आत्मा यदि स्वराज्य के नशे में नहीं तो कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य नहीं कर सकती इसलिए अकालतख्त नशीन सो दिलतख्तनशीन बनो और इसी रूहानी नशे में रहो तो कोई भी विघ्न वा समस्या आपके सामने आ नहीं सकती। प्रकृति और माया भी वार नहीं कर सकती। तो तख्तनशीन बनना अर्थात् सहज प्रकृतिजीत और मायाजीत बनना।
स्लोगन:संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करनी है तो आत्म शक्ति की उड़ान भरते रहो।
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Details ( Page:- Murali 26-Oct-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 26.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum roohani Brahmano ka aapas me bahut-bahut pyaar hona chahiye. Aapas me milkar raye nikalo ki kaise sabhi ko satya Baap ka parichay de.
Q- Bacche kis nischay ke aadhar par apna bhagya ooncha bana sakte hain?
A- Pehle jab buddhi me yah nischay baithe ki yahan padhane wala swayang Parmatma hai, unse he hume saubhagya lena hai tab padhai roz padhe aur apna saubhagya ooncha bana sake. Baap ki shrimat hai ki bacche tumhe kisi bhi haalat me roz padhna hai. Agar class me nahi aa sakte ho to bhi ghar me murli padho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Aapas me bahut pyaar se rehna hai, milkar raye nikalni hai ki kis yukti se har ek tak Baap ka sandesh pahunchaye.
2) Yah binash ka samay hai isiliye ek Baap se sachchi preet rakhni hai. Yog se aatma ko pawan banana hai.
Vardaan:- - Drama ke har raaz ko jaan sada khushi-razi rehne wale Knowledgeful, Trikaldarshi bhava.
Slogan- Jo byarth se innocent rehta hai wohi sachcha-sachcha saint (mahatma) hai.
HINDI MURALI in DETAIL 26/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम रूहानी ब्राह्मणों का आपस में बहुत-बहुत प्यार होना चाहिए। आपस में मिलकर राय निकालो कि कैसे सभी को सत्य बाप का परिचय दें”
प्रश्न: बच्चे किस निश्चय के आधार पर अपना भाग्य ऊंचा बना सकते हैं?
उत्तर:
पहले जब बुद्धि में यह निश्चय बैठे कि यहाँ पढ़ाने वाला स्वयं परमात्मा है, उनसे ही हमें सौभाग्य लेना है तब पढ़ाई रोज़ पढ़ें और अपना सौभाग्य ऊंचा बना सकें। बाप की श्रीमत है कि बच्चे तुम्हें किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना है। अगर क्लास में नहीं आ सकते हो तो भी घर में मुरली पढ़ो।
गीत:- तू प्यार का सागर है.... ओम् शान्ति।
आत्मायें अर्थात् बच्चे जान गये हैं कि हम आत्मा बिन्दी मिसल हैं। एक स्टॉर मुआफिक हैं। लेकिन जो आत्मा है वह सेल्फ के बाप को कैसे रियलाइज़ करे। दुनिया में कोई भी न अपने को, न बाप को जानते हैं। तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं। कितनी छोटी हैं, बाप भी इतना छोटा है। आत्मा से परमात्मा बाप कोई बड़ा नहीं है। शरीर तो छोटा बड़ा होता है। अब तुम शिवबाबा की याद में बैठे हो। भल कोई यह जान भी जाये कि आत्मा छोटी बिन्दी है, परन्तु उसमें 84 जन्मों का पार्ट है, वन्डर है ना। जब तक आत्मा शरीर का आधार न लेवे तब तक पार्ट बजा न सके। वैसे परमात्मा भी हम आत्मा के मुआफिक छोटा है। परन्तु बाप क्यों कहा जाता है? क्योंकि वह सदा पावन है। वह परमात्मा को न जानते भी उनको बाप कहते हैं। जैसे तुम समझ से याद करते हो वैसे वह भी याद करते हैं। इतने जो भगत हैं, सबका भगवान एक है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है। तो पतित हैं अनेक और पतित-पावन है एक। साधू सन्त महात्मा भी बुलाते हैं, उनको गॉड फादर कहते हैं। तो सबका फादर ठहरा ना। फादर को पतित से पावन बनाने आना पड़ता है। पावन बनने का उपाय वही बताते हैं क्योंकि आत्मा पर पापों का बोझा चढ़ा हुआ है। हम सिर्फ लिख दें कि बी होली, परन्तु ऐसे स्लोगन लगाने से कोई फायदा नहीं क्योंकि बाहर वाले तो समझ न सकें। बाकी तुमको तो समझाया हुआ है, तुमको स्लोगन की क्या दरकार है। इसका अर्थ है पवित्र बनो, बाबा को याद करो। जब तक किसको समझाया नहीं जाये तब तक कुछ समझ न सकें। योग में रहने से पवित्र बन सकते हैं। कहते हैं हिज-होलीनेस। यह पवित्रता का टाइटिल है। सन्यासियों को होली कहते हैं क्योंकि विकार में नहीं जाते हैं। भल वह पवित्र रहते हैं, ब्रह्म को याद करते हैं परन्तु जन्म विकारियों के पास लेना पड़ता है। तुमको तो कहा जाता है पवित्र रहो और शिवबाबा को याद करो। सन्यासी अपने को कर्म सन्यासी कहलाते हैं। परन्तु कर्म का सन्यास होता नहीं। कर्म सन्यास तब हो जब देह न हो। देह बिगर तो घर में (परमधाम में) रहते हैं। यहाँ कर्म का सन्यास कैसे हो सकता है? यह कहना भी झूठ है। वह कहते जो गृहस्थी कर्म करते वह हम नहीं करते। गृहस्थियों का कर्म तो बहुत है - यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते हैं। वह सन्यासी भी करते हैं। बाकी फ़र्क सिर्फ यह है कि वह कमाई कर खाना घर में पकाते हैं, सन्यासी यह नहीं करते हैं। वह मांगकर खाते हैं क्योंकि उनका हठयोग है। हठयोग से परमात्मा से मिल नहीं सकते। जब बाप आये तब तो उनसे कोई मिल सके और जब तक बाप न आये तब तक पावन दुनिया की स्थापना भी हो न सके। कितना समझाते हैं फिर भी समझते नहीं हैं। बच्चे समाचार लिखते हैं - इतने-इतने आये। अब देखें कौन-कौन अपना सौभाग्य लेते हैं। आते बहुत हैं परन्तु बुद्धि में यह नहीं बैठता कि इन्हें पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है, हमको उनसे सौभाग्य लेना है। बाप रजिस्टर भी देखते हैं। कोई मास में 8-10 दिन भी आते हैं, कोई नहीं भी आते हैं तो वह नहीं लिखते। अगर कोई नहीं आता है तो वह मुरली पढ़ता है वा नहीं। किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना पड़े। जैसे जप साहेब, सुखमनी छोटे-छोटे बनाते हैं, समझते हैं कैसे भी पढ़ सकें। तुम समझते हो, उस पढ़ने से क्या प्राप्ति होगी। कुछ नहीं। करके थोड़े समय के लिए बुद्धि ठीक होगी। परन्तु बाप से कोई मिल न सके। और फिर विकारों में फँस जाते हैं तो फिर उनसे कोई प्राप्ति नहीं। कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, बरोबर अब विनाश का समय है और कोई भी परमात्मा को नहीं जानते। कहते भी हैं हम रचता और रचना के आदि मध्य अन्त को नहीं जानते हैं। परन्तु ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानना चाहिए ना। बाप समझाते हैं सतयुग है आदि, कलियुग है अन्त। तो तीनों काल, तीनों लोकों को समझना है। तीन लोक हैं स्थूल वतन, सूक्ष्म वतन... कहते हैं - शास्त्र अनादि हैं परन्तु बाप समझाते हैं जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से शास्त्र भी शुरू होते हैं, तो द्वापर युग मध्य हो गया। आधाकल्प सतयुग, आधाकल्प कलियुग। आधा का हिसाब है। वह मध्य को नहीं जान सकते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। कहना चाहिए कि बाप को जानो, ब्रह्माकुमार कुमारी बनो तब वर्सा मिलेगा। पहले कोई आते हैं तो पूछो - कहाँ आये हो? कहते हैं बी.के. के पास। तुम कहो विचार करो - इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं, तो ब्रह्मा बाप भी होगा! कितने सेन्टर्स हैं, ढेरों के ढेर ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। भला इतने बच्चे एक बाप को कैसे हो सकते! लिखा है प्रजापिता तो इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। ऐसे-ऐसे समझाकर खड़ा करना चाहिए। फिर भला ख्याल करो प्रजापिता ब्रह्मा किसका बच्चा? इतने बच्चे रचना तो परमात्मा का काम है ना। तो परमात्मा आता होगा ना। गाया हुआ है तुम मात-पिता... तो बाप ब्रह्मा हो गया ना। तो परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचते हैं, कनवर्ट करते हैं। एडाप्ट करते हैं, वर्सा देने। पावन बनाते हैं कैसे? याद से। कहते हैं सब धर्मो को भूल मामेकम् याद करो। सभी बुलाते हैं मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, लिबरेटर, गाइड हूँ। तो सुखधाम में ले जाता हूँ। सुख कहाँ है? सुखधाम में। अभी बाप ले जाता है शान्तिधाम में, फिर आते हैं सुखधाम में। यह बातें कैसे याद करें। रोज़-रोज़ बोलते रहें, औरों को समझाते रहें तो प्वाइंट्स बुद्धि में आती रहती हैं। जब किसको समझाओ तो उनसे लिखा लेना चाहिए। परमात्मा जो आत्माओं का पिता है - उनकी एड्रेस लिखानी चाहिए कि बाप शिव है तो बाप से वर्सा लेंगे। तो मेहनत करनी चाहिए। परन्तु मेहनत करे कौन? इसलिए बच्चों को खुद खड़ा होकर फिर औरों को भी खड़ा करना चाहिए और सर्विस के लिए प्लैन्स बना देने चाहिए। जैसे मिलेट्री के बड़े कमान्डर्स आपस में मिलते हैं ना। तो यहाँ भी बच्चों को मिलना चाहिए। परन्तु क्या करें आपस में मिलते नहीं हैं। वास्तव में तुम ब्राह्मणों का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए। कोई राय निकालनी चाहिए - कैसे किसको समझायें।
देखो, लक्ष्मी-नारायण के कितने मन्दिर हैं। तो मन्दिर बनाने वालों को मिलना चाहिए कि आपने यह मन्दिर बनाया है परन्तु जानते हो कि इन्होंने राज्य कैसे पाया? फिर राज्य कैसे गंवाया? श्रीकृष्ण का चित्र बहुत अच्छा है, इसमें 84 जन्मों की कहानी बड़ी अच्छी है। सिर्फ यह चित्र बड़ा बनाना चाहिए। बाबा कहते हैं कोई आये तो युक्ति से पूछना चाहिए कि आपने गीता पढ़ी है? फिर भला बताओ गीता का भगवान कौन है? तो ऐसे युक्ति से समझाना चाहिए। कहते हैं ना तुम मात-पिता....तो यह ब्रह्मा माता हो गई तो उनके साथ सम्बन्ध रखना चाहिए। अगर उनसे प्यार गया तो खेल खलास, बाप से वर्सा कैसे पायेंगे। तुम्हारी लड़ाई पुराने दुश्मन से है। कोई को मालूम नहीं है कि रावण से भी कोई युद्ध होती है। कहते हैं सच की नांव डोलेगी लेकिन डूबेगी नहीं। तो हिलती कितनी है। दूसरे सतसंगों में तो हिलने की बात ही नहीं है। यहाँ तो माया से युद्ध है। जब तक बाप को नहीं समझा है तब तक भल लिखकर दें, परन्तु तोता कण्ठी वाला नहीं बना है। जंगली तोता आया और गया। अल्फ को समझना है। ऐसे प्रजा तो ढेर है, बाकी राजाई के लिए कोई खड़ा नहीं होता है। बत्ती पर फिदा हो जाए सो बड़ा मुश्किल होता है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
तुम बच्चों को बाप का डायरेक्शन मिला हुआ है कि बच्चे बाप को याद करो। बच्चे कहते हैं बाबा फुर्सत नहीं मिलती है। अब फुर्सत कहाँ चली जाती है? जरूर माया तुम्हारा समय ले लेती है। माया भी जबरदस्त तीखी है, जो तुमको बाप को याद करने की फुर्सत नहीं देती, तब तो कहते हो बाबा सारे दिन में आधा घण्टा, 20 मिनट याद में रहे, कोई मुश्किल ही सारे दिन में दो घण्टा बाप को याद करते होंगे। जो समझते हैं हम 2 घण्टा याद करते हैं, वह हाथ उठाओ। वह स्थूल याद, पुरानी याद तो चलती आती है। यह तो है इनकारपोरियल, इनको अपना ऑख, कान तो है नहीं। बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो। अपने को आत्मा समझो। तो बाबा पूछ रहे हैं कि कितना घण्टा याद में रहते हो? बच्चे खेलने जाते हैं तो टीचर को याद करते हैं। घर में पढ़ते हैं तो भी टीचर याद रहता है। तो वह है स्थूल याद। इसमें है थोड़ी डिफीकल्टी, तो बाबा पूछते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को 2 घण्टा जो याद कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ। लज्जा नहीं करो, एक्यूरेट बताओ।
तुम यहाँ बैठते हो, बाबा मुरली चलाते हैं तो बुद्धि दूसरे तरफ चली जाती है ना! इतना बुद्धि में धारण भी नहीं होता है। जैसे यहाँ सुबह में एक घण्टा बाबा समझाते हैं, तो क्या वह एक घण्टा बाबा को याद करते हो या बुद्धि बाहर में चली जाती है? बरोबर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बुद्धि कहाँ न कहाँ चली जाती है। सारा नहीं सुनते हैं। अगर सारा बैठ करके सुनें और नोट करते रहें तो बाबा कहेगा हाँ, इनका योग ठीक है। तो सुनते समय अटेन्शन देना है और प्वाइन्ट्स पूरा लिखना है। अगर लिंक टूटेगी तो प्वाइन्ट भूल जायेगी।
बाप समझाते हैं बच्चे, हार्ट फेल का मौत बहुत मीठा मौत है। इसमें तेरा मेरा फेरा कुछ भी नहीं है। बैठे-बैठे यह गिरा, बेहोश हुआ, खलास। बस। फिर होश में आये ही नहीं। यह बहुत अच्छा मौत है। बाकी मनुष्य तो रोते पीटते हैं और तुम तो खुश होंगे अरे वाह! इनका मौत बड़ा सहज हुआ, इनको कोई दु:ख नहीं हुआ। अगर मौत हो तो ऐसा हो, नहीं तो दवा, नर्स यह वह बहुत होते हैं ना इसलिए जो बैठे-बैठे अपनी इस पुरानी जुत्ती को छोड़ दे, कर्मातीत अवस्था हो, ऐसे ही शरीर छोड़े, तो वो सबसे अच्छा है। तुम आगे चल करके देखेंगे, अनायास बाम्बस छूटेंगे और सब बैठे-बैठे चले जायेंगे। चेहरा भी हर्षित होगा। जैसे कभी-कभी अच्छे मौत होते हैं तो देखने वाले कहते हैं कि यह तो जैसे जागता है, यह तो हर्षित है, ऐसे तो कोई कह नहीं सकेंगे कि यह मर गया है। आत्मा हर्षित होके जाती है ना, तो आत्मा में अगर हर्षितपना होगा तो चेहरे पर बाहर से दिखाई तो पड़ेगा ना! आत्मा कोई खत्म तो नहीं होती है, आत्मा शरीर छोड़ती है। तो बड़ी खुशी से यह शरीर हंसते हुए छोड़ देगी, इसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था। वही इतना ऊंच गाये जाते हैं। तुम बच्चों को ऐसे ही जाना है, शरीर की कोई परवाह ही नहीं है, और दूसरी कोई चीज़ याद नहीं आवे, इसको कहेंगे सबसे मीठा, आपेही शरीर छोड़ना इसलिए सर्प का मिसाल भी देते हैं। सतयुग में ऐसे होता है जो खुशी से शरीर छोड़ते हैं। तो प्रैक्टिस यहाँ से होगी, पीछे वह प्रैक्टिस चलती रहेगी।
तुम बच्चे बाप को कितना प्यार से याद करते हो। अंग्रेजी में कहा जाता है मोस्ट बिलवेड, परम प्रिय, बहुत मीठा। लोगों को तो परमप्रिय, मोस्ट बिलवेड कह नहीं सकते। बाप कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ। तुम कभी टीचर को भूलो तो बाप को याद कर सकते हो। बाबा गाइड है, गाइड को पण्डा भी कहा जाता है। वह दु:ख से लिबरेट करने वाला, शान्तिधाम में ले जाने वाला है, उसके पीछे है सुखधाम। तो तुमको यह ज्ञान घास मिलता है फिर इसको विचार सागर मंथन करते रहो। जैसे गाय का मुख चलता रहता है। तुम्हारा मुख तो चलने की दरकार नहीं है, बाकी अन्दर में सबकुछ याद करना है। जैसे तुम हो, ऐसे हम हैं। हमको तो और भी कम घण्टे मिलते हैं, क्योंकि हमारा बुद्धियोग बाहर में बहुत जाता है, कभी कोई की चिट्ठी आई, फलाने की खिटपिट है, यह है, वह है.. तो सारा दिन उस तरफ बुद्धि जाती है। परन्तु शायद बच्चों से जास्ती बाबा को सहज है क्योंकि बगल में (साथ में) रहता है। जब बाबा भोजन खाने के लिए बैठते हैं तो सोचते हैं, अच्छा मैं बाबा को याद करता हूँ, 2-3 मिनट याद रहती है फिर भूल जाता हूँ। याद हवा मुआफिक उड़ जाती है, बच्चे ट्राय करके देखो। सहज होते भी याद में टाइम तो लगता है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट। मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आपस में बहुत प्यार से रहना है, मिलकर राय निकालनी है कि किस युक्ति से हर एक तक बाप का सन्देश पहुंचायें।
2) यह विनाश का समय है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। योग से आत्मा को पावन बनाना है।
वरदान:ड्रामा के हर राज़ को जान सदा खुश-राज़ी रहने वाले नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी भव!
जो बच्चे नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हैं वे कभी नाराज़ नहीं हो सकते। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट कर दे तो भी राज़ी, क्योंकि ड्रामा के हर राज़ को जानने वाले नाराज नहीं होते। नाराज़ वो होता है जो राज़ को नहीं जानता है इसलिए सदैव यह स्मृति रखो कि भगवान बाप के बच्चे बनकर भी राज़ी नहीं होंगे तो कब होंगे! तो अभी जो खुश भी हैं, राज़ी भी हैं वही बाप के समीप और समान हैं।
स्लोगन: जो व्यर्थ से इनोसेंट रहता है वही सच्चा-सच्चा सेंट (महात्मा) है।
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Mithe bacche - Tum roohani Brahmano ka aapas me bahut-bahut pyaar hona chahiye. Aapas me milkar raye nikalo ki kaise sabhi ko satya Baap ka parichay de.
Q- Bacche kis nischay ke aadhar par apna bhagya ooncha bana sakte hain?
A- Pehle jab buddhi me yah nischay baithe ki yahan padhane wala swayang Parmatma hai, unse he hume saubhagya lena hai tab padhai roz padhe aur apna saubhagya ooncha bana sake. Baap ki shrimat hai ki bacche tumhe kisi bhi haalat me roz padhna hai. Agar class me nahi aa sakte ho to bhi ghar me murli padho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Aapas me bahut pyaar se rehna hai, milkar raye nikalni hai ki kis yukti se har ek tak Baap ka sandesh pahunchaye.
2) Yah binash ka samay hai isiliye ek Baap se sachchi preet rakhni hai. Yog se aatma ko pawan banana hai.
Vardaan:- - Drama ke har raaz ko jaan sada khushi-razi rehne wale Knowledgeful, Trikaldarshi bhava.
Slogan- Jo byarth se innocent rehta hai wohi sachcha-sachcha saint (mahatma) hai.
HINDI MURALI in DETAIL 26/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम रूहानी ब्राह्मणों का आपस में बहुत-बहुत प्यार होना चाहिए। आपस में मिलकर राय निकालो कि कैसे सभी को सत्य बाप का परिचय दें”
प्रश्न: बच्चे किस निश्चय के आधार पर अपना भाग्य ऊंचा बना सकते हैं?
उत्तर:
पहले जब बुद्धि में यह निश्चय बैठे कि यहाँ पढ़ाने वाला स्वयं परमात्मा है, उनसे ही हमें सौभाग्य लेना है तब पढ़ाई रोज़ पढ़ें और अपना सौभाग्य ऊंचा बना सकें। बाप की श्रीमत है कि बच्चे तुम्हें किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना है। अगर क्लास में नहीं आ सकते हो तो भी घर में मुरली पढ़ो।
गीत:- तू प्यार का सागर है.... ओम् शान्ति।
आत्मायें अर्थात् बच्चे जान गये हैं कि हम आत्मा बिन्दी मिसल हैं। एक स्टॉर मुआफिक हैं। लेकिन जो आत्मा है वह सेल्फ के बाप को कैसे रियलाइज़ करे। दुनिया में कोई भी न अपने को, न बाप को जानते हैं। तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं। कितनी छोटी हैं, बाप भी इतना छोटा है। आत्मा से परमात्मा बाप कोई बड़ा नहीं है। शरीर तो छोटा बड़ा होता है। अब तुम शिवबाबा की याद में बैठे हो। भल कोई यह जान भी जाये कि आत्मा छोटी बिन्दी है, परन्तु उसमें 84 जन्मों का पार्ट है, वन्डर है ना। जब तक आत्मा शरीर का आधार न लेवे तब तक पार्ट बजा न सके। वैसे परमात्मा भी हम आत्मा के मुआफिक छोटा है। परन्तु बाप क्यों कहा जाता है? क्योंकि वह सदा पावन है। वह परमात्मा को न जानते भी उनको बाप कहते हैं। जैसे तुम समझ से याद करते हो वैसे वह भी याद करते हैं। इतने जो भगत हैं, सबका भगवान एक है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है। तो पतित हैं अनेक और पतित-पावन है एक। साधू सन्त महात्मा भी बुलाते हैं, उनको गॉड फादर कहते हैं। तो सबका फादर ठहरा ना। फादर को पतित से पावन बनाने आना पड़ता है। पावन बनने का उपाय वही बताते हैं क्योंकि आत्मा पर पापों का बोझा चढ़ा हुआ है। हम सिर्फ लिख दें कि बी होली, परन्तु ऐसे स्लोगन लगाने से कोई फायदा नहीं क्योंकि बाहर वाले तो समझ न सकें। बाकी तुमको तो समझाया हुआ है, तुमको स्लोगन की क्या दरकार है। इसका अर्थ है पवित्र बनो, बाबा को याद करो। जब तक किसको समझाया नहीं जाये तब तक कुछ समझ न सकें। योग में रहने से पवित्र बन सकते हैं। कहते हैं हिज-होलीनेस। यह पवित्रता का टाइटिल है। सन्यासियों को होली कहते हैं क्योंकि विकार में नहीं जाते हैं। भल वह पवित्र रहते हैं, ब्रह्म को याद करते हैं परन्तु जन्म विकारियों के पास लेना पड़ता है। तुमको तो कहा जाता है पवित्र रहो और शिवबाबा को याद करो। सन्यासी अपने को कर्म सन्यासी कहलाते हैं। परन्तु कर्म का सन्यास होता नहीं। कर्म सन्यास तब हो जब देह न हो। देह बिगर तो घर में (परमधाम में) रहते हैं। यहाँ कर्म का सन्यास कैसे हो सकता है? यह कहना भी झूठ है। वह कहते जो गृहस्थी कर्म करते वह हम नहीं करते। गृहस्थियों का कर्म तो बहुत है - यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते हैं। वह सन्यासी भी करते हैं। बाकी फ़र्क सिर्फ यह है कि वह कमाई कर खाना घर में पकाते हैं, सन्यासी यह नहीं करते हैं। वह मांगकर खाते हैं क्योंकि उनका हठयोग है। हठयोग से परमात्मा से मिल नहीं सकते। जब बाप आये तब तो उनसे कोई मिल सके और जब तक बाप न आये तब तक पावन दुनिया की स्थापना भी हो न सके। कितना समझाते हैं फिर भी समझते नहीं हैं। बच्चे समाचार लिखते हैं - इतने-इतने आये। अब देखें कौन-कौन अपना सौभाग्य लेते हैं। आते बहुत हैं परन्तु बुद्धि में यह नहीं बैठता कि इन्हें पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है, हमको उनसे सौभाग्य लेना है। बाप रजिस्टर भी देखते हैं। कोई मास में 8-10 दिन भी आते हैं, कोई नहीं भी आते हैं तो वह नहीं लिखते। अगर कोई नहीं आता है तो वह मुरली पढ़ता है वा नहीं। किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना पड़े। जैसे जप साहेब, सुखमनी छोटे-छोटे बनाते हैं, समझते हैं कैसे भी पढ़ सकें। तुम समझते हो, उस पढ़ने से क्या प्राप्ति होगी। कुछ नहीं। करके थोड़े समय के लिए बुद्धि ठीक होगी। परन्तु बाप से कोई मिल न सके। और फिर विकारों में फँस जाते हैं तो फिर उनसे कोई प्राप्ति नहीं। कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, बरोबर अब विनाश का समय है और कोई भी परमात्मा को नहीं जानते। कहते भी हैं हम रचता और रचना के आदि मध्य अन्त को नहीं जानते हैं। परन्तु ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानना चाहिए ना। बाप समझाते हैं सतयुग है आदि, कलियुग है अन्त। तो तीनों काल, तीनों लोकों को समझना है। तीन लोक हैं स्थूल वतन, सूक्ष्म वतन... कहते हैं - शास्त्र अनादि हैं परन्तु बाप समझाते हैं जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से शास्त्र भी शुरू होते हैं, तो द्वापर युग मध्य हो गया। आधाकल्प सतयुग, आधाकल्प कलियुग। आधा का हिसाब है। वह मध्य को नहीं जान सकते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। कहना चाहिए कि बाप को जानो, ब्रह्माकुमार कुमारी बनो तब वर्सा मिलेगा। पहले कोई आते हैं तो पूछो - कहाँ आये हो? कहते हैं बी.के. के पास। तुम कहो विचार करो - इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं, तो ब्रह्मा बाप भी होगा! कितने सेन्टर्स हैं, ढेरों के ढेर ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। भला इतने बच्चे एक बाप को कैसे हो सकते! लिखा है प्रजापिता तो इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। ऐसे-ऐसे समझाकर खड़ा करना चाहिए। फिर भला ख्याल करो प्रजापिता ब्रह्मा किसका बच्चा? इतने बच्चे रचना तो परमात्मा का काम है ना। तो परमात्मा आता होगा ना। गाया हुआ है तुम मात-पिता... तो बाप ब्रह्मा हो गया ना। तो परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचते हैं, कनवर्ट करते हैं। एडाप्ट करते हैं, वर्सा देने। पावन बनाते हैं कैसे? याद से। कहते हैं सब धर्मो को भूल मामेकम् याद करो। सभी बुलाते हैं मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, लिबरेटर, गाइड हूँ। तो सुखधाम में ले जाता हूँ। सुख कहाँ है? सुखधाम में। अभी बाप ले जाता है शान्तिधाम में, फिर आते हैं सुखधाम में। यह बातें कैसे याद करें। रोज़-रोज़ बोलते रहें, औरों को समझाते रहें तो प्वाइंट्स बुद्धि में आती रहती हैं। जब किसको समझाओ तो उनसे लिखा लेना चाहिए। परमात्मा जो आत्माओं का पिता है - उनकी एड्रेस लिखानी चाहिए कि बाप शिव है तो बाप से वर्सा लेंगे। तो मेहनत करनी चाहिए। परन्तु मेहनत करे कौन? इसलिए बच्चों को खुद खड़ा होकर फिर औरों को भी खड़ा करना चाहिए और सर्विस के लिए प्लैन्स बना देने चाहिए। जैसे मिलेट्री के बड़े कमान्डर्स आपस में मिलते हैं ना। तो यहाँ भी बच्चों को मिलना चाहिए। परन्तु क्या करें आपस में मिलते नहीं हैं। वास्तव में तुम ब्राह्मणों का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए। कोई राय निकालनी चाहिए - कैसे किसको समझायें।
देखो, लक्ष्मी-नारायण के कितने मन्दिर हैं। तो मन्दिर बनाने वालों को मिलना चाहिए कि आपने यह मन्दिर बनाया है परन्तु जानते हो कि इन्होंने राज्य कैसे पाया? फिर राज्य कैसे गंवाया? श्रीकृष्ण का चित्र बहुत अच्छा है, इसमें 84 जन्मों की कहानी बड़ी अच्छी है। सिर्फ यह चित्र बड़ा बनाना चाहिए। बाबा कहते हैं कोई आये तो युक्ति से पूछना चाहिए कि आपने गीता पढ़ी है? फिर भला बताओ गीता का भगवान कौन है? तो ऐसे युक्ति से समझाना चाहिए। कहते हैं ना तुम मात-पिता....तो यह ब्रह्मा माता हो गई तो उनके साथ सम्बन्ध रखना चाहिए। अगर उनसे प्यार गया तो खेल खलास, बाप से वर्सा कैसे पायेंगे। तुम्हारी लड़ाई पुराने दुश्मन से है। कोई को मालूम नहीं है कि रावण से भी कोई युद्ध होती है। कहते हैं सच की नांव डोलेगी लेकिन डूबेगी नहीं। तो हिलती कितनी है। दूसरे सतसंगों में तो हिलने की बात ही नहीं है। यहाँ तो माया से युद्ध है। जब तक बाप को नहीं समझा है तब तक भल लिखकर दें, परन्तु तोता कण्ठी वाला नहीं बना है। जंगली तोता आया और गया। अल्फ को समझना है। ऐसे प्रजा तो ढेर है, बाकी राजाई के लिए कोई खड़ा नहीं होता है। बत्ती पर फिदा हो जाए सो बड़ा मुश्किल होता है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि-क्लास:-
तुम बच्चों को बाप का डायरेक्शन मिला हुआ है कि बच्चे बाप को याद करो। बच्चे कहते हैं बाबा फुर्सत नहीं मिलती है। अब फुर्सत कहाँ चली जाती है? जरूर माया तुम्हारा समय ले लेती है। माया भी जबरदस्त तीखी है, जो तुमको बाप को याद करने की फुर्सत नहीं देती, तब तो कहते हो बाबा सारे दिन में आधा घण्टा, 20 मिनट याद में रहे, कोई मुश्किल ही सारे दिन में दो घण्टा बाप को याद करते होंगे। जो समझते हैं हम 2 घण्टा याद करते हैं, वह हाथ उठाओ। वह स्थूल याद, पुरानी याद तो चलती आती है। यह तो है इनकारपोरियल, इनको अपना ऑख, कान तो है नहीं। बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो। अपने को आत्मा समझो। तो बाबा पूछ रहे हैं कि कितना घण्टा याद में रहते हो? बच्चे खेलने जाते हैं तो टीचर को याद करते हैं। घर में पढ़ते हैं तो भी टीचर याद रहता है। तो वह है स्थूल याद। इसमें है थोड़ी डिफीकल्टी, तो बाबा पूछते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को 2 घण्टा जो याद कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ। लज्जा नहीं करो, एक्यूरेट बताओ।
तुम यहाँ बैठते हो, बाबा मुरली चलाते हैं तो बुद्धि दूसरे तरफ चली जाती है ना! इतना बुद्धि में धारण भी नहीं होता है। जैसे यहाँ सुबह में एक घण्टा बाबा समझाते हैं, तो क्या वह एक घण्टा बाबा को याद करते हो या बुद्धि बाहर में चली जाती है? बरोबर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बुद्धि कहाँ न कहाँ चली जाती है। सारा नहीं सुनते हैं। अगर सारा बैठ करके सुनें और नोट करते रहें तो बाबा कहेगा हाँ, इनका योग ठीक है। तो सुनते समय अटेन्शन देना है और प्वाइन्ट्स पूरा लिखना है। अगर लिंक टूटेगी तो प्वाइन्ट भूल जायेगी।
बाप समझाते हैं बच्चे, हार्ट फेल का मौत बहुत मीठा मौत है। इसमें तेरा मेरा फेरा कुछ भी नहीं है। बैठे-बैठे यह गिरा, बेहोश हुआ, खलास। बस। फिर होश में आये ही नहीं। यह बहुत अच्छा मौत है। बाकी मनुष्य तो रोते पीटते हैं और तुम तो खुश होंगे अरे वाह! इनका मौत बड़ा सहज हुआ, इनको कोई दु:ख नहीं हुआ। अगर मौत हो तो ऐसा हो, नहीं तो दवा, नर्स यह वह बहुत होते हैं ना इसलिए जो बैठे-बैठे अपनी इस पुरानी जुत्ती को छोड़ दे, कर्मातीत अवस्था हो, ऐसे ही शरीर छोड़े, तो वो सबसे अच्छा है। तुम आगे चल करके देखेंगे, अनायास बाम्बस छूटेंगे और सब बैठे-बैठे चले जायेंगे। चेहरा भी हर्षित होगा। जैसे कभी-कभी अच्छे मौत होते हैं तो देखने वाले कहते हैं कि यह तो जैसे जागता है, यह तो हर्षित है, ऐसे तो कोई कह नहीं सकेंगे कि यह मर गया है। आत्मा हर्षित होके जाती है ना, तो आत्मा में अगर हर्षितपना होगा तो चेहरे पर बाहर से दिखाई तो पड़ेगा ना! आत्मा कोई खत्म तो नहीं होती है, आत्मा शरीर छोड़ती है। तो बड़ी खुशी से यह शरीर हंसते हुए छोड़ देगी, इसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था। वही इतना ऊंच गाये जाते हैं। तुम बच्चों को ऐसे ही जाना है, शरीर की कोई परवाह ही नहीं है, और दूसरी कोई चीज़ याद नहीं आवे, इसको कहेंगे सबसे मीठा, आपेही शरीर छोड़ना इसलिए सर्प का मिसाल भी देते हैं। सतयुग में ऐसे होता है जो खुशी से शरीर छोड़ते हैं। तो प्रैक्टिस यहाँ से होगी, पीछे वह प्रैक्टिस चलती रहेगी।
तुम बच्चे बाप को कितना प्यार से याद करते हो। अंग्रेजी में कहा जाता है मोस्ट बिलवेड, परम प्रिय, बहुत मीठा। लोगों को तो परमप्रिय, मोस्ट बिलवेड कह नहीं सकते। बाप कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ। तुम कभी टीचर को भूलो तो बाप को याद कर सकते हो। बाबा गाइड है, गाइड को पण्डा भी कहा जाता है। वह दु:ख से लिबरेट करने वाला, शान्तिधाम में ले जाने वाला है, उसके पीछे है सुखधाम। तो तुमको यह ज्ञान घास मिलता है फिर इसको विचार सागर मंथन करते रहो। जैसे गाय का मुख चलता रहता है। तुम्हारा मुख तो चलने की दरकार नहीं है, बाकी अन्दर में सबकुछ याद करना है। जैसे तुम हो, ऐसे हम हैं। हमको तो और भी कम घण्टे मिलते हैं, क्योंकि हमारा बुद्धियोग बाहर में बहुत जाता है, कभी कोई की चिट्ठी आई, फलाने की खिटपिट है, यह है, वह है.. तो सारा दिन उस तरफ बुद्धि जाती है। परन्तु शायद बच्चों से जास्ती बाबा को सहज है क्योंकि बगल में (साथ में) रहता है। जब बाबा भोजन खाने के लिए बैठते हैं तो सोचते हैं, अच्छा मैं बाबा को याद करता हूँ, 2-3 मिनट याद रहती है फिर भूल जाता हूँ। याद हवा मुआफिक उड़ जाती है, बच्चे ट्राय करके देखो। सहज होते भी याद में टाइम तो लगता है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट। मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आपस में बहुत प्यार से रहना है, मिलकर राय निकालनी है कि किस युक्ति से हर एक तक बाप का सन्देश पहुंचायें।
2) यह विनाश का समय है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। योग से आत्मा को पावन बनाना है।
वरदान:ड्रामा के हर राज़ को जान सदा खुश-राज़ी रहने वाले नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी भव!
जो बच्चे नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हैं वे कभी नाराज़ नहीं हो सकते। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट कर दे तो भी राज़ी, क्योंकि ड्रामा के हर राज़ को जानने वाले नाराज नहीं होते। नाराज़ वो होता है जो राज़ को नहीं जानता है इसलिए सदैव यह स्मृति रखो कि भगवान बाप के बच्चे बनकर भी राज़ी नहीं होंगे तो कब होंगे! तो अभी जो खुश भी हैं, राज़ी भी हैं वही बाप के समीप और समान हैं।
स्लोगन: जो व्यर्थ से इनोसेंट रहता है वही सच्चा-सच्चा सेंट (महात्मा) है।
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Details ( Page:- Murali 27-Oct-2017 )
HINGLISH SUMMARY 27.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe padhai ka bahut kadar rakhna hai. Bimar ho, marne par bhi ho to bhi class me baitho, kaha jata hai gyan amrit mukh me ho tab praan tan se nikle.
Q- Kai bacche bhi Baap se bemukh karne ke nimitt ban jate hain-kab aur kaise?
A- Jo aapas me bhai-behno se roothkar padhai chhod dete hain aur guru ke nindak ban jaate hain, unhe dekh anek Baap se bemukh ho jate. Aaj achcha padhte kal padhai chhod dete to dusro ko keh na sake ki tum padho. Aise bacche oonch pad se banchit ho jate hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Ghar ka kaam karte bhi samay nikaal roohani seva zaroor karni hai. Apne ko service badhane ka jimmevar samajhna hai. Disservice nahi karni hai.
2) Padhane wala swayang Supreme teacher hai isiliye padhai ka bahut-bahut kadar rakhna hai. Kisi bhi haalat me padhai miss nahi karni hai.
Vardaan:-- Samay aur paristhiti pramaan apni shrest sthiti banane wale Ast shakti Sampann bhava
Slogan:- "Jo karm hum karenge hume dekh aur karenge" -yah slogan sada smriti me rahe to karm shrest ho jayenge.
HINDI MURAI in DETAILS 27.10.17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई का बहुत कदर रखना है। बीमार हो, मरने पर भी हो तो भी क्लास में बैठो, कहा जाता ज्ञान अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकले”
प्रश्न: कई बच्चे भी बाप से बेमुख करने के निमित्त बन जाते हैं - कब और कैसे?
उत्तर:
जो आपस में भाई-बहनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं और गुरू के निंदक बन जाते हैं, उन्हें देख अनेक बाप से बेमुख हो जाते। आज अच्छा पढ़ते कल पढ़ाई छोड़ देते तो दूसरों को कह न सकें कि तुम पढ़ो। ऐसे बच्चे ऊंच पद से वंचित हो जाते हैं।
गीत:- महफिल में जल उठी शमा.... ओम् शान्ति।
गीत का अर्थ बच्चों ने समझा - जिन्होंने यह गीत बनाया है, वह उनका अर्थ नहीं जानते। देखो कितने वेद, शास्त्र, उपनिषद बनाये हैं, परन्तु एक भी यथार्थ अर्थ को नहीं जानते। यथार्थ अर्थ न जानने के कारण वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ मनी करते हैं। बाप समझाते हैं तुमने बहुत-बहुत मन्दिर, वेद, उपनिषद आदि बनाये हैं। यज्ञ-जप-तप किये हैं। कितना पैसा खर्च किया है। यह बाप किसको समझाते हैं, जो जीते जी मरकर बाप के बनते हैं। तो तुम बाप के बने हो तो गोया जीते जी मरे हुए हो। तो अब बाप के साथ चलने की तैयारी करनी है। यह नहीं कि वहाँ तुम्हारी कोई बर्थ डे या बरसी आदि मनायेंगे। यहाँ गाँधी की कितने धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे नहीं कि शिवबाबा ज्ञान देकर चला जायेगा तो फिर तुम सतयुग में उनकी जयन्ती मनायेंगे, नहीं। आधाकल्प जो भी शरीर छोड़ेंगे तो उनकी बरसी, क्रियाक्रम नहीं करेंगे। गऊदान करना, पित्रों को खिलाना, आदि नहीं होगा क्योंकि दान किया जाता है कि दूसरे जन्म में मिले। सतयुग में तुम इस समय की प्रालब्ध खाते हो। तो भक्ति की रसम-रिवाज और ज्ञान की रसम-रिवाज में अन्तर है। जो भी विशालबुद्धि वाले हैं वह इन बातों को समझेंगे और जो कल्प पहले विशालबुद्धि बने होंगे वही अब बनेंगे क्योंकि फिर से वही पार्ट बजाना है।
गीत सुना चारों तरफ लगाये फेरे.. फिर भी हरदम दूर रहे.. बाप कहते हैं तुमने भक्ति मार्ग में कितना माथा मारा है फिर भी मुझसे मिल न सके क्योंकि जब मैं आऊं तब तो मुझे मिल सको। मैं आता ही हूँ कल्प-कल्प संगमयुग पर। लोग कह देते हैं कि परमात्मा युगे-युगे आता है। फिर कहते हैं परमात्मा के 24 अवतार हैं। तो यह रांग है ना। मुझे बुलाते हैं कि पतित-पावन आओ, आकर पतितों को पावन बनाओ। तो अब तुम्हारी युद्ध है माया रावण से। तुम्हारी कोई स्थूल युद्ध नहीं है। तुम रावण पर जीत पाते हो। उसमें भी मुख्य योद्धा कौन है? काम। तो इस विकार पर जीत पानी है अर्थात् पवित्र बनना है। जब खुद पवित्र बनते हो तो बच्चों को भी पवित्र बनाना पड़े, ताकि वह भी विश्व के मालिक बन जायें। अगर अभी तुम उन्हों को वर्सा देंगे तो क्या देंगे? ठिक्कर ठोबर देंगे। अच्छा देखो - अमेरिका है, वह क्या है? ठिक्कर ठोबर है क्योंकि अब सब खत्म होना है। अब देखो मरेंगे कैसे? जैसे पहाड़ों पर जब बर्फ का तूफान आता है तो पंछी आदि सब खत्म हो जाते हैं। तो यह बाम्बस के तूफान भी ऐसे हैं। एकदम मरते रहेंगे मच्छरों सदृश्य। तुम जानते हो कि हम देखेंगे कि कैसे सब मर रहे हैं। लड़ाई में देखो कितने मरते हैं। यहाँ मौत सबके सिर पर है। सतयुग में मौत का भी डर नहीं क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता। तो बाप ऐसी दुनिया में ले जाते हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। यह सुप्रीम टीचर भी है, तो बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। बहुत हैं जिनको पढ़ाई का कदर नहीं है। समझो कोई सख्त बीमार है, मरने पर है, उसको भी क्लास में ले आना चाहिए। कहते हैं ज्ञान अमृत मुख में हो, गंगा का तट हो.... तब प्राण तन से निकले। तो पढ़ाई का इतना कदर होना चाहिए। अगर लाचारी हालत में क्लास में नहीं ले जा सकते हो तो उनको घर में भी शिवबाबा याद कराना चाहिए। परन्तु पढ़ाई पर बच्चों का पूरा ध्यान नहीं है। बाबा कहते हैं रजिस्टर ले आओ तो मुझे मालूम पड़ेगा कि कहाँ तक कौन पढ़ता है, और बाबा पूछते भी हैं यह खुद पढ़ता औरों को पढ़ाता है? क्योंकि इसी धन्धे में ही कमाई है। बाकी सब धन्धों में है धूल। उन ब्राह्मणों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारे पास है सच। तुम सचखण्ड की स्थापना कर रहे हो। तुम्हारे ऊपर बड़ी जवाबदारी है, इसलिए खबरदारी रखनी है। मेहनत है, पढ़ना और पढ़ाना है। ऐसे नहीं सिर्फ पढ़ना है। तुम प्रवृत्ति मार्ग वाले हो, 8 घण्टा भल घर का काम करो। गवर्मेन्ट भी कायदा निकालती है कि 8 घण्टा काम करो। आगे तो जब स्टीम्बर बाहर से रात को आते थे तो सारी-सारी रात भी दुकान खोलकर काम करते थे। तुमको भी घर के काम से फारिग हो फिर इस सर्विस में लग जाना है। सर्विस करना गवर्मेन्ट खुद सिखलाती है। खिलाती, पिलाती है तो उनकी सर्विस भी करते हैं। यहाँ भी तुमको बाप सिखलाते हैं तो तुमको आन गॉडली सर्विस करनी है। सिर्फ ओनली सर्विस नहीं। ओनली हो गई सिर्फ अपनी बुद्धि की, खुद को पवित्र बनाना। परन्तु हमको तो भारत को स्वर्ग बनाना है। तो तुम्हारे ऊपर बहुत जिम्मेवारी है। जैसे उस सेना पर जिम्मेवारी रहती है। चीफ कमान्डर, कैप्टन आदि पर अधिक जवाबदारी रहती है। यहाँ भी ऐसे हैं। जो अच्छे-अच्छे बच्चे सेन्टर खोलते हैं वह हो गये कमान्डर। तो उन पर जवाबदारी है। तो यह हर एक को देखना है कि हम सर्विस के बजाए कहाँ डिससर्विस तो नहीं करते हैं। बहुत बच्चे हैं जो भाई-बहिनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह नहीं समझते कि पढ़ाई छोड़ने से गुरू के निंदक ठौर नहीं पा सकेंगे अर्थात् सतयुग में ऊंच पद नहीं मिलेगा। यहाँ बाप बच्चों का रजिस्टर मंगाते हैं, उससे समझ जाते हैं। जैसे स्कूल में बाप, टीचर रजिस्टर से समझ जाते हैं कि यह बच्चा कहाँ तक पढ़ता होगा! कई बच्चे होते हैं जो सारा दिन खेलते रहते हैं और छुट्टी के टाइम पर घर आ जाते हैं कि हम पढ़कर आये हैं। किन्हों के माँ बाप तो रजिस्टर भी नहीं देखते, तो उन्हों को मालूम भी नहीं पड़ता। किन्हों के माँ-बाप ध्यान में रखते हैं तो बच्चा अच्छी तरह पढ़ जाये। यहाँ शिवबाबा अन्तर्यामी है। साकार को रजिस्टर दिखाना पड़े। बच्चे कहते हैं बाबा ऐसे तूफान आते हैं। बाबा कह देते हैं कि यह तूफान तो आयेंगे। यह सब तूफान पहले मेरे पास ही आते हैं क्योंकि जब तक इनको अनुभव न हो तो बच्चों को कैसे समझा सकें। अच्छा तुमको माया ने सारी रात हैरान किया, नींद भी नहीं करने दी, टाइम भी वेस्ट किया! यह भी उनका फर्ज है, टकरायेगी जरूर। बाकी तुम्हारा काम है बाप को इतना ही याद कर माया को भगाना। कई बच्चे हैं जो थोड़ी भी माया आती है तो चले जाते हैं, जैसे वैद्य लोग कह देते हैं यह दवाई लेने से बीमारी उथलेगी। परन्तु कई लोग ऐसे होते हैं जो जरा सी बीमारी ने उथल खाई तो उस वैद्य को छोड़ दूसरे के पास चले जाते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। ज्ञान को छोड़ साधू सन्तों के पास चले जाते हैं। फिर कहते हैं कि सब तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहो, शादी करो। आप कहते हो शादी करके पवित्र रहो। यह फिर कौन सी मुसीबत है! अरे तुम कहते हो हमको गृहस्थ व्यवहार में रह राजा जनक के मुआफिक जीवनमुक्ति चाहिए, तो फिर प्रवृत्ति में पवित्र रहना पड़े। कई फिर कह देते बात तो ठीक है। बाकी मंजिल ऊंची है। ऐसा कह डर जाते हैं। ऊंच तो जाना ही है ना। देलवाड़ा मन्दिर में भी है कि नीचे तपस्या कर रहे हैं, ऊपर में उनकी प्रालब्ध स्वर्ग है। तो ऊंच मंजिल तो है ही। कहते हैं ना कि चढ़े तो चाखे प्रेम रस... यानी बैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर, इसलिए बड़ी सावधानी से चलना पड़ता है। डरना नहीं है।
कहते हैं यह गीता की अथॉरिटी है। गीतायें तो आजकल बहुत हैं। टैगोर गीता, गाँधी गीता आदि... आजकल जो घर से रूठते वह गीता का अर्थ कर देते और अपना नाम डाल देते हैं। एक गीता में लिखा है कि बैगन खाने से यह होगा, भिण्डी खाने से यह होगा..... यह बाबा भी रोज़ गीता का पाठ करते थे। जहाँ भी जाते थे, राजाओं के पास भी जाते थे तो गीता का पाठ जरूर करते थे। मनुष्य समझते हैं भगत ठगत नहीं होते। परन्तु जितना भगत ठगते हैं, उतना कोई नहीं। तो बाबा कहते हैं - बच्चे पढ़ाई को नहीं छोड़ना। नहीं तो माया अजगर खा जायेगी फिर पछताना पड़ेगा। जब धर्मराजपुरी में एक-एक जन्म का साक्षात्कार करते सजायें खाते हैं तो बात मत पूछो। मुक्ति और जीवनमुक्ति को तो कोई मनुष्य जानते ही नहीं क्योंकि वह समझते हैं कि सुख काग विष्टा समान है। तो समझते हैं कि स्वर्ग के सुख भी ऐसे होंगे क्योंकि सुना है कि त्रेतायुग में भी सीता चुराई गई तो वह भी दु:ख है। अब तुम जानते हो कि स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। यह भारत की ही कहानी है। बाकी और धर्म वाले इस ड्रामा के अन्दर बाईप्लाट हैं। भारतवासियों के ही 84 जन्म हैं और धर्म वाले तो 84 जन्म नहीं लेते। कहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. अब इस अर्थ को नहीं जानते हैं। गाते ही रहते हैं, जानते तो कुछ भी नहीं। यह ब्रह्मा भी बेगर था ना, इसने भी बहुत गुरू किये हुए थे। परन्तु है सब ठगी। तब तो बाप कहते हैं ना सर्व धर्मानि परितज्य... वह इसका अर्थ थोड़ेही जानते हैं। भल गीता पढ़ते हैं परन्तु जैसे जंगली तोते। तुम कण्ठी वाले बन विजय माला में पिरो जायेंगे। दुनिया वाले इन बातों को क्या जानें। उन्हों को अगर तुम लिटरेचर दो तो फेंक देते हैं। वे लोग क्या जाने ज्ञान रत्नों को। तुम बच्चे जो कल्प पहले देवता धर्म के थे, अब वही ब्राह्मण बने हो। जो अब देवता बनेंगे वही कल्प-कल्प नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार देवता बनेंगे और तो देवता बन न सकें। यह सैपलिंग लग रहा है ना। वह गवर्मेन्ट तो कांटों का सैपलिंग लगाती है। यहाँ पाण्डव गवमेन्ट देवता धर्म की सैपलिंग लगाते हैं। कितना फ़र्क है। जब देवता धर्म का सैपलिंग पूरा होगा तब ही इस पुरानी दुनिया का विनाश होगा। तो विनाश के आसार तुम देख ही रहे हो कि कैसे यौवनों और कौरवों की लड़ाई लगनी है, ड्रामानुसार, नथिंगन्यु। कोई नई बात नहीं है। नहीं तो क्यों कहा कि रक्त की नदियां बहेंगी। कोई हिन्दू थोड़ेही आपस में लड़ेंगे। यह वार ही है यौवनों और कौरवों की और हम भी इस युद्ध पर हैं। वी आर एट वार। जैसे वहाँ भी कमान्डर देखते रहते हैं ना कि लड़ाई ठीक तरह चल रही है वा नहीं। कोई ट्रेटर तो नहीं है! ट्रेटर के लिए बड़ी भारी सजा होती है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। अगर कोई बाप का बनकर ट्रेटर बन जाते हैं तो धर्मराजपुरी में बहुत भारी सजा मिलती है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। जब काशी कलवट खाते हैं, बलि चढ़ते हैं तो उस समय अनेक जन्म के पापों की सजा भोगते हैं। फिर दूसरे जन्म में नयेसिर से कर्म शुरू करते हैं। मुक्ति में तो कोई जाते नहीं। कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया। परन्तु जाता तो कोई भी नहीं। बाप को बुलाते हैं - पतित-पावन आओ। सर्व का सद्गति दाता एक ही है। यह तो समझ की बात है ना। बाप आते हैं तो कईयों को गति सद्गति दे जाते हैं। परमात्मा ने अब आर्डीनेन्स निकाला है कि पवित्र बनो। कहते हैं कि दुनिया कैसे चलेगी। अरे तुम कहते हो खाने के लिए नहीं है, प्रजा कम होनी चाहिए फिर कहते हो दुनिया कैसे चलेगी! तुम बच्चों को अच्छी रीति समझाना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा जरूर करनी है। अपने को सर्विस बढ़ाने का जिम्मेवार समझना है। डिससर्विस नहीं करनी है।
2) पढ़ाने वाला स्वयं सुप्रीम टीचर है इसलिए पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर रखना है। किसी भी हालत में पढाई मिस नहीं करनी है।
वरदान:समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अष्ट शक्ति सम्पन्न भव!
जो बच्चे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हैं वो हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाते हैं। उन्हें अष्ट शक्तियां इष्ट और अष्ट रत्न बना देती हैं। ऐसे अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्मायें जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति सहज बना लेती हैं। उनके हर कदम में सफलता समाई रहती है। कोई भी परिस्थिति उन्हें श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती।
स्लोगन: जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे” - यह स्लोगन सदा स्मृति में रहे तो कर्म श्रेष्ठ हो जायेंगे।
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Mithe bacche - Tumhe padhai ka bahut kadar rakhna hai. Bimar ho, marne par bhi ho to bhi class me baitho, kaha jata hai gyan amrit mukh me ho tab praan tan se nikle.
Q- Kai bacche bhi Baap se bemukh karne ke nimitt ban jate hain-kab aur kaise?
A- Jo aapas me bhai-behno se roothkar padhai chhod dete hain aur guru ke nindak ban jaate hain, unhe dekh anek Baap se bemukh ho jate. Aaj achcha padhte kal padhai chhod dete to dusro ko keh na sake ki tum padho. Aise bacche oonch pad se banchit ho jate hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Ghar ka kaam karte bhi samay nikaal roohani seva zaroor karni hai. Apne ko service badhane ka jimmevar samajhna hai. Disservice nahi karni hai.
2) Padhane wala swayang Supreme teacher hai isiliye padhai ka bahut-bahut kadar rakhna hai. Kisi bhi haalat me padhai miss nahi karni hai.
Vardaan:-- Samay aur paristhiti pramaan apni shrest sthiti banane wale Ast shakti Sampann bhava
Slogan:- "Jo karm hum karenge hume dekh aur karenge" -yah slogan sada smriti me rahe to karm shrest ho jayenge.
HINDI MURAI in DETAILS 27.10.17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई का बहुत कदर रखना है। बीमार हो, मरने पर भी हो तो भी क्लास में बैठो, कहा जाता ज्ञान अमृत मुख में हो तब प्राण तन से निकले”
प्रश्न: कई बच्चे भी बाप से बेमुख करने के निमित्त बन जाते हैं - कब और कैसे?
उत्तर:
जो आपस में भाई-बहनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं और गुरू के निंदक बन जाते हैं, उन्हें देख अनेक बाप से बेमुख हो जाते। आज अच्छा पढ़ते कल पढ़ाई छोड़ देते तो दूसरों को कह न सकें कि तुम पढ़ो। ऐसे बच्चे ऊंच पद से वंचित हो जाते हैं।
गीत:- महफिल में जल उठी शमा.... ओम् शान्ति।
गीत का अर्थ बच्चों ने समझा - जिन्होंने यह गीत बनाया है, वह उनका अर्थ नहीं जानते। देखो कितने वेद, शास्त्र, उपनिषद बनाये हैं, परन्तु एक भी यथार्थ अर्थ को नहीं जानते। यथार्थ अर्थ न जानने के कारण वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ मनी करते हैं। बाप समझाते हैं तुमने बहुत-बहुत मन्दिर, वेद, उपनिषद आदि बनाये हैं। यज्ञ-जप-तप किये हैं। कितना पैसा खर्च किया है। यह बाप किसको समझाते हैं, जो जीते जी मरकर बाप के बनते हैं। तो तुम बाप के बने हो तो गोया जीते जी मरे हुए हो। तो अब बाप के साथ चलने की तैयारी करनी है। यह नहीं कि वहाँ तुम्हारी कोई बर्थ डे या बरसी आदि मनायेंगे। यहाँ गाँधी की कितने धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे नहीं कि शिवबाबा ज्ञान देकर चला जायेगा तो फिर तुम सतयुग में उनकी जयन्ती मनायेंगे, नहीं। आधाकल्प जो भी शरीर छोड़ेंगे तो उनकी बरसी, क्रियाक्रम नहीं करेंगे। गऊदान करना, पित्रों को खिलाना, आदि नहीं होगा क्योंकि दान किया जाता है कि दूसरे जन्म में मिले। सतयुग में तुम इस समय की प्रालब्ध खाते हो। तो भक्ति की रसम-रिवाज और ज्ञान की रसम-रिवाज में अन्तर है। जो भी विशालबुद्धि वाले हैं वह इन बातों को समझेंगे और जो कल्प पहले विशालबुद्धि बने होंगे वही अब बनेंगे क्योंकि फिर से वही पार्ट बजाना है।
गीत सुना चारों तरफ लगाये फेरे.. फिर भी हरदम दूर रहे.. बाप कहते हैं तुमने भक्ति मार्ग में कितना माथा मारा है फिर भी मुझसे मिल न सके क्योंकि जब मैं आऊं तब तो मुझे मिल सको। मैं आता ही हूँ कल्प-कल्प संगमयुग पर। लोग कह देते हैं कि परमात्मा युगे-युगे आता है। फिर कहते हैं परमात्मा के 24 अवतार हैं। तो यह रांग है ना। मुझे बुलाते हैं कि पतित-पावन आओ, आकर पतितों को पावन बनाओ। तो अब तुम्हारी युद्ध है माया रावण से। तुम्हारी कोई स्थूल युद्ध नहीं है। तुम रावण पर जीत पाते हो। उसमें भी मुख्य योद्धा कौन है? काम। तो इस विकार पर जीत पानी है अर्थात् पवित्र बनना है। जब खुद पवित्र बनते हो तो बच्चों को भी पवित्र बनाना पड़े, ताकि वह भी विश्व के मालिक बन जायें। अगर अभी तुम उन्हों को वर्सा देंगे तो क्या देंगे? ठिक्कर ठोबर देंगे। अच्छा देखो - अमेरिका है, वह क्या है? ठिक्कर ठोबर है क्योंकि अब सब खत्म होना है। अब देखो मरेंगे कैसे? जैसे पहाड़ों पर जब बर्फ का तूफान आता है तो पंछी आदि सब खत्म हो जाते हैं। तो यह बाम्बस के तूफान भी ऐसे हैं। एकदम मरते रहेंगे मच्छरों सदृश्य। तुम जानते हो कि हम देखेंगे कि कैसे सब मर रहे हैं। लड़ाई में देखो कितने मरते हैं। यहाँ मौत सबके सिर पर है। सतयुग में मौत का भी डर नहीं क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता। तो बाप ऐसी दुनिया में ले जाते हैं। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। यह सुप्रीम टीचर भी है, तो बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। बहुत हैं जिनको पढ़ाई का कदर नहीं है। समझो कोई सख्त बीमार है, मरने पर है, उसको भी क्लास में ले आना चाहिए। कहते हैं ज्ञान अमृत मुख में हो, गंगा का तट हो.... तब प्राण तन से निकले। तो पढ़ाई का इतना कदर होना चाहिए। अगर लाचारी हालत में क्लास में नहीं ले जा सकते हो तो उनको घर में भी शिवबाबा याद कराना चाहिए। परन्तु पढ़ाई पर बच्चों का पूरा ध्यान नहीं है। बाबा कहते हैं रजिस्टर ले आओ तो मुझे मालूम पड़ेगा कि कहाँ तक कौन पढ़ता है, और बाबा पूछते भी हैं यह खुद पढ़ता औरों को पढ़ाता है? क्योंकि इसी धन्धे में ही कमाई है। बाकी सब धन्धों में है धूल। उन ब्राह्मणों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारे पास है सच। तुम सचखण्ड की स्थापना कर रहे हो। तुम्हारे ऊपर बड़ी जवाबदारी है, इसलिए खबरदारी रखनी है। मेहनत है, पढ़ना और पढ़ाना है। ऐसे नहीं सिर्फ पढ़ना है। तुम प्रवृत्ति मार्ग वाले हो, 8 घण्टा भल घर का काम करो। गवर्मेन्ट भी कायदा निकालती है कि 8 घण्टा काम करो। आगे तो जब स्टीम्बर बाहर से रात को आते थे तो सारी-सारी रात भी दुकान खोलकर काम करते थे। तुमको भी घर के काम से फारिग हो फिर इस सर्विस में लग जाना है। सर्विस करना गवर्मेन्ट खुद सिखलाती है। खिलाती, पिलाती है तो उनकी सर्विस भी करते हैं। यहाँ भी तुमको बाप सिखलाते हैं तो तुमको आन गॉडली सर्विस करनी है। सिर्फ ओनली सर्विस नहीं। ओनली हो गई सिर्फ अपनी बुद्धि की, खुद को पवित्र बनाना। परन्तु हमको तो भारत को स्वर्ग बनाना है। तो तुम्हारे ऊपर बहुत जिम्मेवारी है। जैसे उस सेना पर जिम्मेवारी रहती है। चीफ कमान्डर, कैप्टन आदि पर अधिक जवाबदारी रहती है। यहाँ भी ऐसे हैं। जो अच्छे-अच्छे बच्चे सेन्टर खोलते हैं वह हो गये कमान्डर। तो उन पर जवाबदारी है। तो यह हर एक को देखना है कि हम सर्विस के बजाए कहाँ डिससर्विस तो नहीं करते हैं। बहुत बच्चे हैं जो भाई-बहिनों से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह नहीं समझते कि पढ़ाई छोड़ने से गुरू के निंदक ठौर नहीं पा सकेंगे अर्थात् सतयुग में ऊंच पद नहीं मिलेगा। यहाँ बाप बच्चों का रजिस्टर मंगाते हैं, उससे समझ जाते हैं। जैसे स्कूल में बाप, टीचर रजिस्टर से समझ जाते हैं कि यह बच्चा कहाँ तक पढ़ता होगा! कई बच्चे होते हैं जो सारा दिन खेलते रहते हैं और छुट्टी के टाइम पर घर आ जाते हैं कि हम पढ़कर आये हैं। किन्हों के माँ बाप तो रजिस्टर भी नहीं देखते, तो उन्हों को मालूम भी नहीं पड़ता। किन्हों के माँ-बाप ध्यान में रखते हैं तो बच्चा अच्छी तरह पढ़ जाये। यहाँ शिवबाबा अन्तर्यामी है। साकार को रजिस्टर दिखाना पड़े। बच्चे कहते हैं बाबा ऐसे तूफान आते हैं। बाबा कह देते हैं कि यह तूफान तो आयेंगे। यह सब तूफान पहले मेरे पास ही आते हैं क्योंकि जब तक इनको अनुभव न हो तो बच्चों को कैसे समझा सकें। अच्छा तुमको माया ने सारी रात हैरान किया, नींद भी नहीं करने दी, टाइम भी वेस्ट किया! यह भी उनका फर्ज है, टकरायेगी जरूर। बाकी तुम्हारा काम है बाप को इतना ही याद कर माया को भगाना। कई बच्चे हैं जो थोड़ी भी माया आती है तो चले जाते हैं, जैसे वैद्य लोग कह देते हैं यह दवाई लेने से बीमारी उथलेगी। परन्तु कई लोग ऐसे होते हैं जो जरा सी बीमारी ने उथल खाई तो उस वैद्य को छोड़ दूसरे के पास चले जाते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं। ज्ञान को छोड़ साधू सन्तों के पास चले जाते हैं। फिर कहते हैं कि सब तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहो, शादी करो। आप कहते हो शादी करके पवित्र रहो। यह फिर कौन सी मुसीबत है! अरे तुम कहते हो हमको गृहस्थ व्यवहार में रह राजा जनक के मुआफिक जीवनमुक्ति चाहिए, तो फिर प्रवृत्ति में पवित्र रहना पड़े। कई फिर कह देते बात तो ठीक है। बाकी मंजिल ऊंची है। ऐसा कह डर जाते हैं। ऊंच तो जाना ही है ना। देलवाड़ा मन्दिर में भी है कि नीचे तपस्या कर रहे हैं, ऊपर में उनकी प्रालब्ध स्वर्ग है। तो ऊंच मंजिल तो है ही। कहते हैं ना कि चढ़े तो चाखे प्रेम रस... यानी बैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर, इसलिए बड़ी सावधानी से चलना पड़ता है। डरना नहीं है।
कहते हैं यह गीता की अथॉरिटी है। गीतायें तो आजकल बहुत हैं। टैगोर गीता, गाँधी गीता आदि... आजकल जो घर से रूठते वह गीता का अर्थ कर देते और अपना नाम डाल देते हैं। एक गीता में लिखा है कि बैगन खाने से यह होगा, भिण्डी खाने से यह होगा..... यह बाबा भी रोज़ गीता का पाठ करते थे। जहाँ भी जाते थे, राजाओं के पास भी जाते थे तो गीता का पाठ जरूर करते थे। मनुष्य समझते हैं भगत ठगत नहीं होते। परन्तु जितना भगत ठगते हैं, उतना कोई नहीं। तो बाबा कहते हैं - बच्चे पढ़ाई को नहीं छोड़ना। नहीं तो माया अजगर खा जायेगी फिर पछताना पड़ेगा। जब धर्मराजपुरी में एक-एक जन्म का साक्षात्कार करते सजायें खाते हैं तो बात मत पूछो। मुक्ति और जीवनमुक्ति को तो कोई मनुष्य जानते ही नहीं क्योंकि वह समझते हैं कि सुख काग विष्टा समान है। तो समझते हैं कि स्वर्ग के सुख भी ऐसे होंगे क्योंकि सुना है कि त्रेतायुग में भी सीता चुराई गई तो वह भी दु:ख है। अब तुम जानते हो कि स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। यह भारत की ही कहानी है। बाकी और धर्म वाले इस ड्रामा के अन्दर बाईप्लाट हैं। भारतवासियों के ही 84 जन्म हैं और धर्म वाले तो 84 जन्म नहीं लेते। कहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. अब इस अर्थ को नहीं जानते हैं। गाते ही रहते हैं, जानते तो कुछ भी नहीं। यह ब्रह्मा भी बेगर था ना, इसने भी बहुत गुरू किये हुए थे। परन्तु है सब ठगी। तब तो बाप कहते हैं ना सर्व धर्मानि परितज्य... वह इसका अर्थ थोड़ेही जानते हैं। भल गीता पढ़ते हैं परन्तु जैसे जंगली तोते। तुम कण्ठी वाले बन विजय माला में पिरो जायेंगे। दुनिया वाले इन बातों को क्या जानें। उन्हों को अगर तुम लिटरेचर दो तो फेंक देते हैं। वे लोग क्या जाने ज्ञान रत्नों को। तुम बच्चे जो कल्प पहले देवता धर्म के थे, अब वही ब्राह्मण बने हो। जो अब देवता बनेंगे वही कल्प-कल्प नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार देवता बनेंगे और तो देवता बन न सकें। यह सैपलिंग लग रहा है ना। वह गवर्मेन्ट तो कांटों का सैपलिंग लगाती है। यहाँ पाण्डव गवमेन्ट देवता धर्म की सैपलिंग लगाते हैं। कितना फ़र्क है। जब देवता धर्म का सैपलिंग पूरा होगा तब ही इस पुरानी दुनिया का विनाश होगा। तो विनाश के आसार तुम देख ही रहे हो कि कैसे यौवनों और कौरवों की लड़ाई लगनी है, ड्रामानुसार, नथिंगन्यु। कोई नई बात नहीं है। नहीं तो क्यों कहा कि रक्त की नदियां बहेंगी। कोई हिन्दू थोड़ेही आपस में लड़ेंगे। यह वार ही है यौवनों और कौरवों की और हम भी इस युद्ध पर हैं। वी आर एट वार। जैसे वहाँ भी कमान्डर देखते रहते हैं ना कि लड़ाई ठीक तरह चल रही है वा नहीं। कोई ट्रेटर तो नहीं है! ट्रेटर के लिए बड़ी भारी सजा होती है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। अगर कोई बाप का बनकर ट्रेटर बन जाते हैं तो धर्मराजपुरी में बहुत भारी सजा मिलती है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। जब काशी कलवट खाते हैं, बलि चढ़ते हैं तो उस समय अनेक जन्म के पापों की सजा भोगते हैं। फिर दूसरे जन्म में नयेसिर से कर्म शुरू करते हैं। मुक्ति में तो कोई जाते नहीं। कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया। परन्तु जाता तो कोई भी नहीं। बाप को बुलाते हैं - पतित-पावन आओ। सर्व का सद्गति दाता एक ही है। यह तो समझ की बात है ना। बाप आते हैं तो कईयों को गति सद्गति दे जाते हैं। परमात्मा ने अब आर्डीनेन्स निकाला है कि पवित्र बनो। कहते हैं कि दुनिया कैसे चलेगी। अरे तुम कहते हो खाने के लिए नहीं है, प्रजा कम होनी चाहिए फिर कहते हो दुनिया कैसे चलेगी! तुम बच्चों को अच्छी रीति समझाना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) घर का काम करते भी समय निकाल रूहानी सेवा जरूर करनी है। अपने को सर्विस बढ़ाने का जिम्मेवार समझना है। डिससर्विस नहीं करनी है।
2) पढ़ाने वाला स्वयं सुप्रीम टीचर है इसलिए पढ़ाई का बहुत-बहुत कदर रखना है। किसी भी हालत में पढाई मिस नहीं करनी है।
वरदान:समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अष्ट शक्ति सम्पन्न भव!
जो बच्चे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हैं वो हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाते हैं। उन्हें अष्ट शक्तियां इष्ट और अष्ट रत्न बना देती हैं। ऐसे अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्मायें जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति सहज बना लेती हैं। उनके हर कदम में सफलता समाई रहती है। कोई भी परिस्थिति उन्हें श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती।
स्लोगन: जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे” - यह स्लोगन सदा स्मृति में रहे तो कर्म श्रेष्ठ हो जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali 28-Oct-2017 )
HINGLISH MURALI - 28.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Savere-savere ooth yaad me baithne ka abhyas dalo, bhojan par bhi ek do ko Baap ki yaad dilao, yaad karte- karte tum pass with honour ho jayenge.
Q- Kis ek kami ke kaaran baccho ki report Baap ke paas aati hai?
A- Kai bacche avi tak prem swaroop nahi bane hain. Mukh se dukh dene wale bol bolte rehte hain isiliye Baap ke paas report aati hai. Baccho ko bahut prem se chalna hai. Agar swayang me he koi avgoon roopi bhoot hoga to dusro ka kaise nikalega, isiliye Devtaon jaisa prem swaroop banna hai, bhoot nikaal dena hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Dhanda adi karte bhi Swadarshan chakradhari bankar rehna hai. Ek do ko Baap ki yaad dilani hai. Kitni bhi parikshyaein aa jaye to bhi smruti me zaroor rehna hai._
2) Bikaro ka daan dekar fir kabhi wapas nahi lena. Kisi ko bhi dukh nahi dena. Krodh nahi karna hai. Andar jo bhoot hai unhe nikaal dena hai.
Vardaan:--Chitt ki prasannata dwara duwaon ke bimaan me udne wale Santoostmani bhava.
Slogan:-- Sachche dil se data, bidhata, bardata ko razi karne wale he roohani mouj me rehte hain.
HINDI DETAILS MURALI –28/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठने का अभ्यास डालो, भोजन पर भी एक दो को बाप की याद दिलाओ, याद करते-करते तुम पास विद ऑनर हो जायेंगे”
प्रश्न:किस एक कमी के कारण बच्चों की रिपोर्ट बाप के पास आती है?
उत्तर:
कई बच्चे अभी तक प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं। मुख से दु:ख देने वाले बोल बोलते रहते हैं इसलिए बाप के पास रिपोर्ट आती है। बच्चों को बहुत प्रेम से चलना है। अगर स्वयं में ही कोई अवगुण रूपी भूत होगा तो दूसरों का कैसे निकलेगा, इसलिए देवताओं जैसा प्रेम स्वरूप बनना है, भूत निकाल देना है।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज..... ओम् शान्ति।
बच्चे गरीब-निवाज़ बाप को जान चुके हैं और बाप की याद में बैठे रहते हैं। भल ऑखों से किसको भी देखें, कर्मेन्द्रियों से कर्म भी करें परन्तु गाया जाता है हाथों से कर्म करते रहो, दिल माशूक तरफ लगाते रहो। ब्राह्मण कुल भूषण जानते हैं और उनसे ही बाप बात करते हैं कि आधाकल्प तुमने बाप को याद किया। ड्रामा अनुसार अब तुमको बाप की स्मृति आई है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। सारी दुनिया विस्मृति में है। बाप की रचना को और बाप के पतित से पावन बनाने वा सर्व की सद्गति करने के कर्तव्य को कोई भी नहीं जानते। तुम रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुमको स्मृति आई कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, हम 84 का चक्र कैसे लगाते हैं, जिन्होंने सतयुग से लेकर कलियुग के अन्त तक पार्ट बजाया है, वही अभी भी बजायेंगे। सतयुग से लेकर कलियुग तक जन्म लेते नीचे उतरते आये हैं। अब कलियुग अन्त में तुम्हारी चढ़ती कला है। कहते हैं चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। तो तुमको सारी स्मृति आई है, इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा, नष्टोमोहा। किस द्वारा स्मृति आई है? बाप द्वारा। अपने आप स्मृति नहीं आई। तुम जानते हो हम आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। यह शरीर तो लौकिक बाप ने दिया। अब पारलौकिक बाप कहते हैं यह पुराने शरीर का भान छोड़ो, जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ता है और नई लेता है। यह बात सतयुग से लगती है। तो तुम भी सतयुग से लेकर खाल छोड़ना शुरू करेंगे। अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है। बाप कहते हैं - बाकी थोड़ा समय है। तुमको धीरज मिला है, तुम खुशी में हो कि हम फिर से बाप द्वारा सुख का वर्सा पा रहे हैं। सुख का वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना। यह बात कोई मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आती। वह लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे तो उनकी बुद्धि में यह नहीं आयेगा कि यह कौन हैं! यह तो भक्ति मार्ग में हाथ जोड़कर कहते रहते हैं तुम मात-पिता..... शिवबाबा तो सबसे बड़ा ठहरा। शिवबाबा बागवान भी है क्योंकि नये दैवी बगीचे का कलम लगाते हैं। तो खुद माली भी है और हाथ पकड़ कर साथ ले जाते हैं। तो बाबा माली, बागवान और खिवैया कैसे है - यह सब तुम बच्चे ही जानते हो। यह सब अनेक नाम हैं, उनको लिबरेटर भी कहते हैं। याद भी उनको करना है। बाबा कहते हैं यहाँ आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। हमने तो शिवबाबा को अपना बनाया है। ब्रह्मा ने भी उनको अपना बनाया है। तो हम उनको ही क्यों न याद करें। चित्र में भी दिखाया है - सभी शिव को मानते हैं। बाबा आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा न कह जीवात्मा कहेंगे क्योंकि जब आत्मा अकेली है तो बोल नहीं सकती। शरीर बिगर आत्मा, आत्मा से बात नहीं करती। परमधाम में क्या परमात्मा आत्मा से बात करेंगे? भल कह देते क्राइस्ट को परमात्मा ने भेजा परन्तु वहाँ परमात्मा बोलता नहीं है, वहाँ इशारा भी नहीं होता। ड्रामा अनुसार आत्मा आपेही पार्ट बजाने नीचे आ जाती है। आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। तो आत्मा नीचे आकर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। शरीर का नाम तो सबका अलग है। आत्मा का नाम तो आत्मा ही है। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाते हैं। अब हमको स्मृति आई है और कोई की याद नहीं होनी चाहिए क्योंकि पुरानी दुनिया में पुराना पार्ट, पुराना शरीर छोड़ नई दुनिया में जाना है। वहाँ नया शरीर हमको मिलना है। तो इससे मतलब निकलता है कि अभी 5 विकारों को छोड़ना है, तो कितनी मुश्किलात होती है।
देखो, बच्चे लिखते हैं - काम, क्रोध का तूफान आता है। तो बाबा कहते हैं बच्चे दे दान तो छूटे ग्रहण। इस समय आत्मा पर ग्रहण लगा हुआ है। पहले तुम 16 कला सम्पूर्ण थे, अब नो कला है। जैसे चन्द्रमा की भी पूर्णमासी के बाद धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। अन्त में जरा सी लकीर रह जाती है। तुम्हारी भी अभी वही अवस्था है। बाबा कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। अगर विकारों का दान देकर फिर वापिस लिया तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। यहाँ विकारों की ही बात है। पैसे की बात नहीं। हरिश्चन्द्र का मिसाल......धन दान में देकर वापिस नहीं लेना चाहिए। वास्तव में है विकारों की बात। विकार दान में देकर वापिस नहीं लेने चाहिए। दिल अन्दर देखते रहो कि हमारी दिल बाबा से लगी हुई है, जिससे हमारा जन्म-जन्मान्तर का ग्रहण छूटा है। समय तो लगता है, एकदम तो नहीं छूटता। जो कर्मभोग रहा हुआ है उसकी निशानी है बीमारी। तूफान आते हैं, इसका कारण पूरा योग नहीं है। बाप कहते हैं और संग तोड़ मुझ एक संग जोड़ो। और सतसंगों में माशुक को जानते नहीं। यह भी नहीं जानते कि आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है। पहले हमारी बुद्धि में भी नहीं था तो औरों की बुद्धि में कैसे होगा! जो हम देवता घराने के थे, वह भी नहीं जानते थे। अब तुमको स्मृति आई है कि हम ब्राह्मण हैं फिर सतयुग में प्रालब्ध शुरू हो जायेगी फिर जो कर्म हर एक ने सतयुग में किये थे वही रिपीट करेंगे। संस्कार इमर्ज होते जायेंगे। यह जब बाबा की महिमा करते हैं - ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर.... तो हम भी प्रेम सीख रहे हैं। हमारे मुख से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिए जो किसको दु:ख मिले। अगर किसी को दु:ख दिया तो समझना चाहिए - हमारे अन्दर भूत है फिर लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। बाप के बने हैं तो लक्ष्मी को वरने लायक बनना चाहिए। अगर कोई भूत रह गया तो त्रेता में चले जायेंगे। बच्चों में क्रोध नहीं होना चाहिए। बड़े प्रेम से चलना चाहिए। देखो, बाबा के कितने बच्चे हैं तो भी बाबा क्रोध थोड़ेही करते हैं। तो तुमको भी बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है। अभी कई बच्चे प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं। कभी-कभी रिपोर्ट आती है तो वह भी समझ जाते हैं कि इनमें भूत है, जिसमें खुद भूत है वह औरों का क्या निकालेंगे। बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है और यहाँ ही बनना है। देवता प्रेम स्वरूप हैं ना। देखो, लक्ष्मी-नारायण का चित्र कितना खींचता है तो हमको भी ऐसा बनना है। तुमको पति क्रोध करता है तो भी प्रेम से बात करनी है, यह नहीं उनमें भूत हैं तो मुझ में भी आ जाए। नहीं, मेरे में जो अवगुण हैं कैसे भी करके अवगुणों को निकालना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। किसी ने कहा लौकिक बाप गुस्सा करता है, तो मैंने कहा कि जब वह क्रोध करता है तो तुम अच्छे-अच्छे फूल चढ़ाओ। तो वह वन्डर खाये, फिर वह ठण्डा हो जायेगा। बड़ा युक्ति से समझाना है क्योंकि रावणराज्य है ना। हम हैं राम की सम्प्रदाय। खुद न बनें तो दूसरों को क्या बनायेंगे इसलिए स्थापना में देरी पड़ती है। एक तो प्रेम से चलना है, दूसरा स्मृति में रहना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। धन्धा तो करना ही है इसलिए सुबह का समय बहुत अच्छा है। कहते हैं ना सवेरे सोना... सवेरे उठना... इसलिए सवेरे-सवेरे उठ यहाँ आकर बैठो तो 5 मिनट भी याद ठहरेगी। फिर धीरे-धीरे आदत पड़ने से याद पक्की हो जायेगी। अच्छा खाना खाते हो तो देखो कि कितना समय बाबा की याद में खाया! अगर सारा समय याद किया तो वह भी बड़ी बहादुरी है। भोजन पर एक दो को इशारा देना है कि बाप को याद करो। एक-एक गिट्टी पर याद दिलाओ। हमारा है ही सहजयोग। अभी बुद्धि में ज्ञान आया है परमपिता परमात्मा को सर्व शक्तिमान् कहते हैं तो उनमें भला क्या शक्ति है। यह नहीं कि बाम्ब्स बनाने की शक्ति है। नहीं, उनको याद करने से विकर्म विनाश हो जाते हैं। यह शक्ति है ना। देखो है कितना भोला और शक्ति कितनी है। यथार्थ रीति याद करने में मेहनत है ना। तो मेहनत करनी चाहिए। सुबह का समय अच्छा होता है। भक्ति में भी सवेरे-सवेरे उठते हैं, ज्ञान में भी सवेरे का समय बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं मैं कल्प में एक ही बार आता हूँ, तुमको साथ ले जाने के लिए तो बिल्कुल खुशी खुशी से जाना है। दु:खधाम से निकलना है। ऐसी स्मृति होगी तो डरेंगे नहीं। कितनी भी परीक्षायें आये तो भी स्मृति पक्की रहनी चाहिए। ऐसी अवस्था जमानी है। अब तुम बच्चों को हम सो, सो हम का अर्थ भी समझाया है। हम सो परमात्मा नहीं, लेकिन परमात्मा का बच्चा हूँ। यह हो गया हम सो के चक्र का दर्शन। इस याद से ही खाद निकलेगी। खाद निकालने का समय ही है अमृतवेला। तो पास विद आनर बनने के लिए कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाले बाप को याद करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) धन्धा आदि करते भी स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है। एक दो को बाप की याद दिलानी है। कितनी भी परीक्षायें आ जायें तो भी स्मृति में जरूर रहना है।
2) विकारों का दान देकर फिर कभी वापस नहीं लेना। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। क्रोध नहीं करना है। अन्दर जो भूत हैं उन्हें निकाल देना है।
वरदान:चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ने वाले सन्तुष्टमणी भव!
सन्तुष्टमणि उन्हें कहा जाता जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हो। तपस्या द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त कर लेना - यही तपस्या की सिद्धि है। सन्तुष्टमणि वह है जिसका चित सदा प्रसन्न हो। प्रसन्नता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में हो, सुख चैन की स्थिति में हो। ऐसी सन्तुष्टमणियां स्वयं को सर्व की दुआओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेंगी।
स्लोगन:सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी करने वाले ही रुहानी मौज में रहते हैं।
1) 'बदनसीब और खुशनसीब बनने का फाउण्डेशन क्या है?'
दनसीबी और खुशनसीबी, अब यह दो शब्दों का मदार किस पर चलता है? यह तो हम जानते हैं कि खुशनसीब बनाने वाला परमात्मा और बदनसीब बनाने वाला खुद ही मनुष्य है। जब मनुष्य सर्वदा सुखी है तो उन्हों की अच्छी किस्मत कहते हैं और जब मनुष्य अपने को दु:खी समझते हैं तो वो अपने को बदनसीब समझते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। यह समझना बड़ी मूर्खता है। परमात्मा तो हमें खुशनसीब बनाता है परन्तु तकदीर को बिगाड़ना वा बनाना यह सब कर्मों के ऊपर ही मदार है। यह सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है परन्तु मनुष्य इस राज़ न जानने के कारण परमात्मा के ऊपर दोष रखते हैं। अब देखो मनुष्य अपने को सुखी रखने के लिये कितनी माया के तरीके निकालते हैं फिर उस ही माया से कोई अपने को सुखी समझते हैं और कोई फिर उस ही माया का सन्यास कर माया को छोड़ने से अपने को सुखी समझते हैं, मतलब तो कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं परन्तु इतने तरीके करते भी रिजल्ट दु:ख के तरफ जा रही है। जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पॉवर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं।
2) 'अजपाजाप अर्थात् निरंतर योग अटूट योग'
जिस समय ओम् शान्ति कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है मैं आत्मा सालिग्राम उस ज्योति स्वरूप परमात्मा की संतान है हम भी वही पिता ज्योतिर्बिन्दू परमात्मा के मुआफिक आकार वाली हैं। बाकी हम सालिग्राम बच्चे हैं तो इन्हों को अपने ज्योति स्वरूप परमात्मा के साथ योग रखना है जिससे ही अपने को योग रखना और लाइट माइट का वर्सा लेना है। तभी तो गीता में स्वयं भगवान के महावाक्य है मुझ ज्योति स्वरूप आकारी रूप में स्थित हो जाओ, इसको ही अजपाजाप कहा जाता है। अजपाजाप माना कोई भी मंत्र जपने के सिवाए नेचुरल उस परमात्मा की याद में रहना, इसको ही पूर्ण योग कहते हैं, योग का मतलब है एक ही योगेश्वर परमात्मा की याद में रहना। तो जो आत्मायें उस परमात्मा की याद में रहती हैं, उन्हों को योगी अथवा योगिनियां कहा जाता है। जब उस योग अर्थात् याद में निरंतर रहें तब ही विकर्मों और पापों का बोझ नष्ट होता है और आत्मायें पवित्र बन जिससे फिर भविष्य जन्म देवताई प्रालब्ध पाते हैं। अब यह चाहिए नॉलेज तब ही योग पूरा लग सकता है तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहना, यह है सच्चा ज्ञान। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Mithe bacche - Savere-savere ooth yaad me baithne ka abhyas dalo, bhojan par bhi ek do ko Baap ki yaad dilao, yaad karte- karte tum pass with honour ho jayenge.
Q- Kis ek kami ke kaaran baccho ki report Baap ke paas aati hai?
A- Kai bacche avi tak prem swaroop nahi bane hain. Mukh se dukh dene wale bol bolte rehte hain isiliye Baap ke paas report aati hai. Baccho ko bahut prem se chalna hai. Agar swayang me he koi avgoon roopi bhoot hoga to dusro ka kaise nikalega, isiliye Devtaon jaisa prem swaroop banna hai, bhoot nikaal dena hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Dhanda adi karte bhi Swadarshan chakradhari bankar rehna hai. Ek do ko Baap ki yaad dilani hai. Kitni bhi parikshyaein aa jaye to bhi smruti me zaroor rehna hai._
2) Bikaro ka daan dekar fir kabhi wapas nahi lena. Kisi ko bhi dukh nahi dena. Krodh nahi karna hai. Andar jo bhoot hai unhe nikaal dena hai.
Vardaan:--Chitt ki prasannata dwara duwaon ke bimaan me udne wale Santoostmani bhava.
Slogan:-- Sachche dil se data, bidhata, bardata ko razi karne wale he roohani mouj me rehte hain.
HINDI DETAILS MURALI –28/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठने का अभ्यास डालो, भोजन पर भी एक दो को बाप की याद दिलाओ, याद करते-करते तुम पास विद ऑनर हो जायेंगे”
प्रश्न:किस एक कमी के कारण बच्चों की रिपोर्ट बाप के पास आती है?
उत्तर:
कई बच्चे अभी तक प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं। मुख से दु:ख देने वाले बोल बोलते रहते हैं इसलिए बाप के पास रिपोर्ट आती है। बच्चों को बहुत प्रेम से चलना है। अगर स्वयं में ही कोई अवगुण रूपी भूत होगा तो दूसरों का कैसे निकलेगा, इसलिए देवताओं जैसा प्रेम स्वरूप बनना है, भूत निकाल देना है।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज..... ओम् शान्ति।
बच्चे गरीब-निवाज़ बाप को जान चुके हैं और बाप की याद में बैठे रहते हैं। भल ऑखों से किसको भी देखें, कर्मेन्द्रियों से कर्म भी करें परन्तु गाया जाता है हाथों से कर्म करते रहो, दिल माशूक तरफ लगाते रहो। ब्राह्मण कुल भूषण जानते हैं और उनसे ही बाप बात करते हैं कि आधाकल्प तुमने बाप को याद किया। ड्रामा अनुसार अब तुमको बाप की स्मृति आई है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। सारी दुनिया विस्मृति में है। बाप की रचना को और बाप के पतित से पावन बनाने वा सर्व की सद्गति करने के कर्तव्य को कोई भी नहीं जानते। तुम रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुमको स्मृति आई कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, हम 84 का चक्र कैसे लगाते हैं, जिन्होंने सतयुग से लेकर कलियुग के अन्त तक पार्ट बजाया है, वही अभी भी बजायेंगे। सतयुग से लेकर कलियुग तक जन्म लेते नीचे उतरते आये हैं। अब कलियुग अन्त में तुम्हारी चढ़ती कला है। कहते हैं चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। तो तुमको सारी स्मृति आई है, इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा, नष्टोमोहा। किस द्वारा स्मृति आई है? बाप द्वारा। अपने आप स्मृति नहीं आई। तुम जानते हो हम आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। यह शरीर तो लौकिक बाप ने दिया। अब पारलौकिक बाप कहते हैं यह पुराने शरीर का भान छोड़ो, जैसे सर्प पुरानी खाल छोड़ता है और नई लेता है। यह बात सतयुग से लगती है। तो तुम भी सतयुग से लेकर खाल छोड़ना शुरू करेंगे। अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है। बाप कहते हैं - बाकी थोड़ा समय है। तुमको धीरज मिला है, तुम खुशी में हो कि हम फिर से बाप द्वारा सुख का वर्सा पा रहे हैं। सुख का वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना। यह बात कोई मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आती। वह लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे तो उनकी बुद्धि में यह नहीं आयेगा कि यह कौन हैं! यह तो भक्ति मार्ग में हाथ जोड़कर कहते रहते हैं तुम मात-पिता..... शिवबाबा तो सबसे बड़ा ठहरा। शिवबाबा बागवान भी है क्योंकि नये दैवी बगीचे का कलम लगाते हैं। तो खुद माली भी है और हाथ पकड़ कर साथ ले जाते हैं। तो बाबा माली, बागवान और खिवैया कैसे है - यह सब तुम बच्चे ही जानते हो। यह सब अनेक नाम हैं, उनको लिबरेटर भी कहते हैं। याद भी उनको करना है। बाबा कहते हैं यहाँ आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। हमने तो शिवबाबा को अपना बनाया है। ब्रह्मा ने भी उनको अपना बनाया है। तो हम उनको ही क्यों न याद करें। चित्र में भी दिखाया है - सभी शिव को मानते हैं। बाबा आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा न कह जीवात्मा कहेंगे क्योंकि जब आत्मा अकेली है तो बोल नहीं सकती। शरीर बिगर आत्मा, आत्मा से बात नहीं करती। परमधाम में क्या परमात्मा आत्मा से बात करेंगे? भल कह देते क्राइस्ट को परमात्मा ने भेजा परन्तु वहाँ परमात्मा बोलता नहीं है, वहाँ इशारा भी नहीं होता। ड्रामा अनुसार आत्मा आपेही पार्ट बजाने नीचे आ जाती है। आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। तो आत्मा नीचे आकर शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। शरीर का नाम तो सबका अलग है। आत्मा का नाम तो आत्मा ही है। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाते हैं। अब हमको स्मृति आई है और कोई की याद नहीं होनी चाहिए क्योंकि पुरानी दुनिया में पुराना पार्ट, पुराना शरीर छोड़ नई दुनिया में जाना है। वहाँ नया शरीर हमको मिलना है। तो इससे मतलब निकलता है कि अभी 5 विकारों को छोड़ना है, तो कितनी मुश्किलात होती है।
देखो, बच्चे लिखते हैं - काम, क्रोध का तूफान आता है। तो बाबा कहते हैं बच्चे दे दान तो छूटे ग्रहण। इस समय आत्मा पर ग्रहण लगा हुआ है। पहले तुम 16 कला सम्पूर्ण थे, अब नो कला है। जैसे चन्द्रमा की भी पूर्णमासी के बाद धीरे-धीरे कला कम होती जाती है। अन्त में जरा सी लकीर रह जाती है। तुम्हारी भी अभी वही अवस्था है। बाबा कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण। अगर विकारों का दान देकर फिर वापिस लिया तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। यहाँ विकारों की ही बात है। पैसे की बात नहीं। हरिश्चन्द्र का मिसाल......धन दान में देकर वापिस नहीं लेना चाहिए। वास्तव में है विकारों की बात। विकार दान में देकर वापिस नहीं लेने चाहिए। दिल अन्दर देखते रहो कि हमारी दिल बाबा से लगी हुई है, जिससे हमारा जन्म-जन्मान्तर का ग्रहण छूटा है। समय तो लगता है, एकदम तो नहीं छूटता। जो कर्मभोग रहा हुआ है उसकी निशानी है बीमारी। तूफान आते हैं, इसका कारण पूरा योग नहीं है। बाप कहते हैं और संग तोड़ मुझ एक संग जोड़ो। और सतसंगों में माशुक को जानते नहीं। यह भी नहीं जानते कि आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है। पहले हमारी बुद्धि में भी नहीं था तो औरों की बुद्धि में कैसे होगा! जो हम देवता घराने के थे, वह भी नहीं जानते थे। अब तुमको स्मृति आई है कि हम ब्राह्मण हैं फिर सतयुग में प्रालब्ध शुरू हो जायेगी फिर जो कर्म हर एक ने सतयुग में किये थे वही रिपीट करेंगे। संस्कार इमर्ज होते जायेंगे। यह जब बाबा की महिमा करते हैं - ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर.... तो हम भी प्रेम सीख रहे हैं। हमारे मुख से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिए जो किसको दु:ख मिले। अगर किसी को दु:ख दिया तो समझना चाहिए - हमारे अन्दर भूत है फिर लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। बाप के बने हैं तो लक्ष्मी को वरने लायक बनना चाहिए। अगर कोई भूत रह गया तो त्रेता में चले जायेंगे। बच्चों में क्रोध नहीं होना चाहिए। बड़े प्रेम से चलना चाहिए। देखो, बाबा के कितने बच्चे हैं तो भी बाबा क्रोध थोड़ेही करते हैं। तो तुमको भी बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है। अभी कई बच्चे प्रेम स्वरूप नहीं बने हैं। कभी-कभी रिपोर्ट आती है तो वह भी समझ जाते हैं कि इनमें भूत है, जिसमें खुद भूत है वह औरों का क्या निकालेंगे। बड़ा प्रेम स्वरूप बनना है और यहाँ ही बनना है। देवता प्रेम स्वरूप हैं ना। देखो, लक्ष्मी-नारायण का चित्र कितना खींचता है तो हमको भी ऐसा बनना है। तुमको पति क्रोध करता है तो भी प्रेम से बात करनी है, यह नहीं उनमें भूत हैं तो मुझ में भी आ जाए। नहीं, मेरे में जो अवगुण हैं कैसे भी करके अवगुणों को निकालना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। किसी ने कहा लौकिक बाप गुस्सा करता है, तो मैंने कहा कि जब वह क्रोध करता है तो तुम अच्छे-अच्छे फूल चढ़ाओ। तो वह वन्डर खाये, फिर वह ठण्डा हो जायेगा। बड़ा युक्ति से समझाना है क्योंकि रावणराज्य है ना। हम हैं राम की सम्प्रदाय। खुद न बनें तो दूसरों को क्या बनायेंगे इसलिए स्थापना में देरी पड़ती है। एक तो प्रेम से चलना है, दूसरा स्मृति में रहना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। धन्धा तो करना ही है इसलिए सुबह का समय बहुत अच्छा है। कहते हैं ना सवेरे सोना... सवेरे उठना... इसलिए सवेरे-सवेरे उठ यहाँ आकर बैठो तो 5 मिनट भी याद ठहरेगी। फिर धीरे-धीरे आदत पड़ने से याद पक्की हो जायेगी। अच्छा खाना खाते हो तो देखो कि कितना समय बाबा की याद में खाया! अगर सारा समय याद किया तो वह भी बड़ी बहादुरी है। भोजन पर एक दो को इशारा देना है कि बाप को याद करो। एक-एक गिट्टी पर याद दिलाओ। हमारा है ही सहजयोग। अभी बुद्धि में ज्ञान आया है परमपिता परमात्मा को सर्व शक्तिमान् कहते हैं तो उनमें भला क्या शक्ति है। यह नहीं कि बाम्ब्स बनाने की शक्ति है। नहीं, उनको याद करने से विकर्म विनाश हो जाते हैं। यह शक्ति है ना। देखो है कितना भोला और शक्ति कितनी है। यथार्थ रीति याद करने में मेहनत है ना। तो मेहनत करनी चाहिए। सुबह का समय अच्छा होता है। भक्ति में भी सवेरे-सवेरे उठते हैं, ज्ञान में भी सवेरे का समय बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं मैं कल्प में एक ही बार आता हूँ, तुमको साथ ले जाने के लिए तो बिल्कुल खुशी खुशी से जाना है। दु:खधाम से निकलना है। ऐसी स्मृति होगी तो डरेंगे नहीं। कितनी भी परीक्षायें आये तो भी स्मृति पक्की रहनी चाहिए। ऐसी अवस्था जमानी है। अब तुम बच्चों को हम सो, सो हम का अर्थ भी समझाया है। हम सो परमात्मा नहीं, लेकिन परमात्मा का बच्चा हूँ। यह हो गया हम सो के चक्र का दर्शन। इस याद से ही खाद निकलेगी। खाद निकालने का समय ही है अमृतवेला। तो पास विद आनर बनने के लिए कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाले बाप को याद करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) धन्धा आदि करते भी स्वदर्शन चक्रधारी बनकर रहना है। एक दो को बाप की याद दिलानी है। कितनी भी परीक्षायें आ जायें तो भी स्मृति में जरूर रहना है।
2) विकारों का दान देकर फिर कभी वापस नहीं लेना। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। क्रोध नहीं करना है। अन्दर जो भूत हैं उन्हें निकाल देना है।
वरदान:चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ने वाले सन्तुष्टमणी भव!
सन्तुष्टमणि उन्हें कहा जाता जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हो। तपस्या द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त कर लेना - यही तपस्या की सिद्धि है। सन्तुष्टमणि वह है जिसका चित सदा प्रसन्न हो। प्रसन्नता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में हो, सुख चैन की स्थिति में हो। ऐसी सन्तुष्टमणियां स्वयं को सर्व की दुआओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेंगी।
स्लोगन:सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी करने वाले ही रुहानी मौज में रहते हैं।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
1) 'बदनसीब और खुशनसीब बनने का फाउण्डेशन क्या है?'
दनसीबी और खुशनसीबी, अब यह दो शब्दों का मदार किस पर चलता है? यह तो हम जानते हैं कि खुशनसीब बनाने वाला परमात्मा और बदनसीब बनाने वाला खुद ही मनुष्य है। जब मनुष्य सर्वदा सुखी है तो उन्हों की अच्छी किस्मत कहते हैं और जब मनुष्य अपने को दु:खी समझते हैं तो वो अपने को बदनसीब समझते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। यह समझना बड़ी मूर्खता है। परमात्मा तो हमें खुशनसीब बनाता है परन्तु तकदीर को बिगाड़ना वा बनाना यह सब कर्मों के ऊपर ही मदार है। यह सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है परन्तु मनुष्य इस राज़ न जानने के कारण परमात्मा के ऊपर दोष रखते हैं। अब देखो मनुष्य अपने को सुखी रखने के लिये कितनी माया के तरीके निकालते हैं फिर उस ही माया से कोई अपने को सुखी समझते हैं और कोई फिर उस ही माया का सन्यास कर माया को छोड़ने से अपने को सुखी समझते हैं, मतलब तो कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं परन्तु इतने तरीके करते भी रिजल्ट दु:ख के तरफ जा रही है। जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पॉवर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं।
2) 'अजपाजाप अर्थात् निरंतर योग अटूट योग'
जिस समय ओम् शान्ति कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है मैं आत्मा सालिग्राम उस ज्योति स्वरूप परमात्मा की संतान है हम भी वही पिता ज्योतिर्बिन्दू परमात्मा के मुआफिक आकार वाली हैं। बाकी हम सालिग्राम बच्चे हैं तो इन्हों को अपने ज्योति स्वरूप परमात्मा के साथ योग रखना है जिससे ही अपने को योग रखना और लाइट माइट का वर्सा लेना है। तभी तो गीता में स्वयं भगवान के महावाक्य है मुझ ज्योति स्वरूप आकारी रूप में स्थित हो जाओ, इसको ही अजपाजाप कहा जाता है। अजपाजाप माना कोई भी मंत्र जपने के सिवाए नेचुरल उस परमात्मा की याद में रहना, इसको ही पूर्ण योग कहते हैं, योग का मतलब है एक ही योगेश्वर परमात्मा की याद में रहना। तो जो आत्मायें उस परमात्मा की याद में रहती हैं, उन्हों को योगी अथवा योगिनियां कहा जाता है। जब उस योग अर्थात् याद में निरंतर रहें तब ही विकर्मों और पापों का बोझ नष्ट होता है और आत्मायें पवित्र बन जिससे फिर भविष्य जन्म देवताई प्रालब्ध पाते हैं। अब यह चाहिए नॉलेज तब ही योग पूरा लग सकता है तो अपने को आत्मा समझ परमात्मा की याद में रहना, यह है सच्चा ज्ञान। अच्छा। ओम् शान्ति।
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Details ( Page:- Murali 29-Oct-2017 )
HINGLISH MURALI – 29.10.17
Pratah Murli Om Shanti - AVYAKT Babdada Madhuban ( 21-02-83 )
Headline – Shanti ki shakti
Vardan – Sampoornta ki sthiti dwara prakruti ko order karnewale viswa parivartak bhav.
Slogan – Apne sresth bhagya dwara sabka bhagya banate sada bhagwan ki smruti dilate raho.
HINDI DETAILS MURALI –
29/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 21-02-83
“शान्ति की शक्ति”
आज बापदादा अमृतवेले चारों ओर बच्चों के पास चक्कर लगाने गये। चक्कर लगाते हुए बापदादा आज अपनी शक्ति सेना वा पाण्डव सेना सभी की तैयारी देख रहे थे कि कहाँ तक सेना शक्तिशाली शस्त्रधारी एवररेडी हुई है। समय का इंतजार है वा स्वयं सदा ही सम्पन्न रहने का इंतजाम करने वाली है। तो आज बापदादा सेनापति के रूप में सेना को देखने गये। विशेष बात, साइन्स की शक्ति पर साइलेन्स के शक्ति की विजय है। तो साइलेन्स की शक्ति संगठित रूप में और व्यक्तिगत रूप में कहाँ तक प्राप्त कर ली है? वह देख रहे थे। साइलेन्स की शक्ति द्वारा प्रत्यक्ष फल रूप में स्व परिवर्तन वायुमण्डल परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन, संस्कार परिवर्तन कहाँ तक कर सकते हैं वा किया है? तो आज सेना के हरेक सैनिक की साइलेन्स के शक्ति की प्रयोगशाला चेक की, कि कहाँ तक प्रयोग कर सकते हैं?
स्मृति में रहना, वर्णन करना वह भी आवश्यक है लेकिन वर्तमान समय के प्रमाण सर्व आत्मायें प्रत्यक्षफल देखना चाहती हैं। प्रत्यक्षफल अर्थात् प्रैक्टिकल प्रूफ देखने चाहती हैं। तो तन के ऊपर साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करते हैं। ऐसे ही मन के ऊपर, कर्म के ऊपर, सम्बन्ध सम्पर्क में आने से सम्बन्ध सम्पर्क में क्या प्रयोग होता है, कितनी परसेन्टज में होता है - यह विश्व की आत्मायें भी देखने चाहती हैं। हरेक ब्राहमण आत्मा भी स्व में प्रत्यक्ष प्रूफ के रूप में सदा विशेष से विशेष अनुभव करने चाहती है। रिजल्ट में साइलेन्स की शक्ति का जितना महत्व है, उतना उसे विधि पूर्वक प्रयोग में लाने में अभी कम है। चाहना बहुत है, नॉलेज भी है लेकिन प्रयोग करते हुए आगे बढ़ते चलो। साइलेन्स शक्ति के प्राप्ति की महीनता अनुभव करते स्व प्रति वा अन्य प्रति कार्य में लगाना, उसमें अभी और विशेष अटेन्शन चाहिए। विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूसता हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्मा वा विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही हैं। हरेक से चलता फिरता “शान्ति यज्ञ कुण्ड” का अनुभव हो। जैसे आपकी रचना में छोटा सा फायरफ्लाई दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। दूर से ही देखते सब कहेंगे यह फायरफ्लाई आ रहा है, जा रहा है। ऐसे इस बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि यह शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गया है। चारों ओर की अशान्त आत्मायें शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आवें। जैसे प्यासा पानी की तरफ स्वत: ही खिंचता हुआ जाता है। ऐसे आप शान्ति के अवतार आत्माओं की तरफ खिंचे हुए आवें। इसी शान्ति की शक्ति का अभी और अधिक प्रयोग करो। शान्ति की शक्ति वायरलेस से भी तेज आपका संकल्प किसी भी आत्मा प्रति पहुंचा सकती है। जैसे साइन्स की शक्ति परिवर्तन भी कर लेती, वृद्धि भी कर लेती है, विनाश भी कर लेती, रचना भी कर लेती, हाहाकार भी मचा देती और आराम भी दे देती। लेकिन साइलेन्स की शक्ति का विशेष यंत्र है - 'शुभ संकल्प' इस संकल्प के यंत्र द्वारा जो चाहो वह सिद्धि स्वरूप में देख सकते हो। पहले स्व के प्रति प्रयोग करके देखो। तन की व्याधि के ऊपर प्रयोग करके देखो, तो शान्ति की शक्ति द्वारा कर्मबन्धन का रूप, मीठे सम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। बन्धन सदा कडुवा लगता है, सम्बन्ध मीठा लगता है। यह कर्मभोग - कर्म का कड़ा बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना भोग रही हूँ यह नहीं, लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब किताब का दृश्य भी देखते रहेंगे इसलिए तन के साथ-साथ मन की कमजोरी, डबल बीमारी होने के कारण जो कड़े भोग के रूप में दिखाई देता है, वह अति न्यारा और बाप का प्यारा होने के कारण डबल शक्ति अनुभव होने से कर्मभोग के हिसाब की शक्ति के ऊपर वह डबल शक्ति विजय प्राप्त कर लेगी। बीमारी चाहे कितनी भी बड़ी हो लेकिन दु:ख वा दर्द का अनुभव नहीं करेंगे। जिसको दूसरी भाषा में आप कहते हो कि सूली से कांटे के समान अनुभव होगा। ऐसे टाइम में प्रयोग करके देखो। कई बच्चे करते भी हैं। इसी प्रकार से तन पर, मन पर, संस्कार पर अनुभव करते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। यह रीसर्च करो, इसमें एक दो को नहीं देखो। यह क्या करते, इसने कहाँ किया है। पुराने करते वा नहीं करते, बड़े नहीं करते छोटे करते, यह नहीं देखो। पहले मैं इस अनुभव में आगे आ जाऊं क्योंकि यह अपने आन्तरिक पुरूषार्थ की बात है। जब ऐसे व्यक्तिगत रूप में इसी प्रयोग में लग जायेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे तक एक एक के शान्ति की शक्ति का संगठित रूप में विश्व के सामने प्रभाव पड़ेगा। अभी फर्स्ट स्टैप विश्व शान्ति की कानफ्रेंस कर निमंत्रण दिया लेकिन शान्ति की शक्ति का पुंज जब सर्व के संगठित रूप में प्रख्यात होगा तो आपको निमंत्रण आयेंगे कि हे शक्ति, शान्ति के अवतार इस अशान्ति के स्थान पर आकर शान्ति दो। जैसे सेवा में अभी भी जहाँ अशान्ति का मौका (मृत्यु) होता है तो आप लोगों को बुलाते हैं कि आओ आकर शान्ति दो। और यह धीरे-धीरे प्रसिद्ध भी होता जा रहा है कि ब्रहमाकुमारियाँ ही शान्ति दे सकती हैं। ऐसे हर अशान्ति के कार्य में आप लोगों को निमंत्रण आयेंगे। जैसे बीमारी के समय सिवाए डाक्टर के कोई याद नहीं आता, ऐसे अशान्ति के कोई भी बातों में सिवाए आप शान्ति अवतारों के और कोई दिखाई नहीं देगा। तो अभी शक्ति सेना, पाण्डव सेना, विशेष शान्ति की शक्ति का प्रयोग करो। प्रयोग करके दिखाओ। शान्ति की शक्ति का केन्द्र प्रत्यक्ष करो। समझा क्या करना है।
आजकल तो डबल विदेशी बच्चों के निमित्त सभी बच्चों को भी खजाना मिलता रहता है। जहाँ से भी जो सभी बच्चे आये हैं। बापदादा सभी तरफ के बच्चों की लगन को देख खुश होते हैं। पाँचों ही खण्डों के भिन्न-भिन्न देश से आये हुए बच्चों को बापदादा देख रहे हैं। सभी ने कमाल की है। जो सभी ने लक्ष्य रखा था उसी प्रमाण प्रैक्टिकल पुरुषार्थ का रूप भी लाया है। विदेश से टोटल कितने वी. आई. पी. आये हैं? (75) और भारत के कितने वी. आई. पी. आये? (700) भारत की विशेषता अखबार वालों की अच्छी रही। और विदेश से 75 भी आये यह कोई कम नहीं। बहुत आये। दूसरे वर्ष फिर बहुत आयेंगे। अभी गेट तो खुल गया ना आने का। पहले तो विदेश की टीचर्स कहती थीं वी. आई. पी. को लाना बड़ा मुश्किल है। ऐसा तो कोई दिखाई नहीं देता। अब तो दिखाई दिया ना। भले विघ्न पड़े यह तो ब्राह्मणों के कार्य में विघ्न न पड़े तो लगन भी लग न सके। अलबेले हो जायें इसलिए ड्रामा अनुसार लगन बढ़ाने के लिए विघ्न पड़ते हैं। अभी एक एक द्वारा आवाज़ सुनकर फिर अनेकों में उमंग आयेगा।
बच्चों ने अच्छी कमाल की है। सर्विस में सबूत अच्छा दिखाया है। सेवा का चांस दिलाने के निमित्त तो बन गये ना। एक द्वारा सहज ही अनेंको तक आवाज तो फैला ना। अमेरिका वालों ने अच्छी मेहनत की। हिम्मत अच्छी की, जयादा से ज्यादा आवाज़ फैलाने वाली निमित्त आत्मा को ड्रामा अनुसार विदेश वालों ने ही लाया ना। भारतवासी बच्चों ने भी मेहनत बहुत अच्छी की। उस मेहनत का फल संख्या अच्छी आई। अभी भारत की विशेष आत्मायें भी आयेंगी। अच्छा।
ऐसे सर्व विदेश से आये हुए बच्चों को और भारत के चारों तरफ के बच्चों को जो सब एक ही विशेष शुद्ध संकल्प में हैं कि विश्व के कोने-कोने में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे - ऐसे शुभ संकल्प लेने वाले, विश्व परिवर्तक विश्व कल्याणकारी, सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1. वरदान भूमि पर आकर वरदान लिया? सबसे बड़े ते बड़ा वरदान है सदा अपने को बाप द्वारा बाप के साथ का अनुभव करना। सदा बाप की याद में अर्थात् सदा साथ में रहना। तो सदा ही खुश रहेंगे, कभी भी कोई भी बात संकल्प में आये तो बाप के साथ में सब समाप्त हो जायेगा और खुशी में झूमते रहेंगे। तो सदा खुश रहने का यह तरीका याद रखना और दूसरों को भी बताते रहना। दूसरों को भी खुशी में रहने का साधन देना। तो आपको सभी आत्मायें खुशी का देवता मानेंगी क्योंकि विश्व में आज सबसे ज्यादा खुशी की आवश्यकता है। वह आप देते जाना। अपना टाइटिल याद रखना कि मैं खुशी का देवता हूँ।
याद और सेवा इसी बैलन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग मिलती रहेगी। बैलेन्स सबसे बड़ी कला है। हर बात में बैलेन्स हो तो नम्बरवन सहज ही बन जायेंगे। बैलेन्स ही अनेक आत्माओं के आगे ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार करायेगा। बैलेन्स को सदा स्मृति में रखते सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते स्वयं भी आगे बढ़ो और औरों को भी बढ़ाओ।
सदा इसी स्मृति में रहो कि बाप को जानने वाली, बाप को पाने वाली कोटों में कोई जो गाई हुई आत्मायें हैं, वह हम हैं। इसी खुशी में रहो तो आपके यह चेहरे चलते फिरते सेवाकेन्द्र हो जायेंगे। जैसे सर्विस सेन्टर पर आकर बाप का परिचय लेते हैं, वैसे आपके हर्षित चेहरे से बाप का परिचय मिलता रहेगा। बापदादा हर बच्चे को ऐसा ही योग्य समझते हैं। इतने सब सेवाकेन्द्र बैठे हैं। तो सदा ऐसे समझो चलते फिरते खाते पीते हमको बाप की सेवा अपनी चलन से व चेहरे से करनी है तो सहज ही निरन्तर योगी बन जायेंगे। जो बच्चे आदि से सेवा में उमंग-उत्साह का सहयोग देते रहे हैं, ऐसी आत्माओं को बापदादा भी सहयोग देते हुए 21 जन्म आराम से रखेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। खाओ, पिओ और स्वर्ग का राज्य भाग्य भोगो। आधाकल्प मेहनत शब्द ही नहीं होगा। ऐसी तकदीर बनाने आये हो।
कुमारों प्रति:- कुमार जीवन में एनर्जी बहुत होती है। कुमार जो चाहे वह कर सकते हैं इसलिए बापदादा कुमारों को देख विशेष खुश होते हैं कि अपनी एनर्जी डिस्ट्रक्शन के बजाए कनस्ट्रक्शन के कार्य में लगाया। एक-एक कुमार विश्व को नया बनाने में अपनी एनर्जी को लगा रहे हैं। कितना श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। एक कुमार 10 का कार्य कर सकते हैं इसलिए कुमारों पर बापदादा को नाज़ है। कुमार जीवन में अपनी जीवन सफल कर ली। ऐसी विशेष आत्मायें हो ना। बहुत अच्छा समय पर जीवन का फैंसला किया। फैंसला करने में कोई गलती तो नहीं की है ना। पक्का है ना। कोई गलत कहकर खींचे तो? चाहे दुनिया की अक्षौणी आत्मायें एक तरफ हो जाएं, आप अकेले हो फिर क्या होगा? बोलो, मैं अकेला नही हूँगा, बाप मेरे साथ है। बापदादा खुश होते हैं - स्वयं की भी जीवन बनाई और अनेकों की जीवन बनाने के निमित्त बने हो। अच्छा!
पत्रों के उत्तर देते हुए, बापदादा ने सभी बच्चों प्रति टेप में याद प्यार भरी
चारों ओर के सभी सिकीलधे स्नेही, सहयोगी, सर्विसएबुल बच्चों के पत्र तो क्या लेकिन दिल के मीठे-मीठे साजों भरे गीत बापदादा ने सुने। जितना बच्चे दिल से याद करते हैं उससे पदमगुणा ज्यादा बापदादा भी बच्चों को याद करते, प्यार करते और इमर्ज करके टोली खिलाते। अभी भी सामने टोली रखी है। सभी बच्चे बाप के सामने हैं। केक काट रहे हैं और सभी बच्चे खा रहे हैं। जो भी बच्चों ने समाचार लिखा है, अपनी अवस्था व सर्विस का, बापदादा ने सुने। सर्विस का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। अभी थोड़ा बहुत जो माया के विघ्न देखते हो, वह भी नथिंग न्यू। माया सिर्फ पेपर लेने आती है। माया से घबराओ मत। खिलौना समझकर खेलो तो माया वार नहीं करेगी। लेकिन आराम से विदाई ले सो जायेगी इसलिए ज्यादा नहीं सोचो यह क्या हुआ, हो गया फुलस्टाप लगाओ और आगे जाकर पदमगुणा जो कुछ रह गया, वह भर लो। बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। बापदादा साथ है, माया की चाल चलने वाली नहीं है इसलिए घबराओ नहीं। खुशी में नाचो, गाओ। अब तो अपना राज्य आया कि आया। हे स्वराज्य अधिकारी, विश्व का राज्य भाग्य आपका इंतजार कर रहा है। अच्छा!
सर्व को बहुत-बहुत यादप्यार और 'निर्विघ्न भव' का वरदान बापदादा दे रहे हैं। जो बच्चे स्थूल धन की कमी के कारण पहुंच नहीं सकते, उन्हें भी बापदादा याद दे रहे हैं। भल धन कम है लेकिन हैं बादशाह क्योंकि आजकल के राजाओं के पास जो नहीं है, वह इन्हीं के पास अविनाशी और जन्म-जन्म के लिए जमा है। बापदादा ऐसे वर्तमान बेगमपुर के बादशाह और भविष्य विश्व के बादशाहों को बहुत-बहुत यादप्यार देते हैं। ऐसे बच्चे दिल से यहाँ हैं शरीर से वहाँ हैं इसलिए बापदादा सम्मुख बच्चों को देख सम्मुख यादप्यार देते हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:सम्पूर्णता की स्थिति द्वारा प्रकृति को आर्डर करने वाले विश्व परिवर्तक भव!
जब आप विश्व परिवर्तक आत्मायें संगठित रूप में सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति से विश्व परिवर्तन का संकल्प करेंगी तब यह प्रकृति सम्पूर्ण हलचल की डांस शुरू करेगी। वायु, धरती, समुद्र, अग्नि... इनकी हलचल ही सफाई करेगी। परन्तु यह प्रकृति आपका आर्डर तब मानेगी जब पहले आपके स्वयं के सहयोगी कर्मेन्द्रियां, मन-बुद्धि-संस्कार आपका आर्डर मानेंगे। साथ-साथ इतनी पावरफुल तपस्या की ऊंची स्थिति हो जो सबका एक साथ संकल्प हो “परिवर्तन” और प्रकृति हाजिर हो जाए।
स्लोगन: अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा सबका भाग्य बनाते सदा भगवान की स्मृति दिलाते रहो।
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Details ( Page:- Murali 30-Oct-2017 )
HINGLISH MURALI - 30.10.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bachhe – baap tumhe gyan ki kasturi dete hai toh ase baap par tumhe kurban jana hai. Mat-pita ko follow kar pavan banana ki sewa karni hai.
Q- Jo Taqdeervan bachhe hai unki nisani kya hogi ?
Ans – Taqdeervan arthat bakhtawar bachhe achhi riti padenge aur padayenge who pakke nischay buddhi honge. Kabhi bhi baap ka hath ni chodenge . Dhande adi mai rahte yeh course bhi uthayenge. Bahut khusi mai rahenge. Parantu jinki taqdeer mai ni hai , who lottery milte hue bhi gawa denge.
Song – Bholanath se nirala …..
Dharna k lie mukhya Sar
1) Sachha brahman banna hai. Andar mai koi khot ni rakhni hai. Swadarshan chakradhari ban shankhdhwani karni hai. Dhanda karte bhi yeh course uthana hai.
2) Baap saman rahamdil ban andho ki lathi banna hai. Mat pita ko follow karne ka unchh purusarth karna hai. Apne pav par khade hona hai, kisi ko bhi adhar nehi banana hai.
Vardan – sada har sankalp aur karm mai brahma baap ko follow karnewale sameep aur saman bhav.
Slogan – Atindriya sukh ka anubhav karna hai toh gopi ballav ki sachhi sachhi gopika bano.
HINDI DETAIL MURALI- 30/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें ज्ञान की कस्तूरी देते हैं तो ऐसे बाप पर तुम्हें कुर्बान जाना है, मात-पिता को फालो कर पावन बनाने की सेवा करनी है”
प्रश्न:जो तकदीरवान बच्चे हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
तकदीरवान अर्थात् बख्तावर बच्चे अच्छी रीति पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे। वह पक्के निश्चय बुद्धि होंगे। कभी भी बाप का हाथ नहीं छोड़ेंगे। धन्धे आदि में रहते यह कोर्स भी उठायेंगे। बहुत खुशी में रहेंगे। परन्तु जिनकी तकदीर में नहीं है, वह लाटरी मिलते हुए भी गँवा देंगे।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...... ओम् शान्ति।
भोला कहा जाता है उनको जो कुछ भी नहीं जानते हैं। अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर हम मनुष्य कितना भोले थे, माया कितना भोला बना देती है। यह भी नहीं जानते कि बाप कौन है। बाप कहकर पुकारना और जानना नहीं, फिर यह भी मालूम नहीं हो कि बाप से क्या प्रापटी मिलती है! तो भोला कहेंगे ना। भोला कहो, बुद्धू कहो, बात एक ही है। इस समय सब बेअक्ल बन पड़े हैं उनको फिर बेअक्ली का भी घमण्ड है। बच्चे, तुम बाप को जानते हो और उनसे सुन रहे हो। बाकी आत्मा को देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। बाबा खुद बैठ सिखाते हैं कि हे आत्मा देही-अभिमानी बनो। अपने को पारलौकिक बाप के बच्चे निश्चय करो। लौकिक बाप को तो जानते हो बाकी तुम इतने भोले हो जो पारलौकिक बाप को नहीं जानते। अब तुम बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि यह बातें परमपिता परमात्मा समझाते हैं। तुम छोटे बच्चे नहीं हो, तुम्हारे आरगन्स तो बड़े हैं। बाप समझाते हैं - अगर अपने को देह समझेंगे तो बाप को याद नहीं कर सकेंगे। अपने को देही-अभिमानी समझो। बच्चे-बच्चे बाप शरीर को नहीं, आत्मा को कहते हैं। और बच्चे, आत्मायें सब शिव को (परमात्मा को) बाबा कहते हैं, किसी आत्मा को वा ब्रह्मा को नहीं कहते। यह भी उनका बच्चा है। अब तुम जानते हो कि हमारा बेहद का बाप इनमें आया है। तो बाप को याद करना पड़े। 84 के चक्र को भी याद करना पड़े। यह बेहद का 5 हजार वर्ष का नाटक है। तुम एक्टर हो। अब तुमको ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का मालूम पड़ा है। तो सारा चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। तुम्हारा नाम कितना बाला है। स्वदर्शन चक्रधारी फिर भविष्य में तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो। 84 जन्मों की कहानी चक्र में सिद्ध होती है। तुम अब बाप के बने हो, यह स्मृति में रखना है। जितना अन्धों की लाठी बनेंगे उतना बाप समझेंगे यह रहमदिल हैं। कहते हैं रहम करो, मेहर करो। तुम जानते हो बाप कौन सी मेहर करते हैं। बाप मिला है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। अब तुमको पैरों पर खड़ा रहना है। जैसे कहते हैं सेन्टर अपने पाँव पर खड़ा हो तो तुमको भी अपने पांव पर खड़ा रहना है। ऊंचे ते ऊंचा पुरुषार्थ करना है, फालो फादर मदर। लौकिक में बच्चे बाप को फालो कर पतित बन जाते हैं। यह तो पारलौकिक बाप के लिए कहा जाता है - उनकी श्रीमत पर चलना है। बाबा मम्मा को देखो धन्धा क्या है? पतितों को पावन बनाने का। और धर्म पितायें जब आते हैं तो उनके धर्म की आत्मायें ऊपर से आती हैं। वहाँ कनवर्ट करने की बात नहीं। यहाँ कनवर्ट करना है, शूद्र को ब्राह्मण बनाना है। इसके लिए तुमको मेहनत करनी पड़ती है। तुम कितना लिटरेचर देते हो। वह देखकर फाड़ देते हैं।
तुम बच्चे हो रूप-बसन्त। जैसे बाप वैसे तुम बच्चे। तुमको ज्ञान की वर्षा करनी है। यह चित्र बड़े अच्छे हैं। त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा जरूरी है, इसमें बाप और वर्सा दोनों ही आ जाते हैं। बाप के बिगर दादे का वर्सा कैसे मिलेगा। कृष्ण का चित्र सबको अच्छा लगता है। बाकी 84 जन्मों की लिखत अच्छी नहीं लगती। उन्हों को चित्र अच्छा लगता है, तुमको विचित्र अच्छा लगता है क्योंकि तुमको बाप ने कहा है “आत्म-अभिमानी भव।” तुम अपने को विचित्र समझते हो तो याद भी विचित्र परमात्मा को करते हो। बाप रचयिता है तो जरूर नई दुनिया ही रचते हैं। उसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी बनाया है और लिखा हुआ है सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... लक्ष्मी-नारायण महाराजा महारानी तो नशा रहता है कि हम बाप को याद कर यह बन रहे हैं। तो सदैव बाबा-बाबा कहते रहो और भविष्य पद को भी याद करो तो सतयुग में चले जायेंगे। जैसे एक मिसाल देते हैं - मैं भैंस हूँ, मैं भैंस हूँ... कहने से भैंस समझने लगा। परन्तु कहने से कोई बन नहीं जाता है। बाकी तुम जानते हो - मैं आत्मा नर से नारायण बन रहा हूँ। अब बेगर हूँ, यह वन्डर है। वहाँ एक तो राज्य नहीं करेंगे। उनकी डिनायस्टी चलती है। उनके बच्चे होंगे। 1250 वर्ष सिर्फ लक्ष्मी-नारायण थोड़ेही राज्य करेंगे। कहते हैं सतयुग की आयु बड़ी है फिर भी प्रजा तो चाहिए। तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए।
तुम किसके आगे भी चित्र रखकर समझाओ कि भारत स्वर्ग था। अब पुरानी दुनिया नर्क है, तो यह पक्का होना चाहिए कि हम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हैं फिर स्वर्गवासी बन रहे हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में राम-सीता का राज्य था, तो सब स्वर्गवासी थे। इस चक्र में 84 का चक्र सिद्ध होता है। झाड़ में फिर कैसे पूज्यनीय से गिरते हैं और पुजारी बनते हैं, यह सिद्ध होता है। तुम कहते हो इस समय सभी नास्तिक हैं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। अब तुम जानते हो कि सब कब्रिस्तान में पड़े हैं। तुम बच्चे गुप्त हो। अंग्रेजी में अन्डरग्राउण्ड कहते हैं। वहाँ कोई अन्डरग्राउण्ड नहीं, अन्डरग्राउण्ड तुम हो। परन्तु तुमको कोई जानते नहीं। यहाँ सम्मुख बैठे हो तो मजा आता है। बेहद का बाप परमधाम से आकर इनमें प्रवेश कर पढ़ाते हैं। चक्र का राज़ समझाते हैं। बाकी सवारी सारा दिन नहीं होती है। बाप कहते हैं मैं सर्विस करता हूँ, बच्चों का नाम निकालने के लिए मैं प्रवेश करता हूँ। तो बाप कहते हैं बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी भव, शंखधारी भव। तुमको ज्ञान का शंख बजाना है। शंख कहो, मुरली कहो, एक ही बात है। उन्होंने कृष्ण को मुरली दिखाई है। कृष्ण तो रत्न जड़ित मुरली बजाते हैं - खेलपाल करने के लिए। वहाँ ज्ञान की मुरली नहीं है। तुम बच्चों को बुद्धि में रखना है कि जैसे कल्प पहले सतयुग में पार्ट बजाया था वैसे अब बजायेंगे। बाकी बाबा से तो वर्सा ले लेवें। परन्तु बच्चे घर में जाते हैं तो भूल जाते हैं। बाप कहते हैं यहाँ से पक्के हो जाओ। धन्धा भल करो परन्तु याद करते रहो। एक सेकेण्ड का कोर्स उठाओ। जैसे बहुत शादी करके भी पढ़ते हैं। तुम भी धन्धे में रहते पढ़ो। कुमार कुमारी के लिए तो बहुत सहज है। सिर्फ यह बुद्धि में रहे मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। ब्रह्मा के लिए नहीं कहा जाता है।
बाबा पूछते हैं कब से निश्चय हुआ? अगर निश्चय है तो ऐसे बाप को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जब तक बाप न कहे कि पढ़कर पढ़ाओ। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। जैसे गरीब को लॉटरी मिलती है तो पागल भी हो जाते हैं। परन्तु यहाँ तो बच्चे धन्धे में जाकर भूल जाते हैं। तो बाबा समझते हैं इतनी बड़ी लॉटरी दी परन्तु पागल हो गये। तकदीर में नहीं है, तब कहा जाता है बख्तावर देखना हो तो यहाँ देखो, .. बाबा तो कहते हैं कल्प के बाद बाबा मिला है। बाबा-बाबा कहते रहो, सवेरे उठकर याद करो, जो प्यारी वस्तु होती है उन पर कुर्बान जाते हैं। हम भी बाबा पर कुर्बान जाते हैं। यह ज्ञान कस्तूरी है। हम हैं भारत का बेड़ा पार करने वाले। सत्य नारायण, अमरनाथ की कथा, तीजरी की कथा सुनाने वाले, सच्चे बाप के सच्चे ब्राह्मण बच्चे, तो अन्दर कोई खोट नहीं होनी चाहिए। खोट होगी तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास 28-3-68
बाप ने समझाया है ऐसी प्रेक्टिस करो, जहाँ सभी कुछ देखते हुए पार्ट बजाते हुए बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे। जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। इस दुनिया को छोड़ हमको अपने घर जाना है। यह ख्याल और कोई की बुद्धि में नहीं होगा। और कोई भी यह समझते नहीं। वह तो समझते हैं यह दुनिया अभी बहुत चलनी है। तुम बच्चे जानते हो हम अभी अपनी नई दुनिया में जा रहे हैं। राजयोग सीख रहे हैं। थोड़े ही समय में हम सतयुगी नई दुनिया में अथवा अमरपुरी में जायेंगे। अभी तुम बदल रहे हो। आसुरी मनुष्य से बदल दैवी मनुष्य बन रहे हो। बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। देवताओं में दैवीगुण होते हैं। वह भी हैं मनुष्य, परन्तु उनमें दैवीगुण नहीं हैं। यहाँ के मनुष्यों में है आसुरी गुण। तुम जानते हो यह आसुरी रावणराज्य फिर न रहेगा। अभी हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। अपने जन्म-जन्मान्तर के पाप भी योगबल से भस्म कर रहे हैं। करते हैं या नहीं वह तो हरेक अपनी गति को जानते। हरेक को अपने को दुर्गति से सद्गति में लाना है अर्थात् सतयुग में जाने लिये पुरुषार्थ करना है। सतयुग में है विश्व की बादशाही। एक ही राज्य होता है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के महाराजन हैं ना। दुनिया को इन बातों का पता नहीं है। वन-वन से इन्हों की राजाई शुरू होती है। तुम जानते हो हम यह बन रहे हैं। बाप अपने से भी बच्चों को ऊंच ले जाते हैं इसलिये बाबा नमस्ते करते हैं। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान लक्की सितारे। तुम लक्की हो। समझते हो बाबा बिल्कुल ठीक अर्थ सहित नमस्ते करते हैं। बाप आकर बहुत सुख घनेरे देते हैं। यह ज्ञान भी बड़ा वन्डरफुल है। तुम्हारी राजाई भी वन्डरफुल है। तुम्हारी आत्मा भी वन्डरफुल है। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का सारा नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। तुमको आप समान बनाने लिये कितनी मेहनत करनी पड़ती है। है कल्प पहले वाली हरेक की तकदीर, फिर भी बाप पुरुषार्थ कराते रहते हैं। यह नहीं बता सकते कि आठ रत्न कौन बनेंगे। बताने का पार्ट ही नहीं। आगे चल तुम अपने पार्ट को भी जान जायेंगे। जो जैसा पुरुषार्थ करेगा ऐसा भाग्य बनायेंगे। बाप है रास्ता बताने वाला, जितना जो उस पर चलेंगे। इनको तो सूक्ष्म वतन में देखते ही है। प्रजापिता ब्रह्मा साथ में बैठा है। ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड का काम। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 5,000 वर्ष लगते हैं। बुद्धि से लगता है बात तो बरोबर ठीक है। भल त्रिमूर्ति बनाते हैं - ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। परन्तु यह कोई नहीं समझते होंगे। अभी तुम समझते हो। तुम कितने पदमापदम भाग्यशाली बच्चे हो। देवताओं के पांव में पदम दिखाते हैं ना। पदमपति नाम भी बाला है। पदमपति बनते भी गरीब साधारण ही हैं। करोड़पति तो कोई आते ही नहीं। 5-7 लाख वाले को साधारण कहेंगे। इस समय 20-40 हजार तो कुछ है नहीं। पदमपति कोई है सो भी एक जन्म के लिये। करके थोड़ा ज्ञान लेंगे। समझ कर स्वाहा तो नहीं करेंगे ना। सभी कुछ स्वाहा करने वाले थे जो पहले आये। फट से सभी का पैसा काम में लग गया। गरीबों का तो लग ही जाता है। साहूकारों को कहा जाता है अभी सर्विस करो। ईश्वरीय सर्विस करनी है तो सेन्टर खोलो। मेहनत भी करो। दैवीगुण भी धारण करो। बाप भी गरीब निवाज कहलाते हैं। भारत इस समय सभी से गरीब है। भारत की ही सभी से जास्ती आदमसुमारी है क्योंकि शुरू में आये हैं ना। जो गोल्डेन एज में थे वही आयरन एज में आये हैं। एकदम गरीब बन पड़े हैं। खर्चा करते करते सभी खत्म कर दिया है। बाप समझाते हैं अभी तुम फिर से देवता बन रहे हो। निराकार गाड तो एक ही है। बलिहारी एक की है दूसरों को समझाने में तुम कितनी मेहनत करते हो। कितने चित्र बनाते हो। आगे चलकर अच्छी रीति समझते जायेंगे। ड्रामा की टिक टिक तो चलती रहती है। इस ड्रामा की टिक टिक को तुम जानते हो। सारी दुनिया की एक्ट हूबहू एक्यूरेट कल्प कल्प रिपीट होती रहती है। सेकण्ड व सेकण्ड चलती रहती है। बाप यह सभी बातें समझाते फिर भी कहते हैं मन्मनाभव। बाप को याद करो। कोई पानी वा आग से पार हो जाते हैं उससे फायदा क्या। इससे कोई आयु थोड़ेही बड़ी हो जाती है।
अच्छा, मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों को बाप दादा का याद प्यार गुडनाईट।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चा ब्राह्मण बनना है। अन्दर में कोई खोट नहीं रखनी हैं। स्वदर्शन चक्रधारी बन शंखध्वनि करनी है। धन्धा करते भी यह कोर्स उठाना है।
2) बाप समान रहमदिल बन अन्धों की लाठी बनना है। मात-पिता को फालो करने का ऊंच पुरुषार्थ करना है। अपने पांव पर खड़े होना है, किसी को भी आधार नहीं बनाना है।
वरदान: सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले समीप और समान भव!
जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, एक बाप दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। कभी दिलशिकस्त नहीं बनें, सदा नथिंगन्यु के पाठ से विजयी रहे, हिमालय जैसी बड़ी बात को भी पहाड़ से रूई बनाए रास्ता निकाला, कभी घबराये नहीं, ऐसे सदा बड़ी दिल रखो, दिलखुश रहो। हर कदम में ब्रह्मा बाप को फालो करो तो समीप और समान बन जायेंगे।
स्लोगन: अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है तो गोपी वल्लभ की सच्ची-सच्ची गोपिका बनो।
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Mithe bachhe – baap tumhe gyan ki kasturi dete hai toh ase baap par tumhe kurban jana hai. Mat-pita ko follow kar pavan banana ki sewa karni hai.
Q- Jo Taqdeervan bachhe hai unki nisani kya hogi ?
Ans – Taqdeervan arthat bakhtawar bachhe achhi riti padenge aur padayenge who pakke nischay buddhi honge. Kabhi bhi baap ka hath ni chodenge . Dhande adi mai rahte yeh course bhi uthayenge. Bahut khusi mai rahenge. Parantu jinki taqdeer mai ni hai , who lottery milte hue bhi gawa denge.
Song – Bholanath se nirala …..
Dharna k lie mukhya Sar
1) Sachha brahman banna hai. Andar mai koi khot ni rakhni hai. Swadarshan chakradhari ban shankhdhwani karni hai. Dhanda karte bhi yeh course uthana hai.
2) Baap saman rahamdil ban andho ki lathi banna hai. Mat pita ko follow karne ka unchh purusarth karna hai. Apne pav par khade hona hai, kisi ko bhi adhar nehi banana hai.
Vardan – sada har sankalp aur karm mai brahma baap ko follow karnewale sameep aur saman bhav.
Slogan – Atindriya sukh ka anubhav karna hai toh gopi ballav ki sachhi sachhi gopika bano.
HINDI DETAIL MURALI- 30/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें ज्ञान की कस्तूरी देते हैं तो ऐसे बाप पर तुम्हें कुर्बान जाना है, मात-पिता को फालो कर पावन बनाने की सेवा करनी है”
प्रश्न:जो तकदीरवान बच्चे हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
तकदीरवान अर्थात् बख्तावर बच्चे अच्छी रीति पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे। वह पक्के निश्चय बुद्धि होंगे। कभी भी बाप का हाथ नहीं छोड़ेंगे। धन्धे आदि में रहते यह कोर्स भी उठायेंगे। बहुत खुशी में रहेंगे। परन्तु जिनकी तकदीर में नहीं है, वह लाटरी मिलते हुए भी गँवा देंगे।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...... ओम् शान्ति।
भोला कहा जाता है उनको जो कुछ भी नहीं जानते हैं। अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर हम मनुष्य कितना भोले थे, माया कितना भोला बना देती है। यह भी नहीं जानते कि बाप कौन है। बाप कहकर पुकारना और जानना नहीं, फिर यह भी मालूम नहीं हो कि बाप से क्या प्रापटी मिलती है! तो भोला कहेंगे ना। भोला कहो, बुद्धू कहो, बात एक ही है। इस समय सब बेअक्ल बन पड़े हैं उनको फिर बेअक्ली का भी घमण्ड है। बच्चे, तुम बाप को जानते हो और उनसे सुन रहे हो। बाकी आत्मा को देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। बाबा खुद बैठ सिखाते हैं कि हे आत्मा देही-अभिमानी बनो। अपने को पारलौकिक बाप के बच्चे निश्चय करो। लौकिक बाप को तो जानते हो बाकी तुम इतने भोले हो जो पारलौकिक बाप को नहीं जानते। अब तुम बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि यह बातें परमपिता परमात्मा समझाते हैं। तुम छोटे बच्चे नहीं हो, तुम्हारे आरगन्स तो बड़े हैं। बाप समझाते हैं - अगर अपने को देह समझेंगे तो बाप को याद नहीं कर सकेंगे। अपने को देही-अभिमानी समझो। बच्चे-बच्चे बाप शरीर को नहीं, आत्मा को कहते हैं। और बच्चे, आत्मायें सब शिव को (परमात्मा को) बाबा कहते हैं, किसी आत्मा को वा ब्रह्मा को नहीं कहते। यह भी उनका बच्चा है। अब तुम जानते हो कि हमारा बेहद का बाप इनमें आया है। तो बाप को याद करना पड़े। 84 के चक्र को भी याद करना पड़े। यह बेहद का 5 हजार वर्ष का नाटक है। तुम एक्टर हो। अब तुमको ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का मालूम पड़ा है। तो सारा चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। तुम्हारा नाम कितना बाला है। स्वदर्शन चक्रधारी फिर भविष्य में तुम चक्रवर्ती राजा बन जाते हो। 84 जन्मों की कहानी चक्र में सिद्ध होती है। तुम अब बाप के बने हो, यह स्मृति में रखना है। जितना अन्धों की लाठी बनेंगे उतना बाप समझेंगे यह रहमदिल हैं। कहते हैं रहम करो, मेहर करो। तुम जानते हो बाप कौन सी मेहर करते हैं। बाप मिला है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। अब तुमको पैरों पर खड़ा रहना है। जैसे कहते हैं सेन्टर अपने पाँव पर खड़ा हो तो तुमको भी अपने पांव पर खड़ा रहना है। ऊंचे ते ऊंचा पुरुषार्थ करना है, फालो फादर मदर। लौकिक में बच्चे बाप को फालो कर पतित बन जाते हैं। यह तो पारलौकिक बाप के लिए कहा जाता है - उनकी श्रीमत पर चलना है। बाबा मम्मा को देखो धन्धा क्या है? पतितों को पावन बनाने का। और धर्म पितायें जब आते हैं तो उनके धर्म की आत्मायें ऊपर से आती हैं। वहाँ कनवर्ट करने की बात नहीं। यहाँ कनवर्ट करना है, शूद्र को ब्राह्मण बनाना है। इसके लिए तुमको मेहनत करनी पड़ती है। तुम कितना लिटरेचर देते हो। वह देखकर फाड़ देते हैं।
तुम बच्चे हो रूप-बसन्त। जैसे बाप वैसे तुम बच्चे। तुमको ज्ञान की वर्षा करनी है। यह चित्र बड़े अच्छे हैं। त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा जरूरी है, इसमें बाप और वर्सा दोनों ही आ जाते हैं। बाप के बिगर दादे का वर्सा कैसे मिलेगा। कृष्ण का चित्र सबको अच्छा लगता है। बाकी 84 जन्मों की लिखत अच्छी नहीं लगती। उन्हों को चित्र अच्छा लगता है, तुमको विचित्र अच्छा लगता है क्योंकि तुमको बाप ने कहा है “आत्म-अभिमानी भव।” तुम अपने को विचित्र समझते हो तो याद भी विचित्र परमात्मा को करते हो। बाप रचयिता है तो जरूर नई दुनिया ही रचते हैं। उसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी बनाया है और लिखा हुआ है सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... लक्ष्मी-नारायण महाराजा महारानी तो नशा रहता है कि हम बाप को याद कर यह बन रहे हैं। तो सदैव बाबा-बाबा कहते रहो और भविष्य पद को भी याद करो तो सतयुग में चले जायेंगे। जैसे एक मिसाल देते हैं - मैं भैंस हूँ, मैं भैंस हूँ... कहने से भैंस समझने लगा। परन्तु कहने से कोई बन नहीं जाता है। बाकी तुम जानते हो - मैं आत्मा नर से नारायण बन रहा हूँ। अब बेगर हूँ, यह वन्डर है। वहाँ एक तो राज्य नहीं करेंगे। उनकी डिनायस्टी चलती है। उनके बच्चे होंगे। 1250 वर्ष सिर्फ लक्ष्मी-नारायण थोड़ेही राज्य करेंगे। कहते हैं सतयुग की आयु बड़ी है फिर भी प्रजा तो चाहिए। तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए।
तुम किसके आगे भी चित्र रखकर समझाओ कि भारत स्वर्ग था। अब पुरानी दुनिया नर्क है, तो यह पक्का होना चाहिए कि हम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हैं फिर स्वर्गवासी बन रहे हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में राम-सीता का राज्य था, तो सब स्वर्गवासी थे। इस चक्र में 84 का चक्र सिद्ध होता है। झाड़ में फिर कैसे पूज्यनीय से गिरते हैं और पुजारी बनते हैं, यह सिद्ध होता है। तुम कहते हो इस समय सभी नास्तिक हैं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। अब तुम जानते हो कि सब कब्रिस्तान में पड़े हैं। तुम बच्चे गुप्त हो। अंग्रेजी में अन्डरग्राउण्ड कहते हैं। वहाँ कोई अन्डरग्राउण्ड नहीं, अन्डरग्राउण्ड तुम हो। परन्तु तुमको कोई जानते नहीं। यहाँ सम्मुख बैठे हो तो मजा आता है। बेहद का बाप परमधाम से आकर इनमें प्रवेश कर पढ़ाते हैं। चक्र का राज़ समझाते हैं। बाकी सवारी सारा दिन नहीं होती है। बाप कहते हैं मैं सर्विस करता हूँ, बच्चों का नाम निकालने के लिए मैं प्रवेश करता हूँ। तो बाप कहते हैं बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी भव, शंखधारी भव। तुमको ज्ञान का शंख बजाना है। शंख कहो, मुरली कहो, एक ही बात है। उन्होंने कृष्ण को मुरली दिखाई है। कृष्ण तो रत्न जड़ित मुरली बजाते हैं - खेलपाल करने के लिए। वहाँ ज्ञान की मुरली नहीं है। तुम बच्चों को बुद्धि में रखना है कि जैसे कल्प पहले सतयुग में पार्ट बजाया था वैसे अब बजायेंगे। बाकी बाबा से तो वर्सा ले लेवें। परन्तु बच्चे घर में जाते हैं तो भूल जाते हैं। बाप कहते हैं यहाँ से पक्के हो जाओ। धन्धा भल करो परन्तु याद करते रहो। एक सेकेण्ड का कोर्स उठाओ। जैसे बहुत शादी करके भी पढ़ते हैं। तुम भी धन्धे में रहते पढ़ो। कुमार कुमारी के लिए तो बहुत सहज है। सिर्फ यह बुद्धि में रहे मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। ब्रह्मा के लिए नहीं कहा जाता है।
बाबा पूछते हैं कब से निश्चय हुआ? अगर निश्चय है तो ऐसे बाप को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जब तक बाप न कहे कि पढ़कर पढ़ाओ। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। जैसे गरीब को लॉटरी मिलती है तो पागल भी हो जाते हैं। परन्तु यहाँ तो बच्चे धन्धे में जाकर भूल जाते हैं। तो बाबा समझते हैं इतनी बड़ी लॉटरी दी परन्तु पागल हो गये। तकदीर में नहीं है, तब कहा जाता है बख्तावर देखना हो तो यहाँ देखो, .. बाबा तो कहते हैं कल्प के बाद बाबा मिला है। बाबा-बाबा कहते रहो, सवेरे उठकर याद करो, जो प्यारी वस्तु होती है उन पर कुर्बान जाते हैं। हम भी बाबा पर कुर्बान जाते हैं। यह ज्ञान कस्तूरी है। हम हैं भारत का बेड़ा पार करने वाले। सत्य नारायण, अमरनाथ की कथा, तीजरी की कथा सुनाने वाले, सच्चे बाप के सच्चे ब्राह्मण बच्चे, तो अन्दर कोई खोट नहीं होनी चाहिए। खोट होगी तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास 28-3-68
बाप ने समझाया है ऐसी प्रेक्टिस करो, जहाँ सभी कुछ देखते हुए पार्ट बजाते हुए बुद्धि बाप की तरफ लगी रहे। जानते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। इस दुनिया को छोड़ हमको अपने घर जाना है। यह ख्याल और कोई की बुद्धि में नहीं होगा। और कोई भी यह समझते नहीं। वह तो समझते हैं यह दुनिया अभी बहुत चलनी है। तुम बच्चे जानते हो हम अभी अपनी नई दुनिया में जा रहे हैं। राजयोग सीख रहे हैं। थोड़े ही समय में हम सतयुगी नई दुनिया में अथवा अमरपुरी में जायेंगे। अभी तुम बदल रहे हो। आसुरी मनुष्य से बदल दैवी मनुष्य बन रहे हो। बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। देवताओं में दैवीगुण होते हैं। वह भी हैं मनुष्य, परन्तु उनमें दैवीगुण नहीं हैं। यहाँ के मनुष्यों में है आसुरी गुण। तुम जानते हो यह आसुरी रावणराज्य फिर न रहेगा। अभी हम दैवीगुण धारण कर रहे हैं। अपने जन्म-जन्मान्तर के पाप भी योगबल से भस्म कर रहे हैं। करते हैं या नहीं वह तो हरेक अपनी गति को जानते। हरेक को अपने को दुर्गति से सद्गति में लाना है अर्थात् सतयुग में जाने लिये पुरुषार्थ करना है। सतयुग में है विश्व की बादशाही। एक ही राज्य होता है। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के महाराजन हैं ना। दुनिया को इन बातों का पता नहीं है। वन-वन से इन्हों की राजाई शुरू होती है। तुम जानते हो हम यह बन रहे हैं। बाप अपने से भी बच्चों को ऊंच ले जाते हैं इसलिये बाबा नमस्ते करते हैं। ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान लक्की सितारे। तुम लक्की हो। समझते हो बाबा बिल्कुल ठीक अर्थ सहित नमस्ते करते हैं। बाप आकर बहुत सुख घनेरे देते हैं। यह ज्ञान भी बड़ा वन्डरफुल है। तुम्हारी राजाई भी वन्डरफुल है। तुम्हारी आत्मा भी वन्डरफुल है। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का सारा नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। तुमको आप समान बनाने लिये कितनी मेहनत करनी पड़ती है। है कल्प पहले वाली हरेक की तकदीर, फिर भी बाप पुरुषार्थ कराते रहते हैं। यह नहीं बता सकते कि आठ रत्न कौन बनेंगे। बताने का पार्ट ही नहीं। आगे चल तुम अपने पार्ट को भी जान जायेंगे। जो जैसा पुरुषार्थ करेगा ऐसा भाग्य बनायेंगे। बाप है रास्ता बताने वाला, जितना जो उस पर चलेंगे। इनको तो सूक्ष्म वतन में देखते ही है। प्रजापिता ब्रह्मा साथ में बैठा है। ब्रह्मा से विष्णु बनना सेकण्ड का काम। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 5,000 वर्ष लगते हैं। बुद्धि से लगता है बात तो बरोबर ठीक है। भल त्रिमूर्ति बनाते हैं - ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। परन्तु यह कोई नहीं समझते होंगे। अभी तुम समझते हो। तुम कितने पदमापदम भाग्यशाली बच्चे हो। देवताओं के पांव में पदम दिखाते हैं ना। पदमपति नाम भी बाला है। पदमपति बनते भी गरीब साधारण ही हैं। करोड़पति तो कोई आते ही नहीं। 5-7 लाख वाले को साधारण कहेंगे। इस समय 20-40 हजार तो कुछ है नहीं। पदमपति कोई है सो भी एक जन्म के लिये। करके थोड़ा ज्ञान लेंगे। समझ कर स्वाहा तो नहीं करेंगे ना। सभी कुछ स्वाहा करने वाले थे जो पहले आये। फट से सभी का पैसा काम में लग गया। गरीबों का तो लग ही जाता है। साहूकारों को कहा जाता है अभी सर्विस करो। ईश्वरीय सर्विस करनी है तो सेन्टर खोलो। मेहनत भी करो। दैवीगुण भी धारण करो। बाप भी गरीब निवाज कहलाते हैं। भारत इस समय सभी से गरीब है। भारत की ही सभी से जास्ती आदमसुमारी है क्योंकि शुरू में आये हैं ना। जो गोल्डेन एज में थे वही आयरन एज में आये हैं। एकदम गरीब बन पड़े हैं। खर्चा करते करते सभी खत्म कर दिया है। बाप समझाते हैं अभी तुम फिर से देवता बन रहे हो। निराकार गाड तो एक ही है। बलिहारी एक की है दूसरों को समझाने में तुम कितनी मेहनत करते हो। कितने चित्र बनाते हो। आगे चलकर अच्छी रीति समझते जायेंगे। ड्रामा की टिक टिक तो चलती रहती है। इस ड्रामा की टिक टिक को तुम जानते हो। सारी दुनिया की एक्ट हूबहू एक्यूरेट कल्प कल्प रिपीट होती रहती है। सेकण्ड व सेकण्ड चलती रहती है। बाप यह सभी बातें समझाते फिर भी कहते हैं मन्मनाभव। बाप को याद करो। कोई पानी वा आग से पार हो जाते हैं उससे फायदा क्या। इससे कोई आयु थोड़ेही बड़ी हो जाती है।
अच्छा, मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों को बाप दादा का याद प्यार गुडनाईट।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चा ब्राह्मण बनना है। अन्दर में कोई खोट नहीं रखनी हैं। स्वदर्शन चक्रधारी बन शंखध्वनि करनी है। धन्धा करते भी यह कोर्स उठाना है।
2) बाप समान रहमदिल बन अन्धों की लाठी बनना है। मात-पिता को फालो करने का ऊंच पुरुषार्थ करना है। अपने पांव पर खड़े होना है, किसी को भी आधार नहीं बनाना है।
वरदान: सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले समीप और समान भव!
जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, एक बाप दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। कभी दिलशिकस्त नहीं बनें, सदा नथिंगन्यु के पाठ से विजयी रहे, हिमालय जैसी बड़ी बात को भी पहाड़ से रूई बनाए रास्ता निकाला, कभी घबराये नहीं, ऐसे सदा बड़ी दिल रखो, दिलखुश रहो। हर कदम में ब्रह्मा बाप को फालो करो तो समीप और समान बन जायेंगे।
स्लोगन: अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है तो गोपी वल्लभ की सच्ची-सच्ची गोपिका बनो।
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Details ( Page:- Murali 31-Oct-2017 )
HINGLISH MURALI – 30.10.17
Pratah Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bachhe – Manusya jo baap ko bhul dooban ( dalldall) mei fanse hue hai, unhe nikalne ki mehnat karo. Vichar sagar manthan kar sabko baap ka satya parichay do.
Q- Geeta ko kiss dharm ka Shastra kahnege ? Issmei rahasya yukt samajhne ki baat kaunsi hai?
Ans – Geeta Shastra hai – brahman devi devta dharm ka Shastra. Brahman devi devtaye namah kaha jata hai. Ise sirf devta dharm ka Shastra ni kahenge kyu ki devtaon mei yeh gyan hai hi nehi. Brahman yeh geeta ka gyan sunkar devta bante hai, isilie brahman devi devta dono ka hi Shastra hai . yeh koi hindu dharm ka Shastra ni kaha jata. Yeh bahut samjhne ki batein hai. Geeta gyan swayam nirakar shivbaba tumhe sunarahe hai, shrrkrishna nehi.
Song – ne wah humse juda honge…
Dharna
-Vichar sagar manthan kar manusya ko duban ( dalldall) se nikalna hai. Jo kumbhkaran ki nid mei soye hue hai unho ko jagana hai.
-Sukhsm athba sthul deha dhario se budhiyog nikal ek nirakar baap ko yaad karna hai. Sabka buddhiyog ek baap se jutana hai.
Vardan – Mansa dwara tibragati ki sewa karnewale baap saman merciful bhav.
Slogan- apne santust aur khusnum Jeevan se har kadam mei sewa karnewale hi sachhe sewadhari hai.
HINDI DETAILS MURALI - 31/10/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - मनुष्य जो बाप को भूल दुबन (दलदल) में फंसे हुए हैं, उन्हें निकालने की मेहनत करो, विचार सागर मंथन कर सबको बाप का सत्य परिचय दो”
प्रश्न: गीता को किस धर्म का शास्त्र कहेंगे? इसमें रहस्य-युक्त समझने की बात कौन सी है?
उत्तर: गीता शास्त्र है - ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का शास्त्र। ब्राह्मण देवी-देवताए नम: कहा जाता है। इसे सिर्फ देवता धर्म का शास्त्र नहीं कहेंगे क्योंकि देवताओं में तो यह ज्ञान है ही नहीं। ब्राह्मण यह गीता का ज्ञान सुनकर देवता बनते हैं, इसलिए ब्राह्मण देवी-देवता दोनों का ही यह शास्त्र है। यह कोई हिन्दू धर्म का शास्त्र नहीं कहा जाता। यह बहुत समझने की बातें हैं। गीता ज्ञान स्वयं निराकार शिवबाबा तुम्हें सुना रहे हैं, श्रीकृष्ण नहीं।
गीत:-न वह हमसे जुदा होंगे..... ओम् शान्ति।
बाबा बच्चों को बैठ समझाते हैं अच्छी तरह से। कौन सा बाप? पारलौकिक बाप। लौकिक बाप को इतने बच्चे नहीं होते। पारलौकिक बाप के इतने बच्चे (आत्मायें) हैं, जो याद करते रहते हैं हे पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता, ओ परमपिता परमात्मा, तो पिता कहकर पुकारते हैं। परमपिता परमात्मा निराकार भगवानुवाच। निराकार परमात्मा तो एक होता है ना, दो नहीं होते। बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि ऊंचे ते ऊंचा भगवान है। वह कहाँ रहते हैं? जहाँ आत्मायें रहती हैं। ईश्वर, प्रभू, भगवान कहने से सुख का वर्सा लेने की बात नहीं आती। बाप कहने से वर्सा याद आता है, परन्तु मनुष्य बाप को नहीं जानते। भारतवासी ड्रामा अनुसार रावण मत पर अपनी दुर्गति करते हैं। तो पहले-पहले यह समझाना है कि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर सूक्ष्म शरीरधारी हैं, मनुष्य स्थूल देहधारी हैं, परन्तु स्थूल वा सूक्ष्म देहधारी को बाप नहीं कहेंगे। बाप परमपिता परमात्मा निराकार को कहा जाता है। भूल क्या हुई जो दुर्गति हुई? बाप द्वारा सच्ची गीता सुनने से सद्गति होती है। तो कोई को भी पहले-पहले बाप का परिचय देना है। यह है मूल बात। परन्तु कोई की बुद्धि में नहीं बैठता है तब तो बाबा ने यह पोस्टर छपवाया है कि गीता का भगवान कृष्ण बच्चा है या परमपिता परमात्मा? गीता किस धर्म का शास्त्र है? ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का कहना ठीक है। जैसे क्रिश्चियन का धर्म शास्त्र बाइबिल है। ऐसे गीता को सिर्फ देवी-देवता धर्म का शास्त्र नहीं कहेंगे, जब तक ब्राह्मणों को न मिलायें। कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:। बाबा ने बताया है देवताओं में ज्ञान है नहीं। वह यह भी नहीं जानते कि गीता कोई हमारे धर्म का शास्त्र है। ज्ञान है ब्राह्मणों को, सिर्फ ब्राह्मण धर्म का भी शास्त्र गीता नहीं कहेंगे क्योंकि बाप दोनों धर्म की स्थापना करते हैं इसलिए दोनों धर्म का शास्त्र कहेंगे। वहाँ तो कह देते कि हिन्दू धर्म का शास्त्र है। आर्य का भी कह देते। आर्य समाज तो दयानंद ने स्थापन किया है। वह भल नया धर्म है। परन्तु वह कोई देवी-देवता धर्म के नहीं हैं। मूल बात है गीता का भगवान कौन? गीता में कृष्ण का नाम डाल गीता को खण्डित कर दिया है क्योंकि मेरे से बुद्धियोग टूट गया। गीता में देखो बातें कितनी बताई हैं और गीता पाठशाला का मान कितना है। तो अभी देवता और ब्राह्मण धर्म प्राय:लोप है। पुजारी लोग कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:, उन्हों को यह मालूम नहीं है कि ब्राह्मण देवता कैसे बनें। यह बतावे कौन? बाप कहते हैं कि मैं ब्रह्मा मुख वंशावली बनाए देवता बनाता हूँ। तो गीता हो गई ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का शास्त्र। सिर्फ कहें देवता धर्म का तो लक्ष्मी-नारायण में ज्ञान है नहीं, यह बात समझने की है। परन्तु समझाये कौन? शिवबाबा सुनाते हैं कि रुद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई। कहाँ रुद्र यज्ञ, कहाँ कृष्ण, फ़र्क है। इस ज्ञान यज्ञ के बाद फिर सतयुग में कोई मटेरियल यज्ञ रचा नहीं जाता। अब यज्ञ रचते हैं आ़फत मिटाने के लिए। वहाँ कोई आ़फत होती ही नहीं जो यह यज्ञ रचना पड़े। गीता में रुद्र यज्ञ का भी लिखा है और यह भी लिखा है कि भगवानुवाच, तो गीता में सच है आटे में नमक जितना, बाकी सब झूठ है। अब यह विचार सागर मंथन शिवबाबा नहीं करेंगे। ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों को करना है। इस समय मनुष्य तो एकदम दुबन में फंसे हुए हैं। दुबन (दलदल) से निकलने में बड़ी मेहनत लगती है, तब तो बाप को पुकारते हैं। बाप कहते हैं तुमको 5 विकार रूपी रावण पर ही जीत पानी है। फिर सतयुग में तुम जीव आत्मायें सुख में हो। जो भी सतसंग हैं वहाँ तुम जाकर पूछ सकते हो, डरने की कोई बात नहीं। सब अंधकार में पड़े हैं। मौत सामने खड़ा है और कहते हैं अभी तो कलियुग में 40 हजार वर्ष पड़े हैं, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा, कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं। कहते हैं भक्ति का फल भगवान देने आता है, सद्गति देता है, तो दुर्गति में हैं ना। गीता में अगर शिव परमात्मा का नाम होता तो उसको सब मानते। तो बरोबर निराकार ने राजयोग सिखाया था। युद्ध के मैदान की कोई बात नहीं है। युद्ध के मैदान में इतना बड़ा ज्ञान कैसे देंगे? राजयोग कैसे सिखायेंगे? मुख्य धर्म 4 हैं, धर्मशास्त्र भी 4 हैं। अभी तो अनेकानेक धर्म, अनेक शास्त्र, अनेक चित्र हैं। अब बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा-विष्णु-शंकर फिर साकार में लक्ष्मी-नारायण फिर उनकी डिनायस्टी। संगम पर ब्रह्मा सरस्वती, बस। रुद्र यज्ञ जब रचते हैं तो शिव का लिंग बनाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। देवियों की भी पूजा कर फिर डुबो देते हैं। तो गुड्डे गुड़ियों की पूजा हो गई ना क्योंकि उनका आक्यूपेशन कोई नहीं जानते। उनकी महिमा है पतित-पावन। तो कैसे पाप आत्माओं को पावन बनाते हैं। अभी तो तुमको जागकर जगाना है अर्थात् बाप का परिचय देना है। बाप को जानते नहीं। सिर्फ पैसा कमाते, कथा सुनाते रहते हैं। इससे क्या हुआ! तुम विदुत मण्डली में भी जाकर समझाओ। इस लड़ाई में मरना तो सबको जरूर है। इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्वलित होती जाती है। लिखते भी रहते हैं कि हमने इतने बड़े-बड़े बाम्बस बनाये हैं, तो कल्प पहले भी इनसे विनाश हुआ था। यह सब बाम्ब्स कोई कल्प पहले इन्होंने समुद्र में नहीं डाले थे। तो अभी भी विनाश होना है। कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, कौन? कौरव और यादव। अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। तो यह पोस्टर लाखों की अन्दाज में छपाओ, सब भाषाओं में। अंग्रेजी में तो जरूर छपवाना चाहिए। जहाँ-जहाँ गीता पाठशाला हो वहाँ बांटते जाओ। पोस्टर पर एड्रेस भी लिखी हुई हो। बाबा डायरेक्शन तो देते हैं, करना तो बच्चों का ही काम है। लिखा हुआ है शिवबाबा। तो शिवबाबा भी बाप, ब्रह्मा भी बाप परन्तु बच्चों को वर्सा शिवबाबा से मिलना है, न कि ब्रह्मा से। ब्रह्मा को भी उनसे मिलता है।
बाबा ने बहुत समझाया है कि गीता मैगज़ीन में भी पहले-पहले बाप का यथार्थ परिचय लिखो, तो जो ब्राह्मण बनने वाले होंगे उनको झट तीर लगेगा। नहीं तो लिया और फेंक दिया। जैसे कोई बन्दर को किताब दो तो एकदम फेंक देगा, समझेगा कुछ नहीं। तब बाप कहते हैं कि यह ज्ञान मेरे भक्तों को और गीता-पाठियों को देना। उसमें भी जिसके भाग्य में होगा वह समझेंगे। बाप कहते हैं यह तो है ही नर्क। यहाँ जो भी बच्चे आदि पैदा होते हैं - एक दो को दु:ख देते रहते हैं। एक दो को काटते रहते हैं। बाकी जो गरुड पुराण में विषय वैतरणी नदी दिखाई है, वह तो है नहीं। यह दुनिया तो नर्क है। तो बच्चे जानते हैं आज नर्कवासी फिर संगमवासी बनते हैं, कल फिर स्वर्गवासी बनेंगे, इसलिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास - 23-3-68
ऊंच ते ऊंच है एक भगवान माना फादर। किसका फादर? सभी जो आत्माएं हैं उन सभी का। जो भी मनुष्य मात्र हैं उनमें जो आत्माएं हैं उनका है फादर। अभी सभी आत्माएं जो कि पार्ट बजाने आती हैं वह पुनर्जन्म जरूर लेती है। कोई बहुत थोड़े लेते हैं। कोई 84 जन्म लेते हैं, कोई 80 और कोई 60। देहधारी जो भी मनुष्य हैं, भल यह लक्ष्मी-नारायण विश्व पर राज्य करने वाले हैं। उस समय न्यू वर्ल्ड में और कोई डिनायस्टी नहीं थी। जो भी देहधारी मनुष्य हैं कोई भी सद्गति नहीं दे सकते। पहले पहले है स्वीट सायलेन्स होम। सभी आत्माओं का घर। बाप भी वहाँ रहते हैं। उसको इनकॉरपोरियल वर्ल्ड कहा जाता है। बाप ऊंच ते ऊंच फिर रहने का स्थान भी ऊंच ते ऊंच है। बाप कहते हैं मैं ऊंच ते ऊंच हूँ। मुझे भी आना पड़ता है। सभी मुझे पुकारते हैं जो भी मनुष्य मात्र हैं पुर्नजन्म जरूर लेना ही है। सिर्फ एक बाप ही नहीं लेते हैं। पुनर्जन्म तो सभी को लेना ही है। कोई भी धर्म स्थापक हो, बुद्ध अवतार कहते हैं ना। बाप को भी अवतार कहते हैं। उनको भी आना पड़ता है। अभी सभी आत्माएं यहाँ मौजूद हैं। वापस कोई भी जा नहीं सकते। पुनर्जन्म लेते हैं तब तो वृद्वि होती है ना। पुनर्जन्म लेते लेते इस समय सभी तमोप्रधान हैं। बाप ही आकर नॉलेज देते हैं। बाप ही नॉलेजफुल है आदि मध्य अन्त की नॉलेज उनमें है। उनको ही नॉलेजफुल ब्लिसफुल कहा जाता है। पीसफुल, एवर प्युअर। बाकी मनुष्य मात्र प्युअर इमप्युअर बनते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण डीटी डिनायस्टी के फर्स्ट हैं। इनको ही पूरे 84 जन्म लेने पड़ते हैं। पुनर्जन्म यहाँ ही लेते हैं। फिर अन्त में बाप आकर सबको पवित्र बनाकर साथ में ले जाते हैं। बाप को ही लिबरेटर कहा जाता है। इस समय सभी धर्म स्थापक यहाँ हाजिर हैं। बाकी थोड़े हैं जो आते रहते हैं। वृद्वि होती रहती है। सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। शान्तिधाम वा सुखधाम का मालिक बनाते हैं। तुम्हीं पूरे 84 जन्म लेते हो। तुम जो पहले आये थे वही फिर पहले आयेंगे। क्राइस्ट फिर अपने समय पर आयेंगे। क्राईस्ट में यह ताकत नहीं जो किसको वापस ले जाये। वापिस ले जाने की ताकत एक बाप में ही है। इस समय है रावण राज्य, आसुरी राज्य। 84 जन्मों में विकार पूरे प्रवेश कर लेते हैं। बाप कहते हैं तुम डीटी दुनिया के मालिक थे फिर रावण राज्य में तुम विकारी बन पड़े हो। पुनर्जन्म सभी को जरूर लेना पड़ता है। धर्म स्थापन कर वापस चला जाये यह हो नहीं सकता। उनको पालना जरूर करनी है। गाया जाता है ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना। पुरानी दुनिया का विनाश। नई दुनिया में एक ही धर्म एक ही डीटी डिनायस्टी थी। अब वह है नहीं। सिर्फ चित्र हैं। और सभी धर्म मौजूद हैं सिवाय एक गॉड फादर के, जो भी देहधारी है पुनर्जन्म जरूर लेते हैं। भारत है अविनाशी खण्ड, यह कब विनाश नहीं होता। अविनाशी है। जब इनका राज्य था तो और कोई खण्ड ही नहीं था। सिर्फ इनका ही राज्य था। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बस। और कोई नहीं। नई दुनिया को स्वर्ग डीटी वर्ल्ड कहा जाता है। इनकोरपोरियल वर्ल्ड को स्वर्ग नहीं कहा जाता। वह है स्वीट साइलेन्स होम। निर्वाण धाम। आत्मा को ज्ञान सिवाय परमपिता परमात्मा के और कोई दे नहीं सकता। आत्मा बहुत छोटी बिन्दी है। सभी आत्माओं का फादर है सुप्रीम सोल। उनको सुप्रीम फादर कहा जाता है। वह कब पुनर्जन्म में नहीं आ सकते हैं। इस समय नाटक की पिछाड़ी है। यह सारी दुनिया स्टेज है इसमें खेल चल रहा है। इनकी डियूरेशन हैं 5000 वर्ष। यह है पुरुषोत्तम संगम युग। जब कि बाप आकर सभी को उत्तम ते उत्तम बनाते हैं। आत्माएं अविनाशी ही हैं। यह ड्रामा भी अविनाशी है। बना बनाया खेल है। जो पास हो गये फिर उसी समय पर आयेंगे। पहले पहले यह आये थे। लक्ष्मी नारायण अभी नहीं हैं। सच्चा सच्चा सत का संग यह है। अच्छा !
मीठे मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विचार सागर मंथन कर मनुष्यों को दुबन (दलदल) से निकालना है। जो कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं उन्हों को जगाना है।
2) सूक्ष्म अथवा स्थूल देहधारियों से बुद्धियोग निकाल एक निराकार बाप को याद करना है। सबका बुद्धियोग एक बाप से जुटाना है।
वरदान:मन्सा द्वारा तीव्रगति की सेवा करने वाले बाप समान मर्सीफुल भव!
संगमयुग पर बाप द्वारा जो वरदानों का खजाना मिला है उसे जितना बढ़ाना चाहो उतना दूसरों को देते जाओ। जैसे बाप मर्सीफुल है ऐसे बाप समान मर्सीफुल बनो, सिर्फ वाणी से नहीं, लेकिन अपनी मन्सा वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओं को अपनी मिली हुई शक्तियां दो। जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्रगति से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिजी करेंगे उतना सहज मायाजीत भी बन जायेंगे।
स्लोगन: अपने सन्तुष्ट और खुशनुम: जीवन से हर कदम में सेवा करने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं।
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