Published by – Goutam Kumar Jena
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Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK MURALI
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta for SEP 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali Dtd 1st Sep 2017 | 114136 | 2017-10-01 03:22:01 | |
2 | Murali Dtd 2nd Sep 2017 | 113486 | 2017-10-01 03:22:01 | |
3 | Murali Dtd 3rd Sep 2017 | 117203 | 2017-10-01 03:22:01 | |
4 | Murali Dtd 4th Sep 2017 | 111182 | 2017-10-01 03:22:01 | |
5 | Murali Dtd 5th Sep 2017 | 116117 | 2017-10-01 03:22:01 | |
6 | Murali Dtd 6th Sep 2017 | 115807 | 2017-10-01 03:22:01 | |
7 | Murali Dtd 7th Sep 2017 | 115101 | 2017-10-01 03:22:01 | |
8 | Murali Dtd 8th Sep 2017 | 111085 | 2017-10-01 03:22:01 | |
9 | Murali Dtd 9th Sep 2017 | 112126 | 2017-10-01 03:22:01 | |
10 | Murali Dtd 10th Sep 2017 | 120403 | 2017-10-01 03:22:01 | |
11 | Murali Dtd 11th Sep 2017 | 117635 | 2017-10-01 03:22:01 | |
12 | Murali Dtd 12th Sep 2017 | 117064 | 2017-10-01 03:22:01 | |
13 | Murali Dtd 13th Sep 2017 | 107548 | 2017-10-01 03:22:01 | |
14 | Murali Dtd 14th Sep 2017 | 111042 | 2017-10-01 03:22:01 | |
15 | Murali Dtd 15th Sep 2017 | 116814 | 2017-10-01 03:22:01 | |
16 | Murali Dtd 16th Sep 2017 | 111341 | 2017-10-01 03:22:01 | |
17 | Murali Dtd 17th Sep 2017 | 114187 | 2017-10-01 03:22:01 | |
18 | Murali Dtd 18th Sep 2017 | 104180 | 2017-10-01 03:22:01 | |
19 | Murali Dtd 19th Sep 2017 | 108463 | 2017-10-01 03:22:01 | |
20 | Murali Dtd 20th Sep 2017 | 113159 | 2017-10-01 03:22:01 | |
21 | Murali Dtd 21th Sep 2017 | 109366 | 2017-10-01 03:22:01 | |
22 | Murali Dtd 22th Sep 2017 | 116376 | 2017-10-01 03:22:01 | |
23 | Murali Dtd 23th Sep 2017 | 112762 | 2017-10-01 03:22:01 | |
24 | Murali Dtd 24th Sep 2017 | 112465 | 2017-10-01 03:22:01 | |
25 | Murali Dtd 25th Sep 2017 | 110607 | 2017-10-01 03:22:01 | |
26 | Murali Dtd 26th Sep 2017 | 113524 | 2017-10-01 03:22:01 | |
27 | Murali Dtd 27th Sep 2017 | 119815 | 2017-10-01 03:22:01 | |
28 | Murali Dtd 28th Sep 2017 | 109524 | 2017-10-01 03:22:01 | |
29 | Murali Dtd 29th Sep 2017 | 107359 | 2017-10-01 03:22:01 | |
30 | Murali Dtd 30th Sep 2017 | 111584 | 2017-10-01 03:22:01 |
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Details ( Page:- Murali Dtd 1st Sep 2017 )
01.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche- tumhara number one dushman Ravan hai, jis par gyan aur yog bal se jeet pani hai, tamopradhan se satopradhan zaroor banna hai.
Q- Mahin se mahin aur guhya baat kaun si hai, jo tum baccho ne abhi samjhi hai?
A- Sabse mahin se mahin baat hai ki yah behad ka drama second by second shoot hota jata hai. Fir 5 hazaar varsh baad wohi repeat hoga. Jo kuch hota hai, kalp pehle bhi hua tha. Drama anusaar hota hai, isme moonjhne ki baat he nahi. Jo kuch hota hai - nothing new. Second by second drama ki reel firti rehti hai. Purana mitta jata, naya bharta jata hai. Hum part bajate jaate hain wohi fir shoot hota jata hai. Aisi guhya baatein aur koi samajh na sake.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Sada apni dhoon me rehna hai. Apne paapo ko bhasm karne ka khayal karna hai. Dusri baaton ke prashno me nahi jaana hai. Apne sanskaro ko parivartan karne ke liye yog ki bhatti me rehna hai.
2) Deha sahit sab kuch tyag poora trusty ho shrimat par chalna hai. Baap ka poora regard rakhna hai, madadgar banna hai
Vardaan - Bindu roop me sthit rah udti kala me udne wale Double Light bhava
Slogan- Biswa parivartak wo hai jo negative ko positive me parivartan kar de.
"मीठे बच्चे - तुम्हारा नम्बरवन दुश्मन रावण है, जिस पर ज्ञान और योगबल से जीत पानी है, तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना है"
प्रश्न: महीन ते महीन और गुह्य बात कौन सी है, जो तुम बच्चों ने अभी समझी है?
उत्तर: सबसे महीन से महीन बात है कि यह बेहद का ड्रामा सेकण्ड बाई सेकण्ड शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है - नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। ऐसी गुह्य बातें और कोई समझ न सके।
गीत:- ओम् नमो शिवाए... ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि एक ही सहारा है दु:ख से छूटने का। गायन है ना सबका दु:ख हर्ता, सुख कर्ता एक ही भगवान है। तो जरूर एक ही ने आकर सबका दु:ख हरा है और बच्चों को सुख-शान्ति का वर्सा दिया है इसलिए गायन है। परन्तु कल्प को बहुत लम्बा-चौड़ा बताने कारण मनुष्य कुछ भी समझ नहीं सकते। तुम जानते हो कि बाप सुखधाम का वर्सा देते हैं और रावण दु:खधाम का वर्सा देते हैं। सतयुग में है सुख, कलियुग में है दु:ख। यह किसकी बुद्धि में नहीं है कि दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कौन है। समझते भी हैं कि जरूर परमपिता परमात्मा ही होगा। भारत सतयुग था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह कहते हुए भी जो शास्त्रों में सुना है कि वहाँ यह कंस जरासन्धी, रावण आदि थे इसलिए कोई बात में ठहरते नहीं हैं। तुम जानते हो यह सब खेल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमारा दुश्मन पहले-पहले रावण बनता है। पहले तुम राज्य करते थे फिर वाम मार्ग में जाकर राजाई गँवा दी। इन बातों को तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते हो। तुम्हारा और किसी दुश्मन तरफ अटेन्शन नहीं है। तुम जिसको दुश्मन समझते हो - वह किसकी बुद्धि में नहीं होगा, तुमको इस रावण दुश्मन पर जीत पानी है। यही भारत का नम्बरवन दुश्मन है। शिवबाबा जन्म भी भारत में ही लेते हैं। यह है भी बरोबर परमपिता परमात्मा की जन्म भूमि। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। परन्तु शिव ने आकर क्या किया, वह किसको पता नहीं है। तुम जानते हो भारत ऊंच ते ऊंच खण्ड था। धनवान ते धनवान 100 परसेन्ट हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी थे। और कोई धर्म इतने हेल्दी हो न सकें।
बाप देखो किसको बैठ सुनाते हैं? अबलायें, कुब्जायें, साधारण। वह साहूकार लोग तो अपने धन की ही खुशी में हैं। तुम हो गरीब ते गरीब। नहीं तो इतनी ऊंच ते ऊंची पढ़ाई ऊंचे मनुष्यों को पढ़नी चाहिए। परन्तु नहीं। पढ़ते हैं गरीब साधारण। तुम कुछ भी शास्त्र आदि नहीं पढ़े हो तो बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं जो कुछ सुना है अथवा पढ़ा है, वह सब भूल जाओ। हम नई बात सुनाते हैं। सबसे नम्बरवन दुश्मन भी है रावण। जिस पर तुम बच्चे ज्ञान और योगबल से जीत पाते हो। बरोबर 5 हजार वर्ष पहले भी बाप ने राजयोग सिखाया था, जिससे राजाई प्राप्त की थी। अब फिर माया पर जीत पाने के लिए बाप राजयोग सिखला रहे हैं, इनको ज्ञान और योगबल कहा जाता है। आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो। भगवान तो है ही निराकार। उनको राजयोग सिखाने जरूर आना पड़े। ब्रह्मा भी बूढ़ा है। बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में हैं। भारत में गीता आदि सुनाने वाले तो ढेर हैं। परन्तु यह तुमको कोई नहीं कहेंगे कि विकारों रूपी रावण पर तुम्हें जीत पानी है, मामेकम् याद करो। यह भी कोई नहीं कह सकते। यह तो बाप ही आकर आत्माओं को कहते हैं - आत्म-अभिमानी बनो। जितना बनेंगे उतना बाप को याद कर सकेंगे। उतना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। तुम जानते हो हम सतोप्रधान देवी-देवता थे। अब हम आसुरी बने हैं। 84 जन्म पूरे हुए हैं। अब यह है अन्तिम जन्म।
तुम बच्चे जानते हो बाप हमें समझा रहे हैं। वही ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर है। इस समय तुमको भी आप समान बनाते हैं। सतयुग में यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा। ऐसे भी नहीं समझेंगे कि यह राज्य हमको परमपिता परमात्मा ने दिया है। अज्ञान काल में भी मनुष्य कहते हैं सब कुछ ईश्वर ने दिया है। वहाँ ऐसे भी नहीं समझते। प्रालब्ध भोगने लग पड़ते हैं। ईश्वर का नाम याद रहे तो यह भी सिमरें कि बाबा आपने तो बहुत अच्छी बादशाही दी है। परन्तु कब दी, क्या हुआ कुछ भी बता नहीं सकते। वहाँ धन भी बहुत रहता है। ऐरोप्लेन आदि तो होते ही हैं - फुलप्रूफ।
अब तुम बच्चे किस धुन में हो? दुनिया किस धुन में है? यह भी तुम जानते हो - उन्हों का है बाहुबल, तुम्हारा है योगबल। जिससे दुश्मन पर तुम जीत पाते हो। यह राजयोग सिवाए बाप के कोई सिखला न सके। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में इनमें ही आकर प्रवेश करता हूँ, जिसमें कल्प पहले भी प्रवेश किया था, इनका नाम ब्रह्मा रखा था। तुम सब बच्चों के नाम भी आये थे ना। कितने फर्स्टक्लास नाम रखे थे। बाबा तो इतने नाम भी याद नहीं कर सकते। तो देखो दुनिया में कितना हंगामा मचाते रहते हैं। तुमको यहाँ शान्ति में बैठ बाप को याद करना है। यह है मोस्ट बिलवेड मात-पिता, जो कहते हैं बच्चे इस काम पर पहले तुम जीत पहनो, इसलिए रक्षाबंधन का त्योहार चला आता है। यह पवित्रता की राखी भी तुम बांधते हो। सतयुग त्रेता में यह त्योहार आदि नहीं मनायेंगे। फिर भक्ति मार्ग में शुरू होंगे। बाप इस समय प्रतिज्ञा कराते हैं - पवित्र दुनिया का मालिक बनना है तो पवित्र भी जरूर बनना है। मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध होंगे। तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। कोई तो नापास भी हो जाते हैं, जिसकी निशानी भी राम को दिखाई है। बाकी कोई हिंसा आदि की बात नहीं। तुम भी क्षत्रिय हो, माया पर जीत पाने वाले, जीत न पाने वाले नापास हो पड़ते। 16 कला के बदले 14 कला बन पड़ते हैं। कोई सतोप्रधान, कोई फिर रजो भी बनते हैं। वैसे फिर राजधानी में भी नम्बरवार पद होगा, जो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हैं वही वर्से के हकदार बनते हैं। फिर इसमें जो पुरूषार्थ करेंगे और करायेंगे। बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस की है। तुमको इस अन्तिम जन्म में ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह है रूहानी भट्ठी। वह जो कराची में तुम्हारी भट्ठी बनी वह और बात थी। यह योग की भट्ठी और है। यह है योगबल की भट्ठी, जिसमें किचड़ा सब निकल जाता है। वहाँ तो तुम अपनी भट्ठी में थे, कोई से मिलना नहीं होता था। यह है योग की भट्ठी, अपने लिए मेहनत करनी होती है। आत्मा ही समझती है, आत्मा ही ज्ञान सुनती है आरगन्स द्वारा। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। जैसे बाबा लड़ाई वालों का मिसाल देते हैं। संस्कार ले जाते हैं ना। दूसरे जन्म में फिर लड़ाई में ही चले जाते हैं। वैसे तुम बच्चे भी संस्कार ले जाते हो। वह जिस्मानी मिलेट्री में चले जाते हैं। तुम्हारे में से भी कोई शरीर छोड़ते हैं तो इस रूहानी मिलेट्री में आ जाते हैं। कर्मों का हिसाब-किताब बीच में चुक्तू करने जाते हैं। ऐसे बहुत होंगे। एक-एक के लिए बाप से थोड़ेही पूछना है। बाप कहेंगे इससे तुम्हारा क्या फायदा? तुम अपने धन्धे में रहो। पापों को भस्म करने का ख्याल करो। यह भोग आदि जो लगाते हैं, यह भी ड्रामा में है। जो सेकण्ड बाई सेकण्ड होता है, ड्रामा शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है-नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। यह महीन बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय करना है कि बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। बरोबर भारत को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिला था फिर कैसे गॅवाया, यह समझाना पड़े। हार-जीत का खेल है। माया ते हारे हार है। मनुष्य माया धन को समझ लेते हैं। वास्तव में माया 5 विकारों को कहा जाता है। कोई के पास धन होगा तो कहेंगे इनके पास माया बहुत है। यह भी किसको पता नहीं है। अब कहाँ प्रकृति, कहाँ माया, अलग-अलग अर्थ है।
मैगजीन में भी लिख सकते हो कि भारतवासियों का नम्बरवन दुश्मन यह रावण है, जिसने दुर्गति को पहुँचाया है। रावणराज्य शुरू होने से ही भक्ति शुरू हो जाती है। ब्रह्मा की रात में, भक्ति मार्ग में धक्के ही खाने पड़ते हैं। ब्रह्मा का दिन चढ़ती कला, ब्रह्मा की रात उतरती कला। अब बाप कहते हैं - इस माया रावण पर जीत पानी है। बाप श्रीमत देते हैं श्रेष्ठ बनने लिए - लाडले बच्चे मुझ बाप को याद करो। विकर्माजीत बनने का और कोई उपाय है नहीं। तुम बच्चों को भक्तिमार्ग के धक्कों से छुड़ाते हैं। अब रात पूरी हो प्रभात होती है। दिन माना सुख, रात माना दु:ख। यह सुख दु:ख का खेल है। बाप यह सब राज़ बताकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अब जो जितना पुरूषार्थ करे। बीज और झाड़ को जानना है। बाप कहते हैं बच्चे अब टाइम थोड़ा है। गाया भी जाता है एक घड़ी आधी घड़ी.... तुम बाप को याद करने लग जाओ और फिर चार्ट को बढ़ाते जाओ। देखना है कि हम श्रीमत पर बाबा को कितना याद करते हैं। बाप तो है सिखलाने वाला। पुरूषार्थ हमको करना है। बाप तो है पुरूषार्थ कराने वाला। बाप का तो लव है ही। बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं। उनके तो सब आत्मायें बच्चे ही ठहरे। फिर ब्रह्माकुमार-कुमारी भाई-बहन हो गये। वर्सा तो दादे से मिलता है। ईश्वरीय औलाद फिर प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा तुम ब्राह्मण बने हो। फिर देवता वर्ण में जायेंगे। क्लीयर है ना। आत्मा समझती है शिवबाबा हमारा बाप है। मैं स्टार हूँ तो हमारा बाप भी स्टार ही होगा। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। बाबा भी स्टार है परन्तु वह सुप्रीम है, हम बच्चे उनको फादर कहते हैं। इतनी छोटी सी आत्मा में सारा ज्ञान है। बाकी ऐसे नहीं ईश्वर में कोई ऐसी शक्ति है, जो दीवार तोड़ देंगे। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको फिर से राजयोग सिखलाने लिए। बाप बच्चों का ओबीडियन्ट है। लौकिक में भी बाप बच्चों पर बलि चढ़ते हैं ना, तो बड़ा कौन हुआ? बाप वा बच्चे? बाप सब कुछ बच्चे को देते हैं फिर भी बच्चा छोटा है इसलिए रिगार्ड रखना होता है। यहाँ भी तुम बच्चों पर बाप बलि चढ़ते हैं, वर्सा देते हैं तो बड़ा बच्चा हुआ ना। परन्तु बाप का फिर भी रिगार्ड रखना होता है। बाप के आगे पहले बच्चों को बलि चढ़ना है तब बाप 21 बार बलि चढ़ेंगे। कुछ न कुछ बलि चढ़ते हैं। भक्ति मार्ग में भी ईश्वर अर्थ कुछ न कुछ देते हैं। उनकी एवज में फिर बाबा दे देते हैं। यहाँ तो है ही फिर बेहद की बात। कहते भी हैं आप जब आयेंगे तुम पर बलिहार जायेंगे। अभी वह समय आ गया है इसलिए बाबा यह प्रश्न पूछते हैं - तुमको कितने बच्चे हैं? फिर ख्याल में आता है तो एक शिवबाबा भी बालक है। अब बताओ तुम्हारा कल्याण कौन सा बालक करेगा? (शिवबाबा) तो उनको वारिस बनाना चाहिए ना। यह समय ऐसा आ रहा है जो कोई किसका क्रियाक्रम करने वाला ही नहीं रहेगा इसलिए बाप कहते हैं देह सहित सब कुछ त्याग, ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलते जाओ। डायरेक्शन देते रहेंगे। तुम्हारी सेवा करते हैं, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने। हम तो निष्कामी हैं। सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही निष्कामी है ना। वह एवर पावन है। बाप कहते हैं - बच्चे मददगार बनो। हमारा मददगार गोया अपना मददगार बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा अपनी धुन में रहना है। अपने पापों को भस्म करने का ख्याल करना है। दूसरी बातों के प्रश्नों में नहीं जाना है। अपने संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए योग की भट्ठी में रहना है।
2) देह सहित सब कुछ त्याग पूरा ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलना है। बाप का पूरा रिगार्ड रखना है, मददगार बनना है।
वरदान: बिन्दु रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव
सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दु ही समा सकता है। आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दु की है। तो बिन्दु रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है। बिन्दु बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे। कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो। मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे। स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा।
स्लोगन: विश्व परिवर्तक वह है जो निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर दे।
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Mithe bacche- tumhara number one dushman Ravan hai, jis par gyan aur yog bal se jeet pani hai, tamopradhan se satopradhan zaroor banna hai.
Q- Mahin se mahin aur guhya baat kaun si hai, jo tum baccho ne abhi samjhi hai?
A- Sabse mahin se mahin baat hai ki yah behad ka drama second by second shoot hota jata hai. Fir 5 hazaar varsh baad wohi repeat hoga. Jo kuch hota hai, kalp pehle bhi hua tha. Drama anusaar hota hai, isme moonjhne ki baat he nahi. Jo kuch hota hai - nothing new. Second by second drama ki reel firti rehti hai. Purana mitta jata, naya bharta jata hai. Hum part bajate jaate hain wohi fir shoot hota jata hai. Aisi guhya baatein aur koi samajh na sake.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Sada apni dhoon me rehna hai. Apne paapo ko bhasm karne ka khayal karna hai. Dusri baaton ke prashno me nahi jaana hai. Apne sanskaro ko parivartan karne ke liye yog ki bhatti me rehna hai.
2) Deha sahit sab kuch tyag poora trusty ho shrimat par chalna hai. Baap ka poora regard rakhna hai, madadgar banna hai
Vardaan - Bindu roop me sthit rah udti kala me udne wale Double Light bhava
Slogan- Biswa parivartak wo hai jo negative ko positive me parivartan kar de.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
01-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हारा नम्बरवन दुश्मन रावण है, जिस पर ज्ञान और योगबल से जीत पानी है, तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना है"
प्रश्न: महीन ते महीन और गुह्य बात कौन सी है, जो तुम बच्चों ने अभी समझी है?
उत्तर: सबसे महीन से महीन बात है कि यह बेहद का ड्रामा सेकण्ड बाई सेकण्ड शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है - नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। ऐसी गुह्य बातें और कोई समझ न सके।
गीत:- ओम् नमो शिवाए... ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि एक ही सहारा है दु:ख से छूटने का। गायन है ना सबका दु:ख हर्ता, सुख कर्ता एक ही भगवान है। तो जरूर एक ही ने आकर सबका दु:ख हरा है और बच्चों को सुख-शान्ति का वर्सा दिया है इसलिए गायन है। परन्तु कल्प को बहुत लम्बा-चौड़ा बताने कारण मनुष्य कुछ भी समझ नहीं सकते। तुम जानते हो कि बाप सुखधाम का वर्सा देते हैं और रावण दु:खधाम का वर्सा देते हैं। सतयुग में है सुख, कलियुग में है दु:ख। यह किसकी बुद्धि में नहीं है कि दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कौन है। समझते भी हैं कि जरूर परमपिता परमात्मा ही होगा। भारत सतयुग था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह कहते हुए भी जो शास्त्रों में सुना है कि वहाँ यह कंस जरासन्धी, रावण आदि थे इसलिए कोई बात में ठहरते नहीं हैं। तुम जानते हो यह सब खेल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमारा दुश्मन पहले-पहले रावण बनता है। पहले तुम राज्य करते थे फिर वाम मार्ग में जाकर राजाई गँवा दी। इन बातों को तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते हो। तुम्हारा और किसी दुश्मन तरफ अटेन्शन नहीं है। तुम जिसको दुश्मन समझते हो - वह किसकी बुद्धि में नहीं होगा, तुमको इस रावण दुश्मन पर जीत पानी है। यही भारत का नम्बरवन दुश्मन है। शिवबाबा जन्म भी भारत में ही लेते हैं। यह है भी बरोबर परमपिता परमात्मा की जन्म भूमि। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। परन्तु शिव ने आकर क्या किया, वह किसको पता नहीं है। तुम जानते हो भारत ऊंच ते ऊंच खण्ड था। धनवान ते धनवान 100 परसेन्ट हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी थे। और कोई धर्म इतने हेल्दी हो न सकें।
बाप देखो किसको बैठ सुनाते हैं? अबलायें, कुब्जायें, साधारण। वह साहूकार लोग तो अपने धन की ही खुशी में हैं। तुम हो गरीब ते गरीब। नहीं तो इतनी ऊंच ते ऊंची पढ़ाई ऊंचे मनुष्यों को पढ़नी चाहिए। परन्तु नहीं। पढ़ते हैं गरीब साधारण। तुम कुछ भी शास्त्र आदि नहीं पढ़े हो तो बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं जो कुछ सुना है अथवा पढ़ा है, वह सब भूल जाओ। हम नई बात सुनाते हैं। सबसे नम्बरवन दुश्मन भी है रावण। जिस पर तुम बच्चे ज्ञान और योगबल से जीत पाते हो। बरोबर 5 हजार वर्ष पहले भी बाप ने राजयोग सिखाया था, जिससे राजाई प्राप्त की थी। अब फिर माया पर जीत पाने के लिए बाप राजयोग सिखला रहे हैं, इनको ज्ञान और योगबल कहा जाता है। आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो। भगवान तो है ही निराकार। उनको राजयोग सिखाने जरूर आना पड़े। ब्रह्मा भी बूढ़ा है। बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में हैं। भारत में गीता आदि सुनाने वाले तो ढेर हैं। परन्तु यह तुमको कोई नहीं कहेंगे कि विकारों रूपी रावण पर तुम्हें जीत पानी है, मामेकम् याद करो। यह भी कोई नहीं कह सकते। यह तो बाप ही आकर आत्माओं को कहते हैं - आत्म-अभिमानी बनो। जितना बनेंगे उतना बाप को याद कर सकेंगे। उतना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। तुम जानते हो हम सतोप्रधान देवी-देवता थे। अब हम आसुरी बने हैं। 84 जन्म पूरे हुए हैं। अब यह है अन्तिम जन्म।
तुम बच्चे जानते हो बाप हमें समझा रहे हैं। वही ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर है। इस समय तुमको भी आप समान बनाते हैं। सतयुग में यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा। ऐसे भी नहीं समझेंगे कि यह राज्य हमको परमपिता परमात्मा ने दिया है। अज्ञान काल में भी मनुष्य कहते हैं सब कुछ ईश्वर ने दिया है। वहाँ ऐसे भी नहीं समझते। प्रालब्ध भोगने लग पड़ते हैं। ईश्वर का नाम याद रहे तो यह भी सिमरें कि बाबा आपने तो बहुत अच्छी बादशाही दी है। परन्तु कब दी, क्या हुआ कुछ भी बता नहीं सकते। वहाँ धन भी बहुत रहता है। ऐरोप्लेन आदि तो होते ही हैं - फुलप्रूफ।
अब तुम बच्चे किस धुन में हो? दुनिया किस धुन में है? यह भी तुम जानते हो - उन्हों का है बाहुबल, तुम्हारा है योगबल। जिससे दुश्मन पर तुम जीत पाते हो। यह राजयोग सिवाए बाप के कोई सिखला न सके। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में इनमें ही आकर प्रवेश करता हूँ, जिसमें कल्प पहले भी प्रवेश किया था, इनका नाम ब्रह्मा रखा था। तुम सब बच्चों के नाम भी आये थे ना। कितने फर्स्टक्लास नाम रखे थे। बाबा तो इतने नाम भी याद नहीं कर सकते। तो देखो दुनिया में कितना हंगामा मचाते रहते हैं। तुमको यहाँ शान्ति में बैठ बाप को याद करना है। यह है मोस्ट बिलवेड मात-पिता, जो कहते हैं बच्चे इस काम पर पहले तुम जीत पहनो, इसलिए रक्षाबंधन का त्योहार चला आता है। यह पवित्रता की राखी भी तुम बांधते हो। सतयुग त्रेता में यह त्योहार आदि नहीं मनायेंगे। फिर भक्ति मार्ग में शुरू होंगे। बाप इस समय प्रतिज्ञा कराते हैं - पवित्र दुनिया का मालिक बनना है तो पवित्र भी जरूर बनना है। मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध होंगे। तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। कोई तो नापास भी हो जाते हैं, जिसकी निशानी भी राम को दिखाई है। बाकी कोई हिंसा आदि की बात नहीं। तुम भी क्षत्रिय हो, माया पर जीत पाने वाले, जीत न पाने वाले नापास हो पड़ते। 16 कला के बदले 14 कला बन पड़ते हैं। कोई सतोप्रधान, कोई फिर रजो भी बनते हैं। वैसे फिर राजधानी में भी नम्बरवार पद होगा, जो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हैं वही वर्से के हकदार बनते हैं। फिर इसमें जो पुरूषार्थ करेंगे और करायेंगे। बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस की है। तुमको इस अन्तिम जन्म में ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह है रूहानी भट्ठी। वह जो कराची में तुम्हारी भट्ठी बनी वह और बात थी। यह योग की भट्ठी और है। यह है योगबल की भट्ठी, जिसमें किचड़ा सब निकल जाता है। वहाँ तो तुम अपनी भट्ठी में थे, कोई से मिलना नहीं होता था। यह है योग की भट्ठी, अपने लिए मेहनत करनी होती है। आत्मा ही समझती है, आत्मा ही ज्ञान सुनती है आरगन्स द्वारा। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। जैसे बाबा लड़ाई वालों का मिसाल देते हैं। संस्कार ले जाते हैं ना। दूसरे जन्म में फिर लड़ाई में ही चले जाते हैं। वैसे तुम बच्चे भी संस्कार ले जाते हो। वह जिस्मानी मिलेट्री में चले जाते हैं। तुम्हारे में से भी कोई शरीर छोड़ते हैं तो इस रूहानी मिलेट्री में आ जाते हैं। कर्मों का हिसाब-किताब बीच में चुक्तू करने जाते हैं। ऐसे बहुत होंगे। एक-एक के लिए बाप से थोड़ेही पूछना है। बाप कहेंगे इससे तुम्हारा क्या फायदा? तुम अपने धन्धे में रहो। पापों को भस्म करने का ख्याल करो। यह भोग आदि जो लगाते हैं, यह भी ड्रामा में है। जो सेकण्ड बाई सेकण्ड होता है, ड्रामा शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है-नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। यह महीन बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय करना है कि बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। बरोबर भारत को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिला था फिर कैसे गॅवाया, यह समझाना पड़े। हार-जीत का खेल है। माया ते हारे हार है। मनुष्य माया धन को समझ लेते हैं। वास्तव में माया 5 विकारों को कहा जाता है। कोई के पास धन होगा तो कहेंगे इनके पास माया बहुत है। यह भी किसको पता नहीं है। अब कहाँ प्रकृति, कहाँ माया, अलग-अलग अर्थ है।
मैगजीन में भी लिख सकते हो कि भारतवासियों का नम्बरवन दुश्मन यह रावण है, जिसने दुर्गति को पहुँचाया है। रावणराज्य शुरू होने से ही भक्ति शुरू हो जाती है। ब्रह्मा की रात में, भक्ति मार्ग में धक्के ही खाने पड़ते हैं। ब्रह्मा का दिन चढ़ती कला, ब्रह्मा की रात उतरती कला। अब बाप कहते हैं - इस माया रावण पर जीत पानी है। बाप श्रीमत देते हैं श्रेष्ठ बनने लिए - लाडले बच्चे मुझ बाप को याद करो। विकर्माजीत बनने का और कोई उपाय है नहीं। तुम बच्चों को भक्तिमार्ग के धक्कों से छुड़ाते हैं। अब रात पूरी हो प्रभात होती है। दिन माना सुख, रात माना दु:ख। यह सुख दु:ख का खेल है। बाप यह सब राज़ बताकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अब जो जितना पुरूषार्थ करे। बीज और झाड़ को जानना है। बाप कहते हैं बच्चे अब टाइम थोड़ा है। गाया भी जाता है एक घड़ी आधी घड़ी.... तुम बाप को याद करने लग जाओ और फिर चार्ट को बढ़ाते जाओ। देखना है कि हम श्रीमत पर बाबा को कितना याद करते हैं। बाप तो है सिखलाने वाला। पुरूषार्थ हमको करना है। बाप तो है पुरूषार्थ कराने वाला। बाप का तो लव है ही। बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं। उनके तो सब आत्मायें बच्चे ही ठहरे। फिर ब्रह्माकुमार-कुमारी भाई-बहन हो गये। वर्सा तो दादे से मिलता है। ईश्वरीय औलाद फिर प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा तुम ब्राह्मण बने हो। फिर देवता वर्ण में जायेंगे। क्लीयर है ना। आत्मा समझती है शिवबाबा हमारा बाप है। मैं स्टार हूँ तो हमारा बाप भी स्टार ही होगा। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। बाबा भी स्टार है परन्तु वह सुप्रीम है, हम बच्चे उनको फादर कहते हैं। इतनी छोटी सी आत्मा में सारा ज्ञान है। बाकी ऐसे नहीं ईश्वर में कोई ऐसी शक्ति है, जो दीवार तोड़ देंगे। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको फिर से राजयोग सिखलाने लिए। बाप बच्चों का ओबीडियन्ट है। लौकिक में भी बाप बच्चों पर बलि चढ़ते हैं ना, तो बड़ा कौन हुआ? बाप वा बच्चे? बाप सब कुछ बच्चे को देते हैं फिर भी बच्चा छोटा है इसलिए रिगार्ड रखना होता है। यहाँ भी तुम बच्चों पर बाप बलि चढ़ते हैं, वर्सा देते हैं तो बड़ा बच्चा हुआ ना। परन्तु बाप का फिर भी रिगार्ड रखना होता है। बाप के आगे पहले बच्चों को बलि चढ़ना है तब बाप 21 बार बलि चढ़ेंगे। कुछ न कुछ बलि चढ़ते हैं। भक्ति मार्ग में भी ईश्वर अर्थ कुछ न कुछ देते हैं। उनकी एवज में फिर बाबा दे देते हैं। यहाँ तो है ही फिर बेहद की बात। कहते भी हैं आप जब आयेंगे तुम पर बलिहार जायेंगे। अभी वह समय आ गया है इसलिए बाबा यह प्रश्न पूछते हैं - तुमको कितने बच्चे हैं? फिर ख्याल में आता है तो एक शिवबाबा भी बालक है। अब बताओ तुम्हारा कल्याण कौन सा बालक करेगा? (शिवबाबा) तो उनको वारिस बनाना चाहिए ना। यह समय ऐसा आ रहा है जो कोई किसका क्रियाक्रम करने वाला ही नहीं रहेगा इसलिए बाप कहते हैं देह सहित सब कुछ त्याग, ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलते जाओ। डायरेक्शन देते रहेंगे। तुम्हारी सेवा करते हैं, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने। हम तो निष्कामी हैं। सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही निष्कामी है ना। वह एवर पावन है। बाप कहते हैं - बच्चे मददगार बनो। हमारा मददगार गोया अपना मददगार बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा अपनी धुन में रहना है। अपने पापों को भस्म करने का ख्याल करना है। दूसरी बातों के प्रश्नों में नहीं जाना है। अपने संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए योग की भट्ठी में रहना है।
2) देह सहित सब कुछ त्याग पूरा ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलना है। बाप का पूरा रिगार्ड रखना है, मददगार बनना है।
वरदान: बिन्दु रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव
सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दु ही समा सकता है। आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दु की है। तो बिन्दु रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है। बिन्दु बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे। कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो। मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे। स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा।
स्लोगन: विश्व परिवर्तक वह है जो निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर दे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 2nd Sep 2017 )
02.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche- tum aapas me bhai-bhai ho, tumhe roohani sneh me rehna hai, sukhdayi ban sabko sukh dena hai, goon grahi banna hai.
Q- Aapas me roohani pyaar na hone ka kaaran kya hai? Roohani pyaar kaise hoga?
A- Deha-abhimaan ke kaaran jab ek do ki khamiyan dekhte hain tab roohani pyaar nahi rehta. Jab aatma-abhimaani bante hain, swayang ki khamiyan nikalne ka furna rehta hai, satopradhan banne ka lakshya rehta hai, mithe sukhdayi bante tab aapas me bahut pyaar rehta hai. Baap ki shrimat hai - bacche kisi ke bhi avgoon mat dekho. Goonvan banne aur banane ka lakshya rakho. Sabse jasti goon ek Baap me hai, Baap se goon grahan karte raho aur sab baaton ko chhod do to pyaar se rah sakenge.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap se aisa love rakhna hai - jo ek Baap se he sada chitke rahe. Din raat Baap ki he mahima karni hai. Khushi me gadgad hona hai.
2) Ek Baap ki he abyavichari yaad me rah satopradhan banna hai. Kabhi bhi miya mitthu nahi banna hai. Baap ke samaan mitha banna hai.
Vardaan:-- Sadhano ke vasibhoot hone ke bajaye unhe use karne wale Master Creator bhava
Slogan:- Nirantar yogi banna hai to had ke main aur mere pan ko behad me parivartan kar do.
“मीठे बच्चे - तुम आपस में भाई-भाई हो, तुम्हें रूहानी स्नेह से रहना है, सुखदाई बन सबको सुख देना है, गुणग्राही बनना है”
प्रश्न: आपस में रूहानी प्यार न होने का कारण क्या है? रूहानी प्यार कैसे होगा?
उत्तर: देह-अभिमान के कारण जब एक दो की खामियां देखते हैं तब रूहानी प्यार नहीं रहता। जब आत्म-अभिमानी बनते हैं, स्वयं की खामियां निकालने का फुरना रहता है, सतोप्रधान बनने का लक्ष्य रहता है, मीठे सुखदाई बनते तब आपस में बहुत प्यार रहता है। बाप की श्रीमत है - बच्चे किसी के भी अवगुण मत देखो। गुणवान बनने और बनाने का लक्ष्य रखो। सबसे जास्ती गुण एक बाप में है, बाप से गुण ग्रहण करते रहो और सब बातों को छोड़ दो तो प्यार से रह सकेंगे।
ओम् शान्ति।
अभी तुम बच्चों को यह मालूम है कि बेहद का बाप हमको सतोप्रधान बना रहे हैं और मूल युक्ति बता रहे हैं। बाप बैठ बच्चों को शिक्षा देते हैं कि तुम भाई-भाई हो, आपस में तुम्हारा बहुत रूहानी प्रेम चाहिए। तुम्हारा था तो बरोबर, अब नहीं है। मूलवतन में तो प्रेम की बात ही नहीं रहती। तो बेहद का बाप बैठ शिक्षा देते हैं। बच्चे आजकल, आजकल करते-करते समय बीतता जा रहा है। दिन, मास, वर्ष बीतते जा रहे हैं। बाप ने समझाया है - तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे। ऐसा तुमको किसने बनाया? बाप ने। फिर तुम कैसे नीचे उतरते हो। ऊपर से नीचे उतरते-उतरते समय बीतता जा रहा है। वह दिन गया, मास गया, वर्ष गया, समय गया। तुम जानते हो हम पहले सतोप्रधान थे। आपस में बहुत लव था। बाप ने भाईयों को शिक्षा दी है। तुम भाई-भाई का आपस में बहुत प्रेम होना चाहिए। मैं तुम सबका बाप हूँ। तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही है - सतोप्रधान बनने की। तुम समझते हो जितना-जितना हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे उतना खुशी में गदगद होते रहेंगे। हम सतोप्रधान थे। भाई-भाई आपस में बहुत प्रेम से रहते थे। अभी बाप द्वारा पता चला है कि हम देवतायें आपस में बहुत प्रेम से चलते थे। हेविन के देवताओं की भी बहुत महिमा है। हम वहाँ के निवासी थे। फिर नीचे उतरते आये हैं। पहली तारीख से लेकर आज 5 हजार वर्ष से बाकी कुछ वर्ष आकर रहे हैं। शुरू से लेकर तुम कैसे पार्ट बजाते आये हो - अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि देह-अभिमान के कारण एक दो में वह प्यार नहीं है। एक दो की खामियां ही निकालते रहते हैं। तुम आत्म-अभिमानी थे तो ऐसे किसकी खामियां नहीं निकालते थे कि फलाना ऐसा है, इनमें यह है। आपस में बहुत प्यार था। अब वही अवस्था धारण करनी है। यहाँ तो एक दो को उस दृष्टि से देखते, लड़ते झगड़ते हैं। अब वह सब बन्द कैसे हो। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे तुम सतोप्रधान पूज्य देवी-देवता थे फिर धीरे-धीरे नीचे गिरते-गिरते तुम तमोप्रधान बने हो। तुम कैसे मीठे थे, अब फिर ऐसा मीठा बनो। तुम सुखदाई थे फिर दु:खदाई बने हो। रावण राज्य में एक दो को दु:ख देने, काम कटारी चलाने लगे हो। सतोप्रधान थे तो काम कटारी नहीं चलाते थे। यह 5 विकार तुम्हारे कितने बड़े शत्रु हैं। यह है ही विकारी दुनिया क्योंकि रावणराज्य है ना। यह भी तुम जानते हो रामराज्य और रावणराज्य किसको कहा जाता है। आजकल करते, सतयुग पूरा हुआ। त्रेता पूरा हुआ, द्वापर पूरा हुआ और कलियुग भी पूरा हो जायेगा। अभी तुम नीचे उतरते सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो। तुम्हारी वह रूहानी खुशी गुम हो गई है। अब तुमको सतोप्रधान बनना है। मैं आया हूँ तो जरूर तुमको सतोप्रधान बनाऊंगा।
यह भी बाप समझाते हैं - बच्चे जब 5 हजार वर्ष बाद संगमयुग होता है तब ही मैं आता हूँ। तुमको समझाता हूँ, फिर से सतोप्रधान बनो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। जितना याद करेंगे उतनी खामियां निकलती जायेंगी। तुम जब सतोप्रधान देवी देवता थे तब कोई खामी नहीं थी, अब यह खामियां कैसे निकलेंगी? आत्मा को ही अशान्ति होती है। अब अन्दर जांच करनी है कि हम अशान्त क्यों बने हैं। जब हम भाई-भाई थे तो आपस में बहुत प्यार था। अब फिर वही बाप आया है। कहते हैं अपने को आत्मा भाई-भाई समझो। एक दो से बहुत प्रेम रखो। देह-अभिमान में आने से ही एक दो की खामियां निकालते हो। अब बाप कहते हैं तुम ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करो। तुम जानते हो कि नई दुनिया में बाप ने हमको वर्सा दिया था, 21 जन्मों के लिए एकदम भरपूर कर दिया था। अब बाप फिर आया हुआ है तो क्यों न हम उनकी मत पर चल फिर से पूरा वर्सा लेवें।
तुम मीठे-मीठे बच्चे कितने अडोल थे। कोई मतभेद नहीं था। किसकी निंदा आदि नहीं करते थे। अभी कुछ न कुछ है। वह सब भूल जाना चाहिए। हम सब भाई-भाई हैं। एक बाप को याद करना है। बस यही ओना लगा हुआ है हम जल्दी-जल्दी सतोप्रधान बन जायें। फलाना ऐसा है, इसने यह बोला, इन सब बातों को भूल जाओ। यह सब छोड़ो। बाप कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। सतोप्रधान बनने के लिए पुरूषार्थ करो। दूसरे का अवगुण नहीं देखो। देह-अभिमान में आने से ही अवगुण देखा जाता है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। भाई-भाई को देखो तो गुण ही देखेंगे। अवगुण को नहीं देखना चाहिए। सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो, तो कभी भी दु:ख नहीं होगा। भल कोई उल्टा-सुल्टा कुछ भी करे, समझा जाता है रजो तमोप्रधान हैं, तो जरूर उन्हों की चाल भी ऐसी ही होगी। अपने को देखना चाहिए कि हम कहाँ तक सतोप्रधान बने हैं? सबसे जास्ती गुण हैं बाप में। तो बाप से ही गुण ग्रहण करो और सब बातों को छोड़ दो। अवगुण छोड़ गुण धारण करो। बाप कितना गुणवान बनाते हैं। कहते हैं तुम बच्चों को भी मेरे समान बनना है। बाप तो सदा सुखदाई है ना। तो सदा सुख देने और सतोप्रधान बनने का फुरना रखो और कोई बात नहीं सुनो। कोई की ग्लानी आदि नहीं करो। सबमें कोई न कोई खामियां हैं जरूर। खामियां भी ऐसी हैं जो फिर खुद भी समझ नहीं सकते। दूसरे समझते हैं कि इनमें यह-यह खामियां हैं। अपने को तो बहुत अच्छा समझते हैं परन्तु कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल ही पड़ता है। सतोप्रधान अवस्था में यह बातें होती नहीं। यहाँ खामियां हैं परन्तु न समझने के कारण अपने को मिया मिट्ठू समझ लेते हैं। बाप कहते हैं - मिया मिट्ठू तो मैं ही एक हूँ। तुम सबको मिट्ठू अर्थात् मीठा बनाने आया हूँ इसलिए जो भी अवगुण आदि हैं सब छोड़ दो। अपनी नब्ज देखो हम मीठे-मीठे रूहानी बाप को कितना प्यार करता हूँ? कितना खुद समझता हूँ और दूसरों को समझाता हूँ? देह-अभिमान में आ गये तो कोई फायदा नहीं होगा। बाप कहते हैं तुम अनेक बार तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हो। अब फिर बनो। श्रीमत पर चल मुझे याद करो। सिर पर पापों का बोझा बहुत है, उसे उतारने का चिंतन रहना चाहिए। देवताओं के आगे जाकर कहते भी हैं कि हम पापी हैं क्योंकि देवताओं में पवित्रता की कशिश है इसलिए उन्हों की महिमा गाते हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण.... हो। फिर घर में आकर भूल जाते हैं। देवताओं के आगे जाते हैं तो अपने से जैसे घृणा आती है। फिर घर में आते हैं तो कोई घृणा नहीं। जरा ख्याल भी नहीं करते कि ऐसा उन्हों को बनाने वाला कौन है!
अब बाप कहते हैं बच्चे यह पढ़ाई पढ़ो। देवता बनना है तो यह पढ़ाई पढ़ना है। श्रीमत पर चलना है। पहले-पहले बाप कहते हैं अपने को सतोप्रधान बनाना है इसलिए मामेकम् याद करो। दैवीगुण भी धारण करने हैं। भाई-भाई समझ एक बाप को याद करो। बाप से यह वर्सा लेना है। यह भी बुद्धि में है। लोग उनकी स्तुति करते फिर दूसरे तरफ उनकी ग्लानी भी करते क्योंकि जानते ही नहीं हैं। कहते हैं कुत्ते बिल्ली में है, सब परमात्मा के रूप हैं। जितना हो सके कोशिश करनी है बाप को याद करने की। भल आगे भी याद करते थे। परन्तु वह थी व्यभिचारी याद, बहुतों को याद करते थे। अब बाप कहते हैं अव्यभिचारी याद में रहो सिर्फ मामेकम् याद करो। भक्तिमार्ग में जिसको तुम याद करते आये हो - सब अभी तमोप्रधान हो गये हैं। आत्मा तमोप्रधान है तो खुद तमोप्रधान, तमोप्रधान को याद करते हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है। वहाँ भक्ति ही नहीं जो याद करना पड़े। बाप समझाते हैं बच्चे बस यही फुरना रखो कि हम सतोप्रधान कैसे बने?
ज्ञान तो बहुत सहज है। बैज पर भी तुम समझा सकते हो - यह बेहद का बाप है, इनसे यह वर्सा मिलता है। बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। सो तो जरूर यहाँ ही होगी ना! शिव जयन्ती माना स्वर्ग जयन्ती। देवतायें कैसे बनें? इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर इस पढ़ाई से ही बने हैं। सारा मदार पढ़ाई और याद पर है। याद की यात्रा में रहने से फिर और बातें भूल जाती हैं। बाप समझाते रहते हैं बच्चे देह-अभिमान छोड़ो। कोई की खामियों को देखना नहीं हैं। फलाना ऐसा है, यह करता है, इन बातों से कोई फायदा नहीं, टाइम वेस्ट हो जाता है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में बहुत मेहनत है। विघ्न भी पड़ते हैं। पढ़ाई में तूफान नहीं आते, जितना याद में आते हैं। अपने को देखना है कि हम कहाँ तक बाप की याद में रहते हैं। कहाँ तक हमारा लव है। लव ऐसा होना चाहिए - बस बाप से ही चिटके रहें। वाह बाबा आप हमको कितना समझदार बनाते हो! ऊंच ते ऊंच आप हो फिर मनुष्य सृष्टि में भी आप हमको कितना ऊंच बनाते हो। ऐसे-ऐसे अन्दर में बाप की महिमा करनी है। बाबा आप तो कमाल करते हो। खुशी में गद-गद होना चाहिए। कहते हैं ना - खुशी जैसी खुराक नहीं, तो बाप के मिलने की भी खुशी होती है। इस पढ़ाई से हम यह बनेंगे। बहुत खुशी होनी चाहिए। बेहद का बाप, सुप्रीम बाप हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा कितना रहमदिल है। भल आगे भी भगवानुवाच अक्षर सुनते थे परन्तु झूठ होने कारण दिल से लगता नहीं था। ठिक्कर-भित्तर में भगवान है फिर वाच कैसे करेंगे। तुम्हारी बुद्धि में बहुत नई-नई बातें हैं, जो और किसकी बुद्धि में नहीं हैं। आगे चल तुम्हारा दैवी झाड बढ़ता जायेगा। बाप कहते हैं कि सबको पैगाम दो कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे और कोई धर्म स्थापक ऐसे कह नहीं सकता, इसलिए उनको पैगम्बर, मैसेन्जर भी कह नहीं सकते। पैगाम तो एक बाप ही देते हैं कि मामेकम् याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे और सतोप्रधान दुनिया में आ जायेंगे। यह है बाप का पैगाम। सब जगह पैगाम लिख दो। सारा मदार इस पर है। यूरोपियन लोगों के लिए इस चक्र और झाड में सारी नॉलेज है। उन्हों को यही बताना है कि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है तो वन्डर खायेंगे। अमरनाथ बाबा यह सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं, अमरपुरी में ले जाने के लिए। वह है अमरलोक। यह है नीचे मृत्युलोक। सीढ़ी है ना। अभी हम ऊपर जाते हैं फिर नम्बरवार आयेंगे। हमेशा समझो कि शिवबाबा सुनाते हैं, उनको ही याद करते रहो तो भी खुशी रहेगी। शिवबाबा इनमें प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, यह है वन्डरफुल युगल। बाबा इनको कहते हैं “यू आर माई वाइफ”। तुम्हारे द्वारा मैं एडाप्ट करता हूँ। फिर माताओं को सम्भालने के लिए एडाप्ट किये हुए बच्चों से एक को मुकरर रखते हैं। यह ब्रह्मपुत्रा सबसे बड़ी नदी है। त्वमेव-माताश्च पिता इनको कहते हैं। बाबा खुद कहते हैं - हम चलते-फिरते बहुत खुशी से बाप को याद करता हूँ। याद में कितना भी पैदल करो, कभी थकेंगे नहीं। जितना याद करेंगे उतना चमक आती जायेगी। खुशी में तीर्थों पर कितना दौड़-दौड़ कर ऊपर जाते हैं। वह तो है सब भक्ति मार्ग के धक्के। यह भी खेल है - भक्ति है रात। अब तुम्हारे लिए दिन होता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से ऐसा लॅव रखना है - जो एक बाप से ही सदा चिटके रहें। दिन रात बाप की ही महिमा करनी है। खुशी में गदगद होना है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह सतोप्रधान बनना है। कभी भी मिया मिट्ठू नहीं बनना है। बाप के समान मीठा बनना है।
वरदान:साधनों के वशीभूत होने के बजाए उन्हें यूज़ करने वाले मास्टर क्रियेटर भव
साइन्स के साधन जो आप लोगों के काम आ रहे हैं, ड्रामा अनुसार उन्हें भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। लेकिन यह साधन यूज़ करते हुए उनके वश नहीं हो जाओ। कभी कोई साधन अपनी ओर खींच न ले। मास्टर क्रियेटर बनकर क्रियेशन से लाभ उठाओ। अगर उनके वशीभूत हो गये तो वे दुख देंगे इसलिए साधन यूज़ करते भी साधना निरन्तर चलती रहे।
स्लोगन:निरन्तर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन कर दो।
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Mithe bacche- tum aapas me bhai-bhai ho, tumhe roohani sneh me rehna hai, sukhdayi ban sabko sukh dena hai, goon grahi banna hai.
Q- Aapas me roohani pyaar na hone ka kaaran kya hai? Roohani pyaar kaise hoga?
A- Deha-abhimaan ke kaaran jab ek do ki khamiyan dekhte hain tab roohani pyaar nahi rehta. Jab aatma-abhimaani bante hain, swayang ki khamiyan nikalne ka furna rehta hai, satopradhan banne ka lakshya rehta hai, mithe sukhdayi bante tab aapas me bahut pyaar rehta hai. Baap ki shrimat hai - bacche kisi ke bhi avgoon mat dekho. Goonvan banne aur banane ka lakshya rakho. Sabse jasti goon ek Baap me hai, Baap se goon grahan karte raho aur sab baaton ko chhod do to pyaar se rah sakenge.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap se aisa love rakhna hai - jo ek Baap se he sada chitke rahe. Din raat Baap ki he mahima karni hai. Khushi me gadgad hona hai.
2) Ek Baap ki he abyavichari yaad me rah satopradhan banna hai. Kabhi bhi miya mitthu nahi banna hai. Baap ke samaan mitha banna hai.
Vardaan:-- Sadhano ke vasibhoot hone ke bajaye unhe use karne wale Master Creator bhava
Slogan:- Nirantar yogi banna hai to had ke main aur mere pan ko behad me parivartan kar do.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
02/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"
“मीठे बच्चे - तुम आपस में भाई-भाई हो, तुम्हें रूहानी स्नेह से रहना है, सुखदाई बन सबको सुख देना है, गुणग्राही बनना है”
प्रश्न: आपस में रूहानी प्यार न होने का कारण क्या है? रूहानी प्यार कैसे होगा?
उत्तर: देह-अभिमान के कारण जब एक दो की खामियां देखते हैं तब रूहानी प्यार नहीं रहता। जब आत्म-अभिमानी बनते हैं, स्वयं की खामियां निकालने का फुरना रहता है, सतोप्रधान बनने का लक्ष्य रहता है, मीठे सुखदाई बनते तब आपस में बहुत प्यार रहता है। बाप की श्रीमत है - बच्चे किसी के भी अवगुण मत देखो। गुणवान बनने और बनाने का लक्ष्य रखो। सबसे जास्ती गुण एक बाप में है, बाप से गुण ग्रहण करते रहो और सब बातों को छोड़ दो तो प्यार से रह सकेंगे।
ओम् शान्ति।
अभी तुम बच्चों को यह मालूम है कि बेहद का बाप हमको सतोप्रधान बना रहे हैं और मूल युक्ति बता रहे हैं। बाप बैठ बच्चों को शिक्षा देते हैं कि तुम भाई-भाई हो, आपस में तुम्हारा बहुत रूहानी प्रेम चाहिए। तुम्हारा था तो बरोबर, अब नहीं है। मूलवतन में तो प्रेम की बात ही नहीं रहती। तो बेहद का बाप बैठ शिक्षा देते हैं। बच्चे आजकल, आजकल करते-करते समय बीतता जा रहा है। दिन, मास, वर्ष बीतते जा रहे हैं। बाप ने समझाया है - तुम यह लक्ष्मी-नारायण थे। ऐसा तुमको किसने बनाया? बाप ने। फिर तुम कैसे नीचे उतरते हो। ऊपर से नीचे उतरते-उतरते समय बीतता जा रहा है। वह दिन गया, मास गया, वर्ष गया, समय गया। तुम जानते हो हम पहले सतोप्रधान थे। आपस में बहुत लव था। बाप ने भाईयों को शिक्षा दी है। तुम भाई-भाई का आपस में बहुत प्रेम होना चाहिए। मैं तुम सबका बाप हूँ। तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही है - सतोप्रधान बनने की। तुम समझते हो जितना-जितना हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे उतना खुशी में गदगद होते रहेंगे। हम सतोप्रधान थे। भाई-भाई आपस में बहुत प्रेम से रहते थे। अभी बाप द्वारा पता चला है कि हम देवतायें आपस में बहुत प्रेम से चलते थे। हेविन के देवताओं की भी बहुत महिमा है। हम वहाँ के निवासी थे। फिर नीचे उतरते आये हैं। पहली तारीख से लेकर आज 5 हजार वर्ष से बाकी कुछ वर्ष आकर रहे हैं। शुरू से लेकर तुम कैसे पार्ट बजाते आये हो - अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि देह-अभिमान के कारण एक दो में वह प्यार नहीं है। एक दो की खामियां ही निकालते रहते हैं। तुम आत्म-अभिमानी थे तो ऐसे किसकी खामियां नहीं निकालते थे कि फलाना ऐसा है, इनमें यह है। आपस में बहुत प्यार था। अब वही अवस्था धारण करनी है। यहाँ तो एक दो को उस दृष्टि से देखते, लड़ते झगड़ते हैं। अब वह सब बन्द कैसे हो। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे तुम सतोप्रधान पूज्य देवी-देवता थे फिर धीरे-धीरे नीचे गिरते-गिरते तुम तमोप्रधान बने हो। तुम कैसे मीठे थे, अब फिर ऐसा मीठा बनो। तुम सुखदाई थे फिर दु:खदाई बने हो। रावण राज्य में एक दो को दु:ख देने, काम कटारी चलाने लगे हो। सतोप्रधान थे तो काम कटारी नहीं चलाते थे। यह 5 विकार तुम्हारे कितने बड़े शत्रु हैं। यह है ही विकारी दुनिया क्योंकि रावणराज्य है ना। यह भी तुम जानते हो रामराज्य और रावणराज्य किसको कहा जाता है। आजकल करते, सतयुग पूरा हुआ। त्रेता पूरा हुआ, द्वापर पूरा हुआ और कलियुग भी पूरा हो जायेगा। अभी तुम नीचे उतरते सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो। तुम्हारी वह रूहानी खुशी गुम हो गई है। अब तुमको सतोप्रधान बनना है। मैं आया हूँ तो जरूर तुमको सतोप्रधान बनाऊंगा।
यह भी बाप समझाते हैं - बच्चे जब 5 हजार वर्ष बाद संगमयुग होता है तब ही मैं आता हूँ। तुमको समझाता हूँ, फिर से सतोप्रधान बनो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। जितना याद करेंगे उतनी खामियां निकलती जायेंगी। तुम जब सतोप्रधान देवी देवता थे तब कोई खामी नहीं थी, अब यह खामियां कैसे निकलेंगी? आत्मा को ही अशान्ति होती है। अब अन्दर जांच करनी है कि हम अशान्त क्यों बने हैं। जब हम भाई-भाई थे तो आपस में बहुत प्यार था। अब फिर वही बाप आया है। कहते हैं अपने को आत्मा भाई-भाई समझो। एक दो से बहुत प्रेम रखो। देह-अभिमान में आने से ही एक दो की खामियां निकालते हो। अब बाप कहते हैं तुम ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करो। तुम जानते हो कि नई दुनिया में बाप ने हमको वर्सा दिया था, 21 जन्मों के लिए एकदम भरपूर कर दिया था। अब बाप फिर आया हुआ है तो क्यों न हम उनकी मत पर चल फिर से पूरा वर्सा लेवें।
तुम मीठे-मीठे बच्चे कितने अडोल थे। कोई मतभेद नहीं था। किसकी निंदा आदि नहीं करते थे। अभी कुछ न कुछ है। वह सब भूल जाना चाहिए। हम सब भाई-भाई हैं। एक बाप को याद करना है। बस यही ओना लगा हुआ है हम जल्दी-जल्दी सतोप्रधान बन जायें। फलाना ऐसा है, इसने यह बोला, इन सब बातों को भूल जाओ। यह सब छोड़ो। बाप कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। सतोप्रधान बनने के लिए पुरूषार्थ करो। दूसरे का अवगुण नहीं देखो। देह-अभिमान में आने से ही अवगुण देखा जाता है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। भाई-भाई को देखो तो गुण ही देखेंगे। अवगुण को नहीं देखना चाहिए। सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो, तो कभी भी दु:ख नहीं होगा। भल कोई उल्टा-सुल्टा कुछ भी करे, समझा जाता है रजो तमोप्रधान हैं, तो जरूर उन्हों की चाल भी ऐसी ही होगी। अपने को देखना चाहिए कि हम कहाँ तक सतोप्रधान बने हैं? सबसे जास्ती गुण हैं बाप में। तो बाप से ही गुण ग्रहण करो और सब बातों को छोड़ दो। अवगुण छोड़ गुण धारण करो। बाप कितना गुणवान बनाते हैं। कहते हैं तुम बच्चों को भी मेरे समान बनना है। बाप तो सदा सुखदाई है ना। तो सदा सुख देने और सतोप्रधान बनने का फुरना रखो और कोई बात नहीं सुनो। कोई की ग्लानी आदि नहीं करो। सबमें कोई न कोई खामियां हैं जरूर। खामियां भी ऐसी हैं जो फिर खुद भी समझ नहीं सकते। दूसरे समझते हैं कि इनमें यह-यह खामियां हैं। अपने को तो बहुत अच्छा समझते हैं परन्तु कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल ही पड़ता है। सतोप्रधान अवस्था में यह बातें होती नहीं। यहाँ खामियां हैं परन्तु न समझने के कारण अपने को मिया मिट्ठू समझ लेते हैं। बाप कहते हैं - मिया मिट्ठू तो मैं ही एक हूँ। तुम सबको मिट्ठू अर्थात् मीठा बनाने आया हूँ इसलिए जो भी अवगुण आदि हैं सब छोड़ दो। अपनी नब्ज देखो हम मीठे-मीठे रूहानी बाप को कितना प्यार करता हूँ? कितना खुद समझता हूँ और दूसरों को समझाता हूँ? देह-अभिमान में आ गये तो कोई फायदा नहीं होगा। बाप कहते हैं तुम अनेक बार तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हो। अब फिर बनो। श्रीमत पर चल मुझे याद करो। सिर पर पापों का बोझा बहुत है, उसे उतारने का चिंतन रहना चाहिए। देवताओं के आगे जाकर कहते भी हैं कि हम पापी हैं क्योंकि देवताओं में पवित्रता की कशिश है इसलिए उन्हों की महिमा गाते हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण.... हो। फिर घर में आकर भूल जाते हैं। देवताओं के आगे जाते हैं तो अपने से जैसे घृणा आती है। फिर घर में आते हैं तो कोई घृणा नहीं। जरा ख्याल भी नहीं करते कि ऐसा उन्हों को बनाने वाला कौन है!
अब बाप कहते हैं बच्चे यह पढ़ाई पढ़ो। देवता बनना है तो यह पढ़ाई पढ़ना है। श्रीमत पर चलना है। पहले-पहले बाप कहते हैं अपने को सतोप्रधान बनाना है इसलिए मामेकम् याद करो। दैवीगुण भी धारण करने हैं। भाई-भाई समझ एक बाप को याद करो। बाप से यह वर्सा लेना है। यह भी बुद्धि में है। लोग उनकी स्तुति करते फिर दूसरे तरफ उनकी ग्लानी भी करते क्योंकि जानते ही नहीं हैं। कहते हैं कुत्ते बिल्ली में है, सब परमात्मा के रूप हैं। जितना हो सके कोशिश करनी है बाप को याद करने की। भल आगे भी याद करते थे। परन्तु वह थी व्यभिचारी याद, बहुतों को याद करते थे। अब बाप कहते हैं अव्यभिचारी याद में रहो सिर्फ मामेकम् याद करो। भक्तिमार्ग में जिसको तुम याद करते आये हो - सब अभी तमोप्रधान हो गये हैं। आत्मा तमोप्रधान है तो खुद तमोप्रधान, तमोप्रधान को याद करते हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है। वहाँ भक्ति ही नहीं जो याद करना पड़े। बाप समझाते हैं बच्चे बस यही फुरना रखो कि हम सतोप्रधान कैसे बने?
ज्ञान तो बहुत सहज है। बैज पर भी तुम समझा सकते हो - यह बेहद का बाप है, इनसे यह वर्सा मिलता है। बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। सो तो जरूर यहाँ ही होगी ना! शिव जयन्ती माना स्वर्ग जयन्ती। देवतायें कैसे बनें? इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर इस पढ़ाई से ही बने हैं। सारा मदार पढ़ाई और याद पर है। याद की यात्रा में रहने से फिर और बातें भूल जाती हैं। बाप समझाते रहते हैं बच्चे देह-अभिमान छोड़ो। कोई की खामियों को देखना नहीं हैं। फलाना ऐसा है, यह करता है, इन बातों से कोई फायदा नहीं, टाइम वेस्ट हो जाता है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में बहुत मेहनत है। विघ्न भी पड़ते हैं। पढ़ाई में तूफान नहीं आते, जितना याद में आते हैं। अपने को देखना है कि हम कहाँ तक बाप की याद में रहते हैं। कहाँ तक हमारा लव है। लव ऐसा होना चाहिए - बस बाप से ही चिटके रहें। वाह बाबा आप हमको कितना समझदार बनाते हो! ऊंच ते ऊंच आप हो फिर मनुष्य सृष्टि में भी आप हमको कितना ऊंच बनाते हो। ऐसे-ऐसे अन्दर में बाप की महिमा करनी है। बाबा आप तो कमाल करते हो। खुशी में गद-गद होना चाहिए। कहते हैं ना - खुशी जैसी खुराक नहीं, तो बाप के मिलने की भी खुशी होती है। इस पढ़ाई से हम यह बनेंगे। बहुत खुशी होनी चाहिए। बेहद का बाप, सुप्रीम बाप हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा कितना रहमदिल है। भल आगे भी भगवानुवाच अक्षर सुनते थे परन्तु झूठ होने कारण दिल से लगता नहीं था। ठिक्कर-भित्तर में भगवान है फिर वाच कैसे करेंगे। तुम्हारी बुद्धि में बहुत नई-नई बातें हैं, जो और किसकी बुद्धि में नहीं हैं। आगे चल तुम्हारा दैवी झाड बढ़ता जायेगा। बाप कहते हैं कि सबको पैगाम दो कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे और कोई धर्म स्थापक ऐसे कह नहीं सकता, इसलिए उनको पैगम्बर, मैसेन्जर भी कह नहीं सकते। पैगाम तो एक बाप ही देते हैं कि मामेकम् याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे और सतोप्रधान दुनिया में आ जायेंगे। यह है बाप का पैगाम। सब जगह पैगाम लिख दो। सारा मदार इस पर है। यूरोपियन लोगों के लिए इस चक्र और झाड में सारी नॉलेज है। उन्हों को यही बताना है कि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है तो वन्डर खायेंगे। अमरनाथ बाबा यह सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं, अमरपुरी में ले जाने के लिए। वह है अमरलोक। यह है नीचे मृत्युलोक। सीढ़ी है ना। अभी हम ऊपर जाते हैं फिर नम्बरवार आयेंगे। हमेशा समझो कि शिवबाबा सुनाते हैं, उनको ही याद करते रहो तो भी खुशी रहेगी। शिवबाबा इनमें प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, यह है वन्डरफुल युगल। बाबा इनको कहते हैं “यू आर माई वाइफ”। तुम्हारे द्वारा मैं एडाप्ट करता हूँ। फिर माताओं को सम्भालने के लिए एडाप्ट किये हुए बच्चों से एक को मुकरर रखते हैं। यह ब्रह्मपुत्रा सबसे बड़ी नदी है। त्वमेव-माताश्च पिता इनको कहते हैं। बाबा खुद कहते हैं - हम चलते-फिरते बहुत खुशी से बाप को याद करता हूँ। याद में कितना भी पैदल करो, कभी थकेंगे नहीं। जितना याद करेंगे उतना चमक आती जायेगी। खुशी में तीर्थों पर कितना दौड़-दौड़ कर ऊपर जाते हैं। वह तो है सब भक्ति मार्ग के धक्के। यह भी खेल है - भक्ति है रात। अब तुम्हारे लिए दिन होता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से ऐसा लॅव रखना है - जो एक बाप से ही सदा चिटके रहें। दिन रात बाप की ही महिमा करनी है। खुशी में गदगद होना है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह सतोप्रधान बनना है। कभी भी मिया मिट्ठू नहीं बनना है। बाप के समान मीठा बनना है।
वरदान:साधनों के वशीभूत होने के बजाए उन्हें यूज़ करने वाले मास्टर क्रियेटर भव
साइन्स के साधन जो आप लोगों के काम आ रहे हैं, ड्रामा अनुसार उन्हें भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। लेकिन यह साधन यूज़ करते हुए उनके वश नहीं हो जाओ। कभी कोई साधन अपनी ओर खींच न ले। मास्टर क्रियेटर बनकर क्रियेशन से लाभ उठाओ। अगर उनके वशीभूत हो गये तो वे दुख देंगे इसलिए साधन यूज़ करते भी साधना निरन्तर चलती रहे।
स्लोगन:निरन्तर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन कर दो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 3rd Sep 2017 )
03.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban – AVYAKT MURALI
Headline - Sachhe Ashik ka Nisani
Vardan – Dil ki tapashya dwara santustata ka certificate prapt karnewale sarb ki duaon ke adhikari Bhav.
Slogan – Samay ko amulya samjhkar safal karo toh samay par dhoka ni khayenge.
"सच्चे आशिक की निशानी"
आज बाप कहाँ आये हैं और किन्हों से मिलने आये हैं, जानते हो? किस रूप से विशेष मिलने आये हैं? जैसे बाप का रूप वैसे बच्चों का रूप। तो आज किस रूप से बाप मिलने आये हैं, जानते हो? लोगों ने यह जो गलती कर दी है कि परमात्मा के अनेक रूप हैं, यह गलती है वा राइट है? इस समय बाप अनेक सम्बन्धों के अनेक रूपों से मिलते हैं। तो एक के अनेक रूप, सम्बन्ध के आधार से वा कर्तव्य के आधार से प्रैक्टिकल में हैं ना। तो भक्त भी राइट हैं ना। आज किस रूप में बाप मिलने आये हैं और कहाँ मिल रहे हैं? आज की मुरली में (सवेरे) वह सम्बन्ध सुना है। तो बाप कौन हुआ और आप कौन हुए? आज रूहानी माशूक रूहानी आशिकों से मिलन मनाने आये हैं। कहाँ मिलने आये हैं? सबसे ज्यादा मिलने का प्रिय स्थान कौन-सा है? रूहानी माशूक आप आशिकों को आदि के समय में कहाँ पर ले जाते थे, याद है ना? (सागर पर) तो आज भी सर्व खजानों और गुणों से सम्पन्न, सागर के कण्ठे पर, साथ में ऊंची स्थिति की पहाड़ी पर, शीतलता की चांदनी में रूहानी माशूक, रूहानी आशिकों से मिल रहे हैं। सागर है सम्पन्नता का और पहाड़ी है ऊंची स्थिति की। सदा शीतल स्वरूप है चांदनी। तीनों ही साथ में हैं। आज रूहानी आशिकों को देख रूहानी माशूक हर्षित हो रहे हैं और कौन-सा गीत गाते हैं? (हरेक अपना-अपना गीत सुना रहे हैं) वैसे तो एक ही गीत सुन सकते हैं लेकिन बाप सभी का गीत सुन सकते हैं। आशिक अपना गीत गा रहे हैं और माशूक गीत का रेसपान्ड कर रहे हैं। जो भी गीत गाओ सब ठीक है। हर एक के स्नेह के बोल बाप स्नेह से ही सुनते हैं। आशिकों को माशूक को याद करना सहज है ना? सहज और निरन्तर याद का सम्बन्ध और स्वरूप यह रूहानी आशिक और माशूक का है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन याद भुलाते भी भूल नहीं सकती।
आज हर एक आशिक के स्नेह को देख क्या देखा? आशिक अनेक और माशूक एक। लेकिन अनेक अनुभव यही कहते हैं कि मेरा माशूक क्योंकि स्नेह का सागर रूहानी माशूक है! तो सागर बेहद है इसलिए जितने भी, जितना भी स्नेह लें फिर भी सागर अखुट और सम्पन्न है इसलिए मुझे कम, तुम्हें ज्यादा यह बातें नहीं। लेने वाले जितना लें। स्नेह के भण्डार भरपूर हैं। लेने वाले लेने में नम्बरवार हो जाते हैं लेकिन देने वाला सबको नम्बरवन देता है। लेने वाले समाने में नम्बरवार हो जाते हैं। प्यार करना सबको आता है लेकिन तोड़ निभाने में नम्बर हो जाते हैं। “मेरा माशूक” सब कहते हैं लेकिन मेरा कहते भी क्या करते हैं? जानते हो क्या करते हैं? आज तो रूहरिहान करने आये हैं, मुरली चलाने नहीं आये हैं। तो बताओ क्या करते हैं? मेरा भी कहते लेकिन कभी-कभी कहाँ फेरा भी लगाकर आते हैं। फिर फेरा लगाने के बाद जब थक जाते हैं तब फिर कहते हैं “मेरा माशूक”। और कई आशिक नाज़ भी बहुत करते हैं। क्या नाज़ करते हैं? (दीदी - दादी को) नाज़-नखरे तो साकार में आपके आगे ही बहुत दिखाते हैं ना। इतना नाज़ दिखाते हैं - हम तो ऐसे करेंगे, हम तो ऐसे चलेंगे, आपका काम है हमें बदलना। हम तो ऐसे ही हैं। बाप की बातें बाप को सुनाने का नाज़ रखते हैं। एक बोल तो अच्छी तरह से याद करते हैं - “जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ लेकिन आपकी हूँ” माशूक भी कहते - हो तो हमारी लेकिन जोड़ी तो ठीक बनो ना! अगर समान जोड़ी नहीं होगी तो दृश्य देखने वाले क्या कहेंगे? माशूक सजा-सजाया और आशिक बिना श्रृंगारी हुई, शोभेगी? तो आप स्वयं ही सोचो - वह चमकीली ड्रेस वाले और आशिक काली ड्रेस वाली वा दागों वाली ड्रेस पहने हुए, तो अच्छा लगेगा? क्या समझते हो? फिर कहते क्या हैं? हमारे दागों को मिटाना तो आपका काम है। लेकिन जब माशूक ड्रेस ही परिवर्तन कर देते हैं, तो वह क्यों नहीं पहनते! दाग मिटाने में भी समय क्यों गंवायें! माशूक का बनना अर्थात् सबका परिवर्तन होना। तो पुरानी काली, अनेक दागों वाली ड्रेस की स्मृति क्यों लाते हो अर्थात् बार-बार धारण क्यों करते हो? चमकीली ड्रेस वाले चमकते हुए श्रृंगारधारी बन माशूक के साथ चमकीली दुनिया में क्यों नहीं रहते! वहाँ कोई दाग लग ही नहीं सकता।
तो हे आशिकों, सदा माशूक समान सम्पन्न और सदा चमकीले स्वरूप में अर्थात् सम्पूर्ण स्वरूप में स्थित रहो। माशूक को और भी एक बात की मेहनत करनी पड़ती है। जानते हो किस बात की मेहनत करनी पड़ती है? वह भी रमणीक बात है। जो वायदा किया है माशूक ने आशिकों के साथ, कि “साथ ले जायेंगे”। तो क्या करते हैं? माशूक है बहुत हल्का और आशिक इतने भारी बन जाते, जो माशूक को ले जाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। तो यह भी जोड़ी अच्छी लगेगी? माशूक कहते हैं हल्के बन जाओ। तो क्या करते हैं? हल्के होने का साधन जो एक्सरसाइज है, वह करते नहीं। तो हल्के कैसे बनें? रूहानी एक्सरसाइज तो जानते हो ना! अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। सेकेण्ड में स्वरूप बन जाना - यह है रूहानी एक्सरसाइज। और कौन-सा बोझ अपने ऊपर रखते हैं? वेस्ट की वेट बहुत है इसलिए हल्के नहीं हो सकते। कोई समय के वेस्ट के वेट में हैं, कोई संकल्पों के और कोई शक्तियों को वेस्ट करते हैं। कोई सम्बन्ध और सम्पर्क वेस्ट अर्थात् व्यर्थ बना लेते हैं। ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के वेट बढ़ने के कारण माशूक समान डबल लाइट बन नहीं सकते। सच्चे आशिक की निशानी है - “माशूक के समान” अर्थात् माशूक जो है, जैसा है वैसे समान बनना। तो सभी कौन हो? आशिक तो हो ही लेकिन माशूक समान आशिक हो? समानता ही समीपता लाती है! समानता नही तो समीप भी नहीं हो सकते। गायन भी करते हैं 16 हजार पटरानियां थीं। 16 हजार में भी नम्बर तो होंगे ना! एक माशूक के इतने आशिक दिखाये तो हैं लेकिन अर्थ नहीं समझते हैं। रूहानियत को भूल गये हैं। तो आज रूहानी माशूक, आशिकों को कहते हैं- “समान बनो” अर्थात् समीप बनो। अच्छा।
चांदनी में बैठे हो ना? शीतल स्वरूप में रहना अर्थात् चांदनी में बैठना। सदा ही चांदनी रात में रहो। चांदनी रात में ड्रेस भी स्वत: चमकीली हो जायेगी। जहाँ देखेंगे वहाँ चमकते हुए दिखाई देंगे। और सदा सागर के कण्ठे पर रहो अर्थात् सदा सागर समान सम्पन्न स्थिति में रहो। समझा कहाँ रहना है? माशूक को यही किनारा प्रिय है। अच्छा।
सदा माशूक समान, साथ से साथ, हाथ में हाथ अर्थात स्नेही और सहयोगी, साथ अर्थात् स्नेह, हाथ अर्थात् सहयोग, ऐसे मेरा तो एक माशूक दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में सदा सहज रहने वाले, ऐसे सच्चे आशिकों को रूहानी माशूक का याद-प्यार और नमस्ते।
आज देहली और गुजरात आया है। दिल्ली वाले यह तो नहीं समझते हैं कि हमारे यहाँ जमुना का किनारा है, सागर तो है नहीं। संगम पर सागर है और भविष्य में नदी का किनारा है। संगम में खेला भी सागर के किनारे पर है ना। तो संगम पर है सागर का किनारा और भविष्य की बातें हैं जमुना का किनारा। तो देहली और गुजरात का क्या सम्बन्ध है? देहली है जमुना का किनारा और गुजरात है गरबा करने वाले। तो किनारे पर रास मशहूर है ना, जमुना किनारे पर। इसीलिए दिल्ली और गुजरात दोनों आ गये हैं। अच्छा - विदेश भी आया है। विदेश वाले जैसे अभी निमंत्रण देते हैं ना, आओ चक्कर लगाने आओ। दीदी आवे, दादी आवे, फलाने आवें, तो जैसे अभी चक्कर लगाने जाते हो - थोड़े टाइम के लिए, ऐसे ही भविष्य में भी चक्कर लगाने जायेंगे। सेकेण्ड में पहुँचेंगे। देरी नहीं लगेगी क्योंकि एक्सीडेंट तो होगा नहीं इसलिए स्पीड की कोई लिमिट की आवश्यकता नहीं। एक ही दिन में सारा चक्कर लगा सकते हो। सारा वर्ल्ड एक दिन में घूम सकते हो। यह एटम एनर्जी आपके काम में आनी है। रिफाइन करने में लगे हुए हैं ना। यह आप लोगों को कोई दु:ख नहीं देगी। सबसे ज्यादा सेवा कौन-सा तत्व करेगा? सूर्य। सूर्य की किरणें भिन्न-भिन्न प्रकार की कमाल दिखायेंगी। यह सब आपके लिए तैयारियां हो रही हैं। गैस जलाने की, कोयले जलाने की, लकड़ी जलाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सबसे छूट जायेंगे। अच्छा - बहुत रंगत देखते जायेंगे। वह मेहनत करेंगे और आप फल खायेंगे। फिर यह वायर्स (तारें) वगैरा लगाने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बिना मेहनत के नैचुरल नेचर द्वारा नैचुरल प्राप्ति हो जायेगी। लेकिन इसके लिए, नेचर के सुख लेने के लिए भी अपनी आरिज्नल नेचर को बनाओ, तब नेचर द्वारा सर्व सुखों को प्राप्त कर सकेंगे। नैचुरल नेचर अर्थात् अनदि संस्कार। सुनते हुए भी अच्छा लगता है तो जब प्रालब्ध में होंगे तो कितना अच्छा लगेगा! जैसे यहाँ पंछी उड़ते हैं, वैसे वहाँ विमान उड़ेंगे। कितने होंगे? जैसे यहाँ पंछियों का संगठन लाइन में जाता है, वैसे विमानों के संगठन जायेंगे। ऐसे नहीं एक जायेगा तो दूसरा नहीं जा सकेगा। ऐसे भिन्न-भिन्न डिज़ाइन में जायेंगे। राज्य फैमिली अपनी डिज़ाइन में जायेगी, साहूकार अपनी डिज़ाइन में जायेंगे। जहाँ चाहो वहाँ उतार लो। अभी प्रकृतिजीत बनो तो प्रकृति दासी बनेगी। अभी प्रकृतिजीत कम तो प्रकृति दासी भी कम होगी! समझा - अच्छा।
मधुबन निवासियों से:-
मधुबन निवासी कौन हैं? मधुबन निवासियों को कौन सा टाइटल देंगे? नया कोई टाइटल सुनाओ? इस समय कौन सी चीज़ मधुबन में लगाई है? फोटोस्टेट मशीन लगाई है ना। तो मधुबन निवासी फोटो स्टेट कापी है। जैसे बाप वैसे बच्चे। उस मशीन में हूबहू होता है ना। मशीन की यही विशेषता है ना, जो ज़रा भी फर्क नहीं आता। तो मधुबन निवासी फोटो कापी हो। मधुबन है मशीन और मधुबन निवासी हैं फोटो। तो आपके हर कर्म विधाता की कर्म रेखायें बतायें। कर्म द्वारा ही भाग्य की लकीर खींचते हो तो आप सबका हर कर्म श्रेष्ठ भाग्य की कर्म की लकीर खींचने वाला हो। जैसे बापदादा का हर कर्म स्व के प्रति और अनेकों के प्रति भाग्य की लकीर खीचने वाला रहा, ऐसे ही बाप समान। मधुबन में इतने साधन, इतना सहयोग, इतना श्रेष्ठ संग प्राप्त है, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु... मधुबन के भण्डारे में, तो सर्व प्राप्तिवान क्या हो गये? सम्पूर्ण हो गये ना। किस बात की कमी है? अगर कमी है तो स्व के धारणा की। मधुबन वालों का सदा एक निज़ी संस्कार इमर्ज रूप में होना चाहिए। वह कौन सा, कर्म में सफलता पाने के लिए ब्रह्मा बाप का निज़ी संस्कार कौन सा था, जो आप सबका भी वही संस्कार हो? हाँ जी के साथ-साथ “पहले आप”, “पहले मैं” नहीं, पहले आप। जैसे ब्रह्मा बाप ने पहले जगत-अम्बा को किया ना। कोई भी स्थान में पहले बच्चे, हर बात में बच्चों को अपने से आगे रखा। जगत-अम्बा को अपने आगे रखा। “पहले आप” वाला ही “हाँ जी” कर सकता है इसलिए मुख्य बात है “पहले आप” लेकिन शुभ भावना से। कहने मात्र नहीं, लेकिन शुभचिन्तक की भावना से। शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के आधार से ‘पहले आप' करने वाला स्वयं ही पहले हो जाता है। पहले आप कहना ही पहला नम्बर होना है। जैसे बाप ने जगदम्बा को पहले किया, बच्चों को पहले किया लेकिन फिर भी नम्बरवन गया ना। इसमें कोई स्वार्थ नहीं रखा, नि:स्वार्थ “पहले आप” कहा, करके दिखाया। ऐसे ही पहले आप का पाठ पक्का हो। इसने किया अर्थात् मैंने किया। इसने क्यों किया, मैं ही करूँ, मैं क्यों नहीं करूँ, मैं नहीं कर सकता हूँ क्या! यह भाव नहीं। उसने किया तो भी बाप की सेवा, मैंने किया तो भी बाप की सेवा। यहाँ कोई को अपना-अपना धन्धा तो नहीं है ना। एक ही बाप का धंधा है। ईश्वरीय सेवा पर हो। लिखते भी हो गाडली सर्विस, मेरी सर्विस तो नहीं लिखते हो ना। जैसे बाप एक है, सेवा भी एक है, ऐसे ही इसने किया, मैंने किया वह भी एक। जो जितना करता, उसे और आगे बढ़ाओ। मैं आगे बढ़ूं, नहीं। दूसरों को आगे बढ़ाकर आगे बढ़ो। सबको साथ लेकर जाना है ना। बाप के साथ सब जायेंगे अर्थात् आपस में भी तो साथ-साथ होंगे ना। जब यही भावना हरेक में आ जायेगी तो ब्रह्मा बाप की फोटो स्टेट कापी हो जायेंगे।
मधुबन निवासियों को देखा अर्थात् ब्रह्मा को देखा क्योंकि कापी तो वही है ना। फिर ऐसा कोई नहीं कहेगा कि हमने तो ब्रह्मा बाप को देखा ही नहीं। आपके कर्म, आपकी स्थिति ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखायें। यह है मधुबन निवासियों की विशेषता क्योंकि मधुबन निवासियों को सब फालो करते हैं। तो मधुबन वाले एक-एक मास्टर ब्रह्मा हो। अभी देखो ब्रह्मा बाप का फोटो किसी को भी दो तो प्यार से सम्भाल लेते हैं, सबसे बढ़िया सौगात इसी को मानते हैं तो आप सब भी ब्रह्मा बाप की फोटो हो जाओ। ब्रह्मा बाप समान हो जाओ तो आप भी अमूल्य सौगात हो जायेंगे। अच्छा।
वरदान:दिल की तपस्या द्वारा सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले सर्व की दुआओं के अधिकारी भव
तपस्या के चार्ट में अपने को सर्टीफिकेट देने वाले तो बहुत हैं लेकिन सर्व की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट तभी प्राप्त होता है जब दिल की तपस्या हो, सर्व के प्रति दिल का प्यार हो, निमित्त भाव और शुभ भाव हो। ऐसे बच्चे सर्व की दुआओं के अधिकारी बन जाते हैं। कम से कम 95 परसेन्ट आत्मायें सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट दें, सबके मुख से निकले कि हाँ यह नम्बरवन है, ऐसा सबके दिल से दुआओं का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले ही बाप समान बनते हैं।
स्लोगन:समय को अमूल्य समझकर सफल करो तो समय पर धोखा नहीं खायेंगे।
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Headline - Sachhe Ashik ka Nisani
Vardan – Dil ki tapashya dwara santustata ka certificate prapt karnewale sarb ki duaon ke adhikari Bhav.
Slogan – Samay ko amulya samjhkar safal karo toh samay par dhoka ni khayenge.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
03/09/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 24-10-81
"सच्चे आशिक की निशानी"
आज बाप कहाँ आये हैं और किन्हों से मिलने आये हैं, जानते हो? किस रूप से विशेष मिलने आये हैं? जैसे बाप का रूप वैसे बच्चों का रूप। तो आज किस रूप से बाप मिलने आये हैं, जानते हो? लोगों ने यह जो गलती कर दी है कि परमात्मा के अनेक रूप हैं, यह गलती है वा राइट है? इस समय बाप अनेक सम्बन्धों के अनेक रूपों से मिलते हैं। तो एक के अनेक रूप, सम्बन्ध के आधार से वा कर्तव्य के आधार से प्रैक्टिकल में हैं ना। तो भक्त भी राइट हैं ना। आज किस रूप में बाप मिलने आये हैं और कहाँ मिल रहे हैं? आज की मुरली में (सवेरे) वह सम्बन्ध सुना है। तो बाप कौन हुआ और आप कौन हुए? आज रूहानी माशूक रूहानी आशिकों से मिलन मनाने आये हैं। कहाँ मिलने आये हैं? सबसे ज्यादा मिलने का प्रिय स्थान कौन-सा है? रूहानी माशूक आप आशिकों को आदि के समय में कहाँ पर ले जाते थे, याद है ना? (सागर पर) तो आज भी सर्व खजानों और गुणों से सम्पन्न, सागर के कण्ठे पर, साथ में ऊंची स्थिति की पहाड़ी पर, शीतलता की चांदनी में रूहानी माशूक, रूहानी आशिकों से मिल रहे हैं। सागर है सम्पन्नता का और पहाड़ी है ऊंची स्थिति की। सदा शीतल स्वरूप है चांदनी। तीनों ही साथ में हैं। आज रूहानी आशिकों को देख रूहानी माशूक हर्षित हो रहे हैं और कौन-सा गीत गाते हैं? (हरेक अपना-अपना गीत सुना रहे हैं) वैसे तो एक ही गीत सुन सकते हैं लेकिन बाप सभी का गीत सुन सकते हैं। आशिक अपना गीत गा रहे हैं और माशूक गीत का रेसपान्ड कर रहे हैं। जो भी गीत गाओ सब ठीक है। हर एक के स्नेह के बोल बाप स्नेह से ही सुनते हैं। आशिकों को माशूक को याद करना सहज है ना? सहज और निरन्तर याद का सम्बन्ध और स्वरूप यह रूहानी आशिक और माशूक का है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन याद भुलाते भी भूल नहीं सकती।
आज हर एक आशिक के स्नेह को देख क्या देखा? आशिक अनेक और माशूक एक। लेकिन अनेक अनुभव यही कहते हैं कि मेरा माशूक क्योंकि स्नेह का सागर रूहानी माशूक है! तो सागर बेहद है इसलिए जितने भी, जितना भी स्नेह लें फिर भी सागर अखुट और सम्पन्न है इसलिए मुझे कम, तुम्हें ज्यादा यह बातें नहीं। लेने वाले जितना लें। स्नेह के भण्डार भरपूर हैं। लेने वाले लेने में नम्बरवार हो जाते हैं लेकिन देने वाला सबको नम्बरवन देता है। लेने वाले समाने में नम्बरवार हो जाते हैं। प्यार करना सबको आता है लेकिन तोड़ निभाने में नम्बर हो जाते हैं। “मेरा माशूक” सब कहते हैं लेकिन मेरा कहते भी क्या करते हैं? जानते हो क्या करते हैं? आज तो रूहरिहान करने आये हैं, मुरली चलाने नहीं आये हैं। तो बताओ क्या करते हैं? मेरा भी कहते लेकिन कभी-कभी कहाँ फेरा भी लगाकर आते हैं। फिर फेरा लगाने के बाद जब थक जाते हैं तब फिर कहते हैं “मेरा माशूक”। और कई आशिक नाज़ भी बहुत करते हैं। क्या नाज़ करते हैं? (दीदी - दादी को) नाज़-नखरे तो साकार में आपके आगे ही बहुत दिखाते हैं ना। इतना नाज़ दिखाते हैं - हम तो ऐसे करेंगे, हम तो ऐसे चलेंगे, आपका काम है हमें बदलना। हम तो ऐसे ही हैं। बाप की बातें बाप को सुनाने का नाज़ रखते हैं। एक बोल तो अच्छी तरह से याद करते हैं - “जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ लेकिन आपकी हूँ” माशूक भी कहते - हो तो हमारी लेकिन जोड़ी तो ठीक बनो ना! अगर समान जोड़ी नहीं होगी तो दृश्य देखने वाले क्या कहेंगे? माशूक सजा-सजाया और आशिक बिना श्रृंगारी हुई, शोभेगी? तो आप स्वयं ही सोचो - वह चमकीली ड्रेस वाले और आशिक काली ड्रेस वाली वा दागों वाली ड्रेस पहने हुए, तो अच्छा लगेगा? क्या समझते हो? फिर कहते क्या हैं? हमारे दागों को मिटाना तो आपका काम है। लेकिन जब माशूक ड्रेस ही परिवर्तन कर देते हैं, तो वह क्यों नहीं पहनते! दाग मिटाने में भी समय क्यों गंवायें! माशूक का बनना अर्थात् सबका परिवर्तन होना। तो पुरानी काली, अनेक दागों वाली ड्रेस की स्मृति क्यों लाते हो अर्थात् बार-बार धारण क्यों करते हो? चमकीली ड्रेस वाले चमकते हुए श्रृंगारधारी बन माशूक के साथ चमकीली दुनिया में क्यों नहीं रहते! वहाँ कोई दाग लग ही नहीं सकता।
तो हे आशिकों, सदा माशूक समान सम्पन्न और सदा चमकीले स्वरूप में अर्थात् सम्पूर्ण स्वरूप में स्थित रहो। माशूक को और भी एक बात की मेहनत करनी पड़ती है। जानते हो किस बात की मेहनत करनी पड़ती है? वह भी रमणीक बात है। जो वायदा किया है माशूक ने आशिकों के साथ, कि “साथ ले जायेंगे”। तो क्या करते हैं? माशूक है बहुत हल्का और आशिक इतने भारी बन जाते, जो माशूक को ले जाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। तो यह भी जोड़ी अच्छी लगेगी? माशूक कहते हैं हल्के बन जाओ। तो क्या करते हैं? हल्के होने का साधन जो एक्सरसाइज है, वह करते नहीं। तो हल्के कैसे बनें? रूहानी एक्सरसाइज तो जानते हो ना! अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। सेकेण्ड में स्वरूप बन जाना - यह है रूहानी एक्सरसाइज। और कौन-सा बोझ अपने ऊपर रखते हैं? वेस्ट की वेट बहुत है इसलिए हल्के नहीं हो सकते। कोई समय के वेस्ट के वेट में हैं, कोई संकल्पों के और कोई शक्तियों को वेस्ट करते हैं। कोई सम्बन्ध और सम्पर्क वेस्ट अर्थात् व्यर्थ बना लेते हैं। ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के वेट बढ़ने के कारण माशूक समान डबल लाइट बन नहीं सकते। सच्चे आशिक की निशानी है - “माशूक के समान” अर्थात् माशूक जो है, जैसा है वैसे समान बनना। तो सभी कौन हो? आशिक तो हो ही लेकिन माशूक समान आशिक हो? समानता ही समीपता लाती है! समानता नही तो समीप भी नहीं हो सकते। गायन भी करते हैं 16 हजार पटरानियां थीं। 16 हजार में भी नम्बर तो होंगे ना! एक माशूक के इतने आशिक दिखाये तो हैं लेकिन अर्थ नहीं समझते हैं। रूहानियत को भूल गये हैं। तो आज रूहानी माशूक, आशिकों को कहते हैं- “समान बनो” अर्थात् समीप बनो। अच्छा।
चांदनी में बैठे हो ना? शीतल स्वरूप में रहना अर्थात् चांदनी में बैठना। सदा ही चांदनी रात में रहो। चांदनी रात में ड्रेस भी स्वत: चमकीली हो जायेगी। जहाँ देखेंगे वहाँ चमकते हुए दिखाई देंगे। और सदा सागर के कण्ठे पर रहो अर्थात् सदा सागर समान सम्पन्न स्थिति में रहो। समझा कहाँ रहना है? माशूक को यही किनारा प्रिय है। अच्छा।
सदा माशूक समान, साथ से साथ, हाथ में हाथ अर्थात स्नेही और सहयोगी, साथ अर्थात् स्नेह, हाथ अर्थात् सहयोग, ऐसे मेरा तो एक माशूक दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में सदा सहज रहने वाले, ऐसे सच्चे आशिकों को रूहानी माशूक का याद-प्यार और नमस्ते।
आज देहली और गुजरात आया है। दिल्ली वाले यह तो नहीं समझते हैं कि हमारे यहाँ जमुना का किनारा है, सागर तो है नहीं। संगम पर सागर है और भविष्य में नदी का किनारा है। संगम में खेला भी सागर के किनारे पर है ना। तो संगम पर है सागर का किनारा और भविष्य की बातें हैं जमुना का किनारा। तो देहली और गुजरात का क्या सम्बन्ध है? देहली है जमुना का किनारा और गुजरात है गरबा करने वाले। तो किनारे पर रास मशहूर है ना, जमुना किनारे पर। इसीलिए दिल्ली और गुजरात दोनों आ गये हैं। अच्छा - विदेश भी आया है। विदेश वाले जैसे अभी निमंत्रण देते हैं ना, आओ चक्कर लगाने आओ। दीदी आवे, दादी आवे, फलाने आवें, तो जैसे अभी चक्कर लगाने जाते हो - थोड़े टाइम के लिए, ऐसे ही भविष्य में भी चक्कर लगाने जायेंगे। सेकेण्ड में पहुँचेंगे। देरी नहीं लगेगी क्योंकि एक्सीडेंट तो होगा नहीं इसलिए स्पीड की कोई लिमिट की आवश्यकता नहीं। एक ही दिन में सारा चक्कर लगा सकते हो। सारा वर्ल्ड एक दिन में घूम सकते हो। यह एटम एनर्जी आपके काम में आनी है। रिफाइन करने में लगे हुए हैं ना। यह आप लोगों को कोई दु:ख नहीं देगी। सबसे ज्यादा सेवा कौन-सा तत्व करेगा? सूर्य। सूर्य की किरणें भिन्न-भिन्न प्रकार की कमाल दिखायेंगी। यह सब आपके लिए तैयारियां हो रही हैं। गैस जलाने की, कोयले जलाने की, लकड़ी जलाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सबसे छूट जायेंगे। अच्छा - बहुत रंगत देखते जायेंगे। वह मेहनत करेंगे और आप फल खायेंगे। फिर यह वायर्स (तारें) वगैरा लगाने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बिना मेहनत के नैचुरल नेचर द्वारा नैचुरल प्राप्ति हो जायेगी। लेकिन इसके लिए, नेचर के सुख लेने के लिए भी अपनी आरिज्नल नेचर को बनाओ, तब नेचर द्वारा सर्व सुखों को प्राप्त कर सकेंगे। नैचुरल नेचर अर्थात् अनदि संस्कार। सुनते हुए भी अच्छा लगता है तो जब प्रालब्ध में होंगे तो कितना अच्छा लगेगा! जैसे यहाँ पंछी उड़ते हैं, वैसे वहाँ विमान उड़ेंगे। कितने होंगे? जैसे यहाँ पंछियों का संगठन लाइन में जाता है, वैसे विमानों के संगठन जायेंगे। ऐसे नहीं एक जायेगा तो दूसरा नहीं जा सकेगा। ऐसे भिन्न-भिन्न डिज़ाइन में जायेंगे। राज्य फैमिली अपनी डिज़ाइन में जायेगी, साहूकार अपनी डिज़ाइन में जायेंगे। जहाँ चाहो वहाँ उतार लो। अभी प्रकृतिजीत बनो तो प्रकृति दासी बनेगी। अभी प्रकृतिजीत कम तो प्रकृति दासी भी कम होगी! समझा - अच्छा।
मधुबन निवासियों से:-
मधुबन निवासी कौन हैं? मधुबन निवासियों को कौन सा टाइटल देंगे? नया कोई टाइटल सुनाओ? इस समय कौन सी चीज़ मधुबन में लगाई है? फोटोस्टेट मशीन लगाई है ना। तो मधुबन निवासी फोटो स्टेट कापी है। जैसे बाप वैसे बच्चे। उस मशीन में हूबहू होता है ना। मशीन की यही विशेषता है ना, जो ज़रा भी फर्क नहीं आता। तो मधुबन निवासी फोटो कापी हो। मधुबन है मशीन और मधुबन निवासी हैं फोटो। तो आपके हर कर्म विधाता की कर्म रेखायें बतायें। कर्म द्वारा ही भाग्य की लकीर खींचते हो तो आप सबका हर कर्म श्रेष्ठ भाग्य की कर्म की लकीर खींचने वाला हो। जैसे बापदादा का हर कर्म स्व के प्रति और अनेकों के प्रति भाग्य की लकीर खीचने वाला रहा, ऐसे ही बाप समान। मधुबन में इतने साधन, इतना सहयोग, इतना श्रेष्ठ संग प्राप्त है, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु... मधुबन के भण्डारे में, तो सर्व प्राप्तिवान क्या हो गये? सम्पूर्ण हो गये ना। किस बात की कमी है? अगर कमी है तो स्व के धारणा की। मधुबन वालों का सदा एक निज़ी संस्कार इमर्ज रूप में होना चाहिए। वह कौन सा, कर्म में सफलता पाने के लिए ब्रह्मा बाप का निज़ी संस्कार कौन सा था, जो आप सबका भी वही संस्कार हो? हाँ जी के साथ-साथ “पहले आप”, “पहले मैं” नहीं, पहले आप। जैसे ब्रह्मा बाप ने पहले जगत-अम्बा को किया ना। कोई भी स्थान में पहले बच्चे, हर बात में बच्चों को अपने से आगे रखा। जगत-अम्बा को अपने आगे रखा। “पहले आप” वाला ही “हाँ जी” कर सकता है इसलिए मुख्य बात है “पहले आप” लेकिन शुभ भावना से। कहने मात्र नहीं, लेकिन शुभचिन्तक की भावना से। शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के आधार से ‘पहले आप' करने वाला स्वयं ही पहले हो जाता है। पहले आप कहना ही पहला नम्बर होना है। जैसे बाप ने जगदम्बा को पहले किया, बच्चों को पहले किया लेकिन फिर भी नम्बरवन गया ना। इसमें कोई स्वार्थ नहीं रखा, नि:स्वार्थ “पहले आप” कहा, करके दिखाया। ऐसे ही पहले आप का पाठ पक्का हो। इसने किया अर्थात् मैंने किया। इसने क्यों किया, मैं ही करूँ, मैं क्यों नहीं करूँ, मैं नहीं कर सकता हूँ क्या! यह भाव नहीं। उसने किया तो भी बाप की सेवा, मैंने किया तो भी बाप की सेवा। यहाँ कोई को अपना-अपना धन्धा तो नहीं है ना। एक ही बाप का धंधा है। ईश्वरीय सेवा पर हो। लिखते भी हो गाडली सर्विस, मेरी सर्विस तो नहीं लिखते हो ना। जैसे बाप एक है, सेवा भी एक है, ऐसे ही इसने किया, मैंने किया वह भी एक। जो जितना करता, उसे और आगे बढ़ाओ। मैं आगे बढ़ूं, नहीं। दूसरों को आगे बढ़ाकर आगे बढ़ो। सबको साथ लेकर जाना है ना। बाप के साथ सब जायेंगे अर्थात् आपस में भी तो साथ-साथ होंगे ना। जब यही भावना हरेक में आ जायेगी तो ब्रह्मा बाप की फोटो स्टेट कापी हो जायेंगे।
मधुबन निवासियों को देखा अर्थात् ब्रह्मा को देखा क्योंकि कापी तो वही है ना। फिर ऐसा कोई नहीं कहेगा कि हमने तो ब्रह्मा बाप को देखा ही नहीं। आपके कर्म, आपकी स्थिति ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखायें। यह है मधुबन निवासियों की विशेषता क्योंकि मधुबन निवासियों को सब फालो करते हैं। तो मधुबन वाले एक-एक मास्टर ब्रह्मा हो। अभी देखो ब्रह्मा बाप का फोटो किसी को भी दो तो प्यार से सम्भाल लेते हैं, सबसे बढ़िया सौगात इसी को मानते हैं तो आप सब भी ब्रह्मा बाप की फोटो हो जाओ। ब्रह्मा बाप समान हो जाओ तो आप भी अमूल्य सौगात हो जायेंगे। अच्छा।
वरदान:दिल की तपस्या द्वारा सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले सर्व की दुआओं के अधिकारी भव
तपस्या के चार्ट में अपने को सर्टीफिकेट देने वाले तो बहुत हैं लेकिन सर्व की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट तभी प्राप्त होता है जब दिल की तपस्या हो, सर्व के प्रति दिल का प्यार हो, निमित्त भाव और शुभ भाव हो। ऐसे बच्चे सर्व की दुआओं के अधिकारी बन जाते हैं। कम से कम 95 परसेन्ट आत्मायें सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट दें, सबके मुख से निकले कि हाँ यह नम्बरवन है, ऐसा सबके दिल से दुआओं का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले ही बाप समान बनते हैं।
स्लोगन:समय को अमूल्य समझकर सफल करो तो समय पर धोखा नहीं खायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 4th Sep 2017 )
04.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - yah Ravan ki Shokvatika hai, jisme sab dukhi hain, abhi tum Ravan ko bhaga rahe ho fir jay-jaykar ho jayegi, sab Ashokvatika me chale jayenge.
Q- Praja me bhi oonch pad kis aadhar par prapt ho sakta hai, uska mishal kaun sa hai?
A- Praja me bhi oonch pad paane ke liye jo bhi chawal mutthi tumhare paas hai wo sab Sudame mishal Baap hawale karo. Dikhate hain na - Sudama ne chawal mutthi di to Mahal mil gaye. Baki Rajai pad ke liye to achchi riti padhna hai, poora pavitra banna hai. Apna sab kuch insure kar dena hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Rajai pad lene ke liye poora Shrimat par chalna hai. Kisi bhi chiz me mamatva nahi rakhna hai. Mera to ek Baap....yahi paath pakka karna hai.
2) Hear no evil, see no evil.....talk no evil..... Baap ke is direction par chal mandir layak banna hai.
Vardaan:-- Bhinn-bhinn sthitiyon ke ashan par ekagra ho baithne wale Rajyogi, Swarajya adhikari bhava.
Slogan:- Bafadar wo hai jise sankalp me bhi koi dehadhari akarshit na kare.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
04/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"
“मीठे बच्चे - यह रावण की शोकवाटिका है, जिसमें सब दु:खी हैं, अभी तुम रावण को भगा रहे हो फिर जय-जयकार हो जायेगी, सब अशोकवाटिका में चले जायेंगे”
प्रश्न: प्रजा में भी ऊंच पद किस आधार पर प्राप्त हो सकता है, उसका मिसाल कौन सा है?
उत्तर: प्रजा में ऊंच पद पाने के लिए जो भी चावल मुट्ठी तुम्हारे पास हैं वह सब सुदामे मिसल बाप हवाले करो। दिखाते हैं ना - सुदामा ने चावल मुट्ठी दी तो महल मिल गये। बाकी राजाई पद के लिए तो अच्छी रीति पढ़ना है, पूरा पवित्र बनना है। अपना सब कुछ इनश्योर कर देना है।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज.... ओम् शान्ति।
परमपिता परमात्मा को खिवैया भी कहते हैं। खिवैया बोटमेन को कहा जाता है। जो बोट (नांव) में बिठाए उस पार ले जाये। तो बाप खिवैया है, उस पार ले जाने वाला। झूठ खण्ड में है झूठी कमाई। सचखण्ड के लिए तो यह सच्ची कमाई है, वह है झूठी कमाई। अभी भारत पतित है। भारत भी कितना बड़ा है। दुनिया भी कितनी बड़ी है। बच्चों की बुद्धि में रहता है - पुरानी दुनिया में पुराना भारत है। कल का भारत अथवा कल की दुनिया क्या होगी! तुम जानते हो अभी कितने मनुष्य हैं। कितने खण्ड हैं, कल जरूर भारत ही होगा। दैवी राज्य होगा। सोने की द्वारिका होगी। गोया भारत में कृष्णपुरी होगी। लंका नहीं होगी। सारी लंका सोने की नहीं बनती है। भारत सोने का बन जाता है। लंका अर्थात् रावणराज्य खत्म हो जाता है। भारत द्वारिका बन जाता है जिसको कृष्णपुरी कहते हैं। द्वारिका होती है भारत में। भारत सोने का हो जाता है। द्वारिका भी एक राजधानी हो जाती है। कहते हैं - जमुना नदी पर देहली परिस्तान था, श्री लक्ष्मी-नारायण जहाँ रहते थे। द्वारिका में फिर दूसरी राजधानी होती है। द्वारिका में जब राज्य होता है तब लक्ष्मी-नारायण नहीं होते। वहाँ फिर दूसरे का राज्य होता है। कैपीटल जमुना का किनारा है। वहाँ फिर दूसरी राजाई नहीं रहती।
अभी तुम जानते हो यह सारी पुरानी दुनिया भारत सहित जो भी है, यह सब स्वाहा हो जाता है - इस ज्ञान यज्ञ में। यह बड़ा बेहद का यज्ञ हुआ ना, इनमें पुरानी दुनिया सारी स्वाहा होनी है। यह बच्चों की दिल में रहना चाहिए। यह रावण की कितनी बड़ी दुनिया है। राम की इतनी बड़ी थोड़ेही होगी। वहाँ तो भारत ही स्वर्ग होगा, दूसरे खण्डों का नाम-निशान नहीं होगा। यह समझ की बात है, जो बुद्धि में धारण करनी है। आज पुरानी दुनिया है - कल नई दुनिया बनेंगी। तुम ब्राह्मण डिनायस्टी ही दैवी डिनायस्टी बनेंगे। यह ब्राह्मण ही पढ़कर नम्बरवार डिनायस्टी बनेंगे। अभी शूद्र डिनायस्टी है। आखिर बाप को आना ही पड़ता है - यह दुनिया नहीं जानती।
बाबा ने प्रश्नावली के पोस्टर बहुत अच्छे बनवाये थे, जिससे मनुष्यों को बाप का परिचय मिल जाए। परन्तु सम्मुख समझाने के बिगर कोई समझ नहीं सकेंगे। तुमको ही बाप कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल..... ऐसा खिलौना बन्दर का बनाया है। तुम भी बन्दर मिसल थे। अभी तुम्हारी सूरत बदली है। जिनमें 5 विकार हैं उनको ही कहेंगे बन्दर। जैसे नारद की सूरत दिखाई है, उसने कहा कि हम लक्ष्मी को वरें - तो कहा कि आइने में अपना मुँह तो देखो। यह तो एक कथा बना दी है। बातें सारी यहाँ की हैं। कोई पूछते हैं हम लक्ष्मी को वर सकते हैं? बाबा कहते हाँ पहले बन्दरपना तो छोड़ो तो क्यों नहीं वर सकते हो।
बाबा ने तुमको समझदार बनाया है फिर तुम्हारे द्वारा सभी आत्माओं को रावण की जंजीरों से छुड़ाए शिवालय में ले जाते हैं अथवा अशोकवाटिका में ले जाते हैं। इस समय सब शोकवाटिका में हैं। अभी तुम रावण को भगा रहे हो फिर जय-जयकार हो जायेगी। सब भक्तियां, सीतायें हैं। एक राम ही भगवान है। पुकारते भी हैं हे राम। वास्तव में राम शिवबाबा को कहा जाता है। बाबा ने आकर समझाया है, राम ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। स्वर्ग में ले जाते हैं, जिसको रामराज्य कहा जाता है। बाबा ने पोस्टर बहुत अच्छे बनवाये थे। तुम बच्चों को गीता पाठशालाओं में जाकर समझाना है। हम लिखते भी हैं परमपिता, फिर पूछते हैं कि परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? जरूर कहेंगे वह सबका बाप है। अच्छा जब हम उनके बच्चे हैं, वह तो बेहद का बाप नई दुनिया रचने वाला है फिर तो हमको जरूर स्वर्ग में होना चाहिए। यहाँ नर्क पतित दुनिया में क्यों पड़े हो? लक्ष्मी-नारायण का राज्य क्यों नहीं है? भारत को स्वर्ग का स्वराज्य था ना। अब कलियुग में रावणराज्य है। तुम स्वर्ग के मालिक थे ना और कोई धर्म नहीं था - आज से 5 हजार वर्ष पहले लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। राजायें भी डबल सिरताज थे। पवित्रता का भी ताज था और रतन जड़ित ताज भी था। रामराज्य तो पीछे होता है, तो बुद्धि में आना चाहिए कि भारत में बरोबर इन्हों का राज्य था। यह लक्ष्मी-नारायण ही पहले-पहले नम्बर के हैं। सतयुग में दैवी गुणों वाले मनुष्य थे फिर 84 जन्म भी इन्हों को ही लेने पड़ते हैं। अब वह लक्ष्मी-नारायण कहाँ हैं? सब पतित दुनिया में हैं ना। फिर उन्हों को बाप बैठ राजयोग सिखलाते हैं, जिन्होंने अपना राज्य गॅवाया है, वही फिर राजधानी प्राप्त करने के लिए फिर से राजयोग सीख रहे हैं। तुमको याद है कि हम हर 5000 वर्ष बाद राज्य लेने बाप द्वारा राजयोग सीखते हैं। आधाकल्प सुख का राज्य करते हैं फिर आधाकल्प रावणराज्य में दु:ख का राज्य होता है। अभी हम फिर पढ़ रहे हैं। हर 5 हजार वर्ष बाद भगवान बाप आकर पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - कौन सा भगवान? वह तो कृष्ण के लिए कह देते हैं। तुम तो कहते हो एक ही निराकार शिव भगवान है। श्रीकृष्ण तो देवता है, फिर पूछा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? वह तो पिता ठहरा ना। एक दादा एक बाबा। इस समय तुमको दो बाप हैं। तीसरा है लौकिक शरीर देने वाला बाप। यह दो हैं प्रजापिता ब्रह्मा और शिवबाबा। लौकिक बाप से तुम हद का वर्सा लेते हो, अब पारलौकिक बाप कहते हैं मेरे से बेहद का वर्सा लो। परमपिता परमात्मा आकर पतितों को पावन बनाते हैं और राज्य करने लायक बनाते हैं। तीसरा प्रश्न फिर पूछा जाता है कि गीता का भगवान कौन? मनुष्य तो कह देते हैं श्रीकृष्ण। तुम कहते हो कृष्ण गीता का भगवान है नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कहा जाता है। शिव को ही भगवान कहेंगे क्योंकि वह है निराकार और यह प्रजापिता ब्रह्मा है साकार। तो भगवान एक शिव ही ठहरा। यह भी बाबा ने समझाया है तुम शिव शक्तियां हो, सेना भी हो। तुम विकारों को छोड़, निर्विकारी पावन बन अपना राज्य लेती हो। फिर यह रावणराज्य खत्म हो जायेगा। अभी तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो, कल इनके मालिक बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण को राज्य किसने दिया? हम कहेंगे इन्हों को राज्य देने वाला परमपिता परमात्मा शिव है। जो अब दे रहे हैं। शिवबाबा कहते हैं आगे भी हमने तुमको राज्य दिया था, अब फिर सिखला रहा हूँ। यह सब खत्म हो जायेगा। पावन दुनिया स्थापन हो जायेगी फिर तुम वहाँ सोने हीरों के महल बनायेंगे। राज्य करेंगे। तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही यह है। सो हम लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। यह है ऊंच ते ऊंच पद। इन्हों को किसने पढ़ाया? जरूर ऊंच ते ऊंच बाप ने ही पढ़ाया है। अब फिर से राजयोग सीखते हैं जो फिर भविष्य में यह पद पायेंगे। ततत्वम्। इतने में सब धर्म खत्म हो जायेंगे। ब्रह्मा द्वारा दैवी धर्म की स्थापना, शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश, फिर विष्णु द्वारा पालना। लक्ष्मी-नारायण फिर पालना करेंगे। यह समझने की बातें हैं।
तुम्हारी जो जीवन है इनको अमूल्य कहा जाता है। शिवबाबा द्वारा तुम्हें यह लाटरी मिलती है। रेस में जो पहला नम्बर आता है उनको बड़ा इनाम मिलता है। तो यह लक्ष्मी-नारायण पहले नम्बर में हैं। इन्हों की दौड़ी तुमसे जास्ती है। पहले नम्बर में है ब्रह्मा फिर सरस्वती, इनको योगबल की दौड़ी कहा जाता है। बाबा ने समझाया है सतयुग में पहले लक्ष्मी फिर नारायण कहेंगे। यहाँ तो सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है इसलिए सरस्वती ब्रह्मा नहीं कहेंगे। पहले ब्रह्मा फिर उनकी बेटी सरस्वती। जगतपिता और जगत माता कहेंगे। यह स्त्री पुरूष तो हो न सकें। यह फिर जब सतयुग में जायेंगे तब नाम बदल जायेगा। पहले लक्ष्मी फिर नारायण यहाँ पहले ब्रह्मा फिर सरस्वती है क्योंकि बेटी है ना। अभी तुम जानते हो हम मनुष्य से देवता बनते हैं, जितना जास्ती पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद मिलेगा। तुम जैसे बेगर टू प्रिन्स बन रहे हो। अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ेंगे तो राजा बनेंगे। अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे, पवित्र नहीं रहेंगे तो राजाई भी नहीं पायेंगे। शिवबाबा तो राजाई का वर्सा देते हैं। अगर कोई राजाई नहीं लेते हैं, पवित्र नहीं बनते हैं तो प्रजा में चले जाते हैं। अच्छा प्रजा में भी नम्बरवार हैं। कोई पूछते हैं प्रजा में हम ऊंच पद कैसे पायें? फिर मिसाल समझाया जाता है सुदामा का। चावल-मुट्ठी दी तो महल मिल गये। यहाँ जो चावल-मुट्ठी देते हैं तो 21 जन्म लिए महल मिल जाते हैं। यह है इन्श्योरेन्स। हर एक अपने को इनश्योर करते हैं - भगवान के पास। ईश्वर अर्थ गरीबों को देते हैं। कोई अन्न देते, कोई धन देते हैं, कोई फिर मकान बनाकर देते हैं। धर्माऊ जरूर कुछ न कुछ निकालते रहते हैं क्योंकि पाप बहुत करते हैं इसलिए दान पुण्य करते हैं तो गोया इनश्योर किया ना। दान पुण्य अनुसार दूसरे जन्म में अच्छे घर में जन्म मिलता है। समझो किसने हॉस्पिटल बनाई होगी तो दूसरे जन्म में रोगी कम होगा। कोई ने युनिवर्सिटी बनाई होगी तो दूसरे जन्म में उनका फल मिलेगा। पढ़ेगा बहुत अच्छा। वह हुआ इनडायरेक्ट दान-पुण्य करना। अभी तो बाप डायरेक्ट कहते हैं कि जितना इनश्योर करेंगे - 21 जन्मों के लिए तुमको भविष्य में मिलेगा। फिर जितना करो। बाप तो दाता है। शिवबाबा तुम्हारा क्या करेगा। वह तो कहते हैं सब कुछ बच्चों के लिए ही है। मनुष्य दान गरीबों को करते हैं तो ईश्वर द्वारा उनको फल मिलता है। यहाँ भी शिवबाबा कहते हैं - तुम मुट्ठी देते हो तो नई दुनिया में तुम्हें 21 जन्मों के लिए फल मिलेगा। चाहे सूर्यवंशी राजाई, चाहे चन्द्रवंशी राजाई लो। चाहे साहूकार प्रजा बनो, चाहे गरीब प्रजा बनो। श्रीमत तुमको मिलती रहती है। जिससे तुम श्रेष्ठ राजा रानी बनेंगे या तो प्रजा। सो तो साक्षी होकर देखते रहते हो। बाप कहते हैं - तुमको जो चाहे सो लो। इनको इनश्योर मैगनेट कहा जाता है। यह है गुप्त।
अभी तुम जानते हो बाबा सम्मुख आया हुआ है - हमको 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। जितना इनश्योर करेंगे, बाबा कहते हैं हमारा बनेंगे तो तुम्हारा हक है राजाई लेना। बाप का कैसे बनते हैं? कहते हैं बाबा हमारे पास यह-यह है। बाप कहते हैं तुम तो कहते हो ना - यह सब ईश्वर ने दिया है। बस ऐसा नहीं समझो यह मेरा है। अपना ममत्व नहीं रखो। ममत्व रखेंगे तो राजाई नहीं मिलेगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते श्रीमत पर चलो तो ममत्व नहीं रहेगा। तुम्हारी तो गैरन्टी थी ना - बाबा आप आयेंगे - तो हम आपके बन जायेंगे। मेरे तो एक आप ही हो। अब बाप के पास जाते हैं। बाबा फिर स्वर्ग में भेज देंगे। बाबा रोज़-रोज़ सुनाते रहते। सुनाते सुनाते कितने वर्ष हो गये। अब बाकी थोड़ा समय है। यह बाबा का लांग बूट है ना। बाबा ने पुरानी जुत्ती में प्रवेश किया है। कहते हैं बच्चों को सृष्टि के आदि मध्य अन्त का समाचार सुनाता हूँ। मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, लिबरेटर हूँ। सुख कर्ता, दु:ख हर्ता हूँ। जितना तुम बाप को याद करते जायेंगे तो पाप कटते जायेंगे। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) राजाई पद लेने के लिए पूरा श्रीमत पर चलना है। किसी भी चीज़ में ममत्व नहीं रखना है। मेरा तो एक बाप... यही पाठ पक्का करना है।
2) हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... बाप के इस डायरेक्शन पर चल मन्दिर लायक बनना है।
वरदान: भिन्न-भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठने वाले राजयोगी, स्वराज्य अधिकारी भव
राजयोगी बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न स्थितियां ही आसन हैं, कभी स्वमान की स्थिति में स्थित हो जाओ तो कभी फरिश्ते स्थिति में, कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में, कभी प्यार स्वरूप लवलीन स्थिति में। जैसे आसन पर एकाग्र होकर बैठते हैं ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित हो वैराइटी स्थितियों का अनुभव करो। जब चाहो तब मन-बुद्धि को आर्डर करो और संकल्प करते ही उस स्थिति में स्थित हो जाओ तब कहेंगे राजयोगी स्वराज्य अधिकारी।
स्लोगन: वफादार वह है जिसे संकल्प में भी कोई देहधारी आकर्षित न करे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 5th Sep 2017 )
05.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Is dukh ke ghaat par baith Shantidham aur Sukhdham ko yaad karo, is Dukhdham ko bhool jao, yahan buddhi bhatakni nahi chahiye.
Q- Tumhara purusharth ka aadhar kya hai?
A- Nischay. Tumhe nischay hai-Baap nayi duniya ki sougaat laye hain, is poorani duniya ka binash hona he hai. Is nischay se tum purusharth karte ho. Agar nischay nahi hai to sudhrenge nahi. Agey chal akhbaro dwara tumhara message sabko milega, awaaz niklega. Tumhara nischay bhi pakka hota jayega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Padhai ko achchi tarah padhkar oonch pad pana hai. Afate ane ke pehle nayi duniya ke liye taiyyar hona hai.
2) Apne ko sudharne ke liye nischay buddhi banna hai. Vani se pare vanaprasth me jaana hai isiliye is Dukhdham ko bhool Shantidham aur Sukhdham ko yaad karna hai.
Vardaan:-Knowledgeful ban har karm ke parinam ko jaan karm karne wale Master Trikaldarshi bhava
Slogan:- Ek do ko copy karne ke bajaye Baap ko copy karo to Shrest aatma ban jayenge.
“मीठे बच्चे - इस दु:ख के घाट पर बैठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ, यहाँ बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए”
प्रश्न: तुम्हारे पुरूषार्थ का आधार क्या है?
उत्तर: निश्चय। तुम्हें निश्चय है - बाप नई दुनिया की सौगात लाये हैं, इस पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है। इस निश्चय से तुम पुरूषार्थ करते हो। अगर निश्चय नहीं है तो सुधरेंगे नहीं। आगे चल अखबारों द्वारा तुम्हारा मैसेज सबको मिलेगा, आवाज निकलेगा। तुम्हारा निश्चय भी पक्का होता जायेगा।
ओम् शान्ति।
टॉवर आफ साइलेन्स और टॉवर आफ सुख। तुम बच्चे यहाँ बैठे हो तो तुम्हारी बुद्धि घर में जानी चाहिए। वह है शान्ति का टॉवर। ऊंच ते ऊंच को टॉवर कहा जाता है। तुम शान्ति के टॉवर हो। घर में जाने के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। कैसे जाते हो? जो टॉवर में रहने वाला बाप है, वह शिक्षा देते हैं कि मुझे याद करो तो शान्ति के टॉवर में आ जायेंगे। उसको घर भी कहा जाता है, शान्तिधाम भी कहा जाता है। यह बातें समझाई जाती हैं। अपने शान्तिधाम, सुखधाम की याद में रहो। नहीं रह सकते हो तो गोया जंगल के कांटे हो, इसलिए दु:ख भासता है। अपने को शान्तिधाम के निवासी समझो। अपने घर को याद करना है ना। भूलना नहीं है। घर है ही बाप का। यह है ही दु:ख का घाट। यहाँ बैठे भी जिनको बाहर की बातें याद आती हैं तो ऐसे नहीं कहेंगे कि इनको अपना घर याद है इसलिए बाप रोज़ शिक्षा देते रहते हैं - घड़ी-घड़ी शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो। गीता में भी बाप के महावाक्य हैं कि मुझे याद करो। भगवान क्या बनायेंगे? स्वर्ग का मालिक बनायेंगे और क्या! जब स्वर्ग का मालिक बनने बैठे हो तो घर के लिए, स्वर्ग के लिए जो बाप श्रीमत देते हैं - उस पर पूरा-पूरा चलना है। दुनिया में कितने ढेर के ढेर गुरू हैं। बाप ने समझाया है कि कोई भी धर्म स्थापक को गुरू नहीं कहा जाता है। वह तो सिर्फ धर्म स्थापन के लिए आते हैं। वापिस ले जाने थोड़ेही आते हैं। गुरू अर्थात् जो वापिस निर्वाणधाम, वानप्रस्थ में ले जाये। परन्तु एक भी गुरू वापिस ले जाने वाला है नहीं। एक भी निर्वाणधाम में जाते नहीं। वाणी से परे अर्थात् घर। वानप्रस्थ का अर्थ न गुरू लोग जानते, न फालोअर्स ही जानते। तो बच्चों को कितना समझाया जाता है। यह चित्र हैं सतयुग के और वह चित्र हैं त्रेता के। उन्हों को भगवान नहीं कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण को भी भगवान-भगवती नहीं कहा जाता। आदि सनातन है देवी-देवता धर्म। सिवाए देवी-देवताओं के कोई भी स्थाई पवित्र होते नहीं। 21 जन्म पवित्र सिर्फ एक ही धर्म रहता है। फिर धीरे-धीरे अवस्था कम होती जाती है। त्रेता में दो कला कम तो सुख भी कम हो जाता है। उसको कहा जाता है त्रेतायुग 14 कला। अभी तुमको बाप का परिचय है और सृष्टि चक्र का ज्ञान है। उसको ही तुम याद करते हो, परन्तु कइयों की बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती रहती है, याद नहीं करते हैं। अच्छा और कुछ भी न समझ सको तो आस्तिक बनकर बाप को तो बुद्धि में याद रखो। बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को तो जानते हो ना। उस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त नहीं कहा जाता है। इस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त है क्योंकि मध्य में रावण राज्य शुरू हो जाता है। कांटा बनना शुरू होता है। बगीचा, जंगल बनना शुरू होता है। इस समय सारे झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई है। सारा झाड़ सूखकर तमोप्रधान हो गया है। सारा सूखा हुआ झाड़ है, फिर कलम लगाना पड़े। इसका कलम लगता है, कलम न लगे तो प्रलय हो जाए। प्रलय अर्थात् सारी जलमई नहीं होती है। भारत रह जाता है - परन्तु जलमई नाम तो है ना।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि चारों ओर ही जलमई हो जाती है। भारत ही सिर्फ रहता है। जैसे बाढ़ आती है फिर उतरती भी है ना। कहते भी हैं बी.के. सारा दिन मौत ही मौत कहते रहते। बस मौत आने वाला है। तो समझते हैं कि यह तो अशुभ बोलते हैं। बोलो नहीं। हम कोई विनाश थोड़ेही कहते हैं। हम तो कहते हैं पवित्रता, सुख, शान्ति का धर्म स्थापन हो रहा है। विनाश न हो तो शान्ति कैसे हो - गुप्त वेष में शान्तिधाम, सुखधाम की स्थापना हो रही है। यह तो हम शुभ बोलते हैं। तुम भी कहते हो ना - हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाकर ले चलो। तुम खुद कहते हो ना कि हमको ले चलो। हम भी शुभ बोलते हैं, तुम भी शुभ बोलते हो। तुम कहते हो हमको पावन बनाकर इस दु:खधाम की दुनिया से ले चलो शान्तिधाम में। यह तो शुभ बोलते हो ना। कहते हो आओ माना पतितों का विनाश करो, पावन की स्थापना करो। मांगते हो ना कि आकर विश्व में शान्ति स्थापन करो, शान्ति तो सतयुग में ही होती है। सो तो गुप्त वेष में विश्व में शान्ति स्थापन हो रही है। जब तक अर्थ नहीं समझाओ तब तक समझ न सकें। सिवाए बाप के मौत तो कोई दे न सके। बाप को कालों का काल कहा जाता है, सबको मौत देते हैं। कितने ढेर के ढेर को मौत देते हैं। सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य हैं। बाकी सबको मौत मिल जाता है। बुलाते ही हो कि पावन दुनिया में ले चलो। तो पावन दुनिया जरूर नई ही होगी। यह थोड़ेही होगी। पुरानी दुनिया का भी अर्थ नहीं समझते। पावन दुनिया में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं। शान्ति रहती है। यह बातें समझने और समझाने में कितना सहज है। परन्तु बुद्धि में बैठता ही नहीं क्योंकि समय ही नहीं है, बुद्धि में बैठने का। कहा भी जाता है ना कुम्भकरण की नींद में सब सोये पड़े हैं। यह नहीं जागेंगे। यह ड्रामा बड़ा विचित्र है। तो यह सारा चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। बाप आकर सारा ज्ञान देते हैं। उनको कहते ही हैं - नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर। ज्ञान का सागर एक बाप ही है। तुम जानते हो पानी के सागर कितने हैं। जितने नाम हैं उतने सागर हैं वा सागर एक ही है, यह तो अलग-अलग पार्टीशन कर नाम रख दिये हैं। बाहर सागर तो एक ही है ना। वास्कोडिगामा भी सारा चक्र लगाए फिर वहाँ ही आकर खड़ा हो गया। तो सागर एक ही है। बीच-बीच में टुकड़ा-टुकड़ा कर अलग-अलग बना दिया है। धरनी भी सारी एक ही है। परन्तु टुकड़ा-टुकड़ा हुई पड़ी है। तुम्हारा राज्य होता है तो धरनी भी एक ही होती है। राज्य भी एक होता है, नो टुकड़ा-टुकड़ा। बाप आकर राज्य देते हैं। सारे सागर पर, सारी धरनी पर, सारे आसमान पर तुम्हारा राज्य होता है। मुक्ति में तो सब जायेंगे, बाकी जीवनमुक्ति में जाना कोई मासी का घर थोड़ेही है। मुक्ति में जाना तो कॉमन है, सब वापिस लौटेंगे। जहाँ से आये हैं फिर वहाँ जायेंगे जरूर। बाकी नई दुनिया में सब थोड़ेही आयेंगे। तुम्हारा ही राज्य है। कोई-कोई तो इतना देरी से आते हैं जो पुरानी दुनिया शुरू होने से थोड़ा ही पहले यानी 2-4 सौ वर्ष पहले आते हैं। वह क्या हुआ? जो अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो त्रेता में भी पिछाड़ी का थोड़ा समय रहेंगे। 16 कला तो कभी बन न सकें। 14 कला के भी पिछाड़ी में आयेंगे। उनको सामने दु:ख की दुनिया देखने में आयेगी। काँटों की दुनिया के नजदीक आ जायेंगे, वहाँ कोई यह मालूम नहीं पड़ता है। सारी नॉलेज अभी है, जो बुद्धि में धारण करनी होती है। इस समय मनुष्यों के पास पैसे देखो कितने होंगे। कितने महल बनते रहते हैं। कितनी ऊंची-ऊंची माड़ियाँ बनाते रहते, समझते हैं सतयुग से भी भारत अभी ऊंच है। अभी ही 18-20 मंजिल बनाते रहते हैं, तो अन्त में कितनी मंजिल वाले बनायेंगे। दिन प्रतिदिन माड़ियाँ चढ़ाते रहते हैं। सतयुग त्रेता में तो यह माड़ियाँ होती नहीं। द्वापर में भी नहीं होती। यह तो कलियुग में जब आकर बहुत मनुष्य हो जाते हैं तो 2 मंजिल, 10 मंजिल बढ़ाते जाते हैं क्योंकि मनुष्य बढ़ते जाते हैं तो वह जायें कहाँ, धन्धाधोरी बहुत है। तो बड़े-बड़े मकान भी बनाते रहते हैं - शोभा के लिए। जंगल से मंगल होता जाता है। कितने अच्छे-अच्छ मकान बनते रहते, जमीन लेते रहते हैं ना। बाम्बे पहले क्या थी, 80-90 वर्ष में देखो क्या हो गई है। पहले तो कितने थोड़े मनुष्य थे, अभी तो देखो कितने मनुष्य हो गये हैं। समुद्र को सुखाया है। अभी भी देखो समुद्र को कितना सुखाया है। पानी जैसे कमती होता जाता है। मनुष्य वृद्धि का पाते जाते तो पानी कहाँ से आयेगा। पानी कम होता जाता, समुद्र हटता जाता। धरती छोड़ता है तो मकान बना देते हैं, फिर पानी चढ़ जायेगा तो कराची वा बाम्बे का बहुत सा हिस्सा पानी में चला जायेगा।
तुम जानते हो और सब खण्ड खत्म हो जायेंगे, आफतें आने वाली हैं इसलिए बाप कहते हैं, जल्दी-जल्दी तैयार होते रहो। जैसे शमशान में जब आग जलकर खत्म होती है तब लौटते हैं। बाप भी विनाश के लिए आये है, तो आधे पर थोड़ेही जायेंगे। आग लगकर जब पूरी होगी तब चले जायेंगे, फिर बैठकर क्या करेंगे। आग बुझेगी नहीं, सब चले जायेंगे। सबको साथ ले जायेंगे, होना तो जरूर है। समझते तो सब हैं लेकिन समय का गपोड़ा बहुत बड़ा लगा दिया है। बच्चों को समझाना भी गीता पर है। गीता एपीसोड है ना, जिसमें देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। वहाँ एक ही धर्म होगा, बाकी सब धर्म विनाश हो जाते हैं। सिर्फ यह गीता ही है जो भगवान ने गाई है। मनुष्यों ने भक्ति मार्ग के लिए बैठ शास्त्र बनाये हैं। ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स धारण कर फिर सुनानी चाहिए। कहते हैं बाबा भूल जाते हैं, धारणा नहीं होती है। बाबा कहते फिर क्या करें! राजधानी स्थापन होती है, इसमें नम्बरवार तो सब चाहिए। सबके ऊपर कृपा करने की ताकत हो तो बाप स्वर्ग का मालिक सबको बना दे, लेकिन नहीं। यह तो बनने ही हैं - नम्बरवार। यह कोई भी समझ सकते हैं कि भगवान आया हुआ है। भगवान जरूर स्वर्ग की सौगात ले आयेंगे। नई दुनिया स्थापन करने आते हैं तो जरूर संगम पर ही आयेंगे, नई दुनिया स्थापन करने। तुम सुनते हो और निश्चय से पुरूषार्थ करते हो, जिनको निश्चय ही नहीं वह कब सुधरेंगे ही नहीं। भल कितना भी माथा मारो। तो बाबा के अवतरण का पैगाम सबको देना है। मैसेज देना है। आगे चल अखबारों में पड़ ही जायेगा। जैसे तुम्हारा नाम बदनाम भी अखबारों द्वारा हुआ फिर नाम बाला भी अखबारों द्वारा ही होगा। दुनिया तो बहुत बड़ी है - सब जगह तो तुम बच्चियाँ जा नहीं सकेंगी। कितने शहर हैं, कितनी ढेर भाषायें हैं। अखबारों द्वारा सब जगह आवाज पहुँच जाता है। कोई भी आयेगा, कहेगा - हाँ, अखबारों द्वारा आवाज सुना है। तो तुम्हारा नाम अखबारों द्वारा ही होगा। ऐसा नहीं समझो कि सब तरफ तुमको जाना पड़ेगा। फिर तो पता नहीं कितना समय लग जाये। अखबारों द्वारा ही एक्यूरेट सुनेंगे। तुम कहते भी हो कि बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। अखबारों में तो पड़ना ही है। अब तुम्हारा नाम बाला होगा तो फिर बढ़ता जायेगा। जैसे कल्प पहले पता पड़ा होगा, वैसे ही समय पर पड़ेगा। सबको मैसेज मिलेगा। युक्तियाँ चल रही हैं। बहुत अखबार वाले डालेंगे। किसको बुद्धि में बैठा और डाल देंगे। सब धर्म वालों को मालूम पड़ जायेगा, तब तो कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला। पिछाड़ी में बाप की याद सबको आयेगी परन्तु कुछ भी कर नहीं सकेंगे। यह खेल है ना। खेल को जान जायेंगे। 84 चक्र का खेल सब अखबारों में पड़ जायेगा। जहाँ भी जाओ - अखबार जरूर निकलते हैं। अखबार द्वारा सबको आवाज तो पहुँचता है ना। तुम्हारी बातें तो सबसे ऊंच है ना। विनाश का समय भी तो जरूर आना ही है ड्रामा प्लैन अनुसार। जैसे कल्प पहले मालूम पड़ा होगा, अभी भी पड़ेगा। धीरे-धीरे स्थापना होती है ना। संगमयुग याद पड़े तो स्वर्ग भी याद पड़े। स्वर्ग को याद करो और मनमनाभव, बाप को भी याद करो तो बेड़ा पार हो। जब तक विनाश न हो, शान्ति कहाँ से आये। विनाश का नाम ही कड़ा है। मनुष्य सुनकर बहुत डरते हैं। यह तो राइट बात है ना। पतित दुनिया में अनेक दु:ख हैं, पावन दुनिया में अनेक सुख हैं। बाप देखो सौगात कैसी लाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई को अच्छी तरह पढ़कर ऊंच पद पाना है। आफतें आने के पहले नई दुनिया के लिए तैयार होना है।
2) अपने को सुधारने के लिए निश्चयबुद्धि बनना है। वाणी से परे वानप्रस्थ में जाना है इसलिए इस दु:खधाम को भूल शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।
वरदान: नॉलेजफुल बन हर कर्म के परिणाम को जान कर्म करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव
त्रिकालदर्शी बच्चे हर कर्म के परिणाम को जानकर फिर कर्म करते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहते कि होना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था, लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। भोला बनना अच्छा है लेकिन दिल से भोले बनो, बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। उसमें त्रिकालदर्शी बनकर हर बात सुनो और बोलो तब कहेंगे सेंट अर्थात् महान आत्मा।
स्लोगन:एक दो को कॉपी करने के बजाए बाप को कॉपी करो तो श्रेष्ठ आत्मा बन जायेंगे।
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Mithe bacche - Is dukh ke ghaat par baith Shantidham aur Sukhdham ko yaad karo, is Dukhdham ko bhool jao, yahan buddhi bhatakni nahi chahiye.
Q- Tumhara purusharth ka aadhar kya hai?
A- Nischay. Tumhe nischay hai-Baap nayi duniya ki sougaat laye hain, is poorani duniya ka binash hona he hai. Is nischay se tum purusharth karte ho. Agar nischay nahi hai to sudhrenge nahi. Agey chal akhbaro dwara tumhara message sabko milega, awaaz niklega. Tumhara nischay bhi pakka hota jayega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Padhai ko achchi tarah padhkar oonch pad pana hai. Afate ane ke pehle nayi duniya ke liye taiyyar hona hai.
2) Apne ko sudharne ke liye nischay buddhi banna hai. Vani se pare vanaprasth me jaana hai isiliye is Dukhdham ko bhool Shantidham aur Sukhdham ko yaad karna hai.
Vardaan:-Knowledgeful ban har karm ke parinam ko jaan karm karne wale Master Trikaldarshi bhava
Slogan:- Ek do ko copy karne ke bajaye Baap ko copy karo to Shrest aatma ban jayenge.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
05/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"
“मीठे बच्चे - इस दु:ख के घाट पर बैठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ, यहाँ बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए”
प्रश्न: तुम्हारे पुरूषार्थ का आधार क्या है?
उत्तर: निश्चय। तुम्हें निश्चय है - बाप नई दुनिया की सौगात लाये हैं, इस पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है। इस निश्चय से तुम पुरूषार्थ करते हो। अगर निश्चय नहीं है तो सुधरेंगे नहीं। आगे चल अखबारों द्वारा तुम्हारा मैसेज सबको मिलेगा, आवाज निकलेगा। तुम्हारा निश्चय भी पक्का होता जायेगा।
ओम् शान्ति।
टॉवर आफ साइलेन्स और टॉवर आफ सुख। तुम बच्चे यहाँ बैठे हो तो तुम्हारी बुद्धि घर में जानी चाहिए। वह है शान्ति का टॉवर। ऊंच ते ऊंच को टॉवर कहा जाता है। तुम शान्ति के टॉवर हो। घर में जाने के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। कैसे जाते हो? जो टॉवर में रहने वाला बाप है, वह शिक्षा देते हैं कि मुझे याद करो तो शान्ति के टॉवर में आ जायेंगे। उसको घर भी कहा जाता है, शान्तिधाम भी कहा जाता है। यह बातें समझाई जाती हैं। अपने शान्तिधाम, सुखधाम की याद में रहो। नहीं रह सकते हो तो गोया जंगल के कांटे हो, इसलिए दु:ख भासता है। अपने को शान्तिधाम के निवासी समझो। अपने घर को याद करना है ना। भूलना नहीं है। घर है ही बाप का। यह है ही दु:ख का घाट। यहाँ बैठे भी जिनको बाहर की बातें याद आती हैं तो ऐसे नहीं कहेंगे कि इनको अपना घर याद है इसलिए बाप रोज़ शिक्षा देते रहते हैं - घड़ी-घड़ी शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो। गीता में भी बाप के महावाक्य हैं कि मुझे याद करो। भगवान क्या बनायेंगे? स्वर्ग का मालिक बनायेंगे और क्या! जब स्वर्ग का मालिक बनने बैठे हो तो घर के लिए, स्वर्ग के लिए जो बाप श्रीमत देते हैं - उस पर पूरा-पूरा चलना है। दुनिया में कितने ढेर के ढेर गुरू हैं। बाप ने समझाया है कि कोई भी धर्म स्थापक को गुरू नहीं कहा जाता है। वह तो सिर्फ धर्म स्थापन के लिए आते हैं। वापिस ले जाने थोड़ेही आते हैं। गुरू अर्थात् जो वापिस निर्वाणधाम, वानप्रस्थ में ले जाये। परन्तु एक भी गुरू वापिस ले जाने वाला है नहीं। एक भी निर्वाणधाम में जाते नहीं। वाणी से परे अर्थात् घर। वानप्रस्थ का अर्थ न गुरू लोग जानते, न फालोअर्स ही जानते। तो बच्चों को कितना समझाया जाता है। यह चित्र हैं सतयुग के और वह चित्र हैं त्रेता के। उन्हों को भगवान नहीं कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण को भी भगवान-भगवती नहीं कहा जाता। आदि सनातन है देवी-देवता धर्म। सिवाए देवी-देवताओं के कोई भी स्थाई पवित्र होते नहीं। 21 जन्म पवित्र सिर्फ एक ही धर्म रहता है। फिर धीरे-धीरे अवस्था कम होती जाती है। त्रेता में दो कला कम तो सुख भी कम हो जाता है। उसको कहा जाता है त्रेतायुग 14 कला। अभी तुमको बाप का परिचय है और सृष्टि चक्र का ज्ञान है। उसको ही तुम याद करते हो, परन्तु कइयों की बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती रहती है, याद नहीं करते हैं। अच्छा और कुछ भी न समझ सको तो आस्तिक बनकर बाप को तो बुद्धि में याद रखो। बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को तो जानते हो ना। उस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त नहीं कहा जाता है। इस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त है क्योंकि मध्य में रावण राज्य शुरू हो जाता है। कांटा बनना शुरू होता है। बगीचा, जंगल बनना शुरू होता है। इस समय सारे झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई है। सारा झाड़ सूखकर तमोप्रधान हो गया है। सारा सूखा हुआ झाड़ है, फिर कलम लगाना पड़े। इसका कलम लगता है, कलम न लगे तो प्रलय हो जाए। प्रलय अर्थात् सारी जलमई नहीं होती है। भारत रह जाता है - परन्तु जलमई नाम तो है ना।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि चारों ओर ही जलमई हो जाती है। भारत ही सिर्फ रहता है। जैसे बाढ़ आती है फिर उतरती भी है ना। कहते भी हैं बी.के. सारा दिन मौत ही मौत कहते रहते। बस मौत आने वाला है। तो समझते हैं कि यह तो अशुभ बोलते हैं। बोलो नहीं। हम कोई विनाश थोड़ेही कहते हैं। हम तो कहते हैं पवित्रता, सुख, शान्ति का धर्म स्थापन हो रहा है। विनाश न हो तो शान्ति कैसे हो - गुप्त वेष में शान्तिधाम, सुखधाम की स्थापना हो रही है। यह तो हम शुभ बोलते हैं। तुम भी कहते हो ना - हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाकर ले चलो। तुम खुद कहते हो ना कि हमको ले चलो। हम भी शुभ बोलते हैं, तुम भी शुभ बोलते हो। तुम कहते हो हमको पावन बनाकर इस दु:खधाम की दुनिया से ले चलो शान्तिधाम में। यह तो शुभ बोलते हो ना। कहते हो आओ माना पतितों का विनाश करो, पावन की स्थापना करो। मांगते हो ना कि आकर विश्व में शान्ति स्थापन करो, शान्ति तो सतयुग में ही होती है। सो तो गुप्त वेष में विश्व में शान्ति स्थापन हो रही है। जब तक अर्थ नहीं समझाओ तब तक समझ न सकें। सिवाए बाप के मौत तो कोई दे न सके। बाप को कालों का काल कहा जाता है, सबको मौत देते हैं। कितने ढेर के ढेर को मौत देते हैं। सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य हैं। बाकी सबको मौत मिल जाता है। बुलाते ही हो कि पावन दुनिया में ले चलो। तो पावन दुनिया जरूर नई ही होगी। यह थोड़ेही होगी। पुरानी दुनिया का भी अर्थ नहीं समझते। पावन दुनिया में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं। शान्ति रहती है। यह बातें समझने और समझाने में कितना सहज है। परन्तु बुद्धि में बैठता ही नहीं क्योंकि समय ही नहीं है, बुद्धि में बैठने का। कहा भी जाता है ना कुम्भकरण की नींद में सब सोये पड़े हैं। यह नहीं जागेंगे। यह ड्रामा बड़ा विचित्र है। तो यह सारा चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। बाप आकर सारा ज्ञान देते हैं। उनको कहते ही हैं - नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर। ज्ञान का सागर एक बाप ही है। तुम जानते हो पानी के सागर कितने हैं। जितने नाम हैं उतने सागर हैं वा सागर एक ही है, यह तो अलग-अलग पार्टीशन कर नाम रख दिये हैं। बाहर सागर तो एक ही है ना। वास्कोडिगामा भी सारा चक्र लगाए फिर वहाँ ही आकर खड़ा हो गया। तो सागर एक ही है। बीच-बीच में टुकड़ा-टुकड़ा कर अलग-अलग बना दिया है। धरनी भी सारी एक ही है। परन्तु टुकड़ा-टुकड़ा हुई पड़ी है। तुम्हारा राज्य होता है तो धरनी भी एक ही होती है। राज्य भी एक होता है, नो टुकड़ा-टुकड़ा। बाप आकर राज्य देते हैं। सारे सागर पर, सारी धरनी पर, सारे आसमान पर तुम्हारा राज्य होता है। मुक्ति में तो सब जायेंगे, बाकी जीवनमुक्ति में जाना कोई मासी का घर थोड़ेही है। मुक्ति में जाना तो कॉमन है, सब वापिस लौटेंगे। जहाँ से आये हैं फिर वहाँ जायेंगे जरूर। बाकी नई दुनिया में सब थोड़ेही आयेंगे। तुम्हारा ही राज्य है। कोई-कोई तो इतना देरी से आते हैं जो पुरानी दुनिया शुरू होने से थोड़ा ही पहले यानी 2-4 सौ वर्ष पहले आते हैं। वह क्या हुआ? जो अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो त्रेता में भी पिछाड़ी का थोड़ा समय रहेंगे। 16 कला तो कभी बन न सकें। 14 कला के भी पिछाड़ी में आयेंगे। उनको सामने दु:ख की दुनिया देखने में आयेगी। काँटों की दुनिया के नजदीक आ जायेंगे, वहाँ कोई यह मालूम नहीं पड़ता है। सारी नॉलेज अभी है, जो बुद्धि में धारण करनी होती है। इस समय मनुष्यों के पास पैसे देखो कितने होंगे। कितने महल बनते रहते हैं। कितनी ऊंची-ऊंची माड़ियाँ बनाते रहते, समझते हैं सतयुग से भी भारत अभी ऊंच है। अभी ही 18-20 मंजिल बनाते रहते हैं, तो अन्त में कितनी मंजिल वाले बनायेंगे। दिन प्रतिदिन माड़ियाँ चढ़ाते रहते हैं। सतयुग त्रेता में तो यह माड़ियाँ होती नहीं। द्वापर में भी नहीं होती। यह तो कलियुग में जब आकर बहुत मनुष्य हो जाते हैं तो 2 मंजिल, 10 मंजिल बढ़ाते जाते हैं क्योंकि मनुष्य बढ़ते जाते हैं तो वह जायें कहाँ, धन्धाधोरी बहुत है। तो बड़े-बड़े मकान भी बनाते रहते हैं - शोभा के लिए। जंगल से मंगल होता जाता है। कितने अच्छे-अच्छ मकान बनते रहते, जमीन लेते रहते हैं ना। बाम्बे पहले क्या थी, 80-90 वर्ष में देखो क्या हो गई है। पहले तो कितने थोड़े मनुष्य थे, अभी तो देखो कितने मनुष्य हो गये हैं। समुद्र को सुखाया है। अभी भी देखो समुद्र को कितना सुखाया है। पानी जैसे कमती होता जाता है। मनुष्य वृद्धि का पाते जाते तो पानी कहाँ से आयेगा। पानी कम होता जाता, समुद्र हटता जाता। धरती छोड़ता है तो मकान बना देते हैं, फिर पानी चढ़ जायेगा तो कराची वा बाम्बे का बहुत सा हिस्सा पानी में चला जायेगा।
तुम जानते हो और सब खण्ड खत्म हो जायेंगे, आफतें आने वाली हैं इसलिए बाप कहते हैं, जल्दी-जल्दी तैयार होते रहो। जैसे शमशान में जब आग जलकर खत्म होती है तब लौटते हैं। बाप भी विनाश के लिए आये है, तो आधे पर थोड़ेही जायेंगे। आग लगकर जब पूरी होगी तब चले जायेंगे, फिर बैठकर क्या करेंगे। आग बुझेगी नहीं, सब चले जायेंगे। सबको साथ ले जायेंगे, होना तो जरूर है। समझते तो सब हैं लेकिन समय का गपोड़ा बहुत बड़ा लगा दिया है। बच्चों को समझाना भी गीता पर है। गीता एपीसोड है ना, जिसमें देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। वहाँ एक ही धर्म होगा, बाकी सब धर्म विनाश हो जाते हैं। सिर्फ यह गीता ही है जो भगवान ने गाई है। मनुष्यों ने भक्ति मार्ग के लिए बैठ शास्त्र बनाये हैं। ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स धारण कर फिर सुनानी चाहिए। कहते हैं बाबा भूल जाते हैं, धारणा नहीं होती है। बाबा कहते फिर क्या करें! राजधानी स्थापन होती है, इसमें नम्बरवार तो सब चाहिए। सबके ऊपर कृपा करने की ताकत हो तो बाप स्वर्ग का मालिक सबको बना दे, लेकिन नहीं। यह तो बनने ही हैं - नम्बरवार। यह कोई भी समझ सकते हैं कि भगवान आया हुआ है। भगवान जरूर स्वर्ग की सौगात ले आयेंगे। नई दुनिया स्थापन करने आते हैं तो जरूर संगम पर ही आयेंगे, नई दुनिया स्थापन करने। तुम सुनते हो और निश्चय से पुरूषार्थ करते हो, जिनको निश्चय ही नहीं वह कब सुधरेंगे ही नहीं। भल कितना भी माथा मारो। तो बाबा के अवतरण का पैगाम सबको देना है। मैसेज देना है। आगे चल अखबारों में पड़ ही जायेगा। जैसे तुम्हारा नाम बदनाम भी अखबारों द्वारा हुआ फिर नाम बाला भी अखबारों द्वारा ही होगा। दुनिया तो बहुत बड़ी है - सब जगह तो तुम बच्चियाँ जा नहीं सकेंगी। कितने शहर हैं, कितनी ढेर भाषायें हैं। अखबारों द्वारा सब जगह आवाज पहुँच जाता है। कोई भी आयेगा, कहेगा - हाँ, अखबारों द्वारा आवाज सुना है। तो तुम्हारा नाम अखबारों द्वारा ही होगा। ऐसा नहीं समझो कि सब तरफ तुमको जाना पड़ेगा। फिर तो पता नहीं कितना समय लग जाये। अखबारों द्वारा ही एक्यूरेट सुनेंगे। तुम कहते भी हो कि बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। अखबारों में तो पड़ना ही है। अब तुम्हारा नाम बाला होगा तो फिर बढ़ता जायेगा। जैसे कल्प पहले पता पड़ा होगा, वैसे ही समय पर पड़ेगा। सबको मैसेज मिलेगा। युक्तियाँ चल रही हैं। बहुत अखबार वाले डालेंगे। किसको बुद्धि में बैठा और डाल देंगे। सब धर्म वालों को मालूम पड़ जायेगा, तब तो कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला। पिछाड़ी में बाप की याद सबको आयेगी परन्तु कुछ भी कर नहीं सकेंगे। यह खेल है ना। खेल को जान जायेंगे। 84 चक्र का खेल सब अखबारों में पड़ जायेगा। जहाँ भी जाओ - अखबार जरूर निकलते हैं। अखबार द्वारा सबको आवाज तो पहुँचता है ना। तुम्हारी बातें तो सबसे ऊंच है ना। विनाश का समय भी तो जरूर आना ही है ड्रामा प्लैन अनुसार। जैसे कल्प पहले मालूम पड़ा होगा, अभी भी पड़ेगा। धीरे-धीरे स्थापना होती है ना। संगमयुग याद पड़े तो स्वर्ग भी याद पड़े। स्वर्ग को याद करो और मनमनाभव, बाप को भी याद करो तो बेड़ा पार हो। जब तक विनाश न हो, शान्ति कहाँ से आये। विनाश का नाम ही कड़ा है। मनुष्य सुनकर बहुत डरते हैं। यह तो राइट बात है ना। पतित दुनिया में अनेक दु:ख हैं, पावन दुनिया में अनेक सुख हैं। बाप देखो सौगात कैसी लाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई को अच्छी तरह पढ़कर ऊंच पद पाना है। आफतें आने के पहले नई दुनिया के लिए तैयार होना है।
2) अपने को सुधारने के लिए निश्चयबुद्धि बनना है। वाणी से परे वानप्रस्थ में जाना है इसलिए इस दु:खधाम को भूल शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।
वरदान: नॉलेजफुल बन हर कर्म के परिणाम को जान कर्म करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव
त्रिकालदर्शी बच्चे हर कर्म के परिणाम को जानकर फिर कर्म करते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहते कि होना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था, लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। भोला बनना अच्छा है लेकिन दिल से भोले बनो, बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। उसमें त्रिकालदर्शी बनकर हर बात सुनो और बोलो तब कहेंगे सेंट अर्थात् महान आत्मा।
स्लोगन:एक दो को कॉपी करने के बजाए बाप को कॉपी करो तो श्रेष्ठ आत्मा बन जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 6th Sep 2017 )
06.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Yah pujya aur pujari, gyan aur bhakti ka wonderful khel hai, tumhe ab fir se satopradhan pujya banna hai, patitpane ki nishaani bhi samapt karni hai.
Q- Baap jab aate hain to kaun sa ek taraju baccho ko dikhate hain?
A- Gyan aur bhakti ka taraju. Jisme ek poor(palda) hai gyan ka dusra hai bhakti ka. Abhi gyan ka poora halka hai, bhakti ka bhaari hai. Dhire-dhire gyan ka poor bhaari hota jayega fir Satyug me keval ek he poor hoga. Wahan is taraju ki darkar he nahi hai
Dharna Ke liye mukhya Saar:
1) Yah jeevan Baap ki seva me lagani hai. Bahut-bahut sukhdayi banna hai. Koi oolta-soolta bole to shant rehna hai. Baap samaan sabke dukh door karne hain.
2) Apne register ki jaanch karni hai. Devi goon dharan kar charitravan banna hai. Avgoon nikaal dene hain.
Vardaan:-- Satyata ke saath sabhyata purbak bol aur chalan se aagey badhne wale Safaltamurt bhava.
Slogan:-Samabandh-sampark aur sthiti me light raho - dincharya me nahi.
“मीठे बच्चे - यह पूज्य और पुजारी, ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, तुम्हें अब फिर से सतोप्रधान पूज्य बनना है, पतितपने की निशानी भी समाप्त करनी है”
प्रश्न: बाप जब आते हैं तो कौन सा एक तराजू बच्चों को दिखाते हैं?
उत्तर:ज्ञान और भक्ति का तराजू। जिसमें एक पुर (पलड़ा) है ज्ञान का, दूसरा है भक्ति का। अभी ज्ञान का पुर हल्का है, भक्ति का भारी है। धीरे-धीरे ज्ञान का पुर भारी होता जायेगा फिर सतयुग में केवल एक ही पुर होगा। वहाँ इस तराजू की दरकार ही नहीं है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ समझा रहे हैं। यह तो अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर बाप आये हुए हैं और हमको फिर से पूज्य देवी-देवता बना रहे हैं। जो आसुरी सम्प्रदाय बन गये हैं, वह अब फिर से दैवी सम्प्रदाय बन रहे हैं अर्थात् अब भक्ति का चक्र पूरा हो गया। यह भी अब मालूम हुआ है कि भक्ति कब से शुरू हुई है! रावण राज्य कब से शुरू हुआ है! कब पूरा होता है! फिर रामराज्य कब से शुरू होता है! तुम बच्चों की बुद्धि में वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। बरोबर 4 युग हैं। अभी संगमयुग का चक्र वा ड्रामा चल रहा है। यह हम सब बच्चों की बुद्धि में बैठा। किसकी बुद्धि में बैठा? हम प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों की बुद्धि में बैठा। किसका नाम तो कहेंगे ना। सिवाए ब्राह्मणों के और कोई नाम नहीं निकाल सकते। यह खेल ही ऐसा बना हुआ है - ब्राह्मण फिर देवता, क्षत्रिय... ऐसे यह चक्र फिरता रहता है। तुम बच्चे अब याद की यात्रा सीख रहे हो अथवा पतित से पावन बन रहे हो। समझाना भी ऐसे होता है - अभी हम रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं तो जरूर पहले रावण राज्य है। यह भी सिद्ध होता है अभी रावणराज्य है तो झाड़ बहुत बड़ा है। अभी हम पूज्य देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं तो पुराना झाड़ खलास हो नये झाड़ की स्थापना हो रही है। यह भी हिसाब-किताब बच्चे समझते हैं। हम स्वयं पूज्य सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म बाद तमोप्रधान बनें। पूज्य से पुजारी बने हैं फिर से रिपीट करना पड़ेगा। यह तो सहज समझने का है कि चक्र कैसे फिरता आया है। जैसे एक्टर्स शुरू से लेकर पिछाड़ी तक पार्ट बजाते हैं ना। तो यह है बेहद का राज़, ज्ञान और भक्ति का राज़ बुद्धि में अच्छी रीति जम गया है। हम ही पूज्य सतयुगी देवता थे फिर हम ही सीढ़ी उतरते पुजारी बनें। रावणराज्य कब से शुरू हुआ। पूरी तिथि तारीख तुम जानते हो। हमने ऐसे-ऐसे पुनर्जन्म लिया। पहले हम सूर्यवंशी देवी-देवता थे, फिर चन्द्रवंशी बनें ..... अब फिर ब्राह्मणवंशी बनकर फिर हम देवता बनते हैं। अभी तुम ब्राह्मणवंशी वा ईश्वरीय वंशी हो। तुम सब जानते हो कि हम सब ईश्वर की सन्तान हैं इसलिए ब्रदर्स कहते हैं। वास्तव में तो ब्रदर्स होते हैं मूलवतन में, फिर पार्ट बजाने लिए नीचे आना पड़ता है। यह तो बच्चे जानते हैं - हम ही शूद्र से ब्राह्मण बन पढ़कर वह संस्कार ले जाते हैं। सो हम देवी-देवता बनते हैं। कल हम शूद्र थे - आज हम ब्राह्मण हैं फिर कल हम देवता बनेंगे। यह राज़ समझाना भी होता है बच्चों को। सभी को सुजाग करना है। यह तुम किसको भी समझा सकते हो कि नई दुनिया सतयुग, यह पुरानी दुनिया कलियुग है। इसमें कोई सुख नहीं। बच्चे समझते हैं जब यह नया झाड़ था तो हम ही देवी-देवता थे, बहुत सुख था फिर चक्र लगाते-लगाते दुनिया पुरानी हो गई है। मनुष्य भी बहुत हो गये हैं तो दु:ख भी बहुत हो गया है। बाप समझाते हैं सतयुग में तुम कितने सुखी थे। सदा सुखी तो कोई रहते नहीं। पुनर्जन्म लेने का भी कायदा है। पुनर्जन्म लेते-लेते उतरते-उतरते 84 जन्म पूरे हुए हैं। फिर नये सिर चक्र फिरना है। ज्ञान और भक्ति। आधाकल्प है दिन नई दुनिया फिर आधाकल्प है रात पुरानी दुनिया। यह पढ़ाई याद करनी होती है। शिवबाबा को भी याद करना होता है। टीचर को भी सारा याद है ना। तुम कहेंगे बाबा को इस सारे सृष्टि की नॉलेज है। तुम भी समझते हो कि हम जो पावन पूज्य देवता थे सो अब पुजारी पतित बने हैं। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो यह हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम ड्रामा की समझते हो। यह पूज्य और पुजारी का खेल बना हुआ है। ऐसी-ऐसी अपने साथ बातें करो। सतोप्रधान बनने के लिए मुख्य है - ज्ञान और योग। ज्ञान है सृष्टि चक्र का और योग से हम पावन बनते हैं। कितना सहज है। किसको भी समझा सकते हैं। जैसे बाबा भी समझाते हैं ना। सिर्फ बाबा बाहर नहीं जाते हैं, क्योंकि बाप इनके साथ है ना। कोई भी मनुष्य सद्गति को तो जानते ही नहीं। सद्गति की बातें तो तब समझें, जब सद्गति दाता को पहचानें। तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते हैं। तुम समझते हो और समझाते भी हो। मूल बात है ही पतित से पावन बनने की। याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे। यहाँ के बच्चे वा बाहर के बच्चे कहते हैं कि योग कैसे लगावें? पतित से पावन बनने की युक्ति क्या है? क्योंकि इसमें ही मूँझे हैं। तो समझाना चाहिए कि यह खेल ही हार और जीत का बना हुआ है। भारत ही पतित से पावन और पावन से पतित बनता है। आधाकल्प है ज्ञान अर्थात् पावन, आधाकल्प है भक्ति अर्थात् पतित। अब फिर से पतित से पावन बनना है। यह याद की यात्रा प्राचीन बहुत नामीग्रामी है। वह तो जिस्मानी यात्रायें जन्म-जन्मान्तर करते, नीचे गिरते गये हैं। ऐसे नहीं कि उनसे पावन बने हैं। पावन बनाने वाला है ही एक बाप। वह एक ही बार आते हैं। शिवबाबा का पुनर्जन्म नहीं कहेंगे। मनुष्य को ही 84 जन्म के चक्र में आना है।
बाबा कहते हैं यह कहानी बहुत ही सहज है। सिर्फ कैरेक्टर जरूर बदलना चाहिए। जब तुम देवतायें थे तो तुम्हारा फर्स्टक्लास कैरेक्टर था। फिर धीरे-धीरे तुम्हारा कैरेक्टर बिगड़ता गया। रावणराज्य में तो अभी बिल्कुल बिगड़ गया है। आधाकल्प भक्ति मार्ग में पतित बनने से हाहाकार मच गया। पावन शिवालय से फिर पतित वेश्यालय बन जाता है। रावण ने जीत पा ली। कोई कोशिश ही नहीं करते कि रामराज्य कैसे बनें। बाप को ही आना पड़ता है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। रावण राज्य में हम गिरते आये हैं, अब फिर चढ़ना है। बाप आकर जगाते हैं क्योंकि सब भक्ति में सोये पड़े हैं। बाप आये हैं तो भी सोये पड़े हैं। बाप आते ही हैं पिछाड़ी में जबकि सब अज्ञान नींद में सोये हैं। जैसे बाप ज्ञान का सागर है, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, तुम भी जानते हो। इतने सब बच्चे बाप से सीखते हैं ना। एक बाप से सीखकर फिर वृद्धि को पाते हैं। कल्प पहले भी तुमको मनुष्य से देवता बनाया था। अभी भी तुमको जरूर बनना है। फिर कोई हल्का पुरूषार्थ करते, कोई फिर तीखा करते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। कोई की डल बुद्धि है। उस स्कूल में भी नम्बरवार तो होते हैं ना। उस पढ़ाई में तो बी.ए., एम.ए. आदि की कितनी क्लास होती हैं। कितने मनुष्य पढ़ते हैं। सारी दुनिया में कितने एम.ए. पढ़ते होंगे। जो भी भारतवासी हैं, कितने समय से पढ़ते हैं। कोई टीचर बनते, कोई क्या बनते। आजीविका करते रहते हैं। अच्छा मर गया फिर नयेसिर से जन्म ले पढ़ना पड़े। वहाँ सतयुग में एम.ए. आदि की पढ़ाई नहीं है। यह ड्रामा में अभी की नूँध है जो पढ़ते हैं, फिर कल्प बाद पढ़ेंगे। वहाँ यह किताब आदि कुछ भी नहीं होती। जो भक्ति मार्ग में होता है वह ज्ञान मार्ग में नहीं होता। भक्ति मार्ग में वह पढ़ाते आये हैं जो पास्ट हुआ। बाप ने बताया है - कब से रामराज्य, कब से रावणराज्य होता है, फिर हम कैसे नीचे उतरते गये। तुम्हारी बुद्धि में यह सब राज़ अच्छी तरह बैठ गया है।
तुम्हें अब पुरूषार्थ करना है ऊंच ते ऊंच बनने का। परन्तु राजाई में सब एक जैसे बन नहीं सकते। कोई तो अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं, पावन बनने के लिए दैवीगुण धारण करते हैं। तुम्हारा ईश्वरीय रजिस्टर भी है। अपनी जाँच करनी है कि हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? गाते हैं हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। सब समझते हैं हमारे में अवगुण हैं, जब हमारे में सब गुण थे तो हम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण थे, उन्हों का राज्य था। चित्र भी हैं। वहाँ यह मन्दिर आदि नहीं होंगे। वहाँ भक्ति मार्ग का चिन्ह भी नहीं होगा। भक्ति मार्ग में फिर ज्ञान का रिंचक मात्र चिन्ह नहीं है। यह भी तुम नम्बरवार जानते हो। जो अच्छी रीति पढ़कर धारण करते हैं तो क्वालिफिकेशन भी आती रहती हैं। दिल में आता है कि बाप जिससे हम विश्व की बादशाही लेते हैं, उनका कितना मददगार बनना चाहिए। हम हैं ईश्वरीय सन्तान। बाप आये ही हैं सबको सुखदाई बनाने। कभी कोई को दु:ख नहीं देते। बच्चों को इतना ऊंच बनना है। बाबा बार-बार समझाते हैं अपने पास नोट रखो, किसको दु:ख तो नहीं दिया? बाप सबको सुख देते हैं। हम भी सुख देवें। यह जीवन ही बाबा की सर्विस में लगाई है ना। बहुत मीठा बनने की कोशिश करनी है। कोई उल्टा-सुल्टा बोले भी तो तुम शान्त कर दो। सबको सुख दो। सबको सुख का रास्ता बताना है, तो शान्तिधाम, सुखधाम के मालिक बनें। सुखदाई बनना है क्योंकि बाप सदा सुखदाता है ना। सबके दु:ख दूर कर लेते हैं। बुद्धि में आता है हम बहुत सुख देने वाले थे। हम जब सुख में थे तो विकार का नामनिशान नहीं था, काम कटारी नहीं चलाते थे। सतयुग में कोई दु:खी नहीं बनाते। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं, अपने को आत्मा समझो। आत्मा को ही पावन बनना है। आत्मा में कोई पतितपने की निशानी न रहे। दिन-प्रतिदिन तुम उन्नति को पाते रहेंगे। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार राजाई पाई थी। वही फिर पाने का पुरूषार्थ कर रहे हो। देखते रहते हो कि कौन-कौन कितना पुरूषार्थ करते हैं? कितने को हम सुख देते हैं? बच्चे जानते हैं कि सतयुग में हम कोई को दु:ख नहीं देंगे। कम पुरूषार्थ करेंगे तो सजायें खाकर कम पद पायेंगे। बेइज्जती होती है ना। कोई बच्चे तो बहुत सर्विस करते हैं। म्युज़ियम, प्रदर्शनी में कितनी मेहनत करते हैं। यह प्रदर्शनियाँ, म्युजियम आदि भी वृद्धि को पायेंगे। तराजू में यह ज्ञान का तरफ भारी होता जायेगा। एक तरफ है ज्ञान, दूसरे तरफ है भक्ति। इस समय भक्ति का पुर (पलड़ा) बहुत भारी है। एकदम नीचे पट पड़ जाता है। बहुत वज़न भारी होकर एकदम तले में चले जायेंगे। उसमें जैसे 10 शेर और उसमें ज्ञान का एक पाव पड़ा है। फिर ज्ञान का एक तरफ भारी हो जायेगा, सतयुग में एक ही पुर होता है फिर कलियुग में भी एक ही पुर होता है। संगम पर दो पुर हो जाते हैं। ज्ञान के पुर में कितने थोड़े हैं। कितना हल्का है फिर वहाँ से ट्रांसफर हो इस तरफ भरते जायेंगे तब भक्ति खत्म हो जायेगी। फिर एक ज्ञान का पुर रह जायेगा। दो पुर होंगे ही नहीं। बाप आकर तराजू में दिखाते हैं। कम जास्ती भी होता रहता है। कब उस तरफ, कब इस तरफ भरतू हो जाते। ज्ञान में आकर फिर भक्ति के पुर में भरतू हो जाते। जो पक्के हैं वह तो जानते हैं स्थापना जरूर होनी है। जब हमारा राज्य होगा तब हम ही होंगे। फिर मूलवतन का पुर जास्ती हो जायेगा। वहाँ बहुत आत्मायें रहेंगी। तो वह पुर जास्ती हो जायेगा। फिर आधाकल्प बाद द्वापर से आते रहेंगे। इस रीति सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। जब पतित हैं तब तराजू की दरकार ही नहीं। तराजू की दरकार ही तब होती जब बाप आते हैं। बाप तराजू ले आते हैं। झाड़ का ज्ञान भी तुम्हारी बुद्धि में है। पहले कितना छोटा झाड़ फिर वृद्धि को पाता रहता है। सब पत्ते सूखकर खत्म हो जाते फिर रिपीट होता। पानी मिलने से फिर छोटे-छोटे पत्ते वृद्धि को पाते हैं। फल देते हैं। हर वर्ष झाड़ खाली होगा। सब कुछ नया होगा। अभी देवी-देवता धर्म वाला एक भी नहीं है। थे जरूर। उन्हों का राज्य था - परन्तु कब? यह भूल गये हैं। तुम ब्राह्मणों का कुल भी दिन प्रतिदिन वृद्धि को पाता जाता है। तो ऐसे-ऐसे इस ज्ञान को मंथन करके धारण करते रहो और समझाते रहो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यह जीवन बाप की सेवा में लगानी है। बहुत-बहुत सुखदाई बनना है। कोई उल्टा-सुल्टा बोले तो शान्त रहना है। बाप समान सबके दु:ख दूर करने हैं।
2) अपने रजिस्टर की जाँच करनी है। दैवीगुण धारण कर चरित्रवान बनना है। अवगुण निकाल देने हैं।
वरदान:सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ने वाले सफलतामूर्त भव
सदैव याद रहे कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। यदि आप में सत्यता की शक्ति है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो। सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। सभ्यता की निशानी है निर्माण और असभ्यता की निशानी है जिद। तो जब सभ्यता पूर्वक बोल और चलन हो तब सफलता मिलेगी। यही आगे बढ़ने का साधन है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं तो सफलता मिल नहीं सकती।
स्लोगन:सम्बन्ध-सम्पर्क और स्थिति में लाइट रहो - दिनचर्या में नहीं।
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Mithe bacche - Yah pujya aur pujari, gyan aur bhakti ka wonderful khel hai, tumhe ab fir se satopradhan pujya banna hai, patitpane ki nishaani bhi samapt karni hai.
Q- Baap jab aate hain to kaun sa ek taraju baccho ko dikhate hain?
A- Gyan aur bhakti ka taraju. Jisme ek poor(palda) hai gyan ka dusra hai bhakti ka. Abhi gyan ka poora halka hai, bhakti ka bhaari hai. Dhire-dhire gyan ka poor bhaari hota jayega fir Satyug me keval ek he poor hoga. Wahan is taraju ki darkar he nahi hai
Dharna Ke liye mukhya Saar:
1) Yah jeevan Baap ki seva me lagani hai. Bahut-bahut sukhdayi banna hai. Koi oolta-soolta bole to shant rehna hai. Baap samaan sabke dukh door karne hain.
2) Apne register ki jaanch karni hai. Devi goon dharan kar charitravan banna hai. Avgoon nikaal dene hain.
Vardaan:-- Satyata ke saath sabhyata purbak bol aur chalan se aagey badhne wale Safaltamurt bhava.
Slogan:-Samabandh-sampark aur sthiti me light raho - dincharya me nahi.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
06/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"
“मीठे बच्चे - यह पूज्य और पुजारी, ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, तुम्हें अब फिर से सतोप्रधान पूज्य बनना है, पतितपने की निशानी भी समाप्त करनी है”
प्रश्न: बाप जब आते हैं तो कौन सा एक तराजू बच्चों को दिखाते हैं?
उत्तर:ज्ञान और भक्ति का तराजू। जिसमें एक पुर (पलड़ा) है ज्ञान का, दूसरा है भक्ति का। अभी ज्ञान का पुर हल्का है, भक्ति का भारी है। धीरे-धीरे ज्ञान का पुर भारी होता जायेगा फिर सतयुग में केवल एक ही पुर होगा। वहाँ इस तराजू की दरकार ही नहीं है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ समझा रहे हैं। यह तो अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर बाप आये हुए हैं और हमको फिर से पूज्य देवी-देवता बना रहे हैं। जो आसुरी सम्प्रदाय बन गये हैं, वह अब फिर से दैवी सम्प्रदाय बन रहे हैं अर्थात् अब भक्ति का चक्र पूरा हो गया। यह भी अब मालूम हुआ है कि भक्ति कब से शुरू हुई है! रावण राज्य कब से शुरू हुआ है! कब पूरा होता है! फिर रामराज्य कब से शुरू होता है! तुम बच्चों की बुद्धि में वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। बरोबर 4 युग हैं। अभी संगमयुग का चक्र वा ड्रामा चल रहा है। यह हम सब बच्चों की बुद्धि में बैठा। किसकी बुद्धि में बैठा? हम प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों की बुद्धि में बैठा। किसका नाम तो कहेंगे ना। सिवाए ब्राह्मणों के और कोई नाम नहीं निकाल सकते। यह खेल ही ऐसा बना हुआ है - ब्राह्मण फिर देवता, क्षत्रिय... ऐसे यह चक्र फिरता रहता है। तुम बच्चे अब याद की यात्रा सीख रहे हो अथवा पतित से पावन बन रहे हो। समझाना भी ऐसे होता है - अभी हम रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं तो जरूर पहले रावण राज्य है। यह भी सिद्ध होता है अभी रावणराज्य है तो झाड़ बहुत बड़ा है। अभी हम पूज्य देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं तो पुराना झाड़ खलास हो नये झाड़ की स्थापना हो रही है। यह भी हिसाब-किताब बच्चे समझते हैं। हम स्वयं पूज्य सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म बाद तमोप्रधान बनें। पूज्य से पुजारी बने हैं फिर से रिपीट करना पड़ेगा। यह तो सहज समझने का है कि चक्र कैसे फिरता आया है। जैसे एक्टर्स शुरू से लेकर पिछाड़ी तक पार्ट बजाते हैं ना। तो यह है बेहद का राज़, ज्ञान और भक्ति का राज़ बुद्धि में अच्छी रीति जम गया है। हम ही पूज्य सतयुगी देवता थे फिर हम ही सीढ़ी उतरते पुजारी बनें। रावणराज्य कब से शुरू हुआ। पूरी तिथि तारीख तुम जानते हो। हमने ऐसे-ऐसे पुनर्जन्म लिया। पहले हम सूर्यवंशी देवी-देवता थे, फिर चन्द्रवंशी बनें ..... अब फिर ब्राह्मणवंशी बनकर फिर हम देवता बनते हैं। अभी तुम ब्राह्मणवंशी वा ईश्वरीय वंशी हो। तुम सब जानते हो कि हम सब ईश्वर की सन्तान हैं इसलिए ब्रदर्स कहते हैं। वास्तव में तो ब्रदर्स होते हैं मूलवतन में, फिर पार्ट बजाने लिए नीचे आना पड़ता है। यह तो बच्चे जानते हैं - हम ही शूद्र से ब्राह्मण बन पढ़कर वह संस्कार ले जाते हैं। सो हम देवी-देवता बनते हैं। कल हम शूद्र थे - आज हम ब्राह्मण हैं फिर कल हम देवता बनेंगे। यह राज़ समझाना भी होता है बच्चों को। सभी को सुजाग करना है। यह तुम किसको भी समझा सकते हो कि नई दुनिया सतयुग, यह पुरानी दुनिया कलियुग है। इसमें कोई सुख नहीं। बच्चे समझते हैं जब यह नया झाड़ था तो हम ही देवी-देवता थे, बहुत सुख था फिर चक्र लगाते-लगाते दुनिया पुरानी हो गई है। मनुष्य भी बहुत हो गये हैं तो दु:ख भी बहुत हो गया है। बाप समझाते हैं सतयुग में तुम कितने सुखी थे। सदा सुखी तो कोई रहते नहीं। पुनर्जन्म लेने का भी कायदा है। पुनर्जन्म लेते-लेते उतरते-उतरते 84 जन्म पूरे हुए हैं। फिर नये सिर चक्र फिरना है। ज्ञान और भक्ति। आधाकल्प है दिन नई दुनिया फिर आधाकल्प है रात पुरानी दुनिया। यह पढ़ाई याद करनी होती है। शिवबाबा को भी याद करना होता है। टीचर को भी सारा याद है ना। तुम कहेंगे बाबा को इस सारे सृष्टि की नॉलेज है। तुम भी समझते हो कि हम जो पावन पूज्य देवता थे सो अब पुजारी पतित बने हैं। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो यह हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम ड्रामा की समझते हो। यह पूज्य और पुजारी का खेल बना हुआ है। ऐसी-ऐसी अपने साथ बातें करो। सतोप्रधान बनने के लिए मुख्य है - ज्ञान और योग। ज्ञान है सृष्टि चक्र का और योग से हम पावन बनते हैं। कितना सहज है। किसको भी समझा सकते हैं। जैसे बाबा भी समझाते हैं ना। सिर्फ बाबा बाहर नहीं जाते हैं, क्योंकि बाप इनके साथ है ना। कोई भी मनुष्य सद्गति को तो जानते ही नहीं। सद्गति की बातें तो तब समझें, जब सद्गति दाता को पहचानें। तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते हैं। तुम समझते हो और समझाते भी हो। मूल बात है ही पतित से पावन बनने की। याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते जायेंगे। यहाँ के बच्चे वा बाहर के बच्चे कहते हैं कि योग कैसे लगावें? पतित से पावन बनने की युक्ति क्या है? क्योंकि इसमें ही मूँझे हैं। तो समझाना चाहिए कि यह खेल ही हार और जीत का बना हुआ है। भारत ही पतित से पावन और पावन से पतित बनता है। आधाकल्प है ज्ञान अर्थात् पावन, आधाकल्प है भक्ति अर्थात् पतित। अब फिर से पतित से पावन बनना है। यह याद की यात्रा प्राचीन बहुत नामीग्रामी है। वह तो जिस्मानी यात्रायें जन्म-जन्मान्तर करते, नीचे गिरते गये हैं। ऐसे नहीं कि उनसे पावन बने हैं। पावन बनाने वाला है ही एक बाप। वह एक ही बार आते हैं। शिवबाबा का पुनर्जन्म नहीं कहेंगे। मनुष्य को ही 84 जन्म के चक्र में आना है।
बाबा कहते हैं यह कहानी बहुत ही सहज है। सिर्फ कैरेक्टर जरूर बदलना चाहिए। जब तुम देवतायें थे तो तुम्हारा फर्स्टक्लास कैरेक्टर था। फिर धीरे-धीरे तुम्हारा कैरेक्टर बिगड़ता गया। रावणराज्य में तो अभी बिल्कुल बिगड़ गया है। आधाकल्प भक्ति मार्ग में पतित बनने से हाहाकार मच गया। पावन शिवालय से फिर पतित वेश्यालय बन जाता है। रावण ने जीत पा ली। कोई कोशिश ही नहीं करते कि रामराज्य कैसे बनें। बाप को ही आना पड़ता है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। रावण राज्य में हम गिरते आये हैं, अब फिर चढ़ना है। बाप आकर जगाते हैं क्योंकि सब भक्ति में सोये पड़े हैं। बाप आये हैं तो भी सोये पड़े हैं। बाप आते ही हैं पिछाड़ी में जबकि सब अज्ञान नींद में सोये हैं। जैसे बाप ज्ञान का सागर है, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, तुम भी जानते हो। इतने सब बच्चे बाप से सीखते हैं ना। एक बाप से सीखकर फिर वृद्धि को पाते हैं। कल्प पहले भी तुमको मनुष्य से देवता बनाया था। अभी भी तुमको जरूर बनना है। फिर कोई हल्का पुरूषार्थ करते, कोई फिर तीखा करते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। कोई की डल बुद्धि है। उस स्कूल में भी नम्बरवार तो होते हैं ना। उस पढ़ाई में तो बी.ए., एम.ए. आदि की कितनी क्लास होती हैं। कितने मनुष्य पढ़ते हैं। सारी दुनिया में कितने एम.ए. पढ़ते होंगे। जो भी भारतवासी हैं, कितने समय से पढ़ते हैं। कोई टीचर बनते, कोई क्या बनते। आजीविका करते रहते हैं। अच्छा मर गया फिर नयेसिर से जन्म ले पढ़ना पड़े। वहाँ सतयुग में एम.ए. आदि की पढ़ाई नहीं है। यह ड्रामा में अभी की नूँध है जो पढ़ते हैं, फिर कल्प बाद पढ़ेंगे। वहाँ यह किताब आदि कुछ भी नहीं होती। जो भक्ति मार्ग में होता है वह ज्ञान मार्ग में नहीं होता। भक्ति मार्ग में वह पढ़ाते आये हैं जो पास्ट हुआ। बाप ने बताया है - कब से रामराज्य, कब से रावणराज्य होता है, फिर हम कैसे नीचे उतरते गये। तुम्हारी बुद्धि में यह सब राज़ अच्छी तरह बैठ गया है।
तुम्हें अब पुरूषार्थ करना है ऊंच ते ऊंच बनने का। परन्तु राजाई में सब एक जैसे बन नहीं सकते। कोई तो अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं, पावन बनने के लिए दैवीगुण धारण करते हैं। तुम्हारा ईश्वरीय रजिस्टर भी है। अपनी जाँच करनी है कि हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? गाते हैं हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। सब समझते हैं हमारे में अवगुण हैं, जब हमारे में सब गुण थे तो हम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण थे, उन्हों का राज्य था। चित्र भी हैं। वहाँ यह मन्दिर आदि नहीं होंगे। वहाँ भक्ति मार्ग का चिन्ह भी नहीं होगा। भक्ति मार्ग में फिर ज्ञान का रिंचक मात्र चिन्ह नहीं है। यह भी तुम नम्बरवार जानते हो। जो अच्छी रीति पढ़कर धारण करते हैं तो क्वालिफिकेशन भी आती रहती हैं। दिल में आता है कि बाप जिससे हम विश्व की बादशाही लेते हैं, उनका कितना मददगार बनना चाहिए। हम हैं ईश्वरीय सन्तान। बाप आये ही हैं सबको सुखदाई बनाने। कभी कोई को दु:ख नहीं देते। बच्चों को इतना ऊंच बनना है। बाबा बार-बार समझाते हैं अपने पास नोट रखो, किसको दु:ख तो नहीं दिया? बाप सबको सुख देते हैं। हम भी सुख देवें। यह जीवन ही बाबा की सर्विस में लगाई है ना। बहुत मीठा बनने की कोशिश करनी है। कोई उल्टा-सुल्टा बोले भी तो तुम शान्त कर दो। सबको सुख दो। सबको सुख का रास्ता बताना है, तो शान्तिधाम, सुखधाम के मालिक बनें। सुखदाई बनना है क्योंकि बाप सदा सुखदाता है ना। सबके दु:ख दूर कर लेते हैं। बुद्धि में आता है हम बहुत सुख देने वाले थे। हम जब सुख में थे तो विकार का नामनिशान नहीं था, काम कटारी नहीं चलाते थे। सतयुग में कोई दु:खी नहीं बनाते। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं, अपने को आत्मा समझो। आत्मा को ही पावन बनना है। आत्मा में कोई पतितपने की निशानी न रहे। दिन-प्रतिदिन तुम उन्नति को पाते रहेंगे। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार राजाई पाई थी। वही फिर पाने का पुरूषार्थ कर रहे हो। देखते रहते हो कि कौन-कौन कितना पुरूषार्थ करते हैं? कितने को हम सुख देते हैं? बच्चे जानते हैं कि सतयुग में हम कोई को दु:ख नहीं देंगे। कम पुरूषार्थ करेंगे तो सजायें खाकर कम पद पायेंगे। बेइज्जती होती है ना। कोई बच्चे तो बहुत सर्विस करते हैं। म्युज़ियम, प्रदर्शनी में कितनी मेहनत करते हैं। यह प्रदर्शनियाँ, म्युजियम आदि भी वृद्धि को पायेंगे। तराजू में यह ज्ञान का तरफ भारी होता जायेगा। एक तरफ है ज्ञान, दूसरे तरफ है भक्ति। इस समय भक्ति का पुर (पलड़ा) बहुत भारी है। एकदम नीचे पट पड़ जाता है। बहुत वज़न भारी होकर एकदम तले में चले जायेंगे। उसमें जैसे 10 शेर और उसमें ज्ञान का एक पाव पड़ा है। फिर ज्ञान का एक तरफ भारी हो जायेगा, सतयुग में एक ही पुर होता है फिर कलियुग में भी एक ही पुर होता है। संगम पर दो पुर हो जाते हैं। ज्ञान के पुर में कितने थोड़े हैं। कितना हल्का है फिर वहाँ से ट्रांसफर हो इस तरफ भरते जायेंगे तब भक्ति खत्म हो जायेगी। फिर एक ज्ञान का पुर रह जायेगा। दो पुर होंगे ही नहीं। बाप आकर तराजू में दिखाते हैं। कम जास्ती भी होता रहता है। कब उस तरफ, कब इस तरफ भरतू हो जाते। ज्ञान में आकर फिर भक्ति के पुर में भरतू हो जाते। जो पक्के हैं वह तो जानते हैं स्थापना जरूर होनी है। जब हमारा राज्य होगा तब हम ही होंगे। फिर मूलवतन का पुर जास्ती हो जायेगा। वहाँ बहुत आत्मायें रहेंगी। तो वह पुर जास्ती हो जायेगा। फिर आधाकल्प बाद द्वापर से आते रहेंगे। इस रीति सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। जब पतित हैं तब तराजू की दरकार ही नहीं। तराजू की दरकार ही तब होती जब बाप आते हैं। बाप तराजू ले आते हैं। झाड़ का ज्ञान भी तुम्हारी बुद्धि में है। पहले कितना छोटा झाड़ फिर वृद्धि को पाता रहता है। सब पत्ते सूखकर खत्म हो जाते फिर रिपीट होता। पानी मिलने से फिर छोटे-छोटे पत्ते वृद्धि को पाते हैं। फल देते हैं। हर वर्ष झाड़ खाली होगा। सब कुछ नया होगा। अभी देवी-देवता धर्म वाला एक भी नहीं है। थे जरूर। उन्हों का राज्य था - परन्तु कब? यह भूल गये हैं। तुम ब्राह्मणों का कुल भी दिन प्रतिदिन वृद्धि को पाता जाता है। तो ऐसे-ऐसे इस ज्ञान को मंथन करके धारण करते रहो और समझाते रहो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यह जीवन बाप की सेवा में लगानी है। बहुत-बहुत सुखदाई बनना है। कोई उल्टा-सुल्टा बोले तो शान्त रहना है। बाप समान सबके दु:ख दूर करने हैं।
2) अपने रजिस्टर की जाँच करनी है। दैवीगुण धारण कर चरित्रवान बनना है। अवगुण निकाल देने हैं।
वरदान:सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ने वाले सफलतामूर्त भव
सदैव याद रहे कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। यदि आप में सत्यता की शक्ति है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो। सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। सभ्यता की निशानी है निर्माण और असभ्यता की निशानी है जिद। तो जब सभ्यता पूर्वक बोल और चलन हो तब सफलता मिलेगी। यही आगे बढ़ने का साधन है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं तो सफलता मिल नहीं सकती।
स्लोगन:सम्बन्ध-सम्पर्क और स्थिति में लाइट रहो - दिनचर्या में नहीं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 7th Sep 2017 )
07.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhari yah life most valuable hai, tumhe is janm me kodii se heere jaisa banna hai, isiliye jitna ho sake Baap ko yaad karo.
Q- Kis ek baat me khabardar na rehne se sara register kharab ho jata hai?
A- Agar kisi ko bhi dukh diya to dukh dene se register kharab ho jata hai. Is baat me badi khabardari chahiye. Dusre ko bhi dukh dena mana swayang ko dukhi karna. Jab Baap kabhi kisi ko dukh nahi dete to baccho ko Baap samaan banna hai. 21 janmo ka Rajya bhagya lene ke liye ek to pavitra bano, dusra, mansa-vacha-karmana kisi ko bhi dukh na do.Grihast byavahar me bahut mitha byavahar karo.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sachcha pyaar ek Baap se rakhna hai. Baki sabse nastmoha banna hai. Mukh se wa karmendriyon se koi bhi paap karm nahi karna hai. Register sad thik rakhna hai.
2) Service me kabhi thakna nahi hai. Apna time waste nahi karna hai. Ghar-ghar me roohani hospital khol sabko yaad ki dabayi deni hai.
Vardaan:- Apni sukshma checking dwara paapo ke bojh ko samapt karne wale samaan wa sampann bhava.
Slogan:-- Bahanebaji ko merge kar do to behad ki bairagya briti emerge ho jayegi.
''मीठे बच्चे - तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, तुम्हें इस जन्म में कौड़ी से हीरे जैसा बनना है, इसलिए जितना हो सके बाप को याद करो''
प्रश्न: किस एक बात में खबरदार न रहने से सारा रजिस्टर खराब हो जाता है?
उत्तर: अगर किसी को भी दु:ख दिया तो दु:ख देने से रजिस्टर खराब हो जाता है। इस बात में बड़ी खबरदारी चाहिए। दूसरे को भी दु:ख देना माना स्वयं को दु:खी करना। जब बाप कभी किसी को दु:ख नहीं देते तो बच्चों को बाप समान बनना है। 21 जन्मों का राज्य भाग्य लेने के लिए एक तो पवित्र बनो, दूसरा, मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में बहुत मीठा व्यवहार करो।।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ... ओम् शान्ति।
तुम जानते हो कि हम आत्मायें अपनी क्या तकदीर बनाकर आये हैं। अभी फिर नई दुनिया के लिए हम तकदीर बना रहे हैं। यह भी जानते हो वह हैं जिस्मानी लड़ाई पर, तुम ब्राह्मण हो रूहानी लड़ाई पर। नई दुनिया का मालिक बनने के लिए, रावण पर विजय पाने के लिए तुम लड़ाई पर हो, बाप इस समय सम्मुख बैठकर समझाते हैं तो ठीक लगता है, बाहर निकलने से कितनी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स भूल जाते हैं। तुम मुरझा जाते हो। बाप है श्रीमत देने वाला। नई दुनिया का स्वराज्य देने वाला। स्व अर्थात् आत्मा कहती है पहले मुझे गदाई थी, अब राजाई मिलती है। उनको गदाई क्यों कहते हैं? गधे का मिसाल देते हैं क्योंकि गधे को श्रृंगार कर धोबी लोग कपड़े की गठरी रखते हैं, गधे ने मिट्टी देखी तो मिट्टी में लथेड़ी लगाने लगते हैं, (लेट जाते हैं)। तो यहाँ भी बाप आये हैं, बच्चों को स्वराज्य देने। श्रृंगार करते हैं। चलते-चलते बच्चे फिर माया की धूल में पड़कर श्रृंगार सारा खलास कर देते हैं। बच्चे खुद भी समझते हैं कि बाबा हमको श्रृंगारते बहुत अच्छा हैं। फिर माया ऐसी प्रबल है जो हम लथेड़ कर श्रृंगार खराब कर देते हैं। सबसे बड़ी धूल है विकार की। तुम्हारी लड़ाई है ही खास विकारों से। बाप कहते हैं काम विकार महाशत्रु है। कैसे शत्रु बना, यह कोई भी नहीं जानता। बाप ने हमको स्वराज्य दिया था, अब गंवाया है। फिर बाप आकर विकारों पर जीत पाने की युक्तियाँ बताते हैं। वास्तव में तुम्हारी लड़ाई काम महाशत्रु से है। अब बाप कहते हैं कि कामी से निष्कामी बनो। निष्कामी अर्थात् कोई भी कामना नहीं, जिसमें कोई विकार नहीं उसको निष्कामी कहेंगे। बाप काम पर जीत पहनाते हैं। कोई को पता नहीं कि रावण राज्य कब से शुरू हुआ। जगन्नाथ के मन्दिर में देवताओं के बड़े गन्दे चित्र लगे हैं, इससे सिद्ध होता है देवताओं के वाम मार्ग में जाने से मनुष्य कामी बन जाते हैं। अभी तुम कामी मनुष्य से निष्कामी देवता बन रहे हो। तुम्हारी युद्ध न्यारी है। बाबा छी-छी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं। यह है विषय वैतरणी नदी।
तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, इसमें कौड़ी से हीरे जैसा बनना है। है सारी बुद्धि की बात। तुम्हें बाबा की याद में रहना है। आजकल तो मौत के लिए अनेक बाम्ब्स बनाये हैं। मनुष्यों ने तो कोई गुनाह नहीं किया है। आगे तो लड़ाई हमेशा शहर से बाहर मैदान में होती थी फिर विजय पाकर शहर के अन्दर आते थे। आजकल तो जहाँ देखो वहाँ बाम्ब्स ठोक देते हैं। बच्चों को कहाँ भी आना-जाना है तो बाप की याद में रहकर औरों को याद कराना है। तुम्हारी तो ब्रान्चेज खुलती ही रहेंगी। दान क्या करना चाहिए, सो भी तुम बच्चे ही समझते हो। उत्तम से उत्तम दान है अविनाशी ज्ञान रत्नों का। घर-घर में तुम यह हॉस्पिटल खोल दो। तुम्हारे हॉस्पिटल में दवाई आदि कुछ भी नहीं है, सिर्फ बाप का परिचय देना है कि उठते-बैठते बाप को याद करो। ऐसे नहीं कि एक जगह बैठ जाना है। यह तो जब कोई याद नहीं करते हैं तो संगठन में बिठाया जाता है, संगठन में बल मिलेगा। संग तारे कुसंग बोरे। बाहर जाने से फिर भूल जाते हैं। बाप ने समझाया है, सवेरे उठ बाप को याद करो, याद का चार्ट रखो। भारत का प्राचीन योग मशहूर है। बहुत जगह योग आश्रम हैं। वह सब हठयोग सिखाते हैं, उनसे कोई फायदा नहीं है। उसको हठयोग कहा जाता है। राजयोग मनुष्य, मनुष्यों को सिखला न सकें। विलायत में जाते हैं भारत का प्राचीन योग सिखाने। परन्तु वह सब है ठगी। सर्वोत्तम सन्यास तो तुम्हारा है। तुम पुरानी दुनिया का सन्यास करते हो। यह बाप ही आकर सिखलाते हैं। बाप कहते हैं बुद्धि से पुरानी दुनिया का सन्यास करो। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना है। 5 विकारों का सन्यास करना है, फिर युक्ति मिलती है। अनेक जन्मों का सिर पर जो पाप है वा इस जन्म में जो पाप किये हैं वह कैसे छूटें? उसका प्रायश्चित कैसे हो? बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुम बच्चों को मैं समझाता हूँ - बाप को याद करना है और चक्र भी घुमाना है। तुम्हारा स्वदर्शन चक्र फिरता रहता है। इस चक्र से तुम्हारे सब पाप नाश हो जाते हैं। स्वदर्शन चक्र की कितनी महिमा है। उन्होंने फिर दिखाया है श्रीकृष्ण ने स्वदर्शन चक्र चलाया, कितने मर गये। वह तो हैं सब दन्त कथायें। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है।
बाप बच्चों को समझाते हैं - एक तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है। बाबा कभी किसको दु:ख नहीं देते तो तुम बच्चों को भी ऐसा बनना है। दूसरे को दु:ख दिया गोया अपने को दु:ख दिया। किसको दु:ख देते हैं गोया अपना ही खाता खराब करते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए। ऐसा कोई पाप कर्म नहीं करना है, जिससे रजिस्टर खराब हो। बच्चे लिखते हैं कि बाबा आज हमसे यह भूल हो गई। उस पर क्रोध किया। आज मैं गिर गया। बाबा हमारा इसमें मोह हैं। बहुत रिपोर्ट आती है। फिर उनको समझाया जाता है। तुम्हारा अन्जाम (वायदा) है कि आप जब आयेंगे तो मैं आपके साथ ही बुद्धियोग रखूँगा। नष्टोमोहा बनूंगा। सन्यासी तो छोड़कर चले जाते हैं। प्राप्ति तो कुछ भी नहीं। तुमको तो प्राप्ति बहुत है इसलिए नष्टोमोहा पूरा बनना है। प्यार एक बाप में रखो। उनको ही याद करना है। ऐसे भी बहुत हैं जो बाबा के प्यार में ऑसू बहाते हैं कि ऐसे बाबा से हम दूर क्यों हैं? हम तो बस शिवबाबा से ही लटके रहें। यहाँ प्राप्ति बहुत भारी है। बाहर के सतसंगों में ढेर जाते हैं। प्राप्ति तो कुछ भी नहीं। वह तो ऐसे किसको नहीं समझाते कि काम महाशत्रु है। मनुष्य, मनुष्य को राजयोग सिखला न सकें। हाँ, कोई राजा बनते हैं, अल्पकाल सुख के लिए। बहुत दान-पुण्य गरीबों को करते हैं तो कहाँ राजा के पास जन्म मिल जाता है। यहाँ तो तुमको 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलता है। बाप कहते हैं एक तो पवित्र बनो, दूसरा मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं दो। नहीं तो सजा के निमित्त बन पड़ेंगे क्योंकि यहाँ धर्मराज बैठा है, जो बाबा का राइट हैण्ड है। तुम्हारा रजिस्टर खराब हो जायेगा। बहुत सजा के निमित्त बन पड़ेंगे। मुख से बोला, इन्द्रियों से कुछ विकर्म किया तो वह कर्मणा हो जायेगा। बाप समझाते हैं कि कर्मणा में नहीं आओ। तूफान भल आयें परन्तु तुमको बहुत मीठा बनना है। क्रोधी से क्रोध नहीं करना चाहिए। मुस्कराना होता है। क्रोध में मनुष्य गाली देते हैं। समझते हैं इनमें क्रोध का भूत आया हुआ है। ज्ञान से समझाना होता है। गृहस्थ व्यवहार में तुम्हारा व्यवहार बहुत मीठा होना चाहिए। बहुतों के लिए कहते भी हैं कि आगे तो इनमें बहुत क्रोध था, अभी बहुत मीठा बन गया है। महिमा करते हैं। कोई तो पवित्रता पर बिगड़ते हैं कि विकार बिगर सृष्टि कैसे चलेगी। अरे सन्यासी विकार में नहीं जाते हैं फिर उनके लिए तो कुछ कहो। पवित्र बनना तो अच्छा है ना। यहाँ तो घरबार भी नहीं छुड़ाया जाता है। बहुत मीठा बनना है सबसे। एक बाप को याद करना है। वह है रचयिता, हम हैं रचना। वर्सा बाप से मिलता है। भाई-भाई से वर्सा मिल न सके। गाते भी हैं हम सब भाई-भाई हैं। तो जरूर बाप भी होगा ना। ब्रदर्स बाप बिगर होते हैं क्या? अभी देखो तुम कैसे भाई-बहन बनते हो। वर्सा दादे से मिलता है। मुख वंशावली ठहरे। गाया भी जाता है प्रजापिता। इतनी सारी प्रजा है तो जरूर एडाप्टेड होगी। कुख वंशावली हो न सके। तुम ब्राह्मण फिर देवता बनते हो। यह बाजोली तुम खेलते हो, यह चक्र फिरता रहता है, इनको नई रचना कहा जाता है। तुम बच्चों की तकदीर अब अच्छी बन रही है। नर से नारायण बनने आये हो। यह है एम-आब्जेक्ट। लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो। चित्र सामने खड़े हैं। फिर यह क्यों कहते हैं कि साक्षात्कार हो तब हम मानें। अरे, तुम्हारा बाप मर जाये तो चित्र तो देखेंगे ना, ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि वह बाप जिंदा हो जाए, बाप का दीदार हो तब मानें। बाप को देखना है तो नौधा भक्ति करो तो बाबा वह साक्षात्कार करा देंगे। परन्तु साक्षात्कार से होगा क्या? यहाँ तो तुमको साक्षात्कार होता है, तुम सो देवी-देवता प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। तो यह समझने की बातें हैं। तुमको इस धुन में ही रहना है। तुम तो जानते हो कि अभी राजधानी स्थापन हुई नहीं है। अभी लड़ाई लग ही नहीं सकती। कर्मातीत अवस्था अजुन कहाँ हुई है। अभी तुम देखेंगे कि गली-गली में यह रूहानी हॉस्पिटल कॉलेज खुलते जायेंगे। बाबा बुद्धि का ताला खोलते जायेंगे। ब्राह्मणों की वृद्धि होती जायेगी। ब्राह्मणों को ही फिर देवता बनना है। तुम्हारे में भी ताकत आती जायेगी। अभी भाषण से एक दो निकलते हैं फिर 50-100 निकलेंगे। पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे। होना तो है ना। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। छोड़ना नहीं है। कोई निकाल भी देते हैं। परन्तु इसमें नष्टोमोहा अच्छा होना चाहिए इसलिए बाप शरण भी बड़ी खबरदारी से देते हैं। नहीं तो फिर यहाँ आकर तंग करते हैं। बच्चों को तो बहुत मीठा बनना है। तुम्हारा ज्ञान है ही गुप्त। कान में मंत्र देते हैं ना। तुम भी किसको कहते हो शिवबाबा को याद करो। आगे चल सिर्फ कहने से ही बुद्धि में ठका हो जायेगा और झट पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे। धीरे-धीरे झाड़ बढ़ेगा। बच्चों को बहुत पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है। नम्बरवार बनते हैं ना। सब एक समान तो नहीं होते हैं। हाँ, सतयुग में सब पवित्र हो जायेंगे। वहाँ दु:ख का नाम नहीं होता। दीपमाला होती है सतयुग में। दशहरा है संगमयुग पर। वहाँ तो सदैव दीवाली है। दीवाली का अर्थ ही है सब आत्माओं की ज्योत जग जाती है। ऐसे नहीं कि सतयुग में कोई दीपावली मनाते हैं, दीवे आदि जगाते हैं। नहीं, वहाँ तो खुशियाँ मनाते हैं, जब कारोनेशन होता है। यह ज्ञान की बातें हैं। हर एक की आत्मा साफ शुद्ध होती है। वहाँ सब पवित्र ही होते हैं। तुमको रोशनी मिली है। जैसे बाबा को नॉलेज है वैसे तुम बच्चों को भी है। बाकी तो वहाँ सब पवित्र ही होते हैं। तो खुशियाँ ही खुशियाँ हैं। तो बाप समझाते हैं बच्चों को कभी डरना नहीं है। तुम्हारी लड़ाई बिल्कुल ही अलग है। तुम्हारी लड़ाई है ही पुराने दुश्मन रावण से। तुम माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हो। बाप तुमको विश्व का मालिक बना रहे हैं। बाहुबल से कोई विश्व का मालिक बन न सके। अभी टाइम बाकी थोड़ा है। विनाश सामने खड़ा है। कल्प पहले मुआफिक हम राजयोग सीख रहे हैं गुप्त। कितनी गुप्त पढ़ाई है, इसको कोई नहीं जानते। जिन्होंने कल्प पहले राज्य भाग्य लिया है, वही अब लेंगे। उन्हों का ही पुरूषार्थ चलेगा। जितना-जितना रावण पर जीत पाते जायेंगे उतनी याद से शक्ति मिलती जायेगी। बच्चों को टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। बाबा कहते हैं कि बच्चे सर्विस करते-करते थक मत जाना। कोटों में कोई ही निकलते हैं। फिर भी माया का थप्पड़ लगने से फेल हो जाते हैं। माया भी सर्वशक्तिमान् है तो बाबा भी सर्वशक्तिमान् है। आधाकल्प तो माया भी जीत लेती है ना। तो बाप को याद करना है और श्रीमत लेते रहना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चा प्यार एक बाप से रखना है। बाकी सबसे नष्टोमोहा बनना है। मुख से वा कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म नहीं करना है। रजिस्टर सदा ठीक रखना है।
2) सर्विस में कभी थकना नहीं है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। घर-घर में रूहानी हॉस्पिटल खोल सबको याद की दवाई देनी है।
वरदान:अपनी सूक्ष्म चेकिंग द्वारा पापों के बोझ को समाप्त करने वाले समान वा सम्पन्न भव
यदि कोई भी असत्य वा व्यर्थ बात देखी, सुनी और उसे वायुमण्डल में फैलाई। सुनकर दिल में समाया नहीं तो यह व्यर्थ बातों का फैलाव करना - यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। ऐसे समाचार सुनने वालों पर भी पाप और सुनाने वालों पर उससे ज्यादा पाप चढ़ता है इसलिए अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर ऐसे पापों के बोझ को समाप्त करो तब बाप समान वा सम्पन्न बन सकेंगे।
स्लोगन:बहानेबाजी को मर्ज कर दो तो बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज हो जायेगी।
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Mithe bacche - Tumhari yah life most valuable hai, tumhe is janm me kodii se heere jaisa banna hai, isiliye jitna ho sake Baap ko yaad karo.
Q- Kis ek baat me khabardar na rehne se sara register kharab ho jata hai?
A- Agar kisi ko bhi dukh diya to dukh dene se register kharab ho jata hai. Is baat me badi khabardari chahiye. Dusre ko bhi dukh dena mana swayang ko dukhi karna. Jab Baap kabhi kisi ko dukh nahi dete to baccho ko Baap samaan banna hai. 21 janmo ka Rajya bhagya lene ke liye ek to pavitra bano, dusra, mansa-vacha-karmana kisi ko bhi dukh na do.Grihast byavahar me bahut mitha byavahar karo.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sachcha pyaar ek Baap se rakhna hai. Baki sabse nastmoha banna hai. Mukh se wa karmendriyon se koi bhi paap karm nahi karna hai. Register sad thik rakhna hai.
2) Service me kabhi thakna nahi hai. Apna time waste nahi karna hai. Ghar-ghar me roohani hospital khol sabko yaad ki dabayi deni hai.
Vardaan:- Apni sukshma checking dwara paapo ke bojh ko samapt karne wale samaan wa sampann bhava.
Slogan:-- Bahanebaji ko merge kar do to behad ki bairagya briti emerge ho jayegi.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
07/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, तुम्हें इस जन्म में कौड़ी से हीरे जैसा बनना है, इसलिए जितना हो सके बाप को याद करो''
प्रश्न: किस एक बात में खबरदार न रहने से सारा रजिस्टर खराब हो जाता है?
उत्तर: अगर किसी को भी दु:ख दिया तो दु:ख देने से रजिस्टर खराब हो जाता है। इस बात में बड़ी खबरदारी चाहिए। दूसरे को भी दु:ख देना माना स्वयं को दु:खी करना। जब बाप कभी किसी को दु:ख नहीं देते तो बच्चों को बाप समान बनना है। 21 जन्मों का राज्य भाग्य लेने के लिए एक तो पवित्र बनो, दूसरा, मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में बहुत मीठा व्यवहार करो।।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ... ओम् शान्ति।
तुम जानते हो कि हम आत्मायें अपनी क्या तकदीर बनाकर आये हैं। अभी फिर नई दुनिया के लिए हम तकदीर बना रहे हैं। यह भी जानते हो वह हैं जिस्मानी लड़ाई पर, तुम ब्राह्मण हो रूहानी लड़ाई पर। नई दुनिया का मालिक बनने के लिए, रावण पर विजय पाने के लिए तुम लड़ाई पर हो, बाप इस समय सम्मुख बैठकर समझाते हैं तो ठीक लगता है, बाहर निकलने से कितनी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स भूल जाते हैं। तुम मुरझा जाते हो। बाप है श्रीमत देने वाला। नई दुनिया का स्वराज्य देने वाला। स्व अर्थात् आत्मा कहती है पहले मुझे गदाई थी, अब राजाई मिलती है। उनको गदाई क्यों कहते हैं? गधे का मिसाल देते हैं क्योंकि गधे को श्रृंगार कर धोबी लोग कपड़े की गठरी रखते हैं, गधे ने मिट्टी देखी तो मिट्टी में लथेड़ी लगाने लगते हैं, (लेट जाते हैं)। तो यहाँ भी बाप आये हैं, बच्चों को स्वराज्य देने। श्रृंगार करते हैं। चलते-चलते बच्चे फिर माया की धूल में पड़कर श्रृंगार सारा खलास कर देते हैं। बच्चे खुद भी समझते हैं कि बाबा हमको श्रृंगारते बहुत अच्छा हैं। फिर माया ऐसी प्रबल है जो हम लथेड़ कर श्रृंगार खराब कर देते हैं। सबसे बड़ी धूल है विकार की। तुम्हारी लड़ाई है ही खास विकारों से। बाप कहते हैं काम विकार महाशत्रु है। कैसे शत्रु बना, यह कोई भी नहीं जानता। बाप ने हमको स्वराज्य दिया था, अब गंवाया है। फिर बाप आकर विकारों पर जीत पाने की युक्तियाँ बताते हैं। वास्तव में तुम्हारी लड़ाई काम महाशत्रु से है। अब बाप कहते हैं कि कामी से निष्कामी बनो। निष्कामी अर्थात् कोई भी कामना नहीं, जिसमें कोई विकार नहीं उसको निष्कामी कहेंगे। बाप काम पर जीत पहनाते हैं। कोई को पता नहीं कि रावण राज्य कब से शुरू हुआ। जगन्नाथ के मन्दिर में देवताओं के बड़े गन्दे चित्र लगे हैं, इससे सिद्ध होता है देवताओं के वाम मार्ग में जाने से मनुष्य कामी बन जाते हैं। अभी तुम कामी मनुष्य से निष्कामी देवता बन रहे हो। तुम्हारी युद्ध न्यारी है। बाबा छी-छी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं। यह है विषय वैतरणी नदी।
तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, इसमें कौड़ी से हीरे जैसा बनना है। है सारी बुद्धि की बात। तुम्हें बाबा की याद में रहना है। आजकल तो मौत के लिए अनेक बाम्ब्स बनाये हैं। मनुष्यों ने तो कोई गुनाह नहीं किया है। आगे तो लड़ाई हमेशा शहर से बाहर मैदान में होती थी फिर विजय पाकर शहर के अन्दर आते थे। आजकल तो जहाँ देखो वहाँ बाम्ब्स ठोक देते हैं। बच्चों को कहाँ भी आना-जाना है तो बाप की याद में रहकर औरों को याद कराना है। तुम्हारी तो ब्रान्चेज खुलती ही रहेंगी। दान क्या करना चाहिए, सो भी तुम बच्चे ही समझते हो। उत्तम से उत्तम दान है अविनाशी ज्ञान रत्नों का। घर-घर में तुम यह हॉस्पिटल खोल दो। तुम्हारे हॉस्पिटल में दवाई आदि कुछ भी नहीं है, सिर्फ बाप का परिचय देना है कि उठते-बैठते बाप को याद करो। ऐसे नहीं कि एक जगह बैठ जाना है। यह तो जब कोई याद नहीं करते हैं तो संगठन में बिठाया जाता है, संगठन में बल मिलेगा। संग तारे कुसंग बोरे। बाहर जाने से फिर भूल जाते हैं। बाप ने समझाया है, सवेरे उठ बाप को याद करो, याद का चार्ट रखो। भारत का प्राचीन योग मशहूर है। बहुत जगह योग आश्रम हैं। वह सब हठयोग सिखाते हैं, उनसे कोई फायदा नहीं है। उसको हठयोग कहा जाता है। राजयोग मनुष्य, मनुष्यों को सिखला न सकें। विलायत में जाते हैं भारत का प्राचीन योग सिखाने। परन्तु वह सब है ठगी। सर्वोत्तम सन्यास तो तुम्हारा है। तुम पुरानी दुनिया का सन्यास करते हो। यह बाप ही आकर सिखलाते हैं। बाप कहते हैं बुद्धि से पुरानी दुनिया का सन्यास करो। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना है। 5 विकारों का सन्यास करना है, फिर युक्ति मिलती है। अनेक जन्मों का सिर पर जो पाप है वा इस जन्म में जो पाप किये हैं वह कैसे छूटें? उसका प्रायश्चित कैसे हो? बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुम बच्चों को मैं समझाता हूँ - बाप को याद करना है और चक्र भी घुमाना है। तुम्हारा स्वदर्शन चक्र फिरता रहता है। इस चक्र से तुम्हारे सब पाप नाश हो जाते हैं। स्वदर्शन चक्र की कितनी महिमा है। उन्होंने फिर दिखाया है श्रीकृष्ण ने स्वदर्शन चक्र चलाया, कितने मर गये। वह तो हैं सब दन्त कथायें। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है।
बाप बच्चों को समझाते हैं - एक तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है। बाबा कभी किसको दु:ख नहीं देते तो तुम बच्चों को भी ऐसा बनना है। दूसरे को दु:ख दिया गोया अपने को दु:ख दिया। किसको दु:ख देते हैं गोया अपना ही खाता खराब करते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए। ऐसा कोई पाप कर्म नहीं करना है, जिससे रजिस्टर खराब हो। बच्चे लिखते हैं कि बाबा आज हमसे यह भूल हो गई। उस पर क्रोध किया। आज मैं गिर गया। बाबा हमारा इसमें मोह हैं। बहुत रिपोर्ट आती है। फिर उनको समझाया जाता है। तुम्हारा अन्जाम (वायदा) है कि आप जब आयेंगे तो मैं आपके साथ ही बुद्धियोग रखूँगा। नष्टोमोहा बनूंगा। सन्यासी तो छोड़कर चले जाते हैं। प्राप्ति तो कुछ भी नहीं। तुमको तो प्राप्ति बहुत है इसलिए नष्टोमोहा पूरा बनना है। प्यार एक बाप में रखो। उनको ही याद करना है। ऐसे भी बहुत हैं जो बाबा के प्यार में ऑसू बहाते हैं कि ऐसे बाबा से हम दूर क्यों हैं? हम तो बस शिवबाबा से ही लटके रहें। यहाँ प्राप्ति बहुत भारी है। बाहर के सतसंगों में ढेर जाते हैं। प्राप्ति तो कुछ भी नहीं। वह तो ऐसे किसको नहीं समझाते कि काम महाशत्रु है। मनुष्य, मनुष्य को राजयोग सिखला न सकें। हाँ, कोई राजा बनते हैं, अल्पकाल सुख के लिए। बहुत दान-पुण्य गरीबों को करते हैं तो कहाँ राजा के पास जन्म मिल जाता है। यहाँ तो तुमको 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलता है। बाप कहते हैं एक तो पवित्र बनो, दूसरा मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं दो। नहीं तो सजा के निमित्त बन पड़ेंगे क्योंकि यहाँ धर्मराज बैठा है, जो बाबा का राइट हैण्ड है। तुम्हारा रजिस्टर खराब हो जायेगा। बहुत सजा के निमित्त बन पड़ेंगे। मुख से बोला, इन्द्रियों से कुछ विकर्म किया तो वह कर्मणा हो जायेगा। बाप समझाते हैं कि कर्मणा में नहीं आओ। तूफान भल आयें परन्तु तुमको बहुत मीठा बनना है। क्रोधी से क्रोध नहीं करना चाहिए। मुस्कराना होता है। क्रोध में मनुष्य गाली देते हैं। समझते हैं इनमें क्रोध का भूत आया हुआ है। ज्ञान से समझाना होता है। गृहस्थ व्यवहार में तुम्हारा व्यवहार बहुत मीठा होना चाहिए। बहुतों के लिए कहते भी हैं कि आगे तो इनमें बहुत क्रोध था, अभी बहुत मीठा बन गया है। महिमा करते हैं। कोई तो पवित्रता पर बिगड़ते हैं कि विकार बिगर सृष्टि कैसे चलेगी। अरे सन्यासी विकार में नहीं जाते हैं फिर उनके लिए तो कुछ कहो। पवित्र बनना तो अच्छा है ना। यहाँ तो घरबार भी नहीं छुड़ाया जाता है। बहुत मीठा बनना है सबसे। एक बाप को याद करना है। वह है रचयिता, हम हैं रचना। वर्सा बाप से मिलता है। भाई-भाई से वर्सा मिल न सके। गाते भी हैं हम सब भाई-भाई हैं। तो जरूर बाप भी होगा ना। ब्रदर्स बाप बिगर होते हैं क्या? अभी देखो तुम कैसे भाई-बहन बनते हो। वर्सा दादे से मिलता है। मुख वंशावली ठहरे। गाया भी जाता है प्रजापिता। इतनी सारी प्रजा है तो जरूर एडाप्टेड होगी। कुख वंशावली हो न सके। तुम ब्राह्मण फिर देवता बनते हो। यह बाजोली तुम खेलते हो, यह चक्र फिरता रहता है, इनको नई रचना कहा जाता है। तुम बच्चों की तकदीर अब अच्छी बन रही है। नर से नारायण बनने आये हो। यह है एम-आब्जेक्ट। लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो। चित्र सामने खड़े हैं। फिर यह क्यों कहते हैं कि साक्षात्कार हो तब हम मानें। अरे, तुम्हारा बाप मर जाये तो चित्र तो देखेंगे ना, ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि वह बाप जिंदा हो जाए, बाप का दीदार हो तब मानें। बाप को देखना है तो नौधा भक्ति करो तो बाबा वह साक्षात्कार करा देंगे। परन्तु साक्षात्कार से होगा क्या? यहाँ तो तुमको साक्षात्कार होता है, तुम सो देवी-देवता प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। तो यह समझने की बातें हैं। तुमको इस धुन में ही रहना है। तुम तो जानते हो कि अभी राजधानी स्थापन हुई नहीं है। अभी लड़ाई लग ही नहीं सकती। कर्मातीत अवस्था अजुन कहाँ हुई है। अभी तुम देखेंगे कि गली-गली में यह रूहानी हॉस्पिटल कॉलेज खुलते जायेंगे। बाबा बुद्धि का ताला खोलते जायेंगे। ब्राह्मणों की वृद्धि होती जायेगी। ब्राह्मणों को ही फिर देवता बनना है। तुम्हारे में भी ताकत आती जायेगी। अभी भाषण से एक दो निकलते हैं फिर 50-100 निकलेंगे। पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे। होना तो है ना। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। छोड़ना नहीं है। कोई निकाल भी देते हैं। परन्तु इसमें नष्टोमोहा अच्छा होना चाहिए इसलिए बाप शरण भी बड़ी खबरदारी से देते हैं। नहीं तो फिर यहाँ आकर तंग करते हैं। बच्चों को तो बहुत मीठा बनना है। तुम्हारा ज्ञान है ही गुप्त। कान में मंत्र देते हैं ना। तुम भी किसको कहते हो शिवबाबा को याद करो। आगे चल सिर्फ कहने से ही बुद्धि में ठका हो जायेगा और झट पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे। धीरे-धीरे झाड़ बढ़ेगा। बच्चों को बहुत पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है। नम्बरवार बनते हैं ना। सब एक समान तो नहीं होते हैं। हाँ, सतयुग में सब पवित्र हो जायेंगे। वहाँ दु:ख का नाम नहीं होता। दीपमाला होती है सतयुग में। दशहरा है संगमयुग पर। वहाँ तो सदैव दीवाली है। दीवाली का अर्थ ही है सब आत्माओं की ज्योत जग जाती है। ऐसे नहीं कि सतयुग में कोई दीपावली मनाते हैं, दीवे आदि जगाते हैं। नहीं, वहाँ तो खुशियाँ मनाते हैं, जब कारोनेशन होता है। यह ज्ञान की बातें हैं। हर एक की आत्मा साफ शुद्ध होती है। वहाँ सब पवित्र ही होते हैं। तुमको रोशनी मिली है। जैसे बाबा को नॉलेज है वैसे तुम बच्चों को भी है। बाकी तो वहाँ सब पवित्र ही होते हैं। तो खुशियाँ ही खुशियाँ हैं। तो बाप समझाते हैं बच्चों को कभी डरना नहीं है। तुम्हारी लड़ाई बिल्कुल ही अलग है। तुम्हारी लड़ाई है ही पुराने दुश्मन रावण से। तुम माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हो। बाप तुमको विश्व का मालिक बना रहे हैं। बाहुबल से कोई विश्व का मालिक बन न सके। अभी टाइम बाकी थोड़ा है। विनाश सामने खड़ा है। कल्प पहले मुआफिक हम राजयोग सीख रहे हैं गुप्त। कितनी गुप्त पढ़ाई है, इसको कोई नहीं जानते। जिन्होंने कल्प पहले राज्य भाग्य लिया है, वही अब लेंगे। उन्हों का ही पुरूषार्थ चलेगा। जितना-जितना रावण पर जीत पाते जायेंगे उतनी याद से शक्ति मिलती जायेगी। बच्चों को टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। बाबा कहते हैं कि बच्चे सर्विस करते-करते थक मत जाना। कोटों में कोई ही निकलते हैं। फिर भी माया का थप्पड़ लगने से फेल हो जाते हैं। माया भी सर्वशक्तिमान् है तो बाबा भी सर्वशक्तिमान् है। आधाकल्प तो माया भी जीत लेती है ना। तो बाप को याद करना है और श्रीमत लेते रहना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चा प्यार एक बाप से रखना है। बाकी सबसे नष्टोमोहा बनना है। मुख से वा कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म नहीं करना है। रजिस्टर सदा ठीक रखना है।
2) सर्विस में कभी थकना नहीं है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। घर-घर में रूहानी हॉस्पिटल खोल सबको याद की दवाई देनी है।
वरदान:अपनी सूक्ष्म चेकिंग द्वारा पापों के बोझ को समाप्त करने वाले समान वा सम्पन्न भव
यदि कोई भी असत्य वा व्यर्थ बात देखी, सुनी और उसे वायुमण्डल में फैलाई। सुनकर दिल में समाया नहीं तो यह व्यर्थ बातों का फैलाव करना - यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। ऐसे समाचार सुनने वालों पर भी पाप और सुनाने वालों पर उससे ज्यादा पाप चढ़ता है इसलिए अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर ऐसे पापों के बोझ को समाप्त करो तब बाप समान वा सम्पन्न बन सकेंगे।
स्लोगन:बहानेबाजी को मर्ज कर दो तो बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज हो जायेगी।
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Details ( Page:- Murali Dtd 8th Sep 2017 )
08.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum fir se Rajyog sikh rahe ho, tumhe Bhagwan fir se padhate hain, tum Rajai ke liye yah padhai padh rahe ho, apni aim object sada yaad rakho.
Q- Abhi tum bacche kaun si taiyari bahut khushi se kar rahe ho?
A- Tum apna yah purana sarir chhod Baap ke paas jane ki taiyari bahut khushi-khushi se kar rahe ho. Ek Baap ki he yaad me sarir choote, ghutka na khana pade-aisi practice yahan he karni hai. Tumhari abhi student life beparwah life hai, isiliye ghutka proof banna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sada tandroost rehne ke liye yaad me rehkar bhojan banana wa khana hai. Bhojan karte samay smruti rahe - hum Baba ke saath kha rahe hain to bhojan me takat bhar jayegi.
2) Devta banne ke liye sankh dhwani karni hai. Swadarshan chakra firate rehna hai. Kamal phool samaan pavitra jeevan banana hai.
Vardaan:- Dusro ke parivartan ki chinta chhod swayang ka parivartan karne wale Subh chintak bhava.
Slogan:-Sevaon ka sada umang hai to chhoti-chhoti bimariyan merge ho jati hai.
“मीठे बच्चे - तुम फिर से राजयोग सीख रहे हो, तुम्हें भगवान फिर से पढ़ाते हैं, तुम राजाई के लिए यह पढ़ाई पढ़ रहे हो, अपनी एम-आब्जेक्ट सदा याद रखो”
प्रश्न: अभी तुम बच्चे कौन सी तैयारी बहुत खुशी से कर रहे हो?
उत्तर: तुम अपना यह पुराना शरीर छोड़ बाप के पास जाने की तैयारी बहुत खुशी-खुशी से कर रहे हो। एक बाप की ही याद में शरीर छूटे, घुटका न खाना पड़े-ऐसी प्रैक्टिस यहाँ ही करनी है। तुम्हारी अभी स्टूडेन्ट लाइफ बेपरवाह लाइफ है, इसलिए घुटका प्रूफ बनना है।
गीत: रात के राही...... ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे पढ़ रहे हैं। स्टूडेन्ट जब पढ़ते हैं तो यह जानते हैं कि हम क्या पढ़ते हैं। पढ़ाने वाले को भी जानते हैं और एम-आब्जेक्ट उद्देश्य और प्राप्ति क्या है, वह भी अच्छी तरह से जानते हैं। अभी तुम सब जानते हो कि हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। इस समय हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बने हैं। तुम क्या पढ़ते हो? राजयोग। यह भी जानते हो हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं और पढ़ने वाले कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यहाँ तुम बच्चों को निश्चय है कि हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं। जो 5 हजार वर्ष पहले भी सीखा था। यह ज्ञान सिर्फ तुम्हारे ही पास है। भगवान फिर से आकर पढ़ाते हैं। यह कोई कम बात थोड़ेही है। यह भी बच्चों को पता है कि भगवान एक है और भगत अनेक हैं। इससे सिद्ध होता है - बाप एक और बच्चे अनेक होते हैं। बाप को क्रियेटर तो सब मानेंगे। रचना को रचता द्वारा वर्सा मिलता है। रात को प्रश्न पूछा था ना - बाप को कैसे पहचाना जाए? बाप खुद कहते हैं हमने तुमको बच्चा बनाया है तब तो सामने बैठे हो। हम तुमको फिर से मनुष्य से देवता बना रहा हूँ, राजयोग सिखा रहा हूँ - जिससे तुम सो लक्ष्मीनारा यण बनेंगे। एम-आब्जेक्ट बुद्धि में रहनी चाहिए ना। तुम्हारी बुद्धि में है लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो एक ही राज्य था। सारे विश्व पर राज्य था। तो तुम बच्चों को चित्रों पर बैठ समझाना है। हम क्या पढ़ रहे हैं। यह है एम-आब्जेक्ट, स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं तो मात-पिता भी जानते हैं क्या पढ़ रहा है। यहाँ तुम फिर से राजाई के लिए पढ़ रहे हो। तो तुमको मित्र सम्बन्धियों को भी बतलाना पड़े। हम इस गीता पाठशाला में राजयोग सीखते हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनेंगे। इस पाठशाला में बूढ़े जवान बच्चे सब पढ़ते हैं। यह वन्डर है ना। पाठशाला में तो ऐसा होता नहीं इसलिए इसको सतसंग भी कहा जाता है। सतसंग में तो सब जाते हैं। परन्तु वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हम राजयोग सीखने जाते हैं। उनको कोई भगवान तो नहीं पढ़ाते हैं। तुमको तो भगवान खुद पढ़ा रहे हैं। यह चित्र तो घर-घर में होना चाहिए। माता-पिता, मित्र सम्बन्धी जो भी आयें उनको समझाना है कि हम यह पढ़ रहे हैं। यह पढ़ाई तो बहुत सहज है। नाम ही है सहज ज्ञान, सहज राजयोग। राजा जनक को भी सेकण्ड में ज्ञान मिला और जीवनमुक्त हुआ। मनुष्य भी कहते हैं हमको जनक मिसल ज्ञान चाहिए, जो हम गृहस्थ में रहते पा सकें। यह तो बहुत ऊंच पढ़ाई है। मनुष्य से देवता बनना है। देवताओं की महिमा कितनी ऊंची है, सर्वगुण सम्पन्न... यह है मृत्युलोक। वह है अमरलोक। पतित दुनिया आसुरी, पावन दुनिया है दैवी दुनिया। पावन दुनिया में जाने लिए पवित्र बनना है। लक्ष्मी-नारायण पावन थे ना। अभी तो वह हैं नहीं। यह तो पतित राज्य है फिर से पावन बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। लक्ष्मी-नारायण में सभी का प्यार रहता है, तब तो बड़े-बड़े आलीशान मन्दिर बनाते हैं। कृष्ण का तो छोटा-छोटा मन्दिर बनाते हैं। जैसे बच्चों का होता है उनको यह पता ही नहीं कि राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तुम समझा सकते हो कि आज से 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था और कोई के चित्र हैं नहीं। सूर्यवंशी डिनायस्टी मशहूर है। लक्ष्मी-नारायण और सीता-राम की डिनायस्टी थी फिर द्वापर कलियुग होता है। अभी कलियुग का अन्त है। हम फिर से वही राजयोग सीख रहे हैं। पाँच हजार वर्ष पहले राजयोग सीख राजाई प्राप्त की थी। बरोबर वह सम्पूर्ण निर्विकारी थे। अभी पतित दुनिया है इसलिए परमपिता परमात्मा को आना होता है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ, वह तो निराकार ठहरा ना। कृष्ण तो प्रिन्स है सतयुग का। वह कैसे आकर पावन बनायेंगे। तो समझाना पड़े कि साकार को भगवान नहीं कहेंगे। दूसरे धर्म वाले परमात्मा को निराकार मानते हैं। वही लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल, गॉड फादर, सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। बाप जब दु:ख हरते हैं तो सुख भी देते होंगे ना। तुम मित्र सम्बन्धियों आदि को समझा सकते हो। वहाँ तो वेद शास्त्र अनेक मनुष्य सुनाते हैं। यहाँ तो सब सुनते ही एक से हैं। बाप कहते हैं तुम मेरे से ही सुनो। भगवानुवाच - जरूर किस तन में आयेगा ना। गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं - 5 हजार वर्ष पहले भी संगम पर ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रचे गये, जो ब्राह्मण फिर देवता बने थे। अभी हम शूद्र से ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे। हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं। कल्प पहले भी सीखे थे। समझेंगे यह तो बड़े निश्चय से बोलते हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको फिर से राजाओं का राजा बनाता हूँ। अक्षर तो बरोबर गीता में हैं। राजयोग से हमने राजाई पाई फिर द्वापर में रावणराज्य शुरू हुआ। अभी रावण राज्य पूरा होता है, हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं, और पाठशालाओं में ऐसे नहीं कहते हैं कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यह तो बच्चों की ही बुद्धि में है। कहते हैं कि मैं फिर से राजयोग सिखाने आया हूँ। उस समय महाभारत लड़ाई लगी थी। पाण्डव गीता सुनते थे। तुम हो रूहानी पण्डे। हे रूहानी बच्चे अथवा रूहानी पण्डे थक मत जाना। बाप कहते हैं ना -गीता जरूर भगवान ही सुनायेंगे ना। है भी भगवानुवाच। तुम जानते हो हम स्वर्ग के सुख पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। भगवान है ही निराकार। शिव जयन्ति मनाते हैं तो जरूर जन्म लेकर कुछ किया होगा ना। वर्सा दिया होगा। बरोबर सतयुग में सूर्यवंशी देवता थे। डिनायस्टी में तो बहुत होते हैं ना। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड... उन्हों की भी डिनायस्टी चलती है। यह भी ऐसे है। तुम बच्चे चित्रों पर अच्छी रीति समझा सकते हो। यह (ब्रह्मा) कहते हैं-मैं थोड़ेही भगवान हूँ। बनाने वाला तो दूसरा होगा ना। मैं कहाँ से सीखा? अगर हमारा मनुष्य गुरू होता तो गुरू से लाखों करोड़ों सीखने वाले चाहिए। सिर्फ यही सीखा क्या? और सब चेले कहाँ गये? यहाँ तो है ही भगवानुवाच। उसने यह राज समझाया है। यह चित्र कैसे बैठ निकलवाये हैं। लक्ष्मी-नारायण बचपन में राधे कृष्ण थे। गीता का भगवान कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। प्रलय की तो बात ही नहीं। तुम भी कहते हो हम फिर से देवता बन रहे हैं। शिव जयन्ति भी गाई जाती है। लाखों वर्ष तो नहीं हुए। बाप बैठ समझाते हैं इन शास्त्रों आदि में कोई सार नहीं है, यह पढ़ते-पढ़ते तुम्हारी कला उतरती गई है। अभी तो कोई कला नहीं रही है। बाप कहते हैं भक्ति से कोई भी मेरे से मिल नहीं सकता। मुझे आना ही पड़ता है। तुम कहते हो भगवान किस न किस रूप में आयेगा। कृष्ण तो है ही सतयुग का प्रिन्स। शिव तो है निराकार। वह जरूर किसमें आया होगा। पतित-पावन है तो जरूर कलियुग के अन्त में आया होगा। कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं, यह तो शोभता नहीं। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर। इस बूट (ब्रह्मा) में मैं फिट होता हूँ। ड्रामा में कोई चेन्ज नहीं हो सकती। रोला कितना कर दिया है इसलिए प्रश्न पूछा जाता है-गीता का भगवान कौन? यह बड़ी जरूरी बात है। इसी में सारा रोला है। नर्क को पलटने और स्वर्ग बनाने वाला कौन? बाप ही कर सकते हैं। लक्ष्मी-नारायण कितने एक्टिव थे। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश हो जायेंगे। सब तो नहीं समझेंगे। कोई को अच्छा लगता है परन्तु पवित्र रहने की हिम्मत नहीं रखते हैं। अभी देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है। जो कल्प पहले ब्राह्मण बने होंगे, वही बनेंगे। यह कलम बाप के सिवाए कोई लगा नहीं सकता। देवता धर्म वालों को शूद्र से ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण जरूर बनना पड़ेगा। नहीं तो देवता कैसे बनेंगे। विराट रूप पर समझाना होता है। चोटी के ऊपर शिव भी दिखाते हैं। उन्होंने शिव को और ब्राह्मण वर्ण को उड़ा दिया है। बाकी देवता, क्षत्रिय... दिखा दिये हैं। विराट रूप दिखाते भी विष्णु के रूप में हैं। यह नॉलेज समझने की है। मनुष्य कैसे 84 जन्मों का चक्र लगाते हैं, और कोई यह नॉलेज नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं यह नॉलेज ही प्राय:लोप हो जाती है, परम्परा चल न सके। स्वदर्शन चक्र देवताओं को नहीं है। यह तुमको है। परन्तु तुम तो सम्पूर्ण बने नहीं हो। तो निशानी देवताओं को दे दी है। स्वदर्शन चक्र फिराते, कमल पुष्प समान बनते, शंखध्वनि करते तुम देवता बन जायेंगे। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी स्थापना कर रहे हैं। यह बातें कोई की बुद्धि में नहीं हैं। भगवान पढ़ाते हैं, हम विश्व के मालिक बनते हैं तो कितना न हर्षित होना चाहिए। स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट। पढ़ाई की लाइफ बेपरवाह अच्छी रहती है। पीछे तो जाल में फँस जाते हैं। कितने दु:ख की जाल है। सतयुग में कोई बात नहीं। खुशी-खुशी से शरीर छोड़ते हैं। घुट-घुट कर मरना रावणराज्य में होता है। तुम खुशी से तैयारी कर रहे हो कि हम कब बाबा के पास जायें, बैठे ही इसलिए हैं। पुराना शरीर छोड़ जायें। फिर 21 जन्म घुटका खाने की बात नहीं। इस जन्म में घुटका बिल्कुल नहीं खाना है, पतित से पावन बन रहे हैं। बहुत खुशी में रहना है। अच्छा यहाँ से सूक्ष्मवतन में जाते हैं, वह भी अच्छा है। फरिश्ता तो बनना है। आधाकल्प तो घुटका खाते आये हैं। अब बाबा के पास जायें। खुशी से तैयारी कर रहे हैं। घुटका प्रूफ यहाँ बनना है। ऐसे सन्यासी भी बहुत होते हैं जो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। सन्नाटा हो जाता है। समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। जाते तो कोई नहीं-जब तक बाप न आये। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है। कहते हैं ना-जि्ास भण्डारे से खाया वह भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर... यहाँ तो अकाले मृत्यु होती रहती है। पतित-पावन शिवबाबा के भण्डारे में जो आता है वह पावन बन जाता है, इसलिए इसको ब्रह्मा भोजन कहा जाता है। इनकी बड़ी महिमा है। योग भी बड़ा अच्छा चाहिए। योग में रह भोजन बनाओ और खाओ तो तुम्हारी बहुत अच्छी उन्नति होगी। उस भोजन में बहुत ताकत आ जाती है। योग में रह तुम भोजन खाओ तो बहुत ताकत मिलेगी और तन्दरूस्त भी रहेंगे। बाबा खुद कहते हैं कि हम बाबा की याद में बैठे जैसेकि हम और बाबा खाते हैं, परन्तु फिर भी भूल जाता हूँ। एक बाप की याद में ही शरीर छूटे, कोई घुटका नहीं आये, ऐसी प्रैक्टिस करनी चाहिए। बाबा की याद में रहने से एक तो शान्ति रहेगी और हेल्दी बनेंगे। भोजन पवित्र हो जायेगा। अन्त का गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपगोपि यों से पूछो। झाड़ में समझानी बहुत अच्छी है। त्रिमूर्ति और गोला भी जरूरी है। दिन-प्रतिदिन तुम्हारा नाम बहुत बाला होता जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा तन्दरूस्त रहने के लिए याद में रहकर भोजन बनाना वा खाना है। भोजन करते समय स्मृति रहे - हम बाबा के साथ खा रहे हैं तो भोजन में ताकत भर जायेगी।
2) देवता बनने के लिए शंखध्वनि करनी है। स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है। कमल फूल समान पवित्र जीवन बनाना है।
वरदान: दूसरों के परिवर्तन की चिंता छोड़ स्वयं का परिवर्तन करने वाले शुभ चिंतक भव!
स्व परिवर्तन करना ही शुभ चिंतक बनना है। यदि स्व को भूल दूसरे के परिवर्तन की चिंता करते हो तो यह शुभचिंतन नहीं है। पहले स्व और स्व के साथ सर्व। यदि स्व का परिवर्तन नहीं करते और दूसरों के शुभ चिंतक बनते हो तो सफलता नहीं मिल सकती इसलिए स्वयं को कायदे प्रमाण चलाते हुए स्व का परिवर्तन करो, इसी में ही फायदा है। बाहर से कोई फायदा भल दिखाई न दे लेकिन अन्दर से हल्कापन और खुशी की अनुभूति होती रहेगी।
स्लोगन: सेवाओं का सदा उमंग है तो छोटी-छोटी बीमारियां मर्ज हो जाती हैं।
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Mithe bacche - Tum fir se Rajyog sikh rahe ho, tumhe Bhagwan fir se padhate hain, tum Rajai ke liye yah padhai padh rahe ho, apni aim object sada yaad rakho.
Q- Abhi tum bacche kaun si taiyari bahut khushi se kar rahe ho?
A- Tum apna yah purana sarir chhod Baap ke paas jane ki taiyari bahut khushi-khushi se kar rahe ho. Ek Baap ki he yaad me sarir choote, ghutka na khana pade-aisi practice yahan he karni hai. Tumhari abhi student life beparwah life hai, isiliye ghutka proof banna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sada tandroost rehne ke liye yaad me rehkar bhojan banana wa khana hai. Bhojan karte samay smruti rahe - hum Baba ke saath kha rahe hain to bhojan me takat bhar jayegi.
2) Devta banne ke liye sankh dhwani karni hai. Swadarshan chakra firate rehna hai. Kamal phool samaan pavitra jeevan banana hai.
Vardaan:- Dusro ke parivartan ki chinta chhod swayang ka parivartan karne wale Subh chintak bhava.
Slogan:-Sevaon ka sada umang hai to chhoti-chhoti bimariyan merge ho jati hai.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
08-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम फिर से राजयोग सीख रहे हो, तुम्हें भगवान फिर से पढ़ाते हैं, तुम राजाई के लिए यह पढ़ाई पढ़ रहे हो, अपनी एम-आब्जेक्ट सदा याद रखो”
प्रश्न: अभी तुम बच्चे कौन सी तैयारी बहुत खुशी से कर रहे हो?
उत्तर: तुम अपना यह पुराना शरीर छोड़ बाप के पास जाने की तैयारी बहुत खुशी-खुशी से कर रहे हो। एक बाप की ही याद में शरीर छूटे, घुटका न खाना पड़े-ऐसी प्रैक्टिस यहाँ ही करनी है। तुम्हारी अभी स्टूडेन्ट लाइफ बेपरवाह लाइफ है, इसलिए घुटका प्रूफ बनना है।
गीत: रात के राही...... ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे पढ़ रहे हैं। स्टूडेन्ट जब पढ़ते हैं तो यह जानते हैं कि हम क्या पढ़ते हैं। पढ़ाने वाले को भी जानते हैं और एम-आब्जेक्ट उद्देश्य और प्राप्ति क्या है, वह भी अच्छी तरह से जानते हैं। अभी तुम सब जानते हो कि हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। इस समय हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बने हैं। तुम क्या पढ़ते हो? राजयोग। यह भी जानते हो हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं और पढ़ने वाले कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यहाँ तुम बच्चों को निश्चय है कि हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं। जो 5 हजार वर्ष पहले भी सीखा था। यह ज्ञान सिर्फ तुम्हारे ही पास है। भगवान फिर से आकर पढ़ाते हैं। यह कोई कम बात थोड़ेही है। यह भी बच्चों को पता है कि भगवान एक है और भगत अनेक हैं। इससे सिद्ध होता है - बाप एक और बच्चे अनेक होते हैं। बाप को क्रियेटर तो सब मानेंगे। रचना को रचता द्वारा वर्सा मिलता है। रात को प्रश्न पूछा था ना - बाप को कैसे पहचाना जाए? बाप खुद कहते हैं हमने तुमको बच्चा बनाया है तब तो सामने बैठे हो। हम तुमको फिर से मनुष्य से देवता बना रहा हूँ, राजयोग सिखा रहा हूँ - जिससे तुम सो लक्ष्मीनारा यण बनेंगे। एम-आब्जेक्ट बुद्धि में रहनी चाहिए ना। तुम्हारी बुद्धि में है लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो एक ही राज्य था। सारे विश्व पर राज्य था। तो तुम बच्चों को चित्रों पर बैठ समझाना है। हम क्या पढ़ रहे हैं। यह है एम-आब्जेक्ट, स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं तो मात-पिता भी जानते हैं क्या पढ़ रहा है। यहाँ तुम फिर से राजाई के लिए पढ़ रहे हो। तो तुमको मित्र सम्बन्धियों को भी बतलाना पड़े। हम इस गीता पाठशाला में राजयोग सीखते हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनेंगे। इस पाठशाला में बूढ़े जवान बच्चे सब पढ़ते हैं। यह वन्डर है ना। पाठशाला में तो ऐसा होता नहीं इसलिए इसको सतसंग भी कहा जाता है। सतसंग में तो सब जाते हैं। परन्तु वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हम राजयोग सीखने जाते हैं। उनको कोई भगवान तो नहीं पढ़ाते हैं। तुमको तो भगवान खुद पढ़ा रहे हैं। यह चित्र तो घर-घर में होना चाहिए। माता-पिता, मित्र सम्बन्धी जो भी आयें उनको समझाना है कि हम यह पढ़ रहे हैं। यह पढ़ाई तो बहुत सहज है। नाम ही है सहज ज्ञान, सहज राजयोग। राजा जनक को भी सेकण्ड में ज्ञान मिला और जीवनमुक्त हुआ। मनुष्य भी कहते हैं हमको जनक मिसल ज्ञान चाहिए, जो हम गृहस्थ में रहते पा सकें। यह तो बहुत ऊंच पढ़ाई है। मनुष्य से देवता बनना है। देवताओं की महिमा कितनी ऊंची है, सर्वगुण सम्पन्न... यह है मृत्युलोक। वह है अमरलोक। पतित दुनिया आसुरी, पावन दुनिया है दैवी दुनिया। पावन दुनिया में जाने लिए पवित्र बनना है। लक्ष्मी-नारायण पावन थे ना। अभी तो वह हैं नहीं। यह तो पतित राज्य है फिर से पावन बनना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। लक्ष्मी-नारायण में सभी का प्यार रहता है, तब तो बड़े-बड़े आलीशान मन्दिर बनाते हैं। कृष्ण का तो छोटा-छोटा मन्दिर बनाते हैं। जैसे बच्चों का होता है उनको यह पता ही नहीं कि राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तुम समझा सकते हो कि आज से 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था और कोई के चित्र हैं नहीं। सूर्यवंशी डिनायस्टी मशहूर है। लक्ष्मी-नारायण और सीता-राम की डिनायस्टी थी फिर द्वापर कलियुग होता है। अभी कलियुग का अन्त है। हम फिर से वही राजयोग सीख रहे हैं। पाँच हजार वर्ष पहले राजयोग सीख राजाई प्राप्त की थी। बरोबर वह सम्पूर्ण निर्विकारी थे। अभी पतित दुनिया है इसलिए परमपिता परमात्मा को आना होता है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ, वह तो निराकार ठहरा ना। कृष्ण तो प्रिन्स है सतयुग का। वह कैसे आकर पावन बनायेंगे। तो समझाना पड़े कि साकार को भगवान नहीं कहेंगे। दूसरे धर्म वाले परमात्मा को निराकार मानते हैं। वही लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल, गॉड फादर, सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। बाप जब दु:ख हरते हैं तो सुख भी देते होंगे ना। तुम मित्र सम्बन्धियों आदि को समझा सकते हो। वहाँ तो वेद शास्त्र अनेक मनुष्य सुनाते हैं। यहाँ तो सब सुनते ही एक से हैं। बाप कहते हैं तुम मेरे से ही सुनो। भगवानुवाच - जरूर किस तन में आयेगा ना। गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं - 5 हजार वर्ष पहले भी संगम पर ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रचे गये, जो ब्राह्मण फिर देवता बने थे। अभी हम शूद्र से ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे। हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं। कल्प पहले भी सीखे थे। समझेंगे यह तो बड़े निश्चय से बोलते हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको फिर से राजाओं का राजा बनाता हूँ। अक्षर तो बरोबर गीता में हैं। राजयोग से हमने राजाई पाई फिर द्वापर में रावणराज्य शुरू हुआ। अभी रावण राज्य पूरा होता है, हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं, और पाठशालाओं में ऐसे नहीं कहते हैं कि हम फिर से पढ़ रहे हैं। यह तो बच्चों की ही बुद्धि में है। कहते हैं कि मैं फिर से राजयोग सिखाने आया हूँ। उस समय महाभारत लड़ाई लगी थी। पाण्डव गीता सुनते थे। तुम हो रूहानी पण्डे। हे रूहानी बच्चे अथवा रूहानी पण्डे थक मत जाना। बाप कहते हैं ना -गीता जरूर भगवान ही सुनायेंगे ना। है भी भगवानुवाच। तुम जानते हो हम स्वर्ग के सुख पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। भगवान है ही निराकार। शिव जयन्ति मनाते हैं तो जरूर जन्म लेकर कुछ किया होगा ना। वर्सा दिया होगा। बरोबर सतयुग में सूर्यवंशी देवता थे। डिनायस्टी में तो बहुत होते हैं ना। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड... उन्हों की भी डिनायस्टी चलती है। यह भी ऐसे है। तुम बच्चे चित्रों पर अच्छी रीति समझा सकते हो। यह (ब्रह्मा) कहते हैं-मैं थोड़ेही भगवान हूँ। बनाने वाला तो दूसरा होगा ना। मैं कहाँ से सीखा? अगर हमारा मनुष्य गुरू होता तो गुरू से लाखों करोड़ों सीखने वाले चाहिए। सिर्फ यही सीखा क्या? और सब चेले कहाँ गये? यहाँ तो है ही भगवानुवाच। उसने यह राज समझाया है। यह चित्र कैसे बैठ निकलवाये हैं। लक्ष्मी-नारायण बचपन में राधे कृष्ण थे। गीता का भगवान कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। प्रलय की तो बात ही नहीं। तुम भी कहते हो हम फिर से देवता बन रहे हैं। शिव जयन्ति भी गाई जाती है। लाखों वर्ष तो नहीं हुए। बाप बैठ समझाते हैं इन शास्त्रों आदि में कोई सार नहीं है, यह पढ़ते-पढ़ते तुम्हारी कला उतरती गई है। अभी तो कोई कला नहीं रही है। बाप कहते हैं भक्ति से कोई भी मेरे से मिल नहीं सकता। मुझे आना ही पड़ता है। तुम कहते हो भगवान किस न किस रूप में आयेगा। कृष्ण तो है ही सतयुग का प्रिन्स। शिव तो है निराकार। वह जरूर किसमें आया होगा। पतित-पावन है तो जरूर कलियुग के अन्त में आया होगा। कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं, यह तो शोभता नहीं। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर। इस बूट (ब्रह्मा) में मैं फिट होता हूँ। ड्रामा में कोई चेन्ज नहीं हो सकती। रोला कितना कर दिया है इसलिए प्रश्न पूछा जाता है-गीता का भगवान कौन? यह बड़ी जरूरी बात है। इसी में सारा रोला है। नर्क को पलटने और स्वर्ग बनाने वाला कौन? बाप ही कर सकते हैं। लक्ष्मी-नारायण कितने एक्टिव थे। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश हो जायेंगे। सब तो नहीं समझेंगे। कोई को अच्छा लगता है परन्तु पवित्र रहने की हिम्मत नहीं रखते हैं। अभी देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है। जो कल्प पहले ब्राह्मण बने होंगे, वही बनेंगे। यह कलम बाप के सिवाए कोई लगा नहीं सकता। देवता धर्म वालों को शूद्र से ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण जरूर बनना पड़ेगा। नहीं तो देवता कैसे बनेंगे। विराट रूप पर समझाना होता है। चोटी के ऊपर शिव भी दिखाते हैं। उन्होंने शिव को और ब्राह्मण वर्ण को उड़ा दिया है। बाकी देवता, क्षत्रिय... दिखा दिये हैं। विराट रूप दिखाते भी विष्णु के रूप में हैं। यह नॉलेज समझने की है। मनुष्य कैसे 84 जन्मों का चक्र लगाते हैं, और कोई यह नॉलेज नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं यह नॉलेज ही प्राय:लोप हो जाती है, परम्परा चल न सके। स्वदर्शन चक्र देवताओं को नहीं है। यह तुमको है। परन्तु तुम तो सम्पूर्ण बने नहीं हो। तो निशानी देवताओं को दे दी है। स्वदर्शन चक्र फिराते, कमल पुष्प समान बनते, शंखध्वनि करते तुम देवता बन जायेंगे। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी स्थापना कर रहे हैं। यह बातें कोई की बुद्धि में नहीं हैं। भगवान पढ़ाते हैं, हम विश्व के मालिक बनते हैं तो कितना न हर्षित होना चाहिए। स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट। पढ़ाई की लाइफ बेपरवाह अच्छी रहती है। पीछे तो जाल में फँस जाते हैं। कितने दु:ख की जाल है। सतयुग में कोई बात नहीं। खुशी-खुशी से शरीर छोड़ते हैं। घुट-घुट कर मरना रावणराज्य में होता है। तुम खुशी से तैयारी कर रहे हो कि हम कब बाबा के पास जायें, बैठे ही इसलिए हैं। पुराना शरीर छोड़ जायें। फिर 21 जन्म घुटका खाने की बात नहीं। इस जन्म में घुटका बिल्कुल नहीं खाना है, पतित से पावन बन रहे हैं। बहुत खुशी में रहना है। अच्छा यहाँ से सूक्ष्मवतन में जाते हैं, वह भी अच्छा है। फरिश्ता तो बनना है। आधाकल्प तो घुटका खाते आये हैं। अब बाबा के पास जायें। खुशी से तैयारी कर रहे हैं। घुटका प्रूफ यहाँ बनना है। ऐसे सन्यासी भी बहुत होते हैं जो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। सन्नाटा हो जाता है। समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। जाते तो कोई नहीं-जब तक बाप न आये। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है। कहते हैं ना-जि्ास भण्डारे से खाया वह भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर... यहाँ तो अकाले मृत्यु होती रहती है। पतित-पावन शिवबाबा के भण्डारे में जो आता है वह पावन बन जाता है, इसलिए इसको ब्रह्मा भोजन कहा जाता है। इनकी बड़ी महिमा है। योग भी बड़ा अच्छा चाहिए। योग में रह भोजन बनाओ और खाओ तो तुम्हारी बहुत अच्छी उन्नति होगी। उस भोजन में बहुत ताकत आ जाती है। योग में रह तुम भोजन खाओ तो बहुत ताकत मिलेगी और तन्दरूस्त भी रहेंगे। बाबा खुद कहते हैं कि हम बाबा की याद में बैठे जैसेकि हम और बाबा खाते हैं, परन्तु फिर भी भूल जाता हूँ। एक बाप की याद में ही शरीर छूटे, कोई घुटका नहीं आये, ऐसी प्रैक्टिस करनी चाहिए। बाबा की याद में रहने से एक तो शान्ति रहेगी और हेल्दी बनेंगे। भोजन पवित्र हो जायेगा। अन्त का गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपगोपि यों से पूछो। झाड़ में समझानी बहुत अच्छी है। त्रिमूर्ति और गोला भी जरूरी है। दिन-प्रतिदिन तुम्हारा नाम बहुत बाला होता जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा तन्दरूस्त रहने के लिए याद में रहकर भोजन बनाना वा खाना है। भोजन करते समय स्मृति रहे - हम बाबा के साथ खा रहे हैं तो भोजन में ताकत भर जायेगी।
2) देवता बनने के लिए शंखध्वनि करनी है। स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है। कमल फूल समान पवित्र जीवन बनाना है।
वरदान: दूसरों के परिवर्तन की चिंता छोड़ स्वयं का परिवर्तन करने वाले शुभ चिंतक भव!
स्व परिवर्तन करना ही शुभ चिंतक बनना है। यदि स्व को भूल दूसरे के परिवर्तन की चिंता करते हो तो यह शुभचिंतन नहीं है। पहले स्व और स्व के साथ सर्व। यदि स्व का परिवर्तन नहीं करते और दूसरों के शुभ चिंतक बनते हो तो सफलता नहीं मिल सकती इसलिए स्वयं को कायदे प्रमाण चलाते हुए स्व का परिवर्तन करो, इसी में ही फायदा है। बाहर से कोई फायदा भल दिखाई न दे लेकिन अन्दर से हल्कापन और खुशी की अनुभूति होती रहेगी।
स्लोगन: सेवाओं का सदा उमंग है तो छोटी-छोटी बीमारियां मर्ज हो जाती हैं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 9th Sep 2017 )
09.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap samaan patito ko pawan banane ka purusharth karo, yah samay bahut valuable hai, isiliye byarth baaton me apna samay barbad mat karo.
Q- Baap baccho ki kis ek baat par bahut taras khaate hain?
A- Kai bacche aapas me jharmui jhagmui kar apna samay bahut gawante hain. Ghumne firne jaate hain to Baap ko yaad karne ke bajaye byarth chintan karte hain. Baap ko un baccho par bahut taras padta hai. Baba kehte mithe bacche - ab apni jeevan sudhar lo. Byarth samay nahi gawaon. Tamopradhan se satopradhan banne ke liye sachchi dil se Baap ko yuktiyukt yaad karo, lachari yaad nahi karo.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap jo sunate hain usey bahut pyaar se aatma - abhimaani hokar sunna hai. Saamne baithkar Baap ko dekhte rahna hai. Jhutka nahi khana hai. Padhai me bahut roochi rakhni hai. Bhojan tyag kar bhi padhai jaroor karni hai.
2) Ek Baap ko sachcha dost banana hai, aapas me dushmani samapt karne ke liye main aatma bhai - bhai hoon, yah abhyas karna hai. Sarir ko dekhte huye bhi nahi dekhna hai.
Vardaan:-- Holy hans ban byarth ko samarth me parivartan karne wale Feeling proof bhava.
Slogan:-Sadhana ke beej ko pratyaksh karne ka sadhan hai behad ki bairagya briti.
“मीठे बच्चे - बाप समान पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करो, यह समय बहुत वैल्युबुल है, इसलिए व्यर्थ बातों में अपना समय बरबाद मत करो”
प्रश्न: बाप बच्चों की किस एक बात पर बहुत तरस खाते हैं?
उत्तर: कई बच्चे आपस में झरमुई झगमुई कर अपना समय बहुत गवाते हैं। घूमने फिरने जाते हैं तो बाप को याद करने के बजाए व्यर्थ चिंतन करते हैं। बाप को उन बच्चों पर बहुत तरस पड़ता है। बाबा कहते मीठे बच्चे - अब अपनी जीवन सुधार लो। व्यर्थ समय नहीं गवाओ। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए सच्ची दिल से बाप को युक्तियुक्त याद करो, लाचारी याद नहीं करो।
भगवानुवाच। बच्चे भी समझते होंगे जरूर कि भगवान हमको पढ़ा रहे हैं। हम बहुत पुराने स्टूडेन्ट हैं। एक ही टीचर के पास कोई भी पढ़ते नहीं हैं। 12 मास पढ़ेंगे फिर टीचर बदली करेंगे। यहाँ यह मुख्य टीचर बदली नहीं होता। बाकी बच्चियां तो बहुत हैं - राजयोग सिखाने के लिए। एक से तो काम चल न सके। पावन बनने के लिए कितने ढेर बुलाते हैं। एक को ही बुलाते हैं। पावन बनाने वाला एक ही टीचर ठहरा। वन्डर है जो पतित-पावन को बुलाते हैं, समझते कुछ भी नहीं। द्रोपदी ने भी पुकारा ना कि हमें यह नंगन करते हैं, रक्षा करो। आधाकल्प तुम पुकारते आये हो। बोलो, तुम ही सब तो पुकारते थे ना। द्रोपदी का मिसाल दिया है, पतित तो सारी दुनिया है। पतित और पावन में रात दिन का फर्क है। पतित हैं पत्थर बुद्धि। बाप आकर सब विकारों से घृणा दिलाते हैं। आत्मा समझती है कि मुझ आत्मा का यह शरीर पतित है। तुम भी समझते हो यह शरीर पतित है, जंक लगा हुआ है। जिन्हों को पावन फर्स्टक्लास शरीर है, वह सारे विश्व पर राज्य करते थे, उनको कहेंगे पारसबुद्धि। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि का गायन भी भारत में ही है। तो बच्चों को ख्याल आना चाहिए कि इस पतित भारत को पावन कैसे बनायें। परन्तु नम्बरवार सर्विसएबुल को यह ख्यालात आते होंगे और पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करते होंगे। बाप का पहला फर्ज ही यह है। बाप आते ही हैं तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने। तो जितना बाप को ओना है उतना बच्चों को भी होना चाहिए। बाप कहते हैं मैं तुमको अपने से भी ऊंचा बनाता हूँ। तुमको ख्यालात भी जास्ती चलने चाहिए। मेरे से भी जास्ती सर्विस तुम बच्चे करते हो ना। बाबा थोड़ेही 3-4 घण्टे बैठ समझाते हैं प्रदर्शनी आदि में। बाप बच्चों की महिमा करते हैं। परन्तु वह खुशी, वह योग कम दिखाई देता है इसलिए बेहद का बाप जो इन द्वारा पढ़ाते हैं, यह सबसे नजदीक है। इतना एकदम नजदीक बाप, दादा कब देखा है? मुख्य है ही आत्मा। आत्मा निकल जाए तो शरीर कोई काम का नहीं रहता। मनुष्य के शरीर की कोई वैल्यु नहीं रहती। कोई काम में नहीं आता, राख हो जाता है। जानवरों आदि की हि•यां भी काम में आ जाती हैं। चमड़ा भी काम में आता है। मनुष्य का तो कुछ भी नहीं बनता। हि•यां पानी में डाल खत्म कर देते हैं। निशानी भी नहीं रहती। उन्हों की निशानी फिर भी जंगलों में पड़ी रहती है। मनुष्य का सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक तो मूल्य है। देवतायें हैं तब तो पूज्य लायक हैं। पीछे पाई की भी वैल्यु नहीं रहती इसलिए कहा जाता है पत्थरबुद्धि। भरी ढोते रहते हैं, पैसे आदि की चिंता रहती है। वहाँ तो बिल्कुल निश्चिंत रहते हैं। तो बाप कहते हैं कि तुम्हारा यह शरीर बहुत वैल्युबुल है। यह टाइम भी वैल्युबुल है, इनको वेस्ट नहीं गँवाओ। फालतू बातों में समय नहीं गँवाओ। अपनी आत्मा को याद के बल से सतोप्रधान बनाना है और कोई उपाय पावन बनने का नहीं है। एक ही शास्त्र में भगवानुवाच है - जिसको कहते हैं श्रीमत भगवत गीता। तो बाप कहते हैं आओ - कंगाल बच्चे, तुम्हें सिरताज बनाऊं। तुम भी समझते हो कि बरोबर हम कंगाल हैं। भल बहुत धनवान हैं, पदमापदमपति हैं, उन्हों के फोटो, नाम आदि निकालते हैं ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार धनवान हैं। तुम कहेंगे हम स्थाई सच्चे धनवान हैं। यह धन ही साथ देता है। तुम्हारे आगे वह सब कंगाल हैं। नाम भल पदमपति आदि है। सतगुरू बाबा ने भी तुम्हारा नाम पदमापदमपति अविनाशी रखा है। तुम हो स्वर्ग के पदमपति। वह हैं नर्क के पदमपति। नर्क और स्वर्ग को तुम समझते हो। वह पत्थरबुद्धि बिल्कुल नहीं समझते। आगे चल तुम्हारे पास आयेंगे, जब विनाश देखेंगे तब समझेंगे यह तो पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। फिर कहेंगे यह ब्रह्माकुमार कुमारियां तो सच कहते थे। अच्छा, अब क्या करना है? कुछ कर नहीं सकेंगे। पैसे आदि एकदम जल मर सब खत्म हो जायेंगे। बाम्बस आदि गिरते हैं तो मकान, जायदाद आदि सब खत्म हो जाता है। शरीर भी खत्म हो जाते हैं। यह तुम देखेंगे - बड़ा भयानक सीन आने वाला है। उस समय ज्ञान में आ नहीं सकेंगे। अब यह भगवान बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं - हम आये हैं भगवान से पढ़ने। तुम कितने तकदीरवान हो। यह भी सबको निश्चय नहीं है, निश्चय हो तो भगवान से क्यों नहीं पढ़े। रात दिन बत्तियां जगाकर मर-झुरकर, भोजन न खाकर भी एकदम पढ़ने को लग पड़े। वाह यह तो 21 जन्मों की कमाई है। बहुत अच्छी रीति पढ़ने को लग जाये। पढ़ाई भी क्या है, मुख्य है ही बाप को याद करना। बाबा को बहुत तरस आता है। बाबा जानते हैं बच्चे घूमने फिरने जाते हैं, एक भी बाप की याद में नहीं रहते। झरमुई झगमुई बहुत करते हैं। बच्चों को बहुत ओना रहना चाहिए। बस टाइम बहुत थोड़ा है। भारत कितना बड़ा है। बहुत सर्विस है। पहले अपनी जीवन तो सुधार लें। बाबा बहुत बार कहते हैं - बच्चे झरमुई झगमुई मत करो। यह बातें छोड़ दो, अपना जीवन सुधारो। सबको आपस में लड़ मरना है। ड्रामा की भावी ऐसी है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में टाइम तो लगता है ना। अपनी दिल से पूछना है कि हम कितना समय याद करते हैं? सच्ची दिल से बहुत प्यार से युक्तियुक्त याद कोई 5 मिनट भी मुश्किल करते हैं। बहुत लव से याद किया जाता है। बिगर लव कभी किसको याद करते हैं क्या? बहुत हैं जो लाचारी हालत में याद करते हैं। लव से याद करना आता ही नहीं। सच्ची दिल पर साहेब राजी। देखो - बाबा एक ही आवाज करते हैं मनमनाभव अर्थात् याद करो तो तुम्हारे सब पाप कट जायेंगे। हम ही तुम्हारा दोस्त हूँ। बाकी तो सब हैं दुश्मन। तुम एक दो के भी दुश्मन हो। बहुत आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो दोस्त कैसे ठहरे। बाप कहते हैं अगर आत्मा भाई-भाई समझो तो दुश्मनी सारी खत्म हो जाए। न नाक, न कान, न मुख है.. तो दुश्मनी किससे रखेंगे। शरीरों को देखो ही नहीं। तुम भी आत्मा, वह भी आत्मा तो दुश्मनी निकल जाती है। बहुत मेहनत है। बिगर मेहनत कुछ मिलता है क्या? उस पढ़ाई में भी कितना माथा मारते हैं। सहज भी है। बाप कहते हैं - सिमर सिमर सुख पाओ। यह तो जानते हो कि भक्ति मार्ग में सिमरसिमर दु:ख ही पाया है, जिसको सिमरते हैं - उनके आक्यूपेशन का पता नहीं। कितने को सिमरते हैं, हनूमान को सिमरो, गणेश को सिमरो...एक है सिमर-सिमर सुख पाओ, दूसरा है सिमर-सिमर दु:ख पाओ क्योंकि भक्ति रात है ना। शिवबाबा की रात थोड़ेही हो सकती। रात में धक्का खाया जाता है। पहले नम्बर में यह (ब्रह्मा) धक्का खाते हैं। उसके साथ तुम ब्राह्मण भी साथी हो। ब्राह्मणों का सारा कुल है, जो भी ब्राह्मण बनते हैं वह आकर सुख पाते हैं सिमरने से। तुम सबको कहते हो कि शिवबाबा को याद करो तो पाप कट जायेंगे। तुम एक बाप का सिमरण करते हो, मनुष्य तो अनेकों का सिमरण करते-करते पाप आत्मा बन जाते हैं। सीढ़ी उतरते जाते हैं। अब तुम एक बाप को याद करो, अर्थ सहित। बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ वर्सा देने, पावन बनाने। अर्थ है ना। शिवबाबा पतित-पावन है - यह किसको पता भी नहीं है। कोई आकर बतावे तो सही कि कैसे आकर पावन बनाते हैं। तुम्हारे पास यहाँ बैठे भी पूरी रीति जानते ही नहीं है। माया भुलाने वाली कोई कम नहीं है। तुम खुद कहते हो बाबा हम याद करते हैं, माया भुला देती है। बाबा कहते हैं अरे तुम बाबा को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा। बाप के सिवाए कोई वर्सा देगा! जितना बाप को याद करेंगे उतना वर्सा आटोमेटिकली मिलेगा। सीधा समझाते हैं - राजाई स्थापना हो रही है, इसमें सूर्यवंशी भी बनते हैं। कितने मनुष्यों के कान तक आवाज पहुंचाना है। बाबा कहते हैं बच्चे, मन्दिरों में जाओ, गली-गली में जाकर सर्विस करो। बाबा के भक्त सो देवताओं के भक्त, जैसे मन्दिरों वा सतसंगों में बैठे रहते हैं, बुद्धि कहाँ न कहाँ धन्धेधोरी, मित्र सम्बन्धियों आदि तरफ दौड़ती रहती, धारणा कुछ भी नहीं। यहाँ भी ऐसे हैं जो कुछ भी सुनते नहीं, झुटका खाते रहते हैं। बाप को देखते नहीं, अरे ऐसे बाप को तो कितना न अच्छी रीति देखना चाहिए। सामने टीचर बैठा है। बाप कहते हैं मैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ। आत्मा पढ़ती है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आंख, कान, नाक आदि पढ़ते हैं क्या? पढ़ने वाली आत्मा है। दुनिया में यह किसको पता नहीं है क्योंकि देह-अभिमान है ना। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। बाप कहते हैं आत्मा को देखो, कितनी मेहनत की बात है। मेहनत बिगर विश्व के मालिक थोड़ेही बनेंगे। मेहनत करेंगे तब विश्व के मालिक बनेंगे। वन्डर तो देखो कि बेहद की पढ़ाई है। पढ़ाने वाला बेहद का बाप है। राजा से रंक तक यहाँ ही बनते हैं - इस पढ़ाई से। जितना जो पढ़ते और पढ़ाते हैं उतना ऊंच पद पाते हैं। बाप आते ही हैं पढ़ाने, पतित से पावन बनाने। बाप को देखते ही नहीं - तो क्या समझना चाहिए! पाई पैसे का पद, नौकर-चाकर जाए बनेंगे। नौकर-चाकर जैसे राजा के पास होते वैसे प्रजा के पास। कहेंगे तो दोनों को ही नौकर। पिछाड़ी में करके थोड़ा लिफ्ट मिलती है। मोचरा खाकर मानी (रोटी) टुकड़ा मिल जायेगा। तो पुरूषार्थ बहुत अच्छा होना चाहिए। बाप से बहुत प्यार से सुनना चाहिए, फिर रिपीट करना चाहिए। स्कूल में पढ़ते हैं फिर घर में भी जाकर स्कूल के काम करते हैं। ऐसे नहीं कि सिर्फ घूमते फिरते हैं। पढ़ाई का ओना रहता है। यहाँ तो कई हैं जो कुछ भी नहीं समझते। बिल्कुल जैसे पुराने पत्थरबुद्धि हैं। बाबा का बनकर अगर फिर कड़ी भूलें करते हैं तो सौगुणा दण्ड मिल जाता है। तो बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे टाइम वेस्ट मत करो। बहुत भारी मंजिल है। कल्प-कल्प तुम्हारा ऐसा ही पद बन जायेगा। यहाँ तुम आये हो - नर से नारायण बनने। नौकर-चाकर बनने थोड़ेही आये हो। पिछाड़ी में सबको एक्यूरेट साक्षात्कार होगा कि हम यह बनने वाले हैं। बुद्धि भी कहती है जो किसका कल्याण ही नहीं करेंगे, वह क्या पद पायेंगे। कोई तो रात दिन बहुत सर्विस करते रहते हैं। प्रदर्शनी मेले में बहुत सर्विस होती है। बाबा कहते हैं ऐसी अच्छी-अच्छी चीजें म्युजयम में बनाओ जो मनुष्यों की दिल उठे देखने की, समझेंगे कि यहाँ तो जैसे स्वर्ग लगा पड़ा है। सेन्टर्स को स्वर्ग थोड़ेही कहेंगे। दिनप्रतिदिन नई बातें होती रहती हैं, चित्र बनते रहते हैं। विचार सागर मंथन होता रहता है ना। समझाने के लिए ही चित्र आदि होते हैं। बाबा अभी मनुष्यों को दैवीगुणों वाला बनाते हैं, तो आत्मा भी नई, शरीर भी नया मिलता है। नया माना नया, नये कपड़े बदल फिर पुराने थोड़ेही पहनेंगे। भगवान आयेगा तो जरूर कमाल करके दिखायेंगे ना। भगवान है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप जो सुनाते हैं उसे बहुत प्यार से आत्म-अभिमानी होकर सुनना है। सामने बैठकर बाप को देखते रहना है। झुटका नहीं खाना है। पढ़ाई में बहुत रूचि रखनी है। भोजन त्यागकर भी पढ़ाई जरूर करनी है।
2) एक बाप को सच्चा दोस्त बनाना है, आपस में दुश्मनी समाप्त करने के लिए मैं आत्मा भाई-भाई हूँ, यह अभ्यास करना है। शरीर को देखते हुए भी नहीं देखना है।
वरदान: होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले फीलिंग प्रूफ भव
सारे दिन में जो व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क होता है उस व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक व्यर्थ को भी स्वीकार किया तो वह एक अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसे ही कहते हैं फीलिंग आ गई इसलिए होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो तो फीलिंग प्रूफ बन जायेंगे। कोई गाली दे, गुस्सा करे - आप उसको शान्ति का शीतल जल दो-यह है होलीहंस का कर्तव्य।
स्लोगन: साधना के बीज को प्रत्यक्ष करने का साधन है बेहद की वैराग्य वृत्ति।
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Mithe bacche - Baap samaan patito ko pawan banane ka purusharth karo, yah samay bahut valuable hai, isiliye byarth baaton me apna samay barbad mat karo.
Q- Baap baccho ki kis ek baat par bahut taras khaate hain?
A- Kai bacche aapas me jharmui jhagmui kar apna samay bahut gawante hain. Ghumne firne jaate hain to Baap ko yaad karne ke bajaye byarth chintan karte hain. Baap ko un baccho par bahut taras padta hai. Baba kehte mithe bacche - ab apni jeevan sudhar lo. Byarth samay nahi gawaon. Tamopradhan se satopradhan banne ke liye sachchi dil se Baap ko yuktiyukt yaad karo, lachari yaad nahi karo.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap jo sunate hain usey bahut pyaar se aatma - abhimaani hokar sunna hai. Saamne baithkar Baap ko dekhte rahna hai. Jhutka nahi khana hai. Padhai me bahut roochi rakhni hai. Bhojan tyag kar bhi padhai jaroor karni hai.
2) Ek Baap ko sachcha dost banana hai, aapas me dushmani samapt karne ke liye main aatma bhai - bhai hoon, yah abhyas karna hai. Sarir ko dekhte huye bhi nahi dekhna hai.
Vardaan:-- Holy hans ban byarth ko samarth me parivartan karne wale Feeling proof bhava.
Slogan:-Sadhana ke beej ko pratyaksh karne ka sadhan hai behad ki bairagya briti.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
09-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप समान पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करो, यह समय बहुत वैल्युबुल है, इसलिए व्यर्थ बातों में अपना समय बरबाद मत करो”
प्रश्न: बाप बच्चों की किस एक बात पर बहुत तरस खाते हैं?
उत्तर: कई बच्चे आपस में झरमुई झगमुई कर अपना समय बहुत गवाते हैं। घूमने फिरने जाते हैं तो बाप को याद करने के बजाए व्यर्थ चिंतन करते हैं। बाप को उन बच्चों पर बहुत तरस पड़ता है। बाबा कहते मीठे बच्चे - अब अपनी जीवन सुधार लो। व्यर्थ समय नहीं गवाओ। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए सच्ची दिल से बाप को युक्तियुक्त याद करो, लाचारी याद नहीं करो।
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। बच्चे भी समझते होंगे जरूर कि भगवान हमको पढ़ा रहे हैं। हम बहुत पुराने स्टूडेन्ट हैं। एक ही टीचर के पास कोई भी पढ़ते नहीं हैं। 12 मास पढ़ेंगे फिर टीचर बदली करेंगे। यहाँ यह मुख्य टीचर बदली नहीं होता। बाकी बच्चियां तो बहुत हैं - राजयोग सिखाने के लिए। एक से तो काम चल न सके। पावन बनने के लिए कितने ढेर बुलाते हैं। एक को ही बुलाते हैं। पावन बनाने वाला एक ही टीचर ठहरा। वन्डर है जो पतित-पावन को बुलाते हैं, समझते कुछ भी नहीं। द्रोपदी ने भी पुकारा ना कि हमें यह नंगन करते हैं, रक्षा करो। आधाकल्प तुम पुकारते आये हो। बोलो, तुम ही सब तो पुकारते थे ना। द्रोपदी का मिसाल दिया है, पतित तो सारी दुनिया है। पतित और पावन में रात दिन का फर्क है। पतित हैं पत्थर बुद्धि। बाप आकर सब विकारों से घृणा दिलाते हैं। आत्मा समझती है कि मुझ आत्मा का यह शरीर पतित है। तुम भी समझते हो यह शरीर पतित है, जंक लगा हुआ है। जिन्हों को पावन फर्स्टक्लास शरीर है, वह सारे विश्व पर राज्य करते थे, उनको कहेंगे पारसबुद्धि। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि का गायन भी भारत में ही है। तो बच्चों को ख्याल आना चाहिए कि इस पतित भारत को पावन कैसे बनायें। परन्तु नम्बरवार सर्विसएबुल को यह ख्यालात आते होंगे और पतितों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करते होंगे। बाप का पहला फर्ज ही यह है। बाप आते ही हैं तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने। तो जितना बाप को ओना है उतना बच्चों को भी होना चाहिए। बाप कहते हैं मैं तुमको अपने से भी ऊंचा बनाता हूँ। तुमको ख्यालात भी जास्ती चलने चाहिए। मेरे से भी जास्ती सर्विस तुम बच्चे करते हो ना। बाबा थोड़ेही 3-4 घण्टे बैठ समझाते हैं प्रदर्शनी आदि में। बाप बच्चों की महिमा करते हैं। परन्तु वह खुशी, वह योग कम दिखाई देता है इसलिए बेहद का बाप जो इन द्वारा पढ़ाते हैं, यह सबसे नजदीक है। इतना एकदम नजदीक बाप, दादा कब देखा है? मुख्य है ही आत्मा। आत्मा निकल जाए तो शरीर कोई काम का नहीं रहता। मनुष्य के शरीर की कोई वैल्यु नहीं रहती। कोई काम में नहीं आता, राख हो जाता है। जानवरों आदि की हि•यां भी काम में आ जाती हैं। चमड़ा भी काम में आता है। मनुष्य का तो कुछ भी नहीं बनता। हि•यां पानी में डाल खत्म कर देते हैं। निशानी भी नहीं रहती। उन्हों की निशानी फिर भी जंगलों में पड़ी रहती है। मनुष्य का सतयुग से लेकर त्रेता अन्त तक तो मूल्य है। देवतायें हैं तब तो पूज्य लायक हैं। पीछे पाई की भी वैल्यु नहीं रहती इसलिए कहा जाता है पत्थरबुद्धि। भरी ढोते रहते हैं, पैसे आदि की चिंता रहती है। वहाँ तो बिल्कुल निश्चिंत रहते हैं। तो बाप कहते हैं कि तुम्हारा यह शरीर बहुत वैल्युबुल है। यह टाइम भी वैल्युबुल है, इनको वेस्ट नहीं गँवाओ। फालतू बातों में समय नहीं गँवाओ। अपनी आत्मा को याद के बल से सतोप्रधान बनाना है और कोई उपाय पावन बनने का नहीं है। एक ही शास्त्र में भगवानुवाच है - जिसको कहते हैं श्रीमत भगवत गीता। तो बाप कहते हैं आओ - कंगाल बच्चे, तुम्हें सिरताज बनाऊं। तुम भी समझते हो कि बरोबर हम कंगाल हैं। भल बहुत धनवान हैं, पदमापदमपति हैं, उन्हों के फोटो, नाम आदि निकालते हैं ना। तुम बच्चों में भी नम्बरवार धनवान हैं। तुम कहेंगे हम स्थाई सच्चे धनवान हैं। यह धन ही साथ देता है। तुम्हारे आगे वह सब कंगाल हैं। नाम भल पदमपति आदि है। सतगुरू बाबा ने भी तुम्हारा नाम पदमापदमपति अविनाशी रखा है। तुम हो स्वर्ग के पदमपति। वह हैं नर्क के पदमपति। नर्क और स्वर्ग को तुम समझते हो। वह पत्थरबुद्धि बिल्कुल नहीं समझते। आगे चल तुम्हारे पास आयेंगे, जब विनाश देखेंगे तब समझेंगे यह तो पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। फिर कहेंगे यह ब्रह्माकुमार कुमारियां तो सच कहते थे। अच्छा, अब क्या करना है? कुछ कर नहीं सकेंगे। पैसे आदि एकदम जल मर सब खत्म हो जायेंगे। बाम्बस आदि गिरते हैं तो मकान, जायदाद आदि सब खत्म हो जाता है। शरीर भी खत्म हो जाते हैं। यह तुम देखेंगे - बड़ा भयानक सीन आने वाला है। उस समय ज्ञान में आ नहीं सकेंगे। अब यह भगवान बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं - हम आये हैं भगवान से पढ़ने। तुम कितने तकदीरवान हो। यह भी सबको निश्चय नहीं है, निश्चय हो तो भगवान से क्यों नहीं पढ़े। रात दिन बत्तियां जगाकर मर-झुरकर, भोजन न खाकर भी एकदम पढ़ने को लग पड़े। वाह यह तो 21 जन्मों की कमाई है। बहुत अच्छी रीति पढ़ने को लग जाये। पढ़ाई भी क्या है, मुख्य है ही बाप को याद करना। बाबा को बहुत तरस आता है। बाबा जानते हैं बच्चे घूमने फिरने जाते हैं, एक भी बाप की याद में नहीं रहते। झरमुई झगमुई बहुत करते हैं। बच्चों को बहुत ओना रहना चाहिए। बस टाइम बहुत थोड़ा है। भारत कितना बड़ा है। बहुत सर्विस है। पहले अपनी जीवन तो सुधार लें। बाबा बहुत बार कहते हैं - बच्चे झरमुई झगमुई मत करो। यह बातें छोड़ दो, अपना जीवन सुधारो। सबको आपस में लड़ मरना है। ड्रामा की भावी ऐसी है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने में टाइम तो लगता है ना। अपनी दिल से पूछना है कि हम कितना समय याद करते हैं? सच्ची दिल से बहुत प्यार से युक्तियुक्त याद कोई 5 मिनट भी मुश्किल करते हैं। बहुत लव से याद किया जाता है। बिगर लव कभी किसको याद करते हैं क्या? बहुत हैं जो लाचारी हालत में याद करते हैं। लव से याद करना आता ही नहीं। सच्ची दिल पर साहेब राजी। देखो - बाबा एक ही आवाज करते हैं मनमनाभव अर्थात् याद करो तो तुम्हारे सब पाप कट जायेंगे। हम ही तुम्हारा दोस्त हूँ। बाकी तो सब हैं दुश्मन। तुम एक दो के भी दुश्मन हो। बहुत आपस में लड़ते झगड़ते हैं तो दोस्त कैसे ठहरे। बाप कहते हैं अगर आत्मा भाई-भाई समझो तो दुश्मनी सारी खत्म हो जाए। न नाक, न कान, न मुख है.. तो दुश्मनी किससे रखेंगे। शरीरों को देखो ही नहीं। तुम भी आत्मा, वह भी आत्मा तो दुश्मनी निकल जाती है। बहुत मेहनत है। बिगर मेहनत कुछ मिलता है क्या? उस पढ़ाई में भी कितना माथा मारते हैं। सहज भी है। बाप कहते हैं - सिमर सिमर सुख पाओ। यह तो जानते हो कि भक्ति मार्ग में सिमरसिमर दु:ख ही पाया है, जिसको सिमरते हैं - उनके आक्यूपेशन का पता नहीं। कितने को सिमरते हैं, हनूमान को सिमरो, गणेश को सिमरो...एक है सिमर-सिमर सुख पाओ, दूसरा है सिमर-सिमर दु:ख पाओ क्योंकि भक्ति रात है ना। शिवबाबा की रात थोड़ेही हो सकती। रात में धक्का खाया जाता है। पहले नम्बर में यह (ब्रह्मा) धक्का खाते हैं। उसके साथ तुम ब्राह्मण भी साथी हो। ब्राह्मणों का सारा कुल है, जो भी ब्राह्मण बनते हैं वह आकर सुख पाते हैं सिमरने से। तुम सबको कहते हो कि शिवबाबा को याद करो तो पाप कट जायेंगे। तुम एक बाप का सिमरण करते हो, मनुष्य तो अनेकों का सिमरण करते-करते पाप आत्मा बन जाते हैं। सीढ़ी उतरते जाते हैं। अब तुम एक बाप को याद करो, अर्थ सहित। बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ वर्सा देने, पावन बनाने। अर्थ है ना। शिवबाबा पतित-पावन है - यह किसको पता भी नहीं है। कोई आकर बतावे तो सही कि कैसे आकर पावन बनाते हैं। तुम्हारे पास यहाँ बैठे भी पूरी रीति जानते ही नहीं है। माया भुलाने वाली कोई कम नहीं है। तुम खुद कहते हो बाबा हम याद करते हैं, माया भुला देती है। बाबा कहते हैं अरे तुम बाबा को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा। बाप के सिवाए कोई वर्सा देगा! जितना बाप को याद करेंगे उतना वर्सा आटोमेटिकली मिलेगा। सीधा समझाते हैं - राजाई स्थापना हो रही है, इसमें सूर्यवंशी भी बनते हैं। कितने मनुष्यों के कान तक आवाज पहुंचाना है। बाबा कहते हैं बच्चे, मन्दिरों में जाओ, गली-गली में जाकर सर्विस करो। बाबा के भक्त सो देवताओं के भक्त, जैसे मन्दिरों वा सतसंगों में बैठे रहते हैं, बुद्धि कहाँ न कहाँ धन्धेधोरी, मित्र सम्बन्धियों आदि तरफ दौड़ती रहती, धारणा कुछ भी नहीं। यहाँ भी ऐसे हैं जो कुछ भी सुनते नहीं, झुटका खाते रहते हैं। बाप को देखते नहीं, अरे ऐसे बाप को तो कितना न अच्छी रीति देखना चाहिए। सामने टीचर बैठा है। बाप कहते हैं मैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ। आत्मा पढ़ती है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आंख, कान, नाक आदि पढ़ते हैं क्या? पढ़ने वाली आत्मा है। दुनिया में यह किसको पता नहीं है क्योंकि देह-अभिमान है ना। आत्मा में ही सब संस्कार हैं। बाप कहते हैं आत्मा को देखो, कितनी मेहनत की बात है। मेहनत बिगर विश्व के मालिक थोड़ेही बनेंगे। मेहनत करेंगे तब विश्व के मालिक बनेंगे। वन्डर तो देखो कि बेहद की पढ़ाई है। पढ़ाने वाला बेहद का बाप है। राजा से रंक तक यहाँ ही बनते हैं - इस पढ़ाई से। जितना जो पढ़ते और पढ़ाते हैं उतना ऊंच पद पाते हैं। बाप आते ही हैं पढ़ाने, पतित से पावन बनाने। बाप को देखते ही नहीं - तो क्या समझना चाहिए! पाई पैसे का पद, नौकर-चाकर जाए बनेंगे। नौकर-चाकर जैसे राजा के पास होते वैसे प्रजा के पास। कहेंगे तो दोनों को ही नौकर। पिछाड़ी में करके थोड़ा लिफ्ट मिलती है। मोचरा खाकर मानी (रोटी) टुकड़ा मिल जायेगा। तो पुरूषार्थ बहुत अच्छा होना चाहिए। बाप से बहुत प्यार से सुनना चाहिए, फिर रिपीट करना चाहिए। स्कूल में पढ़ते हैं फिर घर में भी जाकर स्कूल के काम करते हैं। ऐसे नहीं कि सिर्फ घूमते फिरते हैं। पढ़ाई का ओना रहता है। यहाँ तो कई हैं जो कुछ भी नहीं समझते। बिल्कुल जैसे पुराने पत्थरबुद्धि हैं। बाबा का बनकर अगर फिर कड़ी भूलें करते हैं तो सौगुणा दण्ड मिल जाता है। तो बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे टाइम वेस्ट मत करो। बहुत भारी मंजिल है। कल्प-कल्प तुम्हारा ऐसा ही पद बन जायेगा। यहाँ तुम आये हो - नर से नारायण बनने। नौकर-चाकर बनने थोड़ेही आये हो। पिछाड़ी में सबको एक्यूरेट साक्षात्कार होगा कि हम यह बनने वाले हैं। बुद्धि भी कहती है जो किसका कल्याण ही नहीं करेंगे, वह क्या पद पायेंगे। कोई तो रात दिन बहुत सर्विस करते रहते हैं। प्रदर्शनी मेले में बहुत सर्विस होती है। बाबा कहते हैं ऐसी अच्छी-अच्छी चीजें म्युजयम में बनाओ जो मनुष्यों की दिल उठे देखने की, समझेंगे कि यहाँ तो जैसे स्वर्ग लगा पड़ा है। सेन्टर्स को स्वर्ग थोड़ेही कहेंगे। दिनप्रतिदिन नई बातें होती रहती हैं, चित्र बनते रहते हैं। विचार सागर मंथन होता रहता है ना। समझाने के लिए ही चित्र आदि होते हैं। बाबा अभी मनुष्यों को दैवीगुणों वाला बनाते हैं, तो आत्मा भी नई, शरीर भी नया मिलता है। नया माना नया, नये कपड़े बदल फिर पुराने थोड़ेही पहनेंगे। भगवान आयेगा तो जरूर कमाल करके दिखायेंगे ना। भगवान है ही स्वर्ग की स्थापना करने वाला। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप जो सुनाते हैं उसे बहुत प्यार से आत्म-अभिमानी होकर सुनना है। सामने बैठकर बाप को देखते रहना है। झुटका नहीं खाना है। पढ़ाई में बहुत रूचि रखनी है। भोजन त्यागकर भी पढ़ाई जरूर करनी है।
2) एक बाप को सच्चा दोस्त बनाना है, आपस में दुश्मनी समाप्त करने के लिए मैं आत्मा भाई-भाई हूँ, यह अभ्यास करना है। शरीर को देखते हुए भी नहीं देखना है।
वरदान: होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले फीलिंग प्रूफ भव
सारे दिन में जो व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क होता है उस व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक व्यर्थ को भी स्वीकार किया तो वह एक अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसे ही कहते हैं फीलिंग आ गई इसलिए होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो तो फीलिंग प्रूफ बन जायेंगे। कोई गाली दे, गुस्सा करे - आप उसको शान्ति का शीतल जल दो-यह है होलीहंस का कर्तव्य।
स्लोगन: साधना के बीज को प्रत्यक्ष करने का साधन है बेहद की वैराग्य वृत्ति।
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Details ( Page:- Murali Dtd 10th Sep 2017 )
10.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban AVYAKT BAPDADA MURALI
Headline – Double videshi bachho se bap dada ki ruh rihan. (Rev. - 03-01-83 )
Headline – Nirantar sahaj yogi banne ki sahaj yukti ( Rev. - 06-01-83 )
Vardan – Sada har Karm mei ruhani nashi ka anubhav karne aur karane wale khusnashib Bhav.
Slogan – Sadhno ko sewa ke prati use karo . Arampasand banne k lie nehi.
डबल विदेशी बच्चों से बाप दादा की रूह-रिहान
आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। सभी बच्चे दूर-दूर से अपने स्वीट होम में पहुँच गये। जहाँ सर्व प्राप्ति का अनुभव करने का स्वत: ही वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वरदान भूमि पर वरदाता बाप से मिलने आये हैं। बापदादा भी कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा देख रहे हैं भारत में नजदीक रहने वाली कई आत्मायें अभी तक प्यासी बन ढूंढ रही हैं। लेकिन साकार रूप से दूर-दूर रहने वाले डबल विदेशी बच्चों ने दूर से ही अपने बाप को पहचान, अधिकार को पा लिया। दूर वाले समीप हो गये और समीप वाले दूर हो गये। ऐसे बच्चों के भाग्य की कमाल देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। आज वतन में भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों की विशेषताओं पर रूह-रिहान कर रहे थे। भारतवासी बच्चों की और डबल विदेशी बच्चों की दोनों की अपनी-अपनी विशेषता थी। आज बच्चों की कमाल के गुण गा रहे थे। त्याग क्या किया और भाग्य क्या लिया। लेकिन बच्चों की चतुराई देख रहे थे कि त्याग भी बिना भाग्य के नहीं किया है। सौदा करने में भी पक्के व्यापारी हैं। पहले प्राप्ति का अनुभव हुआ, अच्छी प्राप्ति को देख व्यर्थ बातों का त्याग किया। तो छोड़ा क्या और पाया क्या! उसकी लिस्ट निकालो तो क्या रिजल्ट निकलेगी? एक छोड़ा और पदम पाया। तो यह छोड़ना हुआ या पाना हुआ? हम आत्मायें विश्व की ऐसी श्रेष्ठ विशेष आत्मायें बनेंगी, डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध में आने वाली बनेंगी - ऐसा कब सोचा था! क्रिश्चियन से कृष्णपुरी में आ जायेंगे, यह कभी सोचा था। धर्मपिता के फालोअर थे। तना के बजाए टाली में अटक गये। और अब इस वैरायटी कल्प वृक्ष का तना आदि सनातन ब्राह्मण सो देवता धर्म के बन गये। फाउन्डेशन बन गये। ऐसी प्राप्ति को देख छोड़ा क्या! अल्पकाल की निंद्रा को जीता। नींद में सोने को छोड़ा और स्वंय सोना (गोल्ड) बन गये। बापदादा डबल विदेशियो का सवेरे-सवेरे उठ तैयार होना देख मुस्कराते हैं। आराम से उठने वाले और अभी कैसे उठते हैं। नींद का त्याग किया - त्याग के पहले भाग्य को देख, अमृतवेले का अलौकिक अनुभव करने के बाद यह नींद भी क्या लगती है। खान-पान छोड़ा या बीमारी को छोड़ा? खाना पीना छोड़ना अर्थात् कई बीमारियों से छूटना। मुक्त हो गये ना। और ही हेल्थ वेल्थ दोनों मिल गई इसलिए सुनाया कि पक्के व्यापारी हो। विदेशी बच्चों की और एक विशेषता यह देखी कि जिस तरफ भी लगते हैं तो बहुत तीव्रगति से उस तरफ चलते हैं। तीव्रगति से चलने के कारण प्राप्ति भी सर्व प्रकार की फुल करने चाहते हैं। बहुत फास्ट चलने के कारण कभी कभी चलते चलते थोड़ी सी भी माया की रूकावट आती है तो घबराते भी फास्ट हैं। यह क्या हुआ! ऐसे भी होता है क्या! ऐसे आश्चर्य की स्थिति में पड़ जाते हैं। फिर भी लगन मजबूत होने के कारण विघ्न पार हो जाता है और आगे के लिए मजबूत बनते जाते हैं। मंजिल पर चलने में महावीर हो, नाजुक तो नहीं हो ना। घबराने वाले तो नहीं हो? ड्रामा तो बहुत अच्छा करते हो। ड्रामा में माया को भगाने के साधन भी बहुत अच्छे बनाते हो। तो इस बेहद के ड्रामा अन्दर प्रैक्टिकल में भी ऐसे ही महावीर पार्टधारी हो ना? मुहब्बत और मेहनत, दोनों में से मुहब्बत में रहते हो वा मेहनत में? सदा बाप की याद में समाये हुए रहते हो वा बार बार याद करने वाले हो वा याद स्वरूप हो? सदा साथ रहते हो वा सदा साथ रहें, इसी मेहनत में लगे रहते हो? बाप समान बनने वाले सदा स्वरूप रहते हैं। याद स्वरूप, सर्वगुण स्वरूप, सर्व शक्तियों स्वरूप। स्वरूप का अर्थ ही है अपना रूप ही वह बन जाए। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो, लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमजोर संस्कार वा कोई अवगुण बहुतकाल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की कोई मेहनत नहीं करते हो लेकिन नेचर और नैचुरल हो गये हैं। उनको छोड़ने चाहते हो, महसूस करते हो यह नहीं होना चाहिए लेकिन समय पर फिर से न चाहते भी वह नेचर वा नैचुरल संस्कार अपना कार्य कर लेते हैं क्योंकि स्वरूप बन गये हैं। ऐसे हर गुण, हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए। मेरी नेचर और नैचुरल गुण बाप समान बन जाए। ऐसा गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप, याद स्वरूप हो जाता है, इसको ही कहा जाता है बाप समान। तो सब अपने को ऐसे स्वरूप अनुभव करते हो? लक्ष्य तो यही है ना। पाना है तो फुल पाना या थोड़े में भी राजी हो? चन्द्रवंशी बनेंगे? (नहीं) चंद्रवंशी राज्य भी कम थोड़ेही है। सूर्यवंशी कितने बनेंगे? जो भी सब बैठे हं सूर्यवंशी बनेंगे? राम की महिमा कम तो नहीं है। उमंग-उत्साह सदा श्रेष्ठ रहे, यह अच्छा है।
अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं, वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही है। सिर्फ बाप को नहीं पुकार रहे हैं लेकिन बाप के साथ आप पूज्य आत्माओं को भी पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो वह आवे और हमें साथ ले चले। यह विश्व की पुकार पूर्ण करने वाले कौन हैं?
आप पूज्य देव आत्माओं का इन्तजार कर रहे हैं कि हमारे देव आयेंगे, हमें जगायेंगे और ले जायेंगे। उसके लिए क्या तैयारी कर रहे हो? इस के बाद देव प्रत्यक्ष होंगे। अभी कॉन्फरन्स के पहले स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा प्रत्यक्ष करने का स्वयं और संगठित रूप से प्रोग्राम बनाओ। इस कॉन्फरन्स द्वारा निराशा से आशा अनुभव होनी चाहिए। वह दीपक तो उद्घाटन में जगायेंगे, नारियल भी तोड़ेंगे। साथ-साथ सर्व आत्माओं प्रति शुभ आशाओं का दीपक भी जगायेंगे। ठिकाना दिखाने का ठका हो जाए। जैसे नारियल का ठका करते हो ना। तो विदेशी चाहे भारतवासी दोनों को मिलकर ऐसी तैयारी पहले से करनी है। तब है महातीर्थ की प्रत्यक्षता। प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैले। जैसे कहते भी हो कि आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। यही लाइट अन्धकार के बीच नई जागृति का अनुभव करावे, इसके लिए ही सब आये हो ना वा सिर्फ स्व्यं रिफ्रेश हो चले जायेंगे?
सर्व ब्राहमणों का एक संकल्प, वही कार्य की सफलता का आधार है। सबको सहयोग चाहिए। किले की एक ईट भी कमजोर होती तो किले को हिला सकती है इसलिए छोटे बड़े सब इस ब्राह्मण परिवार के किले की ईट हो तो सभी को एक ही संकल्प द्वारा कार्य को सफल करना है। सबके मन से यह आवाज निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। अच्छा - जितना बच्चे याद करते हैं उतना बाप भी याद प्यार देते हैं। अच्छा।
ऐसे सदा दृढ़ संकल्प करने वाले, सफलता के जन्म-सिद्ध अधिकार को साकार में लाने वाले, सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखते हुए समर्थ रहने वाले, स्वंय की विशेषता को सदा कार्य में लगाने वाले, सदा हर कार्य में बाप का कार्य सो मेरा कार्य ऐसे अनुभव करने वाले, सर्व कार्य में ऐसे बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले विशाल बुद्धि बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
ब्राजील पार्टी से: देश में सबसे दूर लेकिन दिल के समीप रहने वाली आत्मायें हो ना। सदा अपने को दूर बैठे भी बाप के साथ अनुभव करते हो ना। आत्मा उड़ता पंछी बन सेकण्ड में बाप के वतन में, मधुबन में पहुँच जाती है ना। सदा सैर करते हो? बापदादा बच्चों की मुहब्बत को देख रहे हैं कि कितनी दिल से साकार रूप में मधुबन में पहुँचने का प्रयत्न कर पहुँच गये हैं, इसके लिए मुबारक देते हैं। बापदादा आगे के लिए सदा विजयी रहो और सदा औरों को भी विजयी बनाओ, यही वरदान देते हैं। अच्छा -
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निरन्तर सहज योगी बनने की सहज युक्ति
आज बागवान अपने वैरायटी खुशबूदार फूलों के बगीचे को देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा वैरायटी रूहानी पुष्पों की खुशबू और रूप की रंगत देख हरेक की विशेषता के गीत गा रहे हैं। जिसको भी देखो हरेक एक दो से प्रिय और श्रेष्ठ है। नम्बरवार होते हुए भी बापदादा के लिए लास्ट नम्बर भी अति प्रिय है क्योंकि चाहे अपनी यथा शक्ति मायाजीत बनने में कमजोर है फिर भी बाप को पहचान दिल से एक बार भी ’मेरा बाबा’ कहा तो बापदादा रहम के सागर ऐसे बच्चे को भी एक बार रिटर्न में पदमगुणा उसी रूहानी प्यार से देखते कि मेरे बच्चे विशेष आत्मा हैं। इसी नजर से देखते हैं फिर भी बाप का तो बना ना। तो बापदादा ऐसे बच्चे को भी रहम और स्नेह की दृष्टि द्वारा आगे बढ़ाते रहते हैं क्योंकि ’मेरा’ है। यही रूहानी मेरे-पन की स्मृति ऐसे बच्चों के लिए समर्था भरने की आशीर्वाद बन जाती है। बापदादा को मुख से आशीर्वाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि शब्द, वाणी सेकेण्ड नम्बर है लेकिन स्नेह का संकल्प शक्तिशाली भी है और नम्बरवन प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। बापदादा इसी सूक्ष्म स्नेह के संकल्प से मात-पिता दोनों रूप से हर बच्चे की पालना कर रहे हैं। जैसे लौकिक में सिकीलधे बच्चे की माँ बाप गुप्त ही गुप्त बहुत शक्तिशाली चीजों से पालना करते हैं जिसको आप लोग खोरश (खातिरी) कहते हो। तो बापदादा भी वतन में बैठे सभी बच्चों की विशेष खोरश (खातिरी) करते रहते हैं। जैसे मधुबन में आते हो तो विशेष खोरश (खातिरी) होती है ना। तो बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और अधिकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एकस्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना नहीं रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। तो सूक्ष्म स्नेह के आह्वान से बच्चों के स्पेशल ग्रुप इमर्ज करते हैं। जैसे साकार में याद है ना हर ग्रुप को विशेष स्नेह के स्वरूप में अपने हाथों से खिलाते थे और बहलाते थे। वही स्नेह का संस्कार अब भी प्रैक्टिकल में चल रहा है। इसमें सिर्फ बच्चों को बाप समान आकारी स्वरूपधारी बन अनुभव करना पड़े। अमृतवेले ब्रह्मा माँ “आओ बच्चे, आओ बच्चे”कह विशेष शक्तियों की खुराक बच्चों को खिलाते हैं। जैसे यहाँ घी पिलाते थे और साथ-साथ एक्सरसाइज भी कराते थे ना। तो वतन में घी भी पिलाते अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों की (ताकत की) चीजें देते और अभ्यास की एक्सरसाइज भी कराते हैं। बुद्धि बल द्वारा सैर भी कराते हैं। अभी-अभी परमधाम, अभी- अभी सूक्ष्मवतन। अभी-अभी साकारी सृष्टि ब्राह्मण जीवन। तीनों लोकों में दौड़ की रेस कराते हैं, जिससे विशेष खातिरी जीवन में समा जाए। तो सुना ब्रह्मा माँ क्या करते हैं!
डबल विदेशी बच्चों को वैसे भी छुट्टी के दिनों में कहाँ दूर जाकर एक्सकरशन करने की आदत है। तो बापदादा भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष निमंत्रण दे रहे हैं। जब भी फ्रा हो तो वतन में आ जाओ। सागर के किनारे मिट्टी में नहीं जाओ। ज्ञान सागर के किनारे आ जाओ। बिगर खर्चे के बहुत प्राप्ति हो जायेगी। सूर्य की किरणें भी लेना, चन्द्रमा की चाँदनी भी लेना, पिकनिव भी करना और खेल कूद भी करना। लेकिन बुद्धि रूपी विमान में आना पड़ेगा। सबका बुद्धि रूपी विमान एवररेडी है ना। संकल्प रूपी स्विच स्टार्ट किया और पहुँचे। विमान तो सबके पास रेडी है ना कि कभी-कभी स्टार्ट नहीं होता है वा पेट्रोल कम होता तो आधा में लौट आते। वैसे तो सेकण्ड में पहुँचने की बात है। सिर्फ डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइन पेट्रोल कौन सा है? एक है निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ। दूसरा है साकार रूप में सर्व सम्बन्धों का नशा। सिर्फ बाप और बच्चे के सम्बन्ध का नशा नहीं। लेकिन प्रवृत्ति मार्ग पवित्र परिवार है। तो बाप से सर्व सम्बन्धों के रस का नशा साकार रूप में चलते फिरते अनुभव हो। यह नशा और खुशी निरन्तर सहज योगी बना देती है इसलिए निराकारी और साकारी डबल रिफाइन साधन की आवश्यकता है। अच्छा -
आज तो पार्टियों से मिलना है इसलिए फिर दुबारा साकारी और निराकारी नशे पर सुनायेंगे। डबल विदेशी बच्चों को सर्विस के प्रत्यक्ष फल की, आज्ञा पालन करने की विशेष मुबारक बापदादा दे रहे हैं। हरेक ने अच्छा बड़ा ग्रुप लाया है। बापदादा के आगे अच्छे ते अच्छे बड़े गुलदस्ते भेंट किये हैं। उसके लिए बापदादा ऐसे वफादार बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से यही वरदान दे रहे हैं - “सदा जीते रहो - बढ़ते रहो” अच्छा !
चारों ओर के स्नेही बच्चों को, जो चारों ओर याद और सेवा की धुन में लगे हुए हैं, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हुए सिकीलधे बच्चों को सेवा के रिटर्न में प्यार और याद के रिटर्न में अविनाशी याद। ऐसे अविनाशी लगन में रहने वालों को अविनाशी याद प्यार और नमस्ते।
वरदान: सदा हर कर्म में रूहानी नशे का अनुभव करने और कराने वाले खुशनसीब भव
संगमयुग पर आप बच्चे सबसे अधिक खुशनसीब हो, क्योंकि स्वयं भगवान ने आपको पसन्द कर लिया। बेहद के मालिक बन गये। भगवान की डिक्शनरी में “हू इज हू” में आपका नाम है। बेहद का बाप मिला, बेहद का राज्य भाग्य मिला, बेहद का खजाना मिला ... यही नशा सदा रहे तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होता रहेगा। यह है बेहद का रूहानी नशा, इसका अनुभव करते और कराते रहो तब कहेंगे खुशनसीब।
स्लोगन: साधनों को सेवा के प्रति यूज करो-आरामपसन्द बनने के लिए नहीं।
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Headline – Double videshi bachho se bap dada ki ruh rihan. (Rev. - 03-01-83 )
Headline – Nirantar sahaj yogi banne ki sahaj yukti ( Rev. - 06-01-83 )
Vardan – Sada har Karm mei ruhani nashi ka anubhav karne aur karane wale khusnashib Bhav.
Slogan – Sadhno ko sewa ke prati use karo . Arampasand banne k lie nehi.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
10-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 03-01-83 मधुबन
डबल विदेशी बच्चों से बाप दादा की रूह-रिहान
आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। सभी बच्चे दूर-दूर से अपने स्वीट होम में पहुँच गये। जहाँ सर्व प्राप्ति का अनुभव करने का स्वत: ही वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वरदान भूमि पर वरदाता बाप से मिलने आये हैं। बापदादा भी कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा देख रहे हैं भारत में नजदीक रहने वाली कई आत्मायें अभी तक प्यासी बन ढूंढ रही हैं। लेकिन साकार रूप से दूर-दूर रहने वाले डबल विदेशी बच्चों ने दूर से ही अपने बाप को पहचान, अधिकार को पा लिया। दूर वाले समीप हो गये और समीप वाले दूर हो गये। ऐसे बच्चों के भाग्य की कमाल देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। आज वतन में भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों की विशेषताओं पर रूह-रिहान कर रहे थे। भारतवासी बच्चों की और डबल विदेशी बच्चों की दोनों की अपनी-अपनी विशेषता थी। आज बच्चों की कमाल के गुण गा रहे थे। त्याग क्या किया और भाग्य क्या लिया। लेकिन बच्चों की चतुराई देख रहे थे कि त्याग भी बिना भाग्य के नहीं किया है। सौदा करने में भी पक्के व्यापारी हैं। पहले प्राप्ति का अनुभव हुआ, अच्छी प्राप्ति को देख व्यर्थ बातों का त्याग किया। तो छोड़ा क्या और पाया क्या! उसकी लिस्ट निकालो तो क्या रिजल्ट निकलेगी? एक छोड़ा और पदम पाया। तो यह छोड़ना हुआ या पाना हुआ? हम आत्मायें विश्व की ऐसी श्रेष्ठ विशेष आत्मायें बनेंगी, डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध में आने वाली बनेंगी - ऐसा कब सोचा था! क्रिश्चियन से कृष्णपुरी में आ जायेंगे, यह कभी सोचा था। धर्मपिता के फालोअर थे। तना के बजाए टाली में अटक गये। और अब इस वैरायटी कल्प वृक्ष का तना आदि सनातन ब्राह्मण सो देवता धर्म के बन गये। फाउन्डेशन बन गये। ऐसी प्राप्ति को देख छोड़ा क्या! अल्पकाल की निंद्रा को जीता। नींद में सोने को छोड़ा और स्वंय सोना (गोल्ड) बन गये। बापदादा डबल विदेशियो का सवेरे-सवेरे उठ तैयार होना देख मुस्कराते हैं। आराम से उठने वाले और अभी कैसे उठते हैं। नींद का त्याग किया - त्याग के पहले भाग्य को देख, अमृतवेले का अलौकिक अनुभव करने के बाद यह नींद भी क्या लगती है। खान-पान छोड़ा या बीमारी को छोड़ा? खाना पीना छोड़ना अर्थात् कई बीमारियों से छूटना। मुक्त हो गये ना। और ही हेल्थ वेल्थ दोनों मिल गई इसलिए सुनाया कि पक्के व्यापारी हो। विदेशी बच्चों की और एक विशेषता यह देखी कि जिस तरफ भी लगते हैं तो बहुत तीव्रगति से उस तरफ चलते हैं। तीव्रगति से चलने के कारण प्राप्ति भी सर्व प्रकार की फुल करने चाहते हैं। बहुत फास्ट चलने के कारण कभी कभी चलते चलते थोड़ी सी भी माया की रूकावट आती है तो घबराते भी फास्ट हैं। यह क्या हुआ! ऐसे भी होता है क्या! ऐसे आश्चर्य की स्थिति में पड़ जाते हैं। फिर भी लगन मजबूत होने के कारण विघ्न पार हो जाता है और आगे के लिए मजबूत बनते जाते हैं। मंजिल पर चलने में महावीर हो, नाजुक तो नहीं हो ना। घबराने वाले तो नहीं हो? ड्रामा तो बहुत अच्छा करते हो। ड्रामा में माया को भगाने के साधन भी बहुत अच्छे बनाते हो। तो इस बेहद के ड्रामा अन्दर प्रैक्टिकल में भी ऐसे ही महावीर पार्टधारी हो ना? मुहब्बत और मेहनत, दोनों में से मुहब्बत में रहते हो वा मेहनत में? सदा बाप की याद में समाये हुए रहते हो वा बार बार याद करने वाले हो वा याद स्वरूप हो? सदा साथ रहते हो वा सदा साथ रहें, इसी मेहनत में लगे रहते हो? बाप समान बनने वाले सदा स्वरूप रहते हैं। याद स्वरूप, सर्वगुण स्वरूप, सर्व शक्तियों स्वरूप। स्वरूप का अर्थ ही है अपना रूप ही वह बन जाए। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो, लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमजोर संस्कार वा कोई अवगुण बहुतकाल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की कोई मेहनत नहीं करते हो लेकिन नेचर और नैचुरल हो गये हैं। उनको छोड़ने चाहते हो, महसूस करते हो यह नहीं होना चाहिए लेकिन समय पर फिर से न चाहते भी वह नेचर वा नैचुरल संस्कार अपना कार्य कर लेते हैं क्योंकि स्वरूप बन गये हैं। ऐसे हर गुण, हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए। मेरी नेचर और नैचुरल गुण बाप समान बन जाए। ऐसा गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप, याद स्वरूप हो जाता है, इसको ही कहा जाता है बाप समान। तो सब अपने को ऐसे स्वरूप अनुभव करते हो? लक्ष्य तो यही है ना। पाना है तो फुल पाना या थोड़े में भी राजी हो? चन्द्रवंशी बनेंगे? (नहीं) चंद्रवंशी राज्य भी कम थोड़ेही है। सूर्यवंशी कितने बनेंगे? जो भी सब बैठे हं सूर्यवंशी बनेंगे? राम की महिमा कम तो नहीं है। उमंग-उत्साह सदा श्रेष्ठ रहे, यह अच्छा है।
अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं, वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही है। सिर्फ बाप को नहीं पुकार रहे हैं लेकिन बाप के साथ आप पूज्य आत्माओं को भी पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो वह आवे और हमें साथ ले चले। यह विश्व की पुकार पूर्ण करने वाले कौन हैं?
आप पूज्य देव आत्माओं का इन्तजार कर रहे हैं कि हमारे देव आयेंगे, हमें जगायेंगे और ले जायेंगे। उसके लिए क्या तैयारी कर रहे हो? इस के बाद देव प्रत्यक्ष होंगे। अभी कॉन्फरन्स के पहले स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा प्रत्यक्ष करने का स्वयं और संगठित रूप से प्रोग्राम बनाओ। इस कॉन्फरन्स द्वारा निराशा से आशा अनुभव होनी चाहिए। वह दीपक तो उद्घाटन में जगायेंगे, नारियल भी तोड़ेंगे। साथ-साथ सर्व आत्माओं प्रति शुभ आशाओं का दीपक भी जगायेंगे। ठिकाना दिखाने का ठका हो जाए। जैसे नारियल का ठका करते हो ना। तो विदेशी चाहे भारतवासी दोनों को मिलकर ऐसी तैयारी पहले से करनी है। तब है महातीर्थ की प्रत्यक्षता। प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैले। जैसे कहते भी हो कि आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। यही लाइट अन्धकार के बीच नई जागृति का अनुभव करावे, इसके लिए ही सब आये हो ना वा सिर्फ स्व्यं रिफ्रेश हो चले जायेंगे?
सर्व ब्राहमणों का एक संकल्प, वही कार्य की सफलता का आधार है। सबको सहयोग चाहिए। किले की एक ईट भी कमजोर होती तो किले को हिला सकती है इसलिए छोटे बड़े सब इस ब्राह्मण परिवार के किले की ईट हो तो सभी को एक ही संकल्प द्वारा कार्य को सफल करना है। सबके मन से यह आवाज निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। अच्छा - जितना बच्चे याद करते हैं उतना बाप भी याद प्यार देते हैं। अच्छा।
ऐसे सदा दृढ़ संकल्प करने वाले, सफलता के जन्म-सिद्ध अधिकार को साकार में लाने वाले, सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखते हुए समर्थ रहने वाले, स्वंय की विशेषता को सदा कार्य में लगाने वाले, सदा हर कार्य में बाप का कार्य सो मेरा कार्य ऐसे अनुभव करने वाले, सर्व कार्य में ऐसे बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले विशाल बुद्धि बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
ब्राजील पार्टी से: देश में सबसे दूर लेकिन दिल के समीप रहने वाली आत्मायें हो ना। सदा अपने को दूर बैठे भी बाप के साथ अनुभव करते हो ना। आत्मा उड़ता पंछी बन सेकण्ड में बाप के वतन में, मधुबन में पहुँच जाती है ना। सदा सैर करते हो? बापदादा बच्चों की मुहब्बत को देख रहे हैं कि कितनी दिल से साकार रूप में मधुबन में पहुँचने का प्रयत्न कर पहुँच गये हैं, इसके लिए मुबारक देते हैं। बापदादा आगे के लिए सदा विजयी रहो और सदा औरों को भी विजयी बनाओ, यही वरदान देते हैं। अच्छा -
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10-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 06-01-83 मधुबन
निरन्तर सहज योगी बनने की सहज युक्ति
आज बागवान अपने वैरायटी खुशबूदार फूलों के बगीचे को देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा वैरायटी रूहानी पुष्पों की खुशबू और रूप की रंगत देख हरेक की विशेषता के गीत गा रहे हैं। जिसको भी देखो हरेक एक दो से प्रिय और श्रेष्ठ है। नम्बरवार होते हुए भी बापदादा के लिए लास्ट नम्बर भी अति प्रिय है क्योंकि चाहे अपनी यथा शक्ति मायाजीत बनने में कमजोर है फिर भी बाप को पहचान दिल से एक बार भी ’मेरा बाबा’ कहा तो बापदादा रहम के सागर ऐसे बच्चे को भी एक बार रिटर्न में पदमगुणा उसी रूहानी प्यार से देखते कि मेरे बच्चे विशेष आत्मा हैं। इसी नजर से देखते हैं फिर भी बाप का तो बना ना। तो बापदादा ऐसे बच्चे को भी रहम और स्नेह की दृष्टि द्वारा आगे बढ़ाते रहते हैं क्योंकि ’मेरा’ है। यही रूहानी मेरे-पन की स्मृति ऐसे बच्चों के लिए समर्था भरने की आशीर्वाद बन जाती है। बापदादा को मुख से आशीर्वाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि शब्द, वाणी सेकेण्ड नम्बर है लेकिन स्नेह का संकल्प शक्तिशाली भी है और नम्बरवन प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। बापदादा इसी सूक्ष्म स्नेह के संकल्प से मात-पिता दोनों रूप से हर बच्चे की पालना कर रहे हैं। जैसे लौकिक में सिकीलधे बच्चे की माँ बाप गुप्त ही गुप्त बहुत शक्तिशाली चीजों से पालना करते हैं जिसको आप लोग खोरश (खातिरी) कहते हो। तो बापदादा भी वतन में बैठे सभी बच्चों की विशेष खोरश (खातिरी) करते रहते हैं। जैसे मधुबन में आते हो तो विशेष खोरश (खातिरी) होती है ना। तो बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और अधिकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एकस्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना नहीं रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। तो सूक्ष्म स्नेह के आह्वान से बच्चों के स्पेशल ग्रुप इमर्ज करते हैं। जैसे साकार में याद है ना हर ग्रुप को विशेष स्नेह के स्वरूप में अपने हाथों से खिलाते थे और बहलाते थे। वही स्नेह का संस्कार अब भी प्रैक्टिकल में चल रहा है। इसमें सिर्फ बच्चों को बाप समान आकारी स्वरूपधारी बन अनुभव करना पड़े। अमृतवेले ब्रह्मा माँ “आओ बच्चे, आओ बच्चे”कह विशेष शक्तियों की खुराक बच्चों को खिलाते हैं। जैसे यहाँ घी पिलाते थे और साथ-साथ एक्सरसाइज भी कराते थे ना। तो वतन में घी भी पिलाते अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों की (ताकत की) चीजें देते और अभ्यास की एक्सरसाइज भी कराते हैं। बुद्धि बल द्वारा सैर भी कराते हैं। अभी-अभी परमधाम, अभी- अभी सूक्ष्मवतन। अभी-अभी साकारी सृष्टि ब्राह्मण जीवन। तीनों लोकों में दौड़ की रेस कराते हैं, जिससे विशेष खातिरी जीवन में समा जाए। तो सुना ब्रह्मा माँ क्या करते हैं!
डबल विदेशी बच्चों को वैसे भी छुट्टी के दिनों में कहाँ दूर जाकर एक्सकरशन करने की आदत है। तो बापदादा भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष निमंत्रण दे रहे हैं। जब भी फ्रा हो तो वतन में आ जाओ। सागर के किनारे मिट्टी में नहीं जाओ। ज्ञान सागर के किनारे आ जाओ। बिगर खर्चे के बहुत प्राप्ति हो जायेगी। सूर्य की किरणें भी लेना, चन्द्रमा की चाँदनी भी लेना, पिकनिव भी करना और खेल कूद भी करना। लेकिन बुद्धि रूपी विमान में आना पड़ेगा। सबका बुद्धि रूपी विमान एवररेडी है ना। संकल्प रूपी स्विच स्टार्ट किया और पहुँचे। विमान तो सबके पास रेडी है ना कि कभी-कभी स्टार्ट नहीं होता है वा पेट्रोल कम होता तो आधा में लौट आते। वैसे तो सेकण्ड में पहुँचने की बात है। सिर्फ डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइन पेट्रोल कौन सा है? एक है निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ। दूसरा है साकार रूप में सर्व सम्बन्धों का नशा। सिर्फ बाप और बच्चे के सम्बन्ध का नशा नहीं। लेकिन प्रवृत्ति मार्ग पवित्र परिवार है। तो बाप से सर्व सम्बन्धों के रस का नशा साकार रूप में चलते फिरते अनुभव हो। यह नशा और खुशी निरन्तर सहज योगी बना देती है इसलिए निराकारी और साकारी डबल रिफाइन साधन की आवश्यकता है। अच्छा -
आज तो पार्टियों से मिलना है इसलिए फिर दुबारा साकारी और निराकारी नशे पर सुनायेंगे। डबल विदेशी बच्चों को सर्विस के प्रत्यक्ष फल की, आज्ञा पालन करने की विशेष मुबारक बापदादा दे रहे हैं। हरेक ने अच्छा बड़ा ग्रुप लाया है। बापदादा के आगे अच्छे ते अच्छे बड़े गुलदस्ते भेंट किये हैं। उसके लिए बापदादा ऐसे वफादार बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से यही वरदान दे रहे हैं - “सदा जीते रहो - बढ़ते रहो” अच्छा !
चारों ओर के स्नेही बच्चों को, जो चारों ओर याद और सेवा की धुन में लगे हुए हैं, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हुए सिकीलधे बच्चों को सेवा के रिटर्न में प्यार और याद के रिटर्न में अविनाशी याद। ऐसे अविनाशी लगन में रहने वालों को अविनाशी याद प्यार और नमस्ते।
वरदान: सदा हर कर्म में रूहानी नशे का अनुभव करने और कराने वाले खुशनसीब भव
संगमयुग पर आप बच्चे सबसे अधिक खुशनसीब हो, क्योंकि स्वयं भगवान ने आपको पसन्द कर लिया। बेहद के मालिक बन गये। भगवान की डिक्शनरी में “हू इज हू” में आपका नाम है। बेहद का बाप मिला, बेहद का राज्य भाग्य मिला, बेहद का खजाना मिला ... यही नशा सदा रहे तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होता रहेगा। यह है बेहद का रूहानी नशा, इसका अनुभव करते और कराते रहो तब कहेंगे खुशनसीब।
स्लोगन: साधनों को सेवा के प्रति यूज करो-आरामपसन्द बनने के लिए नहीं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 11th Sep 2017 )
11.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap hai garib-niwaz, tum garib bacche he Baap se gyan ki mutthi le sahookar bante ho, Baap tumhe aap samaan banate hain.
Q- Asuro ke bighna jo gaaye huye hain wo is Rudra yagyan me kaise padte rehte hain?
A- Manushya to samajhte hain Asuro ne sayad yagyan me gobar adi ka kichda dala hoga - parantu aisa nahi hai. Yahan jab kisi bacche ko ahankar aata hai, koi grahachari baithti hai to jaise kichda barashne lagta hai, krodh me aakar mukh se jo faaltu bol bolte hain, yahi is Rudra yagyan me bahut bada bighna dalte hain. Kai bacche sang dosh me aakar apna khana kharab kar dete hain. Maya thappad maar insolvent bana deti hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Pehla avgoon jo deha-abhimaan ka hai, usey nikaalkar poora-poora dehi-abhimaani banna hai.
2) Abinashi gyan dhan jo Baap se mil raha hai, uska daan karna hai. Baap samaan nirahankari banna hai. Mukh se ratna nikaalne hain. Evil baatein nahi sunni hai.
Vardaan:-- Sarv khazane jama kar roohani fakoor (nashe) me rehne wale befikar badshah bhava.
Slogan:-- Gyani tu aatma wo hai jo gyan dance ke saath, sanskar milan ki dance janta ho.
“मीठे बच्चे - बाप है गरीब-निवाज, तुम गरीब बच्चे ही बाप से ज्ञान की मुठ्ठी ले साहूकार बनते हो, बाप तुम्हें आप समान बनाते हैं”
प्रश्न: असुरों के विघ्न जो गाये हुए हैं वह इस रूद्र यज्ञ में कैसे पड़ते रहते हैं?
उत्तर: मनुष्य तो समझते हैं असुरों ने शायद यज्ञ में गोबर आदि का किचड़ा डाला होगा-परन्तु ऐसा नहीं है। यहाँ जब किसी बच्चे को अहंकार आता है, कोई ग्रहचारी बैठती है तो जैसे किचड़ा बरसने लगता है, क्रोध में आकर मुख से जो फालतू बोल बोलते हैं, यही इस रूद्र यज्ञ में बहुत बड़ा विघ्न डालते हैं। कई बच्चे संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं। माया थप्पड़ मार इनसालवेन्ट बना देती है।
याद में बैठे हो तो जैसे योग में बैठे हो। हर एक जानते हैं कि हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह है गुप्त मेहनत। इसमें कोई बड़ाई की बात नहीं। बाप कितना निरहंकारी रहते हैं, जिसमें प्रवेश करते हैं वह भी कितना निरहंकारी है। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ढेर बच्चे हैं। चलन कितनी साधारण है, जैसे घर में बड़ा बाबा चलते हैं। निराकार के लिए भी कहा जाता है-निरहंकारी है। गुप्त है ना। इनको यह नहीं रहता कि हमारा शो हो। भभके से सबको पता पड़े। भभके से नाम तो होता है ना। बाप कहते हैं यह सब रसम-रिवाज कलियुगी देह-अभिमानियों की है। यहाँ तो शान्त में आते जाते हैं। बाबा तो हमेशा कहते हैं स्टेशन पर भी कोई ना आवे। कोई हंगामा नहीं। बाप कहते हैं मुझे गुप्त ही रहने दो, इसमें ही मजा है। बड़े भभके वालों को, बड़े आदमी को मारने में भी देरी नहीं करते। बाबा तो है ऊंच ते ऊंच। चलन गरीब से गरीब चलते हैं। बाप गरीब-निवाज है ना। गरीबों से ही मिलने आते हैं। साहूकार लोग तो नामीग्रामी मनुष्यों से ही मिलते हैं। इनको तो गरीब ही प्यारे लगते हैं। गरीबों पर ही तरस पड़ता है। तो बाप गरीबों पर तरस खाते हैं। ज्ञान की मुठ्ठी भर देते हैं तो तुम साहूकार बनो। साहूकारों का ठहरना मुश्किल है। दरकार ही नहीं है इस ज्ञान मार्ग में। गवर्मेन्ट को तो धनवान लोग बहुत मदद करते हैं ना। नामीग्रामी हैं ना। वहाँ तो बहुत दान करने वालों का नाम अखबार में निकाला जाता है। यहाँ गरीब दान करते हैं तो अखबार में डालना चाहिए। चावल की मुठ्ठी देकर फिर महल ले लेते हैं। बाप गरीब-निवाज गाया हुआ है। सबसे मिलते जुलते रहते हैं। बड़ा आदमी मसाला बेचने वाले से मिलेगा नहीं। यहाँ तो हैं ही गरीब। उन्हों को ही साहूकार बनाना है। बाप तो है गुप्त। गरीब ही बाप से अपना वर्सा कल्प पहले मुआिफक ले लेंगे। ड्रामा में नूँध ही है। साहूकार तो बलि चढ़ न सकें। हाँ इनको (शिवबाबा को) कोई वारिस बनाये तो कमाल कर दिखावे। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ साधारण तन में। गाया हुआ है निराकार, निरहंकारी। गाते भी हैं ना-गोदरी में करतार... देखो बाबा ठण्डी में गोदरी ले आकर बैठते हैं ना। पतित-पावन बाप को कोई जानते नहीं है। बाबा बैठकर समझाते हैं कि हे भारतवासी बच्चों-तुमको स्वर्ग का मालिक किसने बनाया? लक्ष्मी-नारायण के चित्र भी यहाँ रखे हैं। यहाँ तुम अविनाशी ज्ञान रत्न प्राप्त कर और दान करते हो। तन-मन-धन सब समर्पण करते हो तो इसका एवजा मिलना चाहिए। अज्ञान काल में भी बहुत दान करने वाले बड़े आदमियों पास जन्म लेते हैं। यहाँ तुम बाप के आगे सरेन्डर करते हो तो पिछाड़ी में जो साहूकार बनते हैं, उनके पास जाकर जन्म लेते हैं। फिर तुम वहाँ महल माडियाँ बनायेंगे। दुनिया तो यही होगी। वैकुण्ठ कोई छत में थोड़ेही रखा है। पूछो-तुम्हारा बाप कहाँ गया? कहेंगे काशीवास किया और मुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्ग पधारा। परन्तु अब तुम समझते हो मुक्ति जीवनमुक्ति किसको मिली नहीं है। सब यहाँ ही आते जाते हैं। कर्मो अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं। रावण राज्य में जो भी कर्म मनुष्य करते हैं वह विकर्म बन जाते हैं। बालिग अवस्था में ही हिसाब-किताब बनता है। छोटे बच्चे का कुछ जमा नहीं होता है। बच्चा बड़ा होता है तो उनके मॉ बाप काम कटारी पर चढ़ा देते हैं। यह भी कर्म विकर्म हुआ। वहाँ माया का राज्य ही नहीं। यह एक भी मनुष्य जानते नहीं। तुम बच्चों को बाप देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहेंगे कि तुम्हारी आत्मा में सारा पार्ट बजाने की नूँध है। आत्मा शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाती है। आत्मा ही कानों से सुनती है। अब तुमको सेल्फ रियलाइजेशन कराया है। हम आत्मा ही 84 जन्म लेते हैं। आत्मा को अब निश्चय हुआ है देह-अभिमान खत्म। पहला अवगुण ही यह है। देह-अभिमान आने से ही और विकार चटकते हैं। तो अब देही-अभिमानी बनना है। बाबा हम आत्मायें बस आई कि आई। 84 जन्म पूरे किये हैं। ड्रामा अब पूरा हुआ। अब हमको नया जन्म मिलेगा। खुशी होनी चाहिए ना। सर्प खल छोड़ता है फिर नई लेता है। सन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते। यहाँ तुम भी नई खाल लेने के पहले पुरानी छोड़ते हो। फिर वहाँ हर जन्म में आपेही पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हो। बच्चे समझते हैं कि अब हम यह पुरानी खाल छोड़ घर जायेंगे। फिर स्वर्ग में समय पर पुराना शरीर छोड़ दूसरा लेते रहेंगे। सर्प तो बहुत बार खाल उतारता है। तुमको तो यहाँ प्रैक्टिस कराई जाती है। यह 84 जन्मों की सड़ी हुई खाल है, इनको श्याम कहा जाता है। चमड़ी (शरीर) काली तो आत्मा भी काली है। सोना 24 कैरेट होता है तो जेवर भी ऐसे बनते हैं। आगे खाद डालने का कायदा नहीं था। सच्चा सोना चलता था। यह गिन्नी आदि विलायत से निकली है। विलायत में सच्ची मुहरें बनती नहीं, यहाँ ही सच्चे सोने की मुहरे थी। अब तो सब मंहगा हो गया है। सोने में खाद डालनी ही है। तुम्हारे दिल में गुप्त खुशी है कि हम तो जाकर सोने के महल बनायेंगे। जैसे यहाँ पत्थरों की दीवार है, वहाँ सोने की दीवार होगी। हम पारसबुद्धि बनते हैं तो महल भी सोने के बनाते हैं। पुराना सब खलास हो जायेगा। इस ड्रामा को बड़ा युक्ति से समझना होता है। नई दुनिया में सब कुछ नया होता है। यह कितनी सहज बातें हैं। अच्छा यह भी समझ में न आये तो बाप को बड़े प्यार से याद करो इसलिए यह सब महीन बातें बाबा ने देर से समझाई हैं। शुरू में बहुत सहज तोतली बातें सुनाते थे। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाबा ने यह सब पहले क्यों नहीं सुनाया कि आत्मा इतनी छोटी है। ड्रामा अनुसार जो कुछ पास हुआ, कल्प पहले मुआिफक जैसे समझाया था-ऐसे समझा रहे हैं। मनुष्य इस ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ है। कल्प बाद ही फिर ऐसे समझा रहे हैं। फिर भी ऐसे ही समझायेंगे। बहुत बच्चे साधारण रूप देख मूँझते हैं, उल्टा बोलने लग पड़ते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे उनको भी माया चमाट मार देती है। समझते हैं - बस जो कुछ है निराकार ही है। सो तो ठीक है ना। निराकार नहीं होता तो हम तुम कैसे होते। परन्तु निराकार को तो रथ जरूर चाहिए ना। रथ बिगर क्या करेंगे, शिवबाबा क्या करेगा? रथ में आये तब तो तुम उनसे मिलेंगे। तुम्हीं से सुनूँ, तुम्ही से बैठूँ। तो रथ जरूर चाहिए ना। अच्छा साकार बिगर निराकार को याद कर दिखाओ। क्या तुमको ज्ञान प्रेरणा से मिलेगा? फिर मेरे पास आये ही क्यों हो? यह बाबा भी कहता है कि वर्सा तो शिवबाबा से लेना है। शिवबाबा कहते हैं मैं इस साधारण तन में बैठ पढ़ाता हूँ। पढ़ाई तो जरूर चाहिए ना। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चों का माथा ही फिर जाता है। दो चार सेन्टर खोलते तो बस अहंकार आ जाता है। फिर उल्टा बोलते रहते हैं। फिर कभी बुद्धि में आ भी जाता है कि यह हमने ठीक नहीं कहा, फिर पश्चाताप करते हैं। बाबा कहते हैं मैं साकार बिगर कैसे समझाऊंगा। इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं। मैं टीचर के रूप में बैठता हूँ। गरीबों पर माथा मारते हैं। गरीबों को ही दान करना चाहिए। कोई भी बात समझ में न आये तो बोलो अच्छा बाबा से पूछकर बतायेंगे क्योंकि ज्ञान की अभी बहुत मार्जिन है। आगे चलकर समझते जायेंगे। दिन-प्रतिदिन तुम नई-नई प्वाइंटस सुनते रहेंगे। तुम बच्चों को तो बिल्कुल ही निरहंकारी बनकर रहना है। अहंकार आने से ही फिर सारा किचड़ा बाहर निकल आता है। किचड़े की जैसे वर्षा होती है। कहते भी हैं रूद्र यज्ञ में असुरों व् किचड़ा पड़ा-वह समझते हैं शायद गोबर आदि डालते होंगे। सचमुच यह गोबर है। फालतू बोलने लग पड़ते हैं। क्रोध आदि करते यह जैसे गोबर डालते हैं। चलते-चलते किसको ग्रहचारी बैठती है तो छटेले बन जाते हैं। माया थप्पड़ मार एकदम इनसालवेंट बना देती है। कमाई में ग्रहचारी होती है ना। तब तो कहते हैं आश्चर्यवत सुनन्ती, संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं। बाप कहते हैं बहुत खबरदार रहना है। संग तारे, कुसंग बोरे... बाबा बिल्कुल मना कर देते हैं। बड़े आदमी के दुश्मन बहुत बन पड़ते हैं। यहाँ फिर विष का खाना न मिलने से कामेशु, क्रोधेशु बन पड़ते हैं। बस हम इनको मारेंगे। बाप तो कहते हैं - काम तो तुम्हारा दुश्मन है। तुम पावन देवी-देवता थे। अभी कहते हो कि हम पतित दु:खी हैं। बाबा कहते हैं-इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न बहुत पड़ेंगे। शुरू से ही पड़ते आये हैं। मुख्य है ही पवित्रता की बात। तुम पुकारते भी हो कि हे पतित-पावन आओ। तो अब आये हैं-पावन बनाते हैं। फिर क्यों पतित बनने चाहते हो? विकारों पर ही शुरू से झगड़ा चलता है। बच्चियाँ भी कहती हैं-हमको तो बाप से वर्सा जरूर लेना है-कुछ भी हो जाए। बाप क्या करेगा? मारेगा ना। लड़ाई में कितने मरते हैं। तुमको बाप कोई मार नहीं डालेगा। हाँ सहन जरूर करना पड़ता है, इसमें महावीरता चाहिए। शिव शक्ति का गायन तुम्हारा ही है। आदि देव को महावीर कहते हैं। परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं। अब तुम समझते हो कि माया पर जीत पाते हैं और दूसरों को मायाजीत बनाते हैं। देलवाड़ा मन्दिर में जगत अम्बा भी बैठी है। कोठरियों में बच्चियाँ भी बैठी हैं। महावीर बच्चे सब ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ ठहरे। तुम्हारी बुद्धि में कितना राज है। हूबहू तुम्हारा ही यादगार है। लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी यादगार है। गांधी की बरसी मनाते हैं। यह-यह किया, टैगोर ऐसा था, अच्छा काम करते थे। कितनी बड़ी-बड़ी जीवन कहानियाँ लिखी हुई हैं। कितने वाल्युम्स हैं। यहाँ तुम्हारी बुद्धि ही बड़ा वाल्यूम है। सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज तुम्हारी बुद्धि में है। बुद्धि में ही ज्ञान की धारणा होती है। किनकी बुद्धि विशाल है-किनकी कम है। नम्बर हैं ना। यह है नई नॉलेज, जो बाप के सिवाए कोई सुना नहीं सकते। इस बाप पर बलि चढ़ने से तुमको स्वर्ग का मालिक बना देते हैं। बेहद का बाप पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर बच्चों के लिए कितनी मेहनत करते हैं। तो जरूर बच्चों को बलि चढ़ना पड़े। वह शिवबाबा तो है ही निराकार, दाता है ना। कहते हैं शिवबाबा हम आपको पैसे भेज देते हैं, मकान बनाने के लिए। मैं तो निराकार हूँ तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही बनाऊंगा। डायरेक्शन देता हूँ-तुम्हारे लिए बनावें। हम तो आये हैं थोड़े समय के लिए, फिर निर्वाणधाम चले जायेंगे। कितना प्यार से बैठ समझाते हैं-कितनी सहज बात है, देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग एक बाप को याद करो। चाहे तो स्वराज्य पाओ, चाहे प्रजा पद पाओ। तुम्हारे पुरूषार्थ पर है। एक-एक राजा रानी के पास प्रजा कितनी लाखों के अन्दाज में आती है। यह ज्ञान तो ढेर सुनेंगे। आप समान बनाने की मेहनत करनी है। पावन यहाँ बनना है। तुम जानते हो पतित-पावन बाप आया हुआ है। कल्प पहले मुआिफक हमको समझा रहे हैं। बाबा ने राज्य दिलाया था-रावण ने छीन लिया है। हार कैसे हुई है फिर जीतना कैसे है-यह भी बुद्धि में हैं। बहुत बच्चे यह भी भूल जाते हैं। माया नाक से पकड़ लेती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं फिर झट जीवनबंध भी हो जाते हैं। देरी नहीं करते। बाप कहते हैं बच्चे खबरदार रहो। तुम रूप-बसन्त बन सदा मुख से रत्न ही निकालो। किचड़ा सुनना भी नहीं चाहिए। समझो हमारा यह दुश्मन है। ज्ञान के सिवाए और सब बातें सुनना ईविल है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पहला अवगुण जो देह-अभिमान का है, उसे निकालकर पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनना है।
2) अविनाशी ज्ञान धन जो बाप से मिल रहा है, उसका दान करना है। बाप समान निरहंकारी बनना है। मुख से रत्न निकालने हैं। ईविल बातें नहीं सुननी है।
वरदान: सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर (नशे) में रहने वाले बेफिकर बादशाह भव
बापदादा द्वारा सब बच्चों को अखुट खजाने मिले हैं। जिसने अपने पास जितने खजाने जमा किये हैं उतना उनकी चलन और चेहरे में वह रूहानी नशा दिखाई देता है, जमा करने का रूहानी फखुर अनुभव होता है। जिसे जितना रूहानी फखुर रहता है उतना उनके हर कर्म में वह बेफिक्र बादशाह की झलक दिखाई देती है क्योंकि जहाँ फखुर है वहाँ फिक्र नहीं रह सकता। जो ऐसे बेफिक्र बादशाह हैं वह सदा प्रसन्नचित हैं।
स्लोगन: ज्ञानी तू आत्मा वह है जो ज्ञान डांस के साथ, संस्कार मिलन की डांस जानता है।
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Mithe bacche - Baap hai garib-niwaz, tum garib bacche he Baap se gyan ki mutthi le sahookar bante ho, Baap tumhe aap samaan banate hain.
Q- Asuro ke bighna jo gaaye huye hain wo is Rudra yagyan me kaise padte rehte hain?
A- Manushya to samajhte hain Asuro ne sayad yagyan me gobar adi ka kichda dala hoga - parantu aisa nahi hai. Yahan jab kisi bacche ko ahankar aata hai, koi grahachari baithti hai to jaise kichda barashne lagta hai, krodh me aakar mukh se jo faaltu bol bolte hain, yahi is Rudra yagyan me bahut bada bighna dalte hain. Kai bacche sang dosh me aakar apna khana kharab kar dete hain. Maya thappad maar insolvent bana deti hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Pehla avgoon jo deha-abhimaan ka hai, usey nikaalkar poora-poora dehi-abhimaani banna hai.
2) Abinashi gyan dhan jo Baap se mil raha hai, uska daan karna hai. Baap samaan nirahankari banna hai. Mukh se ratna nikaalne hain. Evil baatein nahi sunni hai.
Vardaan:-- Sarv khazane jama kar roohani fakoor (nashe) me rehne wale befikar badshah bhava.
Slogan:-- Gyani tu aatma wo hai jo gyan dance ke saath, sanskar milan ki dance janta ho.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
11-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप है गरीब-निवाज, तुम गरीब बच्चे ही बाप से ज्ञान की मुठ्ठी ले साहूकार बनते हो, बाप तुम्हें आप समान बनाते हैं”
प्रश्न: असुरों के विघ्न जो गाये हुए हैं वह इस रूद्र यज्ञ में कैसे पड़ते रहते हैं?
उत्तर: मनुष्य तो समझते हैं असुरों ने शायद यज्ञ में गोबर आदि का किचड़ा डाला होगा-परन्तु ऐसा नहीं है। यहाँ जब किसी बच्चे को अहंकार आता है, कोई ग्रहचारी बैठती है तो जैसे किचड़ा बरसने लगता है, क्रोध में आकर मुख से जो फालतू बोल बोलते हैं, यही इस रूद्र यज्ञ में बहुत बड़ा विघ्न डालते हैं। कई बच्चे संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं। माया थप्पड़ मार इनसालवेन्ट बना देती है।
ओम् शान्ति।
याद में बैठे हो तो जैसे योग में बैठे हो। हर एक जानते हैं कि हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह है गुप्त मेहनत। इसमें कोई बड़ाई की बात नहीं। बाप कितना निरहंकारी रहते हैं, जिसमें प्रवेश करते हैं वह भी कितना निरहंकारी है। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ढेर बच्चे हैं। चलन कितनी साधारण है, जैसे घर में बड़ा बाबा चलते हैं। निराकार के लिए भी कहा जाता है-निरहंकारी है। गुप्त है ना। इनको यह नहीं रहता कि हमारा शो हो। भभके से सबको पता पड़े। भभके से नाम तो होता है ना। बाप कहते हैं यह सब रसम-रिवाज कलियुगी देह-अभिमानियों की है। यहाँ तो शान्त में आते जाते हैं। बाबा तो हमेशा कहते हैं स्टेशन पर भी कोई ना आवे। कोई हंगामा नहीं। बाप कहते हैं मुझे गुप्त ही रहने दो, इसमें ही मजा है। बड़े भभके वालों को, बड़े आदमी को मारने में भी देरी नहीं करते। बाबा तो है ऊंच ते ऊंच। चलन गरीब से गरीब चलते हैं। बाप गरीब-निवाज है ना। गरीबों से ही मिलने आते हैं। साहूकार लोग तो नामीग्रामी मनुष्यों से ही मिलते हैं। इनको तो गरीब ही प्यारे लगते हैं। गरीबों पर ही तरस पड़ता है। तो बाप गरीबों पर तरस खाते हैं। ज्ञान की मुठ्ठी भर देते हैं तो तुम साहूकार बनो। साहूकारों का ठहरना मुश्किल है। दरकार ही नहीं है इस ज्ञान मार्ग में। गवर्मेन्ट को तो धनवान लोग बहुत मदद करते हैं ना। नामीग्रामी हैं ना। वहाँ तो बहुत दान करने वालों का नाम अखबार में निकाला जाता है। यहाँ गरीब दान करते हैं तो अखबार में डालना चाहिए। चावल की मुठ्ठी देकर फिर महल ले लेते हैं। बाप गरीब-निवाज गाया हुआ है। सबसे मिलते जुलते रहते हैं। बड़ा आदमी मसाला बेचने वाले से मिलेगा नहीं। यहाँ तो हैं ही गरीब। उन्हों को ही साहूकार बनाना है। बाप तो है गुप्त। गरीब ही बाप से अपना वर्सा कल्प पहले मुआिफक ले लेंगे। ड्रामा में नूँध ही है। साहूकार तो बलि चढ़ न सकें। हाँ इनको (शिवबाबा को) कोई वारिस बनाये तो कमाल कर दिखावे। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ साधारण तन में। गाया हुआ है निराकार, निरहंकारी। गाते भी हैं ना-गोदरी में करतार... देखो बाबा ठण्डी में गोदरी ले आकर बैठते हैं ना। पतित-पावन बाप को कोई जानते नहीं है। बाबा बैठकर समझाते हैं कि हे भारतवासी बच्चों-तुमको स्वर्ग का मालिक किसने बनाया? लक्ष्मी-नारायण के चित्र भी यहाँ रखे हैं। यहाँ तुम अविनाशी ज्ञान रत्न प्राप्त कर और दान करते हो। तन-मन-धन सब समर्पण करते हो तो इसका एवजा मिलना चाहिए। अज्ञान काल में भी बहुत दान करने वाले बड़े आदमियों पास जन्म लेते हैं। यहाँ तुम बाप के आगे सरेन्डर करते हो तो पिछाड़ी में जो साहूकार बनते हैं, उनके पास जाकर जन्म लेते हैं। फिर तुम वहाँ महल माडियाँ बनायेंगे। दुनिया तो यही होगी। वैकुण्ठ कोई छत में थोड़ेही रखा है। पूछो-तुम्हारा बाप कहाँ गया? कहेंगे काशीवास किया और मुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्ग पधारा। परन्तु अब तुम समझते हो मुक्ति जीवनमुक्ति किसको मिली नहीं है। सब यहाँ ही आते जाते हैं। कर्मो अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं। रावण राज्य में जो भी कर्म मनुष्य करते हैं वह विकर्म बन जाते हैं। बालिग अवस्था में ही हिसाब-किताब बनता है। छोटे बच्चे का कुछ जमा नहीं होता है। बच्चा बड़ा होता है तो उनके मॉ बाप काम कटारी पर चढ़ा देते हैं। यह भी कर्म विकर्म हुआ। वहाँ माया का राज्य ही नहीं। यह एक भी मनुष्य जानते नहीं। तुम बच्चों को बाप देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहेंगे कि तुम्हारी आत्मा में सारा पार्ट बजाने की नूँध है। आत्मा शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाती है। आत्मा ही कानों से सुनती है। अब तुमको सेल्फ रियलाइजेशन कराया है। हम आत्मा ही 84 जन्म लेते हैं। आत्मा को अब निश्चय हुआ है देह-अभिमान खत्म। पहला अवगुण ही यह है। देह-अभिमान आने से ही और विकार चटकते हैं। तो अब देही-अभिमानी बनना है। बाबा हम आत्मायें बस आई कि आई। 84 जन्म पूरे किये हैं। ड्रामा अब पूरा हुआ। अब हमको नया जन्म मिलेगा। खुशी होनी चाहिए ना। सर्प खल छोड़ता है फिर नई लेता है। सन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते। यहाँ तुम भी नई खाल लेने के पहले पुरानी छोड़ते हो। फिर वहाँ हर जन्म में आपेही पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हो। बच्चे समझते हैं कि अब हम यह पुरानी खाल छोड़ घर जायेंगे। फिर स्वर्ग में समय पर पुराना शरीर छोड़ दूसरा लेते रहेंगे। सर्प तो बहुत बार खाल उतारता है। तुमको तो यहाँ प्रैक्टिस कराई जाती है। यह 84 जन्मों की सड़ी हुई खाल है, इनको श्याम कहा जाता है। चमड़ी (शरीर) काली तो आत्मा भी काली है। सोना 24 कैरेट होता है तो जेवर भी ऐसे बनते हैं। आगे खाद डालने का कायदा नहीं था। सच्चा सोना चलता था। यह गिन्नी आदि विलायत से निकली है। विलायत में सच्ची मुहरें बनती नहीं, यहाँ ही सच्चे सोने की मुहरे थी। अब तो सब मंहगा हो गया है। सोने में खाद डालनी ही है। तुम्हारे दिल में गुप्त खुशी है कि हम तो जाकर सोने के महल बनायेंगे। जैसे यहाँ पत्थरों की दीवार है, वहाँ सोने की दीवार होगी। हम पारसबुद्धि बनते हैं तो महल भी सोने के बनाते हैं। पुराना सब खलास हो जायेगा। इस ड्रामा को बड़ा युक्ति से समझना होता है। नई दुनिया में सब कुछ नया होता है। यह कितनी सहज बातें हैं। अच्छा यह भी समझ में न आये तो बाप को बड़े प्यार से याद करो इसलिए यह सब महीन बातें बाबा ने देर से समझाई हैं। शुरू में बहुत सहज तोतली बातें सुनाते थे। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाबा ने यह सब पहले क्यों नहीं सुनाया कि आत्मा इतनी छोटी है। ड्रामा अनुसार जो कुछ पास हुआ, कल्प पहले मुआिफक जैसे समझाया था-ऐसे समझा रहे हैं। मनुष्य इस ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ है। कल्प बाद ही फिर ऐसे समझा रहे हैं। फिर भी ऐसे ही समझायेंगे। बहुत बच्चे साधारण रूप देख मूँझते हैं, उल्टा बोलने लग पड़ते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे उनको भी माया चमाट मार देती है। समझते हैं - बस जो कुछ है निराकार ही है। सो तो ठीक है ना। निराकार नहीं होता तो हम तुम कैसे होते। परन्तु निराकार को तो रथ जरूर चाहिए ना। रथ बिगर क्या करेंगे, शिवबाबा क्या करेगा? रथ में आये तब तो तुम उनसे मिलेंगे। तुम्हीं से सुनूँ, तुम्ही से बैठूँ। तो रथ जरूर चाहिए ना। अच्छा साकार बिगर निराकार को याद कर दिखाओ। क्या तुमको ज्ञान प्रेरणा से मिलेगा? फिर मेरे पास आये ही क्यों हो? यह बाबा भी कहता है कि वर्सा तो शिवबाबा से लेना है। शिवबाबा कहते हैं मैं इस साधारण तन में बैठ पढ़ाता हूँ। पढ़ाई तो जरूर चाहिए ना। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चों का माथा ही फिर जाता है। दो चार सेन्टर खोलते तो बस अहंकार आ जाता है। फिर उल्टा बोलते रहते हैं। फिर कभी बुद्धि में आ भी जाता है कि यह हमने ठीक नहीं कहा, फिर पश्चाताप करते हैं। बाबा कहते हैं मैं साकार बिगर कैसे समझाऊंगा। इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं। मैं टीचर के रूप में बैठता हूँ। गरीबों पर माथा मारते हैं। गरीबों को ही दान करना चाहिए। कोई भी बात समझ में न आये तो बोलो अच्छा बाबा से पूछकर बतायेंगे क्योंकि ज्ञान की अभी बहुत मार्जिन है। आगे चलकर समझते जायेंगे। दिन-प्रतिदिन तुम नई-नई प्वाइंटस सुनते रहेंगे। तुम बच्चों को तो बिल्कुल ही निरहंकारी बनकर रहना है। अहंकार आने से ही फिर सारा किचड़ा बाहर निकल आता है। किचड़े की जैसे वर्षा होती है। कहते भी हैं रूद्र यज्ञ में असुरों व् किचड़ा पड़ा-वह समझते हैं शायद गोबर आदि डालते होंगे। सचमुच यह गोबर है। फालतू बोलने लग पड़ते हैं। क्रोध आदि करते यह जैसे गोबर डालते हैं। चलते-चलते किसको ग्रहचारी बैठती है तो छटेले बन जाते हैं। माया थप्पड़ मार एकदम इनसालवेंट बना देती है। कमाई में ग्रहचारी होती है ना। तब तो कहते हैं आश्चर्यवत सुनन्ती, संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं। बाप कहते हैं बहुत खबरदार रहना है। संग तारे, कुसंग बोरे... बाबा बिल्कुल मना कर देते हैं। बड़े आदमी के दुश्मन बहुत बन पड़ते हैं। यहाँ फिर विष का खाना न मिलने से कामेशु, क्रोधेशु बन पड़ते हैं। बस हम इनको मारेंगे। बाप तो कहते हैं - काम तो तुम्हारा दुश्मन है। तुम पावन देवी-देवता थे। अभी कहते हो कि हम पतित दु:खी हैं। बाबा कहते हैं-इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न बहुत पड़ेंगे। शुरू से ही पड़ते आये हैं। मुख्य है ही पवित्रता की बात। तुम पुकारते भी हो कि हे पतित-पावन आओ। तो अब आये हैं-पावन बनाते हैं। फिर क्यों पतित बनने चाहते हो? विकारों पर ही शुरू से झगड़ा चलता है। बच्चियाँ भी कहती हैं-हमको तो बाप से वर्सा जरूर लेना है-कुछ भी हो जाए। बाप क्या करेगा? मारेगा ना। लड़ाई में कितने मरते हैं। तुमको बाप कोई मार नहीं डालेगा। हाँ सहन जरूर करना पड़ता है, इसमें महावीरता चाहिए। शिव शक्ति का गायन तुम्हारा ही है। आदि देव को महावीर कहते हैं। परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं। अब तुम समझते हो कि माया पर जीत पाते हैं और दूसरों को मायाजीत बनाते हैं। देलवाड़ा मन्दिर में जगत अम्बा भी बैठी है। कोठरियों में बच्चियाँ भी बैठी हैं। महावीर बच्चे सब ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ ठहरे। तुम्हारी बुद्धि में कितना राज है। हूबहू तुम्हारा ही यादगार है। लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी यादगार है। गांधी की बरसी मनाते हैं। यह-यह किया, टैगोर ऐसा था, अच्छा काम करते थे। कितनी बड़ी-बड़ी जीवन कहानियाँ लिखी हुई हैं। कितने वाल्युम्स हैं। यहाँ तुम्हारी बुद्धि ही बड़ा वाल्यूम है। सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज तुम्हारी बुद्धि में है। बुद्धि में ही ज्ञान की धारणा होती है। किनकी बुद्धि विशाल है-किनकी कम है। नम्बर हैं ना। यह है नई नॉलेज, जो बाप के सिवाए कोई सुना नहीं सकते। इस बाप पर बलि चढ़ने से तुमको स्वर्ग का मालिक बना देते हैं। बेहद का बाप पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर बच्चों के लिए कितनी मेहनत करते हैं। तो जरूर बच्चों को बलि चढ़ना पड़े। वह शिवबाबा तो है ही निराकार, दाता है ना। कहते हैं शिवबाबा हम आपको पैसे भेज देते हैं, मकान बनाने के लिए। मैं तो निराकार हूँ तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही बनाऊंगा। डायरेक्शन देता हूँ-तुम्हारे लिए बनावें। हम तो आये हैं थोड़े समय के लिए, फिर निर्वाणधाम चले जायेंगे। कितना प्यार से बैठ समझाते हैं-कितनी सहज बात है, देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग एक बाप को याद करो। चाहे तो स्वराज्य पाओ, चाहे प्रजा पद पाओ। तुम्हारे पुरूषार्थ पर है। एक-एक राजा रानी के पास प्रजा कितनी लाखों के अन्दाज में आती है। यह ज्ञान तो ढेर सुनेंगे। आप समान बनाने की मेहनत करनी है। पावन यहाँ बनना है। तुम जानते हो पतित-पावन बाप आया हुआ है। कल्प पहले मुआिफक हमको समझा रहे हैं। बाबा ने राज्य दिलाया था-रावण ने छीन लिया है। हार कैसे हुई है फिर जीतना कैसे है-यह भी बुद्धि में हैं। बहुत बच्चे यह भी भूल जाते हैं। माया नाक से पकड़ लेती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं फिर झट जीवनबंध भी हो जाते हैं। देरी नहीं करते। बाप कहते हैं बच्चे खबरदार रहो। तुम रूप-बसन्त बन सदा मुख से रत्न ही निकालो। किचड़ा सुनना भी नहीं चाहिए। समझो हमारा यह दुश्मन है। ज्ञान के सिवाए और सब बातें सुनना ईविल है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पहला अवगुण जो देह-अभिमान का है, उसे निकालकर पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनना है।
2) अविनाशी ज्ञान धन जो बाप से मिल रहा है, उसका दान करना है। बाप समान निरहंकारी बनना है। मुख से रत्न निकालने हैं। ईविल बातें नहीं सुननी है।
वरदान: सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर (नशे) में रहने वाले बेफिकर बादशाह भव
बापदादा द्वारा सब बच्चों को अखुट खजाने मिले हैं। जिसने अपने पास जितने खजाने जमा किये हैं उतना उनकी चलन और चेहरे में वह रूहानी नशा दिखाई देता है, जमा करने का रूहानी फखुर अनुभव होता है। जिसे जितना रूहानी फखुर रहता है उतना उनके हर कर्म में वह बेफिक्र बादशाह की झलक दिखाई देती है क्योंकि जहाँ फखुर है वहाँ फिक्र नहीं रह सकता। जो ऐसे बेफिक्र बादशाह हैं वह सदा प्रसन्नचित हैं।
स्लोगन: ज्ञानी तू आत्मा वह है जो ज्ञान डांस के साथ, संस्कार मिलन की डांस जानता है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 12th Sep 2017 )
12.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Jitna samay mile sachchi kamayi karo, chalte firte karm karte Baap ki yaad me rehna he sachchi kamayi ka aadhar hai, isme koi takleef nahi.
Q- Jin baccho me gyan ki parakastha hogi, unki nishaani sunao?
A- Jinme gyan ki parakastha hogi unki sab karmendriya sital ho jayengi. Chanchalta samapt ho jayegi. Avastha ek ras ho jayegi. Manners sudharte jayenge.
Q- Shiv Baba ki yaad buddhi me yathart nahi hai to result kya hogi?
A- Koi na koi bikarm zaroor hoga. Buddhi itna bhi kaam nahi karegi ki humare dwara koi bikarm ho raha hai. Baap ka farmaan na manne ke kaaran dhoka khaate rahenge.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Kisi bhi baat me sansay uthakar padhai nahi chhodni hai. Baap aur varshe ko yaad karna hai.
2) Ek Baap se he sunna hai, baki jo padha hai wo sab bhool jana hai. Hear no evil, see no evil, talk no evil......
Vardaan:-Kya, kyun, aise aur waise ke sabhi prashno se paar rehne wale sada Prasannachit bhava.
Slogan:- Swayang ko mehmaan samajhkar har karm karo to mahan aur mahima yogya ban jayenge.
“मीठे बच्चे - जितना समय मिले सच्ची कमाई करो, चलते फिरते कर्म करते बाप की याद में रहना ही सच्ची कमाई का आधार है, इसमें कोई तकलीफ नहीं”
प्रश्न: जिन बच्चों में ज्ञान की पराकाष्ठा होगी, उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर: जिनमें ज्ञान की पराकाष्ठा होगी उनकी सब कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जायेंगी। चंचलता समाप्त हो जायेगी। अवस्था एकरस हो जायेगी। मैनर्स सुधरते जायेंगे।
प्रश्न: शिवबाबा की याद बुद्धि में यथार्थ नहीं है तो रिजल्ट क्या होगी?
उत्तर: कोई न कोई विकर्म जरूर होगा। बुद्धि इतना भी काम नहीं करेगी कि हमारे द्वारा कोई विकर्म हो रहा है। बाप का फरमान न मानने के कारण धोखा खाते रहेंगे।
गीत: आखिर वह दिन आया आज... ओम् शान्ति।
बच्चों को खातिरी हो गई है कि बेहद का बाप आया हुआ है। कृष्ण को बेहद का बाप नहीं कहेंगे। यह गीत तो यहाँ के नाटक वालों ने बनाये हुए हैं। महाराजाधिराज कृष्ण के लिए कहते हैं। बाप कहते हैं मैं तो नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ। तो इन गीतों से भी कुछ न कुछ अच्छा अर्थ निकलता है। बेहद का बाप गरीब निवाज जरूर है, जिस भारत को साहूकार बनाते हैं वह भारत अब गरीब बन गया है। भारत में ही उनका जन्म होता है और कहीं उनका जन्म गाया हुआ नहीं है। भले पूजा करते हैं, कोई भी नेशन में यह चित्र हैं परन्तु जन्म तो यहाँ होता है ना। जैसे क्राइस्ट का जन्म और कोई जगह है परन्तु चित्र तो यहाँ भी हैं ना। तो भारत को गॉड फादर का बर्थ प्लेस कहेंगे। मनुष्य तो कुछ समझते नहीं। वह तो ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते हैं। आगे तुमको भी पता नहीं था। अभी जानते हो कि भारत पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थप्लेस है। मनुष्य तो समझते हैं कि परमात्मा तो जन्म-मरण से न्यारा है। हाँ, मरण से बेशक न्यारा है क्योंकि उनका अपना शरीर तो है नहीं। बाकी जन्म तो होता है ना। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, मेरा दिव्य जन्म है और मनुष्य तो गर्भ में प्रवेश कर फिर छोटे से बड़े बनते हैं। मैं ऐसा नहीं बनता हूँ। हाँ, कृष्ण माँ के गर्भ में जाते हैं। छोटे से बड़ा बनते हैं। हर एक आत्मा अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश कर जन्म लेती है। यह मनुष्य मात्र की बात है। मनुष्य ही कंगाल, मनुष्य ही सिरताज बनते हैं। भारत सतयुग आदि में डबल सिरताज था। पवित्रता की निशानी रहती है। पवित्रता का ताज और रतन जडित ताज था ना। पवित्रता गुम हो जाने के बाद सिर्फ एक ताज रहता है। विश्व का मालिक थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते एक ताज गुम हो गया। फिर सिंगल ताज वाले बने। यह ज्ञान की बातें हैं। पूज्य से पुजारी बनने के कारण एक ताज गुम हो जाता है। राजायें पतित होते आये हैं और जो पावन राजायें सूर्यवंशी चन्द्रवंशी पास्ट हो गये हैं, उनके चित्रों की पूजा करते आये हैं। जो पवित्र पूज्य थे वही फिर पुजारी बने हैं। उनको ही 84 जन्म भोगने पड़ते हैं। जो भारत कल पूज्य था सो अब पुजारी बना है। फिर पुजारी गरीब से पूज्य साहूकार बनना है। अब तो कितना गरीब है। कहाँ हेविन के महल थे, मन्दिर के ऊपर भी कितने हीरे जवाहरात जड़े हुए थे। तो वे अपना महल तो और ही अच्छा बनाते होंगे ना। अभी तो कितना गरीब है। गरीब से साहूकार अभी तुम फिर बनते हो। पुरूषार्थ तुम बच्चों को करना है। युक्तियाँ रोज बतलाते हैं। जितना टाइम फुर्सत मिले यह याद की कमाई करनी है। ऐसे बहुत काम होते हैं जिनमें बुद्धि नहीं लगानी होती है। कोई- कोई में बुद्धि लगानी पड़ती है। तो जब फुर्सत मिलती है, घूमने फिरने जाते हो तो बाप की याद में रहो। यह कमाई बहुत करनी है। यह है सच्ची कमाई। बाकी तो वह है अल्पकाल के लिए झूठी कमाई। यह शिक्षा तुम बच्चों को अभी ही मिलती है। तुम जानते हो कि हमको बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है, इसमें कोई भी तकलीफ नहीं है। घरबार भी नहीं छुड़ाते हैं। सिर्फ कहते हैं बच्चे विकार में नहीं जाना है। इस पर ही अक्सर करके झगड़ा चलता है। और सतसंगों में ऐसे झगड़े थोड़ेही होते हैं। वहाँ तो जो सुनाया वह सत-सत कहकर चले जाते हैं। झगड़ा यहाँ होता है। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न जरूर पड़ेंगे। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। जैसे द्रोपदी को भी दिखाते हैं-पुकारा है कि बाबा हमें यह नंगन करते हैं, इनसे बचाओ। बाप की तो शिक्षा है कि कभी भी नंगन नहीं होना है। जब एकरस अवस्था हो जाए तब यह कर्मेन्द्रियां शीतल हों, तब तक कोई न कोई चंचलता चलती रहेगी। जब तक ज्ञान की पराकाष्ठा हो-बुद्धि में यह ख्याल रहे कि हमको कम्पेनियन हो रहना है। विलायत में बहुत बूढ़े वानप्रस्थी होते हैं। समझते हैं पिछाड़ी में कौन मालिक बनेंगे, बाल बच्चे तो हैं नहीं, इसलिए पिछाड़ी में कम्पेनियन बना लेते हैं। फिर भी कुछ उनको देकर चले जाते हैं। तुम लोग तो अखबारें पढ़ते नहीं हो, अखबारों में समाचार बहुत आते हैं। तुम बच्चों को कोई वह पढ़ना नहीं है। बाप तो कहते हैं कि कुछ भी नहीं पढ़े हो तो अच्छा है। जो कुछ भी पढ़े हो वह भूल जाओ। हमको बाप ऐसा पढ़ाते हैं जो हम सच्ची कमाई कर विश्व के मालिक बन जाते हैं। बाप कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल... यह तुम्हारे लिए है। अभी तुम बच्चे मन्दिर लायक बन रहे हो। तुमको ज्ञान सागर बाप मिला है तो उनका ही सुनना पड़े। दूसरे की तुमको क्या सुनने की दरकार है। मनुष्य टीचर के पास, गुरू के पास जाते हैं तो गुरू कभी ऐसे कहते हैं क्या कि काम विकार में नहीं जाओ। वह तो पावन बनने की शिक्षा देते नहीं। कोई को वैराग्य आता है तो वह घरबार छोड़ भाग जाते हैं। बाप जो शिवाचार्य है वह ज्ञान का कलष तुम माताओं के सिर पर रखते हैं। बाकी इस पतित दुनिया में लक्ष्मी कहाँ से आई। लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में होते हैं। अभी शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं। शिवाचार्य वाच ब्रह्मा मुख से - तुम बरोबर स्वर्ग के द्वार खोलते हो तो जरूर तुम ही मालिक बनेंगे। स्वर्ग का द्वार खोलते हो गोया स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ करते हो। तुम्हारा पुरूषार्थ ही है नर्कवासी मनुष्य को स्वर्गवासी बनाना। बाप भी यह सेवा करते हैं ना-पतित से पावन बनाना, तुम्हारा भी यही धन्धा है, जो बाप का धन्धा है। आत्माओं को स्वर्गवासी बनाओ। स्वर्ग की चाहना तो सब रखते हैं ना। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। उनसे पूछना चाहिए कि जब वह स्वर्ग में गया तो फिर नर्क में बुलाकर ब्राह्मण आदि क्यों खिलाते हो। फिर तो यह अज्ञान अन्धियारा हुआ। तुम यहाँ से सूक्ष्मवतन में ले जाकर खिलाते हो क्योंकि तुम जानते हो यह पवित्र भोजन है। वह जो मर जाते हैं उनको पवित्र भोजन थोड़ेही मिलता होगा। लिखते हैं बाबा फलाने का भोग लगाओ-तो उनको पवित्र भोजन मिले। गाया हुआ है देवतायें भी ब्रह्मा भोजन को पसन्द करते हैं। बरोबर तुम्हारी महफिल सूक्ष्मवतन में लगती है। ऐसे नहीं कि ध्यान कोई अच्छा है। नहीं, योग को ध्यान नहीं कहा जाता और ध्यान को योग नहीं कहा जाता। बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे। वैकुण्ठ में जाकर रास-विलास करते हैं, वह कोई कमाई नहीं है। मुरली तो सुन नहीं सकते। यह भोग आदि तो एक रसम-रिवाज है ड्रामानुसार। मनुष्यों की रसम-रिवाज और संगमयुगी ब्राह्मणों की रसम-रिवाज में रात-दिन का फर्क है। यहाँ से जाकर सूक्ष्मवतन में खिलाते हैं। इन बातों को जब तक नये समझें नहीं तब तक संशय उठता है। हम कहेंगे ड्रामा अनुसार इसकी तकदीर में नहीं है तो संशय पड़ा और चला गया। फिकर की बात नहीं, इनकी तकदीर में नहीं था। पहली बात भूल जाते हैं कि हमको बाप से वर्सा लेना है। कोई बात में संशयबुद्धि बन पड़ते हैं। अरे हमारा काम है वर्से से। हम पढ़ाई फिर क्यों छोड़े। मुरली तो सुनना है ना। निराकार बाप तुमको डायरेक्शन कैसे सुनायेंगे, उनको मुख जरूर चाहिए। ब्रह्मा मुख से अथवा ब्रह्माकुमार कुमारियों से सुनना है। कोई बाहर में दूर चले जाते हैं। मुरली भी नहीं मिल सकती है तो बाप कहते हैं कोई हर्जा नहीं है। तुम याद में रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। यह बाप की श्रीमत मिली हुई है। कहाँ भी हो, तुम लड़ाई के मैदान में हो। बाप मिलेट्री वालों को भी समझाते हैं कि तुमको वह सर्विस तो करनी है, यह तो तुम्हारा धन्धा है। शहर की सम्भाल करना है। तुम पघार खाते हो, एग्रीमेंट की हुई है तो सम्भाल भी करनी है। बुद्धि में लक्ष्य तो बैठा हुआ है। बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है, वह कहते हैं बच्चे तुम मेरी याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे। शिवबाबा की याद में रहकर खाओ तो कोई ऐसी चीज होगी वह पवित्र हो जायेगी। जितना हो सके परहेज भी रखनी है। लाचारी हालत में बाबा को याद करके खाओ। इसमें ही मेहनत है। ज्ञान को युद्ध नहीं कहा जाता, याद में ही युद्ध होती है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। माया का थप्पड़ नहीं लगेगा। देह-अभिमानी नहीं बनेंगे। तुम अपने को आत्मा समझो। तुम शरीर को याद करते रहते हो, आत्मा को भूल गये हो। इसलिए पूछा जाता है-आत्मा का बाप कौन है, उनको जानते हो? उनका नाम रूप देश काल लिखो। उनमें भी वैरायटी लिखते हैं। कोई लिखते आत्मा का बाप हनूमान है, कोई क्या लिखते, कितना अज्ञान है। तो फिर समझाया जाता है-आत्मा तो है निराकार। तुम्हारा गुरू तो साकार है। निराकार का बाप साकार कैसे होगा। समझाने की प्रैक्टिस पर सारा मदार है और साथ में मैनर्स भी अच्छे चाहिए। बहुत अच्छे-अच्छे बोलने वाले हैं। दूसरे को तीर अच्छा लग जाता है। खुद में मैनर्स न होने कारण उन्नति होती नहीं। याद बहुत अच्छी चाहिए। कोई तो ज्ञान बहुत अच्छा सुनाते हैं, योग कुछ भी नहीं। ऐसे नहीं कि योग बिगर ज्ञान की धारणा नहीं हो सकती है। धारणा तो हो जाती है। समझो किसको हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं, वह तो झट बुद्धि में बैठ जायेगा। बाबा की याद का कुछ भी बुद्धि में नहीं होगा। मास-मदिरा भी खाते होंगे। यह तो एक कहानी है, वह याद पड़ना तो सहज है। हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में आ जाती है। याद की बात ही नहीं। पवित्रता की भी बात नहीं। ऐसे भी बहुत हैं। शिवबाबा को याद नहीं करते तो विकर्म विनाश होते नहीं। और ही जास्ती विकर्म करते रहते हैं। इतना भी बुद्धि काम नहीं करती कि यह विकर्म है। फरमान न मानना, यह तो बड़ा पाप है। शिवबाबा का फरमान है ना-यह करो। उनका फरमान नहीं मानेंगे तो बड़ा धोखा खायेंगे। बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाना तो बड़ा सहज है। बाबा ने समझाया है तुम स्कूलों में भी जाकर समझा सकते हो। यह तुम हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हो। बेहद की तो तुम पढ़ते नहीं हो। लक्ष्मी-नारायण का राज्य बताओ कहाँ गया? सूर्यवंशी, चन्द्रंवशी डिनायस्टी जो चली वह फिर कहाँ गई? उन्हों का राज्य किसने छीना? किसने चढ़ाई की? तुम बच्चे ही जानते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है। यह किसको भी समझाओ तो 7 रोज में बुद्धि में आ जायेगा। परन्तु मैनर्स नहीं। ऐसे नहीं कि विकार में जाने से हिस्ट्रीजॉ ग्राफी को भूल जायेंगे। सारी बात योग की मुख्य है। योग में ही माया धोखा देती है। तुमको सर्वगुण सम्पन्न... यहाँ ही बनना है। कई प्रतिज्ञा करके भी फिर ठहर नहीं सकते हैं। माया बड़ी प्रबल है ना। बाप को पूरा याद नहीं करते है तो विकर्म विनाश नहीं होते हैं और ही डबल विकर्म करते रहते हैं। उनको पता भी नहीं पड़ता और कहने से भी समझ नहीं सकते। तुम बच्चे जानते हो कि बाप गरीब निवाज, रहमदिल है। हम बच्चों को खास और सबको आम समझाते रहते हैं। इनपर्टाक्युलर (खास) हम सुखधाम में जाते हैं। इनजनरल (आम) मुक्तिधाम में जाते हैं। सतयुग में बरोबर इन लक्ष्मीनारा यण का ही राज्य था-फिर चन्द्रवंशी, उनके बाद इस्लामी, बौद्धी आदि आये हैं तो वह आदि सनातन धर्म गुम हो गया है। बड का झाड़ कलकत्ते में जाकर देखो, फाउन्डेशन है नहीं, सारा झाड़ खड़ा है। यह भी ऐसे है। अब फिर से स्थापना हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात में संशय उठाकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। बाप और वर्से को याद करना है।
2) एक बाप से ही सुनना है, बाकी जो पढ़ा है वह सब भूल जाना है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल...।
वरदान: क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव
जो प्रसन्नचित आत्मायें हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी। यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या? प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा ही होना है। वे कभी क्या, क्यों, ऐसा- वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।
स्लोगन: स्वयं को मेहमान समझकर हर कर्म करो तो महान और महिमा योग्य बन जायेंगे।
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Mithe bacche - Jitna samay mile sachchi kamayi karo, chalte firte karm karte Baap ki yaad me rehna he sachchi kamayi ka aadhar hai, isme koi takleef nahi.
Q- Jin baccho me gyan ki parakastha hogi, unki nishaani sunao?
A- Jinme gyan ki parakastha hogi unki sab karmendriya sital ho jayengi. Chanchalta samapt ho jayegi. Avastha ek ras ho jayegi. Manners sudharte jayenge.
Q- Shiv Baba ki yaad buddhi me yathart nahi hai to result kya hogi?
A- Koi na koi bikarm zaroor hoga. Buddhi itna bhi kaam nahi karegi ki humare dwara koi bikarm ho raha hai. Baap ka farmaan na manne ke kaaran dhoka khaate rahenge.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Kisi bhi baat me sansay uthakar padhai nahi chhodni hai. Baap aur varshe ko yaad karna hai.
2) Ek Baap se he sunna hai, baki jo padha hai wo sab bhool jana hai. Hear no evil, see no evil, talk no evil......
Vardaan:-Kya, kyun, aise aur waise ke sabhi prashno se paar rehne wale sada Prasannachit bhava.
Slogan:- Swayang ko mehmaan samajhkar har karm karo to mahan aur mahima yogya ban jayenge.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
12-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - जितना समय मिले सच्ची कमाई करो, चलते फिरते कर्म करते बाप की याद में रहना ही सच्ची कमाई का आधार है, इसमें कोई तकलीफ नहीं”
प्रश्न: जिन बच्चों में ज्ञान की पराकाष्ठा होगी, उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर: जिनमें ज्ञान की पराकाष्ठा होगी उनकी सब कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जायेंगी। चंचलता समाप्त हो जायेगी। अवस्था एकरस हो जायेगी। मैनर्स सुधरते जायेंगे।
प्रश्न: शिवबाबा की याद बुद्धि में यथार्थ नहीं है तो रिजल्ट क्या होगी?
उत्तर: कोई न कोई विकर्म जरूर होगा। बुद्धि इतना भी काम नहीं करेगी कि हमारे द्वारा कोई विकर्म हो रहा है। बाप का फरमान न मानने के कारण धोखा खाते रहेंगे।
गीत: आखिर वह दिन आया आज... ओम् शान्ति।
बच्चों को खातिरी हो गई है कि बेहद का बाप आया हुआ है। कृष्ण को बेहद का बाप नहीं कहेंगे। यह गीत तो यहाँ के नाटक वालों ने बनाये हुए हैं। महाराजाधिराज कृष्ण के लिए कहते हैं। बाप कहते हैं मैं तो नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ। तो इन गीतों से भी कुछ न कुछ अच्छा अर्थ निकलता है। बेहद का बाप गरीब निवाज जरूर है, जिस भारत को साहूकार बनाते हैं वह भारत अब गरीब बन गया है। भारत में ही उनका जन्म होता है और कहीं उनका जन्म गाया हुआ नहीं है। भले पूजा करते हैं, कोई भी नेशन में यह चित्र हैं परन्तु जन्म तो यहाँ होता है ना। जैसे क्राइस्ट का जन्म और कोई जगह है परन्तु चित्र तो यहाँ भी हैं ना। तो भारत को गॉड फादर का बर्थ प्लेस कहेंगे। मनुष्य तो कुछ समझते नहीं। वह तो ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते हैं। आगे तुमको भी पता नहीं था। अभी जानते हो कि भारत पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थप्लेस है। मनुष्य तो समझते हैं कि परमात्मा तो जन्म-मरण से न्यारा है। हाँ, मरण से बेशक न्यारा है क्योंकि उनका अपना शरीर तो है नहीं। बाकी जन्म तो होता है ना। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, मेरा दिव्य जन्म है और मनुष्य तो गर्भ में प्रवेश कर फिर छोटे से बड़े बनते हैं। मैं ऐसा नहीं बनता हूँ। हाँ, कृष्ण माँ के गर्भ में जाते हैं। छोटे से बड़ा बनते हैं। हर एक आत्मा अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश कर जन्म लेती है। यह मनुष्य मात्र की बात है। मनुष्य ही कंगाल, मनुष्य ही सिरताज बनते हैं। भारत सतयुग आदि में डबल सिरताज था। पवित्रता की निशानी रहती है। पवित्रता का ताज और रतन जडित ताज था ना। पवित्रता गुम हो जाने के बाद सिर्फ एक ताज रहता है। विश्व का मालिक थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते एक ताज गुम हो गया। फिर सिंगल ताज वाले बने। यह ज्ञान की बातें हैं। पूज्य से पुजारी बनने के कारण एक ताज गुम हो जाता है। राजायें पतित होते आये हैं और जो पावन राजायें सूर्यवंशी चन्द्रवंशी पास्ट हो गये हैं, उनके चित्रों की पूजा करते आये हैं। जो पवित्र पूज्य थे वही फिर पुजारी बने हैं। उनको ही 84 जन्म भोगने पड़ते हैं। जो भारत कल पूज्य था सो अब पुजारी बना है। फिर पुजारी गरीब से पूज्य साहूकार बनना है। अब तो कितना गरीब है। कहाँ हेविन के महल थे, मन्दिर के ऊपर भी कितने हीरे जवाहरात जड़े हुए थे। तो वे अपना महल तो और ही अच्छा बनाते होंगे ना। अभी तो कितना गरीब है। गरीब से साहूकार अभी तुम फिर बनते हो। पुरूषार्थ तुम बच्चों को करना है। युक्तियाँ रोज बतलाते हैं। जितना टाइम फुर्सत मिले यह याद की कमाई करनी है। ऐसे बहुत काम होते हैं जिनमें बुद्धि नहीं लगानी होती है। कोई- कोई में बुद्धि लगानी पड़ती है। तो जब फुर्सत मिलती है, घूमने फिरने जाते हो तो बाप की याद में रहो। यह कमाई बहुत करनी है। यह है सच्ची कमाई। बाकी तो वह है अल्पकाल के लिए झूठी कमाई। यह शिक्षा तुम बच्चों को अभी ही मिलती है। तुम जानते हो कि हमको बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है, इसमें कोई भी तकलीफ नहीं है। घरबार भी नहीं छुड़ाते हैं। सिर्फ कहते हैं बच्चे विकार में नहीं जाना है। इस पर ही अक्सर करके झगड़ा चलता है। और सतसंगों में ऐसे झगड़े थोड़ेही होते हैं। वहाँ तो जो सुनाया वह सत-सत कहकर चले जाते हैं। झगड़ा यहाँ होता है। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न जरूर पड़ेंगे। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। जैसे द्रोपदी को भी दिखाते हैं-पुकारा है कि बाबा हमें यह नंगन करते हैं, इनसे बचाओ। बाप की तो शिक्षा है कि कभी भी नंगन नहीं होना है। जब एकरस अवस्था हो जाए तब यह कर्मेन्द्रियां शीतल हों, तब तक कोई न कोई चंचलता चलती रहेगी। जब तक ज्ञान की पराकाष्ठा हो-बुद्धि में यह ख्याल रहे कि हमको कम्पेनियन हो रहना है। विलायत में बहुत बूढ़े वानप्रस्थी होते हैं। समझते हैं पिछाड़ी में कौन मालिक बनेंगे, बाल बच्चे तो हैं नहीं, इसलिए पिछाड़ी में कम्पेनियन बना लेते हैं। फिर भी कुछ उनको देकर चले जाते हैं। तुम लोग तो अखबारें पढ़ते नहीं हो, अखबारों में समाचार बहुत आते हैं। तुम बच्चों को कोई वह पढ़ना नहीं है। बाप तो कहते हैं कि कुछ भी नहीं पढ़े हो तो अच्छा है। जो कुछ भी पढ़े हो वह भूल जाओ। हमको बाप ऐसा पढ़ाते हैं जो हम सच्ची कमाई कर विश्व के मालिक बन जाते हैं। बाप कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल... यह तुम्हारे लिए है। अभी तुम बच्चे मन्दिर लायक बन रहे हो। तुमको ज्ञान सागर बाप मिला है तो उनका ही सुनना पड़े। दूसरे की तुमको क्या सुनने की दरकार है। मनुष्य टीचर के पास, गुरू के पास जाते हैं तो गुरू कभी ऐसे कहते हैं क्या कि काम विकार में नहीं जाओ। वह तो पावन बनने की शिक्षा देते नहीं। कोई को वैराग्य आता है तो वह घरबार छोड़ भाग जाते हैं। बाप जो शिवाचार्य है वह ज्ञान का कलष तुम माताओं के सिर पर रखते हैं। बाकी इस पतित दुनिया में लक्ष्मी कहाँ से आई। लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में होते हैं। अभी शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं। शिवाचार्य वाच ब्रह्मा मुख से - तुम बरोबर स्वर्ग के द्वार खोलते हो तो जरूर तुम ही मालिक बनेंगे। स्वर्ग का द्वार खोलते हो गोया स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ करते हो। तुम्हारा पुरूषार्थ ही है नर्कवासी मनुष्य को स्वर्गवासी बनाना। बाप भी यह सेवा करते हैं ना-पतित से पावन बनाना, तुम्हारा भी यही धन्धा है, जो बाप का धन्धा है। आत्माओं को स्वर्गवासी बनाओ। स्वर्ग की चाहना तो सब रखते हैं ना। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। उनसे पूछना चाहिए कि जब वह स्वर्ग में गया तो फिर नर्क में बुलाकर ब्राह्मण आदि क्यों खिलाते हो। फिर तो यह अज्ञान अन्धियारा हुआ। तुम यहाँ से सूक्ष्मवतन में ले जाकर खिलाते हो क्योंकि तुम जानते हो यह पवित्र भोजन है। वह जो मर जाते हैं उनको पवित्र भोजन थोड़ेही मिलता होगा। लिखते हैं बाबा फलाने का भोग लगाओ-तो उनको पवित्र भोजन मिले। गाया हुआ है देवतायें भी ब्रह्मा भोजन को पसन्द करते हैं। बरोबर तुम्हारी महफिल सूक्ष्मवतन में लगती है। ऐसे नहीं कि ध्यान कोई अच्छा है। नहीं, योग को ध्यान नहीं कहा जाता और ध्यान को योग नहीं कहा जाता। बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे। वैकुण्ठ में जाकर रास-विलास करते हैं, वह कोई कमाई नहीं है। मुरली तो सुन नहीं सकते। यह भोग आदि तो एक रसम-रिवाज है ड्रामानुसार। मनुष्यों की रसम-रिवाज और संगमयुगी ब्राह्मणों की रसम-रिवाज में रात-दिन का फर्क है। यहाँ से जाकर सूक्ष्मवतन में खिलाते हैं। इन बातों को जब तक नये समझें नहीं तब तक संशय उठता है। हम कहेंगे ड्रामा अनुसार इसकी तकदीर में नहीं है तो संशय पड़ा और चला गया। फिकर की बात नहीं, इनकी तकदीर में नहीं था। पहली बात भूल जाते हैं कि हमको बाप से वर्सा लेना है। कोई बात में संशयबुद्धि बन पड़ते हैं। अरे हमारा काम है वर्से से। हम पढ़ाई फिर क्यों छोड़े। मुरली तो सुनना है ना। निराकार बाप तुमको डायरेक्शन कैसे सुनायेंगे, उनको मुख जरूर चाहिए। ब्रह्मा मुख से अथवा ब्रह्माकुमार कुमारियों से सुनना है। कोई बाहर में दूर चले जाते हैं। मुरली भी नहीं मिल सकती है तो बाप कहते हैं कोई हर्जा नहीं है। तुम याद में रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। यह बाप की श्रीमत मिली हुई है। कहाँ भी हो, तुम लड़ाई के मैदान में हो। बाप मिलेट्री वालों को भी समझाते हैं कि तुमको वह सर्विस तो करनी है, यह तो तुम्हारा धन्धा है। शहर की सम्भाल करना है। तुम पघार खाते हो, एग्रीमेंट की हुई है तो सम्भाल भी करनी है। बुद्धि में लक्ष्य तो बैठा हुआ है। बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है, वह कहते हैं बच्चे तुम मेरी याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे। शिवबाबा की याद में रहकर खाओ तो कोई ऐसी चीज होगी वह पवित्र हो जायेगी। जितना हो सके परहेज भी रखनी है। लाचारी हालत में बाबा को याद करके खाओ। इसमें ही मेहनत है। ज्ञान को युद्ध नहीं कहा जाता, याद में ही युद्ध होती है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। माया का थप्पड़ नहीं लगेगा। देह-अभिमानी नहीं बनेंगे। तुम अपने को आत्मा समझो। तुम शरीर को याद करते रहते हो, आत्मा को भूल गये हो। इसलिए पूछा जाता है-आत्मा का बाप कौन है, उनको जानते हो? उनका नाम रूप देश काल लिखो। उनमें भी वैरायटी लिखते हैं। कोई लिखते आत्मा का बाप हनूमान है, कोई क्या लिखते, कितना अज्ञान है। तो फिर समझाया जाता है-आत्मा तो है निराकार। तुम्हारा गुरू तो साकार है। निराकार का बाप साकार कैसे होगा। समझाने की प्रैक्टिस पर सारा मदार है और साथ में मैनर्स भी अच्छे चाहिए। बहुत अच्छे-अच्छे बोलने वाले हैं। दूसरे को तीर अच्छा लग जाता है। खुद में मैनर्स न होने कारण उन्नति होती नहीं। याद बहुत अच्छी चाहिए। कोई तो ज्ञान बहुत अच्छा सुनाते हैं, योग कुछ भी नहीं। ऐसे नहीं कि योग बिगर ज्ञान की धारणा नहीं हो सकती है। धारणा तो हो जाती है। समझो किसको हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं, वह तो झट बुद्धि में बैठ जायेगा। बाबा की याद का कुछ भी बुद्धि में नहीं होगा। मास-मदिरा भी खाते होंगे। यह तो एक कहानी है, वह याद पड़ना तो सहज है। हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में आ जाती है। याद की बात ही नहीं। पवित्रता की भी बात नहीं। ऐसे भी बहुत हैं। शिवबाबा को याद नहीं करते तो विकर्म विनाश होते नहीं। और ही जास्ती विकर्म करते रहते हैं। इतना भी बुद्धि काम नहीं करती कि यह विकर्म है। फरमान न मानना, यह तो बड़ा पाप है। शिवबाबा का फरमान है ना-यह करो। उनका फरमान नहीं मानेंगे तो बड़ा धोखा खायेंगे। बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाना तो बड़ा सहज है। बाबा ने समझाया है तुम स्कूलों में भी जाकर समझा सकते हो। यह तुम हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हो। बेहद की तो तुम पढ़ते नहीं हो। लक्ष्मी-नारायण का राज्य बताओ कहाँ गया? सूर्यवंशी, चन्द्रंवशी डिनायस्टी जो चली वह फिर कहाँ गई? उन्हों का राज्य किसने छीना? किसने चढ़ाई की? तुम बच्चे ही जानते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है। यह किसको भी समझाओ तो 7 रोज में बुद्धि में आ जायेगा। परन्तु मैनर्स नहीं। ऐसे नहीं कि विकार में जाने से हिस्ट्रीजॉ ग्राफी को भूल जायेंगे। सारी बात योग की मुख्य है। योग में ही माया धोखा देती है। तुमको सर्वगुण सम्पन्न... यहाँ ही बनना है। कई प्रतिज्ञा करके भी फिर ठहर नहीं सकते हैं। माया बड़ी प्रबल है ना। बाप को पूरा याद नहीं करते है तो विकर्म विनाश नहीं होते हैं और ही डबल विकर्म करते रहते हैं। उनको पता भी नहीं पड़ता और कहने से भी समझ नहीं सकते। तुम बच्चे जानते हो कि बाप गरीब निवाज, रहमदिल है। हम बच्चों को खास और सबको आम समझाते रहते हैं। इनपर्टाक्युलर (खास) हम सुखधाम में जाते हैं। इनजनरल (आम) मुक्तिधाम में जाते हैं। सतयुग में बरोबर इन लक्ष्मीनारा यण का ही राज्य था-फिर चन्द्रवंशी, उनके बाद इस्लामी, बौद्धी आदि आये हैं तो वह आदि सनातन धर्म गुम हो गया है। बड का झाड़ कलकत्ते में जाकर देखो, फाउन्डेशन है नहीं, सारा झाड़ खड़ा है। यह भी ऐसे है। अब फिर से स्थापना हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात में संशय उठाकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। बाप और वर्से को याद करना है।
2) एक बाप से ही सुनना है, बाकी जो पढ़ा है वह सब भूल जाना है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल...।
वरदान: क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव
जो प्रसन्नचित आत्मायें हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी। यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या? प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा ही होना है। वे कभी क्या, क्यों, ऐसा- वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।
स्लोगन: स्वयं को मेहमान समझकर हर कर्म करो तो महान और महिमा योग्य बन जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 13th Sep 2017 )
13.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap dwara tumhe right path (sachcha rasta) mila hai, isiliye koi bhi oolte karm wa bikarm nahi karne hain
Q- Is samay manushya jo bhi sankalp karte hain, wo bikalp he banta hai - kyun?
A- Kyunki buddhi me right aur wrong ki samajh nahi hai. Maya ne buddhi ko taala laga diya hai. Baap jab tak na aaye, satya pehechan na de tab tak har sankalp, bikalp he hota hai. Maya ke rajya me bhal Bhagwan ko yaad karne ka sankalp karte hain parantu yathart pehechante nahi hai isiliye wo bhi wrong ho jata hai. Yah sab samajhne ki bahut mahin baatein hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ne buddhi ka taala khola hai isiliye karmendriyon se koi bhi wrong karm nahi karna hai. Dhyan rakhna hai koi bhi sankalp, bikalp ka roop na le le.
2) Ab wapis ghar chalna hai isiliye is deha ko bhi bhoolna hai. Dukhdham se buddhi yog nikaal Baap aur varshe ko yaad karna hai.
Vardaan:-- Silence ki shakti se burayi ko achchayi me badalne wale Subh Bhavana Sampann bhava.
Slogan:- Sahansilta ka goon dharan karo to kathor sanskar bhi sital ho jayenge.
“मीठे बच्चे - बाप द्वारा तुम्हें राइट पथ (सच्चा रास्ता) मिला है, इसलिए कोई भी उल्टे कर्म वा विकर्म नहीं करने हैं”
प्रश्न: इस समय मनुष्य जो भी संकल्प करते हैं, वह विकल्प ही बनता है - क्यों?
उत्तर: क्योंकि बुद्धि में राइट और रांग की समझ नहीं है। माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है। बाप जब तक न आये, सत्य पहचान न दे तब तक हर संकल्प, विकल्प ही होता है। माया के राज्य में भल भगवान को याद करने का संकल्प करते हैं परन्तु यथार्थ पहचानते नहीं हैं इसलिए वह भी रांग हो जाता है। यह सब समझने की बहुत महीन बातें हैं।
गीत: ओम् नमो शिवाए... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। गीत का अर्थ यथार्थ बुद्धि में आया। वह जो गाते हैं उनका अर्थ नहीं जानते। तुम प्रैक्टिकल अर्थ भी जानते हो और पुरूषार्थ भी कर रहे हो, बाप द्वारा क्योंकि अब सम्मुख सहायक है। सहायक बनते तब हैं जब भारी भीड़ आती है। तुम बच्चे जानते हो गुप्त रीति सहायक है - सब मनुष्य मात्र का। बल्कि जो भी इस पुरानी दुनिया में हैं, अनेक प्रकार की योनियाँ भी हैं ना। अनेक प्रकार के जानवर हैं। सतयुग में तो कोई अशुद्ध चीज जानवर आदि नहीं होंगे। यह ड्रामा बना हुआ है। साहूकार के पास मकान, फर्निचर आदि जरूर ऊंचे होंगे। गरीब के पास क्या होगा। यह तुम समझते हो ना। अभी भी पुरानी दुनिया रावणराज्य है, तो जीव जन्तु नाग बलाए सब नुकसान करने वाले हैं। जैसे मनुष्य तमोप्रधान वैसे इनकी सामग्री भी तमोप्रधान। भल यहाँ कितने भी बड़े-बड़े मकान 40 मंजिल के भी बनाते तो भी स्वर्ग के आगे तो कुछ भी नहीं हैं। यह अब बनते हैं विनाश के लिए। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। पहले नम्बर में बाबा आत्मा और परमात्मा का भेद समझाते हैं। मनुष्य न तो आत्मा को और न परमात्मा को ही जानते हैं। तुम बच्चों ने जान लिया है-आत्मा और परमात्मा का रूप क्या है? मन्दिरों में पूजा होती है-बनारस में बड़ा लिंग रखा हुआ है। उनकी सब पूजा करते हैं। कहते भी हैं कि आत्मा स्टार भृकुटी के बीच रहती है। अब भृकुटी के बीच बड़ी चीज हो तो ट्युमर हो जाए। यह समझने की बातें हैं। परमात्मा भी स्टार है, परन्तु तुम भूल जाते हो। जब शिवबाबा को याद करते हो तो बुद्धि में यह आना चाहिए कि बाबा स्टार है, उनमें सारा ज्ञान है। वह सत है, चैतन्य है। उनमें ही बुद्धि भी है। मन अलग चीज है, बुद्धि अलग चीज है। मन को तूफान आते हैं। सतयुग में कोई तूफान आदि आते नहीं हैं। यहाँ संकल्प-विकल्प चलते हैं। इस समय जो भी मनुष्य संकल्प उठाते हैं वह विकल्प बनता है। इन बातों को अच्छी रीति समझना है। वह हो गई सहज बात। सुखधाम, शान्तिधाम को याद करो। यह फिर सूक्ष्म समझानी दी जाती है। आत्मा इतनी जो सूक्ष्म है वह सत है, चैतन्य है। आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तब ही चुरपुर होती है। यूँ तो 5 तत्वों में भी कुछ चैतन्यता है तब तो बढ़ते हैं, परन्तु उनमें मन-बुद्धि नहीं है। उन चीजों में संकल्प आदि की बात नहीं। गर्भ में पिण्ड बढ़ता है। जैसे झाड़ बढ़ता है वैसे पिण्ड बढ़ता है, परन्तु उनमें ज्ञान नहीं। ज्ञान, भक्ति मनुष्यों के लिए है। भक्ति आत्मा करती है और ज्ञान भी आत्मा लेती है। आत्मा में ही मन-बुद्धि है, पहले मन में अच्छा वा बुरा संकल्प आता है फिर बुद्धि सोचती है-करूँ वा नहीं करूँ। जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक आत्मा जो संकल्प करती है वह विकल्प ही बनता है। भल भगवान को याद करते हैं परन्तु राइट है वा रांग है, यह भी समझते नहीं हैं। ब्रह्म तो भगवान है नहीं। मनुष्य को संकल्प उठता है कि भगवान को याद करें। बुद्धि कहती है यह राइट है, परन्तु बुद्धि का ताला बन्द है क्योंकि माया का राज्य है। भक्ति जो करते हैं वह रांग करते हैं। कृष्ण की भक्ति करते हैं, पहचान कुछ भी नहीं। जो कुछ करते हैं अनराइटियस। अब बाप द्वारा बुद्धि को अक्ल मिली है। रांग काम करने लिए मना है। कर्मेन्द्रियों से विकर्म करना मना है। बुद्धि कहती है ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है। अब बुद्धि को राइट पथ मिला है। तुमको हर बात की सही समझ मिली है। आगे जो कुछ करते थे वह रांग ही करते थे, भक्ति भी अनराइटियस करते थे। शिव की भक्ति करते हैं, बड़ा लिंग बनाते हैं, परन्तु इतना बड़ा शिवबाबा थोड़ेही है। अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तब समझते हो सब अनराइटियस है। है ही झूठी दुनिया। सतयुग है सच्ची दुनिया। उसकी स्थापना किसने की? ट्रुथ एक बाप को ही कहा जाता है। वह जो सुनाते हैं, सब सत। सच बोलते हैं सचखण्ड स्थापना करते हैं। यह डीटेल की बड़ी महीन बातें हैं। कोई भी यह समझ न सके। बहुत महीनता में जाना पड़ता है। बाप कहते हैं, धारणा नहीं होती है तो बाप और वर्से को याद करो। दु:खधाम को भूल जाओ। मनुष्य नया मकान बनाते हैं तो बुद्धियोग पुराने मकान से निकल नये में लग जाता है। समझते हैं कि पुराना तो खत्म हो ही जायेगा। यह फिर है बेहद की बात। देह सहित जो कुछ है-सब छोड़ना है। यह देह भी तो वापिस नहीं जानी है। आत्मा को ही बाप के पास वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। मैं जो हूँ, जैसा हूँ। तुम्हारी आत्मा में भी कैसे पार्ट भरा हुआ है। 84 जन्मों का पार्ट, कितनी छोटी सी आत्मा में भरा हुआ है। 84 लाख जन्मों का पार्ट तो इम्पासिबुल हो जाए। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला बाप ने खोला है तो समझते हो वह सब रांग है। इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, बाप राइट बात बताते हैं। बाप बच्चों से ही बात करते हैं। नॉलेजफुल है ना। कहते हैं यह आई.सी.एस. पढ़ा हुआ है। आत्मा ही पढ़ती है, इन आरगन्स द्वारा। भल बहुत धनवान बड़ा आदमी बनते हैं फिर भी रोगी, बीमार तो होते हैं ना। ऐसे नहीं कि बड़े आदमियों की आयु भी बड़ी होती है। बड़े आदमी जितना पाप करते हैं उतना गरीब नहीं करते हैं। इस दुनिया में तो पाप ही पाप होते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। हर बात में पाप ही करते हैं। ब्राह्मण खिलाते हैं, यह भी पतित को खिलाते हैं ना। पतित को खिलाने से कोई पुण्य थोड़ेही होगा। अभी तुम रीयल्टी में पावन बनते हो। सन्यासी भल पावन बनते हैं परन्तु वह कोई पावन दुनिया में तो जाने वाले नहीं हैं, फिर भी पुनर्जन्म तो पतित दुनिया में ही लेंगे। तुम थोड़ेही पतित दुनिया में जन्म लेंगे। वह समझते हैं कि दुनिया की आयु अजुन बहुत बड़ी है। जब तक विनाश हो तब तक पुनर्जन्म तो लेना ही पड़े ना। छूट नहीं सकते। तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। तुम जानते हो कि हम पवित्र दुनिया में जाने वाले हैं। बाप बैठ समझाते हैं-बच्चे तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में थे तो देवता थे, फिर इतने पुनर्जन्म लेते आये हो। तुम अपने पुनर्जन्म को नहीं जानते हो। यह कोई एक को थोड़ेही पढ़ाया जाता है। अनेक पढ़ते हैं। बाप ब्राह्मण बच्चों से ही बात करते हैं। शूद्र इन बातों को समझेंगे नहीं। पहले सात रोज समझाकर ब्राह्मण बनाओ, जो समझें हम शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। इस पढ़ाई से तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो। यह है ब्रह्मा मुख वंशावली। प्रजापिता ब्रह्मा के सब बच्चे हैं। उनको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। ब्रह्मा को हमेशा बड़ा बूढ़ा दिखाते हैं। जैसे क्राइस्ट है, क्रिश्चियन लोग पुनर्जन्म तो लेते आते हैं। ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड क्राइस्ट। परन्तु वह शिवबाबा तो निराकार है, उनको सिर्फ फादर कहेंगे। वह है ही निराकार। उनको गॉड फादर कहते हैं। उनका कोई फादर नहीं, गुरू भी नहीं क्योंकि वह सतगुरू है तब वे गुरू लोग कौन हैं। वह जिस्मानी यात्रा करते हैं, हम रूहानी यात्रा करते हैं। यहाँ कोई मरते हैं, कहेंगे स्वर्ग पधारा। तो यह झूठ बोला ना। आते तो फिर भी यहाँ ही हैं। कोई कहते फलाना ज्योति-ज्योत समाया। अच्छा बड़े-बड़े साधू सन्त मर जाते हैं, अगर वह ज्योति ज्योत जाकर समाया फिर उनकी बरसी क्यों मनाते हो? ज्योति में समाया वह तो बड़ा अच्छा हुआ फिर बरसी मनाना, उनको खिलाना, पिलाना यह तो फिर झूठा हुआ ना। वैकुण्ठवासी हो गया फिर उनको नर्क का भोजन खिलाते हो। इसको कहा जाता है-अनराइटियस। जो कुछ करते हैं उल्टा ही करते हैं। मनुष्यों की बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है। बाप कहते हैं मैं आकर ताला खोलता हूँ। माया ताला लगा देती है। कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। समझते हैं यह ज्ञान परम्परा से चला आता है। इन बिचारों को कुछ भी पता नहीं है। ज्ञान और भक्ति। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात - दोनों इक्वल होता है ना। फिर सतयुग दिन की इतनी बड़ी आयु और रात को इतना छोटा क्यों कर दिया है। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात दोनों इक्वल होने चाहिए ना। यह बेहद की बात है। बाप आकर सब बातें समझाते हैं। बाप को ही ज्ञान रत्नों का सागर कहा जाता है। एक-एक रत्न की वैल्यु लाखों रूपया है। बाप बच्चों को समझाते हैं-कल की बात है। तुमको समझाकर राज्य-भाग्य देकर गया था। तुमने राज्य किया अब गँवा दिया है। कल तुमको राजाई थी, आज है नहीं, फिर लो। आज और कल की बात है। भारत कल स्वर्ग था। भारत में ही शिव जयन्ती मनाते हैं, जरूर शिवबाबा आया होगा। अब फिर से आया है। तुमको राज्य भाग्य दे रहे हैं। अब तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो। तुम एक्टर्स ने बेहद के ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जाना है अर्थात् त्रिकालदर्शी बने हो। बाप कहते हैं कि मीठे-मीठे बच्चे मुझ बाप को याद करो। भूलो नहीं। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। तुम नर्क के मालिक बनाने वालों को भूलते नहीं हो और मुझ बाप को भूल जाते हो? माया जरूर भुलायेगी। परन्तु तुम कोशिश करो याद में रहने की। आत्मा को बाप ज्ञान देते हैं। आत्मा का काम है बाप से वर्सा लेना। देह-अभिमान छोड़ना है। तुम बच्चों को पुरूषार्थ कराने वाला एक बाप है। यह पाठशाला है, इसमें दर्शन करने की बात नहीं रहती। प्रिन्सीपाल का दर्शन करना होता है क्या? यह तो समझने की बात है। यह राजयोग की पाठशाला है, आकर समझो। पहले-पहले समझानी देनी है एक बाप की, तब तक आगे बढ़ना ही नहीं है। बाप की समझानी दे फिर लिखवा लेना चाहिए। निश्चय बैठ जाए कि शिवबाबा से बेहद का वर्सा मिलता है तो ऐसे बाप से मिलने बिगर रह न सकें। त्रिमूर्ति शिव कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला शिव। प्रजापिता जरूर ब्रह्मा को ही कहेंगे। विष्णु वा शंकर को नहीं कहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है। जगत पिता और यह जगत अम्बा फिर लक्ष्मी-नारायण जाकर बनते हैं। उनके बच्चे वारिस बनते हैं। बाकी त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो अर्थ ही नहीं निकलता। इनमें बाप ने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा को बाप पवित्र बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप ने बुद्धि का ताला खोला है इसलिए कर्मेन्द्रियों से कोई भी रांग कर्म नहीं करना है। ध्यान रखना है कोई भी संकल्प, विकल्प का रूप न ले ले।
2) अब वापिस घर चलना है इसलिए इस देह को भी भूलना है। दु:खधाम से बुद्धियोग निकाल बाप और वर्से को याद करना है।
वरदान: साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में बदलने वाले शुभ भावना सम्पन्न भव
जैसे साइन्स के साधन से खराब माल को भी परिवर्तन कर अच्छी चीज बना देते हैं। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से बुरी बात वा बुरे संबंध को बुराई से अच्छाई में परिवर्तन कर दो। ऐसे शुभ भावना सम्पन्न बन जाओ जो आपके श्रेष्ठ संकल्प से अन्य आत्मायें भी बुराई को बदल अच्छाई धारण कर लें। नॉलेजफुल के हिसाब से राइट रांग को जानना अलग बात है लेकिन स्वयं में बुराई को बुराई के रूप में धारण करना गलत है, इसलिए बुराई को देखते, जानते भी उसे अच्छाई में बदल दो।
स्लोगन: सहनशीलता का गुण धारण करो तो कठोर संस्कार भी शीतल हो जायेंगे।
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Mithe bacche - Baap dwara tumhe right path (sachcha rasta) mila hai, isiliye koi bhi oolte karm wa bikarm nahi karne hain
Q- Is samay manushya jo bhi sankalp karte hain, wo bikalp he banta hai - kyun?
A- Kyunki buddhi me right aur wrong ki samajh nahi hai. Maya ne buddhi ko taala laga diya hai. Baap jab tak na aaye, satya pehechan na de tab tak har sankalp, bikalp he hota hai. Maya ke rajya me bhal Bhagwan ko yaad karne ka sankalp karte hain parantu yathart pehechante nahi hai isiliye wo bhi wrong ho jata hai. Yah sab samajhne ki bahut mahin baatein hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ne buddhi ka taala khola hai isiliye karmendriyon se koi bhi wrong karm nahi karna hai. Dhyan rakhna hai koi bhi sankalp, bikalp ka roop na le le.
2) Ab wapis ghar chalna hai isiliye is deha ko bhi bhoolna hai. Dukhdham se buddhi yog nikaal Baap aur varshe ko yaad karna hai.
Vardaan:-- Silence ki shakti se burayi ko achchayi me badalne wale Subh Bhavana Sampann bhava.
Slogan:- Sahansilta ka goon dharan karo to kathor sanskar bhi sital ho jayenge.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
13-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप द्वारा तुम्हें राइट पथ (सच्चा रास्ता) मिला है, इसलिए कोई भी उल्टे कर्म वा विकर्म नहीं करने हैं”
प्रश्न: इस समय मनुष्य जो भी संकल्प करते हैं, वह विकल्प ही बनता है - क्यों?
उत्तर: क्योंकि बुद्धि में राइट और रांग की समझ नहीं है। माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है। बाप जब तक न आये, सत्य पहचान न दे तब तक हर संकल्प, विकल्प ही होता है। माया के राज्य में भल भगवान को याद करने का संकल्प करते हैं परन्तु यथार्थ पहचानते नहीं हैं इसलिए वह भी रांग हो जाता है। यह सब समझने की बहुत महीन बातें हैं।
गीत: ओम् नमो शिवाए... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना। गीत का अर्थ यथार्थ बुद्धि में आया। वह जो गाते हैं उनका अर्थ नहीं जानते। तुम प्रैक्टिकल अर्थ भी जानते हो और पुरूषार्थ भी कर रहे हो, बाप द्वारा क्योंकि अब सम्मुख सहायक है। सहायक बनते तब हैं जब भारी भीड़ आती है। तुम बच्चे जानते हो गुप्त रीति सहायक है - सब मनुष्य मात्र का। बल्कि जो भी इस पुरानी दुनिया में हैं, अनेक प्रकार की योनियाँ भी हैं ना। अनेक प्रकार के जानवर हैं। सतयुग में तो कोई अशुद्ध चीज जानवर आदि नहीं होंगे। यह ड्रामा बना हुआ है। साहूकार के पास मकान, फर्निचर आदि जरूर ऊंचे होंगे। गरीब के पास क्या होगा। यह तुम समझते हो ना। अभी भी पुरानी दुनिया रावणराज्य है, तो जीव जन्तु नाग बलाए सब नुकसान करने वाले हैं। जैसे मनुष्य तमोप्रधान वैसे इनकी सामग्री भी तमोप्रधान। भल यहाँ कितने भी बड़े-बड़े मकान 40 मंजिल के भी बनाते तो भी स्वर्ग के आगे तो कुछ भी नहीं हैं। यह अब बनते हैं विनाश के लिए। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। पहले नम्बर में बाबा आत्मा और परमात्मा का भेद समझाते हैं। मनुष्य न तो आत्मा को और न परमात्मा को ही जानते हैं। तुम बच्चों ने जान लिया है-आत्मा और परमात्मा का रूप क्या है? मन्दिरों में पूजा होती है-बनारस में बड़ा लिंग रखा हुआ है। उनकी सब पूजा करते हैं। कहते भी हैं कि आत्मा स्टार भृकुटी के बीच रहती है। अब भृकुटी के बीच बड़ी चीज हो तो ट्युमर हो जाए। यह समझने की बातें हैं। परमात्मा भी स्टार है, परन्तु तुम भूल जाते हो। जब शिवबाबा को याद करते हो तो बुद्धि में यह आना चाहिए कि बाबा स्टार है, उनमें सारा ज्ञान है। वह सत है, चैतन्य है। उनमें ही बुद्धि भी है। मन अलग चीज है, बुद्धि अलग चीज है। मन को तूफान आते हैं। सतयुग में कोई तूफान आदि आते नहीं हैं। यहाँ संकल्प-विकल्प चलते हैं। इस समय जो भी मनुष्य संकल्प उठाते हैं वह विकल्प बनता है। इन बातों को अच्छी रीति समझना है। वह हो गई सहज बात। सुखधाम, शान्तिधाम को याद करो। यह फिर सूक्ष्म समझानी दी जाती है। आत्मा इतनी जो सूक्ष्म है वह सत है, चैतन्य है। आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तब ही चुरपुर होती है। यूँ तो 5 तत्वों में भी कुछ चैतन्यता है तब तो बढ़ते हैं, परन्तु उनमें मन-बुद्धि नहीं है। उन चीजों में संकल्प आदि की बात नहीं। गर्भ में पिण्ड बढ़ता है। जैसे झाड़ बढ़ता है वैसे पिण्ड बढ़ता है, परन्तु उनमें ज्ञान नहीं। ज्ञान, भक्ति मनुष्यों के लिए है। भक्ति आत्मा करती है और ज्ञान भी आत्मा लेती है। आत्मा में ही मन-बुद्धि है, पहले मन में अच्छा वा बुरा संकल्प आता है फिर बुद्धि सोचती है-करूँ वा नहीं करूँ। जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक आत्मा जो संकल्प करती है वह विकल्प ही बनता है। भल भगवान को याद करते हैं परन्तु राइट है वा रांग है, यह भी समझते नहीं हैं। ब्रह्म तो भगवान है नहीं। मनुष्य को संकल्प उठता है कि भगवान को याद करें। बुद्धि कहती है यह राइट है, परन्तु बुद्धि का ताला बन्द है क्योंकि माया का राज्य है। भक्ति जो करते हैं वह रांग करते हैं। कृष्ण की भक्ति करते हैं, पहचान कुछ भी नहीं। जो कुछ करते हैं अनराइटियस। अब बाप द्वारा बुद्धि को अक्ल मिली है। रांग काम करने लिए मना है। कर्मेन्द्रियों से विकर्म करना मना है। बुद्धि कहती है ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है। अब बुद्धि को राइट पथ मिला है। तुमको हर बात की सही समझ मिली है। आगे जो कुछ करते थे वह रांग ही करते थे, भक्ति भी अनराइटियस करते थे। शिव की भक्ति करते हैं, बड़ा लिंग बनाते हैं, परन्तु इतना बड़ा शिवबाबा थोड़ेही है। अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तब समझते हो सब अनराइटियस है। है ही झूठी दुनिया। सतयुग है सच्ची दुनिया। उसकी स्थापना किसने की? ट्रुथ एक बाप को ही कहा जाता है। वह जो सुनाते हैं, सब सत। सच बोलते हैं सचखण्ड स्थापना करते हैं। यह डीटेल की बड़ी महीन बातें हैं। कोई भी यह समझ न सके। बहुत महीनता में जाना पड़ता है। बाप कहते हैं, धारणा नहीं होती है तो बाप और वर्से को याद करो। दु:खधाम को भूल जाओ। मनुष्य नया मकान बनाते हैं तो बुद्धियोग पुराने मकान से निकल नये में लग जाता है। समझते हैं कि पुराना तो खत्म हो ही जायेगा। यह फिर है बेहद की बात। देह सहित जो कुछ है-सब छोड़ना है। यह देह भी तो वापिस नहीं जानी है। आत्मा को ही बाप के पास वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। मैं जो हूँ, जैसा हूँ। तुम्हारी आत्मा में भी कैसे पार्ट भरा हुआ है। 84 जन्मों का पार्ट, कितनी छोटी सी आत्मा में भरा हुआ है। 84 लाख जन्मों का पार्ट तो इम्पासिबुल हो जाए। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला बाप ने खोला है तो समझते हो वह सब रांग है। इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, बाप राइट बात बताते हैं। बाप बच्चों से ही बात करते हैं। नॉलेजफुल है ना। कहते हैं यह आई.सी.एस. पढ़ा हुआ है। आत्मा ही पढ़ती है, इन आरगन्स द्वारा। भल बहुत धनवान बड़ा आदमी बनते हैं फिर भी रोगी, बीमार तो होते हैं ना। ऐसे नहीं कि बड़े आदमियों की आयु भी बड़ी होती है। बड़े आदमी जितना पाप करते हैं उतना गरीब नहीं करते हैं। इस दुनिया में तो पाप ही पाप होते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। हर बात में पाप ही करते हैं। ब्राह्मण खिलाते हैं, यह भी पतित को खिलाते हैं ना। पतित को खिलाने से कोई पुण्य थोड़ेही होगा। अभी तुम रीयल्टी में पावन बनते हो। सन्यासी भल पावन बनते हैं परन्तु वह कोई पावन दुनिया में तो जाने वाले नहीं हैं, फिर भी पुनर्जन्म तो पतित दुनिया में ही लेंगे। तुम थोड़ेही पतित दुनिया में जन्म लेंगे। वह समझते हैं कि दुनिया की आयु अजुन बहुत बड़ी है। जब तक विनाश हो तब तक पुनर्जन्म तो लेना ही पड़े ना। छूट नहीं सकते। तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। तुम जानते हो कि हम पवित्र दुनिया में जाने वाले हैं। बाप बैठ समझाते हैं-बच्चे तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में थे तो देवता थे, फिर इतने पुनर्जन्म लेते आये हो। तुम अपने पुनर्जन्म को नहीं जानते हो। यह कोई एक को थोड़ेही पढ़ाया जाता है। अनेक पढ़ते हैं। बाप ब्राह्मण बच्चों से ही बात करते हैं। शूद्र इन बातों को समझेंगे नहीं। पहले सात रोज समझाकर ब्राह्मण बनाओ, जो समझें हम शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। इस पढ़ाई से तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो। यह है ब्रह्मा मुख वंशावली। प्रजापिता ब्रह्मा के सब बच्चे हैं। उनको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। ब्रह्मा को हमेशा बड़ा बूढ़ा दिखाते हैं। जैसे क्राइस्ट है, क्रिश्चियन लोग पुनर्जन्म तो लेते आते हैं। ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड क्राइस्ट। परन्तु वह शिवबाबा तो निराकार है, उनको सिर्फ फादर कहेंगे। वह है ही निराकार। उनको गॉड फादर कहते हैं। उनका कोई फादर नहीं, गुरू भी नहीं क्योंकि वह सतगुरू है तब वे गुरू लोग कौन हैं। वह जिस्मानी यात्रा करते हैं, हम रूहानी यात्रा करते हैं। यहाँ कोई मरते हैं, कहेंगे स्वर्ग पधारा। तो यह झूठ बोला ना। आते तो फिर भी यहाँ ही हैं। कोई कहते फलाना ज्योति-ज्योत समाया। अच्छा बड़े-बड़े साधू सन्त मर जाते हैं, अगर वह ज्योति ज्योत जाकर समाया फिर उनकी बरसी क्यों मनाते हो? ज्योति में समाया वह तो बड़ा अच्छा हुआ फिर बरसी मनाना, उनको खिलाना, पिलाना यह तो फिर झूठा हुआ ना। वैकुण्ठवासी हो गया फिर उनको नर्क का भोजन खिलाते हो। इसको कहा जाता है-अनराइटियस। जो कुछ करते हैं उल्टा ही करते हैं। मनुष्यों की बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है। बाप कहते हैं मैं आकर ताला खोलता हूँ। माया ताला लगा देती है। कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। समझते हैं यह ज्ञान परम्परा से चला आता है। इन बिचारों को कुछ भी पता नहीं है। ज्ञान और भक्ति। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात - दोनों इक्वल होता है ना। फिर सतयुग दिन की इतनी बड़ी आयु और रात को इतना छोटा क्यों कर दिया है। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात दोनों इक्वल होने चाहिए ना। यह बेहद की बात है। बाप आकर सब बातें समझाते हैं। बाप को ही ज्ञान रत्नों का सागर कहा जाता है। एक-एक रत्न की वैल्यु लाखों रूपया है। बाप बच्चों को समझाते हैं-कल की बात है। तुमको समझाकर राज्य-भाग्य देकर गया था। तुमने राज्य किया अब गँवा दिया है। कल तुमको राजाई थी, आज है नहीं, फिर लो। आज और कल की बात है। भारत कल स्वर्ग था। भारत में ही शिव जयन्ती मनाते हैं, जरूर शिवबाबा आया होगा। अब फिर से आया है। तुमको राज्य भाग्य दे रहे हैं। अब तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो। तुम एक्टर्स ने बेहद के ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जाना है अर्थात् त्रिकालदर्शी बने हो। बाप कहते हैं कि मीठे-मीठे बच्चे मुझ बाप को याद करो। भूलो नहीं। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। तुम नर्क के मालिक बनाने वालों को भूलते नहीं हो और मुझ बाप को भूल जाते हो? माया जरूर भुलायेगी। परन्तु तुम कोशिश करो याद में रहने की। आत्मा को बाप ज्ञान देते हैं। आत्मा का काम है बाप से वर्सा लेना। देह-अभिमान छोड़ना है। तुम बच्चों को पुरूषार्थ कराने वाला एक बाप है। यह पाठशाला है, इसमें दर्शन करने की बात नहीं रहती। प्रिन्सीपाल का दर्शन करना होता है क्या? यह तो समझने की बात है। यह राजयोग की पाठशाला है, आकर समझो। पहले-पहले समझानी देनी है एक बाप की, तब तक आगे बढ़ना ही नहीं है। बाप की समझानी दे फिर लिखवा लेना चाहिए। निश्चय बैठ जाए कि शिवबाबा से बेहद का वर्सा मिलता है तो ऐसे बाप से मिलने बिगर रह न सकें। त्रिमूर्ति शिव कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला शिव। प्रजापिता जरूर ब्रह्मा को ही कहेंगे। विष्णु वा शंकर को नहीं कहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है। जगत पिता और यह जगत अम्बा फिर लक्ष्मी-नारायण जाकर बनते हैं। उनके बच्चे वारिस बनते हैं। बाकी त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो अर्थ ही नहीं निकलता। इनमें बाप ने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा को बाप पवित्र बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप ने बुद्धि का ताला खोला है इसलिए कर्मेन्द्रियों से कोई भी रांग कर्म नहीं करना है। ध्यान रखना है कोई भी संकल्प, विकल्प का रूप न ले ले।
2) अब वापिस घर चलना है इसलिए इस देह को भी भूलना है। दु:खधाम से बुद्धियोग निकाल बाप और वर्से को याद करना है।
वरदान: साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में बदलने वाले शुभ भावना सम्पन्न भव
जैसे साइन्स के साधन से खराब माल को भी परिवर्तन कर अच्छी चीज बना देते हैं। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से बुरी बात वा बुरे संबंध को बुराई से अच्छाई में परिवर्तन कर दो। ऐसे शुभ भावना सम्पन्न बन जाओ जो आपके श्रेष्ठ संकल्प से अन्य आत्मायें भी बुराई को बदल अच्छाई धारण कर लें। नॉलेजफुल के हिसाब से राइट रांग को जानना अलग बात है लेकिन स्वयं में बुराई को बुराई के रूप में धारण करना गलत है, इसलिए बुराई को देखते, जानते भी उसे अच्छाई में बदल दो।
स्लोगन: सहनशीलता का गुण धारण करो तो कठोर संस्कार भी शीतल हो जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 14th Sep 2017 )
14.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Pehla nischay karo ki main aatma hun, prabruti me rehte apne ko Shiv Baba ka baccha aur potra samajhkar chalo, yahi mehnat hai
Q- Tum sab purusharthi bacche kis ek guhya raaz ko achchi tarah jaante ho?
A- Hum jaante hain ki abhi tak 16 kala sampoorn koi bhi bana nahi hai, sab purusharth kar rahe hain. Main sampoorn ban gaya hun-yah kehne ki taakat kisi me bhi nahi ho sakti, kyunki agar sampoorn ban jaye to to yah sarir he choot jaaye. Sarir choote to Sukshma watan me baithna pade. Mool watan me to koi jaa nahi sakta, kyunki jab tak bridegroom na jaye, tab tak brides kaise jaa sakengi. Yah bhi guhya raaz hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sakshatkar adi ki aas na rakh nischay buddhi ban purusharth karna hai. Pehle-pehle nischay karna hai ki main ati sukshma aatma hun.
2) Bimari adi me Baap ki yaad me rehna hai. Yah bhi karma bhog hai. Yaad se he aatma pawan banegi. Pawan bankar pawan duniya me chalna hai.
Vardaan:-Sukshma paapo se mukt ban sampoorn sthiti ko prapt karne wale Siddhi Swaroop bhava.
Slogan:-- Adi pita ke samaan banne ke liye shakti, shanti aur sarv goono ke stambh bano.
"मीठे बच्चे-पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है"
प्रश्न: तुम सब पुरुषार्थी बच्चे किस एक गुह्य राज को अच्छी तरह जानते हो?
उत्तर: हम जानते हैं कि अभी तक 16 कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है, सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ-यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए। शरीर छूटे तो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े। मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी। यह भी गुह्य राज है।
गीत: मुखड़ा देख ले प्राणी..... ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच-अब यह तो बच्चे समझ गये हैं कि इनका नाम शिव तो नहीं है। वह तो है निराकार शिव भगवानुवाच, बच्चे समझते हैं कि निराकार तो शिवबाबा को ही कहा जाता है और कोई मनुष्य मात्र के लिए नहीं कहेंगे। निराकार पतित-पावन शिवबाबा ही ज्ञान का सागर है। वह इस तन द्वारा बैठ समझाते हैं। उसे ही परमपिता परमात्मा कहते हैं। पिता को और अपनी आत्मा को समझना है। मनुष्यों को अपनी आत्मा का पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज है। अंग्रेजी में कहा जाता है सेल्फ रियलाइजेशन। सेल्फ यानी आत्मा क्या वस्तु है। भल कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में सितारा रहता है। बस सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं। आत्मा स्टॉर है - निराकार है तो उनका बाप भी तो निराकार होगा। छोटा बड़ा तो हो नहीं सकता। जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा है। वह है सुप्रीम। सबसे ऊंच ते ऊंच। पहले तो आत्मा को समझना है कि आत्मा किसकी सन्तान है। वह कैसे पतित से पावन बनती है। वह कैसे पुनर्जन्म लेती है, कुछ भी जानते नहीं। पहले तो यह नॉलेज चाहिए कि आत्मा क्या वस्तु है। बाप् ही आकर आत्माओं को बतलाते हैं कि आत्मा स्टॉर मिसल है। अति सूक्ष्म है। इन आंखों से देखा नहीं जा सकता। देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। भल हॉस्पिटल में कितना माथा मारें, आत्मा को देखने के लिए परन्तु आत्मा को देख नहीं सकते। अति सूक्ष्म है। पहले तो यह निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा अति सूक्ष्म हूँ। बाप उनको ही समझाते हैं, जिनकी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। फिर परमात्मा खुद ही रियलाइज कराते हैं, वो आत्मा थोड़ेही करा सकती है। परमात्मा खुद ही रियलाइज कराते हैं कि मैं तुम्हारा बाप अति सूक्ष्म हूँ। ड्रामा में सारी एक्ट नूँधी हुई है। इनके पार्ट में कुछ भी चेन्ज हो नहीं सकता। बाप कहते हैं मैं किसको बीमारी आदि से कोई ठीक करने थोड़ेही आता हूँ। यह जिस्मानी बीमारी आदि तो कर्मभोग है। तुम तो मुझे कहते ही हो पतित-पावन, नॉलेजफुल ज्ञान का सागर आओ, हमको आकर पावन बनाओ। राजयोग भी सिखाओ। परमात्मा को ही बुलाते हैं फिर बीच में कृष्ण कहाँ से आया। कृष्ण को सभी गॉड फादर थोड़ेही कहेंगे। सभी आत्माओं का बाप निराकार है। वह है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। वह कैसे आया, कैसे पार्ट बजाया-यह कुछ भी जानते नहीं। शास्त्रों आदि में तो कुछ है नहीं। गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी, जिस गीता से ही सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। पीछे फिर बाल बच्चे आये। धर्मशास्त्र मुख्य कौनसे हैं? उस पर बाप समझाते हैं। मुख्य है गीता, जिससे ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना हुई। संगमयुग है ही ब्राह्मण धर्म। तुम जानते हो बाबा हमको ज्ञान सुना रहे हैं, जिससे हम शुद्र से ब्राह्मण बनते हैं। फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे। यह तो पक्का याद कर लेना चाहिए। परमपिता परमात्मा ने ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना की। बाबा ने आत्मा पर भी समझाया है। कई बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने में मूँझते हैं। अरे तुम आत्मा हो ना। तुम्हारा बाप है शिव। जैसे आत्मा आरगन्स बिना कुछ भी कर नहीं सकती वैसे निराकार बाप को भी तो आरगन्स चाहिए ना। वह इनमें आकर समझाते हैं। आत्मा का रूप क्या है, परमात्मा का रूप क्या है! यह तो कहने मात्र कहते हैं - परमात्मा का रूप बिन्दी है। परन्तु उनमें कैसे अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो कब मिटने वाला नहीं है। यह कोई नहीं जानते। परन्तु पार्ट अनादि परम्परा से चले आते हैं, इनकी कब इन्ड नहीं होती। पुरानी दुनिया की इन्ड हो तब नई दुनिया हो। बाबा ही आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं। बाबा ने समझाया है-मुख्य धर्म शास्त्र हैं ही चार, जिससे 4 धर्मो की स्थापना होती है। पहले है गीता फिर इस्लामी धर्म का शास्त्र, बौद्ध धर्म का शास्त्र, क्रिश्चियन धर्म का, फिर वृद्धि होती है। यह सब गीता के पुत्र पोत्रे हो गये इसलिए गाया जाता है श्रीमत भगवत गीता। जो बाप ने गाई है। बाप कहते हैं - न मैं मनुष्य हूँ, न मैं देवता हूँ। मैं तो ऊंच ते ऊंच निराकार परमात्मा हूँ। मैं कल्प-कल्प इस साधारण तन में पढ़ाने आता हूँ। तुम जानते हो कि अभी हम बरोबर ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे। वृद्धि तो होती जाती है। हाँ कोई बी.के. बनना मासी का घर नहीं है। समझाया जाता है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा समझो। तुम शिवबाबा के पोत्रे भी हो तो बच्चे भी हो। अज्ञानकाल में ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं दादे का पौत्रा भी हूँ। बच्चा भी हूँ। तुम बच्चे दादे के हो शिववंशी। फिर शिवबाबा एडाप्ट कर बी.के. बनाते हैं। वह निराकार हो गया, वह साकार हो गया। निराकार बाप के तुम बच्चे हो। फिर कहते हैं-ब्रह्मा द्वारा मैं तुमको एडाप्ट करता हूँ। तो ब्रह्मा के बच्चे होने के कारण तुम मेरे पोत्रे हो। तुमको वर्सा शिव बाबा से मिलता है। बाकी धर्म शास्त्र उसको कहा जाता है जिससे धर्म स्थापना होता है। वेदों से कौन सा धर्म स्थापना हुआ? कुछ भी नहीं। महाभारत भी धर्म शास्त्र नहीं है। बाइबिल धर्म शास्त्र है। गीता से तो देवता धर्म स्थापना हुआ। बाकी भागवत, रामायण में तो दन्त कथायें लिख दी हैं। वह तो धर्म शास्त्र नहीं हैं। मूल बात है कि आत्मा को समझना है। वह फिर कहते कि आत्मा निर्लेप है तो उल्टा हो गया ना। वास्तव में आत्मा ही शरीर द्वारा खाती है, वासना लेती है। दु:ख-सुख आत्मा ही फील करती है ना। महात्मा, पाप आत्मा कहा जाता है। फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो रांग हो गया। सेन्टर पर आने वाले कई बच्चों को यह भी पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज है। तुम खुद कहते हो आत्मा स्टार है। उनमें ही सारा पार्ट भरा हुआ है। आत्मा अति सूक्ष्म है। आत्मा को कब देख नहीं सकते हो। हाँ बाबा दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार करा सकते हैं। साक्षात्कार किया फिर गुम हो जायेगा। फिर भी तुमको बुद्धि से निश्चय तो करना पड़ेगा ना कि हम आत्मा अति सूक्ष्म हैं। जैसे विवेकानंद का मिसाल सुनाते हैं कि उनको ज्योति का साक्षात्कार हुआ। देखा ज्योति उनसे निकल कर मेरे में समाई। परन्तु यह तो साक्षात्कार हुआ। बाकी समाने की तो बात ही नहीं है। आत्मा का साक्षात्कार हुआ तो क्या। आत्मा तो तुम हो ही। कितनी फालतू महिमा लिख दी है। साक्षात्कार हुआ अच्छा उससे प्रालब्ध क्या है? कुछ भी नहीं, मिसला तुमको चतुर्भुज का साक्षात्कार हो, तो क्या तुम लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे वÌया? एम-आबजेक्ट का यह सिर्फ साक्षात्कार हुआ। बाप का भी क्या साक्षात्कार होगा। जैसे आत्मा स्टार है वैसे वह भी स्टार है। दिखाते हैं अर्जुन ने कहा कि हजारों सूर्य से जास्ती तेज है, हम सहन नहीं कर सकते। बस करो, बस करो। अब ऐसा तो कुछ भी है नहीं। आगे तो बहुतों को साक्षात्कार होता था, जो सुना हुआ था, वह साक्षात्कार हो जाता है। समझते हैं हमारी मनोकामना पूरी हुई। परन्तु इसमें तो कुछ भी फायदा नहीं है। बाप कहते हैं मैं राजयोग सिखाकर, पतित से पावन बनाने आया हूँ। ऐसे नहीं मुर्दे में श्वॉस डाल दूँगा। बीमारी है तो जाओ डॉक्टर के पास। हम तो आये हैं पावन बनाने। पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे। जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा तब तो पावन दुनिया स्थापना होगी। महाभारत लड़ाई के बाद क्या हुआ, कुछ भी रिजल्ट दिखाते नही हैं। तुम बच्चों को अभी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाते हैं। यह नॉलेज किसकी बुद्धि में है नहीं। आत्मा का ही ज्ञान नहीं है। बाबा से आकर पूछते हैं आत्मा क्या है! बाबा को याद कैसे करें? बाबा वन्डर खाते हैं-सर्विस करने वाले बच्चों में भी आत्मा, परमात्मा का ज्ञान नहीं है तो औरों को क्या सुनाते होंगे। हाँ, मुरली सुनाते रहते हैं। टीचर्स भी नम्बरवार होती हैं इसलिए मुख्य जो ब्राह्मणियाँ हैं, उनको मुकरर किया जाता है कि क्लास में चक्कर लगायें, एक-एक से पूछे कि आत्मा का रूप क्या है? परमात्मा का रूप क्या है? सुपरवाइज करनी चाहिए। जब तक अपने को आत्मा समझ बाप को याद न करें तो विकर्म विनाश भी हो न सकें। मनुष्य बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं, उन्हें पारसबुद्धि बनाने में मेहनत लगती है। देलवाड़ा मन्दिर में देखो आदि देव का काला चित्र है। फिर ऊपर में स्वर्ग की सीन बनाई है। मन्दिर बनाने वाले तो करोड़पति हैं, जानते कुछ भी नहीं। महावीर कहते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते। जगत अम्बा महारानी बनती है ना। आदि देव की बेटी सरस्वती है। मन्दिर तो अनेक बनाये हैं। ट्रस्टी लोग खुद भी जानते नहीं। पुजारी भी कहेंगे हम तो सम्भालने लिए बैठे हैं। मन्दिर फलाने ने बनाया है, हम क्या जानें। मनुष्य आते हैं माथा टेक कर चले जाते हैं। अब तुमको कितनी रोशनी मिली है। यह पढ़ाई है-मनुष्य से देवता बनने की। मनुष्य गीता भवन बनाते हैं परन्तु गीता किसने रची-यह किसको पता ही नहीं है। बड़े-बड़े करोड़पति, बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं। जानते कुछ भी नहीं। बाप आकर सारे ड्रामा का राज तुमको समझाते हैं। अच्छा और कुछ नहीं समझते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करते रहो। यह भी अच्छा। बाप को याद करते हैं ना। शिवबाबा है ही आत्माओं का बाप। मरने समय शिवबाबा के सिवाए और कुछ भी याद न आये तो भी स्वर्ग में जायेंगे। कोई कम बात थोड़ेही है। पहले-पहले तो अपने को आत्मा निश्चय करना है। वह है फिर परमपिता परमात्मा। नाम उनका शिव है। आत्मा भी बिन्दी रूप है। परमात्मा भी बिन्दी है। जैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, परमात्मा का भी पार्ट है-पतितों को पावन बनाने का। भक्ति में मैं सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करता हूँ। दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के हाथ में है। यह भी ड्रामा में पार्ट बना हुआ है। नौधा भक्ति से साक्षात्कार होना ही है। अशुद्ध कामनायें शैतान (रावण) पूरी करता है। यह जो रिद्धि सिद्धि आदि सीखते हैं वह मेरा काम नहीं है, जिससे मनुष्य किसको दु:ख देवे। वह कामनायें मैं पूरी नहीं करता हूँ। अभी सब बच्चे पुरुषार्थी हैं। 16 कला कोई बना नहीं है। जब तक विनाश हो तब तक पुरूषार्थ चलना ही है। किसकी भी ताकत नहीं जो कहे कि 16 कला सम्पूर्ण बन गये हैं। बन ही नहीं सकते। वह अवस्था होगी अन्त में। भल कोई रात दिन उठकर बैठ जाये, परन्तु बन नहीं सकेगा। इस समय कोई कर्मातीत बन जाये तो शरीर छोड़ना पड़े। सूक्ष्मवतन में जाकर बैठना पड़े। मूलवतन में तो जा न सके। पहले ब्राइडग्रूम जाये तब तो ब्राइडस जायेंगी। उनसे पहले कैसे जा सकते। बुद्धि भी कितनी दूरादेशी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करना है। पहले-पहले निश्चय करना है कि मैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ।
2) बीमारी आदि में बाप की याद में रहना है। यह भी कर्मभोग है। याद से ही आत्मा पावन बनेगी। पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है।
वरदान: सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोटे पाप होते रहते हैं। कर्म फिलॉसाफी का सिद्धान्त है-यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।
स्लोगन: आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।
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Mithe bacche - Pehla nischay karo ki main aatma hun, prabruti me rehte apne ko Shiv Baba ka baccha aur potra samajhkar chalo, yahi mehnat hai
Q- Tum sab purusharthi bacche kis ek guhya raaz ko achchi tarah jaante ho?
A- Hum jaante hain ki abhi tak 16 kala sampoorn koi bhi bana nahi hai, sab purusharth kar rahe hain. Main sampoorn ban gaya hun-yah kehne ki taakat kisi me bhi nahi ho sakti, kyunki agar sampoorn ban jaye to to yah sarir he choot jaaye. Sarir choote to Sukshma watan me baithna pade. Mool watan me to koi jaa nahi sakta, kyunki jab tak bridegroom na jaye, tab tak brides kaise jaa sakengi. Yah bhi guhya raaz hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sakshatkar adi ki aas na rakh nischay buddhi ban purusharth karna hai. Pehle-pehle nischay karna hai ki main ati sukshma aatma hun.
2) Bimari adi me Baap ki yaad me rehna hai. Yah bhi karma bhog hai. Yaad se he aatma pawan banegi. Pawan bankar pawan duniya me chalna hai.
Vardaan:-Sukshma paapo se mukt ban sampoorn sthiti ko prapt karne wale Siddhi Swaroop bhava.
Slogan:-- Adi pita ke samaan banne ke liye shakti, shanti aur sarv goono ke stambh bano.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
14-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे बच्चे-पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है"
प्रश्न: तुम सब पुरुषार्थी बच्चे किस एक गुह्य राज को अच्छी तरह जानते हो?
उत्तर: हम जानते हैं कि अभी तक 16 कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है, सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ-यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए। शरीर छूटे तो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े। मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी। यह भी गुह्य राज है।
गीत: मुखड़ा देख ले प्राणी..... ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच-अब यह तो बच्चे समझ गये हैं कि इनका नाम शिव तो नहीं है। वह तो है निराकार शिव भगवानुवाच, बच्चे समझते हैं कि निराकार तो शिवबाबा को ही कहा जाता है और कोई मनुष्य मात्र के लिए नहीं कहेंगे। निराकार पतित-पावन शिवबाबा ही ज्ञान का सागर है। वह इस तन द्वारा बैठ समझाते हैं। उसे ही परमपिता परमात्मा कहते हैं। पिता को और अपनी आत्मा को समझना है। मनुष्यों को अपनी आत्मा का पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज है। अंग्रेजी में कहा जाता है सेल्फ रियलाइजेशन। सेल्फ यानी आत्मा क्या वस्तु है। भल कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में सितारा रहता है। बस सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं। आत्मा स्टॉर है - निराकार है तो उनका बाप भी तो निराकार होगा। छोटा बड़ा तो हो नहीं सकता। जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा है। वह है सुप्रीम। सबसे ऊंच ते ऊंच। पहले तो आत्मा को समझना है कि आत्मा किसकी सन्तान है। वह कैसे पतित से पावन बनती है। वह कैसे पुनर्जन्म लेती है, कुछ भी जानते नहीं। पहले तो यह नॉलेज चाहिए कि आत्मा क्या वस्तु है। बाप् ही आकर आत्माओं को बतलाते हैं कि आत्मा स्टॉर मिसल है। अति सूक्ष्म है। इन आंखों से देखा नहीं जा सकता। देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। भल हॉस्पिटल में कितना माथा मारें, आत्मा को देखने के लिए परन्तु आत्मा को देख नहीं सकते। अति सूक्ष्म है। पहले तो यह निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा अति सूक्ष्म हूँ। बाप उनको ही समझाते हैं, जिनकी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। फिर परमात्मा खुद ही रियलाइज कराते हैं, वो आत्मा थोड़ेही करा सकती है। परमात्मा खुद ही रियलाइज कराते हैं कि मैं तुम्हारा बाप अति सूक्ष्म हूँ। ड्रामा में सारी एक्ट नूँधी हुई है। इनके पार्ट में कुछ भी चेन्ज हो नहीं सकता। बाप कहते हैं मैं किसको बीमारी आदि से कोई ठीक करने थोड़ेही आता हूँ। यह जिस्मानी बीमारी आदि तो कर्मभोग है। तुम तो मुझे कहते ही हो पतित-पावन, नॉलेजफुल ज्ञान का सागर आओ, हमको आकर पावन बनाओ। राजयोग भी सिखाओ। परमात्मा को ही बुलाते हैं फिर बीच में कृष्ण कहाँ से आया। कृष्ण को सभी गॉड फादर थोड़ेही कहेंगे। सभी आत्माओं का बाप निराकार है। वह है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। वह कैसे आया, कैसे पार्ट बजाया-यह कुछ भी जानते नहीं। शास्त्रों आदि में तो कुछ है नहीं। गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी, जिस गीता से ही सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। पीछे फिर बाल बच्चे आये। धर्मशास्त्र मुख्य कौनसे हैं? उस पर बाप समझाते हैं। मुख्य है गीता, जिससे ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना हुई। संगमयुग है ही ब्राह्मण धर्म। तुम जानते हो बाबा हमको ज्ञान सुना रहे हैं, जिससे हम शुद्र से ब्राह्मण बनते हैं। फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे। यह तो पक्का याद कर लेना चाहिए। परमपिता परमात्मा ने ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना की। बाबा ने आत्मा पर भी समझाया है। कई बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने में मूँझते हैं। अरे तुम आत्मा हो ना। तुम्हारा बाप है शिव। जैसे आत्मा आरगन्स बिना कुछ भी कर नहीं सकती वैसे निराकार बाप को भी तो आरगन्स चाहिए ना। वह इनमें आकर समझाते हैं। आत्मा का रूप क्या है, परमात्मा का रूप क्या है! यह तो कहने मात्र कहते हैं - परमात्मा का रूप बिन्दी है। परन्तु उनमें कैसे अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो कब मिटने वाला नहीं है। यह कोई नहीं जानते। परन्तु पार्ट अनादि परम्परा से चले आते हैं, इनकी कब इन्ड नहीं होती। पुरानी दुनिया की इन्ड हो तब नई दुनिया हो। बाबा ही आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं। बाबा ने समझाया है-मुख्य धर्म शास्त्र हैं ही चार, जिससे 4 धर्मो की स्थापना होती है। पहले है गीता फिर इस्लामी धर्म का शास्त्र, बौद्ध धर्म का शास्त्र, क्रिश्चियन धर्म का, फिर वृद्धि होती है। यह सब गीता के पुत्र पोत्रे हो गये इसलिए गाया जाता है श्रीमत भगवत गीता। जो बाप ने गाई है। बाप कहते हैं - न मैं मनुष्य हूँ, न मैं देवता हूँ। मैं तो ऊंच ते ऊंच निराकार परमात्मा हूँ। मैं कल्प-कल्प इस साधारण तन में पढ़ाने आता हूँ। तुम जानते हो कि अभी हम बरोबर ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे। वृद्धि तो होती जाती है। हाँ कोई बी.के. बनना मासी का घर नहीं है। समझाया जाता है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा समझो। तुम शिवबाबा के पोत्रे भी हो तो बच्चे भी हो। अज्ञानकाल में ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं दादे का पौत्रा भी हूँ। बच्चा भी हूँ। तुम बच्चे दादे के हो शिववंशी। फिर शिवबाबा एडाप्ट कर बी.के. बनाते हैं। वह निराकार हो गया, वह साकार हो गया। निराकार बाप के तुम बच्चे हो। फिर कहते हैं-ब्रह्मा द्वारा मैं तुमको एडाप्ट करता हूँ। तो ब्रह्मा के बच्चे होने के कारण तुम मेरे पोत्रे हो। तुमको वर्सा शिव बाबा से मिलता है। बाकी धर्म शास्त्र उसको कहा जाता है जिससे धर्म स्थापना होता है। वेदों से कौन सा धर्म स्थापना हुआ? कुछ भी नहीं। महाभारत भी धर्म शास्त्र नहीं है। बाइबिल धर्म शास्त्र है। गीता से तो देवता धर्म स्थापना हुआ। बाकी भागवत, रामायण में तो दन्त कथायें लिख दी हैं। वह तो धर्म शास्त्र नहीं हैं। मूल बात है कि आत्मा को समझना है। वह फिर कहते कि आत्मा निर्लेप है तो उल्टा हो गया ना। वास्तव में आत्मा ही शरीर द्वारा खाती है, वासना लेती है। दु:ख-सुख आत्मा ही फील करती है ना। महात्मा, पाप आत्मा कहा जाता है। फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो रांग हो गया। सेन्टर पर आने वाले कई बच्चों को यह भी पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज है। तुम खुद कहते हो आत्मा स्टार है। उनमें ही सारा पार्ट भरा हुआ है। आत्मा अति सूक्ष्म है। आत्मा को कब देख नहीं सकते हो। हाँ बाबा दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार करा सकते हैं। साक्षात्कार किया फिर गुम हो जायेगा। फिर भी तुमको बुद्धि से निश्चय तो करना पड़ेगा ना कि हम आत्मा अति सूक्ष्म हैं। जैसे विवेकानंद का मिसाल सुनाते हैं कि उनको ज्योति का साक्षात्कार हुआ। देखा ज्योति उनसे निकल कर मेरे में समाई। परन्तु यह तो साक्षात्कार हुआ। बाकी समाने की तो बात ही नहीं है। आत्मा का साक्षात्कार हुआ तो क्या। आत्मा तो तुम हो ही। कितनी फालतू महिमा लिख दी है। साक्षात्कार हुआ अच्छा उससे प्रालब्ध क्या है? कुछ भी नहीं, मिसला तुमको चतुर्भुज का साक्षात्कार हो, तो क्या तुम लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे वÌया? एम-आबजेक्ट का यह सिर्फ साक्षात्कार हुआ। बाप का भी क्या साक्षात्कार होगा। जैसे आत्मा स्टार है वैसे वह भी स्टार है। दिखाते हैं अर्जुन ने कहा कि हजारों सूर्य से जास्ती तेज है, हम सहन नहीं कर सकते। बस करो, बस करो। अब ऐसा तो कुछ भी है नहीं। आगे तो बहुतों को साक्षात्कार होता था, जो सुना हुआ था, वह साक्षात्कार हो जाता है। समझते हैं हमारी मनोकामना पूरी हुई। परन्तु इसमें तो कुछ भी फायदा नहीं है। बाप कहते हैं मैं राजयोग सिखाकर, पतित से पावन बनाने आया हूँ। ऐसे नहीं मुर्दे में श्वॉस डाल दूँगा। बीमारी है तो जाओ डॉक्टर के पास। हम तो आये हैं पावन बनाने। पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे। जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा तब तो पावन दुनिया स्थापना होगी। महाभारत लड़ाई के बाद क्या हुआ, कुछ भी रिजल्ट दिखाते नही हैं। तुम बच्चों को अभी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज समझाते हैं। यह नॉलेज किसकी बुद्धि में है नहीं। आत्मा का ही ज्ञान नहीं है। बाबा से आकर पूछते हैं आत्मा क्या है! बाबा को याद कैसे करें? बाबा वन्डर खाते हैं-सर्विस करने वाले बच्चों में भी आत्मा, परमात्मा का ज्ञान नहीं है तो औरों को क्या सुनाते होंगे। हाँ, मुरली सुनाते रहते हैं। टीचर्स भी नम्बरवार होती हैं इसलिए मुख्य जो ब्राह्मणियाँ हैं, उनको मुकरर किया जाता है कि क्लास में चक्कर लगायें, एक-एक से पूछे कि आत्मा का रूप क्या है? परमात्मा का रूप क्या है? सुपरवाइज करनी चाहिए। जब तक अपने को आत्मा समझ बाप को याद न करें तो विकर्म विनाश भी हो न सकें। मनुष्य बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं, उन्हें पारसबुद्धि बनाने में मेहनत लगती है। देलवाड़ा मन्दिर में देखो आदि देव का काला चित्र है। फिर ऊपर में स्वर्ग की सीन बनाई है। मन्दिर बनाने वाले तो करोड़पति हैं, जानते कुछ भी नहीं। महावीर कहते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते। जगत अम्बा महारानी बनती है ना। आदि देव की बेटी सरस्वती है। मन्दिर तो अनेक बनाये हैं। ट्रस्टी लोग खुद भी जानते नहीं। पुजारी भी कहेंगे हम तो सम्भालने लिए बैठे हैं। मन्दिर फलाने ने बनाया है, हम क्या जानें। मनुष्य आते हैं माथा टेक कर चले जाते हैं। अब तुमको कितनी रोशनी मिली है। यह पढ़ाई है-मनुष्य से देवता बनने की। मनुष्य गीता भवन बनाते हैं परन्तु गीता किसने रची-यह किसको पता ही नहीं है। बड़े-बड़े करोड़पति, बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं। जानते कुछ भी नहीं। बाप आकर सारे ड्रामा का राज तुमको समझाते हैं। अच्छा और कुछ नहीं समझते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करते रहो। यह भी अच्छा। बाप को याद करते हैं ना। शिवबाबा है ही आत्माओं का बाप। मरने समय शिवबाबा के सिवाए और कुछ भी याद न आये तो भी स्वर्ग में जायेंगे। कोई कम बात थोड़ेही है। पहले-पहले तो अपने को आत्मा निश्चय करना है। वह है फिर परमपिता परमात्मा। नाम उनका शिव है। आत्मा भी बिन्दी रूप है। परमात्मा भी बिन्दी है। जैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, परमात्मा का भी पार्ट है-पतितों को पावन बनाने का। भक्ति में मैं सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करता हूँ। दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के हाथ में है। यह भी ड्रामा में पार्ट बना हुआ है। नौधा भक्ति से साक्षात्कार होना ही है। अशुद्ध कामनायें शैतान (रावण) पूरी करता है। यह जो रिद्धि सिद्धि आदि सीखते हैं वह मेरा काम नहीं है, जिससे मनुष्य किसको दु:ख देवे। वह कामनायें मैं पूरी नहीं करता हूँ। अभी सब बच्चे पुरुषार्थी हैं। 16 कला कोई बना नहीं है। जब तक विनाश हो तब तक पुरूषार्थ चलना ही है। किसकी भी ताकत नहीं जो कहे कि 16 कला सम्पूर्ण बन गये हैं। बन ही नहीं सकते। वह अवस्था होगी अन्त में। भल कोई रात दिन उठकर बैठ जाये, परन्तु बन नहीं सकेगा। इस समय कोई कर्मातीत बन जाये तो शरीर छोड़ना पड़े। सूक्ष्मवतन में जाकर बैठना पड़े। मूलवतन में तो जा न सके। पहले ब्राइडग्रूम जाये तब तो ब्राइडस जायेंगी। उनसे पहले कैसे जा सकते। बुद्धि भी कितनी दूरादेशी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करना है। पहले-पहले निश्चय करना है कि मैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ।
2) बीमारी आदि में बाप की याद में रहना है। यह भी कर्मभोग है। याद से ही आत्मा पावन बनेगी। पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है।
वरदान: सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोटे पाप होते रहते हैं। कर्म फिलॉसाफी का सिद्धान्त है-यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।
स्लोगन: आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 15th Sep 2017 )
15.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Roohani Baap ne yah Rudra gyan yagyan racha hai, is yagyan ke rakshak tum Brahman ho, tum gayan layak bante ho, lekin apni puja nahi kara sakte ho.
Q- Tum baccho me jab gyan ki parakastha ho jayegi, to us samay ki sthiti kya hogi?
A- US samay tumhari sthiti achal, adol hogi. Kisi bhi prakar ke maya ke toofan hila nahi sakenge. Tumhari karmathit avastha ho jayegi. Abhi tak gyan ki poori parakastha na hone ke kaaran maya ke toofan, swapna adi aate hain. Yah yudh ka maidan hai, nayi-nayi ashayein pragat ho jayengi. Parantu tumhe inse darna nahi hai. Baap se shrimat le aagey badhte rahna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Murli roz zaroor padhni hai. Maya ke toofano se darna nahi hai. Kisi bhi prakar ke dhoke se bachne ke liye shrimat lete rahna hai.
2) Padhai aur yog dono ikattha hai isiliye padhane wale Baap ko yaad karna hai. Nischay buddhi banna aur banana hai. Baap ka he parichay sabko dena hai.
Vardaan:- Mann-buddhi ki swachhata dwara yathart nirnay karne wale Safalta Sampann bhava
Slogan:-- Sada shrest aur sudhh sankalp emerge rahe to byarth swatah merge ho jayenge.
“मीठे बच्चे - रूहानी बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है, इस यज्ञ के रक्षक तुम ब्राह्मण हो, तुम गायन लायक बनते हो, लेकिन अपनी पूजा नहीं करा सकते हो”
प्रश्न: तुम बच्चों में जब ज्ञान की पराकाष्ठा हो जायेगी, तो उस समय की स्थिति क्या होगी?
उत्तर: उस समय तुम्हारी स्थिति अचल, अडोल होगी। किसी भी प्रकार के माया के तूफान हिला नहीं सकेंगे। तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। अभी तक ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा न होने के कारण माया के तूफान, स्वप्न आदि आते हैं। यह युद्ध का मैदान है, नई-नई आशायें प्रगट हो जायेंगी। परन्तु तुम्हें इनसे डरना नहीं है। बाप से श्रीमत ले आगे बढ़ते रहना है।
गीत: तुम्हें पाके हमने जहाँ ... ओम् शान्ति।
गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुने हैं, अब उनके अर्थ में टिकना है। लक्ष्य को पकड़ लिया है कि अभी हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं, जिसको आधाकल्प से याद किया है। रावण वर्सा छीनते हैं। दुनिया वाले इस बात को नहीं जानते, तुम बच्चे जानते हो। यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, कोई मनुष्य का नहीं, प्रजापिता ने यह यज्ञ नहीं रचा है। यह रूद्र यज्ञ है। ज्ञान सागर अथवा शिव ने यह यज्ञ रचा है। यज्ञ तो अनेक प्रकार के रचते हैं ना। जैसे दक्ष प्रजापति कहते हैं। अब दक्ष प्रजापति तो है नहीं। ब्रह्मा है प्रजापिता, दक्ष प्रजापति अक्षर नाम कहाँ से आया? बाप बैठ समझाते हैं - यह रांग बनाया हुआ है। शास्त्रों में भी लम्बी चौड़ी कथायें लिख दी हैं। अब बाप कहते हैं जो भी सुनते आये हो-सब भूलो। मैं जो तुमको सुनाता हूँ वह सुनो। प्रजापिता तो एक ही होगा ना। जो भी यज्ञ रचते हैं वह सब हैं मटेरियल यज्ञ। यह है रूहानी बाप का रूहानी यज्ञ, इसमें भी ब्राह्मण चाहिए। वह ब्राह्मण तो हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली। मुख वंशावली कब पुजारी हो न सकें। तुम पूज्य बनते हो, वह हैं पुजारी। तुम गायन लायक बनते हो। तुम्हारी पूजा अभी नहीं हो सकती। अगर देहधारी की पूजा करते हैं तो यह रांग है। पवित्र हैं ही सतयुग में देवतायें। हिन्दुओं की रसमरिवाज है जो स्त्री को कहा जाता है पति ही तुम्हारा गुरू ईश्वर सब कुछ है। तो पति के चरण धोकर पीती है। आजकल तो वह रिवाज नहीं है। सिविल मैरेज में यह अक्षर नहीं निकालते हैं कि पति तुम्हारा गुरू ईश्वर आदि है। यह सब है ठगी, इसलिए चित्र भी ऐसा बनाया है कि लक्ष्मी, नारायण के पाँव दबा रही है। समझते हैं वह भी यह सब करती थी। हिन्दू नारी को यह करना चाहिए। हाफ पार्टनर से यह धन्धा कराया जाता है क्या? किसम-किसम के होते हैं। तो जो रसम देखते हैं वह चित्र बना देते हैं। अब वहाँ ऐसे थोड़ेही हो सकता जो लक्ष्मी बैठ पांव दबाये। बाप कहते हैं-मैं द्रोपदी के आकर पांव दबाता हूँ। उन्होंने फिर कृष्ण का रूप दे दिया है। यह सब हैं व्यर्थ बातें। वहाँ राम को तो 4 भाई होते नहीं। वहाँ बच्चा भी तो एक होता है। चार बच्चे कहाँ से आये! बाप कहते हैं मैं तुमको इन सब शास्त्रों का सार बताता हूँ। यह बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं। तुम समझा सकते हो, बाप कहते हैं तुम जो यह कसम उठवाते हो वह झूठा उठवाते हो। अब कहते हैं गीता कृष्ण ने गाई। हाथ में गीता उठाते हैं फिर कहते ईश्वर को हाजर-नाजर जान सच बोलना। कृष्ण भगवान को हाजर-नाजर जान, यह नहीं कहते। ईश्वर के लिए ही कहते हैं। तो कृष्ण गीता का भगवान है-यह अभी बुद्धि से निकाल दो। झूठा कसम होने के कारण उनमें ताकत नहीं रही है। एक्यूरेट है एक धर्मराज। सुप्रीम जज वही सच्चा है। सतयुग में तो जज आदि होते नहीं क्योंकि वहाँ कोई ऐसी बात नहीं होती। सब हिसाब-किताब चुक्तू कर वहाँ चले जायेंगे। फिर नये सिर सतोप्रधान सतो रजो तमो में आयेंगे। हर एक वस्तु जो तुम देखते हो नई से पुरानी जरूर होती है। दुनिया भी नई से पुरानी होती है। यह पुरानी दुनिया है। परन्तु कितने तक पुरानी है यह किसको पता नहीं है। सदैव चार भागों में बांटा जाता है। यह भी 4 युग हैं। पहले नया फिर चौथा पुराना फिर आधा पुराना फिर सारा पुराना हो जाता है। बिल्कुल ही टूटने के लायक हो जाता है। इस कल्प की आयु 5 हजार वर्ष है। अभी तुम हो अन्त में। अन्तिम जन्म में तुम बाप से वर्सा पाते हो - 21 जन्मों के लिए। सतयुग त्रेता में 21 जन्म, द्वापर कलियुग में 63 जन्म क्यों होते हैं? क्योंकि पतित बनने से आयु कम हो जाती है। आधाकल्प आयु बड़ी होती है। अभी तुम योग सीखते हो। तुम बच्चे यहाँ योग वा याद सीखने के लिए नहीं आये हो। यहाँ तुम आते हो सम्मुख मुरली सुनने। मुरली तो बहुत प्यारी लगती है। योग तो तुम कहाँ भी बैठकर कर सकते हो। स्टूडेन्ट के इम्तहान का जब टाइम होता है तो कहाँ भी होंगे बुद्धि में इम्तहान की ही बातें घूमती रहेंगी। यहाँ तुम्हारी पढ़ाई और योग इकठ्ठे हैं। पढ़ाने वाले को भी याद करना पड़े। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। भूल से कृष्ण का नाम डाल दिया है। सन्यासी आदि तो कृष्ण को याद करते नहीं हैं। बाकी किसने कहा मनमनाभव? तत्व वा ब्रह्म तो नहीं कह सकता। बाप इस मुख का आधार लेकर कहते हैं-बच्चे मामेकम् याद करो। कृष्ण कैसे कहेगा! कृष्ण की आत्मा किसमें प्रवेश हो कहे वह भी नही हो सकता। यह सब प्वाइंट्स बुद्धि में धारण करनी होताr है, फिर समझाना होता है। कांग्रेसी लोग कितना आवाज से बोलते थे। उन्हों का लीडर था-बापू जी। वह था जिस्मानी बापू जी। यह है फिर रूहानी बाप। सभी का बाप तो गांधी जी हो न सके। शिवबाबा तो सबका बाप है ना। ब्रह्मा भी बाप है जरूर। परन्तु इस समय सिर्फ तुम जानते हो। सारी दुनिया तो नहीं मानेंगी क्योंकि समझते नहीं। यहाँ हम बापू निराकार शिवबाबा को कहते हैं। वह सभी का बाप है। बच्चों को कितनी प्वाइंट्स समझाते हैं। कभी आत्मा पर, कभी परमात्मा पर, कभी शास्त्रों पर। ढेर के ढेर भारत में शास्त्र हैं और धर्म वालों का तो एक ही शास्त्र होता है। यहाँ तो अनेक शास्त्र हैं। फालोअर्स भी जो कुछ सुनते सत-सत करते रहते हैं। एम- आबजेक्ट कुछ भी नहीं। जैसे राधा स्वामी पंथ है-अब नाम ता रखा है राधा-स्वामी। राधे का स्वामी तो कृष्ण है। वास्तव में जिस रूप से भारतवासी कृष्ण को समझते हैं, वैसे है नहीं। राधे तो कुमारी है। कृष्ण कुमार है। फिर कृष्ण का स्वामी कैसे कहेंगे! जब स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनें तब स्वामी कहा जाए। छोटेपन में तो आपस में खेलपाल करते हैं। तो वह कोई पक्का स्वामी थोड़ेही हुआ। बहुत हैं जो सगाई को भी तोड़ देते हैं। अब लक्ष्मी-नारायण तो दिखाते हैं, परन्तु नारायण के बाप का नाम क्या है? कभी बता न सकें। अब कृष्ण के मॉ बाप दिखाते हैं। राधे और कृष्ण दोनों के मॉ बाप अलग-अलग हैं। राधे और जगह की थी कृष्ण फिर और जगह का था। सतयुग की बातों का सारा अगड़ग-बगड़म कर दिया है। लक्ष्मी-नारायण के माँ बाप का नाम कहाँ। नारायण का बर्थ कहाँ। यह कोई भी नहीं जानते कि राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग की कितनी बड़ी सामग्री है। ज्ञान में तो सिर्फ बीज को जानना होता है। बीज के ज्ञान से सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है। तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है जो परमधाम में रहते हैं। वहाँ तो सभी आत्मायें रहती हैं। सूक्ष्मवतन में तो हैं सिर्फ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। ब्रह्मा और विष्णु तो पुनर्जन्म में आते हैं, बाकी शंकर नहीं आता। जैसे शिवबाबा सूक्ष्म है वैसे शंकर भी सूक्ष्म है तो उन्होंने फिर शिव शंकर को इकठ्ठा कर दिया है। परन्तु हैं तो अलग-अलग ना। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना फिर शंकर द्वारा विनाश कराते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु हो जाता है। ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। ततत्वम् तुम भी देवता घराने के हो ना। तो बाप तुम्हें सब राज समझाते रहते हैं। बाकी धारणा करने वाले नम्बरवार हैं, जिसने जो पद कल्प पहले पाया था-वही पुरूषार्थ चल रहा है। पुरूषार्थ बिगर प्रालब्ध बन न सके। पुरूषार्थ से समझा जाता है कल्प पहले भी इसने इतना किया था। अभी तुम्हारी पढ़ाई चल रही है। रूद्र माला विष्णु की माला गाई जाती है। बाकी ब्राह्मणों की माला है नहीं क्योंकि पुरुषार्थी हैं। आज अच्छा चलते हैं, कल माया का घूसा लग पड़ता है। रूद्र माला बनने से फिर ट्रांसफर हो जायेगी। ब्राह्मण तो पुरुषार्थी हैं। आज अच्छे चलते हैं तो कल गिर पड़ते हैं। तो माला बन न सके। आगे माला बनती थी फिर 3-4 नम्बर में आने वाले आज हैं नहीं। यह युद्ध का मैदान है ना। कुछ भी बात समझ में न आये तो पूछो क्योंकि तुमको औरों को भी समझाना है। कच्चे जो हैं वह मूँझ पड़ते हैं। ब्राह्मणों में भी नम्बरवार हैं। कोई-कोई तो पूछते भी हैं कि बाबा ने समझाया है-माया के तूफान बहुत आयेंगे, तो हम उन पर कैसे विजयी बनें? अनुभवी टीचर न हो तो कैसे समझा सकेगी? बाप समझाते हैं यह माया के तूफान, स्वप्न आदि सब आयेंगे। जब तक ज्ञान की पूरी प्राकाष्ठा आ जाए, कर्मातीत अवस्था हो-इस समय तो बहुत आयेंगे। बूढ़ों को और ही जवान बना देंगे। नई-नई आशायें प्रगट करेंगे। तुम कहेंगे आगे तो कभी ऐसे ख्याल भी नहीं आते थे। अरे युद्ध के मैदान में तो तुम अभी आये हो। वैद्य लोग कहते हैं कि इस दवाई से बीमारी सारी बाहर निकलेगी। तो बाबा अनुभवी है। सब कुछ बतलाते रहते हैं, इससे जरा भी डरना नहीं है। कहते हैं ज्ञान में आने से तो पता नहीं क्या हो गया है, इससे तो भक्ति अच्छी। बाबा तो कहते हैं भल जाओ भक्ति में। वहाँ तुमको यह तूफान नहीं आयेंगे। बाबा तो सब बातें समझाते हैं। रोज सुनने वालों की बुद्धि में पूरी धारणा होगी। मुख्य है ही नॉलेज से काम, फिर भल कहाँ भी जाओ। मुरली तुमको मिलती रहेगी, मुरली पढ़ने की मिलेट्री में भी मना नहीं हो सकती। मिलेट्री को ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाइबल वा ग्रंथ आदि नहीं पढ़ो, सब पढ़ते हैं। उन्हों के मन्दिर भी होते हैं। तो मुरली कहाँ भी मिल सकती है। फिर भी तो लक्ष्य मिला हुआ है ना। मुख्य बात ही है बाप का परिचय देना। पहले तो निश्चय बैठे कि हमको पढ़ाने वाला नॉलेजफुल गॉड फादर है तब और बातों को समझ सकेंगे। गॉड फादर कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह किसको पता नहीं है। लिखा हुआ भी है भगवानुवाच। उनका नाम शिव है। परम आत्मा है ना। परम अर्थात् सुप्रीम। परमधाम में तो सब रहते हैं। आत्माओं में भी सुप्रीम पार्ट तो किसका होगा ना। उनको क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर कहा जाता है। वह है रचयिता, करनकरावनहार, फिर पार्टधारी भी है। इसमें आकर कितना पार्ट बजाते हैं, जिससे भारत स्वर्ग बनता है। ऊंच ते ऊंच बाप शिवबाबा आया, क्या आकर किया? कुछ भी नहीं जानते। कल्प की आयु ही लम्बी कर दी है। बाप कहते हैं मुझे आना ही है कलियुग अन्त और सतयुग आदि में। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, पावन दुनिया थी। हम सो पावन फिर हम सो पतित। चढ़ती कला उतरती कला कैसे होती है। अभी यह सब तुम्हारी बुद्धि में है। बाप कहते हैं बच्चे, सबको बाप का परिचय देते रहो। बाप जब स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर हमको स्वर्ग की बादशाही मिलनी चाहिए। भारत को थी, अब नहीं है, इसलिए भगवान को आना ही पड़ता है। भारत ही शिवबाबा का बर्थप्लेस है। आकर तुमको स्वर्गवासी बनाया था। अब तुम भूल गये हो। भूल और अभुल का यह खेल है। इस नॉलेज को भूलने से फिर उतरती कला होती है। एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति चढ़ती कला। जीवनबंध में कितना समय लगा, यह बातें शास्त्रों में थोड़ेही हैं। जनक की बात है ना। बाप कहते हैं जो भी कुछ पढ़ा है सब भूल जाओ। बाप, टीचर, सतगुरू मैं ही हूँ - 21 जन्मों का तुमको वर्सा देता हूँ। फिर भी अहो मम माया तुम कब्रिस्तानी बना देती हो। शिवबाबा परिस्तानी बनाते हैं, माया बहुत बच्चों को धोखा देती है क्योंकि श्रीमत पर ठीक रीति नहीं चलते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मुरली रोज जरूर पढ़नी है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। किसी भी प्रकार के धोखे से बचने के लिए श्रीमत लेते रहना है।
2) पढ़ाई और योग दोनों इकठ्ठा हैं इसलिए पढ़ाने वाले बाप को याद करना है। निश्चय बुद्धि बनना और बनाना है। बाप का ही परिचय सबको देना है।
वरदान: मन-बुद्धि की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय करने वाले सफलता सम्पन्न भव
किसी भी कार्य में सफलता तब प्राप्त होती है जब समय पर बुद्धि यथार्थ निर्णय देती है। लेकिन निर्णय शक्ति काम तब करती है जब मन-बुद्धि स्वच्छ हो, कोई भी किचड़ा न हो इसलिए योग अग्नि द्वारा किचड़े को खत्म कर बुद्धि को स्वच्छ बनाओ। किसी भी प्रकार की कमजोरी-यह गन्दगी है। जरा सा व्यर्थ संकल्प भी किचड़ा है, जब यह किचड़ा समाप्त हो तब बेफिक्र रहेंगे और स्वच्छ बुद्धि होने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
स्लोगन: सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्प इमर्ज रहें तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेंगे।
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Mithe bacche - Roohani Baap ne yah Rudra gyan yagyan racha hai, is yagyan ke rakshak tum Brahman ho, tum gayan layak bante ho, lekin apni puja nahi kara sakte ho.
Q- Tum baccho me jab gyan ki parakastha ho jayegi, to us samay ki sthiti kya hogi?
A- US samay tumhari sthiti achal, adol hogi. Kisi bhi prakar ke maya ke toofan hila nahi sakenge. Tumhari karmathit avastha ho jayegi. Abhi tak gyan ki poori parakastha na hone ke kaaran maya ke toofan, swapna adi aate hain. Yah yudh ka maidan hai, nayi-nayi ashayein pragat ho jayengi. Parantu tumhe inse darna nahi hai. Baap se shrimat le aagey badhte rahna hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Murli roz zaroor padhni hai. Maya ke toofano se darna nahi hai. Kisi bhi prakar ke dhoke se bachne ke liye shrimat lete rahna hai.
2) Padhai aur yog dono ikattha hai isiliye padhane wale Baap ko yaad karna hai. Nischay buddhi banna aur banana hai. Baap ka he parichay sabko dena hai.
Vardaan:- Mann-buddhi ki swachhata dwara yathart nirnay karne wale Safalta Sampann bhava
Slogan:-- Sada shrest aur sudhh sankalp emerge rahe to byarth swatah merge ho jayenge.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
15-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - रूहानी बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है, इस यज्ञ के रक्षक तुम ब्राह्मण हो, तुम गायन लायक बनते हो, लेकिन अपनी पूजा नहीं करा सकते हो”
प्रश्न: तुम बच्चों में जब ज्ञान की पराकाष्ठा हो जायेगी, तो उस समय की स्थिति क्या होगी?
उत्तर: उस समय तुम्हारी स्थिति अचल, अडोल होगी। किसी भी प्रकार के माया के तूफान हिला नहीं सकेंगे। तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। अभी तक ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा न होने के कारण माया के तूफान, स्वप्न आदि आते हैं। यह युद्ध का मैदान है, नई-नई आशायें प्रगट हो जायेंगी। परन्तु तुम्हें इनसे डरना नहीं है। बाप से श्रीमत ले आगे बढ़ते रहना है।
गीत: तुम्हें पाके हमने जहाँ ... ओम् शान्ति।
गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुने हैं, अब उनके अर्थ में टिकना है। लक्ष्य को पकड़ लिया है कि अभी हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं, जिसको आधाकल्प से याद किया है। रावण वर्सा छीनते हैं। दुनिया वाले इस बात को नहीं जानते, तुम बच्चे जानते हो। यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, कोई मनुष्य का नहीं, प्रजापिता ने यह यज्ञ नहीं रचा है। यह रूद्र यज्ञ है। ज्ञान सागर अथवा शिव ने यह यज्ञ रचा है। यज्ञ तो अनेक प्रकार के रचते हैं ना। जैसे दक्ष प्रजापति कहते हैं। अब दक्ष प्रजापति तो है नहीं। ब्रह्मा है प्रजापिता, दक्ष प्रजापति अक्षर नाम कहाँ से आया? बाप बैठ समझाते हैं - यह रांग बनाया हुआ है। शास्त्रों में भी लम्बी चौड़ी कथायें लिख दी हैं। अब बाप कहते हैं जो भी सुनते आये हो-सब भूलो। मैं जो तुमको सुनाता हूँ वह सुनो। प्रजापिता तो एक ही होगा ना। जो भी यज्ञ रचते हैं वह सब हैं मटेरियल यज्ञ। यह है रूहानी बाप का रूहानी यज्ञ, इसमें भी ब्राह्मण चाहिए। वह ब्राह्मण तो हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली। मुख वंशावली कब पुजारी हो न सकें। तुम पूज्य बनते हो, वह हैं पुजारी। तुम गायन लायक बनते हो। तुम्हारी पूजा अभी नहीं हो सकती। अगर देहधारी की पूजा करते हैं तो यह रांग है। पवित्र हैं ही सतयुग में देवतायें। हिन्दुओं की रसमरिवाज है जो स्त्री को कहा जाता है पति ही तुम्हारा गुरू ईश्वर सब कुछ है। तो पति के चरण धोकर पीती है। आजकल तो वह रिवाज नहीं है। सिविल मैरेज में यह अक्षर नहीं निकालते हैं कि पति तुम्हारा गुरू ईश्वर आदि है। यह सब है ठगी, इसलिए चित्र भी ऐसा बनाया है कि लक्ष्मी, नारायण के पाँव दबा रही है। समझते हैं वह भी यह सब करती थी। हिन्दू नारी को यह करना चाहिए। हाफ पार्टनर से यह धन्धा कराया जाता है क्या? किसम-किसम के होते हैं। तो जो रसम देखते हैं वह चित्र बना देते हैं। अब वहाँ ऐसे थोड़ेही हो सकता जो लक्ष्मी बैठ पांव दबाये। बाप कहते हैं-मैं द्रोपदी के आकर पांव दबाता हूँ। उन्होंने फिर कृष्ण का रूप दे दिया है। यह सब हैं व्यर्थ बातें। वहाँ राम को तो 4 भाई होते नहीं। वहाँ बच्चा भी तो एक होता है। चार बच्चे कहाँ से आये! बाप कहते हैं मैं तुमको इन सब शास्त्रों का सार बताता हूँ। यह बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं। तुम समझा सकते हो, बाप कहते हैं तुम जो यह कसम उठवाते हो वह झूठा उठवाते हो। अब कहते हैं गीता कृष्ण ने गाई। हाथ में गीता उठाते हैं फिर कहते ईश्वर को हाजर-नाजर जान सच बोलना। कृष्ण भगवान को हाजर-नाजर जान, यह नहीं कहते। ईश्वर के लिए ही कहते हैं। तो कृष्ण गीता का भगवान है-यह अभी बुद्धि से निकाल दो। झूठा कसम होने के कारण उनमें ताकत नहीं रही है। एक्यूरेट है एक धर्मराज। सुप्रीम जज वही सच्चा है। सतयुग में तो जज आदि होते नहीं क्योंकि वहाँ कोई ऐसी बात नहीं होती। सब हिसाब-किताब चुक्तू कर वहाँ चले जायेंगे। फिर नये सिर सतोप्रधान सतो रजो तमो में आयेंगे। हर एक वस्तु जो तुम देखते हो नई से पुरानी जरूर होती है। दुनिया भी नई से पुरानी होती है। यह पुरानी दुनिया है। परन्तु कितने तक पुरानी है यह किसको पता नहीं है। सदैव चार भागों में बांटा जाता है। यह भी 4 युग हैं। पहले नया फिर चौथा पुराना फिर आधा पुराना फिर सारा पुराना हो जाता है। बिल्कुल ही टूटने के लायक हो जाता है। इस कल्प की आयु 5 हजार वर्ष है। अभी तुम हो अन्त में। अन्तिम जन्म में तुम बाप से वर्सा पाते हो - 21 जन्मों के लिए। सतयुग त्रेता में 21 जन्म, द्वापर कलियुग में 63 जन्म क्यों होते हैं? क्योंकि पतित बनने से आयु कम हो जाती है। आधाकल्प आयु बड़ी होती है। अभी तुम योग सीखते हो। तुम बच्चे यहाँ योग वा याद सीखने के लिए नहीं आये हो। यहाँ तुम आते हो सम्मुख मुरली सुनने। मुरली तो बहुत प्यारी लगती है। योग तो तुम कहाँ भी बैठकर कर सकते हो। स्टूडेन्ट के इम्तहान का जब टाइम होता है तो कहाँ भी होंगे बुद्धि में इम्तहान की ही बातें घूमती रहेंगी। यहाँ तुम्हारी पढ़ाई और योग इकठ्ठे हैं। पढ़ाने वाले को भी याद करना पड़े। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। भूल से कृष्ण का नाम डाल दिया है। सन्यासी आदि तो कृष्ण को याद करते नहीं हैं। बाकी किसने कहा मनमनाभव? तत्व वा ब्रह्म तो नहीं कह सकता। बाप इस मुख का आधार लेकर कहते हैं-बच्चे मामेकम् याद करो। कृष्ण कैसे कहेगा! कृष्ण की आत्मा किसमें प्रवेश हो कहे वह भी नही हो सकता। यह सब प्वाइंट्स बुद्धि में धारण करनी होताr है, फिर समझाना होता है। कांग्रेसी लोग कितना आवाज से बोलते थे। उन्हों का लीडर था-बापू जी। वह था जिस्मानी बापू जी। यह है फिर रूहानी बाप। सभी का बाप तो गांधी जी हो न सके। शिवबाबा तो सबका बाप है ना। ब्रह्मा भी बाप है जरूर। परन्तु इस समय सिर्फ तुम जानते हो। सारी दुनिया तो नहीं मानेंगी क्योंकि समझते नहीं। यहाँ हम बापू निराकार शिवबाबा को कहते हैं। वह सभी का बाप है। बच्चों को कितनी प्वाइंट्स समझाते हैं। कभी आत्मा पर, कभी परमात्मा पर, कभी शास्त्रों पर। ढेर के ढेर भारत में शास्त्र हैं और धर्म वालों का तो एक ही शास्त्र होता है। यहाँ तो अनेक शास्त्र हैं। फालोअर्स भी जो कुछ सुनते सत-सत करते रहते हैं। एम- आबजेक्ट कुछ भी नहीं। जैसे राधा स्वामी पंथ है-अब नाम ता रखा है राधा-स्वामी। राधे का स्वामी तो कृष्ण है। वास्तव में जिस रूप से भारतवासी कृष्ण को समझते हैं, वैसे है नहीं। राधे तो कुमारी है। कृष्ण कुमार है। फिर कृष्ण का स्वामी कैसे कहेंगे! जब स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनें तब स्वामी कहा जाए। छोटेपन में तो आपस में खेलपाल करते हैं। तो वह कोई पक्का स्वामी थोड़ेही हुआ। बहुत हैं जो सगाई को भी तोड़ देते हैं। अब लक्ष्मी-नारायण तो दिखाते हैं, परन्तु नारायण के बाप का नाम क्या है? कभी बता न सकें। अब कृष्ण के मॉ बाप दिखाते हैं। राधे और कृष्ण दोनों के मॉ बाप अलग-अलग हैं। राधे और जगह की थी कृष्ण फिर और जगह का था। सतयुग की बातों का सारा अगड़ग-बगड़म कर दिया है। लक्ष्मी-नारायण के माँ बाप का नाम कहाँ। नारायण का बर्थ कहाँ। यह कोई भी नहीं जानते कि राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग की कितनी बड़ी सामग्री है। ज्ञान में तो सिर्फ बीज को जानना होता है। बीज के ज्ञान से सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है। तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है जो परमधाम में रहते हैं। वहाँ तो सभी आत्मायें रहती हैं। सूक्ष्मवतन में तो हैं सिर्फ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। ब्रह्मा और विष्णु तो पुनर्जन्म में आते हैं, बाकी शंकर नहीं आता। जैसे शिवबाबा सूक्ष्म है वैसे शंकर भी सूक्ष्म है तो उन्होंने फिर शिव शंकर को इकठ्ठा कर दिया है। परन्तु हैं तो अलग-अलग ना। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना फिर शंकर द्वारा विनाश कराते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु हो जाता है। ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। ततत्वम् तुम भी देवता घराने के हो ना। तो बाप तुम्हें सब राज समझाते रहते हैं। बाकी धारणा करने वाले नम्बरवार हैं, जिसने जो पद कल्प पहले पाया था-वही पुरूषार्थ चल रहा है। पुरूषार्थ बिगर प्रालब्ध बन न सके। पुरूषार्थ से समझा जाता है कल्प पहले भी इसने इतना किया था। अभी तुम्हारी पढ़ाई चल रही है। रूद्र माला विष्णु की माला गाई जाती है। बाकी ब्राह्मणों की माला है नहीं क्योंकि पुरुषार्थी हैं। आज अच्छा चलते हैं, कल माया का घूसा लग पड़ता है। रूद्र माला बनने से फिर ट्रांसफर हो जायेगी। ब्राह्मण तो पुरुषार्थी हैं। आज अच्छे चलते हैं तो कल गिर पड़ते हैं। तो माला बन न सके। आगे माला बनती थी फिर 3-4 नम्बर में आने वाले आज हैं नहीं। यह युद्ध का मैदान है ना। कुछ भी बात समझ में न आये तो पूछो क्योंकि तुमको औरों को भी समझाना है। कच्चे जो हैं वह मूँझ पड़ते हैं। ब्राह्मणों में भी नम्बरवार हैं। कोई-कोई तो पूछते भी हैं कि बाबा ने समझाया है-माया के तूफान बहुत आयेंगे, तो हम उन पर कैसे विजयी बनें? अनुभवी टीचर न हो तो कैसे समझा सकेगी? बाप समझाते हैं यह माया के तूफान, स्वप्न आदि सब आयेंगे। जब तक ज्ञान की पूरी प्राकाष्ठा आ जाए, कर्मातीत अवस्था हो-इस समय तो बहुत आयेंगे। बूढ़ों को और ही जवान बना देंगे। नई-नई आशायें प्रगट करेंगे। तुम कहेंगे आगे तो कभी ऐसे ख्याल भी नहीं आते थे। अरे युद्ध के मैदान में तो तुम अभी आये हो। वैद्य लोग कहते हैं कि इस दवाई से बीमारी सारी बाहर निकलेगी। तो बाबा अनुभवी है। सब कुछ बतलाते रहते हैं, इससे जरा भी डरना नहीं है। कहते हैं ज्ञान में आने से तो पता नहीं क्या हो गया है, इससे तो भक्ति अच्छी। बाबा तो कहते हैं भल जाओ भक्ति में। वहाँ तुमको यह तूफान नहीं आयेंगे। बाबा तो सब बातें समझाते हैं। रोज सुनने वालों की बुद्धि में पूरी धारणा होगी। मुख्य है ही नॉलेज से काम, फिर भल कहाँ भी जाओ। मुरली तुमको मिलती रहेगी, मुरली पढ़ने की मिलेट्री में भी मना नहीं हो सकती। मिलेट्री को ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाइबल वा ग्रंथ आदि नहीं पढ़ो, सब पढ़ते हैं। उन्हों के मन्दिर भी होते हैं। तो मुरली कहाँ भी मिल सकती है। फिर भी तो लक्ष्य मिला हुआ है ना। मुख्य बात ही है बाप का परिचय देना। पहले तो निश्चय बैठे कि हमको पढ़ाने वाला नॉलेजफुल गॉड फादर है तब और बातों को समझ सकेंगे। गॉड फादर कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह किसको पता नहीं है। लिखा हुआ भी है भगवानुवाच। उनका नाम शिव है। परम आत्मा है ना। परम अर्थात् सुप्रीम। परमधाम में तो सब रहते हैं। आत्माओं में भी सुप्रीम पार्ट तो किसका होगा ना। उनको क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर कहा जाता है। वह है रचयिता, करनकरावनहार, फिर पार्टधारी भी है। इसमें आकर कितना पार्ट बजाते हैं, जिससे भारत स्वर्ग बनता है। ऊंच ते ऊंच बाप शिवबाबा आया, क्या आकर किया? कुछ भी नहीं जानते। कल्प की आयु ही लम्बी कर दी है। बाप कहते हैं मुझे आना ही है कलियुग अन्त और सतयुग आदि में। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, पावन दुनिया थी। हम सो पावन फिर हम सो पतित। चढ़ती कला उतरती कला कैसे होती है। अभी यह सब तुम्हारी बुद्धि में है। बाप कहते हैं बच्चे, सबको बाप का परिचय देते रहो। बाप जब स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर हमको स्वर्ग की बादशाही मिलनी चाहिए। भारत को थी, अब नहीं है, इसलिए भगवान को आना ही पड़ता है। भारत ही शिवबाबा का बर्थप्लेस है। आकर तुमको स्वर्गवासी बनाया था। अब तुम भूल गये हो। भूल और अभुल का यह खेल है। इस नॉलेज को भूलने से फिर उतरती कला होती है। एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति चढ़ती कला। जीवनबंध में कितना समय लगा, यह बातें शास्त्रों में थोड़ेही हैं। जनक की बात है ना। बाप कहते हैं जो भी कुछ पढ़ा है सब भूल जाओ। बाप, टीचर, सतगुरू मैं ही हूँ - 21 जन्मों का तुमको वर्सा देता हूँ। फिर भी अहो मम माया तुम कब्रिस्तानी बना देती हो। शिवबाबा परिस्तानी बनाते हैं, माया बहुत बच्चों को धोखा देती है क्योंकि श्रीमत पर ठीक रीति नहीं चलते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मुरली रोज जरूर पढ़नी है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। किसी भी प्रकार के धोखे से बचने के लिए श्रीमत लेते रहना है।
2) पढ़ाई और योग दोनों इकठ्ठा हैं इसलिए पढ़ाने वाले बाप को याद करना है। निश्चय बुद्धि बनना और बनाना है। बाप का ही परिचय सबको देना है।
वरदान: मन-बुद्धि की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय करने वाले सफलता सम्पन्न भव
किसी भी कार्य में सफलता तब प्राप्त होती है जब समय पर बुद्धि यथार्थ निर्णय देती है। लेकिन निर्णय शक्ति काम तब करती है जब मन-बुद्धि स्वच्छ हो, कोई भी किचड़ा न हो इसलिए योग अग्नि द्वारा किचड़े को खत्म कर बुद्धि को स्वच्छ बनाओ। किसी भी प्रकार की कमजोरी-यह गन्दगी है। जरा सा व्यर्थ संकल्प भी किचड़ा है, जब यह किचड़ा समाप्त हो तब बेफिक्र रहेंगे और स्वच्छ बुद्धि होने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
स्लोगन: सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्प इमर्ज रहें तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 16th Sep 2017 )
16.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Kabhi mat bhed me aakar padhai mat chodo, padhai chhodne se maya ajgar ke pet me chale jayenge.
Q- Yah common satsang na hone ke kaaran Baap ko kin baato me baccho ko baar-baar savdhan karna padta hai?
A- Yah duniya ke satsango ki tarah satsang nahi, yahan to pawan banne ki sikshya milti hai. Pawan banne me maya ke bighna padte hain isiliye Baap ko baar-baar savdhan karna padta hai. Bacche kabhi, kuch bhi ho- tum sukh-dukh, ninda-sthuti soonte padhai ko kabhi nahi chhodna. 2) Apne ko miya mitthu samajh kisi ki glani mat karna. Maya badi chanchal hai. Agar Baap se roothkar padhai chhodi to maya matha mood legi. Grihachari baith jayegi, isiliye shrimat lete rehna. Bapdada ki raye me kabhi tika-tippani nahi karna.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Amritvele ooth vichar sagar manthan karna hai. Kabhi bhi sansay buddhi ban, sang dosh me aakar padhai nahi chhodni hai.
2) Mala ka manka banne ke liye bafadar, farman bardar banna hai. Apni chalan royal rakhni hai Bahut-bahut mitha banna hai.
Vardaan:- Buddhi ko busy rakhne ki biddhi dwara byarth ko samapt karne wale Sada Samarth bhava
Slogan:-- Dukho ki duniya ko bhoolna hai to Parmatm pyaar me sada khoye raho.
"मीठे बच्चे - कभी मदभेद में आकर पढ़ाई मत छोड़ो, पढ़ाई छोड़ने से माया अजगर के पेट में चले जायेंगे"
प्रश्न: यह कॉमन सतसंग न होने के कारण बाप को किन बातों में बच्चों को बार-बार सावधान करना पड़ता है?
उत्तर: यह दुनिया के सतसंगों की तरह सतसंग नहीं, यहाँ तो पावन बनने की शिक्षा मिलती है। पावन बनने में माया के विघ्न पड़ते हैं इसलिए बाप को बार-बार सावधान करना पड़ता है। बच्चे कभी, कुछ भी हो-तुम सुख-दु:ख, निंदा-स्तुति सुनते पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ना। 2- अपने को मिया मिठ्ठू समझ किसी की ग्लानी मत करना। माया बड़ी चंचल है। अगर बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ी तो माया माथा मूड लेगी। गृहचारी बैठ जायेगी, इसलिए श्रीमत लेते रहना। बापदादा की राय में कभी टीका-टिप्पणी नहीं करना।
गीत: मरना तेरी गली में... ओम् शान्ति।
यह तो बच्चे जानते हैं, कहते हैं जब हम आपके बने हैं यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी ही है। यह बेहद के रावण की लंका है जो विनाश होनी है। वह जो सिलान में लंका दिखाते हैं वह तो बात ही बिल्कुल झूठी है। सीलान एक टापू (बेट) है - समुद्र के बीच में। बेहद का बाप समझाते हैं कि यह सारी दुनिया है समुद्र के ऊपर, आलराउन्ड समुद्र है। दिखाते हैं ना - वास्कोडिगामा ने आलराउन्ड चक्र लगाया तो गोया धरती पानी के ऊपर ठहरी हुई है। बेट हो गया ना। यह बेहद की खाड़ी है। रावण का राज्य सारे बेहद के आइलैण्ड पर है। यह बेहद की लंका है। सिर्फ सिलान नहीं है। वह समय तो अब है ना। यह तो शास्त्रों में कितने गपोड़े लगाये हैं। हम भी समझते थे, शायद ऐसा हुआ होगा। कुछ भी ख्याल नहीं चलता था। विचार करें तब तो ख्याल चले ना। बुद्धि बिल्कुल लॉकप थी। अब बुद्धि का ताला खुला है। मनुष्य तो समझते हैं बन्दर सेना ली, उन्होंने पत्थर उठाये, पुल बनाई, आग लगाई..... क्या-क्या बातें बैठ बनाई हैं। आग तो इस समय सारी दुनिया को लगती है। यह भारत अविनाशी बाप की अविनाशी जन्म भूमि है, इसलिए इनको अविनाशी खण्ड कहा जाता है। बरोबर भारत प्राचीन था, अब तुम्हारी बुद्धि में बैठा है - बरोबर भारत अविनाशी खण्ड है। बाकी जो इस समय खण्ड हैं वह सब खत्म हो जायेंगे, विनाश ज्वाला में। यह विनाश ज्वाला इस यज्ञ से प्रज्वलित हुई है। लड़ाई शुरू यहाँ से ही हुई है। अभी तो यह छोटी-छोटी रिहर्सल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि सारी दुनिया में ही रावणराज्य है। इसका अब अन्त है और राम राज्य की आदि है। यह बातें और किसकी बुद्धि में आ न सकें। तुम थोड़े से ही ब्राह्मण जानते हो। समझते भी हो कि अभी यह सारी दुनिया खत्म हो जायेगी। हम बाप के गले का हार बन जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट होती है। कितना अच्छा यह चक्र है। कलियुग अन्त और सतयुग आदि, इस समय सभी धर्म भी जरूर हैं। हिस्ट्री म्स्ट रिपीट, यानी कलियुग के बाद सतयुग जरूर होना है। जैसे दिन के बाद रात, रात के बाद दिन जरूर आता है। ऐसे हो न सके कि रात न आये। बाप सब राज आकरके समझाते हैं। हम एक्टर 84 जन्म कैसे लेते हैं वह भी तो जानना चाहिए। 84 लाख जन्म की तो बात ही नहीं है। कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है। वो लोग तो तुमको कहते हैं कि शास्त्रों में तो ऐसा है नहीं, यह तो तुम्हारी कल्पना है। न जानने के कारण तो ऐसे ही कहेंगे ना। शास्त्र तो पढ़ते रहते हैं, उनका कोई दोष तो है नहीं। बाबा कहते हैं सतयुग में यह शास्त्र, कहानियाँ, नॉविल्स आदि तो होंगी नहीं। वहाँ तो भारत बिल्कुल सचखण्ड बन जाता है। भारत खण्ड सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ है। यहाँ सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी है। ऐसा मन्दिर कब, कहाँ भी बन नहीं सकता। फिर भी यह मन्दिर आदि बनेंगे। कब बनेंगे? जब भक्तिमार्ग शुरू होगा तब बनाते हैं और कोई तो बना न सके। तुम संवत भी बता सकते हो। आज से फलाने टाइम से भक्ति शुरू होगी। पहले लक्ष्मी-नारायण ही पुजारी बनेंगे, सिंगल ताज होगा। शिवबाबा का सोमनाथ मन्दिर बनायेंगे। फिर से मुहम्मद गजनवी आदि आकर लूटेंगे। यह बातें तुम बच्चों को बाप ही बैठ समझाते हैं। कहते भी हैं भगवान आया-गीता का ज्ञान इतना तो सुनाया जो सारा सागर स्याही बनाओ, सारा जंगल कलम बनाओ तो भी लिख न सके और उन्होंने गीता फिर कितनी छोटी बना दी है। गीता लाकेट में भी होती है। वैल्युबुल चीज है ना। इतना लव गीता पर रहता है। बाबा ने इतनी छोटी सोनी डिब्बी में डाल प्रेजन्ट भी दी है। अब तुम बच्चे समझते हो कि ज्ञान का सागर अथाह ज्ञान देते हैं और अन्त तक देते ही रहेंगे। हम यह मुरली इक्ठ्ठी कर सकेंगे क्या? यह रखने की चीज ही नहीं है। शास्त्र आदि तो फिर भी भक्ति मार्ग के काम में आते हैं। हम जो लिखते हैं वह फिर क्या काम में आयेंगे! कहाँ तो हमारी 2-4 हजार मुरलियां, कहाँ उन्हों की करोड़ों के अन्दाज में गीतायें बनती हैं सब भाषाओं में। सर्वशास्त्र मई शिरोमणी गीता का बहुत मान है। गीता शास्त्र आदि कितने पढ़ते होंगे। बाप समझाते हैं - यह ज्ञान जो तुमको मिलता है यह बिल्कुल ही नया है। इसका पुस्तक तो है नहीं। भगवान राजयोग कैसे सिखाते हैं। यह अब तुम ब्राह्मण ही जानते हो। तुम्हारे में भी इस ज्ञान के नशे में रहने वाले बहुत थोड़े हैं। आज उस नशे में रहते हैं, कल भूल जाते हैं। बाप को भूल जाते हैं तो ज्ञान को भी भूल जाते हैं। बाप को फारकती दी तो खलास। बाप का बनकर अगर विकार में गये तो गला घुट जायेगा, कुछ भी बोल नहीं सकेंगे। जो बहुत अच्छा!अच्छा प्रचार करते थे वह आज हैं नहीं। कोई ब्रह्माकुमार कुमारी का आपस में मतभेद हुआ तो बाप से भी रूठ जाते हैं कि बाबा इनको समझाते नहीं, यह नहीं करते। आखरीन रूठकर पढ़ाई ही छोड़ देते हैं इसलिए बाप कहते हैं कि महामूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो। लिखकर भी देते हैं कि बाबा मैं आपका हूँ। आप से हम सदा सुख का वर्सा अविनाशी लेंगे। फिर फारकती दे देते। डायओर्स दे देते हैं। अच्छी-अच्छी बच्चियां थी आज वह हैं नहीं, तो वन्डर है ना, माया अजगर के पेट में चले गये। फिर मुख से कुछ कह न सकें। यह अविनाशी ज्ञान सुना न सकें। फिर बापदादा की राय पर भी टीकाटिप्पणी करने लग पड़ते हैं। बहुत समझाया जाता है कि कुछ सुधर जाओ, इसमें ही कल्याण है। परन्तु सुधरते नहीं। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे चले गये। अभी भी बहुत ऐसे बच्चे हैं जो किनारे पर खड़े हैं। ब्लड से प्रतिज्ञा लिखकर भी छोड़ देते हैं। बच्चों को तो बाप की पूरी श्रीमत पर चल बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। बाप समझाते रहते हैं-कुछ भी हो दु:ख-सुख, स्तुति-निंदा आदि कोई करे तुम पढ़ाई को तो ना छोड़ो। कोई किसकी निंदा भी करते हैं क्योंकि बुद्धि में तो ज्ञान है नही। जानते नहीं हैं कि यह छोटा भाई है वा बड़ा। यह तो बाप ही जाने। अपने मुँह मिया मिठ्ठू नहीं बनना है। माया बड़ी चंचल है। देह-अभिमान वालों का माथा ही एकदम मूड लेती है। बाबा बच्चों को खबरदार करते रहते हैं। कहाँ न कहाँ माया वार करती रहेगी - अगर श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो। यह कोई कॉमन सतसंग थोड़ेही है। तुम कितना धीरज (धैर्यता) से बैठ समझाते हो। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। कैसे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। बाप कहते हैं ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी। शंख, चक्र, गदा, पदमधारी - तुमको कहते हैं। वह कहेंगे क्या देवताओं की महिमा अपने बच्चों को दे रखी है। बाप कहते हैं हे स्वदर्शन चक्रधारी, हे कमल फूल समान पवित्र बनने वाले, हे गदाधारी-यह बाप ही समझाते हैं। दुनिया क्या जाने। कहते भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। गाते भी हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया...अर्थात् ब्रह्मा की रात खत्म होती है। ज्ञान सूर्य प्रगटा, ब्रह्मा की रात पूरी होती फिर दिन शुरू हो जाता है। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा नया ज्ञान देते हैं। आगे तो तुम कुछ भी नहीं जानते थे। न आत्मा को, न परमात्मा को, न रचता को और न रचना को जानते थे। बिल्कुल ही तुच्छबुद्धि बन पड़े थे। तुमको क्या बनाया था! तुम स्वर्ग के मालिक थे ना। फिर 84 जन्म लेते-लेते अन्त तो आयेगा ना। अब तुम्हारी चढ़ती कला है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। विवेक भी कहता है कि परमपिता परमात्मा है स्वर्ग का रचयिता, तो हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं! मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आता कि भगवान ने तो नई सृष्टि स्वर्ग रचा, जहाँ देवी-देवता राज्य करते थे। 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। अब फिर भगवान आये हैं स्वर्ग की स्थापना करने। यह बातें बुद्धि में अच्छी रीति बैठ जाएं तो भी अहो सौभाग्य। माया ऐसी है जो बिल्कुल ही पुरूषार्थ करने नहीं देती। नाक से पकड़ घूंसा मार एकदम बेहोश कर देती है। बॉाक्सिंग है ना। बाबा कहते हैं माया एक सेकेण्ड में गिरा देती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति से सेकेण्ड में जीवनबंध बन पड़ते हैं। फारकती दे देते हैं, खलास। निश्चय हुआ-यह बादशाही लो। संशय हुआ खलास। बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाबा कहते हैं अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन करो और तो टाइम सारे दिन में मिलता नहीं है। रात को तो वायुमण्डल खराब रहता है। भक्ति भी सवेरे उठकर करते हैं। तुम बच्चों को मालूम है कि बाबा एक दो बजे उठकर मुरली लिखते थे, जो तुम पढ़कर फिर क्लास कराते थे। फिर बाबा बैठ सुनते थे कि देखें कैसे मुरली चलाते हैं। यह सब तो शिवबाबा का ही कमाल था। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे थे, चले गये। आज हैं नहीं। माया ने एकदम श्रापित कर दिया। बाप तो वर्सा दे रहे हैं। तो बच्चों को पूरा पुरूषार्थ कर वर्सा लेना चाहिए। अच्छी रीति खुद भी समझते हैं। बाप भी समझते हैं। बाप का हाथ छोड़ देते हैं। सब कहेंगे तुमने बी.के. को छोड़ दिया है। तुमको तो निश्चय था ना कि हम बेहद का वर्सा पा रहे हैं फिर क्या हुआ जो मुरली भी नहीं सुनते हो। फिर तो बाप को भी नहीं याद करते होंगे। फिर वह याद आदि सब उड़ जाती है। ऐसी दुर्गति शल किसी बच्चे की न हो। बाप तो समझ सकते हैं ना - यह बच्चा बड़ा खराब हो गया है। अच्छे-अच्छे बच्चे भी संगदोष में खराब हो पड़ते हैं। बाबा कहते हैं कि फर्स्टक्लास बच्चे ही विजय माला के मणके बन सकते हैं। कई बच्चे लिखते हैं कि बाबा हम आपकी माला का मणका जरूर बनेंगे। बाबा तो कहते हैं तुम बनो - अहो सौभाग्य। बाप भी चलन से समझ जायेंगे। सर्विस से ही बच्चों की वफादारी, फरमानबरदारी सिद्ध होती है। अति मीठा बनना चाहिए। सम्मुख सुनने से वैराग्य आता है। ऐसा फिर कभी नहीं करेंगे, यह करेंगे। यहाँ से बाहर निकला बस खलास। सब भूल जाते हैं। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। बाबा के तो दिन-रात ख्यालात चलते रहते हैं। प्रोजेक्टर में गोला इतना बड़ा दिखाई पड़ना चाहिए जो मनुष्य दूर से ही एकदम अच्छी रीति पढ़ सकें। बड़ी दीवारों पर इतना बड़ा दिखाई पड़े। क्लीयर हो। एक-एक चित्र स्लाइड से इतना बड़ा दिखाई पड़े जो सामने कोई भी पढ़ सके। दो गोले भी इतने बड़े दिखाई पड़े। यहाँ से भक्ति मार्ग शुरू होता है। पहले होती है-अव्यभिचारी भक्ति, फिर है व्यभिचारी भक्ति। यह ब्रह्मा है शिवबाबा का सपूत बच्चा। ब्रह्मा से अगर कोई सवाल पूछे तो क्या जवाब नहीं दे सकते हैं? भल शिवबाबा तो जानते हैं परन्तु मैं भी तो समझा सकता हूँ ना। बाबा ने राइटहैण्ड बनाया है। कुछ तो समझा होगा ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन करना है। कभी भी संशयबुद्धि बन, संगदोष में आकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
2) माला का मणका बनने के लिए वफादार, फरमानबरदार बनना है। अपनी चलन रॉयल रखनी है। बहुतबहुत मीठा बनना है।
वरदान: बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव
सदा समर्थ अर्थात् शक्तिशाली वही बनता है जो बुद्धि को बिजी रखने की विधि को अपनाता है। व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनने का सहज साधन ही है-सदा बिजी रहना इसलिए रोज सवेरे जैसे स्थूल दिनचर्या बनाते हो ऐसे अपनी बुद्धि को बिजी रखने का टाइम-टेबल बनाओ कि इस समय बुद्धि में इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ को खत्म करेंगे। बिजी रहेंगे तो माया दूर से ही वापस चली जायेगी।
स्लोगन: दु:खों की दुनिया को भूलना है तो परमात्म प्यार में सदा खोये रहो।
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Mithe bacche - Kabhi mat bhed me aakar padhai mat chodo, padhai chhodne se maya ajgar ke pet me chale jayenge.
Q- Yah common satsang na hone ke kaaran Baap ko kin baato me baccho ko baar-baar savdhan karna padta hai?
A- Yah duniya ke satsango ki tarah satsang nahi, yahan to pawan banne ki sikshya milti hai. Pawan banne me maya ke bighna padte hain isiliye Baap ko baar-baar savdhan karna padta hai. Bacche kabhi, kuch bhi ho- tum sukh-dukh, ninda-sthuti soonte padhai ko kabhi nahi chhodna. 2) Apne ko miya mitthu samajh kisi ki glani mat karna. Maya badi chanchal hai. Agar Baap se roothkar padhai chhodi to maya matha mood legi. Grihachari baith jayegi, isiliye shrimat lete rehna. Bapdada ki raye me kabhi tika-tippani nahi karna.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Amritvele ooth vichar sagar manthan karna hai. Kabhi bhi sansay buddhi ban, sang dosh me aakar padhai nahi chhodni hai.
2) Mala ka manka banne ke liye bafadar, farman bardar banna hai. Apni chalan royal rakhni hai Bahut-bahut mitha banna hai.
Vardaan:- Buddhi ko busy rakhne ki biddhi dwara byarth ko samapt karne wale Sada Samarth bhava
Slogan:-- Dukho ki duniya ko bhoolna hai to Parmatm pyaar me sada khoye raho.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
16-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे बच्चे - कभी मदभेद में आकर पढ़ाई मत छोड़ो, पढ़ाई छोड़ने से माया अजगर के पेट में चले जायेंगे"
प्रश्न: यह कॉमन सतसंग न होने के कारण बाप को किन बातों में बच्चों को बार-बार सावधान करना पड़ता है?
उत्तर: यह दुनिया के सतसंगों की तरह सतसंग नहीं, यहाँ तो पावन बनने की शिक्षा मिलती है। पावन बनने में माया के विघ्न पड़ते हैं इसलिए बाप को बार-बार सावधान करना पड़ता है। बच्चे कभी, कुछ भी हो-तुम सुख-दु:ख, निंदा-स्तुति सुनते पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ना। 2- अपने को मिया मिठ्ठू समझ किसी की ग्लानी मत करना। माया बड़ी चंचल है। अगर बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ी तो माया माथा मूड लेगी। गृहचारी बैठ जायेगी, इसलिए श्रीमत लेते रहना। बापदादा की राय में कभी टीका-टिप्पणी नहीं करना।
गीत: मरना तेरी गली में... ओम् शान्ति।
यह तो बच्चे जानते हैं, कहते हैं जब हम आपके बने हैं यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी ही है। यह बेहद के रावण की लंका है जो विनाश होनी है। वह जो सिलान में लंका दिखाते हैं वह तो बात ही बिल्कुल झूठी है। सीलान एक टापू (बेट) है - समुद्र के बीच में। बेहद का बाप समझाते हैं कि यह सारी दुनिया है समुद्र के ऊपर, आलराउन्ड समुद्र है। दिखाते हैं ना - वास्कोडिगामा ने आलराउन्ड चक्र लगाया तो गोया धरती पानी के ऊपर ठहरी हुई है। बेट हो गया ना। यह बेहद की खाड़ी है। रावण का राज्य सारे बेहद के आइलैण्ड पर है। यह बेहद की लंका है। सिर्फ सिलान नहीं है। वह समय तो अब है ना। यह तो शास्त्रों में कितने गपोड़े लगाये हैं। हम भी समझते थे, शायद ऐसा हुआ होगा। कुछ भी ख्याल नहीं चलता था। विचार करें तब तो ख्याल चले ना। बुद्धि बिल्कुल लॉकप थी। अब बुद्धि का ताला खुला है। मनुष्य तो समझते हैं बन्दर सेना ली, उन्होंने पत्थर उठाये, पुल बनाई, आग लगाई..... क्या-क्या बातें बैठ बनाई हैं। आग तो इस समय सारी दुनिया को लगती है। यह भारत अविनाशी बाप की अविनाशी जन्म भूमि है, इसलिए इनको अविनाशी खण्ड कहा जाता है। बरोबर भारत प्राचीन था, अब तुम्हारी बुद्धि में बैठा है - बरोबर भारत अविनाशी खण्ड है। बाकी जो इस समय खण्ड हैं वह सब खत्म हो जायेंगे, विनाश ज्वाला में। यह विनाश ज्वाला इस यज्ञ से प्रज्वलित हुई है। लड़ाई शुरू यहाँ से ही हुई है। अभी तो यह छोटी-छोटी रिहर्सल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि सारी दुनिया में ही रावणराज्य है। इसका अब अन्त है और राम राज्य की आदि है। यह बातें और किसकी बुद्धि में आ न सकें। तुम थोड़े से ही ब्राह्मण जानते हो। समझते भी हो कि अभी यह सारी दुनिया खत्म हो जायेगी। हम बाप के गले का हार बन जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट होती है। कितना अच्छा यह चक्र है। कलियुग अन्त और सतयुग आदि, इस समय सभी धर्म भी जरूर हैं। हिस्ट्री म्स्ट रिपीट, यानी कलियुग के बाद सतयुग जरूर होना है। जैसे दिन के बाद रात, रात के बाद दिन जरूर आता है। ऐसे हो न सके कि रात न आये। बाप सब राज आकरके समझाते हैं। हम एक्टर 84 जन्म कैसे लेते हैं वह भी तो जानना चाहिए। 84 लाख जन्म की तो बात ही नहीं है। कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है। वो लोग तो तुमको कहते हैं कि शास्त्रों में तो ऐसा है नहीं, यह तो तुम्हारी कल्पना है। न जानने के कारण तो ऐसे ही कहेंगे ना। शास्त्र तो पढ़ते रहते हैं, उनका कोई दोष तो है नहीं। बाबा कहते हैं सतयुग में यह शास्त्र, कहानियाँ, नॉविल्स आदि तो होंगी नहीं। वहाँ तो भारत बिल्कुल सचखण्ड बन जाता है। भारत खण्ड सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ है। यहाँ सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी है। ऐसा मन्दिर कब, कहाँ भी बन नहीं सकता। फिर भी यह मन्दिर आदि बनेंगे। कब बनेंगे? जब भक्तिमार्ग शुरू होगा तब बनाते हैं और कोई तो बना न सके। तुम संवत भी बता सकते हो। आज से फलाने टाइम से भक्ति शुरू होगी। पहले लक्ष्मी-नारायण ही पुजारी बनेंगे, सिंगल ताज होगा। शिवबाबा का सोमनाथ मन्दिर बनायेंगे। फिर से मुहम्मद गजनवी आदि आकर लूटेंगे। यह बातें तुम बच्चों को बाप ही बैठ समझाते हैं। कहते भी हैं भगवान आया-गीता का ज्ञान इतना तो सुनाया जो सारा सागर स्याही बनाओ, सारा जंगल कलम बनाओ तो भी लिख न सके और उन्होंने गीता फिर कितनी छोटी बना दी है। गीता लाकेट में भी होती है। वैल्युबुल चीज है ना। इतना लव गीता पर रहता है। बाबा ने इतनी छोटी सोनी डिब्बी में डाल प्रेजन्ट भी दी है। अब तुम बच्चे समझते हो कि ज्ञान का सागर अथाह ज्ञान देते हैं और अन्त तक देते ही रहेंगे। हम यह मुरली इक्ठ्ठी कर सकेंगे क्या? यह रखने की चीज ही नहीं है। शास्त्र आदि तो फिर भी भक्ति मार्ग के काम में आते हैं। हम जो लिखते हैं वह फिर क्या काम में आयेंगे! कहाँ तो हमारी 2-4 हजार मुरलियां, कहाँ उन्हों की करोड़ों के अन्दाज में गीतायें बनती हैं सब भाषाओं में। सर्वशास्त्र मई शिरोमणी गीता का बहुत मान है। गीता शास्त्र आदि कितने पढ़ते होंगे। बाप समझाते हैं - यह ज्ञान जो तुमको मिलता है यह बिल्कुल ही नया है। इसका पुस्तक तो है नहीं। भगवान राजयोग कैसे सिखाते हैं। यह अब तुम ब्राह्मण ही जानते हो। तुम्हारे में भी इस ज्ञान के नशे में रहने वाले बहुत थोड़े हैं। आज उस नशे में रहते हैं, कल भूल जाते हैं। बाप को भूल जाते हैं तो ज्ञान को भी भूल जाते हैं। बाप को फारकती दी तो खलास। बाप का बनकर अगर विकार में गये तो गला घुट जायेगा, कुछ भी बोल नहीं सकेंगे। जो बहुत अच्छा!अच्छा प्रचार करते थे वह आज हैं नहीं। कोई ब्रह्माकुमार कुमारी का आपस में मतभेद हुआ तो बाप से भी रूठ जाते हैं कि बाबा इनको समझाते नहीं, यह नहीं करते। आखरीन रूठकर पढ़ाई ही छोड़ देते हैं इसलिए बाप कहते हैं कि महामूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो। लिखकर भी देते हैं कि बाबा मैं आपका हूँ। आप से हम सदा सुख का वर्सा अविनाशी लेंगे। फिर फारकती दे देते। डायओर्स दे देते हैं। अच्छी-अच्छी बच्चियां थी आज वह हैं नहीं, तो वन्डर है ना, माया अजगर के पेट में चले गये। फिर मुख से कुछ कह न सकें। यह अविनाशी ज्ञान सुना न सकें। फिर बापदादा की राय पर भी टीकाटिप्पणी करने लग पड़ते हैं। बहुत समझाया जाता है कि कुछ सुधर जाओ, इसमें ही कल्याण है। परन्तु सुधरते नहीं। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे चले गये। अभी भी बहुत ऐसे बच्चे हैं जो किनारे पर खड़े हैं। ब्लड से प्रतिज्ञा लिखकर भी छोड़ देते हैं। बच्चों को तो बाप की पूरी श्रीमत पर चल बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। बाप समझाते रहते हैं-कुछ भी हो दु:ख-सुख, स्तुति-निंदा आदि कोई करे तुम पढ़ाई को तो ना छोड़ो। कोई किसकी निंदा भी करते हैं क्योंकि बुद्धि में तो ज्ञान है नही। जानते नहीं हैं कि यह छोटा भाई है वा बड़ा। यह तो बाप ही जाने। अपने मुँह मिया मिठ्ठू नहीं बनना है। माया बड़ी चंचल है। देह-अभिमान वालों का माथा ही एकदम मूड लेती है। बाबा बच्चों को खबरदार करते रहते हैं। कहाँ न कहाँ माया वार करती रहेगी - अगर श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो। यह कोई कॉमन सतसंग थोड़ेही है। तुम कितना धीरज (धैर्यता) से बैठ समझाते हो। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। कैसे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। बाप कहते हैं ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी। शंख, चक्र, गदा, पदमधारी - तुमको कहते हैं। वह कहेंगे क्या देवताओं की महिमा अपने बच्चों को दे रखी है। बाप कहते हैं हे स्वदर्शन चक्रधारी, हे कमल फूल समान पवित्र बनने वाले, हे गदाधारी-यह बाप ही समझाते हैं। दुनिया क्या जाने। कहते भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। गाते भी हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया...अर्थात् ब्रह्मा की रात खत्म होती है। ज्ञान सूर्य प्रगटा, ब्रह्मा की रात पूरी होती फिर दिन शुरू हो जाता है। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा नया ज्ञान देते हैं। आगे तो तुम कुछ भी नहीं जानते थे। न आत्मा को, न परमात्मा को, न रचता को और न रचना को जानते थे। बिल्कुल ही तुच्छबुद्धि बन पड़े थे। तुमको क्या बनाया था! तुम स्वर्ग के मालिक थे ना। फिर 84 जन्म लेते-लेते अन्त तो आयेगा ना। अब तुम्हारी चढ़ती कला है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। विवेक भी कहता है कि परमपिता परमात्मा है स्वर्ग का रचयिता, तो हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं! मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आता कि भगवान ने तो नई सृष्टि स्वर्ग रचा, जहाँ देवी-देवता राज्य करते थे। 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। अब फिर भगवान आये हैं स्वर्ग की स्थापना करने। यह बातें बुद्धि में अच्छी रीति बैठ जाएं तो भी अहो सौभाग्य। माया ऐसी है जो बिल्कुल ही पुरूषार्थ करने नहीं देती। नाक से पकड़ घूंसा मार एकदम बेहोश कर देती है। बॉाक्सिंग है ना। बाबा कहते हैं माया एक सेकेण्ड में गिरा देती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति से सेकेण्ड में जीवनबंध बन पड़ते हैं। फारकती दे देते हैं, खलास। निश्चय हुआ-यह बादशाही लो। संशय हुआ खलास। बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाबा कहते हैं अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन करो और तो टाइम सारे दिन में मिलता नहीं है। रात को तो वायुमण्डल खराब रहता है। भक्ति भी सवेरे उठकर करते हैं। तुम बच्चों को मालूम है कि बाबा एक दो बजे उठकर मुरली लिखते थे, जो तुम पढ़कर फिर क्लास कराते थे। फिर बाबा बैठ सुनते थे कि देखें कैसे मुरली चलाते हैं। यह सब तो शिवबाबा का ही कमाल था। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे थे, चले गये। आज हैं नहीं। माया ने एकदम श्रापित कर दिया। बाप तो वर्सा दे रहे हैं। तो बच्चों को पूरा पुरूषार्थ कर वर्सा लेना चाहिए। अच्छी रीति खुद भी समझते हैं। बाप भी समझते हैं। बाप का हाथ छोड़ देते हैं। सब कहेंगे तुमने बी.के. को छोड़ दिया है। तुमको तो निश्चय था ना कि हम बेहद का वर्सा पा रहे हैं फिर क्या हुआ जो मुरली भी नहीं सुनते हो। फिर तो बाप को भी नहीं याद करते होंगे। फिर वह याद आदि सब उड़ जाती है। ऐसी दुर्गति शल किसी बच्चे की न हो। बाप तो समझ सकते हैं ना - यह बच्चा बड़ा खराब हो गया है। अच्छे-अच्छे बच्चे भी संगदोष में खराब हो पड़ते हैं। बाबा कहते हैं कि फर्स्टक्लास बच्चे ही विजय माला के मणके बन सकते हैं। कई बच्चे लिखते हैं कि बाबा हम आपकी माला का मणका जरूर बनेंगे। बाबा तो कहते हैं तुम बनो - अहो सौभाग्य। बाप भी चलन से समझ जायेंगे। सर्विस से ही बच्चों की वफादारी, फरमानबरदारी सिद्ध होती है। अति मीठा बनना चाहिए। सम्मुख सुनने से वैराग्य आता है। ऐसा फिर कभी नहीं करेंगे, यह करेंगे। यहाँ से बाहर निकला बस खलास। सब भूल जाते हैं। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। बाबा के तो दिन-रात ख्यालात चलते रहते हैं। प्रोजेक्टर में गोला इतना बड़ा दिखाई पड़ना चाहिए जो मनुष्य दूर से ही एकदम अच्छी रीति पढ़ सकें। बड़ी दीवारों पर इतना बड़ा दिखाई पड़े। क्लीयर हो। एक-एक चित्र स्लाइड से इतना बड़ा दिखाई पड़े जो सामने कोई भी पढ़ सके। दो गोले भी इतने बड़े दिखाई पड़े। यहाँ से भक्ति मार्ग शुरू होता है। पहले होती है-अव्यभिचारी भक्ति, फिर है व्यभिचारी भक्ति। यह ब्रह्मा है शिवबाबा का सपूत बच्चा। ब्रह्मा से अगर कोई सवाल पूछे तो क्या जवाब नहीं दे सकते हैं? भल शिवबाबा तो जानते हैं परन्तु मैं भी तो समझा सकता हूँ ना। बाबा ने राइटहैण्ड बनाया है। कुछ तो समझा होगा ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन करना है। कभी भी संशयबुद्धि बन, संगदोष में आकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
2) माला का मणका बनने के लिए वफादार, फरमानबरदार बनना है। अपनी चलन रॉयल रखनी है। बहुतबहुत मीठा बनना है।
वरदान: बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव
सदा समर्थ अर्थात् शक्तिशाली वही बनता है जो बुद्धि को बिजी रखने की विधि को अपनाता है। व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनने का सहज साधन ही है-सदा बिजी रहना इसलिए रोज सवेरे जैसे स्थूल दिनचर्या बनाते हो ऐसे अपनी बुद्धि को बिजी रखने का टाइम-टेबल बनाओ कि इस समय बुद्धि में इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ को खत्म करेंगे। बिजी रहेंगे तो माया दूर से ही वापस चली जायेगी।
स्लोगन: दु:खों की दुनिया को भूलना है तो परमात्म प्यार में सदा खोये रहो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 17th Sep 2017 )
17.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban – Avyakt Murali
Headline – Vyarth ko chor Samarth sankalp chalao
Vardan – Apni shaktiyon wa guno dwara nirbal ko shaktiwan bananewale sresth dani wa sahyogi bhav.
Slogan – Jo Dridh Nischay se bhagya ko nischit kar dete hai wahi sada nischint rahte hai.
व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ
आज बापदादा सभी सिकीलधे बच्चों से मिलन मनाने के लिए विशेष आये हैं। डबल विदेशी बच्चे मिलन मनाने के लिए सदा इन्तजार में रहते हैं। तो आज बापदादा डबल विदेशी बच्चों से एक एक की विशेषता की रूह-रूहाण करने आये हैं। एक-एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। कहाँ संख्या ज्यादा और कहाँ संख्या कम होते भी अमूल्य रत्न, विशेष रत्न थोड़े चुने हुए होते भी अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे बच्चों के उमंग-उत्साह को देख, बच्चों की सेवा को देख बापदादा हर्षित होते हैं। विशेष रूप में विदेश के चारों ही कोनों में बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन प्रैक्टिकल करने में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। सर्व धर्मो की आत्माओं को बाप से मिलाने का प्रयत्न अच्छा कर रहे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। अपनी भटकती हुई आत्मा को ठिकाना मिलने के अनुभवी होने के कारण औरों के प्रति भी रहम आता है। जो भी दूर-दूर से आये हैं उन्हों का एक ही उमंग है कि जाना है और अन्य को भी ले जाना है। इस दृढ़ संकल्प ने सभी बच्चों को दूर होते भी नजदीक का अनुभव कराया है इसलिए सदा अपने को बापदादा के वर्से के अधिकारी आत्मा समझ चल रहे हैं।
कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में नहीं लाओ। कल्प-कल्प के पात्र हो। अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है। पहला नम्बर मिलने का चान्स अमेरिका पार्टी को मिला है। तो अमेरिका वाले सभी मिलकर सेवा में सबसे नम्बरवन कमाल भी तो दिखायेंगे ना। अभी बापदादा देखेंगे कि कान्फेरांस में सबसे बड़े ते बड़े वी.आई.पी. कौन ले आते हैं। नम्बरवन वी.आई.पी. कहाँ से आ रहा है? (अमेरिका से) वैसे तो आप बाप के बच्चे वी.वी.वी.आई.पी. हो। आप सबसे बड़ा तो कोई भी नहीं है लेकिन जो इस दुनिया के वी.आई.पी. हैं उन आत्माओं को भी सन्देश देने का यह चान्स है। इन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह पुरूषार्थ करना पड़ता है क्योंकि वे तो अपने को इस पुरानी दुनिया के बड़े समझते हैं ना। तो छोटे-छोटे कोई प्रोग्राम में आना वह अपना रिगार्ड नहीं समझते इसलिए बड़े प्रोग्राम में बड़ों को बुलाने का चान्स है। वैसे तो बापदादा बच्चों से ही मिलते और रूह-रूहान करते। विशेष आते भी बच्चों के लिए ही हैं। फिर ऐसे-ऐसे लोगों का भी उल्हना न रह जाए कि हमें हमारे योग्य निमंत्रण नहीं मिला इस उल्हनें को पूरा करने के लिए यह सब प्रोग्राम रचे जाते हैं। बापदादा को तो बच्चों से प्रीत है और बच्चों को बापदादा से प्रीत है। अच्छा।
सभी डबल विदेशी तन से और मन से सन्तुष्ट हो? थोड़ा भी किसको कोई संकल्प तो नहीं है? कोई तन की वा मन की प्राबल्म है? शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा। (एक बच्चे ने कहा रात्रि को नींद नहीं आती है) सोने के पहले योग में बैठो तो फिर नींद आ जायेगी। योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।
कोई भी बात में किसको भी कोई क्वेश्चन हो या छोटी सी बात में कब कनफ्यूज भी जल्दी हो जाते, तो वह छोटी-छोटी बातें फौरन स्पष्ट करके आगे चलते चलो। ज्यादा सोचने के अभ्यासी नहीं बनो। जो भी सोच आये उसको वहाँ ही खत्म करो। एक सोच के पीछे अनेक सोच चलने से फिर स्थिति और शरीर दोनों पर असर आता है इसलिए डबल विदेशी बच्चों को सोचने की बात पर डबल अटेन्शन देना चाहिए क्योंकि अकेले रहकर सोचने के नैचुरल अभ्यासी हो। तो वह अभ्यास जो पड़ा हुआ है, इसलिए यहाँ भी छोटी-छोटी बात पर ज्यादा सोचते। तो सोचने में टाइम वेस्ट जाता और खुशी भी गायब हो जाती और शरीर पर भी असर आता है, उसके कारण फिर सोच चलता है इसलिए तन और मन दोनों को सदा खुश रखने के लिए सोचो कम। अगर सोचना ही है तो ज्ञान रत्नों को सोचो। व्यर्थ संकल्प की भेंट में समर्थ संकल्प हर बात का होता है। मानों अपनी स्थिति वा योग के लिए व्यर्थ संकल्प चलता है कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग लगता नहीं। अशरीरी होते नहीं। यह है व्यर्थ संकल्प। उनकी भेंट में समर्थ संकल्प करो, याद तो मेरा स्वधर्म है। बच्चे का धर्म ही है बाप को याद करना। क्यों नहीं होगा, जरूर होगा। मैं योगी नहीं तो और कौन बनेगा। मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। तो व्यर्थ के बजाए इस प्रकार के समर्थ संकल्प चलाओ। मेरा शरीर चल नहीं सकता, व्यर्थ संकल्प नहीं चलाओ। इसके बजाए समर्थ संकल्प यह है कि इसी अन्तिम जन्म में बाप ने हमको अपना बनाया है। कमाल है, बलिहारी इस अन्तिम शरीर की। जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म-जन्म का वर्सा ले लिया। दिलशिकस्त के संकल्प नहीं करो, लेकिन खुशी के संकल्प करो। वाह मेरा पुराना शरीर, जिसने बाप से मिलाने के निमित्त बनाया। वाह वाह कर चलाओ। जैसे घोड़े को प्यार से, हाथ से चलाते हैं तो घोड़ा बहुत अच्छा चलता है। अगर घोड़े को बार-बार चाबुक लगायेंगे तो और ही तंग करेगा। यह शरीर भी आपका है, इनको बार-बार ऐसे नहीं कहो कि यह पुराना, बेकार शरीर है। यह कहना जैसे चाबुक लगाते हो। खुशी-खुशी से इसकी बलिहारी गाते आगे चलाते रहो। फिर यह पुराना शरीर कभी डिस्टर्ब नहीं करेगा। बहुत सहयोग देगा। (कोई ने कहा-प्रामिस भी करके जाते हैं, फिर भी माया आ जाती है)
माया से घबराते क्यों हो? माया आती है आपको पाठ पढ़ाने लिए। घबराओ नहीं। पाठ पढ़ लो। कभी सहनशीलता का पाठ, कभी एकरस स्थिति में रहने का पाठ पढ़ाती। कभी शान्त स्वरूप बनने का पाठ पक्का कराने आती। तो माया को उस रूप में नहीं देखो माया आ गई, घबरा जाते हो। लेकिन समझो कि माया भी हमारी सहयोगी बन, बाप से पढ़ा हुआ पाठ पक्का कराने के लिए आई है। माया व् सहयोगी के रूप में समझो। दुश्मन नहीं। पाठ पक्का कराने के लिए सहयोगी है तो आपका अटेन्शन सारा उस बात में चला जायेगा। फिर घबराहट कम होगी और हार नहीं खायेंगे। पाठ पक्का करके अंगद के समान बन जायेंगे। तो माया से घबराओ नहीं। जैसे छोटे बच्चों को माँ बाप डराने के लिए कहते हैं, हव्वा आ जायेगा। आप सबने भी माया को हव्वा बना दिया है। वैसे माया खुद आप लोगों के पास आने में घबराती है। लेकिन आप स्वयं कमजोर हो, माया का आव्हान करते हो। नहीं तो वह आयेगी नहीं। वह तो विदाई के लिए ठहरी हुई है। वह भी इन्तजार कर रही है कि हमारी लास्ट डेट कौन सी है? अब माया को विदाई देंगे या घबरायेंगे।
डबल विदेशियों की यह एक विशेषता है - उड़ते भी बहुत तेज हैं और फिर डरते हैं तो छोटी सी मक्खी से भी डर जाते हैं। एक दिन बहुत खुशी में नाचते रहेंगे और दूसरे दिन फिर चेहरा बदली हो जायेगा। इस नेचर को बदली करो। इसका कारण क्या है?
इन सब कारणों का भी फाउन्डेशन है - सहनशक्ति की कमी। सहन करने के संस्कार शुरू से नहीं हैं, इसलिए जल्दी घबरा जाते हो। स्थान को बदलेंगे या जिन से तंग होंगे उनको बदल लेंगे। अपने को नहीं बदलेंगे। यह जो संस्कार है वह बदलना है। “मुझे अपने को बदलना है” स्थान को वा दूसरे को नहीं बदलना है लेकिन अपने को बदलना है। यह ज्यादा स्मृति में रखो, समझा। अब विदेशी से स्वदेशी संस्कार बना लो। सहनशीलता का अवतार बन जाओ। जिसको आप लोग कहते हो अपने को एडजस्ट करना है। किनारा नहीं करना है, छोड़ना नहीं है।
हंस और बगुले की बात अलग है। उन्हों की आपस में खिट-खिट है। वह भी जहाँ तक हो सके उसके प्रति शुभ भावना से ट्रायल करना अपना फर्ज है। कई ऐसे भी मिसाल हुए हैं जो बिल्कुल एन्टी थे लेकिन शुभ भावना से निमित्त बनने वाले से भी आगे जा रहे हैं। तो शुभ भावना फुल फोर्स से ट्रायल करनी चाहिए।
अगर फिर भी नहीं होता है तो फिर डायरेक्शन लेकर कदम उठाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे किनारा कर देने से कहाँ डिस सर्विस भी हो जाती है। और कई बार ऐसा भी होता है कि आने वाली ब्राह्मण आत्मा की कमी होने के कारण अन्य आत्मायें भी भाग्य लेने से वंचित रह जाती हैं इसलिए पहले स्वयं ट्रायल करो फिर अगर समझते हो यह बड़ी प्राबलम है तो निमित्त बनी आत्माओं से वेरीफाय कराओ। फिर वह भी अगर समझती हैं कि अलग होना ही ठीक है फिर अलग हुए भी तो आपके ऊपर जवाबदारी नहीं रही। आप डायरेक्शन पर चले। फिर आप निश्चिन्त। कई बार ऐसा होता है - जोश में छोड़ दिया, लेकिन अपनी गलती के कारण छोड़ने के बाद भी वह आत्मा खींचती रहती है। बुद्धि जाती रहती है यह भी बड़ा विघ्न बन जाता है। तन से अलग हो गये लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता इसलिए निमित्त बनी हुई आत्माओं से वेरीफाय कराओ क्योंकि यह कर्मों की फिलॉसाफी है। जबरदस्ती तोड़ने से भी मन बार-बार जाता रहता है। कर्म की फिलॉसाफी को ज्ञान स्वरूप होकर पहचानो और फिर वेरीफाय कराओ। फिर कर्म बन्धन को ज्ञान युक्त होकर खत्म करो।
बाकी ब्राह्मण आत्माओं में, हमशरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष बात यह सोचो कि जो हमशरीक हैं, उनको निमित्त बनाने वाला कौन? उनको नहीं देखो फलाना इस ड्युटी पर आ गया, फलानी टीचर हो गई, नम्बरवन सर्विसएबुल हो गई। लेकिन यह सोचो कि उस आत्मा को निमित्त बनाने वाला कौन? चाहे निमित्त बनी हुई विशेष आत्मा द्वारा ही उनको ड्युटी मिलती है लेकिन निमित्त बनने वाली टीचर को भी निमित्त किसने बनाया? इसमें जब बाप बीच में हो जायेगा तो माया भाग जायेगी, ईर्ष्या भाग जायेगी लेकिन जैसे कहावत है ना - या होगा बाप या होगा पाप। जब बाप को बीच से निकालते हो तब पाप आता है। ईर्ष्या भी पाप कर्म है ना। अगर समझो बाप ने निमित्त बनाया है तो बाप जो कार्य करते उसमें कल्याण ही है। अगर उसकी कोई ऐसी बात अच्छी न भी लगती है, रांग भी हो सकती है, क्योंकि सब पुरुषार्थी हैं। अगर रांग भी है तो अपनी शुभ भावना से ऊपर दे देना चाहिए। ईर्ष्या के वश नहीं। लेकिन बाप की सेवा सो हमारी सेवा है - इस शुभ भावना से, श्रेष्ठ जिम्मेवारी से ऊपर बात दे देनी चाहिए। देने के बाद खुद निश्चिन्त हो जाओ। फिर यह नहीं सोचो कि यह बात दी फिर क्या हुआ। कुछ हुआ नहीं। हुआ या नहीं, यह जिम्मेवारी बड़ों की हो जाती है। आपने शुभ भावना से दी, आपका काम है अपने को खाली करना। अगर देखते हो बडों के ख्याल में बात नहीं आई तो भल दुबारा लिखो। लेकिन सेवा की भावना से। अगर निमित्त बने हुए कहते हैं कि इस बात को छोड़ दो तो अपना संकल्प और समय व्यर्थ नहीं गंवाओ। ईर्ष्या नहीं करो। लेकिन किसका कार्य है, किसने निमित्त बनाया है, उसको याद करो। किस विशेषता के कारण उनको विशेष बनाया गया है, वह विशेषता अपने में धारण करो तो रेस हो जायेगी न कि रीस। समझा।
अपसेट कभी नहीं होना चाहिए। जिसने कुछ कहा उनसे ही पूछना चाहिए कि आपने किस भाव से कहा - अगर वह स्पष्ट नहीं करते तो निमित्त बने हुए से पूछो कि इसमें मेरी गलती क्या है। अगर ऊपर से वेरीफाय हो गया, आपकी गलती नहीं है तो आप निश्चिन्त हो जाओ। एक बात सभी को समझनी चाहिए कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही हिसाब-किताब चुक्तू होना है। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं। तो घबराओ नहीं कि यह ब्राह्मण परिवार में क्या होता है। ब्राह्मणों का हिसाब-किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तू होना है। तो यह चुक्तू हो रहा है, इसी खुशी में रहो। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और तरक्की ही तरक्की हुई। अभी एक वायदा करो कि छोटी-छोटी बात में कनफ्यूज नहीं होंगे, प्राबलम नहीं बनेंगे लेकिन प्राबलम को हल करने वाले बनेंगे। समझा।
वरदान: अपनी शक्तियों वा गुणों द्वारा निर्बल को शक्तिवान बनाने वाले श्रेष्ठ दानी वा सहयोगी भव!
श्रेष्ठ स्थिति वाले सपूत बच्चों की सर्व शक्तियाँ और सर्व गुण समय प्रमाण सदा सहयोगी रहते हैं। उनकी सेवा का विशेष स्वरूप है-बाप द्वारा प्राप्त गुणों और शक्तियों का अज्ञानी आत्माओं को दान और ब्राह्मण आत्माओं को सहयोग देना। निर्बल को शक्तिवान बनाना-यही श्रेष्ठ दान वा सहयोग है। जैसे वाणी द्वारा वा मन्सा द्वारा सेवा करते हो ऐसे प्राप्त हुए गुणों और शक्तियों का सहयोग अन्य आत्माओं को दो, प्राप्ति कराओ।
स्लोगन: जो दृढ़ निश्चय से भाग्य को निश्चित कर देते हैं वही सदा निश्चिंत रहते हैं।
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Headline – Vyarth ko chor Samarth sankalp chalao
Vardan – Apni shaktiyon wa guno dwara nirbal ko shaktiwan bananewale sresth dani wa sahyogi bhav.
Slogan – Jo Dridh Nischay se bhagya ko nischit kar dete hai wahi sada nischint rahte hai.
HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
17-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:09-01-83 मधुबन
व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ
आज बापदादा सभी सिकीलधे बच्चों से मिलन मनाने के लिए विशेष आये हैं। डबल विदेशी बच्चे मिलन मनाने के लिए सदा इन्तजार में रहते हैं। तो आज बापदादा डबल विदेशी बच्चों से एक एक की विशेषता की रूह-रूहाण करने आये हैं। एक-एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। कहाँ संख्या ज्यादा और कहाँ संख्या कम होते भी अमूल्य रत्न, विशेष रत्न थोड़े चुने हुए होते भी अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे बच्चों के उमंग-उत्साह को देख, बच्चों की सेवा को देख बापदादा हर्षित होते हैं। विशेष रूप में विदेश के चारों ही कोनों में बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन प्रैक्टिकल करने में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। सर्व धर्मो की आत्माओं को बाप से मिलाने का प्रयत्न अच्छा कर रहे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। अपनी भटकती हुई आत्मा को ठिकाना मिलने के अनुभवी होने के कारण औरों के प्रति भी रहम आता है। जो भी दूर-दूर से आये हैं उन्हों का एक ही उमंग है कि जाना है और अन्य को भी ले जाना है। इस दृढ़ संकल्प ने सभी बच्चों को दूर होते भी नजदीक का अनुभव कराया है इसलिए सदा अपने को बापदादा के वर्से के अधिकारी आत्मा समझ चल रहे हैं।
कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में नहीं लाओ। कल्प-कल्प के पात्र हो। अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है। पहला नम्बर मिलने का चान्स अमेरिका पार्टी को मिला है। तो अमेरिका वाले सभी मिलकर सेवा में सबसे नम्बरवन कमाल भी तो दिखायेंगे ना। अभी बापदादा देखेंगे कि कान्फेरांस में सबसे बड़े ते बड़े वी.आई.पी. कौन ले आते हैं। नम्बरवन वी.आई.पी. कहाँ से आ रहा है? (अमेरिका से) वैसे तो आप बाप के बच्चे वी.वी.वी.आई.पी. हो। आप सबसे बड़ा तो कोई भी नहीं है लेकिन जो इस दुनिया के वी.आई.पी. हैं उन आत्माओं को भी सन्देश देने का यह चान्स है। इन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह पुरूषार्थ करना पड़ता है क्योंकि वे तो अपने को इस पुरानी दुनिया के बड़े समझते हैं ना। तो छोटे-छोटे कोई प्रोग्राम में आना वह अपना रिगार्ड नहीं समझते इसलिए बड़े प्रोग्राम में बड़ों को बुलाने का चान्स है। वैसे तो बापदादा बच्चों से ही मिलते और रूह-रूहान करते। विशेष आते भी बच्चों के लिए ही हैं। फिर ऐसे-ऐसे लोगों का भी उल्हना न रह जाए कि हमें हमारे योग्य निमंत्रण नहीं मिला इस उल्हनें को पूरा करने के लिए यह सब प्रोग्राम रचे जाते हैं। बापदादा को तो बच्चों से प्रीत है और बच्चों को बापदादा से प्रीत है। अच्छा।
सभी डबल विदेशी तन से और मन से सन्तुष्ट हो? थोड़ा भी किसको कोई संकल्प तो नहीं है? कोई तन की वा मन की प्राबल्म है? शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा। (एक बच्चे ने कहा रात्रि को नींद नहीं आती है) सोने के पहले योग में बैठो तो फिर नींद आ जायेगी। योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।
कोई भी बात में किसको भी कोई क्वेश्चन हो या छोटी सी बात में कब कनफ्यूज भी जल्दी हो जाते, तो वह छोटी-छोटी बातें फौरन स्पष्ट करके आगे चलते चलो। ज्यादा सोचने के अभ्यासी नहीं बनो। जो भी सोच आये उसको वहाँ ही खत्म करो। एक सोच के पीछे अनेक सोच चलने से फिर स्थिति और शरीर दोनों पर असर आता है इसलिए डबल विदेशी बच्चों को सोचने की बात पर डबल अटेन्शन देना चाहिए क्योंकि अकेले रहकर सोचने के नैचुरल अभ्यासी हो। तो वह अभ्यास जो पड़ा हुआ है, इसलिए यहाँ भी छोटी-छोटी बात पर ज्यादा सोचते। तो सोचने में टाइम वेस्ट जाता और खुशी भी गायब हो जाती और शरीर पर भी असर आता है, उसके कारण फिर सोच चलता है इसलिए तन और मन दोनों को सदा खुश रखने के लिए सोचो कम। अगर सोचना ही है तो ज्ञान रत्नों को सोचो। व्यर्थ संकल्प की भेंट में समर्थ संकल्प हर बात का होता है। मानों अपनी स्थिति वा योग के लिए व्यर्थ संकल्प चलता है कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग लगता नहीं। अशरीरी होते नहीं। यह है व्यर्थ संकल्प। उनकी भेंट में समर्थ संकल्प करो, याद तो मेरा स्वधर्म है। बच्चे का धर्म ही है बाप को याद करना। क्यों नहीं होगा, जरूर होगा। मैं योगी नहीं तो और कौन बनेगा। मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। तो व्यर्थ के बजाए इस प्रकार के समर्थ संकल्प चलाओ। मेरा शरीर चल नहीं सकता, व्यर्थ संकल्प नहीं चलाओ। इसके बजाए समर्थ संकल्प यह है कि इसी अन्तिम जन्म में बाप ने हमको अपना बनाया है। कमाल है, बलिहारी इस अन्तिम शरीर की। जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म-जन्म का वर्सा ले लिया। दिलशिकस्त के संकल्प नहीं करो, लेकिन खुशी के संकल्प करो। वाह मेरा पुराना शरीर, जिसने बाप से मिलाने के निमित्त बनाया। वाह वाह कर चलाओ। जैसे घोड़े को प्यार से, हाथ से चलाते हैं तो घोड़ा बहुत अच्छा चलता है। अगर घोड़े को बार-बार चाबुक लगायेंगे तो और ही तंग करेगा। यह शरीर भी आपका है, इनको बार-बार ऐसे नहीं कहो कि यह पुराना, बेकार शरीर है। यह कहना जैसे चाबुक लगाते हो। खुशी-खुशी से इसकी बलिहारी गाते आगे चलाते रहो। फिर यह पुराना शरीर कभी डिस्टर्ब नहीं करेगा। बहुत सहयोग देगा। (कोई ने कहा-प्रामिस भी करके जाते हैं, फिर भी माया आ जाती है)
माया से घबराते क्यों हो? माया आती है आपको पाठ पढ़ाने लिए। घबराओ नहीं। पाठ पढ़ लो। कभी सहनशीलता का पाठ, कभी एकरस स्थिति में रहने का पाठ पढ़ाती। कभी शान्त स्वरूप बनने का पाठ पक्का कराने आती। तो माया को उस रूप में नहीं देखो माया आ गई, घबरा जाते हो। लेकिन समझो कि माया भी हमारी सहयोगी बन, बाप से पढ़ा हुआ पाठ पक्का कराने के लिए आई है। माया व् सहयोगी के रूप में समझो। दुश्मन नहीं। पाठ पक्का कराने के लिए सहयोगी है तो आपका अटेन्शन सारा उस बात में चला जायेगा। फिर घबराहट कम होगी और हार नहीं खायेंगे। पाठ पक्का करके अंगद के समान बन जायेंगे। तो माया से घबराओ नहीं। जैसे छोटे बच्चों को माँ बाप डराने के लिए कहते हैं, हव्वा आ जायेगा। आप सबने भी माया को हव्वा बना दिया है। वैसे माया खुद आप लोगों के पास आने में घबराती है। लेकिन आप स्वयं कमजोर हो, माया का आव्हान करते हो। नहीं तो वह आयेगी नहीं। वह तो विदाई के लिए ठहरी हुई है। वह भी इन्तजार कर रही है कि हमारी लास्ट डेट कौन सी है? अब माया को विदाई देंगे या घबरायेंगे।
डबल विदेशियों की यह एक विशेषता है - उड़ते भी बहुत तेज हैं और फिर डरते हैं तो छोटी सी मक्खी से भी डर जाते हैं। एक दिन बहुत खुशी में नाचते रहेंगे और दूसरे दिन फिर चेहरा बदली हो जायेगा। इस नेचर को बदली करो। इसका कारण क्या है?
इन सब कारणों का भी फाउन्डेशन है - सहनशक्ति की कमी। सहन करने के संस्कार शुरू से नहीं हैं, इसलिए जल्दी घबरा जाते हो। स्थान को बदलेंगे या जिन से तंग होंगे उनको बदल लेंगे। अपने को नहीं बदलेंगे। यह जो संस्कार है वह बदलना है। “मुझे अपने को बदलना है” स्थान को वा दूसरे को नहीं बदलना है लेकिन अपने को बदलना है। यह ज्यादा स्मृति में रखो, समझा। अब विदेशी से स्वदेशी संस्कार बना लो। सहनशीलता का अवतार बन जाओ। जिसको आप लोग कहते हो अपने को एडजस्ट करना है। किनारा नहीं करना है, छोड़ना नहीं है।
हंस और बगुले की बात अलग है। उन्हों की आपस में खिट-खिट है। वह भी जहाँ तक हो सके उसके प्रति शुभ भावना से ट्रायल करना अपना फर्ज है। कई ऐसे भी मिसाल हुए हैं जो बिल्कुल एन्टी थे लेकिन शुभ भावना से निमित्त बनने वाले से भी आगे जा रहे हैं। तो शुभ भावना फुल फोर्स से ट्रायल करनी चाहिए।
अगर फिर भी नहीं होता है तो फिर डायरेक्शन लेकर कदम उठाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे किनारा कर देने से कहाँ डिस सर्विस भी हो जाती है। और कई बार ऐसा भी होता है कि आने वाली ब्राह्मण आत्मा की कमी होने के कारण अन्य आत्मायें भी भाग्य लेने से वंचित रह जाती हैं इसलिए पहले स्वयं ट्रायल करो फिर अगर समझते हो यह बड़ी प्राबलम है तो निमित्त बनी आत्माओं से वेरीफाय कराओ। फिर वह भी अगर समझती हैं कि अलग होना ही ठीक है फिर अलग हुए भी तो आपके ऊपर जवाबदारी नहीं रही। आप डायरेक्शन पर चले। फिर आप निश्चिन्त। कई बार ऐसा होता है - जोश में छोड़ दिया, लेकिन अपनी गलती के कारण छोड़ने के बाद भी वह आत्मा खींचती रहती है। बुद्धि जाती रहती है यह भी बड़ा विघ्न बन जाता है। तन से अलग हो गये लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता इसलिए निमित्त बनी हुई आत्माओं से वेरीफाय कराओ क्योंकि यह कर्मों की फिलॉसाफी है। जबरदस्ती तोड़ने से भी मन बार-बार जाता रहता है। कर्म की फिलॉसाफी को ज्ञान स्वरूप होकर पहचानो और फिर वेरीफाय कराओ। फिर कर्म बन्धन को ज्ञान युक्त होकर खत्म करो।
बाकी ब्राह्मण आत्माओं में, हमशरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष बात यह सोचो कि जो हमशरीक हैं, उनको निमित्त बनाने वाला कौन? उनको नहीं देखो फलाना इस ड्युटी पर आ गया, फलानी टीचर हो गई, नम्बरवन सर्विसएबुल हो गई। लेकिन यह सोचो कि उस आत्मा को निमित्त बनाने वाला कौन? चाहे निमित्त बनी हुई विशेष आत्मा द्वारा ही उनको ड्युटी मिलती है लेकिन निमित्त बनने वाली टीचर को भी निमित्त किसने बनाया? इसमें जब बाप बीच में हो जायेगा तो माया भाग जायेगी, ईर्ष्या भाग जायेगी लेकिन जैसे कहावत है ना - या होगा बाप या होगा पाप। जब बाप को बीच से निकालते हो तब पाप आता है। ईर्ष्या भी पाप कर्म है ना। अगर समझो बाप ने निमित्त बनाया है तो बाप जो कार्य करते उसमें कल्याण ही है। अगर उसकी कोई ऐसी बात अच्छी न भी लगती है, रांग भी हो सकती है, क्योंकि सब पुरुषार्थी हैं। अगर रांग भी है तो अपनी शुभ भावना से ऊपर दे देना चाहिए। ईर्ष्या के वश नहीं। लेकिन बाप की सेवा सो हमारी सेवा है - इस शुभ भावना से, श्रेष्ठ जिम्मेवारी से ऊपर बात दे देनी चाहिए। देने के बाद खुद निश्चिन्त हो जाओ। फिर यह नहीं सोचो कि यह बात दी फिर क्या हुआ। कुछ हुआ नहीं। हुआ या नहीं, यह जिम्मेवारी बड़ों की हो जाती है। आपने शुभ भावना से दी, आपका काम है अपने को खाली करना। अगर देखते हो बडों के ख्याल में बात नहीं आई तो भल दुबारा लिखो। लेकिन सेवा की भावना से। अगर निमित्त बने हुए कहते हैं कि इस बात को छोड़ दो तो अपना संकल्प और समय व्यर्थ नहीं गंवाओ। ईर्ष्या नहीं करो। लेकिन किसका कार्य है, किसने निमित्त बनाया है, उसको याद करो। किस विशेषता के कारण उनको विशेष बनाया गया है, वह विशेषता अपने में धारण करो तो रेस हो जायेगी न कि रीस। समझा।
अपसेट कभी नहीं होना चाहिए। जिसने कुछ कहा उनसे ही पूछना चाहिए कि आपने किस भाव से कहा - अगर वह स्पष्ट नहीं करते तो निमित्त बने हुए से पूछो कि इसमें मेरी गलती क्या है। अगर ऊपर से वेरीफाय हो गया, आपकी गलती नहीं है तो आप निश्चिन्त हो जाओ। एक बात सभी को समझनी चाहिए कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही हिसाब-किताब चुक्तू होना है। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं। तो घबराओ नहीं कि यह ब्राह्मण परिवार में क्या होता है। ब्राह्मणों का हिसाब-किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तू होना है। तो यह चुक्तू हो रहा है, इसी खुशी में रहो। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और तरक्की ही तरक्की हुई। अभी एक वायदा करो कि छोटी-छोटी बात में कनफ्यूज नहीं होंगे, प्राबलम नहीं बनेंगे लेकिन प्राबलम को हल करने वाले बनेंगे। समझा।
वरदान: अपनी शक्तियों वा गुणों द्वारा निर्बल को शक्तिवान बनाने वाले श्रेष्ठ दानी वा सहयोगी भव!
श्रेष्ठ स्थिति वाले सपूत बच्चों की सर्व शक्तियाँ और सर्व गुण समय प्रमाण सदा सहयोगी रहते हैं। उनकी सेवा का विशेष स्वरूप है-बाप द्वारा प्राप्त गुणों और शक्तियों का अज्ञानी आत्माओं को दान और ब्राह्मण आत्माओं को सहयोग देना। निर्बल को शक्तिवान बनाना-यही श्रेष्ठ दान वा सहयोग है। जैसे वाणी द्वारा वा मन्सा द्वारा सेवा करते हो ऐसे प्राप्त हुए गुणों और शक्तियों का सहयोग अन्य आत्माओं को दो, प्राप्ति कराओ।
स्लोगन: जो दृढ़ निश्चय से भाग्य को निश्चित कर देते हैं वही सदा निश्चिंत रहते हैं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 18th Sep 2017 )
18.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche- Sabko Baap ka parichay de sukhdayi banao, dehi abhimaani bano to time safal hota rahega, bikarmo se bache rahenge.
Q- Jin baccho ki buddhi ko maya taala laga deti hai - unke mukh se kaun se bol nikalte hain?
A- Unke mukh se yahi bol nikalte hain ki humara to direct Shiv Baba se connection hai. Sang dosh ke kaaran unki moodbuddhi ho jaati hai. Satguru ka nindak ban padte hain. Jab koi kehte humara direct connection hai to unhe murli bhi prerna se sunni chahiye. Aise nindak bacche thoor nahi paate. Unki buddhi ko maya taala laga deti hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Hum oonche te oonch sarvotam Brahman kul bhusan hain - isi khushi me rehna hai. Swayang Bhagwan Baap, teacher, guru ke roop me hume mila hai is smruti me sada harshit rehna hai.
2) Kisi bhi baat ke dukh(harsh) me nahi aana hai. Jharmuyi jhagmuyi me samay barbaad nahi karna hai.
Vardaan:-- Biparit bhavnao ko samapt kar avyakt sthiti ka anubhav karne wale Sadbhavna Sampann bhava.
Slogan:-- Sarv shaktimaan Baap jiske saath hai, maya uske saamne paper tiger hai.
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“मीठे बच्चे - सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ, देही-अभिमानी बनो तो टाइम सफल होता रहेगा, विकर्मों से बचे रहेंगे”
प्रश्न: जिन बच्चों की बुद्धि को माया ताला लगा देती है-उनके मुख से कौन से बोल निकलते हैं?
उत्तर: उनके मुख से यही बोल निकलते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है। संगदोष के कारण उनकी मूढ़बुद्धि हो जाती है। सतगुरू का निंदक बन पड़ते हैं। जब कोई कहते हमारा डायरेक्ट कनेक्शन है तो उन्हें मुरली भी प्रेरणा से सुननी चाहिए। ऐसे निंदक बच्चे ठौर नहीं पाते। उनकी बुद्धि को माया ताला लगा देती है।
अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो। बाबा ने देही-अभिमानी बनाया है। जितना देही-अभिमानी बनेंगे, बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तो विकर्माजीत बनेंगे। देह-अभिमानी बनने से विकर्म भस्म नहीं होंगे और ही जास्ती विकर्म होते रहेंगे फिर नतीजा क्या होगा? एक तो सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाबा से कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाए तो भविष्य में हम किस गति को पायेंगे? मौत तो सामने खड़ा है। ब्राह्मण कुल भूषण को तो बिल्कुल हृस (दु:ख) नहीं आना चाहिए। उनको कहा जाता है महावीर। शास्त्रों में तो स्थूल रूप में बातें ले गये हैं। यह तो ज्ञान की बातें हैं। तुम बच्चे जानते हो - निराकार शिवबाबा ने आत्मा की भी पूरी पहचान दी है कि तुम्हारी आत्मा में क्या-क्या पार्ट नूँधा हुआ है। बाप ही बैठ समझाते हैं - मनुष्य तो देही-अभिमानी हैं नहीं। देही के बाप को ही नहीं जानते, यथार्थ रीति से इसलिए इसको घोर अन्धियारा कहा जाता है। कलियुग को घोर अन्धियारा, सतयुग को घोर सोझरा कहा जाता है। आत्मायें सब काली हैं अर्थात् ब्लैक आउट है। सतयुग में देवी-देवता धर्म की आत्मायें रोशनी में थी। इस भारत में ही दीपमाला मनाई जाती है। तुम जानते हो यहाँ हमारी आत्मा घोर अन्धियारे में है। बाप घोर सोझरे में ले जाते हैं। आत्माओं को कुछ पता नहीं कि हम कितने जन्म और कैसे लेते हैं। अब तुम जान चुके हो - बाप द्वारा हमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान मिला है। दुनिया में कोई भी तुमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज नहीं बता सकेंगे। वह तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं। भल कहते हैं कि मैं आत्मा हूँ, परन्तु मैं क्या हूँ, यह कुछ भी पता नहीं। भ्रकुटी के बीच सितारा चमकता है सो क्या! उनमें क्या पार्ट भरा हुआ है, कितने जन्म लेते हैं? यह ज्ञान कोई में भी नहीं है। बाप आकर समझाते हैं, सेल्फ रियलाइजेशन कराते हैं। कोई से पूछो कि आत्मा का बाप कौन है? कोई कहेंगे श्रीकृष्ण, कोई कहेंगे महावीर। हम आत्मा हैं, हमारा बाप निराकार शिव है। एक भी ऐसे कह न सके। न तो रचयिता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, इसलिए उनको नास्तिक कहा जाता है। बाप कहते हैं तुम नास्तिक शूद्र थे। अब ब्राह्मण आस्तिक बने हो। बाप परिचय देते हैं कि मैं क्या पार्ट बजाता हूँ। कोई भी बाप का परिचय दे न सके। बाप का पार्ट क्या है, समझा न सके। तुम भी नम्बरवार समझते हो। देही-अभिमानी होने कारण अवस्था अच्छी रहती है। देह-अभिमान में आकर फिर झरमुई- झगमुई करने लग पड़ते हैं, इसलिए ऊंच पद पा न सकें। न विकर्म विनाश होते हैं। बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं। जीते जी मरने का अर्थ कितना सहज है। तुम जीते जी मरे हुए हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, वह भी जानते हो, बाप को भी जानते हो कि वह कैसे ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। भारत ही पावन श्रेष्ठ था, अभी तो पतित है। परन्तु पतित अपने को समझते थोड़ेही हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो प्हले तो कोई भी काम के नहीं थे। सब मरे पड़े थे, सब कब्रिस्तान बना हुआ है। अब फिर परिस्तान के मालिक बन रहे हैं। भारत परिस्तान था, अब कब्रिस्तान है। सब एक दो को दु:ख देते ही रहते हैं। बाप कहते हैं कि अभी तुम सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ। देही-अभिमानी न होने कारण टाइम वेस्ट करते रहते हैं। घड़ी-घड़ी देह-अभिमान आ जाता है। तुम बच्चों को कब हृस (दु:ख) नहीं होना चाहिए। कोई-कोई तो हृस में आ जाते हैं। कोई समझते हैं बाबा रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं, रावण राज्य का विनाश होना है, इसमें कोई डरने की बात नहीं है। हाँ, गवर्मेंट आदि मकान खाली कराती है तो करना पड़ता है। बाबा की याद में शरीर भी छूट जाए तो अच्छा है। सदैव तैयार रहना चाहिए। माया का वार अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी हो जाता है। कोई तो ऐसे मूर्ख बन जाते हैं, कहते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है। परन्तु ब्रह्मा के आगे तो जरूर आना पड़ेगा ना। अच्छा घर में भी जाकर बैठ जाओ फिर मुरली कैसे सुनेंगे! क्या करेंगे? कहते यह ब्रह्मा भी पुरुषार्थी है, हम भी पुरुषार्थी हैं। पढ़ते तो सब शिवबाबा से हैं, परन्तु ब्रह्मा पास आयेंगे तब तो सुनेंगे ना। प्रेरणा से सुनकर दिखाओ तो मालूम पड़े। फिर कभी-कभी बाबा मुरली बंद भी कर देते हैं। ब्रह्मा से जन्म लिया और मर गया फिर खत्म। वर्सा कैसे पायेंगे। ऐसे भी मंद बुद्धि बहुत संगदोष में खराब हो जाते हैं। फिर बताओ उनकी क्या गति होगी? सतगुरू का निंदक बने तो ऊंच ठौर पा नहीं सकेंगे। गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना। गुरू विष्णु, गुरू शंकर नहीं कहेंगे। गुरू सिर्फ ब्रह्मा ही है। तुम भी माता गुरू बनती हो। सतगुरू द्वारा बनी हो न कि कलियुगी गुरूओं द्वारा। तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियां बनी हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा। मेहनत है, माया किसकी बुद्धि को ताला लगा देती है तो फिर उल्टासुल्टा बोलते रहते हैं। वेस्ट आफ टाइम करते हैं।
अच्छा मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
बापदादा के हस्त-लिखित पत्रों की कापी ज्ञान के सागर पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच, अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रतिहे बच्चों, तुमको समझाया गया है कि पतित-पावन को पतित दुनिया में आकर पतित शरीर में प्रवेश करना पड़ता है, वह पतित शरीर कौन सा है? जो पूरे 84 जन्मों का चक्र लगाकर अभी अन्तिम जन्म में है। पहला जन्म तो है पावन श्रीकृष्ण - श्रीराधे, स्वयंवर के बाद फिर श्री लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अभी वह देवताओं का धर्म है नहीं। अनेक अधर्म हैं। अब फिर से बाप आकर वही सतयुगी देवी-देवताओं का धर्म स्थापना करते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली बच्चे जो ब्राह्मण ब्राह्मणी कहलाते हैं। आत्मा रूप में आपस में भाई-भाई हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट हो भाई बहिन बनते हैं। वर्सा पाना है ब्रह्माकुमार-कुमारियों को परमपिता परमात्मा से। शिवबाबा अपने बच्चों (आत्माओं) को कहते हैं, अब देही-अभिमानी वा आत्म-अभिमानी भव और मुझ अपने बेहद के बाप याद करो, जो इस योग अग्नि वा याद द्वारा सिर पर विकर्मों का बोझा है जन्म-जन्मान्तर का, सो भस्म हो जायेगा। देह का अभिमान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर बेहद के बाप मुझ परमपिता को याद करो तो तुम फिर से पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे। द्वापर में जब से रावणराज्य की स्थापना होती है तब से आत्मा जो सच्चे सोने समान है, जिसको सतोप्रधान गोल्डन एज कहा जाता है, सो अन्त में आइरन एजड तमोप्रधान कही जाती है अर्थात् सतयुग में जो पावन थे सो पतित बन जाते हैं कलियुग में। अब फिर पावन बनने लिए खास भारतवासी पतितपावन बाप को बहुत याद करते हैं क्योंकि मेरा अवतरण इस भाग्यशाली ब्रह्मा रथ में ही होता है। इस भाग्यशाली रथ का नाम तो और ही होता है, उनको अपना बनाता हूँ। इसमें प्रवेश कर प्रजापिता ब्रह्मा नाम रख देता हूँ। कल्प पहले ड्रामा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रच उन ब्रह्माकुमार/कुमारियों द्वारा पतित भारत को पावन भारत बनाया था फिर भी जबकि कल्प की अन्त में पतित बन आत्मा 84 का चक्र पूरा करती है तो फिर वही पतित दुनिया को पावन करने आना पड़ता है। कल्प-कल्प अर्थात् हर 5 हजार वर्ष बाद मुझ सर्व के परमपिता परमात्मा को याद करते हैं, भक्ति मार्ग में। और अन्त में जब भक्ति मार्ग पूरा होता है तो आता हूँ। भक्ति मार्ग द्वापर से उतरता मार्ग है। रावण अर्थात् 5 विकारों के कारण सबकी उतरती कला होती है और मनुष्य मात्र पतित बन दुर्गति को पाते हैं। और मैं ब्राह्मण कुल भूषणों का बाप, टीचर, सतगुरू बनता हूँ। मेरा तो कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं है। भारतवासी आसुरी सम्प्रदाय जो सतयुग में दैवी सम्प्रदाय थे उनका पिता तो हूँ परन्तु उनको फिर से सूर्यवंशी देवी-देवता बनाने, जो प्रजापिता ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी बनते हैं, कल्प पहले मिसल उनका शिक्षक बनता हूँ। उनको सत्य ज्ञान देता हूँ। सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देकर उन्हें त्रिकालदर्शी बना रहा हूँ। ताकि नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कल्प पहले मिसल चक्रवर्ती सूर्यवंशी दैवी स्वराज्य फिर से स्थापना हो। बच्चों को सिद्ध कर बताया जा रहा है कि तुम इस समय सर्वोत्तम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण हो। दैवी कुल से यह उत्तम कुल है क्योंकि तुम ईश्वरीय कुल में हो। भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग श्रेष्ठाचारी वैकुण्ठ दैवी स्वराज्य था, तब तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वंश में आये। अब प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बने हो। इसे 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है। सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं, पीछे-पीछे अनेक धर्म द्वापर से मठ पंथ स्थापना होते आये हैं और सृष्टि वृद्धि को पाती आई है। वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा मनुष्य सृष्टि झाड़ का फाउन्डेशन है, जिसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। गोया शिवबाबा मनुष्य मात्र का बाबा, पिता है और ब्रह्मा गैन्ड फादर है। मनुष्य सृष्टि झाड़ वा जीनालाजिकल ट्री का पहला मनुष्य, आदम वा एडम वा प्रजापिता ब्रह्मा है। प्रजापिता ब्रह्मा और मुख वंशावली, परमपिता मुझ परमात्मा शिव से सहज राजयोग और ज्ञान सीख सुख घनेरे सोझरे में जाते हो। गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा... ज्ञान सूर्य भी पतित-पावन परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। तुम ज्ञान सोझरे में हो बाकी सब अज्ञान अन्धियारे में हैं। 2- बच्चों ने ज्ञान सुना और बाबा कहा तो वर्सा मिलना ही है। एक तो बाप को दूसरा सृष्टि चक्र को याद करना है और तो कोई तकलीफ नहीं। बाप जानते हैं कि बच्चों ने भक्ति मार्ग में बहुत तकलीफ देखी है, अभी और क्या तकलीफ बच्चों को देवें। जितना भक्ति में मेहनत उतना यहाँ चुप रहना है। जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। कहते हैं ना - त्वमेव माताश्च पिता...दूसरे लौकिक माँ बाप, भाई, बन्धु इस समय सब दु:ख देते हैं। यह फिर सबको सुख देते हैं, सदा सुखी बनाते हैं। अच्छा।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम ऊंचे ते ऊंच सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण हैं - इस खुशी में रहना है। स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरू के रूप में हमें मिला है इस स्मृति में सदा हर्षित रहना है।
2) किसी भी बात के दु:ख (हृस) में नहीं आना है। झरमुई झगमुई में समय बरबाद नहीं करना है।
वरदान: विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सद्भावना सम्पन्न भव
जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं - भावना और भाव। सर्व के प्रति कल्याण की भावना, स्नेह-सहयोग देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना, आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है, ऐसी भावना वाले ही अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हैं। अगर इनके विपरीत भावना है तो व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करता है। किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं।
स्लोगन: सर्वशक्तिमान् बाप जिसके साथ है, माया उसके सामने पेपर टाइगर है।
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Mithe bacche- Sabko Baap ka parichay de sukhdayi banao, dehi abhimaani bano to time safal hota rahega, bikarmo se bache rahenge.
Q- Jin baccho ki buddhi ko maya taala laga deti hai - unke mukh se kaun se bol nikalte hain?
A- Unke mukh se yahi bol nikalte hain ki humara to direct Shiv Baba se connection hai. Sang dosh ke kaaran unki moodbuddhi ho jaati hai. Satguru ka nindak ban padte hain. Jab koi kehte humara direct connection hai to unhe murli bhi prerna se sunni chahiye. Aise nindak bacche thoor nahi paate. Unki buddhi ko maya taala laga deti hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Hum oonche te oonch sarvotam Brahman kul bhusan hain - isi khushi me rehna hai. Swayang Bhagwan Baap, teacher, guru ke roop me hume mila hai is smruti me sada harshit rehna hai.
2) Kisi bhi baat ke dukh(harsh) me nahi aana hai. Jharmuyi jhagmuyi me samay barbaad nahi karna hai.
Vardaan:-- Biparit bhavnao ko samapt kar avyakt sthiti ka anubhav karne wale Sadbhavna Sampann bhava.
Slogan:-- Sarv shaktimaan Baap jiske saath hai, maya uske saamne paper tiger hai.
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HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
18-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ, देही-अभिमानी बनो तो टाइम सफल होता रहेगा, विकर्मों से बचे रहेंगे”
प्रश्न: जिन बच्चों की बुद्धि को माया ताला लगा देती है-उनके मुख से कौन से बोल निकलते हैं?
उत्तर: उनके मुख से यही बोल निकलते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है। संगदोष के कारण उनकी मूढ़बुद्धि हो जाती है। सतगुरू का निंदक बन पड़ते हैं। जब कोई कहते हमारा डायरेक्ट कनेक्शन है तो उन्हें मुरली भी प्रेरणा से सुननी चाहिए। ऐसे निंदक बच्चे ठौर नहीं पाते। उनकी बुद्धि को माया ताला लगा देती है।
ओम् शान्ति।
अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो। बाबा ने देही-अभिमानी बनाया है। जितना देही-अभिमानी बनेंगे, बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तो विकर्माजीत बनेंगे। देह-अभिमानी बनने से विकर्म भस्म नहीं होंगे और ही जास्ती विकर्म होते रहेंगे फिर नतीजा क्या होगा? एक तो सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाबा से कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाए तो भविष्य में हम किस गति को पायेंगे? मौत तो सामने खड़ा है। ब्राह्मण कुल भूषण को तो बिल्कुल हृस (दु:ख) नहीं आना चाहिए। उनको कहा जाता है महावीर। शास्त्रों में तो स्थूल रूप में बातें ले गये हैं। यह तो ज्ञान की बातें हैं। तुम बच्चे जानते हो - निराकार शिवबाबा ने आत्मा की भी पूरी पहचान दी है कि तुम्हारी आत्मा में क्या-क्या पार्ट नूँधा हुआ है। बाप ही बैठ समझाते हैं - मनुष्य तो देही-अभिमानी हैं नहीं। देही के बाप को ही नहीं जानते, यथार्थ रीति से इसलिए इसको घोर अन्धियारा कहा जाता है। कलियुग को घोर अन्धियारा, सतयुग को घोर सोझरा कहा जाता है। आत्मायें सब काली हैं अर्थात् ब्लैक आउट है। सतयुग में देवी-देवता धर्म की आत्मायें रोशनी में थी। इस भारत में ही दीपमाला मनाई जाती है। तुम जानते हो यहाँ हमारी आत्मा घोर अन्धियारे में है। बाप घोर सोझरे में ले जाते हैं। आत्माओं को कुछ पता नहीं कि हम कितने जन्म और कैसे लेते हैं। अब तुम जान चुके हो - बाप द्वारा हमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान मिला है। दुनिया में कोई भी तुमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज नहीं बता सकेंगे। वह तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं। भल कहते हैं कि मैं आत्मा हूँ, परन्तु मैं क्या हूँ, यह कुछ भी पता नहीं। भ्रकुटी के बीच सितारा चमकता है सो क्या! उनमें क्या पार्ट भरा हुआ है, कितने जन्म लेते हैं? यह ज्ञान कोई में भी नहीं है। बाप आकर समझाते हैं, सेल्फ रियलाइजेशन कराते हैं। कोई से पूछो कि आत्मा का बाप कौन है? कोई कहेंगे श्रीकृष्ण, कोई कहेंगे महावीर। हम आत्मा हैं, हमारा बाप निराकार शिव है। एक भी ऐसे कह न सके। न तो रचयिता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, इसलिए उनको नास्तिक कहा जाता है। बाप कहते हैं तुम नास्तिक शूद्र थे। अब ब्राह्मण आस्तिक बने हो। बाप परिचय देते हैं कि मैं क्या पार्ट बजाता हूँ। कोई भी बाप का परिचय दे न सके। बाप का पार्ट क्या है, समझा न सके। तुम भी नम्बरवार समझते हो। देही-अभिमानी होने कारण अवस्था अच्छी रहती है। देह-अभिमान में आकर फिर झरमुई- झगमुई करने लग पड़ते हैं, इसलिए ऊंच पद पा न सकें। न विकर्म विनाश होते हैं। बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं। जीते जी मरने का अर्थ कितना सहज है। तुम जीते जी मरे हुए हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, वह भी जानते हो, बाप को भी जानते हो कि वह कैसे ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। भारत ही पावन श्रेष्ठ था, अभी तो पतित है। परन्तु पतित अपने को समझते थोड़ेही हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो प्हले तो कोई भी काम के नहीं थे। सब मरे पड़े थे, सब कब्रिस्तान बना हुआ है। अब फिर परिस्तान के मालिक बन रहे हैं। भारत परिस्तान था, अब कब्रिस्तान है। सब एक दो को दु:ख देते ही रहते हैं। बाप कहते हैं कि अभी तुम सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ। देही-अभिमानी न होने कारण टाइम वेस्ट करते रहते हैं। घड़ी-घड़ी देह-अभिमान आ जाता है। तुम बच्चों को कब हृस (दु:ख) नहीं होना चाहिए। कोई-कोई तो हृस में आ जाते हैं। कोई समझते हैं बाबा रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं, रावण राज्य का विनाश होना है, इसमें कोई डरने की बात नहीं है। हाँ, गवर्मेंट आदि मकान खाली कराती है तो करना पड़ता है। बाबा की याद में शरीर भी छूट जाए तो अच्छा है। सदैव तैयार रहना चाहिए। माया का वार अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी हो जाता है। कोई तो ऐसे मूर्ख बन जाते हैं, कहते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है। परन्तु ब्रह्मा के आगे तो जरूर आना पड़ेगा ना। अच्छा घर में भी जाकर बैठ जाओ फिर मुरली कैसे सुनेंगे! क्या करेंगे? कहते यह ब्रह्मा भी पुरुषार्थी है, हम भी पुरुषार्थी हैं। पढ़ते तो सब शिवबाबा से हैं, परन्तु ब्रह्मा पास आयेंगे तब तो सुनेंगे ना। प्रेरणा से सुनकर दिखाओ तो मालूम पड़े। फिर कभी-कभी बाबा मुरली बंद भी कर देते हैं। ब्रह्मा से जन्म लिया और मर गया फिर खत्म। वर्सा कैसे पायेंगे। ऐसे भी मंद बुद्धि बहुत संगदोष में खराब हो जाते हैं। फिर बताओ उनकी क्या गति होगी? सतगुरू का निंदक बने तो ऊंच ठौर पा नहीं सकेंगे। गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना। गुरू विष्णु, गुरू शंकर नहीं कहेंगे। गुरू सिर्फ ब्रह्मा ही है। तुम भी माता गुरू बनती हो। सतगुरू द्वारा बनी हो न कि कलियुगी गुरूओं द्वारा। तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियां बनी हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा। मेहनत है, माया किसकी बुद्धि को ताला लगा देती है तो फिर उल्टासुल्टा बोलते रहते हैं। वेस्ट आफ टाइम करते हैं।
अच्छा मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
बापदादा के हस्त-लिखित पत्रों की कापी ज्ञान के सागर पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच, अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रतिहे बच्चों, तुमको समझाया गया है कि पतित-पावन को पतित दुनिया में आकर पतित शरीर में प्रवेश करना पड़ता है, वह पतित शरीर कौन सा है? जो पूरे 84 जन्मों का चक्र लगाकर अभी अन्तिम जन्म में है। पहला जन्म तो है पावन श्रीकृष्ण - श्रीराधे, स्वयंवर के बाद फिर श्री लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अभी वह देवताओं का धर्म है नहीं। अनेक अधर्म हैं। अब फिर से बाप आकर वही सतयुगी देवी-देवताओं का धर्म स्थापना करते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली बच्चे जो ब्राह्मण ब्राह्मणी कहलाते हैं। आत्मा रूप में आपस में भाई-भाई हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट हो भाई बहिन बनते हैं। वर्सा पाना है ब्रह्माकुमार-कुमारियों को परमपिता परमात्मा से। शिवबाबा अपने बच्चों (आत्माओं) को कहते हैं, अब देही-अभिमानी वा आत्म-अभिमानी भव और मुझ अपने बेहद के बाप याद करो, जो इस योग अग्नि वा याद द्वारा सिर पर विकर्मों का बोझा है जन्म-जन्मान्तर का, सो भस्म हो जायेगा। देह का अभिमान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर बेहद के बाप मुझ परमपिता को याद करो तो तुम फिर से पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे। द्वापर में जब से रावणराज्य की स्थापना होती है तब से आत्मा जो सच्चे सोने समान है, जिसको सतोप्रधान गोल्डन एज कहा जाता है, सो अन्त में आइरन एजड तमोप्रधान कही जाती है अर्थात् सतयुग में जो पावन थे सो पतित बन जाते हैं कलियुग में। अब फिर पावन बनने लिए खास भारतवासी पतितपावन बाप को बहुत याद करते हैं क्योंकि मेरा अवतरण इस भाग्यशाली ब्रह्मा रथ में ही होता है। इस भाग्यशाली रथ का नाम तो और ही होता है, उनको अपना बनाता हूँ। इसमें प्रवेश कर प्रजापिता ब्रह्मा नाम रख देता हूँ। कल्प पहले ड्रामा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रच उन ब्रह्माकुमार/कुमारियों द्वारा पतित भारत को पावन भारत बनाया था फिर भी जबकि कल्प की अन्त में पतित बन आत्मा 84 का चक्र पूरा करती है तो फिर वही पतित दुनिया को पावन करने आना पड़ता है। कल्प-कल्प अर्थात् हर 5 हजार वर्ष बाद मुझ सर्व के परमपिता परमात्मा को याद करते हैं, भक्ति मार्ग में। और अन्त में जब भक्ति मार्ग पूरा होता है तो आता हूँ। भक्ति मार्ग द्वापर से उतरता मार्ग है। रावण अर्थात् 5 विकारों के कारण सबकी उतरती कला होती है और मनुष्य मात्र पतित बन दुर्गति को पाते हैं। और मैं ब्राह्मण कुल भूषणों का बाप, टीचर, सतगुरू बनता हूँ। मेरा तो कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं है। भारतवासी आसुरी सम्प्रदाय जो सतयुग में दैवी सम्प्रदाय थे उनका पिता तो हूँ परन्तु उनको फिर से सूर्यवंशी देवी-देवता बनाने, जो प्रजापिता ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी बनते हैं, कल्प पहले मिसल उनका शिक्षक बनता हूँ। उनको सत्य ज्ञान देता हूँ। सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देकर उन्हें त्रिकालदर्शी बना रहा हूँ। ताकि नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कल्प पहले मिसल चक्रवर्ती सूर्यवंशी दैवी स्वराज्य फिर से स्थापना हो। बच्चों को सिद्ध कर बताया जा रहा है कि तुम इस समय सर्वोत्तम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण हो। दैवी कुल से यह उत्तम कुल है क्योंकि तुम ईश्वरीय कुल में हो। भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग श्रेष्ठाचारी वैकुण्ठ दैवी स्वराज्य था, तब तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वंश में आये। अब प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बने हो। इसे 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है। सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं, पीछे-पीछे अनेक धर्म द्वापर से मठ पंथ स्थापना होते आये हैं और सृष्टि वृद्धि को पाती आई है। वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा मनुष्य सृष्टि झाड़ का फाउन्डेशन है, जिसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। गोया शिवबाबा मनुष्य मात्र का बाबा, पिता है और ब्रह्मा गैन्ड फादर है। मनुष्य सृष्टि झाड़ वा जीनालाजिकल ट्री का पहला मनुष्य, आदम वा एडम वा प्रजापिता ब्रह्मा है। प्रजापिता ब्रह्मा और मुख वंशावली, परमपिता मुझ परमात्मा शिव से सहज राजयोग और ज्ञान सीख सुख घनेरे सोझरे में जाते हो। गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा... ज्ञान सूर्य भी पतित-पावन परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। तुम ज्ञान सोझरे में हो बाकी सब अज्ञान अन्धियारे में हैं। 2- बच्चों ने ज्ञान सुना और बाबा कहा तो वर्सा मिलना ही है। एक तो बाप को दूसरा सृष्टि चक्र को याद करना है और तो कोई तकलीफ नहीं। बाप जानते हैं कि बच्चों ने भक्ति मार्ग में बहुत तकलीफ देखी है, अभी और क्या तकलीफ बच्चों को देवें। जितना भक्ति में मेहनत उतना यहाँ चुप रहना है। जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। कहते हैं ना - त्वमेव माताश्च पिता...दूसरे लौकिक माँ बाप, भाई, बन्धु इस समय सब दु:ख देते हैं। यह फिर सबको सुख देते हैं, सदा सुखी बनाते हैं। अच्छा।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम ऊंचे ते ऊंच सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण हैं - इस खुशी में रहना है। स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरू के रूप में हमें मिला है इस स्मृति में सदा हर्षित रहना है।
2) किसी भी बात के दु:ख (हृस) में नहीं आना है। झरमुई झगमुई में समय बरबाद नहीं करना है।
वरदान: विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सद्भावना सम्पन्न भव
जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं - भावना और भाव। सर्व के प्रति कल्याण की भावना, स्नेह-सहयोग देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना, आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है, ऐसी भावना वाले ही अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हैं। अगर इनके विपरीत भावना है तो व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करता है। किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं।
स्लोगन: सर्वशक्तिमान् बाप जिसके साथ है, माया उसके सामने पेपर टाइगर है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 19th Sep 2017 )
19.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum godly student ho, tumhe kisi bhi haalat me ek din bhi padhai miss nahi karni hai, padhenge likhenge to banenge nabav.
Q- Jin baccho ka murli par poora attention hai unki nishaani kya hogi?
A- Jo attention dekar roz murli soonte hain wohi achchi tarah se jaante hain - Baap kaun hai aur kya hai kyunki Baap ke mahabakya hain ki main jo hun, jaisa hun, mujhe koto me koi he pehechante. Agar padhai me attention nahi to buddhi me baith nahi sakta ki yah shrimat hume Bhagwan de raha hai. Woh soona ansoona kar denge. Unki buddhi ka taala band ho jaata hai. Woh Baap ke farmaan par nahi chal sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ki agyaon ka ullanghan nahi karna hai. Kusang se bachna hai. Roz murli zaroor padhni wa sunni hai.
2) Bikarmo ka bojha samapt karne ke liye yaad me rehna hai. Jab tak jeena hai - gyan amrit peete rehna hai.
Vardaan:-- Subh bhavana aur shrest bhao dwara sarv ke priya ban bijay mala me pirone wale bijayi bhava
Slogan:-- Karm me yog ka anubhav karna he karmyogi banna hai.
''मीठे बच्चे - तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो, तुम्हें किसी भी हालत में एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है, पढ़ेंगे लिखेंगे तो बनेंगे नवाब''
प्रश्न: जिन बच्चों का मुरली पर पूरा अटेन्शन है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर: जो अटेन्शन देकर रोज़ मुरली सुनते हैं वही अच्छी तरह से जानते हैं - बाप कौन है और क्या है क्योंकि बाप के महावाक्य हैं कि मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोटो में कोई ही पहचानते। अगर पढ़ाई में अटेन्शन नहीं तो बुद्धि में बैठ नहीं सकता कि यह श्रीमत हमें भगवान दे रहा है। वह सुना अनसुना कर देंगे। उनकी बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। वह बाप के फरमान पर नहीं चल सकते हैं।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.... ओम् शान्ति।
बच्चे अभी समझते हैं कि हम ज्ञान सागर के बच्चे, ज्ञान सागर द्वारा अभी इस सारी सृष्टि चक्र वा ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हैं। दुनिया में तो और मनुष्य है नहीं जिसकी बुद्धि में यह ड्रामा हो। तुम्हारे में भी सब एक जैसा नहीं जानते हैं। तुम बच्चे जानते हो यह भारत अविनाशी खण्ड है। यह भारत ही सचखण्ड और झूठखण्ड बनता है। सचखण्ड को स्वर्ग, झूठखण्ड को नर्क कहा जाता है। यहाँ कई बच्चे समझते हैं, यह ज्ञान तो हम रोज़ सुनते हैं। कोई नई बात थोड़ेही है। नॉलेज को पूरा धारण नहीं करते हैं। तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो। पढ़ाई एक दिन भी मिस नहीं करना है। यही पढ़ाई वैल्युबुल है। भल कोई बीमार भी हो, वह यहाँ आकर बैठें तो महावाक्य तो सुनेंगे ना! सुनते-सुनते प्राण शरीर से निकलें तो कितनी न शफा मिल जाए। यह है बड़ी हॉस्पिटल। रात-दिन पढ़ाई का बहुत शौक होना चाहिए। मात-पिता को भी रात-दिन शौक है ना। भगवान तुम्हें पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - हे बच्चे तुम अच्छी रीति समझते हो ना - तुम तो कहेंगे यह लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले भी लगी थी। आगे तुम नहीं जानते थे, अभी जब बाप ने समझाया है तब समझते हो। तो स्टूडेन्ट का काम है जो नॉलेज मिलती है, उनको धारण करना। यहाँ मुख्य बात है ही पवित्रता की। आत्मा जो आइरन एज में आकर काली बन गई है - खाद पड़ गई है, उसको निकालना है। तुम आत्माओं को अन्दर में ख्याल आना चाहिए। शिवबाबा हमारे साथ बात कर रहे हैं। तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े। आत्म-अभिमानी यहाँ परमपिता परमात्मा ही बनाते हैं और कोई की ऐसी ताकत नहीं जो ऐसे आत्म-अभिमानी बन बैठकर समझाये। भल कहते हैं हम ईश्वर हैं, फलाना हैं। परन्तु जानते कुछ भी नहीं। तुम्हारी बुद्धि में है हम सारे सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। धारणा करने वालों में भी नम्बरवार तो हैं ना। न सिर्फ यहाँ लेकिन जो भी सेन्टर हैं, वहाँ भी नम्बरवार हैं। स्टूडेन्ट कभी एक समान नहीं होते। कोई मास में 20 दिन आते, कोई एक्यूरेट आते होंगे। भल कोई कहाँ भी जाते हैं परन्तु वहाँ भी रेग्युलर पढ़ना है। अगर मुरली नहीं पढ़ते हैं तो अबसेन्ट डाली जाती है। अगर मुरली जाती है, पढ़ते हैं तो अबसेन्ट नहीं कहेंगे। और कोई स्कूलों में ऐसे नहीं होता है। यहाँ बाहर जाने से उनको कुछ न कुछ पढ़ने के लिए देंगे। अगर कोई हॉस्पिटल में है - वहाँ भी जाए तुम उनको मुरली सुना सकते हो। यह मोस्ट वैल्युबुल नॉलेज है। यह तो जानते हैं - जितने अभी पास होंगे, उतने कल्प-कल्पान्तर पास होंगे। यह बड़ी भारी पढ़ाई है, इसमें बड़ा अटेन्शन चाहिए। ऐसे बहुत बच्चे हैं - जिनको माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। फिर भी याद नहीं रहता कि मैं गॉड फादरली स्टूडेन्ट हूँ। गाया भी जाता है - गज को ग्राह ने खाया। यहाँ की बात है। कुसंग मिलने से खाना आबाद होने के बदले बरबाद हो जाता है। बहुत थोड़े हैं जो अटेन्शन से पढ़ते हैं। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, विरला कोई मुझे समझ सकते हैं। अनपढ़ बच्चों को कोई बात कहो तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। भगवान के हमको डायरेक्शन मिलते हैं वह बुद्धि में नहीं रहता है। पूरा योग न होने कारण माया बुद्धि को ताला लगा देती है। यह दण्ड पड़ जाता है क्योंकि फरमान पर नहीं चलते हैं। बाबा कहते हैं मैं इतनी दूर से आया हूँ तुमको पढ़ाने। तुम श्रीमत को मानते नहीं हो फिर तुम्हारी क्या गति होगी। भगवान खुद बैठ पढ़ाते हैं। आज्ञा करते हैं। ऐसे नहीं कि प्रेरणा करते हैं, इसमें प्रेरणा की बात नहीं। यह तो ड्रामा बना बनाया है। अनादि है। यह तो पतित मनुष्य भी कह देते हैं कि परमात्मा की प्रेरणा से यह काम होता है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। ड्रामा का राज़ कोई भी साधू सन्त नहीं जानते हैं। बाबा ने आगे भी कहा था - एक विराट रूप का बड़ा चित्र बनाओ, विष्णु का। वो लोग तो रांग बना देते हैं। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र भी दिखाते हैं। डिटेल में नॉलेज कुछ भी नहीं जानते। सिर्फ ऐसे ही कह देते हैं - अर्थ कुछ भी नहीं समझते। विराट रूप नामीग्रामी है। वह भी बड़ा बनाना चाहिए। भल हमारे इस चित्र में भी है - ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। परन्तु बाप कहते हैं कि विष्णु का चित्र बनाना चाहिए। ऊपर में चोटी भी देनी चाहिए। शिवबाबा भी ऊपर में देना चाहिए। स्टॉर मुआफिक है। फिर ब्राह्मणों की चोटी। अंग्रेजी में भी लिखो - यह बी.के. ब्राह्मण वर्ण है एक जन्म। यह है मोस्ट वैल्युबुल जन्म। लीप जन्म, लीप युग है। यह है ऊंच ते ऊंच युग, इसको कोई जानते नहीं हैं। कोई भी शास्त्रों में यह नहीं है। पतित-पावन बाप को बुलाते हैं तो इसका मतलब कलियुग का अन्त है ना। संगमयुग का तो किसको पता नहीं है। बाप कहते हैं - यह भी समझाओ। ब्राह्मण जन्म एक जन्म फिर देवता इतने जन्म और इतना समय। तुम किश्चियन का भी दिखाते हो, दो हजार वर्ष होंगे। फिर सबका पार्ट पूरा होता है तो यह क्लीयर लिखना चाहिए। ब्राह्मण वर्ण, देवता वर्ण, फिर क्षत्रिय वर्ण रामराज्य। अभी तो हैं सब शूद्र वर्ण। विराट रूप दिखाना है। सारा खेल भी भारत पर बना हुआ है। भारत पावन, भारत पतित। बाकी सब बाईप्लाट हैं, उनका वर्णों के साथ कोई कनेक्शन है नहीं। भारत की महिमा बाप ने समझाई है। यह है अविनाशी खण्ड, यह विनाश नहीं होता। यह भी तुम जानते हो बरोबर सतयुग में और कोई खण्ड नहीं होता। यह सब बाद में आये हैं। फिर सब खलास हो जायेंगे। अविनाशी खण्ड भारत ही रहेगा और सब खत्म हो जायेंगे। नाम-निशान ही गुम हो जाता है। यह नॉलेज अभी ही तुम बच्चों की बुद्धि में है और कोई भी नहीं जानते हैं। भारत पवित्र से पवित्र खण्ड था। भारत को कहा जाता है - धर्म क्षेत्र। दान-पुण्य जितना यहाँ होता है और कहीं नहीं होता। यहाँ फिर से तुमको सारे विश्व के मालिकपने का वर्सा देते हैं। तुम इतना ऊंच वर्सा लेते हो। तुमको यह वर्सा था फिर गँवाया है। हार जीत होती है ना। अभी तुम जानते हो हम जीत पा रहे हैं, फिर हार खायेंगे। यह हार और जीत का राज़ बुद्धि में फिरता रहेगा। जीत कैसे पाते हैं और फिर हार कैसे खाते हैं। सतयुग में यह नॉलेज थोड़ेही होती है। वहाँ तो है प्रालब्ध। यह राज्य हमने कहाँ से लिया है - वह भी वहाँ पता नहीं रहता। अभी ही बाप द्वारा तुम नॉलेजफुल बनते हो। इस नॉलेज के आधार से तुम जाकर प्रालब्ध पाते हो। ड्रामा की रील फिरती रहती है, जो इमर्ज होता है उसी अनुसार तुम्हारी एक्ट चलती रहती है। 84 जन्मों की एक्ट ड्रामा में नूँधी हुई है। आत्मा कितनी छोटी है - इसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो रिपीट होता रहता है। इसको कुदरत कहा जाता है। इस कुदरत को कोई नहीं जानते। इतनी छोटी आत्मा में कितना पार्ट है जो कभी विनाश नहीं हो सकता। इन साइंस वालों की बुद्धि अपने विनाश का प्रबन्ध कर रही है। तुम आत्मा ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रही हो। वह समझते हैं - हम अभी स्टॉर मून के नजदीक आये हैं, प्लाट लेंगे। वह बड़ा महत्व देते हैं। हम तो कहते हैं कि यह तो सब अपनी मौत के लिए करते हैं।
तुम बच्चे जानते हो यह सब तैयारी हो रही हैं स्वर्ग के गेट खोलने के लिए। यह लड़ाई बिगर स्वर्ग के गेट कैसे खुलेंगे। पतित दुनिया का विनाश तो चाहिए ना। इन बातों को विद्वान, पण्डित आदि थोड़ेही जानते हैं। यह तुम जानते हो - ड्रामा अनुसार नूँध है। तो तुम बच्चों को यह पढ़ाई पढ़नी है। कोई तो सुनते-सुनते, पढ़ते-पढ़ते खत्म हो जाते हैं। कोई तो बैठे हुए भी जैसेकि सुनते नहीं। धारणा जब खुद में हो तब तो औरों को समझा सकें। धारणा ही नहीं - सर्विस ही नहीं करते तो पद क्या मिलेगा - हाँ, स्वर्ग में जायेंगे। राजाई में आयेंगे परन्तु सब तो राजा नहीं बनेंगे ना। पढ़ेंगे, लिखेंगे होंगे नवाब। जो नहीं पढ़ेंगे पढ़ायेंगे तो भरी ढोनी पड़ेगी। यह तो होना ही है। जाकर चाकरी करेंगे। राजाई में आयेंगे परन्तु चाकरी करेंगे ना। प्रजा तो ढेर बनती जाती है। लाखों की अन्दाज में बनती है, उनके भी तो नौकर चाकर होंगे ना। प्रदर्शनी में तो बहुत सुनेंगे, कुछ न कुछ बुद्धि में बैठेगा। आयेंगे भी वही जो स्वर्ग में रहने वाले होंगे। सन्यास धर्म वाले थोड़ेही आयेंगे। जो थोड़ा बहुत सुनेंगे वह तो प्रजा में आ ही जायेंगे। योग तो लगाते नहीं, विकर्म विनाश तो हो न सकें, तो पद कहां से मिलेगा। तो बच्चों को सारा राज़ समझाया जाता है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। स्थापना जरूर संगम पर ही होगी ना। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ कल्प के संगमयुग पर। उन्होंने फिर युगे-युगे लिख दिया है। तो भी 4 युग अथवा 5 युग कहो फिर भी इतने अवतार क्यों दिखाये हैं। परशुराम अवतार, कच्छ-मच्छ अवतार, परशुराम अवतार के लिए फिर दिखाते हैं कि कुल्हाड़ी उठाए सब क्षत्रियों को मारा। बाप कहते हैं - यह कैसे हो सकता है। क्या भगवान ने इतनी हिंसा कुल्हाड़ी से किया? मनुष्य तो जो सुनते सब सत-सत करते रहते हैं। असत्य बात को भी सत्य मान लेते हैं। बाप कहते हैं कि यह सभी असत्य बातें हैं। सत्य कोई भी है नहीं। किसको कहो तो बिगड़ पड़ते हैं। बाप कहते हैं कि युक्ति से काम लो। चूहा ऐसी युक्ति से काटता है जो सारा मांस खा जाता है, मालूम ही नहीं पड़ता है। तुम बच्चों को बड़ी युक्ति से चलना चाहिए। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं परन्तु कोई धारणा भी तो करे। मुख्य बात है ही एक। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्मों का बोझा खत्म हो जाए। सिवाए योग अग्नि के खाद निकल न सके। नहीं तो कड़ी सजा खानी पड़ेगी। तुम्हें तो पास विद् ऑनर बनना है। प्रजा तो बहुत बनती है, नम्बरवार। बाकी राजाई के लिए मेहनत चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए। बहुत चलते-चलते पढ़ाई छोड़ देते हैं। अरे गॉड फादर बैठा है, जहाँ जीना है ज्ञान अमृत पीते रहना है। यह पढ़ाई है। पढ़ते-पढ़ते फिर नई दुनिया में ट्रांसफर हो जायेंगे। क्लास नम्बरवार ट्रांसफर होता है ना। यहाँ भी सारा पुरूषार्थ पर मदार है। कहते हैं हे पतित-पावन आओ तो जरूर कलियुगी पतित दुनिया का अन्त हो तब तो आये। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। दुनिया में ब्लाइन्डफेथ होने कारण जिसने जो सुनाया सत-सत करते रहते हैं। समझते कुछ भी नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करना है। कुसंग से बचना है। रोज़ मुरली जरूर पढ़नी वा सुननी है।
2) विकर्मों का बोझा समाप्त करने के लिए याद में रहना है। जब तक जीना है - ज्ञान अमृत पीते रहना है।
वरदान: शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव द्वारा सर्व के प्रिय बन विजय माला में पिरोने वाले विजयी भव!
कोई किसी भी भाव से बोले वा चले लेकिन आप सदा हर एक के प्रति शुभ भाव, श्रेष्ठ भाव धारण करो, इसमें विजयी बनो तो माला में पिरोने के अधिकारी बन जायेंगे, क्योंकि सर्व के प्रिय बनने का साधन ही है सम्बन्ध-सम्पर्क में हर एक के प्रति श्रेष्ठ भाव धारण करना। ऐसे श्रेष्ठ भाव वाला सदा सभी को सुख देगा, सुख लेगा। यह भी सेवा है तथा शुभ भावना मन्सा सेवा का श्रेष्ठ साधन है। तो ऐसी सेवा करने वाले विजयी माला के मणके बन जाते हैं।
स्लोगन: कर्म में योग का अनुभव करना ही कर्मयोगी बनना है।
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Mithe bacche - Tum godly student ho, tumhe kisi bhi haalat me ek din bhi padhai miss nahi karni hai, padhenge likhenge to banenge nabav.
Q- Jin baccho ka murli par poora attention hai unki nishaani kya hogi?
A- Jo attention dekar roz murli soonte hain wohi achchi tarah se jaante hain - Baap kaun hai aur kya hai kyunki Baap ke mahabakya hain ki main jo hun, jaisa hun, mujhe koto me koi he pehechante. Agar padhai me attention nahi to buddhi me baith nahi sakta ki yah shrimat hume Bhagwan de raha hai. Woh soona ansoona kar denge. Unki buddhi ka taala band ho jaata hai. Woh Baap ke farmaan par nahi chal sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ki agyaon ka ullanghan nahi karna hai. Kusang se bachna hai. Roz murli zaroor padhni wa sunni hai.
2) Bikarmo ka bojha samapt karne ke liye yaad me rehna hai. Jab tak jeena hai - gyan amrit peete rehna hai.
Vardaan:-- Subh bhavana aur shrest bhao dwara sarv ke priya ban bijay mala me pirone wale bijayi bhava
Slogan:-- Karm me yog ka anubhav karna he karmyogi banna hai.
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HINDI COMPLETE MURALI in DETAILS
19/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो, तुम्हें किसी भी हालत में एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है, पढ़ेंगे लिखेंगे तो बनेंगे नवाब''
प्रश्न: जिन बच्चों का मुरली पर पूरा अटेन्शन है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर: जो अटेन्शन देकर रोज़ मुरली सुनते हैं वही अच्छी तरह से जानते हैं - बाप कौन है और क्या है क्योंकि बाप के महावाक्य हैं कि मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोटो में कोई ही पहचानते। अगर पढ़ाई में अटेन्शन नहीं तो बुद्धि में बैठ नहीं सकता कि यह श्रीमत हमें भगवान दे रहा है। वह सुना अनसुना कर देंगे। उनकी बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। वह बाप के फरमान पर नहीं चल सकते हैं।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.... ओम् शान्ति।
बच्चे अभी समझते हैं कि हम ज्ञान सागर के बच्चे, ज्ञान सागर द्वारा अभी इस सारी सृष्टि चक्र वा ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हैं। दुनिया में तो और मनुष्य है नहीं जिसकी बुद्धि में यह ड्रामा हो। तुम्हारे में भी सब एक जैसा नहीं जानते हैं। तुम बच्चे जानते हो यह भारत अविनाशी खण्ड है। यह भारत ही सचखण्ड और झूठखण्ड बनता है। सचखण्ड को स्वर्ग, झूठखण्ड को नर्क कहा जाता है। यहाँ कई बच्चे समझते हैं, यह ज्ञान तो हम रोज़ सुनते हैं। कोई नई बात थोड़ेही है। नॉलेज को पूरा धारण नहीं करते हैं। तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो। पढ़ाई एक दिन भी मिस नहीं करना है। यही पढ़ाई वैल्युबुल है। भल कोई बीमार भी हो, वह यहाँ आकर बैठें तो महावाक्य तो सुनेंगे ना! सुनते-सुनते प्राण शरीर से निकलें तो कितनी न शफा मिल जाए। यह है बड़ी हॉस्पिटल। रात-दिन पढ़ाई का बहुत शौक होना चाहिए। मात-पिता को भी रात-दिन शौक है ना। भगवान तुम्हें पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - हे बच्चे तुम अच्छी रीति समझते हो ना - तुम तो कहेंगे यह लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले भी लगी थी। आगे तुम नहीं जानते थे, अभी जब बाप ने समझाया है तब समझते हो। तो स्टूडेन्ट का काम है जो नॉलेज मिलती है, उनको धारण करना। यहाँ मुख्य बात है ही पवित्रता की। आत्मा जो आइरन एज में आकर काली बन गई है - खाद पड़ गई है, उसको निकालना है। तुम आत्माओं को अन्दर में ख्याल आना चाहिए। शिवबाबा हमारे साथ बात कर रहे हैं। तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े। आत्म-अभिमानी यहाँ परमपिता परमात्मा ही बनाते हैं और कोई की ऐसी ताकत नहीं जो ऐसे आत्म-अभिमानी बन बैठकर समझाये। भल कहते हैं हम ईश्वर हैं, फलाना हैं। परन्तु जानते कुछ भी नहीं। तुम्हारी बुद्धि में है हम सारे सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। धारणा करने वालों में भी नम्बरवार तो हैं ना। न सिर्फ यहाँ लेकिन जो भी सेन्टर हैं, वहाँ भी नम्बरवार हैं। स्टूडेन्ट कभी एक समान नहीं होते। कोई मास में 20 दिन आते, कोई एक्यूरेट आते होंगे। भल कोई कहाँ भी जाते हैं परन्तु वहाँ भी रेग्युलर पढ़ना है। अगर मुरली नहीं पढ़ते हैं तो अबसेन्ट डाली जाती है। अगर मुरली जाती है, पढ़ते हैं तो अबसेन्ट नहीं कहेंगे। और कोई स्कूलों में ऐसे नहीं होता है। यहाँ बाहर जाने से उनको कुछ न कुछ पढ़ने के लिए देंगे। अगर कोई हॉस्पिटल में है - वहाँ भी जाए तुम उनको मुरली सुना सकते हो। यह मोस्ट वैल्युबुल नॉलेज है। यह तो जानते हैं - जितने अभी पास होंगे, उतने कल्प-कल्पान्तर पास होंगे। यह बड़ी भारी पढ़ाई है, इसमें बड़ा अटेन्शन चाहिए। ऐसे बहुत बच्चे हैं - जिनको माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। फिर भी याद नहीं रहता कि मैं गॉड फादरली स्टूडेन्ट हूँ। गाया भी जाता है - गज को ग्राह ने खाया। यहाँ की बात है। कुसंग मिलने से खाना आबाद होने के बदले बरबाद हो जाता है। बहुत थोड़े हैं जो अटेन्शन से पढ़ते हैं। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, विरला कोई मुझे समझ सकते हैं। अनपढ़ बच्चों को कोई बात कहो तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। भगवान के हमको डायरेक्शन मिलते हैं वह बुद्धि में नहीं रहता है। पूरा योग न होने कारण माया बुद्धि को ताला लगा देती है। यह दण्ड पड़ जाता है क्योंकि फरमान पर नहीं चलते हैं। बाबा कहते हैं मैं इतनी दूर से आया हूँ तुमको पढ़ाने। तुम श्रीमत को मानते नहीं हो फिर तुम्हारी क्या गति होगी। भगवान खुद बैठ पढ़ाते हैं। आज्ञा करते हैं। ऐसे नहीं कि प्रेरणा करते हैं, इसमें प्रेरणा की बात नहीं। यह तो ड्रामा बना बनाया है। अनादि है। यह तो पतित मनुष्य भी कह देते हैं कि परमात्मा की प्रेरणा से यह काम होता है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। ड्रामा का राज़ कोई भी साधू सन्त नहीं जानते हैं। बाबा ने आगे भी कहा था - एक विराट रूप का बड़ा चित्र बनाओ, विष्णु का। वो लोग तो रांग बना देते हैं। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र भी दिखाते हैं। डिटेल में नॉलेज कुछ भी नहीं जानते। सिर्फ ऐसे ही कह देते हैं - अर्थ कुछ भी नहीं समझते। विराट रूप नामीग्रामी है। वह भी बड़ा बनाना चाहिए। भल हमारे इस चित्र में भी है - ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। परन्तु बाप कहते हैं कि विष्णु का चित्र बनाना चाहिए। ऊपर में चोटी भी देनी चाहिए। शिवबाबा भी ऊपर में देना चाहिए। स्टॉर मुआफिक है। फिर ब्राह्मणों की चोटी। अंग्रेजी में भी लिखो - यह बी.के. ब्राह्मण वर्ण है एक जन्म। यह है मोस्ट वैल्युबुल जन्म। लीप जन्म, लीप युग है। यह है ऊंच ते ऊंच युग, इसको कोई जानते नहीं हैं। कोई भी शास्त्रों में यह नहीं है। पतित-पावन बाप को बुलाते हैं तो इसका मतलब कलियुग का अन्त है ना। संगमयुग का तो किसको पता नहीं है। बाप कहते हैं - यह भी समझाओ। ब्राह्मण जन्म एक जन्म फिर देवता इतने जन्म और इतना समय। तुम किश्चियन का भी दिखाते हो, दो हजार वर्ष होंगे। फिर सबका पार्ट पूरा होता है तो यह क्लीयर लिखना चाहिए। ब्राह्मण वर्ण, देवता वर्ण, फिर क्षत्रिय वर्ण रामराज्य। अभी तो हैं सब शूद्र वर्ण। विराट रूप दिखाना है। सारा खेल भी भारत पर बना हुआ है। भारत पावन, भारत पतित। बाकी सब बाईप्लाट हैं, उनका वर्णों के साथ कोई कनेक्शन है नहीं। भारत की महिमा बाप ने समझाई है। यह है अविनाशी खण्ड, यह विनाश नहीं होता। यह भी तुम जानते हो बरोबर सतयुग में और कोई खण्ड नहीं होता। यह सब बाद में आये हैं। फिर सब खलास हो जायेंगे। अविनाशी खण्ड भारत ही रहेगा और सब खत्म हो जायेंगे। नाम-निशान ही गुम हो जाता है। यह नॉलेज अभी ही तुम बच्चों की बुद्धि में है और कोई भी नहीं जानते हैं। भारत पवित्र से पवित्र खण्ड था। भारत को कहा जाता है - धर्म क्षेत्र। दान-पुण्य जितना यहाँ होता है और कहीं नहीं होता। यहाँ फिर से तुमको सारे विश्व के मालिकपने का वर्सा देते हैं। तुम इतना ऊंच वर्सा लेते हो। तुमको यह वर्सा था फिर गँवाया है। हार जीत होती है ना। अभी तुम जानते हो हम जीत पा रहे हैं, फिर हार खायेंगे। यह हार और जीत का राज़ बुद्धि में फिरता रहेगा। जीत कैसे पाते हैं और फिर हार कैसे खाते हैं। सतयुग में यह नॉलेज थोड़ेही होती है। वहाँ तो है प्रालब्ध। यह राज्य हमने कहाँ से लिया है - वह भी वहाँ पता नहीं रहता। अभी ही बाप द्वारा तुम नॉलेजफुल बनते हो। इस नॉलेज के आधार से तुम जाकर प्रालब्ध पाते हो। ड्रामा की रील फिरती रहती है, जो इमर्ज होता है उसी अनुसार तुम्हारी एक्ट चलती रहती है। 84 जन्मों की एक्ट ड्रामा में नूँधी हुई है। आत्मा कितनी छोटी है - इसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है, जो रिपीट होता रहता है। इसको कुदरत कहा जाता है। इस कुदरत को कोई नहीं जानते। इतनी छोटी आत्मा में कितना पार्ट है जो कभी विनाश नहीं हो सकता। इन साइंस वालों की बुद्धि अपने विनाश का प्रबन्ध कर रही है। तुम आत्मा ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रही हो। वह समझते हैं - हम अभी स्टॉर मून के नजदीक आये हैं, प्लाट लेंगे। वह बड़ा महत्व देते हैं। हम तो कहते हैं कि यह तो सब अपनी मौत के लिए करते हैं।
तुम बच्चे जानते हो यह सब तैयारी हो रही हैं स्वर्ग के गेट खोलने के लिए। यह लड़ाई बिगर स्वर्ग के गेट कैसे खुलेंगे। पतित दुनिया का विनाश तो चाहिए ना। इन बातों को विद्वान, पण्डित आदि थोड़ेही जानते हैं। यह तुम जानते हो - ड्रामा अनुसार नूँध है। तो तुम बच्चों को यह पढ़ाई पढ़नी है। कोई तो सुनते-सुनते, पढ़ते-पढ़ते खत्म हो जाते हैं। कोई तो बैठे हुए भी जैसेकि सुनते नहीं। धारणा जब खुद में हो तब तो औरों को समझा सकें। धारणा ही नहीं - सर्विस ही नहीं करते तो पद क्या मिलेगा - हाँ, स्वर्ग में जायेंगे। राजाई में आयेंगे परन्तु सब तो राजा नहीं बनेंगे ना। पढ़ेंगे, लिखेंगे होंगे नवाब। जो नहीं पढ़ेंगे पढ़ायेंगे तो भरी ढोनी पड़ेगी। यह तो होना ही है। जाकर चाकरी करेंगे। राजाई में आयेंगे परन्तु चाकरी करेंगे ना। प्रजा तो ढेर बनती जाती है। लाखों की अन्दाज में बनती है, उनके भी तो नौकर चाकर होंगे ना। प्रदर्शनी में तो बहुत सुनेंगे, कुछ न कुछ बुद्धि में बैठेगा। आयेंगे भी वही जो स्वर्ग में रहने वाले होंगे। सन्यास धर्म वाले थोड़ेही आयेंगे। जो थोड़ा बहुत सुनेंगे वह तो प्रजा में आ ही जायेंगे। योग तो लगाते नहीं, विकर्म विनाश तो हो न सकें, तो पद कहां से मिलेगा। तो बच्चों को सारा राज़ समझाया जाता है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। स्थापना जरूर संगम पर ही होगी ना। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ कल्प के संगमयुग पर। उन्होंने फिर युगे-युगे लिख दिया है। तो भी 4 युग अथवा 5 युग कहो फिर भी इतने अवतार क्यों दिखाये हैं। परशुराम अवतार, कच्छ-मच्छ अवतार, परशुराम अवतार के लिए फिर दिखाते हैं कि कुल्हाड़ी उठाए सब क्षत्रियों को मारा। बाप कहते हैं - यह कैसे हो सकता है। क्या भगवान ने इतनी हिंसा कुल्हाड़ी से किया? मनुष्य तो जो सुनते सब सत-सत करते रहते हैं। असत्य बात को भी सत्य मान लेते हैं। बाप कहते हैं कि यह सभी असत्य बातें हैं। सत्य कोई भी है नहीं। किसको कहो तो बिगड़ पड़ते हैं। बाप कहते हैं कि युक्ति से काम लो। चूहा ऐसी युक्ति से काटता है जो सारा मांस खा जाता है, मालूम ही नहीं पड़ता है। तुम बच्चों को बड़ी युक्ति से चलना चाहिए। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं परन्तु कोई धारणा भी तो करे। मुख्य बात है ही एक। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्मों का बोझा खत्म हो जाए। सिवाए योग अग्नि के खाद निकल न सके। नहीं तो कड़ी सजा खानी पड़ेगी। तुम्हें तो पास विद् ऑनर बनना है। प्रजा तो बहुत बनती है, नम्बरवार। बाकी राजाई के लिए मेहनत चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए। बहुत चलते-चलते पढ़ाई छोड़ देते हैं। अरे गॉड फादर बैठा है, जहाँ जीना है ज्ञान अमृत पीते रहना है। यह पढ़ाई है। पढ़ते-पढ़ते फिर नई दुनिया में ट्रांसफर हो जायेंगे। क्लास नम्बरवार ट्रांसफर होता है ना। यहाँ भी सारा पुरूषार्थ पर मदार है। कहते हैं हे पतित-पावन आओ तो जरूर कलियुगी पतित दुनिया का अन्त हो तब तो आये। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। दुनिया में ब्लाइन्डफेथ होने कारण जिसने जो सुनाया सत-सत करते रहते हैं। समझते कुछ भी नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करना है। कुसंग से बचना है। रोज़ मुरली जरूर पढ़नी वा सुननी है।
2) विकर्मों का बोझा समाप्त करने के लिए याद में रहना है। जब तक जीना है - ज्ञान अमृत पीते रहना है।
वरदान: शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव द्वारा सर्व के प्रिय बन विजय माला में पिरोने वाले विजयी भव!
कोई किसी भी भाव से बोले वा चले लेकिन आप सदा हर एक के प्रति शुभ भाव, श्रेष्ठ भाव धारण करो, इसमें विजयी बनो तो माला में पिरोने के अधिकारी बन जायेंगे, क्योंकि सर्व के प्रिय बनने का साधन ही है सम्बन्ध-सम्पर्क में हर एक के प्रति श्रेष्ठ भाव धारण करना। ऐसे श्रेष्ठ भाव वाला सदा सभी को सुख देगा, सुख लेगा। यह भी सेवा है तथा शुभ भावना मन्सा सेवा का श्रेष्ठ साधन है। तो ऐसी सेवा करने वाले विजयी माला के मणके बन जाते हैं।
स्लोगन: कर्म में योग का अनुभव करना ही कर्मयोगी बनना है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 20th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
20.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Is samay sabhi ki taqdeer bigdi huyi hai, kyunki sab patit hai, tumhe ab shrimat par sabki taqdeer jagani hai, pawan banne ki yukti batani hai.
Question - Sabse kharab chal kaun si hai, jisse bahut nukshan hota hai?
Ans- Ek do ko patthar marna arthat kadwe bol bolkar jakhmi kar dena - yah hai sabse kharab chal. Isse bahut nukshan hota hai. Tum baccho ko ab Roop-basant banna hai. Achche manners dharan karne hain. Tumhare mukh se sadev abinashi gyan ratna nikalne chahiye. Aatma ko bhi yaad se roopwan banana hai aur Baap, jo gyan ratna dete hain, unka daan karna hai. Bahut mithe bol bolne hain. Kadwe bol bolne wale se kinara kar lena hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Ninda karne wale ka sang kabhi bhi nahi karna hai. Na glani karni hai, na sunni hai. Buddhi ko paras banane ke liye mukh se gyan ratno ka daan karna hai.
2) Gyan material se Manushyo ko Devta, kaanto ko phool banane ki seva karni hai. Apna aur sarv ka kalyan karne ka he dhanda karna hai.
Vardaan:-- Sarv aatmaon ke asubh bhao aur bhavana ka parivartan karne wale Biswa Parivartak bhava.
Slogan:-- Anubhavi swaroop bano to chehre se khushnasibi ki jhalak dikhayi degi.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
20/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - इस समय सभी की तकदीर बिगड़ी हुई है, क्योंकि सब पतित हैं, तुम्हें अब श्रीमत पर सबकी तकदीर जगानी है, पावन बनने की युक्ति बतानी है''
प्रश्न: सबसे खराब चाल कौन सी है, जिससे बहुत नुकसान होता है?
उत्तर: एक दो को पत्थर मारना अर्थात् कडुवे बोल बोलकर जख्मी कर देना - यह है सबसे खराब चाल़ इससे बहुत नुकसान होता है। तुम बच्चों को अब रूप-बसन्त बनना है। अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। तुम्हारे मुख से सदैव अविनाशी ज्ञान रत्न निकलने चाहिए। आत्मा को भी याद से रूपवान बनाना है और बाप, जो ज्ञान रत्न देते हैं, उनका दान करना है। बहुत मीठे बोल बोलने हैं। कड़ुवे बोल बोलने वाले से किनारा कर लेना है।
गीत:- भोलेनाथ से निराला... ओम् शान्ति।
बाप हमेशा भोले होते हैं। एक होता है हद का बाप, दूसरा होता है बेहद का बाप। बाप तो होते ही हैं - एक लौकिक और दूसरा पारलौकिक। लौकिक बाप को तो सब जानते ही हैं। तुम ब्राह्मण लौकिक बाप और पारलौकिक बाप दोनों को जानते हो। लौकिक बाप भी भोले ही हैं। बच्चे पैदा कर, उनकी सम्भाल कर, मेहनत कर फिर सब बच्चे को दे देते हैं। झूठ आदि बोल करके कमाते हैं कि पिछाड़ी में पुत्र पोत्रे के लिए छोड़ जायें। बाप का बच्चों पर बहुत प्यार होता है। छोटेपन में ही बच्चा बाबा-बाबा कहने लग पड़ता है। बाबुल अक्षर बहुत मीठा है। अब तुम बच्चों ने बेहद के बाप को भी जाना है। बेहद के बाप ने तो कमाल की है। कितनी बेहद की नॉलेज सुनाते हैं। लौकिक बाप तो समझा न सकें। भल धन आदि देते हैं परन्तु बिगड़ी को तो वह बना न सकें। बिगड़ी को बनाने वाला भगवान भोलानाथ ही है। वह कल्प-कल्प सर्व की बिगड़ी को बनाने वाला... सर्व को गति सद्गति देने वाला है। लौकिक बाप टीचर गुरू हमको बेहद का मालिक नहीं बना सकते। बेहद बाप को जानना और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना, यह और कोई जानते ही नहीं। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बच्चों की बुद्धि में है कि यह बेहद का चक्र कैसे फिरता है? बच्चे जानते हैं यह बना बनाया ड्रामा है। वही हमें पुरूषार्थ कराते हैं। हम पुरूषार्थ जरूर करेंगे। कल्प-कल्प जैसे श्रीमत पर पुरूषार्थ किया था, वैसे हर एक कर रहे हैं - अपनी बिगड़ी को बनाने। देखते हैं कि बहनें और भाई सब बिगड़ी को बनाने के पुरूषार्थ में लगे हुए हैं। भारतवासी पुकारते भी हैं कि हे बिगड़ी को बनाने वाले, हे पतित-पावन आओ। रावण ने बिगाड़ा है, जिससे ही धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। अब तुम बच्चों ने यह सब बाप द्वारा जाना है। मनुष्य सृष्टि जिसका नाम कल्प वृक्ष है, यह बहुत नामीग्रामी है। जिसका राज़ भी बुद्धि में बैठ गया है। मनुष्य लोग जब तुम्हारे चित्र देखते हैं तो कहते हैं कि यह तो कल्पना है - जो 5 हजार वर्ष का कल्प वृक्ष बनाया है। हम तो इस पर बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। कल्प वृक्ष जिसका बनेन ट्री के साथ भी मुकाबला करते हैं। समझाते हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, अब वह प्राय:लोप है। ड्रामा प्लैन अनुसार और सब धर्म हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी जो मुख्य स्वर्ग की गाई जाती है, उनको फिर से रिपीट होना है। अच्छी हिस्ट्री-जॉग्राफी है ही स्वर्ग की। सब कहते भी हैं - हमको रामराज्य चाहिए, जिसमें दु:ख का नाम-निशान न हो। अब तो रावण राज्य है परन्तु यह कोई नहीं समझते कि हम ही रावण हैं। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं। मनुष्यों को तो कुछ भी पता नहीं। बिगड़ी को बनाने वाला कैसे आते हैं, कैसे बिगड़ी को बनाते हैं! पतित को कहेंगे बिगड़े हुए। हमारी बुद्धि अथवा तकदीर कैसे बिगड़ी हुई थी। यह अब तुम्हारी बुद्धि में है। उन्हों की रसम-रिवाज ही रावण की है। तुम्हारी रसम-रिवाज है राम की। राम कोई वह त्रेता वाला नही। उसने गीता नहीं सुनाई थी। आजकल विलायत में भी रामायण आदि सुनाते हैं। कोई-कोई तो गेरू कफनी पहन कुटियाओं में जाकर रहते हैं। अब तुम बच्चों को कोई कुटिया आदि में नहीं रहना है। कुटिया में कब पाठशाला होती है क्या? वहाँ तो फकीर लोग रहते हैं। तुम्हारी तो पढ़ाई है। परन्तु यह है नई गवर्मेन्ट इसलिए कोई समझ न सके कि तुम कौन हो। एक मिनिस्टर को समझाओ तो दूसरा कहेंगे तुम बूद्धू हो। यह है बिल्कुल नई बातें। बाबा समझाते रहते हैं। करेक्शन भी करते जाओ। ब्रह्माकुमार कुमारियों के आगे प्रजापिता ब्रह्मा जरूर लिखना चाहिए। प्रजापिता कहने से बाप सिद्ध हो जाता है। हम प्रश्न ही पूछते हैं कि प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? क्योंकि ब्रह्मा नाम तो बहुतों के हैं। कोई फीमेल का नाम भी ब्रह्मा है। प्रजापिता नाम तो किसका होता नहीं, इसलिए प्रजापिता अक्षर बहुत जरूरी है। प्रजापिता आदि देव कहते हैं। परन्तु आदि देव का अर्थ नहीं समझते। प्रजापिता तो जरूर यहाँ ही होगा ना। आदि देव फिर वह ब्रह्मा (सूक्ष्म) हो जाता है। आदि अर्थात् शुरूआत का। प्रजापिता ब्रह्मा को फिर बेटी है सरस्वती। सूक्ष्मवतन में तो बेटी हो न सके। रचयिता तो यहाँ है ना। इन गुह्य बातों को विशालबुद्धि वाले ही धारण कर सकते हैं। धारणा के साथ मैनर्स भी चाहिए। जो कोई भी देख खुश हो। तुम्हारा बोल जो निकलता है उनको रत्न कहा जाता है। बाप रूप-बसन्त है। आत्मा को रूपवान बनाते हैं। अब तो आत्मा काली कुरूप है, उनको योग से रूपवान बनाना है।
तुम बच्चे अभी रूप-बसन्त बनते हो। मुख से सदैव अविनाशी ज्ञान रत्न निकलते हैं। बच्चों के मैनर्स बहुत मीठे होने चाहिए। मुख से हमेशा रत्न ही निकलने चाहिए। बहुत हैं जो पत्थर ही मारते हैं। बाप ज्ञान रत्न देते हैं। तुम बच्चों का भी यही धन्धा है। एक दो को पत्थर मारना - यह तो बड़ी खराब चाल है। अपना नुकसान कर देते हैं। बाप है ज्ञान का सागर। उसका रूप भी समझाया है कि कितना सूक्ष्म है। वह तो लिंग कह देते हैं। पहले तो बाप का परिचय देना है। भल वह ज्योर्तिलिंगम ही समझें। डीप बात बाद में समझानी होती है। फिर पूछना होता है आत्मा का रूप क्या है? यह तो सब कहते हैं भृकुटी के बीच में चमकती है। तो जरूर छोटी ही होगी। बड़ा लिंग तो यहाँ बैठ भी न सके। गोला निकल आये। पहले तो बाप और बच्चे का सम्बन्ध बुद्धि में बिठाना चाहिए। वह तो है बेहद का बाप। अब ब्रह्मा कहाँ से आता है? बाप आकर इनको एडाप्ट करते हैं अर्थात् इसमें प्रवेश करते हैं। तुम्हारी एडाप्शन अलग है, इनकी अलग है। बाप इसमें प्रवेश करते हैं। बाप कहते हैं यह मेरी स्त्री है, मैंने एडाप्ट किया है। मैं इनमें प्रवेश हो कहता हूँ तुम हमारी मुख वंशावली हो। मैंने तुमको ब्रह्मा मुख से रचा है। मुझे तो अपना मुख है नहीं। शिव कैसे कहेंगे मेरी मुख वंशावली। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। बाप कहते हैं तुम सब आत्मायें मेरे बच्चे हो। भाई-बहन हो। बुद्धि में यह आना चाहिए। बाप स्वर्ग रचने वाला है। तो हमको स्वर्ग की राजाई क्यों नहीं मिलनी चाहिए। स्वर्ग में तो सब नहीं जा सकते। बाप कहते हैं सर्व की सद्गति करता हूँ। तुम मुक्ति में जाकर फिर पार्ट बजाने आते हो नम्बरवार। मुक्ति सबको मिलती है। माया के दु:ख से सब छूट सकते हैं। फिर नम्बरवार आना होगा पार्ट बजाने। जीवनमुक्ति में पहले-पहले तुम जाते हो, क्योंकि तुम राजयोग सीखते हो ना। जिन्होंने कल्प पहले आकर सीखा है वही आकर सीखेंगे - ड्रामा अनुसार। ड्रामा सामने खड़ा है ना। अभी तो अनेक धर्म हैं। सतयुग में एक धर्म था। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म किसने स्थापन किया? यह कोई नहीं जानते। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा ही ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म स्थापन करते हैं। बिगड़ी को सुधारने वाला बरोबर एक बाप ही है। सतयुग में तो बुलायेंगे नहीं कि बिगड़ी को बनाने वाले आओ। यहाँ तकदीर बिगड़ी हुई है। राहू की दशा बैठी हुई है। ऊंच ते ऊंच ब्रहस्पति की दशा थी। अब आकर राहू की दशा बैठी है। सारे विश्व पर राहू का ग्रहण लगा हुआ है। सारी दुनिया काली बन गई है। गोल्डन एजेड वर्ल्ड को ग्रहण लगते-लगते कला कम होते-होते आखरीन आइरन एजेड वर्ल्ड बन जाता है। अब बाप कहते हैं कि दे दान तो छूटे ग्रहण। योगबल से माया रावण को जीतना है। विकारों का दान दिया जाता है तो ग्रहण छूट जाता है। हम सर्वगुण सम्पन्न... बन जाते हैं। बेहद की बात हुई ना। अभी आत्मा में कोई कला नहीं रही है इसलिए शरीर भी ऐसे तमोप्रधान मिलते हैं। जैसे सोने में कैरेट होती है ना। 14 कैरेट 18 कैरेट, अभी तो मनुष्यों में कोई कैरेट नहीं रही है। कुछ भी अक्ल नहीं है। बाप कहते हैं मैंने तुमको कितना समझदार बनाया था। तुमको स्वर्ग में भेजा था फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते क्या बन पड़े हो। अनेक बार यह चक्र लगाया है। कल्प-कल्प राज्य लेते हो फिर गँवाते हो। पुनर्जन्म लेने से वृद्धि तो सबकी होती रहती है। बच्चों को बुद्धि में बहुत नशा चढ़ना चाहिए। अब राजधानी स्थापन हो रही है। फूलों का बगीचा स्थापन होता है संगम पर। संगम को तुम ब्राह्मण ही जानते हो। यहाँ तुम बच्चों को रत्न मिलते हैं। फिर बाहर जाने से पत्थर मारने लग पड़ते हैं। माया जख्मी कर देती है। उनको कहेंगे पाप आत्मा। बाप कहते हैं अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो। एक दो को तुम पत्थर मारते-मारते एकदम पत्थरबुद्धि बन पड़े हो। अब तुम्हारी बुद्धि लोहा से सोना जैसी बन रही है। फिर तुम पत्थर क्यों मारते हो! अगर कोई उल्टी बातें सुनाये तो समझो यह हमारा दुश्मन है। ऐसे का संग कभी नहीं करना, न सुनना। निंदा आदि एक दो की तो बहुत सुनायेंगे। कोई-कोई में निंदा करने की आदत होती है। तो वह कब अच्छी बात नहीं सुनायेंगे, जिससे कल्याण हो। बाबा हमेशा समझाते हैं कि ज्ञान रत्न दान करते रहो। बाबा जो सुनाते हैं वह औरों को सुनाओ। सर्विस का उजूरा तो बच्चों को मिलना ही है। आपेही अपना कल्याण करना है। किसकी ग्लानी नहीं करनी है। तुम बच्चों पर बड़ी रेसपान्सिबिलिटी है। बाप काँटों से फूल बनाने आये हैं तो बच्चों का भी यही धन्धा है। बाप यह धन्धा सिखलाते हैं। तो यह मनुष्य को देवता, काँटों को फूल बनाने की फैक्ट्री हुई ना। तुम्हारा ज्ञान मटेरियल है जिससे तुम मनुष्य से देवता बनते हो। तो वह हुनर सीखना चाहिए ना। बिगड़ी को बनाते रहो। पत्थर-बुद्धि को पारसबुद्धि बनाओ।
यह तुम्हारी गॉडली मिशनरी है। जैसे क्रिश्चियन की मशीनरी है। वह औरों को क्रिश्चियन बनाते हैं। तुम्हारी ईश्वरीय मिशनरी है पतितों को पावन बनाने की। पतित-पावन गाते हैं तो जरूर आया होगा। मिशनरी जारी की होगी, तब तो पतित से पावन बनें। रावण की मशीनरी है पावन को पतित बनाना। राम की मशीनरी है पतितों को पावन बनाना। मुख्य है ही योग। बापदादा जिससे स्वर्ग की बादशाही का वर्सा मिलता है उनको याद भला क्यों नहीं करेंगे। सारा कल्प तो देहधारी को याद किया है। अब याद करना है - विदेही को, विचित्र को। जिनका कोई चित्र नहीं, उनको आना जरूर पड़ता है। गाया भी जाता है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण देवता क्षत्रिय धर्म की स्थापना। यह तो सीधी बात है। ब्राह्मणों का दूसरा कोई है भी नहीं। तुम जानते हो शिवबाबा हमारा टीचर भी है, सतगुरू भी है। सतगुरू तो एक ही है। ब्रह्मा का भी वह गुरू हो गया। विष्णु का गुरू नहीं कहेंगे। ब्रह्मा का गुरू बन उनको विष्णु देवता बनाया है। शंकर का भी गुरू कैसे हो सकता। शंकर तो पतित बनता ही नहीं। उनको गुरू की क्या दरकार है। ब्रह्मा तो 84 जन्म लेते हैं। विष्णु वा शंकर के 84 जन्म नहीं कहेंगे। कितनी अच्छी धारण करने और कराने की बातें हैं। जो धारण करते और कराते हैं वही ऊंच पद पाते हैं। धारणा नहीं करेंगे तो पद भी कम हो जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) निंदा करने वाले का संग कभी भी नहीं करना है। न ग्लानी करनी है, न सुननी है। बुद्धि को पारस बनाने के लिए मुख से ज्ञान रत्नों का दान करना है।
2) ज्ञान मटेरियल से मनुष्यों को देवता, काँटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। अपना और सर्व का कल्याण करने का ही धन्धा करना है।
वरदान: सर्व आत्माओं के अशुभ भाव और भावना का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक भव!
जैसे गुलाब का पुष्प बदबू की खाद से खुशबू धारण कर खुशबूदार गुलाब बन जाता है। ऐसे आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें अशुभ, व्यर्थ, साधारण भावना और भाव को श्रेष्ठता में, अशुभ भाव आर भावना को शुभ भाव और भावना में परिवर्तन करो, तब ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बनने के लक्षण सहज और स्वत: आयेंगे। इसी से माला का दाना, दाने के समीप आयेगा।
स्लोगन: अनुभवी स्वरूप बनो तो चेहरे से खुशनसीबी की झलक दिखाई देगी।
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Details ( Page:- Murali Dtd 21th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
21.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Abhi tum Brahmano ko Devtaon se bhi jaasti royalty se chalna hai kyunki tum abhi nirakari aur sakari oonch kul ke ho
Question - Kin baccho ka mukhda(chehra) phool ki tarah khila hua rahega?
Ans - Jinhe gupt khushi hogi ki Baap se hum behad ka varsha lekar Biswa ka mallick bante hain. 2- Jo gyan aur yog se satopradhan bante jaa rahe hain. Aatma pavitra hoti jaati hai. Aise baccho ka mukhda phool ki tarah khushi me khila hua rahega. Aatma me taakat aati jayegi. Mukh se gyan ratna nikalte-nikalte roop-basant ban jayenge. Nayi rajdhani ka sakshatkar hota rahega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Aisa first class mitha aur royal banna hai jo Baap ka naam bala ho. Koi ghussa kare ,gali de to bhi muskurate rehna hai.
2) Shrimat par poora-poora trusty banna hai. Koi bhi oolta dhanda nahi karna hai. Poora-poora balihar jana hai.
Vardaan:-- Sudh sankalp aur shrest sang dwara halke ban khushi ki dance karne wale Alokik Farishte bhava.
Slogan:-- Parmatm pyaar ki palana ka swaroop hai - sahajyogi jeevan.
COMPLETE MURALI in DETAILS IN HINDI .
21/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अभी तुम ब्राह्मणों को देवताओं से भी जास्ती रॉयल्टी से चलना है क्योंकि तुम अभी निराकारी और साकारी ऊंच कुल के हो''
प्रश्न: किन बच्चों का मुखड़ा (चेहरा) फूल की तरह खिला हुआ रहेगा?
उत्तर: जिन्हें गुप्त खुशी होगी कि बाप से हम बेहद का वर्सा लेकर विश्व का मालिक बनते हैं। 2- जो ज्ञान और योग से सतोप्रधान बनते जा रहे हैं। आत्मा पवित्र होती जाती है। ऐसे बच्चों का मुखड़ा फूल की तरह खुशी में खिला हुआ रहेगा। आत्मा में ताकत आती जायेगी। मुख से ज्ञान रत्न निकलते-निकलते रूप-बसन्त बन जायेंगे। नई राजधानी का साक्षात्कार होता रहेगा।
गीत:- मरना तेरी गली में... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने अच्छी तरह समझ लिया है कि हमको बाबा के गले का हार बनना है। यह किसने कहा? आत्मा ने कहा कि अभी आपके ही गले का हार बनना है। देह-अभिमान छोड़ना है। अभी हम रूद्र माला में पिरोयेंगे। वापिस जाना है इसलिए जीते जी देह-अभिमान छोड़ना है। आत्मा परमात्मा की सन्तान है, उनसे ही अब हम वर्सा ले रहे हैं। बच्चों को यह नशा रहना चाहिए। तो बुद्धि शिवबाबा पास चली जायेगी। हम आत्मा उनकी सन्तान हैं। अभी ब्रह्मा द्वारा उनके पोत्रे बने हैं। निराकार बाबा, साकार दादा है। बाप है ऊंच ते ऊंच। मनुष्य जो ऊंचे धनवान होते हैं वह बड़ी रॉयल्टी से रहते हैं। अपनी पोजीशन का नशा रहता है। तुम बच्चों को अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप की याद में रहना यही देही-अभिमानी अवस्था है, जिससे तुम्हारा बहुत फायदा है। तुम बच्चे जानते हो कि हम ईश्वरीय सन्तान, ब्रह्मा की सन्तान हैं। बाबा कहते हैं तुम मेरे बच्चे हो ही, अभी तुमको ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करता हूँ। तुम्हें यह नशा रहना चाहिए - हम निराकारी और साकारी ऊंच ब्राह्मण कुल के हैं। अपने को ब्राह्मण समझना है। हम ईश्वरीय सन्तान ब्रह्मा की औलाद हैं। तुम जानते हो हम ब्राह्मण से देवता बन रहे हैं। यह भूलना नहीं चाहिए। तुम ब्राह्मणों को देवताओं से भी अधिक रॉयल्टी से चलना चाहिए। तुम्हारा अमूल्य जीवन अभी बनता है। पहले कौड़ी जैसा था, अब हीरे जैसा बनता है, इसलिए तुम्हारी महिमा है। मन्दिर भी तुम्हारे यादगार बने हुए हैं। सोमनाथ, जिसने देवताओं को ऐसा बनाया, उनका भी यादगार है। तुम्हारा भी यादगार है। सोमनाथ ने अविनाशी ज्ञान रत्न दिये हैं तो उनका मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है। तुम जब गीत सुनते हो तो जानते हो अभी हम शिवबाबा के गले का हार बने हैं। बाबा हमको पढ़ाते हैं। हमको पढ़ाने वाला कौन है, वह भी खुशी होनी चाहिए। पहले अल्फ बे पढ़ते हैं तो पट (जमीन) में बैठ पढ़ते हैं फिर बेंच पर बैठ पढ़ते हैं, फिर कुर्सी पर। प्रिन्स-प्रिन्सेज तो कॉलेज में कोच पर बैठते हैं। उन्हों को पढ़ाने वाला कोई प्रिन्स-प्रिन्सेज नहीं होता है। वह फिर भी कोई टीचर होता है। परन्तु मर्तबा तो प्रिन्स प्रिन्सेज का ऊंच होता है ना। तुम तो सतयुगी प्रिन्स प्रिन्सेज से भी ऊंच हो ना। वह फिर भी देवताओं की सन्तान हैं। तुम हो ईश्वरीय सन्तान, जिससे वर्सा लेना है उनको याद भी करना है। उठते बैठते व्यवहार में रहते, उनको भूलना नहीं चाहिए। याद से ही हेल्दी-वेल्दी बनते हैं।
बाप बच्चों को विल कर वानप्रस्थ में जाते हैं तो फिर कुछ भी नहीं रहा। सब कुछ दे दिया। जैसे तुम विल करते हो कि बाबा यह सब आपका है। बाबा फिर कहते हैं अच्छा ट्रस्टी हो सम्भालो। तुम हमको ट्रस्टी बनाते हो, फिर हम तुमको ट्रस्टी बनाते हैं तो श्रीमत पर चलना, कोई उल्टा-सुल्टा धन्धा नहीं करना। मेरे से पूछते रहना, कोई तो यह भी नहीं जानते कि बच्चों को भोजन कैसे खाना चाहिए। ब्रह्मा भोजन की बड़ी महिमा है। देवतायें भी ब्रह्मा भोजन की आश रखते हैं तब तो तुम ब्रह्माभोजन ले जाते हो। इस ब्रह्मा भोजन में बहुत ताकत है। आगे चल भोजन योगी लोग बनायेंगे। अभी तो पुरूषार्थी हैं। जितना हो सकता है शिवबाबा की याद में रहने की कोशिश करते हैं। बच्चे तो हैं ना। खाने वाले बच्चे पक्के होते जायेंगे तो बनाने वाले भी पक्के निकलते रहेंगे। ब्रह्मा भोजन कह देते हैं। शिव भोजन नहीं कहते हैं। शिव का भण्डारा कहते हैं। जो भी भेज देते हैं वह शिवबाबा के भण्डारे में पवित्र हो जाता है। शिवबाबा का भण्डारा है। बाबा ने बतलाया है - श्रीनाथ द्वारे पर घी के कुएं हैं। वहाँ पक्की रसोई बनती है और जगन्नाथ द्वारे पर कच्ची रसोई बनती है। फर्क है ना। वह है श्याम, वह है सुन्दर। श्रीनाथ पास बहुत धन है - वहाँ (उड़ीसा के तरफ) इतना धनवान नहीं होते। गरीब और साहूकार तो होते हैं ना। अभी तो बहुत गरीब हैं फिर साहूकार होंगे। इस समय तुम बहुत गरीब हो। वहाँ तो तुमको 36 प्रकार के भोजन मिलेंगे। तो ऐसी तैयारियाँ करनी चाहिए। भल प्रजा भी 36 प्रकार के भोजन खा सकती है परन्तु राजाई का मर्तबा तो ऊंच है ना। वहाँ का भोजन तो बहुत फर्स्टक्लास होगा। सब चीजें ए वन क्वालिटी की होती है। यहाँ सब चीजें जेड क्वालिटी की हैं। दिन-रात का फर्क है ना। अनाज आदि जो कुछ निकलता, सब सड़ा हुआ रहता है। तुम बच्चों को बहुत नशा रहना चाहिए, कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो नशा रहता है ना। तुमको तो बड़ा ऊंच नशा रहना चाहिए - हमको भगवान पढ़ा रहे हैं। जो सर्व का सद्गति दाता है। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। बाप बच्चों का ओबीडियन्ट सर्वेन्ट होता है ना। बच्चों पर बलि चढ़ फिर खुद वानप्रस्थ में चले जाते हैं। बाप कहते हैं मैं भी बलि चढ़ता हूँ। परन्तु तुम पहले बलि चढ़ते हो। आदमी मरता है तो उसकी चीजें करनीघोर को देते हैं ना। साहूकार होते हैं तो फर्नीचर आदि भी दे देते हैं। तुम बच्चे क्या देते हो? किचड़पट्टी। उसकी एवज़ में तुमको क्या मिलता है? गरीब ही वर्सा लेते हैं। बलिहार जाते हैं। बाबा लेते क्या हैं, देते क्या हैं? तो तुम बच्चों को नशा रहना चाहिए। बेहद का बाबा मिला है, मूत पलीती कपड़ धोते हैं। सिक्ख लोग कहते हैं - गुरुनानक ने यह वाणी चलाई - जिसका ग्रन्थ बना हुआ है। भारतवासियों को यह भी पता नहीं कि हमारी गीता किसने गाई? गीता का भगवान कौन था? कौन सा धर्म स्थापन किया? वह तो हिन्दू धर्म कह देते हैं। आर्य धर्म कहते हैं, अर्थ कुछ भी नहीं समझते। वह समझते हैं कि आर्य धर्म था, अब तो सारा भारत अनआर्य है। यह तो करके दयानंद ने नाम रखा है। पिछाड़ी को जो टालियाँ निकलती हैं उनकी जल्दी-जल्दी वृद्धि हो जाती है। तुमको तो मेहनत करनी पड़ती है। उन्हों को कनवर्ट करने में देरी थोड़ेही लगती है। यहाँ तो कनवर्ट होने की बात ही नहीं है। यहाँ तो शूद्र से ब्राह्मण बनना है। ब्राह्मण बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है। चलते-चलते फाँ हो जाते हैं। बाबा कहते हैं कोई गला भी काट दे तो भी अपवित्र नहीं बनना है। बाबा से पूछते हैं कि इस हालत में क्या करूँ? तो बाबा समझ जाते हैं कि सहन नहीं कर सकते हैं। तो बाबा कहते हैं जाकर पतित बनो। यह तो तुम्हारे ऊपर है। वह तो करके इस एक जन्म लिए मार देंगे, तुम तो 21 जन्मों के लिए अपना कतल करती हो। चलते-चलते माया जोर से थप्पड़ मार देती है। बॉक्सिंग है ना। एक ही घूसे से एकदम गिरा देती है। 15-20 वर्ष के, शुरू से आये हुए भी ऐसे हैं जो एकदम छोड़कर चले जाते हैं, मर पड़ते हैं। ऐसे भी नाज़ुक हैं। भूल पर तो पछताना होता है ना। बाप समझाते हैं बच्चे तुम यह डिससर्विस करते हो, यह ठीक नहीं है। शिक्षा तो दी जाती है ना। कोई घूंसा नहीं लगाया जाता है। जैसे कहते हैं ना घर में बच्चे बहुत तंग करते हैं तो चमाट लगानी पड़ती है। बाबा कहते हैं अच्छा उनके कल्याण के लिए करके थोड़ा कान पकड़ लो। जितना हो सके बड़े प्यार से समझाओ। कृष्ण के लिए भी कहते हैं कि उनको रस्सी में बांध देते थे। परन्तु ऐसी चंचलता वहाँ होती नहीं है। इस समय के ही बच्चे नाक में दम कर देते हैं।
तो बाप समझाते हैं कि बच्चे मंजिल बहुत ऊंची है। हर बात में पूछो - बाबा युक्तियाँ बतलाते रहेंगे। हर एक की बीमारी अलग-अलग होती है। कदम-कदम पर सावधानी लेनी है। नहीं तो धोखा खा लेंगे। बहुत-बहुत मीठा बनना है। शिवबाबा कितना मीठा कितना प्यारा है। बच्चों को भी ऐसा बनना चाहिए। बाप तो चाहेंगे ना - बच्चे हमसे भी ऊंच बनें। नाम निकालें। ऐसा फर्स्टक्लास बनो जो हमसे भी तुम्हारा ऊंच पद हो। बरोबर ऊंच पद देते हैं ना! किसको ख्याल में भी नहीं होगा कि यह विश्व के मालिक कैसे बनें। तो तुम्हारी चलन बड़ी रॉयल होनी चाहिए। चलना, फिरना, बोलना, खाना बड़ा रॉयल्टी से होना चाहिए। अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए - हम ईश्वरीय सन्तान हैं। लक्ष्मी-नारायण के चित्र तो प्रत्यक्ष हैं। तुम तो गुप्त हो ना। तुम ब्राह्मणों को ब्राह्मण ही जानें और न जाने कोई। तुम जानते हो हम गुप्त वेष में बाबा से वर्सा लेकर विश्व के मालिक बनते हैं। बहुत ऊंच पद है, इसमें अन्दर में बड़ी खुशी रहती है। मुखड़ा फूल की तरह खिला रहना चाहिए, ऐसा पुरूषार्थ करना है। अभी कोई ऐसा बना नहीं है। पुरूषार्थ करना है। आगे चल तुम्हारा बहुत मान होने वाला है। सन्यासियों और राजाओं को भी पिछाड़ी में ज्ञान देना है। जब तुम्हारे में पूरी ताकत आ जाती है।
ज्ञान और योग बल से तुम्हें सतोप्रधान बनना है। मुख से सदैव रत्न ही निकलते रहें तो तुम रूप-बसन्त बन जायेंगे। आत्मा पवित्र बनती जायेगी। तुम जितना नजदीक आते जायेंगे तो अन्दर में बहुत खुशी होगी। अपनी राजधानी का साक्षात्कार भी होता रहेगा। तुमको अपना पुरूषार्थ बहुत गुप्त रीति से करना चाहिए। रास्ता बताना चाहिए। तुम सब द्रोपदियां हो। बाबा कहते हैं यह अत्याचार सहन करने पड़ेंगे - बाबा के निमित्त। सतयुग में कितनी पवित्रता है। 100 परसेन्ट वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। अभी है 100 परसेन्ट विशश वर्ल्ड। तुम्हारी बुद्धि में है अभी हम शिवबाबा के गले का हार बनने के लिए रूहानी योग की दौड़ी पहन रहे हैं। फिर हम विष्णु के गले का हार बनेंगे। तुम्हारा पहले-पहले नसल है - ब्राह्मणों का। फिर तुम देवता क्षत्रिय बनते हो। उतरती कला में तुमको सारा कल्प लगता है और चढ़ती कला में सेकेण्ड लगता है। अभी तुम्हारी चढ़ती कला है। सिर्फ बाबा को याद करना है, यह अन्तिम जन्म है। गिरने में तुमको 84 जन्म लगते हैं। इस जन्म में तुम चढ़ते जाते हो। बाबा सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देते हैं। वह खुशी रहनी चाहिए। कान्ट्रास्ट किया जाता है - उस नॉलेज से हम क्या बनेंगे! इससे हम क्या बनेंगे! यह भी पढ़ना है, वह भी पढ़ना है। बाबा कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते भविष्य के लिए पुरूषार्थ करना है। आसुरी और दैवी कुल दोनों से तोड़ निभाना है। एक-एक का बाबा हिसाब लेते हैं। फिर उस पर वैसी युक्ति बतलाते हैं कि इस पर ऐसे चलो। भल कोई गुस्सा करे परन्तु तुमको बहुत मीठा बनना है। कोई गाली दे तो भी मुस्कराते रहना है।
अच्छा - तुम गाली देते हो हम तुम्हारे ऊपर फूल चढ़ाते हैं। तो एकदम शान्त हो जायेंगे। एक मिनट में ठण्डे हो जायेंगे। बाबा रांझू-रमजबाज है। बहुत रमजें (युक्तियां) बतायेंगे। पतितों को पावन बनाते हैं तो जरूर रमज़ होगी ना। श्रीमत लेनी है। श्रीमत से श्रेष्ठ बनने के लिए ही आये हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ऐसा फर्स्टक्लास मीठा और रॉयल बनना है जो बाप का नाम बाला हो। कोई गुस्सा करे, गाली दे तो भी मुस्कराते रहना है।
2) श्रीमत पर पूरा-पूरा ट्रस्टी बनना है। कोई भी उल्टा धन्धा नहीं करना है। पूरा-पूरा बलिहार जाना है।
वरदान:शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ संग द्वारा हल्के बन खुशी की डांस करने वाले अलौकिक फरिश्ते भव!
आप ब्राह्मण बच्चों के लिए रोज़ की मुरली ही शुद्ध संकल्प हैं। कितने शुद्ध संकल्प बाप द्वारा रोज़ सवेरे-सवेरे मिलते हैं, इन्हीं शुद्ध संकल्पों में बुद्धि को बिजी रखो और सदा बाप के संग में रहो तो हल्के बन खुशी में डांस करते रहेंगे। खुश रहने का सहज साधन है - सदा हल्के रहो। शुद्ध संकल्प हल्के हैं और व्यर्थ संकल्प भारी हैं इसलिए सदा शुद्ध संकल्पों में बिजी रह हल्के बनों और खुशी की डांस करते रहो तब कहेंगे अलौकिक फरिश्ते।
स्लोगन:परमात्म प्यार की पालना का स्वरूप है - सहजयोगी जीवन।
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Details ( Page:- Murali Dtd 22th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
22.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe Baba ka farmaan hai tum ek Baap se he suno, abinashi gyan ratna sunne se tumhare kaan bhi mithe ho jayenge.
Question - Drama ke gyan se tum baccho ko abhi kaun si roshni mili hai?
Ans - Tumhe roshni mili ki is behad drama me har ek ko apna-apna part mila hua hai. Ek ka part dusre se mil nahi sakta. Buddhi me hai sab din hoth na ek samaan.....5000 barsho ke drama me do din bhi ek jaise nahi ho sakte hain. Yah drama anadi bana hua hai jo hoobahu repeat hota hai. Drama ki sada smruti me raho to chadhti kala hoti rahegi.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) 1-Phool bankar sabko sukh dena hai. Kisi ko kaanta nahi lagana hai. Kabhi bhi Baap ki abagyan nahi karni hai, roothna nahi hai.
2) Kadam-kadam Baap ki shrimat par chalna hai. Apni mat nahi chalani hai. Deha-abhimaan me aakar nafarmanbardar nahi banna hai.
Vardaan:-- Amritvele tino bindiyo ka tilak lagane wale kyun, kya ki halchal se mukt Achal-Adol bhava.
Slogan:-- Parivartan shakti dwara byarth sankalpo ke bahav ke force samapt kar do to samarth ban jayenge.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
22/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हें बाप का फरमान है तुम एक बाप से ही सुनो, अविनाशी ज्ञान रत्न सुनने से तुम्हारे कान भी मीठे हो जायेंगे''
प्रश्न:
ड्रामा के ज्ञान से तुम बच्चों को अभी कौन सी रोशनी मिली है?
उत्तर:
तुम्हें रोशनी मिली कि इस बेहद ड्रामा में हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक का पार्ट दूसरे से मिल नहीं सकता। बुद्धि में है सब दिन होत न एक समान... 5000 वर्षो के ड्रामा में दो दिन भी एक जैसे नहीं हो सकते हैं। यह ड्रामा अनादि बना हुआ है जो हूबहू रिपीट होता है। ड्रामा की सदा स्मृति रहे तो चढ़ती कला होती रहेगी।
गीत:-महफिल में जल उठी शमा... ओम् शान्ति।
बेहद के सच्चे बाप की है बेहद की महफिल। बाप आते ही तब हैं जब बड़ी महफिल होती है। सब आत्मायें यहाँ आ जाती हैं तब बाप आते हैं। भल थोड़ी सी आत्मायें ऊपर होंगी भी, वह भी आ जायेंगी। अब यह तो समझाया गया है - बाबा कौन है? पहले-पहले हमेशा बाबा की महिमा सुनानी है। वह सच्चा बेहद का बाप है। बेहद का सच्चा शिक्षक है, बेहद का सच्चा सतगुरू है। यह एक की ही महिमा है। यह पक्का याद कर लेना है। नाम भी हमेशा शिवबाबा का लो। जब गिनती करते हैं तो बिन्दी को शिव भी कहते हैं। तो बेहद का बाप शिव है, वह है बेहद का शिक्षक। हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त तीनों कालों की समझानी देते हैं। हिस्ट्री और जाग्रॉफी होती है ना। सतयुग में कौन राज्य करते थे, कितने इलाके पर करते थे। तुम कहेंगे कि सतयुग में देवी-देवतायें सारे विश्व पर राज्य करते थे। दिखलाया जाता है ना - कौन-कौन, कहाँ-कहाँ राज्य करते थे। जैसे बड़ौदा वाले बड़ौदा पर राज्य करेंगे। यहाँ तो टुकड़े-टुकड़े हैं। वहाँ ऐसे नहीं हैं। वहाँ हैं सारे विश्व के मालिक और कोई धर्म नहीं होता। बाकी राजायें क्यों नहीं होते। हर एक को अपना वर्सा मिलेगा। पहली-पहली मुख्य बात है - ऊंचे ते ऊंचे शिवबाबा, जो सच्चा बेहद का बाप, बेहद की शिक्षा देने वाला है। जो सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज समझाकर त्रिकालदर्शी बनाते हैं। दुनिया में त्रिकालदर्शी कोई मनुष्य नहीं, जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानता हो। वह बेहद का सतगुरू है। सबको साथ ले जाने वाला पण्डा भी है। वह सब हैं जिस्मानी पण्डे। यह है रूहानी। गीत में भी सुना चारों धामों का जन्म-जन्मान्तर चक्र लगाया। तीर्थ कोई कहाँ, कोई कहाँ चारों तरफ हैं ना। चारों तरफ के चक्र लगाये फिर भी भक्त लोग भगवान से मिल न सके। भगवान आते ही हैं इस समय। उनको पतित-पावन कहा जाता है। कलियुग को सतयुग बनाने हमारा बाबा भारत में आते हैं। भारतवासियों को फिर से हीरे जैसा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। ऐसे बाप को न जानने कारण साधू सन्त आदि परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं।
तुम बच्चे कहते हो - बाप ने ब्रह्मा के मुख द्वारा हमको अपना बनाया है। हम ईश्वर के कुटुम्ब के ठहरे। तुम हो शिव वंशी फिर बनते हो ब्रह्माकुमार कुमारी। इनको कहा जाता है अविनाशी सन्तान। आत्मा भी अविनाशी, बाप भी अविनाशी। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। देवी-देवता जो सतोप्रधान थे वही सतो रजो तमो में आये हैं। विकारों की खाद पड़ने से फिर तमोप्रधान बन जाते हैं। खाद पड़ती है आत्मा में। ऐसे नहीं कि आत्मा निर्लेप है। आत्मा ही पुण्य आत्मा और पाप आत्मा बनती है। बोलो, हम जो आपको सुनाते हैं वही सुनो। हमको और किसका सुनना नहीं है। बाप का फरमान है तुम किसी का नहीं सुनो। तुम जो बोलेंगे शास्त्रों की ही बात बोलेंगे। वह तो जन्म-जन्मान्तर हम सुनते ही आये, धक्के खाते ही आये हैं। बेहद का बाप तो एक ही है। हम ऐसे बाप की सुनेंगे वा तुम्हारी सुनेंगे? हम आपको सुनाने वाले हैं, न कि सुनने वाले। समझाना है प्रजापिता ब्रह्मा के इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो जरूर भाई बहन ठहरे। दादे का वर्सा मिलता है ब्रह्मा द्वारा। दादे का वर्सा बाप बिगर कैसे मिलेगा? बहुत कहते हैं हम तो सीधा दादे से ही लेंगे। परन्तु मिलेगा कैसे? ब्रह्माकुमार कुमारी जब तक न बनें तब तक दादे से वर्सा कैसे मिलेगा। पोत्रे और पोत्रियां दोनों को हक मिलना है। बाप बिगर फिर दादा कहाँ से आयेगा? पहले-पहले है बाप का परिचय। वह गीता का भगवान बेहद का सच्चा बाप, बेहद की शिक्षा देने वाला है। बाप बूढ़ी माताओं के लिए बहुत सहज करके समझाते हैं। यह है संगम, जबकि बाप बैठ पतितों को पावन बनाते हैं। इनको कुम्भी पाक नर्क कहा जाता है। यह सारी दुनिया विषय वैतरणी नदी है। बाकी कोई पानी की नदी नहीं है, इनको विषय सागर भी कहते हैं। परमपिता परमात्मा है ज्ञान का सागर और रावण है विषय सागर। उनसे विकारों की नदियां बहती हैं। इस समय जो आसुरी सम्प्रदाय हैं, वह विषय सागर में गोता खा रहे हैं। दु:ख ही दु:ख है। इन बातों को भी कोटों में कोई ही समझेंगे। कई तो बहुत अच्छे बनकर भी फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं। कहते भी हैं हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं, फिर भागन्ती हो जाते हैं। युद्ध के मैदान में कोई सबकी जीत नहीं होती है। दोनों तरफ से कोई मरेंगे, कोई जीतेंगे। हाँ, पहलवान होंगे तो जास्ती को मारेंगे। कमजोर जो होते हैं वह जास्ती मरते हैं। यहाँ भी जो कमजोर हैं वह झट मर पड़ते हैं। यहाँ तुम्हारी है ही रावण से लड़ाई। काम से हराया तो बहुत बड़ी चोट लग पड़ती है। बॉक्सिंग होती है ना। कोई तो बेहोश हो जाते हैं फिर आवाज करते हैं। कोई फिर खड़े हो जाते हैं। यहाँ भी काम की चोट खाई तो बड़ा जोर से धक्का आ जाता है। काला मुँह हो गया, क्रोध पर इतना नहीं कहेंगे जितना काम पर। यह है बहुत बड़ा दुश्मन। बहुत दु:ख देने वाला है। काम कटारी से ही बहुत दु:खी हुए हैं। काम विकार से ही पतित बनते हैं। नानक ने भी कहा है - मूत पलीती कपड़ धोए। बाप ही आकर कपड़े धोते हैं। अभी तुम्हारा भी यह पुराना शरीर है। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक न मिले दूसरे से। ड्रामा है ना। सब दिन होत न एक समान। पांच हजार वर्ष का ड्रामा है, इसमें कितने दिन होंगे! दो दिन भी एक जैसे नहीं हो सकते। यह फिर पांच हजार वर्ष बाद हूबहू रिपीट होता है। यह अनादि ड्रामा है - सेकेण्ड बाई सेकेण्ड पार्ट बजता जाता है। फिर फिर रिपीट होता है। कहाँ सतयुग, कहाँ कलियुग। वहाँ क्या होता है, यहाँ क्या होता है - यह तुम बच्चों को अब रोशनी मिली है। अभी तुम्हारी चढ़ती कला शुरू होती है। बाप कहते हैं दे दान तो छुटे ग्रहण, विकारों का। सीधी सी बात है। बाप तुम्हारे विकारों का दान लेते हैं फिर उनके बदले में देखो तुम क्या देते हो! तुम कौड़िया देते हो बाप तुम्हें ज्ञान रत्न देते हैं। बाप को कहा भी जाता है रत्नागर, सौदागर। बाप का भी पार्ट है। आत्मा कितनी छोटी है, उसमें कितनी ताकत है। कितना ज्ञान है। यह ज्ञान देने की भी ड्रामा में नूँध है अविनाशी। फिर कल्प बाद यही ज्ञान देंगे। यह ड्रामा कब विनाश होने वाला नहीं है। वन्डर है ना - आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। इतनी छोटी बिन्दी में कितना पार्ट भरा हुआ है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। वह रूप भी है, बसन्त भी है। निराकार आत्मा जरूर मुख से ज्ञान सुनायेगी। कानों से आत्मा सुनेगी। नहीं तो ज्ञान सागर कैसे ज्ञान सुनाये! जरूर ब्रह्मा मुख से सुनाना पड़े। विष्णु वा शंकर तो ज्ञान दे न सकें। ज्ञान का सागर कहा ही जाता है - एक निराकार को। उनसे तुम ज्ञान गंगायें बनती हो। सागर तो एक है ना। बाप ही ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हैं। सतयुग में सूर्यवंशी राजायें थे, 8 बादशाही चली। फिर वही सूर्यवंशी चन्द्रवंशी... बनते हैं। यह ज्ञान तुम ब्राह्मणों में ही है। तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण। बाप सबका एक है। वह ब्राह्मण हैं कुख वंशावली। तुम हो मुख वंशावली। वह जिस्मानी यात्रा कर फिर घर लौट जाते हैं। हमारी एक ही यात्रा है। एक ही बार यह अमरलोक की यात्रा करते हैं, फिर लौट कर इस मृत्युलोक में आना नहीं है। अमरलोक स्वर्ग को कहा जाता है। वहाँ कोई यात्रा होती नहीं। वहाँ भक्ति ही नहीं। यह है ब्रह्मा की रात, जिसमें भक्ति के धक्के हैं। चारों तरफ फेरे लगाये परन्तु हरदम दूर रहे। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला बाप नहीं मिला। तुम पुकारते हो हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ। फिर तुम गंगा स्नान करने क्यों जाते हो? वह तुम्हें पावन कैसे बनायेगी? अगर गंगा से पावन हो सकते तो पतित-पावन को क्यों बुलाते हो? कितनें लाखों आदमी जाते हैं गंगा स्नान करने। पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता एक है। बाकी हैं भक्ति के धक्के। तो युक्ति से प्रश्न पूछना चाहिए तो समझेंगे यह तो बड़े कायदे से पूछते हैं। जबकि एक पतित-पावन को बुलाते हैं तो फिर अनेकों के पास धक्के क्यों खाते हैं? बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको पावन बनाकर स्वर्ग का मालिक बनाने। तो अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए - बाबा हमको पावन बनाकर स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं। लक्ष्मी-नारायण बरोबर स्वर्ग के मालिक थे। उन्हों को बाबा से वर्सा मिला था। तुम यह भी पूछ सकते हो कि यह जो लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे तो जरूर उन्हों की प्रजा भी होगी। सतयुग आदि में तो था ही उन्हों का राज्य। अभी तो संगम पर बैठे हो। यहाँ तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। विनाश भी सामने खड़ा है। कल्प-कल्प के संगमयुगे बाप आते हैं। बाप ही आकर सहज राजयोग सिखलाते हैं। तुम जीवनमुक्ति पाते हो, बाकी सब मुक्ति में जायेंगे। भारत सुखधाम था ना। अब तो दु:खधाम है। देवी-देवता धर्म तो है नहीं। फिर स्थापना होनी है। तुम बच्चे राजयोग की शिक्षा ले राज्य भाग्य ले रहे हो। कांटें से फूल बन रहे हो। यहाँ तो सब कांटे हैं। एक दो को कांटा लगाते अर्थात् काम कटारी चलाते रहते हैं। अब बाबा फूल बनाते हैं, तो कांटा लगाना छोड़ देना है। हिम्मत रखनी है। हिम्मत वाले भी खड़े हो जाते हैं। बाबा देखते हैं इनकी हिम्मत अच्छी है, कभी गिरेंगे नहीं। तो ऐसे हिम्मत वाले को शरण भी दे देते हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि फिर पति वा बच्चे आदि आकर याद पड़ें। शुरू में भट्ठी थी। भट्ठी में भी सब ईटें तो पकती नहीं हैं। यहाँ भी ऐसे ही नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पक कर तैयार होते हैं। बाप कहते हैं यह ज्ञान यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते ही रहेंगे, कल्प पहले मुआफिक। कोई-कोई नाफरमानबरदार बच्चे भी हैं। जो बाबा का कहना कभी मानेंगे नहीं। रूठ पड़ेंगे। गोया अपनी तकदीर से रूठते हैं। फिर ऊंच तकदीर बनती ही नहीं है। देह-अभिमान के कारण अपनी मत पर चलने लग पड़ते हैं। कदम-कदम श्रीमत पर चलना चाहिए। श्रीमत देते हैं ब्रह्मा द्वारा। ऐसे थोड़ेही कि प्रेरणा द्वारा किसको मत देंगे। अगर ऐसे होता तो फिर इनमें आकर इतने बच्चे पैदा करने की दरकार ही क्या? अच्छे-अच्छे पुराने बच्चे समझते हैं हम तो शिवबाबा से सीधा ही लेंगे। देह-अभिमान बहुत है। तो यह पक्का याद कर लो - हमारा सच्चा बेहद का बाबा बेहद का वर्सा देने वाला है। बेहद का वर्सा माना नर से नारायण बनाने वाला। वहाँ हेल्थ वेल्थ दोनों हैं तो खुशी रहती है। यहाँ किसको हेल्थ है तो वेल्थ नहीं है। किसको वेल्थ है तो हेल्थ नहीं है। बच्चा पैदा न हो तो दूसरे का लेना पड़े। वहाँ यह सब बातें होती नहीं। वहाँ तो एक बच्चा जरूर होगा। यह है ही दु:खधाम। रावण से दु:ख का श्राप मिलता है। बाप आकर वर्सा देते हैं।
यहाँ तुम बच्चों का मुख रोज़ मीठा किया जाता है, सेन्टर्स पर तो गुरूवार के दिन मुख मीठा कराते होंगे। यहाँ तो कान भी मीठे किये जाते हैं, मुख भी मीठा किया जाता है। आत्मा कानों से अविनाशी ज्ञान सुनती है। नयनों से देखती है, मुख से खाती है तो उनका स्वाद आता है। आत्म-अभिमानी बनना पड़ता है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) फूल बनकर सबको सुख देना है। किसी को कांटा नहीं लगाना है। कभी भी बाप की अवज्ञा नहीं करनी है, रूठना नहीं है।
2) कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलना है। अपनी मत नहीं चलानी है। देह-अभिमान में आकर नाफरमानबरदार नहीं बनना है।
वरदान: अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाने वाले क्यूं, क्या की हलचल से मुक्त अचल-अडोल भव !
बापदादा सदा कहते हैं कि रोज़ अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो हो गया, जो हो रहा है नथिंगन्यु, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी। यह तीन बिन्दी का तिलक लगाना अर्थात् स्मृति में रहना। फिर सारा दिन अचल-अडोल रहेंगे। क्यूं, क्या की हलचल समाप्त हो जायेगी। जिस समय कोई बात होती है उसी समय फुलस्टॉप लगाओ। नथिंगन्यु, होना था, हो रहा है... साक्षी बन देखो और आगे बढ़ते चलो।
स्लोगन: परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फोर्स समाप्त कर दो तो समर्थ बन जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 23th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
23.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Sarir par koi bharosa nahi, isiliye jo subh karya karna hai wo aj kar lo, kal par nahi chhodo.
Question- Apna khana abaad karne arthat malamal hone ki yukti kya hai?
Ans- Shiv Baba ko apna warris (baccha) bana do to wo tumhe 21 janmo ke liye malamal kar denge. Yah ek he hai jo sabka baccha ban sabka khana abaad kar dete hain. Parantu kai darte hain, samajhte hain sayad sab kuch dena padega. Baba kehte darne ki baat nahi. Tum apne baccho adi ko sambhalo. Unki palana karo parantu yaad is bacche ko karo to tumko laal kar dega. Agar is bacche par bali chadhe to tumhari bahut seva karega.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Maya ne jo bahut badi jaal bichayi hai, as Baap ki yaad se us jaal se nikalna hai. Subh karya me lag jana hai. Kisi dehadhari ki jaal me nahi fanshna hai, sabse mamatwa nikaal dena hai.
2) Gyan ki jo roshni mili hai wo sabko deni hai. Deha-abhimaan ko chhod bhinna-bhinna yuktiyon se service karni hai. Andho ki lathi banna hai.
Vardaan:-- Achche sankalp roopi beej dwara achcha fal prapt karne wale Siddhi Swaroop Aatma bhava.
Slogan:-- Dukh ki lahar se mukt hona hai to karmyogi bankar har karm karo.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI
23/09/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - शरीर पर कोई भरोसा नहीं, इसलिए जो शुभ कार्य करना है वह आज कर लो, कल पर नहीं छोड़ो''
प्रश्न:
अपना खाना आबाद करने अर्थात् मालामाल होने की युक्ति क्या है?
उत्तर:
शिवबाबा को अपना वारिस (बच्चा) बना दो तो वह तुम्हें 21 जन्मों के लिए मालामाल कर देंगे। यह एक ही है जो सबका बच्चा बन सबका खाना आबाद कर देते हैं। परन्तु कई डरते हैं, समझते हैं शायद सब कुछ देना पड़ेगा। बाबा कहते डरने की बात नहीं। तुम अपने बच्चों आदि को सम्भालो। उनकी पालना करो परन्तु याद इस बच्चे को करो तो तुमको लाल कर देगा। अगर इस बच्चे पर बलि चढ़े तो तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।
ओम् शान्ति।
इस समय सब सेन्टर्स पर जो भी बच्चे बैठे हैं वह जरूर समझते होंगे कि हम शिवबाबा के महावाक्य सुनते हैं। और कोई ऐसी संस्था नहीं होगी क्योंकि शाखायें तो बहुतों की हैं ना। भल वह टेप आदि भी भरते होंगे जहाँ उन्हों की हेड आफिस होगी, जहाँ उन्हों का गुरू रहता होगा, उनको ही याद करते होंगे। निराकार परमपिता परमात्मा को तुम्हारे सिवाए कोई भी याद नहीं करते होंगे। इस संगम समय पर ही पारलौकिक बाप आते हैं, बच्चों को बैठ परिचय देते हैं और बच्चे निश्चयबुद्धि हो उसी धुन में रहते हैं। परमपिता परमात्मा इस समय ही मुरली चलाते हैं। शास्त्रों में भी है कि कृष्ण मधुबन में मुरली बजाते हैं। मधुबन तो मुख्य है एक, बाकी सब जगह मुरली जाती है। मनुष्यों की बुद्धि में तो है कृष्ण मुरली बजाते हैं। शिवबाबा मुरली चलाते हैं - यह किसकी बुद्धि में कभी आ न सके। यह किसको पता नहीं है। जहाँ-जहाँ तुम्हारे सेन्टर्स खुलते हैं, सभी यह समझते हैं शिवबाबा की मुरली बजती है ब्रह्मा द्वारा। जो फिर सब ज्ञान गंगायें सुनकर औरों को सुनाती हैं। बुद्धि में तो शिवबाबा याद है ना। शिवबाबा जिसको भगवान कहा जाता है। शिवबाबा मुरली सुनाते हैं, यह कोई भी शास्त्रों में नहीं है। तुम बच्चे कहाँ भी हो समझते हो यह मुरली जो छपकर आई है, शिवबाबा की ही आई है। शिवबाबा बिगर कोई सिखला नहीं सकते। बाप ही कहते हैं मुझे याद करो तो मैं वर्सा दूँगा। बाबा बच्चों को समझाते रहते हैं कि मामेकम् याद करो और कोई भी नाम-रूप को याद नहीं करो। साकार मनुष्यों के फोटो आदि तो जन्म-जन्मान्तर इकट्ठे करते आये हो, उपासना करते आये हो। देवताओं आदि के चित्र रखना यह सब तुम्हारा छूट जाता है। भक्तिमार्ग में आत्मायें बाप को याद करती हैं। शरीर को तो तब याद करते जब देह-अभिमानी बनते हैं। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। आत्मा ही पतित दु:खी बनी है। आत्मा कहती है मैं महाराजा था, अब रंक बन गया हूँ। तुमको अब स्मृति आई है, हम बाबा के बच्चे हैं। बाप से हमने वर्सा पाया था। अब बाप कहते हैं सबको बाप का परिचय दो। इन जैसा शुभ कार्य होता नहीं। इस शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। शरीर पर तो भरोसा नहीं है। न जवान पर न बूढ़े पर इसलिए जो कुछ करना है सो आज करना चाहिए। आजकल करते-करते काल खा जायेगा। बाप ने कितनी बड़ी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोली है, जिससे हेल्थ वेल्थ हैपीनेस मिलती है। हेल्थ वेल्थ है तो हैपी है ही है। निरोगी काया है, धन है तो मनुष्य सुखी हैं। तो बाप कहते हैं जिसको शुभ कार्य करना है, कर लो। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी लेकर यह हॉस्पिटल खोलो। सबको बाप का परिचय दो। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। भारतवासियों को वर्सा था ना। इन बातों को भारतवासी सहज समझ सकेंगे। भगवान को ढूँढने के लिए मन्दिर हैं। आर्यसमाजी लोग तो देवताओं को मानते ही नहीं इसलिए समझते हैं यह चित्र आदि जो बनाये हैं यह सब पाखण्ड हैं। विघ्न तो बहुत पड़ते रहेंगे। समझाना तो बड़ा सहज है। बाप का फरमान है - जल्दी मेरे साथ सगाई तो कर दो, सगाई करने से ही वर्से के हकदार बन सकते हैं।
बाप रूहानी सर्जन है, तुम उनके बच्चे कहलाते हो; तो तुम भी सर्जन ठहरे। जरूर आत्माओं को ज्ञान इन्जेक्शन लगाना पड़े। मनमनाभव। यह बड़े ते बड़ा इन्जेक्शन है। बाबा की याद से ही सब दु:ख दूर हो जाते हैं। योग से पुण्य आत्मा बन जाते हो। यह एक ही दवाई है योग की। बच्चा जन्मता है, बाप की गोद में जाता है और वर्से का मालिक बन जाता है। तुमको अभी पता है कि हम बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं याद से। याद में ही अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं, इसलिए याद को पक्का करते जाओ। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी के लेकर यह हॉस्पिटल खोलो। यह 3 पैर हैं ना! नहीं तो ऐसी ऊंच कॉलेज के लिए तो 50-60 एकड़ जमीन होनी चाहिए, जहाँ बहुत मनुष्य आकर पढ़े। ज्ञान इन्जेक्शन लगाते जायें। गायन भी है कि 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिले थे और फिर विश्व के मालिक बन गये। तुम विश्व के मालिक बनते हो ना। 3 पैर पृथ्वी के कोई बड़ी बात नहीं, फिर आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ता जायेगा। फाउन्डेशन लगाया तो कितने सेन्टर्स खुल गये। कितने कौड़ी जैसे से हीरे जैसा बनते हैं। करने वाले को ही बहुत फायदा है। बहुतों के कल्याण के लिए ही हॉस्पिटल अथवा कॉलेज खोले जाते हैं। यह भी ऐसे हैं, बाहर में बोर्ड लगा दो। क्लीनिक फार हेल्थ वेल्थ 21 जन्मों के लिए। हिन्दी में कहेंगे 100 प्रतिशत पवित्रता, सुख-शान्ति की चिकित्सालय। परन्तु बच्चों में सर्विस करने का शौक नहीं। कुटुम्ब आदि के जाल को मकड़ी की जाल कहा जाता है, जाल में खुद फँस जाते हैं। बाप आकर रावण रूपी मकड़ी की जाल से निकालते हैं। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। यहाँ भी आपेही अपनी जाल में फँस मरते हैं। यह है ही रावण का राज्य। कितनी बड़ी-बड़ी रावण की जाल है - सारी सृष्टि पर। सभी शोक वाटिका में बैठे हैं। इस रावण की जाल में सब साधू-सन्त आदि फँसे हुए हैं। अब बाप कहते हैं इन सबको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो और सबको यही रास्ता बताते रहो। यह सृष्टि चक्र का राज़ दूसरा कोई बता नहीं सकते। बाप कहते हैं इन सबको छोड़ मामेकम् याद करो। याद से ही तुम्हारे सब पाप मिट जायेंगे। शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। मिसाल भी देते, देरी करते-करते मर जाते हैं। फिर भोग पर जब वह आत्मा आती है तो फिर बहुत रोती है। फिर बोला जाता है देखो तुमने देरी की। आजकल करते-करते काल खा गया। अब ज्ञान तो उठा नहीं सकते हो। ऐसे-ऐसे उल्हना दिया जाता है। बहुत बच्चे ख्याल करते हैं अच्छा कल यह करेंगे, फिर मर जाते हैं इसलिए समझाया जाता है ममत्व छोड़ दो। लौकिक सम्बन्धी तुम्हारा कोई कल्याण करने वाले नहीं हैं। यह शिवबाबा अब तुम्हारा बच्चा बनते हैं। कहते हैं तुम मुझे वारिस बनाओ तो मैं तुम्हारी बहुत सेवा करूँगा इसलिए बाबा पूछते भी हैं - आपको कितने बच्चे हैं? मुझ शिव को अपना बच्चा बनाया तो मालामाल हो जायेंगे, 21 जन्मों के लिए। कन्या तो अपने घर जाती है। बच्चे के लिए कितना हैरान होते हैं। बच्चा नहीं होता है तो दूसरी, तीसरी शादी भी करते हैं। बाप कहते हैं वह लौकिक बच्चे तो तुम्हारी कुछ भी सेवा नहीं करेंगे। यही एक सबका बच्चा बनता है, एकदम सबका खाना आबाद करने। परन्तु कई डरते हैं कि सब कुछ देना पड़ेगा! क्या होगा! बाप कहते हैं अपने बच्चों आदि की पालना तो करनी ही है। परन्तु याद इस बच्चे को करो। यह तो तुमको लाल कर देगा। काशी के मन्दिर में जाकर बलि चढ़ते हैं। समझते हैं शिव पर बलि चढ़ने से जीवनमुक्ति मिलनी है। वास्तव में बात यहाँ की है। कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं। अगर तुम इस बच्चे पर बलि चढ़े तो यह तुम्हारी बहुत सेवा करेंगे, स्वर्ग में महल दे देंगे। वह बच्चा तो कुछ भी नहीं करेगा, करके ब्राह्मण आदि खिलायेंगे। मनुष्य दान-पुण्य आदि जो करते हैं सो अपने लिए ही करते हैं। तो यह हॉस्पिटल खोलना कितना पुण्य है। साहूकार लोग तो 10-15 हॉस्पिटल खोल सकते हैं। यह पैसे आदि तो सब खत्म हो जायेंगे। तुम किराये पर मकान लेकर 50 हजार में 50 हॉस्पिटल खोल दो। फिर वह आपेही अपने पैर पर खड़े हो जायेंगे। बाप कितनी सहज युक्तियां सर्विस की बताते हैं। गंगा के कण्ठे पर जाकर सर्विस करो। अपनी पीठ पर यह बाबा का परिचय लगा दो। आपेही पढ़ते रहेंगे। देह-अभिमान छोड़ना है। कोई साहूकार ऐसे करे तो सब कहेंगे वाह! इनको तो देह-अभिमान बिल्कुल नहीं है। बाप का परिचय देना है। बाप स्वर्ग का रचयिता है फिर हम नर्क में क्यों पड़े हैं! अभी बाप आये हैं - कहते हैं देह के सब सम्बन्ध छोड़ मुझे याद करो। भारत स्वर्ग से नर्क कैसे बना? लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म कैसे लिए, आओ तो हम कथा सुनायें। ढेर इकट्ठे हो जायें। पतित-पावनी गंगा को भी कहते हैं तो जमुना को भी कहते हैं। अच्छा गंगा पतित-पावनी है तो एक को पकड़ो ना।
अब तुम बच्चों ने ड्रामा को जाना है तो फिर समझाना है। अगर औरों को रोशनी नहीं देंगे तो कौन कहेंगे कि इनकी बुद्धि में रोशनी है। सर्जन इन्जेक्शन लगा न सके तो उनको सर्जन कौन कहेगा? तुम बच्चों को सारी रोशनी मिली है। 84 जन्मों का राज़ बुद्धि में है। तुम इस ड्रामा को और एक्टर्स की एक्ट को जानते हो। ऊंचे ते ऊंच एक्ट है बाप की। बच्चों के साथ पार्ट बजाते हैं। तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। परन्तु हो गुप्त, इनकागनीटो, नानवायोलेन्स, शिवशक्ति सेना। उनकी सब बातें जिस्मानी हैं। कितने कुम्भ के मेले में जाते हैं। यहाँ जिस्मानी कोई बात नहीं। तुम उठते-बैठते, चलते यात्रा पर हो, याद से तुम पावन बनते हो। बाबा कहते हैं तुम कर्म करते समय भी शिवबाबा को याद करो। वह फिर कह देते सबमें परमात्मा है। फर्क हो गया ना! बाप कहते हैं जहाँ भी बैठो मुझे याद करो। फिर सर्विस भी करनी चाहिए। मन्दिरों में बहुत भक्त जाते हैं। बस यह चित्र पीठ पर लगा दो, बाप का परिचय देते रहो। युक्तियां तो बहुत बतलाते हैं। शमशान में जाकर समझाओ। निराकार बाप की महिमा और श्रीकृष्ण की महिमा। अब बताओ गीता का भगवान कौन? साथ में चित्र भी हो। सर्विस तुम बहुत कर सकते हो। फीमेल करे वा कोई कुमारी करे तो अहो सौभाग्य। कन्या तो सबसे अच्छी। कन्याओं का कन्हैया बाप है निराकार। कन्हैया कृष्ण नहीं था, यह है बाप। बाप को ख्याल आता है कि बच्चों को कैसे सिखलाऊं! कल्प पहले भी ड्रामा अनुसार ऐसे ही समझाया था फिर आज समझाता हूँ। तो तुमको भी अन्धों की लाठी बनना चाहिए। जिन बच्चों को परिचय मिलता है वह फिर औरों को ले आते हैं। उसका भी पुण्य होता है। अपने पास हिसाब रखो। जितना करेंगे फल तो मिलेगा ना। कोई को ले आते हैं तो उनका भी बहुत कल्याण हो जाता है। इस धन्धे में बच्चों का बहुत अटेन्शन चाहिए। सर्विस नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? सर्विस, सर्विस और सर्विस। तुम कहते भी हो - हम गॉड की सर्विस पर हैं। घर की सर्विस भी भल करो।
बाप शिक्षा देते हैं बच्चों को कभी विकार में नहीं जाने देना। अगर वह तुम्हारी आज्ञा नहीं मानते हैं तो जैसे नाफरमानबरदार ठहरे। अगर उसको धन दिया, उसने उससे पाप कर लिया तो उसका दण्ड तुम्हारे सिर पर आ जायेगा। बाबा तो राय देते हैं ना। परन्तु बहुत हैं जो करके पीछे बताते हैं। तो बच्चों को सर्विस के लिए अनेक प्रकार की युक्तियां बताते हैं। तुम बच्चों को यही धन्धा करना है। ट्रेन में भी यही सर्विस करते रहो तो बाप भी खुश होगा और भविष्य 21 जन्मों के लिए सदा सुख का वर्सा मिल जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) माया ने जो बहुत बड़ी जाल बिछाई है, अब बाप की याद से उस जाल से निकलना है। शुभ कार्य में लग जाना है। किसी देहधारी की जाल में नहीं फॅसना है, सबसे ममत्व निकाल देना है।
2) ज्ञान की जो रोशनी मिली है वह सबको देनी है। देह-अभिमान को छोड़ भिन्न-भिन्न युक्तियों से सर्विस करनी है। अन्धों की लाठी बनना है।
वरदान: अच्छे संकल्प रूपी बीज द्वारा अच्छा फल प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप आत्मा भव !
सिद्धि स्वरूप आत्माओं के हर संकल्प अपने प्रति वा दूसरों के प्रति सिद्ध होने वाले होते हैं। उन्हें हर कर्म में सिद्धि प्राप्त होती है। वे जो बोल बोलते हैं वह सिद्ध हो जाते हैं इसलिए सत वचन कहा जाता है। सिद्धि स्वरूप आत्माओं का हर संकल्प, बोल और कर्म सिद्धि प्राप्त होने वाला होता है, व्यर्थ नहीं। यदि संकल्प रूपी बीज बहुत अच्छा है लेकिन फल अच्छा नहीं निकलता तो दृढ़ धारणा की धरनी ठीक नहीं है या अटेन्शन की परहेज में कमी है।
स्लोगन: दु:ख की लहर से मुक्त होना है तो कर्मयोगी बनकर हर कर्म करो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 24th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
24.09.17 Pratah Murli Om Shanti AVYAKT Babdada Madhuban
Headline 1 – Samarth ki nisani sankalp , bol, karm, swabhav, sanskar baap saman. ( dtd 11/01.83 )
Headline 2 – Swadarshan chakradhari hi chakrabarti rajya bhagya ke adhikari. ( Dtd 13/ 01/83 )
Vardan – Nirmanta dwara nav nirman karnewale nirasha aur abhiman se mukt bhav.
Slogan – Viswa sewa takhatnasin ban otoh rajya takhatnasin ban jayenge.
24/09/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदाद" ओम् शान्ति 11-01-83
"समर्थ की निशानी- संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान"
आज रूहानी बाप बच्चों से दिलाराम को दी हुई दिल का समाचार पूछने आये हैं। सभी ने दिलाराम को दिल दी है ना! जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिवाए और कोई आ नहीं सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना। इसी को ही सहज योग कहा जाता हे। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग में भी अर्थात् स्मृति में भी दिलाराम। और कोई भी स्मृति वा व्यक्ति दिलाराम के बीच आ नहीं सकता - ऐसा अनुभव करते हो? जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या! मन, वाणी और कर्म से बाप के हो गये। संकल्प भी यह किया कि हम बाप के हैं और वाणी से भी यही कहते हो ‘मेरा बाबा', मैं बाबा का। और कर्म में भी जो सेवा करते हो वह भी बाप की सेवा, वह मेरी सेवा - ऐसे ही मन, वाणी और कर्म से बाप के बन गये ना। बाकी मार्जिन क्या रही जहाँ से कोई संकल्प मात्र भी आवे? कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता है ही मन, बुद्धि, वाणी और कर्म - चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं है? मार्जिन है? स्वप्न भी इसी ही आधार पर आते हैं। जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरन्तर याद कहा जाता है। कहने और करने में अन्तर तो नहीं कर देते हो? तेरा में मेरा मिक्स तो नहीं कर देते हो? सूर्यवंशी अर्थात् गोल्डन एजड। उसमें मिक्स तो नहीं होगा ना! डाइमन्ड भी बेदाग हो। कोई दाग रह तो नहीं गया है?
जिस समय भी कोई कमजोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार स्वभाव की, तो शब्द क्या कहते हो? मेरा विचार ऐसा कहता है वा मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा संस्कार, संकल्प। जब बाप जैसा संकल्प, संस्कार हो जाता है तो ऐसे बोल कभी नहीं बोलेंगे कि क्या करूँ, मेरा स्वभाव संस्कार ऐसा है? क्या करूँ, यह शब्द ही कमजोरी का है। समर्थ की निशानी है - सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता। उनके संकल्प में, बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नैचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है - यह अनुभव होगा। जब सबमें बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती, या बाप होगा या माया? लण्डन निवासी बाबा, बाबा कहते, स्मृति में रखते सदाकाल के लिए मायाजीत हो गये हैं? जब वर्सा सदाकाल का लेते हो तो याद भी सदाकाल की चाहिए ना। मायाजीत भी सदाकाल के लिए चाहिए।
लण्डन है सेवा का फाउन्डेशन स्थान। तो फाउण्डेशन के स्थान पर रहने वाले भी फाउन्डेशन के समान सदा मजबूत हैं? क्या करें, कैसे करें, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट तो नहीं है ना। बहुत करके ड्रामा भी माया के ही करते हो ना! हर ड्रामा में माया न आने वाली भी आ जाती है। माया के बिना शायद ड्रामा नहीं बना सकते हो। माया के भी भिन्न-भिन्न स्वरूप दिखाते हो ना। हर बात का परिवर्तक स्वरूप हो, इसका ड्रामा दिखाओ। माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ। जैसे शारीरिक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रूप में बदल जाता - ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ, यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।
लण्डन निवासियों ने विशेष स्व की उन्नति प्रति और विश्व कल्याण प्रति कौन सा लक्ष्य रखा है? सभी को विशेष सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्ते का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या होता, वह स्वत: ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। ''फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ'' - इसी स्मृति को सदा रखो। जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गये ना। तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं - यह स्मृति में रहे। जहाँ मेरा आवे तो वहाँ तेरा कह दो। फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। हर वर्ष कदम आगे बढ़ रहा है और सदा आगे बढ़ते रहेंगे, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ते हैं यह तो पक्का है ना। नीचे ऊपर, नीचे ऊपर होने वाले नहीं। अच्छा -
लण्डन निवासियों की महिमा तो सभी जानते हैं। आपको सब किस नज़र से देखते हैं? सदा मायाजीत क्योंकि पावरफुल डबल पालना मिल रही है। बापदादा की तो सदा पालना है ही लेकिन बाप ने जिन्हों को निमित्त बनाया है, वह भी पावरफुल पालना मिल रही है। निराकार, आकार और साकार तीनों को फालो करो तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता बन जायेंगे ना। लण्डन निवासी अर्थात् नो कम्पलेन्ट, नो कन्फ्यूज़। अलौकिक जीवन वाले, स्वराज्य करने वाले सब किंग और क्वीन हो ना। आपका नशा है ना।
कुमारियों से:- कुमारियाँ तो अपना भाग्य देख सदा हर्षित होती हैं। कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गायी जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें। ऐसे अपने को महान समझती हो? आप तो ‘हाँ' ऐसे कहो जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नज़र न लगे। ऐसे अमूल्य रत्न हो। कुमारियाँ सदा पढ़ाई और सेवा इसी में ही बिजी रहती हैं। कुमारी जीवन में बाप मिल गया और चाहिए ही क्या! अनेक सम्बन्धों में भटकना नहीं पड़ा, बच गई। एक में सर्व सम्बन्ध मिल गये। नहीं तो पता है कितने व्यर्थ के सम्बन्ध हो जाते, सासू का, ननंद का, भाभियों का....सबसे बच गई ना। न जाल में फँसी, न जाल से छुड़ाने का समय ही था। कुमारियाँ तो हैं ही डबल लाइट। कुमारियाँ सदा बाप समान सेवाधारी और बाप समान सर्व धारणाओं स्वरूप। कुमारी जीवन अर्थात् प्युअर जीवन। प्युअर आत्मायें श्रेष्ठ आत्मायें हुई ना। तो बापदादा कुमारियों को महान पूज्य आत्मा के रूप में देखते हैं। पवित्र आत्मायें सर्व की और बाप की प्रिय हैं।
अपने भाग्य को सदा सामने रखते हुए समर्थ आत्मा बन सेवा में समर्थी लाते रहो। यही बड़ा पुण्य है। जो स्वयं को प्राप्ति हुई है वह औरों को भी कराओ। खजानों को बाँटने से खजाना और ही बढ़ेगा - ऐसे शुभ संकल्प रखने वाली कुमारी हो ना। अच्छा।
टीचर्स के साथ:- विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना। सबकी नजर निमित्त बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। कितनी बड़ी स्टेज है और कितने देखने वाले हैं? सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? सेन्टर पर रहती हो वा स्टेज पर रहती हो? सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो इसलिए सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूर्ण करते रहो। महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना। निमित्त सेवाधारियों को बापदादा अपना फ्रैन्डस समझते हैं क्योंकि बाप भी शिक्षक है तो बाप समान निमित्त बनने वाले फ्रैन्डस हुए ना। तो इतनी समीप की आत्मायें हो। ऐसे सदा अपने को बाप के साथ वा समीप अनुभव करती हो? जब भी बाबा कहो तो हजार भुजाओं के साथ बाबा आपके साथ है। ऐसे अनुभव होता है? जो निमित्त बने हुए हैं उन्हीं को बापदादा एकस्ट्रा सहयोग देते हैं। इसीलिए बड़े फखुर से बाबा कहो, बुलाओ, तो हाजिर हो जायेंगे। बापदादा तो ओबीडियन्ट है ना। अच्छा।
24-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त-बापदादा" रिवाइज:13-01-83 मधुबन
स्वदर्शन चक्रधारी ही चक्रवर्ती राज्य भाग्य के अधिकारी
सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो? स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग्य के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् सारे चक्र के अन्दर अपने सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। इस अन्तिम जन्म में हीरे-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हैं। आदि से अन्त तक क्या-क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में है? क्योंकि इस समय नॉलेजफुल बनते हो। इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो, तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया। कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनायेंगे भी तो दो चार छे जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बता दी है। तो आप सभी मास्टर नॉलेजफुल बन गये ना। सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। तो जरूर जानते हो तब तो चित्रों में दिखाया है ना। अपनी जन्मपत्री का चित्र देखा है? उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है वा समझते हो नॉलेज समझाने का चित्र है। यह तो नशा है ना कि हम ही विशेष आत्मायें सृष्टि के आदि से अन्त तक का पार्ट बजाने वाली हैं। ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हो ना। ब्रह्मा बाप के साथ पूरे कल्प की प्रीति की रीति निभाने वाले हो ना। निर्वाण जाने की इच्छा वाले तो नहीं हो ना! जिसने आदि नहीं देखी उसने क्या किया! आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है! वह समय, वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन, अच्छी तरह से याद है वा याद दिलाने की जरूरत है? अपने आदि के जन्म अर्थात् पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है ना! दोनों की महिमा अपरमपार है।
जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनों का अन्तर दिखाते हो और दोनों को साथ-साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राहमण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। तो बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बनने वाले दोनों की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते हैं। चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर भी पूज्य आत्मा की लिस्ट में है। आधाकल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधाकल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। जो अपने चित्रों की पूजा, मान्यता चैतन्य रूप में ब्राहमण रूप से देव रूप की अभी भी देख रहे हो। तो इससे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है? सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो। फिर बार-बार नीचे की स्टेज से ऊपर की स्टेज पर जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
सभी जहाँ से भी आए हैं लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। मधुबन निवासी बनना भी भाग्यवान की निशानी है क्योंकि मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदानी स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना! सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों का भी स्वत: खुशी में मन नाचने लगे। जैसे स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर भी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो। अच्छा।
डबल विदेशी बच्चों को यह भी विशेष चान्स है क्योंकि अभी सिकीलधे हो। जब डबल विदेशियों की भी संख्या बहुत हो जायेगी तो फिर क्या करेंगे। जैसे भारतवासी बच्चों ने डबल विदेशियों को चान्स दिया है ना, तो आप भी ऐसे दूसरों को चान्स देंगे ना। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी अनुभव करना - यही महादानी बनना है।
वरदान: निर्मानता द्वारा नव निर्माण करने वाले निराशा और अभिमान से मुक्त भव!
कभी भी पुरूषार्थ में निराश नहीं बनो। करना ही है, होना ही है, विजय माला मेरा ही यादगार है, इस स्मृति से विजयी बनो। एक सेकण्ड वा मिनट के लिए भी निराशा को अपने अन्दर स्थान न दो। अभिमान और निराशा - यह दोनों महाबलवान बनने नहीं देते हैं। अभिमान वालों को अपमान की फीलिंग बहुत आती है, इसलिए इन दोनों बातों से मुक्त बन निर्मान बनो तो नव निर्माण का कार्य करते रहेंगे।
स्लोगन: विश्व सेवा के तख्तनशीन बनो तो राज्य तख्तनशीन बन जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali Dtd 25th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
25.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Gyan sagar Baap se tum baccho ko jo abinashi gyan ratna milte hain, un gyan ratno ka daan karne ki race karni hai.
Question- Mala me number aagey wa piche hone ka mukhya kaaran kya hai?
Ans- Shrimat ki palana. Jo shrimat ko achchi tarah paalan karte wo number aagey aa jate hain aur jo aaj achchi tarah palana karte, kal deha-abhimaan bas shrimat me man mat mix kar dete woh number piche chale jaate. Kayde anusaar shrimat par chalne wale bacche piche aatey bhi aagey number le sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap se andar bahar saaf rehna hai. Koi bhi bhool ho jaye to foron kshama mangna hai. Roohani jismani dono prakar ki seva karni hai.
2) Kabhi bhi irsha ke kaaran ek do ka parchintan nahi karna hai. Koi kisi ke prati oolti soolti baatein sunaye to sooni ansuni kar deni hai. Varnan karke kisi ki dil kharab nahi karni hai.
Vardaan:-- Rang aur roop ke saath-saath sampoorn pavitrata ki khushboo ko dharan karne wale Aakarshanmurt bhava.
Slogan:-- Yathart satya ko parakh lo to atindriya sukh ka anubhav karna sahaj ho jayega.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
25-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से तुम बच्चों को जो अविनाशी ज्ञान रत्न मिलते हैं, उन ज्ञान रत्नों का दान करने की रेस करनी है”
प्रश्न:
माला में नम्बर आगे वा पीछे होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
श्रीमत की पालना। जो श्रीमत को अच्छी तरह पालन करते वह नम्बर आगे आ जाते हैं और जो आज अच्छी पालना करते, कल देह-अभिमान वश श्रीमत में मनमत मिक्स कर देते वह नम्बर पीछे चले जाते। कायदे अनुसार श्रीमत पर चलने वाले बच्चे पीछे आते भी आगे नम्बर ले सकते हैं।
गीत:-रात के राही..... ओम् शान्ति।
बापदादा दोनों कहते हैं ओम् शान्ति। दोनों का स्वधर्म शान्त है। हम बच्चों के अन्दर से भी निकलना चाहिए ओम् अर्थात् अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त। अभी हम जाते हैं शान्तिधाम में। पहले-पहले हमको बाबा शान्तिधाम में ले जायेंगे। पहले-पहले कौन जायेंगे? जितना जो याद में रहेंगे, वह जैसे कि दौड़ी पहनते हैं। अभी तुम आत्म-अभिमानी बनते हो। उसमें बहुत मेहनत लगती है। आधाकल्प से तुमको रावण ने देह-अभिमानी बनाया है। अभी बेहद का बाप परमपिता परमात्मा हमको देही-अभिमानी बना रहे हैं और अपने घर का रास्ता बता रहे हैं। जो घर का मालिक है, वही बता रहे हैं। दूसरा कोई भी मनुष्य रास्ता बता न सके। कायदा नहीं है। एक ही बाप आकर बतलाते हैं, उनका नाम है दु:ख हर्ता, दु:ख से लिबरेट करने वाला। जिसकी महिमा भी भक्ति मार्ग में गाते आते हैं। ऐसे नहीं सतयुग में आत्मा ऐसे कहती है कि हमको बाप ने दु:ख से छुड़ा करके सुखधाम में भेजा है, नहीं। यह ज्ञान अभी तुमको मैं समझाता हूँ। यह ज्ञान का पार्ट अभी ही चलता है। फिर यह पार्ट ही पूरा हो जाता है। फिर प्रालब्ध शुरू हो जाती है। पतित से पावन बनाने का पार्ट एक ही बाप का है, जो कल्प-कल्प पार्ट बजाते हैं। तुम जानते हो हम आधाकल्प पावन थे। फिर रावण राज्य में आकर नीचे उतरते आते हैं। कला कमती होती जाती है। भारत में ही देवतायें 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न थे। फिर उन्हों को पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे जरूर आना है। कला कमती होनी ही है। परन्तु यह वहाँ मालूम नहीं रहता है। यह सारा ज्ञान अभी तुम्हारी बुद्धि में है। पावन देवी-देवतायें पतित कैसे बनते हैं, आओ तो 84 जन्मों की कथा सुनायें। 84 के चक्र की यह सत्य कथा है। वह तो झूठी कथा सुनाते हैं। चक्र की आयु लम्बी चौड़ी बता देते हैं। यह 84 के चक्र की कथा सुनने से तुम चक्रवर्ती राजा रानी पद पाते हो। यह गुह्य बातें सन्यासी आदि नहीं जानते। उनका धर्म ही अलग है। पहले माँ बाप पास जन्म लेते हैं तो मन्दिर आदि में जाकर पूजा करते हैं। फिर जब वैराग्य आता है तो घरबार छोड़ चले जाते हैं। बाप कहते हैं पूज्य सो पुजारी भी तुम्हारे लिए ही है। गाया भी जाता है ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण निकले तो जरूर एडाप्ट हुए होंगे। यह बाबा भी पहले पतित था फिर पावन बनते हैं। तुम ब्राह्मण बन फिर पावन देवी-देवता बनने के लिए पुरूषार्थ करते हो। लक्ष्मी-नारायण के राज्य को स्वर्ग कहा जाता है। वहाँ है ही अद्वैत धर्म, अद्वैत देवता, तो ताली बज नहीं सकती। वहाँ माया ही नहीं। इस देवी-देवता धर्म की महिमा गाई जाती है, सर्वगुण सम्पन्न...... जब तुम कहाँ लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते हो तो बोलो यह सत्य नारायण है ना। इनको सत्य क्यों कहते हैं? क्योंकि आजकल तो झूठ बहुत है। बहुतों के नाम लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि हैं। कोई-कोई के तो डबल नाम भी है। मद्रास के तरफ बहुत अच्छे-अच्छे नाम बहुतों के हैं। भगत वत्सलम् आदि..... अब वह तो भगवान ही होगा। मनुष्य कैसे हो सकते हैं।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है - आत्माओं का परमपिता परमात्मा सामने बैठा है। बाबा की तरफ तुम देखते रहेंगे तो समझेंगे पतित-पावन मोस्ट बिलवेड बाबा है। आत्मा कहती है निराकार बाबा हम आत्माओं से बात कर रहे हैं, निराकार परमपिता परमात्मा आकर आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह कोई शास्त्र में नहीं है। समझो कोई कहते हैं कृष्ण के तन में परमपिता परमात्मा प्रवेश करते हैं। परन्तु कृष्ण का तो वह रूप सतयुग में था। उस नाम रूप में तो कृष्ण आ न सके। कृष्ण का तुम चित्र देखते हो, वह भी एक्यूरेट नहीं है। बच्चे दिव्य दृष्टि में देखते हैं, उसका तो फोटो निकाल न सके। बाकी यह मशहूर है - श्रीकृष्ण गोरा सतयुग का पहला प्रिन्स था, जो फिर विश्व के महाराजा महारानी बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण से ही राज्य शुरू होता है। राजाई से संवत शुरू होता है ना। सतयुग का पहला संवत है विकर्माजीत संवत। भल पहले जब कृष्ण जन्मता है, उस समय भी कोई न कोई थोड़े बहुत रहते हैं, जिनको वापिस जाना है। पतित से पावन बनने का यह संगमयुग है ना। जब पूरा पावन बन जाते हैं तो फिर लक्ष्मी-नारायण का राज्य, नया संवत शुरू हो जाता है, जिनको विष्णुपुरी कहते हैं। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण से पालना होती है। अभी तुम वह बनने का पुरूषार्थ करते हो। तुम कहेंगे हम 5 हजार वर्ष बाद पुरूषार्थ करते हैं बाप से वर्सा लेने। पुरूषार्थ अच्छी रीति करना है। टीचर को मालूम तो रहता है ना कि स्टूडेन्ट कहाँ तक पास होंगे। तुम बच्चे भी जानते हो कि हमारी एकरस अवस्था कहाँ तक बनती जाती है? कहाँ तक हम बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान ले और फिर दान देते रहते हैं? यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान और कोई भी नहीं कर सकता है। ज्ञान सागर बाप से यह तुमको ज्ञान रत्न मिलते हैं। वह जिस्मानी हीरे मोती नहीं हैं। तो तुम बच्चों को फिर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दानी भी बनना है। अपने को देखना चाहिए हम कितना दान करते हैं? मम्मा-बाबा कितना दान करते हैं। हमारे में जो अच्छे ते अच्छी बहनें हैं, कितना अच्छा दान करती हैं! रेस चल रही है ना। फाइनल पास तो हुए भी नहीं हैं। कहेंगे प्रेजेन्ट समय यह-यह तीखे हैं। आगे जो माला बनाते थे और अभी जो माला बनायें तो बहुत फ़र्क पड़ जाये। 4-5 नम्बर वाले दाने जो थे वह भी मर गये। कई जिनको आगे नम्बर में रखते थे वह अब नीचे नम्बर में पहुँच गये हैं। नये-नये ऊपर आ गये हैं। बाबा तो सब जानते हैं ना इसलिए कहा जाता है गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। बाबा बतलाते भी रहते हैं। आगे तुम्हारी अवस्था अच्छी थी, अब नम्बर नीचे चला गया है क्योंकि कायदे अनुसार श्रीमत पर नहीं चलते हो। अपनी मत पर चलते हो। कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा इस समय अगर हमारा शरीर छूट जाए तो क्या गति को पायेंगे? गीता में कुछ यह अक्षर हैं। आटे में नमक मिसल है ना। सब पुकारते रहते हैं - बाबा हमको रावण राज्य से छुड़ाओ, दु:ख हरो। सच्चा-सच्चा हरिद्वार यह हुआ ना। दु:ख हर्ता, परमपिता परमात्मा को ही हरी कहा जाता है, न कि श्रीकृष्ण को। परमपिता परमात्मा ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। तुम सुखधाम के मालिक बनते हो ना। योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो। उन्हों का है बाहुबल, शारीरिक बल, जो बुद्धि से बाम्ब्स निकाले हैं। यहाँ सेना आदि की तो कोई बात नहीं। दुनिया में यह किसको पता ही नहीं कि योगबल से कैसे विश्व की बादशाही मिलती है। बाप ही आकर यह योग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं ज्ञान सागर हूँ। महिमा गाते हैं ना - ज्ञान का सागर, सुख का सागर, पवित्रता का सागर, ऐसे कभी नहीं कहेंगे - योग का सागर। नहीं, योग का सागर कहना रांग हो जाए। बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। जरूर ज्ञान की ही वर्षा करते होंगे। पहली बात बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो और किसको भी याद करना अज्ञान है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बाप ही सुनाते हैं। योग के लिए भी शिक्षा देते हैं। और सब योग के लिए उल्टी शिक्षा देंगे। उनको जिस्मानी योग कहा जाता है, शरीर को ठीक रखने के लिए। यह है रूहानी योग। यह राजयोग की बात कहाँ भी है नहीं। सिवाए बाप के और कोई राजयोग सिखला न सके। जानते ही नहीं। तुम यह राजयोग सीखते-सीखते चले जायेंगे, जाकर राज्य करेंगे। राजयोग के कोई चित्र थोड़ेही हैं। तुम यह बनाते हो समझाने के लिए। सो भी कोई देखने से तो समझ न सकें। समझाना पड़े - यह ब्रह्मा राजयोग सीखकर जाए नारायण बनते हैं। यह बाजू में चित्र हैं। यह सब बातें धारण करना बुद्धि की बात है। इसमें टीचर क्या करेंगे? टीचर बुद्धि को कुछ कर नहीं सकते। कोई कहते हमारी बुद्धि को खोलो। बाबा क्या करे? तुम याद करते रहो और पूरा पढ़ो तो बुद्धि पूरा खुलेगी। बच्चों को पूरा सिखलाया जाता है। बाबा कहो, मम्मा कहो तो जरूर कहेगा तब तो सीखेगा ना। बिगर कहे सीखेगा कैसे? इसलिए बच्चों का मुख खुलवाया जाता है। मेहनत करनी है। बाप का परिचय देना है। वह है ऊंचे ते ऊंचा भगवान, सबका रचयिता। उनसे सबको स्वर्ग का वर्सा मिलता है। फिर रावण राज्य में वर्सा गंवाते-गंवाते नर्क बन जाता है। देवतायें पावन थे, फिर पतित बने। फिर पतित-पावन बाप आया है, कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और कोई उपाय है नहीं। योग अग्नि से ही विकारों रूपी खाद निकलेगी। याद करते-करते तुम पावन बन गले का हार बन जायेंगे। घड़ी-घड़ी बोलने की प्रैक्टिस करो सिर्फ कहना थोड़ेही है - बाबा मुख खुलता नहीं है। श्रीमत पर चल जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो ताला बन्द हो जायेगा। तीर लगेगा नहीं। खुशी का पारा चढ़ेगा नहीं। अपनी मत पर चलेंगे तो बाबा कहेंगे यह तो रावण मत पर हैं। बहुत देह-अभिमानी बच्चे हैं जो मुरली भी नहीं पढ़ते हैं। जो मुरली ही नहीं पढ़ते वह क्या ज्ञान देंगे। अनेक प्रकार की नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है। इस पुरानी देह को भी छोड़ देना है। यह तो मरा हुआ चोला है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करते रहना है। कोई की सर्विस छिप नहीं सकती। कोई खामी है तो वह भी छिपती नहीं है। माया बड़ी शैतान है। अनेक प्रकार के उल्टे काम कराती रहती है। कोई भूल हो जाए तो फौरन बाप से क्षमा मांगनी चाहिए। अन्दर बाहर बहुत साफ होना चाहिए। बहुतों में देह-अभिमान बहुत रहता है। बाबा ने समझाया है - कभी कोई से भी सर्विस नहीं लो। अपने हाथ से भोजन आदि बनाओ। रूहानी-जिस्मानी दोनों सर्विस करनी है। बाबा की याद में रह किसको दृष्टि देंगे तो भी बहुत मदद मिलेगी।
बाबा खुद प्रवेश कर सर्विस में बहुत मदद करते हैं। वह समझते हैं हमने किया, अहंकार झट आ जाता है। यह नहीं समझते कि बाबा ने करवाया। बाबा प्रवेश होकर सर्विस करवा सकते हैं, फिर तो और ही डबल फोर्स हो गया। किसको लिफ्ट मिली, जाकर ऊंच सर्विस करने लग पड़े तो खुश होना चाहिए ना। इसमें ईर्ष्या की क्या बात है? कभी भी परचिंतन नहीं करना चाहिए। यहाँ की बातें वहाँ सुनायेंगे। भल कोई ने कुछ कहा भी फिर भी दूसरे को सुनाकर नुकसान क्यों करना चाहिए। ऐसे तो बहुत झूठी बातें भी बनाते हैं - फलानी तो ऐसी है, यह है। ऐसी झूठी बातें कभी नहीं सुनना। कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो सुनी अनसुनी कर देना चाहिए। किसके दिल को खराब नहीं करना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से अन्दर बाहर साफ रहना है। कोई भी भूल हो जाए तो फौरन क्षमा मांगना है। रूहानी जिस्मानी दोनों प्रकार की सेवा करनी है।
2) कभी भी ईर्ष्या के कारण एक दो का परचिंतन नहीं करना है। कोई किसी के प्रति उल्टी सुल्टी बातें सुनायें तो सुनी अनसुनी कर देनी है। वर्णन करके किसी की दिल खराब नहीं करनी है।
वरदान: रंग और रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू को धारण करने वाले आकर्षणमूर्त भव!
ब्राह्मण बनने से सभी में रंग भी आ गया है और रूप भी परिवर्तन हो गया है लेकिन खुशबू नम्बरवार है। आकर्षण मूर्त बनने के लिए रंग और रूप के साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू चाहिए। पवित्रता अर्थात् सिर्फ ब्रह्मचारी नहीं लेकिन देह के लगाव से भी न्यारा। मन बाप के सिवाए और किसी भी प्रकार के लगाव में नहीं जाये। तन से भी ब्रह्मचारी, सम्बन्ध में भी ब्रह्मचारी और संस्कारों में भी ब्रह्मचारी - ऐसी खुशबू वाले रूहानी गुलाब ही आकर्षणमूर्त बनते हैं।
स्लोगन: यथार्थ सत्य को परख लो तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना सहज हो जायेगा।
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Details ( Page:- Murali Dtd 26th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
26.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Bache – Duradeshi vishal budhi ban service karni hai, sach aur juth ka kantrast sidhkar batana hai
Question – Mahabharat se kaun kaun se baatein sidh hoti hai, Mahabharat ka arth kya hai?
Ans –
1 - Mahabharat arthat anek dharm ka vinash aur ek dharm ki sthapna .
2 – Mahabharat ka arth hi hai pandavon ki Vijay kaurabon ki parajay.
3- mahabharat ladhai se sidh hota hai ki jarur bhagwan bhi hoga, jisne rath par baith gyan sunaya. Bhagwan ne jarur rajyog sikhaya hoga jisse rajai sthapan hhue. Mahabharat arthat jiske baad satyugi rajai sthapan ho. Tum bachhe mahabharat par achhi tarah se samjha sakte ho.
Vardan - Burai mei bhi burai ko no dekh achhai ka path padnewale anubhabi murt bhav.
Slogan – Sada prasannachit rehna hai toh silence ki sakti se burai ko achhai mei parivartan karo.
26-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - दूरादेशी विशाल बुद्धि बन सर्विस करनी है, सच और झूठ का कान्ट्रास्ट सिद्धकर बताना है”
प्रश्न:
महाभारत से कौन-कौन सी बातें सिद्ध होती हैं, महाभारत का अर्थ क्या है?
उत्तर:
महाभारत अर्थात् अनेक धर्मों का विनाश और एक धर्म की स्थापना। 2- महाभारत का अर्थ ही है पाण्डवों की विजय, कौरवों की पराजय। 3- महाभारत लड़ाई से सिद्ध होता है कि जरूर भगवान भी होगा, जिसने रथ पर बैठ ज्ञान सुनाया। भगवान ने जरूर राजयोग सिखाया होगा जिससे राजाई स्थापन हुई। महाभारत अर्थात् जिसके बाद सतयुगी राजाई स्थापन हो। तुम बच्चे महाभारत पर अच्छी तरह से समझा सकते हो।
गीत:- यही बहार है दुनिया को भूल जाने की... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि इस समय महाभारत की सीन चल रही है। बाप ने समझाया था जैसे आटे में नमक होता है ना वैसे शास्त्रों में कुछ न कुछ सच है। बाकी तो प्राय: झूठ ही है। अब महाभारत के समय विनाश तो दिखाते हैं। यूरोप को भी दिखाते हैं, मूसल वहाँ से इन्वेन्ट हुए। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि यह वही यज्ञ चल रहा है, जबकि एक धर्म की स्थापना होती है। पाण्डवों की विजय होती है। है भी राजयोग। दिखाते हैं अर्जुन के रथ में अर्जुन को कृष्ण ज्ञान देते हैं। यह भी समझते हो राजयोग का ज्ञान दिया है। महाभारत लड़ाई के बाद जरूर राजयोग से राजाई स्थापन हुई होगी। इस समय तो राजाई है नहीं। फिर से स्थापन होनी चाहिए। महाभारत के नाटक भी बनते हैं। एडवरटाइजमेंट निकल रही है। उनका बाइसकोप बनाया है, आकरके देखो। अब तुम बच्चे जानते हो बाप तुमको सब सच बतलाते हैं। वह तो नाटक आदि सब झूठे बनाते हैं। महाभारत का नाटक सर्विस के ख्याल से देखना चाहिए कि वह लोग क्या बनाते हैं। फिर उस पर हम क्या समझायेंगे। सर्विस के लिए विचार सागर मंथन करना होता है। परन्तु बच्चों की इतनी विशाल बुद्धि हुई नहीं है। जिन्होंने नाटक बनाया है उनको जाकर समझाना है। वास्तव में सच क्या है, झूठ क्या है? तुमने जो महाभारत लड़ाई दिखाई है, उनकी तिथि तारीख चाहिए, कब लगी थी? जैसे कण-कण में भगवान का नाटक बनाया है तो जाकर देखना चाहिए क्या दिखाते हैं। बच्चों की बड़ी दूरांदेशी, विशालबुद्धि होनी चाहिए। वास्तव में सच क्या है - उसके पर्चे छपवाने चाहिए। सच तो वही है जो प्रैक्टिकल चल रहा है। नाटक सब झूठे कैसे हैं सो आकर समझो। यह समझने से भी तुम सचखण्ड के मालिक बन सकते हो। ईश्वर से वर्सा ले सकते हो। ऐसे-ऐसे सर्विस के ख्यालात आने चाहिए। सर्वोदया वालों से भी कोई-कोई मिलते हैं परन्तु उसमें भी बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। उनको समझाना चाहिए सर्व माना सारी सृष्टि पर दया करना। सो तो ब्लिसफुल एक ही बाप है। वही सर्व पर दया करते हैं। आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था, सर्व सुख थे। अभी कलियुग के अन्त में इतने दु:ख हैं, भ्रष्टाचार है। सारी दुनिया पर तो दया एक बेहद का बाप ही करते हैं। जरूर मैं जानता हूँ तब तो बतलाता हूँ। सर्वोदया, इसमें सारी दुनिया की बात है। अब भगवान कैसे सर्व पर दया करते हैं सो आकर समझो। अब कलियुग का अन्त है। महाभारत लड़ाई भी है। जरूर कोई है जो पतित दुनिया को पावन बनाने वाला है। तो सर्व आत्माओं का ब्लिसफुल वह ठहरा ना, इसमें ज्ञान की बुद्धि बड़ी अच्छी चाहिए। बाबा के पास तो समाचार मिलते हैं कि हम सर्वोदया लीडर से मिला, परन्तु मिलने वाला बड़ी विशालबुद्धि वाला चाहिए। बाबा ने देखा कि कोई ने विशालबुद्धि की बात नहीं की है। पहले तो उनको बताना चाहिए कि सारी दुनिया में दु:ख, अशान्ति है। यह दु:खधाम है तो जरूर पहले सुखधाम, शान्तिधाम था। बच्चों ने यह भी उनको बताया नहीं। भारत की बड़ी महिमा करनी चाहिए। अच्छा, भारत को ऐसा बनाने वाला कौन? तुम तो सर्व पर दया कर नहीं सकते हो। वह तो एक ही ईश्वर है, जिसको तुम भूले हुए हो। वह खुद अपना कार्य कर रहे हैं। हाँ, यह भी अच्छा है जो दु:खियों को कुछ न कुछ देते हो। उनसे मिलना भी चाहिए एकान्त में।
महाभारत का जो नाटक बनाया है उस पर सच और झूठ का कान्ट्रास्ट लिख पर्चे बनवाने चाहिए। भारत कैसे कौड़ी से हीरे जैसा बनता है सो आकर समझो। जब महाभारत लड़ाई हुई तब बाप भी था, जिससे वर्सा मिलता है। कृष्ण को तो कोई बाप कह न सके। मनुष्य जब गॉड फादर कहकर पुकारते हैं तब निराकार को ही याद करते हैं। तुम बच्चों को सारा दिन यही ख्यालात रहने चाहिए कि हम कैसे सर्विस करें। विचार सागर मंथन करना चाहिए कि कैसे औरों को जगायें। कांटों को फूल बनाना है। शमशान में जाकर सर्विस करनी है। बच्चे जाते हैं परन्तु बहुत थक पड़ते हैं। देखते हैं कि इतना समझाते हैं, परन्तु सुनते ही नहीं। अरे समझेंगे भी कैसे। बाबा मिसाल देते हैं कि रिढ़ (भेड़) क्या समझे.... है तो बड़ा सहज ज्ञान.... ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर देवतायें। यह वर्णों का राज़ भी बहुत सहज है। ब्राह्मण चोटी हैं सबसे ऊंच। तुम देवता बनते हो तो इतनी महिमा नहीं होती है। इस समय तुम्हारी महिमा बहुत है। शक्तियों के कितने मेले लगते हैं। लक्ष्मी का मेला नहीं लगता है। उनका सिर्फ दीपमाला के दिन आह्वान करते हैं। मेला सदा जगत अम्बा का लगता है। तुम जानते हो जगत अम्बा कौन है! लक्ष्मी कौन है! लक्ष्मी की पूजा क्यों होती है! अभी सब कहाँ हैं! लक्ष्मी तो सतयुग में थी। अभी उनकी आत्मा कहाँ है? तुम जानते हो लक्ष्मी 84 जन्म भोग अभी वह संगम पर जगत अम्बा बनी है। एडाप्ट कर फिर उनका नाम बदला जाता है। बहुत बच्चे कहते हैं हमको बाबा ने एडाप्ट किया है। हमारा नाम क्यों नहीं बदला जाता है। बाबा कहते हैं क्या करूँ, नाम तो बदलूँ परन्तु नाम को बट्टा लगा देते हैं। (बदनाम कर देते हैं) नाम भी बहुत फर्स्टक्लास मिले थे। तुम प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां कहलाते हो ना। भल शरीर निर्वाह अर्थ धन्धे आदि में वह नाम चलाना पड़ता है। तुम तो कहेंगे हमारा तो अब यह नाम है। फिर भी एड्रेस घर की देनी होती है। बुद्धि में है हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, यहाँ बैठे हैं। साथ में शिवबाबा ब्रह्मा बाबा है। वहाँ बाहर मित्र सम्बन्धियों को देखते हो तो वह नाम याद आ जाता है। वह नाम भी लिखना पड़ता है। नहीं तो समझ भी न सकें। तो गृहस्थ व्यवहार में जाने से फिर भूल जाते हैं। उसमें रहते अपने को शिववंशी निश्चय कर उस याद में रहना पड़े। मेहनत है इसलिए बाबा लिखते हैं कि चार्ट रखो। लौकिक सम्बन्धी होते हुए भी पारलौकिक को याद करते रहें, इसमें मेहनत है। यह नई बात है ना।
अब महाभारत नाटक में रथ भी तो दिखायेंगे। संस्कृत श्लोक भी जरूर बोलेंगे। देखना चाहिए कि क्या क्या बतलाते हैं फिर उस पर ही लिखना चाहिए। सर्विस का ख्याल रहना चाहिए। परिचय देना है। यह बातें जानने से तुमको सच्चा महाभारत लड़ाई का ज्ञान मिल जायेगा। बाबा कुछ भी सुनते हैं तो ख्याल चलता है ना। तुम तो जानते हो यह छोटे-छोटे मठ पंथ पिछाड़ी में निकलते हैं। झाड़ की आयु पूरी होने से सारा झाड़ ही सूख जाता है। तो यह सब जो भी धर्म वाले हैं, वह कोई सतयुग में आने वाले नहीं हैं। बाकी जो कनवर्ट हो गये हैं - वह कहाँ न कहाँ से निकलते हैं। जितना जो जिसकी तकदीर में होगा वह लेंगे। खुद समझकर फिर औरों को भी समझाना है। प्रजा नहीं बनाई, बहुतों का कल्याण नहीं किया तो वर्सा क्या मिलेगा। कोई की शक्ल से ही पता पड़ जाता है कि इनको ज्ञान अच्छा लगता है। बात दिल से लगेगी तो कांध ऐसे हिलता रहेगा। नहीं तो इधर उधर देखते रहेंगे। बाबा जांच भी करते हैं कि यह नालायक है वा लायक है! यह तो बेहद का बाप है ना। यह दादा भी समझते हैं ना - यह कोई भुट्टू (बुद्धू) तो नहीं। बाबा कब कह भी देते हैं अच्छा इनको भुट्टू समझो। तुम्हें शिवबाबा ही सुनाते हैं, मुरली चलाते हैं। तो कई ऐसे समझ लेते हैं कि यह थोड़ेही कुछ जानते हैं। यह तो हमारे मुआफिक ही हैं। अपना अहंकार आ जाता है। समझते हैं हम तो सेवा करते हैं, हम उनसे भी तीखे ठहरे। ऐसे कहते हैं, दूरादेशी नहीं हैं। बाबा की तो यह युक्ति है कि बच्चे शिवबाबा को याद करें। याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे, इसमें देह-अभिमान की तो बात ही नहीं। समझो शिवबाबा ने समाचार सुना, वही तुमको डायरेक्शन देते हैं। ऐसी-ऐसी सर्विस करो। विचार सागर मंथन करो। सन्यासी आदि आगे चल बहुत निकलेंगे जो समझेंगे कि इन्हों को पढ़ाने वाला बेशक परमपिता परमात्मा है, कृष्ण तो हो नहीं सकता। तुम सिद्ध कर देंगे। समझ सकते हैं राइट क्या है, रांग क्या है। रांग में कौन ले जाते हैं, राइट में कौन ले जाते हैं - यह तुम अभी समझते हो। यह कोई को थोड़ेही पता है कि रावण राज्य द्वापर से शुरू हुआ है, जो चला आ रहा है। रावण के चित्र पर भी समझाना है। यह कब से शुरू हुआ है। डेट डालनी चाहिए कि यह रावण सबसे पुराना दुश्मन है। इन पर जीत पाने से तुम जगतजीत बन सकते हो। बाप सर्विस की अनेक प्रकार की युक्तियां बताते हैं। डायरेक्शन मिलते रहते हैं। ऐसे-ऐसे पर्चों में लिखकर खूब बांटो और और प्वाइंट्स मिलती रहेंगी तीर लगाने की।
आजकल नाटक देखने तो बहुत जाते हैं। पतित बनना यह गंदगी है ना। सब पतित हैं। पावन बन फिर पतित बन पड़ते हैं। बाबा कहते हैं काला मुँह कर दिया। ऐसे तो बहुत होते हैं। बाबा तो समझ जाते हैं कि इनमें क्या ताकत है - माया पर जीत पाने की। बाबा से पूछते हैं शादी करूँ? बाबा तो समझ जाते हैं कि इनकी दिल है। बाबा कहेंगे मालिक हो - चाहे जहनुम में जाओ, चाहे क्षीर सागर में जाओ। मंजिल बहुत बड़ी है। काम विकार कोई कम थोड़ेही है। बहुत मुश्किल है। सन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से योग लगाकर पूरा वर्सा लेना है। बहुत मेहनत करनी पड़े। प्राप्ति भी बहुत है। सन्यासी पवित्र बनते हैं, तो बड़े-बड़े प्रेजीडेंट आदि भी जाकर उनको माथा टेकते हैं। फर्क देखो पतित और पावन का। मेहनत से मनुष्य एम.पी. आदि बन जाते हैं। है सारा पुरूषार्थ पर मदार। कहते हैं ना - पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध बड़ी। पुरूषार्थ ही बड़ा कहेंगे। पुरूषार्थ से ही प्रालब्ध बनती है ना। कोई फिर समझते हैं प्रालब्ध में होगा तब तो पुरूषार्थ करेंगे। ड्रामा करायेगा। ऐसे समझकर बैठ जाते हैं। पहली-पहली मुख्य बात है ही बाप का परिचय देना। जास्ती बातों में टाइम वेस्ट नहीं करना है। एक प्वाइंट को समझे तो लिखवाना है कि मैं बरोबर यह बात समझता हूँ। बाप को जानने सिवाए और कुछ समझेगे नहीं। पहली बात ही यह पकड़नी है। नहीं मानते हो तो जाओ, अपना रास्ता लो। तुम कहते हो ना - निराकार बाप सभी का बाप है तो लिखो भगवान एक है, बाकी सब उनकी रचना हैं। अब बताओ गीता का भगवान कौन? कहेंगे वह तो निराकार है, उसने गीता कैसे सुनाई होगी! फिर बताना है प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तो मनुष्य सृष्टि रची जाती है। शूद्र से एडाप्ट कर ब्राह्मण बनाते हैं। यह लिखवाकर फिर एड्रेस लेना चाहिए। फिर 10-15 दिन बाद पत्र लिखना चाहिए। पहले तो बाप का परिचय दे खुशी में लाना चाहिए। लिखो बरोबर बेहद के बाप से वर्सा मिलता है। यह ब्रह्माकुमार कुमारी सुखधाम, शान्तिधाम का रास्ता बताते हैं। लिखवा लेना चाहिए फिर लिखा-पढ़ी करते रहना चाहिए। इतनी मेहनत हो तब सर्विस कही जाए। औरों का कल्याण करने लिए नींद फिट जानी चाहिए। शिवबाबा को भी रडियां मार-मार कर, पुकार-पुकार कर बाबा की नींद फिटा दी ना। तो आ गये। बच्चों को भी मेहनत करनी चाहिए। प्रदर्शनी वा प्रोजेक्टर में भी पहले इस प्वाइंट्स पर समझाना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सर्विस के लिए विचार सागर मंथन करना है। थकना नहीं है। बहुतों के कल्याण की युक्तियां रचनी हैं।
2) लौकिक के बीच में रहते भी पारलौकिक बाप को याद करना है। श्रेष्ठ पुरूषार्थ से अपनी प्रालब्ध ऊंच बनानी है।
वरदान: बुराई में भी बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त भव!
चाहे सारी बात बुरी हो लेकिन उसमें भी एक दो अच्छाई जरूर होती हैं। पाठ पढ़ाने की अच्छाई तो हर बात में समाई हुई है ही क्योंकि हर बात अनुभवी बनाने के निमित्त बनती है। धीरज का पाठ पढ़ा देती है। दूसरा आवेश कर रहा है और आप उस समय धीरज वा सहनशीलता का पाठ पढ़ रहे हो, इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। अच्छाई उठाने की सिर्फ बुद्धि चाहिए। बुराई को न देख अच्छाई उठा लो तो नम्बरवन बन जायेंगे।
स्लोगन: सदा प्रसन्नचित रहना है तो साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में परिवर्तन करो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 27th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
27.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap ki shikshaon ko dharan kar tumhe goonvan phool banna hai, tumhe gyan ki roshni mili hai, isiliye sada harshit rehna.
Question- Tum baccho ki kaun si guhya ramanik baatein hain jo manushya soonkar moonjhte hain?
Ans- Tum kehte ho - abhi hum Brahman kul bhusan swadarshan chakradhari hain. Hum gyan ki sankhdhwani karne wale hain. Hum Trinetri, Trikaldarshi hain. Yah Devtaon ko jo alankar dete hain, wo sab humare hain. Yah baatein soonkar manushya moonjhte hain. 2- Tum kehte ho-Baap mukh se jo knowledge dete hain - yah sankhdhwani hai. Isse hum manushya se Devta bante hain. Isi ko he murli kaha jata hai. Kaath ki murli nahi hai. Yah bhi bahut guhya ramanik baatein hain, jise samajhne se manushyo ko muskil lagta hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sada gyan ki rimjhim me rehna hai. Roohani panda ban sabko rasta batana hai. Mukh se gyan ratna he nikalne hain.
2) Gyan manan kar sada harshit mukh, gambhir aur vishal buddhi ban sukh ka anubhav karna aur karana hai.
Vardaan:-- Mere ko tere me parivartan kar sarv akarshan murt banne wale double light bhava.
Slogan:-- Bighna proof banne ke liye duwaon ka khazana jama karo.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
27-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे - बाप की शिक्षाओं को धारण कर तुम्हें गुणवान फूल बनना है, तुम्हें ज्ञान की रोशनी मिली है, इसलिए सदा हर्षित रहना है
प्रश्न: तुम बच्चों की कौन सी गुह्य रमणीक बातें हैं जो मनुष्य सुनकर मूँझते हैं?
उत्तर: तुम कहते हो - अभी हम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हैं। हम ज्ञान की शंखध्वनि करने वाले हैं। हम त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी हैं। यह देवताओं को जो अलंकार देते हैं, वह सब हमारे हैं। यह बातें सुनकर मनुष्य मूंझते हैं। 2-तुम कहते हो - बाप मुख से जो नॉलेज देते हैं - यह शंखध्वनि है। इससे हम मनुष्य से देवता बनते हैं। इसी को ही मुरली कहा जाता है। काठ की मुरली नहीं है। यह भी बहुत गुह्य रमणीक बातें हैं, जिसे समझने में मनुष्यों को मुश्किल लगता है।
गीत:- यही बहार है... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे ईश्वरीय सन्तान जानते हैं कि हमारे लिए सबसे ऊंची बहार की यह मौसम है। बहारी मौसम में फूल आदि सब खिल जाते हैं। यह है बेहद के बहार की मौसम। तुम पर ज्ञान की बरसात होती है। तो सूखे कांटे से तुम फूल बन जाते हो। यह भी तुम ही जानो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। कोई तो बहुत खुशी में रहते हैं कि हम इस ज्ञान वर्सा से कांटे से फूल बनते हैं। झाड जब एकदम सूख जाता है तो एक भी पत्ता नहीं रहता है। हर वर्ष यह हाल होता है फिर बरसात में पत्ते भी सुन्दर, फूल भी बड़े सुन्दर हो जाते हैं। तो यह ज्ञान बरसात की बहारी मौसम फर्स्टक्लास है। अब यह है कांटों की दुनिया। झाड कहता है - मैं कांटों का झाड बन गया हूँ फिर ज्ञान बरसात से फूलों का झाड बनता हूँ। तुम एक-एक चैतन्य झाड हो ना। अभी तुमको ज्ञान की रोशनी मिली है, जिससे तुम ऊंच पद पाते हो। तुम क्या से क्या बनते हो। तुम जानते हो अभी हम अपवित्र से पवित्र बनते हैं। विष्णु भी युगल रूप है ना। साक्षात्कार जोड़ी रूप का होता है। विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं ना। परन्तु उनको ज्ञान तो कुछ भी है नहीं। दो रूप मिलकर डांस करते हैं। बाप समझाते हैं - दीवाली होती है तो महालक्ष्मी आती है। तुम दोनों को बुलाते हो। आगे लक्ष्मी पीछे नारायण होता है। लक्ष्मी दो भुजा वाली होती है। महालक्ष्मी 4 भुजा वाली होती है। परन्तु यह बातें अभी तुम जानते हो - आगे बिल्कुल ही नहीं जानते थे। एकदम कांटे थे सो अब फूल बन रहे हैं। ग्रंथ में भी कहा है - मनुष्य से देवता किये,...देवतायें होते हैं सतयुग में। वह हैं दैवीगुणों वाले। इस समय के मनुष्य हैं आसुरी गुण वाले, तुम हो ईश्वरीय गुण वाले। ईश्वर बैठ हमको गुणवान बनाते हैं। बाबा की शिक्षा से हम सर्वगुण सम्पन्न... बनते हैं। भारत की महिमा है अर्थात् भारत में रहने वालों की बड़ी महिमा गाते हैं। परन्तु उनको यह पता नहीं कि उन्हों को ऐसा बनाने वाला कौन है? बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं परन्तु उनके आक्यूपेशन का पता नहीं है। तुमको तो बहुत रोशनी मिली है। तुमको बहुत हर्षित रहना है। वहाँ भी 21 जन्मों के लिए हर्षित रहेंगे। तुम जानते हो हम 21 जन्मों का पद लेने के लिए पढ़ाई पढ़ते हैं। कमाई नॉलेज से होती है। गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ है। सूर्यवंशी घराने के मालिक बनते हैं। गोया स्वर्ग के मालिक बनते हैं। पावन दुनिया में भी सब एक जैसा पद तो नहीं लेते। सिर्फ एक लक्ष्मी-नारायण तो राज्य नहीं करते हैं ना। यह भी किसको पता नहीं है, सिर्फ डिनायस्टी होगी और राजाई भी होगी। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी थे। शिवबाबा ने नई दुनिया स्थापन की है। दुनिया वालों की बुद्धि में तो अन्धियारा है। तुम्हारे पास तो रोशनी है। पतित दुनिया और पावन दुनिया है। पावन दुनिया में भी नम्बरवार मर्तबे हैं। प्रजा में भी होंगे। वहाँ तो सबको सुख ही सुख है। हर एक की अपनी-अपनी राजाई, जमीदारी आदि होती है। पतित दुनिया में सब पतित हैं परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं। जैसे सतयुग में ऊंच ते ऊंच डिनायस्टी है लक्ष्मी-नारायण की। राधे कृष्ण प्रिन्स प्रिन्सेज स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बने हैं। लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी कहेंगे। राधे-कृष्ण की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। राजाओं का नाम लिया जाता है। थोड़ी सी भी बात कोई नहीं जानते। तुम सब जानते हो सो भी नम्बरवार, राजधानी में तो नम्बरवार पद होते हैं ना। कहाँ सूर्यवंशी राजाई फिर कहाँ प्रजा में भी चण्डाल आदि जाकर बनते हैं। पतित दुनिया में भी नम्बरवार होते हैं।
अब बाप तुमको कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझा रहे हैं। बाप कहते हैं बच्चे श्रीमत पर चलो। बहुत बच्चे हैं जिनको बाबा ने कभी देखा भी नहीं है। आपस में बहुत अच्छी सर्विस कर रहे हैं। बाप का परिचय देते रहते हैं। सिवाए ब्राह्मणी मुकरर किये बिना भी सेन्टर चला रहे हैं। सन्मुख मिले भी नहीं है - फिर भी सर्विस कर आप समान बना रहे हैं। सम्मुख रहने वाले इतनी सर्विस नहीं करते। रूहानी यात्रा सिखाना है ना। तुम हो रूहानी पण्डे। तुम भी रास्ता बताते हो। हे आत्मायें बाप को याद करो। कहते भी हैं आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...वह भी हिसाब है ना। बहुतकाल सिद्ध करके बताते हो ना। तुम ही सबसे जास्ती बहुकाल से बिछुड़े हुए हो। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी घराने के थे फिर पुनर्जन्म के चक्र में आते 84 जन्म लगे हैं। सो भी सबके 84 जन्म नहीं हो सकते। इस ज्ञान की रिमझिम में तुम बच्चे रहते हो। यह है तुम्हारी स्टूडेन्ट लाइफ। कोई गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए फिर दूसरा कोर्स भी उठाते हैं। यहाँ तो सिर्फ पवित्रता की बात है। बाप और वर्से को याद करना है और पढ़ना भी है। पवित्र जरूर बनना पड़े। कहते भी हैं शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहर सकता है। बाप भी कहते हैं पवित्रता के बिगर धारणा नहीं हो सकती इसलिए बाबा कहते हैं इस काम महाशत्रु को जीतो। तुम पवित्र बनो। मेरे को पहचानो तब तो मैं बुद्धि का ताला खोलूँ। जब तक पवित्र ब्राह्मण कुल भूषण नहीं बनेंगे तो धारणा भी नहीं होगी।
तुम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हो और कोई समझ न सके। मनुष्य समझते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी तो देवतायें हैं, यह फिर कौन निकले हैं जो कहते हैं हम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हैं। इन बातों को तुम बच्चे ही समझते हो। यह बड़ी गुह्य रमणीक बातें हैं। नॉलेज की शंखध्वनि तुम करते हो। देवतायें तो नहीं करते। वह तो शिवबाबा की शंखध्वनि सुनकर देवता बनते हैं। शिवबाबा तो है नॉलेजफुल। परन्तु उनको शंख कैसे देंगे। नॉलेज तो जरूर किसी के मुख से देंगे ना। उनको ही मुरली कहा जाता है। बाकी कोई काठ की मुरली नहीं है। बरोबर ज्ञान की मुरली बज रही है। मनुष्य तो समझते हैं यह पूजा, भक्ति आदि परम्परा से चली आती है। परन्तु परम्परा से कोई चीज़ चल न सके। कहते भी हैं यह रक्षाबंधन आदि परम्परा से चले आते हैं। अच्छा परम्परा से कब से? यह तो बताओ। क्या परमात्मा ने पतित दुनिया रची? तब उनको पतित-पावन क्यों कहते हो। पढ़ाई की बातें रोज़ बुद्धि में आनी चाहिए। मुख खोलने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। तुम तो बहुतों को समझा सकते हो। अपनी उन्नति के लिए प्रबन्ध रचना है। जैसे बाबा सबको रास्ता बताते हैं। हमको फिर औरों को रास्ता बताना है, तब तो बाप से वर्सा पायेंगे। बाकी धमपा मचाने से वर्सा पा नहीं सकेंगे। बाप को बहुत रहम आता है, कितना समझाते हैं परन्तु तकदीर में नहीं है। कितने रत्न मिलते हैं। रत्नों का भी विस्तार बहुत होता है ना। रत्नों में भी फ़र्क बहुत होता है। कोई की कीमत लाख रूपया होती तो कोई की फिर एक रूपया होती। यह भी अविनाशी ज्ञान रत्न हैं जो धारण कर और कराते हैं तो कितना ऊंच पद पाते हैं। बच्चों के मुख से सदैव रत्न ही निकलने चाहिए। बुद्धि समझती है परन्तु मुख से नहीं बोलेंगे तो उसकी वैल्यु क्या होगी। जो मेहनत करेंगे, आप समान बनायेंगे तो फल भी बहुत मिलेगा। यह सर्विस करना और सिखलाना भी कम सर्विस है क्या? तुम्हारी बुद्धि में अब रोशनी आ गई है। सबसे बड़ा साहूकार कौन है? तो 10-12 नाम ले लेते हैं। तुम भी जानते हो इस ड्रामा में मुख्य कौन-कौन हैं। परमपिता परमात्मा शिव क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिंसीपल एक्टर है। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा फिर है सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन वासी। यह सब बातें तुम अभी जानते हो। लाखों वर्ष कल्प की आयु नहीं है। कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है। मनुष्य मात्र तो कितने घोर अन्धियारे में हैं। तुम अब अज्ञान अन्धेरे से निकल कितनी रोशनी में आये हो। कोई तो रोशनी में आये हैं, कोई फिर अन्धियारे में ही पड़े हैं। इसमें है सारी बुद्धि की बात। कोई तो विशाल बुद्धि झट समझ जाते हैं। आत्मा तो है ही स्टार मिसल। भ्रकुटी के बीच में बड़ी चीज़ तो ठहर भी न सके। जरूर ऐसी चीज़ है - जो इन आंखों से देखने में नहीं आती। बड़ी चीज़ हो तो दिखाई दे। आत्मा तो अति सूक्ष्म है, बिन्दी मिसल। यह है गुह्य ते गुह्य बातें। शुरू में अखण्ड ज्योति तत्व कहते थे। शुरू में स्टार कहें तो समझ न सको। सारी नॉलेज एक ही दिन में थोड़ेही दे देंगे। दिन प्रतिदिन गुह्य बातें बाप सुनाते हैं। ज्ञान सागर से अथाह धन मिलता है। जब तक जीना है तब तक ज्ञान अमृत पीते रहना है। पानी की बात नहीं है। ज्ञान सागर से ज्ञान गंगायें निकलती हैं। वह तो पानी का सागर है कहते हैं गंगा अनादि है। यह स्नान आदि चला आता है। तुम देखते थे - बच्चियाँ ध्यान में जाती थी तो गंगा, जमुना नदी में जाकर रास विलास करती थी। यहाँ तो डर लगता है कि डूब न जायें। वहाँ तो डूबने आदि की बात ही नहीं रहती। कभी एक्सीडेंट हो नहीं सकता। तो यही बहार है जबकि तुम कौड़ी से हीरा अथवा पतित से पावन बनते हो। पावन दुनिया बनेगी तो जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा। महाभारत में तो पूरा दिखाया नहीं है। दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ों पर जाकर गल मरे, साथ में कुत्ता ले गये। क्या पाण्डव कुत्तों को भी पालते हैं क्या? तुम तो कुत्ता पालते नहीं हो। कुत्ते का मान कितना रखा है। बहुत लोग कुत्ता पालते हैं।
बाप तुम बच्चों को समझाते हैं कि तुम बच्चों को बहुत हर्षित रहना है। तुम्हारे पर नित्य ज्ञान वर्षा हो रही है। तुम जानते हो कि बाबा कैसे आते हैं। ज्ञान वर्षा करते हैं और भारत में ही आते हैं इसलिए भारत की बड़ी महिमा है। भारत ही अविनाशी खण्ड है। भारत ही अविनाशी बाप का बर्थ प्लेस है, जो शिवबाबा सभी को पावन बनाने वाला है और कोई जानते नहीं है। वह तो कह देते परमात्मा नाम रूप से न्यारा है, सर्वव्यापी है। कितनी बातें बता दी हैं। बाप कहते हैं मैं आता हूँ, मुझे ब्राह्मण जरूर रचने हैं। कहते भी हैं कि हम ब्रह्मा की औलाद हैं तब तो ब्राह्मण कहलाते हैं। परन्तु यह बातें भूल गये हैं। शिवबाबा ने क्या आकर किया! कैसे ब्रह्मा मुख वंशावली बनाया! तुम अब जानते हो - शिवबाबा आये हैं। वह है रचयिता तो जरूर नई दुनिया ही रची होगी। किसको भी पता नहीं है। न जानने के कारण गालियाँ देते रहते हैं इसलिए बाप कहते हैं यदा यदाहि... यह किसने कहा? कृष्ण ने तो नहीं कहा। कृष्ण की आत्मा को भी अब मालूम पड़ा है कि हम 84 जन्म लेते हैं। तुम जो पहले पास हो ट्रांसफर होते हो - वही पहले जन्म लेते हो। तुम्हारी बुद्धि में कितनी रोशनी है। आपरेशन करते हैं तो एक आंख निकाल दूसरी आंख डाल देते हैं, जिससे रोशनी आ जाती है। कोई का डिफेक्ट रह भी जाता है। तुम आत्माओं के ज्ञान चक्षु खत्म हो गये हैं - वह देने के लिए बाबा आया है। तुम्हारे ज्ञान चक्षु खुल रहे हैं। तीसरा नेत्र ज्ञान का है। जो अब तीसरा नेत्र फिर देवताओं को दे दिया है। अलंकार चक्र आदि भी विष्णु को दे दिया है। वास्तव में तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों का है। तुम ही हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण। दैवीकुल और आसुरी कुल है। वर्ण कहो, कुल कहो - बात एक ही है, ज्ञान एक ही है। कितनी अच्छी बातें हैं, जो कोई भी शास्त्रों में नहीं हैं। तुम अब त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। कमल पुष्प समान पवित्र रहने का पुरूषार्थ करने वाले हो। तुम जानते हो - किसकी आंख अच्छी खुली है, किसकी खुलती जाती है। आखरीन सेंट परसेंट खुल ही जायेगी। मुख से ज्ञान रत्न निकलते रहेंगे तब तो रूप-बसन्त कहलायेंगे। अब तुम मेहनत करो। पुरूषार्थ करना चाहिए, जितना हो सके - ज्ञान में बड़ा हर्षितमुख, गम्भीर, विशालबुद्धि बन सुख महसूस करते रहना है। स्वर्ग का वर्सा मिल रहा है और क्या चाहिए! कितनी खुशी मनानी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा ज्ञान की रिमझिम में रहना है। रूहानी पण्डा बन सबको रास्ता बताना है। मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं।
2) ज्ञान मनन कर सदा हर्षित मुख, गम्भीर और विशालबुद्धि बन सुख का अनुभव करना और कराना है।
वरदान: मेरे को तेरे में परिवर्तन कर सर्व आकर्षण मुक्त बनने वाले डबल लाइट भव
लौकिक सम्बन्धों में सेवा करते हुए सदा यही स्मृति रहे कि ये मेरे नहीं हैं, सभी बाप के बच्चे हैं। बाप ने इनकी सेवा अर्थ हमें निमित्त बनाया है। घर में नहीं रहते लेकिन सेवास्थान पर रहते हैं। मेरा सब तेरा हो गया। शरीर भी मेरा नहीं। मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तब मन बुद्धि को कोई भी अपनी तरफ खींच नहीं सकता। ब्राह्मण जीवन में मेरे को तेरे में बदलने वाले ही डबल लाइट रह सकते हैं।
स्लोगन: विघ्न प्रूफ बनने के लिए दुआओं का खजाना जमा करो।
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Details ( Page:- Murali Dtd 28th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
28.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhara purana dushman Ravan hai, tumhari ladhai badi khofnak hai, tum jitna ek ke saath yog lagayenge utna dushman par jeet pane ka bal milega.
Question- Tum Brahmano ki department duniya ke manushyo se bilkul bhinn hai, kaise aur kaun si?
Ans- Tum Brahmano ki department hai shrimat par pawan banna aur banana - tum yog bal se apne paapon ko bhasm karte ho. Tumhari sab manokamnaye Baap poori karte hain. Manushya to jo kuch karte usse niche he utarte aatey. Riddhi-siddhi adi sikh lete hain parantu patit to bante he jate hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Sarir roopi purani khaal se mamatwa nikaal dena hai. Buddhi se roohani yatra par tatpar rehna hai.
2) Purani duniya ki kisi bhi baat se talook na rakh, gyan chita par baith pawan ban Baap se poora varsha lena hai. >
Vardaan:-- Apne pujya swaroop ki smruti se sada roohani nashe me rehne wale Jeevan mukt bhava
Slogan:-Sachcha sevadhari wo hai jo nimitt aur nirmaan hai.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
28-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा पुराना दुश्मन रावण है, तुम्हारी लड़ाई बड़ी खौफनाक है, तुम जितना एक के साथ योग लगायेंगे उतना दुश्मन पर जीत पाने का बल मिलेगा"
प्रश्न:
तुम ब्राह्मणों की डिपार्टमेंट दुनिया के मनुष्यों से बिल्कुल ही भिन्न है, कैसे और कौन सी?
उत्तर:
तुम ब्राह्मणों की डिपार्टमेंट है श्रीमत पर पावन बनना और बनाना - तुम योगबल से अपने पापों को भस्म करते हो। तुम्हारी सब मनोकामनायें बाप पूरी करते हैं। मनुष्य तो जो कुछ करते उससे नीचे ही उतरते आते। रिद्धि-सिद्धि आदि सीख लेते हैं परन्तु पतित तो बनते ही जाते हैं।
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं....... ओम् शान्ति।
इस पुरानी दुनिया में रहते हुए तुम बच्चों का इस पुरानी दुनिया से कोई नाता नहीं रहा है। तुम नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो - बेहद के बाप से वर्सा लेने। जब तक स्थापना हो तब तक भल पुरानी दुनिया में बैठे हैं परन्तु तुम्हारा सारा ध्यान स्वर्ग की सच्ची कमाई तरफ है। विनाश तो होना ही है, आसार ऐसे देखने में आते हैं। यह भी जानते हो कि इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली है। जरूर हमारे अथवा भारत के कल्याण के लिए यह महाभारत लड़ाई लगनी है। अभी वास्तव में तुम किससे लड़ाई नहीं करते हो। तुम तो डबल अहिंसक हो। तुम्हारे पास न काम की, न क्रोध की हिंसा है। मुख्य हिंसा काम की कही जाती है। यह तो है ही पतित दुनिया। किस कारण पतित बने हो? विकार के कारण। यह काम विकार आदि-मध्य-अन्त दु:ख देता है। क्रोध के लिए नहीं कहा जाता। अपवित्रता और पवित्रता की बात है। काम ही सबको धोखा देता है। इस काम पर ही अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। एक पवित्र बने दूसरा न बने तो झगड़ा हो पड़ता है। बाप कहते हैं दोनों को प्रतिज्ञा करनी है, ज्ञान चिता पर बैठने की। वह काम चिता पर बिठाते हैं। बाप वह सौदा कैन्सिल कराते हैं। अब पवित्र दुनिया स्थापन होती है तो वह सौदा कैन्सिल करना पड़े। ज्ञान चिता पर बैठने से पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। तुम्हारी भी लड़ाई है। उस बाहुबल की लड़ाई से वास्तव में तुम्हारी लड़ाई बड़ी खौफनाक है क्योंकि रावण तुम्हारा बहुत पुराना दुश्मन है, उस पर जीत पानी है। जितना एक के साथ बुद्धियोग लगायेंगे तो बल मिलेगा। सारा मदार है श्रीमत पर चलने का। श्रीमत कहती है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनना है। आत्मा को ही बनना है। आत्मा 16 कला सम्पूर्ण थी, अब वह 84 जन्म लेते-लेते नीचे उतरती है। जरूर बच्चे जानते हैं देवी-देवताओं का राज्य था। रामराज्य स्थापन हुआ। राम नाम रख दिया है। वास्तव में नाम शिव है। शिवाए नम: कहते हैं। रामाए नम: नहीं कहते हैं। शिवबाबा अक्षर बहुत राइट है। राम को बाबा कोई कहते नहीं। शिव को बाबा कहते हैं। राम यानी परमपिता परमात्मा, न कि रघुपति राघव राजा राम। मनुष्य जो सुनते वह बोलते जाते हैं। अब सिवाए तुम बच्चों के और कोई भी परमपिता परमात्मा के साथ यथार्थ योग नहीं लगाते हैं। वह तो समझते हैं कि परमात्मा तो ब्रह्म ज्योति स्वरूप है, नाम रूप से न्यारा है। अगर ब्रह्म कहते तो भी नाम हो गया ना। कुछ भी समझते नहीं। बाप कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ। मैं अति सूक्ष्म हूँ, इससे सूक्ष्म कोई चीज़ होती नहीं, अति सूक्ष्म है। जैसे झाड़ का बीज सूक्ष्म होता है। देखने में कितना छोटा है। मनुष्य सृष्टि का बीज तो सबसे सूक्ष्म है। सबसे छोटी खस-खस होती है। बहुत पतली होती है। उनके झाड़ बहुत बड़े-बड़े होते हैं। तो परमपिता परमात्मा तो उनसे भी अति सूक्ष्म बिन्दी है।
बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, इस रीति तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते हैं। कोटों में कोई ही इस राज़ को समझते हैं। शिवबाबा जैसी महिमा और कोई भी मनुष्य आत्मा की नहीं हो सकती। कैसे आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं। सम्मुख आकर बच्चों को पढ़ाते हैं, कुछ भी जानते नहीं हैं। न मुझे जानते, न पा को जानते हैं। अभी तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो। तुम्हारा इस पुरानी दुनिया की बातों से तैलुक नहीं है। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। उनका तो धन्धा ही है अपना। तुम्हारा धन्धा अपना है। तुम हो गये गुप्त योगबल की सेना। वह है बाहुबल की सेना। उनको तुम जानते हो, तुमको कोई नहीं जानते। वो लोग (साइंसदान) स्टॉर पर जाने की कोशिश करते हैं। देखा है तो समझते हैं हम क्यों नहीं जा सकते! हम समुद्र का अन्त क्यों नहीं पा सकते! इसलिए पुरूषार्थ करते हैं। बाकी जो इन आंखों से नहीं देखा जा सकता, उनका पुरूषार्थ कर नहीं सकते। उनकी बुद्धि में तो स्थूल चीजें आती हैं, उनके लिए पुरूषार्थ करते हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म परमात्मा को तो जानते ही नहीं है। खुद ही आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं। तुमने चित्र बड़ा ज्योर्तिलिंगम् बनाया है तो तुम्हारी बुद्धि में भी वह आता है। बाप बच्चों को समझाते रहते हैं कि जैसे बाप की गत मत न्यारी है वैसे तुम्हारी सद्गति की मत सारी दुनिया से न्यारी है। तुम्हारा और कोई बात से तैलुक नहीं है। तुम सच्चे ब्राह्मण बने हो। ब्राह्मणों का विस्तार तो कुछ है नहीं। वो ब्राह्मण लोग कहेंगे - हम ब्रह्मा की औलाद हैं। ब्रह्मा तो हुआ प्रजापिता। उनका बाप कौन? वह तो कोई जानते नहीं। वह तो त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते हैं। ब्रह्मा के तीन रूप कैसे हो सकते। यह तो तीन देवतायें हैं। तीनों की एक्टिविटी अलग है। रचयिता तो एक ही शिव है। हम सब उनकी रचना वहाँ रहने वाली हैं। ऊंच ते ऊंच बाप ही सुप्रीम सोल है। सुप्रीम सोल एक निराकार बाप को कहा जाता है। ऐसे नहीं कि वह भी निराकार परमात्मा और हम आत्मायें भी निराकार, सब एक ही हैं, सब उनके ही रूप हैं। नहीं। बाप अलग है बच्चे अलग हैं। तुमको बाप ने नॉलेज दी है। शास्त्रों में तो यह बातें हैं नहीं कि ब्रह्मा-वंशी ब्राह्मणों को परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते हैं। परमात्मा ने आकर यह ब्रह्मा मुख वंशावली रची है। जब चक्र पूरा हो संगम होता है तो बाप आकर पतित दुनिया की अन्त और पावन दुनिया की आदि करते हैं। तो जरूर संगम पर ही आना पड़े। पावन बनने में टाइम लगता है। आधाकल्प से सिर पर पापों का बोझा है। योग अग्नि से जो आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलती है। तुमको सतोप्रधान बनना है। हम जो पतित बने हैं, याद से ही हम पावन बनते जायेंगे। कितना सहज है। हमको फिर से 84 जन्मों का चक्र लगाना है। बच्चों को यह नॉलेज मिली है। बाप भी कहते हैं हम तुमको फिर से राजयोग सिखलाने आये हैं। बाप वर्सा देते हैं, रावण श्राप देते हैं। यह बाप ही बैठ समझाते हैं। इस समय बाप आकर सब मनोकामनायें पूरी करते हैं। अशुभ कामनायें तो माया पूरी करती है। आजकल रिद्धि सिद्धि वाले बहुत पैसा कमाते हैं। वह कामनायें माया पूरी करती है, उनकी भी किताब आदि होती है। तुमको तो कोई किताब नहीं, शास्त्र आदि नहीं पढ़ना है। तुम्हें बाप की श्रीमत है-बच्चे पावन बनो और पावन बनाओ, तुम्हें कभी पतित नहीं बनना है। तुम्हारी यह डिपार्टमेंट ही अलग है। कल्प पहले जो आकर ब्राह्मण बने होंगे वही पुरूषार्थ करेंगे। देवताओं का देखो कैसे सैपलिंग लग रहा है। ब्राह्मण बनते जाते हैं। जो थोड़ा भी सुनकर जाते तो प्रजा में आ जायेंगे। राजधानी में आ जायेंगे ना। मौत सामने खड़ा है। खिटपिट थोड़ा जोर भी भर सकती है, बन्द भी हो सकती है। बुद्धि कहती है कि अजुन अभी थोड़ा देरी है। राजधानी अभी कहाँ स्थापन हुई है। राजाओं, सन्यासियों आदि को अजुन ज्ञान कहाँ दिया है। विवेक कहता है - विनाश में थोड़ा देरी है। बाकी रिहर्सल होती रहेगी। वन्डर है ना। वह यज्ञ रचते हैं - लड़ाई बन्द करने के लिए और भगवान ने यज्ञ रचा है सारी दुनिया का परिवर्तन करने के लिए (विनाश के लिए) थोड़ा शान्ति होगी तो कहेंगे हमने यज्ञ रचा इसलिए शान्ति हो गई। एक बार यज्ञ सफल हुआ तो चलता रहेगा। बरसात के लिए यज्ञ रचा, बारिष हुई तो खुशी होगी। बारिष नहीं होगी तो कहेंगे ईश्वर की भावी। जैसे कोई शरीर छोड़ता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। फिर तो शोक करने की दरकार ही नहीं है। स्वर्ग पधारा तो अहो सौभाग्य समझो ना। माया रावण ने सबकी बुद्धि को ताला लगा दिया है। तुम जानते हो - हम कल्प पहले मुआफिक फिर से पुरूषार्थ कर रहे हैं।
भारत अविनाशी खण्ड है और कोई दूसरा धर्म नहीं था। यह तो बाद में इन्हों ने निकाले हैं। यह भी ड्रामा की भावी कहेंगे। रक्त की नदियां यहाँ ही बहती हैं। एक दो में लड़ते रहते हैं। भल भाई-भाई होकर बहुत समय से रहे पड़े हैं। परन्तु हिन्दू और मुसलमान धर्म तो अलग-अलग है ना। वह आये ही बाद में हैं तो लड़ाई इन्हों की आपस में है। तुम्हारा इससे कोई तैलुक नहीं है। तुमको अपनी सर्विस में तत्पर रहना है। सिर्फ तीन पैर पृथ्वी ले यह रूहानी हॉस्पिटल खोलना है। फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती जायेगी। बूँद बूँद से तलाव ऐसे होगा ना। घर में भी यह चित्र रखो। बेहद के बाप से 21 जन्मों का वर्सा कैसे पा सकते हो - आओ तो समझायें। मौत तो सामने खड़ा है। अब सिर्फ बेहद के बाप और वर्से को याद करो, इनको मृत्युलोक कहा जाता है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। तब तो कहते हैं ना - मैं कालों का काल महाकाल हूँ। अकाल तख्त है ना। तुम अकाल आत्मा हो। बच्चे समझते हैं कि हम इस दुनिया से बिल्कुल न्यारे हैं। यहाँ पढ़ाने वाला विचित्र है। आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही इस मुख द्वारा सुना रही है। आत्मा इन कानों द्वारा सुन रही है। हम आत्मा इस शरीर से यह करते हैं। आत्मा को रसना मिलती है। आत्मा ही कहती है - यह मीठा है, यह खट्टा है। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। आत्माओं को बाप कहते हैं - अब घर वापिस जाना है। तुमने 84 जन्म लिए हैं, अब यह शरीर छोड़ना है, इनसे ममत्व निकालना है। सर्प भी ममत्व नहीं रखता है। पुरानी खल छोड़ नई ले लेते हैं। तुम्हारी भी यह पुरानी खल है, इसको ऐसे ही छोड़ देना है। भ्रमरी का भी मिसाल तुम्हारे से लगता है। वास्तव में सन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते। इस पतित दुनिया में सब विकारी कीड़े हैं। तुम ब्राह्मणियां उन्हों को भूँ भूँ कर पतित से पावन बनाती हो। कहती हो शिवबाबा को याद करो। मनुष्य को देवता बनाने की जादूगरी है। जादूगर, सौदागर, रतनागर यह सब उनके नाम हैं।
अच्छा बच्चों को समझाते तो बहुत हैं। फिर भी कहते हैं बाप और वर्से को याद करो। बाप कहते हैं अगर तुम एक बार मुझ पर बलिहार जायेंगे तो मैं 21 बार तुम पर बलिहार जाऊंगा। यह सौदा तो अच्छा है ना। शिवबाबा तो दाता है। तुमको युक्ति बतलायेंगे कि ममत्व कैसे निकालो। गृहस्थ व्यवहार में रहते श्रीमत पर चलो, इसमें पवित्रता है फर्स्ट। यह रूहानी यात्रा है। सारा मदार यात्रा पर है। मनुष्य तो ढ़ेर के ढ़ेर जिस्मानी यात्रायें करते रहते हैं। तुम्हारी एक ही रूहानी यात्रा है, जो रूह बैठ रूहों को सिखलाते हैं। इसमें सारी बुद्धि की बात है। तुम बच्चों के पास दु:ख आ नहीं सकता। तुम जानते हो इतना बड़ा विनाश हमारे लिए हो रहा है। तो तुम्हें अन्दर में ह्रास (दु:ख) नहीं आ सकता। अगर आता है तो कच्चे हैं, ज्ञान की पूरी अवस्था नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शरीर रूपी पुरानी खाल से ममत्व निकाल देना है। बुद्धि से रूहानी यात्रा पर तत्पर रहना है।
2) पुरानी दुनिया की किसी भी बात से तैलुक न रख, ज्ञान चिता पर बैठ पावन बन बाप से पूरा वर्सा लेना है।
वरदान: अपने पूज्य स्वरूप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहने वाले जीवनमुक्त भव!
ब्राह्मण जीवन का मजा जीवनमुक्त स्थिति में है। जिन्हें अपने पूज्य स्वरूप की सदा स्मृति रहती है उनकी आंख सिवाए बाप के और कहाँ भी डूब नहीं सकती। पूज्य आत्माओं के आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं। पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं हो सकते। देह, सम्बन्ध, पदार्थ वा संस्कारों में भी उनके मन-बुद्धि का झुकाव नहीं रहता। वे कभी किसी बंधन में बंध नहीं सकते। सदा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं।
स्लोगन: सच्चा सेवाधारी वह है जो निमित्त और निर्माण है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 29th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
29.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - jab tak jeena hai tab tak padhna hai, sikhna hai, tumhari padhai me he pawan duniya ke liye, pawan banne ke liye.
Question 1 - Baap kis goon me baccho ko aap samaan banane ki siksha dete hain?
Ans- Baba kehte bacche jaise main nirahankari hun, aise tum bacche bhi mere samaan nirahankari bano. Baap he tumhe pawan banne ki siksha dete hain. Pawan banne se he Baap samaan banenge.
Question 2- Jab buddhi achchi banti hai to kaun se raaz buddhi me swatah baith jaate hain?
Ans- Main aatma kya hun, mera Baap parmatma kya hai, unka kya part hai. Aatma me kaise anadi part bhara hua hai jo bajati he rahti hai. Yah sab baatein achchi buddhi wale he samajh sakte hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Padhai par poora-poora dhyan dena hai. Baki sakshatkar adi ki aash nahi rakhni hai. Naummid ban padhai nahi chhodni hai.
2) Chitro ko dekhte bichar sagar manthan kar har baat ko dil me utarna hai. Rajyog ki tapasya karni hai.
Vardaan:-- Sangathan me nyare aur pyare banne ke balance dwara achal rehne wale Nirbighna bhava
Slogan:- Dehi-abhimani sthiti dwara tan-mann ki halchal ko samapt karne wale he achal adol rehte hain.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
29-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - जब तक जीना है तब तक पढ़ना है, सीखना है, तुम्हारी पढ़ाई है ही पावन दुनिया के लिए, पावन बनने के लिए”
प्रश्न- 1: बाप किस गुण में बच्चों को आप समान बनाने की शिक्षा देते हैं?
उत्तर- 1: बाबा कहते बच्चे जैसे मैं निरहंकारी हूँ, ऐसे तुम बच्चे भी मेरे समान निरहंकारी बनो। बाप ही तुम्हें पावन बनने की शिक्षा देते हैं। पावन बनने से ही बाप समान बनेंगे।
प्रश्न- 2: जब बुद्धि अच्छी बनती है तो कौन से राज़ बुद्धि में स्वत: बैठ जाते हैं?
उत्तर- 2: मैं आत्मा क्या हूँ, मेरा बाप परमात्मा क्या है, उनका क्या पार्ट है। आत्मा में कैसे अनादि पार्ट भरा हुआ है जो बजाती ही रहती है। यह सब बातें अच्छी बुद्धि वाले ही समझ सकते हैं।
गीत:- धीरज धर मनुआ... ओम् शान्ति।
बेहद का माँ-बाप मिला तो धीरज मिला। किसको? आत्माओं को वा जीव आत्मा बच्चों को? आत्मा एक छोटी सी बिन्दी है। दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जिसकी बुद्धि में हो कि आत्मा एक बिन्दी मिसल स्टार है। तुम जानते हो कि हमारी इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का, 5 हजार वर्ष का पार्ट है। दूसरी आत्माओं में तो इतना पार्ट भरा हुआ नहीं है। मनुष्यों की बुद्धि कितनी कमजोर हो गई है जो समझती नहीं है। परमात्मा के लिए तो नहीं कहेंगे कि वह 84 जन्म वा 84 लाख जन्म लेते हैं। नहीं। तुम बच्चे जानते हो इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। उसको कुदरत कहेंगे ना। कितनी छोटी सी बिन्दी आत्मा है, जिसमें सब जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, वह कभी मिटता नहीं है, मिटने वाला भी नहीं है। कितना भारी वन्डर है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो इन बातों को जानते हैं - फिर भूल जाते हैं। यह धारण करना है औरों को समझाने के लिए। बाप परमपिता परमात्मा को करनकरावनहार कहा जाता है, वह भी करते हैं सिखलाने के लिए। उनको निराकार - निरहंकारी कहा जाता है। उनका अर्थ भी कोई समझ न सके। यह गुण बच्चों को ही सिखलाते हैं। बच्चों को भी ऐसा निरहंकारी बनना है। ज्ञान सागर है तो ज्ञान भी सुनाना पड़े ना। पतित-पावन है तो जरूर आकर पतितों को ही शिक्षा देंगे, पावन बनने की। जैसे सन्यासी शिक्षा देते हैं सन्यास करवाने लिए। यह भी 5 विकारों का सन्यास करना है। पतित-पावन ही आकर शिक्षा देंगे। नहीं तो हम पावन कैसे बने। गाया भी जाता है - जब तक जीना है तब तक सीखना है, पढ़ना है। स्कूलों में तो ऐसे नहीं कहा जाता है। उसमें तो इस ही जन्म में पढ़ाई की प्रालब्ध भोगनी है। यहाँ तो कहा जाता है जब तक जीना है तब तक पढ़ना है। अन्त तक कर्मातीत अवस्था को पाना है। आत्मा को योग से ही पवित्र बनाना है। जितना योग में रहेंगे तो तुम्हारी आत्मा गोल्डन एज में जायेगी फिर आइरन एज में न आत्मा को, न शरीर को रहना है। हम पढ़ते ही हैं पावन दुनिया में आने के लिए। यह ऐसी गुह्य बातें हैं जो कोई कब समझा न सकें। और तो मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं। साइंस घमण्डी कैसी-कैसी चीजें बनाते हैं। स्टॉर, मून पर भी जाने का पुरूषार्थ करते हैं। तुम समझते हो इनसे कोई जीवनमुक्ति नहीं मिलती है। करके अल्पकाल क्षण भंगुर सुख मिलता है। एरोप्लेन से सुख भी मिलता है तो दु:ख भी मिलता है। कल एक्सीडेंट हो जाए तो दु:ख होगा। स्टीम्बर डूब जाता है, ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है। बैठे-बैठे भी मनुष्य हार्टफेल हो जाते हैं। सुखधाम तो है ही अलग। वहाँ सदैव सुख ही सुख है। इस दुनिया में जो भी सुख है वह है ही अल्पकाल काग विष्टा के समान।
तुम बच्चों को अभी बहुत अच्छी बुद्धि मिली है। मैं आत्मा क्या हूँ, मेरा बाप परमात्मा क्या है। उनका पार्ट क्या है, हमारा क्या पार्ट है - सारा बुद्धि में राज़ है। तुम बच्चों में भी सबके 84 जन्म नहीं कहेंगे। सब थोड़ेही सतयुग में इकट्ठे हो जाते हैं इसलिए सबके पूरे 84 जन्म नहीं कहेंगे। चन्द्रवंशी में भी पिछाड़ी तक आते रहते हैं। वृद्धि होती जायेगी। जन्म थोड़े होते जायेंगे। यह विस्तार की बातें हैं। बुढ़ियों को पहले अल्फ बे पक्का कराना है। अल्फ माना बाबा, बे माना बादशाही। यह तो बिल्कुल राइट बात है ना। स्वर्ग की बादशाही थी, भारत सारे विश्व का मालिक था, और कोई का राज्य नहीं था। जो रूद्र की माला बनती है वही फिर विष्णु की माला बन जाती है। यह ज्ञान तुम बच्चों को मिला है। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, उनका रूप क्या है, क्या साइज है - यह सब बातें अभी तुम्हारी ही बुद्धि में हैं। कितनी छोटी सी आत्मा है, परमात्मा को भी भक्तिमार्ग में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। द्वापर से कलियुग अन्त तक अथवा संगम के अन्त तक कहेंगे, उनका पार्ट चलता है। यह सब तुम जानते हो। तुम कहेंगे यह सब कल्प पहले भी हुआ था। आज से 5 हजार वर्ष पहले भी हुआ था। एक अखबार में रोज़ डालते हैं - 100 वर्ष पहले क्या हुआ, 100 वर्ष की बात तो सहज है। अखबारों से झट निकाल बतायेंगे। वह है टाइम्स आफ इन्डिया अखबार। तुम्हारी अखबार है टाइम्स आफ वर्ल्ड। यह अक्षर बड़ा अच्छा है। रोज़ लिख सकते हो। आज से 5 हजार वर्ष पहले क्या हुआ था। 5 हजार वर्ष पहले जो हुआ था वही अब हुआ। ऐसे-ऐसे लिखने से मनुष्यों को ड्रामा का पता तो पड़ जाये। मैगजीन में भी लिख सकते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में तो सारा राज़ है। आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो कोई भी मनुष्य में नहीं है। तो वह मनुष्य क्या काम का। तुम जानते हो मनुष्य ही 84 जन्म लेते हैं। पहले-पहले ब्राह्मण वर्ण फिर देवता.... वर्णों में आते हैं। वर्ण तो यहाँ ही हैं। सूक्ष्मवतन में तो वर्णों की बात ही नहीं है। ब्रह्मा को प्रजापिता कहते हैं। विष्णु को प्रजापिता नहीं कहेंगे। ब्रह्मा द्वारा तो एडाप्ट किया जाता है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण के तो बच्चे पैदा होते हैं, जो तख्त पर बैठते हैं। शंकर को भी प्रजापिता नहीं कहेंगे। यह भी जानते हो जैसी-जैसी भावना है वैसे-वैसे साक्षात्कार हो जाता है। बाकी वहाँ कोई सर्प आदि की बात नहीं है। बैल भी वहाँ हो न सके। सूक्ष्मवतन में तो है ही देवता। सूक्ष्मवतन में जाते हो - बगीचा, फल आदि देखते हो। क्या वहाँ बगीचा है? बाबा साक्षात्कार कराते हैं। बाकी है नहीं। बुद्धि कहती है वहाँ सूक्ष्मवतन में झाड़ आदि हो न सके। यह जरूर साक्षात्कार होता है। साक्षात्कार भी यहाँ का करायेंगे। यह सब हैं साक्षात्कार इसको जादूगरी का खेल कहते हैं। यह कोई ज्ञान नहीं है। मनुष्य-मनुष्य को बैरिस्टर बनाते हैं, वह कोई जादू नहीं कहेंगे। वह विद्या देते हैं। यह तुम्हारे को मनुष्य से देवता बनाते हैं नई दुनिया के लिए, इसलिए जादूगरी कहा जाता है। दिव्य दृष्टि की चाबी बाबा के पास होने कारण उनको जादूगर भी कहा जाता है। वह कहते हैं गुरू की कृपा है, मूर्ति से साक्षात्कार हुआ। उससे तो फायदा कुछ भी नहीं। यहाँ तो मेहनत कर स्वयं वह लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम बन रहे हो। यहाँ तुम आये हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी के रजवाड़े बनने।
पहली मुख्य बात है कोई नया आता है उसको बाप का परिचय दो। ब्रह्म तत्व, महतत्व है। शिवबाबा निराकार को कोई ब्रह्म तत्व नहीं कहेंगे। एक-एक अक्षर का अर्थ है। तुम ईश्वरीय बच्चे हो। ऐसे नहीं कि सब ईश्वर के रूप हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाकी साक्षात्कार आदि की तो चिटचैट है, इनकी आश नहीं रहनी चाहिए। समझते हैं अब खुद बाबा आया है, तो साक्षात्कार करा देवे, परन्तु यह सब है फालतू। फिर साक्षात्कार न होने से नाउम्मीद हो पढ़ाई छोड़ देते हैं। साक्षात्कार में प्रिन्स को देखते हैं तो समझते हैं हमको यह बनना है। खुशी हो जाती है। बहुत करके प्रिन्स का ही साक्षात्कार होता है। अगर विचार किया जाए तो मुकुटधारी तो सब बनते हैं। मेल-फीमेल में फर्क नहीं रहता है। सिर्फ फीमेल को लम्बे बाल हैं, थोड़ा शक्ल में फर्क है। आत्मायें कितनी हैं, एक का नाम रूप न मिले दूसरे से। आत्मा में अविनाशी पार्ट है जो कभी बदल नहीं सकता। कैसे वन्डरफुल खेल बना हुआ है। आत्मा को अनादि पार्ट मिला हुआ है। बाबा कितना सहज कर समझाते हैं। सिर्फ त्रिमूर्ति चित्र के सामने जाकर बैठो तो बुद्धि में सारा चक्र आ जायेगा। यह शिवबाबा है, यह ब्रह्मा है, जिससे ब्राह्मण रचते हैं। अभी कलियुग है फिर सतयुग आना है। चित्र सामने खड़ा होने से जैसे कि सारे विश्व का खेल बुद्धि में आ जाता है। कैसे चक्र फिरता है, खेल में कौन-कौन हैं, सब मालूम पड़ जाता है। रोज़ चित्रों को देखते रहो। विचार सागर मंथन करते रहो। यह नर्क है, यह स्वर्ग है, यह संगम है। कितना सहज है। रोज़ प्रैक्टिस करने से बुद्धि में रोशनी आ जायेगी। लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण के लिए भी लिखो। ब्रह्मा द्वारा सतयुग का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी-नारायण को यह प्रालब्ध कैसे मिली? जरूर संगमयुग ही होगा, जब ऐसे कर्म किये हैं। अन्तिम जन्म में पुरूषार्थ से उन्होंने यह प्रालब्ध पाई है। ऐसे-ऐसे ख्याल बुद्धि में आना चाहिए। फिर चित्रों की भी दरकार नहीं रहेगी। बुद्धि में सारा राज़ आ जायेगा। इन चित्रों से फिर दिल रूपी कागज पर उतारना है। बाबा सेन्टर्स के बच्चों का मुख खोलने की युक्ति बता रहे हैं। चित्रों को देखते रहो। अन्दर में बोलते रहो। रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ जानना है। झाड़ में क्लीयर है। तपस्या यहाँ कर रहे हैं राजयोग की। यह मनुष्य से देवता बनते हैं। फिर भक्ति मार्ग कैसे शुरू होता है। जो-जो, जिस-जिस धर्म के हैं, उसमें ही फिर आयेंगे। कितना सहज है। उन पर ही समझाना है। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, उनमें अनादि पार्ट नूँधा हुआ है। सतयुग में हम सुख का पार्ट बजायेंगे, इतने जन्म लेंगे। शमशान में भी जाकर किसको समझा सकते हो। जब तक मुर्दा जल जाये तब तक बैठ सतसंग करते हैं। तुमको कोई रोकेगा नहीं। बोलो आओ तुमको हम समझाये। सुनकर बहुत खुश होंगे। बात करने वाले बहुत समझदार, सयाने चाहिए कहाँ भी जाकर तुम समझा सकते हो। समझाते तो बाबा बहुत अच्छी तरह हैं। तुम्हारे कच्छ (बगल) में सच है। मनुष्यों के कच्छ में झूठी गीता है। तुम्हारे बगल में सारे विश्व की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। श्रीकृष्ण के चित्र पर भी तुम अच्छी तरह समझा सकते हो। इनको श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं, आओ तो हम आपको कहानी सुनायें। सुनकर बड़े खुश हो जायेंगे। भारत गोल्डन एज था। अब पत्थर एज है। सांवरा हो गया है। काम चिता पर बैठने से काला मुँह हो जाता है। तो ऐसे-ऐसे समझाने से तुम बहुत कमाल कर दिखा सकते हो। तीनों चित्र भल साथ में हो। एक चित्र पर समझाकर फिर दूसरे चित्र पर समझाना चाहिए। बहुत सहज है। सिर्फ पुरूषार्थ की बात है। टाइम तो बहुत है। सवेरे मन्दिरों में चले जाओ। आओ तो हम तुमको लक्ष्मी-नारायण की जीवन कहानी सुनायें। भक्ति मार्ग में यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते-करते तुम एकदम कौड़ी मिसल बन पड़े हो, फिर शास्त्रों ने क्या सहायता की? हम आपको सच बतलाते हैं, सच ही सहायता करते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है। बाकी साक्षात्कार आदि की आश नहीं रखनी है। नाउम्मीद बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
2) चित्रों को देखते विचार सागर मंथन कर हर बात को दिल में उतारना है। राजयोग की तपस्या करनी है।
वरदान: संगठन में न्यारे और प्यारे बनने के बैलेन्स द्वारा अचल रहने वाले निर्विघ्न भव
जैसे बाप बड़े से बड़े परिवार वाला है लेकिन जितना बड़ा परिवार है, उतना ही न्यारा और सर्व का प्यारा है, ऐसे फालो फादर करो। संगठन में रहते सदा निर्विघ्न और सन्तुष्ट रहने के लिए जितनी सेवा उतना ही न्यारा पन हो। कितना भी कोई हिलावे, एक तरफ एक डिस्टर्ब करे, दूसरे तरफ दूसरा। कोई सैलवेशन नहीं मिले, कोई इनसल्ट कर दे, लेकिन संकल्प में भी अचल रहें तब कहेंगे निर्विघ्न आत्मा।
स्लोगन: देही-अभिमानी स्थिति द्वारा तन-मन की हलचल को समाप्त करने वाले ही अचल अडोल रहते हैं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 30th Sep 2017 )
MURALI SUMMARY - HINGLISH VERSION
30.09.17 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Aapas me milkar is kaliyugi duniya se dukh ke chhapar ko uthana hai, Baap ko yaad karne ka punya karna hai.
Question- Gyan ki abinashi pralabdh hote huye bhi kai baccho ke punya ka khaata jama hone ke bajaye khatam kyun ho jata hai?
Ans- Kyunki punya karte-karte beech me paap kar lete. Gyani tu aatma kahalate huye sangdosh me aakar koi paap kiya to us paap ke kaaran kiye huye punya khatam ho jaate hain. .
.2-Baap ka bankar kaam bikar ki chot khayi, Baap ka haath chhoda to wo pehle se bhi adhik paap aatma ban jate. Usey kul-kalankit kaha jata hai. Wo bahut kadi saza ke bhagi ban jaate hain. Satguru ki neenda karane ke kaaran unhe thoor mil nahi sakta.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap bindi hai, is baat ko yathart samajhkar Baap ko yaad karna hai. Bindi-bindi kahkar moonjhna nahi hai. Service par tatpar rehna hai.
2) Sachchi geeta sunni aur sunani hai. Sachcha Brahman banne ke liye pavitra rehna hai. Regular padhai zaroor karni hai. >
Vardaan:- Apne shrest karm roopi darpan dwara Brahma baap ke karm dikhlane wale Baap samaan bhava
Slogan:-- Avyakt sthiti ka anubhav karne ke liye bahyamukhta ko chhod antarmukhi ekantvasi bano.
COMPLETE MURALI DETAILS IN HINDI .
30-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
"मीठे बच्चे - आपस में मिलकर इस कलियुगी दुनिया से दु:ख के छप्पर को उठाना है, बाप को याद करने का पुण्य करना है'
प्रश्न:
ज्ञान की अविनाशी प्रालब्ध होते हुए भी कई बच्चों के पुण्य का खाता जमा होने के बजाए खत्म क्यों हो जाता है?
उत्तर:
क्योंकि पुण्य करते-करते बीच में पाप कर लेते। ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हुए संगदोष में आकर कोई पाप किया तो उस पाप के कारण किये हुए पुण्य खत्म हो जाते हैं। 2- बाप का बनकर काम विकार की चोट खाई, बाप का हाथ छोड़ा तो वह पहले से भी अधिक पाप आत्मा बन जाते। उसे कुल-कलंकित कहा जाता है। वह बहुत कड़ी सज़ा के भागी बन जाते हैं। सतगुरू की निंदा कराने के कारण उन्हें ठौर मिल नहीं सकता।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों के साथ रूह-रिहान कर रहे हैं। यह तो आत्मा जानती है कि एक ही हमारा बेहद का बाप है, वह तो बच्चे समझ गये हैं। मंजिल है - मुक्ति जीवनमुक्ति की। मुक्ति के लिए याद की यात्रा जरूरी है और जीवनमुक्ति के लिए रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना जरूरी है। अब है दोनों ही सहज। सृष्टि का, 84 जन्मों का चक्र फिरता रहता है। यह तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए। अब हमारा 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है। अब हमें जाना है वापिस घर। अब वापिस तो कोई जा नहीं सकते क्योंकि पाप आत्मा हैं। पाप आत्मायें मुक्ति-जीवनमुक्ति में जा नहीं सकती। ऐसे-ऐसे विचार करने होते हैं। जो करेगा सो पायेगा और खुशी में रहेगा तथा दूसरों को भी खुशी में लायेगा। तुम बच्चों को कृपा व मेहर करनी है - सबको रास्ता बताने की। समझाना है - तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान से अब तमोप्रधान बन गई है - इसलिए वापिस जा नहीं सकती। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन, बच्चे जानते हैं कि अभी पुरूषोत्तम संगमयुग है। यह भी किसको अच्छी रीति याद रहता है, किसको याद नहीं रहता है। घड़ी-घड़ी भूल जाता है। परन्तु तुमको अगर संगमयुग याद रहे तो भी खुशी का पारा चढ़ा रहे। बाप टीचर याद रहे तो भी खुशी का पारा चढ़ा रहे। किसको बड़ा रोला (विघ्न) बीच में पड़ता, किसको थोड़ा पड़ता। पड़ता तो जरूर है। कई ऊपर जाकर फिर नीचे आ जाते हैं। कोई की अवस्था अच्छी होती है तो दिल पर चढ़ जाते हैं, फिर नीचे गिरते हैं तो की कमाई चट हो जाती है। जैसे दुनिया में कितना दान-पुण्य करते हैं इसलिए कि पुण्य आत्मा बनें। फिर अगर पुण्य करते-करते पाप कर्म करने लग पड़ते तो पाप आत्मा बन पड़ते हैं। तुम्हारा पुण्य है ही बाप को याद करने में। याद से ही तुम्हारी आत्मा पुण्य आत्मा बनती है। तो अगर बाप को ही भूल जायें, दूसरे का संग लग जाए तो बहुत पाप करने से जो कुछ पुण्य किया वह भी खत्म हो जाता है। समझो आज दान पुण्य करते हैं, सेन्टर खोलते हैं कल फिर बेमुख हो जाते हैं तो पहले से भी जास्ती गिर जाते हैं क्योंकि पाप करते हैं ना। तो वह खाता जमा के बदले ना हो जाता है। पहले बहुत अच्छी सर्विस करते थे, बात मत पूछो फिर एकदम गिर जाते हैं। शादी कर लेते हैं। पहले से भी जास्ती खराब हो जाते हैं। पाप करने से फिर वह पाप का बोझा चढ़ता जाता है। जमा और ना की जैसे मुरादी (कमाई) सम्भाली जाती है ना। परन्तु इन बातों को भी कोई समझने वाला ही समझे। पाप भी कोई हल्का, कोई बड़ा होता है। काम का सबसे कड़ा, क्रोध सेकेण्ड, लोभ उनसे कम, मोह उनसे कम। नम्बरवार होते हैं। काम की चोट खाने से फायदे के बदले नुकसान हो जाता है क्योंकि सतगुरू की निंदा कराई तो ठौर पा न सकें। वह दिल से उतर जायेंगे। बाप का बनकर बाप को छोड़ देते हैं फिर उसके कर्म पर भी होता है। कारण क्या? चल न सका। अक्सर करके काम की चोट जास्ती लगती है। यही मुख्य दुश्मन है। कब सुना - क्रोध की एफीजी जलाई। नहीं। कामी की बनाते हैं। रावण ठहरा ना। बाप कहते हैं काम पर जीत पाने से जगतजीत बनेंगे। बिल्कुल हरा बैठे हैं, तो जीत के बदले हार हो जाती है। बाप को बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ, काम से बहुत पीड़ित होते हैं। फिर कहते हैं बाबा काला मुँह कर दिया। बाबा कहेंगे तुम तो कुल कलंकित हो। क्रोध वा मोह के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। सारा मदार है काम पर। बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ। बाप आया है फिर भी पतित बनते रहे तो बाप क्या कहेंगे। साधू सन्त आदि सब कोई पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ। अर्थ कोई नहीं समझते हैं। कोई मानते हैं कि हाँ आने वाला है जो नई दुनिया स्थापन करेंगे। परन्तु टाइम बहुत लम्बा दे देने से घोर अन्धियारे में गिर पड़े हैं। ज्ञान और अज्ञान है ना।
बाप समझाते हैं भक्ति में तुम जिसकी पूजा करते हो उसे जानते नहीं तो वह भक्ति किस काम की। न जानने के कारण जो कुछ करते वह निष्फल हो जाता है। मनुष्य समझते हैं दान-पुण्य करने से फल मिलता है। परन्तु वह है अल्पकाल के लिए, काग विष्टा के समान सुख। सन्यासी भी कहते हैं यह दुनिया में जो सुख मिलता है वह काग विष्टा समान है, बाकी सब दु:ख ही दु:ख है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। विचार करो कि हम कितना याद करते हैं। जो पुराना हिसाब खत्म भी हो और नया जमा भी हो। कितना कोई जमा करते हैं, इसमें धन आदि की बात नहीं है। यह तो है कि पाप कैसे मिटे? मूल बात है ही पवित्र बनने की। ऐसे भी नहीं समझो कि बाबा को लिखकर देने से कोई जन्म-जन्मान्तर का खत्म हो जायेगा। पापों का बोझा जन्म-जन्मान्तर का बहुत है। वह सब नहीं कटते हैं। इस जन्म में जो किये हैं, उसकी हल्काई हो जाती है। बाकी तो मेहनत बहुत करनी पड़े। जितना याद में रहेंगे उतना पापों का बोझा हल्का होता जायेगा। कोई बच्चे बहुत मेहनत करते हैं, लाखों को रास्ता बताते हैं। 84 जन्म का चक्र समझाते हैं। जन्मों के हिसाब को तुम जानते हो। विचार करो कितना योगबल है, हमारा जन्म कब होगा? सतयुग आदि में हो सकेगा? जो बहुत पुरूषार्थ करेंगे वही सतयुग आदि में जन्म ले सकेंगे। वह कोई छिपा थोड़ेही रहेगा। ऐसे मत समझो कि सभी कोई सतयुग में आयेंगे। कोई तो पिछाड़ी में आकर थोड़ा बहुत ले लेते हैं। जो जास्ती कमाई करते हैं वह जल्दी आते हैं। कम कमाई करते तो देरी से आते हैं इसलिए बाप को तो बहुत याद करना चाहिए और है भी बहुत सहज। जो अच्छी रीति याद करेंगे उनको खुशी रहेगी। हम जल्दी नई दुनिया में आयेंगे। राजा बनना है तो प्रजा भी तो बनानी है ना। प्रजा ही नहीं बनायेंगे तो राजा कैसे बनेंगे। कोई सेन्टर खोलते हैं। उनकी कमाई भी बहुत होती है। फायदा होता है तो 2-3 सेन्टर भी खोलते हैं। सेन्टर तो बाबा भी खोलते रहते हैं। जो करते हैं उनका हिसाब उसमें आ जाता है। मिलकर तुम सब दु:ख का छप्पर उठाते हो ना! सबका कंधा मिलता है ना। तो हिसाब सबको मिलता है। जितना मेहनत करते हैं, उतना ऊंच पद मिलेगा। उनको खुशी भी बहुत होगी। देखा जाता है - कितनों का उद्धार किया। सर्विस बहुत अच्छी करते रहते। जैसे मिसाल देते हैं मम्मा का। मम्मा ने बहुत अच्छी सर्विस की तो उनका कितना कल्याण हो गया। मूल बात है सर्विस करने की। योग की भी सर्विस है ना। डायरेक्शन मिलते रहते हैं। कैसे याद करना है। यह बिन्दी का राज़ भी बाबा ने अब समझाया है। अब आगे चल और भी सुनाते रहेंगे। दिन-प्रतिदिन उन्नति होती जायेगी। प्वाइंट्स निकलती रहती हैं, बहुत डिफीकल्ट भी नहीं है। सहज भी नहीं है। जो सर्विस में तत्पर हैं, वह झट प्वाइंट को पकड़ लेते हैं। जो सर्विस में नहीं रहते उनकी बुद्धि में कुछ भी नहीं बैठता। बिन्दी-बिन्दी कहते रहते परन्तु कैसे बिन्दी को याद करें, कैसे बिन्दी को देखें, है बहुत सहज बात। कोई बिन्दी को सामने रख थोड़ेही याद करना है। यह तो समझने की बात है। आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है। आत्मा का नाम, रूप, देश, काल कोई बता नहीं सकेगा। परमात्मा के लिए पूछते हैं - उनका नाम रूप देश काल क्या है? बेसमझ मनुष्य न आत्मा को जानते, न परमात्मा को जानते हैं। यहाँ भी हैं जो पूरी रीति नहीं जानते हैं सिर्फ बाबा-बाबा कहते रहते। नॉलेज कहाँ सीखते हैं। कुछ भी सर्विस करते नहीं। खाते रहते हैं। जैसे सन्यासियों के पास भी अवधूत होते हैं, जो करते कुछ भी नहीं, खाते रहते हैं। बाकी सन्यास धारण किया है, विकार से छूट गये वह भी कम बात नहीं। सन्यासियों का धर्म ही अलग है। यह ज्ञान है ही तुम बच्चों के लिए।
बाबा समझाते हैं तुम पवित्र थे, अभी अपवित्र बन गये हो। तुमने ही 84 जन्मों का चक्र लगाया है। इन बातों को भी मनुष्य समझ नहीं सकते। भक्ति बिल्कुल अलग है, ज्ञान बिल्कुल ही अलग बात है। रात-दिन का फर्क है। तुम जानते हो हमको पुरूषार्थ से लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है तो श्रीमत पर पूरा चलना है। मेहनत तो है। बाकी यह बीमारी आदि तो चलती रहेगी। यह निशानी अन्त तक दिखाई देगी। फिर गुम हो जाती है, फिर कोई दु:ख नहीं रहेगा। बाप को कहते ही हैं दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, हे लिबरेटर रहम करो तो फिर सब दु:ख से छूट जाते हैं। दु:ख में ही मनुष्य बहुत सिमरण करते हैं। हे प्रभू, हे राम, दु:ख के टाइम सब कहेंगे - भगवान को याद करो। परन्तु भगवान कौन है - यह कोई नहीं जानते। सिर्फ कहेंगे गॉड फादर को याद करो। खुदा को याद करो। तुम तो अच्छी रीति जानते हो वह हमारा बाप है। बाप ही सिखलाते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। भक्ति मार्ग में ऐसे कहेंगे क्या कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। नहीं। कितने प्रकार की अथाह भक्ति है। ज्ञान एक ही है। समझते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। भक्ति कब से शुरू होती है, कौन जास्ती भक्ति करता है? यह किसको पता नहीं है। क्या अजुन 40 हजार वर्ष भक्ति ही करते रहेंगे? कहाँ तक भक्ति करेंगे? अभी तुम जानते हो इतना समय भक्ति चलती है, इतना समय ज्ञान चलता है। भक्तों को पता नहीं चलता है, उन्हों को समझाने के लिए ही इतनी प्रदर्शनी आदि करते हैं। प्रदर्शनी में भी कोटों में कोई निकलते हैं। आगे चल करके और निकलेंगे। यहाँ भी कितने ढेर आते हैं। तुम कितने थोड़े हो जो सच्चे ब्राह्मण पवित्र रहते हो, जो रेग्युलर हो वह आवे। परन्तु यह भी हिसाब निकाल न सकें कि सच्चे ब्राह्मण कितने हैं? बहुत झूठे भी हैं। ब्राह्मणों का काम ही है कथा सुनाना। बाबा भी कथा सुनाते रहते हैं ना। तुमको भी कथा सुनानी है। यथा बाप तथा बच्चे। बच्चों का काम ही है गीता सुनाना। परन्तु सब कहाँ सुनाते हैं। तुम जानते हो ज्ञान की पुस्तक एक ही गीता है। वह है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी, उसमें सब आ गया। माई बाप है गीता। बाप ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। यह भी लिख सकते हो कि शिवबाबा की जयन्ति ही हीरे-तुल्य है। बाकी सबकी जयन्तियाँ कौड़ी तुल्य हैं। बाप को तो सब याद करते हैं। कलियुगी मनुष्य सतयुगी देवताओं की पूजा करते हैं। उन्हों को ऐसा बनाने वाला कौन है? एक बाप। परन्तु यह भी समझा वह सकेंगे जो अच्छी रीति समझते हैं। कायदेमुज़ीब कोई समझाते नहीं।
बाबा कहते हैं हमारे कई बच्चे कन्स्ट्रक्शन के साथ डिस्ट्रक्शन भी करने वाले हैं। महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे सब हैं ना। तो प्यादे क्या करेंगे? पढ़े लिखे के आगे भरी ढोयेंगे। बाकी जो न भरी ढोयेंगे, न पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे उनको क्या कहेंगे? ऊंट पक्षी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप बिन्दी है, इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद करना है। बिन्दी-बिन्दी कहकर मूँझना नहीं है। सर्विस पर तत्पर रहना है।
2) सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। सच्चा ब्राह्मण बनने के लिए पवित्र रहना है। रेगुलर पढ़ाई जरूर करनी है।
वरदान:अपने श्रेष्ठ कर्म रूपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाने वाले बाप समान भव!
एक-एक ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो। ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण में दिखाई दें। जो बच्चे इतना अटेन्शन रखकर हर कर्म करते हैं उनका बोलना, चलना, उठना, बैठना सब ब्रह्मा बाप के समान होगा। हर कर्म वरदान योग्य होगा, मुख से सदैव वरदान निकलते रहेंगे। फिर साधारण कर्म में भी विशेषता दिखाई देगी। तो यह सर्टीफिकेट लो तब कहेंगे बाप समान।
स्लोगन:अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए बाह्यमुखता को छोड़ अन्तर्मुखी एकान्तवासी बनो।
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