Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
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11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
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14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
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19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 21-Nov-2018 )
21-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - पावन बन गति-सद्गति के लायक बनो। पतित आत्मा गति-सद्गति के लायक नहीं। बेहद का बाप तुम्हें बेहद का लायक बनाते हैं।"
प्रश्नः-
पिताव्रता किसे कहेंगे? उसकी मुख्य निशानी सुनाओ?
उत्तर:-[font=Calibri] [/font]
पिताव्रता वह है जो बाप की श्रीमत पर पूरा चलते हैं, अशरीरी बनने का अभ्यास करते हैं, अव्यभिचारी याद में रहते हैं, ऐसे सपूत बच्चे ही हर बात की धारणा कर सकेंगे। उनके ख्यालात सर्विस के प्रति सदा चलते रहेंगे। उनका बुद्धि रूपी बर्तन पवित्र होता जाता है। वह कभी भी फ़ारकती नहीं दे सकते हैं।
गीत:-
मुझको सहारा देने वाले........
ओम् शान्ति।
बच्चे शुक्रिया मानते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सब एक जैसी शुक्रिया नहीं मानते, जो अच्छे निश्चयबुद्धि होंगे और जो बाप की सर्विस पर दिल व जान, सिक व प्रेम से उपस्थित हैं, वो ही अन्दर में शुक्रिया मानते हैं - बाबा कमाल है आपकी, हम तो कुछ नहीं जानते थे। हम तो लायक नहीं थे - आपसे मिलने के। सो तो बरोबर है, माया ने सबको न लायक बना दिया है। उनको पता ही नहीं है कि स्वर्ग का लायक कौन बनाता है और फिर नर्क का लायक कौन बनाते हैं? वह तो समझते हैं कि गति और सद्गति दोनों का लायक बनाते हैं बाप। नहीं तो वहाँ के लायक कोई हैं नहीं। खुद भी कहते हैं हम पतित हैं। यह दुनिया ही पतित है। साधू-सन्त आदि कोई भी बाप को नहीं जानते। अभी बाप ने तुम बच्चों को अपना परिचय दिया है। कायदा भी है बाप को ही आकर परिचय देना है। यहाँ ही आकर लायक बनाना है, पावन बनाना है। वहाँ बैठे अगर पावन बना सकते तो फिर इतने ना लायक बनते ही क्यों?
तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही निश्चयबुद्धि हैं। बाप का परिचय कैसे देना चाहिए - यह भी अक्ल होना चाहिए। शिवाए नम: भी जरूर है। वही मात-पिता ऊंच ते ऊंच है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो रचना हैं। उनको क्रियेट करने वाला जरूर बाप होगा, माँ भी होनी चाहिए। सबका गॉड फादर तो एक है जरूर। निराकार को ही गॉड कहा जाता है। क्रियेटर हमेशा एक ही होता है। पहले-पहले तो परिचय देना पड़े अल्फ का। यह युक्तियुक्त परिचय कैसे दिया जाए - वह भी समझना है। भगवान् ही ज्ञान का सागर है, उसने ही आकर राजयोग सिखाया। वह भगवान् कौन है? पहले अल्फ की पहचान देनी है। बाप भी निराकार है, आत्मा भी निराकार है। वह निराकार बाप आकर बच्चों को वर्सा देते हैं। किसी के द्वारा तो समझायेंगे ना। नहीं तो राजाओं का राजा कैसे बनाया? सतयुगी राज्य किसने स्थापन किया? हेविन का रचयिता कौन है? जरूर हेविनली गॉड फादर ही होगा। वह निराकार होना चाहिए। पहले-पहले फादर की पहचान देनी पड़ती है। कृष्ण को और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को फादर नहीं कहेंगे। उनको तो रचा जाता है। जब सूक्ष्मवतन वालों को भी रचा जाता है, वह भी क्रियेशन है फिर स्थूल वतन वालों को भगवान् कैसे कहेंगे। गाया जाता है देवताए नम:, वह है शिवाए नम:, मुख्य है ही यह बात। अब प्रदर्शनी में तो घड़ी-घड़ी एक बात नहीं समझायेंगे। यह तो एक-एक को अच्छी रीति समझाना पड़े। निश्चय कराना पड़े। जो भी आये, उनको पहले यह बताना है कि आओ तो तुमको फादर का साक्षात्कार करायें। फादर से ही तुमको वर्सा मिलना है। फादर ने ही गीता में राजयोग सिखाया है। कृष्ण ने नहीं सिखाया। बाप ही गीता के भगवान् हैं। नम्बरवन बात है यह। कृष्ण भगवानुवाच नहीं है। रूद्र भगवानुवाच वा सोमनाथ, शिव भगवानुवाच कहा जाता है। हर एक मनुष्य की जीवन कहानी अपनी-अपनी है। एक न मिले दूसरे से। तो जो भी आये तो पहले-पहले इस बात पर समझाना है। मूल बात समझाने की यह है। परमपिता परमात्मा का आक्यूपेशन यह है। वह बाप है, यह बच्चा है। वह हेविनली गॉड फादर है, यह हेविनली प्रिन्स है। यह बिल्कुल क्लीयर कर समझाना है। मुख्य है गीता, उनके आधार पर ही और शास्त्र हैं। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता है। मनुष्य कहते हैं तुम शास्त्र, वेद आदि को मानते हो? अरे, हर एक अपने धर्म शास्त्र को मानेंगे। सभी शास्त्रों को थोड़ेही मानेंगे। हाँ, सब शास्त्र हैं जरूर। परन्तु शास्त्रों को जानने से भी पहले मुख्य बात है बाप को जानना, जिससे वर्सा मिलना है। वर्सा शास्त्रों से नहीं मिलेगा, वर्सा मिलता है बाप से। बाप जो नॉलेज देते हैं, वर्सा देते हैं, उसका पुस्तक बना हुआ है। पहले-पहले तो गीता को उठाना पड़े। गीता का भगवान् कौन है? उसमें ही राजयोग की बात आती है। राजयोग जरूर नई दुनिया के लिए ही होगा। भगवान् आकर पतित तो नहीं बनायेंगे। उनको तो पावन महाराजा बनाना है। पहले-पहले बाप का परिचय दे और यह लिखाओ - बरोबर मैं निश्चय करता हूँ यह हमारा बाप है। पहले-पहले समझाना है शिवाए नम:, तुम मात-पिता........ महिमा भी उस बाप की ही है। भगवान् को भक्ति का फल भी यहाँ आकर देना है। भक्ति का फल क्या है, यह तुम समझ गये हो। जिसने बहुत भक्ति की है, उनको ही फल मिलेगा। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं। समझाया जाता है तुम्हारे बेहद के माँ-बाप वह हैं। जगत अम्बा, जगत पिता भी गाये जाते हैं। एडम और ईव तो मनुष्य को समझते हैं। ईव को मदर कह देते। राइट-वे में ईव कौन है, यह तो कोई नहीं जानते। बाप बैठ समझाते हैं। हाँ, कोई फट से तो नहीं समझ जायेगा। पढ़ाई में टाइम लगता है। पढ़ते-पढ़ते आकर बैरिस्टर बन जाते हैं। एम ऑबजेक्ट जरूर है, देवता बनना है तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। गाते भी हैं तुम मात-पिता........ और दूसरा फिर कहते हैं पतित-पावन आओ। तो पतित दुनिया और पावन दुनिया किसको कहा जाता है, क्या कलियुग अभी 40 हजार वर्ष और रहेगा? अच्छा, भला पावन बनाने वाला तो वह एक बाप है ना। हेविन स्थापन करने वाला है गॉड फादर। कृष्ण तो हो न सके। वह तो वर्सा लिया हुआ है। वह श्रीकृष्ण है हेविन का प्रिन्स और शिवबाबा है हेविन का क्रियेटर। वह है क्रियेशन, फर्स्ट प्रिन्स। यह भी क्लीयर कर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए तो तुमको समझाने में सहज होगा। रचयिता और रचना का मालूम पड़ जायेगा। क्रियेटर ही नॉलेजफुल है। वही राजयोग सिखलाते हैं। वह कोई राजा नहीं है, वह राजयोग सिखलाए राजाओं का राजा बनाते हैं। भगवान् ने राजयोग सिखाया है, श्रीकृष्ण ने राज्य पद पाया है, उसने ही गंवाया है, उसको ही फिर पाना है। चित्रों द्वारा बहुत अच्छा समझाया जा सकता है। बाप का आक्यूपेशन जरूर चाहिए। श्रीकृष्ण का नाम डालने से भारत कौड़ी जैसा बन गया है। शिवबाबा को जानने से भारत हीरे जैसा बनता है। परन्तु जब बुद्धि में बैठे कि यह हमारा बाप है। बाप ने ही पहले-पहले नई स्वर्ग की दुनिया रची। अभी तो पुरानी दुनिया है। गीता में है राजयोग। विलायत वाले भी चाहते हैं राजयोग सीखें। गीता से ही सीखे हैं। अभी तुम जान गये हो, कोशिश करते हो औरों को भी समझायें कि फादर कौन है? वह सर्वव्यापी नहीं है। अगर सर्वव्यापी है तो फिर राजयोग कैसे सिखलायेंगे? इस मिस्टेक पर खूब ख्याल चलना चाहिए। जो सर्विस पर तत्पर होंगे उनके ही ख्यालात चलेंगे। धारणा भी तब होगी जब बाप की श्रीमत पर चलेंगे, अशरीरी भव, मनमनाभव हो रहें, पतिव्रता वा पिताव्रता बनें अथवा सपूत बच्चा बनें।
बाप फ़रमान करते हैं जितना हो सके याद को बढ़ाते रहो। देह-अभिमान में आने से तुम याद नहीं करते, न बुद्धि पवित्र होती है। शेरनी के दूध के लिए कहते हैं सोने का बर्तन चाहिए। इसमें भी पिताव्रता बर्तन चाहिए। अव्यभिचारी पिताव्रता बहुत थोड़े हैं। कोई तो बिल्कुल जानते नहीं। जैसे छोटे बच्चे हैं। बैठे भल यहाँ हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं। जैसे बच्चे को छोटेपन में ही शादी करा देते हैं ना। गोद में बच्चा ले शादी कराई जाती है। एक-दो में दोस्त होते हैं। बहुत प्रेम होता है तो झट शादी करा देते हैं तो यह भी ऐसे है। सगाई कर ली है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। हम मम्मा-बाबा के बने हैं, उनसे वर्सा लेना है। कुछ भी नहीं जानते। वन्डर है ना। 5-6 वर्ष रहकर भी फिर बाप को अथवा पति को फ़ारकती दे देते हैं। माया इतना तंग करती है।
तो पहले-पहले सुनाना चाहिए - शिवाए नम:। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी रचयिता यह है। ज्ञान का सागर यह शिव है। तो अब क्या करना चाहिए? त्रिमूर्ति के बाजू में जगह पड़ी है, उस पर लिखना चाहिए कि शिवबाबा और कृष्ण दोनों के आक्यूपेशन ही अलग हैं। पहली बात यह जब समझाओ तब कपाट खुलें। और पढ़ाई है भविष्य के लिए। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। शास्त्रों से यह अनुभव नहीं हो सकता। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम पढ़ते हैं सतयुग आदि के लिए। स्कूल पूरा होगा और हमारा फाइनल पेपर होगा। जाकर राज्य करेंगे। गीता सुनाने वाले ऐसी बातें समझा नहीं सकते। पहले तो बाप को जानना है। बाप से वर्सा लेना है। बाप ही त्रिकालदर्शी हैं, और कोई मनुष्य दुनिया में त्रिकालदर्शी नहीं। वास्तव में जो पूज्य हैं वही फिर पुजारी बनते हैं। भक्ति भी तुमने की है, और कोई नहीं जानते। जिन्होंने भक्ति की है वही पहले नम्बर में ब्रह्मा फिर ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। आपेही पूज्य भी यह बनते हैं। पहले नम्बर में पूज्य ही फिर पहले नम्बर में पुजारी बनें हैं, फिर पूज्य बनेंगे। भक्ति का फल भी पहले उन्हें मिलेगा। ब्राह्मण ही पढ़कर फिर देवता बनते हैं - यह कहाँ लिखा हुआ नहीं है। भीष्म पितामह आदि को मालूम तो पड़ा है ना कि इन्हों से ज्ञान बाण मरवाने वाला कोई और है। यह समझेंगे जरूर कि कोई त़ाकत है। अभी भी कहते हैं कोई त़ाकत है जो इन्हों को सिखाती है।
बाबा देखते हैं यह सब मेरे बच्चे हैं। इन आंखों से ही देखेंगे। जैसे पित्र (श्राद्ध) खिलाते हैं तो आत्मा आती है और देखती है - यह फलाने हैं। खायेगा तो आंखे आदि उनके जैसी बन जायेंगी। टैप्रेरी लोन लेते हैं। यह भारत में ही होता है। प्राचीन भारत में पहले-पहले राधे-कृष्ण हुए। उन्हों को जन्म देने वाले ऊंच नहीं गिने जायेंगे। वह तो कम पास हुए हैं ना। महिमा शुरू होती है कृष्ण से। राधे कृष्ण दोनों अपनी-अपनी राजधानी में आते हैं। उन्हों के मां-बाप से बच्चे का नाम जास्ती है। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। गुप्त खुशी रहती है। बाप कहते हैं मैं साधारण तन में ही आता हूँ। इतना माताओं का झुण्ड सम्भालना है इसलिए साधारण तन लिया है, जिससे खर्चा चलता रहा। शिवबाबा का भण्डारा है। भोला भण्डारी, अविनाशी ज्ञान रत्नों का भी है और फिर एडाप्टेड बच्चे हैं, उन्हों की भी सम्भाल होती आती है। यह तो बच्चे ही जाने।
पहले-पहले जब शुरू करो तो बोलो शिव भगवानुवाच - वह सबका रचयिता है फिर कृष्ण को ज्ञान सागर, गॉड फादर कैसे कह सकते? लिखत ऐसी क्लीयर हो जो पढ़ने से अच्छी रीति बुद्धि में बैठे। कोई-कोई को तो दो तीन वर्ष लगते हैं समझने में। भगवान् को आकर भक्ति का फल देना है। ब्रह्मा द्वारा बाप ने यज्ञ रचा। ब्राह्मणों को पढ़ाया, ब्राह्मण से देवता बनाया। फिर नीचे आना ही है। बड़ी अच्छी समझानी है। पहले यह सिद्धकर बताना है - श्रीकृष्ण हेविनली प्रिन्स है, हेविनली गॉड फादर नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान से बिल्कुल ही तमोप्रधान बन गये हैं। जिसने बादशाही दी, उनको भूल गये हैं। कल्प-कल्प बाबा राज्य देते हैं और हम फिर बाबा को भूल जाते हैं। बड़ा वन्डर लगता है। सारा दिन खुशी में नाचना चाहिए। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अव्यभिचारी पिताव्रता हो रहना है। याद को बढ़ाते बुद्धि को पवित्र बनाना है।
2) बाप का युक्तियुक्त परिचय देने की विधि निकालनी है। विचार सागर मंथन कर अल्फ को सिद्ध करना है। निश्चयबुद्धि बन सेवा करनी है।
वरदान:-स्वउन्नति का यथार्थ चश्मा पहन एक्जैम्पुल बनने वाले अलबेलेपन से मुक्त भव
जो बच्चे स्वयं को सिर्फ विशाल दिमाग की नज़र से चेक करते हैं, उनका चश्मा अलबेलेपन का होता है, उन्हें यही दिखाई देता है कि जितना भी किया है उतना बहुत किया है। मैं इन-इन आत्माओं से अच्छा हूँ, थोड़ी बहुत कमी तो नामीग्रामी में भी है। लेकिन जो सच्ची दिल से स्वयं को चेक करते हैं उनका चश्मा यथार्थ स्वउन्नति का होने के कारण सिर्फ बाप और स्वयं को ही देखते, दूसरा, तीसरा क्या करता - यह नहीं देखते। मुझे बदलना है बस इसी धुन में रहते हैं, वह दूसरों के लिए एक्जैम्पल बन जाते हैं।
स्लोगन:-हदों को सर्व वंश सहित समाप्त कर दो तो बेहद की बादशाही का नशा रहेगा।
21/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, become pure and worthy of receiving liberation and salvation. Impure souls are not worthy of receiving liberation or salvation. The unlimited Father is making you worthy in an unlimited way.
Question:
Whom would you call faithful to the Father? Say what their main signs are.
Answer:
Those who fully follow the Father's shrimat, who practise being bodiless and who stay in unadulterated remembrance are faithful to the Father. Only such worthy children are able to imbibe everything. They constantly continue to have thoughts of service. The vessels of their intellects continue to become pure. They can never divorce the Father.
Song:
The heart says thanks to the One who has given it support!
Om Shanti
Children say thanks, numberwise, according to their efforts. Not everyone says thanks to the same extent. Those souls who have very good faith in their intellects and who are engaged in the Father's service wholeheartedly with a lot of love are the ones who say thanks from within: Baba, it is Your wonder. We didn't know anything. We were not worthy of meeting You. That is true. Maya has made everyone unworthy. They don't know who makes you worthy of heaven and who makes you worthy of hell. They believe that it is the Father who makes you worthy of both liberation and salvation. Otherwise, no one is worthy of that. They say of themselves that they are impure. This world is impure. Sages and holy men etc. don't know the Father. The Father has now given you children His introduction. The law is that the Father Himself has to come to give His introduction. He has to come here and make you worthy and pure. If He were able to make you pure from where He is sitting up there, why would you become so unworthy? Among you children too, the faith you have in your intellects is numberwise according to the efforts you make. You should have the wisdom of knowing how to give the Father's introduction. It is definitely said: Salutations to Shiva. He alone is the Mother and Father, the Highest on High. Brahma, Vishnu and Shankar are a creation. It must definitely have been the Father who created them. There would also be the Mother. God, the Father of All, is definitely One. Only the incorporeal One is called God. The Creator is always just the One. First of all, you have to give the introduction of Alpha. You also need to understand how to give the introduction in a tactful way. God alone is the Ocean of Knowledge. He alone came and taught you Raja Yoga. Who is that God? First of all, give the recognition of Alpha. The Father is incorporeal and souls are also incorporeal. That incorporeal Father comes and gives you children the inheritance. He would have to explain through someone. How else did He make you into kings of kings? Who established the golden-aged kingdom? Who is the Creator of heaven? It would definitely be Heavenly God, the Father. It has to be the incorporeal One. First of all, you have to give the Father's introduction. Krishna, Brahma, Vishnu and Shankar would not be called the Father; they are created. If the residents of the subtle region are created and they too are a creation, then how could those of the corporeal world be called God? It is remembered: Salutations to the deities. The other is: Salutations to Shiva. This is the main thing. You wouldn't repeatedly explain the same thing in an exhibition. Here, you have to explain to each one very well and inspire them to have faith. Whoever comes, first of all tell them: Come and we can give you a vision of the Father. You are to receive the inheritance from the Father. It is the Father, not Krishna, who taught you Raja Yoga in the Gita. The Father Himself is the God of the Gita. This is the number one thing. It is not that God Krishna speaks. It is said: God Rudra speaks. Or: God Somnath speaks. Or: God Shiva speaks. Every human being’s life story is individual; one cannot be the same as another’s. Whoever comes, first of all explain this aspect to them. This is the main thing to explain. This is the occupation of the Supreme Father, the Supreme Soul. That One is the Father and this one is a child. He is Heavenly God, the Father, whereas this one is the heavenly prince. You have to explain this very clearly. The main thing is the Gita, because all the other scriptures are based on that. It is said: The Bhagawad Gita is the jewel, the mother, of all scriptures. People ask: Do you believe in the Vedas and scriptures? Oh! everyone would definitely believe in the scripture of his own religion. They would not believe in all the scriptures. Yes, there definitely are all the scriptures but, before knowing the scriptures, the main thing is to first know the Father from whom you are to receive the inheritance. You don't receive the inheritance from the scriptures. You receive the inheritance from the Father. They have made a book of the knowledge and the inheritance that the Father gave. First of all, you have to take up the Gita. Who is the God of the Gita? It is in that that Raja Yoga is mentioned. Raja Yoga would surely be for the new world. God would not come and make everyone impure. He has to create pure emperors. First of all, give the Father's introduction and make them write: I truly have the faith that this is my Father. First of all, you have to explain: Salutations to Shiva. You are the Mother and You are the Father. The praise is of that Father. God has to come here to give the fruit of devotion. You have now understood what the fruit of devotion is. Only those who have done a lot of devotion will receive that fruit. These things are not mentioned in the scriptures. Among you too, you know this, numberwise, according to the efforts you make. It is explained that He is your unlimited Mother and Father. Jagadamba and Jagadpita are also remembered. Adam and Eve are understood to be human beings. They call Eve the mother. No one knows in the right way who Eve is. The Father sits here and explains. Yes, no one understands it instantly. A study takes time. By studying, they eventually become barristers. There definitely is an aim and objective . If you have to become deities, you first of all have to give the Father's introduction. People sing: You are the Mother and Father. Then, they also say: O Purifier, come! So what is called the impure world and what is called the pure world? Will the iron age still remain for another 40,000 years? Achcha, the One who makes you pure is the one Father, is He not? It is God, the Father, who establishes heaven. It cannot be Krishna; he received the inheritance. That Shri Krishna is the prince of heaven whereas Shiv Baba is the Creator of heaven. That one is a creation, the first prince. You should make this clear and write it in big letters so that it will be easy for you to explain. They would then know about the Creator and the creation. Only the Creator is knowledge-full. He is the One who teaches you Raja Yoga. He is not a king. He teaches you Raja Yoga and makes you into kings of kings. God taught Raja Yoga and Shri Krishna attained the royal status. He lost it and he has to attain it again. This can be explained very well using the pictures. The Father's occupation is definitely needed. By putting Shri Krishna’s name, Bharat becomes like a shell. By knowing Shiv Baba, Bharat becomes like a diamond. However, it first has to sit in your intellects that He is your Father. It is the Father who first of all created the new world of heaven. It is now the old world. Raja Yoga is mentioned in the Gita. People abroad also want to study Raja Yoga. They have studied it from the Gita. You now know it and you try to explain to others who the Father is. He is not omnipresent. If He were omnipresent, how would He teach us Raja Yoga? You should think a great deal about this mistake . Only those who remain engaged in service will continue to think about this. You will be able to imbibe knowledge when you follow the Father's shrimat, when you become bodiless, remain “Manmanabhav”, become a faithful bride who remains faithful to the Father, that is, when you become a worthy child. The Father orders you: Continue to increase your remembrance as much as possible. By coming into body consciousness, neither do you remember Me nor does your intellect become pure. It is said that a golden vessel is needed to hold the milk of a lioness. Here, a vessel that is faithful to the Father is needed. There are very few who are unadulterated and faithful to the Father. Some don’t know anything at all; they are like little children. Although they are sitting here, they don’t understand anything. It is like getting children married in their childhood. The parents make them sit on their laps and get them married. They would be friends and they would have a lot of love and so the parents would quickly get their children married. So this is the same. They want to get engaged but they don’t understand anything. We belong to Mama and Baba and we have to claim our inheritance from Him. They don't know anything. It is a wonder. They stay here for five or six years and then divorce the Father, the Husband. Maya harasses them so much. So, first of all, you have to say to them: Salutations to Shiva. He is also the Creator of Brahma, Vishnu and Shankar. Shiva is the Ocean of Knowledge. So, what should you do now? There is space next to the Trimurti and so you should write in that: The occupations of Shiv Baba and Krishna are separate from each other. When you explain this thing first, their foreheads will open. This study is for the future. There is no other study like this one. You cannot receive these experiences from the scriptures. It is in your intellects that you are studying for the beginning of the golden age. We will finish school and take the final paper. We will go and rule there. Those who relate the Gita cannot explain such things. First of all, you have to know the Father. You have to claim your inheritance from the Father. The Father alone is Trikaldarshi. No human being in the world is trikaldarshi. In fact, those who are worthy of worship then become worshippers. You are the ones who have done devotion. No one else knows this. Those who have done devotion are number one; they are Brahma and the mouth-born creation of Brahma. This one is himself the one who becomes worthy of worship. He is the number one worthy-of-worship one and he then becomes the number one worshipper. Then he will become worthy of worship again. He is also the first one to receive the fruit of devotion. Brahmins study and then become deities. This is not written anywhere. Bhishampitamai etc. are now aware that it is someone else who inspires you to shoot arrows. They would definitely understand that there is some power. Even now, they say: There is some power who is teaching them. Baba sees: All of these are My children. He (Shiv Baba) would see everything with these eyes (Brahma). When they feed a departed spirit, that soul comes and sees: This one is so-and-so. When that person eats, his eyes would become like those of the soul who has been invoked. The soul takes a temporary loan. This only happens in Bharat. In ancient Bharat there is first of all Radhe and Krishna. The ones who give them birth are not considered to be as elevated; they passed to a lesser extent. Praise first of all begins with Krishna. Radhe and Krishna each come in their own kingdoms. The names of the children are greater than those of their parents. These are such wonderful matters! There is incognito happiness. The Father says: I only enter an ordinary body. He has to look after such a big group of mothers and so He has taken an ordinary body through whom the expenses can continue to be met. This is Shiv Baba's bhandara (treasure-store). He is the Innocent Treasurer of the imperishable jewels of knowledge, and you are the adopted children who are also looked after. Only you children know this. When you first begin, start with: Lord Shiva speaks. He is the Creator of all. Then, ask: How can Krishna be called the Ocean of Knowledge or God, the Father? The writing should be so clear that it sits in their intellects very well when they read it. Some people take two to three years to understand this. God has to come and give the fruit of devotion. The Father created this sacrificial fire through Brahma. He taught Brahmins and made them into deities. You then had to come down. This is a very good explanation. First of all, you have to prove that Shri Krishna is the heavenly prince; he is not heavenly God the Father. People have become completely tamopradhan through the notion of omnipresence. They have forgotten the One who gave them their sovereignty. Baba gives the kingdom every cycle and we then forget Baba. It is so amazing! You should dance in happiness throughout the whole day. Baba is making us into the masters of the world! Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Be faithful to the Father in an unadulterated way. Increase remembrance and make your intellect pure.
2. Create ways to give the Father's introduction in a tactful way. Churn the ocean of knowledge and prove who Alpha is. Let your intellect have faith and do service.
Blessing:
May you be free from carelessness and become an example by wearing correct glasses for self-progress.
The children who simply check themselves with a broad (gross) head wear glasses of carelessness. All they can see is that whatever they do, it is a lot. “I am better than this one or that one; even the well-known souls have a few weaknesses.” However, those who check themselves with honest hearts wear correct glasses for self-progress, they simply see the Father and themselves, they do not see what a second or third person is doing. They simply have the concern of having to change themselves. They become examples for others.
Slogan:Finish the roots of all limitations and you will be able to have the intoxication of an unlimited sovereignty.
"मीठे बच्चे - पावन बन गति-सद्गति के लायक बनो। पतित आत्मा गति-सद्गति के लायक नहीं। बेहद का बाप तुम्हें बेहद का लायक बनाते हैं।"
प्रश्नः-
पिताव्रता किसे कहेंगे? उसकी मुख्य निशानी सुनाओ?
उत्तर:-[font=Calibri] [/font]
पिताव्रता वह है जो बाप की श्रीमत पर पूरा चलते हैं, अशरीरी बनने का अभ्यास करते हैं, अव्यभिचारी याद में रहते हैं, ऐसे सपूत बच्चे ही हर बात की धारणा कर सकेंगे। उनके ख्यालात सर्विस के प्रति सदा चलते रहेंगे। उनका बुद्धि रूपी बर्तन पवित्र होता जाता है। वह कभी भी फ़ारकती नहीं दे सकते हैं।
गीत:-
मुझको सहारा देने वाले........
ओम् शान्ति।
बच्चे शुक्रिया मानते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सब एक जैसी शुक्रिया नहीं मानते, जो अच्छे निश्चयबुद्धि होंगे और जो बाप की सर्विस पर दिल व जान, सिक व प्रेम से उपस्थित हैं, वो ही अन्दर में शुक्रिया मानते हैं - बाबा कमाल है आपकी, हम तो कुछ नहीं जानते थे। हम तो लायक नहीं थे - आपसे मिलने के। सो तो बरोबर है, माया ने सबको न लायक बना दिया है। उनको पता ही नहीं है कि स्वर्ग का लायक कौन बनाता है और फिर नर्क का लायक कौन बनाते हैं? वह तो समझते हैं कि गति और सद्गति दोनों का लायक बनाते हैं बाप। नहीं तो वहाँ के लायक कोई हैं नहीं। खुद भी कहते हैं हम पतित हैं। यह दुनिया ही पतित है। साधू-सन्त आदि कोई भी बाप को नहीं जानते। अभी बाप ने तुम बच्चों को अपना परिचय दिया है। कायदा भी है बाप को ही आकर परिचय देना है। यहाँ ही आकर लायक बनाना है, पावन बनाना है। वहाँ बैठे अगर पावन बना सकते तो फिर इतने ना लायक बनते ही क्यों?
तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही निश्चयबुद्धि हैं। बाप का परिचय कैसे देना चाहिए - यह भी अक्ल होना चाहिए। शिवाए नम: भी जरूर है। वही मात-पिता ऊंच ते ऊंच है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तो रचना हैं। उनको क्रियेट करने वाला जरूर बाप होगा, माँ भी होनी चाहिए। सबका गॉड फादर तो एक है जरूर। निराकार को ही गॉड कहा जाता है। क्रियेटर हमेशा एक ही होता है। पहले-पहले तो परिचय देना पड़े अल्फ का। यह युक्तियुक्त परिचय कैसे दिया जाए - वह भी समझना है। भगवान् ही ज्ञान का सागर है, उसने ही आकर राजयोग सिखाया। वह भगवान् कौन है? पहले अल्फ की पहचान देनी है। बाप भी निराकार है, आत्मा भी निराकार है। वह निराकार बाप आकर बच्चों को वर्सा देते हैं। किसी के द्वारा तो समझायेंगे ना। नहीं तो राजाओं का राजा कैसे बनाया? सतयुगी राज्य किसने स्थापन किया? हेविन का रचयिता कौन है? जरूर हेविनली गॉड फादर ही होगा। वह निराकार होना चाहिए। पहले-पहले फादर की पहचान देनी पड़ती है। कृष्ण को और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को फादर नहीं कहेंगे। उनको तो रचा जाता है। जब सूक्ष्मवतन वालों को भी रचा जाता है, वह भी क्रियेशन है फिर स्थूल वतन वालों को भगवान् कैसे कहेंगे। गाया जाता है देवताए नम:, वह है शिवाए नम:, मुख्य है ही यह बात। अब प्रदर्शनी में तो घड़ी-घड़ी एक बात नहीं समझायेंगे। यह तो एक-एक को अच्छी रीति समझाना पड़े। निश्चय कराना पड़े। जो भी आये, उनको पहले यह बताना है कि आओ तो तुमको फादर का साक्षात्कार करायें। फादर से ही तुमको वर्सा मिलना है। फादर ने ही गीता में राजयोग सिखाया है। कृष्ण ने नहीं सिखाया। बाप ही गीता के भगवान् हैं। नम्बरवन बात है यह। कृष्ण भगवानुवाच नहीं है। रूद्र भगवानुवाच वा सोमनाथ, शिव भगवानुवाच कहा जाता है। हर एक मनुष्य की जीवन कहानी अपनी-अपनी है। एक न मिले दूसरे से। तो जो भी आये तो पहले-पहले इस बात पर समझाना है। मूल बात समझाने की यह है। परमपिता परमात्मा का आक्यूपेशन यह है। वह बाप है, यह बच्चा है। वह हेविनली गॉड फादर है, यह हेविनली प्रिन्स है। यह बिल्कुल क्लीयर कर समझाना है। मुख्य है गीता, उनके आधार पर ही और शास्त्र हैं। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता है। मनुष्य कहते हैं तुम शास्त्र, वेद आदि को मानते हो? अरे, हर एक अपने धर्म शास्त्र को मानेंगे। सभी शास्त्रों को थोड़ेही मानेंगे। हाँ, सब शास्त्र हैं जरूर। परन्तु शास्त्रों को जानने से भी पहले मुख्य बात है बाप को जानना, जिससे वर्सा मिलना है। वर्सा शास्त्रों से नहीं मिलेगा, वर्सा मिलता है बाप से। बाप जो नॉलेज देते हैं, वर्सा देते हैं, उसका पुस्तक बना हुआ है। पहले-पहले तो गीता को उठाना पड़े। गीता का भगवान् कौन है? उसमें ही राजयोग की बात आती है। राजयोग जरूर नई दुनिया के लिए ही होगा। भगवान् आकर पतित तो नहीं बनायेंगे। उनको तो पावन महाराजा बनाना है। पहले-पहले बाप का परिचय दे और यह लिखाओ - बरोबर मैं निश्चय करता हूँ यह हमारा बाप है। पहले-पहले समझाना है शिवाए नम:, तुम मात-पिता........ महिमा भी उस बाप की ही है। भगवान् को भक्ति का फल भी यहाँ आकर देना है। भक्ति का फल क्या है, यह तुम समझ गये हो। जिसने बहुत भक्ति की है, उनको ही फल मिलेगा। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हैं। समझाया जाता है तुम्हारे बेहद के माँ-बाप वह हैं। जगत अम्बा, जगत पिता भी गाये जाते हैं। एडम और ईव तो मनुष्य को समझते हैं। ईव को मदर कह देते। राइट-वे में ईव कौन है, यह तो कोई नहीं जानते। बाप बैठ समझाते हैं। हाँ, कोई फट से तो नहीं समझ जायेगा। पढ़ाई में टाइम लगता है। पढ़ते-पढ़ते आकर बैरिस्टर बन जाते हैं। एम ऑबजेक्ट जरूर है, देवता बनना है तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। गाते भी हैं तुम मात-पिता........ और दूसरा फिर कहते हैं पतित-पावन आओ। तो पतित दुनिया और पावन दुनिया किसको कहा जाता है, क्या कलियुग अभी 40 हजार वर्ष और रहेगा? अच्छा, भला पावन बनाने वाला तो वह एक बाप है ना। हेविन स्थापन करने वाला है गॉड फादर। कृष्ण तो हो न सके। वह तो वर्सा लिया हुआ है। वह श्रीकृष्ण है हेविन का प्रिन्स और शिवबाबा है हेविन का क्रियेटर। वह है क्रियेशन, फर्स्ट प्रिन्स। यह भी क्लीयर कर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए तो तुमको समझाने में सहज होगा। रचयिता और रचना का मालूम पड़ जायेगा। क्रियेटर ही नॉलेजफुल है। वही राजयोग सिखलाते हैं। वह कोई राजा नहीं है, वह राजयोग सिखलाए राजाओं का राजा बनाते हैं। भगवान् ने राजयोग सिखाया है, श्रीकृष्ण ने राज्य पद पाया है, उसने ही गंवाया है, उसको ही फिर पाना है। चित्रों द्वारा बहुत अच्छा समझाया जा सकता है। बाप का आक्यूपेशन जरूर चाहिए। श्रीकृष्ण का नाम डालने से भारत कौड़ी जैसा बन गया है। शिवबाबा को जानने से भारत हीरे जैसा बनता है। परन्तु जब बुद्धि में बैठे कि यह हमारा बाप है। बाप ने ही पहले-पहले नई स्वर्ग की दुनिया रची। अभी तो पुरानी दुनिया है। गीता में है राजयोग। विलायत वाले भी चाहते हैं राजयोग सीखें। गीता से ही सीखे हैं। अभी तुम जान गये हो, कोशिश करते हो औरों को भी समझायें कि फादर कौन है? वह सर्वव्यापी नहीं है। अगर सर्वव्यापी है तो फिर राजयोग कैसे सिखलायेंगे? इस मिस्टेक पर खूब ख्याल चलना चाहिए। जो सर्विस पर तत्पर होंगे उनके ही ख्यालात चलेंगे। धारणा भी तब होगी जब बाप की श्रीमत पर चलेंगे, अशरीरी भव, मनमनाभव हो रहें, पतिव्रता वा पिताव्रता बनें अथवा सपूत बच्चा बनें।
बाप फ़रमान करते हैं जितना हो सके याद को बढ़ाते रहो। देह-अभिमान में आने से तुम याद नहीं करते, न बुद्धि पवित्र होती है। शेरनी के दूध के लिए कहते हैं सोने का बर्तन चाहिए। इसमें भी पिताव्रता बर्तन चाहिए। अव्यभिचारी पिताव्रता बहुत थोड़े हैं। कोई तो बिल्कुल जानते नहीं। जैसे छोटे बच्चे हैं। बैठे भल यहाँ हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं। जैसे बच्चे को छोटेपन में ही शादी करा देते हैं ना। गोद में बच्चा ले शादी कराई जाती है। एक-दो में दोस्त होते हैं। बहुत प्रेम होता है तो झट शादी करा देते हैं तो यह भी ऐसे है। सगाई कर ली है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। हम मम्मा-बाबा के बने हैं, उनसे वर्सा लेना है। कुछ भी नहीं जानते। वन्डर है ना। 5-6 वर्ष रहकर भी फिर बाप को अथवा पति को फ़ारकती दे देते हैं। माया इतना तंग करती है।
तो पहले-पहले सुनाना चाहिए - शिवाए नम:। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी रचयिता यह है। ज्ञान का सागर यह शिव है। तो अब क्या करना चाहिए? त्रिमूर्ति के बाजू में जगह पड़ी है, उस पर लिखना चाहिए कि शिवबाबा और कृष्ण दोनों के आक्यूपेशन ही अलग हैं। पहली बात यह जब समझाओ तब कपाट खुलें। और पढ़ाई है भविष्य के लिए। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। शास्त्रों से यह अनुभव नहीं हो सकता। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम पढ़ते हैं सतयुग आदि के लिए। स्कूल पूरा होगा और हमारा फाइनल पेपर होगा। जाकर राज्य करेंगे। गीता सुनाने वाले ऐसी बातें समझा नहीं सकते। पहले तो बाप को जानना है। बाप से वर्सा लेना है। बाप ही त्रिकालदर्शी हैं, और कोई मनुष्य दुनिया में त्रिकालदर्शी नहीं। वास्तव में जो पूज्य हैं वही फिर पुजारी बनते हैं। भक्ति भी तुमने की है, और कोई नहीं जानते। जिन्होंने भक्ति की है वही पहले नम्बर में ब्रह्मा फिर ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। आपेही पूज्य भी यह बनते हैं। पहले नम्बर में पूज्य ही फिर पहले नम्बर में पुजारी बनें हैं, फिर पूज्य बनेंगे। भक्ति का फल भी पहले उन्हें मिलेगा। ब्राह्मण ही पढ़कर फिर देवता बनते हैं - यह कहाँ लिखा हुआ नहीं है। भीष्म पितामह आदि को मालूम तो पड़ा है ना कि इन्हों से ज्ञान बाण मरवाने वाला कोई और है। यह समझेंगे जरूर कि कोई त़ाकत है। अभी भी कहते हैं कोई त़ाकत है जो इन्हों को सिखाती है।
बाबा देखते हैं यह सब मेरे बच्चे हैं। इन आंखों से ही देखेंगे। जैसे पित्र (श्राद्ध) खिलाते हैं तो आत्मा आती है और देखती है - यह फलाने हैं। खायेगा तो आंखे आदि उनके जैसी बन जायेंगी। टैप्रेरी लोन लेते हैं। यह भारत में ही होता है। प्राचीन भारत में पहले-पहले राधे-कृष्ण हुए। उन्हों को जन्म देने वाले ऊंच नहीं गिने जायेंगे। वह तो कम पास हुए हैं ना। महिमा शुरू होती है कृष्ण से। राधे कृष्ण दोनों अपनी-अपनी राजधानी में आते हैं। उन्हों के मां-बाप से बच्चे का नाम जास्ती है। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। गुप्त खुशी रहती है। बाप कहते हैं मैं साधारण तन में ही आता हूँ। इतना माताओं का झुण्ड सम्भालना है इसलिए साधारण तन लिया है, जिससे खर्चा चलता रहा। शिवबाबा का भण्डारा है। भोला भण्डारी, अविनाशी ज्ञान रत्नों का भी है और फिर एडाप्टेड बच्चे हैं, उन्हों की भी सम्भाल होती आती है। यह तो बच्चे ही जाने।
पहले-पहले जब शुरू करो तो बोलो शिव भगवानुवाच - वह सबका रचयिता है फिर कृष्ण को ज्ञान सागर, गॉड फादर कैसे कह सकते? लिखत ऐसी क्लीयर हो जो पढ़ने से अच्छी रीति बुद्धि में बैठे। कोई-कोई को तो दो तीन वर्ष लगते हैं समझने में। भगवान् को आकर भक्ति का फल देना है। ब्रह्मा द्वारा बाप ने यज्ञ रचा। ब्राह्मणों को पढ़ाया, ब्राह्मण से देवता बनाया। फिर नीचे आना ही है। बड़ी अच्छी समझानी है। पहले यह सिद्धकर बताना है - श्रीकृष्ण हेविनली प्रिन्स है, हेविनली गॉड फादर नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान से बिल्कुल ही तमोप्रधान बन गये हैं। जिसने बादशाही दी, उनको भूल गये हैं। कल्प-कल्प बाबा राज्य देते हैं और हम फिर बाबा को भूल जाते हैं। बड़ा वन्डर लगता है। सारा दिन खुशी में नाचना चाहिए। बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अव्यभिचारी पिताव्रता हो रहना है। याद को बढ़ाते बुद्धि को पवित्र बनाना है।
2) बाप का युक्तियुक्त परिचय देने की विधि निकालनी है। विचार सागर मंथन कर अल्फ को सिद्ध करना है। निश्चयबुद्धि बन सेवा करनी है।
वरदान:-स्वउन्नति का यथार्थ चश्मा पहन एक्जैम्पुल बनने वाले अलबेलेपन से मुक्त भव
जो बच्चे स्वयं को सिर्फ विशाल दिमाग की नज़र से चेक करते हैं, उनका चश्मा अलबेलेपन का होता है, उन्हें यही दिखाई देता है कि जितना भी किया है उतना बहुत किया है। मैं इन-इन आत्माओं से अच्छा हूँ, थोड़ी बहुत कमी तो नामीग्रामी में भी है। लेकिन जो सच्ची दिल से स्वयं को चेक करते हैं उनका चश्मा यथार्थ स्वउन्नति का होने के कारण सिर्फ बाप और स्वयं को ही देखते, दूसरा, तीसरा क्या करता - यह नहीं देखते। मुझे बदलना है बस इसी धुन में रहते हैं, वह दूसरों के लिए एक्जैम्पल बन जाते हैं।
स्लोगन:-हदों को सर्व वंश सहित समाप्त कर दो तो बेहद की बादशाही का नशा रहेगा।
21/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, become pure and worthy of receiving liberation and salvation. Impure souls are not worthy of receiving liberation or salvation. The unlimited Father is making you worthy in an unlimited way.
Question:
Whom would you call faithful to the Father? Say what their main signs are.
Answer:
Those who fully follow the Father's shrimat, who practise being bodiless and who stay in unadulterated remembrance are faithful to the Father. Only such worthy children are able to imbibe everything. They constantly continue to have thoughts of service. The vessels of their intellects continue to become pure. They can never divorce the Father.
Song:
The heart says thanks to the One who has given it support!
Om Shanti
Children say thanks, numberwise, according to their efforts. Not everyone says thanks to the same extent. Those souls who have very good faith in their intellects and who are engaged in the Father's service wholeheartedly with a lot of love are the ones who say thanks from within: Baba, it is Your wonder. We didn't know anything. We were not worthy of meeting You. That is true. Maya has made everyone unworthy. They don't know who makes you worthy of heaven and who makes you worthy of hell. They believe that it is the Father who makes you worthy of both liberation and salvation. Otherwise, no one is worthy of that. They say of themselves that they are impure. This world is impure. Sages and holy men etc. don't know the Father. The Father has now given you children His introduction. The law is that the Father Himself has to come to give His introduction. He has to come here and make you worthy and pure. If He were able to make you pure from where He is sitting up there, why would you become so unworthy? Among you children too, the faith you have in your intellects is numberwise according to the efforts you make. You should have the wisdom of knowing how to give the Father's introduction. It is definitely said: Salutations to Shiva. He alone is the Mother and Father, the Highest on High. Brahma, Vishnu and Shankar are a creation. It must definitely have been the Father who created them. There would also be the Mother. God, the Father of All, is definitely One. Only the incorporeal One is called God. The Creator is always just the One. First of all, you have to give the introduction of Alpha. You also need to understand how to give the introduction in a tactful way. God alone is the Ocean of Knowledge. He alone came and taught you Raja Yoga. Who is that God? First of all, give the recognition of Alpha. The Father is incorporeal and souls are also incorporeal. That incorporeal Father comes and gives you children the inheritance. He would have to explain through someone. How else did He make you into kings of kings? Who established the golden-aged kingdom? Who is the Creator of heaven? It would definitely be Heavenly God, the Father. It has to be the incorporeal One. First of all, you have to give the Father's introduction. Krishna, Brahma, Vishnu and Shankar would not be called the Father; they are created. If the residents of the subtle region are created and they too are a creation, then how could those of the corporeal world be called God? It is remembered: Salutations to the deities. The other is: Salutations to Shiva. This is the main thing. You wouldn't repeatedly explain the same thing in an exhibition. Here, you have to explain to each one very well and inspire them to have faith. Whoever comes, first of all tell them: Come and we can give you a vision of the Father. You are to receive the inheritance from the Father. It is the Father, not Krishna, who taught you Raja Yoga in the Gita. The Father Himself is the God of the Gita. This is the number one thing. It is not that God Krishna speaks. It is said: God Rudra speaks. Or: God Somnath speaks. Or: God Shiva speaks. Every human being’s life story is individual; one cannot be the same as another’s. Whoever comes, first of all explain this aspect to them. This is the main thing to explain. This is the occupation of the Supreme Father, the Supreme Soul. That One is the Father and this one is a child. He is Heavenly God, the Father, whereas this one is the heavenly prince. You have to explain this very clearly. The main thing is the Gita, because all the other scriptures are based on that. It is said: The Bhagawad Gita is the jewel, the mother, of all scriptures. People ask: Do you believe in the Vedas and scriptures? Oh! everyone would definitely believe in the scripture of his own religion. They would not believe in all the scriptures. Yes, there definitely are all the scriptures but, before knowing the scriptures, the main thing is to first know the Father from whom you are to receive the inheritance. You don't receive the inheritance from the scriptures. You receive the inheritance from the Father. They have made a book of the knowledge and the inheritance that the Father gave. First of all, you have to take up the Gita. Who is the God of the Gita? It is in that that Raja Yoga is mentioned. Raja Yoga would surely be for the new world. God would not come and make everyone impure. He has to create pure emperors. First of all, give the Father's introduction and make them write: I truly have the faith that this is my Father. First of all, you have to explain: Salutations to Shiva. You are the Mother and You are the Father. The praise is of that Father. God has to come here to give the fruit of devotion. You have now understood what the fruit of devotion is. Only those who have done a lot of devotion will receive that fruit. These things are not mentioned in the scriptures. Among you too, you know this, numberwise, according to the efforts you make. It is explained that He is your unlimited Mother and Father. Jagadamba and Jagadpita are also remembered. Adam and Eve are understood to be human beings. They call Eve the mother. No one knows in the right way who Eve is. The Father sits here and explains. Yes, no one understands it instantly. A study takes time. By studying, they eventually become barristers. There definitely is an aim and objective . If you have to become deities, you first of all have to give the Father's introduction. People sing: You are the Mother and Father. Then, they also say: O Purifier, come! So what is called the impure world and what is called the pure world? Will the iron age still remain for another 40,000 years? Achcha, the One who makes you pure is the one Father, is He not? It is God, the Father, who establishes heaven. It cannot be Krishna; he received the inheritance. That Shri Krishna is the prince of heaven whereas Shiv Baba is the Creator of heaven. That one is a creation, the first prince. You should make this clear and write it in big letters so that it will be easy for you to explain. They would then know about the Creator and the creation. Only the Creator is knowledge-full. He is the One who teaches you Raja Yoga. He is not a king. He teaches you Raja Yoga and makes you into kings of kings. God taught Raja Yoga and Shri Krishna attained the royal status. He lost it and he has to attain it again. This can be explained very well using the pictures. The Father's occupation is definitely needed. By putting Shri Krishna’s name, Bharat becomes like a shell. By knowing Shiv Baba, Bharat becomes like a diamond. However, it first has to sit in your intellects that He is your Father. It is the Father who first of all created the new world of heaven. It is now the old world. Raja Yoga is mentioned in the Gita. People abroad also want to study Raja Yoga. They have studied it from the Gita. You now know it and you try to explain to others who the Father is. He is not omnipresent. If He were omnipresent, how would He teach us Raja Yoga? You should think a great deal about this mistake . Only those who remain engaged in service will continue to think about this. You will be able to imbibe knowledge when you follow the Father's shrimat, when you become bodiless, remain “Manmanabhav”, become a faithful bride who remains faithful to the Father, that is, when you become a worthy child. The Father orders you: Continue to increase your remembrance as much as possible. By coming into body consciousness, neither do you remember Me nor does your intellect become pure. It is said that a golden vessel is needed to hold the milk of a lioness. Here, a vessel that is faithful to the Father is needed. There are very few who are unadulterated and faithful to the Father. Some don’t know anything at all; they are like little children. Although they are sitting here, they don’t understand anything. It is like getting children married in their childhood. The parents make them sit on their laps and get them married. They would be friends and they would have a lot of love and so the parents would quickly get their children married. So this is the same. They want to get engaged but they don’t understand anything. We belong to Mama and Baba and we have to claim our inheritance from Him. They don't know anything. It is a wonder. They stay here for five or six years and then divorce the Father, the Husband. Maya harasses them so much. So, first of all, you have to say to them: Salutations to Shiva. He is also the Creator of Brahma, Vishnu and Shankar. Shiva is the Ocean of Knowledge. So, what should you do now? There is space next to the Trimurti and so you should write in that: The occupations of Shiv Baba and Krishna are separate from each other. When you explain this thing first, their foreheads will open. This study is for the future. There is no other study like this one. You cannot receive these experiences from the scriptures. It is in your intellects that you are studying for the beginning of the golden age. We will finish school and take the final paper. We will go and rule there. Those who relate the Gita cannot explain such things. First of all, you have to know the Father. You have to claim your inheritance from the Father. The Father alone is Trikaldarshi. No human being in the world is trikaldarshi. In fact, those who are worthy of worship then become worshippers. You are the ones who have done devotion. No one else knows this. Those who have done devotion are number one; they are Brahma and the mouth-born creation of Brahma. This one is himself the one who becomes worthy of worship. He is the number one worthy-of-worship one and he then becomes the number one worshipper. Then he will become worthy of worship again. He is also the first one to receive the fruit of devotion. Brahmins study and then become deities. This is not written anywhere. Bhishampitamai etc. are now aware that it is someone else who inspires you to shoot arrows. They would definitely understand that there is some power. Even now, they say: There is some power who is teaching them. Baba sees: All of these are My children. He (Shiv Baba) would see everything with these eyes (Brahma). When they feed a departed spirit, that soul comes and sees: This one is so-and-so. When that person eats, his eyes would become like those of the soul who has been invoked. The soul takes a temporary loan. This only happens in Bharat. In ancient Bharat there is first of all Radhe and Krishna. The ones who give them birth are not considered to be as elevated; they passed to a lesser extent. Praise first of all begins with Krishna. Radhe and Krishna each come in their own kingdoms. The names of the children are greater than those of their parents. These are such wonderful matters! There is incognito happiness. The Father says: I only enter an ordinary body. He has to look after such a big group of mothers and so He has taken an ordinary body through whom the expenses can continue to be met. This is Shiv Baba's bhandara (treasure-store). He is the Innocent Treasurer of the imperishable jewels of knowledge, and you are the adopted children who are also looked after. Only you children know this. When you first begin, start with: Lord Shiva speaks. He is the Creator of all. Then, ask: How can Krishna be called the Ocean of Knowledge or God, the Father? The writing should be so clear that it sits in their intellects very well when they read it. Some people take two to three years to understand this. God has to come and give the fruit of devotion. The Father created this sacrificial fire through Brahma. He taught Brahmins and made them into deities. You then had to come down. This is a very good explanation. First of all, you have to prove that Shri Krishna is the heavenly prince; he is not heavenly God the Father. People have become completely tamopradhan through the notion of omnipresence. They have forgotten the One who gave them their sovereignty. Baba gives the kingdom every cycle and we then forget Baba. It is so amazing! You should dance in happiness throughout the whole day. Baba is making us into the masters of the world! Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Be faithful to the Father in an unadulterated way. Increase remembrance and make your intellect pure.
2. Create ways to give the Father's introduction in a tactful way. Churn the ocean of knowledge and prove who Alpha is. Let your intellect have faith and do service.
Blessing:
May you be free from carelessness and become an example by wearing correct glasses for self-progress.
The children who simply check themselves with a broad (gross) head wear glasses of carelessness. All they can see is that whatever they do, it is a lot. “I am better than this one or that one; even the well-known souls have a few weaknesses.” However, those who check themselves with honest hearts wear correct glasses for self-progress, they simply see the Father and themselves, they do not see what a second or third person is doing. They simply have the concern of having to change themselves. They become examples for others.
Slogan:Finish the roots of all limitations and you will be able to have the intoxication of an unlimited sovereignty.
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