Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 17-Nov-2018 )
17-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम ब्रह्मा की सन्तान आपस में भाई-बहन हो, तुम्हारी वृत्ति बहुत शुद्ध पवित्र होनी चाहिए''
प्रश्नः-
किन बच्चों के समझाने का प्रभाव बहुत अच्छा पड़ सकता है?
उत्तर:-
जो गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं। ऐसे अनुभवी बच्चे किसी को भी समझायें तो उनके समझाने का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि शादी करके भी अपवित्र वृत्ति न जाये - यह बहुत बड़ी मंज़िल है। इसमें बच्चों को बहुत-बहुत खबरदार भी रहना है।
गीत:-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं........
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि बच्चे ही बाप को जानते हैं। बच्चे तो सब बच्चे ही हैं, सब बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं, वह जानते हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां हुए बहन-भाई। सब एक बाप के बच्चे हैं तो रीयल्टी में समझाना है कि हम आत्मायें भाई-बहन हैं। सब ब्रदर्स हैं। यहाँ तो तुम जानते हो हम एक ही ग्रैन्ड फादर और फादर के बच्चे हैं। शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे हैं। समझो इनकी लौकिक स्त्री है, उसने भी कहा हम ब्रह्माकुमारी हैं तो उसका भी नाता वह हो जाता। जैसे लौकिक बहन-भाई हों, उसमें कोई गन्दी दृष्टि नहीं जाती है, आजकल तो सब गन्दे बन पड़ते हैं क्योंकि दुनिया ही डर्टी है। तुम बच्चे अभी समझते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। ब्रह्मा द्वारा एडाप्टेड चिल्ड्रेन बने हैं तो बहन-भाई हैं। समझाना पड़े, सन्यास भी दो प्रकार के हैं। सन्यास अर्थात् पवित्र रहना, 5 विकारों को छोड़ना। वह है हठयोग सन्यासी, उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है। प्रवृत्ति मार्ग वालों का कनेक्शन ही छोड़ जाते हैं, उनका नाम ही है हठयोग कर्म सन्यासी। तुम बच्चों को समझाया जाता है गृहस्थ व्यवहार में रहते देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग बाप को याद करना है। वो तो घरबार छोड़ देते हैं। मामा, चाचा, काका कोई नहीं रहता। समझते हैं बाकी है एक, उनको ही याद करना है, वा ज्योति ज्योत समाना है। निर्वाणधाम जाना है। उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है, पहरवाइस अलग है। वह तो कह देते स्त्री नर्क का द्वार है, आग कपूस इक्कट्ठे रह नहीं सकते। अलग होने से ही हम बच सकते हैं। ड्रामा अनुसार उनका धर्म ही अलग है। वह स्थापना शंकराचार्य की है, वह सिखलाते हैं हठयोग, कर्म सन्यास, न कि राजयोग। तुम जानते हो ड्रामा बना हुआ है सो भी नम्बरवार। 100 परसेन्ट सेन्सीबुल सबको तो नहीं कहेंगे। तो भी कहेंगे कोई 100 परसेन्ट सेन्सीबुल हैं, कोई 100 परसेन्ट नानसेन्सीबुल हैं। यह तो होगा। तुम जानते हो हम कहते हैं मम्मा-बाबा तो आपस में बहन-भाई हो गये। गन्दी वृत्ति होनी नहीं चाहिए, लॉ ऐसा कहता है। बहन-भाई की आपस में कभी शादी हो न सके। बहन-भाई का अगर घर में कुछ भी होता है, बाप देखते हैं इनकी चलन गन्दी है तो बड़ा फिक्र रहता है। यह कहाँ से पैदा हुए, कितना नुकसान करते हैं, बहुत उसको डांटते हैं। आगे इन बातों की परहेज रहती थी। अभी तो 100 परसेन्ट तमोप्रधान हैं, माया का प्रभाव बरोबर जोर है। परमपिता परमात्मा के बच्चों से तो माया की एकदम लड़ाई होती है। बाप कहते हैं - यह हमारे बच्चे हैं, हम इन्हों को स्वर्ग में ले जाता हूँ। माया कहती है - नहीं, यह हमारे बच्चे हैं, हम इनको नर्क में ले जाती हूँ। यहाँ तो धर्मराज बाप के हाथ में हैं। तो जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं उन्हें औरों को बहुत अच्छी रीति समझाना है कि हम कैसे इक्कट्ठे रहते हुए पवित्र रहते हैं। जो काम हठयोगी सन्यासी भी न कर सके सो बाप करा रहे हैं। सन्यासी कभी राजयोग सिखला न सकें। विवेकानंद की किताब पर बाहर से नाम लिखा है राजयोग। परन्तु सन्यासी जो निवृत्ति मार्ग वाले हैं वह राजयोग सिखला न सकें। तुम जो गृहस्थ व्यवहार में रहते और पवित्र रहते हो, वह समझायेंगे तो उसका तीर अच्छा लगेगा। बाबा ने अखबार में देखा था, देहली में झाड़ों के बारे में कुछ कान्फ्रेन्स होती है। उसके ऊपर भी कैसे समझायें कि तुम इन जंगली झाड़ों आदि का तो ख्याल करते हो परन्तु इस जिनालॉजिकल ट्री का कभी ख्याल किया है कि इस मनुष्य सृष्टि की कैसे उत्पत्ति, पालना होती है।
बच्चों की इतनी विशालबुद्धि बनी नहीं है। इतना अटेन्शन नहीं है। कोई न कोई बीमारी लगी हुई है। लौकिक घर में भी बहन-भाई के कभी गन्दे ख्यालात नहीं होते। यहाँ तो तुम सब एक बाप के बच्चे हो बहन-भाई, ब्रह्माकुमार-कुमारियां। अगर गन्दे ख्यालात आयें तो उनको क्या कहेंगे? वह, जो नर्क में रहते हैं, उनसे भी हजार गुणा गन्दे गिने जायेंगे। बच्चों पर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं, बड़ी मेहनत उनके लिए है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। बाप आते हैं पावन बनाने तो जरूर बच्चे प्रतिज्ञा करेंगे, राखी बांधी हुई है। इसमें बड़ी मेहनत है। शादी कर और पवित्र रहे, बड़ी भारी मंज़िल है। जरा भी बुद्धि नहीं जानी चाहिए। शादी हो जाती है तो विकारी हो जाते हैं। बाप आकर नंगन होने से बचाते हैं। द्रोपदी की भी शास्त्रों में बात है। इन बातों में कुछ रहस्य तो है ना। यह शास्त्र आदि सब ड्रामा में नूंध हैं - जो कुछ पास्ट होता आया है, वह ड्रामा में नूंध है, उसको रिपीट जरूर करना है। ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग की भी नूंध है। तुम्हारी बुद्धि अब बहुत विशाल हो गई है। जैसे बेहद बाप की बुद्धि वैसे मुरब्बी बच्चों की, जो श्रीमत पर चलते हैं। ढेर बच्चे हैं। पता नहीं, अजुन कितने बच्चे होंगे। जब तक ब्राह्मण-ब्राह्मणी न बनें तब तक वर्सा पा नहीं सकते। अब तुम ब्रह्मावंशी ही फिर जाकर सूर्यवंशी अथवा विष्णुवंशी बनेंगे। अभी हो शिव वंशी। शिव है दादा (ग्रैन्ड फादर), ब्रह्मा है बाबा। प्रजापिता तो एक हुआ ना, सारी प्रजा का। जानते भी हैं जो मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, उसका भी बीज होगा। इसमें पहला मनुष्य भी होगा, जिसको न्यु मैन कहते हैं। न्यु मैन कौन होगा? ब्रह्मा ही होगा। ब्रह्मा और सरस्वती - वह न्यु गिने जायेंगे। इसमें बड़ी बुद्धि चाहिए। सोल ही कहती है ओ गॉड फादर, ओ सुप्रीम गॉड फादर। आत्मा कहती है ना, तो वह सबका रचयिता है। ऊंच ते ऊंच वह हुआ। फिर आओ मनुष्य सृष्टि पर। उनमें ऊंच किसको रखें? प्रजापिता। यह तो कोई भी समझ सकते हैं कि मनुष्य सृष्टि का जो झाड़ है, उसमें ब्रह्मा हो गया मुख्य। शिव तो है आत्माओं का बाप, ब्रह्मा को रचता कह सकते हैं मनुष्यों का। परन्तु किसकी मत पर करते हैं? बाप कहते हैं मैं ही ब्रह्मा को एडाप्ट करता हूँ। नया ब्रह्मा फिर कहाँ से आयेगा? बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में मैं इसमें प्रवेश करता हूँ। इनका नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखता हूँ। अभी तुम जानते हो हम बरोबर ब्रह्मा के बच्चे हैं। शिवबाबा से नॉलेज ले रहे हैं। हम बाप से पवित्रता, सुख, शान्ति, हेल्थ, वेल्थ लेने आये हैं। भारत में हम ही सदा सुखी थे। अभी नहीं हैं। फिर बाप वह वर्सा दे रहे हैं। बच्चे जानते हैं फर्स्ट है पवित्रता। राखी किसको बांधी जाती है? जो अपवित्र बनते हैं वह प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र रहेंगे। बाप समझाते हैं यह मंज़िल बड़ी भारी है। पहले से ही जो युगल हैं उनको समझाना पड़े - हम कैसे भाई-बहन हो रहते हैं। हाँ, अवस्था जमाने में टाइम लगता है। बच्चे लिखते भी हैं माया के तूफान बहुत आते हैं। तो गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहने वाले बच्चे भाषण करें तो अच्छा है क्योंकि यह है नई बात। यह है ही स्व-राजयोग। इसमें भी सन्यास है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हम जीवनमुक्ति अर्थात् सद्गति पायें। यह तो जीवनबन्ध है। तुम्हारा है स्वराज्य पद। स्व को राज्य चाहिए। अब उनको राज्य नहीं है। आत्मा कहती है हम राजा थे, हम रानी थे, अब हम विकारी कंगाल बने हैं, हमारे में कोई गुण नहीं हैं। यह आत्मा कहती है ना। तो अपने को आत्मा, परमपिता परमात्मा की सन्तान समझना है। हम आत्मा भाई-भाई हैं, आपस में बहुत लव होना चाहिए। हम सारी दुनिया को लवली बनाते हैं। रामराज्य में तो शेर बकरी भी इक्कट्ठे जल पीते थे, कभी लड़ाई नहीं करते थे तो तुम बच्चों में कितना लव होना चाहिए। यह अवस्था धीरे-धीरे आयेगी। लड़ते तो बहुत हैं ना। पार्लियामेंट में भी लड़ते हैं तो एक-दो को कुर्सी उठाकर मारने लग पड़ते हैं। वह तो है आसुरी सभा। तुम्हारी यह है ईश्वरीय सभा तो कितना नशा होना चाहिए। परन्तु यह स्कूल है। पढ़ाई में कोई तो ऊंच चले जाते हैं, कोई ढीले पड़ जाते हैं। यह स्कूल भी वन्डरफुल है, वहाँ तो स्कूल टीचर अलग-अलग होते हैं, यहाँ स्कूल टीचर एक, स्कूल एक है। आत्मा शरीर धारण कर टीच करती है। आत्मा को सिखलाते हैं। हम आत्मा, शरीर द्वारा पढ़ते हैं। इतना आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मायें हैं, वह परमात्मा है। यह बुद्धि में सारा दिन दौड़ाना है। देह-अभिमान से ही भूलें हो जाती हैं। बाप बार-बार कहते हैं देही-अभिमानी भव। देह-अभिमान में आने से माया का वार होगा। चढ़ाई बहुत बड़ी है। कितना विचार सागर मंथन करना होता है। रात को ही विचार सागर मंथन हो सकता है। ऐसे विचार सागर मंथन करते-करते बाप जैसा बनते जायेंगे।
तुम बच्चों को सारा ज्ञान बुद्धि में रखना है। गृहस्थ व्यवहार में रहकर राजयोग सीखना है। सारा बुद्धि का काम है। बुद्धि में धारणा होती है। गृहस्थियों को तो बहुत मेहनत है। आजकल तो तमोप्रधान होने कारण बहुत गन्दे होते हैं। माया ने सबको खत्म कर दिया है। चबाकर एकदम खा ही जाती है। बाप आते हैं माया अजगर के पेट से निकालने। निकालना बड़ा मुश्किल होता है। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उनको जलवा दिखाना है। समझाना है हमारा राजयोग है। हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां क्यों कहते हैं? इस पहेली को समझना, समझाना है। वास्तव में बी.के. तो तुम भी हो। प्रजापिता ब्रह्मा तो नई सृष्टि रचते हैं। न्यु मैन द्वारा नई सृष्टि बनाते हैं। वास्तव में तो सतयुग का पहला बच्चा जो होता है उनको ही न्यु कहेंगे। कितनी खुशी की बात है। वहाँ तो खुशी के बाजे गाजे बजेंगे। वहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं। यहाँ तो इसमें अभी बाबा ने प्रवेश किया है। यह न्यु मैन कोई पवित्र नहीं है, पुराने में बैठ इनको न्यु बनाते हैं। पुरानी चीज़ को नया बनाते हैं। अब न्यु मैन किसको कहें? क्या ब्रह्मा को कहें? बुद्धि का काम चलता है। वह थोड़ेही समझते हैं - एडम ईव कौन हैं? न्यु मैन है श्रीकृष्ण, वही फिर पुराना मैन ब्रह्मा। फिर पुराना मैन ब्रह्मा को न्यु मैन बनाता हूँ। न्यु वर्ल्ड का न्यु मैन चाहिए। वह कहाँ से आये? न्यु मैन तो सतयुग का प्रिन्स है। उनको ही गोरा कहते हैं। यह है सांवरा, यह न्यु मैन नहीं। वही श्रीकृष्ण 84 जन्म लेते-लेते अब पिछाड़ी के जन्म में है, जिसको फिर बाबा एडाप्ट करते हैं। पुराने को नया बनाते हैं, कितनी गूढ़ बाते हैं समझने की। न्यु सो ओल्ड, ओल्ड सो न्यु। श्याम सो सुन्दर, सुन्दर सो श्याम। जो पुराने ते पुराना है वही नये ते नया बन रहे हैं। तुम जानते हो हमको बाबा रिज्युवनेट कर नये ते नया बनाते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। और अपनी अवस्था भी बनानी है। कुमार-कुमारी तो हैं ही पवित्र। बाकी हम गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनते हैं, स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। विष्णुवंशी को त्रिकालदर्शीपने का नॉलेज नहीं है। पुराने मैन त्रिकालदर्शी हैं। कितनी अटपटी बातें हैं। ओल्ड मैन ही नॉलेज लेकर न्यु मैन बनते हैं। बाप बैठ समझाते हैं वह हठयोग है, यह राजयोग है। राजयोग माना ही स्वर्ग की बादशाही। सन्यासी तो कहते सुख काग विष्टा समान है। नफरत करते हैं। बाप कहते हैं नारी ही स्वर्ग का द्वार है। माताओं पर कलष रखता हूँ। तो पहले-पहले समझाओ शिवाए नम:, भगवानुवाच। आवाज बुलन्द निकलना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हम आत्मा भाई-भाई हैं, इस निश्चय से पवित्रता के व्रत को पालन करते हुए आपस में बहुत प्यार से रहना है। सबको लवली बनाना है।
2) विशाल बुद्धि बन ज्ञान के गुह्य रहस्यों को समझना है, विचार सागर मंथन करना है। माया के वार से बचने के लिए देही-अभिमानी हो रहने का अभ्यास करना है।
वरदान:-खुशी की गोली वा इन्जेक्शन द्वारा स्वयं की दवाई स्वयं करने वाले नॉलेजफुल भव
ब्राह्मण बच्चे अपने बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे डाक्टर्स पावरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेंज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते तो बीमारी का रूप बदल जाता। नॉलेज की लाइट माइट शरीर को भी चलाने में बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है।
स्लोगन:-जो मन की एकाग्रता द्वारा सर्व सिद्धियां प्राप्त कर लेते हैं वही सिद्धि स्वरूप बनते हैं।
17/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you children of Brahma are brothers and sisters. Your attitude should be very clean and pure.
Question:
Which children’s explanations leave a very good impression?
Answer:
Those who live at home with their families and remain as pure as a lotus flower. When such experienced children explain this knowledge to others, it makes a very good impression on them, because to be married and yet not have any impure attitude is a very high destination. You children have to remain extremely cautious about this.
Song:
Our pilgrimage is unique.
Om Shanti
The Father sits here and explains to you children because only you children know the Father. Children are children. All of you children are Brahma Kumars and Kumaris. You know that Brahma Kumars and Kumaris are brothers and sisters; you are all children of the one father. Therefore, you have to explain that, in reality, we souls are brothers and sisters. All (souls) are brothers. Here, you understand that you are the children of the one Grandfather and father: you are the grandchildren of Shiv Baba and the children of Brahma. This one’s wife also says that she is a Brahma Kumari. Therefore, her relationship also becomes that. A physical brother and sister do not have impure vision for one another. Nowadays, everyone has become dirty, because this world has become dirty. You children understand that you are now Brahma Kumars and Kumaris. You have become adopted children through Brahma; therefore, you are brothers and sisters. You have to explain that there are two types of renunciation. Renunciation means to remain pure, to renounce the five vices. Those others are hatha yogi sannyasis; their department is separate. They break all ties with those on the family path. They are called hatha yogi sannyasis, renunciates of action. It has been explained to you children that, while living at home with your families, you have to renounce the consciousness of your bodies and bodily relations and remember the Father. They leave their homes and businesses. They do not keep any connections with their maternal uncles or paternal uncles. They believe that there is only one thing for them, that one thing alone must be remembered and that their light will merge into that light, that they have to return to the land of nirvana. Their department is separate and their costumes are also separate. They say that women are the gateway to hell, that fire and cotton wool cannot stay together, that only by living separately can they protect themselves. According to the drama, their religion is separate. Shankaracharya created that religion. He taught hatha yoga and the renunciation of action, not Raja Yoga. You understand that the drama is predestined. This is also numberwise; not everyone can be 100% sensible. It is said that some are 100% sensible and some are 100% non-sensible. This will happen. You understand that since you say “Mama and Baba” you are brothers and sisters. The law says that there should not be any dirty attitude. A brother and sister can never marry. If there is something going on at home between a brother and sister, and their father sees that their activity is dirty, he would be very concerned. Where have they come from that they cause so much damage? He would scold them a great deal. Previously, everyone would be very cautious about these things. Now everyone is 100% tamopradhan. The force of Maya is very strong. Maya just fights the children of the Supreme Father, the Supreme Soul. The Father says: These are My children. I am taking them to heaven. Maya says: No, these children are mine! I am going to take them to hell. Here, you are in the hands of the Father, Dharamraj. Those who live at home with their families and remain pure should explain very clearly to others how they remain pure while living together. The Father is inspiring you to carry out the task that the hatha yogi sannyasis cannot. Sannyasis cannot teach Raja Yoga. Vivekananda wrote a book with the title “Raja Yoga”. However, sannyasis belong to the path of isolation and cannot teach Raja Yoga. When those of you who remain pure while living at home explain knowledge to others, your arrow will strike the target very well. Baba read in the newspapers that there is a conference being held in Delhi about trees. You should ask them that, as well as being concerned about those wild trees, whether they are ever concerned about the genealogical tree, as to how the human world tree emerged and how it is sustained. As yet, the intellects of you children have not become that broad: you do not pay that much attention. There is one sickness or another. Even in a physical home, a brother and sister never have dirty thoughts about one another. Here, all of you are children of the one Father; you are brothers and sisters, Brahma Kumars and Kumaris. If dirty thoughts do come, what would be said about them? They would be considered to be a thousand times dirtier than those who live in hell. You children have a great responsibility. Those who live at home with their families have to make a great deal of effort to remain pure. No one in the world knows these aspects. The Father comes to purify you. Therefore, you children definitely make a promise and tie a rakhi. Great effort is needed for this. To get married and yet remain pure is a very steep destination. The intellect should not be pulled even slightly. When people get married, they become impure. The Father comes and saves you from being stripped. The story of Draupadi has been written in the scriptures. There is definitely some significance in those things too. All of those scriptures etc. are fixed in the drama . Everything that passes in the drama is predestined and it definitely has to repeat. The path of knowledge and the path of devotion are both fixed. Your intellects have now become very broad. As is the intellect of the unlimited Father, so should be the intellects of the special children who follow shrimat. There are countless children. Who knows how many more there will be? Until they become Brahmins, they cannot claim their inheritance. You now belong to the clan of Brahma and you will later belong to the sun dynasty, that is, to the Vishnu dynasty. You now belong to the clan of Shiva. Shiva is Dada (Grandfather ) and Brahma is Baba. There is only the one Father of Humanity of all the people. People understand that there has to be the Seed of the human world tree, and that there has to be a human being who comes first, whom they call the ‘New Man’. Who would the ‘New Man’ be? It must be Brahma. Brahma and Saraswati are considered to be the new ones. A broad intellect is needed to understand this. It is souls that say: O God the Father! O Supreme God the Father! It is souls who say this, and so He must be the Creator of all, the Highest on High. Then, down here in this human world, who would be considered to be the highest? The Father of Humanity. Anyone can understand that Brahma is the main one in this human world tree. Shiva is the Father of souls and Brahma can be called the creator of human beings. However, under whose directions does he accomplish this? The Father says: I adopt Brahma. So, where would the new Brahma come from? I enter the body of this one during the final birth of his many births and name him Prajapita Brahma. You now understand that you are definitely the children of Brahma. We are taking knowledge from Shiv Baba. We have come to receive purity, happiness, peace, health and wealth from the Father. We used to be constantly happy in Bharat. Now, we are no longer that. The Father is once again giving us that inheritance. You children understand that purity is first. On whom is a rakhi tied? Those who have become impure make a promise that they will definitely remain pure. The Father explains that this destination is very high. It should first be explained to a married couple about how we live in the consciousness of being brothers and sisters. Yes, it does take time to make this stage firm. Children write that many storms of Maya come. Therefore, it is good if those children who live at home and remain pure give lectures, because this is something new. This is self-sovereign yoga. There is also renunciation in this. While living at home with your family, you want to receive liberation-in-life, that is, salvation. Here, there is bondage-in-life. Your status is that of self-sovereignty. The self wants sovereignty. He doesn’t have sovereignty now. The soul says: I was a king, I was a queen, and now I have become vicious and poverty-stricken. I have no virtues. It is the soul that says this. Therefore, you have to consider yourself to be a soul, a child of the Supreme Father, the Supreme Soul. We souls are brothers, so there should be a great deal of love between us. We are making the whole world lovely. In the kingdom of Rama, the lion and the lamb used to drink water from the same pool; no one ever used to fight. So, how much love should there be between you children? This stage will be reached gradually. Many fight a lot. They fight in Parliament; they even throw chairs at one another! That is a devilish gathering. This is your Godly gathering and so how much intoxication should you have? However, this is a school. In a school , some go ahead in their studies and some fall behind. This school is wonderful. There, the teachers and the schools are separate, whereas here, there is one school and one Teacher. The Soul adopts a body and teaches. He teaches souls. We souls are studying through our bodies. You have to become soul conscious to this extent. We are souls and that One is the Supreme Soul. This should race around in your intellects throughout the whole day. It is due to body consciousness that you make mistakes. The Father says to you again and again: May you be soul conscious! By becoming body conscious, you are attacked by Maya. This climb is very steep. You have to churn the ocean of knowledge so much! It is at night that you can churn the ocean of knowledge. By churning the ocean of knowledge in this way, you will gradually become like the Father. You children have to keep the whole of this knowledge in your intellects. Stay at home with your families and study Raja Yoga. It is all the work of the intellects, it is the intellect that imbibes these things. There is a lot of effort involved for those who live at home with their families. Nowadays, because of being tamopradhan, people have become very dirty. Maya has destroyed everyone. She has chewed everyone up and completely swallowed them. The Father comes and removes you from the stomach of Maya, the alligator. It is very difficult to remove you from there. Those who live at home with their families have to show their sparkle. You should explain: Ours is Raja Yoga. Why are we called Brahma Kumars and Kumaris? You have to understand and explain this riddle and tell them: In fact, you too are Brahma Kumars and Kumaris. Prajapita Brahma creates the new world. The new world is created through the New Man. In fact, the first child of the golden age should be called the new one. This is an aspect of great happiness. There, bugles of happiness will be played. There, souls and bodies both remain pure. Baba has now entered this one’s body. This new man is not pure. He (Baba) sits in this old one and makes him new. He makes old things new. Now, who can be called the new man ? Should Brahma be called this? The intellect works on this. They don’t understand who Adam and Eve are. The new man is Shri Krishna and later he becomes the old man Brahma. I am now once again making this old man Brahma into that new man. A new man is needed for the new world. Where would he come from? The new man is the prince of the golden age. He is known as the beautiful one. This one is ugly; he is not a new man. The same Shri Krishna who takes 84 births is now in his final birth and has been adopted by Baba. He makes old things new. These are such deep things to understand. The new become old and the old become new. The ugly one becomes beautiful and then the beautiful one becomes ugly. The one who is the oldest of all is now becoming the newest of all. You understand that Baba rejuvenates you and makes you new. These aspects have to be understood. You also have to create your own stage. Kumars and kumaris are pure anyway. However, those who live at home with their families have to live like a lotus flower and also become spinners of the discus of self-realization. The clan of Vishnu does not have the knowledge of being trikaldarshi. The old man is trikaldarshi. These are such tricky aspects. It is the old man who takes knowledge and becomes the new man. The Father sits here and explains: That is hatha yoga and this is Raja Yoga. Raja Yoga means to claim the kingdom of heaven. Sannyasis say that happiness is like the droppings of a crow; they dislike it. The Father says: Women are the gateway to heaven. I place the urn of knowledge on you mothers. So, first of all, explain “Salutations to Shiva” and “God Shiva speaks”. This sound should be very loud. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. We souls are brothers. With this faith, live together with a lot of love for one another by observing this promise of purity. Make everyone lovely.
2. By making your intellect broad, understand the deep significance of this knowledge. Churn the ocean of knowledge. In order to be protected from any attack of Maya, practise remaining soul conscious.
Blessing:May you be knowledge-full and cure yourself by giving yourself the pills and injection of happiness.
Brahmin children can treat their own illnesses. The nourishment of happiness is a medicine that can cure you in seconds. Just as when doctors give you a powerful injection, you are instantly transformed, so, when Brahmins give themselves pills or an injection of happiness, the form of their illness changes. The light and might of knowledge helps a lot to make your body function. When any illness comes, it is a means to give the intellect some rest.
Slogan:Those who attain all success with concentration of the mind become embodiments of success.
"मीठे बच्चे - तुम ब्रह्मा की सन्तान आपस में भाई-बहन हो, तुम्हारी वृत्ति बहुत शुद्ध पवित्र होनी चाहिए''
प्रश्नः-
किन बच्चों के समझाने का प्रभाव बहुत अच्छा पड़ सकता है?
उत्तर:-
जो गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहते हैं। ऐसे अनुभवी बच्चे किसी को भी समझायें तो उनके समझाने का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि शादी करके भी अपवित्र वृत्ति न जाये - यह बहुत बड़ी मंज़िल है। इसमें बच्चों को बहुत-बहुत खबरदार भी रहना है।
गीत:-
हमारे तीर्थ न्यारे हैं........
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि बच्चे ही बाप को जानते हैं। बच्चे तो सब बच्चे ही हैं, सब बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं, वह जानते हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां हुए बहन-भाई। सब एक बाप के बच्चे हैं तो रीयल्टी में समझाना है कि हम आत्मायें भाई-बहन हैं। सब ब्रदर्स हैं। यहाँ तो तुम जानते हो हम एक ही ग्रैन्ड फादर और फादर के बच्चे हैं। शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे हैं। समझो इनकी लौकिक स्त्री है, उसने भी कहा हम ब्रह्माकुमारी हैं तो उसका भी नाता वह हो जाता। जैसे लौकिक बहन-भाई हों, उसमें कोई गन्दी दृष्टि नहीं जाती है, आजकल तो सब गन्दे बन पड़ते हैं क्योंकि दुनिया ही डर्टी है। तुम बच्चे अभी समझते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। ब्रह्मा द्वारा एडाप्टेड चिल्ड्रेन बने हैं तो बहन-भाई हैं। समझाना पड़े, सन्यास भी दो प्रकार के हैं। सन्यास अर्थात् पवित्र रहना, 5 विकारों को छोड़ना। वह है हठयोग सन्यासी, उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है। प्रवृत्ति मार्ग वालों का कनेक्शन ही छोड़ जाते हैं, उनका नाम ही है हठयोग कर्म सन्यासी। तुम बच्चों को समझाया जाता है गृहस्थ व्यवहार में रहते देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग बाप को याद करना है। वो तो घरबार छोड़ देते हैं। मामा, चाचा, काका कोई नहीं रहता। समझते हैं बाकी है एक, उनको ही याद करना है, वा ज्योति ज्योत समाना है। निर्वाणधाम जाना है। उनकी डिपार्टमेंट ही अलग है, पहरवाइस अलग है। वह तो कह देते स्त्री नर्क का द्वार है, आग कपूस इक्कट्ठे रह नहीं सकते। अलग होने से ही हम बच सकते हैं। ड्रामा अनुसार उनका धर्म ही अलग है। वह स्थापना शंकराचार्य की है, वह सिखलाते हैं हठयोग, कर्म सन्यास, न कि राजयोग। तुम जानते हो ड्रामा बना हुआ है सो भी नम्बरवार। 100 परसेन्ट सेन्सीबुल सबको तो नहीं कहेंगे। तो भी कहेंगे कोई 100 परसेन्ट सेन्सीबुल हैं, कोई 100 परसेन्ट नानसेन्सीबुल हैं। यह तो होगा। तुम जानते हो हम कहते हैं मम्मा-बाबा तो आपस में बहन-भाई हो गये। गन्दी वृत्ति होनी नहीं चाहिए, लॉ ऐसा कहता है। बहन-भाई की आपस में कभी शादी हो न सके। बहन-भाई का अगर घर में कुछ भी होता है, बाप देखते हैं इनकी चलन गन्दी है तो बड़ा फिक्र रहता है। यह कहाँ से पैदा हुए, कितना नुकसान करते हैं, बहुत उसको डांटते हैं। आगे इन बातों की परहेज रहती थी। अभी तो 100 परसेन्ट तमोप्रधान हैं, माया का प्रभाव बरोबर जोर है। परमपिता परमात्मा के बच्चों से तो माया की एकदम लड़ाई होती है। बाप कहते हैं - यह हमारे बच्चे हैं, हम इन्हों को स्वर्ग में ले जाता हूँ। माया कहती है - नहीं, यह हमारे बच्चे हैं, हम इनको नर्क में ले जाती हूँ। यहाँ तो धर्मराज बाप के हाथ में हैं। तो जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं उन्हें औरों को बहुत अच्छी रीति समझाना है कि हम कैसे इक्कट्ठे रहते हुए पवित्र रहते हैं। जो काम हठयोगी सन्यासी भी न कर सके सो बाप करा रहे हैं। सन्यासी कभी राजयोग सिखला न सकें। विवेकानंद की किताब पर बाहर से नाम लिखा है राजयोग। परन्तु सन्यासी जो निवृत्ति मार्ग वाले हैं वह राजयोग सिखला न सकें। तुम जो गृहस्थ व्यवहार में रहते और पवित्र रहते हो, वह समझायेंगे तो उसका तीर अच्छा लगेगा। बाबा ने अखबार में देखा था, देहली में झाड़ों के बारे में कुछ कान्फ्रेन्स होती है। उसके ऊपर भी कैसे समझायें कि तुम इन जंगली झाड़ों आदि का तो ख्याल करते हो परन्तु इस जिनालॉजिकल ट्री का कभी ख्याल किया है कि इस मनुष्य सृष्टि की कैसे उत्पत्ति, पालना होती है।
बच्चों की इतनी विशालबुद्धि बनी नहीं है। इतना अटेन्शन नहीं है। कोई न कोई बीमारी लगी हुई है। लौकिक घर में भी बहन-भाई के कभी गन्दे ख्यालात नहीं होते। यहाँ तो तुम सब एक बाप के बच्चे हो बहन-भाई, ब्रह्माकुमार-कुमारियां। अगर गन्दे ख्यालात आयें तो उनको क्या कहेंगे? वह, जो नर्क में रहते हैं, उनसे भी हजार गुणा गन्दे गिने जायेंगे। बच्चों पर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं, बड़ी मेहनत उनके लिए है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। बाप आते हैं पावन बनाने तो जरूर बच्चे प्रतिज्ञा करेंगे, राखी बांधी हुई है। इसमें बड़ी मेहनत है। शादी कर और पवित्र रहे, बड़ी भारी मंज़िल है। जरा भी बुद्धि नहीं जानी चाहिए। शादी हो जाती है तो विकारी हो जाते हैं। बाप आकर नंगन होने से बचाते हैं। द्रोपदी की भी शास्त्रों में बात है। इन बातों में कुछ रहस्य तो है ना। यह शास्त्र आदि सब ड्रामा में नूंध हैं - जो कुछ पास्ट होता आया है, वह ड्रामा में नूंध है, उसको रिपीट जरूर करना है। ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग की भी नूंध है। तुम्हारी बुद्धि अब बहुत विशाल हो गई है। जैसे बेहद बाप की बुद्धि वैसे मुरब्बी बच्चों की, जो श्रीमत पर चलते हैं। ढेर बच्चे हैं। पता नहीं, अजुन कितने बच्चे होंगे। जब तक ब्राह्मण-ब्राह्मणी न बनें तब तक वर्सा पा नहीं सकते। अब तुम ब्रह्मावंशी ही फिर जाकर सूर्यवंशी अथवा विष्णुवंशी बनेंगे। अभी हो शिव वंशी। शिव है दादा (ग्रैन्ड फादर), ब्रह्मा है बाबा। प्रजापिता तो एक हुआ ना, सारी प्रजा का। जानते भी हैं जो मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, उसका भी बीज होगा। इसमें पहला मनुष्य भी होगा, जिसको न्यु मैन कहते हैं। न्यु मैन कौन होगा? ब्रह्मा ही होगा। ब्रह्मा और सरस्वती - वह न्यु गिने जायेंगे। इसमें बड़ी बुद्धि चाहिए। सोल ही कहती है ओ गॉड फादर, ओ सुप्रीम गॉड फादर। आत्मा कहती है ना, तो वह सबका रचयिता है। ऊंच ते ऊंच वह हुआ। फिर आओ मनुष्य सृष्टि पर। उनमें ऊंच किसको रखें? प्रजापिता। यह तो कोई भी समझ सकते हैं कि मनुष्य सृष्टि का जो झाड़ है, उसमें ब्रह्मा हो गया मुख्य। शिव तो है आत्माओं का बाप, ब्रह्मा को रचता कह सकते हैं मनुष्यों का। परन्तु किसकी मत पर करते हैं? बाप कहते हैं मैं ही ब्रह्मा को एडाप्ट करता हूँ। नया ब्रह्मा फिर कहाँ से आयेगा? बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में मैं इसमें प्रवेश करता हूँ। इनका नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखता हूँ। अभी तुम जानते हो हम बरोबर ब्रह्मा के बच्चे हैं। शिवबाबा से नॉलेज ले रहे हैं। हम बाप से पवित्रता, सुख, शान्ति, हेल्थ, वेल्थ लेने आये हैं। भारत में हम ही सदा सुखी थे। अभी नहीं हैं। फिर बाप वह वर्सा दे रहे हैं। बच्चे जानते हैं फर्स्ट है पवित्रता। राखी किसको बांधी जाती है? जो अपवित्र बनते हैं वह प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र रहेंगे। बाप समझाते हैं यह मंज़िल बड़ी भारी है। पहले से ही जो युगल हैं उनको समझाना पड़े - हम कैसे भाई-बहन हो रहते हैं। हाँ, अवस्था जमाने में टाइम लगता है। बच्चे लिखते भी हैं माया के तूफान बहुत आते हैं। तो गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहने वाले बच्चे भाषण करें तो अच्छा है क्योंकि यह है नई बात। यह है ही स्व-राजयोग। इसमें भी सन्यास है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हम जीवनमुक्ति अर्थात् सद्गति पायें। यह तो जीवनबन्ध है। तुम्हारा है स्वराज्य पद। स्व को राज्य चाहिए। अब उनको राज्य नहीं है। आत्मा कहती है हम राजा थे, हम रानी थे, अब हम विकारी कंगाल बने हैं, हमारे में कोई गुण नहीं हैं। यह आत्मा कहती है ना। तो अपने को आत्मा, परमपिता परमात्मा की सन्तान समझना है। हम आत्मा भाई-भाई हैं, आपस में बहुत लव होना चाहिए। हम सारी दुनिया को लवली बनाते हैं। रामराज्य में तो शेर बकरी भी इक्कट्ठे जल पीते थे, कभी लड़ाई नहीं करते थे तो तुम बच्चों में कितना लव होना चाहिए। यह अवस्था धीरे-धीरे आयेगी। लड़ते तो बहुत हैं ना। पार्लियामेंट में भी लड़ते हैं तो एक-दो को कुर्सी उठाकर मारने लग पड़ते हैं। वह तो है आसुरी सभा। तुम्हारी यह है ईश्वरीय सभा तो कितना नशा होना चाहिए। परन्तु यह स्कूल है। पढ़ाई में कोई तो ऊंच चले जाते हैं, कोई ढीले पड़ जाते हैं। यह स्कूल भी वन्डरफुल है, वहाँ तो स्कूल टीचर अलग-अलग होते हैं, यहाँ स्कूल टीचर एक, स्कूल एक है। आत्मा शरीर धारण कर टीच करती है। आत्मा को सिखलाते हैं। हम आत्मा, शरीर द्वारा पढ़ते हैं। इतना आत्म-अभिमानी बनना है। हम आत्मायें हैं, वह परमात्मा है। यह बुद्धि में सारा दिन दौड़ाना है। देह-अभिमान से ही भूलें हो जाती हैं। बाप बार-बार कहते हैं देही-अभिमानी भव। देह-अभिमान में आने से माया का वार होगा। चढ़ाई बहुत बड़ी है। कितना विचार सागर मंथन करना होता है। रात को ही विचार सागर मंथन हो सकता है। ऐसे विचार सागर मंथन करते-करते बाप जैसा बनते जायेंगे।
तुम बच्चों को सारा ज्ञान बुद्धि में रखना है। गृहस्थ व्यवहार में रहकर राजयोग सीखना है। सारा बुद्धि का काम है। बुद्धि में धारणा होती है। गृहस्थियों को तो बहुत मेहनत है। आजकल तो तमोप्रधान होने कारण बहुत गन्दे होते हैं। माया ने सबको खत्म कर दिया है। चबाकर एकदम खा ही जाती है। बाप आते हैं माया अजगर के पेट से निकालने। निकालना बड़ा मुश्किल होता है। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उनको जलवा दिखाना है। समझाना है हमारा राजयोग है। हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां क्यों कहते हैं? इस पहेली को समझना, समझाना है। वास्तव में बी.के. तो तुम भी हो। प्रजापिता ब्रह्मा तो नई सृष्टि रचते हैं। न्यु मैन द्वारा नई सृष्टि बनाते हैं। वास्तव में तो सतयुग का पहला बच्चा जो होता है उनको ही न्यु कहेंगे। कितनी खुशी की बात है। वहाँ तो खुशी के बाजे गाजे बजेंगे। वहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं। यहाँ तो इसमें अभी बाबा ने प्रवेश किया है। यह न्यु मैन कोई पवित्र नहीं है, पुराने में बैठ इनको न्यु बनाते हैं। पुरानी चीज़ को नया बनाते हैं। अब न्यु मैन किसको कहें? क्या ब्रह्मा को कहें? बुद्धि का काम चलता है। वह थोड़ेही समझते हैं - एडम ईव कौन हैं? न्यु मैन है श्रीकृष्ण, वही फिर पुराना मैन ब्रह्मा। फिर पुराना मैन ब्रह्मा को न्यु मैन बनाता हूँ। न्यु वर्ल्ड का न्यु मैन चाहिए। वह कहाँ से आये? न्यु मैन तो सतयुग का प्रिन्स है। उनको ही गोरा कहते हैं। यह है सांवरा, यह न्यु मैन नहीं। वही श्रीकृष्ण 84 जन्म लेते-लेते अब पिछाड़ी के जन्म में है, जिसको फिर बाबा एडाप्ट करते हैं। पुराने को नया बनाते हैं, कितनी गूढ़ बाते हैं समझने की। न्यु सो ओल्ड, ओल्ड सो न्यु। श्याम सो सुन्दर, सुन्दर सो श्याम। जो पुराने ते पुराना है वही नये ते नया बन रहे हैं। तुम जानते हो हमको बाबा रिज्युवनेट कर नये ते नया बनाते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। और अपनी अवस्था भी बनानी है। कुमार-कुमारी तो हैं ही पवित्र। बाकी हम गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनते हैं, स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। विष्णुवंशी को त्रिकालदर्शीपने का नॉलेज नहीं है। पुराने मैन त्रिकालदर्शी हैं। कितनी अटपटी बातें हैं। ओल्ड मैन ही नॉलेज लेकर न्यु मैन बनते हैं। बाप बैठ समझाते हैं वह हठयोग है, यह राजयोग है। राजयोग माना ही स्वर्ग की बादशाही। सन्यासी तो कहते सुख काग विष्टा समान है। नफरत करते हैं। बाप कहते हैं नारी ही स्वर्ग का द्वार है। माताओं पर कलष रखता हूँ। तो पहले-पहले समझाओ शिवाए नम:, भगवानुवाच। आवाज बुलन्द निकलना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हम आत्मा भाई-भाई हैं, इस निश्चय से पवित्रता के व्रत को पालन करते हुए आपस में बहुत प्यार से रहना है। सबको लवली बनाना है।
2) विशाल बुद्धि बन ज्ञान के गुह्य रहस्यों को समझना है, विचार सागर मंथन करना है। माया के वार से बचने के लिए देही-अभिमानी हो रहने का अभ्यास करना है।
वरदान:-खुशी की गोली वा इन्जेक्शन द्वारा स्वयं की दवाई स्वयं करने वाले नॉलेजफुल भव
ब्राह्मण बच्चे अपने बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे डाक्टर्स पावरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेंज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते तो बीमारी का रूप बदल जाता। नॉलेज की लाइट माइट शरीर को भी चलाने में बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है।
स्लोगन:-जो मन की एकाग्रता द्वारा सर्व सिद्धियां प्राप्त कर लेते हैं वही सिद्धि स्वरूप बनते हैं।
17/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you children of Brahma are brothers and sisters. Your attitude should be very clean and pure.
Question:
Which children’s explanations leave a very good impression?
Answer:
Those who live at home with their families and remain as pure as a lotus flower. When such experienced children explain this knowledge to others, it makes a very good impression on them, because to be married and yet not have any impure attitude is a very high destination. You children have to remain extremely cautious about this.
Song:
Our pilgrimage is unique.
Om Shanti
The Father sits here and explains to you children because only you children know the Father. Children are children. All of you children are Brahma Kumars and Kumaris. You know that Brahma Kumars and Kumaris are brothers and sisters; you are all children of the one father. Therefore, you have to explain that, in reality, we souls are brothers and sisters. All (souls) are brothers. Here, you understand that you are the children of the one Grandfather and father: you are the grandchildren of Shiv Baba and the children of Brahma. This one’s wife also says that she is a Brahma Kumari. Therefore, her relationship also becomes that. A physical brother and sister do not have impure vision for one another. Nowadays, everyone has become dirty, because this world has become dirty. You children understand that you are now Brahma Kumars and Kumaris. You have become adopted children through Brahma; therefore, you are brothers and sisters. You have to explain that there are two types of renunciation. Renunciation means to remain pure, to renounce the five vices. Those others are hatha yogi sannyasis; their department is separate. They break all ties with those on the family path. They are called hatha yogi sannyasis, renunciates of action. It has been explained to you children that, while living at home with your families, you have to renounce the consciousness of your bodies and bodily relations and remember the Father. They leave their homes and businesses. They do not keep any connections with their maternal uncles or paternal uncles. They believe that there is only one thing for them, that one thing alone must be remembered and that their light will merge into that light, that they have to return to the land of nirvana. Their department is separate and their costumes are also separate. They say that women are the gateway to hell, that fire and cotton wool cannot stay together, that only by living separately can they protect themselves. According to the drama, their religion is separate. Shankaracharya created that religion. He taught hatha yoga and the renunciation of action, not Raja Yoga. You understand that the drama is predestined. This is also numberwise; not everyone can be 100% sensible. It is said that some are 100% sensible and some are 100% non-sensible. This will happen. You understand that since you say “Mama and Baba” you are brothers and sisters. The law says that there should not be any dirty attitude. A brother and sister can never marry. If there is something going on at home between a brother and sister, and their father sees that their activity is dirty, he would be very concerned. Where have they come from that they cause so much damage? He would scold them a great deal. Previously, everyone would be very cautious about these things. Now everyone is 100% tamopradhan. The force of Maya is very strong. Maya just fights the children of the Supreme Father, the Supreme Soul. The Father says: These are My children. I am taking them to heaven. Maya says: No, these children are mine! I am going to take them to hell. Here, you are in the hands of the Father, Dharamraj. Those who live at home with their families and remain pure should explain very clearly to others how they remain pure while living together. The Father is inspiring you to carry out the task that the hatha yogi sannyasis cannot. Sannyasis cannot teach Raja Yoga. Vivekananda wrote a book with the title “Raja Yoga”. However, sannyasis belong to the path of isolation and cannot teach Raja Yoga. When those of you who remain pure while living at home explain knowledge to others, your arrow will strike the target very well. Baba read in the newspapers that there is a conference being held in Delhi about trees. You should ask them that, as well as being concerned about those wild trees, whether they are ever concerned about the genealogical tree, as to how the human world tree emerged and how it is sustained. As yet, the intellects of you children have not become that broad: you do not pay that much attention. There is one sickness or another. Even in a physical home, a brother and sister never have dirty thoughts about one another. Here, all of you are children of the one Father; you are brothers and sisters, Brahma Kumars and Kumaris. If dirty thoughts do come, what would be said about them? They would be considered to be a thousand times dirtier than those who live in hell. You children have a great responsibility. Those who live at home with their families have to make a great deal of effort to remain pure. No one in the world knows these aspects. The Father comes to purify you. Therefore, you children definitely make a promise and tie a rakhi. Great effort is needed for this. To get married and yet remain pure is a very steep destination. The intellect should not be pulled even slightly. When people get married, they become impure. The Father comes and saves you from being stripped. The story of Draupadi has been written in the scriptures. There is definitely some significance in those things too. All of those scriptures etc. are fixed in the drama . Everything that passes in the drama is predestined and it definitely has to repeat. The path of knowledge and the path of devotion are both fixed. Your intellects have now become very broad. As is the intellect of the unlimited Father, so should be the intellects of the special children who follow shrimat. There are countless children. Who knows how many more there will be? Until they become Brahmins, they cannot claim their inheritance. You now belong to the clan of Brahma and you will later belong to the sun dynasty, that is, to the Vishnu dynasty. You now belong to the clan of Shiva. Shiva is Dada (Grandfather ) and Brahma is Baba. There is only the one Father of Humanity of all the people. People understand that there has to be the Seed of the human world tree, and that there has to be a human being who comes first, whom they call the ‘New Man’. Who would the ‘New Man’ be? It must be Brahma. Brahma and Saraswati are considered to be the new ones. A broad intellect is needed to understand this. It is souls that say: O God the Father! O Supreme God the Father! It is souls who say this, and so He must be the Creator of all, the Highest on High. Then, down here in this human world, who would be considered to be the highest? The Father of Humanity. Anyone can understand that Brahma is the main one in this human world tree. Shiva is the Father of souls and Brahma can be called the creator of human beings. However, under whose directions does he accomplish this? The Father says: I adopt Brahma. So, where would the new Brahma come from? I enter the body of this one during the final birth of his many births and name him Prajapita Brahma. You now understand that you are definitely the children of Brahma. We are taking knowledge from Shiv Baba. We have come to receive purity, happiness, peace, health and wealth from the Father. We used to be constantly happy in Bharat. Now, we are no longer that. The Father is once again giving us that inheritance. You children understand that purity is first. On whom is a rakhi tied? Those who have become impure make a promise that they will definitely remain pure. The Father explains that this destination is very high. It should first be explained to a married couple about how we live in the consciousness of being brothers and sisters. Yes, it does take time to make this stage firm. Children write that many storms of Maya come. Therefore, it is good if those children who live at home and remain pure give lectures, because this is something new. This is self-sovereign yoga. There is also renunciation in this. While living at home with your family, you want to receive liberation-in-life, that is, salvation. Here, there is bondage-in-life. Your status is that of self-sovereignty. The self wants sovereignty. He doesn’t have sovereignty now. The soul says: I was a king, I was a queen, and now I have become vicious and poverty-stricken. I have no virtues. It is the soul that says this. Therefore, you have to consider yourself to be a soul, a child of the Supreme Father, the Supreme Soul. We souls are brothers, so there should be a great deal of love between us. We are making the whole world lovely. In the kingdom of Rama, the lion and the lamb used to drink water from the same pool; no one ever used to fight. So, how much love should there be between you children? This stage will be reached gradually. Many fight a lot. They fight in Parliament; they even throw chairs at one another! That is a devilish gathering. This is your Godly gathering and so how much intoxication should you have? However, this is a school. In a school , some go ahead in their studies and some fall behind. This school is wonderful. There, the teachers and the schools are separate, whereas here, there is one school and one Teacher. The Soul adopts a body and teaches. He teaches souls. We souls are studying through our bodies. You have to become soul conscious to this extent. We are souls and that One is the Supreme Soul. This should race around in your intellects throughout the whole day. It is due to body consciousness that you make mistakes. The Father says to you again and again: May you be soul conscious! By becoming body conscious, you are attacked by Maya. This climb is very steep. You have to churn the ocean of knowledge so much! It is at night that you can churn the ocean of knowledge. By churning the ocean of knowledge in this way, you will gradually become like the Father. You children have to keep the whole of this knowledge in your intellects. Stay at home with your families and study Raja Yoga. It is all the work of the intellects, it is the intellect that imbibes these things. There is a lot of effort involved for those who live at home with their families. Nowadays, because of being tamopradhan, people have become very dirty. Maya has destroyed everyone. She has chewed everyone up and completely swallowed them. The Father comes and removes you from the stomach of Maya, the alligator. It is very difficult to remove you from there. Those who live at home with their families have to show their sparkle. You should explain: Ours is Raja Yoga. Why are we called Brahma Kumars and Kumaris? You have to understand and explain this riddle and tell them: In fact, you too are Brahma Kumars and Kumaris. Prajapita Brahma creates the new world. The new world is created through the New Man. In fact, the first child of the golden age should be called the new one. This is an aspect of great happiness. There, bugles of happiness will be played. There, souls and bodies both remain pure. Baba has now entered this one’s body. This new man is not pure. He (Baba) sits in this old one and makes him new. He makes old things new. Now, who can be called the new man ? Should Brahma be called this? The intellect works on this. They don’t understand who Adam and Eve are. The new man is Shri Krishna and later he becomes the old man Brahma. I am now once again making this old man Brahma into that new man. A new man is needed for the new world. Where would he come from? The new man is the prince of the golden age. He is known as the beautiful one. This one is ugly; he is not a new man. The same Shri Krishna who takes 84 births is now in his final birth and has been adopted by Baba. He makes old things new. These are such deep things to understand. The new become old and the old become new. The ugly one becomes beautiful and then the beautiful one becomes ugly. The one who is the oldest of all is now becoming the newest of all. You understand that Baba rejuvenates you and makes you new. These aspects have to be understood. You also have to create your own stage. Kumars and kumaris are pure anyway. However, those who live at home with their families have to live like a lotus flower and also become spinners of the discus of self-realization. The clan of Vishnu does not have the knowledge of being trikaldarshi. The old man is trikaldarshi. These are such tricky aspects. It is the old man who takes knowledge and becomes the new man. The Father sits here and explains: That is hatha yoga and this is Raja Yoga. Raja Yoga means to claim the kingdom of heaven. Sannyasis say that happiness is like the droppings of a crow; they dislike it. The Father says: Women are the gateway to heaven. I place the urn of knowledge on you mothers. So, first of all, explain “Salutations to Shiva” and “God Shiva speaks”. This sound should be very loud. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. We souls are brothers. With this faith, live together with a lot of love for one another by observing this promise of purity. Make everyone lovely.
2. By making your intellect broad, understand the deep significance of this knowledge. Churn the ocean of knowledge. In order to be protected from any attack of Maya, practise remaining soul conscious.
Blessing:May you be knowledge-full and cure yourself by giving yourself the pills and injection of happiness.
Brahmin children can treat their own illnesses. The nourishment of happiness is a medicine that can cure you in seconds. Just as when doctors give you a powerful injection, you are instantly transformed, so, when Brahmins give themselves pills or an injection of happiness, the form of their illness changes. The light and might of knowledge helps a lot to make your body function. When any illness comes, it is a means to give the intellect some rest.
Slogan:Those who attain all success with concentration of the mind become embodiments of success.
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