Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 15-Nov-2018 )
15-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अपनी बुद्धि वा विचारों को इतना शुद्ध, स्वच्छ बनाओ जो श्रीमत को यथार्थ रीति धारण कर बाप का नाम बाला कर सको''
प्रश्नः-बच्चों की कौन-सी अवस्था ही बाप का शो करेगी?
उत्तर:-जब बच्चों की निरन्तर हर्षितमुख, अचल-अडोल, स्थिर और मस्त अवस्था बनें तब बाप का शो कर सके। ऐसी एकरस अवस्था वाले होशियार बच्चे ही यथार्थ रीति सबको बाप का परिचय दे सकते हैं।
गीत:-मरना तेरी गली में..........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। कहते हैं आये हैं तेरे दर पे जीते जी मरने के लिए। किसके दर पर? फिर भी यही बात निकलती कि अगर गीता का भगवान् कृष्ण कहें तो यह सब बातें हो न सकें। न कृष्ण यहाँ हो सके। वह तो है सतयुग का प्रिन्स। गीता कोई कृष्ण ने नहीं सुनाई, गीता तो परमपिता ने सुनाई। सारा मदार एक बात पर है। भक्ति में तुम इतनी मेहनत करते आये हो वह तो दरकार नहीं। यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ यह एक बात ही सिद्ध करने के लिए भी बाप को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कितनी नॉलेज देनी पड़ती है। प्राचीन नॉलेज जो भगवान् ने दी है वही नॉलेज है, सारी बात गीता पर है। परमपिता परमात्मा ने ही आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना के लिए सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाया है, जो अब प्राय:लोप है। मनुष्य तो समझते हैं कृष्ण कभी फिर आकर गीता सुनायेगा। परन्तु अब तुमको यह अच्छी रीति गोले के चित्र पर सिद्ध करना है कि गीता पारलौकिक परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर ने सुनाई। कृष्ण की महिमा और है, परमपिता परमात्मा की महिमा और है। वह है सतयुग का प्रिन्स, जिसने सहज राजयोग से राज्य-भाग्य पाया है। पढ़ते समय नाम रूप से और है और फिर जब राज्य पाया तब और है - यह सिद्ध कर बताना है। पतित-पावन कृष्ण को कभी नहीं कहेंगे। पतित-पावन है ही एक बाप। अभी फिर से श्रीकृष्ण की आत्मा पतित-पावन द्वारा राजयोग सीख भविष्य पावन दुनिया का प्रिन्स बन रही है। यह सिद्ध कर समझाने में भी युक्तियां चाहिए। फॉरेनर्स को भी सिद्ध कर बताना पड़ता है। नम्बरवन है ही गीता। सर्व शास्त्र-मई श्रीमत भगवत गीता माता। अब माता को जन्म किसने दिया? बाप ही माता को एडाप्ट करते हैं ना। गीता किसने सुनाई? ऐसे नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट ने बाइबिल को एडाप्ट किया। क्राइस्ट ने जो शिक्षा दी उनका फिर बाइबिल बनाकर पढ़ते हैं। अब गीता की शिक्षा किसने दी, जो फिर बाद में पुस्तक बनाकर पढ़ते रहते हैं? यह किसको पता नहीं। और सबके शास्त्रों का तो पता है। यह जो सहज राजयोग की शिक्षा है, वह किसने दी है, यह सिद्ध करना है। दुनिया तो दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनती जाती है। यह सब स्वच्छ बुद्धि में ही बैठ सकता है। जो श्रीमत पर नहीं चलते, उनको धारणा हो न सके। श्रीमत कहेगी तुम बिल्कुल समझा नहीं सकते हो। अपने को ज्ञानी मत समझो। पहले तो मुख्य बात यह सिद्ध करनी है कि गीता का भगवान् परमपिता परमात्मा है, वही पतित-पावन है। मनुष्य तो सर्वव्यापी कह देते हैं वा ब्रह्म तत्व कह देते वा सागर कह देते। जो आया सो कह देते - बिगर अर्थ। भूल सारी गीता से निकली है, जो गीता का भगवान् श्रीकृष्ण कह दिया है। तो समझाने लिए गीता उठानी पड़े। बनारस वाले गुप्ता जी को भी कहते थे कि बनारस में यह सिद्ध कर बतलाओ कि गीता का भगवान् कृष्ण नहीं। अब सम्मेलन तो होते हैं, सब रिलीजस मनुष्य कहते हैं क्या उपाय करें जो शान्ति हो जाए? अब शान्ति स्थापन करना पतित मनुष्यों के हाथ में तो है नहीं। कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर भी पतित कैसे शान्ति स्थापन कर सकते, जबकि बुलाते रहते हैं परन्तु पतित से पावन बनाने वाले बाप को जानते नहीं हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। अब पतित-पावन कौन है? यह कोई की बुद्धि में नहीं आता। कह देते हैं रघुपति राघव...... अब वह राम तो है नहीं। झूठा बुलावा करते हैं। जानते कुछ नहीं। अब यह कौन जाकर बताये? बड़े अच्छे बच्चे चाहिए। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बड़ा गोला भी बनवाया है, जिससे सिद्ध हो जाए कि गीता भगवान् ने रची। वह तो कह देते कोई भी हो, हैं तो सब भगवान्। बाप कहते हैं तुम बेसमझ हो। मैंने आकर पावन राज्य स्थापन किया, उसके बदले फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया। पतित को ही पावन बनाकर फर्स्ट प्रिन्स बनाता हूँ। भगवानुवाच - मैं कृष्ण की आत्मा को एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाए उन द्वारा ज्ञान देता हूँ। वह फिर इस सहज राजयोग से फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का बन जाता है। यह समझानी और कोई की बुद्धि में है नहीं।
तुम्हें पहले तो यह भूल सिद्धकर दिखानी है कि श्रीमत भगवत गीता है सब शास्त्रों की माई बाप। उसका रचयिता कौन था? जैसे क्राइस्ट ने बाइबिल को जन्म दिया, वह है क्रिश्चियन धर्म का शास्त्र। अच्छा बाइबिल का बाप कौन? क्राइस्ट। उनको माई-बाप नहीं कहेंगे। मदर की तो वहाँ बात ही नहीं। यह तो यहाँ मात-पिता है। क्रिश्चियन ने रीस की है कृष्ण के धर्म से, यूँ तो वह क्राइस्ट को मानने वाले हैं। जैसे बुद्ध ने धर्म स्थापन किया तो बौद्धियों का शास्त्र भी है। अब गीता किसने सुनायी? उससे कौन-सा धर्म स्थापन हुआ? यह कोई नहीं जानते। कभी नहीं कहते कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। अभी गोला ऐसा बनाया है, जिससे समझ सकें कि बरोबर परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। राधे-कृष्ण तो सतयुग में हैं। उन्होंने अपने को तो ज्ञान नहीं दिया। ज्ञान देने वाला तो दूसरा चाहिए। कोई ने तो उन्हों को पास कराया होगा। यह राजाई प्राप्त कराने का ज्ञान किसने दिया? किस्मत आपेही तो नहीं बनती। किस्मत बनाने वाला या तो बाप या तो टीचर चाहिए। कहते हैं गुरु गति देते हैं। परन्तु गति सद्गति का भी अर्थ नहीं समझते। प्रवृत्ति मार्ग वालों की सद्गति होती है। बाकी गति माना सब बाप के पास जाते हैं। यह बातें कोई भी समझते नहीं। वह तो भक्ति मार्ग में बहुत बड़े-बड़े दुकान खोलकर बैठे हैं। सच्चे ज्ञान मार्ग की दुकान यह एक ही है बाकी सब भक्ति मार्ग की दुकानें हैं। बाप कहते हैं यह वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। इन जप-तप, वेद-शास्त्र आदि का अध्ययन करने से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं तो बच्चों को ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ। सारी सृष्टि का सद्गति दाता हूँ। वाया गति में जाकर फिर सद्गति में आना है। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे। यह ड्रामा बना हुआ है। जो कल्प पहले तुमको सिखाया था, जो चित्र बनवाये थे, वह अब बनवा रहे हैं।
मनुष्य कहते हैं 3 धर्मों की टांगों पर सृष्टि खड़ी है। एक देवता धर्म की टांग टूटी हुई है इसलिए हिलते रहते हैं। पहले एक धर्म रहता जिसको अद्वेत राज्य कहा जाता है। फिर वह एक टांग कम हो 3 टांगे निकलती हैं, जिसमें कुछ भी ताकत नहीं रहती है। आपस में ही लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है। धनी को जानते नहीं। निधनके बन पड़े हैं। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में भी यह बात समझानी है कि गीता का भगवान् कृष्ण नहीं है, परमपिता परमात्मा है। जिसका बर्थ प्लेस भारत है। कृष्ण तो है साकार, वह है निराकार। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसी युक्ति से कार्टून बनाना चाहिए जो सिद्ध हो जाए कि गीता किसने गाई? अंधो के आगे बड़ी आरसी (आइना) रखना है। यह है ही अंधो के आगे आइना। जास्ती टू मच में नहीं जाना है। कड़ी भूल यह है। परमपिता परमात्मा की महिमा अलग है, उसके बदले कृष्ण को महिमा दे दी है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र में नीचे राधे-कृष्ण हैं। वही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण सतयुग में, राम-सीता त्रेता में। पहला नम्बर बच्चा श्रीकृष्ण है, उनको फिर द्वापर में ले गये हैं। यह सब है भक्तिमार्ग की नूंध। विलायत वाले इन बातों से क्या जानें। ड्रामा अनुसार यह ज्ञान किसके पास भी है नहीं। कहते भी हैं ज्ञान दिन, भक्ति रात। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। सतयुग स्थापन करने वाला कौन है? ब्रह्मा आया कहाँ से? सूक्ष्मवतन में कहाँ से आया? परमपिता परमात्मा ही सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं। वहाँ ब्रह्मा दिखाते हैं। परन्तु वहाँ तो प्रजापिता ब्रह्मा होता नहीं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा और है। वह कहाँ से आया, यह बातें कोई समझ नहीं सकते। कृष्ण के अन्तिम जन्म में उनको परमात्मा ने अपना रथ बनाया है, यह किसकी बुद्धि में नही है।
यह बड़ा भारी क्लास है। टीचर तो समझते हैं ना - यह स्टूडेण्ट कैसा है? तो क्या बाप नही समझते होंगे? यह बेहद के बाप का क्लास है। यहाँ की बात ही निराली है। शास्त्रों में तो प्रलय आदि दिखाकर कितना रोला कर दिया है। कितना घमण्ड है। रामायण, गीता आदि कैसे बैठ सुनाते हैं। कृष्ण ने तो गीता सुनाई नहीं। उसने तो गीता का ज्ञान सुनकर राज्य पद पाया है। सिद्ध कर समझाते हैं, गीता का भगवान् यह है। उनके गुण यह हैं, कृष्ण के गुण यह हैं। इस भूल के कारण ही भारत कौड़ी जैसा बना है। तुम मातायें उनको कह सकती हो कि तुम लोग कहते हो माता नर्क का द्वार है परन्तु परमात्मा ने तो ज्ञान का कलष माताओं पर रखा है, मातायें ही स्वर्ग का द्वार बनती हैं। तुम निंदा कर रहे हो। परन्तु बोलने वाले बड़े होशियार चाहिए। प्वाइन्ट्स सब नोट कर समझाना चाहिए। भक्ति मार्ग वास्तव में गृहस्थियों के लिए है। यह है प्रवृत्ति मार्ग का सहज राजयोग। हम सिद्ध कर समझाने लिए आये हैं। बच्चों को शो करना है। सदैव हर्षितमुख, अचल, स्थिर, मस्त रहना चाहिए। आगे चल महिमा निकलनी जरूर है। तुम सब हो तो ब्रह्माकुमार कुमारियां। कुमारी वह जो 21 जन्मों लिए बाप से वर्सा दिलाये। कुमारियों की महिमा बहुत भारी है। मुख्य कुमारी तुम्हारी मम्मा है। चन्द्रमा के आगे फिर अच्छा स्टॉर भी चाहिए। यह ज्ञान सूर्य है। यह गुप्त मम्मा अलग है। इस राज़ को तुम बच्चे ही समझकर समझा सकते हो। उस मम्मा का नाम अलग है, मन्दिर उसके हैं। इस गुप्त बुढ़ी माँ का मन्दिर थोड़ेही है। यह मात-पिता कम्बाइन्ड है। दुनिया यह नहीं जानती। कृष्ण तो हो नहीं सकता। वह फिर भी सतयुग का प्रिन्स है। कृष्ण में भगवान् आ न सके। समझाना बहुत सहज है। गीता के भगवान् की महिमा अलग है। वह पतित-पावन सारी दुनिया का गाइड, लिबरेटर है। मनुष्य चित्रों से समझ जायेंगे कि बरोबर परमात्मा की महिमा अलग है, सब एक थोड़ेही हो सकते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी अवस्था बड़ी मस्त, अचल अडोल बनानी है। सदा हर्षितमुख रहना है।
2) ज्ञान के शुद्ध घमण्ड (नशे) में रह कर बाप का शो करना है। गीता के भगवान् को सिद्ध कर बाप की सच्ची पहचान देनी है।
वरदान:-सर्व प्राप्तियों की अनुभूति द्वारा माया को विदाई दे बधाई पाने वाले खुशनसीब आत्मा भव
जिनका साथी सर्वशक्तिमान बाप है, उनको सदा ही सर्व प्राप्तियां हैं। उनके सामने कभी किसी प्रकार की माया आ नहीं सकती। जो प्राप्तियों की अनुभूति में रह माया को विदाई देते हैं उन्हें बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं, जो सोचा नहीं वह पा लिया, बाप को पाया सब कुछ पाया ऐसी खुशनसीब आत्मा हो।
स्लोगन:-स्वचिन्तन और प्रभुचिन्तन करो तो व्यर्थ चिंतन स्वत: समाप्त हो जायेगा।
15/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, make your intellect and thoughts so pure and clean that you can imbibe shrimat accurately and thereby glorify the Father’s name.
Question:Which stage of you children will show (reveal) the Father?
Answer:
When your stage is such that your faces are constantly cheerful, that you are unshakeable and immovable and you remain stable and intoxicated, you will then be able to reveal the Father. Such clever children with a constant stage are able to give everyone the Father’s introduction accurately.
Song:To live in Your lane and to die in Your lane.
Om Shanti
You children heard the song where it says: “We have come to Your door in order to die alive.” Whose door have you come to? The same thing emerges: If Krishna is the God of the Gita, none of these things would be possible nor would Krishna be here. He is the prince of the golden age. Krishna did not speak the Gita. It was the Supreme Father, the Supreme Soul, who spoke the Gita. Everything depends on this one aspect. You have been making so much effort on the path of devotion, but there was no need for it. Here, it is a question of a second. The Father has to make so much effort simply to prove this one aspect. He has to give so much knowledge. It is the ancient knowledge that God gives that is called knowledge. Everything depends on the Gita. The Supreme Father, the Supreme Soul, came and taught easy Raja Yoga and knowledge in order to establish the deity religion, which has now disappeared. People think that Krishna will come again at some time and relate the Gita. However, you have to prove clearly, using the picture of the cycle, that the parlokik Supreme Father, the Supreme Soul, the Ocean of Knowledge, is the One who spoke the Gita. The praise of Krishna is different from the praise of the Supreme Father, the Supreme Soul. Krishna is the prince of the golden age, the one who claimed his fortune of the kingdom by studying easy Raja Yoga. You have to prove that when he studies, his name and form are different from his name and form when he claims the kingdom. Krishna can never be called the Purifier. Only the one Father is the Purifier. The Shri Krishna soul is now once again studying Raja Yoga from the Purifier and becoming the future prince of the pure world. You need to find clever methods of proving that this explanation is correct. You also have to prove this to the foreigners. The Gita is the number one scripture. The Shrimat Bhagawad Gita, the Mother Gita, is the jewel of all the scriptures. Now, who gave birth to the mother? It is the Father who adopts the mother. Who spoke the Gita? It would not be said that Christ adopted the Bible. The Bible that they study was created from the teachings spoken by Christ. Now, who gave the teachings of the Gita that were later made into the book that they study? No one knows this. Everyone knows about the other scriptures. You have to prove who it was who gave these easy teachings of Raja Yoga. Day by day, the world continues to become more and more impure. All of these aspects will only sit in a clean intellect. Those who do not follow shrimat cannot imbibe this knowledge. Shrimat says to such souls: You are not able to explain at all. Don’t consider yourself to be knowledge-full. First of all, the main aspect that has to be proved is that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the God of the Gita. Only He is the Purifier. People say that He is omnipresent. They either call Him the element of light or the Ocean. They say whatever enters their heads; it has no meaning. The whole mistake emerged from the Gita where it says that Shri Krishna is the God of the Gita. Therefore, in order to explain, you have to refer to the Gita. Guptaji from Benares was told to prove in Benares that Krishna is not the God of the Gita. Seminars now take place in which all the religious people keep asking what they can do to create peace. It is not in the hands of impure human beings to create peace. It is said: O Purifier, come! How can impure people create peace when they themselves are calling out for peace? However, they don’t know the Father who makes the impure pure. Bharat used to be pure and it has now become impure. Now, who is the Purifier? This does not enter anyone’s intellect. They sing the praise of King Rama, but he is not God. They keep calling out falsely, but no one knows anything. Now, who can go and explain this to them? Very good children are needed. You need very good tactics to explain this. A large globe has been made with which it can be proved that God created the Gita. They say that, whoever it is, all are God. The Father says: You are senseless! I came and established the pure kingdom; instead, they inserted Shri Krishna’s name. I make this one pure from impure and make him the first prince. God speaks: I adopt the Krishna soul, name him Brahma and give knowledge through him. Through this easy Raja Yoga, he then becomes the first prince of the golden age. This explanation is not in the intellect of anyone else. First, you have to rectify the mistake and prove that the Gita, the shrimat spoken by God, is the mother and father of all scriptures. Who created it? Similarly, Christ gave birth to the Bible which is the scripture of the Christian religion. Achcha, who is the father of the Bible? Christ; he isn’t called the mother and father. They don’t have the concept of the mother there. Here, this One is the Mother and Father. The Christian religion has been compared to the Krishna religion. In fact, they believe in Christ. Similarly, Buddha founded the Buddhist religion and so the Buddhists too have their scripture. However, no one knows who spoke the Gita and which religion was created through that. No one ever says that the one who gave knowledge was the Purifier, the Supreme Father, the Supreme Soul. The cycle (picture) has been made in such a way that they will definitely understand that it was the Supreme Father, the Supreme Soul, who gave this knowledge. Radhe and Krishna were in the golden age; they could not have given this knowledge to themselves. Someone else was needed to give knowledge. Someone else must have enabled them to pass. Who gave them this knowledge to claim their kingdom? A fortune is not created by itself. In order to enable you to create your fortune, a father or a teacher is needed. They say that a guru grants salvation but they do not even understand the meaning of liberation or salvation. It is those on the household path who can receive liberation. “Liberation” means that everyone goes to the Father. No one understands this. They open many large shops on the path of devotion. This shop of the true path of knowledge is the only one whereas all the rest are the shops of the path of devotion. The Father says: All the Vedas and scriptures etc. are the paraphernalia of the path of devotion. I cannot be found by doing penance or tapasya etc. or through the Vedas or scriptures. I give you children knowledge and make you pure. I am the Bestower of Salvation for the whole world. You have to go via liberation to salvation. Not everyone will go to the golden age. This drama is predestined. Whatever you were taught in the previous cycle and whatever pictures were created then are now being created again. People say that the world is standing on the legs of three religions, that the leg of the deity religion is broken and that this is why the world continues to shake. Previously, there was just the one religion, which was called the undivided kingdom. Then the leg of that one religion disappeared and the three legs emerged. Due to this, there is no power left. They continue to fight and quarrel among themselves. They don’t know the Lord and Master and so they have become orphans. You need a great deal of tact to explain to them. You also have to explain at the exhibitions that Krishna is not the God of the Gita; it is the Supreme Father, the Supreme Soul, whose birthplace is Bharat. Krishna is corporeal whereas that One is incorporeal. His praise is completely different from Krishna’s. You should create a cartoon in such a clever way that it proves who spoke the Gita. This is like placing a large mirror in front of the blind. You should not go into things too much. The greatest mistake is to give the Supreme Father, the Supreme Soul’s praise to Krishna whose praise is completely different from His. At the bottom of the picture of Lakshmi and Narayan it is written: Radhe and Krishna. They later become Lakshmi and Narayan. Lakshmi and Narayan are in the golden age whereas Rama and Sita are in the silver age. The first child is Shri Krishna, and yet they have put him in the copper age. All of those things are fixed on the path of devotion. What do those from abroad know about this? According to the drama, no one else has this knowledge. It has been said that knowledge is day and that devotion is night. The day and night of Brahma have been remembered. Who established the golden age? Where did Brahma come from? How did he go into the subtle region? It was the Supreme Father, the Supreme Soul, who created the subtle world where Brahma has been shown. However, Brahma, the Father of Humanity, does not exist there. Surely, the Father of Humanity must be someone else. Where did he come from? No one is able to understand these things. In the final birth of Krishna, God made him His chariot. This too is not in anyone’s intellect. This is a huge class . If a teacher can understand what a student is like, can the Father not understand this? This is the class of the unlimited Father. All the aspects taught here are unique. They have created so much confusion in the scriptures by showing annihilation. They have so much arrogance. See how they sit and relate the Ramayana, the Gita etc. Krishna did not relate the Gita. He heard the knowledge of the Gita and attained the royal status. You explain and prove that this One is the God of the Gita. These are His virtues and these are the virtues of Krishna. Because of this mistake, Bharat has become like a shell. You mothers can tell them: “You people say that women are the doorway to hell, but the Supreme Soul has placed the urn of knowledge on the mothers. It is the mothers who become the doorway to heaven. You are defaming us.” However, those who say this have to be very clever. You have to note down all the points and explain to them: “In fact, the path of devotion is for householders. This is easy Raja Yoga for the household path. We have come to prove this to you.” You children have to reveal the Father. Constantly keep your faces cheerful and be unshakeable, stable and intoxicated. As you go further, you will definitely be praised. You are all Brahma Kumars and Kumaris. A kumari is someone who inspires others to claim their inheritance for 21 births from the Father. There is great praise of the kumaris. Your Mama is the main kumari. A very good star is needed next to the moon. That One is the Sun of Knowledge and this one is the incognito mother. This mother is separate. Only you children can understand these secrets and explain them to others. That mother in whose name those temples were built is completely separate from this mother. There are no temples to this old, incognito mother. This mother and the Father are combined. No one in the world knows this. It cannot be Krishna because he is the prince of the golden age. God cannot enter Krishna. It is very easy to explain this. The praise of the God of the Gita is separate. That Purifier is also the Guide and the Liberator of the whole world. People will understand from these pictures that God’s praise is definitely different from Krishna’s praise and that not everyone can have the same praise. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Make your stage unshakeable and immovable and one of great intoxication. Keep your face constantly cheerful.
2. Remain in this pure pride of knowledge and reveal the Father. Prove who the God of the Gita is and give everyone the true introduction of the Father.
Blessing:May you be a soul who has the fortune of happiness and by experiencing all attainments bids farewell to Maya and receives congratulations.
Those whose Companion is the Almighty Authority Father have all attainments all the time. No type of Maya can come in front of them. Those who stay in the experience of the attainments and bid farewell to Maya receive congratulations from BapDada at every step. So, constantly maintain the awareness that God Himself is congratulating you souls, that you have attained what you never even thought of. When you found the Father, you found everything; you are such fortunate souls.
Slogan:When you have thoughts of your original self and of God, wasteful thinking will automatically finish.
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