Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 13-Nov-2018 )
13-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करो, रात में बैठ ज्ञान का सिमरण करो, बाप को याद करो, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराओ तो नशा चढ़ेगा''
प्रश्नः-माया किन बच्चों को याद में बैठने ही नहीं देती है?
उत्तर:-
जिनकी बुद्धि किसी न किसी में फँसी हुई रहती है, जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ है, पढ़ाई अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं माया उन्हें याद में बैठने नहीं देती। वह मनमनाभव रह नहीं सकते। फिर सर्विस के लिए भी उनकी बुद्धि चलती नहीं। श्रीमत पर न चलने के कारण नाम बदनाम करते हैं, धोखा देते हैं तो सजायें भी खानी पड़ती हैं।
गीत:-तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। गॉड फादर को ही बुलाते हैं, कृष्ण को नहीं। बाप को कहेंगे - आओ, फिर से कंसपुरी के बदले कृष्णपुरी बनाओ। कृष्ण को तो नहीं बुलायेंगे। कृष्णपुरी को तो स्वर्ग कहा जाता है। यह कोई भी जानते नहीं, क्योंकि कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। यह सब भूलें शास्त्रों से हुई हैं। अभी बाप यथार्थ बात समझाते हैं। वास्तव में सारी दुनिया का बड़ा गॉड फादर है। सबको उस एक गॉड को ही याद करना है। भल मनुष्य क्राइस्ट, बुद्ध अथवा देवताओं आदि को याद करते हैं, हरेक धर्म वाले अपने धर्म स्थापक को याद करते हैं। याद करना शुरू हुआ है द्वापर से। भारत में गाया हुआ भी है दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई। बाद में ही याद करने की रस्म पड़ती है, क्योंकि दु:ख है। पहले-पहले भारतवासियों ने याद शुरू किया। उन्हों को देखते दूसरे धर्म वाले भी अपने धर्म स्थापक को याद करने लग पड़ते हैं। बाप भी धर्म स्थापन करने वाला है। परन्तु मनुष्यों ने बाप को भूल श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। लक्ष्मी-नारायण के धर्म का उन्हें पता नहीं है। याद तो न लक्ष्मी-नारायण को, न कृष्ण को करना है। याद एक बाप को करना है जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। फिर जब यह भक्ति मार्ग में शिव की पूजा करने लगते हैं तो समझते हैं गीता का भगवान् कृष्ण है। उनको याद करते हैं। उन्हों को देख वह भी अपने धर्म स्थापक को याद करते हैं। यह भूल जाते हैं कि यह देवता धर्म भगवान् ने स्थापन किया है। हम लिख सकते हैं कि गीता का सरमोनाइजर कृष्ण नहीं, शिवबाबा है। वह है निराकार - यह वन्डरफुल बात हुई ना। किसी के पास भी शिवबाबा का परिचय नहीं है। वह स्टॉर है। सब जगह शिव के मन्दिर हैं तो वह समझते हैं कि इतना बड़ा है, अखण्ड ज्योति तत्व है। परन्तु वह तो महतत्व में रहते हैं, जहाँ आत्मायें रहती हैं। आत्मा का रूप बरोबर स्टॉर मिसल है, परमपिता परमात्मा भी स्टॉर है। परन्तु वह नॉलेजफुल, बीजरूप होने कारण उनमें त़ाकत है। आत्माओं का पिता (बीज) परमात्मा को कहेंगे। है वह निराकार। मनुष्य को तो ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ लव कह न सकें इसलिए समझाने वाले बच्चों में अथॉरिटी चाहिए, जिनकी बुद्धि विशाल हो। तुम सबमें मुख्य है मम्मा, वन्दे मातरम् भी गाया हुआ है। कन्याओं द्वारा बाण मरवाये। अधर कन्या, कुँवारी कन्या का राज़ कहाँ है नहीं। सिर्फ मन्दिर से ही सिद्ध होता है। जगदम्बा भी बरोबर है। परन्तु वे जानते नहीं कि वह कौन है?
बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा मुख कमल द्वारा रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। ड्रामा में क्या है - यह मनुष्यों की बुद्धि में आना चाहिए। यह बेहद का ड्रामा है। इसके हम एक्टर हैं तो ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बुद्धि में रहना चाहिए। जिनकी बुद्धि में यह रहता है उन्हें बहुत नशा रहता है। सारा दिन शरीर निर्वाह किया, रात को बैठ स्मृति में लाओ - यह ड्रामा कैसे चक्र लगाता है? यही मनमनाभव है। परन्तु माया रात को भी बैठने नहीं देती है। एक्टर्स की बुद्धि में तो ड्रामा का राज़ रहना चाहिए ना। परन्तु है बड़ा मुश्किल। कहाँ न कहाँ फँस पड़ते हैं तो बाबा बुद्धि का ताला बन्द कर देते हैं। बहुत बड़ी मंज़िल है। अच्छी पढ़ाई वाले फिर तनखाह भी अच्छी लेते हैं ना। यह पढ़ाई है। परन्तु बाहर जाने से भूल जाते हैं फिर अपनी मत पर चल पड़ते हैं। बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, श्रीमत पर चलने में ही तुम्हारा कल्याण है। यह है पतित दुनिया। विकार को पॉइज़न कहा जाता है, जिसका सन्यासी लोग सन्यास करते हैं। यह रावण राज्य शुरू ही होता है द्वापर से, यह वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। सर्विस के लिए बच्चों की बुद्धि चलनी चाहिए। श्रीमत पर चलें तो धारणा भी हो। बच्चे जानते हैं विनाश सामने खड़ा है। सब दु:खी हो रड़ी मारेंगे - हे भगवान्, रहम करो। त्राहि-त्राहि करते समय भगवान् को याद करेंगे। पार्टीशन के समय कितना याद करते थे - हे भगवान्, रहम करो, रक्षा करो। अब रक्षा क्या करेंगे? रक्षा करने वाले को ही जानते नहीं तो रक्षा करेंगे कैसे? अभी बाप आया है परन्तु मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठता है। बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे सर्विस करो। यह श्रीमत बाप की मिलती है। ऐसे बाप को पहचान नहीं सकते, यह भी कैसा वन्डर है! कितनी समझने की बातें हैं! सारा दिन शिवबाबा की याद बुद्धि में रहे। यह भी उनका रथ साथी ठहरा ना।
बाबा देखते हैं - बच्चे आज बहुत अच्छे निश्चयबुद्धि हैं, कल संशयबुद्धि बन जाते हैं। माया का तूफान लगने से अवस्था गिरती है तो बाबा इसमें क्या कर सकते हैं। तुम ज्ञान में आये, सरेन्डर हुए तो तुम ट्रस्टी ठहरे। तुम क्यों फिक्र करते हो? सरेन्डर किया है, फिर सर्विस भी करनी है तो रिटर्न में मिलेगा। अगर सरेन्डर हुआ है, सर्विस नहीं करता तो भी उनको खिलाना तो पड़े, तो उन पैसों से ही खाते-खाते अपना ख़त्म कर लेते हैं, सर्विस करते नहीं हैं। तुम्हें सर्विस करनी है मनुष्य को हीरे जैसा बनाने की। मुख्य बाबा की रूहानी सर्विस करनी है, जिससे मनुष्य ऊंचे बने। सर्विस नहीं करते तो जाकर दास-दासी बनेंगे। जो पढ़ाई अच्छी पढ़ते हैं, उनका मान भी ऊंचा होता है, जो नापास होंगे वह जाकर दास-दासी बनेंगे।
बाबा कहते हैं - बच्चे, मुझे याद करो और वर्सा लो। बस, यह मनमनाभव अक्षर ही राइट है। ओशन ऑफ नॉलेज कहते हैं कि मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। ऐसे कृष्ण कह न सके, बाप ही कहते हैं - मामेकम् याद करो और भविष्य राज्य पद को याद करो। यह राजयोग है ना। इससे प्रवृत्ति मार्ग सिद्ध होता है। यह तुम ही समझा सकते हो। तुम्हारे में भी जो सर्विसएबुल तीखे हैं, उन्हों को बुलाया जाता है। समझा जाता है यह होशियार हैण्ड है। बच्चों को योगयुक्त बनना है। श्रीमत पर अगर नहीं चलते तो नाम बदनाम करते हैं। धोखा देते हैं तो फिर सजायें खानी पड़ती हैं। ट्रिब्युनल भी बैठती है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास
बच्चों को पहले-पहले समझानी देनी है बाप की। बेहद का बाप ही हमको पढ़ाते हैं, गीता पढ़ने वाले कृष्ण को भगवान कहते हैं। उन्हें समझाना है कि भगवान तो निराकार को कहा जाता है। देहधारी तो बहुत हैं। बिगर देह है ही एक। वह है ऊंचे से ऊंचा शिवबाबा। यह अच्छी रीत बुद्धि में बिठाओ। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है, वही ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा है। वह है बेहद का बाप और यह है हद का बाप। और कोई 21 जन्मों का वर्सा नहीं देते हैं। ऐसा भी कोई बाप नहीं जिससे अमर पद मिले। अमरलोक है सतयुग। यह है मृत्युलोक। तो बाप का परिचय देने से समझेंगे, बाप से वर्सा मिलता है जिसको दैवी स्वराज्य कहा जाता है। वह बाप ही देते हैं। वही पतित-पावन गाया जाता है, वह कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। पतित से पावन बन पावन दुनिया में चलने लायक बन सकते हो। कल्प-कल्प बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। याद की यात्रा से ही पवित्र बनना है। अभी पावन दुनिया आ रही है। पतित दुनिया विनाश होनी है। पहले-पहले बाप का परिचय दे पक्का कराना है। जब पक्का बाप को समझ जायें तब बाप से वर्सा मिले। इसमें माया भुलाती बहुत है। तुम कोशिश करते हो बाबा को याद करने की फिर भूल जाते हो। शिवबाबा को याद करने से ही पाप कटेंगे। वह बाबा इनके द्वारा बताते हैं बच्चे मुझे याद करो। फिर भी धंधे आदि में भूल जाते हैं। यह भूलना नहीं चाहिए। यही मेहनत की बात है। बाप को याद करते-करते कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है। कर्मातीत अवस्था वाले को कहा जाता है फरिश्ता। तो यह पक्का याद करो कैसे किसको समझायें। पक्का निश्चय भी हो कि हम भाइयों को (आत्माओं को) समझाते हैं। सबको बाप का पैगाम देना है। कई कहते हैं बाबा पास चलूँ, दीदार करूँ। परन्तु इसमें दीदार आदि की तो बात ही नहीं है। भगवान आकर सिखलाते हैं और मुख से कहते हैं तुम मुझ अपने निराकार बाप को याद करो। याद करने से सब पाप कट जाते हैं। कहाँ भी धंधे आदि में बैठे घड़ी-घड़ी बाप को याद करना है। बाप ने हुक्म दिया है मुझे याद करो। निरन्तर याद करने वाले ही विन करेंगे। याद नहीं करेंगे तो मार्क्स कम हो जायेंगे। यह पढ़ाई है ही मनुष्य से देवता बनने की, जो एक बाप ही पढ़ाते हैं। तुम्हें चक्रवर्ती राजा बनना है, तो 84 जन्मों को (पा को) भी याद करना है। कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए मेहनत करनी है। वह अन्त में होनी है। अन्त कोई भी समय आ सकती है, इसलिए पुरुषार्थ लगातार करना है। नित्य तुम्हारा पुरुषार्थ चलता रहे। लौकिक बाप तुम्हें ऐसे नहीं कहेंगे कि देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो। शरीर का भान छोड़ मुझे याद करो तो पाप कटेंगे। यह तो बेहद का बाप ही कहते हैं बच्चे मुझ एक की याद में रहो तो सब पाप कट जायेंगे। तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। यह धंधा तो खुशी से करना चाहिए ना। भोजन खाते समय भी बाप को याद करना है। याद में रहने का गुप्त अभ्यास तुम बच्चों का चलता रहे तो अच्छा है। तुम्हारा ही कल्याण है। अपने को देखना है बाबा को कितना समय याद करता हूँ? अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडनाईट। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सर्विस करनी है। कभी भी संशयबुद्धि बन पढ़ाई को नहीं छोड़ना है। ट्रस्टी होकर रहना है।
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी बाप को याद करना है। श्रीमत में अपना कल्याण समझ चलते रहना है। अपनी मत नहीं चलानी है।
वरदान:-सर्व प्रति शुभ कल्याण की भावना रख परिवर्तन करने वाले बेहद सेवाधारी भव
मैजारिटी बच्चे बापदादा के आगे अपनी यह आश रखते हैं कि हमारा फलाना संबंधी बदल जाए। घर वाले साथी बन जाएं लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश रखते हो तो हद की दीवार के कारण आपकी शुभ कल्याण की भावना उन आत्माओं तक पहुंचती नहीं। बेहद के सेवाधारी सर्व प्रति आत्मिक भाव वा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई-भाई के संबंध की वृत्ति से शुभ भावना रखते हैं तो उसका फल अवश्य प्राप्त होता है - यही मन्सा सेवा की यथार्थ विधि है।
स्लोगन:-ज्ञान रुपी बाणों को बुद्धि रुपी तरकश में भरकर माया को ललकारने वाले ही महावीर योद्धे हैं।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य:
"मन के अशान्ति का कारण है कर्मबन्धन और शान्ति का आधार है कर्मातीत''
वास्तव में हरेक मनुष्य की यह चाहना अवश्य रहती है कि हमको मन की शान्ति प्राप्त हो जावे इसलिए अनेक प्रयत्न करते आये हैं मगर मन को शान्ति अब तक प्राप्त नहीं हुई, इसका यथार्थ कारण क्या है? अब पहले तो यह सोच चलना जरूरी है कि मन के अशान्ति की पहली जड़ क्या है? मन की अशान्ति का मुख्य कारण है - कर्मबन्धन में फंसना। जब तक मनुष्य इन पाँच विकारों के कर्मबन्धन से नहीं छूटे हैं तब तक मनुष्य अशान्ति से छूट नहीं सकते। जब कर्मबन्धन टूट जाता है तब मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। अब सोच करना है - यह कर्मबन्धन टूटे कैसे? और उसे छुटकारा देने वाला कौन है? यह तो हम जानते हैं कोई भी मनुष्य आत्मा किसी भी मनुष्य आत्मा को छुटकारा दे नहीं सकती। यह कर्मबन्धन का हिसाब-किताब तोड़ने वाला सिर्फ एक परमात्मा है, वही आकर इस ज्ञान योगबल से कर्मबन्धन से छुड़ाते हैं इसलिए ही परमात्मा को सुख दाता कहा जाता है। जब तक पहले यह ज्ञान नहीं है कि मैं आत्मा हूँ, असुल में मैं किसकी सन्तान हूँ, मेरा असली गुण क्या है? जब यह बुद्धि में आ जाए तब ही कर्मबन्धन टूटे। अब यह नॉलेज हमें परमात्मा द्वारा ही प्राप्त होती है गोया परमात्मा द्वारा ही कर्मबन्धन टूटते हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
13/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, during the day, earn a livelihood for your body and sit down at night and churn knowledge. Remember the Father. Make your intellect spin the discus of self-realisation and your intoxication will rise.
Question:Which children does Maya not allow to sit in remembrance?
Answer:Maya doesn't allow those to sit in remembrance whose intellects are trapped in someone or other, whose intellects are locked and who don't study well. They are unable to remain “Manmanabhav”. Then their intellects don't work for service either. Because of not following shrimat, they defame the Father’s name and deceive Him and so punishment has to be experienced.
Song:My heart desires to call out to You.
Om Shanti
You children heard the song. They call out to God, the Father, not to Krishna. They say to the Father: Come and once again change the land of Kans into the land of Krishna. They would not call Krishna. The land of Krishna is called heaven. No one knows this because they have taken Krishna into the copper age. All of these mistakes have been made in the scriptures. The Father is now explaining things accurately to you. In fact, the Senior One of the whole world is God, the Father. Everyone has to remember that one God. People remember Christ, Buddha or the deities. Those of every religion remember the one who established their religion. It was in the copper age that remembrance began. In Bharat, it is remembered that everyone remembers God at the time of sorrow and that no one remembers Him at the time of happiness. It is later that, because of sorrow, the system of remembrance begins. It was the people of Bharat who first of all began remembrance. Seeing them, those of other religions began to remember the founders of their religions. The Father too is someone who establishes a religion. However, people have forgotten the Father and inserted Shri Krishna’s name. They don't know about the religion of Lakshmi and Narayan. You must neither remember Lakshmi and Narayan nor Krishna. You have to remember the one Father who is establishing the original eternal deity religion. Later, when they begin to worship Shiva on the path of devotion, they believe that the God of the Gita is Krishna; they remember him. Seeing them, others also begin to remember the founders of their religions. They forget that it was God who established that deity religion. We can write that the Sermoniser of the Gita is not Krishna, but Shiv Baba. He is incorporeal. So this is something wonderful, is it not? No one has the introduction of Shiv Baba. He is a star. Everywhere, in all the Shiva Temples, they think that He has a big form, that He is the constant element of light. However, He resides in the great element of light where souls reside. The form of souls is truly like a star. The Supreme Father, the Supreme Soul, is also a star, but, because He is knowledge-full and the Seed, He has that power. The Supreme Soul (the Seed) is called the Father of souls. He is incorporeal. Human beings cannot be called the Ocean of Knowledge or the Ocean of Love. This is why the children who explain knowledge should have that authority in them and their intellects have to be broad and unlimited. Amongst all of you, Mama is the main one. It is remembered: Salutations to the mothers. The arrows were made to be shot by the kumaris. Nowhere else do they have the secret of the half kumaris and the kumaris. This is proved just by the temple here. There is truly also Jagadamba, but those people don't know who she is. The Father says: I tell you the secrets of the Creator and the beginning, the middle and the end of creation through the lotus-mouth of Brahma. It should enter the intellects of people what is in the drama. This is an unlimited drama. We are actors of this drama and so the secrets of the beginning, the middle and the end of the drama should remain in our intellects. Those who have this in their intellects have a lot of intoxication. Throughout the day, after you have done everything for the livelihood of your body, sit down at night and remember how this drama rotates. This is “Manmanabhav”. However, Maya doesn't allow you to sit at night. The secrets of the drama should remain in the intellects of the actors. However, this is very difficult; they become trapped somewhere or other and so their intellects get locked by Baba. The destination is very high. Those who study well ask for a good salary. This too is a study, but, as soon as you go outside, you forget and then begin to follow the dictates of your own minds. The Father says: Sweet children, only in following shrimat is there benefit for you. This world is impure. The vice which the sannyasis renounce is called poison. The kingdom of Ravan begins in the copper age. The Vedas and scriptures etc. are all the paraphernalia of the path of devotion. Children’s intellects should work on service. If you follow shrimat, you can also imbibe knowledge. You children know that destruction is just ahead. Everyone will be unhappy and will cry out: O God, have mercy! At the time of crying out in distress, they will remember God. They used to remember God so much at the time of the partition: O God, have mercy! Protect us! How would He protect you? If people don't know the One who protects them, how can He protect them? The Father has now come, but this scarcely sits in anyone's intellect. The Father explains: Do service in such and such a way. You receive this shrimat from the Father. It is such a wonder that they are unable to recognise such a Father. These matters have to be understood. Let the remembrance of Shiv Baba be in your intellects throughout the whole day. This one is His chariot and companion. Baba sees that, today, children’s intellects have a lot of faith and that tomorrow their intellects develop doubts. Their stage falls when storms of Maya come, and so what can Baba do about that? You came into knowledge and surrendered yourselves and so you are trustees. Why do you worry? You have surrendered yourselves and you also have to do service and you will then receive the return. If you have surrendered yourself but don't do service, you still have to be fed and so you use up all the money you gave on your food. They don’t do service. You have to do the service of making human beings become like diamonds. The main thing is that you have to do Baba’s spiritual service through which human beings can become elevated. If you don't do service, you will go and become maids and servants. Those who study well are given very high regard whereas those who fail will go and become maids and servants. Baba says: Children, remember Me and claim your inheritance; that’s all! This term ‘Manmanabhav’ is right. The Ocean of Knowledge says: Remember Me and your sins will be absolved. Krishna cannot say this. Only the Father says: Constantly remember Me alone and remember your future royal status. This is Raja Yoga. The family path is proved through this. Only you can explain this. Amongst you too, those who are clever and serviceable are invited. It is understood when someone is a clever hand. You children have to be yogyukt. If you don't follow shrimat, you defame the Father’s name. If you deceive Him, there has to be punishment. The Tribunal also sits. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Night class:
First of all, you children have to give the explanation of the Father. Only the unlimited Father is teaching us. They call Krishna, the one who studies the Gita, God. You have to explain to them that it is the Incorporeal who is called God. There are many bodily beings. There is only the One who is without a body. He is the Highest on High, Shiv Baba. Make this sit in their intellects very well: You receive the unlimited inheritance from the unlimited Father. He alone is the Highest on High, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. That One is the unlimited Father and this one is a limited father. No one else gives you the inheritance for 21 births. There isn't any other father from whom you receive an immortal status. The golden age is the land of immortality. This is the land of death. When you give them the Father's introduction, they will understand that they receive an inheritance, which is called deity self-sovereignty, from the Father. Only the Father gives you that. That Purifier is remembered. He says: Consider yourself to be a soul and remember Me, the Father, and your sins will be cut away. You can become pure from impure and become worthy of going to the pure world. The Father says every cycle: Constantly remember Me alone. Only through the pilgrimage of remembrance will you become pure. The pure world is now coming and the impure world is to be destroyed. First of, all give the Father's introduction and make them understand this firmly. Only when they firmly understand about the Father can they receive the Father's inheritance. This is where Maya makes you forget a lot. You try to remember Baba and then you forget Him. Only by remembering Shiv Baba will your sins be cut away. That Baba tells you through this one: Children, remember Me. Nevertheless, you forget Me when you become busy in your business etc. You should not forget Him. This is the thing that requires effort. You have to reach your karmateet stage by remembering the Father. Those who have the karmateet stage are called angels. Therefore, remember firmly how you can explain to someone. There should be the firm faith that you are explaining to your brothers (souls) . Give everyone the Father's message. Some say: I want to go to Baba and have a vision. However, there is no question of visions in this. God comes and teaches you and says through the mouth: Remember Me, your incorporeal Father. By remembering Me all your sins will be cut away. While sitting anywhere doing your business etc., you have to remember the Father again and again. The Father has given you the order: Remember Me! Only those who constantly remember Me will win. If you don't remember Me, your marks will be reduced. This is the study to change from human beings into deities. Only the one Father teaches you this. You have to become the kings who rule the globe, and so you also have to remember the cycle of 84 births. You have to make effort to reach your karmateet stage. That will happen at the end. The end can come at any time, and so you have to make continuous effort. Your efforts should continue all the time. Your physical father would not say: Renounce all your bodily relations and consider yourself to be a soul. Renounce the consciousness of the body and remember Me and your sins will be cut away. It is only the unlimited Father who says: Children, remain in remembrance of Me alone and your sins will be cut away and you will become satopradhan. You should do this business in happiness. You have to remember the Father even when taking your meals. It is good if the incognito practice of you children of staying in remembrance continues all the time. There is only benefit for you in that. You have to check yourself and see for how long you remember Baba. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good night. Om shanti.
Essence for Dharna:
1. Do the spiritual service of making human beings become like diamonds. Never let your intellect develop doubts and thereby stop studying. Remain a trustee.
2. While acting for the livelihood of your body, you have to remember the Father. Continue to move along while considering there to be benefit for you in following shrimat. Do not follow the dictates of your own mind.
Blessing:May you be an unlimited server who brings about transformation while having benevolent feelings for all.
The majority of children place a desire in front of BapDada that such-and-such a relative of theirs should change, or that their family members become their companions. However, because you have that desire while considering just those souls as belonging to you, there is a wall of limitation; your benevolent feelings do not reach those souls. An unlimited server has soul- conscious feelings for all and has unlimited vision of soul consciousness. When you have good wishes with the attitude of brotherhood, you definitely receive the fruit of that. This is the accurate way of serving through the mind.
Slogan:Only those who challenge Maya by filling the quivers of their intellects with arrows of knowledge are brave and courageous warriors.
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