Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Nov 2018 | 107807 | 2018-12-19 02:03:55 | |
2 | Murali 02-Nov-2018 | 132943 | 2018-12-19 02:03:55 | |
3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
22 | Murali 22-Nov-2018 | 124513 | 2018-12-19 02:03:56 | |
23 | Murali 23-Nov-2018 | 114180 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 05-Nov-2018 )
05-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति मधुबन
"मीठे बच्चे - एवरहेल्दी-एवरवेल्दी बनने के लिए तुम अभी डायरेक्ट अपना तन-मन-धन इन्श्योर करो, इस समय ही यह बेहद का इन्श्योरेन्स होता है''
प्रश्नः-आपस में एक-दूसरे को कौन-सी स्मृति दिलाते उन्नति को पाना है?
उत्तर:-एक-दूसरे को स्मृति दिलाओ कि अब नाटक पूरा हुआ, वापस घर चलना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया, 84 जन्म पूरे किये, अब शरीर रूपी वस्त्र उतार घर चलेंगे। यही है तुम रूहानी सोशल वर्कर की सेवा। तुम रूहानी सोशल वर्कर सबको यही सन्देश देते रहो कि देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल बाप और घर को याद करो।
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........ ओम् शान्ति।
जहाँ गीता की पाठशालायें होती हैं वहाँ अक्सर करके यह गीत गाते हैं। गीता सुनाने वाले पहले यह श्लोक गाते हैं। यह जानते तो नहीं हैं कि किसको बुलाते हैं। इस समय धर्म ग्लानि है। पहले है प्रार्थना फिर वह रेसपान्स करते हैं आओ, फिर से आकर गीता ज्ञान सुनाओ क्योंकि पाप बहुत बढ़ गये हैं। वह फिर रेसपान्स करते हैं कि हाँ, जबकि भारत के लोग पाप आत्मा दु:खी बन जाते हैं, धर्म ग्लानि हो पड़ती है तब मैं आता हूँ। स्वरूप बदलना पड़ता है जरूर मनुष्य तन में ही आयेंगे। रूप तो सब आत्मायें बदलती हैं। तुम आत्मायें असुल निराकारी हो फिर यहाँ आकर साकारी बनती हो। मनुष्य कहलाती हो। अभी मनुष्य पापात्मा, पतित हैं तो मुझे भी अपना रूप रचना पड़े। जैसे तुम निराकार से साकारी बने हो, मुझे भी बनना पड़े। इस पतित दुनिया में तो श्रीकृष्ण आ न सके। वह तो है स्वर्ग का मालिक। समझते हैं श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई परन्तु कृष्ण तो पतित दुनिया में हो न सके। उनका नाम, रूप, देश, काल, एक्ट सब बिल्कुल अलग है। यह बाप बतलाते हैं। कृष्ण को तो अपने मात-पिता हैं, उसने माँ के गर्भ से अपना रूप रचा। मैं तो गर्भ में नहीं जाता। मुझे रथ तो जरूर चाहिए। मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। पहला नम्बर तो है श्रीकृष्ण। इनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ 84वाँ जन्म। तो मैं इसमें ही आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। श्रीकृष्ण तो ऐसे नहीं कहते कि मैं अपने जन्मों को नहीं जानता हूँ। भगवान् कहते हैं जिसमें मैंने प्रवेश किया है, वह अपने जन्मों को नहीं जानता। मैं जानता हूँ, कृष्ण तो राजधानी का मालिक है। सतयुग में है सूर्यवंशी राज्य, विष्णुपुरी। विष्णु कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। कहाँ भी भाषण होता है तो यह रिकार्ड काफी है क्योंकि यह तो भारतवासी खुद गाते हैं। जब धर्म प्राय: लोप हो जाए तब तो फिर से गीता सुनाऊं। वही धर्म फिर से स्थापन करना है। उस धर्म के कोई मनुष्य ही नहीं हैं तो फिर गीता का ज्ञान कहाँ से निकला? बाप समझाते हैं - सतयुग-त्रेता में कोई शास्त्र आदि होते नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री, इन द्वारा मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते। मुझे तो आना पड़ता है, आकर सबको सद्गति देता हूँ वाया गति। सबको वापिस जाना पड़ता है। गति में जाकर फिर स्वर्ग में आना है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। बाप कहते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है। गाया हुआ है गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् दु:ख रहित। सन्यासी तो जीवनमुक्त बना न सकें। वह तो जीवनमुक्ति को मानते ही नहीं। इन सन्यासियों का धर्म सतयुग में तो होता ही नहीं है। सन्यास धर्म तो बाद में होता है। इस्लामी, बौद्धी आदि यह सब सतयुग में नहीं आयेंगे। अभी और सब धर्म हैं बाकी देवता धर्म है नहीं। वे सब और धर्मों में चले गये हैं। अपने धर्म का पता नहीं है। कोई भी अपने को देवता धर्म का मानते ही नहीं। जयहिन्द कहते हैं - वह तो बाप है नहीं। भारत की जय, भारत की खय (हार) कब होती है - यह थोड़ेही कोई जानते हैं। भारत की जय तब होती है जब राज्य-भाग्य मिलता है, जब पुरानी दुनिया का विनाश होता है। खय करता है रावण। जय करते हैं राम। ‘जय भारत' कहेंगे। ‘जय हिन्द' नहीं। अक्षर बदल दिया है। गीता के अक्षर अच्छे-अच्छे हैं।
ऊंच ते ऊंच है भगवान्, कहते हैं मेरा कोई मात-पिता नहीं है। मुझे अपना रूप आपेही बनाना पड़ता है। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। कृष्ण को माता ने जन्म दिया। मैं तो क्रियेटर हूँ। ड्रामा अनुसार यह भक्तिमार्ग के लिए सब शास्त्र आदि बने हुए हैं। यह गीता, भागवत आदि सब देवता धर्म पर ही बनाये हुए हैं। जबकि बाप ने देवी-देवता धर्म की स्थापना की है, वह पास्ट हो गया फिर फ्युचर होगा। आदि-मध्य-अन्त को, पास्ट प्रेजन्ट और फ्युचर कहते हैं। इसमें आदि-मध्य-अन्त का अर्थ अलग है। जो पास्ट हो गया वही फिर प्रेजन्ट होता है। जो पास्ट की कहानी सुनाते हैं वह फ्युचर में रिपीट होगी। मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। जो पास्ट होता है, उनकी कहानी बाबा प्रेजन्ट में सुनाते हैं फिर फ्युचर में रिपीट होगी। बड़ी समझने की बातें हैं, बड़ी रिफाइन बुद्धि चाहिए। कहाँ भी तुमको बुलाते हैं तो भाषण बच्चों को करना है। सन शोज़ फादर। बच्चे बतायेंगे हमारा फादर कौन है। फादर तो जरूर चाहिए, नहीं तो वर्सा कैसे लेंगे। तुम तो बहुत ऊंचे से ऊंचे हो परन्तु इन बड़े आदमियों को भी मान देना पड़ता है। तुम्हें सबको बाप का परिचय देना है। सब गॉड फादर को पुकारते हैं, प्रार्थना करते हैं - हे गॉड फादर आओ लेकिन वह है कौन। तुम्हें शिवबाबा की भी महिमा करनी है, श्रीकृष्ण की भी महिमा करनी है और भारत की भी महिमा करनी है। भारत शिवालय, हेविन था। 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था, वह किसने स्थापन किया? जरूर ऊंच ते ऊंच भगवान् ने। ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा शिवाए नम: हुआ। शिव जयन्ती भारतवासी मनाते हैं परन्तु शिव कब पधारे थे, यह किसको पता नहीं है। जरूर हेविन से पहले संगम पर आया होगा। कहते हैं कल्प-कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ, हर एक युग में नहीं। अगर हर एक युग कहो तो भी 4 अवतार होने चाहिए। उन्होंने तो कितने अवतार दिखाये हैं। ऊंचे से ऊंचा एक बाप है जो ही हेविन रचते हैं। भारत ही हेविन था, वाइसलेस था फिर तुम यह प्रश्न उठा नहीं सकते हो कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं। वह तो जो रस्म-रिवाज होगी वह चलेगी। तुम क्यों फिक्र करते हो। पहले तुम बाप को तो जानो। वहाँ आत्मा का ज्ञान रहता है। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। रोने की बात नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है। खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। तो बाप ने समझाया है मैं कैसे रूप बदलकर आता हूँ। कृष्ण के लिए नहीं कहेंगे। वह तो गर्भ से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर है सूक्ष्मवतनवासी। प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए, हम उनकी सन्तान हैं। वह निराकार बाप अविनाशी है, हम आत्मायें भी अविनाशी हैं। परन्तु हमको पुनर्जन्म में जरूर आना है। यह ड्रामा बना हुआ है। कहते हैं फिर से आकर गीता का ज्ञान सुनाओ, तो जरूर सब चक्र में आयेंगे, जो होकर गये हैं। बाप भी होकर गये हैं फिर आये हुए हैं। कहते हैं फिर से आकर गीता सुनाता हूँ। बुलाते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया है। सब पतित हैं तब तो पाप धोने के लिए गंगा स्नान करने जाते हैं। स्वर्ग में यह भारत ही था, भारत है ऊंच अविनाशी खण्ड सबका तीर्थ स्थान। सब मनुष्य-मात्र पतित हैं। सबको जीवनमुक्ति देने वाला वह बाप है। जरूर जो इतनी बड़ी सर्विस करते हैं, उनकी महिमा गानी चाहिए। अविनाशी बाप का बर्थप्लेस है भारत। वही सबको पावन बनाने वाला है। बाप अपने बर्थ प्लेस को छोड़ और कहाँ जा न सके। तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे रूप रचता हूँ।
सारा मदार धारणा पर है। धारणा पर ही तुम बच्चों का मर्तबा है। सबकी मुरली एक जैसी हो नहीं सकती। भल काठ की मुरली सब बजायें तो भी एक जैसी नहीं बजा सकते। हर एक की एक्ट का पार्ट अलग है। इतनी छोटी-सी आत्मा में कितना भारी पार्ट है। परमात्मा भी कहते हैं हम पार्टधारी हैं। जब धर्म ग्लानी होती है तब मैं आता हूँ। भक्ति मार्ग में भी मैं देता हूँ। ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं तो ईश्वर ही उनका फल देते हैं। सब अपने को इन्श्योर करते हैं। जानते हैं इसका फल दूसरे जन्म में मिलेगा। तुम इन्श्योर करते हो 21 जन्मों के लिए। वह है हद का इन्श्योरेन्स, इन्डायरेक्ट और यह है बेहद का इन्श्योरेन्स, डायरेक्ट। तुम तन-मन-धन से अपने को इन्श्योर करते हो फिर अथाह धन पायेंगे। एवर-हेल्दी, वेल्दी बनेंगे। तुम डायरेक्ट इन्श्योर कर रहे हो। मनुष्य ईश्वर अर्थ दान करते हैं, समझते हैं ईश्वर देगा। वह कैसे दिलाते हैं यह थोड़ेही समझते हैं। मनुष्य समझते हैं जो कुछ मिलता है ईश्वर देता है। ईश्वर ने बच्चा दिया, अच्छा, देते हैं तो फिर लेंगे भी जरूर। तुम सबको मरना जरूर है। साथ कुछ भी तो नहीं जायेगा। यह शरीर भी खत्म होना है इसलिए अब जो इन्श्योर करना है वह करो फिर 21 जन्म इन्श्योर हो जायेंगे। ऐसे नहीं कि इन्श्योर कर और सर्विस कुछ भी न करो, यहाँ ही खाते रहो। सर्विस तो करनी है ना। तुम्हारा खर्चा भी तो चलता है ना। इन्श्योर कर और खाते ही रहते तो मिलेगा कुछ नहीं। मिले तब जब सर्विस करो तो ऊंच पद भी पायेंगे। जितना जो जास्ती सर्विस करते हैं, उतना जास्ती मिलता है। थोड़ी सर्विस तो थोड़ा मिलेगा। गवर्मेन्ट के सोशल वर्कर भी नम्बरवार होते हैं। उनके बड़े-बड़े हेड्स होते हैं। अनेक प्रकार के सोशल वर्कर्स हैं। वह हैं जिस्मानी, तुम्हारी है रूहानी सर्विस। हर एक को तुम यात्री बनाते हो। यह है बाप के पास जाने की रूहानी यात्रा। बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को और गुरू गोसाई आदि को भी छोड़ो। मामेकम् याद करो। परमपिता परमात्मा निराकार है, साकार रूप धारण कर समझाते हैं। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ, प्रकृति का आधार लेता हूँ। तुम भी नंगे आये थे, अब फिर सबको वापिस जाना है। सब धर्म वालों को कहते हैं, मौत सामने खड़ा है। यादव, कौरव खलास हो जायेंगे। बाकी पाण्डव फिर आकर राज्य करेंगे। यह गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। पुरानी दुनिया का विनाश होना है, 84 जन्म लेते-लेते अब यह ओल्ड हो गया है। 84 जन्म पूरे हुए, नाटक पूरा हुआ। अब वापिस जाना है, शरीर छोड़ घर जाते हैं। एक-दो को यही स्मृति दिलाते हैं - अभी वापिस जाना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया है 84 जन्मों का। यह नाटक अनादि बना हुआ है, जो-जो जिस धर्म वाले हैं, उनको अपने सेक्शन में जाना है। जो देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, उनके लिए सैपलिंग लग रही है। जो फूल होंगे वह आ जायेंगे। अच्छे-अच्छे फूल आते हैं फिर माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं फिर ज्ञान की संजीवनी बूटी मिलने से उठ पड़ते हैं। बाप भी कहते हैं तुम शास्त्र पढ़ते आये हो। बरोबर इनके गुरू आदि भी थे। बाप कहते हैं गुरूओं सहित सबकी सद्गति करने वाला एक ही है। एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति। राजा-रानी तो प्रवृत्ति मार्ग हो गया। वाइसलेस प्रवृत्ति मार्ग था। अब सम्पूर्ण विशश हैं। वहाँ रावण का राज्य होता नहीं। रावण का राज्य आधाकल्प से शुरू होता है, भारतवासी ही रावण से हार खाते हैं। बाकी और सब धर्म वाले अपने-अपने समय पर सतो, रजो, तमो से पास होते हैं। पहले सुख फिर दु:ख में आते हैं। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है ही। इस समय सब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत हैं, हर आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा नया शरीर लेती है। बाप कहते हैं मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। मेरा कोई बाप हो नहीं सकता। और सबको तो बाप हैं। कृष्ण का भी जन्म माँ के गर्भ से होता है। यही ब्रह्मा जब राज्य लेंगे तब गर्भ से जन्म लेंगे। इनको ही ओल्ड से न्यु बनना है। 84 जन्मों का ओल्ड है। मुश्किल कोई को यथार्थ बुद्धि में बैठता है और नशा चढ़ता है। यह कस्तुरी नॉलेज है खुशबूदार। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी सोशल वर्कर बन सबको रूहानी यात्रा सिखानी है। अपने देवी-देवता धर्म की सैपलिंग लगानी है।
2) अपनी रिफाइन बुद्धि से बाप का शो करना है। पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को सुनाना है।
वरदान:-सबको अमर ज्ञान दे अकाले मृत्यु के भय से छुड़ाने वाले शक्तिशाली सेवाधारी भव
दुनिया में आजकल अकाले मृत्यु का ही डर है। डर से खा भी रहे हैं, चल भी रहे हैं, सो भी रहे हैं। ऐसी आत्माओं को खुशी की बात सुनाकर भय से छुड़ाओ। उन्हें खुशखबरी सुनाओ कि हम आपको 21 जन्मों के लिए अकाले मृत्यु से बचा सकते हैं। हर आत्मा को अमर ज्ञान दे अमर बनाओ जिससे वे जन्म-जन्म के लिए अकाले मृत्यु से बच जाएं। ऐसे अपने शान्ति और सुख के वायब्रेशन से लोगों को सुख-चैन की अनुभूति कराने वाले शक्तिशाली सेवाधारी बनो।
स्लोगन:-याद और सेवा का बैलेन्स रखने से ही सर्व की दुआयें मिलती हैं।
05/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to become ever healthy and ever wealthy, you now have to insure your body, mind and wealth directly. It is only at this time that you can take out unlimited insurance.
Question:What should you remind one another about so that you can all progress?
Answer:Remind one another that the drama is about to end and that we have to return home. We have played these parts innumerable times before. We have completed our 84 births. We will now remove these costumes, these bodies, and return home. This is the service of you spiritual social workers. You spiritual social workers must continue to give this message to everyone: Forget your body and all your bodily relations and remember the Father and the home.
Song:Leave Your throne in the sky and come down to earth! -- Om Shanti
This song is especially sung where there are Gita Pathshalas (Gita study-places). Those who speak the Gita first sing this verse, but they don’t understand who it is they are calling out to. At this time, there is defamation of religion. First, there are the prayers, then there is the response (from the Gita). They call out: Come and speak the knowledge of the Gita because sin has increased a lot. Then, there is the response (from the Gita): When the souls of Bharat become unhappy and sinful, when there is defamation of religion, it is then that I come. He has to change His form, and so He would surely enter a human body. All souls change their form. You souls are originally incorporeal, you become corporeal when you come here and you are then called human beings. Human souls are now impure and sinful and so I have to change My form and come. Just as you become corporeal from incorporeal, in the same way, I also have to become this. Shri Krishna cannot come into this impure world; he is the master of heaven. People think that Shri Krishna spoke the Gita, but Krishna cannot exist in this impure world. His name, form, country, time and act are totally separate from this. The Father explains all of this. Krishna has his own mother and father; he has his form created in his mother’s womb. I do not enter a womb, but I definitely do need a chariot. I enter this one when he is in the final one of his many births. He is Shri Krishna in his first birth. This birth is now his 84th and final one of his many births. Therefore, I enter him. He did not know of his births. Shri Krishna does not say that he does not know of his own births. God says: The one whom I enter did not know his own births. Only I know this. Krishna is the master of the kingdom. In the golden age, there is the sun-dynasty kingdom; it is the land of Vishnu. The combined form of Lakshmi and Narayan is called Vishnu. Wherever you give a lecture, it is enough to play this song because the people of Bharat sing this song themselves. Only when this religion has disappeared can I come and speak the Gita again and establish the same religion again. Since there are no human beings of that religion now, where did the knowledge of the Gita emerge from? The Father explains: There are no scriptures etc. in the golden and silver ages. All of those are the paraphernalia of the path of devotion. No one can meet Me through them. I definitely have to come. I come and grant all of you salvation via liberation. Everyone has to return home. After going into liberation, you will go to heaven. You will go into liberation and then into liberation-in-life. The Father says: You can receive liberation-in-life in a second . It has been said: While living in your household, you can attain liberation-in-life in a second, that is, you can become free from sorrow. Sannyasis cannot grant you liberation-in- life. They don’t even believe in liberation-in-life. The religion of the sannyasis does not exist in the golden age at all. The religion of the sannyasis comes into existence later on. The Islamic religion and the Buddhists etc. are not there in the golden age. All the religions, except the deity religion, are in existence now. They have all been converted to other religions. They do not know of their own religion. No one considers himself to be of the deity religion. They say: “Jayhind” (Victory for Hindustan). However, there is no victory now. No one knows when Bharat is victorious and when Bharat is defeated. Only when you receive your fortune of the kingdom and the old world is destroyed is Bharat victorious. It is Ravan who defeats you and Rama who makes you victorious. It is said: “Victory for Bharat.” It is not “Victory for Hindustan”. They changed the words. The words of the Gita are very good. God, the Highest on High, says: I do not have a mother or father. I have to create My own form for Myself. I enter this one. A mother gives birth to Krishna. I am the Creator. According to the drama, all of those scriptures etc. have been created for the path of devotion. The Gita, the Bhagawad etc. are all created on the basis of the deity religion. The deity religion that the Father created has now passed, and it will exist again in the future. The beginning, the middle and the end are called the past, present and future. In this, the beginning, middle and end have a different meaning. That which has become the past will become the present again. Whatever stories are told of the past will be repeated in the future. Human beings don’t know these things. Baba tells you in the present the story of whatever happened in the past and that will be repeated again in the future. These aspects have to be understood and you need a very refined intellect to do this. You children should go and give lectures wherever you are invited to go. Son shows Father! Children will reveal who their Father is. The Father is definitely needed. Otherwise, how could you claim the inheritance? You are the highest on high. However, those eminent people also have to be given respect. You have to give the Father’s introduction to everyone. Everyone calls out: O God, the Father! They pray to God: O God, the Father, come! However, they don’t know who He is. You have to sing Shiv Baba’s praise, sing Shri Krishna’s praise and also sing the praise of Bharat. Bharat was the Temple of Shiva; it was heaven. Five thousand years ago, it was the kingdom of deities. Who established that? Surely, it must have been God, the Highest on High. Salutations are given to Shiva, the Highest on High, the incorporeal One, who is also called the Supreme Father, the Supreme Soul. Although the people of Bharat celebrate the birthday of Shiva, they don’t know when Shiva came. Surely, He must have come at the confluence age before heaven was created. He says: I come at the confluence age of every cycle, not in every age. Even if He did come in all the ages, there would then have to be four incarnations. They have shown many incarnations. Only the one Father, who creates heaven, is the Highest on High. Bharat was heaven, it was viceless, and so you cannot question how children are born there. Whatever customs and systems exist, it is those that will continue. Why do you worry about that? You should first recognise the Father. There, you have knowledge of the soul. We souls shed bodies and take others. There, there is no question of crying; there is never any untimely death. You shed your bodies in happiness. So the Father has explained how He changes His form and comes. This cannot be said of Krishna. He takes birth through a womb. Brahma, Vishnu and Shankar reside in the subtle region. The Father of Humanity is definitely needed here; we are his children. That incorporeal Father is imperishable and we souls are also imperishable. However, we definitely do have to take birth and rebirth. This drama is predestined. You say: Come and speak the knowledge of the Gita again. All of those who came and went away will definitely come into the cycle. The Father also came and went away and has now come again. He says: I come and speak the Gita to you again. People call out “O Purifier come!” Therefore, this world must definitely be impure. All are impure, which is why they go to wash away their sins by bathing in the Ganges. Heaven existed in this Bharat. Bharat is the highest, the eternal land; it is the pilgrimage place for everyone. All human beings are impure. The Father is the One who grants liberation-in-life to all. The praise must definitely be sung for the One who does such great service. Bharat is the birthplace of the imperishable Father. He is the One who makes everyone pure. The Father cannot leave His birthplace and go somewhere else. Therefore, the Father sits here and explains how He creates His own form. Everything depends on your dharna. Your status depends on how much you imbibe. Not everyone can read the murli in the same way. Even though everyone might be able to play a wooden flute, they wouldn’t all be able to play it in the same way. Everyone acts his part differently. Such a huge role is contained within such a tiny soul! The Supreme Soul says: I too have to play a part. I come when there is defamation of religion. I also give the return on the path of devotion. People give donations and do charity in the name of God, and so it is God who gives the fruit of that. Each one insures himself. They believe that they will receive in their next birth the fruit of what they have given, whereas you insure yourselves for 21 births. That is limited, indirect insurance whereas this is unlimited, direct insurance. You will attain limitless wealth when you insure your mind, body and wealth. You will become ever healthy and wealthy. You are insuring yourselves directly. Human beings donate in the name of God, because they believe that God will give them the return of that. They don’t understand how He gives that return. Human beings think that whatever they have received has been given by God, that God gave them a child. Achcha, if God gives them a child, He can then also take it back. All of you definitely have to die. Nothing will go with you. Your bodies will also finish. Therefore, insure whatever you want now, so that it will be insured for 21 births. It is not that you can insure everything and then not do any service but continue to eat here. You have to do service. The expense of keeping you also continues. If you insure everything and continue to eat here, you will receive nothing. You will receive something when you do service. Only then will you claim a high status. The more service you do, the more you receive. The less service you do, the less you receive. Government social workers are also numberwise. They have many important heads. There are many types of social worker. Theirs is physical service, whereas yours is spiritual service . You make everyone into a pilgrim. This is the spiritual pilgrimage to take you to the Father. The Father says: Renounce the consciousness of your body, your bodily relations and also the gurus etc. and remember Me alone. The Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He adopts a corporeal form in order to explain to you. He says: I take this body on loan; I take the support of matter. You came naked and you now all have to return home again. He says to the souls of all religions that death is standing ahead. The Yadavas and the Kauravas will all be destroyed and the Pandavas will come again to rule their kingdom. The Gita episode is once again repeating. The old world is about to be destroyed. While you have been taking 84 births, this world has become old. Now that you have completed your 84 births, the play is about to end. We now have to return home; we will renounce our bodies and return home. Keep reminding each other that we now have to return home. We have played these parts of 84 births innumerable times. This play is eternally created. People have to return to their own section of the religion they belong to. The sapling of the deity religion that has disappeared is now being planted. Those who were flowers will come again. Many good flowers come, but, due to the storms of Maya, they fall. Then, by receiving the life-giving herb of knowledge, they stand up once again. The Father says: You have been studying scriptures etc. This one also had gurus etc. There is only the One who can grant salvation to all, including the gurus. There is liberation and liberation-in-life in a second. There are the king and queen, and so it becomes the family path. It was the viceless family path, whereas it has now become a completely vicious one. The kingdom of Ravan does not exist there. The kingdom of Ravan begins after half a cycle. It is the people of Bharat who become defeated by Ravan. People of all other religions pass through the stages of sato, rajo and tamo during their own time. First, they have happiness and then they become unhappy. After liberation, there is liberation-in-life. At this time, everyone is completely impure and decayed. Each soul has to shed his body and then take another new one. The Father says: I do not come into the cycle of birth and rebirth. No one can be My father. Everyone else has a father. Even Krishna’s birth takes place through a mother’s womb. This Brahma will take birth through a womb and he then receives the kingdom. It is he who has to become new from old. He is 84 births old. It is with great difficulty that this sits in people’s intellects accurately so that they have great intoxication. This knowledge is like musk; it is very fragrant. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a spiritual social worker and teach everyone this spiritual pilgrimage. Plant the sapling of your deity religion.
2. Use your refined intellect to reveal the Father. First imbibe everything yourself, and then explain it to others.
Blessing:May you be a powerful server who gives souls this immortal knowledge and liberates them from their fear of untimely death.
People everywhere in the world fear untimely death. They eat in fear, move in fear and also sleep in fear. Tell something of happiness to such souls and liberate them from their fears. Give them the good news that you can save them from untimely death for 21 births. Make every soul immortal by giving them the immortal knowledge with which they are saved from untimely death for birth after birth. With your vibrations of peace and happiness, become powerful servers who give everyone the experience of happiness and comfort.
Slogan:Only by keeping a balance of remembrance and service can you receive everyone’s blessings.
"मीठे बच्चे - एवरहेल्दी-एवरवेल्दी बनने के लिए तुम अभी डायरेक्ट अपना तन-मन-धन इन्श्योर करो, इस समय ही यह बेहद का इन्श्योरेन्स होता है''
प्रश्नः-आपस में एक-दूसरे को कौन-सी स्मृति दिलाते उन्नति को पाना है?
उत्तर:-एक-दूसरे को स्मृति दिलाओ कि अब नाटक पूरा हुआ, वापस घर चलना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया, 84 जन्म पूरे किये, अब शरीर रूपी वस्त्र उतार घर चलेंगे। यही है तुम रूहानी सोशल वर्कर की सेवा। तुम रूहानी सोशल वर्कर सबको यही सन्देश देते रहो कि देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल बाप और घर को याद करो।
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........ ओम् शान्ति।
जहाँ गीता की पाठशालायें होती हैं वहाँ अक्सर करके यह गीत गाते हैं। गीता सुनाने वाले पहले यह श्लोक गाते हैं। यह जानते तो नहीं हैं कि किसको बुलाते हैं। इस समय धर्म ग्लानि है। पहले है प्रार्थना फिर वह रेसपान्स करते हैं आओ, फिर से आकर गीता ज्ञान सुनाओ क्योंकि पाप बहुत बढ़ गये हैं। वह फिर रेसपान्स करते हैं कि हाँ, जबकि भारत के लोग पाप आत्मा दु:खी बन जाते हैं, धर्म ग्लानि हो पड़ती है तब मैं आता हूँ। स्वरूप बदलना पड़ता है जरूर मनुष्य तन में ही आयेंगे। रूप तो सब आत्मायें बदलती हैं। तुम आत्मायें असुल निराकारी हो फिर यहाँ आकर साकारी बनती हो। मनुष्य कहलाती हो। अभी मनुष्य पापात्मा, पतित हैं तो मुझे भी अपना रूप रचना पड़े। जैसे तुम निराकार से साकारी बने हो, मुझे भी बनना पड़े। इस पतित दुनिया में तो श्रीकृष्ण आ न सके। वह तो है स्वर्ग का मालिक। समझते हैं श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई परन्तु कृष्ण तो पतित दुनिया में हो न सके। उनका नाम, रूप, देश, काल, एक्ट सब बिल्कुल अलग है। यह बाप बतलाते हैं। कृष्ण को तो अपने मात-पिता हैं, उसने माँ के गर्भ से अपना रूप रचा। मैं तो गर्भ में नहीं जाता। मुझे रथ तो जरूर चाहिए। मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। पहला नम्बर तो है श्रीकृष्ण। इनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ 84वाँ जन्म। तो मैं इसमें ही आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। श्रीकृष्ण तो ऐसे नहीं कहते कि मैं अपने जन्मों को नहीं जानता हूँ। भगवान् कहते हैं जिसमें मैंने प्रवेश किया है, वह अपने जन्मों को नहीं जानता। मैं जानता हूँ, कृष्ण तो राजधानी का मालिक है। सतयुग में है सूर्यवंशी राज्य, विष्णुपुरी। विष्णु कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। कहाँ भी भाषण होता है तो यह रिकार्ड काफी है क्योंकि यह तो भारतवासी खुद गाते हैं। जब धर्म प्राय: लोप हो जाए तब तो फिर से गीता सुनाऊं। वही धर्म फिर से स्थापन करना है। उस धर्म के कोई मनुष्य ही नहीं हैं तो फिर गीता का ज्ञान कहाँ से निकला? बाप समझाते हैं - सतयुग-त्रेता में कोई शास्त्र आदि होते नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री, इन द्वारा मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते। मुझे तो आना पड़ता है, आकर सबको सद्गति देता हूँ वाया गति। सबको वापिस जाना पड़ता है। गति में जाकर फिर स्वर्ग में आना है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। बाप कहते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है। गाया हुआ है गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् दु:ख रहित। सन्यासी तो जीवनमुक्त बना न सकें। वह तो जीवनमुक्ति को मानते ही नहीं। इन सन्यासियों का धर्म सतयुग में तो होता ही नहीं है। सन्यास धर्म तो बाद में होता है। इस्लामी, बौद्धी आदि यह सब सतयुग में नहीं आयेंगे। अभी और सब धर्म हैं बाकी देवता धर्म है नहीं। वे सब और धर्मों में चले गये हैं। अपने धर्म का पता नहीं है। कोई भी अपने को देवता धर्म का मानते ही नहीं। जयहिन्द कहते हैं - वह तो बाप है नहीं। भारत की जय, भारत की खय (हार) कब होती है - यह थोड़ेही कोई जानते हैं। भारत की जय तब होती है जब राज्य-भाग्य मिलता है, जब पुरानी दुनिया का विनाश होता है। खय करता है रावण। जय करते हैं राम। ‘जय भारत' कहेंगे। ‘जय हिन्द' नहीं। अक्षर बदल दिया है। गीता के अक्षर अच्छे-अच्छे हैं।
ऊंच ते ऊंच है भगवान्, कहते हैं मेरा कोई मात-पिता नहीं है। मुझे अपना रूप आपेही बनाना पड़ता है। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। कृष्ण को माता ने जन्म दिया। मैं तो क्रियेटर हूँ। ड्रामा अनुसार यह भक्तिमार्ग के लिए सब शास्त्र आदि बने हुए हैं। यह गीता, भागवत आदि सब देवता धर्म पर ही बनाये हुए हैं। जबकि बाप ने देवी-देवता धर्म की स्थापना की है, वह पास्ट हो गया फिर फ्युचर होगा। आदि-मध्य-अन्त को, पास्ट प्रेजन्ट और फ्युचर कहते हैं। इसमें आदि-मध्य-अन्त का अर्थ अलग है। जो पास्ट हो गया वही फिर प्रेजन्ट होता है। जो पास्ट की कहानी सुनाते हैं वह फ्युचर में रिपीट होगी। मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। जो पास्ट होता है, उनकी कहानी बाबा प्रेजन्ट में सुनाते हैं फिर फ्युचर में रिपीट होगी। बड़ी समझने की बातें हैं, बड़ी रिफाइन बुद्धि चाहिए। कहाँ भी तुमको बुलाते हैं तो भाषण बच्चों को करना है। सन शोज़ फादर। बच्चे बतायेंगे हमारा फादर कौन है। फादर तो जरूर चाहिए, नहीं तो वर्सा कैसे लेंगे। तुम तो बहुत ऊंचे से ऊंचे हो परन्तु इन बड़े आदमियों को भी मान देना पड़ता है। तुम्हें सबको बाप का परिचय देना है। सब गॉड फादर को पुकारते हैं, प्रार्थना करते हैं - हे गॉड फादर आओ लेकिन वह है कौन। तुम्हें शिवबाबा की भी महिमा करनी है, श्रीकृष्ण की भी महिमा करनी है और भारत की भी महिमा करनी है। भारत शिवालय, हेविन था। 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था, वह किसने स्थापन किया? जरूर ऊंच ते ऊंच भगवान् ने। ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा शिवाए नम: हुआ। शिव जयन्ती भारतवासी मनाते हैं परन्तु शिव कब पधारे थे, यह किसको पता नहीं है। जरूर हेविन से पहले संगम पर आया होगा। कहते हैं कल्प-कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ, हर एक युग में नहीं। अगर हर एक युग कहो तो भी 4 अवतार होने चाहिए। उन्होंने तो कितने अवतार दिखाये हैं। ऊंचे से ऊंचा एक बाप है जो ही हेविन रचते हैं। भारत ही हेविन था, वाइसलेस था फिर तुम यह प्रश्न उठा नहीं सकते हो कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं। वह तो जो रस्म-रिवाज होगी वह चलेगी। तुम क्यों फिक्र करते हो। पहले तुम बाप को तो जानो। वहाँ आत्मा का ज्ञान रहता है। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। रोने की बात नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है। खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। तो बाप ने समझाया है मैं कैसे रूप बदलकर आता हूँ। कृष्ण के लिए नहीं कहेंगे। वह तो गर्भ से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर है सूक्ष्मवतनवासी। प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए, हम उनकी सन्तान हैं। वह निराकार बाप अविनाशी है, हम आत्मायें भी अविनाशी हैं। परन्तु हमको पुनर्जन्म में जरूर आना है। यह ड्रामा बना हुआ है। कहते हैं फिर से आकर गीता का ज्ञान सुनाओ, तो जरूर सब चक्र में आयेंगे, जो होकर गये हैं। बाप भी होकर गये हैं फिर आये हुए हैं। कहते हैं फिर से आकर गीता सुनाता हूँ। बुलाते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया है। सब पतित हैं तब तो पाप धोने के लिए गंगा स्नान करने जाते हैं। स्वर्ग में यह भारत ही था, भारत है ऊंच अविनाशी खण्ड सबका तीर्थ स्थान। सब मनुष्य-मात्र पतित हैं। सबको जीवनमुक्ति देने वाला वह बाप है। जरूर जो इतनी बड़ी सर्विस करते हैं, उनकी महिमा गानी चाहिए। अविनाशी बाप का बर्थप्लेस है भारत। वही सबको पावन बनाने वाला है। बाप अपने बर्थ प्लेस को छोड़ और कहाँ जा न सके। तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे रूप रचता हूँ।
सारा मदार धारणा पर है। धारणा पर ही तुम बच्चों का मर्तबा है। सबकी मुरली एक जैसी हो नहीं सकती। भल काठ की मुरली सब बजायें तो भी एक जैसी नहीं बजा सकते। हर एक की एक्ट का पार्ट अलग है। इतनी छोटी-सी आत्मा में कितना भारी पार्ट है। परमात्मा भी कहते हैं हम पार्टधारी हैं। जब धर्म ग्लानी होती है तब मैं आता हूँ। भक्ति मार्ग में भी मैं देता हूँ। ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं तो ईश्वर ही उनका फल देते हैं। सब अपने को इन्श्योर करते हैं। जानते हैं इसका फल दूसरे जन्म में मिलेगा। तुम इन्श्योर करते हो 21 जन्मों के लिए। वह है हद का इन्श्योरेन्स, इन्डायरेक्ट और यह है बेहद का इन्श्योरेन्स, डायरेक्ट। तुम तन-मन-धन से अपने को इन्श्योर करते हो फिर अथाह धन पायेंगे। एवर-हेल्दी, वेल्दी बनेंगे। तुम डायरेक्ट इन्श्योर कर रहे हो। मनुष्य ईश्वर अर्थ दान करते हैं, समझते हैं ईश्वर देगा। वह कैसे दिलाते हैं यह थोड़ेही समझते हैं। मनुष्य समझते हैं जो कुछ मिलता है ईश्वर देता है। ईश्वर ने बच्चा दिया, अच्छा, देते हैं तो फिर लेंगे भी जरूर। तुम सबको मरना जरूर है। साथ कुछ भी तो नहीं जायेगा। यह शरीर भी खत्म होना है इसलिए अब जो इन्श्योर करना है वह करो फिर 21 जन्म इन्श्योर हो जायेंगे। ऐसे नहीं कि इन्श्योर कर और सर्विस कुछ भी न करो, यहाँ ही खाते रहो। सर्विस तो करनी है ना। तुम्हारा खर्चा भी तो चलता है ना। इन्श्योर कर और खाते ही रहते तो मिलेगा कुछ नहीं। मिले तब जब सर्विस करो तो ऊंच पद भी पायेंगे। जितना जो जास्ती सर्विस करते हैं, उतना जास्ती मिलता है। थोड़ी सर्विस तो थोड़ा मिलेगा। गवर्मेन्ट के सोशल वर्कर भी नम्बरवार होते हैं। उनके बड़े-बड़े हेड्स होते हैं। अनेक प्रकार के सोशल वर्कर्स हैं। वह हैं जिस्मानी, तुम्हारी है रूहानी सर्विस। हर एक को तुम यात्री बनाते हो। यह है बाप के पास जाने की रूहानी यात्रा। बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को और गुरू गोसाई आदि को भी छोड़ो। मामेकम् याद करो। परमपिता परमात्मा निराकार है, साकार रूप धारण कर समझाते हैं। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ, प्रकृति का आधार लेता हूँ। तुम भी नंगे आये थे, अब फिर सबको वापिस जाना है। सब धर्म वालों को कहते हैं, मौत सामने खड़ा है। यादव, कौरव खलास हो जायेंगे। बाकी पाण्डव फिर आकर राज्य करेंगे। यह गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। पुरानी दुनिया का विनाश होना है, 84 जन्म लेते-लेते अब यह ओल्ड हो गया है। 84 जन्म पूरे हुए, नाटक पूरा हुआ। अब वापिस जाना है, शरीर छोड़ घर जाते हैं। एक-दो को यही स्मृति दिलाते हैं - अभी वापिस जाना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया है 84 जन्मों का। यह नाटक अनादि बना हुआ है, जो-जो जिस धर्म वाले हैं, उनको अपने सेक्शन में जाना है। जो देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, उनके लिए सैपलिंग लग रही है। जो फूल होंगे वह आ जायेंगे। अच्छे-अच्छे फूल आते हैं फिर माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं फिर ज्ञान की संजीवनी बूटी मिलने से उठ पड़ते हैं। बाप भी कहते हैं तुम शास्त्र पढ़ते आये हो। बरोबर इनके गुरू आदि भी थे। बाप कहते हैं गुरूओं सहित सबकी सद्गति करने वाला एक ही है। एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति। राजा-रानी तो प्रवृत्ति मार्ग हो गया। वाइसलेस प्रवृत्ति मार्ग था। अब सम्पूर्ण विशश हैं। वहाँ रावण का राज्य होता नहीं। रावण का राज्य आधाकल्प से शुरू होता है, भारतवासी ही रावण से हार खाते हैं। बाकी और सब धर्म वाले अपने-अपने समय पर सतो, रजो, तमो से पास होते हैं। पहले सुख फिर दु:ख में आते हैं। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है ही। इस समय सब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत हैं, हर आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा नया शरीर लेती है। बाप कहते हैं मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। मेरा कोई बाप हो नहीं सकता। और सबको तो बाप हैं। कृष्ण का भी जन्म माँ के गर्भ से होता है। यही ब्रह्मा जब राज्य लेंगे तब गर्भ से जन्म लेंगे। इनको ही ओल्ड से न्यु बनना है। 84 जन्मों का ओल्ड है। मुश्किल कोई को यथार्थ बुद्धि में बैठता है और नशा चढ़ता है। यह कस्तुरी नॉलेज है खुशबूदार। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी सोशल वर्कर बन सबको रूहानी यात्रा सिखानी है। अपने देवी-देवता धर्म की सैपलिंग लगानी है।
2) अपनी रिफाइन बुद्धि से बाप का शो करना है। पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को सुनाना है।
वरदान:-सबको अमर ज्ञान दे अकाले मृत्यु के भय से छुड़ाने वाले शक्तिशाली सेवाधारी भव
दुनिया में आजकल अकाले मृत्यु का ही डर है। डर से खा भी रहे हैं, चल भी रहे हैं, सो भी रहे हैं। ऐसी आत्माओं को खुशी की बात सुनाकर भय से छुड़ाओ। उन्हें खुशखबरी सुनाओ कि हम आपको 21 जन्मों के लिए अकाले मृत्यु से बचा सकते हैं। हर आत्मा को अमर ज्ञान दे अमर बनाओ जिससे वे जन्म-जन्म के लिए अकाले मृत्यु से बच जाएं। ऐसे अपने शान्ति और सुख के वायब्रेशन से लोगों को सुख-चैन की अनुभूति कराने वाले शक्तिशाली सेवाधारी बनो।
स्लोगन:-याद और सेवा का बैलेन्स रखने से ही सर्व की दुआयें मिलती हैं।
05/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to become ever healthy and ever wealthy, you now have to insure your body, mind and wealth directly. It is only at this time that you can take out unlimited insurance.
Question:What should you remind one another about so that you can all progress?
Answer:Remind one another that the drama is about to end and that we have to return home. We have played these parts innumerable times before. We have completed our 84 births. We will now remove these costumes, these bodies, and return home. This is the service of you spiritual social workers. You spiritual social workers must continue to give this message to everyone: Forget your body and all your bodily relations and remember the Father and the home.
Song:Leave Your throne in the sky and come down to earth! -- Om Shanti
This song is especially sung where there are Gita Pathshalas (Gita study-places). Those who speak the Gita first sing this verse, but they don’t understand who it is they are calling out to. At this time, there is defamation of religion. First, there are the prayers, then there is the response (from the Gita). They call out: Come and speak the knowledge of the Gita because sin has increased a lot. Then, there is the response (from the Gita): When the souls of Bharat become unhappy and sinful, when there is defamation of religion, it is then that I come. He has to change His form, and so He would surely enter a human body. All souls change their form. You souls are originally incorporeal, you become corporeal when you come here and you are then called human beings. Human souls are now impure and sinful and so I have to change My form and come. Just as you become corporeal from incorporeal, in the same way, I also have to become this. Shri Krishna cannot come into this impure world; he is the master of heaven. People think that Shri Krishna spoke the Gita, but Krishna cannot exist in this impure world. His name, form, country, time and act are totally separate from this. The Father explains all of this. Krishna has his own mother and father; he has his form created in his mother’s womb. I do not enter a womb, but I definitely do need a chariot. I enter this one when he is in the final one of his many births. He is Shri Krishna in his first birth. This birth is now his 84th and final one of his many births. Therefore, I enter him. He did not know of his births. Shri Krishna does not say that he does not know of his own births. God says: The one whom I enter did not know his own births. Only I know this. Krishna is the master of the kingdom. In the golden age, there is the sun-dynasty kingdom; it is the land of Vishnu. The combined form of Lakshmi and Narayan is called Vishnu. Wherever you give a lecture, it is enough to play this song because the people of Bharat sing this song themselves. Only when this religion has disappeared can I come and speak the Gita again and establish the same religion again. Since there are no human beings of that religion now, where did the knowledge of the Gita emerge from? The Father explains: There are no scriptures etc. in the golden and silver ages. All of those are the paraphernalia of the path of devotion. No one can meet Me through them. I definitely have to come. I come and grant all of you salvation via liberation. Everyone has to return home. After going into liberation, you will go to heaven. You will go into liberation and then into liberation-in-life. The Father says: You can receive liberation-in-life in a second . It has been said: While living in your household, you can attain liberation-in-life in a second, that is, you can become free from sorrow. Sannyasis cannot grant you liberation-in- life. They don’t even believe in liberation-in-life. The religion of the sannyasis does not exist in the golden age at all. The religion of the sannyasis comes into existence later on. The Islamic religion and the Buddhists etc. are not there in the golden age. All the religions, except the deity religion, are in existence now. They have all been converted to other religions. They do not know of their own religion. No one considers himself to be of the deity religion. They say: “Jayhind” (Victory for Hindustan). However, there is no victory now. No one knows when Bharat is victorious and when Bharat is defeated. Only when you receive your fortune of the kingdom and the old world is destroyed is Bharat victorious. It is Ravan who defeats you and Rama who makes you victorious. It is said: “Victory for Bharat.” It is not “Victory for Hindustan”. They changed the words. The words of the Gita are very good. God, the Highest on High, says: I do not have a mother or father. I have to create My own form for Myself. I enter this one. A mother gives birth to Krishna. I am the Creator. According to the drama, all of those scriptures etc. have been created for the path of devotion. The Gita, the Bhagawad etc. are all created on the basis of the deity religion. The deity religion that the Father created has now passed, and it will exist again in the future. The beginning, the middle and the end are called the past, present and future. In this, the beginning, middle and end have a different meaning. That which has become the past will become the present again. Whatever stories are told of the past will be repeated in the future. Human beings don’t know these things. Baba tells you in the present the story of whatever happened in the past and that will be repeated again in the future. These aspects have to be understood and you need a very refined intellect to do this. You children should go and give lectures wherever you are invited to go. Son shows Father! Children will reveal who their Father is. The Father is definitely needed. Otherwise, how could you claim the inheritance? You are the highest on high. However, those eminent people also have to be given respect. You have to give the Father’s introduction to everyone. Everyone calls out: O God, the Father! They pray to God: O God, the Father, come! However, they don’t know who He is. You have to sing Shiv Baba’s praise, sing Shri Krishna’s praise and also sing the praise of Bharat. Bharat was the Temple of Shiva; it was heaven. Five thousand years ago, it was the kingdom of deities. Who established that? Surely, it must have been God, the Highest on High. Salutations are given to Shiva, the Highest on High, the incorporeal One, who is also called the Supreme Father, the Supreme Soul. Although the people of Bharat celebrate the birthday of Shiva, they don’t know when Shiva came. Surely, He must have come at the confluence age before heaven was created. He says: I come at the confluence age of every cycle, not in every age. Even if He did come in all the ages, there would then have to be four incarnations. They have shown many incarnations. Only the one Father, who creates heaven, is the Highest on High. Bharat was heaven, it was viceless, and so you cannot question how children are born there. Whatever customs and systems exist, it is those that will continue. Why do you worry about that? You should first recognise the Father. There, you have knowledge of the soul. We souls shed bodies and take others. There, there is no question of crying; there is never any untimely death. You shed your bodies in happiness. So the Father has explained how He changes His form and comes. This cannot be said of Krishna. He takes birth through a womb. Brahma, Vishnu and Shankar reside in the subtle region. The Father of Humanity is definitely needed here; we are his children. That incorporeal Father is imperishable and we souls are also imperishable. However, we definitely do have to take birth and rebirth. This drama is predestined. You say: Come and speak the knowledge of the Gita again. All of those who came and went away will definitely come into the cycle. The Father also came and went away and has now come again. He says: I come and speak the Gita to you again. People call out “O Purifier come!” Therefore, this world must definitely be impure. All are impure, which is why they go to wash away their sins by bathing in the Ganges. Heaven existed in this Bharat. Bharat is the highest, the eternal land; it is the pilgrimage place for everyone. All human beings are impure. The Father is the One who grants liberation-in-life to all. The praise must definitely be sung for the One who does such great service. Bharat is the birthplace of the imperishable Father. He is the One who makes everyone pure. The Father cannot leave His birthplace and go somewhere else. Therefore, the Father sits here and explains how He creates His own form. Everything depends on your dharna. Your status depends on how much you imbibe. Not everyone can read the murli in the same way. Even though everyone might be able to play a wooden flute, they wouldn’t all be able to play it in the same way. Everyone acts his part differently. Such a huge role is contained within such a tiny soul! The Supreme Soul says: I too have to play a part. I come when there is defamation of religion. I also give the return on the path of devotion. People give donations and do charity in the name of God, and so it is God who gives the fruit of that. Each one insures himself. They believe that they will receive in their next birth the fruit of what they have given, whereas you insure yourselves for 21 births. That is limited, indirect insurance whereas this is unlimited, direct insurance. You will attain limitless wealth when you insure your mind, body and wealth. You will become ever healthy and wealthy. You are insuring yourselves directly. Human beings donate in the name of God, because they believe that God will give them the return of that. They don’t understand how He gives that return. Human beings think that whatever they have received has been given by God, that God gave them a child. Achcha, if God gives them a child, He can then also take it back. All of you definitely have to die. Nothing will go with you. Your bodies will also finish. Therefore, insure whatever you want now, so that it will be insured for 21 births. It is not that you can insure everything and then not do any service but continue to eat here. You have to do service. The expense of keeping you also continues. If you insure everything and continue to eat here, you will receive nothing. You will receive something when you do service. Only then will you claim a high status. The more service you do, the more you receive. The less service you do, the less you receive. Government social workers are also numberwise. They have many important heads. There are many types of social worker. Theirs is physical service, whereas yours is spiritual service . You make everyone into a pilgrim. This is the spiritual pilgrimage to take you to the Father. The Father says: Renounce the consciousness of your body, your bodily relations and also the gurus etc. and remember Me alone. The Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He adopts a corporeal form in order to explain to you. He says: I take this body on loan; I take the support of matter. You came naked and you now all have to return home again. He says to the souls of all religions that death is standing ahead. The Yadavas and the Kauravas will all be destroyed and the Pandavas will come again to rule their kingdom. The Gita episode is once again repeating. The old world is about to be destroyed. While you have been taking 84 births, this world has become old. Now that you have completed your 84 births, the play is about to end. We now have to return home; we will renounce our bodies and return home. Keep reminding each other that we now have to return home. We have played these parts of 84 births innumerable times. This play is eternally created. People have to return to their own section of the religion they belong to. The sapling of the deity religion that has disappeared is now being planted. Those who were flowers will come again. Many good flowers come, but, due to the storms of Maya, they fall. Then, by receiving the life-giving herb of knowledge, they stand up once again. The Father says: You have been studying scriptures etc. This one also had gurus etc. There is only the One who can grant salvation to all, including the gurus. There is liberation and liberation-in-life in a second. There are the king and queen, and so it becomes the family path. It was the viceless family path, whereas it has now become a completely vicious one. The kingdom of Ravan does not exist there. The kingdom of Ravan begins after half a cycle. It is the people of Bharat who become defeated by Ravan. People of all other religions pass through the stages of sato, rajo and tamo during their own time. First, they have happiness and then they become unhappy. After liberation, there is liberation-in-life. At this time, everyone is completely impure and decayed. Each soul has to shed his body and then take another new one. The Father says: I do not come into the cycle of birth and rebirth. No one can be My father. Everyone else has a father. Even Krishna’s birth takes place through a mother’s womb. This Brahma will take birth through a womb and he then receives the kingdom. It is he who has to become new from old. He is 84 births old. It is with great difficulty that this sits in people’s intellects accurately so that they have great intoxication. This knowledge is like musk; it is very fragrant. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a spiritual social worker and teach everyone this spiritual pilgrimage. Plant the sapling of your deity religion.
2. Use your refined intellect to reveal the Father. First imbibe everything yourself, and then explain it to others.
Blessing:May you be a powerful server who gives souls this immortal knowledge and liberates them from their fear of untimely death.
People everywhere in the world fear untimely death. They eat in fear, move in fear and also sleep in fear. Tell something of happiness to such souls and liberate them from their fears. Give them the good news that you can save them from untimely death for 21 births. Make every soul immortal by giving them the immortal knowledge with which they are saved from untimely death for birth after birth. With your vibrations of peace and happiness, become powerful servers who give everyone the experience of happiness and comfort.
Slogan:Only by keeping a balance of remembrance and service can you receive everyone’s blessings.
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