Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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2 | Murali 02-Nov-2018 | 132943 | 2018-12-19 02:03:55 | |
3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
22 | Murali 22-Nov-2018 | 124513 | 2018-12-19 02:03:56 | |
23 | Murali 23-Nov-2018 | 114180 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 03-Nov-2018 )
03-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - सर्व पर ब्लैसिंग करने वाला ब्लिसफुल एक बाप है, बाप को ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है, उनके सिवाए कोई भी दु:ख नहीं हर सकता''
प्रश्नः-भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग दोनों में एडाप्ट होने की रस्म है लेकिन अन्तर क्या है?
उत्तर:-भक्ति मार्ग में जब किसी के पास एडाप्ट होते हैं तो गुरू और चेले का सम्बन्ध रहता है, सन्यासी भी एडाप्ट होंगे तो अपने को फालोअर कहलायेंगे, लेकिन ज्ञान मार्ग में तुम फालोअर या चेले नहीं हो। तुम बाप के बच्चे बने हो। बच्चा बनना अर्थात् वर्से का अधिकारी बनना।
गीत:-ओम नमो शिवाए ....... -- ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। यह है परमपिता परमात्मा शिव की महिमा। कहते भी हैं शिवाए नम:। रुद्राय नम: वा सोमनाथ नम: नहीं कहते हैं। शिवाए नम: कहते हैं और बहुत स्तुति भी उनकी होती है। अब शिवाए नम: हुआ बाप। गॉड फादर का नाम हुआ शिव। वह है निराकार। यह किसने कहा - ओ गॉड फादर? आत्मा ने। सिर्फ 'ओ फादर' कहते हैं तो वह जिस्मानी फादर हो जाता है। 'ओ गॉड फादर' कहने से रूहानी फादर हो जाता है। यह समझने की बातें हैं। देवताओं को पारसबुद्धि कहा जाता है। देवतायें तो विश्व के मालिक थे। अभी कोई मालिक हैं नहीं। भारत का धनी-धोणी कोई है नहीं। राजा को भी पिता, अन्नदाता कहा जाता है। अभी तो राजायें हैं नहीं। तो यह शिवाए नम: किसने कहा? कैसे पता पड़े कि यह बाप है? ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो ढेर हैं। यह ठहरे शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां। ब्रह्मा द्वारा इनको एडाप्ट करते हैं। सब कहते हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। अच्छा, ब्रह्मा किसका बच्चा? शिव का। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीनों ही शिव के बच्चे हैं। शिवबाबा है ऊंच ते ऊंच भगवान्, निराकारी वतन में रहने वाला। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। अच्छा, मनुष्य सृष्टि कैसे रची? तो कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं ब्रह्मा के साधारण तन में प्रवेश कर इनको प्रजापिता बनाता हूँ। मुझे प्रवेश ही इनमें करना है जिसको ब्रह्मा नाम दिया है। एडाप्ट करने बाद नाम बदल जाता है। सन्यासी भी नाम बदलते हैं। पहले गृहस्थियों के पास जन्म लेते हैं फिर संस्कार अनुसार छोटेपन में ही शास्त्र आदि पढ़ते हैं फिर वैराग्य आता है। सन्यासियों पास जाकर एडाप्ट होते हैं, कहेंगे यह मेरा गुरू है। उनको बाप नहीं कहेंगे। चेले वा फालोअर्स बनते हैं गुरू के। गुरू चेले को एडाप्ट करते हैं कि तुम हमारे चेले वा फालोअर हो। यह बाप कहते हैं कि तुम हमारे बच्चे हो। तुम आत्मा बाप को भक्ति मार्ग में बुलाती आई हो, क्योंकि यहाँ दु:ख बहुत है, त्राहि-त्राहि हो रही है। पतित-पावन बाप तो एक ही है। निराकार शिव को आत्मा नम: करती है। तो बाप तो है ही। ‘तुम मात-पिता' यह भी गॉड फादर के लिए ही गाते हैं। फादर है तो मदर भी जरूर चाहिए। मदर-फादर बिगर रचना होती नहीं। बाप को बच्चों के पास आना ही है। यह सृष्टि चक्र कैसे रिपीट होता है, इसके आदि, मध्य, अन्त को जानना - इसको कहा जाता है त्रिकालदर्शी बनना। इतने सब करोड़ों एक्टर्स हैं, हर एक का पार्ट अपना है। यह बेहद का ड्रामा है। बाप कहते हैं मैं क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर हूँ। एक्ट कर रहा हूँ ना। मेरी आत्मा को सुप्रीम कहते हैं। आत्मा और परमात्मा का रूप एक ही है। वास्तव में आत्मा है ही बिन्दी। भृकुटी के बीच में आत्मा स्टॉर रहता है ना। बिल्कुल सूक्ष्म है। उनको देख नहीं सकते हैं। आत्मा भी सूक्ष्म है तो आत्मा का बाप भी सूक्ष्म है। बाप समझाते हैं तुम आत्मा बिन्दी समान हो। मैं शिव भी बिन्दी समान हूँ। परन्तु मैं सुप्रीम, क्रियेटर, डायरेक्टर हूँ। ज्ञान सागर हूँ। मेरे में सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है। मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल हूँ, सब पर ब्लैसिंग करता हूँ। सबको सद्गति में ले जाता हूँ। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता एक ही बाप है। सतयुग में दु:खी कोई होता ही नहीं। लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य है।
बाप समझाते हैं मैं इस सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप हूँ। समझो, आम का झाड़ है, वह तो है जड़ बीज, वह बोलेगा नहीं। अगर चैतन्य होता तो बोलता कि मुझ बीज से ऐसे टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं। अब यह है चैतन्य, इसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज परमपिता परमात्मा है। बाप कहते हैं मैं ही आकर इसका नॉलेज समझाता हूँ, बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ। दु:खी बनाती है माया। भक्ति मार्ग को पूरा होना है। ड्रामा को फिरना जरूर है। यह है बेहद वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। चक्र फिरता रहता है। कलियुग बदल फिर सतयुग होना है। सृष्टि तो एक ही है। गॉड फादर इज़ वन। इनका कोई फादर नहीं। वही टीचर भी है, पढ़ा रहे हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। मनुष्य तो मात-पिता को जानते नहीं। तुम बच्चे जानते हो निराकार शिवबाबा के हम निराकारी बच्चे हैं। फिर साकारी ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। निराकार बच्चे सब भाई-भाई हैं और ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहन हैं। यह है पवित्र रहने की युक्ति। बहन-भाई विकार में कैसे जायेंगे। विकार की ही आग लगती है ना। काम अग्नि कहा जाता है, उससे बचने की युक्ति बाप बतलाते हैं। एक तो प्राप्ति बहुत ऊंच है। अगर हम बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो बेहद के बाप का वर्सा पायेंगे। याद से ही एवरहेल्दी बनते हैं। प्राचीन भारत का योग मशहूर है। बाप कहते हैं मुझे याद करते-करते तुम पवित्र बन जायेंगे, पाप भस्म हो जायेंगे। बाप की याद में शरीर छोड़ेंगे तो मेरे पास चले आयेंगे। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। यह वही महाभारत की लड़ाई है। जो बाप के बने हैं उनकी ही विजय होनी है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। भगवान् राजयोग सिखलाते हैं स्वर्ग का मालिक बनाने लिए। फिर माया रावण नर्क का मालिक बनाती है। वह जैसे श्राप मिलता है।
बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, मेरी मत पर तुम स्वर्गवासी भव। फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो रावण कहता है - हे ईश्वर के बच्चे, नर्कवासी भव। नर्क के बाद फिर स्वर्ग जरूर आना है। यह नर्क है ना। कितनी मारामारी लगी पड़ी है। सतयुग में लड़ाई-झगड़ा होता नहीं। भारत ही स्वर्ग था, और कोई राज्य था ही नहीं। अभी भारत नर्क है, अनेक धर्म हैं। गाया जाता है अनेक धर्म का विनाश, एक धर्म की स्थापना करने मुझे आना पड़ता है। मैं एक ही बार अवतार लेता हूँ। बाप को आना है पतित दुनिया में। आते ही तब हैं जब पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। उसके लिए लड़ाई भी चाहिए।
बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, तुम अशरीरी आये थे, 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, अब वापस चलना है। मैं तुम्हें पतित से पावन बनाकर वापस ले जाता हूँ। हिसाब तो है ना। 5 हजार वर्ष में देवतायें 84 जन्म लेते हैं। सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्सा लो। सृष्टि का चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। हम एक्टर्स हैं ना। एक्टर होकर ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर को न जानें तो वह बेसमझ ठहरे। इससे भारत कितना कंगाल बन गया है। फिर बाप आकर सालवेन्ट बना देते हैं। बाप समझाते हैं तुम भारतवासी स्वर्ग में थे फिर तुमको 84 जन्म तो जरूर लेने पड़े। अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। यह पिछाड़ी का जन्म बाकी है। भगवानुवाच, भगवान् तो सबका एक है। कृष्ण को और सब धर्म वाले भगवान् नहीं मानेंगे। निराकार को ही मानेंगे। वह सब आत्माओं का बाप है। कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में आकर इनमें प्रवेश करता हूँ। राजाई स्थापन हो जायेगी फिर विनाश शुरू होगा और मैं चला जाऊंगा। यह है बड़ा भारी यज्ञ और जो भी यज्ञ आदि हैं सब इसमें स्वाहा हो जाने हैं। सारी दुनिया का किचड़ा इनमें पड़ जाता है फिर कोई यज्ञ रचा नहीं जाता। भक्ति मार्ग खलास हो जाता है। सतयुग-त्रेता के बाद फिर भक्ति शुरू होती है। अब भक्ति पूरी होती है। तो यह महिमा सारी शिवबाबा की है। इनके इतने नाम दिये हैं, जानते तो कुछ नहीं। यह तो शिव है फिर रूद्र, सोमनाथ, बाबुरीनाथ भी कहते हैं। एक के अनेक नाम रख दिये हैं। जैसे-जैसे सर्विस की है वैसा नाम पड़ा है। तुमको सोमरस पिला रहे हैं। तुम मातायें स्वर्ग का द्वार खोलने के निमित्त बनी हो। वन्दना पवित्र की ही होती है। अपवित्र, पवित्र की वन्दना करते हैं। कन्या को सब माथा टेकते हैं। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां इस भारत का उद्धार कर रहे हैं। पवित्र बन बाप से पवित्र दुनिया का वर्सा लेना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है, इसमें मेहनत है। काम महाशत्रु है। काम बिगर रह नहीं सकते तो मारने लगते हैं। रूद्र यज्ञ में अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। मार खा-खा कर आखरीन उन्हों के पाप का घड़ा भरता है तब फिर विनाश हो जाता है। बहुत बच्चियां हैं, कभी देखा नहीं है, लिखती हैं बाबा हम आपको जानते हैं। आपसे वर्सा लेने लिए पवित्र जरूर बनूंगी। बाप समझाते हैं शास्त्र पढ़ना, तीर्थ आदि करना - यह सब भक्ति मार्ग की जिस्मानी यात्रा तो करते आये हो, अब तुमको वापिस चलना है इसलिए मेरे से योग लगाओ। और संग तोड़ एक मुझ साथ जोड़ो तो तुमको साथ ले जाऊंगा फिर स्वर्ग में भेज दूंगा। वह है शान्तिधाम। वहाँ आत्मायें कुछ बोलती नहीं। सतयुग है सुखधाम, यह है दु:खधाम। अभी इस दु:खधाम में रहते शान्तिधाम-सुखधाम को याद करना है तो फिर तुम स्वर्ग में आ जायेंगे। तुमने 84 जन्म लिए हैं। वर्ण फिरते जाते हैं। पहले है ब्राह्मणों की चोटी फिर देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण बाजोली खेलते हैं ना। फिर अभी हम ब्राह्मण से देवता बनेंगे। यह चक्र फिरता रहता है, इनको जानने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा चाहिए। तो जरूर बाप की मत पर चलना पड़े। तुम समझाते हो निराकार परम आत्मा ने आकर इस साकार शरीर में प्रवेश किया है। हम आत्मायें जब निराकारी हैं तो वहाँ रहती हैं। यह सूर्य-चांद बत्तियां हैं। इसे बेहद का दिन और रात कहा जाता है। सतयुग त्रेता दिन, द्वापर कलियुग रात। बाप आकर सद्गति मार्ग बताते हैं। कितनी अच्छी समझानी मिलती है। सतयुग में होता है सुख, फिर थोड़ा-थोड़ा कम होता जाता है। सतयुग में 16 कला, त्रेता में 14 कला........ यह सब समझने की बातें हैं। वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। रोने, लड़ने-झगड़ने की बात नहीं, है सारा पढ़ाई पर मदार। पढ़ाई से ही मनुष्य से देवता बनना है। भगवान् पढ़ाते हैं भगवान् भगवती बनाने के लिए। वह तो पाई-पैसे की पढ़ाई है। यह पढ़ाई है हीरे जैसी। सिर्फ इस अन्तिम जन्म में पवित्र बनने की बात है। यह है सहज ते सहज राजयोग। बैरिस्टरी आदि पढ़ना - वह कोई इतना सहज नहीं। यहाँ तो बाप और चक्र को याद करने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बाप को नहीं जाना गोया कुछ नहीं जाना। बाप खुद विश्व का मालिक नहीं बनते, बच्चों को बनाते हैं। शिवबाबा कहते हैं यह (ब्रह्मा) महाराजा बनेंगे, मैं नहीं बनूंगा। मैं निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ, बच्चों को विश्व का मालिक बनाता हूँ। सच्ची-सच्ची निष्काम सेवा निराकार परमपिता परमात्मा ही कर सकते हैं, मनुष्य नहीं कर सकते। ईश्वर को पाने से सारे विश्व के मालिक बन जाते हैं। धरती आसमान सबके मालिक बन जाते हैं। देवतायें विश्व के मालिक थे ना। अभी तो कितने पार्टीशन हो गये हैं। अभी फिर बाप कहते हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। स्वर्ग में तुम ही थे। भारत विश्व का मालिक था, अभी कंगाल है। फिर से इन माताओं द्वारा भारत को विश्व का मालिक बनाता हूँ। मैजारटी माताओं की है इसलिए वन्दे मातरम कहा जाता है।
टाइम थोड़ा है, शरीर पर भरोसा नहीं है। मरना तो सबको है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, सबको वापिस जाना है। यह भगवान् पढ़ाते हैं। नॉलेजफुल, पीसफुल, ब्लिसफुल उनको कहा जाता है। वही फिर ऐसा सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण पवित्र बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह पढ़ाई हीरे जैसा बनाती है इसलिए इसे अच्छी तरह पढ़ना है और सब संग तोड़ एक बाप संग जोड़ना है।
2) श्रीमत पर चलकर स्वर्ग का पूरा वर्सा लेना है। चलते-फिरते स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है।
वरदान:-श्रीमत प्रमाण जी हजूर कर, हजूर को हाज़िर अनुभव करने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव
जो हर बात में बाप की श्रीमत प्रमाण "जी हजूर-जी हजूर'' करते हैं, तो बच्चों का जी हजूर करना और बाप का बच्चों के आगे हाजिर हजूर होना। जब हजूर हाजिर हो गया तो किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी, सदा सम्पन्न हो जायेंगे। दाता और भाग्यविधाता-दोनों की प्राप्तियों के भाग्य का सितारा मस्तक पर चमकने लगेगा।
स्लोगन:-परमात्म वर्से के अधिकारी बनकर रहो तो अधीनता आ नहीं सकती।
03/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, only the one Father is the Blissful One who gives blessings to all. The Father alone is called the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. No one apart from Him can remove your sorrow.
Question:There is the system of adoption on both the path of devotion and the path of knowledge, but what is the difference?
Answer:On the path of devotion when someone is adopted, there is the relationship of guru and disciple. When a sannyasi is adopted, he will call himself a follower whereas on the path of knowledge, you are not followers or disciples. You have become children of the Father. To become a child means to have a right to the inheritance.
Song:Salutations to Shiva. -- Om Shanti
You children heard the song. This praise is of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. They say: Salutations to Shiva. They do not say: Salutations to Rudra or Salutations to Somnath. They say: Salutations to Shiva and He is the One who is praised a lot. “Salutations to Shiva” means to the Father. The name of God, the Father, is Shiva. He is incorporeal. Who said: “O God, the Father”? The soul said it. When a soul simply says, “O father!” that refers to a physical father. The expression “O God, the Father” refers to the spiritual Father. These matters have to be understood. Deities are called those with divine intellects. The deities were the masters of the world. Now no one is a master. No one is the Lord or Master of Bharat. A king is called the father or the bestower of food (The Provider). There are now no kings. So, who said: Salutations to Shiva? How can you tell that that One is the Father? There are so many Brahma Kumars and Kumaris. They become the grandchildren of Shiv Baba. He adopts them through Brahma. They all say: We are Brahma Kumars and Kumaris. Achcha, whose child is Brahma? Shiva’s. Brahma, Vishnu and Shankar, all three, are children of Shiva. Shiv Baba is God, the Highest on High, the One who resides in the incorporeal world. Brahma, Vishnu and Shankar are residents of the subtle region. OK, so how was the human world created? He says: According to the drama, I enter the ordinary body of Brahma and make him the Father of People (Prajapita). I have to enter the one who is given the name Brahma. His name changes after he has been adopted. Even sannyasis have their names changed. They first take birth to householders and then, according to their sanskars, they read the scriptures etc. in their childhood, and then they have disinterest. They then go to a sannyasi and are adopted there. They would say: This one is my guru. They would not call him father. They become disciples or followers of the guru. The guru adopts the disciple and says: You are my disciple or my follower. This Father says: You are My children. You souls have been calling out to the Father on the path of devotion because there is a lot of sorrow here; there is a lot of crying out in distress. The Purifier Father is only the One. Souls salute incorporeal Shiva. The Father always exists. It is to God, the Father, that they sing: You are the Mother and You are the Father. Since there is the Father, the Mother is also definitely needed. There cannot be creation without the Mother and Father. The Father definitely has to come to the children. To know how the world cycle repeats and to know its beginning, middle and end is to become trikaldarshi. There are millions of actors and each one’s part is his own. This drama is unlimited. The Father says: I am the Creator, Director and principal Actor. I am acting, am I not? My soul is called the Supreme. The form of a soul and the form of the Supreme Soul are the same. In fact, a soul is just a point. The soul, the star , resides in the centre of the forehead. It is extremely subtle; it cannot be seen. A soul is subtle and the Father of souls is also subtle. The Father explains: You souls are like points. I, Shiva, am also like a point. However, I am the Supreme Creator and Director. I am the Ocean of Knowledge. I have the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. I am knowledge-full and blissful. I give blessings to everyone. I take everyone into salvation. Only the one Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. No one is unhappy in the golden age. It is the kingdom of only Lakshmi and Narayan. The Father explains: I am the Seed of the human world tree. For instance, there is a mango tree that has a non-living seed, so that would not speak. If it were living, it would say: The branches, twigs, leaves etc. emerge from me, the seed. This One is living and this is called the kalpa tree. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Seed of the human world tree. The Father says: I Myself come and explain the knowledge of it to everyone. I make you children constantly happy. It is Maya that makes you unhappy. The path of devotion has to end. The drama definitely has to turn. This is the history and geography of the unlimited world. The cycle continues to turn. The iron age has to change into the golden age. There is just the one world. God, the Father, is One. He has no father. He is also the Teacher and is teaching you. God speaks: I teach you Raja Yoga. People don’t know the Mother and Father. You children know that you are the incorporeal children of incorporeal Shiv Baba. You are then also the children of corporeal Brahma. All the incorporeal children are brothers and all the children of Brahma are brothers and sisters. This is the way to remain pure. How can brothers and sisters indulge in vice? It is vice that starts a fire, is it not? It is said: The fire of lust. The Father shows you the way to remain safe from that. Firstly, the attainment here is very high. If we follow the Father’s shrimat, we will receive the inheritance from the unlimited Father. Only by having remembrance do we become ever healthy. The yoga of ancient Bharat is very well known. The Father says: By continually remembering Me, you will become pure and your sins will be absolved. If you shed your body in remembrance of the Father, you will come to Me. This old world is to end. This is the same Mahabharat War. There will be victory for those who belong to the Father. A kingdom is being established. God is teaching Raja Yoga for you to become the masters of heaven. Then, Maya, Ravan, makes you into the masters of hell. It is as though you receive that curse. The Father says: Beloved children, may you become residents of heaven by following My direction! Then, when the kingdom of Ravan begins, Ravan says: O children of God, may you become residents of hell! Heaven definitely has to come after hell. This is hell, is it not? There is so much violence everywhere. There is no fighting or quarrelling in the golden age. Bharat itself was heaven; there were no other kingdoms. Now that Bharat is hell, there are innumerable religions. It is remembered that I have to come to destroy the many religions and establish the one religion. I only incarnate once. The Father has to come into the impure world. He comes when the old world has to end. War is also needed for that. The Father says: Sweet children, you came bodiless and you have now completed your part of 84 births. You now have to return home. I make you pure from impure and take you back home. In 5000 years deities take 84 births. There is an account. Not everyone will take 84 births. The Father says: Remember Me and claim your inheritance. The world cycle should spin in your intellects. We are actors. While being an actor, if you do not know the Creator, Director and principal Actor of the drama , you are senseless. Bharat has become so poverty-stricken through this. The Father comes and makes it solvent. The Father explains: You people of Bharat were in heaven and you definitely had to take 84 births. Your 84 births have now ended. Just this last birth now remains. God speaks: The God of everyone is One. None of those of all the other religions would accept Krishna as God. They would only accept the incorporeal One. He is the Father of all souls. He says: I come at the end of the many births of this one and enter him. When the kingdom has been established, destruction begins and I go back home. This is a very great sacrificial fire. All the other sacrificial fires are to be sacrificed into this one. The rubbish of the whole world falls into this one and then no other sacrificial fires are created. The path of devotion comes to an end. After the golden and silver ages devotion then begins. Devotion is now coming to an end. So all of this is the praise of Shiv Baba. They have given Him so many names, and yet they don’t know anything. This One is Shiva and then He is also called Rudra, Somnath and Babulnath (one who changes thorns into flowers). They have given many names to the One. He has been given a name according to the service He did. He is giving you nectar to drink. You mothers have become instruments to open the gates of heaven. It is those who are pure who are praised. Impure ones praise the pure ones. Everyone bows their head to kumaris. You Brahma Kumars and Kumaris are uplifting Bharat. You have to become pure and claim your inheritance of the pure world from the Father. While living at home with your family, you have to remain pure. This requires effort. Lust is the greatest enemy. When they can’t stay without vice, they begin to beat them. Innocent ones are assaulted in the sacrificial fire of Rudra. When the urn of sin of those who assault the innocent ones becomes full, destruction takes place. There are many daughters who have never seen Baba and they write: Baba, I know You. I will definitely become pure in order to claim my inheritance from You. The Father explains: You have been studying the scriptures and going on the physical pilgrimages of the path of devotion. You now have to return home. Therefore, have yoga with Me. Break away from everyone else and connect yourself to Me alone and I will take you back with Me and then send you to heaven. That is the land of peace. Souls don’t speak there. The golden age is the land of happiness and this is the land of sorrow. Now, while living in this land of sorrow, you have to remember the land of peace and the land of happiness and you will then go to heaven. You have taken 84 births. The cycle of the clans continues to turn. First is the topknot of Brahmins, then the deity clan and then the warrior clan. You play a game of somersaulting. We will now become deities from Brahmins. This cycle continues to turn. By knowing it, you become rulers of the globe. You need the unlimited inheritance from the unlimited Father. Therefore, you definitely have to follow the Father’s directions. You explain that the incorporeal Supreme Soul has come and entered this corporeal body. When we souls are incorporeal we reside there. This sun and moon are the lights. This is called the unlimited day and night. The golden and silver ages are the day and the copper and iron ages are the night. The Father comes and shows you the path to salvation. You receive such a good explanation. There is happiness in the golden age and then that continues to decrease little by little. In the golden age it is 16 celestial degrees, and then 14 in the silver age. All of these matters have to be understood. Untimely death never takes place there. There is nothing to cry or fight about there. Everything depends on the study. It is only through this study that you can change from human beings into deities. God is teaching us to make us into gods and goddesses. Those studies are worth only a few pennies. This study is worth diamonds. It is just a matter of becoming pure in this final birth. This Raja Yoga is the easiest of all. To study to become a barrister etc. is not as easy. Here, by remembering the Father and the cycle you become rulers of the globe. If you don’t know the Father, you don’t know anything. The Father Himself doesn’t become the Master of the world. He makes you children that. Shiv Baba says: This Brahma will become the emperor. I do not become that. I sit in the land of nirvana. I make you children into the masters of the world. Only the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, can do true altruistic service; human beings cannot do that. By finding God, you become the masters of the whole world. You become the masters of the earth and the sky etc. The deities were the masters of the world, were they not? There are now so many partitions. The Father now says: I make you into the masters of the world. Only you existed in heaven. Bharat was the master of the world. It has now become poverty-stricken. Bharat once again becomes the master of the world through you mothers. The majority are mothers and this is why it is said: Salutations to the mothers. There is a short time remaining and there is no guarantee for the body; everyone has to die. It is now the stage of retirement for everyone. Everyone has to return home. God is teaching us this. He is called knowledge-full, peaceful and blissful. He is the One who makes us full of all virtues, sixteen celestial degrees fully pure. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning, numberwise according to the effort you make, from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. This study makes you become like a diamond. Therefore, study well, break away from everyone else and connect yourself to the one Father alone.
2. Follow shrimat and claim your full inheritance of heaven. While walking and moving along, continue to spin the discus of self-realisation.
Blessing:May you become filled with all attainments and experience the Lord to be present by saying, “Yes my Lord”, according to shrimat.
The Father becomes present in front of the children every time they say “Yes, my Lord, yes my Lord”, to everything, according to the Father’s shrimat. When the Lord becomes present, there will be nothing lacking in any situation and you will become constantly full. The star of fortune of the attainment of both the Bestower and the Bestower of Fortune will begin to sparkle on your forehead.
Slogan:Be one who has a right to God’s inheritance and there will not be any dependency.
"मीठे बच्चे - सर्व पर ब्लैसिंग करने वाला ब्लिसफुल एक बाप है, बाप को ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है, उनके सिवाए कोई भी दु:ख नहीं हर सकता''
प्रश्नः-भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग दोनों में एडाप्ट होने की रस्म है लेकिन अन्तर क्या है?
उत्तर:-भक्ति मार्ग में जब किसी के पास एडाप्ट होते हैं तो गुरू और चेले का सम्बन्ध रहता है, सन्यासी भी एडाप्ट होंगे तो अपने को फालोअर कहलायेंगे, लेकिन ज्ञान मार्ग में तुम फालोअर या चेले नहीं हो। तुम बाप के बच्चे बने हो। बच्चा बनना अर्थात् वर्से का अधिकारी बनना।
गीत:-ओम नमो शिवाए ....... -- ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। यह है परमपिता परमात्मा शिव की महिमा। कहते भी हैं शिवाए नम:। रुद्राय नम: वा सोमनाथ नम: नहीं कहते हैं। शिवाए नम: कहते हैं और बहुत स्तुति भी उनकी होती है। अब शिवाए नम: हुआ बाप। गॉड फादर का नाम हुआ शिव। वह है निराकार। यह किसने कहा - ओ गॉड फादर? आत्मा ने। सिर्फ 'ओ फादर' कहते हैं तो वह जिस्मानी फादर हो जाता है। 'ओ गॉड फादर' कहने से रूहानी फादर हो जाता है। यह समझने की बातें हैं। देवताओं को पारसबुद्धि कहा जाता है। देवतायें तो विश्व के मालिक थे। अभी कोई मालिक हैं नहीं। भारत का धनी-धोणी कोई है नहीं। राजा को भी पिता, अन्नदाता कहा जाता है। अभी तो राजायें हैं नहीं। तो यह शिवाए नम: किसने कहा? कैसे पता पड़े कि यह बाप है? ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो ढेर हैं। यह ठहरे शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां। ब्रह्मा द्वारा इनको एडाप्ट करते हैं। सब कहते हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। अच्छा, ब्रह्मा किसका बच्चा? शिव का। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीनों ही शिव के बच्चे हैं। शिवबाबा है ऊंच ते ऊंच भगवान्, निराकारी वतन में रहने वाला। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। अच्छा, मनुष्य सृष्टि कैसे रची? तो कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं ब्रह्मा के साधारण तन में प्रवेश कर इनको प्रजापिता बनाता हूँ। मुझे प्रवेश ही इनमें करना है जिसको ब्रह्मा नाम दिया है। एडाप्ट करने बाद नाम बदल जाता है। सन्यासी भी नाम बदलते हैं। पहले गृहस्थियों के पास जन्म लेते हैं फिर संस्कार अनुसार छोटेपन में ही शास्त्र आदि पढ़ते हैं फिर वैराग्य आता है। सन्यासियों पास जाकर एडाप्ट होते हैं, कहेंगे यह मेरा गुरू है। उनको बाप नहीं कहेंगे। चेले वा फालोअर्स बनते हैं गुरू के। गुरू चेले को एडाप्ट करते हैं कि तुम हमारे चेले वा फालोअर हो। यह बाप कहते हैं कि तुम हमारे बच्चे हो। तुम आत्मा बाप को भक्ति मार्ग में बुलाती आई हो, क्योंकि यहाँ दु:ख बहुत है, त्राहि-त्राहि हो रही है। पतित-पावन बाप तो एक ही है। निराकार शिव को आत्मा नम: करती है। तो बाप तो है ही। ‘तुम मात-पिता' यह भी गॉड फादर के लिए ही गाते हैं। फादर है तो मदर भी जरूर चाहिए। मदर-फादर बिगर रचना होती नहीं। बाप को बच्चों के पास आना ही है। यह सृष्टि चक्र कैसे रिपीट होता है, इसके आदि, मध्य, अन्त को जानना - इसको कहा जाता है त्रिकालदर्शी बनना। इतने सब करोड़ों एक्टर्स हैं, हर एक का पार्ट अपना है। यह बेहद का ड्रामा है। बाप कहते हैं मैं क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर हूँ। एक्ट कर रहा हूँ ना। मेरी आत्मा को सुप्रीम कहते हैं। आत्मा और परमात्मा का रूप एक ही है। वास्तव में आत्मा है ही बिन्दी। भृकुटी के बीच में आत्मा स्टॉर रहता है ना। बिल्कुल सूक्ष्म है। उनको देख नहीं सकते हैं। आत्मा भी सूक्ष्म है तो आत्मा का बाप भी सूक्ष्म है। बाप समझाते हैं तुम आत्मा बिन्दी समान हो। मैं शिव भी बिन्दी समान हूँ। परन्तु मैं सुप्रीम, क्रियेटर, डायरेक्टर हूँ। ज्ञान सागर हूँ। मेरे में सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है। मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल हूँ, सब पर ब्लैसिंग करता हूँ। सबको सद्गति में ले जाता हूँ। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता एक ही बाप है। सतयुग में दु:खी कोई होता ही नहीं। लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य है।
बाप समझाते हैं मैं इस सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप हूँ। समझो, आम का झाड़ है, वह तो है जड़ बीज, वह बोलेगा नहीं। अगर चैतन्य होता तो बोलता कि मुझ बीज से ऐसे टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं। अब यह है चैतन्य, इसको कल्प वृक्ष कहा जाता है। मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज परमपिता परमात्मा है। बाप कहते हैं मैं ही आकर इसका नॉलेज समझाता हूँ, बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ। दु:खी बनाती है माया। भक्ति मार्ग को पूरा होना है। ड्रामा को फिरना जरूर है। यह है बेहद वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। चक्र फिरता रहता है। कलियुग बदल फिर सतयुग होना है। सृष्टि तो एक ही है। गॉड फादर इज़ वन। इनका कोई फादर नहीं। वही टीचर भी है, पढ़ा रहे हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। मनुष्य तो मात-पिता को जानते नहीं। तुम बच्चे जानते हो निराकार शिवबाबा के हम निराकारी बच्चे हैं। फिर साकारी ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। निराकार बच्चे सब भाई-भाई हैं और ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहन हैं। यह है पवित्र रहने की युक्ति। बहन-भाई विकार में कैसे जायेंगे। विकार की ही आग लगती है ना। काम अग्नि कहा जाता है, उससे बचने की युक्ति बाप बतलाते हैं। एक तो प्राप्ति बहुत ऊंच है। अगर हम बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो बेहद के बाप का वर्सा पायेंगे। याद से ही एवरहेल्दी बनते हैं। प्राचीन भारत का योग मशहूर है। बाप कहते हैं मुझे याद करते-करते तुम पवित्र बन जायेंगे, पाप भस्म हो जायेंगे। बाप की याद में शरीर छोड़ेंगे तो मेरे पास चले आयेंगे। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। यह वही महाभारत की लड़ाई है। जो बाप के बने हैं उनकी ही विजय होनी है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। भगवान् राजयोग सिखलाते हैं स्वर्ग का मालिक बनाने लिए। फिर माया रावण नर्क का मालिक बनाती है। वह जैसे श्राप मिलता है।
बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, मेरी मत पर तुम स्वर्गवासी भव। फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो रावण कहता है - हे ईश्वर के बच्चे, नर्कवासी भव। नर्क के बाद फिर स्वर्ग जरूर आना है। यह नर्क है ना। कितनी मारामारी लगी पड़ी है। सतयुग में लड़ाई-झगड़ा होता नहीं। भारत ही स्वर्ग था, और कोई राज्य था ही नहीं। अभी भारत नर्क है, अनेक धर्म हैं। गाया जाता है अनेक धर्म का विनाश, एक धर्म की स्थापना करने मुझे आना पड़ता है। मैं एक ही बार अवतार लेता हूँ। बाप को आना है पतित दुनिया में। आते ही तब हैं जब पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। उसके लिए लड़ाई भी चाहिए।
बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, तुम अशरीरी आये थे, 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, अब वापस चलना है। मैं तुम्हें पतित से पावन बनाकर वापस ले जाता हूँ। हिसाब तो है ना। 5 हजार वर्ष में देवतायें 84 जन्म लेते हैं। सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्सा लो। सृष्टि का चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। हम एक्टर्स हैं ना। एक्टर होकर ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर को न जानें तो वह बेसमझ ठहरे। इससे भारत कितना कंगाल बन गया है। फिर बाप आकर सालवेन्ट बना देते हैं। बाप समझाते हैं तुम भारतवासी स्वर्ग में थे फिर तुमको 84 जन्म तो जरूर लेने पड़े। अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। यह पिछाड़ी का जन्म बाकी है। भगवानुवाच, भगवान् तो सबका एक है। कृष्ण को और सब धर्म वाले भगवान् नहीं मानेंगे। निराकार को ही मानेंगे। वह सब आत्माओं का बाप है। कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में आकर इनमें प्रवेश करता हूँ। राजाई स्थापन हो जायेगी फिर विनाश शुरू होगा और मैं चला जाऊंगा। यह है बड़ा भारी यज्ञ और जो भी यज्ञ आदि हैं सब इसमें स्वाहा हो जाने हैं। सारी दुनिया का किचड़ा इनमें पड़ जाता है फिर कोई यज्ञ रचा नहीं जाता। भक्ति मार्ग खलास हो जाता है। सतयुग-त्रेता के बाद फिर भक्ति शुरू होती है। अब भक्ति पूरी होती है। तो यह महिमा सारी शिवबाबा की है। इनके इतने नाम दिये हैं, जानते तो कुछ नहीं। यह तो शिव है फिर रूद्र, सोमनाथ, बाबुरीनाथ भी कहते हैं। एक के अनेक नाम रख दिये हैं। जैसे-जैसे सर्विस की है वैसा नाम पड़ा है। तुमको सोमरस पिला रहे हैं। तुम मातायें स्वर्ग का द्वार खोलने के निमित्त बनी हो। वन्दना पवित्र की ही होती है। अपवित्र, पवित्र की वन्दना करते हैं। कन्या को सब माथा टेकते हैं। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां इस भारत का उद्धार कर रहे हैं। पवित्र बन बाप से पवित्र दुनिया का वर्सा लेना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है, इसमें मेहनत है। काम महाशत्रु है। काम बिगर रह नहीं सकते तो मारने लगते हैं। रूद्र यज्ञ में अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। मार खा-खा कर आखरीन उन्हों के पाप का घड़ा भरता है तब फिर विनाश हो जाता है। बहुत बच्चियां हैं, कभी देखा नहीं है, लिखती हैं बाबा हम आपको जानते हैं। आपसे वर्सा लेने लिए पवित्र जरूर बनूंगी। बाप समझाते हैं शास्त्र पढ़ना, तीर्थ आदि करना - यह सब भक्ति मार्ग की जिस्मानी यात्रा तो करते आये हो, अब तुमको वापिस चलना है इसलिए मेरे से योग लगाओ। और संग तोड़ एक मुझ साथ जोड़ो तो तुमको साथ ले जाऊंगा फिर स्वर्ग में भेज दूंगा। वह है शान्तिधाम। वहाँ आत्मायें कुछ बोलती नहीं। सतयुग है सुखधाम, यह है दु:खधाम। अभी इस दु:खधाम में रहते शान्तिधाम-सुखधाम को याद करना है तो फिर तुम स्वर्ग में आ जायेंगे। तुमने 84 जन्म लिए हैं। वर्ण फिरते जाते हैं। पहले है ब्राह्मणों की चोटी फिर देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण बाजोली खेलते हैं ना। फिर अभी हम ब्राह्मण से देवता बनेंगे। यह चक्र फिरता रहता है, इनको जानने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा चाहिए। तो जरूर बाप की मत पर चलना पड़े। तुम समझाते हो निराकार परम आत्मा ने आकर इस साकार शरीर में प्रवेश किया है। हम आत्मायें जब निराकारी हैं तो वहाँ रहती हैं। यह सूर्य-चांद बत्तियां हैं। इसे बेहद का दिन और रात कहा जाता है। सतयुग त्रेता दिन, द्वापर कलियुग रात। बाप आकर सद्गति मार्ग बताते हैं। कितनी अच्छी समझानी मिलती है। सतयुग में होता है सुख, फिर थोड़ा-थोड़ा कम होता जाता है। सतयुग में 16 कला, त्रेता में 14 कला........ यह सब समझने की बातें हैं। वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। रोने, लड़ने-झगड़ने की बात नहीं, है सारा पढ़ाई पर मदार। पढ़ाई से ही मनुष्य से देवता बनना है। भगवान् पढ़ाते हैं भगवान् भगवती बनाने के लिए। वह तो पाई-पैसे की पढ़ाई है। यह पढ़ाई है हीरे जैसी। सिर्फ इस अन्तिम जन्म में पवित्र बनने की बात है। यह है सहज ते सहज राजयोग। बैरिस्टरी आदि पढ़ना - वह कोई इतना सहज नहीं। यहाँ तो बाप और चक्र को याद करने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बाप को नहीं जाना गोया कुछ नहीं जाना। बाप खुद विश्व का मालिक नहीं बनते, बच्चों को बनाते हैं। शिवबाबा कहते हैं यह (ब्रह्मा) महाराजा बनेंगे, मैं नहीं बनूंगा। मैं निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ, बच्चों को विश्व का मालिक बनाता हूँ। सच्ची-सच्ची निष्काम सेवा निराकार परमपिता परमात्मा ही कर सकते हैं, मनुष्य नहीं कर सकते। ईश्वर को पाने से सारे विश्व के मालिक बन जाते हैं। धरती आसमान सबके मालिक बन जाते हैं। देवतायें विश्व के मालिक थे ना। अभी तो कितने पार्टीशन हो गये हैं। अभी फिर बाप कहते हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। स्वर्ग में तुम ही थे। भारत विश्व का मालिक था, अभी कंगाल है। फिर से इन माताओं द्वारा भारत को विश्व का मालिक बनाता हूँ। मैजारटी माताओं की है इसलिए वन्दे मातरम कहा जाता है।
टाइम थोड़ा है, शरीर पर भरोसा नहीं है। मरना तो सबको है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, सबको वापिस जाना है। यह भगवान् पढ़ाते हैं। नॉलेजफुल, पीसफुल, ब्लिसफुल उनको कहा जाता है। वही फिर ऐसा सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण पवित्र बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह पढ़ाई हीरे जैसा बनाती है इसलिए इसे अच्छी तरह पढ़ना है और सब संग तोड़ एक बाप संग जोड़ना है।
2) श्रीमत पर चलकर स्वर्ग का पूरा वर्सा लेना है। चलते-फिरते स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है।
वरदान:-श्रीमत प्रमाण जी हजूर कर, हजूर को हाज़िर अनुभव करने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव
जो हर बात में बाप की श्रीमत प्रमाण "जी हजूर-जी हजूर'' करते हैं, तो बच्चों का जी हजूर करना और बाप का बच्चों के आगे हाजिर हजूर होना। जब हजूर हाजिर हो गया तो किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी, सदा सम्पन्न हो जायेंगे। दाता और भाग्यविधाता-दोनों की प्राप्तियों के भाग्य का सितारा मस्तक पर चमकने लगेगा।
स्लोगन:-परमात्म वर्से के अधिकारी बनकर रहो तो अधीनता आ नहीं सकती।
03/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, only the one Father is the Blissful One who gives blessings to all. The Father alone is called the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. No one apart from Him can remove your sorrow.
Question:There is the system of adoption on both the path of devotion and the path of knowledge, but what is the difference?
Answer:On the path of devotion when someone is adopted, there is the relationship of guru and disciple. When a sannyasi is adopted, he will call himself a follower whereas on the path of knowledge, you are not followers or disciples. You have become children of the Father. To become a child means to have a right to the inheritance.
Song:Salutations to Shiva. -- Om Shanti
You children heard the song. This praise is of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. They say: Salutations to Shiva. They do not say: Salutations to Rudra or Salutations to Somnath. They say: Salutations to Shiva and He is the One who is praised a lot. “Salutations to Shiva” means to the Father. The name of God, the Father, is Shiva. He is incorporeal. Who said: “O God, the Father”? The soul said it. When a soul simply says, “O father!” that refers to a physical father. The expression “O God, the Father” refers to the spiritual Father. These matters have to be understood. Deities are called those with divine intellects. The deities were the masters of the world. Now no one is a master. No one is the Lord or Master of Bharat. A king is called the father or the bestower of food (The Provider). There are now no kings. So, who said: Salutations to Shiva? How can you tell that that One is the Father? There are so many Brahma Kumars and Kumaris. They become the grandchildren of Shiv Baba. He adopts them through Brahma. They all say: We are Brahma Kumars and Kumaris. Achcha, whose child is Brahma? Shiva’s. Brahma, Vishnu and Shankar, all three, are children of Shiva. Shiv Baba is God, the Highest on High, the One who resides in the incorporeal world. Brahma, Vishnu and Shankar are residents of the subtle region. OK, so how was the human world created? He says: According to the drama, I enter the ordinary body of Brahma and make him the Father of People (Prajapita). I have to enter the one who is given the name Brahma. His name changes after he has been adopted. Even sannyasis have their names changed. They first take birth to householders and then, according to their sanskars, they read the scriptures etc. in their childhood, and then they have disinterest. They then go to a sannyasi and are adopted there. They would say: This one is my guru. They would not call him father. They become disciples or followers of the guru. The guru adopts the disciple and says: You are my disciple or my follower. This Father says: You are My children. You souls have been calling out to the Father on the path of devotion because there is a lot of sorrow here; there is a lot of crying out in distress. The Purifier Father is only the One. Souls salute incorporeal Shiva. The Father always exists. It is to God, the Father, that they sing: You are the Mother and You are the Father. Since there is the Father, the Mother is also definitely needed. There cannot be creation without the Mother and Father. The Father definitely has to come to the children. To know how the world cycle repeats and to know its beginning, middle and end is to become trikaldarshi. There are millions of actors and each one’s part is his own. This drama is unlimited. The Father says: I am the Creator, Director and principal Actor. I am acting, am I not? My soul is called the Supreme. The form of a soul and the form of the Supreme Soul are the same. In fact, a soul is just a point. The soul, the star , resides in the centre of the forehead. It is extremely subtle; it cannot be seen. A soul is subtle and the Father of souls is also subtle. The Father explains: You souls are like points. I, Shiva, am also like a point. However, I am the Supreme Creator and Director. I am the Ocean of Knowledge. I have the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. I am knowledge-full and blissful. I give blessings to everyone. I take everyone into salvation. Only the one Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. No one is unhappy in the golden age. It is the kingdom of only Lakshmi and Narayan. The Father explains: I am the Seed of the human world tree. For instance, there is a mango tree that has a non-living seed, so that would not speak. If it were living, it would say: The branches, twigs, leaves etc. emerge from me, the seed. This One is living and this is called the kalpa tree. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Seed of the human world tree. The Father says: I Myself come and explain the knowledge of it to everyone. I make you children constantly happy. It is Maya that makes you unhappy. The path of devotion has to end. The drama definitely has to turn. This is the history and geography of the unlimited world. The cycle continues to turn. The iron age has to change into the golden age. There is just the one world. God, the Father, is One. He has no father. He is also the Teacher and is teaching you. God speaks: I teach you Raja Yoga. People don’t know the Mother and Father. You children know that you are the incorporeal children of incorporeal Shiv Baba. You are then also the children of corporeal Brahma. All the incorporeal children are brothers and all the children of Brahma are brothers and sisters. This is the way to remain pure. How can brothers and sisters indulge in vice? It is vice that starts a fire, is it not? It is said: The fire of lust. The Father shows you the way to remain safe from that. Firstly, the attainment here is very high. If we follow the Father’s shrimat, we will receive the inheritance from the unlimited Father. Only by having remembrance do we become ever healthy. The yoga of ancient Bharat is very well known. The Father says: By continually remembering Me, you will become pure and your sins will be absolved. If you shed your body in remembrance of the Father, you will come to Me. This old world is to end. This is the same Mahabharat War. There will be victory for those who belong to the Father. A kingdom is being established. God is teaching Raja Yoga for you to become the masters of heaven. Then, Maya, Ravan, makes you into the masters of hell. It is as though you receive that curse. The Father says: Beloved children, may you become residents of heaven by following My direction! Then, when the kingdom of Ravan begins, Ravan says: O children of God, may you become residents of hell! Heaven definitely has to come after hell. This is hell, is it not? There is so much violence everywhere. There is no fighting or quarrelling in the golden age. Bharat itself was heaven; there were no other kingdoms. Now that Bharat is hell, there are innumerable religions. It is remembered that I have to come to destroy the many religions and establish the one religion. I only incarnate once. The Father has to come into the impure world. He comes when the old world has to end. War is also needed for that. The Father says: Sweet children, you came bodiless and you have now completed your part of 84 births. You now have to return home. I make you pure from impure and take you back home. In 5000 years deities take 84 births. There is an account. Not everyone will take 84 births. The Father says: Remember Me and claim your inheritance. The world cycle should spin in your intellects. We are actors. While being an actor, if you do not know the Creator, Director and principal Actor of the drama , you are senseless. Bharat has become so poverty-stricken through this. The Father comes and makes it solvent. The Father explains: You people of Bharat were in heaven and you definitely had to take 84 births. Your 84 births have now ended. Just this last birth now remains. God speaks: The God of everyone is One. None of those of all the other religions would accept Krishna as God. They would only accept the incorporeal One. He is the Father of all souls. He says: I come at the end of the many births of this one and enter him. When the kingdom has been established, destruction begins and I go back home. This is a very great sacrificial fire. All the other sacrificial fires are to be sacrificed into this one. The rubbish of the whole world falls into this one and then no other sacrificial fires are created. The path of devotion comes to an end. After the golden and silver ages devotion then begins. Devotion is now coming to an end. So all of this is the praise of Shiv Baba. They have given Him so many names, and yet they don’t know anything. This One is Shiva and then He is also called Rudra, Somnath and Babulnath (one who changes thorns into flowers). They have given many names to the One. He has been given a name according to the service He did. He is giving you nectar to drink. You mothers have become instruments to open the gates of heaven. It is those who are pure who are praised. Impure ones praise the pure ones. Everyone bows their head to kumaris. You Brahma Kumars and Kumaris are uplifting Bharat. You have to become pure and claim your inheritance of the pure world from the Father. While living at home with your family, you have to remain pure. This requires effort. Lust is the greatest enemy. When they can’t stay without vice, they begin to beat them. Innocent ones are assaulted in the sacrificial fire of Rudra. When the urn of sin of those who assault the innocent ones becomes full, destruction takes place. There are many daughters who have never seen Baba and they write: Baba, I know You. I will definitely become pure in order to claim my inheritance from You. The Father explains: You have been studying the scriptures and going on the physical pilgrimages of the path of devotion. You now have to return home. Therefore, have yoga with Me. Break away from everyone else and connect yourself to Me alone and I will take you back with Me and then send you to heaven. That is the land of peace. Souls don’t speak there. The golden age is the land of happiness and this is the land of sorrow. Now, while living in this land of sorrow, you have to remember the land of peace and the land of happiness and you will then go to heaven. You have taken 84 births. The cycle of the clans continues to turn. First is the topknot of Brahmins, then the deity clan and then the warrior clan. You play a game of somersaulting. We will now become deities from Brahmins. This cycle continues to turn. By knowing it, you become rulers of the globe. You need the unlimited inheritance from the unlimited Father. Therefore, you definitely have to follow the Father’s directions. You explain that the incorporeal Supreme Soul has come and entered this corporeal body. When we souls are incorporeal we reside there. This sun and moon are the lights. This is called the unlimited day and night. The golden and silver ages are the day and the copper and iron ages are the night. The Father comes and shows you the path to salvation. You receive such a good explanation. There is happiness in the golden age and then that continues to decrease little by little. In the golden age it is 16 celestial degrees, and then 14 in the silver age. All of these matters have to be understood. Untimely death never takes place there. There is nothing to cry or fight about there. Everything depends on the study. It is only through this study that you can change from human beings into deities. God is teaching us to make us into gods and goddesses. Those studies are worth only a few pennies. This study is worth diamonds. It is just a matter of becoming pure in this final birth. This Raja Yoga is the easiest of all. To study to become a barrister etc. is not as easy. Here, by remembering the Father and the cycle you become rulers of the globe. If you don’t know the Father, you don’t know anything. The Father Himself doesn’t become the Master of the world. He makes you children that. Shiv Baba says: This Brahma will become the emperor. I do not become that. I sit in the land of nirvana. I make you children into the masters of the world. Only the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, can do true altruistic service; human beings cannot do that. By finding God, you become the masters of the whole world. You become the masters of the earth and the sky etc. The deities were the masters of the world, were they not? There are now so many partitions. The Father now says: I make you into the masters of the world. Only you existed in heaven. Bharat was the master of the world. It has now become poverty-stricken. Bharat once again becomes the master of the world through you mothers. The majority are mothers and this is why it is said: Salutations to the mothers. There is a short time remaining and there is no guarantee for the body; everyone has to die. It is now the stage of retirement for everyone. Everyone has to return home. God is teaching us this. He is called knowledge-full, peaceful and blissful. He is the One who makes us full of all virtues, sixteen celestial degrees fully pure. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning, numberwise according to the effort you make, from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. This study makes you become like a diamond. Therefore, study well, break away from everyone else and connect yourself to the one Father alone.
2. Follow shrimat and claim your full inheritance of heaven. While walking and moving along, continue to spin the discus of self-realisation.
Blessing:May you become filled with all attainments and experience the Lord to be present by saying, “Yes my Lord”, according to shrimat.
The Father becomes present in front of the children every time they say “Yes, my Lord, yes my Lord”, to everything, according to the Father’s shrimat. When the Lord becomes present, there will be nothing lacking in any situation and you will become constantly full. The star of fortune of the attainment of both the Bestower and the Bestower of Fortune will begin to sparkle on your forehead.
Slogan:Be one who has a right to God’s inheritance and there will not be any dependency.
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