Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-11-24 19:48:34
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
A
Article Rating
Participate in Rating,
See Result
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- )
B Quiz( Create, Edit, Delete )
Participate in Quiz,
See Result
Created/ Edited Time:- 13-11-2018 01:33:45
C Survey( Create, Edit, Delete) Participate in Survey, See Result Created Time:-
D
Page No Photo Page Name Count of Characters Date of Last Creation/Edit
1 Image Murali 1st Oct 2018 113370 2018-11-13 01:33:45
2 Image Murali 02- Oct 2018 132948 2018-11-13 01:33:45
3 Image Murali 03-Oct-2018 125177 2018-11-13 01:33:45
4 Image Murali 04-Oct-2018 118934 2018-11-13 01:33:45
5 Image Murali 05-Oct-2018 133374 2018-11-13 01:33:45
6 Image Murali 06-Oct-2018 133043 2018-11-13 01:33:45
7 Image Murali 07-Oct-2018 135426 2018-11-13 01:33:45
8 Image Murali 08-Oct-2018 118475 2018-11-13 01:33:45
9 Image Murali 09-Oct-2018 113426 2018-11-13 01:33:46
10 Image Murali 10-Oct-2018 123819 2018-11-13 01:33:46
11 Image Murali 11-Oct-2018 133485 2018-11-13 01:33:46
12 Image Murali 12th Oct 2018 12264 2018-11-13 01:33:46
13 Image Murali 13th Oct 2018 120124 2018-11-13 01:33:46
14 Image Murali 14th Oct 2018 132308 2018-11-13 01:33:46
15 Image Murali 15th Oct 2018 124161 2018-11-13 01:33:46
16 Image Murali 16th Oct 2018 128293 2018-11-13 01:33:46
17 Image Murali 17th Oct 2018 120298 2018-11-13 01:33:46
18 Image Murali 18th Oct 2018 118916 2018-11-13 01:33:46
19 Image Murali 19th Oct 2018 117510 2018-11-13 01:33:46
20 Image Murali 20th Oct 2018 117518 2018-11-13 01:33:46
21 Image Murali 21st Oct 2018 130603 2018-11-13 01:33:46
22 Image Murali 22nd Oct 2018 135192 2018-11-13 01:33:46
23 Image Murali 23rd Oct 2018 113654 2018-11-13 01:33:46
24 Image Murali 24th Oct 2018 128826 2018-11-13 01:33:46
25 Image Murali 25th Oct 2018 124802 2018-11-13 01:33:46
26 Image Murali 26th Oct 2018 117905 2018-11-13 01:33:46
27 Image Murali 27th Oct 2018 125168 2018-11-13 01:33:46
28 Image Murali 28th Oct 2018 105833 2018-11-13 01:33:46
29 Image Murali 29th Oct 2018 124953 2018-11-13 01:33:46
30 Image Murali 30th Oct 2018 235865 2018-11-13 01:33:46
Article Image
Details ( Page:- Murali 22nd Oct 2018 )
22-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बुद्धि को यहाँ-वहाँ भटकाने के बजाए घर में बाप को याद करो, दूर-दूर तक बुद्धि को ले जाओ - इसे ही याद की यात्रा कहा जाता है''
 
प्रश्नः-
 
जो बच्चे सच्ची दिल से बाप को याद करते हैं उनकी निशानी क्या होगी?
 
उत्तर:-
 
1. सच्ची दिल से याद करने वाले बच्चों से कभी कोई विकर्म नहीं हो सकता। उनसे ऐसा कर्म नहीं होगा जिससे बाप की ग्लानी हो। उनके मैनर्स बड़े अच्छे होते हैं। 2. वह भोजन पर भी याद में रहेंगे। नींद भी समय पर स्वत: खुल जायेगी। वह बहुत सहनशील, बहुत मीठे होंगे। बाप से कोई भी बात छिपायेंगे नहीं।
 
गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं....... 
 
ओम् शान्ति।
 
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, कोई निराकार बाप को समझे, कोई साकार बाप को समझे, कोई मात-पिता को समझे। यह मात-पिता समझाते हैं तो भी माता अलग और पिता अलग हो जाते। अगर निराकार समझाये तो निराकार अलग, साकार अलग हो जाते। परन्तु यह समझाने वाला बाप है। तुम बच्चे ही यह जानते हो कि जिस्मानी तीर्थ और रूहानी तीर्थ हैं। वह जिस्मानी तीर्थ आधाकल्प के हैं, अगर कहेंगे जन्म-जन्मान्तर से यह चलते आये हैं तो फिर ऐसे समझेंगे शुरू से लेकर यह चलते हैं, अनादि हैं। ऐसे तो है नहीं इसलिए आधाकल्प से कहा जाता है। अभी बाप ने आकर इन तीर्थों का राज़ समझाया है। मनमनाभव अर्थात् रूहानी तीर्थ। जरूर आत्माओं को ही समझाते हैं और समझाने वाला है परमपिता। और कोई समझा सके। हर एक अपने-अपने धर्म स्थापक के तीर्थ पर जाते हैं। यह भी आधाकल्प की रस्म-रिवाज है। सब तीर्थ करते हैं परन्तु वह कोई को सद्गति दे सकें। खुद ही घड़ी-घड़ी तीर्थों पर जाते रहते। अमरनाथ, बद्रीनाथ तरफ वर्ष-वर्ष तीर्थ करने निकलते फिर चारों धाम करते हैं। अभी यह रूहानी तीर्थ सिर्फ तुम जानते हो। रूहानी सुप्रीम बाप ने समझाया है मनमनाभव और जिस्मानी तीर्थ आदि सब छोड़ो, मुझे याद करो तो तुम सच्चे-सच्चे स्वर्ग में चले जायेंगे। यात्रा माना आना-जाना। वह तो अभी ही होता है। सतयुग में यात्रा होती नहीं। तुम हमेशा के लिए स्वर्ग आश्रम में जाकर बैठेंगे। यहाँ तो सिर्फ नाम रख देते हैं। वास्तव में स्वर्ग आश्रम यहाँ होता नहीं। स्वर्ग आश्रम सतयुग को कहा जाता है। नर्क को यह अक्षर दे नहीं सकते। नर्कवासी नर्क में ही रहते हैं, स्वर्गवासी स्वर्ग में रहते हैं। यहाँ तो जिस्मानी आश्रम में जाकर फिर लौट आते हैं। यह बेहद का बाप समझाते हैं। वास्तव में सच्चा-सच्चा बेहद का गुरू एक ही है। बेहद का बाप भी एक है। भल कहते हैं आगाखां गुरू, परन्तु वह कोई गुरू नहीं है। सद्गति दाता तो नहीं है ना। अगर सद्गति दाता होता तो खुद भी गति-सद्गति में जाये। उनको गुरू नहीं कहेंगे। यह तो सिर्फ नाम रख दिये हैं। सिक्ख लोग कहते हैं सतगुरू अकाल। वास्तव में सत श्री अकाल एक ही परमात्मा है जिसको सतगुरू भी कहते हैं। वही सद्गति करने वाला है। इस्लामी, बौद्धी या ब्रह्मा आदि नहीं कर सकते। भल कहते हैं गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु। अब गुरू भल ब्रह्मा को कहा जाए बाकी गुरू विष्णु, गुरू शंकर तो हो सके। गुरू ब्रह्मा का नाम है जरूर। परन्तु ब्रह्मा गुरू का भी तो गुरू होगा ना। सत श्री अकाल का तो फिर कोई गुरू नहीं। वह एक ही सतगुरू है। बाकी और कोई गुरू या फिलॉसाफर या प्रीचुअल नॉलेज देने वाला है नहीं, सिवाए एक के। बुद्ध आदि तो अपने पिछाड़ी सबको ले आते हैं। उनको रजो-तमो में आना ही है। वह कोई सद्गति के लिए नहीं आते हैं। सद्गति दाता एक का ही नाम बाला है, जिसको फिर सर्वव्यापी कहते हैं। फिर गुरू करने की क्या दरकार है। हम भी गुरू, तुम भी गुरू, हम भी शिव, तुम भी शिव - इनसे तो कोई का पेट नहीं भरता। बाकी हाँ, पवित्र हैं इसलिए उनका मान होता है, सद्गति दे नहीं सकते। वह तो एक ही है, जिसको सच्चा-सच्चा गुरू कहा जाता है। गुरू तो अनेक प्रकार के हैं। सिखलाने वाले उस्ताद को भी गुरू कहते हैं। यह भी उस्ताद है। माया से युद्ध करना सिखलाते हैं। तुम बच्चों को त्रिकालदर्शीपन की नॉलेज है, जिससे तुम चक्रवर्ती बनते हो। सृष्टि के चक्र को जानने वाले ही चक्रवर्ती राजा बनते हैं। ड्रामा के चक्र को वा कल्पवृक्ष के आदि-मघ्य-अन्त को जानना, बात एक ही है। चक्र की निशानी बहुत शास्त्रों में भी लिखी हुई है। फिलॉसाफी की किताब अलग होती है। किताबें तो अनेक प्रकार की होती हैं। यहाँ तुमको कोई किताब की दरकार नहीं। तुमको तो जो बाप सिखलाते हैं, वह समझना है। बाप की प्रापर्टी पर तो सब बच्चों का हक होता है। परन्तु स्वर्ग में सबको एक जैसी प्रापर्टी तो नहीं होगी। राजाई है उनकी जो बाप का बना। बाबा कहा, थोड़ा भी ज्ञान सुना, तो वह हकदार हो जाते। परन्तु नम्बरवार। कहाँ विश्व के महाराजा, कहाँ प्रजा दास-दासियां। यह सारी राजधानी स्थापन हो रही है। बाप का बनने से स्वर्ग का वर्सा तो जरूर मिलता है। वर्सा मिलता है बाप से। यह नई बातें होने कारण मनुष्य समझते नहीं। बाप समझाते हैं सतयुग में विकार हैं नहीं। माया ही नहीं तो विकार कहाँ से आये। माया का राज्य शुरू होता है द्वापर से। यह हैं रावण की 5 जंजीरें। वहाँ यह होती नहीं। जास्ती डिस्कस नहीं करना है। वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। बाकी बच्चे पैदा होने की, गद्दी पर बैठने की, महल आदि बनाने की जो रस्म-रिवाज होगी - वह जरूर अच्छी ही होगी क्योंकि स्वर्ग है।
 
बाप समझाते हैं - बच्चे, इस रूहानी यात्रा में तुम्हें निरन्तर बुद्धियोग लगाना है। यह बहुत सहज है। भक्ति मार्ग में भी सवेरे उठते हैं। ज्ञान मार्ग में भी सवेरे उठ बाप को याद करना है और कोई किताब आदि पढ़ना नहीं है। सिर्फ बाप कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि अब छोटे-बड़े सबका मौत सामने खड़ा है। मरते समय कहते हैं - भगवान् को सिमरो। अन्तकाल अगर भगवान् को नहीं सिमरेंगे तो स्वर्ग में जा नहीं सकेंगे। तो बाप भी कहते हैं - मनमनाभव। इस देह को भी याद नहीं करना है। हम आत्मा एक्टर हैं, शिवबाबा की सन्तान हैं। लगातार याद में रहना है। वैसे छोटे बच्चों को तो नहीं कहेंगे कि भगवान् को याद करो। यहाँ सबको कहना पड़ता है क्योंकि सबको बाप के पास जाना है, बाप से ही बुद्धियोग लगाना है। कोई से लड़ाई-झगड़ा नहीं करना है। यह बड़ा नुकसानकारक है। कोई कुछ कहे, सुना-अनसुना कर देना है, सामना नहीं करना चाहिए, जो लड़ाई हो जाए। हर बात में सहनशील भी होना चाहिए और फिर समझना है बाप, बाप भी है, धर्मराज भी है। कुछ भी बात है तो तुम बाप को रिपोर्ट करो। फिर धर्मराज के पास पहुँच ही जायेगा और सजा के भागी बन पड़ेंगे। बाप कहते हैं मैं सुख देता हूँ। दु: अर्थात् सजायें धर्मराज़ देते हैं। मुझे सज़ा देने का अधिकार नहीं है। मुझे सुनाओ, सजा धर्मराज देंगे। बाबा को सुनाने से हल्का हो जायेंगे क्योंकि यह फिर भी राइटहैण्ड है। सतगुरू का निन्दक ठौर पाये। जजमेन्ट तो धर्मराज ही देंगे कि किसका दोष है? उनसे कुछ छिप नहीं सकता। कहेंगे ड्रामा अनुसार भूल की, कल्प पहले भी की होगी। परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि भूल करते ही रहना है। फिर अभुल कैसे बनेंगे? भूल हो जाए तो क्षमा मांगनी होती है। बंगाल में किसका पैर आदि लग जाता है तो झट क्षमा मांगते हैं। यहाँ तो एक-दो को गाली देने लग पड़ते हैं। मैनर्स बहुत अच्छे होने चाहिए। बाप सिखलाते तो बहुत हैं, परन्तु समझते नहीं तो समझा जाता है इनका रजिस्टर खराब है। निंदा कराते रहते हैं तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे। जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का बोझा तो है ही। उनकी तो सज़ा भोगनी ही है। फिर यहाँ रहकर अगर विकर्म करते हैं तो उनकी सौगुणा सजा मिल जाती है। सजा तो खानी ही है। जैसे बाबा काशी कलवट का समझाते हैं। वह है भक्ति मार्ग का। यह ज्ञान मार्ग की बात है। एक तो पहले वाले विकर्म हैं, दूसरा फिर इस समय जो करते हैं उनका दण्ड सौगुणा हो जाता है। बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। बाप तो हर एक बात समझाते हैं। कोई पाप करो, नष्टोमोहा बनो। कितनी मेहनत है! इस मम्मा-बाबा को याद नहीं करना है। इनको याद करने से जमा नहीं होगा। इनमें शिवबाबा आते हैं तो याद शिवबाबा को करना है। ऐसे नहीं कि इनमें शिवबाबा है इसलिए इनकी याद रहे। नहीं, शिवबाबा को वहाँ याद करना है। शिवबाबा और स्वीट होम को याद करना है। जिन्न मुआफिक बुद्धि में याद रखना है - शिवबाबा वहाँ रहते हैं, शिवबाबा यहाँ आकर सुनाते हैं, परन्तु हमको याद वहाँ करना है, यहाँ नहीं। बुद्धि दूर जानी चाहिए, यहाँ नहीं। यह शिवबाबा तो चला जायेगा। शिवबाबा इस एक में ही आते है। मम्मा में उनको देख सकें। तुम जानते हो यह बाबा का रथ है परन्तु इनके चेहरे को नहीं देखना है। बुद्धि वहाँ लटकी रहे। यहाँ बुद्धि रहने से इतना मजा नहीं आयेगा। यह कोई यात्रा नहीं हुई। यात्रा की हद तुम्हारी वहाँ है। ऐसे नहीं कि बाबा को ही देखते रहो क्योंकि इनमें शिव है। फिर ऊपर जाने की आदत छूट जाती है। बाप कहते हैं मुझे वहाँ याद करो, बुद्धि-योग वहाँ लगाओ। कई बुद्धू समझते हैं कि बाबा को ही बैठ देखें। अरे, बुद्धि को स्वीट होम में लगाना है। शिवबाबा तो सदैव रथ पर रह सके। यहाँ आकर सिर्फ सर्विस करेंगे। सवारी ले सर्विस कर फिर उतर जायेंगे। बैल पर सदैव सवारी हो नहीं सकती। तो बुद्धि वहाँ रहनी चाहिए। बाबा आते हैं, मुरली चलाकर चले जाते हैं। इनकी बुद्धि भी वहाँ रहती है। रास्ता बरोबर पकड़ना चाहिए। नहीं तो घड़ी-घड़ी पट्टी से गिर पड़ते हैं। यह तो थोड़ा समय है। इनमें शिवबाबा ही नहीं होगा तो याद क्यों करेंगे? मुरली तो यह भी सुना सकते हैं, इनमें कभी है, कभी नहीं है। कभी रेस्ट लेते हैं। तुम याद वहाँ करो।
 
कभी-कभी बाबा ख्याल करते हैं - ड्रामा अनुसार कल्प पहले आज के दिन जो मुरली चलाई थी वही जाकर चलाऊगाँ। तुम भी कह सकते हो कि कल्प पहले बाप से जितना वर्सा लिया था, उतना ही लेंगे। शिवबाबा का नाम जरूर लेना पड़े। परन्तु ऐसे किसको आयेगा नहीं। बाप जरूर याद आयेगा। बाप का ही परिचय देना है। ऐसे नहीं, सिर्फ इनको बैठ देखना है। बाबा ने समझाया है - शिवबाबा को याद करो, नहीं तो पाप हो जायेगा। निरन्तर बाप को याद करना है, नहीं तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। बड़ी मंज़िल है। मासी का घर थोड़ेही है। ऐसे नहीं, भोजन पर पहले याद किया फिर ख़लास, ऐसे ही भोजन खाने लग पड़े। नहीं, सारा समय याद करना पड़े। मेहनत है। ऐसे थोड़ेही ऊंच पद मिल सकता है। तब तो देखो करोड़ों में 8 रत्न पास होते हैं। मंज़िल बड़ी भारी है। विश्व का मालिक बनना है, यह तो किसकी बुद्धि में नहीं होगा। इनकी बुद्धि में भी नहीं था। अब ख्याल किया जाता है, 84 जन्म किसको मिलते हैं? जरूर जो पहले आते हैं वह हैं लक्ष्मी-नारायण। यह हैं सब विचार सागर मंथन करने की बातें। बाप समझाते हैं - हथ कार डे, दिल याद डे। भल धन्धे आदि में रहो, परन्तु निरन्तर बाप को याद करते रहो। यह है यात्रा। तीर्थों पर जाकर फिर लौटना नहीं है। तीर्थ बहुत मनुष्य करते हैं, अब तो वहाँ पर भी गंद हो गया है। नहीं तो तीर्थ स्थान पर कभी वेश्यालय नहीं होते। अभी कितना भ्रष्टाचार है। एक धनी तो कोई है नहीं। झट गाली देने लग पड़ते। आज चीफ मिनिस्टर है, कल उनको भी उतार देते। माया के मुरीद बन जाते हैं। पैसे इकट्ठे करेंगे, मकान बनायेंगे, धन के पिछाड़ी चोरी करने लग पड़ते हैं। तुम अब स्वर्ग में जाने की तैयारी कर रहे हो। वही याद आना चाहिए। धारणा भी होनी चाहिए। मुरली लिखकर फिर रिवाइज़ करनी चाहिए। फुर्सत तो बहुत रहती है। रात को तो बहुत फुर्सत है। रात को जागो तो आदत पड़ जायेगी। जो सच्चा-सच्चा बाबा को याद करने वाला होगा उनकी आंख आपेही खुल जायेगी। बाबा अनुभव बताते हैं। कैसे रात को आंख खुल जाती है। अभी तो नींद के लिए और ही पुरुषार्थ करते हैं। हाँ, स्थूल काम करने से भी शरीर को थकावट होती है। बाबा का रथ भी देखो कितना पुराना है। विचार करो, बाबा पतित दुनिया में आकर कितनी मेहनत करते हैं! भक्ति मार्ग में भी मेहनत करते थे, अभी भी मेहनत करते हैं। शरीर भी पतित तो दुनिया भी पतित। बाबा कहते हैं मैं आधाकल्प तो बहुत आराम करता हूँ, कुछ भी ख्याल नहीं करना पड़ता है। भक्ति मार्ग में बहुत ख्याल करना पड़ता इसलिए बाप को रहमदिल गाया हुआ है। ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन आफ ब्लिस, कितनी महिमा करते हैं। वही बाप अभी हमको पढ़ाते हैं और कोई पढ़ा सके। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी का भी सामना नहीं करना है, कोई कुछ कहे तो सुना-अनसुना कर देना है। सहनशील बनना है। सतगुरू की निंदा नहीं करानी है।
2) अपना रजिस्टर खराब होने नहीं देना है। भूल हो जाए तो बाप को सुनाकर क्षमा मांग लेनी है। वहाँ (ऊपर) याद करने की आदत डालनी है।
 
वरदान:-किनारा करने के बजाए स्वयं को एडजेस्ट करने वाले सहनशीलता के अवतार भव
 
कई बच्चों में सहनशक्ति की कमी होती है इसलिए कोई छोटी सी बात भी होती है तो चेहरा बहुत जल्दी बदल जाता है, फिर घबराकर या तो स्थान को बदलने की सोचेंगे या जिनसे तंग होंगे उनको बदल देंगे, अपने को नहीं बदलेंगे, लेकिन दूसरों से किनारा कर लेंगे इसलिए स्थान अथवा दूसरे को बदलने के बजाए स्वयं को बदल लो, सहनशीलता का अवतार बन जाओ। सबके साथ स्वयं को एडजेस्ट करना सीखो।
 
स्लोगन:-परमार्थ के आधार से व्यवहार को सिद्ध करना - यही योगी का लक्षण है।
 
 
22/10/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, instead of allowing your intellects to wander here and there, remember the Father in the home. Take your intellects far, far away. This is called the pilgrimage of remembrance.
 
Question:
What are the signs of the children who remember the Father with true hearts?
 
Answer:
 
1. The children who remember the Father with true hearts can never perform any sinful actions. They never perform any actions that would defame the Father. They have very good manners. 2. They stay in remembrance even when eating meals. They awaken from their sleep naturally, at the right time. They are very tolerant and very sweet. They never hide anything from the Father.
 
Song:
 
Our pilgrimage is unique. 
 
Om Shanti
 
The Father sits here and explains to you children. Some understand the incorporeal Father, some understand the corporeal father and some understand the mother and Father. Even when this mother and Father explain, the mother is separate from the Father. When the Incorporeal explains, the Incorporeal is separate from the corporeal, but it is the Father who explains this. Only you children know that there are physical pilgrimage places and the spiritual pilgrimage place. Those physical pilgrimages last for half the cycle. If you say that they have been continuing for birth after birth, it would then be understood that they have been continuing from the beginning and that they are eternal. It is not like that. This is why it is said that they have continued for half the cycle. The Father has now come and has explained to you the secrets of those pilgrimages. ‘Manmanabhav’ means the spiritual pilgrimage. He definitely explains to souls, because the One who explains is the Supreme Father. No one else can explain it. Each one goes to the pilgrimage place of the founder of that religion. This is also the custom and system of half the cycle. They go to all the pilgrimage places, but those places cannot grant anyone salvation. They themselves repeatedly go on pilgrimages. They go on pilgrimage to Amarnath and to Badrinath every year and then they also go to the four pilgrimage places. Now, only you know about this spiritual pilgrimage. The spiritual Supreme Father has said: Manmanabhav. Renounce all the physical pilgrimages and remember Me and you will go to the true heaven. A pilgrimage means coming and going. That only happens at this time. There are no pilgrimages in the golden age. You will go and sit in the ashram of heaven for all time. Here, they just give that name to a place. In fact, there is no swarg-ashram (heavenly ashram) here. The golden age is called the swarg-ashram. Hell cannot be given that name. The residents of hell reside in hell and the residents of heaven reside in heaven. Here, people go to physical ashrams and then come back. The unlimited Father explains all of this. In fact, there is only the one true, unlimited Guru. The unlimited Father is also only the One. Although they speak of Guru Aga Khan, he is not really a guru. He is not a bestower of salvation. If he were a bestower of salvation, he himself would be able to go into liberation and salvation. He cannot be called a guru. They have simply given him that name. Sikhs say: Satguru Akal (The Immortal One). In fact, only the one Supreme Soul is Sat Shri Akal who is also called the Satguru. He alone is the One who grants salvation. Those of Islam, the Buddhists and Brahma etc. cannot do this, even though they speak of Guru Brahma, Guru Vishnu. Although Brahma can be called a guru, there cannot be Guru Vishnu or Guru Shankar. There definitely is the name Guru Brahma, but there must also be the Guru of Guru Brahma. Sat Shri Akal has no guru. He is the only Satguru. There are no gurus or philosophers etc. who give spiritual knowledge except the One. Buddha etc. bring everyone else down with them. He has to go through the stages of rajo and tamo. He doesn't come to grant salvation. The name ‘Bestower of Salvation’ is only known for the One but He has then also been called omnipresent. In that case, what is the need to adopt a guru? I am a guru, you are a guru, I am Shiva and you are Shiva…No one would be satisfied with that. However, yes, because they are pure, they are given regard, but they cannot grant salvation. It is only the One who is called the true Guru. There are many types of guru. Even a master who teaches you is called a guru. This one is also the Master. He teaches you how to battle with Maya. You children have the knowledge of being trikaldarshi with which you become rulers of the globe. Only those who know the world cycle become the kings who are rulers of the globe. To know the cycle of the drama and to know the beginning, middle and end of the kalpa tree is the same thing. The symbol of the cycle has been mentioned in many scriptures. The books of philosophy are separate. There are many types of book. Here, you don't need any books. You have to understand that which the Father is teaching you. All the children have a right to the Father's property. However, not everyone would have the same property in heaven. The kingdom belongs to those who belong to the Father. When you say “Baba” and listen to even a little knowledge, you claim a right, but it is numberwise. There is a lot of difference between the Emperor of the World and the subjects and maids and servants. A whole kingdom is being established. By belonging to the Father, you definitely receive the inheritance of heaven. You receive the inheritance from the Father. Because these things are new, people don't understand. The Father explains that there are no vices in the golden age. Maya herself doesn't exist there, so where could the vices come from? The kingdom of Maya begins in the copper age. These are the five chains of Ravan. They don't exist there. You don't have to go into a lot of discussion. That is the totally viceless world. However, whatever the customs and systems are of giving birth to children, the coronation ceremonies and the building of palaces etc., they will definitely be good, because that is heaven. The Father explains: Children, you constantly have to connect your intellects in yoga on this spiritual pilgrimage. This is very easy. People wake up early on the path of devotion. So, even on the path of knowledge, you have to wake up early and remember the Father. You mustn’t study any other books etc. The Father says: Remember Me alone because the death of everyone, young and old, is now just ahead. When a person is dying, other people say to that person: Remember God. If you don’t remember God in your final moments, you won’t be able to go to heaven! So, the Father also says: Manmanabhav. You mustn’t even remember this body. I, the soul, am an actor, a child of Shiv Baba. You have to stay in remembrance constantly. Generally, you wouldn’t tell little children to remember God. Here, you have to tell everyone because everyone has to go to the Father. You have to connect your intellects in yoga to the Father. You mustn’t fight or quarrel with anyone. That is very damaging. When someone says something, just ignore it as though you haven’t heard it. You shouldn’t create any opposition which would begin a fight. You have to be tolerant in every situation and you also have to understand that the Father is the Father and also Dharamraj. If anything happens, simply report it to the Father. That would then reach Dharamraj anyway and that person would be subject to punishment. The Father says: I give happiness. It is Dharamraj who gives sorrow, that is, punishment. I don’t have a right to give punishment. You tell Me and then Dharamraj will give the punishment. By telling Baba about it you will become light because he is still the right hand. Those who defame the Satguru cannot reach their destination. Only Dharamraj would pass judgment as to who is to be blamed. Nothing can remain hidden from Him. It would be said that a mistake was made according to the drama, but it would also have been made in the previous cycle. However, this doesn’t mean that you can continue to make mistakes. In that case, how would you become free from making mistakes? If you make a mistake you have to ask for forgiveness. In Bengal, if someone accidentally touches someone’s foot, he instantly asks for forgiveness. Here, people continue to insult one another. One should have very good manners. The Father teaches a lot, but when someone doesn’t understand, it is understood that his register is bad. He continues to cause defamation. His status is destroyed. There is the burden of sin for birth after birth anyway. Punishment has to be experienced for that. Then, if someone stays here and performs some sinful acts, there would be a hundred-fold punishment received for that. Punishment has to be experienced. Baba explains about sacrificing oneself at Kashi. That is the path of devotion. This refers to the path of knowledge. Firstly, there are the sins of the past, and secondly, whatever wrong you do at this time, you accumulate a hundred-fold punishment for that. Very severe punishment would have to be experienced. The Father explains everything. Don’t commit any sin. Become a destroyer of attachment. It takes so much effort. You mustn’t remember this Mama and Baba. You won’t accumulate anything by remembering them. Shiv Baba enters this one and so you have to remember Shiv Baba. It isn’t that because Shiv Baba comes in this one you have to remember this one. No, you have to remember Shiv Baba up there. You have to remember Shiv Baba and your sweet home . Keep this in your intellect like a genie: Shiv Baba resides up there. Shiv Baba comes here and speaks to us, but we have to remember Him up there, not down here. Your intellects should go far away, not remain here. Shiv Baba will go away anyway. Shiv Baba only enters this one. You cannot see Him in Mama. You know that this is Baba’s chariot, but you look at this face. Let your intellect dangle up there. You won’t enjoy yourself as much by keeping your intellect down here. This is not the pilgrimage. The limit of your pilgrimage is up there. It isn’t that you should continue to look at Baba because Shiv Baba is in him. In that case, your habit of going up above would be broken. The Father says: Remember Me up there. Connect your intellects in yoga there. Some foolish people (buddhus) think that they should just sit here and continue to look at Baba. Oh! but you have to connect your intellect to the sweet home. Shiv Baba cannot be constantly sitting in the chariot. He simply comes here and does service. He takes His chariot, does service and then leaves the chariot. One cannot always be riding a bull. So, your intellects should remain there. Baba comes, speaks the murli and then leaves. This one’s intellect also remains up there. You should follow the right path. Otherwise, you will repeatedly fall off the track. That One is only here for a short time. If Shiv Baba were not in him, why would you remember this one? Even this one can speak the murli. Sometimes He is in this one and sometimes He is not. Sometimes He takes a rest. You have to remember Him there. Sometimes Baba has the thought: According to the drama, I will go and speak the same murli that I spoke on this day in the previous cycle. You can also say that you will claim as much inheritance from the Father as you did in the previous cycle. You definitely have to mention the name of Shiv Baba. However, no one would know how to say this. The Father’s name would definitely be remembered. You just have to give the Father’s introduction. It isn’t that you just have to sit and look at this one. Baba has explained: Remember Shiv Baba. Otherwise, sins will be committed. You constantly have to remember the Father. Otherwise, your sins will not be absolved. The destination is very high. This is not like going to your aunty’s home. It shouldn’t be that when you begin to take a meal, you remember Baba and then that’s it; that you begin to eat just like that. No, you have to remember Him the whole time you are eating. This requires effort. You cannot receive a high status just like that. This is why you can see that, out of millions, only eight jewels pass. The destination is very high. You have to become masters of the world; this would not be in anyone’s intellect. It wasn’t even in this one’s intellect. Just think about it: who would receive 84 births? Definitely those who come first are Lakshmi and Narayan. All these are the things that you have to churn. The Father explains: Let your hands do the work while your heart stays in remembrance. You may continue to do your business etc. but you constantly have to continue to remember the Father. This is the pilgrimage. You don’t have to go on those pilgrimages and then come back. Many people go on pilgrimages, but it is now very dirty even there. There should never be a brothel at a pilgrimage place. Now, there is so much corruption. There is not one master there. They quickly begin to insult one another. Today, someone may be a Chief Minister and tomorrow they would throw him out. They become slaves to Maya. They accumulate money and build houses etc. They even steal to get wealth. You are now making preparations to go to heaven. You should only remember that. You also have to imbibe everything. You should write down the murli and then revise it. You have a lot of time available. At night, you have a lot of time. Stay awake at night and that habit will be instilled. The eyes of those who truly remember Baba will open naturally. Baba tells you his own experience of how he awakens naturally at night. Nowadays, people make so much extra effort to fall asleep. Yes, of course, the body gets tired by doing a lot of physical work. Look how old Baba’s chariot is! Just think about it: Baba comes into the impure world and makes so much effort. He used to make so much effort on the path of devotion, and even now He makes so much effort. The body is impure and the world is also impure. Baba says: I have a lot of rest for half the cycle. I don’t have to think about anything. I have to think a lot on the path of devotion. That is why the Father is remembered as the Merciful One, the Ocean of Knowledge and the Ocean of Bliss. They praise Him so much. That same Father is teaching us. No one else can teach us. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Don’t oppose anyone. If someone says anything, just ignore it as though you haven’t heard anything. You have to become tolerant. You mustn’t have the Satguru defamed.
2. You mustn’t allow your register to be spoilt. If you make a mistake, tell the Father about it and ask for forgiveness. Instil the habit of remembering Him up there.
 
Blessing:May you be an incarnation of tolerance and simply adjust yourself instead of stepping away.
 
Some children lack any power of tolerance and so, even when something trivial happens, their faces very quickly change. Then, out of fear, they would either think of changing their place or they would try to change the one they are distressed by. They would not change themselves, but would move away from others. So, instead of changing your place or thinking of changing others, change yourself: become an incarnation of tolerance. Learn how to adjust yourself to everyone.
 

Slogan:To try to interact with others on the basis of your Godly activities is a quality of a yogi.

End of Page