Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 18th Oct 2018 )
18-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - निश्चय करो कि हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है, इसमें साक्षात्कार की कोई बात नहीं, आत्मा का साक्षात्कार भी हो तो समझ नहीं सकेंगे''
 
प्रश्नः-बाप की किस श्रीमत पर चलने से गर्भजेल की सजाओं से छूट सकते हैं?
 
उत्तर:-बाप की श्रीमत है - बच्चे नष्टोमोहा बनो, एक बाप दूसरा कोई, तुम सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी पाप कर्म करो तो गर्भजेल की सजाओं से छूट जायेंगे। यहाँ तुम जन्म-जन्मान्तर जेल बर्ड बनते आये, अब बाप आये हैं उन सजाओं से बचाने। सतयुग में गर्भ जेल होता नहीं।
 
ओम् शान्ति।
 
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं - आत्मा क्या है और उनका बाप परमात्मा कौन है? इसे फिर से समझाते हैं क्योंकि यह तो है पतित दुनिया। पतित हमेशा बेसमझ होते हैं। पावन दुनिया समझदार होती है। भारत पावन दुनिया अर्थात् देवी-देवताओं का राज्य था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। बड़े धनवान, सुखी थे परन्तु भारतवासी इन बातों को समझते नहीं। बाप, परमपिता अथवा रचता को ही नहीं जानते। मनुष्य ही जान सकते हैं, जानवर तो नहीं जानेंगे ना। याद भी करते हैं - हे परमपिता परमात्मा। वह पारलौकिक फादर है। आत्मा याद करती है अपने परमपिता परमात्मा को। इस शरीर को जन्म देने वाला तो लौकिक फादर है और वह परमपिता परमात्मा है पारलौकिक फादर, आत्माओं का बाप। मनुष्य लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, समझते भी हैं यह सतयुग में थे और राम-सीता त्रेता में थे। बाप आकर समझाते हैं - बच्चे, तुम मुझ पारलौकिक बाप को जन्म-जन्मान्तर याद करते आये हो। गॉड फादर तो जरूर निराकार हुआ ना। हमारी आत्मा भी निराकार है ना। यहाँ आकर साकार बनी है। यह थोड़ी-सी बात भी कोई की बुद्धि में नहीं आती। वह तुम्हारा बेहद का बाप रचयिता है। पुकारते हैं तुम मात-पिता........ आपके हम बनते हैं तो हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं फिर आपको भूलने से नर्क के मालिक बन जाते हैं। अभी वह बाप इन द्वारा बैठ समझाते हैं - मैं रचयिता हूँ, यह मेरी रचना है, जिसका राज़ तुमको समझाता हूँ। यह भी समझ जाते हैं। आत्मा को किसी ने भी देखा नहीं है फिर क्यों कहते हैं अहम् आत्मा? यह तो समझते हैं ना - अहम् आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। महान् आत्मा, पुण्य आत्मा कहते हैं ना। निश्चय करते हैं - हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है। शरीर विनाशी है, आत्मा अविनाशी है। उस परमपिता परमात्मा की सन्तान है। कितनी सहज बात है। परन्तु अच्छे-अच्छे बुद्धिवान समझ नहीं सकते। माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है। तुमको अपनी आत्मा का ही साक्षात्कार नहीं होता है। आत्मा ही अनेक जन्म लेती है ना। हर जन्म में बाप बदलता जाता है। तुम अपने को आत्मा निश्चय क्यों नहीं करते हो? कहते हैं आत्मा का साक्षात्कार हो। अरे, इतने जन्म कोई को बोला था क्या कि आत्मा का साक्षात्कार हो? कोई-कोई को आत्मा का साक्षात्कार होता भी है परन्तु समझ नहीं सकते। बाप को तुम जानते नहीं। बेहद के बाप बिगर आत्माओं को परमात्मा का साक्षात्कार भी कोई करा नहीं सकता। कहते हैं - हे भगवान्, तो बाप हुआ ना। तुमको दो बाप हैं - एक तो है विनाशी शरीर को जन्म देने वाला विनाशी बाप, दूसरा है अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाप। तुम गाते हो - तुम मात पिता........ उनको याद करते हो तो जरूर वह आया होगा ना। जगत अम्बा और जगत पिता बैठे हैं, राजयोग सीख रहे हैं। वैकुण्ठ में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, वह भी भारत में ही थे ना। मनुष्य समझते हैं ऊपर कहाँ स्वर्ग होगा। अरे, लक्ष्मी-नारायण का यहाँ यादगार है, जरूर यहाँ ही राज्य किया होगा। यह देलवाड़ा मन्दिर तुम्हारा अभी का यादगार बना हुआ है। तुम राजयोगी हो। अधरकुमार, कुमार कुमारियां सब यहाँ बैठे हो, उनका यादगार फिर भक्ति में बनता है। देलवाड़ा नाम का भी कोई अर्थ होगा ना। दिल लेने वाला कौन है? यह आदि देव और आदि देवी भी राजयोग सीख रहे हैं। यह भी याद करेंगे उस निराकार परमपिता परमात्मा को। वह है ऊंच ते ऊंच ज्ञान सागर। इस आदि देव के शरीर में बैठ सब बच्चों को समझाते हैं। यह मन्दिर कब बना, क्यों बना, किन्हों का यह यादगार है? कुछ भी जानते नहीं। देवियों आदि के कितने नाम लेते हैं। काली, दुर्गा, अन्नपूर्णा... अब सारे विश्व की अन्नपूर्णा कौन होगी? कौन-सी देवियाँ अन्न की पूर्ति करती हैं, तुम जानते हो? भारत स्वर्ग था, वहाँ तो अथाह वैभव रहते हैं जबकि अभी ही 80-90 वर्ष पहले 10-12 आने मण अनाज मिलता था तो उससे पहले कितनी सस्ताई होगी। सतयुग में तो अनाज आदि बहुत सस्ता अच्छा होता है। परन्तु यह भी कोई समझते नहीं। बाप आकर तुम आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा इन कर्मेन्द्रियों से सुनती है। आत्मा को यह आंखे मिली हैं देखने के लिए, कान मिले हैं सुनने के लिए। बाप कहते हैं मैं निराकार भी इस शरीर का आधार लेता हूँ। मुझे सदैव शिव ही कहते हैं। मनुष्यों ने बहुत नाम रखे हैं - रूद्र, शिव, सोमनाथ........ परन्तु मेरा एक ही नाम शिव है। शिवाए नम:, भक्त भगवान् को याद करते आये हैं। उनको 2500 वर्ष हुए हैं। भक्ति मार्ग में पहले अव्यभिचारी भक्ति थी। अभी तो तुमने ठिक्कर-भित्तर में डाल दिया है। अभी इस भक्ति का अन्त हैं। सबको वापिस ले जाने मैं आया हूँ। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। बाम्ब्स बने हुए हैं तो कितने में सब ख़लास हो जायेंगे। सतयुग में कितने थोड़े सिर्फ 9 लाख होंगे। बाकी इतने सब कहाँ जायेंगे? यह लड़ाई अर्थक्वेक आदि होगी। विनाश तो जरूर होना है।
 
यह है प्रजापिता, कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। ब्रह्मा का बाप कौन है? निराकार शिव। हम उनके पोत्रे-पोत्रियां हैं। शिवबाबा से हम वर्सा लेते हैं। तो उनको ही याद करना है। याद से ही पापों का बोझा उतरेगा। तुम जानते हो यह है ही विशश, पतित दुनिया। सतयुग है वाइसलेस दुनिया। वहाँ विष (विकार) होता नहीं। कायदे अनुसार एक ही बच्चा होता है। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है। है ही सुखधाम। यहाँ तो कितना दु: है। परन्तु यह बातें कोई भी जानते नहीं। गीता सुनाते हैं, श्रीमत भगवत गीता, भगवानुवाच। अच्छा, भगवान् कौन है? कह देते श्रीकृष्ण। अरे, वह तो छोटा बच्चा है, वह कैसे राजयोग सिखलायेगा? उस समय पतित दुनिया थोड़ेही है। सद्गति के लिए राजयोग सिखलाने वाला तो यहाँ चाहिए। गीता में लिखा हुआ भी है रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ। कृष्ण गीता ज्ञान यज्ञ तो है नहीं। यह ज्ञान यज्ञ कितने वर्षों से चलता रहा है, इनकी समाप्ति कब होगी? जब सारी सृष्टि इसमें स्वाहा होगी। यज्ञ जब समाप्त होता है तो उसमें सब कुछ स्वाहा करते हैं ना। यह यज्ञ भी अन्त तक चलता रहेगा। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है। बाप कहते हैं मैं कालों का काल हूँ, सबको लेने लिए आया हूँ। तुमको पढ़ा रहा हूँ कि तुम स्वर्ग के मालिक बनो। तुम जानते हो इस समय सभी मनुष्यमात्र हैं सदा दुर्भाग्यशाली, सतयुग में थे सदा सौभाग्यशाली - यह फ़र्क सबको समझाना है। यहाँ आते हैं तो अच्छी रीति समझते हैं फिर घर जाते हैं तो सब ख़लास हो जाता। जैसे गर्भजेल में अंजाम (वायदा) कर आते हैं - हम पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलते हैं तो फिर पाप करने लग पड़ते हैं। जेल बर्ड होते हैं ना। इस समय जो भी मनुष्य मात्र हैं सब जेल बर्ड हैं। घड़ी-घड़ी गर्भजेल में जाकर सजायें खाते हैं। बाप कहते हैं - अभी तुमको गर्भजेल बर्ड बनने से छुड़ाते हैं। सतयुग में गर्भ को जेल नहीं कहेंगे। तुमको इन सजाओं से बचाने आया हूँ। अब मुझे याद करो, कोई भी पाप नहीं करो, नष्टोमोहा बनो। गाते हैं मेरा तो एक दूसरा कोई........ यह कोई कृष्ण की बात नहीं है। कृष्ण तो 84 जन्म ले अब आकर ब्रह्मा बना है फिर वही कृष्ण बनना है, इसलिए इस शरीर में ही प्रवेश किया है। यह बना बनाया ड्रामा है। अभी भगवान् यह सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। तुम्हारी भविष्य के लिए प्रालब्ध बनाते हैं। अभी तुम पुरुषार्थ कर अनेक जन्मों की प्रालब्ध बना रहे हो बेहद के बाप द्वारा, जो बाप स्वर्ग का रचयिता है। यह बातें समझने की हैं। ड्रामा में हर एक एक्टर का अपना-अपना पार्ट है। इसमें हम क्यों रोयें पीटें? हम जीते जी उस एक बाप को याद करते हैं। इस शरीर की भी हमको परवाह नहीं है। यह पुराना शरीर छूटे और हम बाबा के पास जायें। इस समय तुम भारत की कितनी सेवा करते हो। तुम्हारे ही नाम गाये हुए हैं - अन्नपूर्णा, दुर्गा, काली आदि-आदि। बाकी काली कोई ऐसी भयानक शक्ल वाली वा गणेश सूँढ़ वाला थोड़ेही होता है। मनुष्य तो मनुष्य ही होते हैं। अब बाप समझाते हैं मैं तुम बच्चों को इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बना रहा हूँ। तुम निश्चय करो हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं फिर भविष्य में जाकर प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, उनको कोई भी नहीं जानते। जगदम्बा को भी भूल गये हैं। जिसका मन्दिर बना हुआ है - अभी वह चैतन्य में बैठे हैं। कलियुग के बाद फिर सतयुग होना है। विनाश के लिए मनुष्य पूछते हैं। अरे, पहले तुम पढ़कर होशियार तो हो जाओ। महाभारत लड़ाई तो बरोबर हुई थी, जिसके बाद ही स्वर्ग के द्वार खुले थे। तो अब इन माताओं द्वारा स्वर्ग के द्वार खुल रहे हैं। वन्दे मातरम् गाते हैं ना। पावन की ही वन्दना की जाती है। मातायें दो प्रकार की हैं - एक हैं जिस्मानी सोशल वर्कर, दूसरी हैं रूहानी सोशल वर्कर। तुम्हारी है यह रूहानी यात्रा। तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ वापस जाने वाले हैं। भगवानुवाच - मनमनाभव। मुझ अपने बाप को याद करो। कृष्ण बच्चा तो ऐसे नहीं कहेंगे ना। उनको तो अपना बाप है। मनमनाभव का अर्थ कोई भी नहीं जानते। यह तो बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और उड़ने के पंख मिल जायेंगे। अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो। रचता बाप तो सबका एक ही है। आदि देव और आदि देवी के मन्दिर भी हैं। तुम उनके बच्चे यहाँ राजयोग सीख रहे हो। यहाँ ही तुमने तपस्या की थी, तुम्हारा यादगार सामने खड़ा है। लक्ष्मी-नारायण आदि को राजाई कैसे मिली, उनका यह मन्दिर है। तुम हो राजऋषि। राजाई प्राप्त करने वा भारत का फिर से राज्य-भाग्य पाने लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। तुम भारत में स्वर्ग की राजाई स्थापन करते हो, अपने तन-मन-धन से सेवा करके। बाप की श्रीमत द्वारा तुम पतित रावण राज्य से सबको लिबरेट करते हो। बाप है लिबरेटर, दु: हर्ता, सुख कर्ता। तुम्हारे दु: हरने के लिए पुरानी दुनिया का विनाश कराते हैं। तुमको दुश्मन पर विजय पहनाते हैं, तो तुम मायाजीत-जगतजीत बनेंगे। तुम कल्प-कल्प राज्य लेते हो और फिर गवाँते हो। यह है रूद्र शिव का ज्ञान यज्ञ, जिससे यह विनाश ज्वाला निकली है। वह सब विनाश हो जायेंगे और तुम सदा सुखी बन जायेंगे। दु: शुरू होता है द्वापर से। बाप कहते हैं - मैं आकर नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाता हूँ। कलियुग है वेश्यालय, सतयुग है शिवालय। तुम बेहद के बाप से स्वर्ग के मालिक बनते हो तो यह खुशी का पारा चढ़ना चाहिए ना। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी बाप को याद कर वर्से का अधिकार लेना है, किसी भी बात की परवाह नहीं करनी है।
2) श्रीमत पर अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है और सबको रावण से लिबरेट होने की युक्ति बतानी है।
 
वरदान:-बेहद के स्मृति स्वरूप द्वारा हद की बातों को समाप्त करने वाले अनुभवी मूर्त भव
 
आप श्रेष्ठ आत्मायें डायरेक्ट बीज और मुख्य दो पत्ते, त्रिमूर्ति के साथ समीप संबंध वाले तना हो। इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहो, बेहद के स्मृति स्वरूप बनो तो हद की व्यर्थ बातें समाप्त हो जायेंगी। अपने बेहद के बुजुर्गपन में आओ तो सदा सर्व अनुभवीमूर्त हो जायेंगे। जो बेहद के पूर्वजपन का आक्यूपेशन है, उसको सदा स्मृति में रखो। आप पूर्वजों का काम है अमर ज्योति बन अंधकार में भटकती हुई आत्माओं को ठिकाने पर लगाना।
 
स्लोगन:-किसी भी बात में मूंझने के बजाए मौज का अनुभव करना ही मस्त योगी बनना है।
 
 
18/10/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, have the faith that you are souls and that those are your bodies. There is no question of visions in this. Even if people were to have a vision of a soul, they wouldn’t be able to understand it.
 
Question:By following which shrimat of the Father will you be liberated from being punished in the jail of a womb?
 
Answer:The Father's shrimat is: Children, become conquerors of attachment. Belong to the one Father and none other. Simply remember Me and don't perform any sinful acts and you will be liberated from being punished in the jail of a womb. You have been jailbirds here for birth after birth. The Father has now come to liberate you from that punishment. There is no jail of the womb in the golden age.
 
Om Shanti
 
The spiritual Father explains to you spiritual children what a soul is and who the Supreme Soul, his Father, is. He explains this once again because this is an impure world. Those who are impure are always senseless. The pure world is the sensible world. Bharat was the pure world, that is, it was the kingdom of deities; it was the kingdom of Lakshmi and Narayan. They were very wealthy and happy, but the people of Bharat don't understand these things. They don't know the Father, the Supreme Father, the Creator. It is only human beings who would know this; animals would not know this. They even remember: O Supreme Father, Supreme Soul! He is the parlokik Father. The soul remembers his Supreme Father, the Supreme Soul. It is a physical father who gives birth to this body whereas that Supreme Father, the Supreme Soul, is the parlokik Father, the Father of souls. People worship Lakshmi and Narayan. They understand that they existed in the golden age and that Rama and Sita were in the silver age. The Father comes here and explains: Children, you have been remembering Me, your parlokik Father, for birth after birth. God, the Father, would definitely be the incorporeal One. We souls are also incorporeal. We became corporeal after coming here. This very small matter doesn't enter anyone's intellect. That unlimited Father of yours is the Creator. You call out: You are the Mother and Father. We belong to You and so we become the masters of heaven. Then we forget You and become the masters of hell. That Father now sits here and explains through this one: I am the Creator and this is My creation. I am explaining its secrets to you. This one also understands. No one has seen a soul, so why do they say “I am a soul”? You understand that you souls shed bodies and take others. It is said: A great soul, a charitable soul. You have the faith: I am a soul and this is my body. The body is perishable whereas the imperishable soul is a child of that Supreme Father, the Supreme Soul. This is such an easy matter, but good, sensible ones are unable to understand. Maya has locked your intellects. You can't have a vision of yourself, the soul. It is the soul that takes many births. His father changes in every birth. Why do you not have the faith that you are a soul? You ask to have a vision of a soul. For so many births, did you tell anyone that you should have a vision of a soul? Some people do have a vision of a soul, but they are unable to understand. You don't know the Father. No one, apart from the unlimited Father, can grant souls a vision of God. They say: Oh God! So He is the Father, is He not? You have two fathers: one is a perishable father who gives birth to a perishable body. The other is the imperishable Father of imperishable souls. You sing: You are the Mother and Father. You remember Him and so He must surely have come, must He not? Jagadamba and Jagadpita are sitting here; they are studying Raja Yoga. There was the kingdom of Lakshmi and Narayan in Paradise. They too existed in Bharat. People believe that heaven is somewhere up above, but the memorials of Lakshmi and Narayan are here and so they must surely have ruled their kingdom here. The Dilwala Temple is the memorial of your present time. You are Raja Yogis. You half-kumaris and kumaris are sitting here and the memorial of this is created on the path of devotion. The name ‘Dilwala’ also has a meaning. Who is the One who conquers your hearts? This Adi Dev and Adi Devi are studying Raja Yoga. They too would remember that incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. He is the Highest on High, the Ocean of Knowledge. He sits in the body of this Adi Dev and explains to all you children. They don't know anything about when this temple was built, why it was built or whose memorial it is. They mention the names of so many goddesses: Kali, Durga, Anapurna (Goddess of food). Who would be the Goddess Anapurna (who provides food) for the whole world? Do you know which goddesses fulfil people's need for food? Bharat was heaven; there were plenty of material comforts there. Until only 80 to 90 years ago, you could still get 85 lbs of grain for 10 to 12 annas (3/4 of a rupee). So everything would have been so cheap before that. In the golden age, grain etc. are very good and cheap. However, no one understands even this. The Father comes here and teaches you souls. Souls listen through their physical senses. The soul has received these eyes with which to see and ears with which to hear. The Father says: I, the Incorporeal, also take support of the body of this one. I am always called Shiva. People have given Me many names – Rudra, Shiva, Somnath – but My one and only name is Shiva. Devotees have been remembering God and saying: Salutations to Shiva. It is now 2,500 years since they came into existence. On the path of devotion, there was at first unadulterated worship. You have now put Me into the pebbles and stones. It is now the end of that devotion. I have come to take everyone back home. This old world is to end. Bombs have been manufactured and so everyone will be destroyed in a short time. In the golden age, there are so few people: there are only 900,000. Where will all the rest go? There will be wars and earthquakes etc. Destruction definitely has to take place. This one is Prajapita. There are so many Brahma Kumars and Kumaris. Who is the Father of Brahma? Incorporeal Shiva. You are His grandsons and granddaughters. You are claiming your inheritance from Shiv Baba. So you have to remember Him alone. It is by having remembrance that your burden of sins will be removed. You know that this is the vicious impure world. The golden age is the viceless world. There is no poison (vice) there. According to the system, everyone only has one son. There is never untimely death there; it is the land of happiness. Here, there is so much sorrow. However, no one knows these things. They relate the Gita. The versions of God are the Shrimad Bhagawad Gita. Achcha, who is God? They say that it is Shri Krishna. Ah, but he is a young child, so how could he teach Raja Yoga? At that time, the world is not impure. The One who teaches Raja Yoga for salvation has to exist here. In the Gita, it is written: The sacrificial fire of the knowledge of the Gita of Rudra. There is no sacrificial fire of the knowledge of the Gita of Krishna. This sacrificial fire has been continuing for so many years. When will it end? When the whole world is sacrificed into it. At the end of a sacrificial fire, they sacrifice everything into it. This sacrificial fire will continue till the end. This old world is going to end. The Father says: I am the Death of all Deaths. I have come to take everyone back home. I am teaching you so that you become the masters of heaven. You know that, at this time, all human beings are constantly unfortunate. In the golden age, you were constantly fortunate. Explain this difference to everyone. When people come here, they understand very well, but as soon as they return home, everything is finished. Similarly, they make a promise in the jail of a womb that they won’t commit any more sin. Then, as soon as they come out, they begin to commit sin again: they are jailbirds. At this time all human beings are jailbirds. They repeatedly enter the jail of a womb and experience punishment. The Father says: I am now liberating you from becoming jailbirds of the womb. In the golden age, a womb is not called a jail. I have come to liberate you from that punishment. Now remember Me. Don’t commit any sin. Become conquerors of attachment. People sing: Mine is One alone and none other. They are not referring to Krishna. Krishna took 84 births and has now come and become Brahma. Then he is the one who will become Krishna again. This is why He has entered this body. This drama is predestined. God is now establishing the sun and moon dynasties. He is creating your reward for the future. You are now making effort and creating your reward for many births through the unlimited Father, who is the Creator of heaven. These matters have to be understood. Each actor has his own part in the drama. Why should we weep and wail about this? We remember that one Father while alive. We are not even concerned about these bodies. When we shed these old bodies, we will go to Baba. At this time, you serve Bharat so much. Your names are remembered as Anapurna, Durga, Kali etc. There isn’t really any Kali with a fearsome form or Ganesh with an elephant’s trunk; human beings are human beings. The Father now explains to you: I am making you children become like Lakshmi and Narayan. Have the faith that you are claiming your inheritance from Baba and then, in the future, you will become princes and princesses. No one knows the Father who is the Creator of heaven. They have even forgotten Jagadamba. The ones whose temples have been built are now sitting here in the living form. After the iron age, there has to be the golden age. People ask when destruction will take place. However, first of all, study and become clever. The Mahabharat War definitely took place and it was only after that, that the gates to heaven opened. So, the gates to heaven are now being opened through these mothers. They sing: Salutations to the mothers. It is pure ones who are praised. There are two types of mother. One type is physical social workers and the other is spiritual social workers. This is your spiritual pilgrimage. You know that we will shed our bodies and go back home. God speaks: Manmanabhav! Remember Me, your Father. Krishna, the child, would not say this. He has his own father. No one understands the meaning of “Manmanabhav!” The Father says: Remember Me and your sins will be absolved and you will receive wings with which to fly. You are now changing from those with stone intellects into those with divine intellects. The Creator, the Father of all, is only One. There are also the temples to Adi Dev and Adi Devi. You, their children, are studying Raja Yoga here. It is here that you did tapasya and so your memorials are in front of you. How did Lakshmi and Narayan receive their kingdom? That is their temple. You are Raj Rishis. You are now making effort to attain your kingdom or attain your fortune of the kingdom of Bharat once again. You are establishing the kingdom of heaven in Bharat. You are serving Bharat with your own bodies, minds and wealth. You are liberating everyone from the impure kingdom of Ravan by following the Father’s shrimat. The Father is the Liberator, the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. He inspires the destruction of the old world in order to remove your sorrow. He enables you to conquer your enemy so that you can become conquerors of Maya and conquerors of the world. You claim the kingdom every cycle and then lose it. This is the sacrificial fire of the knowledge of Rudra Shiva through which the flames of destruction emerge. All of them will be destroyed and you will become constantly happy. Sorrow begins in the copper age. The Father says: I come and change the residents of hell into residents of heaven. The iron age is the brothel and the golden age is Shivalaya. You are being made into the masters of heaven by the unlimited Father and so your mercury of this happiness should rise. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Remember the Father for as long as you live and claim your right to the inheritance. Don’t be concerned about anything.
2. Do the service of making Bharat into heaven by using your body, mind and wealth according to shrimat and show everyone the way to be liberated from Ravan.
 
Blessing:With your form of unlimited remembrance, may you finish all limited situations and be an image of experience.
You elevated souls are the trunk that has a close relationship and a direct connection with the Seed and the main two leaves, the Trimurti. Remain stable in this elevated stage, become an unlimited embodiment of remembrance and all limited, wasteful things will finish. Come back to your unlimited form of maturity and you will constantly be an image of experience. Constantly keep in your awareness your occupation of being an unlimited ancestor. The duty of you ancestors is to be an immortal light who show the destination to the souls who are wandering in the darkness.
 

Slogan:Instead of being confused by any situation, experiencing pleasure is being an intoxicated yogi.

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