Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 11-Oct-2018 )
11-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप को याद करो, इसमें ही ज्ञान, भक्ति और वैराग्य तीनों समाया हुआ है, यह है नई पढ़ाई''
 
प्रश्नः-संगम पर ज्ञान और योग के साथ-साथ भक्ति भी चलती है - कैसे?
 
उत्तर:-वास्तव में योग को भक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि तुम बच्चे अव्यभिचारी याद में रहते हो। तुम्हारी यह याद ज्ञान सहित है इसलिए इसे योग कहा गया है। द्वापर से सिर्फ भक्ति होती, ज्ञान नहीं होता, इसलिए उस भक्ति को योग नहीं कहा जाता। उसमें कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। अभी तुम्हें ज्ञान भी मिलता, योग भी करते फिर तुम्हारा बेहद की सृष्टि से वैराग्य भी है।
 
गीत:-किसी ने अपना बना के...... 
 
ओम् शान्ति।
 
बेहद का बाप समझाते हैं - शास्त्रों की पढ़ाई, वह कोई पढ़ाई नहीं है क्योंकि शास्त्रों की पढ़ाई में कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। शास्त्रों से कोई दुनिया का पता नहीं पड़ता है, अमेरिका कहाँ है, किसने ढूँढी, यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। कहते हैं फलाने ने ढूँढी। दूसरे इलाके ढूँढते हैं अपने रहने लिए। देखा मनुष्य बहुत हो गये हैं, रहने लिए जमीन तो चाहिए ना। अब यह सब बातें पढ़ाई की हैं, इसको एज्युकेशन कहा जाता है। तुम्हारा भी यह एज्युकेशन है। इसको आश्रम कहें अथवा इन्स्टीट्युशन कहें वा युनिवर्सिटी कहें? इसमें सब जाता है। उस पढ़ाई के नक्शे आदि और हैं। शास्त्रों से रोशनी नहीं मिलती, पढ़ाई से रोशनी मिलती है। तुम्हारी भी पढ़ाई है। वैकुण्ठ किसको कहा जाता है? यह उस पढ़ाई में है, शास्त्रों की पढ़ाई में है। यह नॉलेज ही नई है जो एक बाप ही बतलाते हैं। मनुष्य तो कह देते स्वर्ग-नर्क सब यहाँ ही है। बाप ही समझाते हैं स्वर्ग-नर्क किसको कहा जाता है? यह बातें शास्त्रों में हैं, उस एज्युकेशन में हैं। तो नई बातें होने कारण मनुष्य मूँझते हैं, कहते हैं ऐसा ज्ञान तो कभी सुना नहीं। यह तो नई वन्डरफुल बातें हैं जो कभी कोई ने नहीं सुनाई हैं। हैं भी बरोबर नई बातें। उस एज्युकेशन वाले सुना सकते, सन्यासी आदि सुना सकते, इसलिए परमपिता परमात्मा को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी समझाते हैं। ज्ञान से स्वर्ग और नर्क का विस्तार भी सुनाते हैं। यह नई बातें हैं ना। इस पढ़ाई में सब कुछ है - ज्ञान भी है, योग भी है, पढ़ाई भी है, भक्ति भी है। योग को भक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि एक के साथ योग लगाना उनको याद करना होता है। वह भक्त लोग भी याद करते हैं, पूजा करते हैं, गाते हैं। वह भक्ति करना कोई योग नहीं कहेंगे। समझो, जैसे मीरा थी, कृष्ण के साथ योग लगाती थी, उनको याद करती थी परन्तु उसको भक्ति कहा जाता। उनकी बुद्धि में कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। इसको ज्ञान भी कहते, भक्ति भी कहते। योग लगाते हैं, एक को याद करते हैं। सतयुग में भक्ति होती, ज्ञान। संगम पर ज्ञान और भक्ति दोनों ही हैं और द्वापर से लेकर सिर्फ भक्ति चलती आई है। किसको याद करना, उसको भक्ति कहते। यहाँ यह ज्ञान भी है, योग भी है, भक्ति भी है। समझ सकते हैं। वह सिर्फ भक्त हैं, तत्व से योग लगाते हैं। परन्तु उनका है अनेकों से योग, इसलिए उनको भक्त कहते। तुम्हारा यह है अव्यभिचारी योग। यह ज्ञान सागर खुद बैठ पढ़ाते हैं। उनसे योग लगाना होता है। वह तो आत्मा को ही नहीं जानते। हम तो जानते हैं। परमपिता परमात्मा बाप के साथ बुद्धियोग लगाने से हम बाप के पास चले जायेंगे। वह हनूमान को याद करते हैं, तो उनका साक्षात्कार हो जाता, उनको व्यभिचारी कहा जाता। यह है अव्यभिचारी योग। सिर्फ एक बाप को याद करना है तो इसमें ज्ञान, भक्ति, वैराग्य सब इकट्ठे हैं। और वह उन्हों का सब अलग-अलग है। भक्ति अलग, ज्ञान भी सिर्फ शास्त्रों का है, वैराग्य भी हद का है। यहाँ बेहद की बात है, हम बेहद के बाप को जानते हैं इसलिए उनको याद करते हैं। वह भल शिव को याद करते परन्तु विकर्म विनाश नहीं होंगे, क्योंकि वह आक्यूपेशन को नहीं जानते। विकर्म विनाश होने का ज्ञान ही नहीं। यहाँ तो बाप की याद से विकर्म विनाश होते हैं। वहाँ काशी कलवट खाते हैं, तो उनके विकर्म विनाश होते हैं। भोगना भोगनी पड़ती है। परन्तु ऐसे नहीं कि तुम्हारे मुआफिक आहिस्ते-आहिस्ते कर्मातीत बनते हैं। नहीं, उनके विकर्म सजायें खाते-खाते खत्म होते हैं, माफ नहीं हो जाते हैं। तो यह पढ़ाई भी है, ज्ञान भी है, योग भी है, इसमें सब है। सिखलाने वाला एक ही बाप है। इनको आश्रम अथवा इन्स्टीट्युशन कहा जाता है। लिखा हुआ बड़ा अच्छा है। आगे ओम् मण्डली नाम रांग था। अभी समझ आई है। यह नाम बिल्कुल अच्छा है। कोई को भी समझा सकते हो कि ब्रह्माकुमार तो तुम भी हो। बाप है सबका रचयिता, उनको पहले-पहले सूक्ष्मवतन रचना है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी, नई सृष्टि रचते हैं तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन वाला तो यहाँ सके। वह है सम्पूर्ण अव्यक्त। यहाँ तो साकार ब्रह्मा चाहिए ना। वह कहाँ से आये? मनुष्य इन बातों को समझ सकें। चित्र तो हैं ना। ब्रह्मा से ब्राह्मण पैदा हुए। परन्तु ब्रह्मा आये कहाँ से। फिर एडाप्शन होती है। जैसे कोई राजा को बच्चा नहीं होता है तो एडाप्ट करते हैं। बाप भी इनको एडाप्ट करते हैं फिर नाम बदलकर रखते हैं - प्रजापिता ब्रह्मा। वह ऊपर वाला तो नीचे सके। नीचे वाले को ऊपर जाना है। वह है अव्यक्त, यह है व्यक्त। तो इस रहस्य को भी अच्छी रीति समझना है क्योंकि सबका प्रश्न उठता है। कहते हैं दादा को कभी ब्रह्मा, कभी भगवान्, कभी कृष्ण कहते हैं........ अब इनको भगवान् तो कहा नहीं जाता। बाकी ब्रह्मा और कृष्ण तो कह सकते हैं क्योंकि कृष्ण सांवरा बनता है। तो जब रात है तब कहेंगे ब्रह्मा, जब दिन है तब कहेंगे कृष्ण। कृष्ण की आत्मा का अभी यह अन्तिम जन्म है और यह श्रीकृष्ण है आदि का जन्म। यह क्लीयर कर लिखना पड़े। 84 जन्म राधे-कृष्ण के वा लक्ष्मी-नारायण के बताने पड़े। यहाँ फिर उनको एडाप्ट करते हैं। तो ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात हो जाती। वही फिर लक्ष्मी-नारायण का दिन और रात। उनकी वंशावली का भी ऐसे हुआ।
 
तुम अब ब्राह्मण कुल के हो फिर देवता कुल के बनेंगे। तो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का भी दिन और रात हुआ ना। यह बड़ी समझने की बातें हैं। चित्रों में भी क्लीयर है - नीचे तपस्या कर रहे हैं, अन्तिम जन्म है। ब्रह्मा आये कहाँ से? किससे पैदा हो? तो ब्रह्मा को एडाप्ट करते हैं। जैसे राजा एडाप्ट करते हैं, फिर उनको राजकुमार कहते हैं। ट्रांसफर कर देते हैं - प्रिन्स ऑफ फलाना। पहले तो प्रिन्स नहीं था। राजा ने एडाप्ट किया तो नाम डाला प्रिन्स। यह रस्म-रिवाज चलती आई है। बच्चों को यह बुद्धि में आना चाहिए। दुनिया नहीं जानती कि बाप कैसे पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना करते हैं? यह रोशनी तुम बच्चों को है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। आगे चलकर छोटी-छोटी बच्चियां भी बहुत तीखी होती जायेंगी क्योंकि कुमारियां हैं। लिखा हुआ भी है कि कुमारियों द्वारा बाण मरवाये। कुमारियों का चमत्कार नम्बरवन में गया है। मम्मा भी कुमारी है, सबसे तीखी गई है। कहा जाता है डॉटर शोज़ मदर। मदर तो नहीं बैठ कोई से बात करेगी। यह माँ तो हो गई गुप्त, वह मम्मा है प्रत्यक्ष। तो तुम शक्तियों अथवा बच्चों का काम है माँ का शो करना। बहुत अच्छी-अच्छी बच्चियां भी हैं, जिनका पुरुषार्थ अच्छा चलता है। कौरव सम्प्रदाय में भी किन्हों के मुख्य नाम हैं ना, जो महारथी हैं। यहाँ भी महारथियों के नाम हैं। सबसे बड़ा है शिवबाबा। ऊंच ते ऊंच भगवान्। उनका ऊंचा ठांव है। वास्तव में ठांव (रहने का स्थान) तो हम आत्माओं का भी ऊंच है। मनुष्य तो सिर्फ महिमा करते रहते, जानते कुछ भी नहीं। हम आत्मायें भी वहाँ की रहने वाली हैं। परन्तु हमको जन्म-मरण में आकर पार्ट बजाना है। वह जन्म-मरण में नहीं आते, पार्ट उनका भी है, परन्तु कैसे है - यह भी तुम जानते हो। अभी तुम बच्चे समझते हो यह शिवबाबा का रथ है। अश्व अथवा घोड़ा भी है। बाकी वह घोड़ा-गाड़ी नहीं है। यह भी जो भूले हुए हैं, यह ड्रामा में नूँध है। आधाकल्प हम भी भूल में भटकते-भटकते एकदम भटक जाते हैं। अभी रोशनी मिली है तो बहुत खबरदार हो पड़े हैं। जानते हैं यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है, हमको नष्टोमोहा बनना है। कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रहते नष्टोमोहा बनने का पुरुषार्थ करना है। तोड़ तो सबसे निभाना है, साथ भी रहना है। यह भट्ठी भी बननी थी, जैसे कल्प पहले बनी थी। अभी तो कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह मेहनत करनी है। यहाँ घरबार छोड़ने की बात ही नहीं। हम तो घर में बैठे हैं ना। कितने बच्चे हैं। लौकिक भी थे ना। छोड़ा कुछ भी नहीं है। सन्यासी तो जंगल में चले जाते हैं। हम तो शहर में बैठे हैं। तो उनसे तोड़ निभाना है। बाप की रचना है। बाप कमाकर बच्चे को वर्सा देते हैं। पहले तो वर्सा देते हैं काम विकार का। फिर उनसे छुड़ाकर निर्विकारी बनाना बाप का ही काम है। ऐसे भी होते हैं कहाँ बच्चे माँ बाप को ज्ञान देते हैं, कहाँ बाप बच्चों को ज्ञान देते हैं।
 
यह है ही राजयोग, वह है हठयोग। आत्मा को नॉलेज मिलती है परमात्मा से। मैं (ब्रह्मा) राजाओं का राजा था, अब रंक बना हूँ। रंक से राव गाया हुआ है। बच्चे जानते हैं हम जो सूर्यवंशी थे, अभी शूद्रवंशी बने हैं। यह भी समझाना पड़ता है - नर्क और स्वर्ग अलग है। मनुष्य यह नहीं जानते। तुम्हारे में भी कितने बच्चे कुछ नहीं जानते क्योंकि तकदीर में नहीं है तो पुरुषार्थ क्या करेंगे? किनकी तकदीर में कुछ नहीं है, किनकी तकदीर में सब कुछ है। तकदीर पुरुषार्थ कराती है। तकदीर नहीं है तो पुरुषार्थ क्या करेगे? एक ही स्कूल है, चलता रहता है। कोई बच्चे आधा में गिर पड़ते, कोई चलते-चलते मर पड़ते। जन्म लेना और मरना बहुत होता है। यह नॉलेज कितनी वन्डरफुल है! नॉलेज तो बहुत सहज है, बाकी कर्मातीत अवस्था को पाना इसमें ही सारी मेहनत है। जब विकर्म विनाश हों तब तो उड़ सकें। ध्यान से ज्ञान श्रेष्ठ है। ध्यान में माया के विघ्न बहुत पड़ते हैं इसलिए ध्यान से ज्ञान अच्छा है। ऐसे नहीं कि योग से ज्ञान अच्छा। ध्यान के लिए कहा जाता है। ध्यान में जाने वाले आज हैं नहीं। योग में तो कमाई होती है, विकर्म विनाश होते हैं। ध्यान में कोई कमाई नहीं है। योग और ज्ञान में कमाई है। ज्ञान और योग बिगर हेल्दी-वेल्दी बन नहीं सकते। फिर यह घूमने-फिरने की एक आदत पड़ जाती है। यह भी ठीक नहीं। ध्यान नुकसान बहुत करता है। ज्ञान भी है सेकेण्ड का। योग कोई सेकेण्ड का नहीं है। जहाँ जीना है वहाँ योग लगाते रहना है। ज्ञान तो सहज है, बाकी एवरहेल्दी, निरोगी बनना इसमें मेहनत है। सवेरे उठकर याद में बैठने में भी विघ्न बहुत पड़ते हैं। प्वाइन्ट्स निकालते हैं तो भी बुद्धि कहाँ की कहाँ चली जाती है। सबसे जास्ती तूफान तो पहले नम्बर वाले को आयेंगे ना। शिवबाबा को तो नहीं सकते। बाबा हमेशा समझाते रहते हैं तूफान तो बहुत आयेंगे। जितना याद में रहने की कोशिश करेंगे, उतना तूफान बहुत आयेंगे। उनसे डरना नहीं है, याद में रहना है, स्थिर होना है। तूफान कोई हिला सके, यह अन्त की अवस्था है। यह है रूहानी रेस। शिवबाबा को याद करते रहो। यह भी समझने की और धारण करने की बातें हैं। धन दान नहीं करेंगे तो धारणा नहीं होगी। पुरुषार्थ करना चाहिए। दो बाप की प्वाइन्ट किसको समझाना बहुत इज़ी है। यह भी तुम ही जानते हो - बाप 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। तुम कहेंगे इन लक्ष्मी-नारायण को बाप से 21 जन्मों का वर्सा मिला है। बाप ने उनको राजयोग सिखलाया और कोई मुख से कह सके कि उन्हें भगवान् ने यह वर्सा दिया है। दुनिया में कोई किस बात में, कोई किस बात में खुश रहते। तुम जिस बात में खुश हो उसको कोई नहीं जानते। मनुष्य तो अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए खुशी मनाते हैं। तुम हो सच्चे ब्राह्मण कुल भूषण, जो योगी और ज्ञानी हो। तुम्हारे इस अतीन्द्रिय सुख की खुशी को और कोई जान नहीं सकते। वह तो क्या-क्या माथा मारते रहते हैं। मून पर जाने का पुरुषार्थ करते हैं। बहुत डिफीकल्ट मेहनत करते हैं। उन सबकी मेहनत बरबाद हो जानी है। तुम बिना कोई तकल़ीफ के ऐसी जगह जाने का पुरुषार्थ करते हो जहाँ और कोई जा सके। एकदम ऊंच ऊंच परमधाम में जाते हो। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) गृहस्थ व्यवहार में रहते नष्टोमोहा भी बनना है। साथ-साथ सबसे तोड़ निभाते कमल फूल समान रहना है।
 
2) धारणा करने के लिए ज्ञान धन का दान जरूर करना है। ज्ञान और योग से अपनी कमाई जमा करनी है। बाकी ध्यान दीदार की आश नहीं रखनी है।
 
वरदान:-साइलेन्स की शक्ति द्वारा जमा के खाते को बढ़ाने वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी भव
 
जैसे वर्तमान समय साइन्स की शक्ति का बहुत प्रभाव है, अल्पकाल के लिए प्राप्ति करा रही है। ऐसे साइलेन्स की शक्ति द्वारा जमा का खाता बढ़ाओ। बाप की दिव्य दृष्टि से स्वयं में शक्ति जमा करो तब जमा किया हुआ समय पर दूसरों को दे सकेंगे। जो दृष्टि के महत्व को जानकर साइलेन्स की शक्ति जमा कर लेते हैं वही श्रेष्ठ पद के अधिकारी बनते हैं। उनके चेहरे से खुशी की रूहानी झलक दिखाई देती है।
 
स्लोगन:-अपने आप नेचुरल अटेन्शन हो तो किसी भी प्रकार का टेन्शन नहीं सकता।
 
 
11/10/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, remember the unlimited Father. All three – knowledge, devotion and disinterest – are included in this. This is a new study.
 
Question:How is it that, at the confluence age, devotion continues at the same time as knowledge and yoga?
 
Answer:In fact, yoga can also be called devotion because you children stay in unadulterated remembrance. Your remembrance includes knowledge and this is why it is called yoga. From the copper age onwards, they have simply been performing devotion; there has not been knowledge. This is why that devotion is not called yoga. There is no aim or objective in that. You now receive knowledge, you have yoga and you also have no interest in the unlimited world.
 
Song:
 
Someone made me belong to Him and taught me how to smile. 
 
Om Shanti
 
The unlimited Father explains that the study of the scriptures is not really a study because there is no aim or objective in the study of the scriptures. You can’t know anything about the world from the scriptures. You can't tell from the scriptures where America is or who discovered it. They say that so-and-so discovered it. They go and discover other places so that they can go and stay there. They recognize that there are many human beings and that they need more land. All of those things are studied. That is called an education. Yours too is an education. This can be called an ashram, an institution or a university; everything is included in this. The maps of those studies are something else. There isn't enlightenment through the scriptures; enlightenment is received by studying. Yours is also a study. Which place is called Paradise? This is not mentioned in any worldly study or in the study of the scriptures. This is new knowledge which only the one Father tells you about. People say that heaven and hell are both here. Only the Father explains what heaven is and what hell is. These things are neither mentioned in the scriptures nor in that education. Because these things are new, people become confused. They say that they have never heard such knowledge before. These are new, wonderful things which no one else has ever told them about. In fact, they truly are new things. Neither the people who teach those studies nor the sannyasis can tell you about these things. This is why only the Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Ocean of Knowledge. He also explains the unlimited history and geography to you. He explains the details of heaven and hell with knowledge. These are new things, are they not? Everything is included in this study: it has knowledge, yoga, an education and also devotion. Yoga can also be called devotion because to have yoga with the One means to remember Him. Those devotees also remember Him, worship Him and sing songs of Him. Performing that type of devotion is not called yoga. For instance, Meera used to have yoga with Shri Krishna, she used to remember him, but that is called devotion. She didn't have any aim or objective in her intellect. This is called knowledge and also devotion. You have yoga, that is, you remember the One. In the golden age, there is neither devotion nor knowledge. At the confluence age, there is both knowledge and devotion whereas from the copper age onwards, just devotion has continued. To remember someone is called devotion. Here, there is knowledge, yoga and also devotion. You can understand that those people are just devotees and that they have yoga with the elements. However, their yoga is with many others and this is why they are called devotees. Yours is unadulterated yoga. The Ocean of Knowledge, Himself, sits here and teaches you. You have to have yoga with Him. Those people don't even know about souls. We do know this. By connecting our intellects in yoga to the Supreme Father, the Supreme Soul, we will go to the Father. Those people remember Hanuman etc. and so they have visions of them; that is called adulterated. This is unadulterated yoga. You simply have to remember the one Father. So, knowledge, devotion and disinterest, all three, are combined in this. There, everything of theirs is separate. Devotion is separate, the knowledge they have is just of the scriptures and their disinterest is limited. Here, it is a matter of the unlimited. We know the unlimited Father and this is why we remember Him. Although those people remember Shiva, their sins are not absolved through that because they don't know His occupation. They don't even have the knowledge of sins being absolved. Here, your sins are absolved by having remembrance of the Father. There, they sacrifice themselves at Kashi and their sins are thereby absolved. They have to experience the suffering of karma. However, it isn't that they gradually become karmateet like you. No, their sins are finished by their experiencing punishment; they are not forgiven. So, this is a study, knowledge and also yoga; everything is included in this. It is only the one Father who teaches you everything. This is called an ashram and an institution. It looks very good in writing. The previous name, ‘Om Mandli”, was wrong. You have now received the understanding that this name is absolutely good. You can explain to others that they too are Brahma Kumars. The Father is the Creator of all. First of all, He has to create the subtle region. Brahma, Vishnu and Shankar are residents of the subtle region. A new world is created and so Prajapita Brahma is definitely needed. The one from the subtle region cannot come here. That one is the perfect, subtle Brahma. The corporeal Brahma is needed here. Where would he come from? People cannot understand these things. There are the images. Brahmins are created through Brahma, but where would Brahma come from? So adoption takes place. Just as a king who doesn't have a child would adopt a child, so the Father adopts this one and then changes his name to Prajapita Brahma. The one up above cannot come down here. The one down below has to go up above. That one is subtle and this one is physical. So, this secret too has to be understood very clearly because everyone has this question. They say that you sometimes call Dada Brahma, sometimes God and sometimes Krishna. However, this one cannot be called God, but he can be called Brahma and Krishna because Krishna then becomes ugly. So, when it is the night, he is called Brahma and, when it is the day, he is called Krishna. This is the final birth of the Krishna soul and the form of Shri Krishna is the first birth. This has to be written very clearly. The 84 births of Radha and Krishna or Lakshmi and Narayan have to be shown. Here, this one is adopted. So, there is the day of Brahma and the night of Brahma which then becomes the day and night of Lakshmi and Narayan. The same thing happens to their dynasty. You now belong to the Brahmin clan and you will then belong to the deity clan. So, it is also the day and night of the Brahma Kumars and Kumaris. These things have to be understood very well. It is also clear in the picture (of the tree) that they are doing tapasya below and that it is their final birth. Where does Brahma come from? Through whom is he created? So, Brahma is adopted, just as a king adopts someone who is then called a prince. He is transferred to the position of: Prince of So-and-so. Previously, he wouldn't have been a prince. When the king adopted him, he received the title of prince. This custom and system has continued. This should enter the children's intellects. The world doesn't know how the Father carries out destruction of the old world and establishment of the new world. You children have this enlightenment. You are also numberwise. As you make further progress, the little daughters will become very clever because they are kumaris. It is written that the kumaris were made to shoot the arrows of knowledge. The wonder of the kumaris is number one. Mama was a kumari; she went ahead of everyone. It is said that daughter shows (reveals) mother. The mother would not sit and talk to anyone. This mother is incognito; that Mama is visible. It is the duty of you Shaktis, you children, to show the mother. There are many good daughters who make good effort. Among the kaurava community too, there are some whose names are the main ones mentioned; they are their maharathis. Here, too, there are the names of maharathis. Shiv Baba is the greatest of all. God is the Highest on High. His place of residence is the highest. In fact, the place of residence of us souls is also the highest. People simply continue to sing praise but they don't know anything. We souls are also residents of that place, but we have to go through birth and rebirth and play our parts. He doesn't come into birth and death. He too has a part, but only you know what that is. You children now understand that this is the chariot of Shiv Baba. There is also the horse, but it isn't that horse or chariot. To forget this is also fixed in the drama. We had become completely lost by wandering around and forgetting for half the cycle. We have now received enlightenment and so we have become very cautious. We know that this old world is to end and that we have to become conquerors of attachment. While living like a lotus at home with the family, we have to make effort to become destroyers of attachment. We have to fulfil our responsibilities to everyone and also live with them. This bhatthi (furnace) had to be created, just as it was created in the previous cycle. You are now told to make effort while living at home with your family. Here, there is no question of leaving your home and family. We are sitting at home, are we not? There are so many children. Baba also had his lokik family. He didn't renounce anything. Sannyasis go away to the forests, whereas we live in the cities. So, we have to fulfil our responsibilities to everyone. A creation is a father's creation. The father earns and gives an inheritance to his sons. First of all, he gives the inheritance of the vice of lust. So, to liberate you from that and to make you viceless is the task of the Father. In some cases, children give knowledge to their parents and in other cases the father gives knowledge to his children. This is Raja Yoga and that is hatha yoga. The soul receives knowledge from the Supreme Soul. I, Brahma, was the king of kings and have now become a beggar. It is remembered that a beggar was made into a king. You children know that you belonged to the sun dynasty and that you then became the shudra dynasty. It also has to be explained that heaven and hell are separate. People don't know this. Among you, too, there are so many children who don't know anything because it is not in their fortune. So, what effort would they make? Some children don't have anything in their fortune and some children have everything in their fortune. Their fortune inspires them to make effort. If it is not in their fortune, what effort would they make? The school is the same one and it continues. Some children fall off half way and others die while moving along. There is a lot of taking birth and dying. This knowledge is so wonderful! Knowledge is very easy, but all the effort lies in attaining your karmateet stage. Only when your sins are absolved can you fly. Knowledge (gyan) is more elevated than going into trance (dhyan). There are many obstacles created by Maya in trance, and this is why knowledge is better than trance. It isn't that knowledge is better than yoga; this is said about trance. Those who went into trance are no longer here. There is an income earned in yoga and your sins are absolved. There is no income in trance. There is an income in yoga and knowledge. You cannot become healthy and wealthy without having knowledge and yoga. The habit of touring around in trance was created. That too is not good. Trance causes a lot of damage. Knowledge is of just a second. Yoga is not of a second. For as long as you live, you have to continue to have yoga. Knowledge is easy, but it takes effort to become ever healthy and free from disease. There are many obstacles created in waking up early in the morning and sitting in remembrance. You extract points but, in spite of that, your intellects go from one place to another. The one who is number one would have the maximum storms. They cannot come to Shiv Baba. Baba always explains that many storms will come. The more you try to stay in remembrance, the more the storms will come. You mustn't be afraid of them. Just stay in remembrance. You have to remain stable. None of the storms should be able to shake you. This is the stage of the final time. This is a spiritual race. Continue to remember Shiv Baba. These things have to be understood and imbibed. If you don't donate wealth, you won't be able to imbibe. You should make effort. It is very easy to explain the point of the two fathers to anyone. Only you know that the Father gives you the inheritance for 21 births. You would say that Lakshmi and Narayan received their inheritance for 21 births from the Father. The Father taught them Raja Yoga. No one else can say that God gave them their inheritance. In the world, some people are happy with one thing and others are happy with another thing. No one knows about the things that make you happy. People celebrate in happiness for a temporary period. You are the true decoration of the Brahmin clan who are yogi and gyani. No one else can know about your supersensuous joy. They continue to beat their heads for so many things. They also make effort to go to the moon. They make very difficult efforts. All of their efforts will go to waste. You are making effort, without difficulty, to go to such a place where no one else can go. You go to the highest-on-high supreme abode. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Whilst living at home with your family, you have to become a conqueror of attachment. At the same time you also have to fulfil your responsibilities to everyone and live like a lotus flower.
 
2. In order to imbibe knowledge, you definitely have to donate the wealth of knowledge. Accumulate your income with knowledge and yoga, but don't have any desires for going into trance or having visions.
 
Blessing:May you claim a right to an elevated status and increase your account of accumulation with the power of silence.
 
Just as the power of science has a great impact at the present time and enables you to have temporary attainment, in the same way, you have to increase your account of accumulation with the power of silence. Accumulate power in yourself with the Father’s divine drishti and you will then be able to give others at a time of need what you have accumulated. Those who accumulate the power of silence knowing the importance of drishti become those who claim a right to an elevated status. The spiritual sparkle of happiness is visible on their faces.
 

Slogan:Let there be natural attention and there won’t then be any type of tension.

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