Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-11-24 19:48:34
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
A
Article Rating
Participate in Rating,
See Result
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- )
B Quiz( Create, Edit, Delete )
Participate in Quiz,
See Result
Created/ Edited Time:- 13-11-2018 01:33:45
C Survey( Create, Edit, Delete) Participate in Survey, See Result Created Time:-
D
Page No Photo Page Name Count of Characters Date of Last Creation/Edit
1 Image Murali 1st Oct 2018 113370 2018-11-13 01:33:45
2 Image Murali 02- Oct 2018 132948 2018-11-13 01:33:45
3 Image Murali 03-Oct-2018 125177 2018-11-13 01:33:45
4 Image Murali 04-Oct-2018 118934 2018-11-13 01:33:45
5 Image Murali 05-Oct-2018 133374 2018-11-13 01:33:45
6 Image Murali 06-Oct-2018 133043 2018-11-13 01:33:45
7 Image Murali 07-Oct-2018 135426 2018-11-13 01:33:45
8 Image Murali 08-Oct-2018 118475 2018-11-13 01:33:45
9 Image Murali 09-Oct-2018 113426 2018-11-13 01:33:46
10 Image Murali 10-Oct-2018 123819 2018-11-13 01:33:46
11 Image Murali 11-Oct-2018 133485 2018-11-13 01:33:46
12 Image Murali 12th Oct 2018 12264 2018-11-13 01:33:46
13 Image Murali 13th Oct 2018 120124 2018-11-13 01:33:46
14 Image Murali 14th Oct 2018 132308 2018-11-13 01:33:46
15 Image Murali 15th Oct 2018 124161 2018-11-13 01:33:46
16 Image Murali 16th Oct 2018 128293 2018-11-13 01:33:46
17 Image Murali 17th Oct 2018 120298 2018-11-13 01:33:46
18 Image Murali 18th Oct 2018 118916 2018-11-13 01:33:46
19 Image Murali 19th Oct 2018 117510 2018-11-13 01:33:46
20 Image Murali 20th Oct 2018 117518 2018-11-13 01:33:46
21 Image Murali 21st Oct 2018 130603 2018-11-13 01:33:46
22 Image Murali 22nd Oct 2018 135192 2018-11-13 01:33:46
23 Image Murali 23rd Oct 2018 113654 2018-11-13 01:33:46
24 Image Murali 24th Oct 2018 128826 2018-11-13 01:33:46
25 Image Murali 25th Oct 2018 124802 2018-11-13 01:33:46
26 Image Murali 26th Oct 2018 117905 2018-11-13 01:33:46
27 Image Murali 27th Oct 2018 125168 2018-11-13 01:33:46
28 Image Murali 28th Oct 2018 105833 2018-11-13 01:33:46
29 Image Murali 29th Oct 2018 124953 2018-11-13 01:33:46
30 Image Murali 30th Oct 2018 235865 2018-11-13 01:33:46
Article Image
Details ( Page:- Murali 06-Oct-2018 )
06-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - देह सहित सब कुछ भूल एक बाप को याद करो तब कहेंगे मातेले बच्चे, इस पुरानी दुनिया से अब तुम्हारी बुद्धि हट जानी चाहिए''
 
प्रश्नः-बाप का ज्ञान किन बच्चों की बुद्धि में सहज ही बैठ जाता है?

 उत्तर:-जो गरीब बच्चे हैं, जिनका मोह नष्ट है और बुद्धि विशाल है उनकी बुद्धि में सारा ज्ञान सहज बैठ जाता है। बाकी जिनकी बुद्धि में रहता - हमारा धन, हमारा पति........ वह ज्ञान को धारण कर ऊंच पद नहीं पा सकते। बाप का बनने के बाद भी लौकिक सम्बन्धों को याद करना माना कच्ची सगाई है, उन्हें सौतेला कहा जाता है।

 
गीत:-मरना तेरी गली में..... ओम् शान्ति।

 
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत का अर्थ तो आपेही समझा होगा। अब जीते जी आकर के बाप का बनना है और पुरानी दुनिया जिसको रौरव नर्क कहा जाता है, उनको भूलना भी है और छोड़ना भी है ही। रौरव नर्क को भूल फिर स्वर्ग को याद करना है। अपने को आत्मा समझ अपने बाप को याद करना है। पुरानी दुनिया बुद्धि से हट जानी चाहिए। उनके लिए पुरुषार्थ चाहिए। यह है जन्म-जन्मान्तर का कर्मबन्धन। एक जन्म का नहीं, जन्म-जन्मान्तर का कर्मबन्धन है। कितने पाप, किस-किस के साथ किये हैं, वह सब जन्म ले भोगने पड़ते हैं। तो इस कर्मबन्धन की दुनिया को भूल जाना है। यह छी-छी दुनिया है, पतित शरीर है ना, इससे मोह मिटाना है। गरीबों का मोह सहज मिट जाता है, साहूकारों का मुश्किल मिटता है। वह समझते हैं हम स्वर्ग में सुखी बैठे हैं, गरीब दु:खी हैं। यूँ तो सारा भारत गरीब है फिर उनमें भी जो गरीब हैं वह झट उठाते हैं। उन्हों के लिए ही बाप आते है। गरीबों को जास्ती वर्सा मिलता है। सब सेन्टर्स में देखो साहूकार कोई मुश्किल ठहर सकते हैं। स्त्रियां भी गरीब घरों की ही आती हैं। धनवान को तो पति से सुख मिलता है, इसलिए उनसे बुद्धियोग टूट नहीं सकता। गरीब ही अक्सर करके ज्ञान लेते हैं। बाप है ही गरीब निवाज़। जिस बाप को सब याद करते हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार भक्त भगवान् को जानते नहीं हैं। भगवान् तो है ही भक्तों का रक्षक। भक्ति का फल देने वाला, सद्गति दाता एक बाप है। तुम बच्चे बाप द्वारा अभी ज्ञान की बातें सुन रहे हो। यह ज्ञान उन्हीं बच्चों की बुद्धि में बैठता है जिनकी बुद्धि विशाल है, मोह नष्ट है। जिनकी बुद्धि में रहता है कि हमारा पति, हमारा धन आदि है, वह ऊंच पद पा नहीं सकते। पद वह पाते हैं जो रचता और रचना का परिचय देते हैं। बाप को पहचाने बिगर वर्सा कैसे मिले? साजन को सिर्फ साजन कहने से फायदा नहीं हो सकता है। जाने पहचाने बिगर साजन से सगाई कैसे हो सकती है? कन्या की सगाई होती है तो उनको चित्र आदि दिखाते हैं। फलाने का बच्चा है, यह आक्यूपेशन है। आगे दिखलाते नहीं थे, ऐसे ही शादी करा देते थे। तो भी उनका आक्यूपेशन तो बताते हैं ना। यहाँ कोई-कोई बच्चे अपने बाप को अथवा साजन को जानते ही नहीं हैं तो सगाई कैसे हो? नम्बरवार हैं। कईयों की कच्ची सगाई है। पारलौकिक साजन को याद नहीं करते, लौकिक साजन को लौकिक सम्बन्धियों आदि को याद करते रहते तो गोया कच्ची सगाई है। उनको सौतेले बच्चे कहा जाता है। पक्के को मातेले बच्चे कहा जाता है। मातेले बच्चे बहुत थोड़े हैं। भट्ठी में इतने पड़े उनमें से कितने कच्चे निकल पड़े। अपने साजन को पहचानते ही नहीं। जैसे पारा हथेली पर ठहरता ही नहीं है ना, वैसे ही याद भी इतनी मुश्किल है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। 25-30 वर्ष वाले भी पूरा याद नहीं कर सकते हैं। तुम जानते हो पारलौकिक साजन स्वर्ग के 21 जन्म लिए महारानी-महाराजा बनाने वाला है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाला है। सजनियों को इतना समझाते हैं तो भी बुद्धि में बैठता नहीं है। बुद्धि पुरानी दुनिया के बन्धनों में भटकती रहती है। समझते नहीं हैं कि मैं बन्धन में हूँ। सम्बन्ध तो चाहिए एक का। बाकी सब हैं बन्धन। बच्चों को समझाया जाता है - एक से सम्बन्ध रखो, वह तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की शिक्षा देते हैं।
 
तुम जानते हो - आधाकल्प है ज्ञान काण्ड, आधाकल्प है भक्ति काण्ड। ज्ञान काण्ड में तो 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। वहाँ है सतोप्रधान फिर सतोप्रधान से नीचे सतो में फिर सतो से गिरकर रजो में आना है। जब सतो पूरा होता तो ज्ञान काण्ड पूरा हो जाता है। द्वापर से भक्ति शुरू होती है। वह भी पहले सतोप्रधान भक्ति होती है। फिर भक्ति भी सतो-रजो-तमो में आती है। व्यभिचारी होने से भक्ति फिर गिरती जाती है। अब यह जानना और किसको समझाना तो बहुत सहज है। तुम बच्चों को रौरव नर्क से सम्बन्ध तोड़ एक से रखना चाहिए। एक बाप से सम्बन्ध रखने की प्रैक्टिस करो। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। गरीब अच्छी मेहनत करते हैं। तो बलिहारी गरीबों की है। बाप भी गरीबों पर बलिहार जाते हैं। शुरुआत में कितने गोप थे, कितनी मातायें थी! कितने ख़त्म हो गये, बाकी थोड़े रहे हैं। मातायें भी थोड़ी रही। हाँ, कोई कोई साहूकार घर की भी रह गई। जैसे क्वीन मदर, देवी आदि। अब तुम्हें मूल बात समझानी है कि जिस भगवान् को सब याद करते हैं, उसका परिचय क्या है? पतित-पावन बाप जो राजयोग सिखलाकर नर से नारायण बनाते हैं, उनको नहीं जानेंगे तो तुम पाप करते रहेंगे, बाप को गाली देते रहेंगे। सम्मेलन तो बहुत होते रहते हैं। वहाँ पर समझाने वाले बड़े तीखे चाहिए। समझाना चाहिए तुम वेदों की महिमा समझते हो, परन्तु इससे कोई फ़ायदा तो होता नहीं। फ़ायदा तो एक बाप से ही होता है, जिसको हम जानते हैं, तुम नहीं जानते हो। आओ तो हम आपको समझायें। बाप को पहचाने बिना वर्सा कैसे मिलेगा? बाप का वर्सा है मुक्ति-जीवनमुक्ति, गति-सद्गति। यह अक्षर सुनाते ही बाप हैं। तुम बच्चों को याद रखना चाहिए। और कोई चीज़ से फ़ायदा नहीं। बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना है। इसमें भी आधाकल्प है भक्ति काण्ड, आधाकल्प है सद्गति, ज्ञान काण्ड। भल सम्मेलन करते हैं, परन्तु खुद ही मूँझे हुए हैं। समझते कुछ भी नहीं। तुम्हें सबको बाप का परिचय देना है। जब बहुतों को परिचय मिल जायेगा तब कहेंगे कमाल है। यह तो सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ चित्रों सहित बतलाते हैं। माताओं को बड़ा नशा रहना चाहिए। पुरुष मदद करने लिए तैयार हैं, डायरेक्शन बाप देते हैं। करना कन्याओं-माताओं को है। आजकल कन्याओं-माताओं की महिमा जास्ती है। गवर्नर, प्राइममिनिस्टर भी मातायें बनती हैं। एक तरफ हैं वह मातायें, एक तरफ हो तुम पाण्डवों की मातायें। उन्हों की उछल जास्ती है क्योंकि उनका राज्य है। तुमको तो तीन पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते हैं।
 
बाप तुम बच्चों को अनेक राज़ समझाते रहते हैं। तुम अभी स्वर्ग का वर्सा पाते हो। साजन तुमको श्रृंगारते हैं, महारानी बना देते हैं। ऐसे साजन से बुद्धियोग रखना, यह तो बड़ी भारी भूल है। बच्चों को समझाते तो बहुत हैं। तुम सिर्फ ज्ञान और भक्ति का कान्ट्रास्ट बताओ। भारत में ही गाया हुआ है - दु: में सिमरण सब करें, सुख में करे कोई। सुख में क्यों याद करेंगे? अभी वह नई दुनिया स्थापन हो रही है। परन्तु सुख का वर्सा भी पूरा लेना चाहिए। मात-पिता जानते हैं हर एक कितना लायक है। मौत जब नज़दीक आयेगी तो बतायेंगे तुमने पुरुषार्थ पूरा नहीं किया है, तब तुम्हारा ऐसा हाल हुआ है। वह भी बतायेंगे कि तुम किस किस्म की प्रजा में जायेंगे, किस किस्म के नौकर-चाकर बनेंगे, सब बतायेंगे। अच्छा!
 
कई बच्चे समझते हैं आज हमने मुरली बहुत अच्छी चलाई। परन्तु नहीं, यह तो शिवबाबा आकर मदद करते हैं। अपना अहंकार नहीं होना चाहिए। तुमको तो बाप सिखलाते हैं जो तुम सुनाते हो। बाप होता तो तुम्हारी मुरली काहे की। मुरलीधर के बच्चों को मुरलीधर बनना चाहिए, नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। भल कुछ कुछ फ़ायदा हो जाता है, कोई सेन्टर खोलते हैं तो बहुत आशीर्वाद मिलती है। इतना समय पढ़ाई की है तो आपेही सर्विस कर सेन्टर जमाना चाहिए। खुद सीखते हैं तो क्या औरों को नहीं सिखला सकते? ब्रह्माकुमारी की मांगनी करते हैं तो बाबा समझ जाते हैं, शायद खुद में इतना ज्ञान नहीं है। बाकी यहाँ आकर क्या करते हैं। बाबा तो समझाते हैं - बादल आयें, रिफ्रेश होकर जायें, वर्षा बरसायें। नहीं तो पद कैसे पायेंगे? मम्मा-बाबा कहते हो तो गद्दी पकड़कर दिखाओ। यह भी कोई को अहंकार नहीं आना चाहिए कि हमने दिया। तुम कुछ भी दो, बाबा तुमको कौड़ी के बदले हीरा देने से भी छूट जायेगा। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) एक के साथ सर्व सम्बन्ध रख बुद्धियोग अनेक बंधनों से निकाल लेना है। एक के साथ पक्की सगाई करनी है। बुद्धियोग भटकाना नहीं है।
 2) बाप समान मुरलीधर बनना है, मैंने अच्छी मुरली चलाई - इस अहंकार में नहीं आना है। बादल भरकर वर्षा करनी है। पढ़ाई की है तो सेन्टर जमाना है।

 
वरदान:-न्यारेपन के अभ्यास द्वारा पास विद आनर होने वाले ब्रह्मा बाप समान भव

 
जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले न्यारे और प्यारे रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। सेवा वा कोई कर्म छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे होकर सेवा की। यह न्यारा पन हर कर्म में सफलता सहज अनुभव कराता है। तो सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम हो तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी, ब्रह्मा बाप समान पास विद आनर बनेंगे।
 
स्लोगन:-स्वयं को ऐसा शक्ति स्तम्भ बनाओ जो अनेको को नई जीवन बनाने की शक्ति प्राप्त हो।

 
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य:
 
1- अपना असली लक्ष्य क्या है? :- पहले पहले यह जानना जरूरी है कि अपना असली लक्ष्य क्या है? वो भी अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करना है तब ही पूर्ण रीति से उस लक्ष्य में उपस्थित हो सकेंगे। अपना असली लक्ष्य हैं - मैं आत्मा उस परमात्मा की संतान हूँ। असुल में कर्मातीत हूँ फिर अपने आपको भूलने से कर्मबन्धन में गई, अब फिर से वो याद आने से, इस ईश्वरीय योग में रहने से अपने किये हुए विकर्म विनाश कर रहे हैं। तो अपना लक्ष्य हुआ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। बाकी कोई अपने को हम सो देवता समझ उस लक्ष्य में स्थित रहेंगे तो फिर जो परमात्मा की शक्ति है वो मिल नहीं सकेगी। और फिर तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, अब यह तो अपने को फुल ज्ञान है, मैं आत्मा परमात्मा की संतान कर्मातीत हो भविष्य में जाकर जीवनमुक्त देवी देवता पद पाऊंगा, इस लक्ष्य में रहने से वह ताकत मिल जाती है। अब यह जो मनुष्य चाहते हैं हमको सुख शान्ति पवित्रता चाहिए, वो भी जब पूर्ण योग होगा तब ही प्राप्ति होगी। बाकी देवता पद तो अपनी भविष्य प्रालब्ध है, अपना पुरुषार्थ अलग है और अपनी प्रालब्ध भी अलग है। तो यह लक्ष्य भी अलग है, अपने को इस लक्ष्य में नहीं रहना है कि मैं पवित्र आत्मा आखरीन परमात्मा बन जाऊंगी, नहीं। परन्तु हमको परमात्मा के साथ योग लगाए पवित्र आत्मा बनना है, बाकी आत्मा को कोई परमात्मा नहीं बनना है।
 
2- इस अविनाशी ज्ञान पर अनेक नाम रखे हुए हैं :- इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान पर अनेक नाम धरे गये हैं (रखे गये हैं) कोई इस ज्ञान को अमृत भी कहते हैं, कोई ज्ञान को अंजन भी कहते हैं। गुरुनानक ने कहा ज्ञान अंजन गुरू दिया, कोई ने फिर ज्ञान वर्षा भी कहा है क्योंकि इस ज्ञान से ही सारी सृष्टि सब्ज (हरी भरी) बन जाती है। जो भी तमोप्रधान मनुष्य हैं वो सतोगुणी मनुष्य बन जाते हैं और ज्ञान अंजन से अन्धियारा मिट जाता है। इस ही ज्ञान को फिर अमृत भी कहते हैं जिससे जो मनुष्य पाँच विकारों की अग्नि में जल रहे हैं उससे ठण्डे हो जाते हैं। देखो गीता में परमात्मा साफ कहता है कामेषु क्रोधेषु उसमें भी पहला मुख्य है काम, जो ही पाँच विकारों में मुख्य बीज है। बीज होने से फिर क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि झाड़ पैदा होता है, उससे मनुष्यों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अब उस ही बुद्धि में ज्ञान की धारणा होती है, जब ज्ञान की धारणा पूर्ण बुद्धि में हो जाती है तब ही विकारों का बीज खत्म हो जाता है। बाकी सन्यासी तो समझते हैं विकारों को वश करना बड़ी कठिन बात है। अब यह ज्ञान तो सन्यासियों में है ही नहीं। तो ऐसी शिक्षा देवे कैसे? सिर्फ ऐसे ही कहते हैं कि मर्यादा में रहो। परन्तु असुल मर्यादा कौनसी थी? वो मर्यादा तो आजकल टूट गई है, कहाँ वो सतयुगी, त्रेतायुगी देवी देवताओं की मर्यादा जो गृहस्थ में रहकर कैसे निर्विकारी प्रवृत्ति में रहते थे। अब वो सच्ची मर्यादा कहाँ है? आजकल तो उल्टी विकारी मर्यादा पालन कर रहे हैं, एक दो को ऐसे ही सिखलाते हैं कि मर्यादा में चलो। मनुष्य का पहला क्या फर्ज है, वो तो कोई नहीं जानता, बस इतना ही प्रचार करते हैं कि मर्यादा में रहो, मगर इतना भी नहीं जानते कि मनुष्य की पहली मर्यादा कौनसी है? मनुष्य की पहली मर्यादा है निर्विकारी बनना, अगर कोई से ऐसा पूछा जाए तुम इस मर्यादा में रहते हो? तो कह देते हैं आजकल इस कलियुगी सृष्टि में निर्विकारी होने की हिम्मत नहीं है। अब मुख से कहना कि मर्यादा में रहो, निर्विकारी बनो इससे तो कोई निर्विकारी बन नहीं सकता। निर्विकारी बनने के लिये पहले इस ज्ञान तलवार से इन पाँच विकारों के बीज को खत्म करना है तब ही विकर्म भस्म हो सकेगा। अच्छा। ओम् शान्ति।
 
 
06/10/18 Morning Murli                Om Shanti           BapDada              Madhuban
Essence: 
Sweet children, forget everything, including your bodies and remember the one Father, for only then will you be called real children. Your intellects should now be removed from this old world.
 
Question:In which children's intellects will the knowledge easily sit?

 Answer:All the knowledge easily sits in the intellects of poor children who have destroyed their attachment and whose intellects are broad and unlimited. Those who think, "This is my wealth" or "My husband", cannot imbibe knowledge and they cannot claim a high status. To remember lokik relationships even after belonging to the Father means that your engagement is not firm. They are called stepchildren.

 
Song:To live in Your lane and to die in Your lane...

 Om Shanti

 
You sweetest children would have understood the meaning of the song by yourselves. You now have to belong to the Father while alive and you also have to forget and leave the old world which is called the extreme depths of hell. You have to forget the extreme depths of hell and remember heaven. Consider yourselves to be souls and remember your Father. The old world has to be removed from your intellects. Effort is needed for this. It is a bondage of karma of birth after birth. It is not a karmic bondage of just one birth, but of birth after birth. So many sins have been committed with so many people: the consequences of all of them have to be experienced by taking birth. Therefore, this world of karmic bondage has to be forgotten. This is a dirty world and an impure body. Remove your attachment from it. The poor are easily able to remove their attachment, but the wealthy have difficulty in doing this. They think that they are sitting happily in heaven and that the poor are unhappy. In fact, the whole of Bharat is poor, but, in that too, those who are poor take this knowledge quickly. The Father comes here just for them. The poor receive a bigger inheritance. If you look at all the centres, wealthy ones are hardly able to stay. The women that come, too, are from poor homes. Wealthy ones receive happiness from their husbands and this is why their intellects’ yoga is not removed from them. It is generally the poor who take knowledge. The Father, whom everyone remembers, is the Lord of the Poor. However, according to the drama, devotees don't know God. God is the Protector of the Devotees. The one Father, the Bestower of Salvation, is the One who gives you the fruit of devotion. You children are now listening to things of knowledge from the Father. This knowledge sits in the intellects of the children who have broad and unlimited intellects and who have destroyed their attachment. Those whose intellects think, "This is my husband" or "This is my wealth", cannot claim a high status. Those who give the introduction of the Creator and creation claim a status. How can you receive the inheritance without knowing the Father? There cannot be any benefit by simply calling the Bridegroom, the Bridegroom. How can you become engaged to the Bridegroom without knowing Him? When a kumari is to become engaged, they show her his picture: He is the son of so-and-so and this is his occupation. Previously, they didn't even show them pictures, but would just get them engaged. Nonetheless, they would still tell her what his occupation was. Here, some children don't know their Father or their Bridegroom, so how can they become engaged? It is numberwise. Some people's engagement is not fixed. They don't remember the parlokik Bridegroom. They continue to remember their lokik bridegrooms and lokik relationships and so that means the engagement is not firm. They are called stepchildren. Strong, firm ones are called real children. There are very few real children. So many came to the bhatthi, but so many of them were weak. They don't even recognise their Bridegroom. Just as mercury cannot stay on the palm of your hand, so, remembrance too is just as difficult. You repeatedly forget Baba. Even those who have been around for 25 to 30 years are unable to remember Him fully. You know that the parlokik Bridegroom is going to make you into emperors and empresses in heaven for 21 births. He is the One who knows the beginning, the middle and the end of the world. He explains so much to the brides and yet it still doesn't sit in their intellects! Their intellects continue to wander in the bondages of the old world. They don't understand that they are in bondage. There has to be a relationship with One. All the rest are bondage. It has been explained to you children: Have all relationships with the One. He is the One who gives you the teachings of the beginning, the middle and the end of the world. You know that there are the activities of knowledge for half the cycle and that there are the activities of devotion for half the cycle. You receive the inheritance for 21 births through the activities of knowledge. There, you are satopradhan. Then, from satopradhan, you come down to the stage of sato and then you have to fall down to the rajo stage. When the sato stage comes to an end, the activities of knowledge end. Devotion begins with the copper age. That devotion is at first satopradhan. Then devotion also goes through the stages of sato, rajo and tamo. Because devotion then becomes adulterated, it continues to become degraded. It is very easy to know this and to explain it to anyone. You children have to break all your relationships with the extreme depths of hell and have all relationships with the One. Practise having all relationships with the one Father. Only by remembering the Father will your sins will be absolved. The poor make very good effort. So, it is the poor who have greatness. The Father too surrenders Himself to the poor. At the beginning, there were so many gopes (brothers) and mothers. So many have now finished and only a few remain. Only a few mothers remain. Yes, some of the women from wealthy homes are also still here. There was Queen Mother and Devi etc. You now have to explain the main thing: What is the introduction of God whom everyone remembers? If you don't know the Purifier Father who teaches you Raja Yoga and changes you from an ordinary man into Narayan, you will continue to commit sin and will continue to insult the Father. Many conferences take place. Very clever people are needed to explain there. It should be explained: You understand the praise of the Vedas, but there is no benefit experienced from those. Benefit is only received from the one Father whom we know, but you don't. Come and we will explain to you. How can you receive the inheritance without knowing the Father? The Father's inheritance is liberation and liberation-in-life, liberation and salvation. It is only the Father who tells you about these things. You children should remember that there is no benefit in anything else. You have to know the Father and the beginning, the middle and the end of creation. In this too, for half the cycle there are the activities of devotion and for half the cycle there is salvation, the activity of knowledge. Although they hold conferences, they themselves are confused; they don't understand anything at all. You have to give everyone the Father's introduction. When many have received the introduction, it will be said: It is a wonder, you tell us the secrets of the beginning, the middle and the end of the world together with pictures. You mothers should have a lot of intoxication. Men are ready to help. The Father gives directions, but it is the kumaris and mothers who have to do it. Nowadays, there is greater praise for kumaris and mothers. Women become Governors and Prime Ministers too. On the one side are those women and on the other side are you mothers, the mothers of the Pandavas. They have greater enthusiasm because it is their kingdom. You don't even have three feet of land. The Father explains many secrets to you children. You are now receiving the inheritance of heaven. The Bridegroom is decorating you and making you into empresses. Not to connect your intellects in yoga to such a Bridegroom is a very big mistake. He explains to you children a great deal. You simply have to tell them the contrast between knowledge and devotion. It is in Bharat that they sing: Everyone remembers God at the time of sorrow and no one remembers Him in happiness. Why would anyone remember Him at the time of happiness? That new world is now being established. However, you should also claim your full inheritance of happiness. The Mother and Father know to what extent each one is worthy. When death comes close, you will be told: You haven't made full effort and this is why this has become your state. You will also be told which type of subjects, maids or servants you will become; you will be told everything. Achcha. Some children think: Today, I read the murli very well. However that was not so. That was Shiv Baba who came and helped you. You mustn't have arrogance about yourself. The Father teaches you and you then relate that to others. If it weren't for the Father, how could it have been your murli? The children of the Murlidhar should become murlidhars, otherwise you won't be able to claim a high status. However there may be some benefit. When a centre is opened, many blessings are received. You have studied for so long and so you should open a centre by yourself and start service there. When you yourselves are studying, can you not teach others? People ask for Brahma Kumaris and so Baba understands that they don't perhaps have that much knowledge themselves. So, what do they come and do here? Baba explains: The clouds should come, be refreshed and then go and shower. How else would you claim a status? You say "Mama and Baba" and so you should definitely claim a throne. None of you should have the arrogance of having given something to Baba. You don’t give anything! Baba will then be liberated from giving you shells, let alone diamonds. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 1.   Have all your relationships with the One and remove your intellect’s yoga from the innumerable bondages. Have a firm engagement with the One alone. Don't allow your intellect's yoga to wander.

 2. Become a murlidhar, like the Father. Don't have any arrogance of having read the murli very well. Be like a cloud and fill yourself and go shower everywhere. You have studied and so you should establish a centre.

 
Blessing:May you be equal to Father Brahma and pass with honours by practising of being detached.

 
Before becoming karmateet, Father Brahma gave the practical experience of having practised being detached and loving. He didn’t let go of any service or actions, but did service while being detached. This detachment easily gives the experience of success in every act. So, no matter how much you expand the field of service, while going into expansion, do not reduce the practice of the stage of the essence even slightly. Only then will you become double light and attain the karmateet stage, wear the double crown and, like Father Brahma, pass with honours.
 
Slogan:Make yourself into such a tower of power that many receive the power to create a new life.

 
Elevated versions of Mateshwari- What is my real aim?

 
First of all, it is necessary to know what one’s real aim is. That too has to be imbibed by the intellect very well, for only then will you be able to stabilise yourself fully in that aim. My real aim is: I, the soul, am a child of that Supreme Soul. Originally, I was karmateet and then, by forgetting myself, I came into the bondage of karma. Now, by remembering that once again and staying connected in yoga to God, I am having the sins I have committed absolved. So, my aim is: I, the soul, am a child of God. However, if someone considers himself to be a deity and remains stable in that stage, he would not be able to receive God’s power, nor would his sins be absolved. We now have this full knowledge: I, the soul, a child of God will become karmateet and claim the deity status of being liberated-in-life in the future. By keeping this aim, you receive power. People desire happiness, peace and purity but that will only be attained when there is full yoga. The deity status is our future reward. Our efforts are separate from our reward. This aim is also separate. I mustn’t have the aim that I, a pure soul, will ultimately become God; no! However, I have to have yoga with God and become a pure soul. It isn’t that a soul will become the Supreme Soul.
 
This imperishable knowledge has been given many names.
 

This imperishable Godly knowledge has been given many names. Some call this knowledge nectar and others call this knowledge ointment. Guru Nanak said: When the Guru gives the ointment of knowledge… Some have called this knowledge the shower of knowledge because it is with this knowledge that the whole world becomes green and fresh again. All the tamopradhan human beings become satoguni and the darkness is dispelled with the ointment of knowledge. This same knowledge is also called nectar through which people who are burning in the fire of the five vices are cooled down. Look, in the Gita, God very clearly says: There are those who are lustful and those who have anger. In that too, first and foremost is lust which is the main seed of the five vices. When the seed is there, the tree of anger, greed, attachment and ego grows from it and people’s intellects become corrupt from that. Now, there is the inculcation of knowledge into those intellects. When knowledge has been totally inculcated into an intellect, the seed of the vices is then finished. Sannyasis however think that it is very difficult to control the vices, but sannyasis do not have this knowledge. So, how could they give these teachings? They simply ask you to maintain your code of conduct. However, what was the original code of conduct? Those codes of conduct are today broken. There is such a vast difference! Theirs were the golden-aged and silver-aged codes of conduct of the deities who used to remain viceless while living in their households. Now, where is that real code of conduct today? Nowadays, they observe wrong, vicious codes of conduct. They simply teach one another to stay within their code of conduct, but no one knows what the first duty of human beings is. They just simply spread the knowledge of staying within their code of conduct. However, they don’t even know what the first code of conduct of human beings is. The first code of conduct of human beings is to remain viceless. If anyone were to be asked if they are staying within this codeof conduct, they would say: Nowadays, I don’t have the courage to remain viceless in this iron-aged world of today. Simply to tell someone to stay within the code of conduct and remain viceless will not make that one viceless. In order to become viceless, you first of all have to finish the seed of the five vices with this sword of knowledge for only then will the sins be absolved. Achcha.

End of Page