Published by – Goutam Kumar Jena
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Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - MURALI
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta for Aug 2017
( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali Dtd 1st Aug 2017 | 113849 | 2017-09-02 01:40:09 | |
2 | Murali Dtd 2nd Aug 2017 | 110017 | 2017-09-02 01:40:09 | |
3 | Murali Dtd 3rd Aug 2017 | 109928 | 2017-09-02 01:40:09 | |
4 | Murali Dtd 4th Aug 2017 | 112461 | 2017-09-02 01:40:09 | |
5 | Murali Dtd 5th Aug 2017 | 115610 | 2017-09-02 01:40:09 | |
6 | Murali Dtd 6th Aug 2017 | 109543 | 2017-09-02 01:40:09 | |
7 | Murali Dtd 7th Aug 2017 | 110065 | 2017-09-02 01:40:09 | |
8 | Murali 8h Aug 2017 | 111966 | 2017-09-02 01:40:09 | |
9 | Murali 09th Aug 2017 | 116098 | 2017-09-02 01:40:09 | |
10 | Murali 10th Aug 2017 | 118202 | 2017-09-02 01:40:09 | |
11 | Murali 11th Aug 2017 | 115258 | 2017-09-02 01:40:09 | |
12 | Murali 12th Aug 2017 | 98064 | 2017-09-02 01:40:09 | |
13 | Murali 13th Aug 2017 | 124409 | 2017-09-02 01:40:09 | |
14 | Murali 14th Aug 2017 | 111779 | 2017-09-02 01:40:09 | |
15 | Murali 15th Aug 2017 | 121726 | 2017-09-02 01:40:09 | |
16 | Murali 16th Aug 2017 | 108313 | 2017-09-02 01:40:09 | |
17 | Murali 17th Aug 2017 | 116934 | 2017-09-02 01:40:09 | |
18 | Murali 18th Aug 2017 | 96995 | 2017-09-02 01:40:09 | |
19 | Murali 19th Aug 2017 | 112979 | 2017-09-02 01:40:09 | |
20 | Murali 20th Aug 2017 | 106704 | 2017-09-02 01:40:09 | |
21 | Murali 21th Aug 2017 | 113300 | 2017-09-02 01:40:09 | |
22 | Murali 22nd Aug 2017 | 100254 | 2017-09-02 01:40:09 | |
23 | Murali 23th Aug 2017 | 113938 | 2017-09-02 01:40:09 | |
24 | murali 24th Aug 2017 | 115389 | 2017-09-02 01:40:09 | |
25 | Murali 25th Aug 2017 | 113248 | 2017-09-02 01:40:09 | |
26 | murali 26th Aug 2017 | 114877 | 2017-09-02 01:40:09 | |
27 | murali 27th Aug 2017 | 102363 | 2017-09-02 01:40:09 | |
28 | Murali 28th Aug 2017 | 106381 | 2017-09-02 01:40:09 | |
29 | Murali 29th Aug 2017 | 116177 | 2017-09-02 01:40:09 | |
30 | Murali 30th Aug 2017 | 116019 | 2017-09-02 01:40:09 | |
31 | Murali 31st Aug 2017 | 106134 | 2017-09-02 01:40:09 |
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Details ( Page:- Murali Dtd 1st Aug 2017 )
01-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - Tum ho Ishwar ke adopted bacche, tumhe pavan ban pavan duniya ka varsha lena hai, yah ant ka samay hai isiliye pavitra jaroor banna hai.
Q- Is samay ke manushyo ko oont-pakshi(suturmurg) ka title de sakte hain kyun?
A- Kyunki oont-pakshi jo hota usey kaho udo to kahega pankh nahi, main oont hun. Bolo accha samaan uthao to kahenge main pakshi hun. Aise he aaj ke manushyo ki haalat hai. Jab unse poocha jata tum apne ko devta ke bajaye Hindu kyun kehlate ho to kehte Devtayein to pavan hai, hum patit hain. Bolo accha ab patit se pavan bano to kehte furshat nahi. Maya ne pavitrata ke pankh he kaat diye hain isiliye jo kehte hume furshat nahi wo hai oont pakshi. Tum baccho ko oont pakshi nahi banna hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Baap ki Shrimat par chalkar sampoorn nirbikari banna hai. Padhai se Biswa ki Rajai leni hai. Aatma me jo khaad padi hai usey yog agni se nikaalna hai.
2) Aatma-abhimaani ban Baap ko yaad karna hai jitna yaad me rahenge utna Baap raksha karta rahega.
Vardaan - Sarv praptiyon ko saamne rakh shrest shaan me rehne wale Master Sarv Shaktimaan bhava
------Hum Sarv shrest aatmayein hain, oonche te oonche Bhagwaan ke bacche hain- yah shaan Sarv shrest shaan hai, jo is shrest shaan ki seat par rehte hain wo kabhi bhi pareshaan nahi ho sakte. Devtayein shaan se bhi ooncha ye Brahmano ka shaan hai. Sarv praptiyon ki list saamne rakho to apna shrest shaan sada smruti me rahega aur yahi geet gaate rahenge ki pana tha wo paa liya......sarv praptiyon ki smruti se Master Sarv Shaktimaan ki sthiti sahaj ban jayegi.
Slogan- Yogi aur pavitra jeevan he sarv praptiyon ka aadhar hai.
HINDI DETAIL MURLI - 01-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम हो ईश्वर के एडाप्टेड बच्चे, तुम्हें पावन बन पावन दुनिया का वर्सा लेना है, यह अन्त का समय है इसलिए पवित्र जरूर बनना है”
प्रश्न:- इस समय के मनुष्यों को ऊंट-पक्षी (शुतुरमुर्ग) का टाइटल दे सकते हैं - क्यों?
उत्तर: - क्योंकि ऊंट-पक्षी जो होता उसे कहो उड़ो तो कहेगा पंख नहीं, मैं ऊंट हूँ। बोलो अच्छा सामान उठाओ तो कहेगा मैं पक्षी हूँ। ऐसे ही आज के मनुष्यों की हालत है। जब उनसे पूछा जाता तुम अपने को देवता के बजाए हिन्दू क्यों कहलाते हो तो कहते देवतायें तो पावन हैं, हम पतित हैं। बोलो अच्छा अब पतित से पावन बनो तो कहते फुर्सत नहीं। माया ने पवित्रता के पंख ही काट दिये हैं इसलिए जो कहते हमें फुर्सत नहीं वह हैं ऊंटपक्षी। तुम बच्चों को ऊंटपक्षी नहीं बनना है।
गीत: ओम् नमो शिवाए..
ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? अपने से प्रश्न पूछना है। ओम् का अर्थ मनुष्यों ने अनेक प्रकार का बनाया है। बाबा कहने से एक सेकेण्ड में वर्से के अधिकारी बन जाते हैं। बच्चा पैदा हुआ कहेंगे वारिस पैदा हुआ। फिर सगीर से बालिग होता है। यहाँ भी ऐसे है। बाबा को जाना, पहचाना और वर्से का मालिक बनें। यहाँ तो तुम बड़े हो ही। आत्मा को बाप का परिचय मिला, सेकेण्ड में बाप का वर्सा मिला। बच्चा पैदा होने से ही समझेंगे बाप की जायदाद का वर्सा पायेंगे। यह है बेहद का बाप। कहते हैं हे बच्चे, आत्मा ने जाना बाप आया हुआ है। तुम बच्चे जानते हो हम बाप से कल्प-कल्प राजधानी लेते हैं। जैसे तुम सेकेण्ड में विश्व के मालिक बन जाते हो। ओम् माना अहम्, मैं आत्मा यह मेरा शरीर। मैं आत्मा किसका बच्चा हूँ? परमात्मा का। बाप भी कहते हैं मैं ओम् परम आत्मा हूँ। मुझे अपना शरीर नहीं है। कितनी सहज बात है। वह समझते हैं ओम् माना भगवान। तो सब भगवान हो गये। भगवान तो है ही एक। वह कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। परम आत्मा माना परमात्मा जिसको सारी दुनिया पुकारती है हे पतित-पावन आओ। ऐसे कोई भी नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा की आत्मा मेरे द्वारा तुमको राजयोग सिखलाती है। किसको पता ही नहीं है, न मालूम होने कारण कृष्ण भगवान का नाम लिख दिया है। उसने राजयोग सिखलाया वा पतित-पावन उसको कह नहीं सकते। वह तो है स्वर्ग का पहला बच्चा। जो पहले में है वह पिछाड़ी में भी होगा, इसलिए उनको श्याम-सुन्दर कहते हैं। पहले नम्बर में है कृष्ण फिर 84 जन्मों के बाद उनका नाम ब्रह्मा एडाप्ट होता है। बाप आकर बच्चों को एडाप्ट करते हैं। तुम हो एडाप्टेड बच्चे, ईश्वर के बच्चे। तुम्हारी माँ भी है, बाप भी है, प्रजापिता भी है। फिर बाप कहते हैं इनके मुख से कहता हूँ - तुम मेरे बच्चे हो। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं, आपसे वर्सा लेने आये हैं। बुद्धि भी कहती है बाप आता जरूर है। कब आते हैं - यह भी विचार की बात है ना। कहते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया का अन्त हो तब तो आऊं ना। इसको कहा जाता है कल्प की आदि और अन्त का संगम। अन्त में सब पतित हैं, आदि में हैं सब पावन। अन्त में पतित दुनिया का विनाश होता है, पावन दुनिया की स्थापना होती है। फिर वृद्धि को पाते जाते हैं। गाया भी जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह है त्रिमूर्ति। तुम जानते हो शिवबाबा के बच्चे सब ब्रदर्स हैं। फिर जब रचना होती है तब भाई-बहिन बनते हैं। मात-पिता क्यों कहते हो? भविष्य वर्सा लेने के लिए। लौकिक वर्सा होते हुए पारलौकिक वर्सा पाने का पुरूषार्थ करते हो। यह है कलियुग मृत्युलोक। सतयुग को अमरलोक कहते हैं। यहाँ तो मनुष्य अकाले मर पड़ते हैं। सतयुग है दैवी दुनिया। आदि सनातन देवी देवता धर्म रहता है। हिन्दू धर्म तो कोई है नहीं। आदमशुमारी जब निकलती है तो पूछते हैं आप किस धर्म के हो? हम कहते हैं हम ब्राह्मण धर्म के हैं तो वो लोग हिन्दू धर्म में लगा देंगे क्योंकि वह ब्राह्मण भी हिन्दू धर्म में आ जाते हैं। आर्य समाजी लोग जो हैं उनको हिन्दू धर्म में लगा दिया है। वास्तव में हिन्दू धर्म तो कोई है नहीं। यूरोप में रहने वालों को यूरोप धर्म वाला थोड़ेही कहेंगे। धर्म तो क्रिश्चियन है ना। क्राइस्ट ने क्रिश्चियन धर्म स्थापना किया। अच्छा हिन्दू धर्म किसने स्थापना किया? तो बिचारे मूँझ पड़ते हैं। कह देते हैं गीता द्वारा स्थापना हुआ। तो समझाया जाता है गीता के द्वारा तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। तुम तो देवता धर्म के हो। तो कहते हैं देवतायें तो बहुत पवित्र थे, हम तो पतित हैं। हम अपने को देवी-देवता कैसे कहलायें। तो समझाया जाता है अच्छा पवित्र बनो। फिर से देवी-देवता धर्म में आ जाओ, तो कहते हैं फुर्सत कहाँ। आपकी यह तो बहुत नई बातें हैं। बरोबर हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं। पूजते भी भारतवासी देवी देवताओं को हैं। जैसे क्रिश्चियन, क्राइस्ट को पूजते हैं। परन्तु पतित होने कारण अपने को देवता कहला नहीं सकते। अच्छा आकर पावन बनो तो कहते फुर्सत नहीं। बाप कहते हैं तुम तो ऊंटपक्षी हो। पूछा जाता है तुम देवता क्यों नहीं कहलाते तो कहते हैं हम पतित हैं। अच्छा पतित से पावन बनो तो कहते फुर्सत नहीं। ऊंटपक्षी को कहो उड़ो तो कहेगा पंख नहीं, ऊंट हूँ। बोलो, अच्छा सामान उठाओ तो कहेगा हम तो प्क्षी हूँ। तो बाप कहते हैं माया तुम्हारे पवित्रता के पंख काट देती है। अब सावन के महीने में शिव की पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं। तुम्हारे लिए सावन मास है ज्ञान बरसात का। तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनते हो। मनुष्य व्रत रखते हैं भोजन न खाने का। बाप कहते हैं विष नहीं खाओ। इस पर भी समझाना पड़ेगा। शिव को बहुत पूजते हैं, अब शिवबाबा कहते हैं पवित्रता का व्रत रखो। मैं आया हूँ पवित्र देवी-देवता धर्म स्थापना करने। यहाँ तो पावन कोई है नहीं। पवित्र देवी-देवता होते हैं सतयुग में। वह विष से पैदा नहीं होते। नहीं तो उनको सम्पूर्ण निर्विकारी क्यों कहते? लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण आदि को कहते ही हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ तो सब पतित हैं, जिनमें कोई गुण नहीं है। खुद कहते हैं हम पतित नींच हैं। बाप कहते हैं मेरी मत पर चलकर तुम सम्पूर्ण निर्विकारी बनो तो तुम इन लक्ष्मी-नारायण जैसा मालिक बनेंगे। तुम्हारी पढ़ाई कितनी भारी है। मनुष्य से देवता बनने का पुरूषार्थ करो। विश्व का मालिक बनना है। सतयुग में देवी-देवताओं का राज्य था ना। अब फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। तुम पवित्र बन स्वर्ग का वर्सा लेते हो। स्व माना आत्मा। आत्मा को राजाई मिलती है। उनको स्वराज्य कहा जाता है। मनुष्य तो हैं देह-अभिमानी। देह-अभिमान से कहते हैं हमारा राज्य। यहाँ तुम कहते हो हम आत्मा हैं, इस शरीर के मालिक हैं। हम महाराजा बनेंगे। हमको सतयुग में पवित्र शरीर मिलेगा। अभी तो पतित हैं। जैसे आत्मा वैसे शरीर। आत्मा में खाद पड़ी है। आत्मा पहले सच्चा सोना थी। गोल्डन एज कहा जाता था। फिर त्रेता आया तो सिल्वर की खाद पड़ी, फिर द्वापर में गये तो तांबा पड़ा। इस समय आत्मा झूठी तो शरीर भी झूठा। इसको कहा ही जाता है झूठ खण्ड़। अभी बाप के साथ योग रखने से अलाए निकल जायेगी, इसको योग अग्नि कहा जाता है। जेवर से किचड़ा निकालने के लिए आग में डाला जाता है। यह भी योग अग्नि है, जिसमें खाद भस्म हो और हम सच्चा सोना बन बाप के साथ चले जायेंगे। बाप कहते हैं तुम मेरे साथ चल पड़ेंगे। सतयुग में सच्चा सोना मिलेगा। अब कृष्ण को सांवरा क्यों कहते हैं? कृष्ण का नाम रूप तो बदल जाता है। अब बाप समझाते हैं तुम गोरे थे, तुम्हारे में खाद पड़ी है। अभी बिल्कुल आइरन एजेड बन पड़े हो। अब मैं सोनार हूँ बच्चों को भठ्ठी में डाल देता हूँ। भंभोर को आग लगेगी। सबके शरीर खत्म हो जायेंगे। आत्मा तो अविनाशी है। एक तो योग अग्नि से पवित्र बन जायेंगे, बाकी सब सजायें खाकर हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जायेंगे। यह ईश्वर की भठ्ठी है - सबको पावन बनाने लिए। यह है ज्ञान का सागर, उनसे तुम ज्ञान गंगायें निकली हो। फिर मनुष्यों ने उस पानी की गंगा को समझ लिया है। वहाँ देवता की मूर्ति भी रखी हुई है। वास्तव में तुम हो भगवान के बच्चे, ज्ञान गंगायें जो फिर देवता बनते हो। जब स्वर्ग में आयेंगे तब तुमको देवता कहेंगे। वहाँ आत्मा शरीर दोनों ही पवित्र हैं। अभी तो पतित हैं। भारत गोल्डन एजेड है फिर सिल्वर, कॉपर, आइरन एजेड बने हैं फिर गोल्डन एज में बाप ले जा रहे हैं। तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही पवित्र हो जाते हैं। बाप कहते हैं मैं धोबी भी हूँ। तुम्हारी आत्मा को धोने आता हूँ। सिर्फ बाप को ही याद करना है। बस योग में रहने से तुम विश्व के मालिक बन सकते हो। बाहुबल वाले विश्व के मालिक बन न सकें। हाँ, उन्हों में इतनी ताकत है, अगर क्रिश्चियन दो भाई आपस में मिल जाएं तो विश्व के मालिक बन सकते हैं। परन्तु लॉ नहीं है। कहानी भी है दो बिल्ले आपस में लड़े और माखन बन्दर खा गया। तो वह दो लड़ते हैं बीच में माखन भारत को मिल जाता है, इसमें भी नम्बरवन है श्रीकृष्ण इसलिए कृष्ण के मुख में गोला दिखाते हैं। वह मक्खन नहीं, यह स्वर्ग का राज्य भाग्य श्रीकृष्ण को मिला। बाप समझाते हैं सब विनाश हो जायेगा फिर तुम मालिक बन जायेंगे। उसके पहले बाप की श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। श्रीमत से श्रेष्ठ, आसुरी मत से भ्रष्ट बनते हो। यह है आसुरी पतित दुनिया। एक भी पावन नहीं। पावन दुनिया में एक भी पतित नहीं होता है। अभी तो सब पतित हैं। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम, हम सीतायें रावण की जेल में पड़ी हैं। पुकारती हैं हे राम आकर छुड़ाओ, पावन दुनिया में ले चलो। भल गाते हैं परन्तु जानते कुछ भी नहीं। जो आता सो कहते रहते। रावण ने बिल्कुल सुला दिया है। अब बाप आकर जगाते हैं। परमपिता परमात्मा, पतित-पावन जो सृष्टि का रचयिता, उनकी बायोग्राफी को हम जानते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और लक्ष्मी-नारायण की बायोग्राफी को भी हम जानते हैं। लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों को भी हम जानते हैं। तो नॉलेजफुल हो गये ना। तुम कृष्ण के मन्दिर में जायेंगे तो समझेंगे यह सतयुग का पहला प्रिन्स था। अभी अन्तिम 84 वें जन्म में ब्रह्मा हुआ है। यह भी बहुत समझने की बातें हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं - बच्चे खबरदार रहना, कभी किसको दु:ख नहीं देना। बाप तो दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है ना। तुम भी 5 विकारों का दान देते हो। दे दान तो छूटे ग्रहण। ग्रहण लगता है तो फकीर लोग कहते हैं दे दान। अब बाप कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, विकारों का दान दो तो सर्वगुण सम्पन्न बन देवता बन जायेंगे। दु:ख का ग्रहण छूट जायेगा। तुम सुखधाम के मालिक बन जायेंगे, इसलिए 5 विकारों का दान लिया जाता है। यह तो अच्छा है ना। अभी तुम्हारे ऊपर विकारों का ग्रहण लगने से एकदम काले बन पड़े हो। हम तुम्हारे से विकार ही मांगते हैं और कुछ नहीं मांगते। बाप समझाते हैं अब तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है। मैं आत्मा हूँ, परमात्मा को याद करना है। वर्सा उनसे लेना है, इसलिए देही- अभिमानी बनो। देवतायें आत्म-अभिमानी बने हैं। अब मुझ बाप को याद करने से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे। हम रक्षा करेंगे। तुम मुझे याद ही नहीं करेंगे तो रक्षा क्या करेंगे। बाप कितना समझाते हैं यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। वह है भक्ति मार्ग की सामग्री। बाप तो तुम्हें सद्गति में ले जाने के लिए पढ़ाते हैं। मैं इस शरीर द्वारा तुमको समझाता हूँ। यह मेरा शरीर नहीं है। यह तो इनकी पुरानी जुत्ती है, लोन लिया है। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, फिर पावन बनाता हूँ। कितना अच्छी रीति बाप समझाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की श्रीमत पर चलकर सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। पढ़ाई से विश्व की राजाई लेनी है। आत्मा में जो खाद पड़ी है उसे योग अग्नि से निकालना है।
2) आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करना है जितना याद में रहेंगे उतना बाप रक्षा करता रहेगा।
वरदान: सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव
हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं-यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया...सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।
स्लोगन:- योगी और पवित्र जीवन ही सर्व प्राप्तियों का आधार है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 2nd Aug 2017 )
02-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - Tumhe pavitra rehne ka brat lena hai, baki nirjal rakhne, bhuk-hadtaal adi karne ki jaroorat nahi., pavitra bano to Biswa ka mallik ban jayenge.
Q- Is samay duniya me sabse acche kaun hain aur kaise?
A- Is duniya me is samay sabse acche garib hain kyunki garibo ko he Baap aakar milte hain. Sahookar to is gyan ko sunenge he nahi. Baap hai he garib niwaz. Garibo ko he sahookar banate hain.
Dharna ke liye mukhya saar :-
1) Knowledge ko dharan karne ke liye dil badi saaf rakhni hai. Sacchi dil se Baap ki seva me lagna hai. Seva me kabhi bhi thakna nahi hai.
2) Bayeda karna hai mera to ek Shiv baba, dusra na koi. Deha sahit deha ke sab jhoote sambandh chhod ek se sarv sambandh jodne hain. Garibo ka gyan dhan ka daan dena hai.
Vardaan- Controlling power dwara wrong ko right me parivartan karne wale Shrest Purusharthi bhava-
Details-----Shrest Purusharthi wo hai jo second me controlling power dwara wrong ko right me parivartan kar de. Aise nahi byarth ko control to karna chahte hain, samajhte bhi hain yah wrong hai lekin adha ghante tak wohi chalta rahe. Ise kahenge thoda-thoda adhin aur thoda-thoda adhikari. Jab samajhte ho ki yah satya nahi hai, ayathart wa byarth hai, to usi samay break laga dena- yahi Shrest Purusharth hai. Controlling power ka aarth yah nahi ki break lagao yahan aur lage wahan.
Slogan- - Apne swabhav ko saral bana do to samay byarth nahi jayega.
HINDI DETAILS MURALI - 02-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
मीठे बच्चे - तुम्हें पवित्र रहने का व्रत लेना है, बाकी निर्जल रखने, भूख-हड़ताल आदि करने की जरूरत नहीं, पवित्र बनो तो विश्व का मालिक बन जायेंगे”
प्रश्न:- इस समय दुनिया में सबसे अच्छे कौन हैं और कैसे?
उत्तर: इस दुनिया में इस समय सबसे अच्छे गरीब हैं क्योंकि गरीबों को ही बाप आकर मिलते हैं। साहूकार तो इस ज्ञान को सुनेंगे ही नहीं। बाप है ही गरीब निवाज। गरीबों को ही साहूकार बनाते हैं।
गीत:आज के इंसान को....
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। वह दैवी प्यार जिसको ईश्वरीय प्यार कहें। अब ईश्वर प्यार सिखलाते हैं कि कैसे एक दो को प्यार करना चाहिए। भारत में कितना सच्चा प्यार था, जब सचखण्ड था। सचखण्ड किसने बनाया था? सतगुरू, सत बाबा, सत टीचर ने। अभी तुम किसके आगे बैठे हो? सच बाबा अर्थात् जो सच्चा सुख देने वाला है, सच्चा प्यार सिखाने वाला है। सच्चा ज्ञान देते हैं, उनके सम्मुख में बैठे हैं। झूठ खण्ड में तो सब झूठ हैं। गाया भी जाता है कि सत का संग करो। सत तो एक ही है। असत्य अनेक हैं। जो बाप भारत को स्वर्ग बनाते हैं, बेहद का वर्सा देते हैं, तुम उस बेहद बाप के सम्मुख बैठे हो। जो फिर से हमको बेहद की बादशाही देने आये हैं। सत बाबा एक ही है, जिसके संग से तुम विश्व के मालिक बनते हो। भक्ति में पहले-पहले एक ही शिवबाबा की सच्ची-सच्ची भक्ति होती है। उसको ही सच्ची अव्यभिचारी भक्ति कहा जाता है। बाबा बैठ तुम बच्चों को सारे चक्र का ज्ञान सुनाते हैं। पहले-पहले एक शिवबाबा की भक्ति थी जिसको अव्यभिचारी भक्ति कहते थे फिर अभी ज्ञान भी तुमको सच्चा सुनाते हैं। झूठी भक्ति से छुड़ाते हैं। सच्चे बाबा द्वारा तुम ज्ञान सुन रहे हो। तुम जानते हो यह सत का संग हमको स्वर्ग में ले जायेगा। सच्चे ज्ञान से ही बेड़ा पार होता है और जो झूठा ज्ञान सुनाते हैं उससे बेड़ा गर्क होता है। उसको अज्ञान कहा जाता है। सच्चा ज्ञान सिर्फ बाप ही सुनाते हैं। तुम बच्चे सारे चक्र की हिस्ट्री-जॉग्राफी को समझ गये हो। तो यह सच्चा-सच्चा बाबा, सच्चा-सच्चा टीचर है। सतयुग में भी सच्चा बाप कहेंगे क्योंकि वहाँ झूठ होता ही नहीं। ईश्वर को सर्वव्यापी नहीं कहते। झूठ तो तब शुरू होता है जब झूठ बनाने वाले 5 विकार आते हैं। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम बेहद के निराकार बाप के सम्मुख बैठे हैं। यह बाबा भी कहते हैं कि हम उस बाबा के सम्मुख बैठे हैं। उनको याद करता हूँ। घड़ी-घड़ी याद करता हूँ। बाबा का बच्चा हूँ ना। तुमको तो इस साकार को छोड़ उनको याद करना है। हमारे लिए तो एक ही बाबा है। तुम्हारे लिए थोड़ी अटक पड़ती है, मुझे क्यों अटक पड़ेगी। तुम्हारी नजर इस पर जाती है, मेरी नजर किस पर जायेगी? मेरा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन हो गया। तुमको शिवबाबा को याद करना पड़ता है। इस साकार को क्रास करना पड़ता है कि यह याद न पड़े, मेरे लिए तो एक शिवबाबा ही है। तुम्हारे सामने दो बैठे हैं। हमारे सामने तो सिर्फ एक ही है। मैं उनका बच्चा हूँ। फिर भी निरन्तर याद नहीं कर सकता हूँ क्योंकि बाबा कहते हैं - तुम कर्मयोगी हो। तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र फिरता रहत् है। सतयुग त्रेता में इतने जन्म पास किये फिर इतने जन्म लेते-लेते 84 जन्मों का चक्र पूरा किया। हिसाब है ना। अब कलियुग का अन्त आ गया फिर आगे नया चक्र फिरेगा। हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से रिपीट होती है। सतयुग में कौन थे, कहाँ पर राज्य करते थे। यह भी तुम जानते हो कि सारी विश्व पर देवतायें ही राज्य करते थे। अभी तो कहेंगे तुम हमारी हद में नहीं आओ, हमारा पानी न लो। बाबा तो बेहद का मालिक है। बाबा कहते हैं मुझे याद करो। यह बाबा नहीं कहते। इन द्वारा निराकार बाबा तुम आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो तो तुम कभी रोगी वा बीमार नहीं होंगे। यहाँ तो बाप बच्चों को पैदा कर बड़ा करते हैं फिर अचानक अगर वह मर जाते हैं (शरीर छोड़ देते हैं) तो सब कितने दु:खी हो पड़ते हैं। फिर तो शरीर निर्वाह अर्थ खुद ही सर्विस करनी पड़े। यह तो है ही दु:खधाम। बाप तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। बाप और वर्से को याद करो। बच्चा जानता है कि बाप से हमको वर्सा मिलना है तो भी अपना धन्धाधोरी जरूर सीखते हैं। वर्से के लिए बैठ तो नहीं जायेंगे। बाकी सिर्फ जो राजाई में जन्म लेते हैं वह वर्से के लिए बैठते हैं। बहुत दान-पुण्य करने से राजाई घर में जन्म मिलता है। राजाई ही सम्भालनी पड़े। वह राजायें तो पतित हैं। अब तुम्हें पावन राजाओं के पास जन्म लेना है। लक्ष्मी-नारायण के घर में वा सूर्यवंशी की राजाई में जन्म लेना है, वहाँ कोई प्रकार का दु:ख होता नहीं। सभी दु:खों से छूट जाते हो। बाबा आकर धीरज देते हैं। अभी यह अन्तिम जन्म है। तुम्हारी तो जन्मजन्मान्तर से यह हालत होती आई है। बच्चे गिरते ही आये हैं दु:खधाम में, सुखधाम कहाँ से आये। यहाँ तो दु:ख बहुत है, सुख अल्पकाल का है। भल बड़े बड़े आदमी हैं, उन्हों को भी दु:ख ही दु:ख है। इस समय जो गरीब हैं वह सबसे अच्छे हैं। बाबा आये ही हैं गरीबों को साहूकार बनाने। दान भी गरीबों को करना होता है। सब साधारण हैं ना। बाकी जो लखपति हैं, जिनके पास करोड़ों रूपया है, कितना भी उन्हें समझाओ फिर भी अपने धन की कितनी मगरूरी रहती है। बाबा कहते हैं ऐसे को क्या धन देना है। मैं तो हूँ ही गरीब निवाज। ऐसी कन्यायें मातायें ही ज्ञान लेती हैं। कन्या का कितना मान है, सब उसे पूजते हैं फिर शादी करने से पुजारी बन जाती है। हम आधाकल्प पूज्य फिर आधाकल्प पुजारी बने हैं। कन्या तो इस जन्म में ही पुजारी बन जाती है। कितना पावन है, शादी करने से ही पुजारी पतित बन जाती है। पति को परमेश्वर समझ माथा टेकती रहती है। उनके आगे दासी बनकर रहती है। तो बाबा आकर दासीपने से छुड़ाते हैं। बच्चे वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम समझा सकते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे शिवबाबा के पोत्रे हैं। उनकी मिलकियत पर हमारा हक लगता है। उनकी मिलकियत है बेहद की। विश्व का मालिक बनाते हैं। उनका फरमान है बच्चे मामेकम् याद करो तो मैं सत्य कहता हूँ तुम नारी से लक्ष्मी बन जायेंगी। इसमें कोई व्रत नेम करना, भूखा रहना नहीं है। आगे तुम बहुत व्रत-नेम रखते थे। 7 रोज खाना नहीं खाते थे। समझते हैं व्रत नेम रखने से कृष्णपुरी में चले जायेंगे। वास्तव में सच्चा व्रत है पवित्र रहने का। वह तो हठ से भूखे रहते हैं। तुम बच्चों को कुछ भी भूख हड़ताल आदि नहीं करना है। हाँ, तुमको पावन बनने की ही हड़ताल करनी है। हम सबको पावन बनायेंगे। तुम्हारा धन्धा ही यह है। बाकी निर्जल रहना, खाना नहीं खाना इससे कुछ होता नहीं है। तुम सिर्फ पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। माताओं को पति के मरने से बहुत दु:ख होता है। उन्हों को जाकर समझाना चाहिए कि अब पतियों का पति आया हुआ है। वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह तो पतियों का पति, बापों का बाप है। पति मर जाए तो स्त्री को ज्ञान समझाए शिवबाबा से सगाई करानी चाहिए। समझाना है कि तुम रोती क्यों हो, सतयुग में कोई रोते नहीं हैं। यहाँ देखो सब रोते रहते हैं। भारत में सच्चा-सच्चा देवताओं का राज्य था। आज तो एक दो को मारते कूटते रहते हैं। आसुरी राज्य है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। इसमें सारा सेट है। त्रिमूर्ति, लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण भी हैं, यह चित्र भी अगर कोई रोज देखता रहे तो याद रहे कि शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा यह बना रहे हैं। घर में भी छोटे-छोटे बोर्ड बनाकर लिख दो। बेहद के बाप को जानने से तुम 21 जन्मों के लिए स्वराज्य पद पा सकते हो। धीरे-धीरे बहुत मनुष्य बोर्ड देखकर तुम्हारे पास आयेंगे। तुम रूहानी अविनाशी सर्जन हो। रूहानी सर्जरी का कोर्स पास कर रहे हो, बोर्ड लगाना पड़ेगा। बोलो, इस बाप को याद करने से तुमको बेहद की बादशाही मिलेगी। बाबा ने प्रश्न बहुत अच्छे लिखे हैं। बाबा के कितने रूहानी बच्चे हैं? बालब चड़े वाला है ना। इसमें भाई-बहन दोनों आ जाते हैं। बाबा के पास आते हैं तो समझाता हूँ - कितने बी.के. हैं। कितना बचड़े वाला हूँ। बच्चे वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम समझा सकते हो हम भाई-बहन हैं - विकार की दृष्टि जा नहीं सकती है। बाप कहते हैं देह सहित देह का झूठा सम्बन्ध छोड़ मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। तुम अंजाम भी करते आये हो मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। बुढि़याँ भी यह दो अक्षर याद कर लें तो बहुत कल्याण हो सकता है। हमने 84 जन्म लिये हैं। अभी हम ब्राह्मण बने हैं फिर देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। ब्राह्मण जरूर बनना है और बनेंगे भी जरूर कल्प पहले मुआिफक। ढेर के ढेर बनेंगे। अभी ब्राह्मण बच्चे जो विलायत आदि तरफ हैं, वह भी निकल आयेंगे। याद तो करते रहते हैं। बाबा कहते हैं - अपने कुटुम्ब परिवार में रहते अपने को आत्मा समझो। शिवबाबा का पोत्रा अपने को समझो। हम ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। कलियुग में मनुष्य हैं, सतयुग में बनेंगे देवतायें। कलियुग में सब आसुरी मनुष्य हैं। अभी तुम दैवी सम्प्रदाय के बन रहे हो। यह बाप ही बतलाते हैं, दूसरा कोई बतला न सके। इन वर्णों को कोई जानते ही नहीं है। तुम ब्राह्मण ही नॉलेज समझा सकते हो। जब तक कोई तुम बी.के. द्वारा ज्ञान न लेवे तब तक समझ नहीं सकते। तुम ही दे सकते हो, इसमें दिल बड़ी साफ चाहिए, दिल साफ मुराद हांसिल। कोई-कोई की दिल साफ नहीं होती है, सच्ची दिल से सच्चे बाप की सेवा में लग जाना चाहिए। हॉबी होनी चाहिए। हमारा काम है समझाना। यह भी जानते हो 108 से माथा मारेंगे तो कहीं एक की बुद्धि में बैठेगा। एक दो निकल आयेंगे, जो कल्प पहले निकले होंगे। बी.के. बना होगा वही आयेगा। थकना नहीं है। तुम मेहनत करते रहो। कोई न कोई निकल ही पड़ेगा। कहाँ भी जाओ मित्र-सम्बन्धी के पास जाओ, शादी-मुरादी में जाओ - हर एक के कर्मों अनुसार राय दी जाती है। मुख्य है पवित्र रहने की बात। कहाँ बाहर खाना भी पड़ता है। अच्छा बच्चे, शिवबाबा की याद में रहेंगे तो माया का असर नहीं होगा। बाबा सबको छुटटी नहीं देते हैं। लाचारी हालत में देखा जाता है। नहीं तो नौकरी छूट जायेगी। हर एक को अलग-अलग राय दी जाती है। दुनिया बहुत खराब है। कइयों के साथ रहना होता है। एक कहानी भी है। गुरू ने चेले को कहा शेर की गुफा में रहो। वेश्या के पास रहो... परीक्षा लेने भेजा। वास्तव में वह कोई परीक्षा नहीं। यह तुम बच्चों के लिए है। तुमको शेर के पास तो नहीं भेजेंगे। बाप तो समझाते हैं कोई भी हो उन्हों को बाप का परिचय दो। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। झाड़ बढ़ना तो है ना, तब तो विनाश भी शुरू हो इनसे पहले विनाश तो हो न सके। यहाँ तो राजधानी स्थापना हो रही है। बाप तो कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार: 1) नॉलेज को धारण करने के लिए दिल बड़ी साफ रखनी है। सच्ची दिल से बाप की सेवा में लगना है। सेवा में कभी भी थकना नहीं है।
2) वायदा करना है मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। देह सहित देह के सब झूठे सम्बन्ध छोड़ एक से सर्व सम्बन्ध जोड़ने हैं। गरीबों को ज्ञान धन का दान देना है।
वरदान: कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन करने वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी भव
श्रेष्ठ पुरुषार्थी वह हैं जो सेकण्ड में कन्ट्रोंलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन कर दे। ऐसे नहीं व्यर्थ को कन्ट्रोल तो करना चाहते हैं, समझते भी हैं यह रांग हैं लेकिन आधा घण्टे तक वही चलता रहे। इसे कहेंगे थोड़ा-थोड़ा अधीन और थोड़ा-थोड़ा अधिकारी। जब समझते हो कि यह सत्य नहीं है, अयथार्थ वा व्यर्थ है, तो उसी समय ब्रेक लगा देना-यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ है। कन्ट्रोलिंग पावर का अर्थ यह नहीं कि ब्रेक लगाओ यहाँ और लगे वहाँ।
स्लोगन:अपने स्वभाव को सरल बना दो तो समय व्यर्थ नहीं जायेगा।
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Details ( Page:- Murali Dtd 3rd Aug 2017 )
03-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - Tumhe ab light house banna hai, tumhari ek aankh me Muktidham, dusri aankh me jeevan Muktidham hai, tum sabko raasta batate raho.
Q- Abinashi pad ka khaata jama hota rahe, uski biddhi kya hai?
Ans- Sada buddhi me Swadarshan chakra firta rahe. Chalte- firte apna Shantidham aur Sukhdham yaad rahe to ek taraf bikarm binash honge dusre taraf abinashi pad ka khaata bhi jama hota jayega. Baap kehte hain tumhe light house banna hai ek aankh me Shantidham, dusri aankh me Sukhdham rahe.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Baap ka wa padhai ka kadar rakhna hai. Samay prati samay swayang ko refresh karne ki yuktiyan nikaalni hai. Bahuto ke kalyan ke nimitt banna hai.
2) Aapas me gyan ki he baatein karni hai. Krodh ka aansh bhi nikaal dena hai. Koi kadwa sabd bole to suna na suna kar dena hai.
Vardaan Apne chehre aur chalan se roohani royalty ka anubhav karane wale Sampoorn Pavitra bhava
Details------Roohani royalty ka foundation Sampoorn Pavitrata hai. Sampoorn purity he royalty hai. Is roohani royalty ki jhalak pavitra aatma ke swaroop me dikhayi degi. Yah chamak kabhi chhip nahi sakti. Koi kitna bhi swayang ko gupt rakhe lekin unke bol, unka samband-sampark, roohani byabahar ka prabhav unko pratyaksh karega. To har ek knowledge ke darpan me dekho ki mere chehre par, chalan me wo royalty dikhayi deti hai wa sadharan chehra, sadharan chalan hai?
Slogan:-- Sada Parmatm palana ke andar rehna he bhagyavan banna hai.
“मीठे बच्चे - तुम्हें अब लाइट हाउस बनना है, तुम्हारी एक आंख में मुक्तिधाम, दूसरी आंख में जीवन मुक्तिधाम है, तुम सबको रास्ता बताते रहो”
प्रश्न:अविनाशी पद का खाता जमा होता रहे, उसकी विधि क्या है?
उत्तर:सदा बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहे। चलते-फिरते अपना शान्तिधाम और सुखधाम याद रहे तो एक तरफ विकर्म विनाश होंगे दूसरे तरफ अविनाशी पद का खाता भी जमा होता जायेगा। बाप कहते हैं तुमको लाइट हाउस बनना है एक आंख में शान्तिधाम, दूसरी आंख में सुखधाम रहे।
गीत:जाग सजनियां जाग...
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने मीठा-मीठा गीत सुना! अब जो गाने वाले हैं वह तो जरूर कोई फिल्म के होंगे। ज्ञान के बारे में, देवताओं के बारे में वा परमात्मा के बारे में जो कुछ भी गाते हैं वह उल्टा ही गाते हैं। इसको कहा ही जाता है उल्टी दुनिया। अल्लाह बैठ समझाते हैं तुम तो माया की फाँसी पर लटके हुए थे। माया ने सब बच्चों को उल्लू बना दिया है। उनको उल्टा लटका दिया है। बाप आकर बच्चों को सुल्टा बनाते हैं। गीत कितना अच्छा है। यह कौन कहते हैं जाग सजनियां..... और तो कोई कह न सके - सारी दुनिया की सजनियों के लिए, जाग सजनियां अब नवयुग आया। दुनिया में कोई ऐसा मनुष्य नहीं होगा जो यह जानता हो। माया ऐसी है जो कितना भी समझाओ तो भी समझते नहीं हैं। तुम बच्चे जानते हो अब नया युग, नये देवताओं की बादशाही स्थापना हो रही है। यह भी समझते हो कलियुग के बाद जरूर सतयुग आना है। तो इससे सिद्ध होता है कि भगवान को भक्तों के पास आना ही है। भगत चाहते भी हैं भगवान से मिलें। तो समझना चाहिए कि भगवान बरोबर आयेगा। आधाकल्प भगत तड़फते हैं तो कुछ तो देंगे ना। भगत जानते हैं भगवान जीवनमुक्ति देते हैं। वह पतित-पावन ही सबको पावन बनायेंगे। तुम बच्चे जान गये हो सब आत्मायें पावन कब बनती हैं। सतयुग में तुम पावन रहते हो। बाकी सब आत्मायें निर्वाणधाम में रहती हैं। तुम पावन युग में आते हो, निर्वाणधाम को युग नहीं कहेंगे। वह तो इन युगों से पार है। ऐसी-ऐसी बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं। बरोबर हम परमधाम में रहते हैं। युग यहाँ होते हैं सतयुग त्रेता... यह नाम ही यहाँ के हैं। विनाश भी गाया हुआ है। त्रिमूर्ति भी दिखाते हैं। वो लोग त्रिमूर्ति के नीचे लिखते हैं - सत्य मेव जयते... यह रूहानी गवर्मेन्ट है ना। नान-वायोलेन्स शक्ति सेना भी गाया हुआ है। परन्तु सिर्फ नाम मात्र। तो तुम्हारा भी कोट आफ आर्मस होना चाहिए। तुम ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के नीचे लिख सकते हो सत्य मेव जयते। बच्चों की बुद्धि में आना चाहिए कि हम पाण्डव गवर्मेन्ट के बच्चे हैं। प्रजा अपने को बच्चा ही समझती है। तो यह बुद्धि में आना चाहिए कि कैसे कोट आफ आर्मस बनायें। यह है ही ब्लाइन्ड फेथ की दुनिया, जो देखते रहेंगे, सबको भगवान कहते रहेंगे। तो अन्धश्रद्धा हुई ना। कण कण में भगवान कह देते हैं। वास्तव में जो भी मनुष्य मात्र हैं सबका पार्ट अलग- अलग है। आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती है। ऐसे थोड़ेही कह देंगे कि सब भगवान ही भगवान हैं। तो क्या भगवान ही लड़ते झगड़ते रहते हैं। यह तो है 100 परसेन्ट अन्धश्रद्धा। नया मकान बनता है तो कहेंगे 100 परसेन्ट नया। पुराने को कहेंगे 100 परसेन्ट पुराना। नया भी भारत था, अब तो पुरानी दुनिया है। कितने अनेक धर्म हैं। रात-दिन का फर्क है ना। जरूर सतयुग में सुख ही सुख था, देवतायें राज्य करते थे। अभी तो इस पुरानी दुनिया में दु:ख ही दु:ख है। अभी कितना दु:ख होता है सो तुम आगे चल देखेंगे। गाया हुआ है मिरूआ मौत मलूका... उन्हों ने सिर्फ लिख दिया है - समझते कुछ भी नहीं। मनुष्यों को मारने में किसको तरस थोड़ेही आता है। ऐसे ही कोई कुछ कर दे तो पुलिस केस कर दे। यह देखो कितने बाम्ब्स आदि बनाकर एक दो को मारते रहते हैं, रोज लिखते रहते हैं फलाने-फलाने स्थान पर इतने मरे। उन्हों पर केस करें, यह किसकी बुद्धि में भी नहीं है। अभी तुम जानते हो, यह है पुरानी पाप की दुनिया। सतयुग है नई दुनिया। सतयुग त्रेता में कोई किसको दु:ख नहीं देते। नाम ही है स्वर्ग, हेविन, बहिश्त... हिस्ट्री में भी पढ़ते हैं। वहाँ तो अथाह धन था - जो मन्दिरों से भी लूटकर ले गये हैं। तो जिन्होंने मन्दिर बनाये होंगे वह कितने धनवान होंगे। सोने की द्वारिका दिखाते हैं ना। कहते हैं समुद्र के नीचे चली गई। यह तो तुम समझते हो - ड्रामा का चक्र कैसे फिरता है। सतयुग नीचे हो कलियुग ऊपर आ जाता है। यह चक्र फिरता है। चक्र का ज्ञान भी तुमको है। चक्र भी बहुत लोग बनाते हैं। परन्तु आयु का किसको पता नहीं है। रीयल चक्र तो कोई बता न सके। तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है इसलिए कहा जाता है - स्वदर्शन चक्र फिराते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यह है ज्ञान की बात। तुम जानते हो हम स्वदर्शन चक्र फिराते रहते हैं, इससे हमारे विकर्म विनाश होते जायेंगे और दूसरे तरफ अविनाशी पद का खाता जमा होता जायेगा। फिर भी कहते हैं कि हम स्वदर्शन चक्र घुमाना भूल जाते हैं। बाप कहते हैं तुमको लाइट हाउस बनना है, लाइट हाउस रास्ता दिखाते हैं ना। तुम्हारी एक आंख में शान्तिधाम और एक आंख में सुखधाम है। दु:खधाम में तो बैठे हो। तुम लाइट हाउस हो ना। तुम्हारा मन्त्र ही है मनमनाभव, मध्याजी भव, शान्तिधाम और सुखधाम। औरों को भी रास्ता बताते हो। यह चक्र फिराते रहते हो। चलते-फिरते यही बुद्धि में रहे - शान्तिधाम और सुखधाम। ऐसी अवस्था में बैठे-बैठे किसको साक्षात्कार हो सकता है। कोई सामने आते ही साक्षात्कार कर सकते हैं। हमारा काम ही है यहाँ। वहाँ तो कुछ है नहीं। तो तुम बच्चों को अब यह प्रैक्टिस करनी है, हम रास्ता बताने वाले लाइट हाउस हैं और अभी खड़े हैं दु:खधाम में। यह तो सहज है ना। लाइट हाउस वा स्वदर्शन चक्र बात तो एक ही है। परन्तु इसमें (चक्र में) डिटेल आता है। उसमें सिर्फ दो बातें हैं सुखधाम और शान्तिधाम। अल्फ - मुक्तिधाम। बे - जीवनमुक्तिधाम। कितना सहज है। जहाँ से हम आत्मायें आती हैं वह है शान्तिधाम। साइंस को जानने वाले या नेचर को मानने वाले इन बातों को नहीं समझेंगे। बाकी देवताओं को मानने वाले समझेंगे। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाना तो बहुत अच्छा है। देखो, यह सुखधाम सतयुग के मालिक थे ना। अभी तो है कलियुग। थे तो वह भी मनुष्य। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। कब गीता सुनी है? लक्ष्मी-नारायण के वा राधे कृष्ण के मन्दिर में जो आते हैं, वह गीता भी सुनते होंगे। जिनका कृष्ण में प्यार होगा उनका गीता में भी प्यार होगा। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाने वाले होंगे तो उन्हों को गीता इतनी ख्याल में नहीं आयेगी। लक्ष्मी-नारायण के लिए समझते हैं वह तो वैकुण्ठ में थे। अभी तो नर्क है। बाप आते ही हैं नर्क में, आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो और सुखधाम-शान्तिधाम को याद व्रो तो बेड़ा पार हो जायेगा। पहले तो जरूर घर जाना है। अच्छा कोई श्रीकृष्ण को मानने वाला है, बोलो कृष्ण तो सतयुग में था ना। नई दुनिया को याद करो। इस पुरानी दुनिया से नाता तोड़ो। पवित्र भी जरूर बनना है। वहाँ कोई अपवित्र होता नहीं। किसी भी प्रकार की युक्तियां रचनी चाहिए। बच्चे लिखते हैं सर्विस कम है, ठण्डाई है। बाप कहते हैं ठण्डाई बच्चों की है, सेवा तो बहुत हो सकती है। मन्दिर कितने ढेर हैं। बाप कहते हैं मेरे भक्तों को ज्ञान दो। तुम भी भगत थे ना। अब श्रीकृष्णपुरी का मालिक बनते हो। कृष्णपुरी वैकुण्ठ को याद करेंगे, वैकुण्ठ रामराज्य को नहीं कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण के राज्य को ही वैकुण्ठ कहेंगे। तुम जब समझायेंगे तो कहेंगे बात तो ठीक है। तुम्हारे इन चित्रों में बड़ा ज्ञान भरा हुआ है। जो ध्यान से इन चित्रों को देखेगा तो झट नमस्कार करेगा। तुमको नहीं करेगा। वास्तव में नमस्कार करना चाहिए तुमको क्योंकि तुम ही ऐसा बनने वाले हो इसलिए ब्राह्मण कुल उत्तम है। तुम मेहनत कर ऐसा देवता बनते हो। पहले हैं ईश्वरीय सन्तान। गायन भी इस समय का है। मनुष्य अक्लमंद होते तो लक्ष्मी-नारायण का बर्थ डे मनाते। उन्हों को पता ही नहीं है, सिर्फ लक्ष्मी से जाकर धन मांगते हैं। अरे उन्हों की जन्मपत्री को तो जानो। वह कब आये थे, उनको यह भी पता नहीं। विष्णु को 4 भुजा दिखाते हैं अर्थात् लक्ष्मी-नारायण का कम्बाइन्ड रूप है। लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं परन्तु उनकी जीवन कहानी को तो जानते नहीं। वह कहाँ के मालिक हैं। सूक्ष्मवतन के मालिक तो नहीं हैं, उनको विष्णुपुरी नहीं कहा जायेगा। सूक्ष्मवतन में पुरी है नहीं। लक्ष्मीनारा यण के राज्य को पुरी कहेंगे फिर राम सीता की पुरी, बाकी राधे कृष्ण का कुछ दिखाते नहीं हैं। द्वापर में तो इस्लामी, बौद्धी आदि आते हैं। तो तुम बच्चों को डीटेल में समझाना पड़े। स्वर्ग को भी याद करते हैं। कोई बड़ा आदमी मरता है तो कहेंगे वैकुण्ठ गया। तो जरूर नर्क में था तब तो स्वर्ग में गया। इस समय सब नर्कवासी पतित हैं। नशा कितना रहता है! दिखाते हैं हम करोड़पति हैं। परन्तु हैं तो सब नर्कवासी। नर्कवासी, स्वर्गवासियों को माथा टेकते हैं। तुम बच्चे ही यथार्थ समझा सकते हो। तुम भी जानी-जाननहार के बच्चे हो। तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र डिटेल में फिरता रहता है। घर में जाने से, सम्बन्धियों का मुँह देखने से सब कुछ भूल जाता है, इसलिए कॉलेज के साथ-साथ हॉस्टल रहती है। तुम्हारा यहाँ हॉस्टल भी है। यहाँ तुम पढ़ाई में रहते हो, बुद्धि और गोरखधन्धे में जायेगी नहीं। स्टूडेन्ट के साथ ज्ञान की बातें होती हैं। हॉस्टल में रहने से बहुत फर्क रहता है। बाप के पास तो जल्दी-जल्दी रिफ्रेश होने के लिए आने चाहिए। ऐसे मत समझो दक्षिणा देनी पड़ेगी। ऐसे को हम मूर्ख समझते हैं। बाबा तो दाता है। देने का ख्याल कभी नहीं करना है। यहाँ सर्विसएबुल बच्चों को ही रिफ्रेश होना है। तुम बच्चे आते हो बाबा के पास। ऐसे नहीं, कोई साधू महात्मा के पास आते हो, दक्षिणा देनी है, कभी ऐसे ख्याल नहीं करना। बच्चियां आती हैं उन्हों के पास पैसे हैं क्या? उनको सब कुछ सर्विस स्थान से मिलता है। जिनको अपना भाग्य बनाना होता है वह अपना पुरूषार्थ करते हैं। बाकी तो सब हैं बहाने, नौकरी है, यह है, छुट्टी मिल सकती है। कोई भी कारण बताए छुट्टी ले सकते हैं। यह कोई झूठ थोड़ेही है। इन जैसा सच तो कोई है नहीं। परन्तु बाप का इतना कदर नहीं हैं। कितना भारी खजाना मिलता है। बाबा तो कोई दूर नहीं है। कहाँ भी रहते हो, अपनी उन्नति के लिए रिफ्रेश होने आ जाना है। रिफ्रेश होने से बहुतों का कल्याण कर सकते हो। तुमको तो सर्विस करनी है। यह है बुद्धियोग बल। वह है बाहुबल। यहाँ हथियार आदि कुछ नहीं हैं। किसी को दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता दिखाना है। सतयुग और कलियुग में रात-दिन का फर्क है। आधाकल्प लग जाता है रावण राज्य को। तुम बच्चे सुखधाम की स्थापना करने वाले हो। कभी कोई कडुवा शब्द नहीं बोलना चाहिए। सुना न सुना कर देना चाहिए। सुनते हैं तो फिर बोलने भी लग पड़ते हैं। क्रोध का अंश भी बहुत नुकसान कर देता है। किसको क्रोध करना यह भी दु:ख देना है। बाप कहते हैं दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे, बहुत सजायें खानी पड़ेंगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार: 1) बाप का व पढ़ाई का कदर रखना है। समय प्रति समय स्वयं को रिफ्रेश करने की युक्तियां निकालनी है। बहुतों के कल्याण के निमित्त बनना है।
2) आपस में ज्ञान की ही बातें करनी हैं। क्रोध का अंश भी निकाल देना है। कोई कडुवा शब्द बोले तो सुना न सुना कर देना है।
वरदान: अपने चेहरे और चलन से रूहानी रॉयल्टी का अनुभव कराने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
रूहानी रॉयल्टी का फाउण्डेशन सम्पूर्ण पवित्रता है। सम्पूर्ण प्योरिटी ही रॉयल्टी है। इस रूहानी रॉयल्टी की झलक पवित्र आत्मा के स्वरूप से दिखाई देगी। यह चमक कभी छिप नहीं सकती। कोई कितना भी स्वयं को गुप्त रखे लेकिन उनके बोल, उनका संबंध-सम्पर्क, रूहानी व्यवहार का प्रभाव उनको प्रत्यक्ष करेगा। तो हर एक नॉलेज के दर्पण में देखा कि मेरे चेहरे पर, चलन में वह रॉयल्टी दिखाई देती है वा साधारण चेहरा, साधारण चलन है?
स्लोगन: सदा परमात्म पालना के अन्दर रहना ही भाग्यवान बनना है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 4th Aug 2017 )
04-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - Tum is behad leela roopi natak ko jaante ho, tum ho hero part dhari tumhe Baap ne aakar abhi jagrut kiya hai.
Q- Baap ka farmaan kaun sa hai? Jise palan karne se bikaro ki pidha se bach sakte hain?
Ans- Baap ka farmaan hai - pehle 7 roz bhatti me baitho. Tum baccho ke paas jab koi aatma 5 bikaro se pidhit aati hai to usey bolo ki 7 roz ka time chahiye. Kam se kam 7 roz do to tumhe hum samjayen ki 5 bikaro ki bimari kaise door ho sakti hai. Jasti prashna-uttar karne walo ko tum bol sakte ho ki pehle 7 roz ka course karo.
Dharna ke liye mukhya saar:=
1) Kisi bhi baat me sansay nahi uthana hai. Drama ko sakshi ho dekhna hai. Kabhi bhi apna register kharab nahi karna hai.
2) Karmathit abastha tak pahunchne ke liye yaad me rehne ka poora purusharth karna hai. Sachche dil se Baap ko yaad karna hai. Apni sthiti ka temperature apne ap dekhna hai.
Vardaan- Sampannta ke aadhar par santoosta ka anubhav karne wale sada Trupt Aatma bhava
Details--Jo sada bharpoor wa sampann rehte hain, way Trupt hote hain. Chahe koi kitna bhi asantoost karne ki paristhitiyan unke agey laaye lekin sampann, Trupt Aatma asantoost karne wale ko bhi santoost ka goon sahayog ke roop me degi. Aisi Aatma he rahamdil ban subh bhavana aur subh kamana dwara unko bhi parivartan karne ka prayatna karegi. Roohani royal aatma ka yahi shrest karm hai.
Slogan- Yaad aur seva ka double lock lagao to maya aa nahi sakti.
HINDI MURALI DETAILS - 04-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम इस बेहद लीला रूपी नाटक को जानते हो, तुम हो हीरो पार्टधारी तुम्हें बाप ने आकर अभी जागृत किया है”
प्रश्न:बाप का फरमान कौन सा है? जिसे पालन करने से विकारों की पीड़ा से बच सकते हैं?
उत्तर:बाप का फरमान है - पहले 7 रोज भठ्ठी में बैठो। तुम बच्चों के पास जब कोई आत्मा 5 विकारों से पीडित आती है तो उसे बोलो कि 7 रोज का टाइम चाहिए। कम से कम 7 रोज दो तो तुम्हें हम समझायें कि 5 विकारों की बीमारी कैसे दूर हो सकती है। जास्ती प्रश्न-उत्तर करने वालों को तुम बोल सकते हो कि पहले 7 रोज का कोर्स करो।
गीत:ओम् नमो शिवाए....
ओम् शान्ति।
बच्चों ने बाप की महिमा सुनी। यह जो बेहद की लीला रूपी नाटक है, उनकी लीला के आदि मध्य अन्त को तुम बच्चे जानते हो। वो लोग समझते हैं कि ईश्वर की माया अपरमअपार है। अब तुम्हारी बुद्धि में जागृति आई है और तुम सारी बेहद की लीला को जान चुके हो। परन्तु यथार्थ रीति जैसे बाप समझा रहे हैं ऐसे बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ही समझा सकते हैं। मनुष्य उन एक्टर्स को देखने के लिए उनके पिछाड़ी भागते हैं। तुम समझते हो यह बेहद का ड्रामा है, जो दुनिया के मनुष्य नहीं जानते। गाया जाता है मनुष्य कुम्भकरण की आसुरी नींद में सोये पड़े हैं। अब रोशनी मिली है तब तुम जागे हो। यह भी कहेंगे हम तुम सब सोये पड़े थे। अभी तुमको पुरूषार्थ करना है। वह तो कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। वह अपने से ऐसी-ऐसी बातें कर न सकें। अपने से तुमको बातें करनी हैं। हम आत्मायें बाप से मिली हैं, बाप ने कितना जागृत किया है। यह बेहद की लीला है। उसमें मुख्य एक्टर्स, डायरेक्टर, क्रियेटर कौन हैं, वह जानते हैं इसलिए तुम पूछते हो इस नाटक में कौन-कौन मुख्य एक्टर हैं। शास्त्रों में लिख दिया है कौरव सेना में कौन बड़े हैं, पाण्डव सेना में कौन बड़े हैं। यहाँ फिर है बेहद की बात। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन के आदि मध्य अन्त को जानना है। ब्रह्मा और विष्णु का पार्ट यहाँ चलता है। विष्णु का रूप है एम-आब्जेक्ट। यह पद पाना है। गाते भी हैं ब्रह्मा देवता नम:... फिर कहते हैं शिव परमात्माए नम:, उनको निराकार ही कहते हैं। परमपिता परमात्मा कहते हैं तो बाप हुआ ना! सिर्फ परमात्मा कह देने से पिता अक्षर नहीं आता तो सर्वव्यापी कह देते हैं इसलिए मनुष्यों को कुछ समझ में नहीं आता, जैसे तुम भी नहीं समझते थे। बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं, यह किसको पता नहीं है। तुम बच्चे अभी कितने समझदार बन गये हो। आदि से लेकर अन्त तक तुम सब कुछ जान गये हो। ड्रामा देखने जो पहले जायेंगे तो जरूर आदि मध्य अन्त सारा देखेंगे और बुद्धि में रहेगा हमने यह-यह देखा है। फिर भी चाहना हो देखने की तो देख सकते हैं। वह तो हुआ हद का नाटक। तुम तो बेहद के नाटक को जान गये हो। सतयुग में प्रालब्ध जाकर पायेंगे। फिर यह नाटक भूल जायेगा। फिर समय पर यह ज्ञान मिलेगा। तो यह भी समझने की बातें हैं। कोई भी बात में प्रश्न-उत्तर करने की दरकार नहीं रहती। 7 रोज भठ्ठी के लिए कहा जाता है। परन्तु 7 रोज बैठना भी बड़ा मुश्किल है। सुनने से ही घबरा जाते हैं। समझाया जाता है - यह क्यों कहा जाता है? क्योंकि आधाकल्प से तुम रोगी बने हो। 5 विकारों रूपी भूत लगे हुए हैं, अब उनसे तुम पीडित हो। तुमको युक्ति बतलायेंगे कि कैसे इस पीड़ा से छूट सकते हो। बाप को याद करना है, जिससे तुम्हारी पीड़ा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी। बाप का फरमान है कि 7 रोज भठ्ठी में बैठना है। गीता भागवत का पाठ रखते हैं तो भी 7 रोज बिठाते हैं। यह भठ्ठी है। सब तो नहीं बैठ सकते। कोई कहाँ, कोई कहाँ हैं। आगे चलकर बहुत वृद्धि को पायेंगे। यह सब है रूद्र ज्ञान यज्ञ की शाखायें। जैसे बाप के बहुत नाम रखे हैं, वैसे इस रूद्र ज्ञान यज्ञ के भी बहुत नाम रख दिये हैं। रूद्र कहा जाता है परमपिता परमात्मा को, सो तुम जानते हो। राजस्व अश्वमेध अर्थात् यह रथ इस यज्ञ में स्वाहा करना है। बाकी जाकर आत्मायें रहती हैं। सबके शरीर स्वाहा होने हैं। होलिका होती है ना। विनाश के समय सबके शरीर इस यज्ञ में स्वाहा होंगे। सबके शरीरों की आहुति पड़नी है। परन्तु तुम बाप से पहले वर्सा लेते हो। जाना तो सभी को है। रावण का बहुत बड़ा परिवार है। तुम्हारा है सिर्फ दैवी परिवार छोटा। आसुरी परिवार तो कितना बड़ा है। वह कोई देवता बनने वाले नहीं हैं। जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं वह निकल आयेंगे। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख द्वारा मुख वंशावली रचते हैं। बाबा ने समझाया है पहले हमेशा स्त्री को एडाप्ट करते हैं, फिर रचना रचते हैं। वह तो है - कुख वंशावली। यह सारी रचना है मुख वंशावली। तुम उत्तम ठहरे क्योंकि तुम श्रेष्ठाचारी बनते हो। तुमको सिर्फ बाप को ही याद करना है क्योंकि ब्राह्मणों को बाप के पास ही जाना है। तुम जानते हो वापिस घर जाकर फिर सतयुग में आकर पार्ट बजाना है सुख का। बहुत लोग समझते भी हैं फिर भी 7 रोज देते नहीं हैं। तो समझा जाता है यह अपने घराने का अनन्य नहीं है। अनन्य होंगे तो उनको बड़ा अच्छा लगेगा। कई 5-8- 15 दिन भी रह जाते हैं। फिर संग न मिलने कारण गुम हो जाते हैं। विनाश नजदीक आयेगा तो सबको यहाँ आना ही है। राजधानी स्थापना होनी ही है। नम्बरवार जैसे कल्प पहले पुरूषार्थ किया है वह अभी भी करेंगे। तुम्हारी बुद्धि में है हम बाप से वर्सा ले रहे हैं पुरूषार्थ अनुसार। जितना हम याद करेंगे कर्मातीत बनेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। पहले-पहले सृष्टि सतोप्रधान थी। अब तो तमोप्रधान है। भारत को ही प्राचीन कहते हैं। तुम जानते हो हम सो देवता थे फिर 84 जन्म पास किये। अब फिर बाप के पास आये हैं वर्सा लेने। बाप आये हैं पावन बनाने। पतित बनाता है रावण। हम बेहद के मुख्य आलराउन्ड पार्टधारी हैं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी... चक्र लगाकर अब सूर्यवंशी से फिर ब्राह्मण वर्ण में आये हैं। ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना। ब्राह्मण हैं चोटी। ब्राह्मण चोटी रखवाते हैं। देवता धर्म भी बड़ा है। यह तो बुद्धि में है ना। हम बेहद ड्रामा में आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हैं। यह वर्ण भारत के लिए ही गाये गये हैं। अक्सर करके विष्णु को ही दिखाते हैं। उसमें शिवबाबा और ब्राह्मणों की चोटी उड़ा दी है। वह दिखाते नहीं हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में 84 जन्मों का राज बैठा हुआ है। तुम कितने जन्म लेते हो, दूसरे धर्म वाले कितने जन्म लेते हैं। एक जैसे जन्म तो नहीं ले सकते। पीछे आने वालों के जन्म कम हो जायेंगे। पहले-पहले आने वालों के ही 84 जन्म कहेंगे। सब थोड़ेही सूर्यवंशी में आयेंगे। यह भी हिसाब है, इनको डिटेल कहा जाता है। बहुत बच्चे भूल जाते हैं। स्कूल में भी फर्स्ट, सेकेण्ड ग्रेड तो रहती है ना। पहली-पहली नजर टीचर की फर्स्ट ग्रेड वालों की तरफ ही जायेगी। तो तुम्हारी बुद्धि में सारी रोशनी है। बाकी एक-एक की डिटेल में तो जा नहीं सकते। मुख्य धर्मों का समझाया जाता है। सारे ड्रामा की लीला को बुद्धि में रखते हुए फिर भी तुम समझते हो कि हमको अब वापिस लौटना है। जब हम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे तब ही गोल्डन एज के लायक बनेंगे। बाप को याद करने से हमारी आत्मा पवित्र बन जायेगी, फिर चोला भी पवित्र मिलेगा। बाप को याद करते-करते हम गोल्डन एज में चले जायेंगे। अपना टैम्प्रेचर देखना होता है, जितना ऊंच जायेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। नीचे उतरने से खुशी का पारा भी नीचे उतर जाता है। सतोप्रधान से नीचे उतरते-उतरते अब बिल्कुल ही तमोप्रधान बन पड़े हो। अब बाप समझा रहे हैं फिर भी माया घड़ी-घड़ी भुला देती है। यह है माया से युद्ध। माया के वश बहुत हो जाते हैं। बाप कहते हैं सच्ची दिल पर साहेब राजी होगा। कितनी अबलायें बाप की याद में सच्ची दिल से रहती हैं। प्रतिज्ञा की हुई है कि हम विकार में कभी नहीं जायेंगे। विघ्न तो बहुत पड़ते हैं। प्रदर्शनी आदि में कितना विघ्न डालते हैं। बड़े फखुर से आते हैं, इसलिए सम्भाल भी बहुत करनी है। मनुष्यों की वृत्ति बहुत खराब रहती है। पंचायती राज्य है ना। फिर सतयुग में होते हैं 100 परसेन्ट रिलीजस, राइटियस, लॉ फुल, सालवेंट, डीटी गवर्मेन्ट। तो तुम बच्चों को बड़ी मेहनत करनी है, चित्र भी बहुत बनते रहते हैं। इतना बड़ा चित्र हो जो मनुष्य दूर से ही पढ़ सकें। यह बहुत समझने और समझाने की बात है, जिससे मनुष्य समझें कि बरोबर हम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी बने हैं, फिर पावन बनना है। ड्रामा का राज भी समझाना है। यह चक्र कैसे फिरता है, कितना समय लगता है। हम ही विश्व के मालिक थे, आज तो एकदम कंगाल बन पड़े हैं। रात-दिन का फर्क है। यह भी अपने विकर्मों का फल है जो भोगना पड़ता है। अब बाप कर्मातीत अवस्था बनाने आये हैं। भारत क्या था, अब क्या है। अब इस युद्ध में सारी दुनिया स्वाहा होनी है। यह भी तुम बच्चे जानते हो। बाप कहते हैं खूब पुरूषार्थ कर महाराजा महारानी बनकर दिखाओ। चित्रों पर बहुत अच्छी रीति समझाना है। बुद्धि में यही याद रहे कि हम कितना ऊंच थे फिर कितना नीचे गिरे हैं। गिरे हुए तो बहुत तुम्हारे पास आयेंगे। गणिकाओं, अहिल्याओं को भी उठाना है। उन्हों को जब तुम उठाओ तब ही तुम्हारा नाम बाला होगा। अब तक किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। देहली से आवाज निकलना चाहिए, वहाँ झट नाम होगा। परन्तु अजुन देरी दिखाई देती है। अबलाओं, गणिकाओं को बाप कितना ऊंच आकर उठाते हैं। तुम ऐसे-ऐसे का जब उद्धार करेंगे तब नाम बाला होगा। बाबा कहते हैं ना - अभी तक आत्मा अजुन रजो तक आई है, अभी सतो तक आना है। बाबा तो कहते हैं कुछ करके दिखाओ। तुम बच्चों को तो बहुत सर्विस करनी है। परन्तु चलते-चलते कोई न कोई ग्रहचारी बैठ जाती है। कमाई में ग्रहचारी होती है ना। माया बिल्ली बेहोश कर देती है। गुलबकावली का खेल है ना। बच्चे तो खुद समझ सकते हैं कि बापदादा के दिल पर कौन चढ़ सकते हैं। संशय की कोई बात नहीं। कई प्रश्न पूछते हैं - यह कैसे हो सकता है? अरे तुम साक्षी होकर देखो। ड्रामा में जो नूँध है सो पार्ट चलना है। ड्रामा के पट्टे से गिर पड़ते हैं। जिनको समझ में आता है वह नहीं गिरते हैं। तुम क्यों गिरते हो, ड्रामा में जो नूँध है वही होता है ना। भारत में हजारों को साक्षात्कार होता है। यह क्या है? इतनी आत्मायें निकलकर आती हैं क्या? यह सब ड्रामा का खेल समझने का है, इसमें संशय की बात नहीं हो सकती। कितने संशय में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। अपना ही खाना खराब करते हैं। कोई भी हालत में संशयबुद्धि नहीं बनना है। बाप को पहचाना फिर बाप में संशय आ सकता है क्या? बच्चे जानते हैं हम पतित-पावन बाप के पास जाते हैं, पावन बनकर। तो गाया हुआ है - पतित-पावन को आना है और पतितों को पावन बनाना है। जो बनेंगे वही पवित्र दुनिया में चलेंगे और अमर बनेंगे। बाकी जो पवित्र नहीं बनेंगे वह अमर नहीं होंगे। तुम अमर दुनिया के मालिक बनते हो। बाप कितना ऊंच वर्सा देते हैं। पवित्र ऐसा बनते हैं जो फिर 21 जन्म पवित्र रहते हैं। सन्यासी तो फिर भी विकार से जन्म लेते हैं। अमरपुरी के लायक नहीं बनते हैं। अमरपुरी का लायक बाबा बनाते हैं। यह अमरकथा पार्वतियों को अमरनाथ बाबा शिव ही सुना रहे हैं। बच्चे आये हैं बेहद बाबा के पास, वर्सा तो लेना ही है ना। यहाँ सागर के पास आते ही हो रिफ्रेश होने के लिए। फिर जाकर आप समान बनाना है। तो बच्चों का भी यही धन्धा हुआ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निङ। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है। ड्रामा को साक्षी हो देखना है। कभी भी अपना रजिस्टर खराब नहीं करना है।
2) कर्मातीत अवस्था तक पहुँचने के लिए याद में रहने का पूरा पुरूषार्थ करना है। सच्चे दिल से बाप को याद करना है। अपनी स्थिति का टैम्प्रेचर अपने आप देखना है।
वरदान: सम्पन्नता के आधार पर सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा तृप्त आत्मा भव
जो सदा भरपूर वा सम्पन्न रहते हैं, वे तृप्त होते हैं। चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी। ऐसी आत्मा ही रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेगी। रूहानी रॉयल आत्मा का यही श्रेष्ठ कर्म है।
स्लोगन:याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ तो माया आ नहीं सकती।
OM SHNATI
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Details ( Page:- Murali Dtd 5th Aug 2017 )
05-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - Baap tumhe behad ka samachar sunate hain, tum abhi Swadarshan Chakradhari bane ho, tumhe 84 janmo ki smruti me rehna hai aur sabko yah smruti dilani hai.
Q- Shiv baba ka pehla baccha Brahma ko kahenge, Vishnu ko nahi - kyun?
A- Kyunki Shiv baba Brahma dwara Brahman sampradaye rachte hain. Agar Vishnu ko baccha kahe to unse bhi sampradaye paida honi chahiye. Parantu unse koi sampradaye hoti nahi. Vishnu ko koi Mamma Baba bhi nahi kahenge. Wo jab Lakshmi-Narayan ke roop me Maharaja Maharani hai, to unko apna baccha he Mamma Baba kehte. Brahma se to Brahman sampradaye paida hote hain.
Dharna le kiye mukhya saar-
1) Oonchi kamayi karne ke liye buddhi ka yog aur sabse tod ek Baap se jodna hai. Sachche Baap ko yaad kar Sachkhand ka mallik banna hai.
2) Jaise Brahma Baap gyan ko dharan kar sampoorn bante hain aise he Baap samaan sampoorn banna hai.
Vardaan- Roohaniyat dwara briti, dhristi, bol aur karm ko royal banane wale Brahma baap samaan bhava.
Details---Brahma baap ke bol, chal, chehre aur chalan me jo royalty dekhi - usme follow karo. Jaise Brahma baap ne kabhi chotti chotti baaton me apni buddhi wa samay nahi diya. Unke mukh se kabhi sadharan bol nahi nikle, har bol yuktiyukt arthat byarth bhav se pare avyakt bhav aur bhavana wale rahe. Unki briti har aatma prati sada subh bhavana, subh kamana wali rahi, dhristi se sabko farishte roop me dekha. Karm se sada sukh diya aur sukh liya. Aise follow karo tab kahenge Brahma baap samaan.
slogan- Mehnat ke bajaye mohabbat ke jhoole me jhoolne he shrest bhagyavan ki nishaani hai.
HINDI MURALI DETAILS 05-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें बेहद का समाचार सुनाते हैं, तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हो, तुम्हें 84 जन्मों की स्मृति में रहना है और सबको यह स्मृति दिलानी है”
प्रश्न:शिवबाबा का पहला बच्चा ब्रह्मा को कहेंगे, विष्णु को नहीं - क्यों?
उत्तर:क्योंकि शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण सम्प्रदाय रचते हैं। अगर विष्णु को बच्चा कहें तो उनसे भी सम्प्रदाय पैदा होनी चाहिए। परन्तु उनसे कोई सम्प्रदाय होती नहीं। विष्णु को कोई मम्मा बाबा भी नहीं कहेंगे। वह जब लक्ष्मी-नारायण के रूप में महाराजा महारानी हैं, तो उनको अपना बच्चा ही मम्मा बाबा कहते। ब्रह्मा से तो ब्राह्मण सम्प्रदाय पैदा होते हैं।
गीत:तुम्हीं हो माता पिता...
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं कि कोई गुरू गोसाई ऐसे नहीं कह सकते कि बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। बाप बच्चों को क्या समझायेंगे? कौनसा बाप है? यह तो सिर्फ तुम जानते हो और कोई सतसंग में ऐसे कह नहीं सकते। भल बाबा सांई, मेहर बाबा कहते हैं परन्तु वो लोग तो कुछ भी समझते नहीं, जो बोलें। तुम जानते हो यह बेहद का बाप है, बेहद का समाचार सुनाते हैं। एक होता है हद का समाचार, दूसरा होता है बेहद का समाचार। इस दुनिया में कोई जानते ही नहीं। बाप कहते हैं तुमको बेहद का समाचार सुनाते हैं तो तुमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान बुद्धि में आ जाता है। तुम जानते हो बरोबर बाप ने अपना परिचय दिया है और सृष्टि चक्र कैसे फिरता है वह भी यथार्थ रीति समझाया है। उसे समझकर हम औरों को समझाते हैं। बीज को परमपिता परमात्मा वा बाप कहते हैं, हम हैं उनके बच्चे आत्मायें। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम आत्मायें परमात्मा की सन्तान हैं। परमपिता परमात्मा परमधाम में रहने वाले हैं। उन्होंने मूलवतन का समाचार समझाया है। कैसे यह सारी माला बनती है। पहले-पहले बाप समझाते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ और मैं परमधाम में रहता हूँ। मुझे ही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल कहते हैं। मैं आकर तुम आत्माओं को पवित्रता सुख शान्ति का वर्सा देता हूँ। बच्चों की बुद्धि में यह फिरता रहता है। हम असुल में कहाँ के रहने वाले हैं। हम सभी आत्माओं को भी पार्ट बजाना है। पार्ट का राज कोई भी समझ नहीं सकते हैं, सिर्फ कहते रहते हैं। पुनर्जन्म लेंगे। आत्मा इतने जन्म लेती है। कोई 84 लाख जन्म कहते। कोई को समझाओ तो समझ जाते हैं कि 84 जन्म ठीक हैं। 84 जन्म कैसे लेते हैं - यह बुद्धि में होना चाहिए। बरोबर हम सतोप्रधान थे फिर सतो, रजो, तमो में आये हैं। अब फिर संगम पर हम सतोप्रधान बन रहे हैं। यह जरूर तुम बच्चों की बुद्धि में होगा तब तो तुमको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है। यह बातें तो बड़ी सहज हैं जो बुढि़या भी समझा सकती हैं कि बरोबर हमने 84 जन्म लिए हैं और कोई धर्म वाले मनुष्य नहीं लेते। यह भी समझाना होता है - अभी हम ब्राह्मण हैं फिर देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र बनते हैं। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा। यह अभी तुम्हारी बुद्धि में है। ऐसे हम पुनर्जन्म लेते हैं। पुर्नजन्म को तो जरूर मानना पड़े। अब तुमको अपने 84 जन्मों के पार्ट की स्मृति आई है। बुढि़यों के लिए भी य्ह समझानी बहुत सहज है। तुमको कोई किताब आदि पढ़ने की दरकार नहीं रहती। बाप ने समझाया है कि तुम 84 जन्म कैसे लेते हो। तुम ही देवी-देवता थे फिर 8 जन्म सतयुग में, 12 जन्म त्रेता में, 63 जन्म द्वापर-कलियुग में लिए और यह एक जन्म है सबसे ऊंच। तो सहज समझते हो ना। कुरूक्षेत्र की बुढ़ी मातायें भी समझती हो ना! कुरूक्षेत्र का नाम मशहूर है। वास्तव में यह सारा कर्मक्षेत्र है। वह कुरूक्षेत्र तो एक गांव है, यह सारा कर्म करने का क्षेत्र है, इसमें अभी लड़ाई आदि लगी नहीं है। तुम इस सारे कुरूक्षेत्र को जानते हो। बैठना तो एक जगह होता है। बाबा ने बतलाया है-इस सारे कर्मक्षेत्र पर रावण का राज्य है। रावण को जलाते भी यहाँ हैं। रावण का जन्म भी यहाँ होता है। यहाँ ही शिवबाबा का जन्म होता है। यहाँ ही देवी देवतायें थे। फिर वही पहले-पहले वाम मार्ग में जाते हैं। बाबा भी यहाँ भारत में ही आते हैं। भारत की बड़ी महिमा है। बाप भी भारत में ही बैठ समझाते हैं। बच्चे तुम 5 हजार वर्ष पहले आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे, राज्य करते थे। उनमें पहले नम्बर लक्ष्मी-नारायण विश्व पर राज्य करते थे। उसको 5 हजार वर्ष हुए। उनको विश्व महाराजन, विश्व महारानी कहा जाता था। वहाँ कोई दूसरा धर्म तो है नहीं। तो जो भी राजायें होंगे वो विश्व के महाराजन ही कहलायेंगे फिर यह फलाने गांव का, यह फलाने गांव का.. कहा जाता है। तुम जानते हो हम विश्व का राज्य लेते हैं। बाप ने समझाया है - तुम जमुना के किनारे राज्य करते हो। तो बुद्धि में यह याद रखना है कि 4 युग और 4 वर्ण हैं। पांचवा यह लीप युग है, जिसको कोई जानते नहीं। मुख्य है ब्राह्मण धर्म। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण। ब्रह्मा कब आया? जरूर जब बाप सृष्टि रचेंगे तो पहले ब्राह्मण चाहिए। यह है डायरेक्ट ब्रह्मा की मुख वंशावली। ब्रह्मा है शिवबाबा का पहला बच्चा। क्या विष्णु को भी बच्चा कहेंगे? नहीं। अगर बच्चा हो तो उनसे भी सम्प्रदाय पैदा हो। परन्तु उनसे तो सम्प्रदाय पैदा होती ही नहीं। न उनको मम्मा बाबा कहेंगे। वह तो महाराजा महारानी को अपना ही एक बच्चा होता है। यह कर्मभूमि है। परमपिता परमात्मा को भी आकर कर्म करना पड़ता है, नहीं तो क्या आकर करते, जो इतनी महिमा होती है। तुम देखते हो शिव जयन्ती भी गाई हुई है। भल शिव पुराण लिखा है परन्तु उसमें कोई बात समझ में नहीं आती। मुख्य है ही गीता। तुम अच्छी रीति समझ गये हो कि कैसे शिवबाबा आते हैं। ब्रह्मा भी जरूर चाहिए। अब ब्रह्मा कहाँ से आया? सूक्ष्मवतन में तो सम्पूर्ण ब्रह्मा है। इस बात में ही लोग अटकते हैं। ब्रह्मा का कर्तव्य क्या है? सूक्ष्मवतन में रह क्या करते होंगे? बाप समझाते हैं जब यह व्यक्त रूप में हैं तो इन द्वारा ज्ञान देता हूँ। फिर यही ज्ञान लेते-लेते फरिश्ता बन जाते हैं। वह है सम्पूर्ण रूप। वैसे मम्मा का भी है, तुम्हारा भी ऐसे ही सम्पूर्ण रूप बन जाता है। बूढ़ी-बूढ़ी मातायें सिर्फ इतना धारण करें कि हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, यह भी समझाया जाता है कि बाबा कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाने भेज देते हैं। मुख से कुछ बोलते नहीं हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। ड्रामा अनुसार हर एक को अपने-अपने समय पर आना है। तो बाप बैठ समझाते हैं कि सृष्टि के आदि में पहले-पहले कौन थे फिर अन्त में कौन थे। अन्त में सारी सम्प्रदाय जड़जड़ी भूत अवस्था को पाई हुई है। बाकी ऐसे नहीं कि प्रलय हो जाती है फिर श्रीकृष्ण अंगूठा चूसता हुआ आता है। बाप ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं नई सम्प्रदाय की। परमपिता परमात्मा इस दैवी सृष्टि की रचना कैसे करते हैं यह तो तुम जानते हो। वह तो कृष्ण को समझ बैठे हैं। तुम जानते हो बाप ही पतित-पावन है। अन्त में ही आयेंगे पावन बनाने। जो कल्प पहले पावन बने थे, वही आयेंगे। आकर ब्रह्मा के मुख वंशावली बनेंगे और पुरूषार्थ कर शिवबाबा से अपना वर्सा लेंगे। रचयिता नॉलेजफुल वह है ना! वर्सा बाप से ही मिल सकता है। दादा को भी उनसे मिलता है। उनकी ही महिमा गाई जाती है। त्वमेव माताश्च पिता... बरोबर सच्चा सुख देने वाला वह है। यह भी तुम जानते हो। दुनिया नहीं जानती। जब रावण राज्य शुरू होता है तब ही दु:ख शुरू होता है। रावण बेसमझ बना देते हैं। बालक में जब तक विकारों की प्रवेशता नहीं है तो उनको महात्मा समान कहते हैं। जब बालिग होता है तब लौकिक सम्बन्धी उनको दु:ख का रास्ता बतलाते हैं। पहला रास्ता बतलाते हैं कि तुमको शादी करनी है। लक्ष्मी-नारायण और राम सीता ने क्या शादी नहीं की है? परन्तु उन्हों को पता ही नहीं कि उन्हों का पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। यह अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है। वह तो पवित्र स्वर्ग के मालिक थे। हम तो पतित नर्क के मालिक हैं। यह ख्याल बुद्धि में आता नहीं है। तुम भारत की महिमा सुनाते हो - क्या यह भूल गये हो भारत स्वर्ग था, आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, पवित्र थे। तब तो अपवित्र उनके आगे जाकर माथा टेकते हैं। पतित-पावन बाप ही पावन दुनिया की स्थापना करते हैं। बरोबर पावन भारत था अभी तो मुख से कहते हैं हम पतित हैं। कोई लड़ाई आदि होगी तो यज्ञ रचेंगे शान्ति के लिए। मन्त्र भी ऐसे जपते हैं। परन्तु शान्ति का अर्थ समझते नहीं हैं। है भी बड़ा सहज। गॉड फादर कहते हैं तो बच्चे ठहरे ना। वह हम सबका बाप है तो ब्रदर्स ठहरे ना! बरोबर हम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली बहन भाइर् ठहरे। सतयुग में तो मुख वंशावली होती नहीं। सिर्फ संगम पर ही मुख वंशावली होने से बहन-भाई कहलाते हो। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर साधारण वृद्ध तन में प्रवेश करता हूँ जिसका नाम फिर ब्रह्मा रखता हूँ। जो फिर ज्ञान को धारण करके अव्यक्त सम्पूर्ण ब्रह्मा बनते हैं। है वही, दूसरी बात नहीं है। ब्राह्मण फिर वही देवता बनते हैं, चक्र लगाकर अन्त में आकर शूद्र बनते हैं फिर ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचते हैं। बुढि़यों के ऊपर भी ब्राह्मणियों को मेहनत करनी है। हमने 84 जन्म पूरे किये हैं, यह तो समझ सकते हैं ना। बाबा कहते हैं मुझे याद करो। इस योग अग्नि से ही विकर्म विनाश होंगे। सभी आत्माओं को कहते हैं मामेकम् याद करो। शिवबाबा कहते हैं लक्की सितारों! हे सालिग्रामों! तुम आत्माओं की बुद्धि में यह ज्ञान डालते हैं। आत्मा सुनती है, परमात्मा बाप सुनाते हैं ब्रह्मा मुख द्वारा। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, तो जरूर मनुष्य ही होगा और बूढ़ा भी होगा। ब्रह्मा को भी हमेशा बूढ़ा दिखाते हैं। कृष्ण को छोटा समझते हैं, ब्रह्मा को कभी छोटा बच्चा नहीं कहेंगे। उनका छोटा रूप बनाते नहीं हैं। जैसे लक्ष्मी-नारायण का छोटा रूप नहीं दिखाते, वैसे ब्रह्मा का भी नहीं दिखाते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं वृद्ध तन में आता हूँ। तो तुम बच्चों को भी यही मन्त्र सुनाते रहना है। शिवबाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। शिव को, ब्रह्मा को बाबा कहते हैं, शंकर को कभी बाबा नहीं कहते। वह तो शिव-शंकर को मिला देते हैं। तो यह भी बुद्धि में बिठाना है। आत्माओं का बाप अब परमपिता परमात्मा आये हैं। तो ऐसी-ऐसी सहज बातें बुढि़यों को समझानी चाहिए। बाबा प्रश्न पूछते हैं कि आगे तुमको क्या बनाया था, तो इतना तो कहें कि स्वदर्शन चक्रधारी बने थे। बाप को और चक्र को याद करने से तुम रूहानी विलायत में चले जायेंगे। वह फॉरेन तो दूरदेश है ना। हम आत्मायें सब दूरदेश में रहने वाली हैं। हमारा घर देखो कहाँ है, सूर्य चांद से भी पार। जहाँ कोई गम नहीं है। अभी तुम आत्माओं को घर की याद आई है। हम वहाँ अशरीरी रहते थे, शरीर नहीं था। यह खुशी होनी चाहिए। अभी हम अपने घर जाते हैं। बाप का घर सो अपना घर। बाबा ने कहा है - मुझे याद करो और अपने मुक्तिधाम को याद करो। साइंस घमण्डी तो परमात्मा को बिल्कुल नहीं जानते हैं। बाप को तरस पड़ता है कि उन्हों के कानों में भी कुछ पड़ता रहे तो शिवबाबा को याद करें। देह-अभिमान टूट जाए, नर से नारायण बनने की यह सत्य कथा है। सच्चे बाप को याद करो तो सचखण्ड के मालिक बन जायेंगे। सच्चा बाबा ही स्वर्ग स्थापना करते हैं। कहते हैं और संग बुद्धियोग तोड़ो। सरकारी नौकरी 8 घण्टा करते हो उनसे भी यह बहुत ऊंची कमाई है। कहाँ भी जाओ, बुद्धि से यह याद करते रहना है। तुम कर्मयोगी हो। कितना सहज समझाते हैं। बुढि़यों को देखकर मैं बहुत खुश होता हूँ क्योंकि फिर भी हमारी हमजिन्स हैं। मैं मालिक बनूँ, हमजिन्स न बनें तो यह भी ठीक नहीं। बाप है अविनाशी ज्ञान सर्जन। ज्ञान इन्जेक्शन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश। तुम्हारा अज्ञान दूर हो गया है। बुद्धि में ज्ञान आ गया है। सब कुछ जान गये हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ऊंची कमाई करने के लिए बुद्धि का योग और सबसे तोड़ एक बाप से जोड़ना है। सच्चे बाप को याद कर सचखण्ड का मालिक बनना है।
2) जैसे ब्रह्मा बाप ज्ञान को धारण कर सम्पूर्ण बनते हैं ऐसे ही बाप समान सम्पूर्ण बनना है।
वरदान:रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाने वाले ब्रह्मा बाप समान भव
ब्रह्मा बाप के बोल, चाल, चेहरे और चलन में जो रायल्टी देखी - उसमें फालो करो। जैसे ब्रह्मा बाप ने कभी छोटी-छोटी बातों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं दिया। उनके मुख से कभी साधारण बोल नहीं निकले, हर बोल युक्तियुक्त अर्थात् व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव और भावना वाले रहे। उनकी वृत्ति हर आत्मा प्रति सदा शुभ भावना, शुभ कामना वाली रही, दृष्टि से सबको फरिश्ते रूप में देखा। कर्म से सदा सुख दिया और सुख लिया। ऐसे फालो करो तब कहेंगे ब्रह्मा बाप समान।
स्लोगन:मेहनत के बजाए मुहब्बत के झूले में झूलना ही श्रेष्ठ भाग्यवान की निशानी है।
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Details ( Page:- Murali Dtd 6th Aug 2017 )
06-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:02-05-82 मधुबन
"The basis of creating a special life story is to have a constantly flying stage."
Vishesh Jeevan kahani banana ka adhar – sada chadhti kala.
VARDAN – Poorani sansar aur sanskar ki akarshan se jeeteji marnewale yatharth marjeeva bhav.
Slogan – Sabse Lucky who hai jo yaad aur seva mei sada busy rahe.
HINDI DETAILS MURALI - 06-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:02-05-82 मधुबन
विशेष जीवन कहानी बनाने का आधार - सदा चढ़ती कला
बापदादा हरेक बच्चे की जीवन कहानी देख रहे हैं। हरेक की जीवन कहानी में क्या-क्या तकदीर की रेखायें रही हैं। सदा एकरस उन्नति की ओर जाते रहे हैं वा उतराई और चढ़ाई में चल रहे हैं! ऐसे दोनों प्रकार की लकीर अर्थात् जीवन की लीला दिखाई दी। जब चढ़ाई के बाद किसी भी कारणवश चढ़ती कला के बजाए उतरती कला में आते हैं तो उतरने का प्रभाव भी अपनी तरफ खींचता है। जैसे बहुतकाल की चढ़ती कला का प्रभाव बहुतकाल की प्राप्ति कराता है। सहज योगी जीवन वाले, सदा बाप के समीप और साथ की अनुभूति करते हैं। सदा स्वयं को सर्व शक्तियों में मास्टर समझने से सहज स्मृति स्वरूप हो जाते हैं। कोई भी परिस्थितयाँ वा परीक्षायें आते हुए सदा अपने को विघ्न-विनाशक अनुभव करते हैं। तो जैसे बहुतकाल की चढ़ती कला का, बहुतकाल ऐसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करते हैं ऐसे चढ़ती कला के बाद फिर उतरती कला होने से स्वत: और सहज यह अनुभव नहीं होते। लेकिन विशेष अटेन्शन, विशेष मेहनत करने के बाद यह सब अनुभव करते हैं। सदा चढ़ती कला अर्थात् सदा सर्व प्राप्ति को पाई हुई मूर्ति। और चढ़ने के बाद उतरने और फिर चढ़ने वाले गँवाई हुई वस्तु को फिर पाने वाले, ऐसे उतरने-चढ़ने वाली आत्मायें अनुभव करती हैं कि पाया था लेकिन खो गया। और पाने के अनुभवी होने के कारण फिर से उसी अवस्था को पाने के बिना रह भी नहीं सकते, इसलिए विशेष अटेन्शन देने से फिर से अनुभव को पा लेते हैं लेकिन सदाकाल और सहज की लिस्ट के बजाए दूसरे नम्बर की लिस्ट में आ जाते हैं। पास विद आनर नहीं लेकिन पास होने वालों की लिस्ट में आ जाते हैं। तीसरे नम्बर की तो बात स्वयं ही सोच सकते हो कि उसकी जीवन कहानी क्या होगी। तीसरा नम्बर तो बनना ही नहीं है ना? अपनी जीवन कहानी को सदा उन्नति की ओर बढ़ने वाली सर्व विशेषताओं सम्पन्न, सदा प्राप्ति स्वरूप ऐसा श्रेष्ठ बनाओ। अभी-अभी ऊपर, अभी-अभी नीचे वा कुछ समय ऊपर कुछ समय नीचे ऐसे उतरने-चढ़ने के खेल में सदा का अधिकार छोड़ नहीं देना। आज बापदादा सभी की जीवन कहानी देख रहे थे। तो सदा चढ़ती कला वाले कितने होंगे और कौन होंगे? अपने को तो जान सकते हो ना कि मैं किस लिस्ट में हूँ! उतरने की परिस्थितियाँ, परीक्षायें तो सबके सामने आती हैं, बिना परीक्षा के तो कोई भी पास नहीं हो सकता लेकिन 1. परीक्षा में साक्षी और साथीपन के स्मृति स्वरूप द्वारा फुल पास होना वा पास होना वा मजबूरी से पास होना इसमें अन्तर हो जाता है। 2. बड़ी परीक्षा को छोटा समझना वा छोटी-सी बात को बड़ा समझना इसमें अन्तर हो जाता है। 3. कोई छोटी-सी बात को ज्यादा सिमरण, वर्णन और वातावरण में फैलाए इससे भी छोटे को बड़ा कर देते हैं। और कोई फिर बड़ी को भी चेक किया तो साथ-साथ चेन्ज किया और सदा के लिए कमजोर बात को फुल स्टाप लगा देते हैं! फुल स्टाप लगाना अर्थात् फिर से भविष्य के लिए फुल स्टाक जमा करना। आगे के लिए फुल पास के अधिकारी बनना। तो ऐसे बहुतकाल की चढ़ती कला के तकदीरवान बन जाते हैं। तो समझा जीवन कहानी की विशेषता क्या रखनी है! इससे सदा आपकी विशेष जीवन कहानी हो जायेगी! जैसे कोई की जीवन कहानी विशेष प्रेरणा दिलाती है, उत्साह बढ़ाती है, हिम्मत बढ़ाती है, जीवन के रास्ते को स्पष्ट अनुभव कराती है, ऐसे आप हर विशेष आत्मा की जीवन कहानी अर्थात् जीवन का हर कर्म अनेक आत्माओं को ऐसे अनुभव करावे। सबके मुख से, मन से यही आवाज निकले कि जब निमित्त आत्मा यह कर सकती है तो हम भी करें। हम भी आगे बढ़ेंगे। हम भी सभी को आगे बढ़ायेंगे, ऐसी प्रेरणा योग्य विशेष जीवन कहानी सदा बनाओ। समझा - क्या करना है? अच्छा। आज तो डबल विदेशियों के मिलने का दिन है। एक तरफ है विदेशियों का और दूसरे तरफ है फिर बहुत नजदीक वालों (मधुबन निवासियों) का। दोनों का विशेष मिलन है। बाकी तो सब गैलरी में देखने के लिए आये हैं इसलिए बापदादा ने आये हुए सब बच्चों का रिगार्ड रख मुरली भी चलाई। अच्छा। सदा मिलन-जीवन के सार को जीवन में लाने वाले, विशेष इशारों को अपने जीवन का सदाकाल का वरदान समझ, वरदानी मूर्त बनने वाले, सुनना अर्थात् बनना, मिलना अर्थात् समान बनना - इसी स्लोगन को सदा स्मृति स्वरूप में लाने वाले, स्नेह का रिटर्न सदा निर्विघ्न बनाने का सहयोग देने वाले, सदा अनुभवी मूर्त बन सर्व में अनुभवों की विशेषता भरने वाले, ऐसे सदा बाप समान सम्पन्न, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। दीदी जी के साथ: सभी बाप की निमित्त बनी हुई भुजायें अपना-अपना कार्य यथार्थ रूप में कर रहीं हैं? यह सभी भुजायें हैं ना? तो सभी राइटहैण्ड हैं वा कोई लेफ्ट हैण्ड भी हैं? जो स्वयं को ब्राह्मण कहलाते हैं, ऐसे ब्राह्मण कहलाने वाले सब राइट हैण्ड हैं या ब्राह्मणों में ही कोई लेफ्ट हैण्ड हैं, कोई राइट हैण्ड हैं? (ब्राह्मण कभी राइट हैण्ड बन जाते कभी लेफ्ट हैण्ड) तो भुजायें भी बदली होती हैं क्या। वैसे तो रावण के शीश दिखाते हैं - अभी-अभी उड़ा, अभी-अभी आ गया। लेकिन ब्राह्मणों में भी ब्रह्मा की भुजायें बदली होती रहती हैं क्या? ऐसे तो फिर रोज भुजायें बदलती होंगी? वास्तव में ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते तो सब हैं लेकिन अन्दर में वह स्वयं महसूस करते हैं कि हम प्रत्यक्षफल खाने वाले नहीं हैं, मेहनत का फल खाने वाले हैं। यह भी अन्तर है ना। कोई प्रत्यक्षफल खाने वाले हैं और कोई मेहनत का फल खाने वाले हैं। बहुत मेहनत की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ दृढ़ संकल्प और श्रीमत - इसी आधार पर हर संकल्प और कर्म करते चलो तो मेहनत की कोई बात ही नहीं। इन दोनों ही आधार पर न चलने के कारण जैसे गाड़ी पटरी से उतर जाती है फिर बहुत मुश्किल होता है। अगर गाड़ी पटरी पर चल रही है तो कोई मेहनत नहीं, इंजन चला रहा है, वह चल रही है। तो इन दोनों आधार में से, चाहे दृढ़ संकल्प, चाहे श्रीमत पर चलें, बहुत अटेन्शन रखें लेकिन दृढ़ संकल्प की कमजोरी हो तो इसकी रिजल्ट क्या होगी? मेहनत का फल खायेंगे। ऐसे मेहनत का फल खाने वाले भी क्षत्रिय की लाइन में आ गये। जब भी उनसे कोई बात पूछो तो मेहनत या मुश्किल की बात ही सुनायेंगे। जैसे सुनाया था एक बात को निकालते तो दूसरी आ जाती, चूहे को निकालो तो बिल्ली आ जाती, बिल्ली को निकालते तो कुत्ता आता.... ऐसे निकालने में ही लगे रहते हैं। तीन धर्म साथ-साथ स्थापना हो रहे हैं ना, ब्राह्मण, देवता और क्षत्रिय। तो तीनों ही प्रकार के दिखाई देंगे ना। कईयों का तो जन्म ही बहुत मेहनत से हुआ है। और कइयों ने बचपन से ही मेहनत करना आरम्भ किया है। यह भी भिन्न-भिन्न प्रकार तकदीर की लकीरें हैं। कोई से पूछेंगे तो कहेंगे हमने शुरू से कोई मेहनत नहीं की। श्रीमत पर चलना है, योगी बनना है यह स्वत: लक्ष्य स्वरूप हो गया। ऐसे नहीं अलबेले होंगे लेकिन स्वत: स्वरूप बन करके चलते हैं। अलबेले भी मेहनत नहीं महसूस करते हैं लेकिन वह है उल्टी बात। उसका फिर भविष्य नहीं बनता है। बाप समान प्राप्ति का अनुभव नहीं करते हैं। बाकी जन्म से अलबेले बस खाया, पिया और अपनी पवित्र जीवन बिताई, नियम-प्रमाण चलने वाले लेकिन धारणा को जीवन में लाने वाले नहीं। उनका भी यहाँ नेमीनाथ के रूप में गायन होता है। तो कई सिर्फ नेमीनाथ भी हैं। योग में, क्लास में आयेंगे सबसे पहले। लेकिन पाया क्या? कहेंगे हाँ सुन लिया। आगे बढ़ना-बढ़ाना वह लक्ष्य नहीं होगा। सुन लिया मजा आ गया, ठीक है। आया, गया, चला, खाया - ऐसे को कहेंगे नेमीनाथ। फिर भी ऐसों की भी पूजा होती है। इतना तो करते हैं कि नियम प्रमाण चल रहे हैं। उसका भी फल पूज्य बन जाते हैं। बरसात में अनन्य नहीं आयेंगे लेकिन वह जरूर आयेंगे। फिर भी पवित्र रहते हैं इसलिए पूज्य जरूर बन जाते हैं। ऐसे भी तो चाहिए ना। दस वर्ष भी हो जायेंगे - तो भी अगर उनसे कोई बात पूछो तो पहले दिन का जो उत्तर होगा वही 10 वर्ष के बाद भी देंगे। अच्छा। अभी बापदादा वतन में बहुत चिटचैट करते हैं। दोनों स्वतंत्र आत्मायें हैं। सेवा तो सेकण्ड में किया, सर्व को अनुभव कराया फिर आपस में क्या करेंगे? रूहरिहान करते रहते हैं। ब्रह्मा बाप की यही जन्म के पहले दिन की आशा थी। कौनसी? सदा यह फखुर और नशा रहा कि मैं भी बाप समान जरूर बनूँगा। आदि के ब्रह्मा के बोल याद हैं? आ रहा हूँ, समा रहा हूँ, यही सदा नशे के बोल जन्म के संकल्प और वाणी में रहे। तो यही आदि के बोल अब कार्य समाप्त कर जो लक्ष्य रखा है उसी लक्ष्य रूप में समा गये। पहले अर्थ मालूम नहीं था लेकिन बनी हुई भावी पहले से बोल रही थी। और लास्ट में क्या देखा? बाप समान व्यक्त के बन्धन को कैसे छोड़ा! सांप के समान पुरानी खाल छोड़ दी ना! और कितने में खेल हुआ? घडियों का ही खेल हुआ ना। इसको कहा जाता है बाप समान व्यक्त भाव को भी सहज छोड़ नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। यह संकल्प भी उठा - मैं जा रहा हूँ, क्या हो रहा है! बच्चे सामने हैं लेकिन देखते भी नहीं देखा। सिर्फ लाइट माइट, समानता की दृष्टि देते उड़ता पंछी उड़ गया। ऐसे ही अनुभव किया ना! कितनी सहज उड़ान हुई, जो देखने वाले देखते रहे और उड़ने वाला उड़ गया। इसको कहा जाता है आदि में यही बोल और अन्त में वह स्वरूप हो गया। ऐसे ही फालो फादर। अच्छा। डबल विदेशियों के साथ: सभी स्नेही और सहयोगी आत्मायें हो ना! स्नेह के कारण बाप को पहचाना और सहयोगी आत्मा हो गये। तो स्नेही और सहयोगी हो, सेवा का उमंग-उत्साह सदा रहता है लेकिन बाकी क्या रह गया? स्नेही-सहयोगी के साथ सदा शक्ति स्वरूप। शक्तिशाली आत्मा सदा विघ्न-विनाशक होगी और जो विघ्न-विनाशक होंगे वह स्वत: ही बाप के दिलतख्तनशीन होंगे। तख्त से नीचे लाने वाला है ही माया का कोई-न-कोई विघ्न। तो जब माया ही नहीं आयेगी तो फिर सदा तख्तनशीन रहेंगे। उसके लिए सदा अपने को कम्बाइन्ड समझो। हर कर्म में भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से साथ का अनुभव करो। तो सदा साथ में रहेंगे, सदा शक्तिशाली भी रहेंगे और सदा अपने को रमणीक भी अनुभव करेंगे। किसी भी प्रकार का अकेलापन नहीं महसूस करेंगे क्योंकि भिन्न-भिन्न सम्बन्ध में साथ रहने वाले सदा रमणीक और खुशी का अनुभव करते हैं। वैसे भी जब सदा एक ही बात होती है, एक ही बात रोज-रोज सुनो वा करो तो दिल उदास हो जाती है। तो यहाँ भी बाप के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का अनुभव करने से सदा उमंग-उत्साह बना रहेगा। सिर्फ बाप है, मैं बच्चा हूँ - यह नहीं, भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का अनुभव करो। तो जैसे मधुबन में आने से ही अपने को मनोरंजन में अनुभव करते हो और साथ का अनुभव करते हो, ऐसे ही अनुभव करेंगे कि पता नहीं दिन से रात, रात से दिन कैसे हुआ। वैसे भी विदेशी लोग चेन्ज पसन्द करते हैं। तो यहाँ भी एक द्वारा भिन्न-भिन्न अनुभव करने का बहुत अच्छा चांस है।
(पार्टियों से) महावीर की विशेषता - सदा एक बाप दूसरा न कोई सदा अपने को महावीर समझते हो? महावीर की विशेषता - एक राम के सिवाए और कोई याद नहीं! तो स्दा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा महावीर। सदा विजय का तिलक लगा हुआ हो। जब एक बाप दूसरा न कोई तो अविनाशी तिलक रहेगा। संसार ही बाप बन गया। संसार में व्यक्ति और वस्तु ही होती, तो सर्व सम्बन्ध बाप से, तो व्यक्ति आ गये और वस्तु, वह भी सर्व प्राप्ति बाप से हो गई। सुख-शान्ति-ज्ञान-आनन्द-प्रेम.. सर्व प्राप्तियाँ हो गई। जब कुछ रहा ही नहीं तो बुद्धि और कहाँ जायेगी, कैसे? अच्छा।
वरदान:पुराने संसार और संस्कारों की आकर्षण से जीते जी मरने वाले यथार्थ मरजीवा भव
यथार्थ जीते जी मरना अर्थात् सदा के लिए पुराने संसार वा पुराने संस्कारों से संकल्प और स्वप्न में भी मरना। मरना माना परिवर्तन होना। उन्हें कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती। वह कभी नहीं कह सकते कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया... कई बच्चे जीते जी मरकर फिर जिंदा हो जाते हैं। रावण का एक सिर खत्म करते तो दूसरा आ जाता, लेकिन फाउन्डेशन को ही खत्म कर दो तो रूप बदल करके माया वार नहीं करेगी।
स्लोगन:सबसे लकी वो हैं जो याद और सेवा में सदा बिजी रहते हैं।
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Details ( Page:- Murali Dtd 7th Aug 2017 )
07-08-17
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
Mithe bacche - ghadi-ghadi dehi-abhimaani banne ki practice karo - main aatma hun, ek sarir chhod dusra leti hun, ab mujhe ghar jana hai.
Q- Sabse mukhya tyohar kaun sa hai aur kyun?
A- Sabse mukhya tyohar hai raksha bandhan kyunki Baap jab pavitrata ki rakhi bandhte hain to Bharat swarg ban jata hai. Raksha bandhan par tum bacche sabko samjha sakte ho ki yah tyohar manana kab se suru hua aur kyun? Satyug me is bandhan ki darkaar he nahi. Lekin wo kehe dete hain yah raksha bandhan to parampara se chalta aaya hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Authority ke saath-saath bahut respect se baat karni hai. Sabko patit se pawan banane ki yukti batani hai.
2) Ek abyavichari yaad me rehna hai, kisi bhi deha dhari ke name roop ko yaad nahi karna hai. Pawan banne ki he pratigyan Baap se karni hai.
Vardaan :- Busy rehne ke sahaj purusharth dwara Nirantar yogi, Nirantar sevadhari bhava
Details----Brahman janm hai he sada seva ke liye. Jitna seva me busy rahenge utna sahaj he mayajeet banenge isiliye zara bhi buddhi ko furshat mile to seva ne joot jao. Seva ke sivaye samay nahi gawaon. Chahe sankalp se seva karo, chahe vani se, chahe karm se. Apne sampark aur chalan dwara bhi seva kar sakte ho. Seva me busy rehna he sahaj purusharth hai. Busy rahenge to yudh se choot Nirantar yogi Nirantar sevadhari ban jayenge.
Slogan- Aatma ko sada tandroost rakhna hai to khushi ki khurak khaate raho.
HINDI DETAILS MURALI - 07-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - घड़ी-घड़ी देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो - मैं आत्मा हूँ, एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ, अब मुझे घर जाना है”
प्रश्न:सबसे मुख्य त्योहार कौन सा है और क्यों?
उत्तर:सबसे मुख्य त्योहार है रक्षाबंधन क्योंकि बाप जब पवित्रता की राखी बांधते हैं तो भारत स्वर्ग बन जाता है। रक्षाबंधन पर तुम बच्चे सबको समझा सकते हो कि यह त्योहार मनाना कब से शुरू हुआ और क्यों? सतयुग में इस बन्धन की दरकार ही नहीं। लेकिन वह कह देते हैं यह रक्षाबन्धन तो परम्परा से चलता आया है।
गीत: जय जय अम्बे माँ...
ओम् शान्ति।
यह भी भक्ति मार्ग का गीत है। भक्तिमार्ग में अनेक प्रकार का गायन होता है। गायन निराकार, आकार और साकार तीनों का होता है। अब बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चे तो समझ गये कि हम आत्मा हैं। हमको समझाने वाला है परमपिता परमात्मा। सर्व मनुष्य मात्र को सद्गति देने वाला एक ही है। फिर उनके साथ जो सर्विस करने वाले हैं, उन्हों की भी महिमा गाते हैं। बाप तो कहते हैं मामेकम् याद करो। आत्मा समझती है अभी परमपिता परमात्मा हमको सम्मुख नॉलेज देते हैं। उस बाप की ही अव्यभिचारी याद रहनी चाहिए और कोई नाम रूप की याद नहीं आनी चाहिए। आत्मा तो सब हैं। बाकी शरीर मिलने से शरीर के नाम बदलते जाते हैं। आत्मा पर कोई नाम नहीं। शरीर पर ही नाम पड़ता है। बाप कहते हैं मैं भी आत्मा हूँ। परन्तु परम आत्मा यानी परमात्मा हूँ। मेरा नाम तो है ना। मैं हूँ आत्मा। मैं शरीर कभी धारण करता नहीं हूँ, इसलिए मेरा नाम रखा गया है शिव और सभी के शरीर के नाम पड़ते हैं, मेरा तो शरीर नहीं है। नाम तो चाहिए ना। नहीं तो मैं भी आत्मा तो फिर परमात्मा कौन है। मैं हूँ परम आत्मा, मेरा नाम है शिव। जो भी पूजा करते हैं, लिंग की करते हैं। लिंग पत्थर को ही परमात्मा कहते रहते। फिर जैसी भाषा वैसा नाम। परन्तु चीज एक ही है। जैसे तुम्हारी आत्मा, वैसे मेरी है। तुम भी बिन्दी, मैं भी बिन्दी हूँ। मुझ बिन्दी का नाम है शिव। पहचान के लिए नाम तो चाहिए ना। इस समय ब्रह्मा सरस्वती जो बड़े ते बड़े हैं उनको भी सद्गति मिल रही है। सद्गति तो सभी आत्माओं को मिलनी है। सभी आत्मायें परमधाम में रहती हैं, फिर भी परमात्मा को तो अलग रखेंगे ना। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। सारी रूद्र माला का बीजरूप बाप है ना। सभी उनको याद करते हैं ओ गॉड फादर। सभी जगह फादर को याद करते हैं, मदर को नहीं। यहाँ भारत में ही आकर पतितों को पावन बनाते हैं। मदर भी एडाप्टेड है। सरस्वती को भी परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया और फिर इसमें प्रवेश किया है। यह एडाप्शन और प्रकार की है, थ्रू तो कोई चाहिए ना। कहते हैं इन द्वारा मैं नॉलेज सुनाता हूँ, इन द्वारा बच्चे एडाप्ट करता हूँ। तो यह माता भी सिद्ध होती है। प्रवृत्ति मार्ग है ना। परन्तु है तो मेल इसलिए मुख्य सरस्वती को माता के पद पर रखा जाता है। यह बड़े गुह्य राज समझने के हैं। प्रजापिता है ना, प्रजा को रचने वाला। इन द्वारा वह रचते हैं, ऐसे नहीं कि सरस्वती द्वारा कोई एडाप्ट करते हैं, नहीं। यह तो बड़ी समझ की बात है। पहले-पहले बाप का परिचय देना होता है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। यह किसने कहा? आत्मा ने क्योंकि आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं। पहले तो अपने को आत्मा समझना है। आत्मा ही कहती है मैं शरीर लेता हूँ, छोड़ता हूँ। एक-एक बात निश्चय में बिठानी होती है क्योंकि नई बात है ना। और जो सुनाते हैं वह हैं मनुष्य। भगवान तो नहीं। जब कोई आते हैं तो पहले-पहले यह समझाओ कि आत्मा और शरीर दो चीजें हैं। आत्मा अविनाशी है। पहले अपने को आत्मा समझो। मैं मजिस्ट्रेट हूँ, यह किसने कहा? आत्मा इन आरगन्स से कहती है। आत्मा जानती है - मेरे शरीर का नाम भी है और पद भी है मजिस्ट्रेट का। यह शरीर छोड़ने से मजिस्ट्रेट पद और शरीर का नाम रूप सब बदल जायेगा। पद भी दूसरा हो जायेगा। तो पहले-पहले आत्म-अभिमानी बनना है। मनुष्यों को तो आत्मा का ज्ञान भी नहीं है। पहले आत्मा का ज्ञान देकर फिर समझाओ आत्मा का बाप तो परमात्मा है। आत्मा दु:खी होती है तो पुकारती है ओ गॉड फादर। वही पतित-पावन है। आत्मायें सभी पतित हो गई हैं। तो जरूर परमपिता परमात्मा को आना पड़े। पतित दुनिया और पतित शरीर में। बाप खुद कहते हैं मुझ दूरदेश के रहने वाले को बुलाते हैं, क्योंकि तुम पतित हो मैं एवर पावन हूँ। भारत पावन था, अभी पतित है। पतित-पावन बाप आकर आत्माओं से बात करते हैं। ब्रह्मा तन में आकर समझाते हैं, इसलिए इनका नाम है प्रजापिता। ब्रह्मा द्वारा प्रजा रचते हैं। कौन सी? जरूर नई प्रजा रचेंगे। आत्मा जो अपवित्र है उनको पवित्र बनाते हैं। आत्मा पुकारती है हमको दु:ख से छुड़ाओ, लिबरेट करो। सबको लिबरेट करते हैं। माया ने सबको दु:खी किया है। सीताओं ने पुकारा है ना। एक तो सीता नहीं। सब रावण की जेल में विकारी, भ्रष्टाचारी बन गये हैं। है ही रावण राज्य। राम तो है ही निराकार। राम राम कहते हैं ना। एक को ही जपते हैं। गॉड फादर शिव निराकार तो उनको आरगन्स चाहिए ना। तो शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं। तुम आत्मा भी पतित हो तो शरीर भी पतित है। अभी तुम श्याम हो फिर सुन्दर बनते हो। बाबा ज्ञान का सागर, ज्ञान की वर्षा करते हैं। जिससे तुम गोरे बन जाते हो। भारतवासी गोरे थे फिर काम चिता पर चढ़ सांवरे वैश्य, शूद्र वंशी बन पड़े हैं। चढ़ती कला बाप करते हैं फिर रावण आता है तो सबकी उतरती कला हो जाती है। भारत में पहले देवताओं का राज्य था। अभी नहीं है। परमात्मा इस शरीर द्वारा तुम बच्चों को समझाते हैं, जो वर्सा लेने वाले हैं उनको खुशी का पारा चढ़ता रहेगा। श्रीमत पर तो जरूर चलना होगा। आप पावन बनाने आये हो मैं भी जरूर पावन बनूँगा, तब ही पावन दुनिया का मालिक बनूँगा। यह प्रतिज्ञा करनी होती है। यही राखी बंधन है। बच्चे प्रतिज्ञा करते हैं - बाप से। यह कोई लौकिक देहधारी बाप नहीं है। यह तो निराकार है। इनमें प्रवेश किया है। कहते हैं तुम भी देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझ मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। भारत में ही प्योरिटी थी तो कितनी पीस प्रासपर्टी थी और कोई धर्म वाला नहीं था। तुम कहेंगे बाबा हमको ऐसा समझाते हैं तुम भी समझो। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। पावन बनाने वाला एक ही बाप है। बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो, तुम्हारा स्वधर्म शान्ति है। तुम शान्तिधाम के रहने वाले हो। तुम कर्मयोगी हो। साइलेन्स में तुम कितना समय रहेंगे। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। कलियुग में हैं ही सब पतित। तुम जानते हो हम संगम पर पावन बन रहे हैं। पतित दुनिया का विनाश होना है। यह महाभारत लड़ाई है। नेचुरल कैलेमिटीज होती है, इन द्वारा पुरानी दुनिया खलास होनी है। नई दुनिया में है ही देवताओं का राज्य। तो अभी हम परमपिता परमात्मा के फरमान पर चलते हैं। उनकी श्रीमत मिलती है। यह नॉलेज बड़ी समझने की है। बोलो, ऐसे नहीं कि एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देना है। यहाँ तो पढ़ना है। 7 दिन की भठ्ठी भी मशहूर है। 7 रोज बैठकर समझो। बाप को और अपने जन्मों को जानो। हम कैसे पतित बने हैं फिर कैसे पावन बनना है, अगर नहीं समझेंगे तो पछताना पड़ेगा क्योंकि सिर पर पापों का बोझा बहुत है। एक ही बाप मोस्ट बिलवेड है जो हमें पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। बाकी तो सभी एक दो को पतित ही बनाते हैं। सतयुग में पवित्र गृहस्थ था, अब अपवित्र बने हैं। यह है ही रावण राज्य। अब स्वर्ग में चलना है तो पावन बनना है, तब ही बेहद के बाप से वर्सा मिलेगा। यह तो याद करो - हम शान्तिधाम के वासी हैं फिर सुखधाम में गये, अभी तो दु:खधाम है। फिर जाना है - शान्तिधाम इसलिए देही-अभिमानी बनना है। बाप कहते हैं घर में रहते एक तो पवित्र बनो, दूसरा मुझे याद करो तो पाप नाश हो जायेंगे। याद नहीं करेंगे, पवित्र नहीं रहेंगे तो विकर्म कैसे विनाश होंगे। रावणराज्य से कैसे छूटेंगे। यहाँ सब शोकवाटिका में हैं। भारत आधाकल्प शोक वाटिका में और आधाकल्प अशोक-वाटिका में रहता है। आप भी पतित दुनिया में हो ना। तुम अथॉरिटी से समझाने वाले हो तो भी रिस्पेक्ट से बोलना है कि तुम भल कहते हो कि हम गॉड फादर की सन्तान हैं, परन्तु फादर का ज्ञान कहाँ है! लौकिक बाप को तो जानते हो परन्तु पारलौकिक बाप जो इतना बेहद का सुख देते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाते हैं उनको तुम नहीं जानते हो। भारत को जिसने स्वर्ग बनाया था, उनको तुम भूल गये हो इसलिए ही यह हालत हुई है। सभी भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि विष से पैदा होते हैं। यह तो कोई भी समझ जायेगा, इसमें इन्सल्ट की कोई बात नहीं है। यह तो समझानी दी जाती है। रक्षाबन्धन का ही महत्व है। बाप कहते हैं विकारों पर जीत पाकर मुझे याद करो और शान्तिधाम को याद करो तो तुम वहाँ चले जायेंगे। बुद्धि में यह याद रहना चाहिए - हम सुखधाम में जाते हैं वाया शान्तिधाम। पहले देही-अभिमानी जरूर बनना पड़े। मैं आत्मा हूँ एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ। बाप ने यह भी समझाया है कि मनुष्य कुत्ता बिल्ली नहीं बनता है। मनुष्य तो भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाते रहते हैं। अभी तुम बच्चे भाषण में समझाते रहो कि तुम पतित हो ना तब तो पतित-पावन बाप को याद करते हो। सब सीतायें शोक वाटिका में हैं। दिन प्रतिदिन शोक बढ़ता ही जाता है। जिन्होंने राज्य लिया है वह भी समझते हैं बहुत दु:ख है। कितना माथा मारते रहते हैं। एक को शान्त कराते तो दूसरा खड़ा हो जाता है। लड़ाई लगती ही रहती है। शान्ति के बदले और ही अशान्ति होती जाती है। बाप आकर इस दु:ख अशान्ति को मिटाए सुखधाम बना देते हैं। पुरानी दुनिया में है दु:ख। नई दुनिया में है सुख। यह राखी बंधन का बड़ा त्योहार है। समझाना है यह रिवाज किसने डाला है। पतित-पावन परमपिता परमात्मा उसने आकर पवित्रता की प्रतिज्ञा कराई है। 5 हजार वर्ष पहले प्रतिज्ञा की थी। अब फिर परमपिता परमात्मा से बुद्धियोग लगाओ तो तुम पावन बन जायेंगे। पूछो राखी कब से बांधते आते हो? कहते हैं - यह तो अनादि कायदा है। अरे पावन दुनिया में थोड़ेही राखी बांधेंगे। यहाँ तो कोई पावन है नहीं। अब बाप फरमान करते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया में चलेंगे। प्योरिटी है फर्स्ट। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब नहीं है। स्वर्ग में दु:ख का नाम ही नहीं होता है। नर्क में फिर सुख का नाम न्हीं होता है। भ्रष्टाचारियों को अल्पकाल का सुख मिलता, श्रेष्ठाचारियों को आधाकल्प सुख मिलता है। यह तो जानते हो राखी उत्सव पास होगा कहेंगे हूबहू कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा को पूरा न समझने के कारण मूँझ भी पड़ते हैं। पहलेपहले परिचय देना है बाप का। बाप ही आकर लिबरेट करते हैं। राखी बंधन कब से शुरू हुआ? इनका भी बड़ा महत्व है। लिख देना चाहिए - आकर समझो। कोई को भी समझाओ, कहाँ भी भाषण के लिए जगह दें। कांग्रेस वाले दुकानों पर खड़े होकर भाषण करते हैं तो ढेर आ जाते हैं। सर्विस के लिए पुरूषार्थ करना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अथॉरिटी के साथ-साथ बहुत रिस्पेक्ट से बात करनी है। सबको पतित से पावन बनाने की युक्ति बतानी है।
2) एक अव्यभिचारी याद में रहना है, किसी भी देहधारी के नाम रूप को याद नहीं करना है। पावन बनने की ही प्रतिज्ञा बाप से करनी है।
वरदान:बिजी रहने के सहज पुरूषार्थ द्वारा निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी भव
ब्राह्मण जन्म है ही सदा सेवा के लिए। जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना सहज ही मायाजीत बनेंगेइसलिए जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। सेवा के सिवाए समय नहीं गवाओ। चाहे संकल्प से सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क और चलन द्वारा भी सेवा कर सकते हो। सेवा में बिजी रहना ही सहज पुरूषार्थ है। बिजी रहेंगे तो युद्ध से छूट निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे।
स्लोगन:आत्मा को सदा तन्दरूस्त रखना है तो खुशी की खुराक खाते रहो।
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Details ( Page:- Murali 8h Aug 2017 )
08.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Is roohani padhai ko dharan karne ke liye buddhi pavitra sone ka bartan chahiye, pavitrata ki rakhi bandho tab rajai ka tilak milega.
Qes- Is samay sabhi baccho ko Baap dwara kaun sa certificate lene ka purusharth karna hai?
Ans- Pawan duniya me jaane ke liye pawan arthat layak banne ka certificate lena hai. Jab is samay pavitrata ka pran karo tab buddhi golden aged bane. Pavitrata ka certificate lene ke liye Baap ki raye hai - bacche, aur sabse apna buddhi yog nikaal gyan chita par baitho. Ek mata-pita ko follow karo. Pawan rehna he hai, yah pratigyan karo.. Baap ke saath sachchai se chalo.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Baap se pratigyan kar fir todni nahi hai, pavitrata aur padhai se aatma ko golden aged banna hai.
2) Aur sabka buddhi se tyag kar asariri banne ka abhyas karna hai. Yog bal se maya ke toofano par bijay pani hai.
Vardaan- Sarv shaktiyon ki sampannata dwara biswa ke bighno ko samapt karne wale Bighna binashak bhava
Slogan- Jo sada subh sankalpo ki rachana karte hain wohi double light rehte hain.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
08-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - इस रूहानी पढ़ाई को धारण करने के लिए बुद्धि पवित्र सोने का बर्तन चाहिए, पवित्रता की राखी बांधो तब राजाई का तिलक मिलेगा”
प्रश्न:इस समय सभी बच्चों को बाप द्वारा कौन सा सर्टिफिकेट लेने का पुरूषार्थ करना है?
उत्तर:पावन दुनिया में जाने के लिए पावन अर्थात् लायक बनने का सर्टिफिकेट लेना है। जब इस समय पवित्रता का प्रण करो तब बुद्धि गोल्डन एजेड बने। पवित्रता का सर्टिफिकेट लेने के लिए बाप की राय है - बच्चे, और सबसे अपना बुद्धियोग निकाल ज्ञान चिता पर बैठो। एक मात-पिता को फालो करो। पावन रहना ही है, यह प्रतिज्ञा करो। बाप के साथ सच्चाई से चलो।
गीत-भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना...
ओम् शान्ति।
यह गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुना है। यह तो रक्षाबंधन का उत्सव वा गीत भक्तिमार्ग में मनाते गाते आते हैं। अब यह है ज्ञान मार्ग। बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे इस माया रावण पर जीत पाने से तुम जगत जीत अर्थात् जगत के मालिक बनेंगे। तुम बच्चे जानते हो कि मेहनत ही 5 विकारों पर जीत पाने की है। इसमें भी काम विकार है बड़ा शत्रु। पवित्रता के कारण ही मारामारी हंगामा आदि होता है। ऊंच ते ऊंच बाप ही माया पर जीत पहनाए जगत का मालिक बना सकते हैं। यह तो बच्चे जानते हैं। बेहद बाप का वर्सा पाने हमको पवित्र जरूर बनना है। जिस्मानी पढ़ाई भी पवित्रता में ही पढ़ी जाती है। यह है रूहानी पढ़ाई। इसमें बर्तन सोने का अर्थात् पवित्र चाहिए, जिसमें ज्ञान धन ठहर सके। पवित्र बनने में टाइम लगता है क्योंकि अभी सबका बर्तन ठिक्कर का बन गया है। बाप समझाते हैं अब तुम्हें पवित्र बन वापिस जाना है। जितना-जितना ज्ञान योग की धारणा होती जायेगी, उतना बुद्धि पवित्र होती जायेगी क्योंकि अब बुद्धि में है कि हमको वापिस लौटना है। आइरन एज से कॉपर एज में आना है, फिर सिल्वर एज में, फिर गोल्डन एज में आना है। यह पढ़ाई ऐसी है जो चलते-चलते फिर माया का वार हो जाता है। सब तो पवित्र रह नहीं सकते। माया बड़े तूफान में लाती है। आइरन एज से कॉपर एज में आने से फिर माया के तूफान घेर लेते हैं तो बुद्धि फिर आइरन एजेड बन जाती है और गिर पड़ते हैं। गिरना और चढ़ना यह तो है जरूर। चढ़कर फिर कॉपर एज, सिल्वर एज, गोल्डन एजेड में आना है। पढ़ते-पढ़ते ज्ञान सुनतेसुनते पिछाड़ी में हमारी वह गोल्डन एज बुद्धि बनेगी तब हम शरीर छोड़ देंगे। इस समय गिरना चढ़ना बहुत होता है। टाइम लगता है। जब बुद्धि गोल्डन एजेड बन जाती है फिर राज्य अधिकारी बनते हैं। गाया भी हुआ है - पवित्रता की राखी बांधने से राजतिलक मिलेगा। सो तुम बच्चे जानते हो - हमको राजाई प्राप्त करने के लिए पवित्रता की प्रतिज्ञा करनी है। ज्ञान और योग की धारणा करने में कितना समय लगता है। गोल्डन एज से आइरन एज तक आने में तो 5 हजार वर्ष लगते हैं। अब तो पढ़ना है - सो तो इस एक जन्म में ही होना है। जितना ऊंच पढ़ते जायेंगे, खुशी बढ़ती जायेगी। हम राजधानी स्थापना कर रहे हैं। बुद्धि योगबल और ज्ञानबल से। हर बात में बल होता है। थोड़ा पढ़ने में थोड़ा बल, जास्ती पढ़ने में जास्ती बल मिलता है। बड़ा पद मिलता है। यह भी ऐसे है। कम पढ़ने से पद भी कम मिलता है। बाप ने समझाया है - यह ब्राह्मण धर्म बहुत छोटा है। ब्राह्मण ही देवता सूर्यवंशी चन्द्रवंशी बनते हैं। अभी पुरूषार्थ कर रहे हैं। तुम ऐसे समझो - अजुन हम कॉपर एज तक पहुँचे हैं। फिर सिल्वर, गोल्डन एज तक आना है। पिछाड़ी में बच्चे भी ढेर हो जाते हैं ना। सारा मदार है - पवित्रता पर। जितना याद में रहेंगे उतना बल मिलेगा। बाप से प्रतिज्ञा की है - हम पवित्र बन भारत को पवित्र बनायेंगे। बच्चे राखी बांधने जाते हो तो भी समझाना होता है। आज से 5 हजार वर्ष पहले भी पतित से पावन बनने के लिए हम यह राखी बांधने आये थे। तो राखी बंधन तो एक दिन की बात नहीं। पिछाड़ी तक चलता रहेगा। प्रतिज्ञा करते रहेंगे। पढ़ाई पर ध्यान देते रहेंगे। तुम जानते हो ज्ञान और योग से आइरन एज से हमें गोल्डन एज में जाना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान होना है। यह बातें और कोई नया समझ न सके इसलिए तुम्हारी 7 रोज की भठ्ठी मशहूर है। पहले नब्ज देखनी पड़ती है। जब तक बाप का परिचय नहीं हुआ है, निश्चय नहीं बैठा है तब तक समझेंगे नहीं। तुम्हारे द्वारा परिचय पाते जायेंगे। झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। स्वराज्य स्थापना होने में समय लगता है। जब तक तुम गोल्डन एज में न आओ तब तक सृष्टि का विनाश हो नहीं सकता। वह समय आयेगा बहुत ढेर बच्चे हो जायेंगे। अभी रक्षाबंधन पर बड़े-बड़े आदमियों पास जायेंगे। उनको भी समझाना पड़े। पतित-पावन बाप इस पतित दुनिया को पावन बनाने इस संगम पर ही आते हैं। बरोबर भारत पावन था, अभी तो पतित है। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। भगवान बाप कहते हैं बच्चे माया रावण तुम्हारा बड़ा दुश्मन है। वह तो जिस्मानी छोटे-छोटे दुश्मन है। भारत का सबसे बड़ा दुश्मन रावण है, इसलिए पवित्रता की राखी बांधनी है। प्रतिज्ञा करनी है हे बाबा भारत को श्रेष्ठाचारी बनाने के लिए हम पवित्र रहेंगे। औरों को भी बनाते रहेंगे। अभी सब रावण से हार खाये हुए हैं। भारत में ही रावण को जलाते रहते हैं। आधाकल्प रावण का राज्य चला है। यह तुमको समझाना पड़े। समझाने बिगर राखी बांधना कोई काम का नहीं। यह कहानी तुम ही जानते हो। और कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि 5 हजार वर्ष पहले भी बाप ने कहा था कि पवित्र बनेंगे तो सतयुग में नर से नारायण का पद पायेंगे। यह सत्य-नारायण की वा अमरनाथ की कथा तुम ही सुना सकते हो। समझाना पड़ता है - भारत पवित्र था। सोने की चिडिया थी। अभी तो पतित है। लोहे की चिडिया कहेंगे। बाप का परिचय देकर बोलो कि मानते हो? बरोबर बाप ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। बाप कहते हैं अब मुझे याद करो। 84 जन्म पूरे होते हैं। माया से हार खाई है। अब फिर माया पर जीत पानी है। बाप ही आकर कहते हैं बच्चे अब पवित्र बनो। बच्चे कहते हैं - हाँ बाबा। हम आपके मददगार जरूर बनेंगे। पवित्र बनकर भारत को पवित्र जरूर बनायेंगे। बोलो, हम कोई आपसे पैसे लेने नहीं आये हैं। हम तो बाप का परिचय देने आये हैं। तुम सब बाप के हमजिन्स हो ना। बाप आकर मैसेज देते हैं। राय देते हैं हे बच्चों और सबका बुद्धि से त्याग करो, तुम नंगे (अशरीरी) आये थे। पहले-पहले तुमने स्वर्ग में पार्ट बजाया। तुम गोरे अर्थात् पवित्र थे। फिर काम चिता पर बैठने से अभी काले बन गये हो। भारत गोल्डन एजड था। अभी भारत को आइरन एजेड कहा जाता है। अभी फिर काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठना है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। पवित्रता का प्रण करो। एक बाप के बच्चे हम भाई-बहन हैं। तुम भी बच्चे हो, परन्तु समझते नहीं हो। बी.के. बनेंगे तब ही शिवबाबा से वर्सा ले सकते हो। यह है ही पतित भ्रष्टाचारियों की दुनिया। एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं है। सतयुग में एक भी भ्रष्टाचारी नहीं होता। यह बेहद की बात है। सारी श्रेष्ठाचारी दुनिया की स्थापना करना, एक बाप का ही काम है। हम ब्रह्माकुमार कुमारियां बाप से वर्सा लेते हैं। पवित्रता की प्रतिज्ञा करते हैं। जो पवित्रता की गैरन्टी करते हैं उनका फोटो निकाल हम एलबम बनाते हैं। पावन बने बिगर पावन दुनिया में जाने का सर्टिफिकेट मिल न सके। बाप ही आकर लायक बनाए सर्टिफिकेट देते हैं। सर्व का पतित-पावन, सद्गति दाता एक ही बाप है। पतित लायक नहीं हैं ना। भारत ही इनसालवेन्ट दु:खी हो पड़ा है क्योंकि पतित है। सतयुग में पावन थे, तो भारत सुखी था। अब बाप कहते हैं पावन बनो। आर्डानेंस निकालो। जो पावन बनने चाहते हैं उनको नंगन नहीं किया जाए। पुरूष लोग विकार के लिए बहुत तंग करते हैं, इसलिए मातायें भारत को श्रेष्ठ बनाने में मदद नहीं कर सकती हैं। इस पर प्रोब बनाना चाहिए। परन्तु वह ताकत अजुन बच्चों में आई नहीं है। जब गोल्डन स्टेज में आयेंगे तब वह फलक होगी, किसको समझाने की। बच्चों को दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स बहुत मिलती रहती है। बच्चे समझते हैं बड़ी ऊंची चढ़ाई है। माँ-बाप को फालो करना पड़े। मात-पिता तो कहते हैं। वह बाप है, तो यह माता हो गई। परन्तु मेल है इसलिए माता को कलष दिया जाता है। तुम भी मातायें हो, पुरूष भाई हैं। भाई बहन को, बहन भाई को पवित्रता की प्रतिज्ञा कराते हैं। माताओं को आगे बढ़ाया जाता है। वो लोग माताओं को उठा रहे हैं। आगे थोड़ेही प्रेजीडेंट, प्राइममिनिस्टर आदि फीमेल बनती थी। आगे तो राजाओं का राज्य था। आगे कोई नई इन्वेन्शन निकालते थे तो राजा को जाकर बोलते थे। वह फिर उनको बढ़ाने के लिए डायरेक्शन देते थे। यहाँ तो है ही प्रजा का राज्य। कोई मानेंगे कोई नहीं मानेंगे। मेहनत करनी पड़ती है। तुम जानते हो श्री कृष्ण का गीता में नाम डाल बड़ी भूल कर दी है। हमारी बात को एक मानेंगे दूस्रे नहीं मानेंगे। आगे चलकर तुम्हारे में ताकत आयेगी। आत्मा कहती है हमको गोल्डन एज में जाना है। बुद्धि का ताला अब खुला है। ज्ञान को अच्छी रीति अब समझ सकते हैं। आखरीन पिछाड़ी में सब समझेंगे जरूर। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। यह शास्त्रों में है कि द्रोपदी के चीर उतारे थे। तो उस समय याद करने सिवाए और कर ही क्या सकेंगे। अन्दर में शिवबाबा को याद करेंगे तो वह पाप नहीं लगता है। परवश है। हाँ, बचने की कोशिश करनी है। हर एक का कर्म बन्धन अलग-अलग है। कोई तो एकदम स्त्री को मार भी देते हैं, तो समझा जाता है कि वह वहाँ अच्छा पद पा लेंगी। कर ही क्या सकते। पवित्र रहने की युक्ति बाप अच्छी रीति समझाते हैं। ब्रह्माकुमार कुमारी भाई बहन हो गये, विकार की दृष्टि जा नहीं सकती। बाप कहते हैं अगर इस प्रतिज्ञा को तोड़ेंगे तो बड़ी चोट लगेगी। बुद्धि भी कहती है - बेहद के बाप का मानेंगे नहीं तो चोट खायेंगे, गिर पड़ेंगे। घड़ी-घड़ी फिर गिरते रहेंगे तो हार खा लेंगे। यह बॉक्सिंग है ना। यह सब गुप्त बातें हैं। यहाँ मुख्य है - पवित्रता और पढ़ाई। और कोई पढ़ाई नहीं। भक्ति मार्ग के अथाह धन्धे हैं। भक्त लोग भक्ति करते भी कह देते हैं - भगवान तो कण कण में है। अभी तुम्हें नॉलेज मिली है। आगे तो तुम भी कहते थे भगवान सर्वव्यापी है, जहाँ देखो तू ही तू है। सब भगवान की लीला है। भगवान भिन्न-भिन्न रूप धारण कर लीला कर रहा है। अच्छा कण कण में क्या लीला करेंगे? बेहद के बाप की ग्लानी कर देते हैं। यह भी खेल है तब बाप को आना पड़ता है। बच्चों को खुशी होनी चाहिए। बाप का डायरेक्शन मिलता है - तुमको पवित्र बनना है, अगर पवित्र दुनिया में चलना चाहते हो तो। ऐसे नहीं स्वर्ग में तो जायेंगे ना, फिर क्या पद पायेंगे। वह कोई पुरूषार्थ नहीं। पुरूषार्थ करना है राजा-रानी बनने के लिए। ड्रामा के राज को कोई समझते नहीं है। अभी तुम जानते हो कल्प-कल्प हम बाप से वर्सा लेते हैं। बाबा आते हैं। चित्र भी देखो कितने अच्छे बने हुए हैं। बड़े चित्रों के आगे ले आना है। तुम सब सर्जन हो - शिवबाबा अविनाशी गोल्डन सर्जन है। तुम भी नम्बरवार सर्जन हो। अभी कोई सम्पूर्ण गोल्डन एजेड बना नहीं है। तुमको सर्विस करनी है। समझाने समय हर एक की नब्ज देखनी है। महारथी जो हैं वह अच्छी नब्ज देखेंगे। तुमको पूरा गोल्डन एजेड बनना है। अभी बने नहीं हैं। बनने में टाइम लगता है। माया के तूफान बहुत तंग करते हैं। यह सब बातें समझ की होती हैं। बाप से पूरा वर्सा लेना है और बहुत सच्चाई से चलना है। अन्दर कोई खराबी नहीं होनी चाहिए। माया हैरान करती है क्योंकि योग नहीं है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से प्रतिज्ञा कर फिर तोड़नी नहीं है, पवित्रता और पढ़ाई से आत्मा को गोल्डन एजेड बनाना है।
2) और सबका बुद्धि से त्याग कर अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। योगबल से माया के तूफानों पर विजय पानी है।
वरदान:सर्व शक्तियों की सम्पन्नता द्वारा विश्व के विघ्नों को समाप्त करने वाले विघ्न-विनाशक भव
जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है वही विघ्न-विनाशक बन सकता है। विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। लेकिन यदि कोई भी शक्ति की कमी होगी तो विघ्न-विनाशक बन नहीं सकते इसलिए चेक करो कि सर्व शक्तियों का स्टॉक भरपूर है? इसी स्मृति वा नशे में रहो कि सर्व शक्तियां मेरा वर्सा हैं, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो कोई विघ्न ठहर नहीं सकता।
स्लोगन:जो सदा शुभ संकल्पों की रचना करते हैं वही डबल लाइट रहते हैं।
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Details ( Page:- Murali 09th Aug 2017 )
09.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche- ab yah purana ghar chhod Baap ke saath chalna hai, isiliye is ghar (sarir) se mamatwa mitate jao, apne ko aatma nischay karo.
Ques- Dehi-abhimaani baccho ke mukh se kaun se sabd nahi niklenge?
Ans- Mere mann ko shanti kaise mile? Yah sabd dehi-abhimaani baccho ke mukh se nahi nikal sakte. Deha-abhimaan wale he yah sabd bolte hain kyunki unhe aatma ka gyan he nahi hai. Tum jaante ho aatma ka swadharm he shant hai. Mann ke shanti ki to baat he nahi. Aatma apne swadharm me tik jaaye to mann shant ho jayega. Aatma so Paramatma kehne wale is baat ko samajh nahi sakte.
Dharna ke liye mukhya saar
1)Amritvele ooth gyan ratno ka dhanda karna hai. Roop-basant ban padhai padhni aur padhani hai.
2)Baap ke saath wapis ghar jana hai, isiliye pavitra banna hai. Asariri ban, Baap ki yaad me rah silence bal se science par bijay pani hai.
Vardaan- Divya buddhi dwara sada divyata ko grahan karne wale Safaltamurt bhava
Slogan- Swayang ko mehman samajhkar raho to sthiti avyakt wa mahan ban jayegi.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
09-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - अब यह पुराना घर छोड़ बाप के साथ चलना है इसलिए इस घर (शरीर) से ममत्व मिटाते जाओ, अपने को आत्मा निश्चय करो”
प्रश्न:देही-अभिमानी बच्चों के मुख से कौन से शब्द नहीं निकलेंगे?
उत्तर:मेरे मन को शान्ति कैसे मिले? यह शब्द देही-अभिमानी बच्चों के मुख से नहीं निकल सकते। देह- अभिमान वाले ही यह शब्द बोलते हैं क्योंकि उन्हें आत्मा का ज्ञान ही नहीं है। तुम जानते हो आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है। मन के शान्ति की तो बात ही नहीं। आत्मा अपने स्वधर्म में टिक जाये तो मन शान्त हो जायेगा। आत्मा सो परमात्मा कहने वाले इस बात को समझ नहीं सकते।
गीत:मरना तेरी गली में... ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं मरना किसको कहा जाता है। आत्मा शरीर से अलग हो जाती है, उनको मरना कहा जाता है। यहाँ बच्चे जानते हैं हम जीते जी शरीर से अलग हैं और अपने परमपिता परमात्मा के साथ उनके धाम जाने वाले हैं। जो आत्मायें जा नहीं सकती हैं उनको योग से पवित्र बना रहे हैं। इसको कहा जाता है नॉलेज। रूह को नॉलेज मिलती है। यह बच्चे-बच्चे कहने वाला कौन है? परमपिता परमात्मा, जिसको सभी भगत याद करते हैं। आत्मा समझती है पतितपावन बाप मुक्ति-जीवनमुक्ति देने वाला है। उनको तो अपना शरीर है नहीं। यह लोन लिया है। हमको भी यह छोड़ना है और जिसका घर है उनको भी छोड़ना है। वैसे तुम बच्चों का भी यह पुराना घर है, इनमें खिड़कियां आदि सब हैं। तो बाप कहते हैं बच्चे यह पुराना घर सबको छोड़ देना है। मेरे साथ घर चलना है, इसलिए जीते जी इस घर से ममत्व मिटाते जाओ। अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो। यह तो बच्चे जानते हैं - दो चीजें हैं - जीव और आत्मा। मनुष्य जब दु:खी होते हैं तो जीवघात करते हैं। आत्म-घात नहीं। आत्मा जानती है, शरीर के कारण आत्मा को दु:ख होता है, इसलिए उनको छोड़ना चाहती है। तुम्हारी आत्मा जानती है कि अभी हम दु:खधाम में हैं। यह शरीर भी पुराना घर है। बाबा ने समझाया है - यह अकालतख्त है जो छोड़कर फिर दूसरा लेना होता है। तख्त के बदले घर कहना ठीक है। घर में खिड़कियां आदि होती हैं, इसलिए शरीर को घर कहा जाता है। तख्त के ऊपर राजाई की जाती है। इस समय तो दु:खधाम है। हाँ, यह जरूर है आत्मा को घर अर्थात् नये शरीर में बैठ फिर सिंहासन पर बैठ जाना है। राजाई करनी है। दुनिया में ऐसा तो कोई नहीं जिसको बाप से राजाई मिलती है, जब तक बाप न आये तब तक बादशाही कैसे मिले! तुम जानते हो बाबा हमको शाहनशाह बनाने आया हुआ है। जैसे राजाओं से महाराजायें बड़े होते हैं ना। तो बाप कहते हैं तुमको राजाओं का राजा बनाया जाता है। तुम्हारी आत्मा जानती है - यह पुराना घर छोड़ना है। आत्मा को पहले सतोप्रधान घर मिलता है। सतोप्रधान गुणवान आत्मा है तो शरीर भी ऐसे ही सतोप्रधान मिलता है। आत्मा समझती है, कैसे हम आत्मा को घर मिलता है। ऊंच पवित्र आत्माओं को शरीर भी ऐसे ही मिलेगा। पावन बनेंगे तो पावन घर मिलेगा जरूर। जब पावन बनाने वाला आये तब तो हम पावन बनें। खुद कहते हैं बच्चे तुम याद करते थे, अब मैं आया हूँ। कल्प-कल्प इस शरीर में आकर यह यज्ञ रचता हूँ। इनका नाम ब्रह्मा रखना पड़ता है, इनको एडाप्ट किया जाता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते तुमने बुद्धि से सब कुछ पुरानी चीजों का सन्यास कर अपने को आत्मा निश्चय किया है। अभी जीते जी सब सम्बन्ध तोड़ने हैं। बाप कहते हैं तुम्हें इस पुरानी दुनिया में रहना नहीं है। समझाया जाता है हमारी एम आब्जेक्ट है नर से नारायण वा मनुष्य से देवता बनना वा स्वर्ग की बादशाही पाना। यह भी समझाया है कि मनुष्य सृष्टि एक ही है, जो चक्र लगाती है, इनको झाड़ भी कहते हैं। बड़ के झाड़ से भेंट की जाती है। उनकी आयु बहुत बड़ी होती है। यह झाड़ जब नया है तब हम देवतायें ही रहते हैं। अभी तो पुराना हो गया है। इसमें सब गरीब हैं, पाई पैसे का व्यापार करने वाले को बनिया कहा जाता है। तुम अभी बनिया से शाह बनते हो। अभी तुम ज्ञान रत्नों का व्यापार करते हो। बाप से रत्न ले फिर औरों को देते हो। अब तुम्हारी श्रेष्ठ हीरे जैसी बुद्धि बनती है। तुम्हारा व्यापार ही है ज्ञान-रत्नों का। ज्ञान रत्नों के बाद फिर वह रत्न भी तुमको अथाह मिलते हैं। गाया हुआ भी है - सागर हीरे जवाहरों की थाली ले तुम्हारे आगे भेंट रखते हैं। तुम अब पढ़ाई और पढ़ाने वाले को जान गये हो। बरोबर हमारा परमपिता परमात्मा ज्ञान रत्नों का सागर है, जिसको रूप-बसंत भी कहा जाता है। आत्मा ज्ञान रत्नों का मुख से वर्णन करती है। तुम्हारा धन्धा ही यह है। तुम अमृतवेले उठ यह ज्ञान रत्नों का धन्धा करो। प्रभात अच्छी होती है। कहते हैं - राम नाम सिमर प्रभात मोरे मन। यह आत्माओं ने कहा ना! मन-बुद्धि आत्मा में है। मनुष्य देह-अभिमान में रहते हैं तो कहते हैं मन मेरा शान्त नहीं होता है। जैसे कि शरीर में मन है। परन्तु आत्मा कहती है मेरे मन को, बुद्धि को ज्ञान नहीं है। मुझे शान्ति चाहिए। वह अपने को आत्मा समझते नहीं हैं। शान्त वा अशान्त आत्मा होती है। आत्मा कहती है मैं अशान्त आत्मा हूँ, मैं शान्त आत्मा हूँ। देह-अभिमान वाला कहेगा - हमारे मन को शान्ति कैसे मिले? मन क्या है? वह भी समझते नहीं हैं। आत्मा को शान्ति मिलती है वा आत्मा के मन को? पहले तो आत्मा को जानना पड़े। आत्मा का स्वधर्म शान्त है। यह शरीर तुम्हारे आरगन्स हैं। इनसे चाहे काम लो, चाहे स्वधर्म में टिको। सन्यासी भी इस बात को नहीं जानते - वह तो कह देते, आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। परन्तु ताकत कैसे मिले जो शान्ति में रह सकें। जब बाप को याद करें तब ही ताकत मिले। सिर्फ शान्ति से भी कोई फायदा नहीं। वह समझते हैं हम आत्मा सो परमात्मा, हम आत्मा परमात्मा के लोक में चली जायेंगी और कुछ भी नहीं जानते। पुनर्जन्म को ही भूल जाते हैं। 84 जन्मों को भी भूल जाते हैं। बाप सम्मुख समझाते हैं, तुम समझते हो कि अभी हमें बाप के गले का हार बनना है। हम असुल उस बाप के गले का हार थे। अब नाटक पूरा होता है। नाटक में एक्टर खेलते भी रहते हैं और टाइम भी देखते रहते हैं। अभी नाटक पूरा होता है, बाकी इतना टाइम है। टाइम पूरा हुआ, सब एक्टर आकर खड़े हो जाते हैं फिर ड्रेस बदली कर घर चले जाते हैं। हूबहू तुम्हारा भी ऐसे ही पार्ट है। बाप आया है लेने लिए। यह प्रश्न ही नहीं उठता - आत्मायें वहाँ होंगी वा नहीं। हमारा काम है वर्सा लेना। जरूर आत्मायें होंगी तब तो आती रहती हैं, वृद्धि को पाती रहती हैं। अभी भी आती रहती हैं ना, तब तो बर्थ कन्ट्रोल आदि करते हैं। आत्माओं को वहाँ से स्टेज पर आना ही है फिर बर्थ कन्ट्रोल क्या करेंगे। जो कुछ बची-खुची आत्मायें हैं सब आयेंगी इसलिए तो वृद्धि होती रहती है। वृद्धि होनी ही है। यह तुम बच्चों को पता है जो कुछ पिछाड़ी वाल रहे हुए होंगे वह आते जायेंगे, जैसे मच्छर देखो रात को आये और सुबह को देखो तो सब मरे हुए होंगे। परन्तु उनका कोई हिसाब-किताब थोड़ेही है। यह जो बड़े-बड़े साइंसदान हैं वह कितना माथा मारते रहते हैं - खोज करते रहते हैं। जैसे ज्ञान की ऊंचाई है तो माया भी कम नहीं है। देखो, आसुरी मत पर क्या-क्या बना रहे हैं। श्रीमत क्या कहती है और साइंस वाले क्या करते रहते हैं। सुख भी है तो इन चीजों से विनाश भी होना है। साइंस और साइलेन्स। तुम सदैव बाप को याद करते रहते हो साइलेन्स में। उनको फिर साइंस का कितना घमण्ड है। कितने एरोप्लेन, बारूद आदि हैं। साइन्स पर साइलेन्स की विजय होती है। कई कहते हैं मन जीते जगतजीत परन्तु माया जीते जगतजीत कह सकते हैं। आत्मा अशरीरी हो बाप के पास चली जायेगी। कहते हैं मन में संकल्प विकल्प न आयें। बाप कहते हैं यह तो जरूर आयेंगे। मामेकम् याद करो। हम आत्मा अपने साइलेन्स होम, मुक्तिधाम में जाती हैं। पियरघर जाती हैं। बुद्धि में यही रहता है - बाबा आया है हमको ले जायेंगे। गाइड बाबा ही है। कहते हैं मेरे लाडले बच्चे मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। कोई ने भी घर का रास्ता नहीं देखा है। अगर एक ने देखा हो तो बहुत देख लें। वह जाना भी सिखलावें। यहाँ से मनुष्य तंग होकर कहते हैं जायें। सतयुग में ऐसे थोड़ेही कहेंगे। सुखधाम को ही सब याद करते हैं। बाप कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा - मच्छरों के सदृश्य। वह सिर्फ कह देते हैं बौद्ध की आत्मा निर्वाणधाम गई। अगर वह चला गया तो बाकी सब उनकी इतनी वंशावली कैसे जायेगी। कोई जा नहीं सकते हैं। मैं तो जा सकता हूँ ना। मैं आता ही हूँ ले जाने के लिए। सतयुग में तो कितने थोड़े होते हैं। इस समय तो आत्मायें कितनी अथाह हैं। मच्छरों सदृश्य हैं ना। सबको ले जाना एक बाप का ही काम है। बाप कहते हैं मेरे गले का हार बनने से फिर विष्णु के गले का हार बनेंगे। गिरेंगे भी पहले। वह पुजारी बनते हैं तब रावण के गले का हार बनते हैं। आखरीन यह हालत हो जाती है। तुम जानते हो हम आधाकल्प सुख में और आधाकल्प दु:ख में रहते हैं। रावण के गले का हार पहले-पहले देवी-देवता धर्म वाले बनते हैं फिर और धर्म वाले आयेंगे, वह भी रावण के गले का हार बनेंगे। अन्त में सभी रावण के गले का हार बन जाते हैं। यह ड्रामा का खेल ऐसा बना हुआ है जो सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। प्वाइंट्स तो बहुत मिलती हैं ना समझाने के लिए। नटशेल में कहा जाता है एक बाप को याद करो। पतित दुनिया को कैसे पावन बनाते हैं और फिर गले का हार पहले-पहले कौन बनते हैं, यह बुद्धि में रहना चाहिए। बरोबर हम असुल में अपने बाप के गले की माला हैं फिर बाबा हमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनाते हैं। फिर रावण का राज्य होता है। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है - तुम जानते हो नम्बरवार। स्कूल में सब सब्जेक्ट में 100 मार्क्स तो कोई नहीं लेते हैं। हाँ, कोई एक सब्जेक्ट में 100 मार्क्स मिल सकती हैं। इसमें भी मार्क्स हैं। दैवीगुण धारण करना कितनी बड़ी सब्जेक्ट है। सारे चक्र का राज भी समझाना है। कोई में गुण कम हैं, मुरली अच्छी चलाते हैं। नम्बरवार तो होते ही हैं ना। जो पास होते हैं वह गले का हार बनते हैं। बाप तो परफेक्ट है, उन जैसा परफेक्ट कोई हो नहीं सकता। वह तो जन्म-मरण में आता ही नहीं है। तुम्हारी बुद्धि में कितनी नई-नई प्वाइंट्स हैं जो और कोई की बुद्धि में बैठ नहीं सकती हैं। यह है गॉड फादरली युनिवर्सिटी, भगवानुवाच मैं राजयोग सिखलाता हूँ। समझ में आता है - भारत कितना अमीर था, अभी गरीब है। प्राचीन भारत बड़ा साहूकार था, उनको पैराडाइज कहते हैं। घर में कोई अच्छे कुल के होते हैं, गरीब बन जाते हैं तो उन पर तरस पड़ता है। कहेंगे बिचारा कितना गिर गया। फिर उनको चढ़ाने की कोशिश करते हैं। क्रिश्चियन लोगों ने भारत के पैसे बहुत लिये हैं, उस धन से खुद साहूकार बने हैं। भारत गरीब हो गया है तो फिर मदद भी देंगे ना। लोन के हिसाब से मदद देते हैं। तुम जानते हो क्या हिसाब-किताब है। कोई अच्छे हैं तो वह समझते हैं - यह सब लेन-देन का हिसाब खत्म होता है। परन्तु प्रेरक कौन है, यह कोई नहीं समझते। इन बातों को अभी तुम समझते हो। भारत रिलीजस था तो कितनी माइट थी, सारे विश्व के मालिक थे। पहला धर्म देवी-देवता है जो बाप स्थापना करते हैं। अब सबसे गिरा हुआ है तो जरूर उनको मदद करेंगे। जब लड़ाई शुरू होगी तो खुद लड़ते भी रहेंगे, मदद भी करते रहेंगे। अब भी देखो देते रहते हैं, नहीं तो भारत भूख मर जाये। परन्तु कभी ऐसे हुआ नहीं है। कैलेमिटीज भी आती रहेंगी। लड़ाई तब लगेगी जब पढ़ाई पूरी हो जाए। अभी तो पढ़ाई चल रही है ना। बाबा को पढ़ाना है। ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले उठ ज्ञान रत्नों का धन्धा करना है। रूप-बसन्त बन पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
2) बाप के साथ वापिस घर जाना है, इसलिए पवित्र बनना है। अशरीरी बन, बाप की याद में रह साइलेन्स बल से साइंस पर विजय पानी है।
वरदान:दिव्य बुद्धि द्वारा सदा दिव्यता को ग्रहण करने वाले सफलतामूर्त भव
बापदादा द्वारा जन्म से ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है, जो इस दिव्य बुद्धि के वरदान को जितना कार्य में लगाते हैं उतना सफलतामूर्त बनते हैं क्योंकि हर कार्य में दिव्यता ही सफलता का आधार है। दिव्य बुद्धि को प्राप्त करने वाली आत्मायें अदिव्य को भी दिव्य बना देती हैं। वह हर बात में दिव्यता को ही ग्रहण करती हैं। अदिव्य कार्य का प्रभाव दिव्य बुद्धि वालों पर पड़ नहीं सकता।
स्लोगन:स्वयं को मेहमान समझकर रहो तो स्थिति अव्यक्त वा महान बन जायेगी।
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Details ( Page:- Murali 10th Aug 2017 )
10.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche- Jab tak jeena hai pavitrata ka bratt pakka rakhna hai kyunki yah antim janm hai, pavitra bankar pavitra duniya me jana hai
Q- Baap ka pyaar wa adhikar kin baccho par rahata hai?
A- Jo achchi riti padhte aur padhate hain, saboot dete hain. Un par Baap ka sabse adhik pyaar rahata hai. Jo achchi riti padhne wale hain wohi mala me piroyenge.
Q- Bhavisya Dev pad prapt karne ke liye apni kaun si jaanch karni hai?
A- Jaanch karo Devi goon dharan karne me kaun-kaun se bighna aatey hain, un bighno ko yukti se udana hai. Apne ko dekhna hai hum pawan kahan tak bane hain! koi bhi kaanta rukawat to nahi daalta.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Grihast byavahar me rehte huye kamal phool samaan rahana hai. Jab tak jeena hai pavitrata ka bratt jaroor rakhna hai.
2) Krupa mangne me bajaye mata-pita ko follow karna hai. Padhai dhyan se padhni aur padhani hai
Vardaan- Amritvele apne mastak par bijay ka tilak lagane wale Swarajya adhikari so Biswa Rajya adhikari bhava
Slogan - Gyan, goon aur shaktiyon ka daan karna he mahadan hai.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
10-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - जब तक जीना है पवित्रता का व्रत पक्का रखना है क्योंकि यह अन्तिम जन्म है, पवित्र बनकर पवित्र दुनिया में जाना है”
प्रश्न:बाप का प्यार वा अधिकार किन बच्चों पर रहता है?
उत्तर:जो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं, सबूत देते हैं। उन पर बाप का सबसे अधिक प्यार रहता है। जो अच्छी रीति पढ़ने वाले हैं वही माला में पिरोयेंगे।
प्रश्न:भविष्य देव पद प्राप्त करने के लिए अपनी कौन सी जांच करनी है?
उत्तर: जांच करो दैवी गुण धारण करने में कौन-कौन से विघ्न आते हैं, उन विघ्नों को युक्ति से उड़ाना है। अपने को देखना है हम पावन कहाँ तक बने हैं! कोई भी कांटा रूकावट तो नहीं डालता!
गीत: छोड़ भी दे आकाश सिंहासन... ओम् शान्ति।
भक्त भगवान को अर्थात् बाप को बुलाते हैं, क्यों बुलाते हैं? क्योंकि दु:खी हैं। यह भी तुम समझते हो कि दु:ख के बाद सुख आना है जरूर। सुख था, अभी नहीं है फिर बुलाते हैं कि आकर सहज राजयोग सिखाओ। सिखलाने वाला जरूर बाप चाहिए। बाप समझाते हैं जैसे तुम आत्मा गर्भ में आकर शरीर लेती हो ऐसे मैं नहीं लेता हूँ। मुझे तो पतितों को पावन बनाना है, इसलिए मुझे बड़ा शरीर चाहिए। मुझे आना ही है पावन बनाने। माया रावण ने तुमको पतित बनाया है, इसलिए अब यह 5 विकार दान में दे दो तो ग्रहण छूट जाये। पहला मुख्य है देह-अभिमान। अपने को अब देही-अभिमानी समझो। मैं इस देह में रहने वाली आत्माओं से बात करता हूँ, उन्हों को ज्ञान देता हूँ। 5 हजार वर्ष पहले भी यह ज्ञान सुनाया था। राजयोग सिखलाया था। कल्प-कल्प सिखलाता हूँ। आने से ही हमारा पतितों को पावन बनाने का धन्धा ठहरा। बाप का पार्ट है, आकर बच्चों को पावन बनाना। तुम जानते हो हम सो देवता पावन थे फिर पावन बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं। भविष्य में तुम सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी प्रिन्स प्रिन्सेज बनने वाले हो। यह नॉलेज है ही भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनने की। तो जब दैवीगुण धारण करेंगे तब प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। अपने को देखना है, मैं धारणा करता हूँ? क्या-क्या विघ्न आते हैं? युक्ति से उन विघ्नों को उड़ाना है। बाप की याद से ही कर्मातीत अवस्था को पाना है। कांटा जो आवे उनको हटाते आगे- आगे जाना है। देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। जितना याद करेंगे उतना रास्ता साफ होता जायेगा। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। विकार में कभी नहीं जाना है। मूल बात है ही विकार की। विकार में जाना बंद करना है। भल कितने भी विघ्न आयें परन्तु पवित्र जरूर बनना है। जास्ती विघ्न स्त्रीयों पर आते हैं। वह चाहती हैं हम पवित्र रहें। कृष्णपुरी में जाने चाहती हैं। कृष्ण जयन्ती पर बहुत प्रेम से कृष्ण को झुलाती हैं। पूजा करती हैं, व्रत आदि रखती हैं। वह तो है सिर्फ 7 दिन का व्रत नेम। बाप कहते हैं कि अभी तुम यह व्रत रखो कि विकार में कभी नहीं जायेंगे। जब तक जीना है तब तक पवित्रता का व्रत रखना है। तुम जानते हो इस पुरानी दुनिया में अब यह हमारा अन्तिम जन्म है। न सिर्फ हमारा बल्कि सारी दुनिया का अन्तिम जन्म है। तुम तो समझते हो कि अब हम पवित्र बन पवित्र दुनिया में जाते हैं। दूसरा जन्म हमारा पवित्र दुनिया में होगा। वह हठयोगी सन्यासी कोई इस विचार से पवित्र नहीं बनते हैं कि यह हमारा अन्तिम जन्म है। यहाँ तो मेहनत है। साथ में रहते हुए भी कभी विकार में नहीं जाना है। दोनों को व्रत लेना है। अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं। वही पुकारती हैं। पुरूष कभी पुकारते नहीं हैं कि प्रभू लाज रखना। नंगन होने से बचाओ, यह माताओं की पुकार है। मातायें बाप को पुकारती हैं हे बाबा मुझे नंगन होने से बचाओ। यह वही गीता भागवत वाली बातें हैं, सिर्फ नाम भूल से कृष्ण का लगा दिया है। कृष्ण तो पतित-पावन है नहीं। पतित-पावन तो एक ही बाप है। तुम समझते हो कि पवित्र बनने के लिए मारें भी खानी पड़ती हैं। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। अब फिर से हो रहा है। एक द्रोपदी नहीं, तुम कितनी द्रोपदियां हो। अनेक पतितों को पावन बनाना है। तुम मातायें निमित्त बनी हो - पवित्र बनकर, पवित्र बनाने। तुमको तो और ही जास्ती पढ़ाई पर ध्यान देना है। अपनी हमजिन्स को उठाना है। सन्यासियों का है निवृत्ति मार्ग। यह है प्रवृत्ति मार्ग। गृहस्थ व्यवहार में रह पवित्र बनना है, पढ़ना और पढ़ाना है, जिससे ऊंच पद हो जाए। पढ़ाई है बहुत सहज। समझाना है भारत जो हीरे जैसा था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, अभी इतना गिरा क्यों है। हम आपको बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बतावें। फिर स्वर्ग कैसे होगा, मनुष्यों के तो ख्याल में भी नहीं है। यह किसवपता नहीं कि लक्ष्मी-नारायण जो पूज्य थे वही पुजारी बने हैं। आपेही पूज्य... यह परमात्मा के लिए नहीं है। यह किसको पता नहीं कि जो पूज्य थे वही पुजारी तमोप्रधान बने हैं। पूज्य थे, जरूर पुनर्जन्म लिया होगा। बाप बैठ समझाते हैं सतयुग में जो आते हैं उनको पुनर्जन्म लेना है। हम सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बनें, अब ब्राह्मण वंशी बनते हैं, फिर देवता वंशी बनेंगे। जैसे इनको बाप ने एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाया है। कोई पूछे तुम कैसे बने? बोलो, ब्रह्मा के मुख से परमपिता परमात्मा ने हमको अपना बनाया है। बाप ही पतितों को पावन बनाते हैं। अभी हम प्रतिज्ञा करते हैं पवित्रता की। बाप को याद करने से ही हम पावन बनते हैं। बाप कृपा करेंगे? कृपा तो की है ना। परमधाम से पतित दुनिया में, पतित शरीर में आये हैं। बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ जो सिखलाता हूँ वह सीखो, मुझे याद करो तो तुम्हें ताकत मिलेगी। विकर्म विनाश होंगे, इसमें आशीर्वाद की तो बात ही नहीं। टीचर को कहेंगे क्या कि आप कृपा करो तो हम 100 मार्क्स से पास हो जायें! यह भी बेहद का टीचर है - पढ़ाते हैं। कोई को नॉलेज धारण नहीं होती है तो क्या करेंगे! टीचर सब पर कृपा करे तो सब पास हो जाएं, फिर तो राजधानी कैसे बनेगी। तुम बच्चों को तो पुरूषार्थ करना है। फालो करो माँ बाप को। बाप को याद करो और कोई उपाय है नहीं। नहीं तो बाप को पुकारते क्यों हो। साधू सन्त आदि सब कहते हैं हमको दु:खों से आकर छुड़ाओ। भारी संकट आने हैं, जब विनाश शुरू हो जायेगा फिर समझेंगे जरूर कहीं भगवान गुप्त वेश में है। कृष्ण अगर होता तो सारी दुनिया में ढिंढोरा पिट जाता। कृष्ण तो आ न सके। यह तो बाप को आना पड़ता है। अन्त तक बाप को ज्ञान सुनाना है। आते ही गुप्त रूप में हैं। कृष्ण तो हो न सके। निराकार बाप सभी का एक है। वह आये हैं पतितों को पावन बनाकर वर्सा देने। तुम्हारा भी फर्ज है - सबको बतलाना। पूछना है परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है! बाप को कितने ढेर बच्चे हैं। परमपिता परमात्मा का डायरेक्शन है कि एक तो मुझे याद करो और अच्छी रीति पढ़ो। बाबा को अच्छी रीति याद कर ऊंच वर्सा पाना है। बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुमको समझाते रहते हैं। चित्रों पर भी तुम समझा सकते हो। भारत सतयुग में सिरताज था। सूर्यवंशी देवी देवतायें राज्य करते थे फिर चन्द्रवंशी राज्य हुआ, कला गिरती गई। यह भी तो देखना पड़े ना। पढ़ेंगे अच्छी रीति तो सीखेंगे भी। पढ़ेंगे नहीं तो नापास हो जायेंगे। सावधानी कौन दे। आजकल माया असावधान करने वाली बहुत है। यहाँ झूठ छिप नहीं सकता। कोई विकर्म करेंगे तो वह जमा होता जायेगा। पाप अथवा पुण्य जमा तो जरूर होता है। उस अनुसार ही दूसरा जन्म मिलता है। कोई भी पाप करेंगे तो जन्म भी ऐसे ही मिलेगा इसलिए बाप कहते हैं कोई पाप करते हो तो झट बतलाओ। ऐसे नहीं कि ईश्वर तो सब जानते हैं। बाप को बतलाना पड़े। इस जन्म में जो पाप कर्म किये हैं वह आत्मा जानती है। सब कुछ याद रहता है कि हमने क्या-क्या काम किये हैं। बापदादा को बतलाओ कि हमने क्या-क्या किया। मुख्य बात है विकार की। चोरी करना, ठगी करना वह तो छोटी-छोटी बातें हैं। मुख्य है विकार की बात, काम महाशत्रु है। विकार में जाने वाले को ही पतित कहा जाता है। इन विकारों पर पहले जीत पानी है। तुम्हारा दुश्मन ही रावण है जो पतित बनाते हैं। अब पावन बनने के लिए बाप को याद करो। बाप का बनकर और फिर विकार में गिरे तो चोट बहुत लगेगी। पहले तो देह-अभिमान छोड़ना है फिर काम महाशत्रु है। सारी युद्ध है इस पर। तो यह सब बातें समझकर फिर औरों को समझानी है। बाबा पूछेंगे तुमने कितनों को सच्ची गीता वा सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुनाई! पाप आत्मायें तो ढेर की ढेर हैं। तो यह भी पोतामेल बताओ तब समझें तुम ब्राह्मण बने हो। कितने को आपसमान बनाया है! यह है सहज राजयोग की बातें। बाप का परिचय देना है। दुनिया में यह तो कोई जानते नहीं हैं। बाप के पास बहुतों के सर्टिफिकेट भी आते हैं। लिखते हैं फलाने ने ऐसा समझाया, वही गुरू निमित्त बना स्वर्ग का मालिक बनाने। बी.के. सबूत देते हैं। परन्तु जो बनते हैं, वह किसको समझाते हैं? किसको ले आते हैं? ले तो आना है ना! जिनको निश्चय होगा फट से कहेंगे, पहले बाप की गोद तो ले लेवें। क्रिश्चियन में बच्चा पैदा होता है तो क्रिश्चिनाइज कराते हैं। हम भी तो ईश्वर की गोद का बच्चा बनें। सदगुरू की गोद तो लें। गोद ली, बाप से मिले तो यह हमारा वर्सा हो गया। ऐसे मस्त कोई मुश्किल निकलते हैं। समझाना तो है ना। आगे चल अच्छी रीति समझेंगे। तुम्हारे में यह ताकत भरेगी। फिर बाप से मिलने बिगर ठहर नहीं सकेंगे। एकदम भागेंगे। यह माँ बाप भी है, टीचर भी है, फिर गुरू भी है। माँ बाप की गोद तो ले लो। गुरू के पास जाते हैं परन्तु वह तो कोई स्वर्ग की बादशाही देते नहीं। बादशाही बाप से ही मिलती है। बाप ही टीचर गुरू भी है तो क्यों नहीं तीनों से वर्सा लेवें। यह वन्डर है ना! कृष्ण के लिए थोड़ेही कहेंगे वह बाप टीचर गुरू था। कृष्ण तो छोटा प्रिन्स है। यहाँ तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह बाप भी है, शिक्षक भी है और गुरू भी है। इनका कोई बाप, शिक्षक, गुरू नहीं है। कृष्ण के तो माँ बाप थे ना। पतित-पावन है एक बाप, जिसको माँ बाप हैं वह पतित-पावन हो न सकें। उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान का कोई माँ बाप नहीं। गॉड फादर का कोई फादर हो नहीं सकता। गॉड फादर को ही पतित-पावन, लिबरेटर कहा जाता है। उन्हें लिबरेट करने वाला कोई नहीं है। यह बाप का ही काम है। मनुष्य को भगवान कह नहीं सकते। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी रचने वाला वह बाप रचयिता है। ऊंच ते ऊंच भगवान गाया जाता है। वह हम सबका बाप है। कृष्ण को सभी का बाप थोड़ेही कहेंगे। हम एक निराकार बाप के सब बच्चे हैं। वही नई दुनिया का रचयिता है। नई दुनिया को सुखधाम कहा जाता है। फिर नई से पुरानी दुनिया बनती है। रावण राज्य है ना। रावण को जलाते भी हैं, परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। त्योहार जो भी मनाते हैं, उसका अर्थ भी समझते नहीं हैं। बाप समझाते हैं तुम्हारा यह बहुत जन्मों के अन्त का अन्तिम जन्म है। रावण का भी अभी अन्त है फिर सतयुग में थोड़ेही बनायेंगे। यह दुश्मन किस प्रकार का है जिसको जलाते ही रहते हैं। इनका जन्म कब हुआ? किसको पता नहीं। शिव जयन्ती मनाते हैं तो रावण जयन्ती भी मनावें ना! समझते कुछ भी नहीं। तुमको समझाया जाता है - यह है डिटेल की बातें। यह भी बुद्धि में धारण करनी पड़े। क्लास में ही नहीं आयेंगे तो क्या पढ़ेंगे। पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे नहीं तो क्या पद पायेंगे। बच्चा वही अच्छा जो पढ़कर पढ़ाये। सबूत दे। बच्चे तो सब हैं। समझना चाहिए हम बहुत सर्विस करेंगे, बहुतों को आप समान बनायेंगे तो बाबा का अच्छा प्यार रहेगा। बाप तो पुचकार देते रहते हैं। बच्चे अच्छी रीति पढ़ो। तोता भी एक पढ़ने वाला होता है, जिसे कण्ठी होती है। यहाँ भी ऐसे हैं जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वही कण्ठी (माला) में पिरोयेंगे। पढ़ते ही नहीं तो जैसे जंगली हैं। वह विजय माला में आ न सके। तुम बच्चों को तो अच्छी रीति पढ़ना और पढ़ाना है। यह है सच्ची कथा, जो सच्चा बाप ही सुनाते हैं। सचखण्ड की स्थापना करते हैं। लक्ष्मी-नारायण के राज्य में झूठ कभी बोलते नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए कमल फूल समान रहना है। जब तक जीना है पवित्रता का व्रत जरूर रखना है।
2) कृपा मांगने के बजाए मात-पिता को फालो करना है। पढ़ाई ध्यान से पढ़नी और पढ़ानी है।
वरदान:
अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाने वाले स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी भव
रोज अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ। भक्ति की निशानी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है, राज्य प्राप्त करने की निशानी भी राजतिलक है। कभी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने जाते हैं तो जाने के पहले तिलक देते हैं। आप सबको भी बाप के साथ का सुहाग है इसलिए अविनाशी तिलक है। अभी स्वराज्य के तिलकधारी बनो तो भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक मिल जायेगा।
स्लोगन: ज्ञान, गुण और शक्तियों का दान करना ही महादान है।
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Details ( Page:- Murali 11th Aug 2017 )
11.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche- Nirantar ek Baap ki yaad me rehne ka purusharth karo- yahi hai behad ka satopradhan purusharth.
Q- Tum baccho ko kaun sa sang karna hai, kaun sa nahi?
A- Jo gyan ki rooharihan karte hain, serviceable hai unka he sang karo baki jo jharmui jhagmui karte hain, faltu baatein soonate hain, unke sang se door raho. Hear no evil, see no evil.....
Q- Gaflat karne se kaun se nuksaan hote hain?
A- Jo gaflat me rehte unse har samay bhoolen hoti rehti hai. Wo Baap ka name badnaam karte rehte hain. Unse sabhi ko nafrat aati hai. Wo golden age me nahi pahunchte fir bahut kadi saja ke bhaagi bante hain.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Apni jholi abinashi gyan ratno se bharkar apna shringar karna hai. Atindriya sukh ke liye buddhi ko gyan se bharpoor karna hai.
2) Dhutipana bahut nuksaan karta hai isiliye gyan ke sivaye koi bhi baat sunni sunani nahi hai. Oolti baat sunane walo ke sang se bahut door rehna hai.
Vardaan - Haydon se nyare rah Parmatm pyaar ka anubhav karne wale Roohaniyat ki Khushboo se Sampann bhava
Slogan- Avyakt sthiti ka anubhav karne ke liye vyakt bhav aur bhavnao se parey raho.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
11-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - निरन्तर एक बाप की याद में रहने का पुरूषार्थ करो - यही है बेहद का सतोप्रधान पुरूषार्थ”
प्रश्न:तुम बच्चों को कौन सा संग करना है, कौन सा नहीं?
उत्तर:जो ज्ञान की रूहरिहान करते हैं, सर्विसएबुल हैं उनका ही संग करो बाकी जो झरमुई झगमुई करते हैं, फालतू बातें सुनाते हैं, उनके संग से दूर रहो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल...
प्रश्न:गफलत करने से कौन से नुकसान होते हैं?
उत्तर:जो गफलत में रहते उनसे हर समय भूलें होती रहती हैं। वह बाप का नाम बदनाम करते रहते हैं। उनसे सभी को नफरत आती है। वह गोल्डन एज में नहीं पहुँचते फिर बहुत कड़ी सजा के भागी बनते हैं।
गीत:माता ओ माता... ओम् शान्ति।
यह है माताओं की महिमा। तुम सब मातायें हो। भारत माता शक्ति अवतार - ऐसे कहा जाता है क्योंकि अवतार एक का ही गाया जाता है। वह विश्व को पावन बनाने के लिए अवतार लेते हैं। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि परमपिता परमात्मा हमको पतित से पावन बनाने आये हैं। ब्रह्मा के तन में हैं। यह जो दिलवाला मन्दिर है - यह पूरा यादगार है। जो भी भक्तिमार्ग के यादगार हैं, यादगार होते ही इस संगम के हैं। सतयुग त्रेता में तो ऐसी बात होती नहीं, फिर रावणराज्य में मनुष्य दु:खी होते हैं। रावण ही रजो तमो बनाते हैं। अब इस समय यह सृष्टि है तमोप्रधान। जब सृष्टि सतोप्रधान थी तो तुम बच्चे वहाँ राज्य करते थे। तुम्हारी बुद्धि में यह स्वदर्शन चक्र है। तुम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। ज्ञान देने वाला एक ही ज्ञान सागर है, जिसकी निशानी यह देलवाड़ा मन्दिर है और फिर अचलगढ़ और गुरूशिखर भी है। तुमको मालूम है - शिखर चोटी को कहा जाता है। पहाड़ी पर शिवबाबा का मन्दिर है। जिसके लिए कहा जाता है - ज्ञान अजंन... ज्ञान का सागर हुआ ना। यह बिल्कुल एक्यूरेट यादगार है। तुम बैठे भी यहाँ ही हो - चोटी पर चढ़ने लिए। परमपिता परमात्मा के गले की रूद्र माला बनने लिए। तुमको यहाँ ज्ञान मिलता है। फिर जब तुम अचल, स्थ्ोरियम बनते हो तो तुम जाकर रूद्र माला बनते हो। जब तुम सतोप्रधान बन जाते हो तो तुम बाप के साथ निवास करते हो। यह जैसे डबल पियरघर है। प्रजापिता ब्रह्मा का भी है और शिवबाबा भी यहाँ आया है, तुम बच्चों को ज्ञान श्रृंगार कराने। यह है बेहद का पियरघर, ससुरघर, वह तो हद के होते हैं, कन्या ससुरघर जाकर जेवर आदि पहनती है, उसमें सुख समझती है। तुम अभी समझ गये हो कि हम बेहद के बाप के घर में बैठे हैं। ससुरघर जाने के लिए अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा कर रहे हैं। 21 जन्मों के लिए तुम्हारी झोली भर रही है। परन्तु तीव्रवेगी इतने नहीं हैं, सतोप्रधान को तीव्रवेगी कहा जाता है। कोई सतोगुणी और कोई अब तक भी रजोगुणी हैं। 3 प्रकार के पुरुषार्थी होते हैं। ऊंच ते ऊंच पुरुषार्थी सदैव बुद्धि में एक बाप को ही याद रखते हैं। ऊंच ते ऊंच है वह बाप। अभी तुम जानते हो हम बच्चे बेहद सुख में जा रहे हैं तो उसके लिए पुरूषार्थ भी बहुत अच्छा करना पड़े - बेहद का। आत्मा कहती है मैं आइरन एज में आ गई हूँ। अब परमपिता परमात्मा मिला है - कहते हैं बच्चे तुमको यहाँ पुरूषार्थ कर गोल्डन एज में जाना है। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब गोल्डन एज में आयेंगे। तमोप्रधान से फिर सतोप्रधान बनना है। सतोप्रधान भी सबको बनना है। तुम्हारा पार्ट ही सतयुग में है, इसलिए तुम सतोप्रधान बनते हो, परन्तु जाना तो सबको है ना। सबको नम्बरवार रूद्र माला बनना है। यह रूद्र माला कितनी बड़ी है। 8 रत्नों की भी माला है, तो 108 की भी है। तुम्हारा यादगार कितना एक्यूरेट दिलवाला मन्दिर बना हुआ है। नीचे तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में राजाई दिखाई है। और मन्दिर में मुख्य जगदम्बा का भी नाम है। पार्ट तो तुम माताओं का है ना। बाप आकर गुरू पद तुम माताओं को ही देते हैं। यहाँ भी मैजारिटी माताओं की है इसलिए भारत माता शक्ति अवतार गाया जाता है। सेना भी कहा जाता है क्योंकि आपस में बहुत हैं ना। तुम देखते हो वृद्धि को पाते रहते हैं। सन्यासी घरबार छोड़ते हैं पवित्र बनने लिए, रावण राज्य शुरू होता है तो पवित्रता की जरूरत रहती है। उस समय हाहाकार हो जाता है। अर्थक्वेक आदि हुआ होगा। इतने सब महल आदि कहाँ गये! सब विनाश को पाते हैं वा सागर में चले जाते हैं। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, यह समझने की बात है। आइरन एज से फिर गोल्डन एज में जाना है। स्वर्ग है तुम्हारा बेहद का ससुरघर, जिसके लिए तुम पुरूषार्थ करते हो। पूरा ज्ञान हो, पूरा पुरूषार्थ करें तब खुशी का पारा चढ़े। अतीन्द्रिय सुख अन्त का गाया हुआ है। पिछाड़ी में तुमको पता पड़ जायेगा कि किस-किस ने कितना पुरूषार्थ किया! क्या पद पायेंगे! पिछाड़ी में समझेंगे, जब तक पुरूषार्थ कर गोल्डन एज तक पहुँच जायेंगे। जो नहीं पहुँचते हैं वह फिर सजा खाते हैं। अभी तो कयामत का समय है। सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। तुम चुक्तू करते रहते हो ज्ञान और योगबल से। गाया भी जाता है चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस... क्योंकि विकार में गिर पड़ते हैं। देह-अभिमान में आने के बाद ही विकार में गिरते हैं, फिर चढ़ न सकें। चढ़ते हैं फिर गिरते हैं, टाइम तो लगता है ना। ऐसा हो नहीं सकता जो सीधा चलता जाए। थोड़ी भी अवस्था अच्छी होती है फिर देह-अभिमान आ जाता है। महसूसता आती है कोई ग्रहचारी है। मन्सा में तूफान बहुत आते हैं। चढ़ने में तो टाइम लगता है। बाबा रोज समझाते रहते हैं कि बच्चे पढ़ाई रोज पढ़ो। प्वाइंट्स दिन-प्रतिदिन बहुत मिलती रहती हैं। बाप और वर्से को याद करो। यह नाटक पूरा होता है। हमको फिर से वर्सा लेना है। सतयुग में राजा रानी, प्रजा सब होंगे। जैसे कर्म अथवा जो पुरूषार्थ करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। लक्ष्मी-नारायण से ही राज्य शुरू होगा। वह होता है विकर्माजीत संवत, विकर्मों पर जीत पहनकर तुम अपना राज्य-भाग्य लेते हो। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पायेंगे। हर एक अपने पुरूषार्थ की रिजल्ट देखते चलो। हम कितना पुरूषार्थ करते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान में जाना है। आत्मा कहती है मुझे पुरूषार्थ करके सूर्यवंशी राजाई पानी है। हम तो पूरा पढ़कर बाप को पूरा याद करेंगे। तुमको अभी सारे ज्ञान की रोशनी मिलती है। भविष्य में तुम क्या बनेंगे! बहुत बच्चे गफलत करने के कारण भूल जाते हैं। अवज्ञा भी करते रहते हैं। बेहद बाप की निंदा कराने के निमित्त बन पड़ते हैं। क्रोध के कारण भी कितना नुकसान कर देते हैं। समझते हैं इनमें तो क्रोध का भूत है इसलिए कामी और क्रोधी से बहुत दूर रहना चाहिए, उनका संग नहीं करना चाहिए। संग उनका होना चाहिए जो ज्ञान की टिकलू-टिकलू करते हैं। ऐसे नहीं जो झरमुई झगमुई करते, किसकी निंदा करते - उनका संग हो। सिवाए ज्ञान के कोई बात नहीं सुनना चाहिए। यह बातें भी नामीग्रामी हैं। दिखाते भी हैं धूतियों के कारण राम-सीता को वनवास मिला। धूतीपना नुकसान कर देता है। हियर नो ईविल... उल्टी-सुल्टी बातें करने वालों के संग में कभी नहीं फँसना। बहुत नुकसान कर देते हैं। बेहद के बाप से बुद्धियोग तुड़ा देते हैं। पूरा योग नहीं तो फेल हो चन्द्रवंशी में चले जाते हैं। बाकी ऐसे नहीं कि रामराज्य में कोई रावण सीता को चुरा ले गया। नहीं, यह सब गिरावट की बातें हैं। द्वापर से लेकर पुकारते आते हैं क्योंकि गिरते हैं तबा तो भगवान को आना पड़ता है। अगर सद्गति होती तो भगवान को आने की दरकार नहीं होती। सतयुग त्रेता में सद्गति है तो कोई भगवान को याद नहीं करते, कोई बुलाते ही नहीं। ड्रामा के राज को, चढ़ती कला, उतरती कला को कोई जानते ही नहीं। बाप सन्मुख बैठ समझाते हैं। सारी दुनिया को तो पढ़ना नहीं है। पढ़ेंगे वही जो कल्प पहले पढ़े थे। बाप सावधान करते रहते हैं। इस पढ़ाई से तुम्हारी आत्मा को पता पड़ा है कि हम कितना ऊंच थे। अब गिरे हैं। बाप कहते हैं पतित से पावन बन फिर गोल्डन एज में जाना है। याद के बल से एवरहेल्दी, ज्ञान के बल से एवरवेल्दी बनना है। पवित्रता का आर्डानेंस निकाला है। पवित्र बनने से ही तुम अमरपद को पाते हो। तुम्हारा विनाश नहीं होता है। बाकी सब विनाश हो जाते हैं, हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे। शिवबाबा कहते हैं पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। नहीं तो फिर सजायें खाकर जायेंगे। कितना बड़ा आर्डानेंस है। तुम समझते हो बरोबर विनाश सामने खड़ा है, इसलिए हमको मजबूत हो जाना है। किसम-किसम की प्वाइंट्स बाबा सुनाते रहते हैं, सुननी चाहिए। अगर सुनेंगे नहीं तो माला में आ नहीं सकेंगे। माला में नम्बरवार आने हैं। बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। अच्छे स्टूडेन्ट अच्छी तरह पढ़ाई में लग जाते हैं। बाबा सेन्टर का रजिस्टर भी मंगाते हैं। बाबा सबको खबरदार भी करते हैं। पढ़ना जरूर है, इसमें कोई कारण दे नहीं सकते हैं। टाइम तो बच्चों को बहुत है। 8 घण्टा भी गवर्मेन्ट की नौकरी करो, बाकी टाइम में मेहनत करनी है। ख्याल करना है - सारे दिन में हम बाबा की सर्विस में कितना समय रहा? बाबा की याद में कितना समय रहा? कोई कोई बच्चों का चार्ट आता है परन्तु वह चार्ट जब सदैव के लिए रहे। ऐसे भी नहीं बाबा एक-एक का बैठ देखेंगे। यह फिर सेन्टर की ब्राह्मणियों का काम है। ब्राह्मणियों में भी नम्बरवार हैं। गोल्डन एज में कोई पहुँची नहीं हैं। उसमें अजुन समय पड़ा है। कोई तो और ही श्रीमत पर न चलने के कारण खिसक पड़ते हैं फिर उनको कोई मान भी नहीं देते हैं। कोई भी उनको पसन्द नहीं करते हैं। तुम बच्चों को दुनियावी बातें बिल्कुल नहीं करनी है। कोई झरमुई झगमुई करते हैं तो समझो हमारा दुश्मन है। यह हमको गिराने वाला है। फालतू बातें नहीं करनी हैं। अपने को देखना है - कहाँ तक पहुँचे हैं। सतगुरू एक बाप है, उसमें यह ज्ञान भरा हुआ है। तुमको तो ऊपर गुरूशिखर (परमधाम) में जाना है। यह सब ज्ञान की बातें हैं। पहाड़ आदि की कोई बात नहीं है। सबसे पार चले जाना है। इन बातों को कोई जानते नहीं हैं। बाप कहते हैं - तुम पहले तमोप्रधान थे। अब तुमको सतोप्रधान बनना है। बहुत हैं जिनको यह भी निश्चय नहीं है, पूरा योग नहीं है। दूसरों को समझाते हैं, उन्हों का कल्याण हो जाता है। ऐसे नहीं वह कल्याण करते हैं। नहीं, वह तो अपने भाग्य अनुसार राज को समझ जाते हैं। ऐसे बहुत हैं जो ब्राह्मणी से भी तीखे चले जाते हैं। कई बच्चों में अभी तक देह-अभिमान बहुत है, पिछाड़ी में देह भी याद न रहे। सन्यासियों में भी कोई विरले ऐसे होते हैं जो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं और सन्नाटा हो जाता है। फिर भी गृहस्थियों के पास जाकर जन्म लेते हैं। फिर श्रेष्ठाचारी बनने के लिए जंगल में चले जाते हैं। माया का राज्य है ना। यह चक्र कैसे फिरता है उनको भी समझना है। बहुत बच्चियां हैं जिन्होंने बाबा को कब देखा भी नहीं है तो भी याद करती रहती हैं, तो जरूर ऊंच पद पायेंगे। सारा पुरूषार्थ का खेल है ना। कोई तो रात-दिन बहुत मेहनत करते हैं। तुम जानते हो इस पतित दुनिया में इस ही शरीर में तुमको सतोप्रधन बनना है। टाइम लगता है पावन बनने में। जब तक यह दुनिया है, यह पढ़ाई है तब तक पढ़ना है। जहाँ तक जीना है - वहाँ तक पीना है, ताकि कर्मातीत अवस्था में चले जायेंगे। इस देह से, दुनिया से बिल्कुल ममत्व निकल जाए। राजा रानी बनने में मेहनत है। जो पढ़ेंगे वह दिल रूपी तख्त पर बैठेंगे। अन्दर में समझते हैं, कहाँ तक मददगार हैं। बेहद का बाप अवस्था देख प्यार करेंगे ना! बाप कहते हैं अपना कल्याण करना चाहते हो तो श्रीमत पर चलो। ऐसा काम नहीं करो जो दूसरे को नफरत आ जाए। बॉक्सिंग है ना। तुमको इस युद्ध में कितना टाइम लगता है। अच्छा!
मीठे-मीठे ज्ञान गुल्जारी, ज्ञान योग के पुरुषार्थी बच्चों को मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरकर अपना श्रृंगार करना है। अतीन्द्रिय सुख के लिए बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करना है।
2) धूतीपना बहुत नुकसान करता है इसलिए ज्ञान के सिवाए कोई भी बात सुननी सुनानी नहीं है। उल्टी बात सुनाने वालों के संग से बहुत दूर रहना है।
वरदान:
हदों से न्यारे रह परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न भव
जैसे गुलाब का पुष्प कांटों के बीच में रहते भी न्यारा और खुशबूदार रहता है, कांटों के कारण बिगड़ नहीं जाता। ऐसे रूहे गुलाब जो सर्व हदों से वा देह से न्यारे हैं, किसी भी प्रभाव में नहीं आते वे रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न रहते हैं। ऐसी खुशबूदार आत्मायें बाप के वा ब्राह्मण परिवार के प्यारे बन जाते हैं। परमात्म प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सभी को प्राप्त हो सकता है, लेकिन उसे प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना।
स्लोगन:
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए व्यक्त भाव और भावनाओं से परे रहो।
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Details ( Page:- Murali 12th Aug 2017 )
12.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche- Tum Sangam yugi Brahmano ka dharm aur karm hai gyan amrit peena aur peelana, tum Narkvasi ko Swargvasi banane ki seva karte ho.
Q- Tum Brahmano ko karmo ki kis guhya gati ka gyan mila hai?
A- Agar Baap ka banne ke baad kabhi bhi apni karmendriyo se koi paap karm kiya to ek paap ka sow gonna dand pad jayega- yah gyan tum Brahmano ko hai, isiliye tum koi bhi paap karm nahi kar sakte ho. Abhi tum Brahmano ka lakshya hai - sarv goona sampann banna, isiliye tum apne abgoono ko nikalne ka he purusharth karo.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Apna register kharab na ho iska dhyan rakhna hai. Baap ki agyan maan dehi-abhimaani banna hai. Karmendriyo se koi bhi bhool nahi karni hai
2) Sarv goona sampann banne ke liye karmendriyo se aisa koi paap karm na ho jaye jiska bikarm ban jaye. Purana hisaab-kitaab chuktu karna hai.
Vardaan- Nothing new ki yukti dwara har paristhiti me mouj ki sthiti ka anubhav karne wale sada Achal-Adol bhava
Slogan- Briti me subh bhavana ho, subh kamana ho to subh vibration failte rahenge.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
12-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम संगमयुगी ब्राह्मणों का धर्म और कर्म है ज्ञान अमृत पीना और पिलाना, तुम नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाने की सेवा करते हो”
प्रश्न: तुम ब्राह्मणों को कर्मों की किस गुह्य गति का ज्ञान मिला है?
उत्तर: अगर बाप का बनने के बाद कभी भी अपनी कर्मेन्द्रियों से कोई पाप कर्म किया तो एक पाप का सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा - यह ज्ञान तुम ब्राह्मणों को है, इसलिए तुम कोई भी पाप कर्म नहीं कर सकते हो। अभी तुम ब्राह्मणों का लक्ष्य है - सर्वगुण सम्पन्न बनना, इसलिए तुम अपने अवगुणों को निकालने का ही पुरूषार्थ करो।
गीत: भोलेनाथ से निराला.... ओम् शान्ति।
बेहद के बाप का नाम है भोलानाथ, जरूर मनुष्य से देवता बनाने वाला भी वही है। मनुष्य तो सब हैं आसुरी सम्प्रदाय। वह मनुष्य को देवता बना न सकें। उनके लिए ही गाया हुआ है मनुष्य से देवता किये... देवता रहते हैं अमरलोक में। यह है मृत्युलोक। जरूर बाप आकर मृत्युलोक में अमरकथा सुनायेंगे, अमर बनाने के लिए। अब मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार... यह किसको कहा जाए? जरूर शूद्रों को ही एडाप्ट करता होगा ना। तो कहेंगे कि शूद्र वर्ण के मनुष्यों को ब्राह्मण वर्ण में ले आते हैं। इतने सभी बच्चे कहते हैं कि हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, ब्रह्मा की सन्तान हैं। प्रजापिता है तो उनको जरूर धर्म के बच्चे होंगे। मुख वंशावली हैं तो भी जरूर मात-पिता चाहिए ना। मम्मा की भी मुख वंशावली कहेंगे। बाबा की भी मुख वंशावली तो दादे की भी मुख वंशावली ठहरी। कुख वंशावली का यहाँ नाम ही नहीं। वह कलियुगी ब्राह्मण हैं कुख वंशावली और तुम ब्राह्मण हो मुख वंशावली। वह ब्राह्मण तो एक दो का हथियाला बांधते हैं विष पिलाने के लिए। और तुम ब्राह्मण अमृत पिलाने परमात्मा से हथियाला बांधते हो। कितना अन्तर है। वह नर्कवासी बनाने वाले और यह स्वर्गवासी बनाने वाले। ज्ञान अमृत से मनुष्य से देवता बनते हैं। हम ईश्वर की औलाद बनते हैं तो फिर मदद भी मिलती है। सगे और लगे भी हैं ना। लगे बच्चों को इतनी मदद नहीं मिलेगी, जितनी सगे बच्चों को। बाप का लव भी सगों पर ही रहता है। सगा बच्चा नहीं होगा तो फिर भाई के बच्चों को लव करना पड़ेगा वा धर्म का बच्चा बनाना पड़ेगा। अब तुम वर्णों को जानते हो। भल विराट स्वरूप बनाते हो परन्तु उन्हों की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई बता न सके कि इनसे क्या होता है। अभी बाप समझाते हैं कि यह चक्र फिरता है, इतने जन्म देवता धर्म में, इतने जन्म क्षत्रिय वर्ण में। यहाँ कोई गपोड़े की बात नहीं है। 84 जन्म सिद्ध कर बतलाते हैं। सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो जरूर सबको बनना है। देवतायें जो सतोप्रधान थे, वही फिर आकर तमोप्रधान बन गये हैं। अब यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ जड़ जड़ीभूत हो गया है अर्थात् कब्रदाखिल है। यह है कयामत का समय। सभी का पुराना हिसाब-किताब चुक्तू होना है और नया जन्म होना है। चौपड़ा होता है धन का। यहाँ फिर चौपड़ा कर्मों के खाते का है। आधाकल्प का खाता है। मनुष्य जो पाप कर्म करते हैं वो खाता चलता आया है। ऐसे नहीं कि एक ही बार सजा भोगने से खाता चुक्तू हो जाता है। नहीं। पाप आत्मा कैसे बनें? प्रतिदिन कर्मों का बोझा चढ़ते-चढ़ते बिल्कुल ही तमोप्रधान बन पड़ते हैं। कोई फिर कहते हैं कि सन्यासी जब सन्यास करते हैं तो वह क्यों तमोप्रधान होने चाहिए। परन्तु बाप कहते हैं उनका है रजोप्रधान सन्यास। अभी तुमको मिलती है श्रीमत। वह तो हुई मनुष्यों की मत। जैसे लोग कहते हैं कि हम मोक्ष को पाते हैं, परन्तु कैसे? सभी एक्टर्स को तो यहाँ हाजर जरूर रहना है। वापिस जा नहीं सकते। गीता में भी बहुत ऐसी बातें लिख दी हैं। पहली बात है सर्वव्यापी की। अब तुम बच्चों के अन्दर है बाप की याद। रचता बाप और साथ में बाप की रचना। सिर्फ बाप नहीं, उनकी रचना को भी याद करना पड़े। अपना धन्धा धोरी भी करते हो और साथ-साथ मूलवतन, सूक्ष्मवतन, शिवबाबा की बायोग्राफी, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी जानते हो। फिर संगमयुग के जगत अम्बा-जगतपिता को भी जान लिया है। जगत अम्बा सरस्वती गाई जाती है। उनके चित्र अनेक हैं। वास्तव में मुख्य एक है जगत अम्बा सरस्वती। यह ब्रह्मा व्यक्त है जो अव्यक्त बनता है। अव्यक्त के बाद वह ब्रह्मा फिर साकार महाराजा श्री नारायण बनते हैं, फिर 84 जन्म शुरू होते हैं। अब तुम धन्धा धोरी भी करते रहते हो तो कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म नहीं करना है जो विकर्म बन जायें, नहीं तो सर्वगुण सम्पन्न बन नहीं सकेंगे। गाते हैं ना कि मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। इस समय है ही झूठ खण्ड। सच खण्ड स्थापना करने वाला एक बाप है। इस समय सभी मनुष्य मात्र निधनके बन पड़े हैं। अभी तुम बच्चों में कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए। सबसे पहला अवगुण है देह-अभिमान का। देही-अभिमानी बनने में बहुत मेहनत है। देह-अभिमान के कारण ही और सब विकार आते हैं। अहंकार है पहला नम्बर शत्रु। बाप डायरेक्ट कहते हैं लाडले बच्चे, देह का अहंकार छोड़ो। मुझे तो देह है नहीं। मैं इन आरगन्स द्वारा आकर बतलाता हूँ। तुम इन आरगन्स से सुनते हो और समझते हो। अब बेहद का बाप मत देते हैं कि मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं। कोई भी ऐसा पाप कर्म नहीं करो जो बदनामी हो और पद भ्रष्ट हो जाए। बाप कहते हैं - बच्चे तुम्हें कोई भी राजयोग सिखलाए स्वर्ग का मालिक बना नहीं सकते। अब बाप तुमको सच समझाते हैं। तुम सत के संग में बैठे हो, सच सुनने और सच खण्ड का मालिक बनने के लिए। उनका नाम ही है ट्रुथ। सच्चा ज्ञान सागर। यह तो बाप कहते हैं कि मैं ज्ञान का सागर हूँ। ज्ञान सागर से तुम ज्ञान नदियां निकलती हो। वह नदियां तो पानी के सागर से निकलती हैं। वह पतित-पावनी कैसे कहलाई जा सकती। पतित-पावन तो परमात्मा होगा ना, जो ज्ञान का सागर है। वह गंगा सारी दुनिया में थोड़ेही जायेगी। यह तो बेहद के बाप का ही काम है। तो तुम शूद्र से ब्राह्मण बनते हो। ब्राह्मण हैं चोटी। परन्तु अब सतोप्रधान नहीं कहेंगे क्योंकि अभी सब पुरुषार्थी हैं। सेवा कर रहे हैं। ईश्वरीय सन्तान हैं इसलिए ब्राह्मणों का बहुत मान है क्योंकि भारत को स्वर्ग भी तुम बनाते हो। ऐसे नहीं कि लक्ष्मी-नारायण भारत को स्वर्ग बनाते हैं। यह तो बाप बनाते हैं ब्राह्मणों द्वारा न कि देवताओं द्वारा। पुरानी दुनिया में आकर बाप को नई सृष्टि रचनी है। बेहद के बाप ने नया मकान स्वर्ग बनाया। नई चीज को पुराना तो होना ही है। लौकिक बाप भी नया मकान बनाते हैं तो जरूर पुराना होगा। ऐसे नहीं कि बाप ने पुराना किया। सतोप्रधान से तमोप्रधान हर चीज जरूर बनेगी। वैसे ही सारी सृष्टि भी नई से पुरानी होगी जरूर। अब देह के सब धर्म आदि छोड़ो अपने को आत्मा समझो। बाप सभी बच्चों के लिए कहते हैं कि अब खेल पूरा होता है। अब घर चलना है। भूल तो नहीं गये हो। मैं तुमको सहज राजयोग सिखलाने आया हूँ। तुम हम 5 हजार वर्ष पहले भी मिले थे। मैने तुमको राजयोग सिखलाया था। याद है ना। भूल तो नहीं गये हो? मैं कल्प-कल्प तुमको आकर बादशाही देता हूँ। तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बनाता हूँ। बच्चे कहते हैं बाबा इस चक्र से छूट नहीं सकते? बाप कहते नहीं। यह सृष्टि चक्र तो अनादि है। अगर चक्र से छूट जाएं फिर तो दुनिया ही खत्म हो जाए। यह चक्र तो जरूर फिरना है। मैं फिर से आया हूँ। कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता ही रहता हूँ। उन्होंने सिर्फ युगे-युगे लिख दिया है। कहते भी हैं कि पतित-पावन आओ, पावन बनाओ। सुखधाम में ले चलो। पतित दुनिया में तो दु:ख ही दु:ख है। अच्छा मेरे पास तो दो धाम हैं। कहाँ चलेंगे? बाप कहते हैं - सुखधाम में तो बहुत सुख है। और मुक्तिधाम में जायेंगे तो भी पार्ट में तो आना जरूर है। परन्तु जब स्वर्ग पूरा हो जायेगा तब उतरेंगे। स्वर्ग में नहीं आयेंगे? क्या तुमको स्वर्ग की इच्छा नहीं है? तुम नर्क में माया के राज्य में ही आने चाहते हो? उस समय भी पहले सतो होगा फिर रजो, तमो होगा। जो पवित्र आत्मा आती है वह पहले दु:ख पा न सके। आने से ही थोड़ेही पाप करेंगे। परन्तु आत्मा को सतो रजो तमो से पास करना है। इस चक्र को भी समझना है। अभी तुम फाइनल अवस्था में नहीं जा सकेंगे। स्कूल में भी 12 मास के बाद इम्तहान फाइनल होता है ना। अन्त में तुम्हारी अवस्था परिपक्व होगी। बहुत वृद्धि को पायेंगे। कितने सेन्टर्स खुले हैं। सेन्टर्स के लिए तो बहुत कहते हैं। परन्तु टीचर्स इतनी तैयार नहीं हैं। फर्स्टक्लास शिफ्ट होती है - अमृतवेला। कोई सवेरे नहीं आ सकते हैं तो लाचारी हालत में शाम को भी आवें। स्कूल में भी अभी दो बार शिफ्ट होती हैं। अच्छा - बच्चों ने समझा। बाप सभी सेन्टर्स के बच्चों को समझा रहे हैं। बच्चे रात को अपना रोज पोतामेल निकालो। तो आज हमारा रजिस्टर खराब तो नहीं हुआ? कोई भूल तो नही की? फिर बाप से माफी लेनी चाहिए। शिवबाबा हमको माफ करना। आप कितने मीठे हो। भगवान कहते हैं कि मैं तुमको मास्टर भगवान भगवती बनाता हूँ, स्वर्ग का। तो मेरी आज्ञा मानों ना। नम्बरवन फरमान है कि देही-अभिमानी बनो। विकार में मत जाना। यह महा दुश्मन है। इन पर जीत न पाई तो पद भ्रष्ट हो, कुल कलंकित बन जायेंगे। माया बड़ी प्रबल है। लड़ाई है दीवे और तूफान की। इसमें तो बहादुरी दिखानी पड़े। हम बाप के बने हैं फिर यह माया कैसे विघ्न डाल सकती है। हाँ तूफान तो मचायेगी परन्तु कर्मेन्द्रियों से कभी कोई विकर्म नहीं करना है। बहुत ऊंच पद मिलता है ना। कुछ ख्याल भी करो। तुम किसको कहेंगे कि हम नर से नारायण बनने के लिए पढ़ते हैं तो सब हंसी उड़ायेंगे। यहाँ तो धारणा चाहिए। यहाँ तुमको पक्का करना है कि मैं तो आत्मा हूँ, आत्मा हूँ तब ही सतोप्रधान बन बाप के पास जायेंगे फिर बाप स्वर्ग में भेज देंगे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बच्चों प्रति बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना रजिस्टर खराब न हो इसका ध्यान रखना है। बाप की आज्ञा मान देही-अभिमानी बनना है। कर्मेन्द्रियों से कोई भी भूल नहीं करनी है।
2) सर्वगुण सम्पन्न बनने के लिए कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म न हो जाए जिसका विकर्म बन जाये। पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करना है।
वरदान:
नाथिंगन्यु की युक्ति द्वारा हर परिस्थिति में मौज की स्थिति का अनुभव करने वाले सदा अचल- अडोल भव
ब्राह्मण अर्थात् सदा मौज की स्थिति में रहने वाले। दिल में सदा स्वत: यही गीत बजता रहे-वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य! दुनिया की किसी भी हलचल वाली परिस्थिति में आश्चर्य नहीं, फुलस्टाप। कुछ भी हो जाए-लेकिन आपके लिए नाथिंगन्यु। कोई नई बात नहीं है। इतनी अन्दर से अचल स्थिति हो, क्या, क्यों में मन मूंझे नहीं तब कहेंगे अचल-अडोल आत्मायें।
स्लोगन:
वृत्ति में शुभ भावना हो, शुभ कामना हो तो शुभ वायब्रेशन फैलते रहेंगे।
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Details ( Page:- Murali 13th Aug 2017 )
13.08.17 Morning Murli Om Shanti – Avyakt Babdada Madhuban (
Ek ka mantra sada yaad rahe toh sabme ek dikhai dega.
Vardan – Sarb shaktiyon ko apne adhikar mai rakh sahaj safalta prapt karneewale master sarbshaktiwan bhav.
Slogan – Akari aur nirakari sthiti mei sahaj sthit hona he toh niranhkari bano.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
13-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:13-06-82 मधुबन
“एक का मन्त्र याद रहे तो सबमें एक दिखाई देगा” (टीचर्स के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात)
आज बच्चों के संगठन और स्नेह, सहयोग, परिवर्तन का दृढ़ संकल्प, इस खुशबू को लेने के लिए आये हैं। बच्चों की खुशी में बापदादा की खुशी है। सदा यह अविनाशी खुशी और अविनाशी खुशबू बच्चों के साथ रहे - ऐसा ही अविनाशी संकल्प किया है ना! शुरू-शुरू में आदि स्थापना के समय एक दो को क्या लिखते थे और कहते थे, वह याद है? क्या शब्द बोलते थे? “प्रिय निज आत्मा”। यही आत्म-अभिमानी बनने और बनाने का साधन सहज रहा। नाम, रूप नहीं देखते थे। याद हैं वह अभ्यास के दिन! कितना नैचुरल रूप रहा? मेहनत करनी पड़ी? यही आदि शब्द अभी गुह्य रहस्य सहित प्रैक्टिकल में लाओ तो स्वत: ही स्मृति स्वरूप हो जायेंगे। एक का मन्त्र, एक बाप, एक घर, एकमत, एकरस, एक राज्य, एक धर्म, एक नाम आत्मा, एक रूप। एक का मन्त्र सदा याद रहे तो क्या हो जायेगा? सर्व में एक दिखाई देगा। यह सहज है ना! जब एक ही दिखाई देगा तो जो गीत गाते हो मेरा तो एक बाप... यह स्वत: ही होगा। ऐसा ही संकल्प किया है ना! बापदादा तो सिर्फ नैन मिलन करने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और बाप आये। बाप ने बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड दिया। जो कहा वह हुआ ना! आप लोगों ने संदेश भेजा कि दो घड़ी के लिए भी आओ। सबका संदेश तो पहुँच गया! आपका संकल्प करते ही बापदादा ने सुन लिया। वाणी में आने से पहले बापदादा के पास पहुंच जाता है। (जयन्ति बहन को देख बाबा बोले) विदेश से आना क्या सिद्ध करता है? दिल दूर नहीं तो देश भी दूर नहीं। दिल नजदीक है इसलिए यह भी एक दो के समीप होने का सबूत है। सदा एक दो के साथी हैं, यह प्रैक्टिकल स्वरूप दिखाया। यही मुरब्बी बच्चों की निशानी है। बापदादा निमित्त बने हुए सदा उमंग उत्साह बढ़ाने वाली विशेष आत्मा को प्रत्यक्ष सबूत की मुबारक दे रहे हैं। एक आप को नहीं देख रहे हैं लेकिन सभी बच्चों की दिल यहाँ है और देह वहाँ है। ऐसे सर्व बच्चों को भी बापदादा संगठन में देख रहे हैं। याद तो वैसे भी उन्हों को पहुँच जाती है फिर भी सभी बच्चों को देख स्नेह के सूत्र में बंधे हुए सदा समीप रहने वाली आत्माओं को विशेष यादप्यार दे रहे हैं। ऐसे तो देश में से भी जो बच्चे साकार में यहाँ नहीं हैं लेकिन उन्हों की भी दिल यहाँ है। उन बच्चों को भी बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा। (निर्वैर भाई से) यह भी विदेश जा रहे हैं! एवररेडी बन गये ना! इसको कहा जाता है मीठा ड्रामा। तीनों बिन्दियों के तिलक की सौगात हो गई। जब से संकल्प किया और तीन बिन्दयों का तिलक ड्रामा अनुसार फिर से लग गया। लगा हुआ है और फिर से लग गया। यह अविनाशी तिलक सदा मस्तक पर लगा हुआ है ना। तीनों ही बिन्दी साथ-साथ हैं। बापदादा ने इस तिलक से वतन में स्वागत कर लिया, ठीक है ना! विशेष कौन से स्वरूप द्वारा सन्देश देने जा रहे हो? विशेष पाठ क्या याद दिलायेंगे? “सदा उमंग-उत्साह में उड़ते चलो” यही विशेष पाठ सभी को अनुभव द्वारा पढ़ाना। अनुभव द्वारा पाठ पढ़ना यह अविनाशी पाठ हो जाता है। तो विशेष नवीनता यही हो - अनुभव में रह अनुभव कराना। मुख की पढ़ाई तो बहुत समय चली। अभी सभी को इसी पढ़ाई की आवश्यकता है। इसी विधि द्वारा सभी को उड़ती कला में ले जाना क्योंकि अनुभव बड़े से बड़ी अथॉरिटी है। जिसको अनुभव की अथॉरिटी है उसको और कोई अथॉरिटी वार नहीं कर सकती। माया की अथॉरिटी चल नहीं सकती। तो यही विधि विशेष ध्यान में रखकर चक्कर लगाना। तो यह नवीनता हो जायेगी ना क्योंकि जब भी कोई जाता है तो सभी यही सोचते हैं कि कोई नवीनता मिले। बोलना और स्वरूप बनकर स्वरूप बनाना, यह साथसाथ हो। आपकी पसन्दी भी यह है ना! ड्रामा अनुसार अभी समय जो नूँधा हुआ है वही सेवा के लिए योग्य समझो। संकल्प तो समाप्त हो गया ना! एवररेडी बन सब तैयारियाँ भी सेकण्ड में हो गई हैं ना। स्थूल साधन तो वहाँ सब हैं। बने बनाये साधन हैं। कुछ रह गया तो भी कोई बड़ी बात नहीं। यहाँ से तो दो ड्रेस में भी चले जाओ तो हर्जा नहीं। वहाँ रेडीमेड मिल जाता है। सूक्ष्म तैयारी तो हो गई है ना! स्थूल तैयारी बड़ी बात नहीं। उन्हों को खुशखबरी सुनानी है। वे चाहते हैं कि विनाश न हो। इस दुनिया की स्थापना ही रहे। विनाश से डरते क्यों हैं? क्योंकि समझते हैं हमारी यह दुनिया खत्म हो जायेगी इसलिए डरते हैं। लेकिन दुनिया तो और ही नई आने वाली है। उन्हों को यह खुशखबरी मिल जाए तो जाे आप सबका संकल्प है कि हमारी यह दुनिया सदा वृद्धि को पाती रहे और अच्छे ते अच्छी बनती जाए, यह आपका संकल्प विश्व के रचयिता बाप के पास पहुँच गया है। और विश्व का मालिक विश्व में शान्ति स्थापना हो, उसका कार्य करा रहे हैं। और जो आप सबकी आश है कि एक विश्व हो जाए, विश्व में स्नेह हो, प्यार हो, लड़ाई झगड़ा न हो, यही आप सब आत्माओं की आश पूर्ण होने का समय पहुँच गया है। लेकिन किस विधि से होगा, उस विधि को सिर्फ जानो। विधि यथार्थ है तो सिद्धि भी होगी। सिद्धि तो मिलनी है लेकिन किस विधि द्वारा मिलेगी, वह नहीं जानते हैं। कन्फ्रेन्स आदि तो करके देखी है, लेकिन संकल्प मन से नहीं निकलता। लड़ाई-झगड़े का बीज ही खत्म हो जाए तो शस्त्र आदि होते भी यूज नहीं करना पड़े क्योंकि नुकसान कोई शस्त्र नहीं करते, नुकसान करने वाला क्रोध है ना कि शस्त्र, बीज क्रोध है। तो उसी विधिपूर्वक बीज को ही खत्म कर दें तो सिद्धि हुई पड़ी है। लड़ाई-झगड़े का बीज ही खत्म हो जाए। तो सर्व आत्माओं की आश पूर्ण होने का समय आ गया है। समय सबकी बुद्धि को प्रेर रहा है। गुप्त कार्य जो चल रहा है, वह कार्य सभी को अपनी तरफ खींच रहा है लेकिन वह जान नहीं सकते कि यह संकल्प क्यों आ रहा है! बनाया भी खुद और फिर यूज न करें यह संकल्प क्यों चल रहा है! तो स्थापना का कार्य प्रेरित कर रहा है लेकिन वह जानते नहीं। यह आप स्वयं समझते हो कि परिवर्तन में विनाश के सिवाए स्थापना होगी नहीं। लेकिन भावना तो उन्हों की भी वही है ना! उन्हों की भावना को लेकर यह खुशखबरी उन्हों को सुनाओ तो विधि यही सुनायेंगे कि शान्ति के सागर द्वारा ही शान्ति होगी। हम सब एक हैं। यह ब्रदरहुड की भावना किस आधार से बन सकती? जिससे यह संकल्प ही ना उठे, मेहनत नहीं करनी पड़े। कभी हथियार यूज करें, कभी नहीं करें। लेकिन यह संकल्प ही समाप्त हो जाए, ब्रदरहुड हो जाए, यह है विधि। ब्रदरहुड आ गया तो बाप तो है ही। ऐसे खुशखबरी के रूप से उन्हों को सुनाओ। शान्ति का पाठ पढ़ना पड़ेगा। (शान्ति की विधि से अशान्ति खत्म होगी) लेकिन वह शान्ति आवे कैसे? उसके लिए फिर मन्त्र देना पड़े। शान्ति का पाठ पढ़ाते हो ना! मैं भी शान्त, घर भी शान्त, बाप भी शान्ति का सागर, धर्म भी शान्त। तो ऐसा पाठ पढ़ाओ। शान्ति ही शान्ति का पाठ। दो घड़ी के लिए तो अनुभव करेंगे ना। एक घड़ी भी डेड साइलेन्स की अनुभूति हो जाए तो वह बार-बार आपको थैंक्स देंगे। आपको ही भगवान समझने लग जायेंगे क्योंकि बहुत परेशान हैं ना। जितनी ज्यादा बड़ी बुद्धि है उतनी बड़ी परेशानी भी है, ऐसी परेशान आत्माओं को अगर जरा भी अंचली मिल जाती तो वही उन्हों के लिए एक जीवन का वरदान हो जाता। जिसको भी चांस मिले वह बोलते-बोलते शान्ति में जाएं। एक सेकण्ड भी अनुभूति में उन्हों को ले जाएं तो वह बहुत-बहुत थैंक्स मानेंगे। वातावरण ऐसा बना दो जो सभी ऐसे अनुभव करें जैसे कोई शान्ति की किरण आ गई है। चाहे एक, आधा सेकण्ड ही अनुभव हो क्योंकि यह तो वायुमण्डल द्वारा होगा ना! ज्यादा समय नहीं रह सकेंगे। एक आधा सेकण्ड भी वायुमण्डल ऐसा हल्का बन जाए तो अन्दर से बहुत शुक्रिया मानेंगे क्योंकि विचारे बहुत हलचल में हैं। उन्हों को देख बापदादा को तो रहम आता है। न रात की नींद, न दिन की, भोजन भी खाने की रीति से नहीं खाते। जैसेकि ऊपर में बोझ पड़ा हुआ है। क्या होगा, कैसे होगा! तो ऐसी आत्माओं को एक झलक भी मिल जाए तो क्या मानेंगे! उन्हों के लिए तो समझो सूर्य नीचे उतर आया। एक झलक ही चाहिए। ज्यादा समय तो वह शक्ति को धारण भी नहीं कर सकेंगे। यह तो थोड़ी घड़ी की बात है। जैसे लहर आती और चली जाती है। इतना भी अनुभव हुआ तो उन्हों के लिए तो बहुत है क्योंकि बहुत परेशान हैं। उन्हों को थोड़ा तिनके का सहारा भी बहुत है। अच्छा। संकल्प पूरा हुआ? बच्चों की खुशी में बाप की खुशी है। सफलता मूर्त हो ना! सफलता तो साथ है ही। जब बाप साथ है तो सफलता कहाँ जायेगी। जहाँ बाप है वहाँ सर्व सिद्धियाँ साथ हैं। बिन्दी लगाना आता है वा बिन्दी पर फिर क्वेश्चन आ जाता? आजकल की दुनिया में ऐसा बारूद चलाते हैं जो इतनी छोटी बिन्दी से इतना बड़ा सांप बन जाता है। यहाँ भी लगानी चाहिए बिन्दी। बिन्दी में सब समा जाता है। अगर संकल्प की तीली लगा देते तो फिर वह सांप हो जाता। न तीली लगाओ न सांप बने। बापदादा बच्चों का यह खेल देखता रहता है। जो होता सबमें कल्याण भरा हुआ है। ऐसा क्यों वा क्या नहीं। जो कुछ अनुभव करना था, वह किया। परिवर्तन किया और आगे बढ़ो। यह है बिन्दी लगाना। सभी विदेशियों को भी यह खेल बताना। उन्हों को ऐसी बातें अच्छी लगती है। (दादी जी और दादी चन्द्रमणी बाबा के पास बैठी हैं) यह तो बारात की शान हैं। बापदादा का विशेष श्रृंगार यह हैं। आप सभी के आगे परिवार के श्रृंगार कौन हैं? यही (दादियां) हैं ना। सबके मन में इन विशेष आत्माओं प्रति सदा क्या संकल्प रहता कि यह सदा जीती रहें। यह सब आप लोगों को अमर भव का सहयोग देती रहती है। एक दादी को भी कुछ होता है तो सबका संकल्प चलता है ना! यह स्थूल में निमित्त छत्रछाया है। वैसे तो बाप की छत्रछाया हैं लेकिन निमित्त यह अनुभवी आत्मायें मास्टर छत्रछाया हैं। कभी धूप अथवा कभी बारिश आती है तो छत्रछाया में चले जाते हैं ना। आप लोगों के पास भी कोई प्राब्लम आती है तो क्या करते हो? साकार में इन्हों के पास आना पड़ता है। बाप से तो रूह-रूहान करेंगे लेकिन पत्र तो मधुबन में लिखेंगे ना! जैसे वहाँ देखा है ना जहाँ एक्सकरशन करने जाते हैं तो बीच-बीच में छतरी लगा देते हैं फिर उनके बीच मनोरंजन प्रोग्राम करते हैं। यह भी ऐसे है। छतरियाँ जहाँ-तहाँ लगी हुई हैं। जब कुछ होता तो मनोरंजन भी करते हैं। मधुबन में हंसते, नाचते, गाते हो ना। तो बापदादा को भी खुशी होती है। बच्चे मनोरंजन मना रहे हैं। यही स्नेह सभी को बाप के स्नेह तरफ आकर्षित करता है। जैसे यह निमित्त बनी हुई हैं, ऐसे ही आप भी अपने को हर स्थान की छतरी समझो। जिनके निमित्त बनते हो उन्हों को सेफ्टी का साधन मिल जाए। झुकाव नहीं हो लेकिन सहारा दो। निमित्त बनकर सहारा, सहयोग देना दूसरी बात है लेकिन सहारेदाता बनकर सहारा नहीं दो। निमित्त बन सहारा देना और सहारे दाता बन सहारा देना, इसमें अन्तर हो जाता है। अगर आप नहीं समझते हो कि मैं सहारा हूँ परन्तु दूसरा आपको समझता है तो भी नाम तो दोनों का होगा ना! सेवा समझ करके निमित्त बन उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहारा देना, इस विधि पूर्वक सहारा दो तो कभी भी रिपोर्ट नहीं निकलेगी। लेकिन सब कुछ उनको ही समझने लग जाते कि यही मेरा सहारा है, इसको कहा जाता है सहारा दाता बन सहारा दिया। लेकिन सेवा समझ निमित्त बन सहयोग का सहारा देना वह दूसरी बात है। तो आप सब कौन हो? अन्त में सब पार्टधारी इकठ्ठे स्टेज पर आयेंगे। चाहे इस शरीर द्वारा सेवाधारी, चाहे भिन्न-भिन्न शरीर द्वारा सेवाधारी। सब इकठ्ठे पार्टधारी स्टेज पर आना अर्थात् जयजयकार हो समाप्ति होना क्योंकि उन्हों का है ही गुप्त रूप में स्थापना में सहयोगी बनने का पार्ट। आप प्रत्यक्ष रूप में हो। वह गुप्त रूप में अपना स्थापना का पार्ट बजा रहे हैं, अभी प्रत्यक्ष नहीं होंगे क्योंकि पर्दा उठने का समय तब आये जब सब एवररेडी हो जाएं। सम्पन्न हो जाएं। पर्दा उठा फिर तो समाप्ति होगी ना। ऐसे सब तैयार हैं? पर्दा उठने की तैयारी है? अभी वारिस क्वालिटी की माला तैयार हुई है? 108 भी सम्पन्नता के काफी समीप हों, बिल्कुल सम्पन्न हो जाएं। समय के हिसाब से भी सम्पूर्णता के नजदीक हों। ऐसे समझते हो? उसकी निशानी क्या होगी? माला की विशेषता क्या होगी? माला तैयार है, उसकी विशेष निशानी क्या दिखाई देगी? एक के साथ एक दाना मिला हुआ है। यह माला की निशानी है। माला की विशेषता है एक दो के संस्कारों के समीप। दाने से दाना मिला हुआ। वह तैयारी है? जिसको भी देखें, चाहे 108 वां नम्बर हो लेकिन दाना मिला हुआ तो वह भी है ना! ऐसे जुड़े हुए हैं। सभी को यह महसूसता आवे कि यह तो माला के समान पिरोये हुए मणके हैं। ऐसे नहीं संस्कार सबके वैरायटी हैं तो नजदीक कैसे होंगे? नहीं। वैरायटी संस्कार होते भी समीप दिखाई दें। वैरायटी के आधार पर नम्बर हो गये लेकिन दाने तो नजदीक हैं ना, एक दो के। जब तक एक दूसरे से न मिलें तब तक माला बन नहीं सकती। एक भी दाना निकल जाए तो माला खण्डित हो जाए। पूज्य माला नहीं कही जायेगी। दूर भी रह जाएं तो भी कहेंगे यह पूज्यनीय माला नहीं। 108 वां नम्बर भी अगर थोड़ा दूर है तो माला रेडी नहीं हो सकती। अच्छा।
वरदान:
सर्वशक्तियों को अपने अधिकार में रख सहज सफलता प्राप्त करने वाले मा. सर्वशक्तिमान् भव
जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् की सीट पर सेट होंगे उतना ये सर्व शक्तियां आर्डर में रहेंगी। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां जिस समय जैसा आर्डर करते हो वैसे आर्डर से चलती हैं, ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी आर्डर पर चलने वाली हों। जब यह सर्व शक्तियाँ अभी से आर्डर पर होंगी तब अन्त में सफलता प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि जहाँ सर्व शक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है।
स्लोगन:
आकारी और निराकारी स्थिति में सहज स्थित होना है तो निरंहकारी बनो।
------------------*OM SHANTI *--------------
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Details ( Page:- Murali 14th Aug 2017 )
14.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Abhi tumhe sarey Biswa ke adi-madhya-ant ki roshni mili hai, tum gyan ko buddhi me rakh sada harshit raho.
Q- Abhi tum baccho ki bahut jabardast taqdeer ban rahi hai - kaun si aur kaise?
A- Abhi tum Shrimat par chal 21 janmo ke liye Baap se behad ka varsha le rahe ho. Shrimat par tumhari sab manokamnaye poori ho rahi hai, yah tumhari jabardast taqdeer hai. Tum 84 janma lene wale bacche he chakra lagakar abhi Brahman bane ho fir Devta banenge. Oonchi taqdeer tab banti hai jab buddhi yog bal aur gyan bal se maya Ravan par jeet paate ho. Tumhari buddhi me hai ki hum Baap ke paas aaye hain apni taqdeer banane arthat Lakshmi-Narayan pad paane.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Padma padampati banne ke liye sachchi kamayi karni hai. Padhai me samay ka bahana nahi dena hai. Aise nahi padhai ke liye foorshat nahi. Roz padhna zaroor hai._
2) Ek Baap ki abyavichari yaad me rah aatma ko satopradhan banana hai. Mera to ek Shiv Baba, dusra na koi..... yahi paath pakka karna hai.
Vardaan- Sudhh sankalpo ke gheraw dwara sada chhatrachhaya ki anubhooti karne, karane wale Drid Sankalpdhari bhava.
Slogan - Farishte swaroop ka sakshatkar karane ke liye sarir se detach rehne ka abhyas karo.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
14-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - अभी तुम्हें सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त की रोशनी मिली है, तुम ज्ञान को बुद्धि में रख सदा हर्षित रहो”
प्रश्न:अभी तुम बच्चों की बहुत जबरदस्त तकदीर बन रही है - कौन सी और कैसे?
उत्तर:अभी तुम श्रीमत पर चल 21 जन्मों के लिए बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हो। श्रीमत पर तुम्हारी सब मनोकामनायें पूरी हो रही हैं, यह तुम्हारी जबरदस्त तकदीर है। तुम 84 जन्म लेने वाले बच्चे ही चक्र लगाकर अभी ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनेंगे। ऊंची तकदीर तब बनती है जब बुद्धियोग बल और ज्ञान बल से माया रावण पर जीत पाते हो। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम बाप के पास आये हैं अपनी तकदीर बनाने अर्थात् लक्ष्मी-नारायण पद पाने।
गीत:तकदीर जगाकर आई हूँ.... ओम् शान्ति।
यह भगवान की पाठशाला है। यहाँ है ही भगवानुवाच बच्चों प्रति। गीत की पहली लाइन है तकदीर जगाकर आई हूँ - इस ईश्वरीय पाठशाला वा बेहद बाप की पाठशाला में। भगवान तो एक को ही कहा जाता है। भगवान अनेक नहीं होते हैं। सभी आत्माओं का बाप एक है। अब एक बाप और अनेक बच्चों का यह है संगठन वा मेला। ज्ञान सागर और ज्ञान नदियां। पानी के सागर को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। ज्ञान सागर से यह ज्ञान नदियां निकलती हैं, उनका यह मेला है। वह है भक्ति, यह है ज्ञान। ज्ञान को कहा जाता है ब्रह्मा का दिन सतयुग त्रेता और भक्ति है रात द्वापर कलियुग। सतयुग त्रेता में है ही सद्गति। सुखधाम में जाना होता है। सद्गति तो एक बाप ही करेंगे। वह है सद्गति दाता। तुम्हारी अब सद्गति हो रही है अर्थात् पतित से पावन बन रहे हो। राजयोग सीख तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रहे हो। सतोप्रधान बनेंगे तब ही स्वर्ग में जायेंगे। फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान में तुम कैसे आते हो - यह चक्र है ना! भारत स्वर्ग था उसमें लक्ष्मीनारा यण का राज्य था। अभी तक भी मन्दिर आदि बनाते रहते हैं। सतयुग में यह थे जरूर। अभी तो कलियुग है। सतयुग में यथा महाराजा महारानी तथा प्रजा पावन थे। लक्ष्मी-नारायण को महाराजा महारानी कहा जाता है। बचपन में वह महाराजकुमार श्रीकृष्ण और महाराजकुमारी राधे थी। आज कहते हैं कृष्ण जन्माष्टमी है। अब अष्टमी क्यों कहा है? शास्त्रों का भी जो सार है वह तुमको समझाया जाता है। चित्रों में भी दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। ऐसे नहीं विष्णु बैठ ब्रह्मा द्वारा शास्त्रों का सार समझाते हैं। नहीं, परमपिता परमात्मा शिव परमधाम से आकर ब्रह्मा तन का आधार ले तुमको यह राज समझाते हैं। मनुष्य इतनी मेहनत करते हैं भक्ति करते हैं, मिलता कुछ भी नहीं हैइसलिए भगवान कहते हैं - जब भक्ति पूरी होती है तब फिर मैं आता हूँ क्योंकि तुम्हारी पूरी दुर्गति हो जाती है। सतयुग त्रेता में तो तुम अपना राज्य-भाग्य पाते हो। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर तुम गिरते जाते हो। यह सब बुद्धि में याद रखना है। तुम बच्चों को अब सारे विश्व के आदि मध्य अन्त की रोशनी मिली है और कोई की बुद्धि में यह रोशनी नहीं है। तुम जानते हो सबसे ऊपर है शिवबाबा। पीछे सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, स्थूल वतन में है यह मनुष्य सृष्टि। मनुष्य सृष्टि में भी पहले-पहले जगत-अम्बा, जगतपिता नाम गाया हुआ है। सूक्ष्मवतन में सिर्फ ब्रह्मा ही दिखाते हैं। उनको कहेंगे ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:। यहाँ जो यह ब्रह्मा सरस्वती हैं, यह कौन हैं? ब्रह्मा की बहुत महिमा है। ब्रह्मा की बेटी तो तुम भी हो। प्रजापिता तो जरूर यहाँ होगा। सूक्ष्मवतन में तो नहीं होगा। बाप को प्रजापिता द्वारा ही ज्ञान देना है। विष्णु को वा शंकर को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता है। बाप को तो श्री श्री कहा जाता है। वह है श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, ऊंच ते ऊंच भगवान। वह फिर रचना रचते हैं श्री राधे, श्रीकृष्ण, वह स्वयंवर बाद बनते हैं महाराजा श्री नारायण और महारानी श्री लक्ष्मी। सतयुग में उन्हों का राज्य चलता है। त्रेता में है राम सीता का राज्य। स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है फिर दो कला कम हो जाती हैं। 16 कला से 14 कला में आ गये फिर द्वापर से भक्ति मार्ग शुरू होता है। अभी बाप कहते हैं - तुम बच्चों को मैं सद्गति में ले जाता हूँ। भारत पावन था फिर पतित किसने बनाया? रावण ने इसलिए मुझे ही कल्प-कल्प आना पड़ता है। पतितों को आकर पावन बनाना पड़ता है। तुम यहाँ आये हो - तकदीर बनाने अर्थात् विश्व का मालिक बनने। बाप समझाते हैं यह बुद्धि में रखो - तुम ही सो देवी-देवता थे, अब ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनेंगे। यह बाजोली है। पहले-पहले है चोटी, उसके ऊपर में है शिवबाबा फिर यह ब्राह्मणों की रचना रची, एडाप्ट किया। जैसे बाप बच्चों का पिता है वह हुए हद के पिता, यह है बेहद का। प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। इस संगम पर उनकी महिमा है जबकि शिवबाबा आकर एडाप्ट करते हैं - ब्रह्मा-सरस्वती और तुम बच्चों को। अभी फिर तुमको पावन बना रहे हैं। तुम जानते हो हम बाप से फिर से वर्सा लेने आये हैं। कल्प-कल्प लेते आये हैं। फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो गिरना शुरू होता है अर्थात् पावन से पतित बनते हैं। अब सारी सृष्टि में रावण राज्य है, सब दु:खी हैं, शोकवाटिका में हैं। सतयुग में तो दु:ख की बात ही नहीं होती। आज है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी। कहते हैं देवकी को आठवां नम्बर बच्चा श्रीकृष्ण पैदा हुआ। अब आठवां नम्बर कृष्ण जन्म लेगा क्या? कृष्ण का जन्म तो होता है सतयुग में। वह फिर उनको द्वापर में ले गये हैं। तो यह गपोड़ा हुआ ना! अब तुम बच्चे जानते हो कृष्ण कैसे 84 जन्म लेते हैं। अभी अन्तिम जन्म में पढ़ रहे हैं। सतयुग में कृष्ण के माँ बाप को 8 बच्चे तो होते नहीं हैं। यह शास्त्रो भी ड्रामा अनुसार सब पहले से ही बने हुए हैं। अब बाप सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं। भगवानुवाच - तुमको यह ज्ञान सुनाते हैं। इसमें गीत वा श्लोक आदि की बात नहीं। यह तो पढ़ाई है। बाकी यह शास्त्रआदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। भक्ति शुरू होने से ही पहले-पहले शिवबाबा का सोमनाथ मन्दिर बनाते हैं। पहलेपहले होती है शिवबाबा की अव्यभिचारी भक्ति, और यह है शिवबाबा का अव्यभिचारी ज्ञान, जिससे तुम पावन बनते हो। भक्ति के बाद वैराग्य गाया जाता है। तुमको इस सारी पुरानी सृष्टि से वैराग्य है। पुरानी सृष्टि जरूर विनाश हो तब फिर नई स्थापना हो। यह वही महाभारत लड़ाई है, जो कल्प पहले भी हुई थी। मूसल आदि नेचुरल कैलेमिटीज जो हुई थी वह फिर होनी है। देवतायें कभी पतित दुनिया पर पैर नहीं रखते हैं। महालक्ष्मी का आवाह्न करते हैं। हर वर्ष उनसे धन मांगते हैं। लक्ष्मी-नारायण दोनों इकठ्ठे हैं। महालक्ष्मी को 4 भुजा दिखाते हैं। दीपमाला पर उनकी पूजा करते हैं। हर वर्ष भारतवासी भीख मांगते हैं। यह हैं विष्णु के दो रूप। मनुष्य इन बातों को कोई जानते नहीं। इस समय है प्रजापिता आदि देव और जगत अम्बा आदि देवी। अभी श्रीमत पर तुम्हारी सब मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। 21 जन्मों के लिए तुम राज्य-भाग्य लेते हो। यह ब्रह्मा है साकारी पिता और शिवबाबा है निराकारी पिता। वर्सा तुमको उनसे मिलना है। वह है स्वर्ग का रचयिता, तुम 21 जन्मों के लिए वर्सा पा रहे हो। कितनी जबरदस्त तकदीर है। यह भी जानते हो - आयेंगे यहाँ वही जिन्होंने 84 जन्मों का चक्र लगाया है, वही आकर ब्राह्मण बनेंगे, ब्राह्मण ही फिर देवता बनेंगे। अभी तुम बच्चे किसकी जयन्ती मनायेंगे? तुमको लक्ष्मी-नारायण की मनानी पड़ेगी, ज्ञान सहित। वह छोटेपन में हैं राधेकृष्ण, तो दोनों की मनानी पड़े। सिर्फ कृष्ण की क्यों? वो तो कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। राधे और कृष्ण तो दोनों अलग- अलग घर के हैं। फिर मिलते हैं तो दोनों की इकठ्ठी मनानी चाहिए। नहीं तो समझते नहीं हैं कि कृष्ण का जन्म कब हुआ? तुम अब समझते हो कृष्ण का जन्म सतयुग आदि में हुआ था। राधे का भी सतयुग आदि में कहेंगे। करके 2-4 वर्ष का अन्तर होगा। तुम्हारे लिए सबसे सर्वोत्तम तो है शिव जयन्ती। बस मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। तुम अब देवता बन रहे हो। लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता बन रहे हो। यह भी समझाया है - राम-सीता को क्षत्रिय, चन्द्रवंशी क्यों कहा जाता है! जो नापास होते हैं वह चन्द्रवंशी घराने में आते हैं। यह है माया के साथ युद्ध। रावण पर विजय प्राप्त करते हो इस युद्ध के मैदान में। बाकी पाण्डवों कौरवों की लड़ाई है नहीं। तुमको माया पर जीत पानी है। बाप आत्माओं को कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और माया पर जीत हो जायेगी। बुद्धियोग बल और ज्ञानबल से माया पर विजय प्राप्त करनी है। भारत का प्राचीन योगबल मशहूर है, जिससे तुम रावण पर जीत पाकर राज्य लेते हो। बड़े ते बड़ी तकदीर है ना। मुख्य बात है बेहद बाप को और 21 जन्म सदा सुख के वर्से को याद करना है। सेकेण्ड में स्वर्ग की बादशाही। जब तक बाप की पहचान बुद्धि में नहीं बैठी है तब तक समझ नहीं सकेंगे। यहाँ कोई साधू सन्त आदि नहीं हैं। न कोई गीता वा शास्त्र आदि सुनाते हैं। जैसे साधू लोग सुनाते हैं। गांधी भी गीता सुनाते थे और फिर गाते थे पतित-पावन सीताराम। अब गीता तो भगवान ने गाई। अगर गीता का भगवान कृष्ण था तो फिर राम-सीता को क्यों याद करते थे? वास्तव में सीतायें तुम हो, राम है निराकार भगवान। सभी भगत हैं, पुकारते हैं हे राम, हे भगवान आप आकर हम सीताओं को पावन बनाओ फिर रघुपति राघो राजाराम कह देते हैं! सुनी सुनाई बात को पकड़ लिया है। फिर गंगा को पतित-पावनी क्यों कहते हैं! भक्ति मार्ग में बहुत वहाँ जाते हैं। वर्ष-वर्ष मेला लगता है। वहाँ जाकर बैठते हैं। तुम बैठे हो ज्ञान सागर के पास। वह फिर पानी में जाकर स्नान करके आते हैं। पावन तो बनते नहीं, पतित ही बनते आये हैं। तुम तो अभी ज्ञान मार्ग में हो। तुम अभी वहाँ नहीं जायेंगे। सच्चा-सच्चा संगम यह है, जबकि आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल। परमपिता परमात्मा से बहुत समय से कौन बिछुड़ते हैं? वही जो पहले-पहले सतयुग में थे, तो जरूर उनसे ही पहले भगवान मिलेंगे, पहले वही आयेंगे। यहाँ जरूर पढ़ना पड़े। जो स्कूल में ही नहीं आयेंगे तो वह क्या सुनेंगे। गुह्य-गुह्य प्वाइंट्स कैसे समझेंगे। कोई कहते हैं फुर्सत नहीं। बाप कहते हैं - यह है सच्ची कमाई, वह है झूठी। तुम तो पदमपति बनते हो। बाकी इस समय यह तो झूठी साहूकारी है। भल कितने भी लखपति, करोड़पति हैं। गवर्मेन्ट भी उनसे कर्जा लेती है। परन्तु है तो सब झूठी माया... झूठा सब संसार। बाप बैठ समझाते हैं बच्चे तुमको कितना साहूकार बनाता हूँ। अभी रावण ने तुमको कितना दु:खी बना दिया है। अब उन पर जीत पानी है। लड़ाई की कोई बात नहीं। लड़ाई से विश्व का मालिक नहीं बन सकते। तुम योगबल से विश्व का मालिक बनते हो। योग सिखलाते हैं बाप, इनकी आत्मा भी सीखती है। बाप इनमें प्रवेश हो तुमको ज्ञान सुनाते हैं। कहते हैं मैं तो जन्म-मरण रहित हूँ। बाप बेहद का बाप है। तो बेहद का राज समझाते हैं कि तुमसे माया ने क्याक् या करवाया है। तुम 5 भूतों के वश होते गये हो, क्या हाल हो गया है। तुम कितने धनवान थे। भक्ति मार्ग में फालतू खर्च करते-करते अब तुम्हारी क्या हालत हो गई है! अब भक्ति के बाद भगवान आकर स्वर्ग की बादशाही देते हैं, इसलिए सद्गति करने बाप को ही आना पड़ता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पदमापदमपति बनने के लिए सच्ची कमाई करनी है। पढ़ाई में समय का बहाना नहीं देना है। ऐसे नहीं पढ़ाई के लिए फुर्सत नहीं। रोज पढ़ना जरूर है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह आत्मा को सतोप्रधान बनाना है। मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई.. यही पाठ पक्का करना है।
वरदान:
शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति करने, कराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
आपका एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है। शुद्ध संकल्पों का बंधन वा घेराव कमजोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बन, सेफ्टी का साधन वा किला बन जाता है। सिर्फ इसके अभ्यास में पहले युद्ध चलती है, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्पों को कट करते हैं लेकिन यदि दृढ़ संकल्प करो तो आपका साथी स्वयं बाप है, विजय का तिलक सदा है ही सिर्फ इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा।
स्लोगन:फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराने के लिए शरीर से डिटैच रहने का अभ्यास करो।
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Details ( Page:- Murali 15th Aug 2017 )
15.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe apni Devi mithi chalan se Baap ka show karna hai, sabko Baap ka parichay de, varshe ka adhikari banana hai.
Q- Jo bacche dehi-abhimaani hai, unki nishaaniya kya hongi?
A- Wo bahut-bahut mithe lovely honge. Wo Shrimat par accurate chalenge. Wo kabhi kisi kaam ke liye bahana nahi banayenge. Sada han ji karenge. Kabhi na nahi karenge. Jabki deha-abhimaani samajhte yah kaam karne se meri izzat chali jayegi. Deha-abhimaani sada Baap ke farmaan par chalenge. Baap ka poora regard rakhenge. Kabhi krodh me aakar Baap ki abagyan nahi karenge. Unka apni deha se lagao nahi hoga. Shiv Baba ki yaad se apna khana abaad karenge, barbaad nahi hone denge.
Dharna ke liye mukhya saar
1) First class gyani tu aatmaon ka sang karna hai. Dehi-abhimaani banna hai. Deha-abhimaniyon ke sang se door rehna hai.
2) Yagyan ki bahut pyaar se, sachche dil se sambhal karni hai. Bahut lovely mitha banna hai. Sapoot bankar dikhana hai. Koi bhi abagyan nahi karni hai.
Vardaan- Parmatm pyaar ke aadhar par dukh ki duniya ko bhoolne wale Sukh-Shanti Sampann bhava
Slogan - Apni sarv jimmevariyon ka bojh Baap hawale kar double light bano.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
15-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें अपनी दैवी मीठी चलन से बाप का शो करना है, सबको बाप का परिचय दे, वर्से का अधिकारी बनाना है”
प्रश्न:जो बच्चे देही-अभिमानी हैं, उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:वह बहुत-बहुत मीठे लवली होंगे। वह श्रीमत पर एक्यूरेट चलेंगे। वह कभी किसी काम के लिए बहाना नहीं बनायेंगे। सदा हाँ जी करेंगे। कभी ना नहीं करेंगे। जबकि देह-अभिमानी समझते यह काम करने से मेरी इज्जत चली जायेगी। देही-अभिमानी सदा बाप के फरमान पर चलेंगे। बाप का पूरा रिगार्ड रखेंगे। कभी क्रोध में आकर बाप की अवज्ञा नहीं करेंगे। उनका अपनी देह से लगाव नहीं होगा। शिवबाबा की याद से अपना खाना आबाद करेंगे, बरबाद नहीं होने देंगे।
गीत:भोलेनाथ से निराला... ओम् शान्ति।
इतनी सारी बड़ी दुनिया है इसमें भारत खास और यूरोप आम कहें क्योंकि भारत तो प्राचीन ही है। यह तो समझते हैं असुल भारत ही था। सब धर्म वाले यह तो जानते ही हैं कि हम एक दो के पिछाड़ी आये हैं,हमारे आगे भारत ही था। यह तो समझ की बात है ना। तुम बच्चे जानते हो कि बरोबर भारत ही प्राचीन है। उस समय भारत ही बहुत धनवान था तो स्वर्ग कहा जाता था। इस समय तो कोई मनुष्य मात्र बाप को जानते ही नहीं सिवाए तुम बच्चों के। सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं। तो हर एक खुद समझ सकते हैं कि बेहद के बाप को नहीं जानते। पुकारते हैं, भक्ति करते हैं। परन्तु बाप की बायोग्राफी किसको पता नहीं है। गाया भी जाता है कि फादर शोज सन, सन शोज फादर। अब तुम बच्चों को ही बाप का शो करना है। फादर तो अपना शो नहीं कर सकता। फादर तो बाहर नहीं जायेगा। तुम बच्चों को ही बाप का परिचय देना है। यह भी समझते हैं कि बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। उनको अगर जानते तो आश्चर्य लगता है - हम भगवान के बच्चे दु:ख में, आइरन एज में क्यों? यह प्रश्न भी तुमको पूछना है। पहला प्रश्न पूछना है तुम्हारा परमपिता परमात्मा से क्या सम्बन्ध है? पूछने वाले को तो जरूर मालूम है और कोई भी पूछता नहीं क्योंकि मालूम नहीं है। तुम कोई से भी पूछ सकते हो। यह तो कामन रीति से सब कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। परन्तु सर्वव्यापी का तो कोई अर्थ ही नहीं। दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहते हैं ना। दु:ख मिटाने वाला, सुख देने वाला तो एक चाहिए ना। तुम थोड़ा भी टच करेंगे (समझायेंगे) तो समझेंगे बरोबर सतयुग में सुख ही सुख था। अभी तो दु:ख ही दु:ख है। तो जरूर सबके दु:खों को बाप ने मिटाया होगा। यह तो अति सहज बात है। तुम्हारी समझ में आता है हम पारलौकिक मात-पिता के बने हैं। यह ज्ञान की बातें अभी यहाँ चलती हैं, सतयुग में नहीं चलती। वहाँ तो न ज्ञान है, न अज्ञान है। ज्ञान देने वाला वहाँ कोई है नहीं। ज्ञान से तो प्रालब्ध पा ली। तुम अभी ज्ञान से प्रालब्ध पा रहे हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। देही-अभिमानी बनना बड़ी मेहनत की बात है। शिवबाबा की सर्विस में जो तत्पर रहेंगे वही देही-अभिमानी बन सकते हैं। देह-अभिमान आ जाने से फिर उनसे वह खुशबू निकल जाती है। उनकी चलन से ही सारा मालूम पड़ जाता है कि यह देह-अभिमानी है। देही-अभिमानी बहुत मीठे लवली होते हैं। हम एक बाप के बच्चे ब्रदर्स हैं। आपस में भाई-बहन भी हैं। दोनों ही श्रीमत पर एक्यूरेट चलने वाले हैं। ऐसे नहीं कि एक श्रीमत पर चले दूसरा बहाना बनाकर बैठ जाये। श्रीमत पर न चलने वाले को बाप कभी अपना बच्चा कह नहीं सकते। बाहर से भल बच्चे-बच्चे कहते हैं - परन्तु अन्दर में समझते हैं कि यह नाफरमानबरदार हैं, यह क्या पद पायेंगे। बापदादा दोनों समझ सकते हैं। श्रीमत पर अमल नहीं करते हैं। देह-अभिमान के कारण श्रीमत पर चलते नहीं हैं। देही-अभिमानी बड़े मीठे होंगे। यह आसुरी दुनिया कितनी कड़ुवी है। मात-पिता, भाई-बहन सब कड़ुवे। यहाँ भी जो देह-अभिमानी हैं, वह कड़ुवे हैं। अभी तो तुम देही-अभिमानी बन रहे हो। कोई तो सिर्फ तमोप्रधान से तमो तक आये हैं सिर्फ प्रधानता निकली है। कोई रजो तक पहुँचे हैं। सतो में तो कोई-कोई आये हैं। ऐसे नहीं कि धीरे-धीरे आते जायेंगे। कब तक धीरे-धीरे चलते रहेंगे। देही-अभिमानी को कभीं देह का अभिमान नहीं रहेगा कि यह काम मैं क्यों करूँ, इसमें मेरी इज्जत जायेगी। तुम पाकिस्तान में थे तो बाबा भी बच्चों को सिखाने के लिए सब काम करते थे कि देह-अभिमान न रहे। देह-अभिमानी बनने से सत्यानाश हो जाती है। बाहर में जो प्रजा बनने वाले हैं, उनसे भी गिर पड़ेंगे। प्रजा में जो साहूकार बनेंगे उनको भी नौकर चाकर मिलेंगे। यह तो और ही जाकर नौकर चाकर बनते हैं। इनसे तो वह साहूकार अच्छे ठहरे ना। बुद्धि से काम लिया जाता है। तो समझ में आता है जो बच्चे नहीं बनते हैं सिर्फ मददगार बनते हैं तो भी अच्छे धनवान बन जाते हैं। उन्हों को नौकरी करने की दरकार नहीं रहती। यहाँ तो नौकरी करनी पड़ती है। पिछाड़ी को करके राज्य-भाग्य (ताज) मिलेगा। सजा तो खानी पड़ती है दोनों को! इन सभी बातों को ज्ञानी तू आत्मा समझ सकते हैं। अज्ञानी देह-अभिमानी हैं। उनकी चाल ही ऐसी है। समझा जाता है कि यह कोई काम का नहीं। यहाँ तो बच्चों को श्रीमत पर चलना पड़े। नहीं तो माया बड़ा धोखा देने वाली है। झट देह-अभिमान आ जाता है। देह-अभिमान को मिटाए देही- अभिमानी बनने में ही मेहनत है। यहाँ रहने वालों को तो फिर ब्राह्मणों का संग है। बाहर तो दुनिया बहुत खराब है। ज्ञान में संग ऐसा होना चाहिए फर्स्टक्लास जो उससे पूरा रंग लगे। देह-अभिमानी का संग मिलने से एकदम मिट्टी पलीत हो जाती है। फिर फरमान पर भी नहीं चलते हैं। बाबा कहते हैं अगर हमसे आकर पूछो तो झट बतायेंगे तुम फरमानबरदार हो वा नहीं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बहुत अच्छे-अच्छे हैं जो दिल को खुश करते रहते हैं। दुनिया में तो बड़ा दु:ख मारामारी है। खून-खराबी बहुत है, इनको कांटों का जंगल कहते हैं। तुमने इनसे किनारा कर लिया है। अभी तुम संगम पर हो। बुद्धि में है हम गृहस्थ व्यवहार में रहते संगम पर खड़े हैं। अभी हम कांटों से फूल बनते जा रहे हैं। कांटों से पल्लव निकलता जा रहा है। हम उन जंगली मनुष्यों से न्यारे हैं, हम रिलीजस हैं। दुनिया में रिलीजस सिर्फ तुम ही हो, वह भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जो बाप को ही नहीं जानते वह इरिलीजस। इस समय सब इरिलीजस हैं, खास भारत। कहते भी हैं कि हम धर्म को नहीं जानते तो अधर्मा हुए ना। धर्मा और अधर्मा। पाण्डव और कौरव। पाण्डवों की स्थूल युद्ध कोई है नहीं। हमारी तो माया के साथ गुप्त युद्ध है, जिसको कोई भी जानते नहीं। हम अगर बाप को याद नहीं करेंगे तो माया का थप्पड़ लग जायेगा, तूफान आयेगा। बाप कहते हैं अभी तुम्हारा मुख है उस तरफ और पैर हैं इस तरफ। हमेशा याद करते रहना चाहिए नई दुनिया को। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना है। बाप कहते हैं निर्बन्धन हो रहने वालों से गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों की अवस्था अच्छी है। सब तो एक जैसे नहीं हो सकते। नम्बरवार हैं। स्कूल में कोई एक जैसा नम्बर थोड़ेही लेते हैं। यह भी बेहद का स्कूल है। बाप सब सेन्टर वाले बच्चों का ख्याल रखते हैं, इनको कहेंगे विशालबुद्धि। विशालबुद्धि तब बनेंगे जब बाप को याद करेंगे। तुम बच्चों की अब विशालबुद्धि बनी है। तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन और यह सारा चक्र कैसे फिरता है - इसे जानते हो, इसको विशालबुद्धि वा बेहद की बुद्धि कहा जाता है। मनुष्यों की है हद की। तुम्हारी बनती है बेहद की बुद्धि। तो बच्चों को बहुत मीठा बनना पड़े। जितना मीठा बनेंगे, सम्पूर्ण बनेंगे उतना वह भविष्य में अविनाशी बन जायेगा। देखना चाहिए कि हमारे में देह-अभिमान तो नहीं है? अगर कोई काम में ना करते हैं तो समझा जाता है इनमें देह-अभिमान है। सतयुग में सब देही-अभिमानी होते हैं। जानते हैं एक पुराना शरीर छोड़ नया शरीर लेना है। यहाँ तो कितना रोते हैं। देह- अभिमान है ना। देह पर बहुत प्यार है। तुम बच्चों के लिए यह दुनिया जैसे है ही नहीं। अशरीरी आये थे, अशरीरी बन जाना है। बेहद का बाप बच्चों को पढ़ाते हैं, उनका कितना रिगार्ड रखना चाहिए। बन्दर किसका रिगार्ड नहीं रखता। हाथी को भी गुर्र-गुर्र करेगा। तो जो अन्दर के कड़ुवे रहते हैं उनको बाप सपूत थोड़ेही कहेंगे। कहेंगे इससे तो बाहर रहने वाले अच्छे हैं। रिगार्ड तो रहता है। यह भी ड्रामा ही कहेंगे। आज अच्छा चल रहा है, कल माया का तूफान लग जाता है। समझते नहीं कि हम कोई तूफान में हैं। बड़े-बड़े को भी तूफान तो लगते हैं ना। फिर भी ड्रामा कहा जाता। हम शिवबाबा से वर्सा लेते हैं, यह भूलने से खाना बरबाद हो जायेगा। खाना आबाद होगा शिवबाबा के भण्डारे से। इनको भूला तो झोल् खाली हो जायेगी। प्रजा में भी साधारण पद पायेंगे। सजा तो बहुत खायेंगे। खुद छोड़ने से फिर औरों को भी संशयबुद्धि बनाते हैं। बाबा को तो तरस पड़ता है। परन्तु माया का वार सहन नहीं कर सकते हैं। उस्ताद सिखलाते तो बहुत हैं। अचल-अडोल रहना है। नहीं रहते हैं तो बाबा समझते हैं अजुन सिल्वर एज तक भी नहीं पहुँचे हैं। वन्डर लगता है। ज्ञान पूरा न होने कारण, शिवबाबा से योग न होने कारण गिर पड़ते हैं। तूफान तो क्या-क्या लगते हैं। चढ़ना और गिरना - यह तो होता ही है। गिर गया तो फिर उठ खड़ा होना चाहिए ना। हमारा काम शिवबाबा से है। कुछ भी है हमको वर्सा शिवबाबा से लेना है। मम्मा बाबा भी उनसे ही लेते हैं, उनको ही याद करना है। उनकी मुरली सुननी है। नहीं तो कहाँ जायेंगे। हट्टी तो एक ही है ना। यहाँ आये बिगर मुक्ति जीवनमुक्ति मिल न सके। बाप के सामने तो आना है ना। हाँ, कोई बांधेली है, बाबा की याद में मर पड़ती है तो वह भी अच्छा पद पा लेती है। यहाँ जो देह-अभिमान में आकर अवज्ञा कर लेते हैं, उससे उसका पद अच्छा क्योंकि बाबा की याद में मरी ना। अच्छा सौभाग्य है ना। इस ज्ञान मार्ग में कोई और तकलीफ नहीं है। बड़ा सहज है। यहाँ देही-अभिमानी बहुत बनना है। बहुत देह-अभिमान में रहते हैं। बाबा तो और कुछ कहते नहीं सिर्फ दिल से अन्दर तरस पड़ता है। शिवबाबा के भण्डारे से शरीर निर्वाह करते हैं। यज्ञ की सम्भाल कुछ नहीं करते हैं तो पद क्या पायेंगे? इस यज्ञ की तो बहुत सम्भाल करनी है। जहाँ भी सेन्टर्स स्थापना होते हैं, वह शिवबाबा का ही यज्ञ है। इस यज्ञ रचने के लिए सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। बस। कोई बूढ़े हैं, खुद समझा नहीं सकते हैं। अच्छा फिर कोई बहनें वा भाई को बुलाओ। एक छोटा कमरा बना दो और बोर्ड लगा दो। बड़ा पुण्य का काम है। अभी कलियुग है, विनाश सामने खड़ा है। बाप से जरूर स्वर्ग का वर्सा लेना है। स्वर्ग का वर्सा मिलता ही है संगम पर, जबकि पुरानी दुनिया खत्म होती है, नई दुनिया स्थापना होती है। संगम पर वर्सा मिलता है जो फिर भविष्य के लिए अविनाशी हो जाता है। तुम बहुत समझा सकते हो। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। बस। एक दो को उठाया तो भी अहो सौभाग्य। तुम एक ही मन्त्र देते हो - मन्मनाभव। सिर्फ कहते हो बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाप स्वर्ग का खजाना देते हैं। सुना, बस बुद्धि में बैठा। स्वर्ग में आने लायक बन गया। जगह देने वाले को हक मिल जाता है। बाबा इतना सहज करके बताते हैं। कोई को सुखधाम का रास्ता बताओ। प्रजा बनी वह भी अच्छा। नम्बरवार बनते जायेंगे। 3 पैर पृथ्वी का मशहूर है, इससे तुम विश्व के मालिक बनते हो। प्रजा भी कहेगी ना - हम विश्व के मालिक हैं। यह (मकान) भी 3 पैर पृथ्वी है ना! शुरू भी 3 पैर पृथ्वी से हुआ। एक कोठी थी फिर धीरे-धीरे बड़ा बनता गया। ऐसे बहुत आयेंगे जिनको बाबा कहेंगे तुम ऐसे पैसे क्या करेंगे? तुमको बहुत अच्छी राय देते हैं कि 3 पैर पृथ्वी की ले लो। 10-15 हॉस्पिटल, कॉलेज खोलो। अपने गांव में मकान किराये पर ले लो। यह तो सब खत्म हो ही जायेगा। इससे तो इस खर्चे में 10-15 सेन्टर खोलो तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा। तुम बहुत धनवान हो जायेंगे। तुम छोटी सी जगह में यह कॉलेज खोल सकते हो। तुमको सिर्फ रास्ता बताना है, अन्धों की लाठी बनना है। जगाना पड़ता है। बाप और वर्से को याद करो तो बस तुम्हारा बेड़ा पार है। और कोई खर्चे आदि की बात ही नहीं। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेंगे। समझाना बड़ा सहज है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) फर्स्टक्लास ज्ञानी तू आत्माओं का संग करना है। देही-अभिमानी बनना है। देह-अभिमानियों के संग से दूर रहना है।
2) यज्ञ की बहुत प्यार से, सच्चे दिल से सम्भाल करनी है। बहुत लवली मीठा बनना है। सपूत बनकर दिखाना है। कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है।
वरदान: परमात्म प्यार के आधार पर दुख की दुनिया को भूलने वाले सुख-शान्ति सम्पन्न भव
परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई है जो उसमें यदि खो जाओ तो यह दुख की दुनिया भूल जायेगी। इस जीवन में जो चाहिए वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देना - यही तो परमात्म प्यार की निशानी है। बाप सुख-शान्ति क्या देता लेकिन उसका भण्डार बना देता है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी, तलाव नहीं ऐसे बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है, इसलिए मांगने की आवश्यकता नहीं, सिर्फ मिले हुए खजाने को विधि पूर्वक समय प्रति समय कार्य में लगाओ।
स्लोगन:अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर डबल लाइट बनो।
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Details ( Page:- Murali 16th Aug 2017 )
16.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tum ho roohani surgeon aur professor, tumhe hospital kam university khol aneko ka kalyan karna hai.
Q- Baap bhi dharm sthapan karte aur anya dharm sthapak bhi dharm sthapan karte, dono me antar kya hai?
A- Baap sirf dharm sthapan karke waapas chale jaate lekin anya dharm sthapak apni pralabdh banakar jaate hain. Baap apni pralabdh nahi banate. Agar Baap bhi apni pralabdh banaye to unhe bhi koi purusharth karane wala chahiye. Baap kehte mujhe badshahi nahi karni hai. Main to baccho ki first class pralabdh banata hun.
Dharna le liye mukhya saar
1) Nastmoha ban ek Baap se he apna buddhi yog rakhna hai. Dehi-abhimaani ban yahi sikshya dharan karni aur karani hai.
2) Mann-vachan-karm se Bharat ko sukh dena hai. Mukh se har ek ko gyan ke do vachan sunakar unka kalyan karna hai. Subh chintak ban sabko Shantidham, Sukhdham ka raasta batana hai.
Vardaan Drid nischay dwara first division ke bhagya ko nischint karne wale Master Knowledgeful bhava
Slogan- Swayang ko hero part dhari samajh behad naatak me hero part bajate raho.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
16-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम हो रूहानी सर्जन और प्रोफेसर, तुम्हें हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोल अनेकों का कल्याण करना है”
प्रश्न:बाप भी धर्म स्थापना करते और अन्य धर्म स्थापक भी धर्म स्थापना करते, दोनों में अन्तर क्या है?
उत्तर:बाप सिर्फ धर्म स्थापना करके वापस चले जाते लेकिन अन्य धर्म स्थापक अपनी प्रालब्ध बनाकर जाते हैं। बाप अपनी प्रालब्ध नहीं बनाते। अगर बाप भी अपनी प्रालब्ध बनायें तो उन्हें भी कोई पुरूषार्थ कराने वाला चाहिए। बाप कहते मुझे बादशाही नहीं करनी है। मैं तो बच्चों की फर्स्टक्लास प्रालब्ध बनाता हूँ।
गीत:रात के राही... ओम् शान्ति।
गीत जैसेकि बच्चों ने बनाया है। गीत का अर्थ तो और कोई जान भी न सके। बच्चे जानते हैं अब घोर अन्धियारा पूरा होता है। धीरे-धीरे अन्धियारा होता गया है। इस समय कहेंगे घोर अन्धियारा। अभी तुम राही बने हो सोझरे में जाने लिए अथवा शान्तिधाम, पियरघर जाने लिए। वह है पावन पियरघर और यह है पतित पियरघर। प्रजापिता में जो पिऊ बैठा है, उनको तुम बाप कहते हो। वह तुमको पवित्र बनाकर अपने घर ले जाते हैं। पिता वह भी है, पिता यह भी है। वह है निराकार, यह है साकार। बच्चे कहने वाला सिवाए बेहद के बाप के और कोई हो न सके। बाप ही कहते हैं क्योंकि बच्चों को साथ घर ले जाना है। पवित्र बनाया और नॉलेज दी। बच्चे समझते हैं पवित्र तो जरूर बनना है। बाप को याद करना है और सारे सृष्टि चक्र को याद करना है। इस ज्ञान से तुम एवरवेल्दी बनते हो। कोई कहते हैं हमारे लिए कोई सेवा बोलो। सेवा यही है - तीन पैर पृथ्वी के देकर उसमें रूहानी कॉलेज और हॉस्पिटल खोलो। तो उन पर कोई बोझा भी नहीं पड़ेगा। इसमें मांगने की तो बात ही नहीं। राय देते हैं अगर तुम्हारे पास पैसे हैं तो रूहानी हॉस्पिटल खोलो। ऐसे भी बहुत हैं जिनके पास पैसे नहीं हैं। वह भी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोल सकते हैं। आगे चल तुम देखेंगे बहुत हॉस्पिटल खुल जायेंगे। तुम्हारा नाम रूहानी सर्जन लिखा होगा। रूहानी सर्जन और प्रोफेसर। रूहानी कालेज वा हॉस्पिटल खोलने में कुछ भी खर्च नहीं है। मेल अथवा फीमेल दोनों रूहानी सर्जन अथवा प्रोफेसर बन सकते हैं। आगे फीमेल नहीं बनती थी। व्यवहार, कार्य पुरूषों के हाथ में था। आजकल तो मातायें निकली हैं। तो अब तुम भी यह रूहानी सर्विस करते हो। ज्ञान की चटक लगी हुई हो फिर किसको भी समझाना बड़ा सहज है। घर पर बोर्ड लगा दो। कोई बड़ी हॉस्पिटल, कोई छोटी भी होती है। अगर देखो बड़ी हॉस्पिटल में ले जाने वाला पेशेन्ट है तो बोलना चाहिए कि चलो हम आपको बड़ी हॉस्पिटल में ले चलें। वहाँ बड़े-बड़े सर्जन हैं। छोटे सर्जन बड़े सर्जन के लिए राय देते हैं। अपनी फी ले लेते हैं फिर समझते यह मरीज ऐसा है, इसको बड़ी हॉस्पिटल में ले जाना चाहिए, ऐसी राय देते हैं। तो ऐसे सेन्टर खोल बोर्ड लगा दो। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे ना। यह तो कामन समझने की बात है। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आता है। भगवान बाप ही नई दुनिया स्थापना करने वाला है। ऐसा बाप मिल जाए तो हम क्यों न वर्सा लेवें। मन-वचन-कर्म से इस भारत को सुख देना है। मन- वचन-कर्म सो भी रूहानी। मन्सा अर्थात् याद और वचन तो सुनाते ही दो हैं - मनमनाभव और मध्याजी भव। बाप और वर्से को याद करो दो वचन हुए ना। वर्सा कैसे लिया, कैसे गवाया - यह है चक्र का राज। बुढि़यों को भी शौक होना चाहिए। बोलना चाहिए हमको सिखलाओ। बूढ़े-बूढ़े भी समझा सकते हैं, जो और कोई विद्वान-पण्डित आदि नहीं समझा सकते। तब तो नाम बाला करेंगे। चित्र भी बहुत सहज हैं। कोई की तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ करते नहीं हैं। सिर्फ ऐसा नहीं समझना है कि मैं बाबा की हो गई। वह तो आत्मायें बाप की हैं ही। आत्माओं का बाप परमात्मा है, यह तो सेकेण्ड की बात है। परन्तु उनसे वर्सा कैसे मिलता है, वह कब आते हैं - यह समझाना है। आयेंगे भी संगम पर। समझाते हैं सतयुग में तुमने इतने जन्म लिये। त्रेता में इतने जन्म, 84 का चक्र पूरा किया। अब फिर से स्वर्ग की स्थापना होनी है। सतयुग में और कोई दूसरे धर्म होते नहीं। कितनी सहज बात है। दूसरे को समझाने से खुशी बहुत होगी। तन्दरूस्त हो जायेंगे, क्योंकि आशीर्वाद मिलती है ना। बुढि़यों के लिए तो बहुत सहज है। यह दुनिया के अनुभवी भी हैं। किसको यह बैठ समझायें तो कमाल कर दिखायें। सिर्फ बाप को याद करना है और बाप से वर्सा लेना है। जन्म लिया और मुख से मम्मा बाबा कहने लगते हैं। तुम्हारे आरगन्स तो बड़े-बड़े हैं। तुम तो समझकर समझा सकते हो। बुढि़यों को बहुत शौक होना चाहिए कि हम तो बाबा का नाम बाला करें और बहुत मीठा बनना चाहिए। मोह ममत्व निकल जाना चाहिए। मरना तो है ही। बाकी दो चार रोज जीना है तो क्यों न हम एक से ही बुद्धियोग रखें। जो भी समय मिले, बाप की याद में रहें और सब तरफ से ममत्व मिटा देवें। 60 वर्ष के जब होते हैं तो वानप्रस्थ लेते हैं। वह तो बहुत अच्छा समझा सकते हैं। नॉलेज धारण कर फिर दूसरों का भी कल्याण करना चाहिए। अच्छे-अच्छे घर की बच्चियाँ ऐसा पुरूषार्थ कर और घर-घर में जाकर समझायें तो कितना न नामाचार निकले। पुरूषार्थ कर सीखना चाहिए, शौक रखना चाहिए। यह नॉलेज बड़ी वन्डरफुल है। बोलो, देखो कलियुग अब पूरा होता है। सबका मौत सामने खड़ा है। कलियुग के अन्त में ही बाप आकर स्वर्ग का वर्सा देते हैं। कृष्ण को तो बाप नहीं कहेंगे। वह तो छोटा बच्चा है। उनको सतयुग का राज्य कैसे मिला! जरूर पास्ट जन्म में ऐसा कर्म किया होगा। तुम समझा सकते हो कि बरोबर इन्होंने पुरूषार्थ से यह प्रालब्ध बनाई है। कलियुग में पुरूषार्थ किया है, सतयुग में प्रालब्ध पाई है। वहाँ तो पुरूषार्थ कराने वाला कोई होता नहीं। सतयुग त्रेता की इतनी जो प्रालब्ध मिली है। जरूर ऊंच ते ऊंच बाप मिला है जो ही गोल्डन, सिलवर एज का मालिक बनाते हैं और कोई बना न सके। जरूर बाप ही मिला है। लक्ष्मी-नारायण खुद तो नहीं मिलेंगे। ऐसा भी नहीं कि ब्रह्मा वा शंकर मिले। नहीं। भगवान मिला। वह है निराकार। भगवान के सिवाए तो कोई है नहीं जो ऐसा पुरूषार्थ कराये। भगवानुवाच - मैं तुम्हारी प्रालब्ध फर्स्टक्लास बनाता हूँ। यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। स्थापना यहाँ ही करनी है। कराने वाला तो एक बाप है। और जो धर्म स्थापना करते वह तो एक दो के पिछाड़ी आते रहते हैं। धर्म स्थापना करने वाले प्रालब्ध बना जाते हैं। बाप को तो अपनी प्रालब्ध नहीं बनानी है। अगर प्रालब्ध बनाई तो उनको भी पुरूषार्थ कराने वाला कोई चाहिए। शिवबाबा कहते हैं मुझे कौन पुरूषार्थ करायेंगे। मेरा पार्ट ही ऐसा है, मैं बादशाही नहीं करता हूँ। यह ड्रामा बनाबना या है। बाप बैठ समझाते हैं मैं तुमको सभी वेद शास्त्र का सार समझाता हूँ। यह सब है भक्तिमार्ग। अब भक्ति मार्ग पूरा होता है। वह है उतरती कला। अब तुम्हारी होती है चढ़ती कला। कहते हैं ना चढ़ती कला सर्व का भला। सब मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा लेते हैं। फिर पीछे 16 कला से उतरते-उतरते नो कला में आना है। ग्रहण लग जाता है ना। ग्रहण थोड़ा-थोड़ा होकर लगता है। यह तो है बेहद की बात। अभी तुम सम्पूर्ण बनते हो। फिर त्रेता में 2 कला कम होती हैं। थोड़ा काला बन पड़ते हैं इसलिए पुरूषार्थ सतयुग की राजाई के लिए करना चाहिए। कम क्यों लेवें। परन्तु सभी तो इम्तहान पास कर नहीं सकते, जो 16 कला सम्पूर्ण बनें। बच्चों को पुरूषार्थ करना और कराना है। इन चित्रों पर बहुत अच्छी सर्विस हो सकती है। बड़ा क्लीयर लिखा हुआ है। बोलो, बाप स्वर्ग की रचना रचते हैं तो फिर हम नर्क में क्यों पड़े हैं। यह पुरानी दुनिया नर्क है ना, इसमें दु:ख ही दु:ख है फिर जरूर नई दुनिया सतयुग आना चाहिए। बच्चे निश्चयबुद्धि हैं। यहाँ कोई अन्धश्रद्धा की बात नहीं। कोई भी कॉलेज में अन्धश्रद्धा की बात नहीं होती। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। उन कॉलेज आदि में इस जन्म में पढ़ते हैं, इस जन्म में ही प्रालब्ध पाते हैं। यहाँ इस पढ़ाई की प्रालब्ध विनाश के बाद दूसरे जन्म में तुम पायेंगे। देवतायें कलियुग में आ कैसे सकते। बच्चों को समझाना बड़ा सहज है। चित्र भी बड़े अच्छे बनाये हुए हैं। झाड़ भी बहुत अच्छा है। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ को मानते हैं। खुशी मनाते हैं अपने नेशन की। सबका अपना-अपना पार्ट है। यह भी जानते हो - भक्ति भी आधाकल्प होनी है। उसमें यज्ञ तप तीर्थ आदि सब होते हैं। बाप कहते हैं मैं उनसे नहीं मिलता हूँ। जब तुम्हारी भक्ति पूरी होती है तब भगवान आते हैं। आधाकल्प है ज्ञान, आधाकल्प है भक्ति। झाड़ में क्लीयर लिखा हुआ है। सिर्फ चित्र हों, बिगर लिखत, उस पर भी समझा सकते हो। चित्रों तरफ अटेन्शन चाहिए, इनमें कितनी वन्डरफुल नॉलेज है। ऐसे थोड़ेही है कि शरीर लोन लिया है तो उसको अपनी मिलकियत समझेंगे। नहीं, समझेंगे मैं किरायेदार हूँ। यह ब्रह्मा खुद भी बैठे हुए हैं, उनको भी बिठाना है। जैसे किसी मकान में खुद मालिक भी रहते हैं और किरायेदार भी रहते हैं। बाबा तो सारा समय इसमें नहीं रहेंगे, इनको हुसेन का रथ कहा जाता है। जैसे क्राइस्ट की आत्मा ने किसी बड़े तन में प्रवेश कर क्रिश्चियन धर्म स्थापना किया। छोटेपन में शरीर दूसरे का था, वह छोटेपन में अवतार नहीं था। नानक में भी पीछे सोल प्रवेश कर सिक्ख धर्म स्थापना करती है। यह बातें वह लोग समझ नहीं सकते हैं। यह बहुत समझ की बातें हैं। पवित्र आत्मा ही आकर धर्म स्थापना करती है। अभी कृष्ण तो है सतयुग का पहला प्रिन्स, उनको द्वापर में क्यों ले गये हैं! सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य दिखाते हैं। यह भी तुम जानते हो - राधे कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, फिर विश्व के मालिक बनते हैं। उन्हों की राजधानी कैसे स्थापना हुई? यह किसकी बुद्धि में नहीं है। तुम जानते हो बाप एक ही बार अवतरित होते हैं, पतितों को पावन बनाते हैं। कृष्ण जयन्ती पर भी सिद्ध करना है। उसने तो ज्ञान दिया नहीं। जिसने उसको बनाया, पहले तो उनकी जयन्ती मनानी चाहिए। शिव जयन्ती पर मनुष्य व्रत आदि रखते हैं। लोटी चढ़ाते हैं। सारी रात जागते हैं। यहाँ तो है ही रात। उसमें जितना जीना है उतना पवित्रता का व्रत रखना है। व्रत धारण करने से ही पवित्र राजधानी के मालिक बनते हैं। कृष्ण जयन्ती पर समझाना चाहिए कि कृष्ण गोरा था अभी सांवरा बन गया है, इसलिए श्याम सुन्दर कहते हैं। कितना सहज ज्ञान है। श्याम सुन्दर का अर्थ समझाना है। चक्र कैसे फिरता है। तुम बच्चों को खड़ा होना चाहिए। शिवशक्तियों ने भारत को स्वर्ग बनाया है, यह किसको पता नहीं। बाप भी गुप्त, ज्ञान भी गुप्त और शिव-शक्तियां भी गुप्त। तुम चित्र लेकर किसी के भी घर में जा सकते हो। बोलो, तुम सेन्टर पर नहीं आते हो इसलिए हम तुम्हारे घर में आये हैं, तुमको सुखधाम का रास्ता बताने। तो वह समझेंगे यह हमारे शुभ-चिन्तक हैं। यहाँ कनरस की बात नहीं। पिछाड़ी में मनुष्य समझेंगे कि बरोबर हमने लाइफ व्यर्थ गँवाई, लाइफ तो इन्हों की है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) नष्टोमोहा बन एक बाप से ही अपना बुद्धियोग रखना है। देही-अभिमानी बन यही शिक्षा धारण करनी और करानी है।
2) मन-वचन-कर्म से भारत को सुख देना है। मुख से हर एक को ज्ञान के दो वचन सुनाकर उनका कल्याण करना है। शुभ-चिन्तक बन सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना है।
वरदान:दृढ़ निश्चय द्वारा फर्स्ट डिवीजन के भाग्य को निश्चित करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव
दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है। जैसे ब्रह्मा बाप फर्स्ट नम्बर में निश्चित हो गये, ऐसे हमें फर्स्ट डिवीजन में आना ही है-यह दृढ़ निश्चय हो। ड्रामा में हर एक बच्चे को यह गोल्डन चांस है। सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो तो नम्बर आगे ले सकते हैं, इसलिए मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ के अनुभव को बढ़ाओ तो सब सहज हो जायेगा, जिसके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उसके आगे माया पेपर टाइगर है।
स्लोगन:स्वयं को हीरो पार्टधारी समझ बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाते रहो।
------------------*OM SHANTI *--------------
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Details ( Page:- Murali 17th Aug 2017 )
17.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Savere-savere ooth Baap ko pyaar se yaad karo to patthar buddhi se paras buddhi ban jayenge.
Q- 21 janmo ke liye maalamal banne ka sadhan kya hai?
A- Abinashi gyan ratno ka daan karo to maalamal ban jayenge kyunki yah ek-ek gyan ratno lakho rupiyon ka hai. Jitna jo daan karega, Baap ki yaad me rahega utna usey khushi ka para chadha rahega.
Q- Apne se koi paap karm na ho uske liye kaun si parhej chahiye?
A- Anna ki bahut parhej chahiye. Paap aatma ka anna andar jaane se uska asar padta hai. Har ek ke circumstance dekh Baap raye dete hain.
Dharna le liye mukhya saar
1) Savere oothne ka abhyas daalna hai. Savere-savere ooth bichar sagar manthan jaroor karna hai. Aadha pouna ghanta bhi baithkar apne aap se baatein karni hai. Buddhi ko gyan se bharpoor karna hai.
2) Bahuto ki aashirvad lene ke liye 3 paiir prithvi par college wa hospital khol deni hai. Baap samaan nirahankari ban seva karni hai.
Vardaan- Shrest purusharth dwara har shakti wa goon ka anubhav karne wale Anubhavi Murt bhava
Slogan- Sampannata ki anubhooti dwara santoost aatma bano to aprapti ka naam nishaan nahi rahega.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
17-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ बाप को प्यार से याद करो तो पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन जायेंगे”
प्रश्न: 21 जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है?
उत्तर:अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो तो मालामाल बन जायेंगे क्योंकि यह एक-एक ज्ञान रत्न लाखों रूपयों का है। जितना जो दान करेगा, बाप की याद में रहेगा उतना उसे खुशी का पारा चढ़ा रहेगा।
प्रश्न:अपने से कोई पाप कर्म न हो उसके लिए कौन सी परहेज चाहिए?
उत्तर:अन्न की बहुत परहेज चाहिए। पापात्मा का अन्न अन्दर जाने से उसका असर पड़ता है। हर एक के सरकमस्टांश देख बाप राय देते हैं।
ओम् शान्ति।
कौन बैठे हैं, कौन आया? जीव आत्मायें जानती हैं कि हम सब आत्मायें इस समय पतित हैं। खास भारत आम सारी दुनिया। सब पुकारते हैं हे पतित-पावन। यह पतित दुनिया है। सभी आत्मायें पतित दु:खी, सांवरी हो गई हैं। पतित-पावन है बेहद का बाप, जिसको ज्ञान का सागर, सर्व का सद्गति दाता कहा जाता है। बच्चे बाप के सामने बैठे हैं। बच्चों को कहाँ से पहचान मिली? पतित-पावन बाप द्वारा। जब सतयुग था तब वहाँ राजा रानी तथा प्रजा सब पावन थे। सब गोल्डन एज में थे। तुम बच्चों को अब समझ है कि हम जीव की आत्मायें बैठी हैं। आत्मा शरीर के साथ है तो सुख अथवा दु:ख भोगना पड़ता है। आत्मा शरीर में नहीं है तो शरीर को कुछ पता नहीं पड़ता। आत्मा एक शरीर से निकल जाए दूसरे शरीर से कनेक्शन जोड़ती है तो वह चैतन्य हो जाता है। शरीर जड़ है। जड़ भी वृद्धि को पाता है। पहले 5 तत्वों का पुतला बनता है, उनमें आरगन्स आते हैं तब आत्मा उसमें प्रवेश करती है फिर चैतन्य बन जाता है। अभी तुम जीव आत्मायें बैठी हो, तुम्हारे सामने बाप बैठे हैं। वह भी परम सुप्रीम आत्मा है और एवर प्युअर (सदा पावन) है। अब बाप बच्चों को डायरेक्शन देते हैं - बच्चे तुम्हें भी बाप जैसा पावन बनना है। तुम आत्मायें अमर हो, तुम पहले शान्तिधाम में थी। तुम जानते हो हम आत्मायें शिवबाबा के पास आई हैं, जिसने यह साधारण शरीर धारण किया है। सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई हो नहीं सकता जो ऐसे बच्चों को बैठ डायरेक्शन दे। वह तो समझते हैं कि परमात्मा कब आता नहीं। वह नाम रूप से न्यारा है। तुम बच्चे जानते हो हम फिर से 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हैं। पहचाना है कि कैसे बाप हमको पावन बनाते हैं। आत्मा के पतित होने से शरीर भी पतित हुआ है। अब फिर पावन बनना है। हम आत्मायें मूलवतन में पावन थी। ऐसे ऐसे अपने से बातें करना है। विचार सागर मंथन करना है। अभी तुम आत्माओं को पहचान मिली है। हम आत्मायें निर्वाणधाम में थी फिर सतयुग में आते हो सुख का पार्ट बजाने। तुम हो आलराउन्डर इसलिए पहले-पहले तुमको ज्ञान मिला है। जानते हो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की रचना रचते हैं। बाबा कहते हैं तुम जीव आत्माओं को शूद्र वर्ण से ब्राह्मण वर्ण में लाया है। शूद्र से अब तुम ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली बने हो। क्यों? वर्सा लेने। ब्रह्मा मुखवंशावली सिर्फ संगम पर ही बनते हैं। तुम्हारे लिए ही संगम है। तुम आत्मा कहती हो हम पहले पावन थे, अब पतित बने हैं फिर सो पावन बनते हैं। हे पतित-पावन बाबा हमको फिर से आकर पतित से पावन बनाओ। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। अभी आत्मा को खुराक मिली है। हम आत्मायें पावन थी तो मुक्तिधाम में रहती थी फिर स्वर्ग में आई, इतने जन्म लिए फिर नीचे गिरते गये फिर गोल्डन एज में जाना है। बाबा कहते हैं मैंने 5 हजार वर्ष पहले भी कहा था - मामेकम् याद करो। गृहस्थ व्यवहार धन्धे आदि में रहते सिर्फ अपने को आत्मा समझो, अब हमको पावन बनना है। घर जाना है। पावन दुनिया का मालिक बनना है। अब हम आइरन एज से गोल्डन एज में कैसे जायें, यह चिंता लगी रहे। बाबा तो सहज युक्ति बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो तो तुम पावन बनेंगे। गीता में दो बारी यह महावाक्य हैं कि मनमनाभव। हे बच्चे देह-अभिमान छोड़ो। बाप को याद करो। वह है अथॉरिटी। तुमको सभी शास्त्र का सार, सृष्टि के आदि मध्य अन्त का नॉलेज समझाया है। तुम जितना मुझे याद करेंगे उतना तुम्हारी आत्मा पवित्र होती ज्येगी, और कोई उपाय नहीं। पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनना है। गंगा-स्नान से पावन नहीं बनेंगे। अगर बनते तो यहाँ होते ही नहीं। परन्तु आइरन एज में सबको आना ही है। तो पहले सवेरे-सवेरे इस ख्यालात में बैठना है। कहते हैं ना - राम सिमर प्रभात मोरे मन। आत्मा कहती है हे मेरी बुद्धि अब बाप को याद करो। बुद्धि का योग बाप से लगाना है। अब जितना जो लगायेंगे उतना पत्थर से पारसबुद्धि बनते जायेंगे। पारसबुद्धि बनाने वाला एक बाप ही है। कहते हैं कल्प-कल्प आकर संगम पर तुमको बनाता हूँ। सेकेण्ड की बात है ना। जैसे डाक्टर लोग ऐसी दवाईयां देते हैं जो फोड़ा अन्दर ही खत्म हो जाता है। बाप कहते हैं तुमको भी मुख से कुछ कहना नहीं है। हाथ पांव से भी कुछ करना नहीं है, सिर्फ बुद्धि से याद करना है। कल्प पहले भी तुमने याद किया था, जिससे विकर्म दग्ध हुए थे। ऐसे तुमको समझाया था, अब समझा रहा हूँ। अभी तुमको बाप की याद से पारसबुद्धि बनना है। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा पतित-पावन बाप कल्प-कल्प के संगम पर आता हूँ श्रीमत देने। हे मेरे मीठे लाडले बच्चे, यह आत्मा सुनती है इन आरगन्स से। यह है ब्रह्मा मुख, गऊमुख कहते हैं ना। गऊ जानवर नहीं। यह गऊ माता ठहरी ना। इस गऊ मुख से सुनाते हैं। मन्दिरों में फिर वह गऊ मुख दे दिया है। उनके मुख से पानी बहता है। उसको समझते हैं गऊमुख। गंगा का जल समझते हैं। अभी तुम जानते हो यह ज्ञान बाप इन द्वारा देते हैं। यह गऊ माता हुई ना। यह है बड़ी माँ। इनकी कोई माता नहीं। साकार मम्मा की भी यह माता हुई ना। तुम सब मातायें गऊ हो। तुम्हारे मुख से यह ज्ञान वर्षा होती है। बाकी पानी की नदियां तो सब जगह होती हैं। वह गंगा पतित-पावनी हो नहीं सकती। गंगा पर भी मन्दिर है, जहाँ देवता की मूर्ति है। इन देवताओं में तो ज्ञान है नहीं। ज्ञान तुमको मिलता है, जिससे तुम देवता बनते हो। देवताओं को ज्ञानी नहीं कहेंगे। विष्णु को अलंकार देते हैं वास्तव में हैं तुम ब्राह्मणों के अलंकार। तुम बच्चों को यह स्वदर्शन चक्र फिराना है, इसमें हिंसा की कोई बात नहीं। यह सब ज्ञान की बातें हैं। ज्ञान का शंख बजाना है और चक्र को याद करना है। यह है स्वदर्शन चक्र, उन्होंने फिर चर्खा रख दिया है। कमल फूल समान पवित्र भी तुम्हें यहाँ बनना है। गदा भी ज्ञान की है, जिससे माया पर जीत पानी है। तो यह सब हैं तुम्हारे अलंकार। तुम बच्चे जानते हो यह है नर्क, स्वर्ग उस तरफ खड़ा है। हम संगम पर हैं। एक तरफ मैला पानी दूसरे तरफ अच्छा पानी है। उसका संगम होता है, जो जाकर देखते हैं। यह है ज्ञान-सागर परमपिता परमात्मा और तुम मैली नदियां हो। बाप बैठ आप समान पवित्र बनाते हैं। बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ, इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं। टीचर को कभी कहेंगे क्या कि मास्टर जी कृपा करो तो हम ऊंच पद पायें। टीचर कहेंगे पढ़ो। बाप तो कहते हैं मैं तो सबको एक जैसा पढ़ाता हूँ। तुम कहते हो पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ। तुम इस ड्रामा के एक्टर हो और ड्रामा के आदि मध्य अन्त, क्रियेटर, डायरेक्टर का पता नहीं है। तुम तो पत्थरबुद्धि हो। अभी तुम बच्चे बाप को जानने से पारसबुद्धि बन जाते हो। बाप कहते हैं सवेरे सिर्फ आधा-पौना घण्टा बैठ यह विचार सागर मंथन करो। प्वाइंट्स तो तुमको बहुत सुनाते हैं। उन्होंने तो 18 अध्याय बैठ बनाये हैं। भक्ति मार्ग में फिर ड्रामा अनुसार यह शास्त्र आदि होंगे। अब तुम बच्चों को पुरूषार्थ करना है। अमृतवेले उठ अपने साथ बातें करनी हैं। अब हमको बाप को याद कर पावन बनना है। माला का दाना बनना है। बाबा की याद से पवित्र बनेंगे, जितना पवित्र बनते और बनाते जायेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ता जायेगा। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है। साहूकार लोग दान पुण्य करते हैं ना। तुम हो अविनाशी ज्ञान रत्नों के दानी। एक-एक रत्न लाखों की वैल्यु का है। तुम जितना पवित्र बनते हो - 21 जन्म के लिए मालामाल हो जाते हो। तुम जब पारसबुद्धि थे तो सुख शान्ति सम्पत्ति सब थी। अभी पत्थरबुद्धि होने से सब खत्म हो गया है। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर सवेरे उठने का अभ्यास डालो। समय अच्छा है। अन्धियारी रात में मनुष्य घोर पाप करते हैं। अभी तुमको पावन बनना है। तुम 100 परसेन्ट निर्विकारी थे। अभी आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलेगी - योग भठ्ठी से, योग अग्नि से। इस ज्ञान और योग की समझानी का विनाश नहीं होता है। थोड़ा सुनने से भी प्रजा में आ जायेंगे। बाप तो कहते हैं बच्चे पूरा वर्सा लो, कल्प पहले मुआिफक। वही राजा, वही प्रजा आदि बनेंगे। अज्ञानकाल में भी दान-पुण्य करते हैं तो राजाई घर में जाकर जन्म लेते हैं। कोई कर्मों अनुसार गरीब के घर में जन्म लेते हैं। बाप बैठ कर्म, विकर्म, अकर्म की गति समझाते हैं। सतयुग में कर्म अकर्म हो जाता है क्योंकि माया ही नहीं है। यह है रावण राज्य। वह है रामराज्य। अभी रावण राज्य का विनाश हो, सतयुग की स्थापना हो रही है। बाप तो बहुत अच्छी तरह से समझाते हैं। कन्याओं को अच्छी तरह से समझाना चाहिए, बंधन मुक्त हैं। कन्या की कमाई मात-पिता नहीं खाते हैं। माँ बाप कन्या को पूजते हैं। कन्या जब विकारी बन जाती है तो सबके आगे माथा टेकना पड़ता है। भल कन्या भी देवताओं के आगे माथा टेकती है क्योंकि जन्म तो पतित माँ बाप से लिया ना। देवतायें तो हैं ही पावन। अभी तुम समझते हो हम सो देवता थे। 84 जन्म ले फिर पतित बने हैं, उतरते आये हैं। अब हमको फिर श्रीमत पर चलना पड़े, तो फिर कोई पाप कर्म नहीं होंगे। पाप-आत्मा का अन्न अन्दर नहीं जायेगा। परहेज तो बताई जाती है ना, नहीं तो वह असर पड़ जाता है। परन्तु कहाँ-कहाँ सरकमस्टांश देखा जाता है। कर्मों का हिसाब-किताब है, अलग बनाने नहीं देते हैं। अच्छा बाप को याद करो, लाचारी है - बाबा को याद करके खाओ। भूलेंगे तो तुम्हारे पर उसका असर आ जायेगा। बाप को याद करने से नजदीक होते जायेंगे। अभी तो सम्मुख बैठे हो। बाप डायरेक्ट समझाते हैं, हे बच्चे, हे बच्चे कह बाप बात कर रहे हैं, तो बाप को याद करना है, फिर करो न करो तुम्हारी मर्जा। जो करेगा सो पायेगा जरूर। सीधी बात है। यह तो समझ गये हो - यह हॉस्पिटल है। हेल्थ, वेल्थ की युनिवर्सिटी भी है। इसमें सिर्फ 3 पैर पृथ्वी का चाहिए। बस। बेहद का बाप देखो कैसे पढ़ाते हैं। कितना निरहंकारी बाप है। पतित शरीर, पतित दुनिया में बैठ तुम बच्चों से कितनी मेहनत कर रहे हैं। बच्चे फिर से तुम अपना वर्सा ले लो। हम साक्षी हो देख रहे हैं। कौन-कौन अच्छा पुरूषार्थ कर रहे हैं, इसमें सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। कलकत्ते में सेन्टर है, कितनों का कल्याण हो रहा है, जो आपस में मिलकर सेन्टर चलाते हैं उनको भी पद मिल जाता है। क्लास जितना कमरा हो, जिसमें सब क्लास सुन सकें। बस। हमको तो गोल्डन एज में जाना है। सिवाए याद के और कोई उपाय है नहीं। बाप कहते हैं बच्चे अपना और दूसरों का कल्याण करना है। तुम यह हॉस्पिटल खोलो। तुमको यहाँ बहुतों की आशीर्वाद मिलेगी। मनुष्य कालेज खोलते हैं औरों के लिए। खुद तो नहीं पढ़ते हैं तो उनको दूसरे जन्म में अच्छी विद्या मिल जाती है। बाप कहते हैं चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार हो, तीन पैर पृथ्वी का प्रबन्ध हो, जिसमें बैठ ज्ञान और योग सिखलावें, पत्थर से पारस बनावें। कहते हैं बहन भाई बनाते हैं, विष का वर्सा छुड़ाते हैं। फिर दुनिया कैसे चलेगी। यह तो तुम बच्चे जानते हो कि वहाँ यह दुनिया कोई भोगबल की नहीं है। वहाँ तो योगबल से बच्चे पैदा होते हैं। अब तुम उस नये विश्व के मालिक बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सवेरे उठने का अभ्यास डालना है। सवेरे-सवेरे उठ विचार सागर मंथन जरूर करना है। आधा पौना घण्टा भी बैठकर अपने आपसे बातें करनी हैं। बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करना है।
2) बहुतों की आशीर्वाद लेने के लिए 3 पैर पृथ्वी पर कालेज वा हॉस्पिटल खोल देनी है। बाप समान निरहंकारी बन सेवा करनी है।
वरदान:पुरूषार्थ द्वारा हर शक्ति वा गुण का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव
सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की है। जैसे सोचते और कहते हो कि आत्मा शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप है-ऐसे एक-एक गुण वा शक्ति की अनुभूति करो और उन अनुभवों में खो जाओ। जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो। शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये। अनुभवी मूर्त बनना ही श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी है। तो अनुभवों को बढ़ाओ।
स्लोगन:सम्पन्नता की अनुभूति द्वारा सन्तुष्ट आत्मा बनो तो अप्राप्ति का नामनिशान नहीं रहेगा।
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Details ( Page:- Murali 18th Aug 2017 )
18.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap jo gyan ki mithi-mithi baatein sunate hain wo dharan karni hai - bahut mitha kheerkhand bankar rehna hai, kabhi loon-paani nahi hona hai.
Q- Kis maha mantra se tum baccho ko nayi Rajdhani ka tilak mil jata hai?
A- Baap is samay tum baccho ko maha mantra dete hain mithe laadle bacche - Baap aur varshe ko yaad karo. Ghar grihast me rehte kamal phool samaan raho to Rajdhani ka tilak tumhe mil jayega.
Q- Kaha jata jaisi dhristi waisi shrishti....yah kahavat kyun hai?
A- Is samay ke manushya jaise patit hain, kaale hain aise apne pujya Devtaon ko, Lakshmi-Narayan, Ram Sita ko, Shiv Baba ko bhi kaala banaye unki puja karte hain. Samajhte nahi iska aarth kya hai, isiliye yah kahavat hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Koi bhi kaam pyaar se nikalna hai, krodh se nahi. Baap ki yaad me sada harshit rehna hai. Sada Devtaon jaise muskurate rehna hai.
2) Aatma me jo khaad padi hai wo yaad ki agni se nikaalni hai. Bikarm binash karne hain. Bahadur ban seva karni hai. Darna nahi hai.
Vardaan- Byarth sankalpo ke tez bahav ko second me stop kar nirvikalp sthiti banane wale Shrest Bhagyawan bhava
Slogan-- Khushi ke khazane se sampann bano to dusre sab khazane swatah aa jayenge.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
18-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप जो ज्ञान की मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं वह धारण करनी है - बहुत मीठा क्षीरखण्ड बनकर रहना है, कभी लून-पानी नहीं होना है”
प्रश्न:महामन्त्र से तुम बच्चों को नई राजधानी का तिलक मिल जाता है?
उत्तर:बाप इस समय तुम बच्चों को महामन्त्र देते हैं मीठे लाडले बच्चे - बाप और वर्से को याद करो। घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान रहो तो राजधानी का तिलक तुम्हें मिल जायेगा।
प्रश्न:कहा जाता जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि...यह कहावत क्यों है?
उत्तर:इस समय के मनुष्य जैसे पतित हैं, काले हैं ऐसे अपने पूज्य देवताओं को, लक्ष्मी-नारायण, राम सीता को, शिवबाबा को भी काला बनाए उनकी पूजा करते हैं। समझते नहीं इसका अर्थ क्या है, इसीलिए यह कहावत है।
गीत:मुखडा देख ले... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत की लाइन सुनी कि दिल रूपी दर्पण में देखो कि कितना पाप और कितना पुण्य किया है। पाप और पुण्य दिल रूपी दर्पण में विचार किया जाता है ना। यह तो है ही पाप आत्माओं की दुनिया। पुण्य आत्माओं की दुनिया सतयुग को कहा जाता है। यहाँ पुण्य आत्मा कहाँ से आये। सब पाप ही करते रहते हैं क्योंकि रावणराज्य है। खुद कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ। हम जानते हैं कि भारत ही पुण्य आत्माओं का खण्ड था। कोई पाप नहीं करते थे। शेर बकरी इकठ्ठा पानी पीते थे, क्षीरखण्ड थे। बाप भी कहते हैं बच्चे क्षीरखण्ड बनो। पुण्य आत्माओं की दुनिया में तमोप्रधान आत्मा कहाँ से आये। अभी बाप ने रोशनी दी है। तुम जानते हो कि हम सो सतोप्रधान देवी-देवता थे। उन्हों की महिमा ही है-सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण ..... हम खुद भी उनकाr महिमा करते हैं। मनुष्य कहते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। प्रभू आप आकर जब हम पर तरस करो तब हम भी ऐसे बन सकते हैं। यह आत्मा ने कहा। आत्मा समझती है इस समय हम पाप आत्मा हैं। पुण्य आत्मा तो देवी देवतायें हैं जो पूजे जाते हैं। सभी जाकर देवताओं के चरणों पर झुकते हैं। साधू सन्त आदि भी तीर्थों पर जाते हैं। अमरनाथ, श्रीनाथ द्वारे जाते हैं। तो यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। भारत ही पुण्य आत्माओं की दुनिया थी, जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उनको ही कहा जाता है स्वर्ग। मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग गया। परन्तु स्वर्ग है कहाँ? स्वर्ग जब था तब सतयुग था। मनुष्यों को तो जो आता है सो कह देते हैं। समझते कुछ भी नहीं। स्वर्ग में गया तो जरूर नर्क में था। सन्यासी मरते हैं तो कहते हैं ज्योति ज्योत समाया। तो फर्क हो गया ना। ज्योति में समाया माना फिर यहाँ आना नहीं है। तुम जानते हो जहाँ हम आत्मायें रहती हैं उसे निर्वाणधाम कहा जाता है। वैकुण्ठ को निर्वाणधाम नहीं कहेंगे। बच्चों को बहुत मीठी-मीठी ज्ञान की बातें सुनाते हैं, जो बहुत अच्छी रीति धारण करनी चाहिए। तुम जानते हो बाबा आये हैं हमको वैकुण्ठ का रास्ता बताने। बाप आये हैं राजयोग सिखलाने। पावन दुनिया का मार्ग बताए गाइड बन ले जाते हैं। बरोबर विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश होता है - पुरानी दुनिया का। पुरानी दुनिया में ही उपद्रव आदि होते हैं। तो बाबा कितना मीठा है। अन्धों की लाठी बनते हैं। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में धक्का खाते रहते हैं। गाया जाता है ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। ब्रह्मा तो यहाँ है ना। बाप आते ही हैं रात को दिन बनाने के लिए। आधाकल्प है रात, आधाकल्प है दिन। अभी तुमको मालूम हो गया है, वह तो समझते हैं कलियुग अजुन बच्चा है। कभी-कभी कहते हैं इस दुनिया का विनाश होना है, परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। आजकल तो मुश्किल घरबार छोड़ते हैं। कोई कारण हो गया तो घर से जाकर सन्यासी बन जाते हैं। बीच में गवर्मेंट ने आर्डानेंस निकाला था कि सन्यासियों को भी लायसेन्स होना चाहिए। ऐसे थोड़ेही कि जो घर से रूठे वह जाकर सन्यासी बने। मुफ्त में बहुत माल मिल जाते हैं। वह है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास। इस समय सारी दुनिया पतित है, उनको फिर पावन बनाना एक पतित-पावन बाप का ही काम है। सतयुग में पवित्र गृहस्थ धर्म था। लक्ष्मी-नारायण के चित्र भी हैं। देवी-देवताओं की महिमा गाते हैं ना - सर्वगुण सम्पन्न... उनका है हठयोग कर्म सन्यास। लेकिन कर्म का सन्यास तो हो न सके। कर्म के बिना तो मनुष्य एक सेकेण्ड भी रह नहीं सकता। कर्म सन्यास अक्षर ही रांग है। यह है कर्मयोग, राजयोग। तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे। तुम जान गये हैं कि हमको 84 जन्म लेने पड़ते हैं। वर्ण भी गाये जाते हैं। ब्राह्मण वर्ण का किसको पता नहीं है। बाप तुम बच्चों को महामन्त्र देते हैं कि बाप और वर्से को याद करते रहो, तो तुमको राजधानी का तिलक मिल जायेगा। मीठे-मीठे लाडले बच्चे घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान रहो। जितना प्यार से काम निकल सकता है, उतना क्रोध से नहीं। बहुत मीठे बनो। बाप की याद में सदैव मुस्कराते रहो। देवताओं के चित्र देखो कितने हर्षित रहते हैं। अभी तुम जानते हो वह तो हम ही थे। हम सो देवता थे फिर सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। अभी हम संगम पर ब्रह्मा मुख वंशावली बने हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली सो ईश्वर वंशी। बाप का वर्सा मिलता है मुक्ति और जीवनमुक्ति। यह भी तुम जानते हो जब देवी देवताओं का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था, चन्द्रवंशी भी नहीं थे। यह तो समझने की बात है ना। हम सो का अर्थ भी उन्होंने आत्मा सो परमात्मा निकाल लिया है। अभी तो तुम जानते हो हम सो देवता फिर क्षत्रिय...बनें। यह आत्मा कहती है। हम आत्मा पवित्र थी तो शरीर भी पवित्र था। वह है ही वाइसलेस वर्ल्ड। यह है विशश। दु:खधाम, सुखधाम और शान्तिधाम, जहाँ हम सब आत्मायें रहती हैं। कहते हैं हम सब चीनी-हिन्दू भाई-भाई हैं, परन्तु अर्थ भी तो समझें ना। आज भाई-भाई कहते कल बन्दूक लगाते रहते हैं। आत्मायें तो सब ब्रदर्स हैं। परमात्मा को सर्वव्यापी कहने से सब फादर हो जाते हैं। फादर को वर्सा देना है। ब्रदर्स को वर्सा लेना है। रात दिन का फर्क हो जाता है। वह तो पतित-पावन है ना, उनसे ही पावन बनना है। हम मनुष्य से देवता बनने चाहते हैं। ग्रंथ में भी है मनुष्य से देवता... गाया भी जाता है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। हम देवतायें जीवनमुक्त थे, अभी जीवनबन्ध बने हैं। रावण राज्य द्वापर से शुरू होता है फिर देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं। यह निशानियां भी रखी हैं। जगन्नाथ पुरी में देवताओं के भी बहुत गन्दे चित्र हैं। आगे तो यह समझ में नहीं आता था। अब कितना समझ में आया है। वन्डर खाते थे कि देवताओं के ऐसे गन्दे चित्र यहाँ कैसे लगे हैं, और अन्दर काला जगत नाथ बैठा है। श्रीनाथ द्वारे में भी काले चित्र दिखाते हैं। यह किसको पता नहीं है कि जगन्नाथ की शक्ल काली क्यों दिखाई है। कृष्ण के लिए तो कहते हैं कि उनको सर्प ने डसा। राम को क्या हुआ? नारायण की शक्ल भी सांवरी दिखा देते हैं। शिवलिंग भी काला दिखाते हैं, सब काला ही काला दिखाते हैं। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। इस समय हैं ही सब पतित काले, तो भगवान को भी काला बना दिया है। पहले-पहले शिव की पूजा करते थे, हीरों का लिंग बनाते थे। अब वह सब चीजें गायब हो गयी हैं। यह तो मोस्ट वैल्युबुल चीजें हैं। पुरानी चीज का मान कितना होता है। पूजा शुरू हुए 2500 वर्ष हुए, तो इतने पुराने होंगे और क्या! पुराने-पुराने चित्र देवी-देवताओं के हैं। यह फिर कह देते हैं लाखों वर्ष के हैं। अभी तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। अभी कलियुग है, विनाश सामने खड़ा है। सबको जाना है। बाप ही सबको ले जाते हैं। ब्रह्मा द्वारा तुम ब्राह्मण बने, फिर तुम देवतायें पालना करेंगे। यह बातें कोई भागवत गीता में नहीं हैं। बाप कहते हैं यह नॉलेज गुम हो जाती है। लक्ष्मी-नारायण तो त्रिकालदर्शी नहीं हैं फिर यह ज्ञान परमपरा कैसे चल सकता है। तुम ही इस समय त्रिकालदर्शी हो। सबसे अच्छी सेवा इस समय तुम करते हो। तो तुम हो सच्चे-सच्चे रूहानी सोशल वर्कर। तुम अभी आत्म-अभिमानी बनते हो। आत्मा में जो खाद पड़ी है, वह निकले कैसे? बाप जौहरी भी है ना। सोना में आइरन की खाद पड़ते-पड़ते आत्मा पतित हो गई है। अब पावन कैसे बनें? बाप कहते हैं हे आत्मा मामेकम् याद करो। पतित-पावन बाप श्रीमत देते हैं। भगवानुवाच हे आत्मायें तुम्हारे में खाद पड़ती है, अभी तुम पतित हो। पतित फिर महात्मा थोड़ेही हो सकते हैं। एक ही उपाय है - मामेकम् याद करो। इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म दग्ध होंगे। कितने आश्रम हैं। अनेक प्रकार के हठयोग के चित्र लगे हुए हैं। यह है योग अथवा याद की भठ्ठी। भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, भोजन आदि बनाओ। बच्चों की सम्भाल करो। अच्छा सवेरे तो टाइम है ना। कहा भी जाता है राम सिमर प्रभात मोरे मन। आत्मा में बुद्धि है। भक्ति भी सवेरे करते हैं। तुम भी सवेरे उठ बाप को याद करो, विकर्म विनाश करो। सारा किचड़ा निकल आत्मा कंचन बन जायेगी, फिर काया भी कंचन मिलेगी। अभी तुम्हारी आत्मा दो कैरेट भी नहीं है। भारत के देवी देवताओं के 84 जन्मों का हिसाब लेना पड़े। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। परन्तु आयु कितनी है, यह जानते नहीं। कल्प की आयु को ही नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ श्रीमत देने, श्रेष्ठ बनाने। याद की अग्नि से ही खाद निकलेगी और कोई उपाय नहीं है। बच्चों को बहादुर बनना है, डरो मत। जिनका रक्षक खुद भगवान बाप बैठा है उनको किससे डरना है? तुम्हें कोई श्राप आदि क्या देंगे? कुछ भी नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कोई भी काम प्यार से निकालना है, क्रोध से नहीं। बाप की याद में सदा हर्षित रहना है। सदा देवताओं जैसे मुस्कराते रहना है।
2) आत्मा में जो खाद पड़ी है वह याद की अग्नि से निकालनी है। विकर्म विनाश करने हैं। बहादुर बन सेवा करनी है। डरना नहीं है।
वरदान:व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
यदि कोई भी गलती हो जाती है तो गलती होने के बाद क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं वैसे...यह सोचने में समय नहीं गंवाओ। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो उतना दाग के ऊपर दाग लगाते हो, पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार पेपर के टाइम को बढ़ा देता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को परिवर्तन शक्ति द्वारा सेकण्ड में स्टॉप कर दो तो निर्विकल्प स्थिति बन जायेगी। जब यह संस्कार इमर्ज हो तब कहेंगे भाग्यवान आत्मा।
स्लोगन:खुशी के खजाने से सम्पन्न बनो तो दूसरे सब खजाने स्वत: आ जायेंगे।
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Details ( Page:- Murali 19th Aug 2017 )
19.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Padhai ka simran karte raho to kabhi bhi kisi baat me moonjhenge nahi, sada nasha rahe ki hume padhane wala swayang nirakar bhagwan hai.
Q- Is gyan ratno ka abinashi nasha kin baccho ko rah sakta hai?
A- Jo garib bacche hain. Garib bacche he Baap dwara Padma-Padampati bante hain. Wo mala me piro sakte hain. Sahookaro ko to apne binashi dhan ka nasha rehta hai. Baba ko is samay crorepati bacche nahi chahiye. Garib baccho ki payi-payi se he swarg ki sthapana hoti hai kyunki garibo ko he sahookar banna hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Kshirsagar me jane ke liye ek Baap se he sachchi preet rakhni hai. Ek ki he abyavichari yaad me rehna hai aur sabko ek Baap ki yaad dilani hai.
2) Binashi dhan ka nasha nahi rakhna hai. Gyan dhan ke nashe me sthayi rehna hai. Padhai se oonch pad pana hai.
Vardaan- Parivartan shakti dwara biti ko bindi lagane wale Nirmal aur Nirmaan bhava.
Slogan- Mastak par smruti ka tilak sada chamakta rahe- yahi sachche suhag ki nishaani hai.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
19-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - पढ़ाई का सिमरण करते रहो तो कभी भी किसी बात में मूँझेंगे नहीं, सदा नशा रहे कि हमें पढ़ाने वाला स्वयं निराकार भगवान है”
प्रश्न:इन ज्ञान रत्नों का अविनाशी नशा किन बच्चों को रह सकता है?
उत्तर:जो गरीब बच्चे हैं। गरीब बच्चे ही बाप द्वारा पदमा-पदमपति बनते हैं। वह माला में पिरो सकते हैं। साहूकारों को तो अपने विनाशी धन का नशा रहता है। बाबा को इस समय करोड़पति बच्चे नहीं चाहिए। गरीब बच्चों की पाई-पाई से ही स्वर्ग की स्थापना होती है क्योंकि गरीबों को ही साहूकार बनना है।
गीत:इस पाप की दुनिया से.... ओम् शान्ति।
मीठे मीठे बापदादा के बच्चे जानते हैं कि हम अभी ऐसी जगह में चल रहे हैं, जहाँ दु:ख का नाम निशान ही नहीं, जिसका नाम ही है सुखधाम। हम उस सुखधाम वा स्वर्ग के मालिक थे। सुखधाम में तो सतयुग ही था, देवीदेवताओं का राज्य था। अभी जो तुम ब्राह्मण बने हो, तो तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली। तुम लिखते भी हो - शिवबाबा केयरआफ ब्रह्माकुमारीज। यह भी तुम अभी जानते हो बरोबर हमारी चढ़ती कला है। चढ़ती कला और उतरती कला को तुम बच्चों ने अच्छी रीति समझा है। तुम यह भी समझते हो भारत जब चढ़ती कला में था तब उन्हों को देवी-देवता कहते थे। अभी उतरती कला में है, इसलिए उन्हें देवी-देवता कह नहीं सकते। अभी अपने को मनुष्य समझते हैं। मन्दिरों में जाकर देवी-देवताओं के आगे माथा टेकते हैं। समझते हैं यह होकर गये हैं। कब? यह नहीं जानते। तुम किसको भी समझा सकते हो - क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। तुम बच्चे समझ गये हो कि चक्र को अब फिरना ही है। पतित दुनिया को पावन बनना ही है। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है हम बाप द्वारा मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप पढ़ाते हैं यह नशा चढ़ना चाहिए ना। गाया भी हुआ है भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। सिर्फ यह भूल कर दी है जो बाप के बदले बच्चे का नाम डाल दिया है। इस भूल को भी तुम बच्चे ही समझते हो और कोई समझते नहीं। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में आया है कि हम फिर से अपने शान्तिधाम से सुखधाम जाने के लिए पावन बन रहे हैं। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। पतित-पावन तो गॉड फादर ही ठहरा। कृष्ण को तो कह नहीं सकते। यह बुद्धि में सिमरण करते रहना है। स्कूल में बच्चों की बुद्धि में पढ़ाई का सिमरण चलता है ना। तुम भी अगर यह सिमरण करते रहेंगे तो कभी मूँझेंगे नहीं। जानते हो अब हमारी चढ़ती कला है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति भी गाई हुई है। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बना। परन्तु वह कोई जीवनमुक्ति का वर्सा नहीं है। यहाँ तुमको जीवनमुक्ति का राज्य भाग्य मिलता है। बाप से मिलना भी जरूर है। यह भी जानते हो बेहद के बाप से भारत को बेहद का वर्सा मिला था, अब फिर मिलना है। अब तुम श्रीमत पर चलकर वर्सा पा रहे हो। भक्ति मार्ग में किसी न किसी को याद ही करते रहते हैं। चित्र भी सबके मौजूद हैं, पूजे जाते हैं ना। यह भी राज बाप ने समझाया है। इन बातों में कोटों में कोई तो अच्छी रीति समझेंगे और निश्चय करेंगे, फिर कोई संशय उठायेंगे। कोई को संशय न आये इसलिए पहले सम्बन्ध की बात समझानी है। गीता में भी है ना - अर्जुन को भगवान ने बैठ समझाया। अब घोड़े-गाड़ी में बैठ राजयोग सिखावे, यह तो हो नहीं सकता। ऐसे थोड़ेही बैठ राजयोग सिखायेंगे। अब यह तो झूठ हो गया। दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला और फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दे दिये हैं। सूक्ष्मवतन में तो हो न सके। तो यहाँ ही सार समझायेंगे ना। ऐसे ऐसे चित्रों पर तुम समझा सकते हो। प्रदर्शनी में भी यह चित्र काम में आयेंगे जरूर। सूक्ष्मवतन की तो बात ही नहीं। ब्रह्मा मुख द्वारा किसको समझावें? वहाँ तो हैं ही ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। तो शास्त्र का सार किसको समझावें? तुम जानते हो यह सब भक्ति मार्ग के कर्मकान्ड हैं। सतयुग त्रेता में यह भक्ति मार्ग तो हो नहीं सकता। वहाँ है ही देवताओं की राजधानी। भक्ति कहाँ से आ सकती। यह भक्ति तो बाद में होती है। तुम बच्चे जानते हो निश्चयबुद्धि ही विजयी होते हैं, बाप में निश्चय रखेंगे तो जरूर बादशाही मिलेगी। बाप बैठ समझाते हैं मैं स्वर्ग की स्थापना करने वाला, पतितों को पावन बनाने वाला हूँ। शिव को कभी गोरा, सांवरा नहीं कहेंगे। कृष्ण को ही श्याम सुन्दर कहते हैं। यह भी बच्चे समझते हैं - शिव तो चक्र में आता नहीं है। उनको गोरा वा सांवरा दिखा न सकें। बाप समझाते हैं तुम बच्चों की अब चढ़ती कला है। सांवरे से गोरा बनना है। भारत गोरा था - अब काला क्यों बन गया है! काम चिता पर बैठने से। यह भी गायन है सागर के बच्चों को काम ने जलाए भस्म कर दिया। अब बाप तुम्हें ज्ञान चिता पर बिठाते हैं। तुम्हारे ऊपर ज्ञान की वर्षा होती है। यह भी समझते हो यह एक ही सत का संग है। परमपिता परमात्मा जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है, उनको अमरनाथ भी कहते हैं तो जरूर यहाँ बच्चों को बैठ समझायेंगे ना! पहाड़ पर सिर्फ एक पार्वती को बैठ सुनायेंगे क्या? उनको तो सारी पतित दुनिया को पावन बनाना है। एक की तो बात नहीं है। तुम जानते हो हम ही पावन दुनिया के मालिक थे फिर हम ही बनेंगे। झाड़ के ऊपर भी समझाया है कि पिछाड़ी में भी छोटी-छोटी टालियां निकलती हैं। यह सब हैं छोटे-छोटे मठ पंथ। पहले-पहले बहुत खूबसूरत पत्ते निकलते हैं। जब झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है तो फिर नये पत्ते भी नहीं निकलेंगे और न फल निकलेंगे। हर एक बात बाप बच्चों को अच्छी रीति समझाते रहते हैं। लड़ाई भी तुम्हारी माया के साथ है। इतना ऊंच पद है तो जरूर कुछ मेहनत करेंगे ना! पढ़ना भी है, पवित्र भी बनना है। आधाकल्प रावणराज्य चला है और अब रामराज्य होना है। कहते भी हैं रामराज्य हो। परन्तु यह पता नहीं कि कब और कैसे होगा? शास्त्रों में तो यह बातें हैं नहीं। दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ों पर गल मरे। अच्छा फिर क्या हुआ? प्रलय तो होती नहीं। एक तरफ दिखाते हैं कि बाप राजयोग सिखलाते हैं। कहते हैं तुम भविष्य में राजाओं का राजा बनेंगे और फिर दिखलाते हैं पाण्डव खत्म हो गये। यह कैसे हो सकता! नई दुनिया की स्थापना कैसे होगी? श्रीकृष्ण कहाँ से आये? जरूर ब्राह्मण चाहिए। तुम जानते हो हम नई दुनिया में जाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। यहाँ ज्ञान सागर के पास रिफ्रेश होने आते हैं। वहाँ ज्ञान गंगाओं द्वारा सुनते हो। अमरनाथ पर एक तलाव दिखाते हैं जो मानसरोवर है। कहते हैं उसमें स्नान करने से परीजादा बन जाते हैं। वास्तव में यह है ज्ञान मानसरोवर। ज्ञान सागर बाप बैठ ज्ञान स्नान कराते हैं, जिससे तुम बहिश्त की परियां बन जाते हो। परियां नाम सुन ऐसे पंख वाले मनुष्य बना दिये हैं। वास्तव में पंख आदि की बात है नहीं। आत्मा के उड़ने के पंख अब टूट गये हैं। शास्त्र में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं। यह भी बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ है। इनको भी बाप कहते हैं, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। मैं तुम्हारे बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। कृष्ण तो है ही सतयुग का पहला जन्म। स्वयंवर के बाद फिर लक्ष्मी-नारायण बन जाते हैं। तो जो श्री नारायण था, वह बहुत जन्मों के अन्त में अब साधारण है। फिर जरूर उनके ही तन में आना पड़े। कई कहते हैं भगवान पतित दुनिया में कैसे आयेंगे! न समझने कारण श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है, जो सबसे पावन है। परन्तु श्रीकृष्ण को सब भगवान मानेंगे नहीं। भगवान तो है निराकार। उनका नाम शिव मशहूर है। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है। सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं। यह भी अच्छी रीति समझाना चाहिए। धारणा बहुत अच्छी चाहिए। आपस में एक दो को यह याद दिलाना चाहिए। बाबा को याद करते हो, 84 के चक्र को याद करते हो। अब घर जाते हैं। यह पुरानी दुनिया, पुरानी स्त्री सब त्याग करना है। अभी हम नई दुनिया के लिए तैयार हो रहे हैं। पुरानी दुनिया का नशा नहीं रहता। यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों का नशा, वो नशा टूटना मुश्किल होता है। गरीबों का नशा टूट जाता है। बाप कहते हैं - मैं गरीब निवाज हूँ, आते भी गरीब हैं। आजकल तो करोड़पति को ही पैसे वाला कहा जाता है। लखपति को पैसे वाला नहीं कहेंगे। वह तो यह ज्ञान उठा नहीं सकेंगे। बाप कहते हैं हमको करोड़ अरब तो चाहिए ही नहीं। क्या करेंगे! हमको गरीबों के पैसे-पैसे से स्वराज्य की स्थापना करनी है। हम पक्का व्यापारी भी हैं। ऐसे थोड़ेही फालतू लेंगे जो फिर देना पड़े। तुम्हारा मट्टा सट्टा है इसलिए भोलानाथ कहा जाता है। गरीब से गरीब ही माला में पिरोये जाते हैं। सारा मदार पुरूषार्थ पर है, इसमें पैसे की बात नहीं। पढ़ाई की बात में गरीब अच्छा ध्यान देंगे। पढ़ाई तो एक है ना। गरीब अच्छा पढ़ेंगे क्योंकि साहूकारों को तो पैसे का नशा रहता है। तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग के मालिक थे, अब कंगाल हैं। अब बाप आया है 84 का चक्र तो जरूर लगना है। पुनर्जन्म भी सिद्ध करेंगे। तुम सिकीलधे बच्चे ही 84 के चक्र में आते हो। यह भी तुम जानते हो और कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो चक्र पूरा होता है, अब घर वापिस जाना है। पढ़ाई को दोहराना है। चित्र रखा होगा तो देखकर चक्र याद आयेगा। गीत भी कोई-कोई बहुत अच्छे हैं, सुनने से नशा चढ़ता है। तुम अब शिवबाबा के बने हो, वर्सा तुमको अब निराकार से मिल रहा है, साकार द्वारा। निराकार कैसे दे जब तक साकार में न आये। तो कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ। प्रजापिता भी यहाँ चाहिए ना। ब्रह्मा का नाम मशहूर है, ब्रह्मा मुख वंशावली। बच्चों को बाजोली भी समझाई है। हम अभी ब्राह्मण हैं, फिर देवता बनेंगे। चोटी देखने में आती है। ऊपर में है शिवबाबा स्टार, कितना सूक्ष्म है। इतना बड़ा लिंग नहीं है, यह तो पूजा के लिए बनाया है। रूद्र यज्ञ रचते हैं तो एक बड़ा शिवलिंग और छोटे-छोटे सालिग्राम बनाते हैं। साहूकार लोग बहुत बनाते हैं। यह सब भक्ति मार्ग में शुरू होता है द्वापर से। पहले होती हैं 16 कलायें, फिर 14 कलायें, फिर कलायें कम होते-होते अभी कोई कला नहीं रही है। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाप और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। नोट करते जाओ, पतियों के पति को कितना टाइम याद किया! अव्यभिचारी सगाई चाहिए ना। मित्र-सम्बन्धी आदि सब भूल जायें। एक से ही प्रीत रखनी है। इस विषय सागर से क्षीरसागर में जाना है। आत्माओं की बैठक तो ब्रह्म तत्व में है। क्षीरसागर में विष्णु को दिखाते हैं। विष्णु और ब्रह्मा। ब्रह्मा द्वारा तुमको समझाते हैं फिर तुम विष्णुपुरी क्षीरसागर में चले जाते हो। अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं - हे आत्मायें मुझे याद करो। मैंने तुमको पार्ट बजाने भेजा था। तुमको याद दिलाते हैं - नंगे (अशरीरी) आये थे। पहले-पहले तुम देवता बन स्वर्ग में आये। भगवान जब सबका बाप है तो सबको स्वर्ग में आना चाहिए ना! परन्तु सब धर्म तो आ नहीं सकते। 84 जन्म देवताओं ने ही लिये हैं। उन्हों को ही आना है। यह सब बातें तुम्हारे सिवाए और कोई जान न सके। अच्छी बुद्धि वाले ही धारणा करेंगे। थोड़ा समय है सिर्फ अपने आपको आत्मा समझो। हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ, 84 जन्म पूरे हुए। अब यह अन्तिम जन्म है। आत्मा सच्चा सोना बन जायेगी। सतयुग में सच्चा जेवर थे, अब सब झूठे हैं। अब फिर तुम ज्ञान चिता पर बैठे हो, गोरा बनते हो। श्वॉसों श्वॉस याद करेंगे तो वह अवस्था अन्त में होगी। अच्छा
मीठे -मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) क्षीरसागर में जाने के लिए एक बाप से ही सच्ची प्रीत रखनी है। एक की ही अव्यभिचारी याद में रहना है और सबको एक बाप की याद दिलानी है।
2) विनाशी धन का नशा नहीं रखना है। ज्ञान धन के नशे में स्थाई रहना है। पढ़ाई से ऊंच पद पाना है।
वरदान:परिवर्तन शक्ति द्वारा बीती को बिन्दी लगाने वाले निर्मल और निर्माण भव
परिवर्तन शक्ति द्वारा पहले अपने स्वरूप का परिवर्तन करो, मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ। फिर स्वभाव का परिवर्तन करो, प्राना स्वभाव ही पुरुषार्थी जीवन में धोखा देता है, तो पुराने स्वभाव अर्थात् नेचर का परिवर्तन करो। फिर है संकल्पों का परिवर्तन। व्यर्थ संकल्पों को समर्थ में परिवर्तन कर दो। इस प्रकार परिवर्तन शक्ति द्वारा हर बीती को बिन्दी लगा दो तो निर्मल और निर्माण स्वत: बन जायेंगे।
स्लोगन:मस्तक पर स्मृति का तिलक सदा चमकता रहे-यही सच्चे सुहाग की निशानी है।
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Details ( Page:- Murali 20th Aug 2017 )
20.08.17 ( Sunday )
Morning Murli Om Shanti – Avyakt Babdada Madhuban ( 25 – 12- 82 )
Sar - Vidhi , Vidhan aur Vardan
Vardan – behad ki vaibragya briti dwra merepan ki royal roop ko samapt karnewale nyare –pyare bhav.
Slogan – Parchintan ki prabhav se mukt hona hai toh subh chintan karo aur subh chintak bhav.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
20-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ‘अव्यक्त-बापदादा’ रिवाइज:25-12-82 मधुबन
"विधि, विधान और वरदान"
आज सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड करने के लिए बापदादा को भी मिलने के लिए आना पड़ा है। सारे विश्व के बच्चों के स्नेह का, याद का आवाज बाप-दादा के वतन में मीठे-मीठे साज के रूप में पहुँच गया। जैसे बच्चे स्नेह के गीत गाते हैं, बापदादा भी बच्चों के गुणों के गीत गाते हैं। जैसे बच्चे कहते कि ऐसा बाप-दादा कल्प में नहीं मिलेगा, बाप-दादा भी बच्चों को देख कहते कि ऐसे बच्चे भी कल्प में नहीं मिलेंगे। ऐसी मीठी-मीठी रूह-रूहान बाप और बच्चों की सदा सुनते रहते हो? बाप और आप कम्बाइन्ड रूप है ना। इसी स्वरूप को ही सहजयोगी कहा जाता है। योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले। ऐसी स्टेज अनुभव करते हो वा बहुत मेहनत करनी पड़ती है? बचपन का वायदा क्या किया? साथ रहेंगे, साथ जियेंगे, साथ चलेंगे। यह वायदा किया है ना, पक्का? साकार की पालना के अधिकारी आत्मायें हो। अपने भाग्य को अच्छी तरह से सोचो और समझो। (बपदादा के सामने दादाराम और सावित्री बहन का लौकिक परिवार बैठा हुआ है) ऐसे कोटों में कोई भाग्य विधाता के सम्मुख सम्पर्क में आते हैं। अभी समय आने पर यह अपना भाग्य स्मृति में आयेगा। आदि पिता को पाना, यह है भाग्य की श्रेष्ठ निशानी। सदा साथ रहने वाले निरन्तर योगी, सदा सहजयोगी, उड़ती कला में जाने वाले, सदा फरिश्ता स्वरूप हो? आज बड़ा दिन मनाने के लिए बुलाया है। बड़े ते बड़े बाप के साथ बड़े ते बड़े बड़ा दिन और मिलन मना रहे हैं। बड़ा दिन अर्थात उत्सव का दिन। जब बड़ा दिन मनाते हैं तो बुरे दिन समाप्त हो जाते हैं। सिर्फ आज का दिन मनाने का नहीं, लेकिन सदा मनाना अर्थात् उमंग-उत्साह में सदा रहना। अविनाशी बाप, अविनाशी दिन, अविनाशी मनाना। बड़ा दिन मनाना अर्थात् स्वयं को सदा के लिए बड़े ते बड़ा बनाना। सिर्फ मनाना नहीं लेकिन बनना और बनाना है। सर्व आत्माओं को बड़े दिन की गिफ्ट कौन सी देंगे? जो भी आत्मा सम्पर्क में आवे उनको ईश्वरीय अलौकिक स्नेह, शक्ति गुण, सर्व का सहयोग देने के लिफ्ट की गिफ्ट दो। जिससे ऐसी सम्पन्न आत्मायें बन जाए जो कोई भी अप्राप्ति अनुभव न करें। ऐसी गिफ्ट दे सकते हो? स्वयं सम्पन्न हो? औरों को देने के लिए पहले अपने पास जमा होगा तब तो दे सकेंगे ना। अच्छा आज तो गिफ्ट देने और गिफ्ट लेने आये हैं ना। सिर्फ लेंगे वा देंगे भी? शक्ति सेना क्या करेगी? लेने और देने में मजा आता है वा सिर्फ लेने में? दाता को देना हुआ या लेना हुआ? बाप भी लेते हैं किसलिए? पदमगुणा करके परिवर्तन कर देने के लिए। बाप को आवश्यकता है क्या? बाप के पास है ही बच्चों को देने के लिए इसलिए बाप दाता भी है, विधाता भी है, वरदाता भी है, जितना बाप बच्चों के भाग्य को जानते उतना बच्चे अपने भाग्य को नहीं जानते। यह भाग्य के दिन सदा समर्थ बनाने के दिन सदा याद रखना। यह सारा ही लक्की परिवार है क्योंकि इस परिवार के निमित्त बीज के कारण वृक्ष आगे बढ़ रहा है और बढ़ता ही रहेगा। उस आत्मा की श्रेष्ठ कामनायें सारे परिवार को लिफ्ट की गिफ्ट के रूप में मिली हुई हैं क्योंकि पवित्र शुद्ध आत्मा थी इसलिए पवित्रता का जल प्रत्यक्ष फल दे रहा है, समझा? साकार रूप में निमित्त माता गुरू (सावित्री) भी बैठी है। माता गुरू बनी और पिता ने लिफ्ट की गिफ्ट दी। अब इस परिवार को क्या करना है? फालो फादर करना है ना। इसमें कुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा। डरो नहीं। अच्छा। डबल विदेशी बच्चे भी पहुँच गये हैं। बाप-दादा भी अभी विदेशी हैं, ब्रह्मा बाप भी तो विदेशी हो गया ना। विदेशी, विदेशी से मिलें तो कितनी बड़ी अच्छी बात है। बाप-दादा को सर्व बच्चों की, उसमें भी विशेष निमित्त डबल विदेशी बच्चों की एक विशेष बात देख हर्ष होता है। वह कौन सी? विदेशी बच्चों के विशेष मिलन की लगन बाप दादा के पास आज विशेष रूप में पहुँची। साकारी दुनिया के हिसाब से भी आज का दिन विशेष विदेशियों का माना हुआ है। टोली, मिठाई खाई वा अभी खानी है। बाप-दादा मिठाई खिलाते-खिलाते मीठा बना देते हैं, स्वयं तो मीठे बन गये ना। चारों और के आये हुए बच्चों को, मधुबन निवासी बच्चों को बापदादा स्नेह का रिटर्न सदा कम्बाइन्ड अर्थात् सदा साथ रहने का वरदान और वर्सा दे रहे हैं। डबल अधिकारी हो। वर्सा भी मिलता है और वरदान भी। जहाँ कोई मुश्किल अनुभव हो तो वरदाता के रूप में स्मृति में लाओ। तो वरदाता द्वारा वरदान रूप में प्राप्ति होने से मुश्किल सहज हो जायेगी और प्रत्यक्ष प्राप्ति की अनुभूति होगी। आज के दिन का विशेष स्लोगन सदा स्मृति में रखना। 3 शब्द याद रखना - विधि, विधान और वरदान। विधि से सहज सिद्धि स्वरूप हो जायेंगे। विधान से विश्व निर्माता, वरदान से वरदानी मूर्त बन जायेंगे। यही 3 शब्द सदा समर्थ बनाते रहेंगे। अच्छा।
चारों ओर के सर्व सिकीलधे, बड़े ते बड़े बाप के बड़े ते बड़े बच्चे, सर्व को सम्पन्न बनाने वाले, ऐसे मास्टर विधाता, वरदानी बच्चों को, माया को विदाई देने की बधाई। इस बधाई के साथ-साथ आज विशेष रूप में बच्चों को उमंग-उत्साह की भी बधाई। सर्व को, जो आकार वा साकार में सम्मुख हैं, ऐसे सर्व सम्मुख रहने वाले बच्चों को बहुत-बहुत याद प्यार और नमस्ते।
दीदी-दादी से - आप दोनों को देख बापदादा को क्या याद आता होगा? जहान के नूर तो हो ही लेकिन पहले बाप के नयनों के नूर हो। कहावत है कि नूर नहीं तो जहान नहीं। तो बापदादा भी नूरे रत्नों को ऐसे ही स्थापना के कार्य में विशेष आत्मा देखते हैं। करावनहार तो कर रहा है, लेकिन करनहार निमित्त बच्चों को बनाते हैं। करनकरावनहार, इस शब्द में भी बाप और बच्चे दोनों कम्बाइन्ड हैं ना। हाथ बच्चों का और काम बाप का। हाथ बढ़ाने का गोल्डन चांस बच्चों को ही मिला है। बड़े ते बड़ा कार्य भी कैसा लगता है? अनुभव होता है ना कि कराने वाला करा रहा है। निमित्त बनाए चला रहा है। यही आवाज सदा मन से निकलता है। बापदादा भी सदा बच्चों के हर कर्म में करावनहार के रूप में साथी हैं। साथ हैं वा चले गये हैं? ऑख मिचौली का खेल खेला है। खेल भी बच्चों से ही करेंगे ना। खेल में क्या होता है? ताली बाजाई और खेल शुरू हुआ। यह भी ड्रामा की ताली बजी और ऑख मिचौली का खेल शुरू हुआ। अब स्वीट होम का गेट कब खोलेंगे? जैसे कन्फ्रेन्स की डेट फिक्स की है, हाल बनाने की डेट फिक्स की, तो उसका प्रोग्राम नहीं बनाया? गेट खोलने के पहले सामग्री तो आप तैयार करेंगे वा वह भी बाप करे - वह तैयार है? ब्रह्मा बाप तो एवररेडी है ही। अब साथी भी एवररेडी चाहिए ना। 8 की माला बना सकते हो? अभी बन सकती है? पहले 8 की माला तैयार हो गई तो फिर और पीछे वाले तैयार हो ही जायेंगे। आठ एवररेडी हैं? नाम निकाल कर भेजना। सभी वेरीफाय करें कि हाँ। इसको कहेंगे एवररेडी। बाप पसन्द, ब्राह्मण परिवार पसन्द और विश्व की सेवा के पसन्द। यह तीनों विशेषता जब होंगी तब कहेंगे एवररेडी हैं। पहले कंगन तैयार होगा फिर बड़ी माला तैयार होगी। अच्छा। सावित्री बहन से- अपने गुप्त वरदानों को प्रत्यक्ष रूप में देख रही हो? अब समझती हो मैं कौन हूँ? सर्विसएबुल की लिस्ट में अपना नम्बर आगे समझती हो ना। सर्विस के प्रत्यक्ष फल के निमित्त बनी। निमित्त तो फिर भी बीज कहेंगे ना। सर्विसएबुल की लिस्ट में बहुत आगे हो, सिर्फ कभी कभी अपने को भूल जाती हो। जब बापदादा स्वीकार कर रहे हैं तो बाकी क्या चाहिए। सभी की सर्विस एक जैसी नहीं होती। वैरायटी आत्मायें हैं, वैरायटी सेवा का तरीका है। ज्यादा सोचने से नहीं होगा, स्वत: होगा। अपने को सदा बाप के समीप रत्न समझो, अधिकारी जन्म से हो। जन्म से फास्ट गई ना। समीप रहने का वरदान जन्मते ही मिला। साकार में समीप रहने का वरदान कितनों को मिला। गिनती करो तो ऐसे वरदानी ढूँढते भी मुश्किल मिलेंगे इसलिए बाप के समीप समझते हुए आगे बढ़ते रहो। जितना होता, जैसा होता कल्याणकारी। सोचो नहीं, नि:संकल्प रहो। बाप का वायदा है, बाप सदा साथ निभाते रहेंगे। अपना संकल्प भी बाप के ऊपर छोड़ दो। सर्विस बढ़ेगी या नहीं बढ़ेगी, बाप जाने। नहीं बढ़ेगी तो बाप जिम्मेवार है, आप नहीं। इतनी निश्चिन्त रहो। आपने तो बाप के आगे अपना संकल्प रख दिया ना। तो जिम्मेवार कौन? सिकीलधे हो - कितने सिक से बाप ने ढूंढा। पहला पहला सेवा का रत्न सारी विश्व से चुना है, इसलिए भूलो नहीं। अच्छा। सावित्री बहन के लौकिक परिवार वालों से: सभी डबल वर्से के अधिकारी हो ना। लौकिक बाप के भी श्रेष्ठ संकल्प का खजाना मिला और पारलौकिक बाप का भी वर्सा मिला। अलौकिक का भी वर्सा मिला। तीन का वर्सा साथसाथ मिला। तीनों बाप के आशाओं के दीपक हो। वैसे भी बच्चे को कुल का दीपक कहा जाता है। कुल के दीपक तो बने लेकिन साथ साथ विश्व के दीपक बनो। सदा मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है, बापदादा भी ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों को सदा मदद करते हैं। जब भी संकल्प किया और बाप हाजर। बाप के ऊपर सारा कार्य छोड़ दिया तो बाप जाने, कार्य जाने। स्वयं सदा डबल लाइट फरिश्ता, ट्रस्टी बनकर रहो तो सदा हल्के रहेंगे। साफ दिल मुराद हांसिल। श्रेष्ठ संकल्पों की सफलता जरूर होती है, एक श्रेष्ठ संकल्प बच्चे का और हजार श्रेष्ठ संकल्प का फल बाप द्वारा प्राप्त हो जाता है। एक का हजार गुणा मिल जाता है। अभी जो खजाने बाप के मिले हैं, उन्हें बाँटते रहो। महादानी बनो। सदैव कोई भी आवे तो आपके भण्डारे से खाली न जाए। ज्ञान का फाउन्डेशन पड़ा हुआ है, वही बीज अभी फल देगा। अच्छा। विदाई के समय बापदादा ने सभी बच्चों प्रति टेप में याद प्यार भरी चारों ओर के सभी स्नेही बच्चों की यादप्यार और बधाई पाई। बापदादा के साथ सभी बच्चे दिलतख्तनशीन है। जो दिल पर हैं वह भूल कैसे सकते हैं इसलिए सदा बच्चे साथ हैं और साथ ही रहेंगे, साथ ही चलेंगे। बापदादा सर्व बच्चों के दिल के उमंग उत्साह और सेवा में वृद्धि और मायाजीत बनने के समाचार भी सुनते रहते हैं। हरेक बच्चा महावीर है महावीर बन विजय का झण्डा लहरा रहे हैं इसलिए बापदादा सभी को विजय की मुबारक देते हैं। बधाई दे रहे हैं। सदा बड़े बाप के साथ बड़े से बड़े दिन उमंग-उत्साह से बिता रहे हो और सदा ही बड़े दिन मनाते रहेंगे। हरेक बच्चा यही समझे कि विशेष मेरे नाम से यादप्यार आया है। हरेक बच्चे को नाम सहित बापदादा सामने देखते हुए, मिलन मनाते हुए यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा।
प्रश्न: एयरकन्डीशन की सीट बुक कराने का तरीका क्या है?
उत्तर: एयरकन्डीशन की सीट बुक कराने के लिए बाप ने जो भी कन्डीशन्स बताई हैं उन पर सदा चलते रहो। अगर कोई भी कन्डीशन को अमल में नहीं लाया तो एयरकन्डीशन की सीट नहीं मिल सकेगी। जो कहते हैं कोशिश करेंगे तो ऐसे कोशिश करने वालों को भी यह सीट नहीं मिल सकती है।
प्रश्न: कौन सा एक गुण परमार्थ और व्यवहार दोनों में ही सर्व का प्रिय बना देता है?
उत्तर: एक दो को आगे बढ़ाने का गुण अर्थात् “पहले आप” का गुण परमार्थ और व्यवहार दोनों में ही सर्व का प्रिय बना देता है। बाप का भी यही मुख्य गुण है। बाप कहते - “बच्चे पहले आप।” तो इसी गुण में फालो फादर। अच्छा।
वरदान:
बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाले न्यारे-प्यारे भव
समय की समीपता प्रमाण वर्तमान समय के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष रूप में होना आवश्यक है। यथार्थ वैराग्य वृत्ति का अर्थ है-सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा। जो न्याराप्यारा है वह निमित्त और निर्मान है, उसमें मेरेपन का भान आ नहीं सकता। वर्तमान समय मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है-कहेंगे ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे यह सब साधन भाग्य अनुसार मिले हैं... तो अब ऐसे रायल रूप के मेरे पन को समाप्त करो।
स्लोगन: परचिंतन के प्रभाव से मुक्त होना है तो शुभचिंतन करो और शुभ-चिन्तक बनो।
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Details ( Page:- Murali 21th Aug 2017 )
21.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap ki yaad kayam tab rahegi jab buddhi me gyan hoga, gyan yukt buddhi se roohani yatra karni aur karani hai.
Q- Ishwar data hai fir bhi Ishwar arth daan karne ki rasam kyun chali aati hai?
A- Kyunki Ishwar ko apna warish banate hain. Samajhte hain iska evja wo dusre janm me dega. Ishwar arth dena mana usey apna baccha bana lena. Bhakti marg me bhi baccha banate ho arthat sab kuch balihar karte ho isiliye ek baar balihar jane ke return me wo 21 janm balihar jata hai. Tum kodii le aatey ho, Baap se heera le lete ho. Isi par he Sudama ka mishaal hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1)[size=1] [/size]Baap se aashirvad mangne ke bajaye yaad ki yatra me tatpar rehna hai. Roohani yatra me kabhi bhi thakna nahi hai._
2)[size=1] [/size] Shiv Baba ko apna warish banaye us par poora-poora balihar jana hai. Maa Baap ko follow karna hai. 21 janmo ki rajayi ka sukh lena hai.
Vardaan- - Dusro ke liye remark dene ke bajaye swa ko parivartan karne wale Swachintak bhava.-
Slogan- - Sada harshit rehna hai to har drishya ko sakshi hokar dekho.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
21-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप की याद कायम तब रहेगी जब बुद्धि में ज्ञान होगा, ज्ञानयुक्त बुद्धि से रूहानी यात्रा करनी और करानी है”
प्रश्न:
ईश्वर दाता है फिर भी ईश्वर अर्थ दान करने की रसम क्यों चली आती है?
उत्तर:
क्योंकि ईश्वर को अपना वारिस बनाते हैं। समझते हैं इसका एवज़ा वह दूसरे जन्म में देगा। ईश्वर अर्थ देना माना उसे अपना बच्चा बना लेना। भक्ति मार्ग में भी बच्चा बनाते हो अर्थात् सब कुछ बलिहार करते हो इसलिए एक बार बलिहार जाने के रिटर्न में वह 21 जन्म बलिहार जाता है। तुम कौड़ी ले आते हो, बाप से हीरा ले लेते हो। इसी पर ही सुदामा का मिसाल है।
गीत:- रात के राही... ओम् शान्ति।
बच्चों ने इस गीत की एक लाइन से ही समझ लिया होगा। बाप जब बच्चे कहते हैं तो समझना चाहिए हम आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं। आत्म-अभिमानी बनना है। यह तो सब जानते ही हैं आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। परन्तु यह नहीं समझते हैं कि हम आत्माओं का बाप भी होगा। हम आत्मायें निर्वाणधाम की रहने वाली हैं। यह बातें बुद्धि में आती नहीं हैं। बाप कहते हैं ना - यह ज्ञान बिल्कुल ही प्राय:लोप हो जाता है। तुम जानते हो अब यह नाटक पूरा होने वाला है। अब घर जाना है। अपवित्र पतित आत्मायें वापिस घर जा नहीं सकती। एक भी जा नहीं सकता, यह ड्रामा है। जब सभी आत्मायें यहाँ चली आती हैं फिर वापिस जाने लगती हैं। यह तो अभी तुम जानते हो कि बाप हमें रूहानी यात्रा सिखला रहे हैं। कहते हैं हे आत्मायें अब बाप को याद करने की यात्रा करनी है। जन्म-जन्मान्तर तुम जिस्मानी यात्रा करते आये हो। अभी तुम्हारी है यह रूहानी यात्रा। जाकर, फिर मृत्युलोक में वापिस आना नहीं है। मनुष्य जिस्मानी यात्रा पर जाते हैं तो फिर लौट आते हैं। वह है जिस्मानी देह-अभिमानी यात्रा। यह है रूहानी यात्रा। सिवाए बेहद के बाप के यह यात्रा कोई सिखला नहीं सकते। तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना है। सारा मदार है याद की यात्रा पर, जो बच्चे जितना याद करते हैं, याद कायम उनकी रहेगी जिनको कुछ न कुछ ज्ञान है। 84 जन्मों के चक्र का भी ज्ञान है ना। अभी हमारे 84 जन्म पूरे हुए। यह है 84 जन्मों के चक्र की यात्रा, इनको कहा जाता है आवागमन की यात्रा। आवागमन तो सभी का होता रहता है। आना और जाना। जन्म लिया और छोड़ा, इसको आवागमन कहा जाता है। अभी तुम इस दु:खधाम के आवागमन के चक्र से छूटते जा रहे हो। यह है दु:खधाम, अभी तुम्हारा जन्म-मरण सब अमरलोक में होना है, जिसके लिए तुम पुरूषार्थ करने आये हो अमरनाथ के पास। तुम सब पार्वतियां हो, अमरकथा सुनती हो अमरनाथ से, जो सदैव अमर है। तुम सदैव अमर नहीं हो। तुम तो जन्म-मरण के चक्र में आते हो। अभी तुम्हारा चक्र नर्क में है, इससे तुमको छुड़ाकर आवागमन स्वर्ग में बनाते हैं। वहाँ तुमको कोई दु:ख नहीं होगा। यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म। तुम देखते जायेंगे कैसे विनाश होता है। यह जो माथा मारते हैं - लड़ाई न हो या कहते हैं बाम्बस जाकर समुद्र में डाल दें। यह सब बिचारे कहते रहते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि अब समय आकर पूरा हुआ है।
तुम अभी संगम पर हो और दुनिया वाले समझते हैं कि अभी तो अजुन कलियुग शुरू होता है, 40 हजार वर्ष बाद संगम आना है। यह भी बात निकली है शास्त्रों से। बाप कहते हैं तुम जो कुछ वेद शास्त्र आदि पढ़ते, दान पुण्य आदि जन्म-जन्मान्तर से करते आये हो - यह सब है भक्ति मार्ग। तुम जानते हो हम पहले ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंचा। यह तो प्रैक्टिकल बात है। ब्राह्मण बनने बिगर कोई देवता वर्ण में आ नहीं सकते। तुम निश्चय करते हो हम ब्रह्मा के बच्चे हैं, शिवबाबा से दैवी राज्य ले रहे हैं। अभी तुम्हारा पुरूषार्थ चलता है। रेस भी करनी पड़ती है। अच्छी रीति पढ़कर फिर दूसरों को भी पढ़ायें, लायक बनायें तो वह भी स्वर्ग के सुख देखें। कृष्णपुरी को तो सभी याद करते हैं। श्रीराम को छोटेपन में झूला आदि नहीं झुलाते हैं। श्रीकृष्ण को तो बहुत प्यार करते हैं, परन्तु अन्धश्रद्धा से। समझते तो कुछ भी नहीं हैं। बाप ने समझाया है इस समय यह सारी सृष्टि तमोप्रधान काली है। भारत बहुत सुन्दर, गोल्डन एज था। अब तो आइरन एज में है। तुम भी आइरन एज में हो, अब गोल्डन एज में जाना है। बाप सोनार का काम कर रहे हैं। तुम्हारी आत्मा में जो लोहे और तांबे की खाद पड़ी थी वह निकाली जाती है। अभी तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों झूठे बन गये हैं। अभी तुमको फिर से सच्चा सोना बनना है। सच्चे सोने में बहुत खाद मिलाने से एकदम मुलम्मा बन जाता है। तुम्हारी आत्मा में अभी बिल्कुल थोड़ा सोना जाकर रहा है। जेवर भी पुराना है, दो कैरेट सोना कहेंगे। तो बाप बैठकर श्रीमत देते हैं। भारत बरोबर स्वर्ग था और कोई धर्म का राज्य नहीं था फिर उस स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ करना है। परन्तु माया करने नहीं देती है। माया तुम्हारा बहुत सामना करती है। युद्ध के मैदान में तुमको बहुत हराती है। चलते-चलते कोई तूफान में आ जाते हैं, विकार में जाकर एकदम काला मुँह कर देते हैं। बाप कहते हैं अभी मैं तुम्हारा गोरा मुँह करता हूँ। तुम विकार में जाकर फिर काला मुँह मत करो। योग से अपनी अवस्था को शुद्ध बनाओ। शुद्ध होते-होते सारी खाद निकल जायेगी, इसलिए योग भट्ठी में रहना है। सोनार लोग इन बातों को तो अच्छी रीति समझेंगे। सोने की खाद निकलती है आग में डालने से। फिर सोने की सच्ची ढली बन जाती है। बाप कहते हैं जितना तुम मुझे याद करते रहेंगे उतना शुद्ध बनते जायेंगे। बाप तो श्रीमत देंगे और क्या करेंगे। कहते हैं बाबा कृपा करो। अब बाबा कृपा क्या करेंगे! बाप तो कहते हैं याद में रहो तो खाद निकल जायेगी। तो याद में रहना है वा कृपा आशीर्वाद मांगना है? इसमें तो हर एक को अपनी मेहनत करनी है।
बाप कहते हैं रूहानी बच्चे, इस यात्रा में थक मत जाओ। घड़ी-घड़ी बाप को भूलो मत। जितना याद में रहते हो उतना समय जैसे तुम भट्ठी में हो। याद नहीं करते हो तो भट्ठी में नहीं हो। फिर तुमसे और भी विकर्म बनते, एड होते जाते हैं, जिससे तुम काले बन जाते हो। मेहनत कर गोरे बन और फिर काले बनते हो तो गोया तुम वैसे 50 परसेन्ट काले थे, अभी फिर 100 परसेन्ट काले बन जाते हो। काम विकार ने ही तुमको काला किया है। वह है काम चिता, यह है ज्ञान चिता। मुख्य बात है काम की। घर में झगड़ा ही इस पर होता है। कुमारियों को भी समझाया जाता है कि अभी तुम पवित्र हो तो अच्छी हो ना। कुमारी को सब पांव पड़ते हैं क्योंकि पवित्र है। तुम सब ब्रह्माकुमारियां हो ना। तुम ब्रह्माकुमारियां ही भारत को स्वर्ग बनाती हो। तो तुम्हारा यादगार भक्ति मार्ग में चला आता है। कुमारियों को बहुत मान देते हैं। हैं तो ब्रह्माकुमार भी परन्तु माताओं की मैजारिटी है। बाप खुद आकर कहते हैं वन्दे मातरम्। तुम बाप को वारिस बनाते हो। भक्तिमार्ग में तुम ईश्वर को दान क्यों देते हो? बाप तो बच्चों को देते हैं ना। फिर ईश्वर को दान क्यों करते हो? ईश्वर अर्थ करते हैं। कृष्ण अर्थ करते हैं। कृष्ण तुम्हारा क्या लगता है जो तुम उनको देते हो? कोई अर्थ चाहिए ना। कृष्ण गरीब तो है नहीं। फिर भी कहते हैं ईश्वर अर्थ, कृष्ण अर्थ तो होता ही नहीं। वह तो सतयुग का प्रिन्स है। बाप समझाते हैं कि मैं सबकी मनोकामनायें पूरी करता हूँ। कृष्ण तो मनोकामनायें पूरी कर न सके। वह तो कृष्ण को ईश्वर समझ कृष्ण अर्पणम् कहते हैं। वास्तव में फल देने वाला मैं हूँ। भक्तिमार्ग की सब बातें समझाई जाती हैं। शिवबाबा को तुम देते हो तो जरूर बच्चा ठहरा ना। भक्तिमार्ग में भी बच्चा है, यहाँ भी बच्चा है। भक्तिमार्ग में अल्पकाल के लिए एवजा मिल जाता है। अभी तो है डायेरक्ट, इसलिए तुमको 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलता है। यहाँ तो पूरा बलिहार जाना पड़े। तुम एक बार बलिहार जाते हो तो यह 21 बार बलिहार जाते हैं। तुम कौड़ी ले आते हो बाप से हीरा लेने लिए। अन्दर समझते हैं हम चावल मुट्ठी शिवबाबा के भण्डारे में डालते हैं। सुदामे की बात अभी की है। शिवबाबा तुम्हारा क्या लगता है जो तुम उनको देते हो? बच्चा है तो तुम बड़े ठहरे ना। समझते हो एक देवे तो लाख पावे। देने वाला दाता वह एक ही है। साधू लोग तुमको कुछ देते नहीं हैं। भक्तिमार्ग में भी मैं देता हूँ, इसलिए बाबा पूछते हैं तुमको कितने बच्चे हैं! फिर कोई को समझ में आता है, कोई को समझ में नहीं आता है। अभी तुम जानते हो हम शिवबाबा पर बलि चढ़ते हैं। हमारा तन-मन-धन सब उनका है। वह हमको 21 जन्मों के लिए वर्सा देंगे। साहूकारों का हृदय विदीर्ण होता है। बाबा का नाम ही है गरीब-निवाज़। बाप कहते हैं तुमको अपना गृहस्थ व्यवहार सम्भालना है। ऐसे नहीं कि तुम यहाँ बैठ जाओ, सिर्फ श्रीमत पर चलते रहो। मामेकम् याद करो, बस। भक्तिमार्ग में भी तुम गाते हो कि मेरा तो एक दूसरा न कोई। तुम बच्चों को कितनी बातें समझाई जाती हैं। सब तो एक जैसे समझ वाले हो नहीं सकते। पिछाड़ी में निकलेंगे। फिर तुम्हारे में बल भी होगा। सुनने से ही झट आकर पकड़ लेंगे। निश्चय हो कि बाप हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, तो एक सेकेण्ड भी न छोड़ें। यह बाबा अपना भी अनुभव सुनाते हैं ना। यह तो जौहरी था। बैठे बैठे क्या हो गया! बस, देखा बाबा द्वारा बादशाही मिलती है। विनाश भी देखा फिर राजाई भी देखी तो बोला बस, छोड़ो इस गुलामी को। साक्षात्कार हुआ, परन्तु ज्ञान नहीं था। बस मुझे बादशाही मिलती है। देखते हैं बाप स्वर्ग की बादशाही देने आये हैं तो फट से पकड़ना चाहिए ना। बाबा यह सब आपका है। आपके काम में लग गया। बाबा ने भी सब कुछ इन माताओं के हाथ में दे दिया। माताओं की कमेटी बनाई, उन्हों को दे दिया। बाबा ही सब कुछ कराते थे। समझा बाबा से 21 जन्मों के लिए बादशाही मिलती है, तो अब तुम भी लो ना। बाबा ने झट गुलामी छोड़ दी। जब से छोड़ा है तब से बड़ा खुशी में चलते आये हैं। यह तो अनेक बार हमने देवी-देवता धर्म स्थापन किया है। बाबा ने ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा अनेक बार स्थापन किया होगा। जब ऐसी बात है तो देरी क्यों? बाबा से तो हम 21 जन्मों का वर्सा जरूर लेंगे। बाबा घर-बार तो नहीं छुड़ाते हैं। भल उनको भी अच्छी रीति सम्भालो, सिर्फ बाप को याद करना है। नशा रहना चाहिए कि हम बाबा के बने हैं। बाबा को लिखते हैं बाबा फलाना बहुत अच्छा निश्चयबुद्धि, समझदार है। बहुतों को समझाते हैं। परन्तु निश्चयबुद्धि हमारे पास तो आते नहीं। बाबा से मिले ही नहीं और मर जायें फिर बाबा से वर्सा कैसे मिलेगा। यहाँ तो बाप की गोद लेनी होती है ना। निश्चय हुआ और शरीर छोड़ दिया, मेहनत कुछ नहीं की। आइरन एज से गोल्डन एज न बने तो कामन प्रजा में जन्म ले लेंगे। अगर बच्चा बन अच्छी रीति पक्का होकर फिर शरीर छोड़े तो वारिस बन जाये। वारिस बनने में मेहनत थोड़ेही लगती है। कोई तो सूर्यवंशी राजाई पाते हैं, कोई तो सर्विस करते-करते पिछाड़ी में एक जन्म लिए करके राजाई की पाग पा लेंगे। वह कोई सुख थोड़ेही हुआ। राजाई का सुख तो पहले ही है फिर कलायें कम होती जाती हैं। बच्चों को तो पुरूषार्थ कर माँ बाप को फालो करना है। मम्मा बाबा की गद्दी पर बैठने के लायक तो बनो। हार्टफेल क्यों होना चाहिए! पुरूषार्थ कर फालो करो। सूर्यवंशी गद्दी का मालिक बनो। स्वर्ग में तो आओ ना। नापास होते हो तो चन्द्रवंशी में चले जाते हो, दो कला कम हो जाती हैं। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा में तत्पर रहना है। रूहानी यात्रा में कभी भी थकना नहीं है।
2) शिवबाबा को अपना वारिस बनाए उस पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है। माँ बाप को फालो करना है। 21 जन्मों की राजाई का सुख लेना है।
वरदान:
दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव
कई बच्चे चलते-चलते यह बहुत बड़ी गलती करते हैं-जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं। कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे-यह बात बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..। अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए स्वयं के जज बनो। स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व परिवर्तन होगा।
स्लोगन: सदा हर्षित रहना है तो हर दृश्य को साक्षी होकर देखो।
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Details ( Page:- Murali 22nd Aug 2017 )
22.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe Baap samaan Roop basant banna hai, gyan yog ko dharan kar fir asaami dekh kar daan karna hai.
Q- Kaun si rasam dwapar se chali aati hai lekin sangam par Baap us rasam ko band karwa dete hain?
A- Dwapar se paon padne ki rasam chali aati hai. Baba kehte yahan tumhe kisi ko bhi paon padne ki darkar nahi. Main to abhokta, akarta, asochta hun. Tum bacche to Baap se bhi bade ho kyunki baccha Baap ki poori jayedat ka mallik hota hai. To malliko ko main Baap namaskar karta hun. Tumhe paon padne ki jaroorat nahi. Han chotte bado ka regard to rakhna he padta hai.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Har baat me apna samay safal karna hai. Daan bhi asaami (patra) dekh kar karna hai. Jo sunna nahi chahte hain unke piche time waste nahi karna hai. Baap ke aur Devtaon ke bhakto ko gyan dena hai.
2) Abinashi gyan ratno ko dharan kar sahookar banna hai. Padhai jaroor padhni hai. Ek ek ratna lakho rupyo ka hai, isiliye ise dharan karna aur karana hai.
Vardaan- Har bol dwara jama ka khata badhane wale Aatmik bhao aur Subh bhavana sampann bhava.
Slogan - Har kaaran ka nibaran kar sada santoost rehna he santoostmani banna hai.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
22-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान रूप बसन्त बनना है, ज्ञान योग को धारण कर फिर आसामी देखकर दान करना है”
प्रश्न:
कौन सी रसम द्वापर से चली आती है लेकिन संगम पर बाप उस रसम को बन्द करवा देते हैं?
उत्तर:
द्वापर से पांव पड़ने की रसम चली आती है। बाबा कहते यहाँ तुम्हें किसी को भी पांव पड़ने की दरकार नहीं। मैं तो अभोक्ता, अकर्ता, असोचता हूँ। तुम बच्चे तो बाप से भी बड़े हो क्योंकि बच्चा बाप की पूरी जायदाद का मालिक होता है। तो मालिकों को मैं बाप नमस्कार करता हूँ। तुम्हें पांव पड़ने की जरूरत नहीं। हाँ छोटे बड़ों का रिगार्ड तो रखना ही पड़ता है।
गीत:- जो पिया के साथ है..... ओम् शान्ति।
बरसात तो हर वर्ष पड़ती है। वह है पानी की बरसात, यह है ज्ञान की बरसात - जो कल्प-कल्प होती है। यह है पतित दुनिया नर्क। इसे विषय सागर भी कहा जाता है, जिस विष अर्थात् काम अग्नि से भारत काला हो गया है। बाप कहते हैं मैं ज्ञान सागर ज्ञान वर्षा से गोरा बनाता हूँ। इस रावण राज्य में सब काले हो गये हैं, सबको फिर पवित्र बना देता हूँ। मूलवतन में कोई पतित आत्मा नहीं रहती है। सतयुग में भी कोई पतित नहीं रहते हैं। अभी यह है पतित दुनिया। तो सबके ऊपर ज्ञान वर्षा चाहिए। ज्ञान वर्षा से ही फिर सारी दुनिया पवित्र बन जाती है। दुनिया यह नहीं जानती कि हम कोई काले पतित हो गये हैं। सतयुग में कोई पतित होता नहीं। सारी दुनिया ही पवित्र है। वहाँ पतित का नाम निशान नहीं रहता, इसलिए विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं। उसका अर्थ भी मनुष्य नहीं जानते। तुम समझते हो विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी-नारायण ही हैं। कहते हैं वहाँ घी की नदियां बहती हैं तो जरूर क्षीरसागर चाहिए। मनुष्य तो विष्णु भगवान कह देते हैं। तुम विष्णु को भगवान नहीं कह सकते। विष्णु देवताए नम:, ब्रह्मा देवताए नम: कहते हैं। विष्णु को भगवान नम: नहीं कहेंगे। शिव परमात्माए नम: शोभता है। अभी तुमको रोशनी मिली है। ऊंच ते ऊंच श्री श्री 108 रूद्र माला कहा जाता है। ऊपर में है फूल फिर मेरू दाना युगल कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। ब्रह्मा सरस्वती को युगल नहीं कहा जाता, यह माला शुद्ध है ना। मेरू फिर लक्ष्मी-नारायण को कहा जाता है। प्रवृत्ति मार्ग है ना। विष्णु अर्थात् लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी। सिर्फ लक्ष्मी-नारायण कहते हैं परन्तु उन्हों की सन्तान भी तो होंगे ना, यह किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चे विषय सागर से निकले हो, उनको कालीदह भी कहा जाता है। सतयुग में तो कुछ होता नहीं। नाग पर डांस की, यह किया। यह सब दन्त कथायें हैं। ब्लाइन्डफेथ से गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं। बहुत देवियों की मूर्तियां बनाते हैं। लाखों करोड़ों रूपया खर्चा करके देवियों को श्रृंगारते हैं। कोई तो सच्चे सोने के जेवर आदि भी पहनाते हैं क्योंकि ब्राह्मणों को दान करना होता है। ब्राह्मण जो पूजा कराते हैं, बहुत खर्चा कराते हैं, धूमधाम से देवियों की झांकी निकालते हैं। देवियों को क्रियेट कर, पालना कर फिर उनका श्रृंगार कर डुबो देते हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। भाषण में तुम समझा सकते हो कैसे यह अन्धश्रद्धा की पूजा है। गणेश भी बहुत अच्छा करके बनाते हैं। अब सूंढ वाले तो कोई मनुष्य होते नहीं हैं। कितने चित्र बनाते हैं, पैसा खर्च करते हैं।
बाप बच्चों को समझाते हैं - तुमको हम कितना साहूकार एकदम विश्व का मालिक बनाते हैं। यह आत्माओं को परमात्मा बैठ समझाते हैं। यह भी जानते हैं - जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा है और श्रीमत पर चले हैं वही चलेंगे। नहीं पढ़ेंगे, घूमेंगे फिरेंगे तो होंगे खराब। दास दासियां कम पद पायेंगे। अभी तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों से कितना साहूकार बना रहे हैं। वे लोग तो शिव और शंकर का अर्थ नहीं जानते। शंकर के आगे जाकर कहते हैं झोली भर दे, परन्तु शंकर तो झोली भरते नहीं हैं। अभी बच्चों को बाप अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं। वह धारण करने हैं। एक-एक रत्न लाखों रूपये का है। तो अच्छी रीति धारण कर और धारण कराना है, दान करना पड़े। बाबा ने समझाया है दान भी आसामी देखकर करो, जिनको सुनने की ही दिल नहीं, उनके पिछाड़ी टाइम वेस्ट मत करो। शिव के पुजारी हो वा देवताओं के पुजारी हों। ऐसे-ऐसे को कोशिश करके दान देना है। तो तुम्हारा टाइम वेस्ट न जाये। तुम हर एक को रूप-बसन्त भी बनना है ना। जैसे बाबा रूप बसन्त है ना। उनका रूप ज्योतिलिंगम् नहीं, स्टार मिसल है। परमपिता परम आत्मा परमधाम में रहने वाला है। परमधाम परे से परे है ना। आत्माओं को तो परमात्मा नहीं कहेंगे। वह परम आत्मा है। यहाँ जो दु:खी आत्मायें हैं, वह परमपिता को बुलाती हैं। उनको सुप्रीम आत्मा कहेंगे। वह बिन्दी मिसल है। ऐसा नहीं कि उनका कोई नाम रूप है ही नहीं। ज्ञान सागर है, पतित-पावन है। दुनिया तो नहीं जानती है। पूछो परमपिता परमात्मा कहाँ है? कहेंगे सर्वव्यापी है। अरे तुम उन्हें पतित-पावन कहते हो तो पावन कैसे बनायेंगे? कुछ भी समझते नहीं हैं, इसको अन्धेर नगरी कहा जाता है। तुमको तो बाबा ने हर बात से छुड़ा दिया है। बाबा अभोक्ता, अकर्ता और असोचता है। कभी भी पांव पर गिरने नहीं देते हैं। परन्तु द्वापर से यह रसम चली आई है। छोटे बड़े का रिगार्ड रखते हैं। वास्तव में बच्चा वारिस बनता है - बाप की प्रापर्टी का। बाप कहते हैं यह मालिक हैं - हमारी जायदाद के। मालिक को नमस्ते करते हैं। भल मालिक बाप है परन्तु सच्चा मालिक तो बच्चा बन गया सारी प्रापर्टी का। तो तुमको ऐसा थोड़ेही कहेंगे पांव पड़ो, यह करो। नहीं। बच्चे मिलने आते हैं तो भी बाबा कहते हैं शिवबाबा को याद करके मिलने आना। आत्मा कहती है हम शिवबाबा की गोद लेता हूँ। मनुष्य इन बातों में मूँझते हैं। शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा बच्चों को एडाप्ट करते हैं। तो यह माँ हो गई ना। तुम समझते हो हम माँ बाप से मिलने आये हैं। याद शिवबाबा को करना है। तो यह फर्स्ट माँ हो गई। वर्सा तुमको शिवबाबा से मिलता है। यह भी उनकी याद में रहता है। बाप जो समझाते हैं उसको धारण करना है। रूप बसन्त बनना है। योग में रहेंगे, ज्ञान धारण करेंगे और करायेंगे तो मेरे समान रूप बसन्त बन जायेंगे। फिर मेरे साथ चल पड़ेंगे। अभी तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान है फिर जब स्वर्ग में आयेंगे तो ज्ञान पूरा हो जायेगा। फिर प्रालब्ध शुरू हो जायेगी। फिर नॉलेज का पार्ट पूरा हो जायेगा। यह है बड़ी गुप्त बातें, कोई मुश्किल समझते हैं। बुढ़ियों को भी बाप समझाते हैं कि एक को ही याद करो। दूसरा न कोई। तो बाप के पास जाकर फिर कृष्णपुरी में चली जायेंगी। यह है कंसपुरी। ऐसे नहीं कि कृष्णपुरी में कंस भी था, यह सब दन्त कथायें हैं। कृष्ण की माँ को 8 बच्चे दिखाते हैं। यह तो ग्लानी हो गई। कृष्ण को टोकरी में डाल जमुना पार ले गये। फिर जमुना नीचे चली गई। वहाँ तो यह बातें होती नहीं। अभी तुम बच्चों को रोशनी मिली है। बाप कहते हैं आगे जो कुछ सुना है वह भूल जाओ। बाप कहते हैं इन यज्ञ तप आदि करने से मेरे से कोई मिल नहीं सकते। आत्मा तमोप्रधान बनने से उनके पंख टूट जाते हैं। अभी इस सारी दुनिया को आग लगनी है। होलिका बनाते हैं तो आग में कोकी पकाते हैं। यह बात है आत्मा और शरीर की। सबके शरीर जल जाते हैं, बाकी आत्मा अमर बन जाती है। अभी तुम बच्चे समझ सकते हो सतयुग में इतने मनुष्य, इतने धर्म होते नहीं। सिर्फ एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। भारत ही सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। काशी में बहुत जाकर बैठते थे, समझते हैं अभी बस काशीवास करेंगे। जहाँ शिव है वहाँ ही हम शरीर छोड़ेंगे। बहुत साधु लोग जाकर वहाँ बैठते हैं। सारा दिन यही गीत गाते रहते हैं - जय विश्वनाथ गंगा। अब शिव के द्वारा पानी की गंगा तो निकल नहीं सकती। शिव के दर पर मरना पसन्द करते हैं। अभी तो तुम प्रैक्टिकल में दर पर हो। कहाँ भी हो परन्तु शिवबाबा को याद करते रहो। जानते हो शिवबाबा हमारा बाप है, हम उनको याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे। तो शिवबाबा पर इतना लव होना चाहिए ना। उनको कोई अपना बाप नहीं, टीचर नहीं और सबको है ही। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी रचयिता वह बाप ही है ना। रचना से रचना को (भल फिर कोई भी हो) वर्सा मिल नहीं सकता। वर्सा हमेशा बच्चों को बाप से मिलता है। तुम बच्चे जानते हो हम ज्ञान सागर बाप के पास आये हैं। बाप अभी ज्ञान की वर्षा बरसाते हैं। तुम अभी पावन बन रहे हो। बाकी तो सब अपना-अपना हिसाब चुक्तू कर अपने-अपने धाम में चले जायेंगे। मूलवतन में आत्माओं का झाड़ है। यहाँ भी साकारी झाड़ है। वहाँ है रूद्र माला, यहाँ है विष्णु की माला। फिर छोटी-छोटी बिरादरियां निकलती आती हैं। बिरादरियां निकलते-निकलते झाड़ बड़ा हो जाता है। अभी फिर सबको वापिस घर जाना है। फिर देवी-देवता धर्म को राज्य करना है। अभी तुम मनुष्य से देवता विश्व का मालिक बन रहे हो तो बहुत खुशी होनी चाहिए कि भगवान हमको पढ़ाते हैं। राजयोग और ज्ञान से राजाओं का राजा बनाते हैं। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाते हैं। सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी में भी आयेंगे। बाबा रोज़ समझाते, रोशनी देते रहते हैं।
तुम बादल सागर के पास आते हो भरने लिए। भरकर फिर जाकर बरसना है। भरेंगे नहीं तो राजाई पद नहीं पायेंगे, प्रजा में चले जायेंगे। कोशिश कर जितना हो सके बाप को याद करना है। यहाँ तो कोई किसको, कोई किसको याद करते रहते हैं, अथाह नाम हैं। बाप आकर कहते हैं वन्दे मातरम्। दिखाते भी हैं - द्रोपदी के चरण दबाये। बाबा के पास बुढ़ियाँ आती हैं तो बाबा उन्हों को कहते हैं बच्ची थक गई हो? अब बाकी थोड़े रोज़ हैं। तुम घर बैठे शिवबाबा को और वर्से को याद करो। जितना याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे। आप समान औरों को नहीं बनायेंगे तो प्रजा कैसे बनेगी। बहुत मेहनत करनी है। धारण कर फिर औरों को भी आप समान बनाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हर बात में अपना समय सफल करना है। दान भी आसामी (पात्र) देखकर करना है। जो सुनना नहीं चाहते हैं उनके पीछे टाइम वेस्ट नहीं करना है। बाप के और देवताओं के भक्तों को ज्ञान देना है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर साहूकार बनना है। पढ़ाई जरूर पढ़नी है। एक एक रत्न लाखों रूपयों का है, इसलिए इसे धारण करना और कराना है।
वरदान:
हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले आत्मिक भाव और शुभ भावना सम्पन्न भव
बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं। अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है। यदि बोल में ईर्ष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है। समर्थ बोल का अर्थ है-जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर बोल में सार नहीं है तो बोल व्यर्थ के खाते में चला जाता है।
स्लोगन:हर कारण का निवारण कर सदा सन्तुष्ट रहना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
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Details ( Page:- Murali 23th Aug 2017 )
23.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - samay bahut thoda hai isiliye roohani dhanda karo, sabse achcha dhanda hai - Baap aur varshe ko yaad karna, baki sab khote dhande hain.
Q- Tum baccho ke andar kaun si utkantha honi chahiye?
A- Kaise hum bigdi huyi aatmaon ko sudhare, sabhi ko dukh se choodakar 21 janmo ke liye sukh ka raasta batawe. Sabko Baap ka sachcha-sachcha parichay de - yah utkantha tum baccho me honi chahiye.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Bahut-bahut mitha banna hai. Krodh ka ansh bhi nikaal dena hai. Baap samaan rahamdil ban service par tatpar rehna hai.
2) Mout saamne khada hai. Banaprasth abastha hai isiliye Baap ko aur varshe ko yaad karna hai. Bharat ko Ramrajya banane ki seva me apna sab kuch safal karna hai.
Vardaan - Behad ke adhikar ko smruti me rakh sampoornta ki badhayiyan manane wale Master Rachayita bhava
Slogan- Har samay, har karm me balance rakho to sarv ki blessing swatah prapt hogi.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
23-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - समय बहुत थोड़ा है इसलिए रूहानी धन्धा करो, सबसे अच्छा धंधा है - बाप और वर्से को याद करना, बाकी सब खोटे धन्धे हैं”
प्रश्न:तुम बच्चों के अन्दर कौनसी उत्कण्ठा होनी चाहिए?
उत्तर:कैसे हम बिगड़ी हुई आत्माओं को सुधारें, सभी को दु:ख से छुड़ाकर 21 जन्मों के लिए सुख का रास्ता बतावें। सबको बाप का सच्चा-सच्चा परिचय दें - यह उत्कण्ठा तुम बच्चों में होनी चाहिए।
गीत:- भोलेनाथ से निराला... ओम् शान्ति।
भोलानाथ बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ भी समझाते हैं। खुद भी कहते हैं ओम् शान्ति तो बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति। यह अपना परिचय देना होता है कि हम आत्मा शान्त स्वरूप, शान्तिधाम के रहने वाले हैं। हमारा बाप भी वहाँ रहने वाला है। भक्तिमार्ग में भी बाबा-बाबा कहते हैं। भल मनुष्य गाते हैं परन्तु हैं रावण मत पर। रावण मत मनुष्य को बिगाड़ती है। बाप आकर बिगड़ी को बनाते हैं। रावण भी एक है, राम भी एक है। 5 विकारों को मिलाकर कहते हैं रावण। रावण अपना राज्य स्थापन करते हैं, शोकवाटिका में बैठने का। वह बिगाड़ते हैं, वह बनाते हैं। रावण को मनुष्य नहीं कहा जाता है। परन्तु दिखाते हैं 5 विकार पुरूष क़े 5 विकार स्त्री के। रावण राज्य में दोनों में विकार हैं। तुम जानते हो 5 विकार हमारे में भी थे। अभी हम श्रीमत पर निर्विकारी बनते जाते हैं। बिगड़ी को सुधार रहे हैं। जैसे बाप सबकी बिगड़ी बनाते हैं, बच्चों में भी यही उत्कण्ठा रहनी चाहिए कि कैसे हम बिगड़ी को बनावें। सब मनुष्य मात्र एक दो की बिगाड़ते रहते हैं। बिगड़ी को सुधारने वाला एक ही बाप है। तो जैसे तुम सुधरे हो वैसे तात (लगन) लगी रहे कि कैसे जाकर दु:खी आत्माओं की सहायता करें। बाप की जो उत्कण्ठा है वह सपूत बच्चे ही पूरी कर सकते हैं। बच्चों की बुद्धि में उत्कण्ठा रहनी चाहिए कि कैसे किसकी बिगड़ी को बनायें। मित्र सम्बन्धियों को भी समझाना चाहिए। उनको भी रास्ता बतायें। दु:खी जीव आत्माओं को 21 जन्मों के लिए सुखी बनायें, फिर भी हमारे भाई बहन हैं, बहुत दु:खी अशान्त हैं। हम तो बाप से वर्सा ले रहे हैं तो ख्याल आना चाहिए कि कैसे जाकर किसको समझायें, भाषण करें। घर-घर जायें, मन्दिरों में जायें। बाप मत देते हैं, मन्दिरों में बहुत सर्विस कर सकते हो। भक्त बहुत हैं, अन्धश्रद्धा से शिव के मन्दिर में बहुत जाते हैं। अन्दर में कोई न कोई आश रखकर जाते हैं। यह नहीं समझते कि शिव हमारा बाप है। उनकी इतनी जो महिमा है तो जरूर कभी कुछ करके गये होंगे। शिव के मन्दिर में क्यों जाते हैं! अमरनाथ पर यात्रा करने क्यों जाते हैं! ढेर यात्रियों को ब्राह्मण लोग वा सन्यासी ले जाते हैं। यह है भक्तिमार्ग का धन्धा, इससे तो सुधरेंगे नहीं। भोलानाथ बाप ही आकर बिगड़ी को बनाते हैं। वह विश्व का रचयिता अथवा मालिक है लेकिन खुद नहीं बनता है। मालिक तुम बच्चों को बनाते हैं। परन्तु वह ऊंच है, उनसे वर्सा मिल रहा है। तुमको दिल में आना चाहिए कि कैसे हम भाई बहनों को रास्ता बतायें। किसको दु:खी, रोगी देखा जाता है तो रहम आता है ना। बाप कहते हैं अभी हम तुमको ऐसा सुखी बनाते हैं जो आधाकल्प के लिए रोगी नहीं होंगे। तो तुम बच्चों को औरों को भी सुखधाम का रास्ता बताना है। सर्विस की उत्कण्ठा वाले एक जगह रह नहीं सकेंगे। समझेंगे हम भी जाकर किसको सुखधाम का रास्ता बतायें। बाबा तो बहुत ललकार करते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की पूरी धारणा होगी तो बहुतों का कल्याण कर सकते हैं। इस राजाई की स्थापना में पैसे की दरकार नहीं रहती है। वो लोग तो आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते हैं, रावण की मत पर। हम रावण से राज्य छीनते हैं। रामराज्य राम द्वारा ही मिलता है। सतयुग में रामराज्य शुरू होता है, यहाँ कलियुग में रामराज्य कहाँ से आया। यह तो रावण राज्य है, सब दु:खी हैं। यह बात तुम सभी को समझा सकते हो। पहले उन्हें समझाना है जो गरीब हैं, व्यापारी हैं। बाकी बड़े आदमी तो कहेंगे कि हमको फुर्सत नहीं है, हम बिजी हैं। समझते हैं हम भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, प्लैन करते रहते हैं। लेकिन तुम जानते हो शिवबाबा बिगर कोई स्वर्ग बना नहीं सकते। अभी टाइम बाकी थोड़ा है। रामराज्य स्थापन करने में ढील नहीं करनी है। रात दिन फुरना रहना चाहिए - कैसे किसको दु:ख से छुड़ायें। बच्चों को यह दिल में आना चाहिए - कैसे भाई बहिनों को रास्ता बतायें। अभी सब रावण की मत पर हैं। बाप तो बाप है जो बच्चों को आकर वर्सा देते हैं। मनुष्य कोर्ट में जाकर कहते हैं ईश्वर को हाज़िर-नाज़िर जान सच कहता हूँ। परन्तु अगर वह सर्वव्यापी है तो फिर प्रार्थना किसकी करते हैं! उनको कुछ भी पता नहीं है। बाप बार-बार समझाते हैं, मित्र सम्बन्धियों को जगाओ। तुम बच्चों को बड़ा मीठा बनना है। क्रोध का अंश भी न हो, परन्तु सब बच्चे तो ऐसे बन नहीं सकते। बहुत बच्चे हैं जिनको माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। कितना भी समझाओ तो भी सुनते ही नहीं। बाप भी समझते हैं - शायद टाइम लगेगा। जब सब अच्छी रीति बाप की सर्विस में लग जायें। शौक भी तो चाहिए ना जो आकर कहें कि बाबा हमको सर्विस पर भेजो, हम जाकर औरों का कल्याण करें। परन्तु बोलते नहीं। बच्चों का धन्धा ही है सच्ची गीता सुनाना। अक्षर ही दो हैं - अल्फ और बे। बाबा ने अच्छी तरह युक्ति समझाई है। पहली बात ही यह है - परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है! नीचे में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी नाम लिखा हुआ है। बाबा बहुत नया तरीका, बहुत सहज बताते हैं। बाबा को उत्कण्ठा रहती है - ऐसे ऐसे बोर्ड लगाना चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं। बाप को कहते ही हैं रहमदिल, ब्लिसफुल तो बच्चों को भी बाप समान रहमदिल बनना है। इन चित्रों में तो बहुत बड़ा खजाना है। स्वर्ग के मालिक बनने की इनमें युक्ति है। बाप तो बहुत युक्तियां निकालते रहते हैं। कल्प पहले भी निकाली थी और अब भी निकाली हैं। मनुष्यों को टच होगा कि यह बात तो बड़ी अच्छी है। बाप से जरूर वर्सा मिलेगा। यह भी लिख दो स्वर्ग के वर्से के तुम हकदार हो। आकर समझो, बहुत सहज बात है। सिर्फ बोर्ड बनाकर अच्छी-अच्छी जगह पर लगाना है। 10-20 स्थानों पर बोर्ड लगाओ, यह एडवरटाइजमेंट भी डाल सकते हो। हमारे जो बिछुड़े हुए बच्चे होंगे उन्हों को यह अक्षर लगेंगे। कहेंगे पता तो निकालें कि यह क्या समझाते हैं। यह भी लिखा हुआ हो कि इस पहेली को समझने से तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पा सकते हो, एक सेकेण्ड में।
बाप कहते हैं अगर अपनी जीवन बनानी है तो सर्विस करो। सागर पास आकर रिफ्रेश हो फिर सर्विस करनी है। भक्ति मार्ग में तो आधाकल्प धक्के खाये हैं। यहाँ तो एक सेकेण्ड में बाप को जान बाप से वर्सा पाना है। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। मौत सामने खड़ा है। सबसे अच्छा धन्धा है यह। बाकी जो भी मनुष्य धन्धे करते हैं वह हैं खोटे। एक धन्धा सिर्फ करना है - बाप और वर्से को याद करो। कॉलेजों में जाकर प्रिन्सीपाल को समझाओ तो पढ़ने वाले भी समझें। तुम कितना सहज वर्सा ले रहे हो। जितना हो सके बाप को याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बहुत-बहुत मीठा बनना है। क्रोध का अंश भी निकाल देना है। बाप समान रहमदिल बन सर्विस पर तत्पर रहना है।
2) मौत सामने खड़ा है। वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बाप को और वर्से को याद करना है। भारत को रामराज्य बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल करना है।
वरदान:
बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूर्णता की बधाईयां मनाने वाले मास्टर रचयिता भव
संगमयुग पर आप बच्चों को वर्सा भी प्राप्त है, पढ़ाई के आधार पर सोर्स आफ इनकम भी है और वरदान भी मिले हुए हैं। तीनों ही संबंध से इस अधिकार को स्मृति में इमर्ज रखकर हर कदम उठाओ। अभी समय, प्रकृति और माया विदाई के लिए इन्तज़ार कर रही है सिर्फ आप मास्टर रचयिता बच्चे, सम्पूर्णता की बधाईयां मनाओ तो वो विदाई ले लेगी। नॉलेज के आइने में देखो कि अगर इसी घड़ी विनाश हो जाए तो मैं क्या बनूंगा?
स्लोगन:हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो तो सर्व की ब्लैसिंग स्वत: प्राप्त होंगी।
"मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - 1956"
"परमात्म ज्ञान का अर्थ है जीते जी मर जाना"
इस अविनाशी ज्ञान को परमात्म ज्ञान कहते हैं, इस ज्ञान का मतलब है जीते जी मर जाना इसलिए कोटों में कोई विरला यह ज्ञान लेने की हिम्मत रखता है। यह तो हम जानते हैं कि यह ज्ञान प्रैक्टिकल जीवन बनाता है, हम जो सुनते हैं वो प्रैक्टिकल में बनते हैं, ऐसा ज्ञान कोई साधू संत महात्मा दे नहीं सकते। वो लोग ऐसे नहीं कहेंगे मनमनाभव, अब यह फरमान सिर्फ परमात्मा ही कर सकता है। मनमनाभव का अर्थ है मेरे साथ योग लगाओ। अगर मेरे साथ योग लगायेंगे तो मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर वैकुण्ठ की बादशाही दूँगा। वहाँ तुम चलकर राज्य करेंगे इसलिए इस ज्ञान को राजाओं का राजा कहते हैं। अब यह ज्ञान लेना बहुत महंगा सौदा है, ज्ञान लेना अर्थात् एक ही धक से जीते जी मर जाना। शास्त्रों आदि का ज्ञान लेना तो बिल्कुल सस्ता सौदा है। उसमें तो घड़ी-घड़ी मरना होगा क्योंकि वो परमात्मा का ज्ञान नहीं देते इसलिए बाबा कहते हैं अभी जो करना है वो अब करो फिर यह व्यापार नहीं रहेगा।
2) परमात्मा सत् चित्त आनंद स्वरूप हैं...
परमपिता परमात्मा को सत् चित्त आनंद स्वरूप भी कहते हैं, अब परमात्मा सत् क्यों कहते हैं? क्योंकि वह अविनाशी इमार्टल है, वो कब असत् नहीं होता, अजर अमर है और परमात्मा को चैतन्य स्वरूप भी कहते हैं। चैतन्य का अर्थ है परमात्मा भी मन बुद्धि सहित है, उसको नॉलेजफुल पीसफुल कहते हैं। वो ज्ञान और योग सिखला रहे हैं इसलिए परमात्मा को चैतन्य भी कहते हैं, भल वो अजन्मा भी है वो हम आत्माओं मुआफिक जन्म नहीं लेता, परमात्मा को भी यह नॉलेज और शान्ति देने के लिये ब्रह्मा तन का लोन लेना पड़ता है। तो वो जब चैतन्य है तभी तो मुख द्वारा हमें ज्ञान योग सिखला रहे हैं और फिर परमात्मा को आनंद स्वरूप भी कहते हैं, सुख स्वरूप भी कहते हैं यह सब गुण परमात्मा में भरा हुआ है इसलिए परमात्मा को सुख दु:ख से न्यारा कहते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि परमात्मा कोई दु:ख दाता है, नहीं। वो सदा सुख आनंद का भण्डार है, जब उसके गुण ही सुख आनंद देने वाले हैं तो फिर हम आत्माओं को वह दु:ख कैसे दे सकता है!
3) परमात्मा करनकरावनहार है....
बहुत मनुष्य ऐसे समझ बैठे हैं कि यह जो अनादि बना बनाया सृष्टि ड्रामा चल रहा है वो सारा परमात्मा चला रहा है इसलिए वो कहते हैं कि मनुष्य के कुछ नाहीं हाथ... करनकरावनहार स्वामी... सबकुछ परमात्मा ही करता है। सुख दु:ख दोनों भाग परमात्मा ने ही बनाया है। अब ऐसी बुद्धि वालों को कौनसी बुद्धि कहा जायेगा? पहले पहले उन्हों को यह समझना जरुर है कि यह अनादि बनी बनाई सृष्टि का खेल वो परमात्मा जो अब बनाता है, वही चलता है। जिसको हम कहते हैं यह बनी बनाई का खेल ऑटोमेटिक चलता ही रहता है तो फिर परमात्मा के लिये भी कहा जाता है कि यह सबकुछ परमात्मा ही करता है, अब वो फिर किस हैसियत को रख परमात्मा उत्पत्ति करते हैं! यह जो परमात्मा को करनकरावनहार कहते हैं, यह नाम फिर कौनसी हस्ती के ऊपर पड़ा है? अब इन बातों को समझना है। पहले तो यह समझना है कि यह जो सृष्टि का अनादि नियम है वो तो बना बनाया है, जैसे परमात्मा भी अनादि है, माया भी अनादि है और यह चक्र भी आदि से लेकर अन्त तक अनादि अविनाशी बना बनाया है। जैसे बीज में अण्डरस्टुड वृक्ष का ज्ञान है और वृक्ष में अण्डरस्टुड बीज है, दोनों कम्बाइंड हैं, दोनों अविनाशी हैं, बाकी बीज का क्या काम है, बीज बोना झाड़ निकलना। अगर बीज न बोया जाए तो वृक्ष उत्पन्न नहीं होता। तो परमात्मा भी स्वयं इस सारी सृष्टि का बीजरूप है और परमात्मा का पार्ट है बीज बोना। परमात्मा ही कहता है मैं परमात्मा हूँ ही तब जब बीज बोता हूँ, नहीं तो बीज और वृक्ष अनादि है, अगर बीज नहीं बोया जाए तो वृक्ष कैसे निकलेगा! मेरा नाम परमात्मा ही तब है जब मेरा परम कार्य है, मेरी सृष्टि वही है जो मैं खुद पार्टधारी बन बीज बोता हूँ। सृष्टि की आदि भी करता हूँ और अन्त भी करता हूँ, मैं करनधारी बन बीज बोता हूँ, आदि करता हूँ बीज बोने समय फिर अन्त का भी बीज़ आता है फिर सारा झाड़ बीज की ताकत पकड़ लेता है। बीज का मतलब है रचना करना फिर उनकी अन्त करना। पुरानी सृष्टि की अन्त करना और नई सृष्टि की आदि करना इसको ही कहते हैं परमात्मा सबकुछ करता है। अच्छा। ओम् शान्ति।
------------------*OM SHANTI *--------------
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Details ( Page:- murali 24th Aug 2017 )
24.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - gyan sagar Baap aur Brahma-putra nadi ka yah sangam heere samaan hai, yahan tum bacche aate ho - kodii se heere jaisa banne.
Q- Satyugi rajdhani ki sthapana kab aur kaise hogi?
A- Jab saari patit shrishti ki safayi ho arthat purani shrishti ka binash ho tab Satyugi rajdhani ki sthapana hogi. Uske pehle tumhe taiyyar hona hai, pawan banna hai. Nayi rajdhani ka sambant tab suru hoga jab ek bhi patit nahi rahega. Yahan se sambant suru nahi hoga. Bhai Radhe-Krishna ka janma ho jayega lekin us samay se Satyug nahi kahenge. Jab wo Lakshmi-Narayan ke roop me Raj-gadi par baithenge tab sambant prarambh hoga, tab tak aatmayen aati jaati rahengi. Yah sab bichar sagar manthan karne ki baatein hain.
Dharna le kiye mukhya saar
1) Jab tak jeena hai purusharth karte rehna hai. Baap ki shikshaon ko amal me lana hai. Baap samaan Master gyan sagar banna hai.
2) Roohani panda ban sabko sachchi yatra karani hai. Heere jaisa banna aur banana hai.
Vardaan - Sakshipan ke achal ashan par birajmaan rehne wale Achal-Adol, Prakritijeet bhava.
Slogan - Mann-buddhi ko ek Baap me ekagra karne wale he Pujya aatma bante hain.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
24-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप और ब्रह्म-पुत्रा नदी का यह संगम हीरे समान है, यहाँ तुम बच्चे आते हो - कौड़ी से हीरे जैसा बनने”
प्रश्न:
सतयुगी राजधानी की स्थापना कब और कैसे होगी?
उत्तर:
जब सारी पतित सृष्टि की सफाई हो अर्थात् पुरानी सृष्टि का विनाश हो तब सतयुगी राजधानी की स्थापना होगी। उसके पहले तुम्हें तैयार होना है, पावन बनना है। नई राजधानी का संवत तब शुरू होगा जब एक भी पतित नहीं रहेगा। यहाँ से संवत शुरू नहीं होगा। भल राधे-कृष्ण का जन्म हो जायेगा लेकिन उस समय से सतयुग नहीं कहेंगे। जब वह लक्ष्मी-नारायण के रूप में राज-गद्दी पर बैठेंगे तब संवत प्रारम्भ होगा, तब तक आत्मायें आती जाती रहेंगी। यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं।
गीत:- यही बहार है... ओम् शान्ति।
यह बच्चे कहाँ आये हुए हैं? ज्ञान सागर के कण्ठे पर। वैसे रहते हैं ज्ञान गंगाओं के कण्ठे पर और अभी आये हैं ज्ञान सागर के कण्ठे पर। कौन आये हैं? ज्ञान गंगायें। क्या बनने लिए? कौड़ी से हीरे अथवा कंगाल से सिरताज बनने लिए। ब्रह्मा है ब्रह्म-पुत्रा और शिव है ज्ञान सागर। यह है ब्रह्मपुत्रा नदी। बच्चा तो है ना। ब्रह्मा वल्द शिव। तुम हो पोत्रे और पोत्रियां। कलकत्ता में सागर और नदी का बड़ा भारी मेला लगता है। वहाँ गंगा, ब्रह्मपुत्रा और सागर मिलते हैं। ब्रह्मपुत्रा में और भी नदियां मिलती हैं। मुख्य है ब्रह्म पुत्रा और सागर का संगम। उनको ही कहते हैं डायमन्ड हारबर। यह नाम अंग्रेजों ने रखा है। अर्थ कुछ भी नहीं समझते, नाम सिर्फ ऐसे ही रख दिया है। बाप अर्थ समझाते हैं। तुम आये हो इस समय ब्रह्म पुत्रा और ज्ञान सागर के पास सम्मुख। वहाँ भी सागर के सम्मुख जाते हो हीरा बनने के लिए। परन्तु हीरों के बदले पत्थर बन जाते हो क्योंकि वह है भक्ति मार्ग। यह संगम है आत्माओं और परमात्मा का। दोनों इकट्ठे हैं, वह जड़ यह चैतन्य। यह तो कहाँ भी जा सकते हैं। तो बच्चों को हमेशा यह समझना चाहिए कि ब्रह्मपुत्रा और सागर दोनों इकट्ठे हैं चैतन्य में। यह जैसेकि हीरे बनने का संगम हो गया। तुम हीरे जैसा बनो। यह है ब्रह्मपुत्रा और एडाप्टेड ज्ञान गंगायें। यह नदियां तो अनगिनत हैं। उन नदियों का तो सबको मालूम है कि भारत में इतनी नदियां हैं। यह तो अनगिनत हैं। इन ज्ञान नदियों का तो अन्त नहीं पाया जा सकता है। सागर से नदियां इस समय ही निकलती हैं। पहले तो ब्रह्मपुत्रा निकलती है फिर उनसे छोटी-छोटी नदियां निकलती हैं। तुम जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। कोई बड़े हैं कोई छोटे हैं, यह सब मनुष्यों को हीरे जैसा बनाते हैं। ऐसे भी नहीं कहेंगे कि सूर्यवंशी ही महाराजा महारानी बनते हैं। नहीं। यथा राजा रानी तथा प्रजा। तुम सबका जीवन हीरे जैसा बनता है, जो स्वर्ग के लिए थोड़ा भी पुरूषार्थ करते हैं वह हीरे जैसा बनते हैं। यह ब्रह्म पुत्रा नदी और सागर दोनों इकट्ठे रहते हैं। तुम बच्चे जब आते हो तो अन्दर में जानते हो कि हम जाते हैं - बापदादा के पास। बाप ज्ञान का सागर है फिर प्रवेश करते हैं इस ब्रह्मपुत्रा अर्थात् ब्रह्मा में। इन द्वारा हमको हीरे जैसा बनाते हैं। अब जो जितना पुरूषार्थ कर श्रीमत पर चले। यह भी जानते हो जहाँ तक जीना है वहाँ तक पुरूषार्थ करना है। शिक्षा तो मिलती रहती है। इम्तहान की रिजल्ट तो विनाश के समय ही निकलती है। एक तरफ रिजल्ट निकलेगी दूसरे तरफ विनाश शुरू होगा, फिर तो हाहाकार हो जाता है। बात मत पूछो इसलिए विनाश होने के पहले, लड़ाई होने के पहले तैयार होना है। समझना चाहिए बाकी और क्या समय होगा और यह भी जानते हो कि जब हमारी राजधानी स्थापन होती है तो यह सारी सफाई भी होनी है। तुम पावन बनते रहते हो। वह हैं पतित। सब पतित खलास हो जाएं, हिसाब-किताब चुक्तू कर सब वापिस चले जायें। एक भी पतित न रहे तब कहेंगे पावन दुनिया। तुम इस समय हो पावन परन्तु सारी दुनिया तो पावन नहीं है ना। पावन बनेंगी जरूर। जब विनाश होगा तब सारी दुनिया पावन होगी, उसको नई दुनिया कहेंगे। नई दुनिया का संवत कोई पूछे तो समझाना चाहिए जब महाराजा महारानी तख्त पर बैठते हैं तब नया संवत शुरू होता है। जब तक नया संवत शुरू हो तब तक पुराना जरूर कायम रहेगा। यहाँ से संवत शुरू नहीं होगा। हम ब्राह्मण भल नये हैं। परन्तु दुनिया अथवा सारी पृथ्वी थोड़ेही नई है। अभी है संगम। कलियुग के बाद सतयुग आना है। हम कहते ही हैं फर्स्ट प्रिन्स प्रिन्सेज राधे कृष्ण, फिर भी हम उस समय सतयुग नहीं कहेंगे। जब तक लक्ष्मी-नारायण तख्त पर नहीं बैठे हैं तब तक कुछ न कुछ खिटपिट होती रहेगी, भल राधे कृष्ण आ जाते हैं। देखो यह हैं विचार सागर मंथन करने की बातें। सतयुग जब शुरू होगा तब संवत शुरू होगा। सूर्यवंशी डिनायस्टी का संवत फलाना। परन्तु प्रिन्स प्रिन्सेज के नाम पर संवत कभी नहीं होता। बाकी बीच के समय में आना जाना होता रहता है। छी-छी मनुष्यों को भी जाना है। कुछ न कुछ बचे हुए तो रहते ही हैं ना। जो भी बचे हुए होंगे वह भी वापिस जायें, टाइम लगता है। यह कौन समझाते हैं? ज्ञान सागर भी समझाते हैं तो ब्रह्मपुत्रा ज्ञान नदी भी है, दोनों इकट्ठे समझाते हैं। वह कुम्भ का मेला तो वर्ष-वर्ष लगता है। यह कुम्भ का मेला, सागर और ज्ञान नदियों का मेला तो संगमयुग पर ही होता है। तुम बच्चे कहेंगे हम जाते हैं मात-पिता वा ज्ञान सागर और बड़ी नदी के पास। बाबा हमको इस बड़ी नदी और इन नदियों द्वारा वर्सा दे रहे हैं अर्थात् हीरे जैसा बनाते हैं। कुम्भ के मेले में कितना खुशी से बड़ी शुद्धि से जाते हैं और वहाँ मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र रहते हैं। वह है जड़ यात्रा। यात्री अपना कल्याण करना चाहते हैं। पण्डों का इतना कल्याण नहीं होता है जितना यात्रियों का। पण्डे लोग तो पैसा इकट्ठा करने जाते हैं। उन्हों की इतनी भावना नहीं होती जितनी यात्रियों की रहती है। यात्री बड़ी शुद्ध भावना से जाते हैं, तो कईयों को साक्षात्कार हो जाता है। अमरनाथ पर बर्फ का लिंग बना रहता है। सामने जाने से बर्फ ही बर्फ जैसे देखने में आती है। भावना वाले जैसे देखते तो खुश हो जाते हैं, यह तो कुदरत है। बर्फ में लिंग बन जाता है, मनुष्यों की ऐसी भावना बैठ जाती है। है कुछ भी नहीं। सच्ची यात्रा तो अभी तुम्हारी हो रही है। मनुष्य समझते हैं भगवान के पिछाड़ी बहुत धक्का खाया है, भगवान से मिलने, परन्तु भगवान मिलता ही नहीं।
बाबा ने समझाया है भगवान का तो चित्र नहीं निकाल सकते हैं। बिन्दी का फोटो क्या होगा! वह तो समझाने के लिए कहा जाता है कि स्टार है। भ्रकुटी के बीच चमकता है...कई बच्चियां भ्रकुटी में टीका लगाती है। यह सुना हुआ है ना कि आत्मा का निवास भ्रकुटी में है तो स्टार लगाती हैं, सच्चा तिलक अगर कहें तो वह है। राजाई का तिलक फिर बड़ा होता है। वह स्थूल राजतिलक मिलता है। तुम बच्चों को ज्ञान आ जाता है कि हम आत्माओं को अब राजतिलक मिलता है। आत्मा समझती है कि अभी हमको परमपिता परमात्मा से राजतिलक मिलता है। भ्रकुटी के बीच बहुत अच्छा स्टार लगाते हैं। सोने का भी लगाते हैं। अभी तुमको सारा ज्ञान मिला हुआ है, हम स्टार अब हीरे जैसा बनते हैं। हम आत्मा स्टार हैं। परमपिता परमात्मा भी स्टार इतना ही छोटा है, परन्तु उनमें सारी नॉलेज है, यह बातें बड़ी गुह्य हैं। तुमको ज्ञान अर्थात् सोझरा मिला है। परमपिता परमात्मा के रूप को भी देखा, समझा है। जैसे आत्मा का साक्षात्कार होता है वैसे परमात्मा का भी होता है। कहेंगे जैसे तुम हो वैसे मैं हूँ। बाकी बच्चे को बाप का क्या साक्षात्कार चाहिए। आत्मा छोटी बड़ी नहीं होती। जैसे तुम वैसे बाप है। सिर्फ महिमा और पार्ट अलग-अलग है और सबसे भिन्न-भिन्न है, एक न मिले दूसरे से। एक्टर्स का पार्ट एक जैसा थोड़ेही हो सकता है। इसको ईश्वर की कुदरत कहा जाता है। वास्तव में ड्रामा की कुदरत कहें क्योंकि बाबा ऐसे नहीं कहते कि मैंने ड्रामा बनाया है। फिर प्रश्न उठेगा कि कब बनाया? इनको कहा ही जाता है कुदरत। यह चक्र कैसे फिरता है सो अभी तुम जान गये हो। आत्मा स्टार है उसमें कितना बड़ा पार्ट है। परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है। ज्ञान का सागर कहा जाता है। यहाँ किसको ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता। वेद शास्त्र पढ़ने वाले शास्त्रों का ही ज्ञान सुनाते हैं। बाकी बाप में जो ज्ञान है वह तो कोई में नहीं है। भगवान ही आकर सहज राजयोग का ज्ञान सिखलाते हैं। उनको ही ज्ञान का सागर कहेंगे। तो यह नदियों का मेला लगता है। यह भी समझते हो कि सागर से ही नदियां निकलती हैं। कई बच्चों को यह भी मालूम नहीं रहता है। वैसे ही तुम्हारी बातों को भी कोई नहीं जानते। ज्ञान सागर कैसे आता होगा, उनसे ज्ञान गंगायें कैसे ज्ञान पाती होंगी। यह हैं ज्ञान की बातें। मनुष्यों द्वारा बुद्धि में जो बातें बैठी हैं तो सच्ची बातों का किसको पता नहीं है। तुम अब उस सागर और इस ज्ञान सागर को जान गये हो। अभी वह सागर और नदियां तो दु:ख देती रहती हैं। सागर भी उछल पड़े तो कितना नुकसान कर देते हैं। अभी ज्ञान सागर पतित-पावन को सब याद करते हैं, उस सागर वा नदियों को कोई याद नहीं करते। पतित-पावन, ज्ञान सागर को याद करते हैं। उस सागर से ही यह नदियां निकली हैं। उनके नाम रूप देश काल को कोई जानते नहीं हैं। भल शिव नाम कहते भी हैं सिर्फ लिंग का नाम रख दिया है। बाबा का नाम अविनाशी है ना। शिवबाबा रचयिता एक है, उनकी रचना भी एक है और अनादि है। कैसे अनादि है, वह बाप बैठ समझाते हैं। सतयुग में यह त्योहार आदि कुछ भी होते नहीं। सब गायब हो जाते हैं। फिर भक्तिमार्ग में शुरू होंगे।
मनुष्य समझते हैं - स्वर्ग था फिर स्वर्ग आयेगा परन्तु इस समय तो नर्क है। इनकी आयु का किसको पता नहीं है, घोर अन्धियारा है। कल्प की आयु का भी किसको पता नहीं है। कहते भी हैं यह जो ड्रामा है यह फिरता रहता है। परन्तु आयु का पता न होने के कारण कुछ भी समझते नहीं हैं। ब्रह्मा के मुख द्वारा बाप बैठ सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं तो उन्होंने फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दे दिये हैं। वह भी सब शास्त्र हाथ में थोड़ेही पकड़ सकते हैं वा ब्रह्मा द्वारा कोई सब शास्त्र थोड़ेही सुनाते हैं। जानते हैं यह सब भक्ति मार्ग के हैं। यह तो पढ़ते आये हैं। कब से पढ़ते आये हैं, जानते कुछ भी नहीं। सिर्फ कह देते यह अनादि हैं। वेद व्यास ने रचे हैं। वेदों को ऊंचा मानते हैं। परन्तु लिखा हुआ है - वेद शास्त्र आदि सब गीता की रचना हैं। तुम बच्चे जानते हो यह वेद शास्त्र आदि वही फिर बनेंगे। फिर वह नाम रखेंगे। अभी तुम जानते हो हम फिर पूज्य बन रहे हैं फिर पुजारी बनेंगे तो मन्दिर आदि बनायेंगे। राजा रानी मन्दिर बनायेंगे तो प्रजा भी बनायेगी। भक्तिमार्ग शुरू होने से फिर सब मन्दिर बनाने लगते हैं। घर-घर में भी बनायेंगे। लक्ष्मी-नारायण की राजधानी में तो राधे कृष्ण का मन्दिर बन नहीं सकता। मन्दिर तो भक्तिमार्ग में बनते हैं। जैसे जैसे गिरते जाते हैं, मन्दिर बनाते जाते हैं। सूर्यवंशी और चन्द्रवंशियों की जो प्रापर्टी है वह वैश्य वंशी, शूद्र वंशी भोगते हैं। नहीं तो यह राजाई कहाँ से आये। प्रापर्टी चलती आती है। बड़ी-बड़ी जो प्रापर्टी है वह छोटी-छोटी होते फिर आखरीन कुछ भी नहीं रहता है। आपस में बांटते जाते हैं। तो बच्चों को अब समझ में आ गया है कि कैसे हम पूज्य बनते हैं। कितना समय बनते हैं फिर कैसे पुजारी बनते हैं। अभी समझ गये ना कि परमपिता परमात्मा का नाम रूप देश काल और उनका पार्ट क्या है। भक्ति मार्ग में भी भक्तों की शुद्ध भावना बाप ही पूरी करते हैं। अशुद्ध भावना रावण पूरी करते हैं। अभी तुमको ज्ञान सागर ने सारा ज्ञान बुद्धि में बिठाया है। सब तो नहीं समझेंगे। जो कल्प पहले वाले हैं वही निकलते रहेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जब तक जीना है पुरूषार्थ करते रहना है। बाप की शिक्षाओं को अमल में लाना है। बाप समान मास्टर ज्ञान सागर बनना है।
2) रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है। हीरे जैसा बनना और बनाना है।
वरदान:
साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भव
प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये-दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं। खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं। जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती। प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा।
स्लोगन:मन-बुद्धि को एक बाप में एकाग्र करने वाले ही पूज्य आत्मा बनते हैं।
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Details ( Page:- Murali 25th Aug 2017 )
25.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bacche - Baap aye hain tumhara gyan-yog se sachcha shringar karne, is shringar ko bigadne wala hai deha-abhimaan, isiliye deha se mamatwa nikaal dena hai.
Q- Gyan marg ki oonchi sidhi kaun chadh sakta hai?
A- Jinka apni deha me aur kisi bhi dehadhari me mamatwa nahi hai. Ek Baap se dil ki sachchi preet hai. Kisi ke bhi naam roop me nahi fanshte hain, wohi gyaan marg ki oonchi sidhi chadh sakte hain. Ek Baap se dil ki muhabbat rakhne wale baccho ki sab ashayen poori ho jati hai. Naam roop me fanshne ki bimari bahut kadi hai, isiliye Bapdada warning dete hain - bacche tum ek do ke naam-roop me fansh apna pad bhrast mat karo.
Dharna ke liye mukhya saar
1) Deha-abhimaan vas kabhi roothna nahi hai.Sakar dwara Baap ki mat leni hai. Ek Parmatma masook ka sachcha ashik banna hai.
2) Gharbar sambhalte Rajrishi bankar rehna hai. Sukhdham me jaane ki poori umeed rakh purusharth me sampoorn bhavana rakhni hai.
Vardaan - Gyan jal me tairne aur oonchi sthiti me oodne wale Holy Hansh bhava
Slogan- Mani ban Baap ke mastak ke bichh chamakne wale he mastak mani hain.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
25-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हारा ज्ञान-योग से सच्चा श्रृंगार करने, इस श्रृंगार को बिगाड़ने वाला है देह-अभिमान, इसलिए देह से ममत्व निकाल देना है”
प्रश्न:
ज्ञान मार्ग की ऊंची सीढ़ी कौन चढ़ सकता है?
उत्तर:
जिनका अपनी देह में और किसी भी देहधारी में ममत्व नहीं है। एक बाप से दिल की सच्ची प्रीत है। किसी के भी नाम रूप में नहीं फँसते हैं, वही ज्ञान मार्ग की ऊंची सीढ़ी चढ़ सकते हैं। एक बाप से दिल की मुहब्बत रखने वाले बच्चों की सब आशायें पूरी हो जाती हैं। नाम-रूप में फँसने की बीमारी बहुत कड़ी है, इसलिए बापदादा वारनिंग देते हैं - बच्चे तुम एक दो के नाम-रूप में फँस अपना पद भ्रष्ट मत करो।
गीत:- तुम्हें पाके हमने... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे तो इस गीत के अर्थ को अच्छी तरह से जान गये होंगे। फिर भी बाबा एक-एक लाइन का अर्थ बताते हैं। इन द्वारा भी बच्चों का मुख खुल सकता है। बड़ा सहज अर्थ है। अब तुम बच्चे ही बाप को जानते हो। तुम कौन? ब्राह्मण ब्राह्मणियां। शिव वंशी तो सारी दुनिया है। अब नई रचना रच रहे हैं। तुम सम्मुख हो। तुम जानते हो बेहद के बाप से ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण ब्राह्मणियां सारे विश्व की बादशाही ले रहे हैं। आसमान तो क्या सारी धरती उनके बीच सागर नदियाँ भी आ गये। बाबा हम आपसे सारे विश्व की बादशाही ले रहे हैं। पुरूषार्थ कर रहे हैं। हम कल्प-कल्प बाबा से वर्सा लेते हैं। जब हम राज्य करते हैं तो सारे विश्व पर हम भारतवासियों का ही राज्य होता है और कोई भी नहीं होते। चन्द्रवंशी भी नहीं होते। सिर्फ सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य है। बाकी तो सब बाद में आते हैं। यह भी अभी तुम जानते हो। वहाँ तो यह कुछ भी पता नहीं रहता है। यह भी नहीं जानते कि हमने यह वर्सा किससे पाया? अगर किससे पाया तो फिर कैसे पाया, यह प्रश्न उठता है। सिर्फ यही समय है जबकि सारी सृष्टि चक्र की नॉलेज है, फिर यह गुम हो जायेगी। अभी तुम जानते हो कि बेहद का बाप आया हुआ है, जिनको गीता का भगवान कहा जाता है। भक्ति मार्ग में पहले सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता ही सुनते हैं। गीता के साथ भागवत महाभारत भी है। यह भक्ति भी बहुत समय के बाद शुरू होती है। आहिस्ते-आहिस्ते मन्दिर बनेंगे, शास्त्र बनेंगे। 3-4 सौ वर्ष लग जाते हैं। अभी तुम बाप से सम्मुख सुनते हो। जानते हो परमपिता परमात्मा शिवबाबा ब्रह्मा तन में आये हैं। हम फिर से आकर उनके बच्चे ब्राह्मण बने हैं। सतयुग में यह नहीं जानते कि हम फिर चन्द्रवंशी बनेंगे। अभी बाप तुमको सारे सृष्टि का चक्र समझा रहे हैं। बाप सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। उनको कहा ही जाता है- जानी-जाननहार, नॉलेजफुल। किसकी नॉलेज है? यह कोई भी नहीं जानते। सिर्फ नाम रख दिया है कि गॉड फादर इज़ नॉलेजफुल। वह समझते हैं कि गॉड सभी के दिलों को जानने वाला है। अभी तुम जानते हो हम श्रीमत पर चलते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, जिसको तुम आधाकल्प से याद करते आये हो। अब तुमको ज्ञान मिलता है तो भक्ति छूट जाती है। दिन है सतयुग, रात है कलियुग। पांव नर्क तरफ, मुँह स्वर्ग तरफ है। पियरघर से होकर ससुरघर आयेंगे। यहाँ पिया शिवबाबा आते हैं श्रृंगार कराने क्योंकि श्रृंगार बिगड़ा हुआ है। पतित बनते तो श्रृंगार बिगड़ जाता है। अभी पतित पापी नींच बन पड़े हैं। अब बाप द्वारा तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। बेगुणी से गुणवान बन रहे हो। जानते हो बाप को याद करने और समझने से हम कोई भी पाप नहीं करेंगे। कोई तमोप्रधान चीज़ नहीं खायेंगे। मनुष्य तीर्थों पर जाते हैं तो कोई बैगन छोड़ आते हैं, कोई मास छोड़ आते हैं। यहाँ है 5 विकारों का दान क्योंकि देह-अभिमान सबसे बड़ा खराब है। घड़ी-घड़ी देह में ममत्व पड़ जाता है।
बाप कहते हैं - बच्चे इस देह से ममत्व छोड़ो। देह का ममत्व नहीं छूटने से फिर और और देहधारियों से ममत्व लग जाता है। बाप कहते हैं बच्चे एक से प्रीत रखो, औरों के नाम रूप में मत फँसो। बाबा ने गीत का अर्थ भी समझाया है। बेहद के बाप से फिर से बेहद के स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं। इस बादशाही को कोई हमसे छीन नहीं सकता। वहाँ दूसरा कोई है ही नहीं। छीनेंगे कैसे? अभी तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना है। न चलने से याद रखना कि ऊंच पद कभी पा नहीं सकेंगे। श्रीमत भी जरूर साकार द्वारा ही लेनी पड़े। प्रेरणा से तो मिल नहीं सकती। कइयों को तो घमण्ड आ जाता है कि हम तो शिवबाबा की प्रेरणा से लेते हैं। अगर प्रेरणा की बात हो तो भक्ति मार्ग में भी क्यों नही प्रेरणा देते थे कि मनमनाभव। यहाँ तो साकार में आकर समझाना पड़ता है। साकार बिगर मत भी कैसे दे सकते। बहुत बच्चे बाप से रूठकर कहते हैं हम तो शिवबाबा के हैं। तुम जानते हो शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको ब्राह्मण बनाते हैं। पहले बच्चे बनते हैं ना, फिर समझ मिलती है कि हमको दादे का वर्सा मिल रहा है इन द्वारा। दादा (शिवबाबा) ही ब्रह्मा द्वारा हमको अपना बनाते हैं। शिक्षा देते हैं।
(गीत) बाबा से मुहब्बत रखने से हमारी सब आशायें पूरी होती हैं। मुहब्बत बड़ी अच्छी चाहिए। तुम सब आत्मायें आशिक बनी हो बाप की। छोटेपन में भी बच्चे बाप के आशिक बनते हैं। बाबा को याद करेंगे तो वर्सा मिलेगा। बच्चा बड़ा होता जायेगा, समझ में आता जायेगा। तुम भी बेहद के बाप के बच्चे आत्मायें हो। बाप से वर्सा ले रहे हो। अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करना पड़े। बाप के आशिक बनेंगे तो तुम्हारी सब आशायें पूरी हो जायेंगी। आशिक माशूक को याद करते हैं - कोई दिल में आश रखकर। बच्चा बाप पर आशिक बनता है वर्से के लिए। बाप और प्रापर्टी याद रहती है। अभी वह है हद की बात। यहाँ तो आत्मा को आशिक बनना है - पारलौकिक माशूक का, जो सभी का माशूक है। तुम जानते हो कि बाबा से हम विश्व की बादशाही लेते हैं, उसमें सब कुछ आ जाता है। पार्टीशन की कोई बात नहीं। सतयुग, त्रेता में कोई उपद्रव नहीं होते। दु:ख का नाम ही नहीं रहता। यह तो है ही दु:खधाम इसलिए मनुष्य पुरूषार्थ करते हैं - हम राजा रानी बनें। प्रेजीडेंट, प्राइम मिनिस्टर बनें। नम्बरवार दर्जे तो हैं ना। हर एक पुरूषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने के लिए। स्वर्ग में भी ऊंच पद पाने के लिए मम्मा बाबा को फालो करना चाहिए। क्यों न हम वारिस बनें। भारत को ही मदर-फादर कन्ट्री कहा जाता है। उनको कहते हैं भारत माता। तो जरूर पिता भी चाहिए ना। तो दोनों चाहिए। आजकल वन्दे मातरम् भारत माता को कहते हैं क्योंकि भारत अविनाशी खण्ड है। यहाँ ही परमपिता परमात्मा आते हैं। तो भारत महान तीर्थ हुआ ना। तो सारे भारत की वन्दना करनी चाहिए। परन्तु यह ज्ञान कोई में है नहीं। वन्दना की जाती है पवित्र की। बाप कहते हैं वन्दे मातरम्। शिव शक्तियां तुम हो, जिन्होंने भारत को स्वर्ग बनाया है। हर एक को अपनी जन्म भूमि अच्छी लगती है ना। तो सबसे ऊंची भूमि यह भारत है, जहाँ बाप आकर सबको पावन बनाते हैं। पतितों को पावन बनाने वाला एक बाप ही है। बाकी धरनी आदि कुछ नहीं करती है। सबको पावन बनाने वाला एक बाप ही है जो यहाँ आते हैं। भारत की महिमा बहुत भारी है। भारत अविनाशी खण्ड है। यह कब विनाश नहीं होता। ईश्वर भारत में ही आकर शरीर में प्रवेश करते हैं, जिसको भागीरथ, नंदीगण भी कहते हैं। नंदीगण नाम सुन उन्होंने फिर जानवर रख दिया है। तुम जानते हो कल्प-कल्प बाप ब्रह्मा तन में आते हैं। वास्तव में जटायें तुमको हैं। राजऋषि तुम हो। ऋषि हमेशा पवित्र रहते हैं। राजऋषि हो, घरबार भी सम्भालना है। धीरे-धीरे पवित्र बनते जायेंगे। वह फट से बनते हैं क्योंकि वह घरबार छोड़कर जाते हैं। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है। फ़र्क हुआ ना। तुम जानते हो हम इस पुरानी दुनिया में बैठ नई दुनिया का वर्सा ले रहे हैं।
बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, यह पढ़ाई भविष्य के लिए है। तुम नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। तो बाप को कितना न याद करना चाहिए। बहुत हैं जो एक दो के नाम रूप में फँसते हैं। तो उनको शिवबाबा कभी याद नहीं पड़ेगा। जिससे प्यार करेंगे वह याद आता रहेगा। वह यह सीढ़ी चढ़ न सके। नाम रूप में फँसने की भी एक बीमारी लग जाती है। बाबा वारनिंग देते हैं एक दो के नाम रूप में फँस अपना पद भ्रष्ट कर रहे हो। औरों का कल्याण भल हो जाए परन्तु तुम्हारा कुछ भी कल्याण नहीं होगा। अपना अकल्याण कर बैठते हैं। (पण्डित का मिसाल) ऐसे बहुत हैं जो नाम रूप में फँस मरते हैं।
(गीत) अब तुम बच्चे जान गये हो कि आधाकल्प हमने दु:ख सहन किया है। गम सहन किये हैं। अभी वह निकल खुशी का पारा चढ़ता है। तुम गम देखते-देखते एकदम तमोप्रधान बन पड़े हो। अभी तुमको खुशी होती है-हमारे सुख के दिन आये हैं। सुखधाम में जा रहे हैं। दु:ख के दिन पूरे हुए। तो सुखधाम में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करना चाहिए। मनुष्य पढ़ते हैं सुख के लिए। तुम जानते हो हम भविष्य विश्व के मालिक बन रहे हैं। पत्र में लिखते हैं बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेकर ही रहेंगे अर्थात् सूर्यवंशी राजधानी में हम ऊंच पद पायेंगे। पुरूषार्थ की सम्पूर्ण भावना रखनी है।
(गीत) अब सतयुग के तुम्हारे सुख की उम्मीदों के दीवे जग रहे हैं। दीवा बुझ जाता है तो दु:ख ही दु:ख हो जाता है। भगवानुवाच तुम्हारा सब दु:ख अब मिट जाने वाला है। अब तुम्हारे सुख के घनेरे दिन आ रहे हैं। पुरूषार्थ कर बाप से पूरा वर्सा लेना है। जितना अब लेंगे, इससे समझेंगे हम कल्प-कल्प यह वर्सा पाने के अधिकारी बनते हैं। हर एक समझते जायेंगे हम किसको यह रास्ता बताते हैं। बाबा कहते हैं पुण्य आत्मा नम्बरवन सूर्यवंशी में बनना है। अन्धों की लाठी बनना है। प्रश्नावली आदि बोर्ड पर जहाँ तहाँ लगाना चाहिए। एक बाप को सिद्ध करना है। वही सबका बाप है। वह बाप ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचते हैं। ब्राह्मण से तुम देवता बनेंगे। शूद्र थे, अभी हो ब्राह्मण। ब्राह्मण हैं चोटी, फिर हैं देवता। चढ़ती कला तुम ब्राह्मणों की है। तुम ब्राह्मण, ब्राह्मणियां भारत को स्वर्ग बनाते हो। पांव और चोटी, बाजोली खेलने से दोनों का संगम हो जाता है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। विनाश हुआ, तो समझेंगे हमारी राजधानी स्थापन हुई। फिर तुम सब शरीर छोड़ अमरलोक में जायेंगे। यह मृत्युलोक है।
(गीत) जब से मुहब्बत हुई है। इसका यह मतलब नहीं कि पुरानी मुहब्बत वाले ऊंच पद पायेंगे और नई मुहब्बत वाले कम पद पायेंगे। नहीं, सारा मदार पुरूषार्थ पर है। देखा जाता है बहुत पुरानों से नये तीखे जाते हैं क्योंकि देखेंगे कि बाकी समय बिल्कुल थोड़ा है तो मेहनत करने लग पड़ते हैं। प्वाइंट्स भी सहज मिलती जाती हैं। बाप का परिचय दे समझायेंगे तो गीता का भगवान कौन - शिव वा कृष्ण? वह है रचयिता, वह है रचना। तो जरूर रचता को भगवान कहेंगे ना। तुम सिद्ध कर बतायेंगे यज्ञ जप तप शास्त्र आदि पढ़ते नीचे उतरते आये। भगवानुवाच कहकर समझायेंगे तो किसको गुस्सा नहीं लगेगा। आधाकल्प भक्ति चलती है। भक्ति है रात। उतरती कला, चढ़ती कला। सबको सद्गति में आना है वाया गति। यह समझाना पड़े। बिल्कुल सिम्पुल रीति समझाने से बहुत खुशी होगी। बाबा हमको ऐसा बनाते हैं। अभी आत्मा को पंख मिले हैं। आत्मा जो भारी है वह हल्की बन जाती है। देह का भान छूटने से तुम हल्के हो जायेंगे। बाप की याद में तुम कितना भी पैदल करते जायेंगे तो थकावट नहीं होगी। यह भी युक्तियां बतलाते हैं। शरीर का भान छूट जाने से हवा मिसल उड़ते रहेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान वश कभी रूठना नहीं है। साकार द्वारा बाप की मत लेनी है। एक परमात्मा माशुक का सच्चा आशिक बनना है।
2) घरबार सम्भालते राजऋषि बनकर रहना है। सुखधाम में जाने की पूरी उम्मीद रख पुरूषार्थ में सम्पूर्ण भावना रखनी है।
वरदान:
ज्ञान जल में तैरने और ऊंची स्थिति में उड़ने वाले होलीहंस भव
जैसे हंस सदा पानी में तैरते भी हैं और उड़ने वाले भी होते हैं, ऐसे आप सच्चे होलीहंस बच्चे उड़ना और तैरना जानते हो। ज्ञान मनन करना अर्थात् ज्ञान अमृत वा ज्ञान जल में तैरना और उड़ना अर्थात् ऊंची स्थिति में रहना। ऐसे ज्ञान मनन करने वा ऊंची स्थिति में रहने वाले होलीहंस कभी भी दिलशिकस्त वा नाउम्मींद नहीं हो सकते। वह बीती को बिन्दी लगाए, क्या क्यों की जाल से मुक्त हो उड़ते और उड़ाते रहते हैं।
स्लोगन:मणि बन बाप के मस्तक के बीच चमकने वाले ही मस्तकमणि हैं।
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Details ( Page:- murali 26th Aug 2017 )
26.08.17 Morning Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Sweet Baap aya hai tum baccho ko is kadwii duniya se nikaal sweet, banane isiliye bahut-bahut sweet (mithe) bano.
Q- Abhi tum baccho ko is purani duniya se nafrat kyun ayi hai?
A- Kyunki yah duniya kumbhi paak nark ban gayi hai, isme sab kadwe hain. Kadwa patit ko kaha jata hai. Sab bisay baitarani nadi me gota khaate rehte hain, isiliye tumhe ab isse nafrat aati hai.
Q- Manushyo ke ek he prashn me do bhoole hain, wo kaun sa prashn aur kaun si bhoole?
A- Manushya kehte hain mere mann ko shanti kaise ho? Isme pehli bhool mann shant kaise ho sakta - jab tak wo sarir se alag na ho aur dusri bhool jabki kehte hain Ishwar ke sab roop hain, Parmatma sarbavyapi hai fir shanti kisko chahiye aur kaun de?
Dharna ke liye mukhya saar
1) Baap ki yaad me rah pavitra, shudh bhojan khana hai. Asuddhi se bahut-bahut parhej rakhni hai. Mamma-Baba ko follow kar pavitra banne ka purusharth karna hai.
2) Savere-savere ooth sweet Baap ko aur sweet Rajdhani ko yaad karna hai. Is kayamat ke samay me Baap ki yaad se he sab hisaab-kitaab chuktu karne hain.
Vardaan- Combined swaroop ki smruti dwara combined seva karne wale Safaltamurt bhava.
Slogan- Had ke icchaon ki abidya hona he Mahan sampattivan banna hai.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
26-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - स्वीट बाप आया है तुम बच्चों को इस कडुवी दुनिया से निकाल स्वीट बनाने, इसलिए बहुत-बहुत स्वीट (मीठे) बनो”
प्रश्न:अभी तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से ऩफरत क्यों आई है?
उत्तर:क्योंकि यह दुनिया कुम्भी पाक नर्क बन गई है, इसमें सब कडुवे हैं। कडुवा पतित को कहा जाता है। सब विषय वैतरणी नदी में गोता खाते रहते हैं, इसलिए तुम्हें अब इससे ऩफरत आती है।
प्रश्न:मनुष्यों के एक ही प्रश्न में दो भूलें हैं, वह कौन सा प्रश्न और कौन सी भूलें?
उत्तर:मनुष्य कहते हैं मेरे मन को शान्ति कैसे हो? इसमें पहली भूल मन शान्त कैसे हो सकता - जब तक वह शरीर से अलग न हो और दूसरी भूल जबकि कहते हैं ईश्वर के सब रूप हैं, परमात्मा सर्वव्यापी है फिर शान्ति किसको चाहिए और कौन दे?
ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो शान्तिधाम से बाप आया हुआ है और बच्चों से पूछते हैं - किस विचार में बैठे हो? तुम जानते हो बाप स्वीट होम, शान्तिधाम से आये हुए हैं - सुखधाम ले जाने के लिए। बाप कहते हैं अब तुम अपने स्वीट होम को ही याद कर रहे हो या और कुछ भी याद आता रहता है। यह दुनिया कोई स्वीट नहीं है, बहुत कड़ुवी है। कड़ुवी चीज़ दु:ख देने वाली होती है। बच्चे जानते हैं अब हम स्वीट होम जाने वाले हैं। हमारा बेहद का बाप बड़ा स्वीट है। बाकी और जो भी बाप हैं इस समय वह बहुत कड़ुवे पतित छी-छी हैं। यह तो है सभी का बेहद का बाप। अब किसकी मत पर चलना है। बेहद का बाप कहते हैं - बच्चे अब अपने शान्तिधाम को याद करो फिर साथ में सुखधाम को भी याद करो। इस दु:खधाम को भूल जाओ। इनको तो बहुत कड़ा नाम दिया गया है - कुम्भी पाक नर्क, जिसमें विषय वैतरणी नदी बहती है। बाप समझाते हैं यह सारी दुनिया ही विषय वैतरणी नदी है। सब इस समय दु:ख पा रहे हैं, इसलिए इनसे ऩफरत होती है। बहुत गन्दी दुनिया है, इससे तो वैराग्य आना चाहिए। जैसे सन्यासियों को वैराग्य आता है, घरबार से। समझते हैं स्त्री नागिन है, घर में रहना गोया नर्क में रहना, गोता खाना है। ऐसा कह छोड़ जाते हैं। यूँ तो दोनों ही नर्क के द्वार हैं। उनको घर में अच्छा नहीं लगता है इसलिए जंगल में चले जाते हैं। तुम घरबार छोड़ते नहीं हो, घर में रहते हो। ज्ञान से समझते हो। बाप बच्चों को समझाते हैं यह विषय वैतरणी नदी है। सब भ्रष्टाचारी बनते रहते हैं। अभी तुम बच्चों को शान्तिधाम ले चलेंगे। वहाँ से तुमको क्षीरसागर में भेज देंगे। सारी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं क्योंकि इस दुनिया में शान्ति है नहीं। सब मनुष्य मात्र शान्ति के लिए कितना माथा मारते रहते हैं। सन्यासी आदि कोई भी आयेंगे - कहेंगे मन को शान्ति चाहिए अर्थात् मुक्तिधाम में जाना चाहते हैं। प्रश्न ही कैसा पूछते हैं - मन तो शान्त हो नहीं सकता। जब तक आत्मा शरीर से अलग न हो। एक तो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, हम सब ईश्वर के रूप हैं फिर यह प्रश्न क्यों? ईश्वर को शान्ति क्यों चाहिए! बाप समझाते हैं - शान्ति तो तुम्हारे गले का हार है। तुम कहते हो हमको शान्ति चाहिए। पहले तो बताओ हम कौन? आत्मा अपने स्वधर्म और निवास स्थान को भूल गई है। बाप कहते हैं तुम आत्मा शान्त स्वरूप हो। शान्ति देश की रहने वाली हो। तुम अपने स्वीट होम और स्वीट फादर को भूल गये हो। भगवान होता ही है एक। भगत हैं अनेक। भक्त तो भक्त हैं, उनको भगवान कैसे कहेंगे। भक्त तो साधना प्रार्थना करते हैं हे भगवान, परन्तु भगवान को भी जानते नहीं हैं, इसलिए दु:खी बन पड़े हैं। अभी तुम समझ गये हो कि असुल में हम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर सुखधाम में गये फिर रावण राज्य में आये हैं।
तुम आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले हो। पहले तुम सतयुग में थे। भारत सुखधाम था। अभी तो दु:खधाम है। तुम आत्मायें शान्तिधाम में रहती हो, बाप भी वहाँ ही रहते हैं। बाप की फिर महिमा है पतित-पावन, ज्ञान का सागर है। पावन बनाते हैं ज्ञान से। ज्ञान का वह सागर है इसलिए ही उन्हें पुकारते हैं। इससे सिद्ध है यहाँ ज्ञान नहीं है। जब ज्ञान सागर आये, उससे ज्ञान नदियाँ निकलें तब ज्ञान स्नान करें। ज्ञान सागर तो एक ही परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वह जब आये, बच्चे पैदा करे तब उनको ज्ञान मिले और सद्गति हो। जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से भक्ति शुरू हुई अर्थात् पुजारी बनें। अब फिर तुम पूज्य बन रहे हो। पवित्र को पूज्य और पतित को पुजारी कहा जाता है। सन्यासियों को फूल चढ़ाते हैं, माथा टेकते हैं। समझते हैं वह पावन है हम पतित हैं, बाप कहते हैं इस दुनिया में पावन कोई हो नहीं सकता। यह तो विषय वैतरणी नदी है। क्षीर सागर विष्णुपुरी को कहा जाता है, जहाँ तुम राज्य करते हो। बाप कहते हैं बच्चे अपने को आत्मा समझो और स्वीट होम को याद करो। कर्म तो करना पड़ता है। पुरूषों को धन्धाधोरी, माताओं को घर सम्भालना पड़ता है। तुम भूल जाते हो इसलिए अमृतवेले का टाइम बहुत अच्छा है। उस समय याद करो, सबसे अच्छा समय है अमृतवेले का। जबकि दोनों फ्री हैं। यूँ तो शाम को भी समय मिलता है। परन्तु समझो उस समय कोई थके रहते हैं, अच्छा भल आराम करो। सवेरे उठकर याद करो। हम आत्माओं को बाप आये हैं ले जाने। अभी 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ। ऐसे ख्यालात करने चाहिए। तुम्हारा सबसे अच्छा कमाई का समय सवेरे है। अभी की कमाई ही सतयुग में काम आती है। अभी तुम बाप से वर्सा पाते हो। वहाँ धन की कोई तकलीफ नहीं, कोई फिकरात नहीं। बाप तुम्हारी इतनी झोली भर देते हैं जो फिर कमाई के लिए फिकर नहीं रहता है। यहाँ मनुष्यों को कमाई की कितनी फिकरात रहती है। बाबा 21 जन्मों के लिए फिकरात से छुड़ा देते हैं। तो सवेरे-सवेरे उठकर ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हम आत्मायें परमधाम की निवासी हैं, बाप के बच्चे हैं। पहले-पहले हम स्वर्ग में आते हैं। बाप से वर्सा लेते हैं। बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले तुम कितने मालामाल थे, भारत स्वर्ग था। अब तो नर्क दु:खधाम है। एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता बनता है। एक दो को याद दिलानी चाहिए। सतयुग में सिर्फ भारत था, उसको स्वर्ग जीवनमुक्त कहा जाता है। नर्क को जीवनबंध कहा जाता है। पहले सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य था फिर वैश्य, शूद्र वंशी राज्य हुआ है। आसुरी बुद्धि होने के कारण मनुष्य एक दो को दु:ख देते हैं। हर एक लौकिक बाप भी बच्चों का सर्वेन्ट बनते हैं। विकार में जाकर बच्चे पैदा करते हैं, उन्हों की सम्भाल करते हैं, फिर उन्हों को नर्क में ढकेल देते हैं। जब वे विषय वैतरणी नदी में गोते खाने लगते हैं तो इसमें बाप खुश होते हैं। तो भोले हुए ना। यह पारलौकिक बाप भी भोला है, बच्चों का सर्वेन्ट है। वह लौकिक बाप बच्चों को नर्क में डाल देते, यह शान्तिधाम, स्वर्ग में ले जाते हैं। मेहनत तो करते हैं ना। कितना भोला है। अपना परमधाम छोड़कर आये हैं। देखते हैं आत्माओं की कितनी दुर्गति हो गई है। मेरे को गाली ही देते रहते, मुझे जानते नहीं। मेरे रथ को भी गाली दे कितने झूठे कलंक लगा दिये हैं। तुम्हारे पर भी कलंक लगाते हैं। श्रीकृष्ण पर भी कलंक लगाते हैं। परन्तु कृष्ण जब गोरा है तब कोई कलंक लग नहीं सकता, जब सांवरा बनता है तब कलंक लगता है। जो गोरा था वो ही सांवरा बना है इसलिए कलंक लगता है। गोरे पर तो कलंक लग न सके। आत्मा पवित्र से जब अपवित्र बनती है तब गाली खाती है। यह ड्रामा बना हुआ है। मनुष्य बिचारे कुछ समझ नहीं सकते हैं। बहुत मूँझते हैं - पता नहीं, यह किस प्रकार का ज्ञान है। शास्त्रों में तो यह है नहीं। यह भूल गये हैं - शिव शक्ति भारत माताओं की सेना ने क्या किया था। जगत अम्बा को शिव शक्ति कहते हैं ना! उनके मन्दिर भी बने हुए हैं। देलवाड़ा मन्दिर भी है। दिल लेने वाला तो एक शिवबाबा ही हुआ ना। ब्रह्मा भी है फिर जगत अम्बा और तुम कुमारियां भी हो। महारथी भी हैं। हूबहू तुम प्रैक्टिकल में हो। वह तुम्हारा जड़ यादगार कायम है। यह जड़ यादगार खत्म हो जायेंगे फिर तुम सतयुग में होंगे। वहाँ यह यादगार आदि होते नहीं। पाँच हजार वर्ष पहले भी ऐसे बैठे थे, यादगार बना था। फिर सतयुग त्रेता में राज्य किया। फिर भक्ति मार्ग में पूजा के लिए यह यादगार बनते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी तुम जान गये हो। विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु - 84 जन्म लगते हैं।
अभी फिर तुम पुरूषार्थ करते हो, फालो मम्मा बाबा को करना चाहिए। जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना गोरा बनेंगे। पतित से पावन बनने का पुरूषार्थ कितना सहज बाप सिखलाते हैं। बाप को और स्वीट होम को याद करते रहेंगे तो तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। यह टेव (आदत) डालनी है, सवेरे उठ याद करने की। फिर जब पक्के हो जायेंगे तो चलते फिरते याद रहेगी। हमको तो स्वीट होम और स्वीट राजधानी को ही याद करना है। पहले हम सतोप्रधान बनेंगे, फिर सतो रजो तमो में आयेंगे, इसमें कोई संशय उठ नहीं सकता। मूँझने की बात ही नहीं। पवित्र रहना ही है। देवताओं का भोजन भी कितना पवित्र होता है। तो हमको भी बहुत परहेज में रहना चाहिए। इसमें पूछने की बात भी नहीं रहती। बुद्धि समझती है - एक तो विकार सबसे खराब है। दूसरा-शराब, कबाब नहीं पीना है। बाकी लहसुन प्याज़ आदि की और पतित के भोजन की दिक्कत पड़ती है। बाप समझाते हैं पवित्र भोजन तो कहीं मिलेगा नहीं, सिवाए ब्राह्मणों के। बाप की याद में रहना पड़े। जितना तुम याद में रहेंगे तो पावन बन जायेंगे। बुद्धि से समझना होता है। हम अपने को किस युक्ति से बचाते रहें। बुद्धि से काम लेना है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है, इसलिए लौकिक से भी रिश्ता रखना है। उन्हों का भी कल्याण करना है। उन्हों को भी यह बातें सुनानी हैं। बाप कहते हैं पवित्र बनो, नहीं तो सजायें बहुत खायेंगे और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। माला पास विद ऑनर की बनी हुई है। अभी सबके कयामत का समय है, सबके पापों का हिसाब-किताब चुक्तू होना है।
बाबा ने समझाया है याद से ही विकर्म भस्म होंगे, इसमें ही मेहनत है। ज्ञान तो बड़ा सहज है। सारा ड्रामा और झाड़ बुद्धि में आ जाता है। बाकी स्वीट बाप, स्वीट राजधानी और स्वीट होम को याद करना है। अभी नाटक पूरा होता है, घर जाना है। पुराना शरीर छोड़ सबको वापिस जाना है। यह पक्का रखना है। ऐसे याद करते-करते शरीर छूट जायेगा और तुम आत्मायें चली जायेंगी। बहुत सहज है। अभी तुम सम्मुख सुनते हो और बच्चे टेप से सुनेंगे। एक दिन टेलीवीज़न पर भी यह ज्ञान सुनेंगे वा देखेंगे जरूर। सब कुछ होगा। पिछाड़ी वालों के लिए तो और ही सहज हो जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप। यह भी प्रबन्ध हो जायेगा। सर्विस करने वाले भी अच्छे होंगे। तो बच्चों की उन्नति के लिए यह भी सब प्रबन्ध अच्छा हो जायेगा। वह भी जिसको चाहे ले सकते हैं। एक बाप को ही याद करना है। मुसलमान लोग भी सवेरे-सवेरे फेरी पहनते हैं और सबको जगाते हैं। उठकर अल्लाह को याद करो। यह समय सोने का नहीं है। वास्तव में यह अभी की बात है। अल्लाह को याद करो क्योंकि तुमको बहिश्त की बादशाही मिलती है। बहिश्त को फूलों का बगीचा कहा जाता है। वह तो ऐसे ही गाते हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में बाप को याद करने से देवता बन रहे हो। यह सवेरे उठने का अभ्यास अच्छा है। सवेरे का वायुमण्डल बहुत अच्छा होता है। 12 बजे के बाद सवेरा शुरू होता है। प्रभात का टाइम 2-3 बजे को कहा जाता है। सवेरे उठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना चाहिए। अच्छा !
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की याद में रह पवित्र, शुद्ध भोजन खाना है। अशुद्धि से बहुत-बहुत परहेज रखनी है। मम्मा बाबा को फालो कर पवित्र बनने का पुरूषार्थ करना है।
2) सवेरे-सवेरे उठ स्वीट बाप को और स्वीट राजधानी को याद करना है। इस कयामत के समय में बाप की याद से ही सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।
वरदान:
कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव
जैसे शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है, भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे बाप और हम आत्मा कम्बाइन्ड हैं, इस स्वरूप की स्मृति में रहकर स्व सेवा और सर्व आत्माओं की सेवा साथ-साथ करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे। ऐसे कभी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिजी थे इसलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया। ऐसे नहीं जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड आफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये। सेवा में वृद्धि का साधन ही है स्व और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो।
स्लोगन:हद के इच्छाओं की अविद्या होना ही महान सम्पत्तिवान बनना है।
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Details ( Page:- murali 27th Aug 2017 )
27.08.17 ( Sunday )
Morning Murli Om Shanti - AVYAKT Babdada Madhuban ( 28 – 12- 82 )
Sar - Sada Ekrus , sampoorna chamkta hua sitara bano.
Vardan – Nyarepan ki abastha dwara pass with honour ka certificate prapt karnewale asariri bhav
Slogan – Sarb guno wa sarbshaktiya ka adhikar prapt karne k lie agyakari bano.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
27/08/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा” ओम् शान्ति 28-12-82
"सदा एक रस, सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा बनो"
बापदादा सभी बच्चों को देख हर बच्चे के वर्तमान लगन में मगन रहने की स्थिति और भविष्य प्राप्ति को देख हर्षित हो रहे हैं। क्या थे, क्या बने हैं और भविष्य में भी क्या बनने वाले हैं। हरेक बच्चा विश्व के आगे विशेष आत्मा है। हर एक के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है। ऐसा ही अभ्यास हो, सदा चमकते हुए सितारे को देखते रहें, इसी प्रैक्टिस को सदा बढ़ाते चलो। जहाँ देखो, जब भी किसको देखो, ऐसा नैचुरल अभ्यास हो जो शरीर को देखते हुए न देखो। सदा नज़र चमकते हुए सितारों की तरफ जाये। जब ऐसी रूहानी नज़र सदा नैचुरल रूप में हो जायेगी तब विश्व की नज़र आप चमकते हुए धरती के सितारों पर जायेगी। अभी विश्व की आत्मायें ढूँढ रही हैं। कोई शक्ति कार्य कर रही है, ऐसी महसूसता, ऐसी टचिंग अभी आने लगी है। लेकिन कहाँ है, कौन है, यह ढूंढते हुए भी जान नहीं सकते। भारत द्वारा ही आध्यात्मिक लाइट मिलेगी, यह भी धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है। इस कारण विश्व की चारों तरफ से नज़र हटकर भारत की तरफ हो गई है लेकिन भारत में किस तरफ और कौन आध्यात्मिक लाइट देने के निमित्त हैं, अभी यह स्पष्ट होना है। सभी के अन्दर अभी यह खोज है कि भारत में अनेक आध्यात्मिक आत्मायें कहलाने वाली हैं, आखिर भी इनमें धर्मात्मा कौन और परमात्मा कौन है? यह तो नहीं है, यह तो नहीं है - इसी सोच में लगे हुए हैं। “यही है” इसी फैंसले पर अभी तक पहुँच नहीं पाये हैं। ऐसी भटकती हुई आत्माओं को सही निशाना, यथार्थ ठिकाना दिखाने वाले कौन? डबल विदेशी समझते हैं कि हम ही वह हैं। फिर इतना विचारों को भटकाते क्यों हो? सदा के लिए ऐसी स्थिति बनाओ जो सदा चमकते हुए सितारे देखें। दूर से ही आपकी चमकती हुई लाइट दिखाई दे। अभी तक जो सम्मुख आते हैं, सम्पर्क में आते हैं, उन्हीं को अनुभव होता है लेकिन दूर-दूर तक यह टचिंग हो, यह वायब्रेशन फैलें, उसमें अभी और भी अभ्यास की आवश्यकता है। अभी निमंत्रण देना पड़ता है कि आओ, आकर अनुभव करो। लेकिन जब चमकते हुए सितारे - सूर्य, चन्द्रमा समान, अपनी सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित होंगे फिर क्या होगा। जैसे स्थूल रोशनी के ऊपर परवाने स्वत: ही आते हैं, शमा कोई बुलाने नहीं जाती है लेकिन प्यासे परवाने कहाँ से भी पहुँच जाते हैं। ऐसे आप चमकते हुए सितारों पर भटकती हुए आत्मायें, ढूंढने वाली आत्मायें स्वत: ही पाने के लिए, मिलने के लिए ऐसी फास्ट गति से आयेंगी जो आप सबको सेकेण्ड में बाप द्वारा मुक्ति, जीवनमुक्ति का अधिकार दिलाने की तीव्रगति से सेवा करनी पड़ेगी। इस समय मास्टर दाता का पार्ट बजा रहे हो। मास्टर शिक्षक का पार्ट चल रहा है। लेकिन अभी सतगुरू के बच्चे बन गति और सद्गति के वरदाता का पार्ट बजाना है। मास्टर सतगुरू का स्वरूप कौन सा है, जानते हो? अभी तो बाप का भी, बाप और शिक्षक का पार्ट विशेष रूप में चल रहा है इसलिए बच्चों के रूप में कभी-कभी बाप को भी नाज़ और नखरे देखने पड़ते हैं। शिक्षक के रूप में बार-बार एक ही पाठ याद कराते रहते हैं। सतगुरू के रूप में गति-सद्गति का सर्टीफिकेट फाइनल वरदान सेकेण्ड में मिलेगा।
मास्टर सतगुरू का स्वरूप अर्थात् सम्पूर्ण फालो करने वाले। सतगुरू के वचन पर सदा सम्पूर्ण रीति चलने वाले - ऐसा स्वरूप अब प्रैक्टिकल में बाप का और अपना अनुभव करेंगे। सतगुरू का स्वरूप अर्थात् सम्पन्न, समान बनाकर साथ ले जाने वाले। सतगुरू के स्वरूप में मास्टर सतगुरू भी नज़र से निहाल करने वाले हैं। मत दी और गति हुई। इसलिए गुरु मंत्र प्रसिद्ध है। सेकेण्ड में मंत्र लिया और समझते हैं गति हो गई। मंत्र अर्थात् श्रेष्ठ मत। ऐसी पावरफुल स्टेज से श्रीमत देंगे जो आत्मायें अनुभव करेंगी कि हमें गति सद्गति का ठिकाना मिल गया। ऐसी शक्तिशाली स्थिति को अब से अपनाओ। सितारे तो सभी हो लेकिन अभी सदा एकरस सम्पूर्ण चमकता हुआ सितारा हूँ, ऐसे स्वयं को प्रत्यक्ष करो। सुना, क्या करना है? डबल विदेशी तीव्रगति वाले हो ना? या रूकते हो, चलते हो? कभी बादलों के बीच छिप तो नहीं जाते हो - बादल आते हैं? ऐसा सम्पूर्ण चमकता हुए सितारा और अभी अभी फिर बादलों में छिप जाये तो विश्व की आत्मायें स्पष्ट अनुभव कर नहीं सकती इसलिए एकरस रहने का, सदा सूर्य समान चमकते रहने का संकल्प करो। अच्छा।
सभी डबल विदेशी बच्चों को और चारों ओर के सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप समान मन, वाणी और कर्म में फालो करने वाले, सदा बाप के दिलतख्तनशीन, मास्टर दिलाराम, सदा भटकती हुई आत्माओं को रास्ता दिखाने वाले लाइट हाउस बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ
नैरोबी पार्टी से - सभी रेस में नम्बरवन हो ना? नम्बरवन की निशानी है - हर बात में विन करने वाले अर्थात् वन नम्बर में आने वाले। किसी भी बात में हार न हो। सदा विजयी। तो नैरोबी निवासी सदा विजयी हो ना। कभी चलते-चलते रूकते तो नहीं हो? रूकने का कारण क्या होता? जरूर कोई न कोई मर्यादा वा नियम थोड़ा भी नीचे ऊपर होता है तो गाड़ी रूक जाती है। लेकिन यह संगमयुग है ही मर्यादा पुरुषोत्तम बनने का युग। पुरुष नहीं, नारी नहीं लेकिन पुरुषोत्तम हैं, इसी स्मृति में सदा रहो। पुरुषों में उत्तम पुरुष प्रजापिता ब्रह्मा को कहा जाता है। तो ब्रह्मा के बच्चे आप सब ब्रह्माकुमार कुमारियाँ भी पुरुषोत्तम हो गये ना। इस स्मृति में रहने से सदा उड़ती कला में जाते रहेंगे, नीचे नहीं रूकेंगे। चलने से भी ऊपर सदा उड़ते रहेंगे क्योंकि संगमयुग उड़ती कला का युग है, और कोई ऐसा युग नहीं जिसमें उड़ती कला हो। तो स्मृति में रखो कि यह युग उड़ती कला का युग है, ब्राह्मणों का कर्तव्य भी उड़ना और उड़ाना है। वास्तविक स्टेज भी उड़ती कला है। उड़ती कला वाला सेकण्ड में सर्व समस्यायें पार कर लेगा। ऐसा पार करेगा जैसे-कुछ हुआ ही नहीं। नीचे की कोई भी चीज डिस्टर्ब नहीं करेगी। रूकावट नहीं डालेगी। प्लेन में जाते हैं तो हिमालय का पहाड़ भी रूकावट नहीं डालता, पहाड़ को भी मनोरंजन की रीति से पार करते हैं। तो ऐसे ही उड़ती कला वाले के लिए बड़े ते बड़ी समस्या भी सहज हो जाती है।
नैरोबी अपना नम्बर आगे ले रही है ना। अभी वी.आई.पीज. की सर्विस में नम्बर आगे लेना है। संख्या तो अच्छी है, अभी देखेंगे कानफ्रेंस में वी.आई.पीज. कौन कौन ले आता है। अभी इसमें नम्बर लेना है। सबसे नम्बरवन वी.आई.पीज. कौन लाता है, अभी यह रेस बापदादा देखेंगे।
नये हाल के लिए चित्र बनाने वाले चित्रकारों प्रति बापदादा का ईशारा -
चित्रकार बन करके चित्र बना रहे हो वा स्वयं उस स्थिति में स्थित हो करके चित्र बनाते हो! क्या करते हो? क्योंकि और कहाँ भी कोई चित्र बनाते हैं तो वह रिवाजी चित्रकार चित्र बना देते हैं। यहाँ चित्र बनाने का लक्ष्य क्या है? जैसे बाप का चित्र बनायेंगे तो उसकी विशेषता क्या होनी चाहिए? चित्र चैतन्य को प्रत्यक्ष करे। चित्र के आगे जाते ही अनुभव करें कि यह चित्र नहीं देख रहे हैं, चैतन्य को देख रहे हैं। वैसे भी चित्र की विशेषता - चित्र जड़ होते चैतन्य अनुभव हो, इसी पर प्राइज मिलती है। उसमें भी भाव और प्रकार का होता। लेकिन रूहानी चित्र का लक्ष्य है - चित्र रूहानी रूह को प्रत्यक्ष कर दे। रूहानियत का अनुभव कराये। ऐसे अलौकिक चित्रकार, लौकिक नहीं। लौकिक चित्रकार तो लौकिक बातों को - नयन, चैन को देखेंगे लेकिन यहाँ रूहानियत का अनुभव हो - ऐसा चित्र बनाओ। (आशीर्वाद चाहिए) आशीर्वाद तो क्या आशीर्वाद की खान पर पहुँच गये हो, मांगने की आवश्यकता नहीं है, अधिकार लेने का स्थान है। जब वर्से रूप में प्राप्त हो सकता है तो थोड़ी सी ब्लैसिंग क्यों? खान पर जाकर दो मुट्ठी भरकर आना उसको क्या कहा जायेगा! बाप जैसे स्वयं सागर है तो बच्चों को भी मास्टर सागर बनायेंगे ना। सागर में कोई भी कमी नहीं होती। सदा भरपूर होता है। अच्छा।
स्वीडन पार्टी से:-”सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न हैं”- इसी नशे में रहो। निश्चय का फाउन्डेशन सदा पक्का है। अपने आप में निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा में निश्चय के आधार पर आगे बढ़ते चलो। अभी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमजोरियों को नहीं, तो अपने आप में फेथ रहेगा। कमजोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचना तो फिर खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे। बाप का हाथ लिया तो बाप का हाथ पकड़ने वाले सदा आगे बढ़ते हैं, यह निश्चय रखो। जब बाप सर्वशक्तिवान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले मंजिल पर पहुँचे कि पहुँचे। चाहे खुद भले कमजोर भी हो लेकिन साथी तो मजबूत है ना इसलिए पार हो ही जायेंगे। सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न इसी स्मृति में रहो। बीती सो बीती, बिन्दी लगाकर आगे बढ़ो।
(पूना की हरदेवी बहन बापदादा से विदेश जाने की छुट्टी ले रही हैं)
विशेष विधि क्या रहेगी? पालना ली है, वही पालना सभी की करना। प्यार और शान्ति इन दो बातों द्वारा सबकी पालना करना। प्यार सबको चाहिए और शान्ति सबको चाहिए। यह दो सौगातें सबके लिए ले जाना। सिर्फ प्यार से दृष्टि दी और दो बोल बोले - वह स्वत: ही समीप ही समीप आते जायेंगे। जैसे पालना ली है, पालना की अनुभवीमूर्त तो बहुत हो ना? तो वही पालना का अनुभव औरों को कराना। टॉपिक पर भाषण भल नहीं करना लेकिन सबसे टॉप की चीज़ है - ‘प्यार और शान्ति की अनुभूति'। तो यह टॉप की चीज़ें दे देना, जो हर आत्मा अनुभव करें कि ऐसा प्यार तो हमको कभी मिला नहीं, कभी देखा ही नहीं। प्यार ऐसी चीज़ है जो प्यार के अनुभव के पीछे स्वत: ही खिंचते हैं। बहुत अच्छा है। आदि महावीर जा रहे हैं। सती और कुंज भी गई हैं ना। पालना के स्वरूप जा रहे हैं, बहुत अच्छा है। इन्हों द्वारा साकार से सहज सम्बन्ध जुट जायेगा क्योंकि इन्हों की रग-रग में बाप की पालना समाई हुई है। तो चलते-फिरते वही दिखाई देगा जो अन्दर समाया हुआ होगा। आप द्वारा बापके पालना की अनुभूति होगी। भल खुशी से जाओ। बापदादा भी खुश है बच्चों के जाने में क्योंकि घूमने फिरने वाले तो हैं नहीं। यज्ञ के हड्डी सेवाधारी हैं। उन्हों के एक-एक कदम में सेवा होगी इसलिए बापदादा खुश है बच्चों के चक्रवर्ती बनने में।
बापदादा ने सभी बच्चों प्रति यादप्यार टेप में भरी
सर्व लगन में लगन रहने वाले बच्चों को यादप्यार के साथ बापदादा सभी बच्चों के उमंग उत्साह देख सदा हर्षित होते हैं।
सभी के यादप्यार और पुरुषार्थ के उमंग-उत्साह के और विघ्न विनाशक बनने के पत्र बापदादा के पास आये हैं और बापदादा सभी विघ्न विनाशक बच्चों को यादप्यार दे रहे हैं और सदा ही मायाजीत, सदा ही मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति की सीट पर स्थित हो डबल लाइट बन उड़ते और उड़ाते चलो। तो चारों ओर के, सिर्फ विदेशी ही नहीं लेकिन सब दिल तख्तनशीन बच्चों को दिलाराम बाप की तरफ से बहुत-बहुत याद... ओम शान्ति।
वरदान:
न्यारेपन की अवस्था द्वारा पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले अशरीरी भव
पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने के लिए मुख और मन दोनों की आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति में स्थित होने का अभ्यास चाहिए। आत्मा शान्ति के सागर में समा जाये। यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति बहुत प्रिय लगती है। तन और मन को आराम मिल जाता है। अन्त में यह अशरीरी बनने का अभ्यास ही काम में आता है। शरीर का कोई भी खेल चल रहा है, अशरीरी बन आत्मा साक्षी (न्यारा) हो अपने शरीर का पार्ट देखे तो यही अवस्था अन्त में विजयी बना देगी।
स्लोगन:सर्व गुणों वा सर्वशक्तियों का अधिकार प्राप्त करने के लिए आज्ञाकारी बनो।
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Details ( Page:- Murali 28th Aug 2017 )
28.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bache tum uthte baithte sab kuch karte chup raho , baap ko yaad karo toh varsha miljayega, isme geet kabita adi ki bhi darker ni.
Question – Baap ko liberator kahne se kaunsi ek baat siddh ho jati hai ?
Ans – Jab baap dukho se athwa 5 bikaro se liberate karnewala hai toh jarur fasanewala koi aur hoga. Liberator kabhi fansa ni sakta. Usko kaha jata hai dukh harta sukh karta toh who kabhi kisiko dukh kese de sakte. Jab bachhe dukhi hote hai tab uss baap ko yaad karte hai. Dukh denewala ravan. Ravan maya srapit karti hai. Baap ate hai varsa dene.
Song – Jo piya k sath hai
DHARNA –
1-[font=Times New Roman] [/font]Sada yeh baat yad rakhna hai ki jo karm hum karenge , hame dekh aur bhi karne lag parenge , isilie kabhi bhi shrimat ke veeprit vikaro ke bas ho koi bhi karm ni karna hai.
2-[font=Times New Roman] [/font]Service ka sauk rakhna hai. Bigar kahe sewa m lag jana hai. Kabhi bhi wapas m lun pani ni hona hai.
Vardan – Apne bharpur stock dwara khusiya ka khajana batnewale hero heroine partdhari bhav.
Slogan- Ek do ki ray ko regard dena hi sangathan ko ekta k sutra m bandhna hai
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
28-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम उठते-बैठते सब कुछ करते चुप रहो, बाप को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा, इसमें गीत कविता आदि की भी दरकार नहीं है"
प्रश्न:
बाप को लिबरेटर कहने से कौन सी एक बात सिद्ध हो जाती है?
उत्तर:
जब बाप दु:खों से अथवा 5 विकारों से लिबरेट करने वाला है तो जरूर उसमें फँसाने वाला कोई दूसरा होगा। लिबरेटर कभी फँसा नहीं सकता। उसको कहा जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो वह कभी किसी को दु:ख कैसे दे सकते। जब बच्चे दु:खी होते हैं तब उस बाप को याद करते हैं। दु:ख देने वाला है रावण। रावण माया श्रापित करती। बाप आते हैं वर्सा देने।
गीत:-जो पिया के साथ है... ओम् शान्ति।
इस ज्ञान मार्ग में गीतों, कविताओं, डायलागों आदि की जरूरत नहीं है। यह सब भक्ति मार्ग में चलता है। यहाँ तो है समझ की बातें। हर बात बुद्धि से समझना है और है भी बहुत सहज। यानी यह ज्ञान बहुत सहज है। एक भी प्वाइंट से मनुष्य पुरूषार्थ करने लग पड़ते हैं। गीत सुनने की वा कविता बनाने की कोई जरूरत नहीं है। गृहस्थ व्यवहार में रहना है, धन्धा धोरी करना है। बाप कहते हैं वह सब करते तुम मेरे से वर्सा कैसे ले सकते हो। वह समझाते हैं उठते बैठते सब कुछ करते चुप रहना है। अन्दर में विचार चलता रहे, बाप ने समझाया है बात बिल्कुल सहज है समझने की। नई दुनिया को पुरानी दुनिया होने में समय लगता है। फिर पुराने से नई बनने में इतना समय नहीं लगता है। बच्चों को समझाया गया है - बाप नई सृष्टि रचते हैं, फिर पुरानी होती है। सुख और दु:ख की दुनिया बनी हुई जरूर है परन्तु सुख कौन देते हैं, दु:ख कौन देते हैं। यह किसको पता नहीं है। बनी बनाई भी जरूर है। इस चक्र से हम निकल नहीं सकते। उसको कहा जाता है ड्रामा। नाटक के बदले ड्रामा कहना अच्छा लगता है। नाटक जो होता है उसमें बदल सदल हो सकती है। कोई को निकाल सकते हैं, कोई को एड कर सकते हैं। आगे नाटक थे, बाइसकोप तो अब निकले हैं। बाइसकोप में जो फिल्म शूट हुई वही रिपीट होगी। यह बाइसकोप निकाला है - इस ज्ञान को भी इस द्वारा पूरा समझने के लिए। नाटक में फ़र्क हो जाता है। बाइसकोप में फर्क नहीं हो सकता। यह एक स्टोरी है नई पावन दुनिया और पुरानी पतित दुनिया की। सिर्फ मनुष्यों को यह पता नहीं है कि ड्रामा की आयु कितनी है। बहुत लम्बी चौड़ी आयु दे दी है। मनुष्य तो कुछ भी समझ नहीं सकते। नई दुनिया में कितने समझदार, धनवान पवित्र थे, सर्वगुण सम्पन्न थे। बाबा आज ऐसे क्यों समझा रहे हैं? कि बच्चे भी जाकर ऐसे भाषण करें। भारत की पहले-पहले महिमा करनी चाहिए। भारत को ऐसा किसने बनाया? वह भी महिमा निकलेगी परमपिता परमात्मा की, जिसको सब याद करते हैं। याद क्यों करते हैं? क्योंकि पुरानी दुनिया में दु:ख बहुत है। दु:ख देने वाले 5 विकार ही हैं। सतयुग त्रेता को सुखधाम कहा जाता है। वह है ही ईश्वरीय स्थापना। यह फिर है आसुरी स्थापना, जिसमें मनुष्य 5 विकारों में फँस पड़ते हैं। समझते भी हैं बाप ही लिबरेट करते हैं। जो लिबरेटर है, वह फँसाने वाला थोड़ेही होगा। उनका नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। उनके लिए हम दु:ख कर्ता कह नहीं सकते। यह किसको पता नहीं है कि यह दु:ख देने वाले 5 विकार ही हैं, जिससे ही बाप आकर छुड़ाते हैं। बड़ी समझ की बात है। सारी दुनिया में इस समय रावण राज्य है। सिर्फ लंका की बात नहीं है। मनुष्यों के अपने-अपने विचार हैं। जिसको बुद्धि में जो आया वह लिख देंगे। वैसे ही यह शास्त्र हैं। अपना-अपना शास्त्र बना देते हैं। मनुष्यों को कुछ पता नहीं है। भगवानुवाच - यह वेद शास्त्र पढ़ना, यज्ञ तप आदि करना जो कुछ तुम करते आये हो वह सब उतरती कला के हैं। जो कुछ तुमने बनाया है वह अपने को गिराने के लिए। तुमको मत मिलती ही है गिरने की क्योंकि है ही उतरती कला। पावन दुनिया थी, अब पतित दुनिया है। आधाकल्प है नई दुनिया, आधाकल्प है पुरानी दुनिया। जैसे 24 घण्टे होते हैं, 12 घण्टे बाद दिन पूरा हो फिर रात होती है। वैसे यह ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई जाती है। विष्णु का दिन रात नहीं कहेंगे। यह कितनी गुह्य बातें हैं। सिवाए बाप के और कोई समझा न सके। बाप समझाते हैं अभी तमोप्रधान से सतोप्रधान में जाना है। अभी अजुन अपनी बादशाही थोड़ेही स्थापन हुई है। बाप कितना सहज बच्चों को समझाते रहते हैं, सिर्फ शिवबाबा को याद करना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह बातें भी तुम अबलायें ही समझ सकती हो। नई दुनिया और पुरानी दुनिया। नई दुनिया को रचने वाला बाप है। नई दुनिया स्वर्ग थी फिर नर्क किसने बनाया? रावण ने। रावण कौन है? यह राज़ भी तुमको समझाया है। कोई भी विद्वान पण्डित आदि नहीं समझ सकते वह तो कह देते जगत मिथ्या है। सब कुछ कल्पना है। तुम समझा सकते हो अगर जगत बना ही नहीं है तो तुम बैठे कहाँ हो? यह जो वर्ल्ड रिपीट होती है, उसकी पूरी नॉलेज चाहिए ना। नॉलेज न होने के कारण कह देते हैं सब कुछ मिथ्या है, जिसने जो सुनाया सो सत। तुम तो एक बात में ही खुश होते हो। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। बाप ने तो आधाकल्प का वर्सा दिया है, फिर रावण से हराया है। यह खेल बना हुआ है।
तुम बच्चे जानते हो हम अभी ईश्वर के बने हैं और उनकी श्रीमत पर चल रहे हैं। यह चित्र तो बड़े अच्छे हैं, सबके पास बड़े चित्र होने चाहिए। बड़े चित्रों पर समझाना अच्छा होता है। चक्र सामने खड़ा है। संगमयुग भी सामने लगा हुआ है। कलियुग है काला, पतित। उनमें लोहे की खाद पड़ने से काले हो गये हैं। भारत कितना गोल्डन एजड था। अब फिर इनको आइरन एज से चेन्ज होना है। उनकी स्थापना इनका विनाश होना चाहिए। गाया भी जाता है परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति है। त्रिमूर्ति का अर्थ भी कोई समझते नहीं हैं। रोड पर भी त्रिमूर्ति नाम रखे हुए हैं। वास्तव में त्रिमूर्ति है ब्रह्मा विष्णु शंकर, यह तीनों देवतायें हैं अलग-अलग। इन सबसे ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा शिव, करन-करावनहार। उनको गुम कर दिया है। देवताओं से भी ऊपर तो वह निराकार भगवान ही है। जैसे बाप निराकार है वैसे हम आत्मायें भी निराकार हैं। हम यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी थी। एक दो के पिछाड़ी राज्य करते आते हैं। तो स्वर्ग की महिमा सुनानी पड़े। भारत कितना धनवान था। प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। कभी अकाले मृत्यु नहीं होती थी, नई दुनिया थी। बाप ने ही नई दुनिया रची थी। बाप 16 कला बनाते हैं। कहते हैं बच्चे मनमनाभव, मामेकम् याद करो। यह है भगवानुवाच। उनको पतित-पावन कहा जाता है। कृष्ण को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। फिर गीता में कृष्ण का नाम क्यों डाला है! कोई द्वारा साक्षात्कार हुआ, कहेंगे बस यह कृष्ण का रूप है। दुनिया में तो अनेक प्रकार के मनुष्य हैं। किसी में भाव बैठ जाता है फिर उनका लाकेट बनाए गले में डाल देते हैं। गुरू का लाकेट पहन गुरू को याद करते हैं। बस ईश्वर सर्वव्यापी है फिर तो गुरू और ईश्वर में फ़र्क नहीं रहा। ऐसे ढेर हैं। बाप ने तुम बच्चों को पुरानी दुनिया और नई दुनिया का राज़ भी समझाया है। बाप बैठ नई दुनिया रचते हैं। अभी सब बाप को बुलाते रहते हैं। आकर पावन दुनिया स्थापन करो या हमको पावन बनाए ले चलो। धाम हैं दो - निर्वाणधाम और सुखधाम। सन्यासी तो मुक्ति के लिए नॉलेज देते हैं, जीवनमुक्ति के लिए दे नहीं सकते। तुम देवी-देवता धर्म वाले हो, जो पुजारी बने हो फिर पूज्य बनना है। श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स है, उनकी महिमा होती है। कुमार-कुमारी की ही महिमा होती है क्योंकि पवित्र हैं ना। नहीं तो कृष्ण से राधे की महिमा ज्यादा होनी चाहिए परन्तु यह किसको मालूम नहीं। पहले राधे फिर कृष्ण क्यों! कहते हैं राधे कृष्ण। कृष्ण राधे मुश्किल कोई कहेंगे। समझते हैं बच्चा वर्से का हकदार बनते हैं इसलिए कृष्ण की महिमा जास्ती है। यहाँ तुम सब हो बच्चे।
बाप कहते हैं - जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना अपने लिए ही ऊंच पद पायेंगे - कल्प-कल्पान्तर के लिए। बाप आत्माओं से बात कर रहे हैं। पुरूषार्थ से तुम ऊंच पद पा सकते हो। विलायत में बच्ची पैदा होती है तो खुशी मनाते हैं। यहाँ बच्चा पैदा हो तो खुश होते हैं। हर एक की रसम अपनी-अपनी है। तो बच्चों की बुद्धि में अब बैठा है कि बाप वर्सा देते हैं, फिर श्राप माया देती है। वह गॉड फादर स्वर्ग का रचयिता है। कृष्ण के लिए कभी कह न सकें, परमात्मा ही नर्क को स्वर्ग बनाते हैं। सहज ज्ञान और योग वही सिखलाते हैं। ऐसे ऐसे भाषण तुम कर सकते हो। गीता में कृष्ण का नाम डाल खण्डन कर दिया है। गीता का भगवान निराकार परमात्मा है न कि कृष्ण। श्रीकृष्ण तो रचना है। उनको भी वर्सा बाप से मिला। वह कैसे, आओ तो समझायें। कोई भी बात उठाकर उन पर समझाने लग जाओ। पुरानी दुनिया, नई दुनिया पर समझाने से उसमें सब आ जाता है। अभी अनेक धर्म हैं। उनके बीच आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। कितना समझाया जाता है, इन 5 विकारों को छोड़ो। घर में भी किस पर क्रोध नहीं करो। ख्यालात आने चाहिए कि जैसा कर्म हम करेंगे, हमको देख फिर और करेंगे। मैं विकारी बनूँगा तो मुझे देख और भी विकारी बनेंगे। बाप फरमान करते हैं अब पवित्र बनो। स्त्री को भी पवित्र बनाओ। कोई पर क्रोध मत करो। तुमको देख वह भी करने लग पड़ेंगे। मेल तो रचयिता है तो स्त्री को भी समझाना चाहिए फिर अगर तकदीर में ही नहीं होगा तो क्या कर सकेंगे। समझाना है कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बाप समझाते हैं तुमने 84 जन्म कैसे लिये हैं। पहले तुम सतोप्रधान पावन थे। फिर रजो तमो बने हो। अब फिर तुम मुझे याद करो तो पावन बनेंगे। गीता के वरशन्स ही भगवान कह रहे हैं। गीता में कृष्ण का नाम डालने से उनकी सारी जीवन कहानी खत्म हो जाती है। समझाने की भी हिम्मत चाहिए। बाबा समझाते रहते हैं बहुत बच्चे समझते हैं हम तो शिवबाबा को ही मानते हैं, उनसे ही कल्याण होना है। भूल करते हैं तो बाबा ईशारा देते हैं। परन्तु कई बच्चे लून-पानी हो जाते हैं, लून-पानी थोड़ेही बनना है। समझाया जाता है कि ऐसे नहीं करो। कोई तो ऐसे हैं जो एक दो का रिगार्ड भी नहीं रखते हैं। अपने से बड़ों को तो तुम-तुम करके बात करते हैं। सेन्सीबुल बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। फलाना सेन्टर खुला है हम उन पर जाकर सर्विस करें। बिगर कहे जो करे सो देवता। कहने से करे वह मनुष्य, कहने से भी न करे तो...अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा यह बात याद रखना है कि जो कर्म हम करेंगे, हमें देख और भी करने लग पड़ेंगे इसलिए कभी भी श्रीमत के विपरीत विकारों के वश हो कोई भी कर्म नहीं करना है।
2) सर्विस का शौक रखना है। बिगर कहे सेवा में लग जाना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है।
वरदान:
अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशियों का खजाना बांटने वाले हीरो हीरोइन पार्टधारी भव
संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं का कर्तव्य है सदा खुश रहना और खुशी बांटना लेकिन इसके लिए खजाना भरपूर चाहिए। अभी जैसा नाज़ुक समय नजदीक आता जायेगा वैसे अनेक आत्मायें आपसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आयेंगी। तो इतनी सेवा करनी है जो कोई भी खाली हाथ नहीं जाये। इसके लिए चेहरे पर सदा खुशी के चिन्ह हों, कभी मूड आफ वाला, माया से हार खाने वाला, दिलशिकस्त वाला चेहरा न हो। सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो-तब कहेंगे हीरो हीरोइन पार्टधारी।
स्लोगन:एक दो की राय को रिगार्ड देना ही संगठन को एकता के सूत्र में बांधना है।
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Details ( Page:- Murali 29th Aug 2017 )
29.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
MIthe bache – iss ruhani padai kabhi miss ni karna, iss padhai se hi tumhe viswa ka badshahi milegiQuestion – Kaunsa nischay pakka ho toh padhai kabhi bhi miss na kare ?
Ans – Agar nischay ho ki hame swayam bhagwan teacher roop m padha rahe hai. Iss padhai se hi hame biswa ki badshahi ka barsa milega aur unch status bhi milega , baap hame sath le jayenge , toh padhai kabhi miss na kare. Nischay na hone ki karan padhai par dhyan ni rahta , miss kar dete hai.
Song – Hamare tirth nyare hai….
Dharna K lie mukya sar
1- Ek baap ke hi farman par chalna hai, baap se hi sunna hai. Manusya ki ulti batein sun unke prabhav mei ni ana hai
2- Padhai aur padhanewale ko sada yaad rakhna hai. Savere savere class mei jarur ana hai.
Vardan - Gyan yukt bhavna aur sneah sampan yog dwara udti kala ka anubhav karne wale baap saman bhav.
Slogan – Sada snehi wa sahyogi banna hai toh saralta aur sahanshilta ka gun dharan karo
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
29-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - इस रूहानी पढ़ाई को कभी मिस नहीं करना, इस पढ़ाई से ही तुम्हें विश्व की बादशाही मिलेगी"
प्रश्न:कौन सा निश्चय पक्का हो तो पढ़ाई कभी भी मिस न करें?
उत्तर:
अगर निश्चय हो कि हमें स्वयं भगवान टीचर रूप में पढ़ा रहे हैं। इस पढ़ाई से ही हमें विश्व की बादशाही का वर्सा मिलेगा और ऊंच स्टेटस भी मिलेगा, बाप हमें साथ भी ले जायेंगे - तो पढ़ाई कभी मिस न करें। निश्चय न होने कारण पढ़ाई पर ध्यान नहीं रहता, मिस कर देते हैं।
गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं... ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे पास्ट के सतसंग और अभी के सतसंग के अनुभवी हैं। पास्ट यानी इस सतसंग में आने के पहले बुद्धि में क्या रहता था और अब बुद्धि में क्या रहता है! यह रात दिन का फ़र्क देखने में आता होगा। उस सतसंगों में तो सिर्फ सुनते ही रहते हैं। कोई आश दिल में नहीं रहती। बस सतसंग में जाकर दो वचन शास्त्रों का सुनना होता है। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो। बुद्धि में है कि हम आत्मायें बापदादा के सामने बैठी हैं और उनसे हम स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए ज्ञान और योग सीख रहे हैं। जैसे स्कूल में स्टूडेन्ट समझते हैं कि हम बैरिस्टर वा इंजीनियर बनेंगे। कोई न कोई इम्तहान पास कर यह पद पायेंगे। यह ख्याल आत्मा को आते हैं। अभी हम पढ़कर फलाना बनेंगे। सतसंग में कोई एम नहीं रहती है कि क्या प्राप्ति होगी। करके कोई को आश होगी भी तो वह अल्पकाल के लिए। साधू सन्तों से मांगेंगे कि कृपा करो, आशीर्वाद करो। यह भक्ति वा सतसंग आदि करते, यहाँ तक आकर पहुँचे हैं। अभी हम बाप के सामने बैठे हैं। एक ही आश है - आत्मा को बाप से वर्सा लेने की। उन सतसंगों में वर्सा लेने की बात नहीं रहती। स्कूल अथवा कालेज में भी वर्सा पाने की बात नहीं रहती। वह तो टीचर है पढ़ाने वाला। वर्से की आश इस समय तुम बच्चे लगाकर बैठे हो। बरोबर बाप परमधाम से आया हुआ है। हमको फिर से सदा सुख का स्वराज्य देने। यह बच्चों की बुद्धि में जरूर रहेगा ना। फिर भी समझते हैं बाप के सन्मुख जाने से ज्ञान के अच्छे बाण लगेंगे क्योंकि वह सर्वशक्तिवान है। बच्चे भी ज्ञान बाण मारने सीखते हैं, परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यहाँ ही डायरेक्ट सुनते हैं। समझते हैं बाबा समझा रहे हैं और कोई सतसंग वा कालेज में ऐसे नहीं समझेंगे। हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। हम इस सृष्टि चक्र को जान गये हैं। उन सतसंगों में तो जन्म-जन्मान्तर जाते ही रहते हैं। यहाँ है एक बार की बात। भक्ति मार्ग में जो कुछ करते वह अब पूरा होता है। उनमें कोई सार नहीं है। तो भी अल्पकाल के लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में रहता है हमको बाबा पढ़ा रहे हैं। बाबा ही बुद्धि में याद आयेगा और अपनी गॅवाई हुई राजधानी याद आ जायेगी। अभी हम जितना पुरूषार्थ करेंगे, बाबा को याद करेंगे और ज्ञान की धारणा में रहेंगे। औरों को भी ज्ञान की धारणा करायेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। यह तो हर एक की बुद्धि में है ना। बाप इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं, इनको दादा ही कहेंगे। शिवबाबा इनमें प्रवेश होकर हमको पढ़ा रहे हैं। तुम जानते हो पहले यह बातें हमारी बुद्धि में नहीं थी। हम भी बहुत सतसंग आदि करते थे। परन्तु यह ख्याल में भी नहीं था कि परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा आकर कब पढ़ाते हैं। अभी बाप को जाना है। नई दुनिया स्वर्ग का स्वराज्य फिर से याद आता है। अन्दर में खुशी रहती है। बेहद का बाप जिसको भगवान कहते हैं, वह हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा पतित-पावन तो है ही फिर टीचर के रूप में बैठ हमको पढ़ाते हैं। इस दुनिया में कोई भी इस ख्यालात में नहीं बैठे होंगे सिवाए तुम बच्चों के। तुम बेहद बाप की याद में बैठे हो। अन्दर में समझ है हम आत्मायें 84 जन्मों का पार्ट पूरा कर वापिस जाती हैं। फिर स्वर्ग में जाने के लिए बाप हमको राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। बच्चे जानते हैं यह राजयोग की शिक्षा दे स्वर्ग का महाराजा महारानी बनाने वाला बाप के सिवाए और कोई हो नहीं सकता, इम्पासिबुल है। बाबा एक ही बार आकर पढ़ाते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाने लिए। बुद्धि में रहता है हम बच्चे बाप द्वारा बेहद सृष्टि का स्वराज्य लेने लिए पढ़ाई पढ़ रहे हैं। एम-आब्जेक्ट की ताकत से ही पढ़ते हैं। अभी तुम मीठे मीठे बच्चों की बुद्धि में है हम कहाँ बैठे हैं। मनुष्यों के ख्यालात तो कहाँ न कहाँ चलते ही रहते हैं। पढ़ाई के समय पढ़ने के, खेलने के समय खेलने के।
तुम जानते हो हम बेहद बाप के सन्मुख बैठे हैं। आगे नहीं जानते थे। कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते हैं कि भगवान आकर राजयोग सिखलाते हैं। अभी तुम बच्चों ने समझा है - जन्म-जन्मान्तर हम भक्ति करते आये हैं। यह ज्ञान बाप के सिवाए कोई दे न सके, जब तक बाप न आये - विश्व के मालिकपने का वर्सा मिले कैसे। न किसकी बुद्धि में यह आता है। हम भगवान के बच्चे हैं, वह स्वर्ग का रचयिता है, फिर हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं। नर्क में दु:खी क्यों हैं। हे भगवान, हे पतित-पावन कहते हैं परन्तु यह बुद्धि में नहीं आता कि हम दु:खी क्यों हैं। बाप बच्चों को दु:ख देते हैं क्या! बाप सृष्टि रचते हैं बच्चों के लिए। क्या दु:ख के लिए? यह तो हो नहीं सकता। अभी तुम बच्चे श्रीमत पर चलने वाले हो। भल कहाँ भी दफ्तर वा धन्धे आदि में बैठे हो परन्तु बुद्धि में तो यह है ना कि हमको पढ़ाने वाला भगवान बाप है। हमको रोज़ सवेरे क्लास में जाना होता है। क्लास में जाने वालों को ही याद पड़ता होगा। बाकी जो क्लास में ही नहीं आते तो वह पढ़ाई को और पढ़ाने वाले को समझ कैसे सकते हैं। यह नई बातें हैं, जिसको तुम ही जानते हो। बेहद का बाप जो नई दुनिया रचने वाला है, वह बैठ नई दुनिया के लिए हमारा जीवन हीरे जैसा बनाते हैं। जब से माया का प्रवेश हुआ है, हम कौड़ी जैसा बनते आये हैं। कलायें कम होती गई हैं। माया ऐसे खाती आई है जो हमको कुछ भी पता नहीं पड़ा। अभी बाप ने आकर बच्चों को जगाया है - अज्ञान नींद से। वह नींद नहीं, अज्ञान नींद में सोये पड़े थे। ज्ञान तो ज्ञान सागर ही देते हैं और कोई दे नहीं सकते। एक ही हमारा बिलवेड मोस्ट बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन दे सकते हैं। अब बच्चे जान गये हैं इस युक्ति से बाप हमको पावन बना रहे हैं। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन बाबा आओ। परन्तु समझते नहीं हैं कि कैसे आकर पावन बनायेंगे सिर्फ पतित-पावन कहते रहने से तो पावन नहीं बन जायेंगे।
तुम जानते हो कि इस समय सब पतित भ्रष्टाचारी हैं, जो भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं। वह कर्तव्य भी ऐसा करेंगे। यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं, तुम यहाँ सन्मुख बैठकर सुनते हो तो तुम्हारी बुद्धि का योग बाप के साथ रहता है। फिर कुसंग तरफ जाते हैं, बहुतों से मिलते करते हैं, वातावरण सुनते हैं तो जो सन्मुख की अवस्था रहती है - वह अवस्था बदल जाती है। यहाँ तो सन्मुख बैठे हैं। स्वयं ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा बैठ ज्ञान का बाण मारते हैं, इसलिए मधुबन की महिमा है। गाते भी हैं ना - मधुबन में मुरली बाजे। मुरली तो बहुत स्थानों पर बजती है। परन्तु यहाँ सन्मुख बैठकर समझाते हैं और बच्चों को सावधानी भी देते हैं, बच्चे खबरदार रहना। कोई उल्टा सुल्टा संग नहीं करना। लोग तुमको उल्टी बातें सुनाकर डराए इस पढ़ाई से ही छुड़ा देंगे। संग तारे कुसंग बोरे। यहाँ है सत बाप का संग। तुम प्रतिज्ञा भी करते हो कि हम एक से ही सुनेंगे। एक का ही फरमान मानेंगे। तुम सबका बाप टीचर सतगुरू वो एक ही है। वहाँ तो वह गुरू लोग सिर्फ शास्त्र ही सुनाते रहते। नई बात कोई नहीं। न बाप का परिचय ही दे सकते, न ज्ञान की बातें ही जानते। सब नेती-नेती कहते आये। हम रचता और रचना को नहीं जानते। जब बाप आते हैं तब ही समझाते हैं। उन कलियुगी गुरूओं में भी नम्बरवार हैं, कोई के तो लाखों फालोअर्स हैं। तुम समझते हो हमारा सतगुरू तो एक ही है। मरने आदि की तो बात ही नहीं। यह शरीर तो शिवबाबा का है नहीं। वह तो अशरीरी, अमर है। हमारी आत्मा को भी अमरकथा सुनाए अमर बना रहे हैं। अमरपुरी में ले जाते हैं, फिर सुखधाम में भेज देते हैं। निर्वाणधाम है ही अमरपुरी। अभी तुम्हारी बुद्धि में रहता है हम आत्मायें शरीर छोड़कर जायेंगी बाप के पास। फिर जिसने जितना पुरूषार्थ किया होगा उस अनुसार पद पायेंगे। क्लास ट्रांसफर होता है। हमारी पढ़ाई का पद इस मृत्युलोक में नहीं मिलता है। यह मृत्युलोक फिर अमरलोक बन जायेगा। अब तुमको स्मृति आई है कि हमने सतयुग त्रेता में 21 जन्म राज्य किया, फिर द्वापर कलियुग में आये। अब यह है हमारा अन्तिम जन्म। फिर हम वापिस जायेंगे, वाया मुक्तिधाम होकर फिर सुखधाम में आयेंगे। बाप बच्चों को कितना रिफ्रेश करते हैं। आत्मा समझती है कि हम 84 के चक्र में आते हैं। परमात्मा कहते हैं मैं इस चक्र में नहीं आता हूँ। मुझ में इस सृष्टि चक्र का ज्ञान है। यह तुम जानते हो कि पतित-पावन बेहद का बाप है। तो वह बेहद को ही पावन करने वाला होगा ना। कोई मनुष्य बेहद का बाप हो न सके। वह बेहद का बाप एक ही है।
तुम जानते हो हम आत्मायें वहाँ की रहने वाली हैं। वहाँ से फिर शरीर में आते हैं। पहले-पहले कौन आया पार्ट बजाने, यह तुम समझते हो। हम आत्मायें निराकारी दुनिया से आई हैं पार्ट बजाने। इस समय तुम बच्चों को नॉलेज मिली है। कैसे नम्बरवार हर एक धर्म वाले अपने पार्ट अनुसार आते हैं, इसको अविनाशी ड्रामा कहा जाता है। यह किसकी बुद्धि में नहीं है। हम बेहद ड्रामा के एक्टर हैं। न बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को, न अपने जन्मों को ही जानते हैं। बाबा तुमको कितना रिफ्रेश करते हैं, पुरूषार्थ अनुसार। कोई तो बड़ी खुशी में रहते हैं। बाबा हमको सत्य ज्ञान सुना रहे हैं और कोई मनुष्य मात्र यह ज्ञान दे नहीं सकते, इसलिए इसको अज्ञान अन्धेरा कहा जाता है। अभी तुम जानते हो हम अज्ञान अन्धेरे में कैसे आये। फिर ज्ञान सोझरे में कैसे जाना है। यह भी नम्बरवार समझ सकते हैं। घोर अन्धियारा और घोर सोझरा किसको कहा जाता है - यह अक्षर बेहद से लगता है। आधाकल्प रात, आधाकल्प दिन। वा समझो सांझ और सवेरा... यह बेहद की बात है। बाबा आकर सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं। यह जो दान पुण्य करते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं उससे तो अल्पकाल का सुख मिलता है। बाप कहते हैं मैं इनसे नहीं मिलता हूँ, जो मैं विश्व का मालिक उन्हों को बनाऊं। यह भी समझते हो कि सब विश्व के मालिक बन नहीं सकते। मालिक वह बनते हैं जिन्हों को बाप पढ़ाते हैं। वही राजयोग सीख रहे हैं। सारी दुनिया तो राजयोग नहीं सीखती है। कोटों में कोई ही पढ़ते हैं। कई तो 5-6 वर्ष, 10 वर्ष राजयोग सीखते, फिर भी पढ़ाई छोड़ देते हैं। बाप कहते हैं माया बहुत प्रबल है, बिल्कुल ही बेसमझ बना देती है। फारकती दे देते हैं। कहावत है ना - आश्चर्यवत बाप का बनन्ती, कथन्ती फिर फारकती देवन्ती।
बाप कहते हैं उनका भी दोष नहीं है। यह माया तूफान में ले आती है। ऐसी सजनियां जिनको श्रृंगार कर स्वर्ग की महारानी बनाते हैं, वह भी छोड़ देती हैं। फिर भी बाप कहते हैं जिनसे सगाई की उनको याद करना है। याद कोई फट से ठहरेगी नहीं। आधाकल्प नाम रूप में फँसते आये हो। अब अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, बड़ा मुश्किल है। सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी बनते हो परन्तु परमात्मा को नहीं जानते हो। परमात्मा को सिर्फ एक ही बार जानना होता है। यहाँ तुम देह-अभिमानी आधाकल्प बन जाते हो। यह भी नहीं समझते हो - आत्माओं को यह शरीर छोड़ दूसरा शरीर ले पार्ट बजाना है फिर रोने की दरकार नहीं। जब बाप द्वारा सुखधाम का वर्सा मिल रहा है तो क्यों न पूरा अटेन्शन दें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप के ही फरमान पर चलना है, बाप से ही सुनना है। मनुष्यों की उल्टी बातें सुन उनके प्रभाव में नहीं आना है। उल्टा संग नहीं करना है।
2) पढ़ाई और पढ़ाने वाले को सदा याद रखना है। सवेरे-सवेरे क्लास में जरूर आना है।
वरदान:
ज्ञान युक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान भव
जो ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें हैं वे सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति करते हुए विजयी बनती हैं। जो सिर्फ स्नेही वा भावना स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी-योगी तू आत्मायें समीप हैं इसलिए जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप हो। ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग-इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है।
स्लोगन:सदा स्नेही वा सहयोगी बनना है तो सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करो।
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Details ( Page:- Murali 30th Aug 2017 )
30.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bache – baba ka farman hai dehi abhimani bano, pavitra banker sabko pavitra banao, nischaybuddhi ban baap se poora varsha lo.
Question – Ant mei sarir chorne samay hay hay kinho ko karna padti hai?
Ans – jo jite ji marker poora poorasarth ni karte , poora varsha ni lete hai, unhe hi ant mei hay hay karni parti hai.
Ques 2 – Iss samay anek prakar k ladhai jhagde wa partition adi kyu hai?
Ans 2 – kyu ki sab apne asli pita ko bhule arphan nidhanke ban gaye hai. Jis mat pita se ghanere sukh mile the, use bhul sarb vyapi kah diya hai, isilie wapas mai ladte jhagadte rehte hai.
Song – Om Namah Sivay
Dharna k lie much sar –
1-[font=Times New Roman] [/font]Baap se swarg ka varsha lene k lie grihasth vyavahar m rehte rachna ki sambhal karte hue kamal fool saman pavitra banna hai.
2- Hare k ko 21 pidhi ke lie sukhi banana ka rasta batana hai. Gyan chita par baith sudra se brahman aur fir devta banna hai.
Vardan – Apni Shakti shali mansa Shakti wa subh bhavna dwara behad sewa karne wale viswa parivartak bhav.
Slogan – Budhi roopi hath bapdada ke hath mei de do toh parikshya roopi sagar mei hilenge ni.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
30-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप का फरमान है देही-अभिमानी बनो, पवित्र बनकर सबको पवित्र बनाओ, निश्चयबुद्धि बन बाप से पूरा वर्सा लो"
प्रश्न:अन्त में शरीर छोड़ने समय हाय-हाय किन्हों को करनी पड़ती है?
उत्तर:जो जीते जी मरकर पूरा पुरूषार्थ नहीं करते हैं, पूरा वर्सा नहीं लेते हैं, उन्हें ही अन्त में हाय-हाय करनी पड़ती है।
प्रश्न:इस समय अनेक प्रकार के लड़ाई-झगड़े वा पार्टीशन आदि क्यों हैं?
उत्तर:क्योंकि सब अपने असली पिता को भूल आरफन, निधनके बन गये हैं। जिस मात-पिता से घनेरे सुख मिले थे, उसे भूल सर्वव्यापी कह दिया है, इसलिए आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
गीत:-ओम् नमो शिवाए.... ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? ओम् शान्ति। आत्मा ने इन शरीर की कर्मेन्द्रियों द्वारा कहा। आत्मा है अविनाशी, शरीर है विनाशी। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। आत्मा सबसे जास्ती 84 जन्म लेती है। इनको कहा ही जाता है 84 जन्मों का पा। ऐसे नहीं सभी 84 जन्म लेते हैं। नहीं, मनुष्य तो इन बातों को नहीं जानते हैं। गीत में भी सुना शिवाए नम:, ऊंच ते ऊंच है शिव परमात्मा। वह है निराकारी दुनिया का रहने वाला, जहाँ सब आत्मायें रहती हैं। उनसे नीचे सूक्ष्मवतनवासी। ऊंचे ते ऊंचे भगवान की महिमा सुनी शिवाए नम:। तुम मात-पिता, बन्धु सहायक, यह उनकी महिमा है। फिर कहेंगे-ब्रह्मा देवताए नम:... वह रचयिता, वह रचना। फिर है यह मनुष्य सृष्टि। इस मनुष्य सृष्टि में ही पावन और पतित बनते हैं। सतयुग में पावन, कलियुग में पतित हैं। भारत में आज से 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवता थे। वह सब थे मनुष्य, परन्तु सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण थे। यह है उन्हों की महिमा। वहाँ हिंसा होती नहीं। विकार में जाते नहीं। उन्हों को कहते हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। विकारी मनुष्य उन्हों की महिमा गाते हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नीच पापी हैं। परमात्मा को भी याद करते हैं परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं इसलिए आरफन ठहरे। गाते भी हैं - तुम मात-पिता... जिससे सुख घनेरे मिलते हैं। फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो मनुष्य बाप को भूल पतित आरफन निधनके बन पड़ते हैं। आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं। सब जगह देखो झगड़े ही झगड़े लगे हुए हैं। कितने पार्टीशन हैं। स्वर्ग में तो एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। भारतवासी सारे विश्व के मालिक थे। अब तो टुकड़े-टुकड़े हैं। यह समुद्र तुम्हारा, यह हमारा, यह धरती हमारी, यह तुम्हारी... पंजाब, यू.पी., राजस्थान आदि-आदि, अलग-अलग हो गये हैं। भाषा पर भी कितने झगड़े होते हैं क्योंकि पारलौकिक माँ बाप को नहीं जानते हैं। भारत स्वर्ग था तो यह कोई बात नहीं थी। अब फिर स्वर्ग होना है। बाप बैठ समझाते हैं यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। बेहद का बाप बच्चों को कहते हैं तुम कितना बेसमझ बन पड़े हो। कहते भी हो हे परमपिता परमात्मा। फिर उनकी बायोग्राफी को नहीं जानते हो। बाप पतित-पावन, सद्गति दाता भी है। तुम तो जानते हो, वह तो कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। सर्वव्यापी कहने से फिर वर्सा कैसे मिलेगा। जरूर बाप चाहिए ना, वर्सा देने वाला। लौकिक बाप बच्चों को पैदा करे और फिर पूछो तुम्हारा बाप कहाँ है तो क्या सर्वव्यापी कहेगा? अरे बेहद का बाप तो रचयिता है ना। उसको ही सब भगत पुकारते हैं - हे पतित-पावन, शिवबाबा आकर हमको पतित से पावन बनाओ। जैसे स्वर्ग में पावन थे वैसे फिर हमको आकर पावन बनाओ। हम बहुत दु:खी हैं। जबसे रावण राज्य शुरू होता है तो सब मनुष्य पतित होने लग पड़ते हैं। दर दर धक्के खाते रहते हैं। समझते हैं सबमें परमात्मा है। मूर्तियां ठिक्कर-भित्तर की बनी हुई है ना, तो समझते हैं कि इसमें भी भगवान है। अरे पत्थर में भगवान कहाँ से आया! वह तो परमधाम में रहता है। कितने ढेर चित्र बनाते हैं फिर जब पुराने हो जाते हैं तो फेंक देते हैं। यह है गुड़ियों की पूजा। कहते हैं हे बाबा हमको सद्गति दो। सर्व का सद्गति दाता एक ही पतित-पावन शिवबाबा है, उनको सब मनुष्य भूल गये हैं। उनको सब याद करते हैं। सबका पतियों का पति अथवा बापों का बाप वह है। बाप कहते हैं बच्चे अब पावन बनो। तुम्हारी आत्मा अब पतित हो गयी है, खाद पड़ गई है। सच्चे सोने में खाद डालने से अथवा अलाए पड़ने से सोने का मूल्य कम हो जाता है। तो यह भी तमोप्रधान दुनिया है। पहले गोल्डन एज में थे तो सम्पूर्ण निर्विकारी थे। फिर सिल्वर की खाद पड़ी फिर कापर, आइरन में आते हैं। आत्मा पतित होती जाती है। अभी तो बिल्कुल ही आइरन एजड हो गई है। वही भारत सतोप्रधान था, अब तमोप्रधान बन गया है। जो पहले-पहले थे जरूर उन्हों को ही पूरे 84 जन्म लेने पड़े। क्रिश्चियन आते ही बाद में हैं, वह 84 जन्म तो ले न सकें। वह 35-40 जन्म करके पाते होंगे। सृष्टि की आयु भी अब पूरी होती है फिर नई बनेगी। नई दुनिया में है सुख, पुरानी दुनिया में है दु:ख। पुराने मकान को तोड़ा जाता है ना। पुरानी दुनिया में तो सब दु:खी हैं। फिर इन सबको सुखी बनाने वाला तो बाप ही है। सतयुग में जो भी आत्मायें थी वह सुखी थी। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में थी, जिसको फिर साइलेन्स वर्ल्ड कहा जाता है। साइलेन्स वर्ल्ड फिर सटल वर्ल्ड (सूक्ष्मवतन), वहाँ शरीर ही नहीं है तो आत्मा आवाज कैसे करेगी। तो अभी सब आत्मायें तमोप्रधान हैं इसलिए इसको आइरन एज कहा जाता है। पहले गोल्डन एज में थे अब फिर बाप आकर गोल्डन एज में ले जाते हैं। मनुष्य को देवता बनाते हैं। सतयुग में स्त्री पुरूष दोनों पवित्र रहते हैं। उनको रामराज्य कहा जाता है। अभी तो है रावणराज्य, एक दो पर काम कटारी चलाकर दु:खी करते रहते हैं। भगवान कहते हैं बच्चे काम महाशत्रु है, इसने ही तुमको दु:खी किया है। तुम बच्चे गिरते आये हो। अभी तो कोई कला नहीं रही है फिर 16 कला सम्पूर्ण बनाने बाप आये हैं। इसमें सन्यासियों के मुआफिक घरबार तो छोड़ना नहीं है। पावन दुनिया में जाने के लिए यह अन्तिम जन्म तुमको पवित्र जरूर बनना है। जो बाप द्वारा पवित्र बनेंगे वही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। यहाँ तुम बच्चे आये हो बाप के पास। यह हेड आफिस है - जहाँ सब आते हैं। पारलौकिक बाप आत्माओं को कहते हैं बच्चे, अब देही-अभिमानी बनो। आत्मायें भी कहती हैं हाँ बाबा हम आपका फरमान जरूर मानेंगे। पवित्र बनेंगे। यह श्रीमत है ना। श्रीमत से ही श्रेष्ठ बनना है। रावण की मत से तुम भ्रष्ट बने हो। तो इस शरीर द्वारा आत्मा कहती है हे बाबा हम आपके बने हैं। बाप कहते हैं मैं आया ही हूँ सर्व की सद्गति करने। पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाने के लिए। तो पवित्र जरूर बनना है। पहले जब पवित्र बन ब्रह्माकुमार कुमारी बनें तब ही शिवबाबा से स्वर्ग के सुख का वर्सा पायें। तुम फिर से आये हो - बाप से वर्सा लेने। तुम जो देवी-देवता धर्म के थे, तुमने ही 84 जन्म लिये हैं। अभी वह देवी-देवता हैं नहीं। देवतायें जो पतित बने हैं वही आकर पावन बनेंगे। जो आये ही बाद में हैं वह स्वर्ग में जा न सकें। जिन देवी-देवता धर्म वालों के 84 जन्म पूरे हुए हैं, उन्हों को ही फिर से देवता बनना है। बाबा कहते हैं मैं ही आकर ब्रह्मा द्वारा देवी-देवता बनाता हूँ। पवित्र बनने बिगर तुम देवी-देवता बन नहीं सकते हो। इन बातों को समझेंगे वही जो आकर ब्रह्माकुमार कुमारी बनेंगे। प्रजापिता गाया जाता है ना। मनुष्य सृष्टि का जगत पिता और जगत अम्बा। उन्हों के इतने बच्चे कैसे होंगे। अभी है ब्रह्मा मुख वंशावली। सब मम्मा बाबा कहते हैं। कैसे बच्चे बने? शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा तुमको अपना बनाया है। तुम शिवबाबा को याद करते हो, उससे स्वर्ग का वर्सा लेने। तो सब ब्रह्माकुमार कुमारियां आपस में भाई बहन ठहरे। यह है युक्ति। बाबा कहते हैं तुम गृहस्थ व्यवहार में भल रहो परन्तु कमल फूल समान पवित्र रहो। यह करके दिखाओ, घरबार छोड़ने की बात नहीं है। अपनी रचना की सम्भाल भी करो, सिर्फ पवित्र रहो तो इन देवताओं जैसा फिर बनेंगे। देवी-देवता धर्म की स्थापना तो जरूर होनी है। बाप बच्चों को सम्मुख बैठ समझाते हैं।
यह मधुबन है हेड आफिस। कितने सेन्टर्स खुलते रहते हैं। जो कल्प पहले ब्रह्माकुमार कुमारियां बने थे वही फिर ब्राह्मण से देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र बनते आये हैं। अब फिर ब्राह्मण बनना पड़े। चोटी ब्राह्मणों की है ना। इन वर्णों से पास करना होता है। बाप कहते हैं तुम सो देवी-देवता थे। अब तुम फिर शूद्र से ब्राह्मण बने हो, सो देवी-देवता बनने के लिए। तुम पवित्र बनते हो। गायन भी है कुमारी वह जो 21 पीढ़ी का उद्धार करे। तुम सब ब्रह्माकुमार कुमारियां हो। कुमार और कुमारियां तो दोनों चाहिए ना। तुम हर एक को 21 पीढ़ी के लिए सदा सुख का रास्ता बताते हो। चलो अपने सुखधाम, यह है दु:खधाम। अभी बाप को याद करना है। बाप कहते हैं पवित्र बनो और मामेकम् याद करो। कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। बाप ही बैठ बच्चों को सुख घनेरे देते हैं। अभी कितना दु:ख है। दु:ख में ही भगवान को याद किया जाता है। बाप स्वर्ग में ले जाते फिर वहाँ क्यों याद करेंगे। कहते हैं हे प्रभू, अन्धों की लाठी। परन्तु जानते तो कुछ भी नहीं। लक्ष्मी-नारायण के आगे भी जाकर कहेंगे - तुम मात-पिता...अब वह तो हैं स्वर्ग के मालिक। वह थोड़ेही सबके मात-पिता हो सकते हैं। कृष्ण एक राजधानी का, राधे दूसरे राजधानी की। फिर उनकी सगाई हो जाती है। स्वयंवर के बाद फिर नाम बदल जाता है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। दीपमाला पर महालक्ष्मी को बुलाते हैं ना। वह है युगल। अभी तुम काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठते हो। तुम हो सच्चे ब्राह्मण। तुम पवित्रता की प्रतिज्ञा कराते हो। बेहद का बाप कहते हैं पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। घर बैठे भी याद कर सकते हो। बाबा कहते हैं तुम सबको मेरे पास आना है। मरना तो सबको है। यह वही महाभारत की लड़ाई है। यहाँ है यौवनों की लड़ाई। सतयुग में कोई लड़ाई आदि होती नहीं। बाप कहते हैं तुम इस रावण पर जीत पहनो। बाकी लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यह महाभारत की लड़ाई भी लगती है। बाकी थोड़े बचेंगे। भारत है अविनाशी खण्ड, बाकी खण्ड खत्म हो जायेंगे। बाप सबको वापिस ले जायेंगे। बाप सर्व की सद्गति करते हैं। आत्माओं को वापिस ले जाते हैं। अभी तुम बाप से वर्सा ले रहे हो। सन्यासी तो दे न सकें। वह कोई स्वर्ग का रचयिता थोड़ेही हैं। अभी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। बाकी नर्क के मनुष्यमात्र सब खत्म हो जायेंगे। मरना तो है, क्यों न जीते जी वर्सा ले लेवें। नहीं तो हाय-हाय करेंगे। कुम्भकरण की आसुरी नींद से अन्त में जागेंगे। अभी सारे चक्र की नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। तुम ही पूज्य थे फिर पुजारी बने फिर पूज्य बनते हैं। पावन राजायें भी थे, पतित राजायें भी थे। अब नो राजा। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। फिर सृष्टि को चक्र खाना है, सतयुग में आना है। शिवबाबा इनके मुख से कहते हैं - तुम हमारे बच्चे हो। तुम भी कहते हो बाबा हम आपके बच्चे हैं। यह है मुख वंशावली। तुम ईश्वर का परिवार हो। भगवानुवाच एक बाप को याद करो। हम आत्मायें अब स्वीट होम में जाती हैं, जहाँ बाबा रहते हैं। फिर बाबा स्वीट स्वर्ग में भेज देते हैं, वहाँ भी शान्ति और सुख है। तुम यहाँ आये हो पवित्रता, सुख, शान्ति का वर्सा लेने। 21 जन्मों के लिए यह पढ़ाई है। तुम यहाँ के लिए नहीं पढ़ते हो। यह है ही मृत्युलोक। तुम अमरनाथ द्वारा अमरकथा सुन अमर बनते हो। जो बाप से आकर समझेंगे वही पवित्रता की प्रतिज्ञा करेंगे। वही फिर आकर वर्सा लेंगे। ब्रह्माकुमार कुमारियां तो ढेर के ढेर होते जायेंगे। दिन प्रतिदिन सेन्टर खुलते जायेंगे। शूद्र से ब्राह्मण बनते जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए गृहस्थ व्यवहार में रहते, रचना की सम्भाल करते हुए कमल फूल समान पवित्र बनना है।
2) हर एक को 21 पीढ़ी के लिए सुखी बनाने का रास्ता बताना है। ज्ञान चिता पर बैठ शूद्र से ब्राह्मण और फिर देवता बनना है।
वरदान:
अपनी शक्तिशाली मन्सा शक्ति व शुभ भावना द्वारा बेहद सेवा करने वाले विश्व परिवर्तक भव
विश्व परिवर्तन के लिए सूक्ष्म शक्तिशाली स्थिति वाली आत्मायें चाहिए, जो अपनी वृत्ति द्वारा श्रेष्ठ संकल्प द्वारा अनेक आत्माओं को परिवर्तन कर सकें। बेहद की सेवा शक्तिशाली मन्सा शक्ति द्वारा, शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा होती है। तो सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक नहीं लेकिन औरों को भी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा परिवर्तित करो। बेहद की सेवा वा विश्व प्रति सेवा बैलेन्स वाली आत्मायें कर सकती हैं। तो भावना और ज्ञान, स्नेह और योग के बैलेन्स द्वारा विश्व परिवर्तक बनो।
स्लोगन:बुद्धि रूपी हाथ बापदादा के हाथ में दे दो तो परीक्षाओं रूपी सागर में हिलेंगे नहीं।
------------------*OM SHANTI *--------------
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Details ( Page:- Murali 31st Aug 2017 )
31.08.17 Morning Murli Om Shanti - Babdada Madhuban
Mithe bachhe – swarg ka malik banna hai toh baap se promise karo ki hum pavitra ban , apke madadgar jarur banenge. Sapoot bacha banker dikhayenge
Ques 1 – Kinho ka hisab kitab chuktu karane k lie pichadi m tribunal baithti hai ?
Ans 1- Jo krodh m akar bombs se itno ka maut kar dete hai unpar case kaun kare. Isilie pichadi m unke lie tribunal baithti hai. Sab apba hisab kitab chuktu kar wapis jate hai.
Ques 2 – Vishnupuri m jane k layak kaun bante hai?
Ans 2 – ( 1 ) jo iss poorani duniya m rahte bhi isse apni dil nil agate , buddhi mei rahta ab hame nai duniya mei jana hai , isilie pavitra jarur banna hai. (2)-padhai hi Vishnupuri mei jane k layak banati hai. Tum padhte iss janm mei ho. Padhai ka pad dusre janm mai milta hai.
Song – tumhi ho mata…
Dharna –
1- Samay baut thoda ha isilie kante se fool ban sabko phool banana hai. Shantidham aur sukhdham ka raasta batana hai.
2- Vaishnav kul mei jane k lie ache karm karne hai. Pavan jarur banna hai. Sada ruhani yatra karni aur karani hai.
Vardan – Plain budhi ban sewa k plan banana wale yathrthsewadhari bhav.
Slogan – Gyan dan k sath sath gundan karo toh safalta milti rahegi.
OM Shanti – Hindi Murali in Detail
31-08-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - स्वर्ग का मालिक बनना है तो बाप से प्रतिज्ञा करो कि हम पवित्र बन, आपके मददगार जरूर बनेंगे। सपूत बच्चा बनकर दिखायेंगे"
प्रश्न:
किन्हों का हिसाब-किताब चुक्तू कराने के लिए पिछाड़ी में ट्रिब्युनल बैठती है?
उत्तर:
जो क्रोध में आकर बाम्ब्स से इतनों का मौत कर देते हैं, उन पर केस कौन करे! इसलिए पिछाड़ी में उनके लिए ट्रिब्युनल बैठती है। सब अपना-अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस जाते हैं।
प्रश्न:
विष्णुपुरी में जाने के लायक कौन बनते हैं?
उत्तर:
जो इस पुरानी दुनिया में रहते भी इससे अपनी दिल नहीं लगाते, बुद्धि में रहता अब हमें नई दुनिया में जाना है इसलिए पवित्र जरूर बनना है। 2- पढ़ाई ही विष्णुपुरी में जाने के लायक बनाती है। तुम पढ़ते इस जन्म में हो। पढ़ाई का पद दूसरे जन्म में मिलता है।
गीत:-तुम्हीं हो माता... ओम् शान्ति।
महिमा गाते हैं बेहद के बाप की क्योंकि बेहद का बाप बेहद की शान्ति और सुख का वर्सा देते हैं। भक्ति मार्ग में पुकारते भी हैं बाबा आओ, आकर हमें सुख और शान्ति दो। भारतवासी 21 जन्म सुखधाम में रहते हैं। बाकी जो आत्मायें हैं, वह शान्तिधाम में रहती हैं। तो बाप के दो वर्से हैं सुखधाम और शान्तिधाम। इस समय न शान्ति है, न सुख है क्योंकि भ्रष्टाचारी दुनिया है। तो जरूर कोई दु:खधाम से सुखधाम में ले जाने वाला चाहिए। बाप को खिवैया भी कहते हैं। विषय सागर से क्षीरसागर में ले जाने वाला है। बच्चे जानते हैं बाप ही पहले शान्तिधाम में ले जायेंगे क्योंकि अब टाइम पूरा होता है। यह बेहद का खेल है। इसमें ऊंच ते ऊंच मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर कौन हैं? ऊंच ते ऊंच है भगवान। उनको सबका बाप कहा जाता है। वह स्वर्ग का रचयिता है फिर जब मनुष्य दु:खी होते हैं तो लिबरेट भी करते हैं। रूहानी पण्डा भी है। सभी आत्माओं को शान्तिधाम में ले जाते हैं। वहाँ सब आत्मायें रहती हैं। यह आरगन्स यहाँ मिलते हैं, जिससे आत्मा बोलती है। आत्मा खुद भी कहती है जब मैं सुखधाम में थी तो शरीर सतोप्रधान था। मैं आत्मा 84 जन्म भोगती हूँ। सतयुग में 8 जन्म, त्रेता में 12 जन्म पूरे हुए फिर फर्स्ट नम्बर में जाना है। बाप ही आकर पावन बनाते हैं। आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा शरीर से अलग है तो कुछ बात नहीं कर सकती। जैसे रात में शरीर से अलग हो जाती है। आत्मा कहती है मैं इस शरीर से काम कर थक गया हूँ, अब विश्राम करता हूँ। आत्मा और शरीर दोनों अलग चीज़ हैं। यह शरीर अब पुराना है। यह है ही पतित दुनिया। भारत नया था तो इसको स्वर्ग कहा जाता था। अभी नर्क है। सब दु:खी हैं। बाप आकर कहते हैं इन बच्चियों द्वारा तुमको स्वर्ग का द्वार मिलेगा। बाप शिक्षा देते हैं पावन बन स्वर्ग का मालिक बनो। पतित बनने से तुम नर्क के मालिक बन पड़े हो। यहाँ 5 विकारों का दान लिया जाता है। आत्मा कहती है बाबा आप हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हो। हम प्रतिज्ञा करते हैं हम पवित्र बन आपके मददगार जरूर बनेंगे। बाप का बच्चा जो ओबीडियन्ट रहते हैं उन्हें सपूत कहा जाता है। कपूत को वर्सा मिल न सके। यह बाप बैठ समझाते हैं निराकार भगवान की निराकारी आत्मायें बच्चे हैं। फिर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान बनते हैं तो बहन-भाई हो जाते हैं। यह जैसे ईश्वरीय घर है और कोई सम्बन्ध नहीं। भल घर में मित्र-सम्बन्धी आदि को देखते हैं परन्तु बुद्धि में है हम बापदादा के बने हैं। वह बाप यह दादा बैठे हैं। यहाँ गर्भ जेल में तो सजायें खाते हैं। सतयुग में जेल होता नहीं। वहाँ पाप ही नहीं होता क्योंकि वहाँ रावण ही नहीं इसलिए वहाँ गर्भ महल कहा जाता है। जैसे पीपल के पत्ते पर कृष्ण को दिखाते हैं। वह भी गर्भ जैसे क्षीरसागर है। सतयुग में न गर्भजेल होता, न वह जेल होता। आधाकल्प है नई दुनिया। वहाँ सुख है, जैसे मकान पहले नया होता है फिर पुराना होता है। वैसे सतयुग है नई दुनिया, कलियुग है पुरानी दुनिया। कलियुग से फिर सतयुग जरूर बनना है। चक्र रिपीट होता रहता है। यह बेहद का चक्र है, जिसकी नॉलेज बाप ही समझाते हैं। बाप ही नॉलेजफुल है। इनकी आत्मा भी नहीं समझा सकती। यह पहले पावन थे फिर 84 जन्म ले पतित बने हैं। तुम्हारी आत्मा भी पावन थी फिर पतित बनी है।
बाप कहते हैं मैं इस पतित दुनिया का मुसाफिर हूँ क्योंकि पतित बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ। मुझे अपना परमधाम छोड़ पतित दुनिया, पतित शरीर में आना पड़ता है। यहाँ तो पावन शरीर है नहीं। यह तो जानते हो जो अच्छे कर्म करते हैं, वह अच्छे कुल में जन्म लेते हैं। बुरे कर्म करने वाले बुरे कुल में जन्म लेते हैं। अब तुम पवित्र बन रहे हो। पहले-पहले तुम विष्णु कुल में जन्म लेंगे। तुम मनुष्य से देवता बनते हो। आदि सनातन धर्म किसने स्थापन किया, यह कोई भी नहीं जानता क्योंकि शास्त्रों में 5 हजार वर्ष के चक्र को लाखों वर्ष दे दिया है। यही भारत स्वर्ग था। अब तो नर्क है। अब जो बाप द्वारा ब्राह्मण बनेंगे वही देवता बनेंगे। स्वर्ग का द्वार देख सकेंगे। स्वर्ग का नाम ही कितना अच्छा है। देवी-देवता वाम मार्ग में आते हैं तब पुजारी बनते हैं। सोमनाथ का मन्दिर किसने बनाया? सबसे बड़ा है यह सोमनाथ का मन्दिर। जो सबसे साहूकार था, उसने ही बनाया होगा। जो सतयुग में पहले महाराजा महारानी, लक्ष्मी-नारायण थे। वही जब पूज्य से पुजारी बनते हैं तो शिवबाबा जिसने विश्व का मालिक बनाया है, उनका मन्दिर बनाते हैं। खुद कितना साहूकार होंगे तब तो इतना मन्दिर बनाया, जिसको मुहम्मद गजनवी ने लूटा। सबसे बड़ा मन्दिर है शिवबाबा का। वह है स्वर्ग का रचयिता। खुद मालिक नहीं बनते हैं। बाप जो सेवा करते हैं, उसको निष्काम सेवा कहा जाता है। बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाते खुद नहीं बनते। खुद निर्वाणधाम में बैठ जाते हैं। जैसे मनुष्य 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ में जाते हैं। सतसंग आदि करते रहते हैं। कोशिश करते हैं हम भगवान से जाकर मिलें। परन्तु कोई मेरे से मिलते नहीं हैं। सबका लिबरेटर, गाइड एक ही बाबा है। और सभी हैं जिस्मानी यात्रा कराने वाले। अनेक प्रकार की यात्रा करते हैं। यह है रूहानी यात्रा। बाप सभी आत्माओं को अपने शान्तिधाम में ले जाते हैं। अभी तुम बच्चों को बाप विष्णुपुरी में ले जाने के लायक बना रहे हैं। बाप आते ही हैं सेवा करने। बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया में कोई से दिल नहीं लगाओ। अब जाना है नई दुनिया में। तुम आत्मायें सब ब्रदर्स हो। इसमें मेल भी हैं, फीमेल भी हैं। सतयुग में तुम पवित्र रहते थे, उसको कहा ही जाता है पवित्र दुनिया। यहाँ तो 5-7 बच्चे पेट चीरकर भी निकालते हैं। सतयुग में लॉ बना हुआ है, जब समय होता है तो दोनों को साक्षात्कार हो जाता है कि अब बच्चा होने वाला है। उसको कहा जाता है योगबल, पूरे टाइम पर बच्चा पैदा हो जाता है। कोई तकलीफ नहीं, रोने की आवाज नहीं। आजकल तो कितनी तकलीफ से बच्चा पैदा होता है। यह है ही दु:खधाम। सतयुग है ही सुखधाम। तुम पढ़ाई पढ़ रहे हो - सुखधाम का मालिक बनने। उस पढ़ाई का फल तो इसी जन्म में भोगते हैं। तुम इस पढ़ाई का फल दूसरे जन्म में पाते हो।
बाप कहते हैं, मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ, जिनको भगवान भगवती कहते हैं। लक्ष्मी भगवती, नारायण भगवान। सतयुग में उन्हों को किसने बनाया? जबकि कलियुग अन्त में कुछ नहीं है। भारत देखो कितना कंगाल है। मैं ही सबको सद्गति देने आता हूँ। सतयुग त्रेता में तुम सदा सुखी रहते हो। बाप इतना सुख देते हैं जो भक्ति मार्ग में भी फिर उनको याद करते हैं। बच्चा मर जायेगा तो भी कहेंगे हे भगवान हमारा बच्चा मार डाला। बाप कहते हैं जबकि तुम कहते हो सब कुछ ईश्वर ने ही दिया है, उसने ही लिया फिर रोते क्यों हो? मोह क्यों रखते हो? सतयुग में मोह होता ही नहीं है। वहाँ जब शरीर छोड़ने का टाइम होता है तो टाइम पर छोड़ते हैं। स्त्री कब विधवा नहीं बनती। जब टाइम पूरा होता है - बूढ़े होते हैं तो समझते हैं अब जाकर बच्चा बनेंगे। तो शरीर छोड़ देते हैं। सर्प का मिसाल। अब तुम जानते हो यह कलियुगी शरीर बहुत पुरानी खाल है। आत्मा भी पतित है तो शरीर भी पतित है। अब बाप से योग लगाए पावन बनना है। यह है भारत का प्राचीन राजयोग। सन्यासियों का तो हठयोग है। शिवबाबा कहते हैं - मैं इन माताओं द्वारा स्वर्ग का द्वार खोलता हूँ। माता गुरू बिगर किसका उद्धार नहीं हो सकता है। बाप ही आकर सबकी सद्गति करते हैं, तुमको भी सिखलाते हैं फिर तुम मास्टर सद्गति दाता बन जाते हो। सबको कहते हो मौत सामने खड़ा है, बाप को याद करो। सब खत्म हो जाना है। बाम्ब्स आदि बनाने वाले खुद भी मानते हैं कि इससे विनाश होना है, परन्तु हमें कौन प्रेरता है पता नहीं। समझते हैं एक बम फेंकने से सब खत्म हो जायेंगे। बाकी थोड़ा समय है जब तक तुम कांटों से फूल बन जाओ। यह है ही कांटों की दुनिया। भारत ही फूलों की दुनिया थी। अब है वेश्यालय, फिर होगा शिवालय अर्थात् शिव द्वारा स्थापन किया हुआ स्वर्ग। भगवान तो एक ही निराकार है। मनुष्य को कभी भगवान नहीं कह सकते। दु:ख हर्ता सुख कर्ता एक ही बाप है। भगवानुवाच मैं तुमको नर से नारायण बनाता हूँ। यह पुरानी पतित दुनिया अब खत्म होनी है। मैं पतित से पावन देवता बनाता हूँ, फिर तुम चले जायेंगे अपने घर। ड्रामा को समझना है। इस समय देखो मनुष्यों में क्रोध कितना है। बन्दर से भी बदतर हैं। क्रोध आता है तो कैसे बाम्ब्स से सबको मार डालते हैं। अब इन पर कौन केस करेगा! इनके लिए फिर पिछाड़ी में ट्रिब्युनल बैठती है। सबका हिसाब-किताब चुक्तू कर देते हैं। यह सब समझने की बातें हैं। बाप कहते हैं हे आत्मायें मैं तुम्हारा बाप आया हुआ हूँ। आप मेरी श्रीमत पर चलो तो श्रेष्ठ स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। वह मनुष्य तो मनुष्यों के गाइड बनते हैं। बाप गाइड बनते हैं सर्व आत्माओं के। आत्मा ही कहती है हे पतित-पावन। अब बाप हमको पुण्य आत्मा बना रहे हैं। स्वर्ग में रूहानी बाप होता नहीं। वहाँ तो है ही प्रालब्ध। यह युनिवर्सिटी है - राजयोग बाप के सिवाए कोई सिखला नहीं सकते। बाप कहते हैं मैं इस शरीर का लोन लेकर आता हूँ। आत्मा तो दूसरे शरीर में आ सकती है ना। यह ड्रामा की नूँध है। इनको फिरने में 5 हजार वर्ष लगता है। कहते हैं पत्ते-पत्ते में ईश्वर है। पत्ता हिलता है, इनमें आत्मा है। लेकिन नहीं। यह हवा से हिलता है। तुम जैसे यहाँ बैठे हो फिर 5 हजार वर्ष बाद बैठेंगे। अब बाप से वर्सा लिया सो लिया। नहीं तो फिर कभी ले नहीं सकेंगे। इस समय ही ऊंची कमाई कर सकते हो। फिर सारे कल्प में ऐसी ऊंची कमाई हो नहीं सकती। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) समय बहुत थोड़ा है इसलिए कांटे से फूल बन सबको फूल बनाना है। शान्तिधाम और सुखधाम का रास्ता बताना है।
2) वैष्णव कुल में जाने के लिए अच्छे कर्म करने हैं। पावन जरूर बनना है। सदा रूहानी यात्रा करनी और करानी है।
वरदान:
प्लेन बुद्धि बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव
यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं। स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो। ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ। सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो, इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ। प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के। हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान। यही शुभ भावना और शुभ कामना का बीज है।
स्लोगन:ज्ञान दान के साथ-साथ गुणदान करो तो सफलता मिलती रहेगी।
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