Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 26th Sep 2018 )
26-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अब नाटक पूरा होता है, घर चलना है इसलिये इस शरीर रूपी कपड़े को भूलते जाओ, अपने को अशरीरी आत्मा समझो''
प्रश्नः-
कौनसा वन्डरफुल खेल संगम पर ही चलता है, दूसरे युगों में नहीं?
उत्तर:-
फारकती दिलाने का। राम, रावण से फारकती दिलाते हैं। रावण फिर राम से फारकती दिला देते। यह बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाप को भूलने से माया का गोला लग जाता है इसीलिये बाप शिक्षा देते हैं - बच्चे, अपने स्वधर्म में टिको, देह सहित देह के सब धर्मों को भूलते जाओ। याद करने का खूब पुरुषार्थ करते रहो। देही-अभिमानी बनो।
गीत:-
जो पिया के साथ है........
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार गीत सुना। हरेक बात में नम्बरवार कहा जाता है क्योंकि यह कॉलेज है अथवा युनिवर्सिटी कहो, साथ-साथ सच्चा सत का संग भी है। सत कहा जाता है एक को। वह एक ही बार आते हैं। अब इस समय तुम सच-सच कहते हो कि हम सत के संग में हैं। तुम ब्राह्मण ही उस सत कहने वाले ज्ञान सागर के सम्मुख बैठे हो। गाया भी जाता है जो पिया के साथ है उनके लिये ज्ञान की बरसात है। पिया, पिता को कहा जाता है। तुम बच्चों के सम्मुख पिया की ज्ञान बरसात है। तुम बच्चे जानते हो बरोबर ज्ञान सागर, पतित-पावन अब हमारे सम्मुख है। हम पतित से पावन वा कांटे से फूल बन रहे हैं। फूल बन जायेंगे फिर यह शरीर नहीं रहेगा। कली भी आहिस्ते-आहिस्ते खिलती जाती है। फट से खिल नहीं जाती। खिलते-खिलते फिर कम्पलीट फूल बन जाती है। अभी कोई भी कम्पलीट फूल नहीं बने हैं। वह तो कर्मातीत अवस्था हो जाती है। देही-अभिमानी तो अन्त में ही बनना है। अभी तुम सबका पुरुषार्थ चल रहा है। बाप है पारलौकिक पिता। यह दोनों संगमयुग के अलौकिक मात-पिता ठहरे। कोई कांटे भी हैं, कोई कली भी हैं। कली को खिलने में टाइम लगता है। तुम सब नम्बरवार कलियां हो, फूल बनने वाले हो। कोई अच्छी रीति खिले हैं, कोई आधा। एक दिन कम्पलीट भी जरूर खिलेंगे। बगीचा तो है ना। जानते हो हम कांटे से कली तो बने हैं फिर फूल बन रहे हैं, पुरुषार्थ कर रहे हैं। कोई तो कली ही ख़त्म हो जाती है, कोई थोड़ा खिलकर ख़त्म हो जाते। माया के बड़े भारी तूफान आते हैं। सेन्टर्स खोलते भी कोई-कोई ख़त्म हो जाते हैं, गिर पड़ते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। यह है चटाबेटी - राम और रावण की। राम-राम कहा जाता है। ऐसे नहीं त्रेता वाले राम को याद करते हैं। यह राम-राम परमात्मा के लिये कहते हैं। रावण से राम की भेंट होती है। राम है बाप, रावण है दुश्मन माया। माया भी जबरदस्त है। यह खेल है एक-दो को फ़ारकती दिलाना। राम तुमको माया रावण से त्याग दिला रहे हैं। माया फिर तुमको बाप राम से त्याग दिलाती है। बाप कहते हैं देह सहित जो भी सम्बन्धी आदि देह के हैं, सबका बुद्धि से त्याग करो। सर्व धर्मानि..... मैं फलाना हूँ, फलाने धर्म का हूँ - यह भूल अपने स्वधर्म में टिको। देह के सब धर्म छोड़ अपने को अकेला समझो। इस दुनिया की हर एक चीज़ से त्याग दिलाते हैं। अशरीरी बन जाओ। मेरा बनकर और मेरे को याद करो। बाप को भूले तो माया का गोला लग जायेगा। बाप को याद करने का खूब पुरुषार्थ करते रहो। माया भी बड़ी जबरदस्त है। बाप का बनकर भी फिर माया त्याग दिलाकर बाप से छुड़ा देती है। बाप को शल कोई फारकती न दे। आधा-कल्प तुम मुझे याद करते आये हो। तुम ही सम्पूर्ण भक्त हो ना। भक्ति भी तुमने ही शुरू की है। तो बाप आकर माया से त्याग दिलाते हैं। कहते हैं अपने को आत्मा समझो। इस कपड़े को (देह को) भूलते जाओ। बस, अभी हमको जाना है। उस नाटक में भी एक्टर्स होते हैं। उनको भी मालूम रहता है - बस, अभी 5-10 मिनट बाद हमारा खेल पूरा होने का समय आया है, फिर हम घर चले जायेंगे। खेल पूरा होने के समय यह बुद्धि में रहता है, शुरू में नहीं। तुम भी समझते हो हमारे 84 जन्म पूरे हुए। बाकी कितना समय होगा? तुम कहेंगे हम कब स्वर्ग वा सुखधाम में जायेंगे? परन्तु बाप कहते हैं इस लाइफ को तो वैल्युबुल, अमूल्य कहा जाता है। तुम बड़ी भारी सर्विस करते हो श्रीमत पर। सिर्फ तुम पाण्डव ही श्रीमत पर चलते हो। गीता आदि में यह बातें नहीं हैं। यह बाबा बहुत ही शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है, गुरू किये हुए हैं। जो भी सब एक्टर्स की एक्टिविटीज़ हैं, उन सबको तुम जानते हो। शास्त्र तो बाद में बैठ बनाते हैं। वह क्या जानें? यह भी ड्रामा में खेल बना हुआ है। गीता-भागवत आदि सब अपने-अपने समय पर रिपीट होंगे। गीता है माई बाप। गीता को माता कहा जाता है। और कोई पुस्तक को माता नहीं कहेंगे। इनका नाम ही है गीता माता। अच्छा, उनको किसने रचा? पहले-पहले पुरुष स्त्री को एडाप्ट करते हैं ना। पुरुष शादी करते हैं तो मुख से कहते हैं यह मेरी स्त्री है। तो रचता हुए ना। फिर उनसे बच्चे होते हैं तो भी कहेंगे यह हमारे हैं। बच्चे भी कहेंगे यह हमारा बाप है। तुम भी बाबा की मुख वंशावली हो। कहते हो - बाबा, हम आपके हैं। इतना समय हम माया की मत पर चलते आये, अभी आपकी मत पर चलेंगे। माया कोई मुख से मत नहीं देती है। एक्ट ऐसी करते हैं, यहाँ तो बाप मुख से बैठ समझाते हैं।
तुम सब भारतवासी हो। जानते हो कि भारत ही सिरताज था। अभी दोनों ताज नहीं हैं। न होली, न अन-होली। गाया जाता है हर होलीनेस, हिज होलीनेस। स्त्री-पुरुष दोनों को कहते हैं। सन्यासियों को हिज़ होलीनेस कहते हैं। परन्तु प्रवृत्ति मार्ग है नहीं। प्रवृत्ति मार्ग में तो स्त्री-पुरुष दोनों पवित्र रहते हैं। सो तो सतयुग में दोनों पवित्र होते ही हैं, जिसको कम्पलीट पवित्र कहा जाता है। आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं। यहाँ पतित दुनिया में दोनों पवित्र तो हो न सके। तो अभी तुम बाप के सम्मुख सुन रहे हो, जिसको ज्ञान बरसात कहा जाता है। वह है विष की बरसात, यह है ज्ञान अमृत की बरसात। गाते हैं ना - अमृत छोड़ विष काहे को खाये। तुमको अब ज्ञान अमृत मिल रहा है। भक्ति मार्ग में तो ऐसे ही सिर्फ गाते रहते हैं। अभी तुमको प्रैक्टिकल में ज्ञान अमृत मिलता है, इससे ही अमृतसर नाम पड़ा है। बाकी तालाब तो ऐसे बहुत हैं। मानसरोवर भी है ना। मानसरोवर, मनुष्यों का सरोवर तो वह है नहीं। यह है ज्ञान अमृत का सरोवर, इनको ज्ञान मान-सरोवर भी कहा जाता है। ज्ञान सागर भी है। कोई नदियां हैं, कोई कैनाल्स हैं, कोई टुबके हैं। नम्बरवार हैं ना। बच्चे समझ गये हैं, कल्प पहले भी बाप ने समझाया था फिर अब समझा रहे हैं। तुम निश्चय करते हो हम बाबा से राजयोग सीख रहे हैं। जिससे कल्प पहले भी हम स्वर्ग के मालिक बने थे। प्रजा भी कहेगी हम मालिक हैं। भारतवासी कहते हैं ना हमारा भारत सबसे ऊंच था। अभी हमारा भारत सबसे नीच है। हमारा भारत बहुत श्रेष्ठाचारी था, अब हमारा भारत बहुत भ्रष्टाचारी हो गया है। और कोई खण्ड के लिये ऐसे नहीं कहेंगे। सभी धर्म वाले भी जानते हैं कि भारत प्राचीन था तब हम लोग नहीं थे। सतयुग में जरूर सिर्फ भारतवासी ही होंगे। गाते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत ही था और कोई धर्म नहीं था, नई दुनिया में नया भारत था। अभी पुराना भारत है। भारत हेविन था। परन्तु किसकी बुद्धि में पूरा बैठता नहीं है। यह तो बहुत सहज समझने की बात है। बाप तुमको समझा रहे हैं। तुम प्रैक्टिकल में कर्तव्य कर रहे हो। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सच्चा-सच्चा व्यास बनना है। सच्ची गीता सुनानी है। तुमको कोई पुस्तक आदि तो हाथ में उठाना नहीं है। तुम तो रूप-बसन्त हो। तुम्हारी आत्मा गीता का ज्ञान सुनती है बाप से। तुम्हारी बुद्धि में एक ही बाप है और कोई गुरू-गोसाई साधू-सन्त आदि तुम्हारी बुद्धि में नहीं हैं। तुम कहेंगे हम ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा से सुनते हैं, जिसको ही सत श्री अकाल कहा जाता है। अक्षर कितना मीठा है। अकाली लोग बड़ी जोर से कहते हैं सत श्री अकाल.......।
यहाँ तुम बच्चे ज्ञान डांस करते हो इसलिए कहा जाता है सच तो बिठो नच, (सच्चे हो तो खुशी में नाचते रहो) फिर तुम वहाँ जाकर रास-विलास करेंगे। मीरा भी ध्यान में रास आदि करती थी। परन्तु उसने भक्ति की। तुम कोई भक्ति नहीं करते हो। दिव्य दृष्टि दाता बाप स्वयं तुमको पढ़ा रहे हैं। बहुत बच्चे साक्षात्कार करते रहते हैं तो मनुष्य समझते हैं - यह तो जादू है। बच्चे पढ़ाई में घूमते-फिरते हैं ना। तुम्हारे लिये भी यह खेलपाल है। यह कोई सब्जेक्ट नहीं, इनके मार्क्स नहीं। खेलने-कूदने की मार्क्स नहीं होती हैं। यहाँ भी जो इस खेलपाल में रहते हैं, उनको ज्ञान की मार्क्स नहीं मिल सकती। यह तो खेलपाल है इसको अव्यक्त खेल कहा जाता है। वह व्यक्त खेल, यह अव्यक्त खेल। रास आदि करने वाले को मार्क्स नहीं मिलती हैं इसलिये बाबा कहते हैं ध्यान से ज्ञान अच्छा है, श्रेष्ठ है। ध्यान तो सिर्फ एम ऑब्जेक्ट का साक्षात्कार है। यह है ही राजयोग। एम ऑब्जेक्ट बुद्धि में है। वह तो इन आंखों से देखते हैं - हम फलाना बनेंगे। यहाँ तो यह तुम्हारी है भविष्य की एम ऑब्जेक्ट। प्रिन्स-प्रिन्सेज बनना है। फिर तुम महाराजा-महारानी बनते हो। बिगर एम ऑब्जेक्ट अगर कोई कॉलेज में बैठे तो उनको क्या कहेंगे? भारत में और जो सतसंग हैं उनमें कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। इसको युनिवर्सिटी भी कह सकते हैं, पाठशाला भी कह सकते हैं। सतसंग को कभी पाठशाला नहीं कहा जाता।
तुम बच्चे जानते हो हम पतित-पावन गॉड फादरली युनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। सारी युनिवर्स को तुम पवित्र स्वर्ग बनाते हो। अपने लिये ही इस युनिवर्स को स्वर्ग बनाते हो, जो बनायेंगे वही फिर राज्य करेंगे। ऐसे तो नहीं, सब स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जो पूरे नर्कवासी हैं, जिन्होंने द्वापर से भक्ति की है वही स्वर्गवासी होंगे। बाकी सब मनुष्य सरसों मिसल पीसकर ख़त्म होंगे, आत्मायें वापस बाप के पास जायेंगी। कितना बड़ा विनाश होना है! अभी तो बहुत प्रजा है। कितना बैठ गिनेंगे। एक्यूरेट गिनती कर न सकें। दुनिया में कितने मनुष्य हैं। यह सब ख़त्म हो जायेंगे। बच्चों को बनेन ट्री का भी मिसाल बताया गया है। कलकत्ते में बहुत बड़ा झाड़ है, उसमें थुर (फाउन्डेशन) है नहीं, बाकी सारा झाड़ खड़ा है। अभी देवी-देवता धर्म भी है परन्तु उनका नाम प्राय:लोप है। ऐसे नहीं कहेंगे कि फाउन्डेशन है ही नहीं, सड़ा हुआ भी कुछ न कुछ निशान तो रहेगा ना। प्राय:लोप का अर्थ ही है बाकी थोड़ा रहा है। चित्र हैं। भारत में लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। यह तो बड़ा सहज है परन्तु माया रावण बुद्धि को ताला लगा देती है। परमपिता परमात्मा है बुद्धिवानों की बुद्धि। मनुष्यों में बुद्धि है परन्तु ताला लगा हुआ है। पत्थरबुद्धि हो गये हैं। अब बाबा फिर से तुमको पारसबुद्धि बनाते हैं। आत्मा को बनाते हैं। बुद्धि आत्मा में रहती है ना। कहा जाता है ना - तुम तो पत्थर-बुद्धि, भैंस बुद्धि हो। यहाँ भी ऐसे है। कुछ भी समझाओ तो समझते नहीं, श्रीमत पर चलते नहीं। श्रीमत तो सदैव कहेगी - बच्चे, अन्धों की लाठी बनो। सुनना और फिर सुनाना है इसलिये सर्विस में दूर जाना भी पड़ता है। एक जगह बैठ तो नहीं जाना है।
अभी तुम ज्ञान और योग सीख रहे हो। यहाँ तुम शिवबाबा के सम्मुख बैठे हो। सहज राजयोग सीख रहे हो - वर्सा लेने के लिए। तुम आये हो विष्णुपुरी की राजधानी लेने के लिये। विष्णु की विजय माला बनेगी। अभी तुम ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझ गये हो। तुम जानते हो बरोबर डीटी सावरन्टी थी। सतयुग आदि में राजा-रानी थे। अभी कलियुग अन्त में तो राजा-रानी कोई भी कहला नहीं सकते। परन्तु गवर्मेन्ट को मदद करते हैं तो फिर महाराजा का टाइटिल मिल जाता है। वह गवर्मेन्ट भी टाइटिल देती थी राय साहेब, राय बहादुर आदि। अभी तो तुमको बड़ा टाइटिल मिल रहा है प्रैक्टिकल में। तुम हर होलीनेस, हिज होलीनेस महाराजा-महारानी बनेंगे। तुम पर डबल ताज है। पहले होता है होली राज्य फिर अनहोली राज्य। अभी फिर अनहोली, नो राज्य। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। ड्रामा को समझना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) रोज़ ज्ञान अमृत के मान-सरोवर में स्नान कर आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाना है। माया की मत छोड़ बाप की मत पर चलना है।
2) यह अमूल्य संगम का समय है, इस समय श्रीमत पर चल सर्विस करनी है। सच्चा व्यास बन सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। रूप-बसन्त बनना है।
वरदान:-
सम्बन्ध में सन्तुष्टता रूपी स्वच्छता को धारण कर सदा हल्के और खुश रहने वाले सच्चे पुरुषार्थी भव
सारे दिन में वैरायटी आत्माओं से संबंध होता है। उसमें चेक करो कि सारे दिन में स्वयं की सन्तुष्टता और सम्बन्ध में आने वाली दूसरी आत्माओं की सन्तुष्टता की परसेन्टेज कितनी रही? सन्तुष्टता की निशानी स्वयं भी मन से हल्के और खुश रहेंगे और दूसरे भी खुश रहेंगे। संबंध की स्वच्छता अर्थात् सन्तुष्टता यही सम्बन्ध की सच्चाई और सफाई है, इसलिए कहते हैं सच तो बिठो नच। सच्चा पुरुषार्थी खुशी में सदा नाचता रहेगा।
स्लोगन:-
जिन्हें किसी भी बात का गम नहीं, वही बेगमपुर के बेफिक्र बादशाह हैं।
26/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the play is now coming to an end and you have to return home. Therefore, continue to forget the costume of your body. Consider yourself to be a bodiless soul.
Question:
Which wonderful game only takes place at the confluence age and not in any other age?
Answer:
That of divorcing. Rama divorces you from Ravan. Ravan then divorces you from Rama. This is a very wonderful game. By forgetting the Father, you are shot by Maya. This is why the Father gives you the teachings: Children, stabilise in the religion of the self. Continue to forget your body and all bodily religions. Continue to make a lot of effort to have remembrance. Become soul conscious.
Song:
The rain of knowledge is for those who are with the Beloved.
Om Shanti
You sweetest children heard the song, numberwise, according to your efforts. It is said to be numberwise in every situation because this is a college or university. Together with that, it is a true satsang, the company of the Truth. Only the One is called the Truth. He only comes here once. At this time, you truly say that you are in the company of the Truth. Only you Brahmins personally sit in front of the Truth who is called the Ocean of Knowledge. It is sung: The rain of knowledge is for those who are with the Beloved. The Father is called the Beloved. The rain of knowledge is of the Beloved who is in front of you children. You children know that the Ocean of Knowledge, the Purifier, is now truly personally in front of you. We are becoming pure from impure, flowers from thorns. When we have become flowers, our bodies will not remain. Buds also open gradually; they don’t open instantly. They open gradually and become complete flowers. Now, no one has yet become a complete flower. That would be the karmateet stage. Only at the end will you become soul conscious. All of you are now continuing to make effort. The Father is the parlokik Father. These two are the alokik mother and father of the confluence age. Some are thorns and others are buds. It takes time for buds to open. All of you are numberwise buds who are to become flowers. Some are in full bloom and some have only half opened. One day, they will definitely open up completely. This is a garden. You know that you have become buds from thorns and are becoming flowers; you are now making effort. Some buds just die. Some bloom a little and then die. There are very strong storms of Maya. Even when centres open, some are finished quickly; they fall. Maya is very powerful. This is a tug of war between Rama and Ravan. It is said: Rama, Rama. It isn’t the Rama of the silver age they remember; they say “Rama, Rama” for God. Ravan is compared against Rama. Rama is the Father and Ravan is Maya, the enemy. Maya too is very powerful. This is a game of divorcing one another. Rama makes you renounce Maya, Ravan. Maya then makes you renounce the Father, Rama. The Father says: Make your intellect renounce your body and all your bodily relations. Renounce all bodily religions. Forget, “I am So-and-so and I belong to this religion”, and stabilise yourself in the religion of the self. Renounce all bodily religions and consider yourself to be alone. You are made to renounce everything of this world. Become bodiless. Belong to Me and remember Me. When you forget the Father, you are shot by Maya. Continue to make a lot of effort to remember the Father. Maya is also very powerful. After you belong to the Father, Maya makes you renounce everything and takes you away from the Father. No one should divorce the Father. For half the cycle, you have been remembering Me. Only you are complete devotees. You are the ones who started devotion. The Father comes and makes you renounce Maya. He says: Consider yourselves to be souls. Continue to forget those costume (bodies). That’s all! We now have to return home. There are actors in those plays too. They too are aware that in just five to ten minutes their play will come to an end and that they will then return home. This is in their intellects when the play is about to end, not at the beginning. You also understand that your 84 births have now come to an end. How much time now remains? You ask: When will we go to heaven or the land of happiness? However, the Father says: This is said to be an invaluable life. You are doing very important service by following shrimat. Only you Pandavas follow shrimat. These things are not mentioned in the Gita etc. This Baba has studied many scriptures etc. and adopted many gurus. You know the activities of all the actors. It is later that they sit and write the scriptures. What do they know? This play is predestined in the drama. The Gita and the Bhagawad will all repeat at their own time. The Gita is the mother and father. The Gita is said to be the mother. No other religious book would be called a mother. This is called the Mother Gita. Achcha, Who created it? First of all, a husband adopts a wife. When a man gets married, he says: This is my wife. So, he is a creator. Then, when they have children, he says: These are my children. The children would say: This is our father. You are the mouth-born creation of Baba. You say: Baba, we belong to You. For so long, we have continued to follow Maya's directions and we will now follow Your directions. Maya doesn't give you directions in words. Maya just makes you act in that way. The Father sits here and explains to you in words. All of you are residents of Bharat. You know that your Bharat was the crown. There are now neither of the crowns - neither the holy one nor the unholy one. It is said: Her Holiness, His Holiness. This is said to both men and women. ‘His Holiness’ is said to sannyasis. However, that is not the family path. On the family path, both husband and wife remain pure. In the golden age, both are pure anyway and that is called completely pure. Both the soul and body remain pure. Here, in the impure world, neither can be pure. So, you are now personally listening to the Father and this is called the rain of knowledge. That is the rain of poison and this is the rain of the nectar of knowledge. It is sung: Why should we renounce nectar and drink poison? You are now receiving the nectar of knowledge. On the path of devotion, they simply continue to sing this. You are now receiving the nectar of knowledge in a practical way. It is because of this that there is the name Amritsar (lake of nectar). However, there are many such lakes. There is also the Mansarovar lake - that is not a lake of human beings! This one is a lake of the nectar of knowledge and he is also called the Mansarovar of knowledge. There is also the Ocean of Knowledge. Some are rivers, some are canals and some are little ponds: it is numberwise. You children understand that the Father explained in the previous cycle and is now also explaining once again. You have the faith that you are studying Raja Yoga from Baba through which you became the masters of heaven in the previous cycle too. The subjects too would say that they are masters. The people of Bharat say that their Bharat was the highest of all. Our Bharat is now the lowest of all. Our Bharat used to be very elevated but our Bharat has now become very degraded. This would not be said of any other land. Those of all religions know that Bharat is an ancient land and that they didn't exist at that time. In the golden age, there would definitely be just the people of Bharat. It is remembered that 3000 years before Christ, there was just Bharat and no other religion. There was new Bharat in the new world. Bharat is now old. Bharat was heaven, but this doesn't sit in anyone's intellect fully. This is something that is very easy to understand. The Father is explaining to you. You perform this task in a practical way. You become the true Vyas, numberwise, according to your efforts. You have to relate the true Gita. You don't have to pick up any religious books in your hands. You are Rup and Basant. You souls are listening to the knowledge of the Gita from the Father. You have just the one Father in your intellects. You don't have any other gurus or sages or holy men in your intellects. You would say that you listen to the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, who is also called Sat Shri Akal. These words are so sweet. Akali people (Sikhs) say very loudly: Sat Shri Akal. Here, you children perform the dance of knowledge. This is why it is said: Those who have truth dance in happiness. Later, you will go there and dance in happiness. Meera used to dance in trance, but she was performing devotion. You do not perform devotion. The Father, the Bestower of Divine Vision, Himself, is teaching you. Many children continue to have visions and so people think: This is magic; children continue to wander around (in trance) while studying. That is just a game for you; that is not a subject. There are no marks in that. There are no marks for playing games. Here, too, those who continue to play games don't receive marks in knowledge. Those are games; they are called subtle games. Others are gross games whereas those are subtle games. Those who perform dances etc. don't receive marks. This is why Baba says: Knowledge is better than trance. It is elevated. In trance, there is just the vision of the aim and objective. This is Raja Yoga. You have the aim and objective in your intellects. They see with their eyes that they will become so-and-so. Here, this is your future aim and objective. You have to become princes and princesses. You then become emperors and empresses. What would someone who sits in a college without any aim or objective be called? No other spiritual gatherings in Bharat have an aim or objective. This can be called a university and also a school. A spiritual gathering (satsang) can never be called a school. You children know that you are studying in the Godfatherly University of the Purifier. You are making the whole universe into pure heaven. You are making this universe into heaven for yourselves. Those who make it like that will then rule there. It isn't that everyone will become a master of heaven. Those who have become complete residents of hell, who have performed devotion from the copper age, are the only ones who will become residents of heaven. All other human beings will be crushed like mustard seeds and destroyed and the souls will return home to the Father. Such a big destruction has to take place. There are now so many people. How many are you going to sit and count? No one can count this accurately. There are so many human beings in the world. All of them will be destroyed. The example of the banyan tree has been shown to you children. There is a very big tree in Calcutta; it has no foundation, but the rest of the tree is standing. The deity religion exists now but its name has disappeared. You wouldn't say that it has no foundation. There would at least be some name or trace of it, even if it is decayed. ‘Disappeared’ means that only a little bit of it remains. There are its images. Lakshmi and Narayan used to rule in Bharat. This is very easy, but Maya, Ravan, has locked their intellects. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Intellect of the Wise. Human beings have intellects, but they are locked. They have become those with stone intellects. Baba is now once again making you into those with divine intellects. He is making souls this. An intellect is in each soul. It is said: You have a stone intellect, you have a buffalo intellect. It is the same here. Whatever you explain, they don't understand. They don't follow shrimat. Shrimat always says: Children, become sticks for the blind. You have to listen to this and then relate it to others. This is why you have to travel far to serve others. You mustn't just sit down in one place. You are now studying knowledge and yoga. Here, you are personally sitting in front of Shiv Baba. You are studying easy Raja Yoga in order to claim your inheritance. You have come here to claim the kingdom of the land of Vishnu. The rosary of victory of Vishnu will be created. You have now understood the secrets of the drama very clearly. You know that there truly was the deity sovereignty. There were the king and queen at the beginning of the golden age. Now, at the end of the iron age, no one can be called a king or queen. However, when someone helps the Government, he receives the title of Maharaja. That Government used to give titles such as Rai Saheb, Rai Bahadur etc. You are now receiving great titles in a practical way. You will become Her Holiness, His Holiness, Emperor and Empress. You will have double crowns. First, there is the holy kingdom and then the unholy kingdom. Now it is unholy; there is no kingdom. It is the rule of the people by the people. The drama has to be understood. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Bathe daily in the Mansarovar lake of the nectar of knowledge and make both the soul and body pure. Renounce following the dictates of Maya and follow the directions of the Father.
2. This is the invaluable time of the confluence age. At this time, follow shrimat and do service. Become the true Vyas, listen to the true Gita and relate it to others. Become Rup and Basant.
Blessing:
May you be a true effort-maker and adopt cleanliness in the form of contentment in your relationships and thereby remains constantly light and happy.
Throughout the day, you come into some relationship with a variety of souls. Check in those what the percentage of contentment was in the self and in the other souls who came into some connection with you. The sign of contentment is that you yourself will be light and happy in your mind and others will also be happy. “Cleanliness in relationships” means contentment for it is honesty and cleanliness in relationships. This is why it is said that when there is truth, the soul dances. A true effort-maker will constantly continue to dance in happiness.
Slogan:
Those who have no sorrow about anything are carefree emperors of the land free from sorrow.
''मीठे बच्चे - अब नाटक पूरा होता है, घर चलना है इसलिये इस शरीर रूपी कपड़े को भूलते जाओ, अपने को अशरीरी आत्मा समझो''
प्रश्नः-
कौनसा वन्डरफुल खेल संगम पर ही चलता है, दूसरे युगों में नहीं?
उत्तर:-
फारकती दिलाने का। राम, रावण से फारकती दिलाते हैं। रावण फिर राम से फारकती दिला देते। यह बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाप को भूलने से माया का गोला लग जाता है इसीलिये बाप शिक्षा देते हैं - बच्चे, अपने स्वधर्म में टिको, देह सहित देह के सब धर्मों को भूलते जाओ। याद करने का खूब पुरुषार्थ करते रहो। देही-अभिमानी बनो।
गीत:-
जो पिया के साथ है........
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार गीत सुना। हरेक बात में नम्बरवार कहा जाता है क्योंकि यह कॉलेज है अथवा युनिवर्सिटी कहो, साथ-साथ सच्चा सत का संग भी है। सत कहा जाता है एक को। वह एक ही बार आते हैं। अब इस समय तुम सच-सच कहते हो कि हम सत के संग में हैं। तुम ब्राह्मण ही उस सत कहने वाले ज्ञान सागर के सम्मुख बैठे हो। गाया भी जाता है जो पिया के साथ है उनके लिये ज्ञान की बरसात है। पिया, पिता को कहा जाता है। तुम बच्चों के सम्मुख पिया की ज्ञान बरसात है। तुम बच्चे जानते हो बरोबर ज्ञान सागर, पतित-पावन अब हमारे सम्मुख है। हम पतित से पावन वा कांटे से फूल बन रहे हैं। फूल बन जायेंगे फिर यह शरीर नहीं रहेगा। कली भी आहिस्ते-आहिस्ते खिलती जाती है। फट से खिल नहीं जाती। खिलते-खिलते फिर कम्पलीट फूल बन जाती है। अभी कोई भी कम्पलीट फूल नहीं बने हैं। वह तो कर्मातीत अवस्था हो जाती है। देही-अभिमानी तो अन्त में ही बनना है। अभी तुम सबका पुरुषार्थ चल रहा है। बाप है पारलौकिक पिता। यह दोनों संगमयुग के अलौकिक मात-पिता ठहरे। कोई कांटे भी हैं, कोई कली भी हैं। कली को खिलने में टाइम लगता है। तुम सब नम्बरवार कलियां हो, फूल बनने वाले हो। कोई अच्छी रीति खिले हैं, कोई आधा। एक दिन कम्पलीट भी जरूर खिलेंगे। बगीचा तो है ना। जानते हो हम कांटे से कली तो बने हैं फिर फूल बन रहे हैं, पुरुषार्थ कर रहे हैं। कोई तो कली ही ख़त्म हो जाती है, कोई थोड़ा खिलकर ख़त्म हो जाते। माया के बड़े भारी तूफान आते हैं। सेन्टर्स खोलते भी कोई-कोई ख़त्म हो जाते हैं, गिर पड़ते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। यह है चटाबेटी - राम और रावण की। राम-राम कहा जाता है। ऐसे नहीं त्रेता वाले राम को याद करते हैं। यह राम-राम परमात्मा के लिये कहते हैं। रावण से राम की भेंट होती है। राम है बाप, रावण है दुश्मन माया। माया भी जबरदस्त है। यह खेल है एक-दो को फ़ारकती दिलाना। राम तुमको माया रावण से त्याग दिला रहे हैं। माया फिर तुमको बाप राम से त्याग दिलाती है। बाप कहते हैं देह सहित जो भी सम्बन्धी आदि देह के हैं, सबका बुद्धि से त्याग करो। सर्व धर्मानि..... मैं फलाना हूँ, फलाने धर्म का हूँ - यह भूल अपने स्वधर्म में टिको। देह के सब धर्म छोड़ अपने को अकेला समझो। इस दुनिया की हर एक चीज़ से त्याग दिलाते हैं। अशरीरी बन जाओ। मेरा बनकर और मेरे को याद करो। बाप को भूले तो माया का गोला लग जायेगा। बाप को याद करने का खूब पुरुषार्थ करते रहो। माया भी बड़ी जबरदस्त है। बाप का बनकर भी फिर माया त्याग दिलाकर बाप से छुड़ा देती है। बाप को शल कोई फारकती न दे। आधा-कल्प तुम मुझे याद करते आये हो। तुम ही सम्पूर्ण भक्त हो ना। भक्ति भी तुमने ही शुरू की है। तो बाप आकर माया से त्याग दिलाते हैं। कहते हैं अपने को आत्मा समझो। इस कपड़े को (देह को) भूलते जाओ। बस, अभी हमको जाना है। उस नाटक में भी एक्टर्स होते हैं। उनको भी मालूम रहता है - बस, अभी 5-10 मिनट बाद हमारा खेल पूरा होने का समय आया है, फिर हम घर चले जायेंगे। खेल पूरा होने के समय यह बुद्धि में रहता है, शुरू में नहीं। तुम भी समझते हो हमारे 84 जन्म पूरे हुए। बाकी कितना समय होगा? तुम कहेंगे हम कब स्वर्ग वा सुखधाम में जायेंगे? परन्तु बाप कहते हैं इस लाइफ को तो वैल्युबुल, अमूल्य कहा जाता है। तुम बड़ी भारी सर्विस करते हो श्रीमत पर। सिर्फ तुम पाण्डव ही श्रीमत पर चलते हो। गीता आदि में यह बातें नहीं हैं। यह बाबा बहुत ही शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है, गुरू किये हुए हैं। जो भी सब एक्टर्स की एक्टिविटीज़ हैं, उन सबको तुम जानते हो। शास्त्र तो बाद में बैठ बनाते हैं। वह क्या जानें? यह भी ड्रामा में खेल बना हुआ है। गीता-भागवत आदि सब अपने-अपने समय पर रिपीट होंगे। गीता है माई बाप। गीता को माता कहा जाता है। और कोई पुस्तक को माता नहीं कहेंगे। इनका नाम ही है गीता माता। अच्छा, उनको किसने रचा? पहले-पहले पुरुष स्त्री को एडाप्ट करते हैं ना। पुरुष शादी करते हैं तो मुख से कहते हैं यह मेरी स्त्री है। तो रचता हुए ना। फिर उनसे बच्चे होते हैं तो भी कहेंगे यह हमारे हैं। बच्चे भी कहेंगे यह हमारा बाप है। तुम भी बाबा की मुख वंशावली हो। कहते हो - बाबा, हम आपके हैं। इतना समय हम माया की मत पर चलते आये, अभी आपकी मत पर चलेंगे। माया कोई मुख से मत नहीं देती है। एक्ट ऐसी करते हैं, यहाँ तो बाप मुख से बैठ समझाते हैं।
तुम सब भारतवासी हो। जानते हो कि भारत ही सिरताज था। अभी दोनों ताज नहीं हैं। न होली, न अन-होली। गाया जाता है हर होलीनेस, हिज होलीनेस। स्त्री-पुरुष दोनों को कहते हैं। सन्यासियों को हिज़ होलीनेस कहते हैं। परन्तु प्रवृत्ति मार्ग है नहीं। प्रवृत्ति मार्ग में तो स्त्री-पुरुष दोनों पवित्र रहते हैं। सो तो सतयुग में दोनों पवित्र होते ही हैं, जिसको कम्पलीट पवित्र कहा जाता है। आत्मा और शरीर दोनों पवित्र रहते हैं। यहाँ पतित दुनिया में दोनों पवित्र तो हो न सके। तो अभी तुम बाप के सम्मुख सुन रहे हो, जिसको ज्ञान बरसात कहा जाता है। वह है विष की बरसात, यह है ज्ञान अमृत की बरसात। गाते हैं ना - अमृत छोड़ विष काहे को खाये। तुमको अब ज्ञान अमृत मिल रहा है। भक्ति मार्ग में तो ऐसे ही सिर्फ गाते रहते हैं। अभी तुमको प्रैक्टिकल में ज्ञान अमृत मिलता है, इससे ही अमृतसर नाम पड़ा है। बाकी तालाब तो ऐसे बहुत हैं। मानसरोवर भी है ना। मानसरोवर, मनुष्यों का सरोवर तो वह है नहीं। यह है ज्ञान अमृत का सरोवर, इनको ज्ञान मान-सरोवर भी कहा जाता है। ज्ञान सागर भी है। कोई नदियां हैं, कोई कैनाल्स हैं, कोई टुबके हैं। नम्बरवार हैं ना। बच्चे समझ गये हैं, कल्प पहले भी बाप ने समझाया था फिर अब समझा रहे हैं। तुम निश्चय करते हो हम बाबा से राजयोग सीख रहे हैं। जिससे कल्प पहले भी हम स्वर्ग के मालिक बने थे। प्रजा भी कहेगी हम मालिक हैं। भारतवासी कहते हैं ना हमारा भारत सबसे ऊंच था। अभी हमारा भारत सबसे नीच है। हमारा भारत बहुत श्रेष्ठाचारी था, अब हमारा भारत बहुत भ्रष्टाचारी हो गया है। और कोई खण्ड के लिये ऐसे नहीं कहेंगे। सभी धर्म वाले भी जानते हैं कि भारत प्राचीन था तब हम लोग नहीं थे। सतयुग में जरूर सिर्फ भारतवासी ही होंगे। गाते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत ही था और कोई धर्म नहीं था, नई दुनिया में नया भारत था। अभी पुराना भारत है। भारत हेविन था। परन्तु किसकी बुद्धि में पूरा बैठता नहीं है। यह तो बहुत सहज समझने की बात है। बाप तुमको समझा रहे हैं। तुम प्रैक्टिकल में कर्तव्य कर रहे हो। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सच्चा-सच्चा व्यास बनना है। सच्ची गीता सुनानी है। तुमको कोई पुस्तक आदि तो हाथ में उठाना नहीं है। तुम तो रूप-बसन्त हो। तुम्हारी आत्मा गीता का ज्ञान सुनती है बाप से। तुम्हारी बुद्धि में एक ही बाप है और कोई गुरू-गोसाई साधू-सन्त आदि तुम्हारी बुद्धि में नहीं हैं। तुम कहेंगे हम ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा से सुनते हैं, जिसको ही सत श्री अकाल कहा जाता है। अक्षर कितना मीठा है। अकाली लोग बड़ी जोर से कहते हैं सत श्री अकाल.......।
यहाँ तुम बच्चे ज्ञान डांस करते हो इसलिए कहा जाता है सच तो बिठो नच, (सच्चे हो तो खुशी में नाचते रहो) फिर तुम वहाँ जाकर रास-विलास करेंगे। मीरा भी ध्यान में रास आदि करती थी। परन्तु उसने भक्ति की। तुम कोई भक्ति नहीं करते हो। दिव्य दृष्टि दाता बाप स्वयं तुमको पढ़ा रहे हैं। बहुत बच्चे साक्षात्कार करते रहते हैं तो मनुष्य समझते हैं - यह तो जादू है। बच्चे पढ़ाई में घूमते-फिरते हैं ना। तुम्हारे लिये भी यह खेलपाल है। यह कोई सब्जेक्ट नहीं, इनके मार्क्स नहीं। खेलने-कूदने की मार्क्स नहीं होती हैं। यहाँ भी जो इस खेलपाल में रहते हैं, उनको ज्ञान की मार्क्स नहीं मिल सकती। यह तो खेलपाल है इसको अव्यक्त खेल कहा जाता है। वह व्यक्त खेल, यह अव्यक्त खेल। रास आदि करने वाले को मार्क्स नहीं मिलती हैं इसलिये बाबा कहते हैं ध्यान से ज्ञान अच्छा है, श्रेष्ठ है। ध्यान तो सिर्फ एम ऑब्जेक्ट का साक्षात्कार है। यह है ही राजयोग। एम ऑब्जेक्ट बुद्धि में है। वह तो इन आंखों से देखते हैं - हम फलाना बनेंगे। यहाँ तो यह तुम्हारी है भविष्य की एम ऑब्जेक्ट। प्रिन्स-प्रिन्सेज बनना है। फिर तुम महाराजा-महारानी बनते हो। बिगर एम ऑब्जेक्ट अगर कोई कॉलेज में बैठे तो उनको क्या कहेंगे? भारत में और जो सतसंग हैं उनमें कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। इसको युनिवर्सिटी भी कह सकते हैं, पाठशाला भी कह सकते हैं। सतसंग को कभी पाठशाला नहीं कहा जाता।
तुम बच्चे जानते हो हम पतित-पावन गॉड फादरली युनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। सारी युनिवर्स को तुम पवित्र स्वर्ग बनाते हो। अपने लिये ही इस युनिवर्स को स्वर्ग बनाते हो, जो बनायेंगे वही फिर राज्य करेंगे। ऐसे तो नहीं, सब स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जो पूरे नर्कवासी हैं, जिन्होंने द्वापर से भक्ति की है वही स्वर्गवासी होंगे। बाकी सब मनुष्य सरसों मिसल पीसकर ख़त्म होंगे, आत्मायें वापस बाप के पास जायेंगी। कितना बड़ा विनाश होना है! अभी तो बहुत प्रजा है। कितना बैठ गिनेंगे। एक्यूरेट गिनती कर न सकें। दुनिया में कितने मनुष्य हैं। यह सब ख़त्म हो जायेंगे। बच्चों को बनेन ट्री का भी मिसाल बताया गया है। कलकत्ते में बहुत बड़ा झाड़ है, उसमें थुर (फाउन्डेशन) है नहीं, बाकी सारा झाड़ खड़ा है। अभी देवी-देवता धर्म भी है परन्तु उनका नाम प्राय:लोप है। ऐसे नहीं कहेंगे कि फाउन्डेशन है ही नहीं, सड़ा हुआ भी कुछ न कुछ निशान तो रहेगा ना। प्राय:लोप का अर्थ ही है बाकी थोड़ा रहा है। चित्र हैं। भारत में लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। यह तो बड़ा सहज है परन्तु माया रावण बुद्धि को ताला लगा देती है। परमपिता परमात्मा है बुद्धिवानों की बुद्धि। मनुष्यों में बुद्धि है परन्तु ताला लगा हुआ है। पत्थरबुद्धि हो गये हैं। अब बाबा फिर से तुमको पारसबुद्धि बनाते हैं। आत्मा को बनाते हैं। बुद्धि आत्मा में रहती है ना। कहा जाता है ना - तुम तो पत्थर-बुद्धि, भैंस बुद्धि हो। यहाँ भी ऐसे है। कुछ भी समझाओ तो समझते नहीं, श्रीमत पर चलते नहीं। श्रीमत तो सदैव कहेगी - बच्चे, अन्धों की लाठी बनो। सुनना और फिर सुनाना है इसलिये सर्विस में दूर जाना भी पड़ता है। एक जगह बैठ तो नहीं जाना है।
अभी तुम ज्ञान और योग सीख रहे हो। यहाँ तुम शिवबाबा के सम्मुख बैठे हो। सहज राजयोग सीख रहे हो - वर्सा लेने के लिए। तुम आये हो विष्णुपुरी की राजधानी लेने के लिये। विष्णु की विजय माला बनेगी। अभी तुम ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझ गये हो। तुम जानते हो बरोबर डीटी सावरन्टी थी। सतयुग आदि में राजा-रानी थे। अभी कलियुग अन्त में तो राजा-रानी कोई भी कहला नहीं सकते। परन्तु गवर्मेन्ट को मदद करते हैं तो फिर महाराजा का टाइटिल मिल जाता है। वह गवर्मेन्ट भी टाइटिल देती थी राय साहेब, राय बहादुर आदि। अभी तो तुमको बड़ा टाइटिल मिल रहा है प्रैक्टिकल में। तुम हर होलीनेस, हिज होलीनेस महाराजा-महारानी बनेंगे। तुम पर डबल ताज है। पहले होता है होली राज्य फिर अनहोली राज्य। अभी फिर अनहोली, नो राज्य। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। ड्रामा को समझना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) रोज़ ज्ञान अमृत के मान-सरोवर में स्नान कर आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाना है। माया की मत छोड़ बाप की मत पर चलना है।
2) यह अमूल्य संगम का समय है, इस समय श्रीमत पर चल सर्विस करनी है। सच्चा व्यास बन सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। रूप-बसन्त बनना है।
वरदान:-
सम्बन्ध में सन्तुष्टता रूपी स्वच्छता को धारण कर सदा हल्के और खुश रहने वाले सच्चे पुरुषार्थी भव
सारे दिन में वैरायटी आत्माओं से संबंध होता है। उसमें चेक करो कि सारे दिन में स्वयं की सन्तुष्टता और सम्बन्ध में आने वाली दूसरी आत्माओं की सन्तुष्टता की परसेन्टेज कितनी रही? सन्तुष्टता की निशानी स्वयं भी मन से हल्के और खुश रहेंगे और दूसरे भी खुश रहेंगे। संबंध की स्वच्छता अर्थात् सन्तुष्टता यही सम्बन्ध की सच्चाई और सफाई है, इसलिए कहते हैं सच तो बिठो नच। सच्चा पुरुषार्थी खुशी में सदा नाचता रहेगा।
स्लोगन:-
जिन्हें किसी भी बात का गम नहीं, वही बेगमपुर के बेफिक्र बादशाह हैं।
26/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the play is now coming to an end and you have to return home. Therefore, continue to forget the costume of your body. Consider yourself to be a bodiless soul.
Question:
Which wonderful game only takes place at the confluence age and not in any other age?
Answer:
That of divorcing. Rama divorces you from Ravan. Ravan then divorces you from Rama. This is a very wonderful game. By forgetting the Father, you are shot by Maya. This is why the Father gives you the teachings: Children, stabilise in the religion of the self. Continue to forget your body and all bodily religions. Continue to make a lot of effort to have remembrance. Become soul conscious.
Song:
The rain of knowledge is for those who are with the Beloved.
Om Shanti
You sweetest children heard the song, numberwise, according to your efforts. It is said to be numberwise in every situation because this is a college or university. Together with that, it is a true satsang, the company of the Truth. Only the One is called the Truth. He only comes here once. At this time, you truly say that you are in the company of the Truth. Only you Brahmins personally sit in front of the Truth who is called the Ocean of Knowledge. It is sung: The rain of knowledge is for those who are with the Beloved. The Father is called the Beloved. The rain of knowledge is of the Beloved who is in front of you children. You children know that the Ocean of Knowledge, the Purifier, is now truly personally in front of you. We are becoming pure from impure, flowers from thorns. When we have become flowers, our bodies will not remain. Buds also open gradually; they don’t open instantly. They open gradually and become complete flowers. Now, no one has yet become a complete flower. That would be the karmateet stage. Only at the end will you become soul conscious. All of you are now continuing to make effort. The Father is the parlokik Father. These two are the alokik mother and father of the confluence age. Some are thorns and others are buds. It takes time for buds to open. All of you are numberwise buds who are to become flowers. Some are in full bloom and some have only half opened. One day, they will definitely open up completely. This is a garden. You know that you have become buds from thorns and are becoming flowers; you are now making effort. Some buds just die. Some bloom a little and then die. There are very strong storms of Maya. Even when centres open, some are finished quickly; they fall. Maya is very powerful. This is a tug of war between Rama and Ravan. It is said: Rama, Rama. It isn’t the Rama of the silver age they remember; they say “Rama, Rama” for God. Ravan is compared against Rama. Rama is the Father and Ravan is Maya, the enemy. Maya too is very powerful. This is a game of divorcing one another. Rama makes you renounce Maya, Ravan. Maya then makes you renounce the Father, Rama. The Father says: Make your intellect renounce your body and all your bodily relations. Renounce all bodily religions. Forget, “I am So-and-so and I belong to this religion”, and stabilise yourself in the religion of the self. Renounce all bodily religions and consider yourself to be alone. You are made to renounce everything of this world. Become bodiless. Belong to Me and remember Me. When you forget the Father, you are shot by Maya. Continue to make a lot of effort to remember the Father. Maya is also very powerful. After you belong to the Father, Maya makes you renounce everything and takes you away from the Father. No one should divorce the Father. For half the cycle, you have been remembering Me. Only you are complete devotees. You are the ones who started devotion. The Father comes and makes you renounce Maya. He says: Consider yourselves to be souls. Continue to forget those costume (bodies). That’s all! We now have to return home. There are actors in those plays too. They too are aware that in just five to ten minutes their play will come to an end and that they will then return home. This is in their intellects when the play is about to end, not at the beginning. You also understand that your 84 births have now come to an end. How much time now remains? You ask: When will we go to heaven or the land of happiness? However, the Father says: This is said to be an invaluable life. You are doing very important service by following shrimat. Only you Pandavas follow shrimat. These things are not mentioned in the Gita etc. This Baba has studied many scriptures etc. and adopted many gurus. You know the activities of all the actors. It is later that they sit and write the scriptures. What do they know? This play is predestined in the drama. The Gita and the Bhagawad will all repeat at their own time. The Gita is the mother and father. The Gita is said to be the mother. No other religious book would be called a mother. This is called the Mother Gita. Achcha, Who created it? First of all, a husband adopts a wife. When a man gets married, he says: This is my wife. So, he is a creator. Then, when they have children, he says: These are my children. The children would say: This is our father. You are the mouth-born creation of Baba. You say: Baba, we belong to You. For so long, we have continued to follow Maya's directions and we will now follow Your directions. Maya doesn't give you directions in words. Maya just makes you act in that way. The Father sits here and explains to you in words. All of you are residents of Bharat. You know that your Bharat was the crown. There are now neither of the crowns - neither the holy one nor the unholy one. It is said: Her Holiness, His Holiness. This is said to both men and women. ‘His Holiness’ is said to sannyasis. However, that is not the family path. On the family path, both husband and wife remain pure. In the golden age, both are pure anyway and that is called completely pure. Both the soul and body remain pure. Here, in the impure world, neither can be pure. So, you are now personally listening to the Father and this is called the rain of knowledge. That is the rain of poison and this is the rain of the nectar of knowledge. It is sung: Why should we renounce nectar and drink poison? You are now receiving the nectar of knowledge. On the path of devotion, they simply continue to sing this. You are now receiving the nectar of knowledge in a practical way. It is because of this that there is the name Amritsar (lake of nectar). However, there are many such lakes. There is also the Mansarovar lake - that is not a lake of human beings! This one is a lake of the nectar of knowledge and he is also called the Mansarovar of knowledge. There is also the Ocean of Knowledge. Some are rivers, some are canals and some are little ponds: it is numberwise. You children understand that the Father explained in the previous cycle and is now also explaining once again. You have the faith that you are studying Raja Yoga from Baba through which you became the masters of heaven in the previous cycle too. The subjects too would say that they are masters. The people of Bharat say that their Bharat was the highest of all. Our Bharat is now the lowest of all. Our Bharat used to be very elevated but our Bharat has now become very degraded. This would not be said of any other land. Those of all religions know that Bharat is an ancient land and that they didn't exist at that time. In the golden age, there would definitely be just the people of Bharat. It is remembered that 3000 years before Christ, there was just Bharat and no other religion. There was new Bharat in the new world. Bharat is now old. Bharat was heaven, but this doesn't sit in anyone's intellect fully. This is something that is very easy to understand. The Father is explaining to you. You perform this task in a practical way. You become the true Vyas, numberwise, according to your efforts. You have to relate the true Gita. You don't have to pick up any religious books in your hands. You are Rup and Basant. You souls are listening to the knowledge of the Gita from the Father. You have just the one Father in your intellects. You don't have any other gurus or sages or holy men in your intellects. You would say that you listen to the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, who is also called Sat Shri Akal. These words are so sweet. Akali people (Sikhs) say very loudly: Sat Shri Akal. Here, you children perform the dance of knowledge. This is why it is said: Those who have truth dance in happiness. Later, you will go there and dance in happiness. Meera used to dance in trance, but she was performing devotion. You do not perform devotion. The Father, the Bestower of Divine Vision, Himself, is teaching you. Many children continue to have visions and so people think: This is magic; children continue to wander around (in trance) while studying. That is just a game for you; that is not a subject. There are no marks in that. There are no marks for playing games. Here, too, those who continue to play games don't receive marks in knowledge. Those are games; they are called subtle games. Others are gross games whereas those are subtle games. Those who perform dances etc. don't receive marks. This is why Baba says: Knowledge is better than trance. It is elevated. In trance, there is just the vision of the aim and objective. This is Raja Yoga. You have the aim and objective in your intellects. They see with their eyes that they will become so-and-so. Here, this is your future aim and objective. You have to become princes and princesses. You then become emperors and empresses. What would someone who sits in a college without any aim or objective be called? No other spiritual gatherings in Bharat have an aim or objective. This can be called a university and also a school. A spiritual gathering (satsang) can never be called a school. You children know that you are studying in the Godfatherly University of the Purifier. You are making the whole universe into pure heaven. You are making this universe into heaven for yourselves. Those who make it like that will then rule there. It isn't that everyone will become a master of heaven. Those who have become complete residents of hell, who have performed devotion from the copper age, are the only ones who will become residents of heaven. All other human beings will be crushed like mustard seeds and destroyed and the souls will return home to the Father. Such a big destruction has to take place. There are now so many people. How many are you going to sit and count? No one can count this accurately. There are so many human beings in the world. All of them will be destroyed. The example of the banyan tree has been shown to you children. There is a very big tree in Calcutta; it has no foundation, but the rest of the tree is standing. The deity religion exists now but its name has disappeared. You wouldn't say that it has no foundation. There would at least be some name or trace of it, even if it is decayed. ‘Disappeared’ means that only a little bit of it remains. There are its images. Lakshmi and Narayan used to rule in Bharat. This is very easy, but Maya, Ravan, has locked their intellects. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Intellect of the Wise. Human beings have intellects, but they are locked. They have become those with stone intellects. Baba is now once again making you into those with divine intellects. He is making souls this. An intellect is in each soul. It is said: You have a stone intellect, you have a buffalo intellect. It is the same here. Whatever you explain, they don't understand. They don't follow shrimat. Shrimat always says: Children, become sticks for the blind. You have to listen to this and then relate it to others. This is why you have to travel far to serve others. You mustn't just sit down in one place. You are now studying knowledge and yoga. Here, you are personally sitting in front of Shiv Baba. You are studying easy Raja Yoga in order to claim your inheritance. You have come here to claim the kingdom of the land of Vishnu. The rosary of victory of Vishnu will be created. You have now understood the secrets of the drama very clearly. You know that there truly was the deity sovereignty. There were the king and queen at the beginning of the golden age. Now, at the end of the iron age, no one can be called a king or queen. However, when someone helps the Government, he receives the title of Maharaja. That Government used to give titles such as Rai Saheb, Rai Bahadur etc. You are now receiving great titles in a practical way. You will become Her Holiness, His Holiness, Emperor and Empress. You will have double crowns. First, there is the holy kingdom and then the unholy kingdom. Now it is unholy; there is no kingdom. It is the rule of the people by the people. The drama has to be understood. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Bathe daily in the Mansarovar lake of the nectar of knowledge and make both the soul and body pure. Renounce following the dictates of Maya and follow the directions of the Father.
2. This is the invaluable time of the confluence age. At this time, follow shrimat and do service. Become the true Vyas, listen to the true Gita and relate it to others. Become Rup and Basant.
Blessing:
May you be a true effort-maker and adopt cleanliness in the form of contentment in your relationships and thereby remains constantly light and happy.
Throughout the day, you come into some relationship with a variety of souls. Check in those what the percentage of contentment was in the self and in the other souls who came into some connection with you. The sign of contentment is that you yourself will be light and happy in your mind and others will also be happy. “Cleanliness in relationships” means contentment for it is honesty and cleanliness in relationships. This is why it is said that when there is truth, the soul dances. A true effort-maker will constantly continue to dance in happiness.
Slogan:
Those who have no sorrow about anything are carefree emperors of the land free from sorrow.
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