Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 25th Sep 2018 )
25-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - जब तक आत्मा पार्ट में है तब तक उसे 100 परसेन्ट रेस्ट मिल नहीं सकती, रेस्ट मिलती है निर्वाणधाम में, वहाँ कोई पार्ट नहीं''
प्रश्न:
जो बच्चे चलते-चलते पढ़ाई से थक जाते हैं उन्हें फिर कौन से संकल्प आते हैं जो विकल्प का रूप ले लेते हैं?
उत्तर:
1. उन्हें बाप को छोड़ देने के अर्थात् फारकती देने के संकल्प आते हैं। बाबा कहते - यह संकल्प आना भी विकल्प है। ऐसा संकल्प करना भी पाप है। पढ़ाई न पढ़ना माना ही थक जाना। ऐसे बच्चे अपना खाना खराब कर देते हैं। 2. अगर किसी बात के कारण कोई मात-पिता से रूठ जाते हैं तो वह 21 जन्मों की बादशाही गंवा देते हैं।
गीत:-
आज अन्धेरे में हैं इंसान....
ओम् शान्ति।
यह है भक्ति का गीत वा प्रार्थना। किसके पास प्रार्थना करते हैं? भगवान् के पास। परन्तु घोर अन्धियारे में होने कारण भगवान् को जानते ही नहीं। तो अब सुने कौन? जब भगवान् उन्हों की पुकार सुने तब आकर ज्योति जगाये। परन्तु बच्चे भगवान् को जानते ही नहीं तो सुनेंगे फिर कैसे? अभी तुम सम्मुख बैठे हो, भगवान् तुमको घोर अन्धियारे से घोर सोझरे में ले जा रहे हैं। गाते भी हैं ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन। रात में दर-दर भटकते भी बहुत हैं। पहाड़ों पर, टिकाणे, मन्दिरों, मस्जिदों मे जाते हैं। परन्तु भगवान् मिलेगा कहाँ? भगवान् का जन्म भी भारत में मनाते हैं। शिव रात्रि कहते हैं ना। बरोबर उनकी यादगार प्रतिमायें भी भारत में हैं। परन्तु समझते नहीं कि वह कब आते हैं! बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम घोर अन्धियारे में नहीं हो। तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सोझरे में आते जाते हो। तुम बच्चे जानते हो यह सारी सृष्टि की रचना कौन और कैसे करते हैं।
तुम यहाँ आये हो - ईश्वरीय विश्वविद्यालय में, जहाँ ईश्वर पढ़ाते हैं, मनुष्य से देवता बनाते हैं। यह नॉलेज तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते हैं। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई पूरा नहीं समझने वाले भागन्ती हो जाते हैं, मात-पिता से रूठ पड़ते हैं। जिनके लिए गाया हुआ है - आश्चर्यवत् ऐसे मात-पिता से रूठ पड़ते हैं। पशन्ती, कथन्ती फिर रूठ पड़न्ती.... जानते हैं मात-पिता से हमको 21 जन्म लिए स्वर्ग की बादशाही मिलती है, फिर भी भूल जाते हैं। बाबा ने समझाया है - जिसको शान्ति कहा जाता है वह मिलती ही है शान्तिधाम अथवा निर्वाणधाम में, उसको मुक्तिधाम भी कहा जाता है। अगर कोई कहे हम 100 परसेन्ट रेस्ट में हैं, परन्तु यह अक्षर कोई है नहीं। सारे दिन में कोई न कोई कर्म जरूर चलता है। हाँ, अल्पकाल के लिए रात के नींद को रेस्ट कहते हैं क्योंकि आत्मा कहती है मैं सारा दिन काम करके थक गयी हूँ, अब रेस्ट लेती हूँ। अपने को डिटैच कर देते हैं। यह तो जानते हो - बाप रहते ही हैं शान्ति-देश में या ऐसे समझते हो कि परमपिता परमात्मा वहाँ रेस्ट में रहते हैं। परमात्मा रेस्ट में तब रहते हैं जब उनका पार्ट नहीं है। मुक्तिधाम में कोई काम नहीं करते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुलता जाता है। बाप कहते हैं तुमको पता है मैं रेस्ट में कब रहता हूँ? जबकि तुम बच्चे स्वर्ग में, सुख में रहते हो। वहाँ तुमको सुख-शान्ति है। उसको रेस्ट नहीं कहा जायेगा। रेस्ट में तब कहें जब तुम्हारा कोई पार्ट नहीं है। तुम जब स्वर्ग में हो तो मुझे कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। मैं वहाँ (घर में) शान्त में रहता हूँ, शान्ति का दूसरा अक्षर वहाँ रेस्ट कहेंगे। यहाँ तो रेस्ट में रह नहीं सकते हैं। आत्मा कहती है - मैं रेस्ट में तब हूँ जबकि रात को नींद करती हूँ, उस समय रेस्ट में हूँ या शान्त में हूँ - बात एक ही है। रात को अशरीरी बन जाते हैं, शान्त हो जाते हैं। फिर उठते हैं तो कर्म में आते हैं फिर भी अन-रेस्ट है। कर्म करते अन-रेस्ट भासती है। सतयुग में अन-रेस्ट का सवाल नहीं, अन-रेस्ट करती है माया। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि हम रेस्ट में रहते हैं। काम-काज सब करते हैं परन्तु अशान्त नहीं रहते हैं। बाकी रेस्ट अक्षर है नहीं। समझो कोई कहते हैं हम शिमला जाते हैं रेस्ट के लिए, परन्तु रेस्ट का अर्थ नहीं। सच्ची रेस्ट तब है जब हम निर्वाणधाम में रहते हैं, वहाँ चुप रहते हैं। बाकी रेस्ट कोई को नहीं है। कोई कहे हमको 100 परसेन्ट रेस्ट है तो यह रांग है। इसको अज्ञान कहा जाए। हाँ, यह जरूर कहा जायेगा - पढ़ाई नहीं पढ़ने चाहते तो रेस्ट लेते हैं। न पढ़ना, रेस्ट लेना यह तो फिर थकना हो गया। अपना ही खाना खराब करते हैं।
समझाया जाता है - हे रात के राही, स्वर्ग की राह पर चलते-चलते थक मत जाना, रूठ नहीं जाना। मात-पिता को फ़ारकती देने का तो संकल्प भी नहीं उठाना चाहिए। यह संकल्प उठाया तो उसको विकल्प कहा जाता है। ऐसे मात-पिता जिससे स्वर्ग की राजाई मिलती है, उसके लिए संकल्प भी क्यों उठायें! लिखते हैं कभी-कभी संकल्प आता है - छोड़ दें, कुछ समझ में नहीं आता। अरे, समझने का तो यह टाइम है ना। समझना अर्थात् पढ़ना, तुम जानते हो हम पढ़ रहे हैं। परमपिता परमात्मा जो ज्ञान सागर है, ऊंच ते ऊंच है उनको कोई भी जानते नहीं। भल ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अथवा लक्ष्मी-नारायण को जानते हैं परन्तु भारतवासियों को यह पता नहीं कि लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कब लिया और किसने दिया? माया ने बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में डाल दिया है। बाप आकर समझाते हैं - रचता बाप मनुष्य सृष्टि की रचना कैसे करते हैं? यह तो कोई भी नहीं जानते। बाप ही बैठ समझाते हैं प्रजापिता ब्रह्मा को क्रियेटर नहीं कहेंगे। भल प्रजापिता कहा जाता है परन्तु वह रचता नहीं। मनुष्य कहते हैं हमको अल्लाह ने पैदा किया। निराकार फादर को ही रचता कहेंगे। रचता बाप को जरूर मनुष्य ही जानेंगे, जानवर तो नहीं जानेंगे। जानवर तो मुख से नहीं कहेगा कि हमको परमात्मा ने रचा है। मनुष्य कहेंगे हमको भगवान् ने रचा है। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम देखो यह रचना कैसे रची? पहले-पहले रचना होती है मुख वंशावली की। बच्चे को बड़ा होकर फिर बाप बनना है। यह बेहद का बाप कहते हैं - देखो, मैं भी कैसे रचना रचता हूँ। इनमें प्रवेश कर इनको मुख द्वारा कहता हूँ - हे आत्मा, तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा बाप हूँ। फिर इनके द्वारा तुम बच्चों को रचता हूँ। तुम हो मुख वंशावली। अज्ञान काल में भी कहते हैं ना जैसे हैं, तैसे हैं, मेरे हैं। बाप भी ऐसे कहते हैं। तुम ब्रह्मा के बच्चे बन जाते हो। तो अभी तुम हो मुख वंशावली फिर तुम कुख वंशावली भी बनेंगे। बाप कहते हैं तुम मेरे हो फिर तुम दैवी घराने में जायेंगे। बाप यह ईश्वरीय रचना कैसे रचते हैं - यह कोई भी समझ नहीं सकते। बाप समझाते हैं यह (ब्रह्मा) भी कहते हैं मैं भी मुख वंशावली बनता हूँ। बाप के साथ माँ जरूर चाहिए। तुम कहते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली हैं, शिवबाबा ने हमको अपना बनाया है। उनको शरीर तो चाहिए ना। शिवबाबा को तो शरीर नहीं है। शरीर का लोन लेते हैं। फिर कहते हैं तुम मेरे हो, इसको कहा जाता है मुख वंशावली। शिवबाबा इस मुख से, इस वन्नी (स्त्री) द्वारा कहते हैं कि तुम मेरे बच्चे हो। बाप ही समझाते हैं और कोई शास्त्रों आदि में यह बातें हैं नहीं। तुम अभी सुनते हो फिर प्राय:लोप हो जायेगा।
इस समय है घोर अन्धियारा। बाप आकर रोशनी करते हैं तब तो ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन गाया हुआ है। कुछ तो है ना। गाया हुआ है झूठ तो झूठ, सच की रत्ती नहीं। परन्तु बाप कहते हैं - प्राय: कुछ न कुछ रहता है, प्रलय नहीं हो जाती। थोड़े रहेंगे फिर झाड़ वृद्धि को पाता है। मनुष्यों ने फिर महाप्रलय दिखाई है। परन्तु महाप्रलय कभी होती नहीं। ऐसे नहीं होता जो सागर में बच्चा पीपल के पत्ते पर आये, यह सब गपोड़े हैं। बाप ने समझाया है तुम जब गर्भ महल से आते हो तो वहाँ आनंद में रहते हो। वहाँ दु:ख, पाप कर्म होता नहीं। वह है ही पुण्य आत्माओं की दुनिया, यह है पाप की दुनिया। यहाँ सब कुछ त्याग कर तुम सदा पुण्य आत्मा बनते हो। तुम इतना पुण्य करते हो जो आधाकल्प तुमको कोई पाप आत्मा नहीं कहेंगे। तुम अविनाशी पुण्य आत्मा बन जाते हो। यहाँ फिर आधाकल्प पाप आत्मा कहेंगे। घड़ी-घड़ी दान-पुण्य करते रहते हैं। भारत को कम्पलीट धर्मात्मा कहा जाता है। भारत में दान-पुण्य करते हैं। तुम जानते हो यह दुनिया हम छोड़ने वाले हैं, फिर आना नहीं है। इस दुनिया की सामग्री तुम ट्रान्सफर करते हो नई दुनिया के लिए। मनुष्य ईश्वर अर्पणम् करते हैं अर्थात् ट्रान्सफर करते हैं दूसरे जन्म के लिए। यहाँ तुम ट्रान्सफर करते हो - 21 जन्मों के लिए। तो बहुत चाहिए ना। तुमसे सारी किचड़-पट्टी लेकर नया देते हैं। पुराना लेकर सोने का देते हैं। तुम सच्चाई से बाप को देते हो, बाप भी तुमको सब कुछ देते हैं। तुम्हारा पार्ट जो चलता आया है - यह ड्रामा में था, सबने घरबार छोड़ा। नहीं तो गऊशाला कैसे बने? मनुष्य तो नहीं जानते, भट्ठी कैसे बनती है! वह तो दिखाते हैं - बिल्ली के पूँगरे आदि थे।
यह सब ज्ञान तुम बच्चों को अभी है। फिर वहाँ यह ज्ञान नहीं रहेगा। हम ऐसे 21 जन्म राज्य करेंगे फिर गिरेंगे - वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। त्रिकालदर्शीपने का पार्ट तुम्हारे में अभी रहता है। मुख्य हीरो हीरोइन का पार्ट तुम्हारा ही है। और कोई का पार्ट नहीं। असुर से देवता फिर देवता से असुर तुम भारतवासी ही बनते हो। बाकी तो है बीच के बाइप्लाट्स। नाटक में बीच में फिर हंसी-कुड़ी का खेल भी करते हैं ना। आधाकल्प बाद देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो जाता है। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा चक्र फिरता रहता है तब तो तुम समझाते हो ना। परमपिता परमात्मा भी परम आत्मा है, परमधाम में रहने वाला। बाप कहते हैं मेरे में सारा ज्ञान है। मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य हूँ। वह तो जड़ बीज होते हैं, शिव तो चैतन्य है। उनकी प्रतिमा पूजी जाती है।
आजकल गवर्मेन्ट झाड़ों के सैपलिंग लगाती है। यह है चैतन्य बीज, मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीज कहते हैं - मुझे सारे झाड़ की नॉलेज है। तो जब कोई कहते हैं 100 परसेन्ट रेस्ट में हैं, तो समझाना चाहिए कि 100 परसेन्ट रेस्ट तो कभी मिलती नहीं। हाँ, ऐसे कहेंगे स्वर्ग में 100 परसेन्ट पवित्रता-सुख-शान्ति रहती है। नाम ही है स्वर्ग। बाप को कहते हैं सत श्री अकाल। सच बोलने वाला। उनको कोई काल नहीं खाता। उनको कहा जाता है कालों का काल। बाप कहते हैं यह छी-छी दुनिया है। इस भंभोर को आग जरूर लगनी है। तुम बच्चे जानते हो यह महाभारत लड़ाई महा-कल्याणकारी है। मनुष्य यज्ञ करते हैं कि शान्ति हो जाए, गोया समझते हैं स्वर्ग के गेट्स न खुलें। तुम तो ताली बजाते हो, भंभोर को आग लगे तो हम नई दुनिया वैकुण्ठ में जायें। यह विनाश ज्वाला इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से ही प्रज्जवलित हुई है। जो बाप के बनेंगे वही स्वर्ग के मालिक बनेंगे। बाकी सबको हिसाब-किताब चुक्तु कर वापिस जाना है। तुम जानते हो अब वापिस मुक्तिधाम में जाकर फिर अपना पार्ट रिपीट करना है। सतयुग में यह इतने सब देवी-देवता कहाँ से आये? मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। तुमको कौड़ी से हीरे जैसा, पतित से पावन बनाते हैं। जितना जो नॉलेज धारण करेंगे उतना पद पायेंगे। राजधानी स्थापन हो रही है। तुम जानते हो हम अपने लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं श्रीमत पर। अगर श्रीमत से कोई रूठकर अपनी मत पर चले तो वह रावण मत हो जायेगी इसलिए क़दम-क़दम पर तुम श्रीमत लेते रहो। बाप जीते जी तुमको ट्रस्टी बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कम्पलीट दानी बनना है। सच्चाई से सब बाप को अर्पण कर नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देना है।
2) जीते जी ट्रस्टी बनना है। क़दम-क़दम पर बाप से श्रीमत लेनी है। कभी भी श्रीमत से रूठ मनमत पर नहीं चलना है।
वरदान:
तन को आत्मा का मन्दिर समझ उसे स्वच्छ बनाने वाले नम्बरवन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा भव!
हम ब्राह्मण आत्मायें सारे कल्प में नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मायें हैं, हीरे तुल्य हैं, इस स्मृति से तन को आत्मा का मन्दिर समझकर स्वच्छ रखना है। जितनी मूर्ति श्रेष्ठ होती है उतना ही मन्दिर भी श्रेष्ठ होता है। तो इस शरीर रूपी मन्दिर के हम ट्रस्टी हैं, यह ट्रस्टीपन आपेही स्वच्छता वा पवित्रता लाता है। इस विधि से तन की पवित्रता सदा रूहानी खुशबू का अनुभव कराती रहेगी।
स्लोगन:
रूहानियत में रहने का व्रत लेना ही ज्ञानी तू आत्मा बनना है।
25/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, as long as souls are playing their parts they cannot take 100% rest. They take a rest in the land of nirvana where there is no part to play.
Question:
What thoughts do the children who become tired of studying have which then become sinful thoughts?
Answer:
They have thoughts of leaving the Father, that is, of divorcing the Father. Baba says: To have this thought is a sinful thought. It is a sin to have such a thought. Not to study means to become tired. Such children spoil their income. If you sulk with the Mother and Father due to any situation, you lose the sovereignty of 21 births.
Song:
People of today are in darkness.
Om Shanti
This is a song and a prayer of the path of devotion. Whom do they pray to? To God but, because of being in extreme darkness they don’t know God. So who would listen to them? Only when God hears their call can He come and ignite their light. However, children don't know God, so how can He hear them? You are now sitting personally in front of Him. God is taking you from extreme darkness into extreme light. It is remembered: The night of Brahma and the day of Brahma. At night they wander around a lot from door to door. They go to the mountains, religious places, temples and mosques etc., but where would anyone find God? People celebrate the birth of God in Bharat; they speak of the night of Shiva. There truly are images as memorials of Him in Bharat, but they don't understand when He comes. They are completely in the dark. You are no longer in complete darkness. You are continuing to come into the light, numberwise, according to the effort you make. You children know who creates this whole world and how He creates it. You have come here to this world spiritual university where God is teaching you and making you into deities from human beings. Among you, too, you understand this knowledge numberwise. Some understand very well, whereas others, who don't understand fully, run away; they sulk with the Mother and Father. Of such ones, it is remembered that they were the ones who were amazed and who then began to sulk with the Mother and Father. They like this knowledge, they relate it to others and then they become those who sulk. You know that you receive the sovereignty of heaven from the Mother and Father for 21 births and yet you forget Him. Baba has explained that what you call peace can only be received in the land of peace, the land of nirvana. That is also called the land of liberation. If some say that they are at 100% rest, there is no such thing. Throughout the day, they definitely perform one type of action or another. Yes, they can call sleep at night temporary rest because the soul says: Having worked through the whole day I am tired and so I am now taking a rest. The soul detaches himself. You know that the Father resides in the land of peace and you understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, stays there at rest. God is at rest when He doesn’t have a part to play. No one does any work in the land of liberation. These matters have to be understood. The locks on your intellects are now continuing to open. The Father asks: Do you know when I am at rest? When you children are in heaven, in happiness. There, you have peace and happiness. That is not called rest. You can say you are at rest when you don't have any part. When you are in heaven, I don't have to make any effort. I stay there (at home) in peace. Another name for peace there is rest. You cannot stay at rest here. The soul says: I am at rest when I go to sleep at night. At that time, whether I am at rest or in peace, it is the same thing. You become bodiless at night; you become peaceful. Then, when you wake up, you start to act and you are then at ‘unrest’. When doing anything you experience ‘unrest’ (restlessness). In the golden age there is no question of ‘unrest’. It is Maya that makes you restless (unrest). There, you would not say that you are at rest. While doing all your work you don’t remain peaceless. The word ‘rest’ doesn’t exist there. For instance, someone might say: I am going to go to Simla for a rest, but that is not the meaning of ‘at rest’. True rest is when we are in the land of nirvana. There, we remain silent. In fact, there is no rest. When someone says that he is at 100% rest, it is wrong. That is called ignorance. Yes, it would definitely be said: If someone doesn't want to study, he takes a rest. Not to study and to take a rest means you are tired. You then spoil your own income. It is said: O traveller of the night, don't become weary while walking on the path to heaven. Don't sulk. The thought of divorcing the Mother and Father should not even arise. If you have that thought, it is a sinful thought. Why should you have such a thought about the Mother and Father from whom you receive the kingdom of heaven? Sometimes, some write: I sometimes have the thought of leaving this study. I can't understand anything. Ah, but this is the time to understand, is it not? To understand means to study. You know that we are studying. No one knows the Supreme Father, the Supreme Soul, who is the Ocean of Knowledge, the Highest on High. Although the people of Bharat know Brahma, Vishnu and Shankar and Lakshmi and Narayan, they don't know when Lakshmi and Narayan claimed their kingdom or who gave it to them. Maya has put everyone into extreme darkness. The Father comes and explains how the Creator Father creates the human world. No one knows this at all. The Father alone sits here and explains. Prajapita Brahma cannot be called the Creator. Although he is called the Father of People, he is not the Creator. Some people say that Allah created them. Only the incorporeal Father would be called the Creator. It is only human beings who can know the Father, the Creator. Animals could not know Him. Animals couldn’t say that the Supreme Soul created them. Human beings would say that God created them. So, the Father sits here and explains: Look how this creation is created. First of all, there is the mouth-born creation. Children have to grow up and then become fathers. That unlimited Father says: Look how I too create creation. I enter this one and tell him through his mouth: O soul, you belong to Me. I am your Father. Then I create you children through him. You are the mouth-born creation. On the path of ignorance, it is said: However I am, whatever I am, I am Yours. The Father also says this. You become the children of Brahma. You are now the mouth-born creation and you will then become a physical creation. The Father says: You belong to Me and you will then go into the deity clan. No one can understand how the Father creates this Godly creation. The Father explains and this Brahma also says: I too become a mouth-born creation. Together with the Father, a mother is definitely needed. You say that you are the mouth-born creation of Prajapita Brahma and that Shiv Baba has made you belong to Him. He definitely needs a body, does He not? Shiv Baba doesn't have a body of His own. He takes a body on loan. He then says: You belong to Me. This is called the mouth-born creation. Shiv Baba says through this mouth, through His wife: You are My children. Only the Father explains these things; these things are not mentioned in the scriptures etc. You listen to these things now and then they will disappear. At this time, there is extreme darkness. The Father comes and brings light and this is why the night of Brahma and the day of Brahma are remembered. At least something exists. It is sung: When there is falsehood, there is nothing but falsehood and not a trace of truth. However, the Father says: One thing or another remains; there isn't annihilation. A few will remain and then the tree will begin to grow. People have shown a great annihilation, but a great annihilation does not take place. It isn't that a child comes floating in the ocean on a pipal leaf. All of those things are lies. The Father has explained: When you come from the palace of a womb, you remain in bliss there. There is no sorrow or sinful acts there. That is the world of charitable souls whereas this is the world of sinful souls. You renounce everything here and become charitable souls for all time. You perform so much charity that, for half the cycle, no one would call you a sinful soul. You become imperishable, charitable souls. Then, for half the cycle you are called sinful souls. You repeatedly perform charity and make donations. Bharat is called completely righteous. It is in Bharat that they make donations and perform charity. You know that we are going to leave this world and will not come back here. You are transferring the materials of this world to the new world. People offer everything to God, that is, they transfer it to their next birth. Here, you transfer everything for 21 births. So, a lot is needed. He takes all the rubbish from you and gives you everything new. He takes all the old things from you and gives you golden things. You give to the Father with honesty and then the Father also gives you everything. Your parts that have continued are fixed in the drama. Everyone renounced their homes. How else could the cowshed have been created? People don't know how the furnace was created. They show that there were kittens in a furnace. You children have all of this knowledge at this time. This knowledge will not then remain there. There, you won't have the knowledge that you will rule a kingdom for 21 births and then fall down. It is now that you have the parts of being trikaldarshi. It is only you who have the main parts of hero and heroine. No one else has these parts. It is only you people of Bharat who change from devils into deities and deities into devils. All the rest are by-plots in between. In a play they have amusing parts in the middle. After half the cycle the deity religion disappears. This whole cycle continues to turn around in your intellects and this is why you are able to explain. The Supreme Father, the Supreme Soul, is God, the One who resides in the supreme abode. The Father says: I have all the knowledge in Me. I am the living Seed of the human world tree. Those are non-living seeds whereas Shiva is the living Seed. His image is worshipped. Nowadays, the Government plants tree saplings. This is the living Seed. He is called the Seed of the tree of the human world. I have the knowledge of the whole tree. When someone says that he is at 100% rest, you should explain that there can never be 100% rest. Yes, it can be said that there is 100% purity, happiness and peace in heaven. The very name is heaven. The Father is called Sat Shri Akaal. He is the One who speaks the truth. Death never comes to Him. He is called the Death of all Deaths. The Father says: This is the dirty world. This haystack definitely has to be set on fire. You children know that this Mahabharat War is greatly beneficial. People create sacrificial fires for peace, that is, they don't want the gates of heaven to open. You clap your hands for the haystack to be set on fire so that you can go to the new world of Paradise. The flames of destruction emerged from this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Those who belong to the Father will become the masters of heaven. All the rest have to settle their karmic accounts and return home. You know that you now have to return to the land of liberation and that you then have to repeat your parts. Where did all those deities of the golden age come from? It is said: It didn't take God long to change human beings into deities. He changes you from shells into diamonds, from impure to pure. To the extent that someone imbibes knowledge, so he accordingly claims a status. A kingdom is being established. You know that you are establishing heaven for yourself by following shrimat. If someone sulks with shrimat and follows the dictates of his own mind, those would be the dictates of Ravan. This is why you have to continue to take shrimat at every step. The Father makes you into trustees for as long as you live. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a complete donor. Surrender everything to the Father with honesty and transfer it to the new world.
2. Become a trustee for as long as you live. Take shrimat from the Father at every step. Never sulk with shrimat or follow the dictates of your own mind.
Blessing:
May you be a number one elevated Brahmin soul who keeps your body clean by considering it to be the temple of the soul.
You Brahmin souls are the number one elevated souls in the whole cycle, you are as valuable as diamonds. Whilst keeping this in your awareness, consider your body to be a temple of the soul and keep it clean. When an idol is elevated, its temple is then also just as elevated. You are trustees of your bodies in the form of the temple and this trusteeship naturally brings cleanliness and purity. By using this method, your purity of the body always gives the experience of spiritual fragrance.
Slogan:To observe the vow of maintaining spirituality is to be an enlightened soul.
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