Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 22nd Sep 2018 )
22-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - संगदोष से तुम्हें बहुत सम्भाल करनी है क्योंकि संगदोष में आने से ही उल्टे कर्म होते हैं, बाप की याद भूल जाती है''
प्रश्नः-
किस फ़ज़ीलत (मैनर्स) के आधार पर तुम बच्चे अपनी अवस्था को आगे बढ़ा सकते हो?
उत्तर:-
अगर कभी कोई भूल हो जाती है तो बाप से क्षमा मांगने की भी फ़ज़ीलत चाहिए। बाप को कहना चाहिए आई एम सॉरी। इसमें जरा भी देह-अभिमान न आये, इससे अवस्था आगे बढ़ती रहेगी। चढ़ती कला का आधार है - बाप से सच्ची दिल। कभी भी अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। भूलें हर एक से हो सकती हैं क्योंकि अभी तक कोई परिपूर्ण नहीं बने हैं।
गीत:-
हमें उन राहों पर चलना है........
ओम् शान्ति।
कुछ तो कहना पड़ता है, उस हिसाब से ओम् शान्ति कहना अच्छा है। आत्मा को अपना स्वधर्म बताना होता है। बाप भी कहते हैं हम शान्त हैं। शान्ति देश के रहने वाले हैं। तुम भी असुल आत्मा हो। तुम्हारा स्वधर्म शान्त है। सारी दुनिया शान्ति-शान्ति करती रहती है परन्तु शान्ति किसको कहा जाता है, यह कोई नहीं जानते। समझते हैं कि यह लड़ना-झगड़ना जो चलता है वह शान्त हो जाए। परन्तु वह शान्ति तो कोई काम की नहीं। घर में स्त्री-पुरुष होते हैं, कोई तो झगड़ते हैं, कोई झगड़ते नहीं हैं। वह कोई शान्ति हुई क्या? शान्ति और चीज़ है। शान्ति तो आत्मा का स्वधर्म है। वैसे ही बाप का भी स्वधर्म है शान्त। आत्माओं का बाप कौन है? परमपिता परमात्मा। उनका धर्म क्या है? उनका भी धर्म है शान्त। परमपिता परमात्मा शान्त देश में रहने वाला है। हम भी शान्त देश में रहने वाले हैं। कोई भी आये तो बोलो - तुम्हारा स्वधर्म तो शान्त है ना। तुम असुल वहाँ के रहने वाले हो, यहाँ आये हो पार्ट बजाने। शरीर द्वारा पार्ट तो बजाना ही है। शान्ति के लिए वास्तव में जंगल आदि में जाने की भी दरकार नहीं है। आत्मा को अपने स्वधर्म का पता है। आत्मा थक जाती है तो रात को अशरीरी हो शान्त हो जाती है। रात को कितना सन्नाटा रहता है। सुबह होने से आवाज़ शुरू हो जाता है। वह हुई हद की रात और दिन। अभी तो है बेहद का दिन और रात। आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाकर थक जाती है, इसलिए कहते हैं अब वापिस शान्तिधाम जाना है। बाप भी कहते हैं शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। सुखधाम में बैठ थोड़ेही याद किया जाता है। याद किया जाता है दु:खधाम में, अशान्तिधाम में। तो अब बाप कहते हैं - बच्चे, अब नाटक पूरा हुआ है, तुमको घर चलना है, फिर तुम्हारे लिए शान्ति भी है, तो सुख भी है।
बाप कहते हैं मैं पण्डा हूँ, तुमको वापिस सच्ची यात्रा पर ले जाने आया हूँ। शान्तिधाम का पण्डा एक बनता है वा उनके बच्चे बनते हैं। एक से तो काम नहीं होगा। कितनी बड़ी सेना है। सभी का मुख है शान्तिधाम तरफ। वह है परे ते परे धाम। बद्रीनाथ, अमरनाथ जाना कोई दूर नहीं। वहाँ जाना तो बड़ा सहज है। अच्छा, बताओ मूलवतन-सूक्ष्मवतन जाना सहज है या अमरनाथ बद्रीनाथ जाना सहज है? सूक्ष्मवतन-मूलवतन नज़दीक है या अमरनाथ, बद्रीनाथ नजदीक है? देखने में तो मूलवतन-सूक्ष्मवतन परे ते परे है। परन्तु वहाँ जाने में देरी नहीं लगती है, सेकण्ड की बात है। तुम सिर्फ बुद्धि से याद करो। वह जिस्मानी यात्रायें तो कोई नई बात नहीं। आधाकल्प वह यात्रा करते आये हो। यह रूहानी यात्रा तुमको एक ही बाप आकर कराते हैं। तुम हो सिकीलधे बच्चे। तुमको तो रास्ता बताना है। तुम मन्दिरों में जाकर समझाओ यह देवी-देवतायें कब राज्य करते थे, इनको ऐसा पूज्य किसने बनाया? तुम जानते हो हम पूज्य थे, फिर पुजारी बने हैं। तो पुजारी का दर्जा कम हुआ ना। पूज्य ऊंच हैं। बाप पूज्य बनाते हैं। तुम पूज्य देवी-देवता थे फिर पुजारी बनें, अब पूजा को छोड़ फिर पूज्य बनना है। माया के भी बहुत विघ्न पड़ते हैं। अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं। और यात्राओं पर जाने अथवा मन्दिरों में, सतसंगों में जाने के लिए कोई रोकते नहीं। यहाँ पुजारी से पूज्य बनने में माया कितना हैरान करती है। घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं। बहुत करके गिरते हैं काम के खड्डे में। बाप कहते हैं मूत पलीती मत बनो, इनसे सम्भलना है। सबसे गंदा है काम चिता पर चढ़ना, विषय सागर में गोता खाना। बाप कहते हैं - बच्चे, काम महाशत्रु है, इसलिए कभी भी विकार में जाने का संकल्प भी नहीं करना, इससे ही गंदे बन पड़ते हैं। ऐसे मत समझो यहाँ जो आते हैं तो उनकी बुद्धि विष से निकल जाती है। कोई-कोई ऐसे भी हैं जो एक-दो को देखते हैं तो अन्दर तूफान चलता है गन्दा बनने लिए। बाप कहते हैं कभी गंदा नहीं बनना, कोई का पीछा नहीं करना है। कभी विकार में गिरने का पुरुषार्थ नहीं करो। बाप इससे बचाते रहते हैं। सम्भलने और गिरने की कितनी चटा-भेटी चलती है। माया कितना तूफान मचाती है। कितना अच्छा व़फादार, आज्ञाकारी, सर्विसएबुल बच्चा था, माया ने ऐसी चमाट मारी जो एकदम ख़त्म हो गये, मर गये, यह ड्रामा। गन्दा माया बनाती है। आधा-कल्प दु:ख देने वाली माया है, बाप नहीं। मुफ्त में दोष धरते हैं कि ईश्वर ही दु:ख, सुख देते हैं। ईश्वर को बाप नहीं समझते। परमात्मा कभी किसको दु:ख कैसे देंगे। परमात्मा दु:ख दे तो बाकी मनुष्य तो एक-दो में बड़ा ही दु:ख देंगे। बाप समझाते हैं तुम ही अपने लिए ऐसे कर्म बनाते हो। संगदोष में भी उल्टे कर्म कर लेते हो। बाप को भूल जाते हो। साधारण है ना। तो बच्चे भूल जाते हैं। बाप तो शिक्षा अच्छी ही देंगे, परन्तु उसको भूल जाते हैं। बाप समझाते हैं योग पूरा नहीं है। ऐसे मत समझो भाषण करने वाले हैं। पण्डित की एक कथा है ना, औरों को कहा राम-राम कहने से नदी पार हो जायेंगे। खुद पार हो न सका। बोला बोट (नाव) ले आओ तो चलें। जो खुद कहता था, वह कर नहीं सका। सिर्फ कहना नहीं है परन्तु करना है। कथनी, करनी, रहनी सब समान हो, इसलिए बाप को मत भूलो। बाबा अभुल बनाते हैं। बाप कहते हैं कोई भी भूल हो जाए तो आकर माफी मांगो - आई एम सॉरी। समझो, शिवबाबा कहते हैं यह तुम्हारी भूल है। अच्छा, बाबा हम क्षमा चाहते हैं। यह भी अच्छे-अच्छे बच्चों में फ़ज़ीलत नहीं रहती है। इतनी बड़ी भूल की, माफी तो मांगे। अपने को बहुत मिया मिट्ठू समझते हैं। पाप करते हैं तो क्षमा लेनी चाहिए। नहीं तो उसकी वृद्धि होती रहती है। बाप के साथ बुद्धियोग बड़ा अच्छा चाहिए। भल भाषण तो बहुत अच्छा-अच्छा करते हैं परन्तु सम्पूर्ण कोई बना नहीं है। अन्त तक गिरते सम्भलते रहेंगे। कहते हैं - बाबा, हमसे यह भूल हो गई, आप क्षमा करना। रहमदिल क्षमा करो। भक्ति मार्ग में सारा दिन क्षमा-क्षमा करते रहते हैं। बाप को कहते हैं क्षमा करो। धर्मराज द्वारा फिर दण्ड नहीं दिलाना, इसलिए ख़बरदारी बहुत चाहिए। ऐसे मत समझो कि हम 16 कला सम्पूर्ण बन गये हैं, नहीं। बहुत बच्चे लिखते हैं बाबा अशुद्ध स्वप्न बहुत आते हैं। बाबा की याद ही नहीं ठहरती है। मिया-मिट्ठू नहीं बनना है। अन्त में 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे। अभी तो ग्रहण लगा हुआ है। तुम्हारी वह अवस्था आनी है। यहाँ बैठे बैठे उड़ते रहेंगे। आत्मा को खींच होती है क्योंकि कल्प की थकी हुई है तो आतुरवेला (जल्दी) होती है - जल्दी-जल्दी जाऊं। परन्तु लायक भी बनना पड़े ना। कोई तो यहाँ ही घूमने-फिरने, जेवर पहनने आदि में खुश हो जाते हैं, फिर दु:खी होते हैं, तो कहते हैं नाहेक बाबा को छोड़ा। अच्छा, फिर हिम्मत करो, कुछ सीखो। अपकार करने वालों पर भी उपकार करना है। परन्तु ऐसे भी नहीं और ही माथा खराब कर दे। माया गिराती है, बाप उठाते हैं। मंज़िल है ऊंची और यह है सारी बुद्धियोग की यात्रा। पुरुषार्थ में टाइम लगता है। लक्ष्य तो बहुत सहज है। एक सेकेण्ड में तुम जीवनमुक्ति के अधिकारी बन जाते हो। एक बार बाबा कहा फिर भूलते क्यों हो? निश्चय है बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेते हैं फिर गिरते क्यों हो? याद कर सम्भलते क्यों नहीं हो? अच्छे-अच्छे बच्चे भूल जाते हैं। फिर और ही डिस-सर्विस होती है। सर्विस भी गुप्त है तो डिससर्विस भी गुप्त है। दुनिया को क्या पता? किसमें कोई भी भूत प्रवेश होगा वा अशुद्ध सोल का प्रवेश है तो वह भी नुकसान कर देते हैं। मायावी सोल प्रवेश कर लेती है। भल ज्ञान है परन्तु परिपूर्ण कोई नहीं है। कोई न कोई ख़ामी रहती है तो डर होना चाहिए। हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। अगर श्रीमत पर न चले, कोई भ्रष्ट काम किया तो पद भी भ्रष्ट होगा और सज़ायें भी बहुत खायेंगे। कर्मों का फल यहाँ भी बड़ा कड़ा भोगना पड़ता है इसलिए कर्मातीत अवस्था का पुरुषार्थ करना है।
बाबा के साथ बड़ा सच्चा रहना है। सबका शिवबाबा से कनेक्शन है। सेन्टर्स सब शिवबाबा के हैं। तुम्हारा सेन्टर फिर कहाँ से आया? तुम शिवबाबा के हो। विश्व-विद्यालय बाप का है ना। ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। मेरा यह सेन्टर है - यह ख्याल आया और मरा। ऐसे मेरा-मेरा करते कितने गिर पड़ते हैं। सब कुछ शिवबाबा का है। तुम कहते हो - बाबा, यह तन-मन-धन सब आपका है। तो बाबा भी कहते हैं - स्वर्ग की राजाई सारी तुम्हारी है। कितना एवज़ा मिलता है। तुम क्या देते हो? मरने से पहले करनीघोर को देते हैं ना। जीते जी दान करते हैं। देखते हैं - बस, होपलेस केस है तो दान-पुण्य कराते हैं। बाप भी कहते हैं - बच्चे, जीते जी कर लो, यह तो पुराना तन है। तुम आत्मायें मेरी हो। यह शरीर पार्ट बजाते-बजाते अब पुराना हो गया है। अब फिर मेरे बनो तो तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों शुद्ध बनेंगे। दोनों इकट्ठे साफ होते जाते हैं। आत्मा जो अपवित्र बनी है, उनको शुद्ध बनाना है। मेरे साथ योग लगाने से ही शुद्ध बनेंगे। योग रखेंगे तो चढ़ती कला होगी, योग नहीं रखेंगे तो गिरती कला हो जायेगी। सर्विस का शौक चाहिए। पूछना नहीं है सर्विस पर जायें। बाबा समझते हैं शौक नहीं है। मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस का शौक चाहिए। मन्सा नहीं तो वाचा वा कर्मणा कोई न कोई सर्विस में लग जाना चाहिए तो उज़ूरा मिलेगा। आपेही जो करे सो देवता, कहने से करे सो मनुष्य, कहने से भी न करे तो कोई काम का नहीं। जितना सर्विस करेंगे उतना फल मिलना है।
शिवबाबा पूछते हैं - बच्चे, मेरे को हाथ हैं? इस तन में शिवबाबा बैठे हैं ना। चिट्ठी लिखते हैं ना। बैल पर सारा दिन थोड़ेही सवारी करेंगे। बैल जब थक जाते हैं तो उनकी आंखों में पानी आ जाता है। यहाँ तो आंसू आने की बात नहीं। इनको तो सर्विस करनी ही है। बच्चों को समझाते हैं मामेकम् याद करो। यह शिवबाबा कहते हैं, इनकी आत्मा भी सुनती है। यह तो बिल्कुल सहज है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग का रचयिता। बाबा आते हैं स्वर्ग की स्थापना, नर्क का विनाश कराने। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। तुम जानते हो अब खेल पूरा होता है। बाबा लेने आया है। सिर पर विकर्मों का बोझा बहुत है। याद नहीं करेंगे तो महारानी-महाराजा नहीं बन सकेंगे। है ही यह राजयोग, न कि प्रजा योग। योग पूरा नहीं लगाते हैं तो प्रजा बन पड़ते हैं। कहते हैं - बाबा, हम पूरा वर्सा लेंगे। तो सर्विस का शौक चाहिए। लिखकर पूछ सकते हो - अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाये तो हम क्या बनेंगे? परिपूर्ण तो अन्त में बनेंगे। अभी तुम अपूर्ण हो। अपनी अवस्था की जांच करनी है - हम कितना बाबा की सर्विस पर हैं? कितना आज्ञाकारी, व़फादार हैं? कितना सर्विस के लिए तड़फते हैं कि कोई को जाकर जीयदान करें? बिचारे बहुत दु:खी हैं। यह एक ही सतगुरू है - शान्तिधाम-सुखधाम ले जाने आये हैं। वह गुरू लोग अपने को जगत पिता, जगत शिक्षक कह न सकें, सिर्फ जगत गुरू कहलाते हैं। यह तो जगत का बाप, टीचर, गुरू एक ही है। तुम जानते हो बाप आया है तो बाप से पूरा वर्सा लो। देह-अभिमान अच्छा नहीं है। देही-अभिमानी बन बाप को याद करो फिर तुम्हारी निरोगी काया बन जायेगी। वहाँ तो पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति है। अथाह सम्पत्ति है। यहाँ तो देखो, पेट के लिए मारामारी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी पण्डा बन सच्ची यात्रा करनी और करानी है। बुद्धियोग की बहुत सम्भाल करनी है। अपने ऊपर बहुत ख़बरदारी रखनी है।
2) बाप के साथ सच्चा रहना है। कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ करना है। जीते जी सब बाप के हवाले कर सफल कर लेना है।
वरदान:-
स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली समर्थ आत्मा भव
यह संगमयुग समर्थ युग है। तो सदा यह स्मृति रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मायें हैं, तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा। कलियुग है व्यर्थ, जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। यदि सिर्फ समय की भी याद रहे तो समय के प्रमाण कर्म स्वत: चलेंगे। आधाकल्प व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया, लेकिन अब जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे।
स्लोगन:-
जो सदा ईश्वरीय विधान पर चलते हैं वही ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता बनते हैं।
22/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, be very cautious of bad company, because by keeping bad company you perform wrong actions and you forget to remember the Father.
Question:
On the basis of which manners can you children make your stage progress?
Answer:
If you ever make a mistake, you should have the manners to ask the Father to forgive you. You should say to the Father: I am sorry. There should not be the slightest trace of body consciousness in this. It is through this that your stage will continue to progress. The basis of the stage of ascent is to keep your heart honest with the Father. Never consider yourself to be very clever. Everyone makes mistakes because, as yet, no one has become complete.
Song:
We have to follow the path where we may fall and we therefore have to be cautious.
Om Shanti
Something or other has to be said, and so it’s good to say “Om shanti.” Souls have to be told of their original religion. The Father says: I am peaceful and I reside in the land of peace. Originally, you are a soul and your original religion is peace. The whole world is crying out for peace, but no one knows what peace is. They think that there will be peace when all the fighting and quarrelling that is going on stops. However, that kind of peace is of no use. Some husbands and wives quarrel at home whereas others don’t. That is not peace; peace is totally distinct from that. Peace is the original religion of souls. In fact, the Father’s original religion is also peace. Who is the Father of souls? The Supreme Father, the Supreme Soul. What is His religion? His religion is also peace. The Supreme Father, the Supreme Soul, resides in the land of peace. We are also residents of the land of peace. Tell anyone who comes: The religion of the self is peace, is it not? Originally, you are residents of that place, and you have come here to play your parts. A part definitely has to be played through a body. In fact, there is no need to go into a jungle etc. for peace. The soul knows his original religion. At night, when souls become tired, they become bodiless and peaceful. At night, there is dead silence. Noise starts as soon as dawn starts. That night and day are limited, whereas this night and day are unlimited. Having played your parts of 84 births, you souls have become tired. This is why you souls say that you now want to return to the land of peace. The Father also says: Remember the land of peace and the land of happiness. You will not have remembrance while you are in the land of happiness. It is in the land of sorrow, in the land of peacelessness, that you have remembrance. Therefore, the Father now says: Children, the play is now about to end; you have to return home. Then, for you, there will be peace as well as happiness. The Father says: I am your Guide who has come to take you back on your true pilgrimage. Is there only the one Guide to the land of peace, or do His children also become guides? Nothing can be accomplished by just One. This is such a huge army! Everyone’s face is turned towards the land of peace. That land is far beyond. It is not far to travel to Badrinath or Amarnath. In fact, it is very easy to go there. Achcha, is it easier to go to the subtle region and the soul world, or is it easier to go to Amarnath and Badrinath? Are the subtle region and the soul world nearer than Amarnath and Badrinath? The subtle region and the soul world seem to be very far away, but it doesn’t take very long to go there; it’s just a matter of a second. You simply have to remember them with the intellect. It’s nothing new to go on a physical pilgrimage. You have been going on those pilgrimages for half a cycle. Only the one Father comes and takes you on the spiritual pilgrimage. You are the long-lost and now-found children. It is you who have to show the path to others. You can go to the temples and explain when the deities ruled their kingdom. Who made them worthy of worship? You understand that you were worthy of worship and that you have now become worshippers. Therefore, the status of a worshipper is lower than the status of being worthy of worship. The Father makes you worthy of worship. You were deities, worthy of worship, and you have now become worshippers. Now renounce worshipping and become worthy of worship again. Maya creates many obstacles; innocent ones are assaulted so much. No one is prevented from going to other pilgrimage places, temples or spiritual gatherings. Here, Maya causes you a great deal of distress whilst you are making effort to change from a worshipper to being worthy of worship. You fall again and again. Mostly, you fall into the ditch of lust. The Father says: Don’t become dirty. Be very careful about this. The worst thing is to climb onto the pyre of lust and drown in the ocean of poison. The Father says: Children, lust is the greatest enemy. This is why you must never even think about indulging in vice. It is through this that you become dirty. Don’t think that the poison is removed from the intellects of all those who come here. When they see one another, some experience storms within them to become dirty. The Father says: Never become dirty; don’t chase after anyone. Never make effort to fall into vice. The Father continues to save you from that. There is the struggle of falling down and taking care not to fall again. Maya creates many storms. There was a very good, obedient, faithful and serviceable child who was slapped so hard by Maya that he was completely finished; he died. That was in the drama. Maya makes you dirty. It is Maya, not the Father, that causes you sorrow for half a cycle. They falsely blame God, saying that God gives happiness and sorrow. They do not consider God to be the Father. How could the Supreme Soul cause sorrow for anyone? If the Supreme Soul were to cause sorrow, human beings would cause even greater sorrow for each other. The Father explains: It is you who create such karmic accounts for yourselves. You perform wrong actions when you come under the influence of bad company and you forget the Father. He is ordinary, and so children forget Him. The Father would only give very good teachings. However, you forget them. The Father explains: You don’t have complete yoga. Don’t think of yourself as someone who only has to give lectures. There is also the story of a pundit. He told others that they would be able to cross the river by saying “Rama, Rama”. However, he himself could not get across. He asked for a boat to take him across. He himself couldn’t do what he told others to do. Things should not simply be said; they have to be done as well. Your words, deeds and behaviour should all be the same. This is why you must not forget the Father. Baba makes you into those who never forget or make mistakes. The Father says: If you make a mistake, come and ask for forgiveness and say: I am sorry. For instance, if Shiv Baba says: “This is your mistake,” then say: OK Baba, please forgive me. Some good children don’t even have the manners to do this. They make a huge mistake; they should at least ask to be forgiven. However, they consider themselves to be very clever. If you commit a sin, you must ask for forgiveness. Otherwise, that sin will continue to increase. Your intellect’s yoga with the Father needs to be very good. Although some do give very good lectures, no one has yet become complete. Until the end, you will continue to fall and try to save yourselves. You say: Baba, I made this mistake, please forgive me. O Merciful One, please forgive me! On the path of devotion, they continue to ask for forgiveness throughout the day. They pray to the Father: Please forgive me! Do not let Dharamraj punish me. This is why a great deal of caution is needed. Do not think that you have become 16 celestial degrees full; no. Many children write to Baba saying that they have many impure dreams and that they are not able to remember Baba. You should not consider yourself to be clever. It is only at the end that you will become 16 celestial degrees full. At this time, you are still eclipsed. You have yet to reach that complete stage. While sitting here, you will continue to fly. Because souls are tired at the end of the cycle, they are pulled to go home. They are in a hurry to go home quickly, but they first have to become worthy. Some are happy to travel around and wear jewellery etc. Then, when they become unhappy, they say: I left Baba unnecessarily! Achcha, in that case, have courage and learn something. You have to uplift even those who defame you but it should not be that they spoil your head even more. Maya makes you fall and the Father uplifts you. The destination is very high and this whole pilgrimage is of the intellect’s yoga. It takes time to make effort. The aim is very easy: you claim a right to liberation-in-life in a second. Once you say “Baba”, how can you then forget Him? If you have the faith that you are claiming your inheritance of heaven from Baba, why do you fall? Why do you not stay in remembrance and remain cautious? Even very good children forget; they do even more disservice. Service is incognito and disservice is also incognito. What do people of the world know? If an evil spirit or an impure soul enters someone, that too causes damage. A soul caught up in Maya is able to enter another. Even though you have knowledge, none of you has yet become complete. One defect or another still remains, and so you should have fear. We have to follow Baba’s shrimat. If, instead of following shrimat, you do something corrupt, your status would be destroyed and you would have to experience a great deal of punishment. Severe punishment for any bad deed has to be endured here. This is why you have to make effort to reach your karmateet stage. You have to remain very honest with Baba. Everyone has a connection with Shiv Baba. All the centres belong to Shiv Baba. So, where did “your” centre come from? You belong to Shiv Baba. This world university belongs to the Father. It is the Godly World University. To have such thoughts as “This is my centre” means to die. So many fall by saying, “Mine, mine”. Everything belongs to Shiv Baba. You say: Baba, this body, mind and wealth all belong to You. Therefore, Baba says: The kingdom of heaven is all yours. You receive such a large reward; and, what do you give? Before dying, some give their belongings to a karnighor (special brahmin priest); they donate them while they are still alive. When people see that someone is a hopeless case, they make him donate to charity. The Father says: Children, donate everything while alive. Those are old bodies. You souls belong to Me. You play your parts through your bodies and they have now become old. Now belong to Me again and both you, the souls, and your bodies will become clean. Both continue to be cleansed simultaneously. Souls that have become impure now have to be purified. You will become pure by having yoga with Me. When you have yoga, you go into the stage of ascent. When you don’t have yoga, you remain in the stage of descent. You have to be interested in doing service. You should not ask if you should go on service. Baba then understands that you are not interested in serving. You should be interested in doing service through your thoughts, words and deeds. If not through your thoughts, then serve through your words or deeds. You should keep yourself busy in one type of service or another and you will receive the return of that. Those who act without being asked are called deities. Those who act after being told are human beings. Then, if they don’t act, even after being told, they are completely useless. The more service you do, the more the reward you will receive. Shiv Baba asks: Children, do I have hands? Shiv Baba sits in this one’s body while writing a letter. He would not sit on a bull all day long. When a bull gets tired, its eyes begin to water. Here, there is no question of tears flowing. This one has to do service. He explains to the children: Remember Me alone. Shiv Baba says this, and this one’s soul also listens. This is very easy! The unlimited Father is the Creator of heaven. Baba comes to create heaven and to have hell destroyed. The Mahabharat War is standing ahead. There are the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. You understand that this play is about to end. Baba has come to take us back. There is a huge burden of sins on your heads. If you don’t have remembrance, you cannot become an emperor or empress. This is Raja Yoga, the yoga to become rulers, not the yoga to become subjects. You become subjects if you don’t have full yoga. Some say: Baba, I will claim my full inheritance from You. However, you need to have a great interest in doing service. You can write and ask Baba: What will I become if I leave my body now? It is only at the end that you can become complete. Now you are still incomplete. You have to check your own stage and ask yourself: To what extent am I doing Baba’s service? To what extent am I faithful and obedient? How desperate am I to do service and give someone the donation of life? Poor people are very unhappy. This is the one and only Satguru, and He has come to take us back home to the land of peace and the land of happiness. Those gurus cannot call themselves the World Father or the World Teacher. They simply call themselves world gurus. This One is the only World Father, Teacher and Guru. You know that the Father has come. Therefore, claim your full inheritance from the Father. It is not good to be body conscious. Become soul conscious and remember the Father and your body will become free from disease. There, there is purity, happiness, peace and wealth. There is limitless wealth there. Here, you have to struggle even to feed yourself. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a spiritual guide and go on the true pilgrimage and also enable others to do so. Be very cautious about where your intellect’s yoga is linked. Take great care of yourself.
2. Remain true to the Father. Make effort to become karmateet. Hand everything over to the Father while you are alive so that it can be used in a worthwhile way.
Blessing:
May you become a powerful soul and finish all waste by considering yourself to be confluence-aged.
This confluence age is the powerful age. So, always have the awareness that you reside in the powerful age, that you are the children of the Almighty Father, that you are powerful souls and all waste will then finish. The iron age is waste and since you have stepped away from the iron age, since you have become confluence-aged, you have stepped away from waste. If you simply remain aware of the time you will automatically act according to the time. For half the cycle, you have waste thoughts and performed wasteful actions but now, as is the time, as is the Father, so are the children.
Slogan:
Those who constantly follow God’s laws become master lawmakers, the same as Father Brahma.
''मीठे बच्चे - संगदोष से तुम्हें बहुत सम्भाल करनी है क्योंकि संगदोष में आने से ही उल्टे कर्म होते हैं, बाप की याद भूल जाती है''
प्रश्नः-
किस फ़ज़ीलत (मैनर्स) के आधार पर तुम बच्चे अपनी अवस्था को आगे बढ़ा सकते हो?
उत्तर:-
अगर कभी कोई भूल हो जाती है तो बाप से क्षमा मांगने की भी फ़ज़ीलत चाहिए। बाप को कहना चाहिए आई एम सॉरी। इसमें जरा भी देह-अभिमान न आये, इससे अवस्था आगे बढ़ती रहेगी। चढ़ती कला का आधार है - बाप से सच्ची दिल। कभी भी अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। भूलें हर एक से हो सकती हैं क्योंकि अभी तक कोई परिपूर्ण नहीं बने हैं।
गीत:-
हमें उन राहों पर चलना है........
ओम् शान्ति।
कुछ तो कहना पड़ता है, उस हिसाब से ओम् शान्ति कहना अच्छा है। आत्मा को अपना स्वधर्म बताना होता है। बाप भी कहते हैं हम शान्त हैं। शान्ति देश के रहने वाले हैं। तुम भी असुल आत्मा हो। तुम्हारा स्वधर्म शान्त है। सारी दुनिया शान्ति-शान्ति करती रहती है परन्तु शान्ति किसको कहा जाता है, यह कोई नहीं जानते। समझते हैं कि यह लड़ना-झगड़ना जो चलता है वह शान्त हो जाए। परन्तु वह शान्ति तो कोई काम की नहीं। घर में स्त्री-पुरुष होते हैं, कोई तो झगड़ते हैं, कोई झगड़ते नहीं हैं। वह कोई शान्ति हुई क्या? शान्ति और चीज़ है। शान्ति तो आत्मा का स्वधर्म है। वैसे ही बाप का भी स्वधर्म है शान्त। आत्माओं का बाप कौन है? परमपिता परमात्मा। उनका धर्म क्या है? उनका भी धर्म है शान्त। परमपिता परमात्मा शान्त देश में रहने वाला है। हम भी शान्त देश में रहने वाले हैं। कोई भी आये तो बोलो - तुम्हारा स्वधर्म तो शान्त है ना। तुम असुल वहाँ के रहने वाले हो, यहाँ आये हो पार्ट बजाने। शरीर द्वारा पार्ट तो बजाना ही है। शान्ति के लिए वास्तव में जंगल आदि में जाने की भी दरकार नहीं है। आत्मा को अपने स्वधर्म का पता है। आत्मा थक जाती है तो रात को अशरीरी हो शान्त हो जाती है। रात को कितना सन्नाटा रहता है। सुबह होने से आवाज़ शुरू हो जाता है। वह हुई हद की रात और दिन। अभी तो है बेहद का दिन और रात। आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाकर थक जाती है, इसलिए कहते हैं अब वापिस शान्तिधाम जाना है। बाप भी कहते हैं शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। सुखधाम में बैठ थोड़ेही याद किया जाता है। याद किया जाता है दु:खधाम में, अशान्तिधाम में। तो अब बाप कहते हैं - बच्चे, अब नाटक पूरा हुआ है, तुमको घर चलना है, फिर तुम्हारे लिए शान्ति भी है, तो सुख भी है।
बाप कहते हैं मैं पण्डा हूँ, तुमको वापिस सच्ची यात्रा पर ले जाने आया हूँ। शान्तिधाम का पण्डा एक बनता है वा उनके बच्चे बनते हैं। एक से तो काम नहीं होगा। कितनी बड़ी सेना है। सभी का मुख है शान्तिधाम तरफ। वह है परे ते परे धाम। बद्रीनाथ, अमरनाथ जाना कोई दूर नहीं। वहाँ जाना तो बड़ा सहज है। अच्छा, बताओ मूलवतन-सूक्ष्मवतन जाना सहज है या अमरनाथ बद्रीनाथ जाना सहज है? सूक्ष्मवतन-मूलवतन नज़दीक है या अमरनाथ, बद्रीनाथ नजदीक है? देखने में तो मूलवतन-सूक्ष्मवतन परे ते परे है। परन्तु वहाँ जाने में देरी नहीं लगती है, सेकण्ड की बात है। तुम सिर्फ बुद्धि से याद करो। वह जिस्मानी यात्रायें तो कोई नई बात नहीं। आधाकल्प वह यात्रा करते आये हो। यह रूहानी यात्रा तुमको एक ही बाप आकर कराते हैं। तुम हो सिकीलधे बच्चे। तुमको तो रास्ता बताना है। तुम मन्दिरों में जाकर समझाओ यह देवी-देवतायें कब राज्य करते थे, इनको ऐसा पूज्य किसने बनाया? तुम जानते हो हम पूज्य थे, फिर पुजारी बने हैं। तो पुजारी का दर्जा कम हुआ ना। पूज्य ऊंच हैं। बाप पूज्य बनाते हैं। तुम पूज्य देवी-देवता थे फिर पुजारी बनें, अब पूजा को छोड़ फिर पूज्य बनना है। माया के भी बहुत विघ्न पड़ते हैं। अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं। और यात्राओं पर जाने अथवा मन्दिरों में, सतसंगों में जाने के लिए कोई रोकते नहीं। यहाँ पुजारी से पूज्य बनने में माया कितना हैरान करती है। घड़ी-घड़ी गिर पड़ते हैं। बहुत करके गिरते हैं काम के खड्डे में। बाप कहते हैं मूत पलीती मत बनो, इनसे सम्भलना है। सबसे गंदा है काम चिता पर चढ़ना, विषय सागर में गोता खाना। बाप कहते हैं - बच्चे, काम महाशत्रु है, इसलिए कभी भी विकार में जाने का संकल्प भी नहीं करना, इससे ही गंदे बन पड़ते हैं। ऐसे मत समझो यहाँ जो आते हैं तो उनकी बुद्धि विष से निकल जाती है। कोई-कोई ऐसे भी हैं जो एक-दो को देखते हैं तो अन्दर तूफान चलता है गन्दा बनने लिए। बाप कहते हैं कभी गंदा नहीं बनना, कोई का पीछा नहीं करना है। कभी विकार में गिरने का पुरुषार्थ नहीं करो। बाप इससे बचाते रहते हैं। सम्भलने और गिरने की कितनी चटा-भेटी चलती है। माया कितना तूफान मचाती है। कितना अच्छा व़फादार, आज्ञाकारी, सर्विसएबुल बच्चा था, माया ने ऐसी चमाट मारी जो एकदम ख़त्म हो गये, मर गये, यह ड्रामा। गन्दा माया बनाती है। आधा-कल्प दु:ख देने वाली माया है, बाप नहीं। मुफ्त में दोष धरते हैं कि ईश्वर ही दु:ख, सुख देते हैं। ईश्वर को बाप नहीं समझते। परमात्मा कभी किसको दु:ख कैसे देंगे। परमात्मा दु:ख दे तो बाकी मनुष्य तो एक-दो में बड़ा ही दु:ख देंगे। बाप समझाते हैं तुम ही अपने लिए ऐसे कर्म बनाते हो। संगदोष में भी उल्टे कर्म कर लेते हो। बाप को भूल जाते हो। साधारण है ना। तो बच्चे भूल जाते हैं। बाप तो शिक्षा अच्छी ही देंगे, परन्तु उसको भूल जाते हैं। बाप समझाते हैं योग पूरा नहीं है। ऐसे मत समझो भाषण करने वाले हैं। पण्डित की एक कथा है ना, औरों को कहा राम-राम कहने से नदी पार हो जायेंगे। खुद पार हो न सका। बोला बोट (नाव) ले आओ तो चलें। जो खुद कहता था, वह कर नहीं सका। सिर्फ कहना नहीं है परन्तु करना है। कथनी, करनी, रहनी सब समान हो, इसलिए बाप को मत भूलो। बाबा अभुल बनाते हैं। बाप कहते हैं कोई भी भूल हो जाए तो आकर माफी मांगो - आई एम सॉरी। समझो, शिवबाबा कहते हैं यह तुम्हारी भूल है। अच्छा, बाबा हम क्षमा चाहते हैं। यह भी अच्छे-अच्छे बच्चों में फ़ज़ीलत नहीं रहती है। इतनी बड़ी भूल की, माफी तो मांगे। अपने को बहुत मिया मिट्ठू समझते हैं। पाप करते हैं तो क्षमा लेनी चाहिए। नहीं तो उसकी वृद्धि होती रहती है। बाप के साथ बुद्धियोग बड़ा अच्छा चाहिए। भल भाषण तो बहुत अच्छा-अच्छा करते हैं परन्तु सम्पूर्ण कोई बना नहीं है। अन्त तक गिरते सम्भलते रहेंगे। कहते हैं - बाबा, हमसे यह भूल हो गई, आप क्षमा करना। रहमदिल क्षमा करो। भक्ति मार्ग में सारा दिन क्षमा-क्षमा करते रहते हैं। बाप को कहते हैं क्षमा करो। धर्मराज द्वारा फिर दण्ड नहीं दिलाना, इसलिए ख़बरदारी बहुत चाहिए। ऐसे मत समझो कि हम 16 कला सम्पूर्ण बन गये हैं, नहीं। बहुत बच्चे लिखते हैं बाबा अशुद्ध स्वप्न बहुत आते हैं। बाबा की याद ही नहीं ठहरती है। मिया-मिट्ठू नहीं बनना है। अन्त में 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे। अभी तो ग्रहण लगा हुआ है। तुम्हारी वह अवस्था आनी है। यहाँ बैठे बैठे उड़ते रहेंगे। आत्मा को खींच होती है क्योंकि कल्प की थकी हुई है तो आतुरवेला (जल्दी) होती है - जल्दी-जल्दी जाऊं। परन्तु लायक भी बनना पड़े ना। कोई तो यहाँ ही घूमने-फिरने, जेवर पहनने आदि में खुश हो जाते हैं, फिर दु:खी होते हैं, तो कहते हैं नाहेक बाबा को छोड़ा। अच्छा, फिर हिम्मत करो, कुछ सीखो। अपकार करने वालों पर भी उपकार करना है। परन्तु ऐसे भी नहीं और ही माथा खराब कर दे। माया गिराती है, बाप उठाते हैं। मंज़िल है ऊंची और यह है सारी बुद्धियोग की यात्रा। पुरुषार्थ में टाइम लगता है। लक्ष्य तो बहुत सहज है। एक सेकेण्ड में तुम जीवनमुक्ति के अधिकारी बन जाते हो। एक बार बाबा कहा फिर भूलते क्यों हो? निश्चय है बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेते हैं फिर गिरते क्यों हो? याद कर सम्भलते क्यों नहीं हो? अच्छे-अच्छे बच्चे भूल जाते हैं। फिर और ही डिस-सर्विस होती है। सर्विस भी गुप्त है तो डिससर्विस भी गुप्त है। दुनिया को क्या पता? किसमें कोई भी भूत प्रवेश होगा वा अशुद्ध सोल का प्रवेश है तो वह भी नुकसान कर देते हैं। मायावी सोल प्रवेश कर लेती है। भल ज्ञान है परन्तु परिपूर्ण कोई नहीं है। कोई न कोई ख़ामी रहती है तो डर होना चाहिए। हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। अगर श्रीमत पर न चले, कोई भ्रष्ट काम किया तो पद भी भ्रष्ट होगा और सज़ायें भी बहुत खायेंगे। कर्मों का फल यहाँ भी बड़ा कड़ा भोगना पड़ता है इसलिए कर्मातीत अवस्था का पुरुषार्थ करना है।
बाबा के साथ बड़ा सच्चा रहना है। सबका शिवबाबा से कनेक्शन है। सेन्टर्स सब शिवबाबा के हैं। तुम्हारा सेन्टर फिर कहाँ से आया? तुम शिवबाबा के हो। विश्व-विद्यालय बाप का है ना। ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। मेरा यह सेन्टर है - यह ख्याल आया और मरा। ऐसे मेरा-मेरा करते कितने गिर पड़ते हैं। सब कुछ शिवबाबा का है। तुम कहते हो - बाबा, यह तन-मन-धन सब आपका है। तो बाबा भी कहते हैं - स्वर्ग की राजाई सारी तुम्हारी है। कितना एवज़ा मिलता है। तुम क्या देते हो? मरने से पहले करनीघोर को देते हैं ना। जीते जी दान करते हैं। देखते हैं - बस, होपलेस केस है तो दान-पुण्य कराते हैं। बाप भी कहते हैं - बच्चे, जीते जी कर लो, यह तो पुराना तन है। तुम आत्मायें मेरी हो। यह शरीर पार्ट बजाते-बजाते अब पुराना हो गया है। अब फिर मेरे बनो तो तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों शुद्ध बनेंगे। दोनों इकट्ठे साफ होते जाते हैं। आत्मा जो अपवित्र बनी है, उनको शुद्ध बनाना है। मेरे साथ योग लगाने से ही शुद्ध बनेंगे। योग रखेंगे तो चढ़ती कला होगी, योग नहीं रखेंगे तो गिरती कला हो जायेगी। सर्विस का शौक चाहिए। पूछना नहीं है सर्विस पर जायें। बाबा समझते हैं शौक नहीं है। मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस का शौक चाहिए। मन्सा नहीं तो वाचा वा कर्मणा कोई न कोई सर्विस में लग जाना चाहिए तो उज़ूरा मिलेगा। आपेही जो करे सो देवता, कहने से करे सो मनुष्य, कहने से भी न करे तो कोई काम का नहीं। जितना सर्विस करेंगे उतना फल मिलना है।
शिवबाबा पूछते हैं - बच्चे, मेरे को हाथ हैं? इस तन में शिवबाबा बैठे हैं ना। चिट्ठी लिखते हैं ना। बैल पर सारा दिन थोड़ेही सवारी करेंगे। बैल जब थक जाते हैं तो उनकी आंखों में पानी आ जाता है। यहाँ तो आंसू आने की बात नहीं। इनको तो सर्विस करनी ही है। बच्चों को समझाते हैं मामेकम् याद करो। यह शिवबाबा कहते हैं, इनकी आत्मा भी सुनती है। यह तो बिल्कुल सहज है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग का रचयिता। बाबा आते हैं स्वर्ग की स्थापना, नर्क का विनाश कराने। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। तुम जानते हो अब खेल पूरा होता है। बाबा लेने आया है। सिर पर विकर्मों का बोझा बहुत है। याद नहीं करेंगे तो महारानी-महाराजा नहीं बन सकेंगे। है ही यह राजयोग, न कि प्रजा योग। योग पूरा नहीं लगाते हैं तो प्रजा बन पड़ते हैं। कहते हैं - बाबा, हम पूरा वर्सा लेंगे। तो सर्विस का शौक चाहिए। लिखकर पूछ सकते हो - अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाये तो हम क्या बनेंगे? परिपूर्ण तो अन्त में बनेंगे। अभी तुम अपूर्ण हो। अपनी अवस्था की जांच करनी है - हम कितना बाबा की सर्विस पर हैं? कितना आज्ञाकारी, व़फादार हैं? कितना सर्विस के लिए तड़फते हैं कि कोई को जाकर जीयदान करें? बिचारे बहुत दु:खी हैं। यह एक ही सतगुरू है - शान्तिधाम-सुखधाम ले जाने आये हैं। वह गुरू लोग अपने को जगत पिता, जगत शिक्षक कह न सकें, सिर्फ जगत गुरू कहलाते हैं। यह तो जगत का बाप, टीचर, गुरू एक ही है। तुम जानते हो बाप आया है तो बाप से पूरा वर्सा लो। देह-अभिमान अच्छा नहीं है। देही-अभिमानी बन बाप को याद करो फिर तुम्हारी निरोगी काया बन जायेगी। वहाँ तो पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति है। अथाह सम्पत्ति है। यहाँ तो देखो, पेट के लिए मारामारी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी पण्डा बन सच्ची यात्रा करनी और करानी है। बुद्धियोग की बहुत सम्भाल करनी है। अपने ऊपर बहुत ख़बरदारी रखनी है।
2) बाप के साथ सच्चा रहना है। कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ करना है। जीते जी सब बाप के हवाले कर सफल कर लेना है।
वरदान:-
स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली समर्थ आत्मा भव
यह संगमयुग समर्थ युग है। तो सदा यह स्मृति रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मायें हैं, तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा। कलियुग है व्यर्थ, जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। यदि सिर्फ समय की भी याद रहे तो समय के प्रमाण कर्म स्वत: चलेंगे। आधाकल्प व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया, लेकिन अब जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे।
स्लोगन:-
जो सदा ईश्वरीय विधान पर चलते हैं वही ब्रह्मा बाप समान मास्टर विधाता बनते हैं।
22/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, be very cautious of bad company, because by keeping bad company you perform wrong actions and you forget to remember the Father.
Question:
On the basis of which manners can you children make your stage progress?
Answer:
If you ever make a mistake, you should have the manners to ask the Father to forgive you. You should say to the Father: I am sorry. There should not be the slightest trace of body consciousness in this. It is through this that your stage will continue to progress. The basis of the stage of ascent is to keep your heart honest with the Father. Never consider yourself to be very clever. Everyone makes mistakes because, as yet, no one has become complete.
Song:
We have to follow the path where we may fall and we therefore have to be cautious.
Om Shanti
Something or other has to be said, and so it’s good to say “Om shanti.” Souls have to be told of their original religion. The Father says: I am peaceful and I reside in the land of peace. Originally, you are a soul and your original religion is peace. The whole world is crying out for peace, but no one knows what peace is. They think that there will be peace when all the fighting and quarrelling that is going on stops. However, that kind of peace is of no use. Some husbands and wives quarrel at home whereas others don’t. That is not peace; peace is totally distinct from that. Peace is the original religion of souls. In fact, the Father’s original religion is also peace. Who is the Father of souls? The Supreme Father, the Supreme Soul. What is His religion? His religion is also peace. The Supreme Father, the Supreme Soul, resides in the land of peace. We are also residents of the land of peace. Tell anyone who comes: The religion of the self is peace, is it not? Originally, you are residents of that place, and you have come here to play your parts. A part definitely has to be played through a body. In fact, there is no need to go into a jungle etc. for peace. The soul knows his original religion. At night, when souls become tired, they become bodiless and peaceful. At night, there is dead silence. Noise starts as soon as dawn starts. That night and day are limited, whereas this night and day are unlimited. Having played your parts of 84 births, you souls have become tired. This is why you souls say that you now want to return to the land of peace. The Father also says: Remember the land of peace and the land of happiness. You will not have remembrance while you are in the land of happiness. It is in the land of sorrow, in the land of peacelessness, that you have remembrance. Therefore, the Father now says: Children, the play is now about to end; you have to return home. Then, for you, there will be peace as well as happiness. The Father says: I am your Guide who has come to take you back on your true pilgrimage. Is there only the one Guide to the land of peace, or do His children also become guides? Nothing can be accomplished by just One. This is such a huge army! Everyone’s face is turned towards the land of peace. That land is far beyond. It is not far to travel to Badrinath or Amarnath. In fact, it is very easy to go there. Achcha, is it easier to go to the subtle region and the soul world, or is it easier to go to Amarnath and Badrinath? Are the subtle region and the soul world nearer than Amarnath and Badrinath? The subtle region and the soul world seem to be very far away, but it doesn’t take very long to go there; it’s just a matter of a second. You simply have to remember them with the intellect. It’s nothing new to go on a physical pilgrimage. You have been going on those pilgrimages for half a cycle. Only the one Father comes and takes you on the spiritual pilgrimage. You are the long-lost and now-found children. It is you who have to show the path to others. You can go to the temples and explain when the deities ruled their kingdom. Who made them worthy of worship? You understand that you were worthy of worship and that you have now become worshippers. Therefore, the status of a worshipper is lower than the status of being worthy of worship. The Father makes you worthy of worship. You were deities, worthy of worship, and you have now become worshippers. Now renounce worshipping and become worthy of worship again. Maya creates many obstacles; innocent ones are assaulted so much. No one is prevented from going to other pilgrimage places, temples or spiritual gatherings. Here, Maya causes you a great deal of distress whilst you are making effort to change from a worshipper to being worthy of worship. You fall again and again. Mostly, you fall into the ditch of lust. The Father says: Don’t become dirty. Be very careful about this. The worst thing is to climb onto the pyre of lust and drown in the ocean of poison. The Father says: Children, lust is the greatest enemy. This is why you must never even think about indulging in vice. It is through this that you become dirty. Don’t think that the poison is removed from the intellects of all those who come here. When they see one another, some experience storms within them to become dirty. The Father says: Never become dirty; don’t chase after anyone. Never make effort to fall into vice. The Father continues to save you from that. There is the struggle of falling down and taking care not to fall again. Maya creates many storms. There was a very good, obedient, faithful and serviceable child who was slapped so hard by Maya that he was completely finished; he died. That was in the drama. Maya makes you dirty. It is Maya, not the Father, that causes you sorrow for half a cycle. They falsely blame God, saying that God gives happiness and sorrow. They do not consider God to be the Father. How could the Supreme Soul cause sorrow for anyone? If the Supreme Soul were to cause sorrow, human beings would cause even greater sorrow for each other. The Father explains: It is you who create such karmic accounts for yourselves. You perform wrong actions when you come under the influence of bad company and you forget the Father. He is ordinary, and so children forget Him. The Father would only give very good teachings. However, you forget them. The Father explains: You don’t have complete yoga. Don’t think of yourself as someone who only has to give lectures. There is also the story of a pundit. He told others that they would be able to cross the river by saying “Rama, Rama”. However, he himself could not get across. He asked for a boat to take him across. He himself couldn’t do what he told others to do. Things should not simply be said; they have to be done as well. Your words, deeds and behaviour should all be the same. This is why you must not forget the Father. Baba makes you into those who never forget or make mistakes. The Father says: If you make a mistake, come and ask for forgiveness and say: I am sorry. For instance, if Shiv Baba says: “This is your mistake,” then say: OK Baba, please forgive me. Some good children don’t even have the manners to do this. They make a huge mistake; they should at least ask to be forgiven. However, they consider themselves to be very clever. If you commit a sin, you must ask for forgiveness. Otherwise, that sin will continue to increase. Your intellect’s yoga with the Father needs to be very good. Although some do give very good lectures, no one has yet become complete. Until the end, you will continue to fall and try to save yourselves. You say: Baba, I made this mistake, please forgive me. O Merciful One, please forgive me! On the path of devotion, they continue to ask for forgiveness throughout the day. They pray to the Father: Please forgive me! Do not let Dharamraj punish me. This is why a great deal of caution is needed. Do not think that you have become 16 celestial degrees full; no. Many children write to Baba saying that they have many impure dreams and that they are not able to remember Baba. You should not consider yourself to be clever. It is only at the end that you will become 16 celestial degrees full. At this time, you are still eclipsed. You have yet to reach that complete stage. While sitting here, you will continue to fly. Because souls are tired at the end of the cycle, they are pulled to go home. They are in a hurry to go home quickly, but they first have to become worthy. Some are happy to travel around and wear jewellery etc. Then, when they become unhappy, they say: I left Baba unnecessarily! Achcha, in that case, have courage and learn something. You have to uplift even those who defame you but it should not be that they spoil your head even more. Maya makes you fall and the Father uplifts you. The destination is very high and this whole pilgrimage is of the intellect’s yoga. It takes time to make effort. The aim is very easy: you claim a right to liberation-in-life in a second. Once you say “Baba”, how can you then forget Him? If you have the faith that you are claiming your inheritance of heaven from Baba, why do you fall? Why do you not stay in remembrance and remain cautious? Even very good children forget; they do even more disservice. Service is incognito and disservice is also incognito. What do people of the world know? If an evil spirit or an impure soul enters someone, that too causes damage. A soul caught up in Maya is able to enter another. Even though you have knowledge, none of you has yet become complete. One defect or another still remains, and so you should have fear. We have to follow Baba’s shrimat. If, instead of following shrimat, you do something corrupt, your status would be destroyed and you would have to experience a great deal of punishment. Severe punishment for any bad deed has to be endured here. This is why you have to make effort to reach your karmateet stage. You have to remain very honest with Baba. Everyone has a connection with Shiv Baba. All the centres belong to Shiv Baba. So, where did “your” centre come from? You belong to Shiv Baba. This world university belongs to the Father. It is the Godly World University. To have such thoughts as “This is my centre” means to die. So many fall by saying, “Mine, mine”. Everything belongs to Shiv Baba. You say: Baba, this body, mind and wealth all belong to You. Therefore, Baba says: The kingdom of heaven is all yours. You receive such a large reward; and, what do you give? Before dying, some give their belongings to a karnighor (special brahmin priest); they donate them while they are still alive. When people see that someone is a hopeless case, they make him donate to charity. The Father says: Children, donate everything while alive. Those are old bodies. You souls belong to Me. You play your parts through your bodies and they have now become old. Now belong to Me again and both you, the souls, and your bodies will become clean. Both continue to be cleansed simultaneously. Souls that have become impure now have to be purified. You will become pure by having yoga with Me. When you have yoga, you go into the stage of ascent. When you don’t have yoga, you remain in the stage of descent. You have to be interested in doing service. You should not ask if you should go on service. Baba then understands that you are not interested in serving. You should be interested in doing service through your thoughts, words and deeds. If not through your thoughts, then serve through your words or deeds. You should keep yourself busy in one type of service or another and you will receive the return of that. Those who act without being asked are called deities. Those who act after being told are human beings. Then, if they don’t act, even after being told, they are completely useless. The more service you do, the more the reward you will receive. Shiv Baba asks: Children, do I have hands? Shiv Baba sits in this one’s body while writing a letter. He would not sit on a bull all day long. When a bull gets tired, its eyes begin to water. Here, there is no question of tears flowing. This one has to do service. He explains to the children: Remember Me alone. Shiv Baba says this, and this one’s soul also listens. This is very easy! The unlimited Father is the Creator of heaven. Baba comes to create heaven and to have hell destroyed. The Mahabharat War is standing ahead. There are the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. You understand that this play is about to end. Baba has come to take us back. There is a huge burden of sins on your heads. If you don’t have remembrance, you cannot become an emperor or empress. This is Raja Yoga, the yoga to become rulers, not the yoga to become subjects. You become subjects if you don’t have full yoga. Some say: Baba, I will claim my full inheritance from You. However, you need to have a great interest in doing service. You can write and ask Baba: What will I become if I leave my body now? It is only at the end that you can become complete. Now you are still incomplete. You have to check your own stage and ask yourself: To what extent am I doing Baba’s service? To what extent am I faithful and obedient? How desperate am I to do service and give someone the donation of life? Poor people are very unhappy. This is the one and only Satguru, and He has come to take us back home to the land of peace and the land of happiness. Those gurus cannot call themselves the World Father or the World Teacher. They simply call themselves world gurus. This One is the only World Father, Teacher and Guru. You know that the Father has come. Therefore, claim your full inheritance from the Father. It is not good to be body conscious. Become soul conscious and remember the Father and your body will become free from disease. There, there is purity, happiness, peace and wealth. There is limitless wealth there. Here, you have to struggle even to feed yourself. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a spiritual guide and go on the true pilgrimage and also enable others to do so. Be very cautious about where your intellect’s yoga is linked. Take great care of yourself.
2. Remain true to the Father. Make effort to become karmateet. Hand everything over to the Father while you are alive so that it can be used in a worthwhile way.
Blessing:
May you become a powerful soul and finish all waste by considering yourself to be confluence-aged.
This confluence age is the powerful age. So, always have the awareness that you reside in the powerful age, that you are the children of the Almighty Father, that you are powerful souls and all waste will then finish. The iron age is waste and since you have stepped away from the iron age, since you have become confluence-aged, you have stepped away from waste. If you simply remain aware of the time you will automatically act according to the time. For half the cycle, you have waste thoughts and performed wasteful actions but now, as is the time, as is the Father, so are the children.
Slogan:
Those who constantly follow God’s laws become master lawmakers, the same as Father Brahma.
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