Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-11-28 23:34:50
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
A |
Article Rating
|
Participate in Rating,
See Result
|
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- ) |
B | Quiz( Create, Edit, Delete ) |
Participate in Quiz,
See Result
|
Created/ Edited Time:- 16-10-2018 21:33:18 |
C | Survey( Create, Edit, Delete) | Participate in Survey, See Result | Created Time:- |
D |
Page No | Photo | Page Name | Count of Characters | Date of Last Creation/Edit |
---|---|---|---|---|
1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Sep- 2018 ( UID: 181016101542 )
Rating Module ( How to get good rate? See Tips )
If an article has achieved following standard than it is accepted as a good article to promote. Article Grade will be automatically promoted to A grade. (1) Count of characters: >= 2500
(2) Writing Originality Grand total score: >= 75%
(3) Grand Total score: >= 75%
(4) Count of raters: >= 5 (including all group member (mandatory) of specific group)
(5) Language of Article = English
(6) Posted/ Edited date of Article <= 15 Days
(7) Article Heading score: >=50%
(8) Article Information Score: >50%
If the article scored above rate than A grade and also if it belongs to any of the below category of article than it is specially to made Dotted underlined "A Grade". This Article Will be chosen for Web Award.
Category of Article: Finance & banking, Insurance, Technology, Appliance, Vehicle related, Gadgets, software, IT, Income, Earning, Trading, Sale & purchase, Affiliate, Marketing, Medicine, Pharmaceuticals, Hospital, Money, Fashion, Electronics & Electricals, Jobs & Job work, Real estate, Rent Related, Advertising, Travel, Matrimonial, Marriage, Doctor, Food & beverages, Dining, Furniture & assets, Jewellery, ornaments, Gold, Diamond, Silver, Computer, Men Wear, Women’s wear, Dress, style, movie, film, entertainment.
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN | Name Parameters For Grading | Achievement (Score) | Minimum Limit for A grade | Calculation of Mark |
---|---|---|---|---|
1 | Count of Raters ( Auto Calculated ) | 0 | 5 | 0 |
2 | Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) | 3768276 | 2500 | 1 |
3 | Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) | 2231 | 15 | 0 |
4 | Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 40% | 0 |
5 | Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 60% | 0 |
6 | Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 50% | 0 |
7 | Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 55% | 0 |
Grand Total Score & Article Grade | --- |
SI | Score Rated by Viewers | Rating given by (0) Users |
---|---|---|
(a) | Topic Information:- | NAN% |
(b) | Writing Skill:- | NAN% |
(c) | Grammer:- | NAN% |
(d) | Vocabulary Strength:- | NAN% |
(e) | Choice of Photo:- | NAN% |
(f) | Choice of Topic Heading:- | NAN% |
(g) | Keyword or summary:- | NAN% |
(h) | Material copied - Originality:- | NAN% |
Your Total Rating & % | NAN% |
Show/ Hide Rating Result
Details ( Page:- Murali 20th Sep 2018 )
20-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज्ञान की एक बूंद है अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो, इसी एक बूंद से मुक्ति-जीवनमुक्ति प्राप्त हो सकती है''
प्रश्नः-
किस पुरुषार्थ में अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है?
उत्तर:-
1- याद में रहने का पुरुषार्थ करो, इसमें ही अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है। तुम बच्चे जब याद में बैठते हो तो जैसे दूसरों को शान्ति का दान देते हो। 2- आपस में देह-अभिमान की जिस्मानी बातें छोड़ रूहानी बातें करो तो उन्नति होती रहेगी। तुम्हें बाप का शो करना है। जितना शो करेंगे सबको शान्ति और सुख का मार्ग बतायेंगे, उतना इज़ाफा (इनाम) मिलेगा।
गीत:-
तू प्यार का सागर है......
ओम् शान्ति।
यह भक्ति मार्ग में गाते आये हैं। महिमा करते आये हैं। महिमा है परमपिता परमात्मा की। जैसे भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के गायन होते हैं, उत्सव मनाते हैं वह भी गायन है। कोई भी मनुष्य साधू-सन्त आदि का गायन नहीं हो सकता। गाते हैं वह ज्ञान का सागर है। एक भी बूंद मिले तो हम यहाँ से चले जायेंगे। कहाँ जायेंगे? मुक्ति वा जीवनमुक्तिधाम। महिमा होती रहती है परन्तु उनकी महिमा को जानते नहीं हैं। तुम जानते हो सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। दो बाप का राज़ भी समझाया गया है - एक है लौकिक बाप, उनकी याद आने से उसको देह-अभिमान कहा जायेगा। आत्मा को देह देने वाला बाप याद आता है। आत्मा अपने रूहानी बाप को भूल जाती है। यही भूल है। यूं तो कोई भूले हुए नहीं हैं परन्तु कह देते हैं आत्मा ही परमात्मा है, यही भूल है। यह भी कहते हैं कि हम जीव आत्मा हैं। मेरी आत्मा को तंग नहीं करो। तंग तो आत्मा होती है ना। आत्मा को गर्भजेल में सजा मिलती है तो उनको शरीर में दु:ख भासता है। साक्षात्कार भी स्थूल रूप का करायेंगे, तब वह फील करते हैं, हमको दु:ख मिल रहा है। बच्चों को समझाया है पहले-पहले प्रैक्टिस करो हम आत्मा हैं। देह-अभिमानी बनने से संबंध याद आता है - यह चाचा है, मामा है.....। शरीर नहीं है तो कोई भी संबंध नहीं है। आत्मा का ही ज्ञान है। कोई को महान् परमात्मा थोड़ेही कहा जाता है। कोई मर जाता है तो उनकी आत्मा को बुलाया जाता है। ऐसे नहीं कहेंगे कि इनके परमात्मा को बुलाया जाता है। कोई भी हालत में उनको परमात्मा नहीं कहा जाता। न परमात्मा जन्म-मरण में आते हैं। परमात्मा जन्म-मरण रहित है। आत्मा तो पुनर्जन्म लेती रहती है। यह भी समझ गये हैं कि पहले-पहले आत्मा है देवी-देवताओं की, 84 जन्म भी भारत में गाये जाते हैं। अब बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर सम्मुख बैठे हैं। पतित-पावन को ही ज्ञान सागर कहेंगे। बाप को ही कहा जाता है ज्ञानेश्वर। ईश्वर में ज्ञान है सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का। ईश्वर ही सृष्टि को रचते हैं इसलिए उनको रचना का ज्ञान है। रचता कहते हैं तो जरूर रची हुई सृष्टि है, तब तो कहते हैं ना। रचता को बाप कहा जाता है। बहन-भाई को रचता नहीं कहेंगे। रचता हमेशा बाप को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हमारे सम्मुख बाप बैठे हैं। भल विलायत में कोई बैठे होंगे, कहेंगे बाप से हम दूर हैं परन्तु याद तो करेंगे ना। तुमको भी याद करना है, परन्तु लौकिक संबंध को देख पारलौकिक बाप को भूल जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं उठते-बैठते बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। मैं आत्मा इस शरीर से चलती हूँ। आत्मा का ज्ञान तो तुमको है। यह जानते हो आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। ऐसे नहीं कहा जाता परमात्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.....। आत्मा और परमात्मा कहा जाता है।
अभी बाप बच्चों के सम्मुख बैठे हैं। कहते हैं आपकी एक बूँद भी बहुत है। परमपिता परमात्मा हम आत्माओं का बाप है। बस, इसको ज्ञान कहा जाता है। ऐसे और कोई को भी कहने की हिम्मत नहीं आयेगी कि तुम सब आत्माओं का मैं बाप हूँ, जिसको ही ज्ञान सागर पतित-पावन कहते हैं। यह कहने कोई को आयेगा नहीं। बाप ही कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। बरोबर, अब महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है, यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। यह सारा समझाने पर मदार है। चित्र देखने से कोई समझ जाये सो मुश्किल है, जब तक टीचर न समझाये। स्कूल में भी टीचर समझाते हैं ना - यह इन्डिया है, यह लन्दन है। बिगर समझाने बुद्धि में आ न सके। अगर नक्शे में नाम पढ़े तो भी सिर्फ नाम कह सकेंगे। लेकिन कहाँ है, कौन राज्य करते हैं, कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। यहाँ भी हर बात समझने की होती है। आजकल तो पहले भभका चाहिए, शो देखकर ही आयेंगे। अब वहाँ समझाने वाले बड़े अच्छे चाहिए। बच्चे ही समझायेंगे कि यह जगत अम्बा है, सबकी मनोकामनायें सिद्ध करने वाली है। झाड़ के नीचे दिखाते हैं - कामधेनु बैठी है। तो उनसे मिलने लिए भी आयेंगे। जगत पिता है तो जरूर जगत की माँ भी होगी, परन्तु जगत अम्बा इनको कहते हैं क्योंकि कलष माताओं को दिया जाता है। मुख्य जगदम्बा गाई हुई है फिर उनकी सेना भी है।
तुम बच्चे एग्जीवीशन करते हो तो उसमें समझाने के लिए बड़े अच्छे-अच्छे बच्चे चाहिए। बाबा ने समझाया है मुख्य बात है बाप के परिचय की। पहले-पहले समझाओ दो बाप हैं। एक है तुम्हारा लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर हद का वर्सा लेते आये, अब बेहद का वर्सा लो। बहुत गई थोड़ी रही..... विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। योग से ही विकर्म विनाश हो सकते हैं। मासी का घर नहीं। अजुन कुछ न कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ है तब तो भोगना पड़ता है ना। कितनी मेहनत लगती है। अगर देरी से आयेंगे तो कितना विकर्म विनाश कर सकेंगे। मुश्किलात है ना। यह तो तुम ढिंढोरा पिटवा दो जो कोई फिर उल्हना न देवे। तुम कह सकेंगे हम तो ढिंढोरा पिटवाते, अ़खबार में डलवाते थे। जितना हो सके निमंत्रण तो सभी को मिलना चाहिए। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। खूब निमंत्रण पत्र बांटो। सबसे जास्ती सर्विस देहली में हो सकती है। देहली है सारे भारत की गद्दी, वहाँ सभी अखबारों के एजेन्ट्स रहते हैं। अ़खबार द्वारा भी इतला करना है। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर वर्सा लेते आये, अभी फिर पारलौकिक बाप से वर्सा लो। जिस वैकुण्ठ को याद करते हो उसका वर्सा बाप से आकर लो। सभी अखबारों में डालते जाओ - शिवबाबा का बर्थ प्लेस है भारत। सभी का उद्धार करने वाला एक ही बाप है। तो सबसे बड़ा तीर्थ परमपिता परमात्मा पतित-पावन का हुआ ना, परन्तु यह किसको पता नहीं है। क्राइस्ट, इब्राहिम, बुद्ध आदि सभी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। क्रिश्चियन लोग खुद भी कहते हैं क्राइस्ट यहाँ ही किसी जन्म में है। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ को मानते हैं। नहीं तो इतनी आत्मायें कहाँ से आती हैं। जरूर सेक्शन हैं जहाँ से आते हैं। हिस्ट्री फिर रिपीट जरूर होगी। यह झाड़ बड़ी अच्छी चीज़ है परन्तु इनकी वैल्यु बच्चों के पास नम्बरवार है।
बच्चे दूसरों को समझाने के लिए प्रदर्शनी आदि करते हैं। इसमें कोई आर्ट का शो नहीं करना है। आर्ट गैलरी में तो व्यर्थ के चित्र रखते हैं। समझते हैं यह आर्ट है। देवताओं की पतली कमर आदि के किस्म-किस्म के चित्र बनाते हैं। वहाँ देवताओं की तो नेचुरल ब्युटी रहती है। इस समय तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कृष्ण गोरा और कृष्ण सांवरा गाया हुआ है। वहाँ शरीर की मरम्मत नहीं होती। यहाँ तो देखो कितनी मरम्मत करनी पड़ती है। वहाँ तो भल बूढ़ा हो जाए तो भी दांत आदि सभी साबुत रहते हैं। दांत टूट जाएं तो डिसफिगर हो जाएं। वहाँ तो एकदम फर्स्ट क्लास 16 कला सम्पूर्ण रहते हैं। लूले-लंगड़े होते नहीं। यहाँ तो देखो कैसे लूले-लंगड़े जन्म लेते हैं। तो तुम ऐसे परिस्तान के मालिक बन रहे हो। एक ही मुसाफिर आकर परिस्तान में ले जाते हैं। तुम मुसाफिर यहाँ पार्ट बजाते-बजाते पतित बन जाते हो, आत्मा काली हो जाती है। बाप तो एवर हुसैन है, उनमें कभी खाद नहीं पड़ती है। मैं तो सच्चा सोना हूँ इसलिए मुझे बुलाते हैं। एवर पावन को ही बुलाते हैं - बाबा आओ, हमको भी आप समान बनाओ। तुम एवर पावन तो नहीं बनेंगे। बाकी सतोप्रधान में तो सबको आना है, परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं। नाटक में एक्टर्स भिन्न-भिन्न होते हैं ना। कोई हीरो-हीरोइन होते हैं तो उनको पैसे भी बहुत मिलते हैं। अभी तो गवर्मेन्ट सबके पैसे पकड़ती रहती है। कहा जाता है - किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए, सफली होगी वह जो खर्चे नाम धनी के....... क्योंकि धनी आया हुआ है स्वर्ग की स्थापना करने। जो बाप के मददगार बनेंगे उन्हों का ही सेफ रहेगा। तुमको तो वहाँ ढेर की ढेर मिलकियत होगी। कितना सोना हीरे जवाहर आदि होंगे! परन्तु तुमको उसकी कोई भी परवाह नहीं रहती है। तुमको कोई लूटेंगे थोड़ेही। हीरे-सोने आदि की खानियां सब तुमको नई-नई मिलेंगी। पत्थरों मुआफिक हीरे पड़े होंगे। सब तुमको मिल जाना है। जैसे ईटों के महल बनते हैं वहाँ सोने के महल बनाते रहेंगे। धनवान प्रजा भी सोने के महल बनायेगी। जो पूरे दानी बनते हैं वह भी सोने के बनाते हैं। बाबा सब बातें बतलाते रहते हैं। ऐसे भी नहीं कहते तुम भूख मरो। बच्चों आदि को भी सम्भालना है। रचता का फ़र्ज है सम्भाल करना, दु:खी नहीं करना है। भूख नहीं मारना है। रहमदिल बनना है। मनुष्य कितने दु:खी हैं, जानते हो फैमन पड़ेगा तो बहुत दु:खी होंगे। त्राहि-त्राहि करेंगे, फिर जयजयकार होगी। सब आत्माओं को सुख मिल जायेगा। बाप है ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। सुख हैं दो - एक शान्तिधाम में रहना और दूसरा सुखधाम में रहना। सुखधाम में पवित्रता, सुख, शान्ति सब है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। जब मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं, मेरा पार्ट ही उस समय का है इसलिए मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, सर्व का शान्ति दाता, सुखदाता।
तुम जानते हो हम बाबा के साथ सबको शान्ति का दान देते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना औरों को दान देते रहेंगे। फिर नॉलेज देते हैं सुख के लिए। तो बच्चों को मात-पिता का शो करना है। जितना शो करेंगे, सुख शान्ति का मार्ग बहुतों को बतायेंगे तो इज़ाफा मिलेगा। बाबा तुमको कितना सब नई दुनिया की नई-नई बातें सुनाते हैं। पुरानी दुनिया और नई दुनिया दोनों का साक्षात्कार कराते हैं। और ही जास्ती तुमको साक्षात्कार करायेंगे, परन्तु उनको जो बाबा के पक्के सच्चे बच्चे होंगे। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। तुम बहुत कुछ देखेंगे जैसे शुरू में भी दिखाया था फिर अन्त में दिखायेंगे। कितने प्रोग्राम आते थे, साक्षात्कार कराते थे। कितनी सजावट, ताज आदि पहनाते थे फिर से भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखायेंगे। मिरूआ मौत मलूका शिकार। उसी समय पार्टीशन में भी मिरूआ मौत था ना। तुमको कोई परवाह नहीं थी। तुम तो जैसे जीते जी मर गये। तो बाबा कहते हैं - बच्चे, पूरी मेहनत करो, पुरुषार्थ करो, हम आत्मा हैं। एक-दो से भी रूहानी बातें करते रहो। जिस्मानी देह-अभिमान की बातें खत्म। जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जायेंगे वह यह सब नहीं देखेंगे। पास्ट भी तुमने देखा और जो नया होगा वह भी तुम देखेंगे, मेहनत करो। मीठे-मीठे बच्चों को बाप बहुत प्यार करते हैं। प्यारे बच्चों को बहुत प्यार मिलता है। जो अच्छी सर्विस करेंगे उनको प्यार भी मिलेगा, पद भी मिलेगा। भूलो नहीं, हम आत्माओं को निराकार परमपिता परमात्मा शिक्षा दे रहे हैं, स्वर्ग का वारिस बना रहे हैं। दैवी गुणवान बनना है। आगे तो सबमें आसुरी गुण थे। अब बाबा सम्मुख बैठे हैं, जिससे वर्सा मिलता है, उनसे लॅव रहता है, दलाल से नहीं। दलाल तो बीच में हुआ। सौदा तुमको उनसे मिलता है। तो बाप को याद करो। देह-अभिमान को छोड़ते जाओ। मेरा तो एक बाबा, दूसरा कोई भी देहधारी याद न आये। यह तो बाबा पुरानी बूट में आये हैं। मैंने यह लोन लिया है। कल्प पहले भी यह अक्षर कहे होंगे। अब भी कह रहे हैं। आज के ही दिन तुमको यह समझाया था फिर समझा रहा हूँ। कितनी अच्छी विशाल बुद्धि चाहिए। लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन बने हैं, जरूर अच्छी प्रालब्ध बनाई होगी। यह गॉड फादरली सैलवेशन आर्मी है, सारी दुनिया को मुक्ति-जीवनमुक्ति की सैलवेशन देने वाली। सर्व का सद्गति दाता राम। गति में तो जाना ही है सारी दुनिया को। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के साथ सारे विश्व को शान्ति का दान देना है। बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।
2) एक बाप से पूरा लॅव रखना है। आपस में देह-अभिमान की बातें नहीं करनी है। रूहानी बातें ही करनी है।
वरदान:-
इन्तजार को छोड़ इन्तजाम करने वाले वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी भव
कई बच्चे इन्तजार करते हैं कि यह छोड़ें तो छूटूं, यह टकराव छोड़ें तो छूटूं-लेकिन ऐसा नहीं होता। यह तो माया के विघ्न वा पढ़ाई में पेपर समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूपों से आने ही हैं। तो यह इन्तजार नहीं करो कि फलाना व्यक्ति पास करे, फलानी परिस्थिति पास करे.. नहीं, मुझे पास करना है। ऐसा इन्तजाम करो। सदा श्रीमत की अंगुली के आधार पर चलते, सहयोगी सो सहजयोगी बनो। कभी सहयोगी कभी वियोगी नहीं।
स्लोगन:-
अपने उमंग-उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढ़ाना - यह सच्ची सेवा है।
20/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, one drop of knowledge is to consider yourself to be a soul and to remember the Father. With this one drop, you can attain liberation and liberation-in-life.
Question:
In which effort is progress for oneself and others merged?
Answer:
1) The effort to stay in remembrance. It is in this that progress for oneself and others is merged. When you children sit in remembrance, it is as though you are giving others a donation of peace. 2) Stop talking of body conscious and worldly things and speak of spiritual things and you will continue to make progress. You have to show (reveal) the Father. To the extent that you reveal the Father and show everyone the path to peace and happiness, to that extent you will receive a reward.
Song:
You are the Ocean of Love. We thirst for one drop.
Om Shanti
People have been singing this on the path of devotion. People have been praising Him. Praise is of the Supreme Father, the Supreme Soul. Just as there are many types of praise and festivals on the path of devotion, so there is this praise too. This cannot be praise of any human being, sage or holy man. They sing: You are the Ocean of Knowledge. If we receive even one drop of knowledge, we will go away from here. Where will they go? To the land of liberation or liberation-in-life. They continue to praise Him but people don't know His praise. You know it, numberwise, according to the effort you make. The significance of the two fathers has also been explained to you. One is your physical father and it is called body consciousness when you remember him. A soul remembers the father who gave him a body and he forgets his spiritual Father. This is the mistake. In fact, they haven’t forgotten, but the mistake they have made is saying that each soul is the Supreme Soul. They even say that they are living, embodied souls. “Do not distress my soul!” It is the soul that is distressed. A soul receives punishment in the jail of a womb and so he experiences sorrow while in a body. A soul feels that he is receiving sorrow when he is given a vision in the physical form. It has been explained to you children: First of all, practise: I am a soul. When you become body conscious, you remember your relatives: This one is my paternal uncle and this one is my maternal uncle. When you don't have a body, you don’t have any relatives. This knowledge is of the soul. You wouldn't call anyone Great Supreme Soul. After someone has died, the soul of that person is invoked. It wouldn't be said that the Supreme Soul of such-and-such a person is invoked. Under no circumstances would any human being be called the Supreme Soul nor does the Supreme Soul enter into the cycle of birth and death. The Supreme Soul is beyond birth and death. Souls continue to take rebirth. You have understood that, first of all, there are the souls of the deities. The 84 births are only remembered in Bharat. You children know that the Ocean of Knowledge is now sitting personally in front of you. Only the Purifier is called the Ocean of Knowledge. Only the Father is called Gyaneshwar (God of Knowledge). Ishwar (God) has the knowledge of the beginning, middle and end of the world. God alone creates the world and this is how He has knowledge of creation. He is called the Creator and so the world He created definitely does exist; this is why He is called that. A creator is called a father. Brothers and sisters cannot be called a creator. It is always a father who is a creator. You children know that the Father is personally sitting in front of you. Someone may be sitting abroad and he would say that he is far away from his father, but he would still remember him, would he not? You too have to remember Him, but when you see your lokik relatives, you forget the parlokik Father and this is why Baba says: While sitting, standing and moving around, practise remembering the Father. I, the soul, am walking with this body. You have knowledge of the soul. You know that souls and the Supreme Soul remained separated for a long time; it is not said that the Supreme Souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. It is said: Souls and the Supreme Soul. The Father is now sitting personally in front of you children. They say: Just one drop from You is enough. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Father of us souls. That is all. This is called knowledge. No one else would have the courage to say: I am the Father of all of you souls. He alone is called the Ocean of Knowledge and the Purifier. No one else would know how to say this. The Father Himself says: I am your Father. Truly, that great war is just ahead. There are the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. Everything depends on how you explain all of this. It is difficult for anyone to understand just by looking at the pictures unless a teacher explains them to him. Teachers explain at school: This is India and this is London. Nothing would enter anyone’s intellect without an explanation. When the name is written on a map, there is just the name, so one cannot understand where it is or who rules there. Here, too, everything has to be understood. Nowadays, there first of all has to be some splendour, so that people will come when they see that display. Very good people are needed to explain there (at exhibitions). Only children would explain that this one is Jagadamba, the one who fulfils everyone's desires. They have shown Kamdhenu sitting under the tree. Therefore, many would come to meet her. There is Jagadpita (World Father) and so there must also be the World Mother. However, that one is called Jagadamba because the urn is given to you mothers. Jagadamba has been remembered as the main one, and then there is also her army. When you children hold exhibitions, very good children are needed to explain there. Baba has said: The main thing is to give the Father's introduction. First of all, explain that there are two fathers: one is your lokik father and the other is your parlokik Father. You have been receiving a limited inheritance from your lokik father for birth after birth. Now claim the unlimited inheritance. A lot of time has gone by, a little remains. There is a huge burden of sins on your heads. Your sins can only be absolved by having yoga. This is not like going to your aunty's home! As yet, one karmic account or another still remains and this is why you have to suffer for your past actions. It takes so much effort. If you come late, how many of your sins would you be able to have absolved? This is a difficulty, is it not? You have to beat the drums so that no one can complain later. You can say: We used to beat the drums and have it printed in the newspapers. As far as possible, everyone should receive an invitation. Make effort to claim the unlimited inheritance from the unlimited Father. Distribute lots of invitation letters. The maximum service can take place in Delhi. Delhi is the capital of the whole of Bharat. The agents of all the newspapers live there. You also have to make this announcement in the newspapers: You have been claiming your inheritance from your lokik fathers for birth after birth. Now claim your inheritance from the parlokik Father. Come and claim from the Father the inheritance of the Paradise you have been remembering. Have it printed in all the newspapers: Bharat is the birthplace of Shiv Baba. There is only the one Father who will uplift everyone. The greatest pilgrimage place is that of the Supreme Father, the Supreme Soul, the Purifier. However, no one knows this. Christ, Abraham, Buddha etc. have all been taking rebirth and are now in their final births. Christians themselves say that Christ exists here in some form. They also believe in the tree. Otherwise, where else do all of these souls come from? There are definitely sections where they come from. History will then definitely repeat. This tree is something very good, but children value it numberwise. Children hold exhibitions to explain to other people. You don’t have to have an art show. In an art gallery they have useless pictures and they call it art. They paint many different pictures of deities with slim waists. There, the deities have natural beauty. At this time even the five elements are tamopradhan. In the golden age the five elements are satopradhan. The beautiful Krishna and the ugly Krishna have been remembered. There, you don't need to do anything to your body. Here, you have to do so many things for your body in order to look after it. There, even when someone becomes old, he would have all his teeth. If someone's tooth were to be broken, he would be disfigured. There, they remain absolutely first class, 16 degrees full. There are no handicapped or crippled people there. Here, just look how babies are born handicapped or crippled. You are becoming the masters of such a land of angels. The one Traveller comes and takes you to the land of angels. You travellers become impure while playing your parts here and souls become ugly. The Father is ever beautiful. He never has alloy mixed in Him. I am real gold and this is why people call out to Me. They call out to the One who is ever pure: Baba, come. Come and make us equal to You. You would not become ever pure, but everyone does have to go into the satopradhan stage. However, it is numberwise in that too. There are various actors in a play. Those who play the hero and heroine receive a lot of money. Now, the Government makes raids on everyone's money. It is said: Some people's wealth will remain buried in the ground and some people's wealth will be looted by the Government. Only that which is used in the name of the Lord will be used in a worthwhile way, because the Lord has come to establish heaven. Only the wealth of those who become the Father's helpers will remain safe. You will have plenty of wealth there. There will be so much gold and so much diamond jewellery. However, you are not concerned about that at all. No one is going to loot you there. You will receive new mines of diamonds and gold. The diamonds will be lying there like stones. You are going to receive all of that. Just as palaces of brick are built, similarly, you will continue to build palaces of gold. Even the wealthy subjects will build golden palaces. Those who are full donors will have them built with real gold. Baba continues to tell you everything. He doesn't tell you to starve to death. You have to look after your children etc. It is a creator’s duty to look after everyone and not make them unhappy. You mustn't starve anyone to death. Be merciful. People are so unhappy. You know that when there is to be famine, so many will suffer. They will cry out in distress and then there will be the cries of victory. All souls will receive happiness. The Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. There are two types of happiness: One is to reside in the land of peace and the other is to reside in the land of happiness. There is everything – purity, peace and happiness – in the land of happiness. The Father says: I come every cycle. My part is at the time when people are very unhappy. This is why My name is, the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness, the Bestower of Peace to All and the Bestower of Happiness to All. You know that, together with Baba, you donate peace to everyone. The more you stay in remembrance, the more donations you will continue to give others. You give them knowledge for happiness. Therefore, you children have to reveal your Mother and Father. The more you reveal them and show the path of happiness and peace to many, the more reward you will receive. Baba tells you so many new things of the new world. He gives you visions of the old world and the new world. He will give you even more visions, but only to those who are real, strong children. The Lord is pleased with an honest heart. You will see a great deal. Just as you were shown them in the beginning, so you will be shown them at the end. So many programmes used to be given to you and you were also given visions. You were decorated so beautifully; you were given crowns etc. You will be shown them once again in different ways. It is said: Happiness to the hunter and death for the prey. At the time of partition, it was death for the prey. You weren't concerned about anything. It was as though you had died alive. Baba says: Children, make full effort. Make effort: I am a soul. Continue to speak of spiritual things with one another. All worldly things, body-conscious things, have to end. Those who were amazed and then ran away will not see any of these things. You have seen the past and you will also see new things. Make effort. The Father loves the sweetest children a great deal. Lovely children receive a lot of love. Those who do good service receive love and also a status. Don’t forget: The incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching us souls and making us into heirs of heaven. You have to have divine virtues. Previously, everyone had devilish traits. Baba is now sitting personally in front of you. There is love for the One from whom you receive the inheritance, not for the agent. The agent is just in between. Your bargain is made with that One. Therefore, remember the Father. Continue to renounce body consciousness. Mine is only one Shiv Baba. No other bodily being should be remembered. Baba has entered an old boot. I have taken it on loan. Baba would have spoken these words in the previous cycle. He is also saying them now. These things were explained to you on this day and I am now explaining them to you again. Such a good, broad and unlimited intellect is required. Lakshmi and Narayan became number one. They would definitely have created a good reward. This is the Godfatherly Salvation Army to give the salvation of liberation and liberation-in-life to the whole world. Rama is the Bestower of Salvation for All. The whole world has to go into liberation. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Together with the Father, donate peace to the whole world. Become a remover of sorrow and a bestower of happiness, the same as the Father.
2. Have full love for the one Father. Don't speak of body-conscious things among yourselves. Only speak of spiritual things.
Blessing:
May you be an easy yogi (sahaj yogi) and, instead of being one who is separated (viyogi), become a co-operative soul (sahyogi) who makes preparations instead of waiting.
Some children wait. They think: if this one lets go, I will become free; if this one stops this conflict, I will become free. However, it doesn’t work like that. These obstacles or test papers of Maya are definitely going to come in one form or another from time to time. So, do not wait and think “When this person lets me pass”, or, “When this situation passes by”… no. I have to pass through them. Make such preparations. Constantly move along, holding onto the finger of shrimat. Become co-operative and so an easy yogi. It should not be that you are sometimes co-operative and sometimes separated.
Slogan:
To increase the zeal and enthusiasm of many souls with your zeal and enthusiasm is true service.
''मीठे बच्चे - ज्ञान की एक बूंद है अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो, इसी एक बूंद से मुक्ति-जीवनमुक्ति प्राप्त हो सकती है''
प्रश्नः-
किस पुरुषार्थ में अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है?
उत्तर:-
1- याद में रहने का पुरुषार्थ करो, इसमें ही अपनी और दूसरों की उन्नति समाई हुई है। तुम बच्चे जब याद में बैठते हो तो जैसे दूसरों को शान्ति का दान देते हो। 2- आपस में देह-अभिमान की जिस्मानी बातें छोड़ रूहानी बातें करो तो उन्नति होती रहेगी। तुम्हें बाप का शो करना है। जितना शो करेंगे सबको शान्ति और सुख का मार्ग बतायेंगे, उतना इज़ाफा (इनाम) मिलेगा।
गीत:-
तू प्यार का सागर है......
ओम् शान्ति।
यह भक्ति मार्ग में गाते आये हैं। महिमा करते आये हैं। महिमा है परमपिता परमात्मा की। जैसे भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के गायन होते हैं, उत्सव मनाते हैं वह भी गायन है। कोई भी मनुष्य साधू-सन्त आदि का गायन नहीं हो सकता। गाते हैं वह ज्ञान का सागर है। एक भी बूंद मिले तो हम यहाँ से चले जायेंगे। कहाँ जायेंगे? मुक्ति वा जीवनमुक्तिधाम। महिमा होती रहती है परन्तु उनकी महिमा को जानते नहीं हैं। तुम जानते हो सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। दो बाप का राज़ भी समझाया गया है - एक है लौकिक बाप, उनकी याद आने से उसको देह-अभिमान कहा जायेगा। आत्मा को देह देने वाला बाप याद आता है। आत्मा अपने रूहानी बाप को भूल जाती है। यही भूल है। यूं तो कोई भूले हुए नहीं हैं परन्तु कह देते हैं आत्मा ही परमात्मा है, यही भूल है। यह भी कहते हैं कि हम जीव आत्मा हैं। मेरी आत्मा को तंग नहीं करो। तंग तो आत्मा होती है ना। आत्मा को गर्भजेल में सजा मिलती है तो उनको शरीर में दु:ख भासता है। साक्षात्कार भी स्थूल रूप का करायेंगे, तब वह फील करते हैं, हमको दु:ख मिल रहा है। बच्चों को समझाया है पहले-पहले प्रैक्टिस करो हम आत्मा हैं। देह-अभिमानी बनने से संबंध याद आता है - यह चाचा है, मामा है.....। शरीर नहीं है तो कोई भी संबंध नहीं है। आत्मा का ही ज्ञान है। कोई को महान् परमात्मा थोड़ेही कहा जाता है। कोई मर जाता है तो उनकी आत्मा को बुलाया जाता है। ऐसे नहीं कहेंगे कि इनके परमात्मा को बुलाया जाता है। कोई भी हालत में उनको परमात्मा नहीं कहा जाता। न परमात्मा जन्म-मरण में आते हैं। परमात्मा जन्म-मरण रहित है। आत्मा तो पुनर्जन्म लेती रहती है। यह भी समझ गये हैं कि पहले-पहले आत्मा है देवी-देवताओं की, 84 जन्म भी भारत में गाये जाते हैं। अब बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर सम्मुख बैठे हैं। पतित-पावन को ही ज्ञान सागर कहेंगे। बाप को ही कहा जाता है ज्ञानेश्वर। ईश्वर में ज्ञान है सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का। ईश्वर ही सृष्टि को रचते हैं इसलिए उनको रचना का ज्ञान है। रचता कहते हैं तो जरूर रची हुई सृष्टि है, तब तो कहते हैं ना। रचता को बाप कहा जाता है। बहन-भाई को रचता नहीं कहेंगे। रचता हमेशा बाप को कहा जाता है। बच्चे जानते हैं हमारे सम्मुख बाप बैठे हैं। भल विलायत में कोई बैठे होंगे, कहेंगे बाप से हम दूर हैं परन्तु याद तो करेंगे ना। तुमको भी याद करना है, परन्तु लौकिक संबंध को देख पारलौकिक बाप को भूल जाते हैं इसलिए बाबा कहते हैं उठते-बैठते बाप को याद करने की प्रैक्टिस करो। मैं आत्मा इस शरीर से चलती हूँ। आत्मा का ज्ञान तो तुमको है। यह जानते हो आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल। ऐसे नहीं कहा जाता परमात्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.....। आत्मा और परमात्मा कहा जाता है।
अभी बाप बच्चों के सम्मुख बैठे हैं। कहते हैं आपकी एक बूँद भी बहुत है। परमपिता परमात्मा हम आत्माओं का बाप है। बस, इसको ज्ञान कहा जाता है। ऐसे और कोई को भी कहने की हिम्मत नहीं आयेगी कि तुम सब आत्माओं का मैं बाप हूँ, जिसको ही ज्ञान सागर पतित-पावन कहते हैं। यह कहने कोई को आयेगा नहीं। बाप ही कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। बरोबर, अब महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है, यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। यह सारा समझाने पर मदार है। चित्र देखने से कोई समझ जाये सो मुश्किल है, जब तक टीचर न समझाये। स्कूल में भी टीचर समझाते हैं ना - यह इन्डिया है, यह लन्दन है। बिगर समझाने बुद्धि में आ न सके। अगर नक्शे में नाम पढ़े तो भी सिर्फ नाम कह सकेंगे। लेकिन कहाँ है, कौन राज्य करते हैं, कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। यहाँ भी हर बात समझने की होती है। आजकल तो पहले भभका चाहिए, शो देखकर ही आयेंगे। अब वहाँ समझाने वाले बड़े अच्छे चाहिए। बच्चे ही समझायेंगे कि यह जगत अम्बा है, सबकी मनोकामनायें सिद्ध करने वाली है। झाड़ के नीचे दिखाते हैं - कामधेनु बैठी है। तो उनसे मिलने लिए भी आयेंगे। जगत पिता है तो जरूर जगत की माँ भी होगी, परन्तु जगत अम्बा इनको कहते हैं क्योंकि कलष माताओं को दिया जाता है। मुख्य जगदम्बा गाई हुई है फिर उनकी सेना भी है।
तुम बच्चे एग्जीवीशन करते हो तो उसमें समझाने के लिए बड़े अच्छे-अच्छे बच्चे चाहिए। बाबा ने समझाया है मुख्य बात है बाप के परिचय की। पहले-पहले समझाओ दो बाप हैं। एक है तुम्हारा लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर हद का वर्सा लेते आये, अब बेहद का वर्सा लो। बहुत गई थोड़ी रही..... विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। योग से ही विकर्म विनाश हो सकते हैं। मासी का घर नहीं। अजुन कुछ न कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ है तब तो भोगना पड़ता है ना। कितनी मेहनत लगती है। अगर देरी से आयेंगे तो कितना विकर्म विनाश कर सकेंगे। मुश्किलात है ना। यह तो तुम ढिंढोरा पिटवा दो जो कोई फिर उल्हना न देवे। तुम कह सकेंगे हम तो ढिंढोरा पिटवाते, अ़खबार में डलवाते थे। जितना हो सके निमंत्रण तो सभी को मिलना चाहिए। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। खूब निमंत्रण पत्र बांटो। सबसे जास्ती सर्विस देहली में हो सकती है। देहली है सारे भारत की गद्दी, वहाँ सभी अखबारों के एजेन्ट्स रहते हैं। अ़खबार द्वारा भी इतला करना है। लौकिक बाप से तो जन्म-जन्मान्तर वर्सा लेते आये, अभी फिर पारलौकिक बाप से वर्सा लो। जिस वैकुण्ठ को याद करते हो उसका वर्सा बाप से आकर लो। सभी अखबारों में डालते जाओ - शिवबाबा का बर्थ प्लेस है भारत। सभी का उद्धार करने वाला एक ही बाप है। तो सबसे बड़ा तीर्थ परमपिता परमात्मा पतित-पावन का हुआ ना, परन्तु यह किसको पता नहीं है। क्राइस्ट, इब्राहिम, बुद्ध आदि सभी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। क्रिश्चियन लोग खुद भी कहते हैं क्राइस्ट यहाँ ही किसी जन्म में है। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ को मानते हैं। नहीं तो इतनी आत्मायें कहाँ से आती हैं। जरूर सेक्शन हैं जहाँ से आते हैं। हिस्ट्री फिर रिपीट जरूर होगी। यह झाड़ बड़ी अच्छी चीज़ है परन्तु इनकी वैल्यु बच्चों के पास नम्बरवार है।
बच्चे दूसरों को समझाने के लिए प्रदर्शनी आदि करते हैं। इसमें कोई आर्ट का शो नहीं करना है। आर्ट गैलरी में तो व्यर्थ के चित्र रखते हैं। समझते हैं यह आर्ट है। देवताओं की पतली कमर आदि के किस्म-किस्म के चित्र बनाते हैं। वहाँ देवताओं की तो नेचुरल ब्युटी रहती है। इस समय तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। सतयुग में 5 तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। कृष्ण गोरा और कृष्ण सांवरा गाया हुआ है। वहाँ शरीर की मरम्मत नहीं होती। यहाँ तो देखो कितनी मरम्मत करनी पड़ती है। वहाँ तो भल बूढ़ा हो जाए तो भी दांत आदि सभी साबुत रहते हैं। दांत टूट जाएं तो डिसफिगर हो जाएं। वहाँ तो एकदम फर्स्ट क्लास 16 कला सम्पूर्ण रहते हैं। लूले-लंगड़े होते नहीं। यहाँ तो देखो कैसे लूले-लंगड़े जन्म लेते हैं। तो तुम ऐसे परिस्तान के मालिक बन रहे हो। एक ही मुसाफिर आकर परिस्तान में ले जाते हैं। तुम मुसाफिर यहाँ पार्ट बजाते-बजाते पतित बन जाते हो, आत्मा काली हो जाती है। बाप तो एवर हुसैन है, उनमें कभी खाद नहीं पड़ती है। मैं तो सच्चा सोना हूँ इसलिए मुझे बुलाते हैं। एवर पावन को ही बुलाते हैं - बाबा आओ, हमको भी आप समान बनाओ। तुम एवर पावन तो नहीं बनेंगे। बाकी सतोप्रधान में तो सबको आना है, परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं। नाटक में एक्टर्स भिन्न-भिन्न होते हैं ना। कोई हीरो-हीरोइन होते हैं तो उनको पैसे भी बहुत मिलते हैं। अभी तो गवर्मेन्ट सबके पैसे पकड़ती रहती है। कहा जाता है - किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए, सफली होगी वह जो खर्चे नाम धनी के....... क्योंकि धनी आया हुआ है स्वर्ग की स्थापना करने। जो बाप के मददगार बनेंगे उन्हों का ही सेफ रहेगा। तुमको तो वहाँ ढेर की ढेर मिलकियत होगी। कितना सोना हीरे जवाहर आदि होंगे! परन्तु तुमको उसकी कोई भी परवाह नहीं रहती है। तुमको कोई लूटेंगे थोड़ेही। हीरे-सोने आदि की खानियां सब तुमको नई-नई मिलेंगी। पत्थरों मुआफिक हीरे पड़े होंगे। सब तुमको मिल जाना है। जैसे ईटों के महल बनते हैं वहाँ सोने के महल बनाते रहेंगे। धनवान प्रजा भी सोने के महल बनायेगी। जो पूरे दानी बनते हैं वह भी सोने के बनाते हैं। बाबा सब बातें बतलाते रहते हैं। ऐसे भी नहीं कहते तुम भूख मरो। बच्चों आदि को भी सम्भालना है। रचता का फ़र्ज है सम्भाल करना, दु:खी नहीं करना है। भूख नहीं मारना है। रहमदिल बनना है। मनुष्य कितने दु:खी हैं, जानते हो फैमन पड़ेगा तो बहुत दु:खी होंगे। त्राहि-त्राहि करेंगे, फिर जयजयकार होगी। सब आत्माओं को सुख मिल जायेगा। बाप है ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। सुख हैं दो - एक शान्तिधाम में रहना और दूसरा सुखधाम में रहना। सुखधाम में पवित्रता, सुख, शान्ति सब है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। जब मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं, मेरा पार्ट ही उस समय का है इसलिए मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, सर्व का शान्ति दाता, सुखदाता।
तुम जानते हो हम बाबा के साथ सबको शान्ति का दान देते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना औरों को दान देते रहेंगे। फिर नॉलेज देते हैं सुख के लिए। तो बच्चों को मात-पिता का शो करना है। जितना शो करेंगे, सुख शान्ति का मार्ग बहुतों को बतायेंगे तो इज़ाफा मिलेगा। बाबा तुमको कितना सब नई दुनिया की नई-नई बातें सुनाते हैं। पुरानी दुनिया और नई दुनिया दोनों का साक्षात्कार कराते हैं। और ही जास्ती तुमको साक्षात्कार करायेंगे, परन्तु उनको जो बाबा के पक्के सच्चे बच्चे होंगे। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। तुम बहुत कुछ देखेंगे जैसे शुरू में भी दिखाया था फिर अन्त में दिखायेंगे। कितने प्रोग्राम आते थे, साक्षात्कार कराते थे। कितनी सजावट, ताज आदि पहनाते थे फिर से भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखायेंगे। मिरूआ मौत मलूका शिकार। उसी समय पार्टीशन में भी मिरूआ मौत था ना। तुमको कोई परवाह नहीं थी। तुम तो जैसे जीते जी मर गये। तो बाबा कहते हैं - बच्चे, पूरी मेहनत करो, पुरुषार्थ करो, हम आत्मा हैं। एक-दो से भी रूहानी बातें करते रहो। जिस्मानी देह-अभिमान की बातें खत्म। जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो जायेंगे वह यह सब नहीं देखेंगे। पास्ट भी तुमने देखा और जो नया होगा वह भी तुम देखेंगे, मेहनत करो। मीठे-मीठे बच्चों को बाप बहुत प्यार करते हैं। प्यारे बच्चों को बहुत प्यार मिलता है। जो अच्छी सर्विस करेंगे उनको प्यार भी मिलेगा, पद भी मिलेगा। भूलो नहीं, हम आत्माओं को निराकार परमपिता परमात्मा शिक्षा दे रहे हैं, स्वर्ग का वारिस बना रहे हैं। दैवी गुणवान बनना है। आगे तो सबमें आसुरी गुण थे। अब बाबा सम्मुख बैठे हैं, जिससे वर्सा मिलता है, उनसे लॅव रहता है, दलाल से नहीं। दलाल तो बीच में हुआ। सौदा तुमको उनसे मिलता है। तो बाप को याद करो। देह-अभिमान को छोड़ते जाओ। मेरा तो एक बाबा, दूसरा कोई भी देहधारी याद न आये। यह तो बाबा पुरानी बूट में आये हैं। मैंने यह लोन लिया है। कल्प पहले भी यह अक्षर कहे होंगे। अब भी कह रहे हैं। आज के ही दिन तुमको यह समझाया था फिर समझा रहा हूँ। कितनी अच्छी विशाल बुद्धि चाहिए। लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन बने हैं, जरूर अच्छी प्रालब्ध बनाई होगी। यह गॉड फादरली सैलवेशन आर्मी है, सारी दुनिया को मुक्ति-जीवनमुक्ति की सैलवेशन देने वाली। सर्व का सद्गति दाता राम। गति में तो जाना ही है सारी दुनिया को। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के साथ सारे विश्व को शान्ति का दान देना है। बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।
2) एक बाप से पूरा लॅव रखना है। आपस में देह-अभिमान की बातें नहीं करनी है। रूहानी बातें ही करनी है।
वरदान:-
इन्तजार को छोड़ इन्तजाम करने वाले वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी भव
कई बच्चे इन्तजार करते हैं कि यह छोड़ें तो छूटूं, यह टकराव छोड़ें तो छूटूं-लेकिन ऐसा नहीं होता। यह तो माया के विघ्न वा पढ़ाई में पेपर समय प्रति समय भिन्न-भिन्न रूपों से आने ही हैं। तो यह इन्तजार नहीं करो कि फलाना व्यक्ति पास करे, फलानी परिस्थिति पास करे.. नहीं, मुझे पास करना है। ऐसा इन्तजाम करो। सदा श्रीमत की अंगुली के आधार पर चलते, सहयोगी सो सहजयोगी बनो। कभी सहयोगी कभी वियोगी नहीं।
स्लोगन:-
अपने उमंग-उत्साह द्वारा अनेक आत्माओं का उत्साह बढ़ाना - यह सच्ची सेवा है।
20/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, one drop of knowledge is to consider yourself to be a soul and to remember the Father. With this one drop, you can attain liberation and liberation-in-life.
Question:
In which effort is progress for oneself and others merged?
Answer:
1) The effort to stay in remembrance. It is in this that progress for oneself and others is merged. When you children sit in remembrance, it is as though you are giving others a donation of peace. 2) Stop talking of body conscious and worldly things and speak of spiritual things and you will continue to make progress. You have to show (reveal) the Father. To the extent that you reveal the Father and show everyone the path to peace and happiness, to that extent you will receive a reward.
Song:
You are the Ocean of Love. We thirst for one drop.
Om Shanti
People have been singing this on the path of devotion. People have been praising Him. Praise is of the Supreme Father, the Supreme Soul. Just as there are many types of praise and festivals on the path of devotion, so there is this praise too. This cannot be praise of any human being, sage or holy man. They sing: You are the Ocean of Knowledge. If we receive even one drop of knowledge, we will go away from here. Where will they go? To the land of liberation or liberation-in-life. They continue to praise Him but people don't know His praise. You know it, numberwise, according to the effort you make. The significance of the two fathers has also been explained to you. One is your physical father and it is called body consciousness when you remember him. A soul remembers the father who gave him a body and he forgets his spiritual Father. This is the mistake. In fact, they haven’t forgotten, but the mistake they have made is saying that each soul is the Supreme Soul. They even say that they are living, embodied souls. “Do not distress my soul!” It is the soul that is distressed. A soul receives punishment in the jail of a womb and so he experiences sorrow while in a body. A soul feels that he is receiving sorrow when he is given a vision in the physical form. It has been explained to you children: First of all, practise: I am a soul. When you become body conscious, you remember your relatives: This one is my paternal uncle and this one is my maternal uncle. When you don't have a body, you don’t have any relatives. This knowledge is of the soul. You wouldn't call anyone Great Supreme Soul. After someone has died, the soul of that person is invoked. It wouldn't be said that the Supreme Soul of such-and-such a person is invoked. Under no circumstances would any human being be called the Supreme Soul nor does the Supreme Soul enter into the cycle of birth and death. The Supreme Soul is beyond birth and death. Souls continue to take rebirth. You have understood that, first of all, there are the souls of the deities. The 84 births are only remembered in Bharat. You children know that the Ocean of Knowledge is now sitting personally in front of you. Only the Purifier is called the Ocean of Knowledge. Only the Father is called Gyaneshwar (God of Knowledge). Ishwar (God) has the knowledge of the beginning, middle and end of the world. God alone creates the world and this is how He has knowledge of creation. He is called the Creator and so the world He created definitely does exist; this is why He is called that. A creator is called a father. Brothers and sisters cannot be called a creator. It is always a father who is a creator. You children know that the Father is personally sitting in front of you. Someone may be sitting abroad and he would say that he is far away from his father, but he would still remember him, would he not? You too have to remember Him, but when you see your lokik relatives, you forget the parlokik Father and this is why Baba says: While sitting, standing and moving around, practise remembering the Father. I, the soul, am walking with this body. You have knowledge of the soul. You know that souls and the Supreme Soul remained separated for a long time; it is not said that the Supreme Souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. It is said: Souls and the Supreme Soul. The Father is now sitting personally in front of you children. They say: Just one drop from You is enough. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Father of us souls. That is all. This is called knowledge. No one else would have the courage to say: I am the Father of all of you souls. He alone is called the Ocean of Knowledge and the Purifier. No one else would know how to say this. The Father Himself says: I am your Father. Truly, that great war is just ahead. There are the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. Everything depends on how you explain all of this. It is difficult for anyone to understand just by looking at the pictures unless a teacher explains them to him. Teachers explain at school: This is India and this is London. Nothing would enter anyone’s intellect without an explanation. When the name is written on a map, there is just the name, so one cannot understand where it is or who rules there. Here, too, everything has to be understood. Nowadays, there first of all has to be some splendour, so that people will come when they see that display. Very good people are needed to explain there (at exhibitions). Only children would explain that this one is Jagadamba, the one who fulfils everyone's desires. They have shown Kamdhenu sitting under the tree. Therefore, many would come to meet her. There is Jagadpita (World Father) and so there must also be the World Mother. However, that one is called Jagadamba because the urn is given to you mothers. Jagadamba has been remembered as the main one, and then there is also her army. When you children hold exhibitions, very good children are needed to explain there. Baba has said: The main thing is to give the Father's introduction. First of all, explain that there are two fathers: one is your lokik father and the other is your parlokik Father. You have been receiving a limited inheritance from your lokik father for birth after birth. Now claim the unlimited inheritance. A lot of time has gone by, a little remains. There is a huge burden of sins on your heads. Your sins can only be absolved by having yoga. This is not like going to your aunty's home! As yet, one karmic account or another still remains and this is why you have to suffer for your past actions. It takes so much effort. If you come late, how many of your sins would you be able to have absolved? This is a difficulty, is it not? You have to beat the drums so that no one can complain later. You can say: We used to beat the drums and have it printed in the newspapers. As far as possible, everyone should receive an invitation. Make effort to claim the unlimited inheritance from the unlimited Father. Distribute lots of invitation letters. The maximum service can take place in Delhi. Delhi is the capital of the whole of Bharat. The agents of all the newspapers live there. You also have to make this announcement in the newspapers: You have been claiming your inheritance from your lokik fathers for birth after birth. Now claim your inheritance from the parlokik Father. Come and claim from the Father the inheritance of the Paradise you have been remembering. Have it printed in all the newspapers: Bharat is the birthplace of Shiv Baba. There is only the one Father who will uplift everyone. The greatest pilgrimage place is that of the Supreme Father, the Supreme Soul, the Purifier. However, no one knows this. Christ, Abraham, Buddha etc. have all been taking rebirth and are now in their final births. Christians themselves say that Christ exists here in some form. They also believe in the tree. Otherwise, where else do all of these souls come from? There are definitely sections where they come from. History will then definitely repeat. This tree is something very good, but children value it numberwise. Children hold exhibitions to explain to other people. You don’t have to have an art show. In an art gallery they have useless pictures and they call it art. They paint many different pictures of deities with slim waists. There, the deities have natural beauty. At this time even the five elements are tamopradhan. In the golden age the five elements are satopradhan. The beautiful Krishna and the ugly Krishna have been remembered. There, you don't need to do anything to your body. Here, you have to do so many things for your body in order to look after it. There, even when someone becomes old, he would have all his teeth. If someone's tooth were to be broken, he would be disfigured. There, they remain absolutely first class, 16 degrees full. There are no handicapped or crippled people there. Here, just look how babies are born handicapped or crippled. You are becoming the masters of such a land of angels. The one Traveller comes and takes you to the land of angels. You travellers become impure while playing your parts here and souls become ugly. The Father is ever beautiful. He never has alloy mixed in Him. I am real gold and this is why people call out to Me. They call out to the One who is ever pure: Baba, come. Come and make us equal to You. You would not become ever pure, but everyone does have to go into the satopradhan stage. However, it is numberwise in that too. There are various actors in a play. Those who play the hero and heroine receive a lot of money. Now, the Government makes raids on everyone's money. It is said: Some people's wealth will remain buried in the ground and some people's wealth will be looted by the Government. Only that which is used in the name of the Lord will be used in a worthwhile way, because the Lord has come to establish heaven. Only the wealth of those who become the Father's helpers will remain safe. You will have plenty of wealth there. There will be so much gold and so much diamond jewellery. However, you are not concerned about that at all. No one is going to loot you there. You will receive new mines of diamonds and gold. The diamonds will be lying there like stones. You are going to receive all of that. Just as palaces of brick are built, similarly, you will continue to build palaces of gold. Even the wealthy subjects will build golden palaces. Those who are full donors will have them built with real gold. Baba continues to tell you everything. He doesn't tell you to starve to death. You have to look after your children etc. It is a creator’s duty to look after everyone and not make them unhappy. You mustn't starve anyone to death. Be merciful. People are so unhappy. You know that when there is to be famine, so many will suffer. They will cry out in distress and then there will be the cries of victory. All souls will receive happiness. The Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. There are two types of happiness: One is to reside in the land of peace and the other is to reside in the land of happiness. There is everything – purity, peace and happiness – in the land of happiness. The Father says: I come every cycle. My part is at the time when people are very unhappy. This is why My name is, the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness, the Bestower of Peace to All and the Bestower of Happiness to All. You know that, together with Baba, you donate peace to everyone. The more you stay in remembrance, the more donations you will continue to give others. You give them knowledge for happiness. Therefore, you children have to reveal your Mother and Father. The more you reveal them and show the path of happiness and peace to many, the more reward you will receive. Baba tells you so many new things of the new world. He gives you visions of the old world and the new world. He will give you even more visions, but only to those who are real, strong children. The Lord is pleased with an honest heart. You will see a great deal. Just as you were shown them in the beginning, so you will be shown them at the end. So many programmes used to be given to you and you were also given visions. You were decorated so beautifully; you were given crowns etc. You will be shown them once again in different ways. It is said: Happiness to the hunter and death for the prey. At the time of partition, it was death for the prey. You weren't concerned about anything. It was as though you had died alive. Baba says: Children, make full effort. Make effort: I am a soul. Continue to speak of spiritual things with one another. All worldly things, body-conscious things, have to end. Those who were amazed and then ran away will not see any of these things. You have seen the past and you will also see new things. Make effort. The Father loves the sweetest children a great deal. Lovely children receive a lot of love. Those who do good service receive love and also a status. Don’t forget: The incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching us souls and making us into heirs of heaven. You have to have divine virtues. Previously, everyone had devilish traits. Baba is now sitting personally in front of you. There is love for the One from whom you receive the inheritance, not for the agent. The agent is just in between. Your bargain is made with that One. Therefore, remember the Father. Continue to renounce body consciousness. Mine is only one Shiv Baba. No other bodily being should be remembered. Baba has entered an old boot. I have taken it on loan. Baba would have spoken these words in the previous cycle. He is also saying them now. These things were explained to you on this day and I am now explaining them to you again. Such a good, broad and unlimited intellect is required. Lakshmi and Narayan became number one. They would definitely have created a good reward. This is the Godfatherly Salvation Army to give the salvation of liberation and liberation-in-life to the whole world. Rama is the Bestower of Salvation for All. The whole world has to go into liberation. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Together with the Father, donate peace to the whole world. Become a remover of sorrow and a bestower of happiness, the same as the Father.
2. Have full love for the one Father. Don't speak of body-conscious things among yourselves. Only speak of spiritual things.
Blessing:
May you be an easy yogi (sahaj yogi) and, instead of being one who is separated (viyogi), become a co-operative soul (sahyogi) who makes preparations instead of waiting.
Some children wait. They think: if this one lets go, I will become free; if this one stops this conflict, I will become free. However, it doesn’t work like that. These obstacles or test papers of Maya are definitely going to come in one form or another from time to time. So, do not wait and think “When this person lets me pass”, or, “When this situation passes by”… no. I have to pass through them. Make such preparations. Constantly move along, holding onto the finger of shrimat. Become co-operative and so an easy yogi. It should not be that you are sometimes co-operative and sometimes separated.
Slogan:
To increase the zeal and enthusiasm of many souls with your zeal and enthusiasm is true service.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.