Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali - 15th Sep - 2018 )
15-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - कालों का काल आया है तुम सबको वापिस ले जाने, इसलिए याद से विकर्मों का बोझा ख़त्म करो, अपनी देह से मोह निकाल दो''
प्रश्नः-
भक्तों की कौन-सी पुकार जब बाप सुन लेते हैं तो भक्त खुश होने के बजाए दु:खी होने लगते हैं?
उत्तर:-
भक्तों पर जब दु:ख आता है तब कहते हैं - हे भगवान्, मुझे इस दु:ख की दुनिया से ले चलो, मेरी इस पतित दुनिया में दरकार नहीं लेकिन जब बाप पुकार सुनकर ले जाने के लिए आते हैं, तब रोते हैं। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरूस्त हो जाएं।
गीत:-
दूरदेश का रहने वाला.....
ओम् शान्ति।
दूरदेश में बाप भी रहते हैं और तुम बच्चे भी रहते हो। अब यह बाप यहाँ क्यों आया है? बाप को क्यों याद करते हैं - हे भगवान् आओ, आकरके हमको वापिस ले जाओ? यह आत्मा कहती है अपने घर मुक्तिधाम ले जाओ। यह तो जैसे कालों के काल को पुकारते हैं। भक्ति मार्ग में समझ नहीं है हम किसको पुकारते हैं कि हमको इस पतित दुनिया के सम्बन्ध से छुड़ाकर साथ ले चलो, हमको यहाँ रहने की दरकार नहीं है और फिर कोई की आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो कितने दु:खी होते हैं, रोते पीटते हैं। एक तरफ तो बुलाते हैं - बाबा, आकरके हमको यहाँ से ले जाओ, इस शरीर से मुक्त करो। परन्तु जब मुक्त करते हैं तो रोते-चिल्लाते हैं। भक्ति मार्ग में पुकारते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। सावित्री सत्यवान की कहानी है। वह तो एक की आत्मा को ले जा रहे थे, परन्तु सावित्री ले जाने नहीं दे रही थी। मनुष्य जब शरीर छोड़ते हैं तो शरीर में मोह होने के कारण आत्मा छोड़ना नहीं चाहती। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरुस्त हो जाएं। शरीर को हम छोड़ना नहीं चाहते। साथ में फिर कहते - भगवान् आओ, आकर हमको साथ ले जाओ। वन्डरफुल बात है ना। अभी तुम खुशी से चलते हो। मनुष्यों का तो दुनिया में मित्र-सम्बन्धियों आदि में मोह है। अब पूछते हैं - क्या तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि से छुड़ाऊं? ले तो जाऊं फिर तुम इन सम्बन्धियों की याद छोड़ो। अन्तकाल अगर बच्चों आदि को सिमरेंगे तो फिर ऐसा जन्म मिल जायेगा। बाबा कहते हैं तुम आत्माओं को इस शरीर से अलग कर मैं ले जाऊंगा फिर तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि की याद तो नहीं पड़ेगी? पिछाड़ी में एक बाप को ही याद करना है। पुनर्जन्म में तो फिर यहाँ आना नहीं है इसलिए देह सहित सबको भूलते जाओ। मुझ एक बाप को याद करो। जब तक तुम पवित्र नहीं बनेंगे तब तक तुमको ले नहीं जा सकता हूँ। अब मैं तुम आत्माओं को लेने आया हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर विकर्मों का बहुत बोझा है। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप परमधाम से आये हैं, पराये देश में। अपना देश स्वर्ग जो स्थापन करते हैं, उसमें तो उनको आना नहीं है। यहाँ तुम दु:खी होकर बुलाते हो मुझे तो एक ही समय आकर सभी आत्माओं को वापिस ले जाना है। चाहे खुशी से चलो, चाहे नाराजगी से चलो। चलना है जरूर। बेहद का बाप कालों का काल आत्माओं को वापिस ले जाते हैं। गोया सभी मनुष्यों का विनाश करने आते हैं। पति-पत्नि होते हैं, पत्नि का पति मर जाए तो कितना रोती है। अभी कहते हैं हमको ले चलो, हमें कुछ नहीं चाहिए। परन्तु तुम पतितों को ले नहीं जा सकते इसलिए पावन बनाने आया हूँ। पावन तब बनेंगे जब अपने को अशरीरी समझेंगे। देह सहित देह के सब सम्बन्ध भूलेंगे। मुझ एक बाप को याद करेंगे, तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। युक्ति तो बहुत अच्छी बतलाता हूँ - कल्प-कल्प। तुम जानते हो यह सब शरीर ख़ाक हो जायेंगे। होलिका होती है तो उसमें धागा जलता नहीं है तो आत्मा भी जलती नहीं। बाकी इस भंभोर को आग लगनी है। सभी शरीर जलकर खाक हो जायेंगे और आत्मा शुद्ध हो जायेगी।
आत्माओं को शुद्ध बनने के लिए निरन्तर देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना है। देह होते भी अपने को आत्मा समझ बाप के साथ योग लगाना है। जैसे सन्यासी लोग ब्रह्म अथवा तत्व से योग लगाते हैं, कहते हैं हम तत्व में लीन हो जायेंगे। तत्व से बुद्धियोग लग जाता है। ऐसे नहीं कि शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं तत्व से अथवा ब्रह्म से हम योग लगाते-लगाते ब्रह्म में लीन हो जायेंगे इसलिए हम उनको ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहते हैं। तत्व का ज्ञान है। तुमको ज्ञान है हम आत्मायें तत्व में रहती हैं। वह समझते हैं हम उस तत्व में लीन हो जायेंगे। अगर कहें हम जाकर वहाँ रहेंगे, तो भी ठीक है। आत्मा लीन तो होती नहीं है। बुदबुदे का मिसाल देते हैं लेकिन वह तो रांग है। ज्योति में लीन होने की बात ही नहीं। अविनाशी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है जो कभी विनाश हो नहीं सकता। सन्यासी विकारों का सन्यास करते हैं, बाकी वापिस तो कोई जाते नहीं, यहाँ ही पुनर्जन्म लेते रहते हैं। वृद्धि होती जाती है। सबको सतो, रजो, तमो से पास होना ही है। ड्रामा में यह सब नूंध है। अभी तो देखो बीमारियां भी कितनी अनेक प्रकार की निकली हैं, पहले इतनी नहीं थी। ड्रामा में यह सारी नूंध है। तुम बच्चे जानते हो - बाबा आया ही है सब आत्माओं को वापिस ले जाने। कहते हैं - बाबा, हमको वापिस ले चलो। मुक्ति-जीवनमुक्ति तो सबको मिलनी है। परन्तु सब सतयुग में तो नहीं आ सकते। जो-जो जिस समय आते हैं, उसी समय उस धर्म में ही फिर आना पड़ेगा। तुम जानते हो फलाने-फलाने धर्म, फलाने टाइम पर आते हैं। बाबा भी कल्प पहले मुआफिक आया हुआ है, इतनी सब आत्माओं को वापिस ले जायेंगे। इस धरनी को कितनी खाद मिलनी है। नई दुनिया को भी खाद चाहिए ना। तो सब मनुष्य, जानवर आदि ख़त्म हो खाद बन जायेंगे फिर सतयुग में कितना अच्छा फल देते हैं, जो तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है।
तुम बच्चे जानते हो - बाबा कालों का काल है। सब कहते हैं - बाबा, हम खुशी से आपके साथ चलते हैं, हमको ले चलो। हमको यहाँ बहुत दु:ख है। यह है ही दु:ख देने वाली दुनिया। दु:खधाम में एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। अपार दु:ख हैं, अब तुमको सुख में ले जाने आया हूँ। अब एक को याद करेंगे तो वर्सा पा सकेंगे। नहीं तो राजाई का वर्सा पूरा पा नहीं सकेंगे, फिर प्रजा में चले जायेंगे। बाप आकर राजाई का सुख देते हैं, और कोई भी धर्म स्थापक राजधानी स्थापन नहीं करते हैं। यह तो राजधानी स्थापन कर रहे हैं गुप्त वेष में। कोई को पता नहीं है कि सतयुग में लक्ष्मी-नारायण की राजधानी कैसे स्थापन हुई? शरीरधारी देवतायें कहाँ से आये? जबकि कलियुग में असुर थे। असुरों और देवताओं की लड़ाई तो चली नहीं है। न लड़ाई की बात है, न विकार की कटारी चलती है। फिर क्यों दिखाते हैं लड़ाई लगी? मूंझ गये हैं। सृष्टि तो वही है सिर्फ समय बदलता है। यह है बेहद का दिन, बेहद की रात। सतयुग-त्रेता को दिन कहा जाता है, वहाँ तो लड़ाई होती नहीं। परन्तु वह राजधानी उन्हों को कैसे मिली? कलियुग में तो राजधानी है नहीं। कहते हैं - बाबा, वन्डरफुल है आपकी स्थापना का कर्तव्य! इतने बच्चों को सुखी बनाते हो। बाकी हाँ, अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार ऊंच पद पा सकते हैं। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष बाद परमपिता परमात्मा आते हैं। भल करके कोई प्रभू, कोई गॉड कहते हैं, पिता तो है ना। पिता कहना कितना अच्छा है। ईश्वर हमारा पिता है। सिर्फ प्रभू कहने से इतना मजा नहीं आयेगा। गॉड कहने से सर्वव्यापी समझ लेते हैं। फादर कहा जाए तो सर्वव्यापी कह न सकें। अब तुम आत्मायें सुन रही हो। समझती हो हमारा बाबा आया हुआ है, हमको योग से पवित्र बना रहे हैं। तो बाप, टीचर, सतगुरू को याद करना पड़े। यहाँ बच्चों को भासना आती है सम्मुख रहने से। हम तो आत्मा हैं, इस शरीर से पार्ट बजाते हैं। बाबा हमको लेने आये हैं। हम पुरुषार्थ करते हैं बाबा से योग लगायें। बाबा को याद करते-करते बाबा के पास चले जायेंगे। कोई सन्यासी जो बहुत उत्तम होते हैं तो वह भी ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं हम आत्मा जाकर ब्रह्म में लीन हो जायेंगी। सभी मोक्ष अथवा मुक्ति के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं क्योंकि संसार में बहुत दु:ख है, इसलिए मोक्ष अथवा मुक्ति चाहते हैं। उन्हों को यह मालूम नहीं रहता कि दुनिया का चक्र फिरना है। हमारा पार्ट जरूर अविनाशी होना चाहिए।
तुम्हारी बुद्धि जिन्न मिसल होनी चाहिए। जिन्न की कहानी कहते हैं ना, बोला - हमको काम दो, नहीं तो खा जायेंगे। फिर उसको काम दिया - सीढ़ी चढ़ो और उतरो। तुमको भी बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। माया है जिन्न, योग लगाने नहीं देती है। अच्छे-अच्छे पहलवान बहादुर को भी माया कच्चा खा जाती है। तुम जानते हो - बाबा सिखलाने आया हुआ है। कहते हैं - बच्चे, अब सम्मुख आया हूँ, मुझे अब याद करो, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। यह काम दिया जाता है तुम्हारे ही कल्याण के लिए। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। अपने को आत्मा समझ शरीर का भान छोड़ देना है। सन्यासी माना देह सहित सब सन्यास। बाकी अपने को आत्मा समझना है। तुम जानते हो ज्ञान और योगबल से बाबा हमको सो देवी-देवता बनाते हैं। राजाई स्थापन हो रही है। यह राजयोग है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। पाण्डव इतना राजयोग सीखे फिर क्या हुआ? बस, जाकर पहाड़ पर गल मरे? फिर कैसे पता पड़े कि राजाई कैसे स्थापन हुई? अब इन बातों को तुम समझ सकते हो। बाबा कहते हैं अब मुझे याद करो और ट्रस्टी बनकर श्रीमत पर चलो। हर बात में राय लेते रहो। बच्चों आदि की शादी करानी है, मना थोड़ेही करते हैं। हर एक का हिसाब-किताब अलग है। जैसे-जैसे जो बच्चे हैं उनका हिसाब देख राय दी जाती है। कहेंगे बच्चों को शादी करानी है भल करो। पैसा तुम्हारे पास है तो मकान भल बनाओ। मना नहीं है। मकान आदि बनाए बच्चों की शादी आदि कराकर हिसाब चुक्तू करो।
अभी समझते हैं कौन अच्छा पद पा सकते हैं। कितना डिफीकल्ट है। इसमें बड़ी दूरांदेश बुद्धि चाहिए। राजाई पानी है - कम बात थोड़ेही है! जब तक काम ख़लास हो जाए, बच्चों आदि का हिसाब चुक्तू कर छुट्टी करो। कोई से हिसाब है, कर्जा है वह तो पहले उतारो। यह भी समझने की बात है। कन्याओं को कोई बोझा नहीं होता है। क्रियेटर को सब काम ख़लास करना है। फिर बाबा वारिस बना सके। माया भी अच्छी रीति खटकायेगी। परन्तु तुम यह भी समझते हो बाबा तो बहुत मीठा है। सबको पवित्र बनाए वापिस ले जाने आये हैं। ऐसे बाप में तो बहुत लॅव होना चाहिए। मीठी चीज़ है ना। सतयुग में अपार सुख हैं इसलिए स्वर्ग को सब याद करते हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा। कितना मीठा नाम है! जो पास्ट हो जाता है उसका फिर भक्ति मार्ग में नाम बाला रहता है। सतयुग-त्रेता में तो यह बातें नहीं होती। तो बाबा ने जिन्न का काम दे दिया है - अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो, नहीं तो माया रूपी जिन्न तुमको खा जायेगा। याद करना पड़े। आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है। हाँ, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। 8 घण्टा तो शरीर निर्वाह के लिए चाहिए क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। फिर तुम पुरुषार्थ करो। 8 घण्टा अपने पुरुषार्थ के लिए भी निकालो। अपने को ऐसे समझो - बस, हम बाबा के बन गये। यह शरीर तो पुराना है, इससे ममत्व मिट जाना है। मिटते-मिटते, याद करते-करते अगर किसका ममत्व रह गया तो राज्य भाग्य पा नहीं सकेंगे। विश्व का मालिक बनने में मेहनत चाहिए।
बाबा आया है दु:खधाम से लिबरेट कर ले जाने इसलिए उनको लिबरेटर और गाइड, पतित-पावन कहते हैं। पण्डा भी है। समझाना है रावण राज्य का विनाश और रामराज्य की स्थापना करने बाप को आना पड़ता है। वही शान्ति की स्थापना करते हैं, उनके जो मददगार बनते हैं उनको पीस प्राइज़ मिलती है। पीस स्थापन करने वाला ही पीसफुल राज्य देते हैं। वही मोस्ट बिलवेड बाबा है जो हमको कल्प-कल्प वर्सा देते हैं, जितना श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे। तुम जानते हो श्री श्री से हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। 21 जन्मों के लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूरांदेशी बन कर्मबन्धन को समाप्त करना है। कोई भी हिसाब-किताब वा कर्जा है तो उसे उतार हल्का बन वारिस बन जाना है।
2) कर्मयोगी बन कर्म भी करना है, साथ-साथ 8 घण्टा स्व के पुरुषार्थ में देना है। सभी से ममत्व जरूर मिटाना है।
वरदान:-
अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव
आत्मा का स्वधर्म, सुकर्म, स्व स्वरूप और स्वदेश शान्त है। संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है। आपका अनादि लक्षण है शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना। इसी साइलेन्स की शक्ति में विश्व की सर्व समस्याओं का हल समाया हुआ है। शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता से परखने वा निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होती है जो व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज समाधान है।
स्लोगन:-
अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराना ही महादानी बनना है।
15/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the Death of all Deaths has come to take you back home. Therefore, finish your burden of sin with remembrance. Remove attachment from your body.
Question:
The Father hears the call of the devotees when they begin to become unhappy instead of being happy. Which call is this?
Answer:
When devotees experience sorrow, they call out: O God, take me away from this world of sorrow! There is no need for me to be in this impure world. However, when the Father answers this call and comes to take them away, they cry. They say to the doctor: Give me such medicine that I become healthy.
Song:
The Resident of the faraway land has come to the foreign land.
Om Shanti
The Father resides in the faraway land and you children also reside there. Now, why has that Father come here? Why do people remember the Father: “O God, come! Come and take us back home!”? It is souls that call out: Take me back home to the land of liberation. This is like calling out to the Death of all Deaths. On the path of devotion, people don’t know whom they are calling out to. They call out: Liberate us from all relationships of this impure world and take us back home. We don’t want to stay here. However, when the soul of someone leaves his body, they experience so much sorrow and cry out in distress. On the one hand, they call out to Baba: Come and take us away from here and liberate us from this body, but then, when He does liberate them, they cry out in distress. They call out in this way on the path of devotion, but they don’t understand anything. There is the story of Savitri, the wife of Satyavan. He (the Messenger of Death) came to take the soul of just one (her husband), so Savitri did not allow him to be taken away. When a human soul is about to leave the body, the soul doesn’t want to leave because of having so much attachment to the body. They say to the doctor: Give me such medicine that I become healthy. I don’t want to leave my body. However, at the same time, they say: O God, come! Come and take us back home with You. This is such a wonderful aspect. You are now to return home in happiness. Human beings of this world have a lot attachment to their friends and relatives. Baba asks: Shall I free you from your friends and relatives etc.? I will take you back with Me, but you have to stop remembering all your relatives. If, at the end, you remember your children etc., the birth you take will be according to that. Baba says: I will separate you souls from your bodies and take you back home. You will not then remember your friends or relatives at that time, will you? At the end, you only have to remember the one Father. You do not have to come back here to take rebirth. Therefore, continue to forget everyone including your own body and remember Me, the Father, alone. I cannot take you back until you become pure. I have now come to take you souls back. However, there is a huge burden of sin on you. Baba is speaking to souls. The Father has come from the supreme abode into this foreign land. Although He establishes His world of heaven, He Himself does not go there. Here, you call out in sorrow. I only have to come once in order to take all souls back home. Whether you come happily or unhappily, you all definitely have to return. The unlimited Father, the Death of all Deaths, takes all souls back home again which means that He comes to destroy all human beings. When a woman’s husband dies, she cries so much. Now, you say: Take us away from here; we don’t want anything. However, you impure ones cannot be taken back home. Therefore, I have come to make you pure. Only when you consider yourselves to be bodiless and forget your bodies and all your bodily relations can you become pure. When you remember the Father alone, your sins will then be absolved. I show you many good methods every cycle. You know that all of these bodies will turn to ashes. When it is Holika, the thread doesn’t burn. Similarly, the soul is never burnt. However, this haystack will be set on fire. All the bodies will burn and turn to ashes and all the souls will become pure again. In order for you souls to become pure, you constantly have to make effort to remain soul conscious. Even while having a body, you have to consider yourself to be a soul and have yoga with the Father, just as sannyasis have yoga with the brahm element. They say that they will merge into the element of light. Their intellects’ yoga is linked to the element of light. It is not that they leave their bodies. They think that, by having yoga with the brahm element, they will merge into it. This is why we call them those who have knowledge of the brahm element. They have knowledge of the element, but you souls have the knowledge that you reside in the element of light. They believe that they will merge into that element of light. If they were to say that they would go and reside there, at least that would be correct. A soul cannot merge into it. They give the example of a bubble merging into the ocean, but that is wrong. It is not a question of merging into the light. An imperishable soul contains a whole part which can never be destroyed. Sannyasis renounce the vices, but none of them can return home; they continue to take rebirth here. Expansion continues to take place. Everyone has to pass through the stages of sato, rajo and tamo. All of this is fixed in the drama. Now, just look how so many varieties of illness are emerging. Previously, there were not that many diseases. All of this is fixed in the drama. You children know that Baba has now come to take all souls back home. You say: Baba take us back home. Everyone is to receive liberation and liberation-in-life, but not everyone can go to the golden age. Everyone has to come into their own religion again and at their own time. You know that such-and-such a religion comes at such-and-such a time. Baba has also come exactly as He did in the previous cycle and He will also take all the souls back home as He did before. The earth will receive so much fertilizer. Fertilizer will be needed for the new world. This is why all human beings and animals etc. will be destroyed and turned into fertilizer. Then the earth in the golden age will produce very good fruit. You children have also had visions of that. You children understand that Baba is the Death of all Deaths. Everyone says: Baba, we will go with You happily. Take us back. We are experiencing a great deal of sorrow here. This is the world that causes sorrow. In the land of sorrow, people continue to cause sorrow for one another. There is limitless sorrow here, and so I have come to take you to the land of happiness. Now just remember the One and you will be able to claim your inheritance from Him. Otherwise, you will not be able to claim your full inheritance of the kingdom, but will become part of the subjects. The Father comes and gives you the happiness of a kingdom. No other founder of a religion establishes a kingdom. This kingdom is being established in an incognito way. No one knows how the kingdom of Lakshmi and Narayan of the golden age was established. Where did deities with human forms come from if there were devils in the iron age? There was never a war between the devils and the deities. There was no question of a war or of using the sword of lust. In that case, why have they shown a war taking place? They are all confused. The world is the same; only the time changes. This is the unlimited day and the unlimited night. The golden and silver ages are called the day. There are no battles there. Then, how do they receive such a kingdom? There is no kingdom in the iron age. You say: Baba, Your task of establishment is so wonderful. You make so many children happy. Yes, but each one of you can claim a high status according to the effort you make. You know that the Supreme Father, the Supreme Soul, comes every 5000 years. Even though some call Him “Prabhu” or “God”, He is still the Father. It is good to say “Father”. God is our Father. There is no pleasure in simply saying “God”. When they say “God”, they consider Him to be omnipresent, whereas by calling Him “Father”, they do not consider Him to be omnipresent. You souls are now listening. You understand that your Baba has come and that He is making you pure with yoga. Therefore, you have to remember the Father, the Teacher and the Satguru. You children have that feeling by staying here personally in front of Baba. We are souls and we are playing our parts through our bodies. Baba has come to take us back. We are making effort to have yoga with Baba. While remembering Baba, we will return to Baba. There are some very elevated sannyasis who leave their bodies while simply sitting. They believe: I, the soul, will go and merge into the brahm element. Everyone makes effort to attain moksha (eternal liberation) or mukti (liberation). Everyone wants eternal liberation or liberation because there is so much sorrow in the world. They do not know that the cycle of the world has to turn and that each one’s part definitely has to be imperishable. Your intellects should be like a genie. In the story of the genie, he says: Give me some work to do, or I will eat you. Therefore, he was given the task of climbing up and down a ladder. The Father also tells you: Connect your intellects’ in yoga to Me; otherwise, Maya, the genie, will eat you. Maya is like a genie; she doesn’t allow you to have yoga. Maya eats even good, strong, courageous and powerful ones raw. You know that Baba has come to teach you. He says: Children, I have now come personally in front of you. Now remember Me; otherwise, Maya, the genie, will eat you. This task is given to you for your own benefit so that you become the masters of the world. Consider yourselves to be souls and renounce all consciousness of your bodies. To be a sannyasi means to renounce everything including your body, but you do have to consider yourself to be a soul. You understand that Baba is making you into deities with this knowledge and the power of yoga. A kingdom is being established. This is Raja Yoga. These things are not mentioned in the scriptures. What happened to the Pandavas after they studied Raja Yoga? Did they just melt away on the mountains? In that case, how can you tell how the kingdom was established? Now, only you understand these things. Baba says: Now remember Me; become trustees and follow My shrimat. Continue to take advice for every situation. If your children want to get married, there is no objection. Each one’s account is separate. Whatever the child is like, his account is seen and advice is given accordingly. Some say that they want to get their children married. By all means, you can get them married. If you have money, you can also build a house; there is no objection to that. Build homes, get your children married and settle all your accounts. It is now understood who can claim a good status. It is very difficult. You need a far-sighted intellect for this. It is no small matter to claim a kingdom. Complete all your business of settling your outstanding debts with your children. First of all, at least settle any outstanding debts and any accounts you may have with others. This too is something to be understood. Kumaris don’t have any burden. Creators have to accomplish all the tasks. Only then can Baba make them His heirs. Maya will knock you very hard, but you also understand that Baba is very sweet. He has come to purify you all and take you back home. You need to have a great deal of love for such a Father. He is very sweet. There is limitless happiness in the golden age. This is why everyone remembers it. When someone dies, they say that he has gone to heaven. It is such a sweet name. Whatever happened in the past was later glorified on the path of devotion. These things do not happen in the golden and silver ages. So Baba has given you the task of a genie: Consider yourself to be a soul and remember the Father; otherwise, Maya, the genie, will eat you. You have to have remembrance. Have the faith that you are a soul and remember the Father. Yes, you still have to act for the livelihood of your body. You have to work eight hours a day for the livelihood of your body because you are karma yogis, but you still have to make effort. You also have to take out eight hours for making your own effort. Just think: I now belong to Baba. This body is old; you have to break all attachment to it. If, after staying in remembrance and trying to remove your attachment, some attachment still remains at the end, you will not be able to claim any fortune of the kingdom. It takes effort to become a master of the world. Baba has now come to liberate you from this land of sorrow and take you back. This is why He is called the Liberator, the Guide and the Purifier. He is the Guide (to show you the path). You have to explain that the Father has to come to create the kingdom of Rama and destroy the kingdom of Ravan. He alone is the One who establishes peace. Those who become His helpers receive a peace prize. Only the One who establishes peace can give you a peaceful kingdom. He is the most beloved Baba who gives us the inheritance every cycle. The more you follow shrimat, the more elevated you will become. You understand that you are being made into Shri Lakshmi and Shri Narayan by Shri Shri (doubly-elevated One). The sun and moon dynasty kingdoms of 21 births are now being created. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become far-sighted and settle all your karmic bondage accounts. If you have any debts in your karmic accounts, settle them and become light and you will become an heir.
2. Become a karma yogi and work for your livelihood. Together with that, use eight hours a day for your own effort. Definitely put an end to the attachment you have for anyone.
Blessing:
May you stay in solitude and find a solution to all problems by remaining stable in your eternal form.
Your original religion, your pure actions, your original form and your original land are all of peace. The special power of the confluence age is the power of silence. Your eternal characteristic is to be an embodiment of peace and to give everyone peace. The solution to all problems of the world is merged in this power of silence. A soul who is an embodiment of peace stays in solitude and remain constantly concentrated. With this concentration, you can develop the powers to discern and to decide and this is the easy solution to all problems in your interaction with others and in everything that you do for God.
Slogan:
To give the experience of peace with the power of your vision, attitude and awareness is to be a great donor.
''मीठे बच्चे - कालों का काल आया है तुम सबको वापिस ले जाने, इसलिए याद से विकर्मों का बोझा ख़त्म करो, अपनी देह से मोह निकाल दो''
प्रश्नः-
भक्तों की कौन-सी पुकार जब बाप सुन लेते हैं तो भक्त खुश होने के बजाए दु:खी होने लगते हैं?
उत्तर:-
भक्तों पर जब दु:ख आता है तब कहते हैं - हे भगवान्, मुझे इस दु:ख की दुनिया से ले चलो, मेरी इस पतित दुनिया में दरकार नहीं लेकिन जब बाप पुकार सुनकर ले जाने के लिए आते हैं, तब रोते हैं। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरूस्त हो जाएं।
गीत:-
दूरदेश का रहने वाला.....
ओम् शान्ति।
दूरदेश में बाप भी रहते हैं और तुम बच्चे भी रहते हो। अब यह बाप यहाँ क्यों आया है? बाप को क्यों याद करते हैं - हे भगवान् आओ, आकरके हमको वापिस ले जाओ? यह आत्मा कहती है अपने घर मुक्तिधाम ले जाओ। यह तो जैसे कालों के काल को पुकारते हैं। भक्ति मार्ग में समझ नहीं है हम किसको पुकारते हैं कि हमको इस पतित दुनिया के सम्बन्ध से छुड़ाकर साथ ले चलो, हमको यहाँ रहने की दरकार नहीं है और फिर कोई की आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो कितने दु:खी होते हैं, रोते पीटते हैं। एक तरफ तो बुलाते हैं - बाबा, आकरके हमको यहाँ से ले जाओ, इस शरीर से मुक्त करो। परन्तु जब मुक्त करते हैं तो रोते-चिल्लाते हैं। भक्ति मार्ग में पुकारते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। सावित्री सत्यवान की कहानी है। वह तो एक की आत्मा को ले जा रहे थे, परन्तु सावित्री ले जाने नहीं दे रही थी। मनुष्य जब शरीर छोड़ते हैं तो शरीर में मोह होने के कारण आत्मा छोड़ना नहीं चाहती। डॉक्टर को कहते हैं ऐसी दवाई दो जो हम तन्दरुस्त हो जाएं। शरीर को हम छोड़ना नहीं चाहते। साथ में फिर कहते - भगवान् आओ, आकर हमको साथ ले जाओ। वन्डरफुल बात है ना। अभी तुम खुशी से चलते हो। मनुष्यों का तो दुनिया में मित्र-सम्बन्धियों आदि में मोह है। अब पूछते हैं - क्या तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि से छुड़ाऊं? ले तो जाऊं फिर तुम इन सम्बन्धियों की याद छोड़ो। अन्तकाल अगर बच्चों आदि को सिमरेंगे तो फिर ऐसा जन्म मिल जायेगा। बाबा कहते हैं तुम आत्माओं को इस शरीर से अलग कर मैं ले जाऊंगा फिर तुमको मित्र-सम्बन्धियों आदि की याद तो नहीं पड़ेगी? पिछाड़ी में एक बाप को ही याद करना है। पुनर्जन्म में तो फिर यहाँ आना नहीं है इसलिए देह सहित सबको भूलते जाओ। मुझ एक बाप को याद करो। जब तक तुम पवित्र नहीं बनेंगे तब तक तुमको ले नहीं जा सकता हूँ। अब मैं तुम आत्माओं को लेने आया हूँ परन्तु तुम्हारे ऊपर विकर्मों का बहुत बोझा है। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप परमधाम से आये हैं, पराये देश में। अपना देश स्वर्ग जो स्थापन करते हैं, उसमें तो उनको आना नहीं है। यहाँ तुम दु:खी होकर बुलाते हो मुझे तो एक ही समय आकर सभी आत्माओं को वापिस ले जाना है। चाहे खुशी से चलो, चाहे नाराजगी से चलो। चलना है जरूर। बेहद का बाप कालों का काल आत्माओं को वापिस ले जाते हैं। गोया सभी मनुष्यों का विनाश करने आते हैं। पति-पत्नि होते हैं, पत्नि का पति मर जाए तो कितना रोती है। अभी कहते हैं हमको ले चलो, हमें कुछ नहीं चाहिए। परन्तु तुम पतितों को ले नहीं जा सकते इसलिए पावन बनाने आया हूँ। पावन तब बनेंगे जब अपने को अशरीरी समझेंगे। देह सहित देह के सब सम्बन्ध भूलेंगे। मुझ एक बाप को याद करेंगे, तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। युक्ति तो बहुत अच्छी बतलाता हूँ - कल्प-कल्प। तुम जानते हो यह सब शरीर ख़ाक हो जायेंगे। होलिका होती है तो उसमें धागा जलता नहीं है तो आत्मा भी जलती नहीं। बाकी इस भंभोर को आग लगनी है। सभी शरीर जलकर खाक हो जायेंगे और आत्मा शुद्ध हो जायेगी।
आत्माओं को शुद्ध बनने के लिए निरन्तर देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करना है। देह होते भी अपने को आत्मा समझ बाप के साथ योग लगाना है। जैसे सन्यासी लोग ब्रह्म अथवा तत्व से योग लगाते हैं, कहते हैं हम तत्व में लीन हो जायेंगे। तत्व से बुद्धियोग लग जाता है। ऐसे नहीं कि शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं तत्व से अथवा ब्रह्म से हम योग लगाते-लगाते ब्रह्म में लीन हो जायेंगे इसलिए हम उनको ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहते हैं। तत्व का ज्ञान है। तुमको ज्ञान है हम आत्मायें तत्व में रहती हैं। वह समझते हैं हम उस तत्व में लीन हो जायेंगे। अगर कहें हम जाकर वहाँ रहेंगे, तो भी ठीक है। आत्मा लीन तो होती नहीं है। बुदबुदे का मिसाल देते हैं लेकिन वह तो रांग है। ज्योति में लीन होने की बात ही नहीं। अविनाशी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है जो कभी विनाश हो नहीं सकता। सन्यासी विकारों का सन्यास करते हैं, बाकी वापिस तो कोई जाते नहीं, यहाँ ही पुनर्जन्म लेते रहते हैं। वृद्धि होती जाती है। सबको सतो, रजो, तमो से पास होना ही है। ड्रामा में यह सब नूंध है। अभी तो देखो बीमारियां भी कितनी अनेक प्रकार की निकली हैं, पहले इतनी नहीं थी। ड्रामा में यह सारी नूंध है। तुम बच्चे जानते हो - बाबा आया ही है सब आत्माओं को वापिस ले जाने। कहते हैं - बाबा, हमको वापिस ले चलो। मुक्ति-जीवनमुक्ति तो सबको मिलनी है। परन्तु सब सतयुग में तो नहीं आ सकते। जो-जो जिस समय आते हैं, उसी समय उस धर्म में ही फिर आना पड़ेगा। तुम जानते हो फलाने-फलाने धर्म, फलाने टाइम पर आते हैं। बाबा भी कल्प पहले मुआफिक आया हुआ है, इतनी सब आत्माओं को वापिस ले जायेंगे। इस धरनी को कितनी खाद मिलनी है। नई दुनिया को भी खाद चाहिए ना। तो सब मनुष्य, जानवर आदि ख़त्म हो खाद बन जायेंगे फिर सतयुग में कितना अच्छा फल देते हैं, जो तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है।
तुम बच्चे जानते हो - बाबा कालों का काल है। सब कहते हैं - बाबा, हम खुशी से आपके साथ चलते हैं, हमको ले चलो। हमको यहाँ बहुत दु:ख है। यह है ही दु:ख देने वाली दुनिया। दु:खधाम में एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। अपार दु:ख हैं, अब तुमको सुख में ले जाने आया हूँ। अब एक को याद करेंगे तो वर्सा पा सकेंगे। नहीं तो राजाई का वर्सा पूरा पा नहीं सकेंगे, फिर प्रजा में चले जायेंगे। बाप आकर राजाई का सुख देते हैं, और कोई भी धर्म स्थापक राजधानी स्थापन नहीं करते हैं। यह तो राजधानी स्थापन कर रहे हैं गुप्त वेष में। कोई को पता नहीं है कि सतयुग में लक्ष्मी-नारायण की राजधानी कैसे स्थापन हुई? शरीरधारी देवतायें कहाँ से आये? जबकि कलियुग में असुर थे। असुरों और देवताओं की लड़ाई तो चली नहीं है। न लड़ाई की बात है, न विकार की कटारी चलती है। फिर क्यों दिखाते हैं लड़ाई लगी? मूंझ गये हैं। सृष्टि तो वही है सिर्फ समय बदलता है। यह है बेहद का दिन, बेहद की रात। सतयुग-त्रेता को दिन कहा जाता है, वहाँ तो लड़ाई होती नहीं। परन्तु वह राजधानी उन्हों को कैसे मिली? कलियुग में तो राजधानी है नहीं। कहते हैं - बाबा, वन्डरफुल है आपकी स्थापना का कर्तव्य! इतने बच्चों को सुखी बनाते हो। बाकी हाँ, अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार ऊंच पद पा सकते हैं। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष बाद परमपिता परमात्मा आते हैं। भल करके कोई प्रभू, कोई गॉड कहते हैं, पिता तो है ना। पिता कहना कितना अच्छा है। ईश्वर हमारा पिता है। सिर्फ प्रभू कहने से इतना मजा नहीं आयेगा। गॉड कहने से सर्वव्यापी समझ लेते हैं। फादर कहा जाए तो सर्वव्यापी कह न सकें। अब तुम आत्मायें सुन रही हो। समझती हो हमारा बाबा आया हुआ है, हमको योग से पवित्र बना रहे हैं। तो बाप, टीचर, सतगुरू को याद करना पड़े। यहाँ बच्चों को भासना आती है सम्मुख रहने से। हम तो आत्मा हैं, इस शरीर से पार्ट बजाते हैं। बाबा हमको लेने आये हैं। हम पुरुषार्थ करते हैं बाबा से योग लगायें। बाबा को याद करते-करते बाबा के पास चले जायेंगे। कोई सन्यासी जो बहुत उत्तम होते हैं तो वह भी ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। समझते हैं हम आत्मा जाकर ब्रह्म में लीन हो जायेंगी। सभी मोक्ष अथवा मुक्ति के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं क्योंकि संसार में बहुत दु:ख है, इसलिए मोक्ष अथवा मुक्ति चाहते हैं। उन्हों को यह मालूम नहीं रहता कि दुनिया का चक्र फिरना है। हमारा पार्ट जरूर अविनाशी होना चाहिए।
तुम्हारी बुद्धि जिन्न मिसल होनी चाहिए। जिन्न की कहानी कहते हैं ना, बोला - हमको काम दो, नहीं तो खा जायेंगे। फिर उसको काम दिया - सीढ़ी चढ़ो और उतरो। तुमको भी बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। माया है जिन्न, योग लगाने नहीं देती है। अच्छे-अच्छे पहलवान बहादुर को भी माया कच्चा खा जाती है। तुम जानते हो - बाबा सिखलाने आया हुआ है। कहते हैं - बच्चे, अब सम्मुख आया हूँ, मुझे अब याद करो, नहीं तो माया जिन्न खा जायेगी। यह काम दिया जाता है तुम्हारे ही कल्याण के लिए। तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। अपने को आत्मा समझ शरीर का भान छोड़ देना है। सन्यासी माना देह सहित सब सन्यास। बाकी अपने को आत्मा समझना है। तुम जानते हो ज्ञान और योगबल से बाबा हमको सो देवी-देवता बनाते हैं। राजाई स्थापन हो रही है। यह राजयोग है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। पाण्डव इतना राजयोग सीखे फिर क्या हुआ? बस, जाकर पहाड़ पर गल मरे? फिर कैसे पता पड़े कि राजाई कैसे स्थापन हुई? अब इन बातों को तुम समझ सकते हो। बाबा कहते हैं अब मुझे याद करो और ट्रस्टी बनकर श्रीमत पर चलो। हर बात में राय लेते रहो। बच्चों आदि की शादी करानी है, मना थोड़ेही करते हैं। हर एक का हिसाब-किताब अलग है। जैसे-जैसे जो बच्चे हैं उनका हिसाब देख राय दी जाती है। कहेंगे बच्चों को शादी करानी है भल करो। पैसा तुम्हारे पास है तो मकान भल बनाओ। मना नहीं है। मकान आदि बनाए बच्चों की शादी आदि कराकर हिसाब चुक्तू करो।
अभी समझते हैं कौन अच्छा पद पा सकते हैं। कितना डिफीकल्ट है। इसमें बड़ी दूरांदेश बुद्धि चाहिए। राजाई पानी है - कम बात थोड़ेही है! जब तक काम ख़लास हो जाए, बच्चों आदि का हिसाब चुक्तू कर छुट्टी करो। कोई से हिसाब है, कर्जा है वह तो पहले उतारो। यह भी समझने की बात है। कन्याओं को कोई बोझा नहीं होता है। क्रियेटर को सब काम ख़लास करना है। फिर बाबा वारिस बना सके। माया भी अच्छी रीति खटकायेगी। परन्तु तुम यह भी समझते हो बाबा तो बहुत मीठा है। सबको पवित्र बनाए वापिस ले जाने आये हैं। ऐसे बाप में तो बहुत लॅव होना चाहिए। मीठी चीज़ है ना। सतयुग में अपार सुख हैं इसलिए स्वर्ग को सब याद करते हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा। कितना मीठा नाम है! जो पास्ट हो जाता है उसका फिर भक्ति मार्ग में नाम बाला रहता है। सतयुग-त्रेता में तो यह बातें नहीं होती। तो बाबा ने जिन्न का काम दे दिया है - अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो, नहीं तो माया रूपी जिन्न तुमको खा जायेगा। याद करना पड़े। आत्मा निश्चय कर बाप को याद करना है। हाँ, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। 8 घण्टा तो शरीर निर्वाह के लिए चाहिए क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। फिर तुम पुरुषार्थ करो। 8 घण्टा अपने पुरुषार्थ के लिए भी निकालो। अपने को ऐसे समझो - बस, हम बाबा के बन गये। यह शरीर तो पुराना है, इससे ममत्व मिट जाना है। मिटते-मिटते, याद करते-करते अगर किसका ममत्व रह गया तो राज्य भाग्य पा नहीं सकेंगे। विश्व का मालिक बनने में मेहनत चाहिए।
बाबा आया है दु:खधाम से लिबरेट कर ले जाने इसलिए उनको लिबरेटर और गाइड, पतित-पावन कहते हैं। पण्डा भी है। समझाना है रावण राज्य का विनाश और रामराज्य की स्थापना करने बाप को आना पड़ता है। वही शान्ति की स्थापना करते हैं, उनके जो मददगार बनते हैं उनको पीस प्राइज़ मिलती है। पीस स्थापन करने वाला ही पीसफुल राज्य देते हैं। वही मोस्ट बिलवेड बाबा है जो हमको कल्प-कल्प वर्सा देते हैं, जितना श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे। तुम जानते हो श्री श्री से हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। 21 जन्मों के लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूरांदेशी बन कर्मबन्धन को समाप्त करना है। कोई भी हिसाब-किताब वा कर्जा है तो उसे उतार हल्का बन वारिस बन जाना है।
2) कर्मयोगी बन कर्म भी करना है, साथ-साथ 8 घण्टा स्व के पुरुषार्थ में देना है। सभी से ममत्व जरूर मिटाना है।
वरदान:-
अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव
आत्मा का स्वधर्म, सुकर्म, स्व स्वरूप और स्वदेश शान्त है। संगमयुग की विशेष शक्ति साइलेन्स की शक्ति है। आपका अनादि लक्षण है शान्त स्वरूप रहना और सर्व को शान्ति देना। इसी साइलेन्स की शक्ति में विश्व की सर्व समस्याओं का हल समाया हुआ है। शान्त स्वरूप आत्मा एकान्तवासी होने के कारण सदा एकाग्र रहती है और एकाग्रता से परखने वा निर्णय करने की शक्ति प्राप्त होती है जो व्यवहार वा परमार्थ दोनों की सर्व समस्याओं का सहज समाधान है।
स्लोगन:-
अपनी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति से शान्ति का अनुभव कराना ही महादानी बनना है।
15/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the Death of all Deaths has come to take you back home. Therefore, finish your burden of sin with remembrance. Remove attachment from your body.
Question:
The Father hears the call of the devotees when they begin to become unhappy instead of being happy. Which call is this?
Answer:
When devotees experience sorrow, they call out: O God, take me away from this world of sorrow! There is no need for me to be in this impure world. However, when the Father answers this call and comes to take them away, they cry. They say to the doctor: Give me such medicine that I become healthy.
Song:
The Resident of the faraway land has come to the foreign land.
Om Shanti
The Father resides in the faraway land and you children also reside there. Now, why has that Father come here? Why do people remember the Father: “O God, come! Come and take us back home!”? It is souls that call out: Take me back home to the land of liberation. This is like calling out to the Death of all Deaths. On the path of devotion, people don’t know whom they are calling out to. They call out: Liberate us from all relationships of this impure world and take us back home. We don’t want to stay here. However, when the soul of someone leaves his body, they experience so much sorrow and cry out in distress. On the one hand, they call out to Baba: Come and take us away from here and liberate us from this body, but then, when He does liberate them, they cry out in distress. They call out in this way on the path of devotion, but they don’t understand anything. There is the story of Savitri, the wife of Satyavan. He (the Messenger of Death) came to take the soul of just one (her husband), so Savitri did not allow him to be taken away. When a human soul is about to leave the body, the soul doesn’t want to leave because of having so much attachment to the body. They say to the doctor: Give me such medicine that I become healthy. I don’t want to leave my body. However, at the same time, they say: O God, come! Come and take us back home with You. This is such a wonderful aspect. You are now to return home in happiness. Human beings of this world have a lot attachment to their friends and relatives. Baba asks: Shall I free you from your friends and relatives etc.? I will take you back with Me, but you have to stop remembering all your relatives. If, at the end, you remember your children etc., the birth you take will be according to that. Baba says: I will separate you souls from your bodies and take you back home. You will not then remember your friends or relatives at that time, will you? At the end, you only have to remember the one Father. You do not have to come back here to take rebirth. Therefore, continue to forget everyone including your own body and remember Me, the Father, alone. I cannot take you back until you become pure. I have now come to take you souls back. However, there is a huge burden of sin on you. Baba is speaking to souls. The Father has come from the supreme abode into this foreign land. Although He establishes His world of heaven, He Himself does not go there. Here, you call out in sorrow. I only have to come once in order to take all souls back home. Whether you come happily or unhappily, you all definitely have to return. The unlimited Father, the Death of all Deaths, takes all souls back home again which means that He comes to destroy all human beings. When a woman’s husband dies, she cries so much. Now, you say: Take us away from here; we don’t want anything. However, you impure ones cannot be taken back home. Therefore, I have come to make you pure. Only when you consider yourselves to be bodiless and forget your bodies and all your bodily relations can you become pure. When you remember the Father alone, your sins will then be absolved. I show you many good methods every cycle. You know that all of these bodies will turn to ashes. When it is Holika, the thread doesn’t burn. Similarly, the soul is never burnt. However, this haystack will be set on fire. All the bodies will burn and turn to ashes and all the souls will become pure again. In order for you souls to become pure, you constantly have to make effort to remain soul conscious. Even while having a body, you have to consider yourself to be a soul and have yoga with the Father, just as sannyasis have yoga with the brahm element. They say that they will merge into the element of light. Their intellects’ yoga is linked to the element of light. It is not that they leave their bodies. They think that, by having yoga with the brahm element, they will merge into it. This is why we call them those who have knowledge of the brahm element. They have knowledge of the element, but you souls have the knowledge that you reside in the element of light. They believe that they will merge into that element of light. If they were to say that they would go and reside there, at least that would be correct. A soul cannot merge into it. They give the example of a bubble merging into the ocean, but that is wrong. It is not a question of merging into the light. An imperishable soul contains a whole part which can never be destroyed. Sannyasis renounce the vices, but none of them can return home; they continue to take rebirth here. Expansion continues to take place. Everyone has to pass through the stages of sato, rajo and tamo. All of this is fixed in the drama. Now, just look how so many varieties of illness are emerging. Previously, there were not that many diseases. All of this is fixed in the drama. You children know that Baba has now come to take all souls back home. You say: Baba take us back home. Everyone is to receive liberation and liberation-in-life, but not everyone can go to the golden age. Everyone has to come into their own religion again and at their own time. You know that such-and-such a religion comes at such-and-such a time. Baba has also come exactly as He did in the previous cycle and He will also take all the souls back home as He did before. The earth will receive so much fertilizer. Fertilizer will be needed for the new world. This is why all human beings and animals etc. will be destroyed and turned into fertilizer. Then the earth in the golden age will produce very good fruit. You children have also had visions of that. You children understand that Baba is the Death of all Deaths. Everyone says: Baba, we will go with You happily. Take us back. We are experiencing a great deal of sorrow here. This is the world that causes sorrow. In the land of sorrow, people continue to cause sorrow for one another. There is limitless sorrow here, and so I have come to take you to the land of happiness. Now just remember the One and you will be able to claim your inheritance from Him. Otherwise, you will not be able to claim your full inheritance of the kingdom, but will become part of the subjects. The Father comes and gives you the happiness of a kingdom. No other founder of a religion establishes a kingdom. This kingdom is being established in an incognito way. No one knows how the kingdom of Lakshmi and Narayan of the golden age was established. Where did deities with human forms come from if there were devils in the iron age? There was never a war between the devils and the deities. There was no question of a war or of using the sword of lust. In that case, why have they shown a war taking place? They are all confused. The world is the same; only the time changes. This is the unlimited day and the unlimited night. The golden and silver ages are called the day. There are no battles there. Then, how do they receive such a kingdom? There is no kingdom in the iron age. You say: Baba, Your task of establishment is so wonderful. You make so many children happy. Yes, but each one of you can claim a high status according to the effort you make. You know that the Supreme Father, the Supreme Soul, comes every 5000 years. Even though some call Him “Prabhu” or “God”, He is still the Father. It is good to say “Father”. God is our Father. There is no pleasure in simply saying “God”. When they say “God”, they consider Him to be omnipresent, whereas by calling Him “Father”, they do not consider Him to be omnipresent. You souls are now listening. You understand that your Baba has come and that He is making you pure with yoga. Therefore, you have to remember the Father, the Teacher and the Satguru. You children have that feeling by staying here personally in front of Baba. We are souls and we are playing our parts through our bodies. Baba has come to take us back. We are making effort to have yoga with Baba. While remembering Baba, we will return to Baba. There are some very elevated sannyasis who leave their bodies while simply sitting. They believe: I, the soul, will go and merge into the brahm element. Everyone makes effort to attain moksha (eternal liberation) or mukti (liberation). Everyone wants eternal liberation or liberation because there is so much sorrow in the world. They do not know that the cycle of the world has to turn and that each one’s part definitely has to be imperishable. Your intellects should be like a genie. In the story of the genie, he says: Give me some work to do, or I will eat you. Therefore, he was given the task of climbing up and down a ladder. The Father also tells you: Connect your intellects’ in yoga to Me; otherwise, Maya, the genie, will eat you. Maya is like a genie; she doesn’t allow you to have yoga. Maya eats even good, strong, courageous and powerful ones raw. You know that Baba has come to teach you. He says: Children, I have now come personally in front of you. Now remember Me; otherwise, Maya, the genie, will eat you. This task is given to you for your own benefit so that you become the masters of the world. Consider yourselves to be souls and renounce all consciousness of your bodies. To be a sannyasi means to renounce everything including your body, but you do have to consider yourself to be a soul. You understand that Baba is making you into deities with this knowledge and the power of yoga. A kingdom is being established. This is Raja Yoga. These things are not mentioned in the scriptures. What happened to the Pandavas after they studied Raja Yoga? Did they just melt away on the mountains? In that case, how can you tell how the kingdom was established? Now, only you understand these things. Baba says: Now remember Me; become trustees and follow My shrimat. Continue to take advice for every situation. If your children want to get married, there is no objection. Each one’s account is separate. Whatever the child is like, his account is seen and advice is given accordingly. Some say that they want to get their children married. By all means, you can get them married. If you have money, you can also build a house; there is no objection to that. Build homes, get your children married and settle all your accounts. It is now understood who can claim a good status. It is very difficult. You need a far-sighted intellect for this. It is no small matter to claim a kingdom. Complete all your business of settling your outstanding debts with your children. First of all, at least settle any outstanding debts and any accounts you may have with others. This too is something to be understood. Kumaris don’t have any burden. Creators have to accomplish all the tasks. Only then can Baba make them His heirs. Maya will knock you very hard, but you also understand that Baba is very sweet. He has come to purify you all and take you back home. You need to have a great deal of love for such a Father. He is very sweet. There is limitless happiness in the golden age. This is why everyone remembers it. When someone dies, they say that he has gone to heaven. It is such a sweet name. Whatever happened in the past was later glorified on the path of devotion. These things do not happen in the golden and silver ages. So Baba has given you the task of a genie: Consider yourself to be a soul and remember the Father; otherwise, Maya, the genie, will eat you. You have to have remembrance. Have the faith that you are a soul and remember the Father. Yes, you still have to act for the livelihood of your body. You have to work eight hours a day for the livelihood of your body because you are karma yogis, but you still have to make effort. You also have to take out eight hours for making your own effort. Just think: I now belong to Baba. This body is old; you have to break all attachment to it. If, after staying in remembrance and trying to remove your attachment, some attachment still remains at the end, you will not be able to claim any fortune of the kingdom. It takes effort to become a master of the world. Baba has now come to liberate you from this land of sorrow and take you back. This is why He is called the Liberator, the Guide and the Purifier. He is the Guide (to show you the path). You have to explain that the Father has to come to create the kingdom of Rama and destroy the kingdom of Ravan. He alone is the One who establishes peace. Those who become His helpers receive a peace prize. Only the One who establishes peace can give you a peaceful kingdom. He is the most beloved Baba who gives us the inheritance every cycle. The more you follow shrimat, the more elevated you will become. You understand that you are being made into Shri Lakshmi and Shri Narayan by Shri Shri (doubly-elevated One). The sun and moon dynasty kingdoms of 21 births are now being created. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become far-sighted and settle all your karmic bondage accounts. If you have any debts in your karmic accounts, settle them and become light and you will become an heir.
2. Become a karma yogi and work for your livelihood. Together with that, use eight hours a day for your own effort. Definitely put an end to the attachment you have for anyone.
Blessing:
May you stay in solitude and find a solution to all problems by remaining stable in your eternal form.
Your original religion, your pure actions, your original form and your original land are all of peace. The special power of the confluence age is the power of silence. Your eternal characteristic is to be an embodiment of peace and to give everyone peace. The solution to all problems of the world is merged in this power of silence. A soul who is an embodiment of peace stays in solitude and remain constantly concentrated. With this concentration, you can develop the powers to discern and to decide and this is the easy solution to all problems in your interaction with others and in everything that you do for God.
Slogan:
To give the experience of peace with the power of your vision, attitude and awareness is to be a great donor.
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