Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali - 14th Sep - 2018 )
14-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हें पुरुषार्थ कर एयरकन्डीशन की टिकेट खरीद करनी है, एयरकन्डीशन टिकेट लेना अर्थात् माया की गर्म हवा अथवा वार से सेफ रहना''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को महाविनाश का दु:ख होगा या नहीं? इसका पाप किस पर चढ़ता है?
उत्तर:-
तुम्हें इस महाविनाश का दु:ख हो नहीं सकता क्योंकि तुम तो फरिश्ता बनते हो। तुमको नॉलेज है कि अब सभी आत्माओं को मच्छरों सदृश्य वापिस घर जाना है। तुम्हें किसी की मौत पर दु:ख नहीं होता क्योंकि तुम साक्षी हो देखते हो, तुम जानते हो आत्मा तो सदा अमर है। इस विनाश का पाप किसी पर भी नहीं लगता, यह तो जैसे लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। सभी लड़ मरकर घर वापस जायेंगे। यह भी ड्रामा की भावी है।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने एक लाइन गीत की सुनी। यह महफिल है किसकी? ज्ञान सागर की। जिसको फिर मनुष्य इन्द्र की महफिल कहते हैं - इन्द्रसभा। बहुत मनुष्य समझते हैं - इन्द्र पानी की वर्षा बरसाते हैं। बच्चे समझते हैं यह ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा की सभा है, इसमें परवाने बैठे हैं, जीते जी इनके बन जाने अर्थात् इस दुनिया से मर जाने के लिये क्योंकि जीव आत्माओं को यह पुरानी दुनिया पसन्द नहीं है। इसमें सब एक-दो से लड़ते रहते हैं। बाप कहते हैं - मैं स्वर्ग स्थापन करता हूँ। तो बच्चों में भी नम्बरवार हैं। कोई पुखराजपरी, कोई नीलम परी है। नाम तो बहुत हैं। यह भेंट की हुई है। कोई बच्चे अच्छे सेन्सीबुल बन औरों की सर्विस में लग जाते हैं। सर्विस पर भी तत्पर कौन होंगे? जो शमा पर पूरा फिदा हुए होंगे। यह बहुत बड़ी महफिल है। तुम जानते हो बाबा आत्माओं की महफिल में आया हुआ है। परन्तु इनको जो अच्छी रीति जानते हैं, वह इनके सम्मुख प्रैक्टिकल में हैं। इस समय कोटो में कोई ही जानते हैं। जो परवाने हैं वही जानेंगे, जो फिदा हो जाते हैं, बाबा के बन जाते हैं।
यह तो समझाया गया है - यह है जीते जी मरना। बाबा, मैं आपका हूँ। पहले हम आपके पास अशरीरी रहते हैं। फिर यहाँ आकर शरीर लेते हैं। बच्चों को जो भी ज्ञान मिलता है यह और कोई दे नहीं सकता क्योंकि बाप को नहीं जानते। तुम बच्चों को परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। गाया हुआ है - सभी वेद-शास्त्र आदि गीता के पत्ते हैं। सब मनुष्य मात्र इस माण्डवे में किसके पत्ते हैं? इस देवी-देवता धर्म से ही सब निकले हैं इसलिए तुम झाड़ के चित्र में देखेंगे कि शुरू में पत्ते नहीं हैं। पत्ते बाद में ही पैदा होते हैं। तो उन्हों को ऊपर दिखाया हुआ है। फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म का है। पहले थुर एक होता है फिर उनसे टाल-टालियां निकलती हैं, फिर पत्ते। बच्चों की बुद्धि में है कि यह विराट मनुष्य सृष्टि के धर्मों का झाड़ है। आजकल की गवर्मेन्ट धर्म को नहीं मानती। कहते हैं हम सब आपस में रह सकते हैं। परन्तु आपस में ठक-ठक कितनी है। लड़ाई आपस में चलती ही रहती है। जैसेकि लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। कहाँ न कहाँ लड़ते-झगड़ते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। युक्ति ऐसी करते हैं कि आपस में लड़ मरें। आगे हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग-अलग थोड़ेही था। सब इकट्ठे थे। गवर्मेन्ट भी मजबूत थी। आपस में कोई लड़ नहीं सकते थे क्योंकि ऊपर में बड़े-बड़े नवाब होते थे। जैसे अब सारी दुनिया के लिये यू.एन. आदि बड़ी-बड़ी कमेटी हैं। परन्तु इन सबके लिये धणीधोरी तो कोई है नहीं। दो टुकड़े हो गये हैं। दु:ख वृद्धि को पाता ही रहता है। एक-दो को मारते ही रहते हैं। ड्रामा में देखो कैसा राज़ है। एक-दो से लड़ेंगे तो बाप पर थोड़ेही पाप लगेगा। हम साक्षी हो देखते हैं। तुम जानते हो सब लड़कर ख़त्म ही हो जाने वाले हैं। कोई बड़ा आदमी मर जाता है तो 8-10 रोज़ उसके लिये थोड़ा बहुत कार्यक्रम चलता है। हॉली डे आदि करते हैं। तुम्हारे लिये तो कुछ नहीं है। तुम तो फरिश्ते बन रहे हो। तुमको विनाश का भी दु:ख नहीं होता है। अब तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे फिर कौन किसको देखेंगे! यह राज़ तुम बच्चे ही जानते हो।
नई दुनिया में रहने वाले तो बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। यहाँ कोई मरे तो तुमको थोड़ेही दु:ख होगा। तुम तो साक्षी हो देखते हो - इसने जाकर दूसरा शरीर लिया अपना पार्ट बजाने के लिये। तुम्हारे में भी सब निश्चयबुद्धि नहीं हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते पांव से चोटी तक अब खुशी का पारा चढ़ रहा है, फिर कोई का कम, कोई का जास्ती। कोई को फिर पाई का भी नहीं चढ़ता, जैसे आटे में नमक। उनको फ़ीका ही कहेंगे। मालूम पड़ता है कि किन्हों को नारायणी नशा चढ़ता है। मात-पिता की सर्विस करते हैं। ऐसे नहीं, गृहस्थ व्यवहार में रह सर्विस नहीं कर सकते। वह तो और ही जास्ती सर्विस करेंगे, और ही जास्ती माँ-बाप का नाम भी बाला करते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहकर कमलफूल समान अचल-अडोल बनकर फिर औरों को भी बनाते हैं। तो उन्हों की महिमा जास्ती है। तुम तो शुरूआत में निकल पड़े। वह भी ड्रामा। भट्ठी बननी थी। उसमें से भी कोई कच्ची ईट निकली, कोई पक्की भी निकली। आई.सी.एस.के इम्तहान में सब थोड़ेही पास होते हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को बहुत पगार देना पड़ता है। यहाँ भी ऐसे है। बड़ी जायदाद देनी पड़ती है। मुख्य 8 पास होते हैं, फिर 108 की माला बनती है। पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है। रिजर्व कराया जाता है ना - फर्स्टक्लास, एयरकन्डीशन। एयर कन्डीशन में कभी गर्म हवा नहीं लगेगी। तुमको कोई भी इस दुनिया की गर्म हवा अर्थात् माया का वार न लगे, इतना मजबूत होना चाहिए। आठ तो बिल्कुल फर्स्टक्लास हैं फिर 108 हैं। नाम भी है महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे। हर एक समझ सकते हैं कि हम कौन-सी टिकेट खरीद कर रहे हैं। हर एक को टिकेट लेनी है। पुरुष को अपनी, स्त्री को अपनी टिकेट लेनी है। स्त्री को चांस जास्ती है क्योंकि पुरुष जो करते हैं तो उसका आधा हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्त्री जो सौदा करती है, वह कुछ भी देती है तो उसका हिस्सा पति को नहीं मिलता है क्योंकि पुरुष तो रचयिता है। पैसे उनके हाथ में रहते हैं। वह जो करेगा उसका हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्वर्ग में तो दोनों मालिक रहते हैं। बच्चा एक होता है, वर्सा भी वह पाता है। कन्या भी अपना हिस्सा कायदे अनुसार ले लेती है। कल्प पहले जो कायदा चला है वही चलेगा। वहाँ की रस्म-रिवाज का ख्याल नहीं करना चाहिए। बाबा ने बहुत तो साक्षात्कार करा दिया है - कैसे राजधानी ट्रांसफर होती है। यहाँ ट्रांसफर होती है तो ब्राह्मण गुरूओं आदि को बुलाया जाता है। आगे की रस्म-रिवाज बहुत अच्छी थी। जब वानप्रस्थ लेते थे तो बच्चे को बड़े प्रेम से गद्दी पर बिठाते थे कि अब तुम कारोबार सम्भालो। अभी तो बिल्कुल बूढ़े हो जाते हैं तो भी छोड़ते नहीं हैं। आगे बच्चे मातृ-स्नेही होते थे। अब तो मातृ-द्रोही बन पड़े हैं। माँ की भी चोटी पकड़ बाहर निकाल देते हैं। इसको कहा जाता है धुन्धकारी, मातृ-द्रोही। सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती। तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए। महफिल की महसूसता तुमको यहाँ आयेगी। यह ज्ञान सागर तो जहाँ होगा वहाँ मेला होगा। नदियों का मेला होता है ना। तुम नदियाँ तो आपस में मिलती रहती हो। यह तो है ज्ञान सागर और नदियों का मेला। यह है जगत अम्बा सरस्वती, उनका भी नाम बाला है। माँ के पास भी कितने मिलने आते थे क्योंकि उसकी मुरली बहुत अच्छी थी। बच्चियाँ भी महसूस करती हैं कि मम्मा की मुरली अच्छी खैंचती थी।
यह है सागर और नदियों की महफिल। बहुत बच्चे आ जाते हैं। पहले सागर, फिर नदियाँ, छोटी नदियाँ या बड़े कैनाल आदि आदि होते हैं ना। तुम हर एक समझ सकते हो कि हम छोटी नदी हैं या बड़ी नदी? बड़ी-बड़ी नदियों को बुलाते हैं कि आकर भाषण करो। तो जरूर वह तीखे हैं। मम्मा को कितना बुलाते थे। शिवबाबा का मिला हुआ खज़ाना आकर दो। तुम बच्चियाँ जाकर ज्ञान-रत्नों का दान करती हो। ज्ञान का एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों में कोई ज्ञान के वर्शन्स नहीं हैं। अगर होते तो भारत बहुत साहूकार होता। तुमको तो रत्न मिलते हैं, जिनसे तुम 21 जन्म के लिये साहूकार बनते हो। अभी संगमयुग पर तुम सबसे ऊंचे हो। फिर सतयुग-त्रेता में तुम्हारी डिग्री कम हो जाती है। अब तुम ईश्वरीय दरबार में बैठे हो। तुम जानते हो बाबा 21 जन्मों का वर्सा देने वाला है। उनको ही सब याद करते हैं। दूसरे सब दु:ख देने वाले हैं। दु:ख देने वाली चीज़ को हमेशा भूला जाता है। हे बाबा, हमारे तो आप हो, दूसरा न कोई। परन्तु कृष्ण का नाम सुना है तो उनको ही याद करते हैं। तुम कृष्ण की राजधानी में थे। बाप इस कंसपुरी को कृष्णपुरी बना देते हैं। आसुरी पुरी से फिर दैवी पुरी बन जायेगी। फिर दिखाया है कि असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी, देवताओं की जीत हुई। देवतायें रहते हैं स्वर्ग में। वास्तव में तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से। अभी रामायण की बड़ी धुनी लगेगी क्योंकि दशहरा आता है। गवर्मेन्ट भी मनाती है। राम लीला करते हैं परन्तु यह जानते नहीं कि रावण क्या चीज़ है।
कई बच्चे कहते हैं नेष्ठा में बिठाओ। वास्तव में याद तो चलते-फिरते करना है। परन्तु जो सारे दिन में याद नहीं करते, उनको बिठाया जाता है कि यहाँ बैठने से कुछ न कुछ याद करें। बहुत हैं जो सेन्टर्स में जब आते हैं तो याद में रहते हैं, घर गये तो ख़लास। याद करने की प्रैक्टिस नहीं है। बुद्धि और-और तरफ भटकती रहती है। बच्चों को समझाया गया है कि आत्मा स्टॉर है जिसको बिन्दी भी कहते हैं। स्टॉर में तो ऐसे कोने होते हैं। बिन्दी में नहीं होते। स्टॉर्स इसलिए कहते हैं क्योंकि भेंट की जाती है। लकी सितारे कहा जाता है। बिन्दी रूप आत्मा में ज्ञान की चमक है। आत्मा बिन्दी में सारा पार्ट है। बाप कहते हैं मुझ बिन्दी में यह-यह पार्ट है जो मैं भक्ति में बजाता आया हूँ। तुम बच्चों का सबसे जास्ती पार्ट है क्योंकि तुम आलराउन्ड चक्र लगाते हो। तो चक्रवर्ती राजा भी तुम बनेंगे। दु:ख हो, चाहे सुख हो - तुम ही पाते हो। मेरा पार्ट तुम्हारे जितना नहीं है। मैं वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। फिर भक्ति मार्ग में मेरी सर्विस शुरू होती है। याद भी करते हैं ड्रामानुसार, जिस-जिस देवता की पूजा करते हैं साक्षात्कार फिर भी मैं कराता हूँ। यह ड्रामा में मेरा पार्ट है। वह समझते हैं हमको इनसे साक्षात्कार होता है। इनमें भी भगवान् है। समझते हैं गणेश से साक्षात्कार हुआ तो गणेश में भी परमात्मा है। इससे ही सर्वव्यापी का ज्ञान उठा लिया है। और तुम सब बच्चे कहते हो हम सब बाबा को याद करते हैं अर्थात् सबमें बाबा की याद है। तो इससे भी सर्वव्यापी समझ लेते हैं। बाप कहते हैं मेरी याद में भी सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार रहते हैं। जितना जो याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। बाकी आत्मा तो हर एक में अपनी-अपनी व्यापक है। मैं कोई बच्चे में भी प्रवेश कर किसका भी कल्याण कर सकता हूँ। परन्तु उन्होंने फिर उल्टा अर्थ कर दिया है। ड्रामा में वह भी नूँध है। ड्रामा अनुसार सबको पार्ट मिला हुआ है। यह शास्त्र आदि बनाने का भी ड्रामा में पार्ट है। बनायेंगे वही जिन्होंने आगे बनाये थे। गीता सुनाते हैं फिर कल्प बाद ऐसे ही सुनायेंगे। तो अब बच्चों की महफिल में बाप बैठे हैं। जो मुझे जानते हैं मैं उन्हों के बीच में ही शोभता हूँ। बाकी जो जानते ही नहीं उस महफिल में बैठ क्या करेंगे? तुम भाषण आदि करते हो तो बहुत आते हैं। उनकी शमा के साथ महफिल नहीं कहेंगे। शमा के साथ महफिल तो यहाँ है। कोई फिदा होते हैं, फिर और तरफ बुद्धियोग चला जाता है। जब तक सम्पूर्ण बनें, बुद्धि जाती है। कर्मातीत अवस्था, सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था अभी नहीं कह सकते। वह अन्त में होगी। फिर यह पुराना शरीर छूट जायेगा। यह पुरानी खाल है। आत्मा इन पुरानी कर्मेन्द्रियों से काम लेती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा से मिला हुआ ख़ज़ाना सभी को बांटना है। अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान करके 21 जन्मों के लिये साहूकार बनना है।
2) अपनी अवस्था अचल-अडोल बनानी है। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कमल फूल समान बन बाप का नाम बाला करना है। सर्विस में तत्पर रहना है।
वरदान:-
सोचना, कहना और करना इन तीनों को समान बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव
बापदादा अब सभी बच्चों को समान और सम्पन्न देखना चाहते हैं। सम्पन्न बनने के लिए सोचना, कहना और करना तीनों समान हो। इसके लिए सब तैयारी भी करते हो, संकल्प भी है, इच्छा भी यही है। लेकिन यह इच्छा पूरी तब होगी जब और सब इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनेंगे। छोटी-छोटी अनेक प्रकार की इच्छायें ही इस एक इच्छा को पूर्ण करने नहीं देती हैं।
स्लोगन:-
अव्यक्त व कर्मातीत स्थिति का अनुभव करना है तो कथनी, करनी और रहनी को समान बनाओ।
14/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to make effort and buy an air-conditioned ticket. To obtain an air-conditioned ticket means to remain safe from the heat or attack of Maya.
Question:
Will you children experience sorrow or not from the great destruction? To whom will this sin be attributed?
Answer:
You cannot experience sorrow from this great destruction because you become angels. You have the knowledge that all souls now have to return home like a swarm of mosquitoes. You don't experience sorrow about anyone's death because you observe everything as detached observers. You know that souls are immortal. The sin of this destruction is not attributed to anyone. It is as though a sacrificial fire has been created for war. Everyone will fight and die and go back home. This is also destined in the drama.
Song:
The Flame has ignited in the happy gathering of moths.
Om Shanti
You children heard a line of the song. Whose gathering is this? The Ocean of Knowledge. People also call this the gathering of Indra, the Court of Indra. Many people think that Indra rains water. You children understand that this is the court of the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, and that you moths are sitting here to belong to Him while alive, that is, you are dead to this world because you embodied souls don't like this old world. Here, everyone continues to fight with one another. The Father says: I establish heaven. You children are numberwise too. Some are one type of gem and others are another type of gem. There are many names. This comparison has been made. Some children become very good and sensible and become engaged in serving others. Who would remain engaged in doing service? Those who have surrendered themselves to the Flame completely. This is a very big gathering. You know that Baba has come into the gathering of souls. However, those who know Him very well are personally in front of Him in a practical way. At this time, only a handful out of multimillions know this. Only those who are moths and who surrender themselves and belong to Baba know this. It has been explained to you that this is dying alive. Baba, I belong to You. At first, when we stay with You, we are bodiless. Then we come here and take bodies. The knowledge that you children receive cannot be given by anyone else because no one else knows the Father. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes and teaches you children. It has been said that all the Vedas and scriptures are leaves of the Gita. Whose leaves are all the human beings on this world stage? All have emerged from this deity religion. This is why you will see in the picture of the tree that there are no leaves at the beginning. The leaves grow later, and so they have been shown higher up. The foundation is the deity religion. At first, there is just the one trunk, then the branches and twigs emerge from that and then the leaves emerge. It is in the intellects of you children that this is the tree of the various religions of the human world. The Government of today doesn't believe in religion. They say that they can all live together with one another. However, there is so much conflict with one another. There is always some war going on between them. It is as though a sacrificial fire has been created for war. They continue to fight and quarrel somewhere or other. This is also fixed in the drama. They create such methods that they fight and kill one another. Earlier, Hindustan and Pakistan were not separate. They were all united and the Government was also strong. They couldn’t fight one another because they had big lords above them, just as there are now big UN. committees for the whole world. However, there is no lord or master for all of them. They have become divided into two. Sorrow continues to grow. They continue to kill one another. Just look at the secrets of the drama. If they fight one another, the sin of that would not be attributed to the Father. We observe everything as detached observers. You know that everyone is going to fight and die. When an eminent person dies, they have some special programmes for him for eight to ten days; they have a holiday etc. For you, there is nothing like that. You are becoming angels. You don't even feel sorrow about destruction. They will all now die like a swarm of mosquitoes, so who will look after whom? Only you children know this secret. Those who are to live in the new world have to be first class. If anyone here dies, you are not going to feel sorrow. You observe as detached observers that that soul went and took another body to play his part. Among you too, not everyone has faith in the intellect. While living at home, your mercury of happiness is now rising from your feet to your head. Some people have less intoxication and others have more. Some don't have even a pennyworth of intoxication; it is like a pinch of salt in a sackful of flour. Such ones would be called dry. You can tell which ones have the intoxication of becoming Narayan and are doing the Mother and Father's service. It isn't that they can't do service while living at home with their families. They can do even more service; they can glorify the name of the Parents even more. While living at home with their families, they live like a lotus. They become unshakeable and immovable and then make others the same too. So, there is greater praise of them. You emerged at the beginning. That too is the drama. A bhatthi had to be created. In that too, some weak bricks emerged and some strong bricks emerged. Not everyone passes the ICS examination because the Government would then have to pay them a large salary. It is the same here. A lot of property has to be given to them. Eight main ones pass. Then the rosary of 108 is created. You have to make effort and claim a high status. You have to reserve your first-class and air-conditioned tickets. You don't feel the heat in air-conditioned compartments. You should also not feel the heat or attack of Maya in this old world. You should become that strong. Eight pass with first class. Then there are the 108. There are the names ‘maharathis’ (elephant riders), ‘horse riders’ and ‘infantry’. Each one of you can understand which ticket you are buying. Each one of you has to buy a ticket. The husband has to buy his ticket and the wife has to buy her own ticket. The wife receives more chances because whatever the husband does, she receives half of that as her share. Her husband doesn't receive a share of whatever deal the wife makes, or whatever she gives, because the husband is the creator and the money is in his hands. However, whatever he does, his wife receives a share of that. In heaven, both are masters. They have one son and he receives the inheritance. According to the law, even the daughter claims her share. Whatever laws there were in the previous cycle, they are the ones that will continue. You should not be concerned about the customs and systems of that place. Baba has granted many visions of how the kingdom will be transferred. Here, when a transfer takes place, they invite brahmins and gurus etc. The earlier customs and systems used to be very good. When they went into retirement, they would sit their son on the throne with a lot of love and say: “You now look after everything.” Now, they don't let go of anything even when they have become very old. Earlier, children had a lot of love for their mother. Now they are against their mother. They even catch hold of their mother's plait and throw her out. This is known as having clouded vision and going against the mother. Such things don't happen in the golden age. You should have a lot of happiness. You have the feeling of the happy gathering here. There is a mela wherever this Ocean of Knowledge is. There is a mela of rivers. You rivers continue to meet among yourselves. This is the mela of the Ocean of Knowledge and the rivers. This one is Jagadamba Saraswati. Her name is also glorified. So many used to come to meet the mother because her murli was very good. The daughters also felt that Mama's murli used to attract everyone very much. This is the gathering of the Ocean and the rivers. Many children come. First, there is the Ocean, then the rivers and then there are the small rivers and canals. Each one of you can understand whether you are a small river or a big river. The big rivers are invited to come and give lectures. So they are definitely clever. They used to invite Mama so much: Come and give us the treasures you have received from Shiv Baba. You daughters go and donate the jewels of knowledge. Each version of knowledge is worth hundreds of thousands of rupees. There are no versions of knowledge in the scriptures. If there were, then Bharat would have been very wealthy. You now receive so many jewels with which you become wealthy for 21 births. Now, at the confluence age, you are the highest. Then, in the golden and silver ages, your degrees decrease. You are now sitting in God’s Court. You know that Baba is going to give you the inheritance for 21 births. Everyone remembers Him. All others are those who cause sorrow. Anyone who causes you sorrow is forgotten. O Baba, You alone and none other are mine. However, because they have heard Krishna’s name, they continue to remember him. You used to be in Krishna's kingdom. The Father makes this land of Kans into the land of Krishna; from the devilish land, it will become the divine land. They have also shown a battle taking place between devils and deities and the deities becoming victorious. Deities reside in heaven. In fact, your battle is with the five vices. There will now be continuous chanting of the Ramayana because Dashera is coming. Even the Government celebrates that. They have the Rama leela (divine activities of Rama), but they don't know what Ravan is. Some children say: Have someone conduct meditation for us. In fact, you have to have remembrance while walking and moving around. However, for those who don't have remembrance throughout the day, they are especially made to sit in meditation so that by sitting here, they have a little bit of remembrance. There are many who stay in remembrance when they go to a centre, but when they go back home, everything is finished. They don't have practise having remembrance. Their intellects continue to wander in other directions. It has been explained to you children that a soul is a star and it is also called a dot. A star has many sharp points, whereas a dot doesn’t. Souls are called stars to make a comparison. They are also called lucky stars. There is the sparkle of knowledge in the soul, the point. A whole part is in each soul, the point. The Father says: I, the point, have in Me such and such part which I have been playing on the path of devotion. You children have the biggest part because you go all round the whole cycle. So, you will be the ones who become kings, the rulers of the globe. Whether it is sorrow or happiness, you receive it. My part is not as much as yours. I go into the stage of retirement. Then My service begins on the path of devotion. Everyone remembers Me. According to the drama, whatever deities they worship, I am the One who grants them visions of those. This is in My part in the drama. They believe that they have been given visions by those deities and that there is God in them too. They believe that, because they had a vision of Ganesh, the Supreme Soul is in Ganesh. It was from this that they took the notion of omnipresence. All of you children say: All of us remember Baba, that is, there is remembrance of Baba in each one of us. That is why they believe Him to be omnipresent. The Father says: Everyone has remembrance of Me, numberwise, according to the effort they make. The more you remember Me, the more your sins will be absolved. There is a soul present in each one. I can enter any child and benefit anyone. However, a wrong meaning has been taken from that. That too is fixed in the drama. According to the drama, everyone has received his own part. It is also part of the drama for those scriptures etc. to be created. Those who wrote them earlier will write them again. They relate the Gita and they will relate the same Gita after a cycle. So, the Father is now sitting in the gathering of you children. It seems right for Me to be in the midst of those who know Me. However, what would be the use of Me sitting in a gathering of those who don’t know me? When you give lectures etc., so many people come. Theirs is not a happy gathering (mehfil) with the Flame. It is here that you have a happy gathering with the Flame. Some surrender themselves and then their intellects’ yoga becomes diverted somewhere else. Until you become perfect your intellects will keep wandering. You cannot say that you have the karmateet stage or the completely viceless stage now. That will be at the end. Then, you will shed your old bodies. This is an old skin. The soul does everything through these old physical organs. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Distribute to everyone the treasures you have received from Shiv Baba. Donate the imperishable jewels of knowledge and become wealthy for 21 births.
2. Make your stage unshakeable and immovable. While living at home with your family, become like a lotus and glorify the Father's name. Remain engaged in service.
Blessing:
May you be complete and perfect and like the Father, let your thinking, speaking and doing be the same.
BapDada now wishes to see all the children equal, complete and perfect. In order to become complete and perfect, let your thinking, speaking and doing, all three, be the same. You are making all preparations for this; you have the thought and it is also your desire. However, this desire will be fulfilled when you become ignorant of all other desires. All those tiny desires do not allow you to fulfil this one desire.
Slogan:
In order to experience the avyakt and karmateet stage, let your speaking, doing and life style be the same.
''मीठे बच्चे - तुम्हें पुरुषार्थ कर एयरकन्डीशन की टिकेट खरीद करनी है, एयरकन्डीशन टिकेट लेना अर्थात् माया की गर्म हवा अथवा वार से सेफ रहना''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को महाविनाश का दु:ख होगा या नहीं? इसका पाप किस पर चढ़ता है?
उत्तर:-
तुम्हें इस महाविनाश का दु:ख हो नहीं सकता क्योंकि तुम तो फरिश्ता बनते हो। तुमको नॉलेज है कि अब सभी आत्माओं को मच्छरों सदृश्य वापिस घर जाना है। तुम्हें किसी की मौत पर दु:ख नहीं होता क्योंकि तुम साक्षी हो देखते हो, तुम जानते हो आत्मा तो सदा अमर है। इस विनाश का पाप किसी पर भी नहीं लगता, यह तो जैसे लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। सभी लड़ मरकर घर वापस जायेंगे। यह भी ड्रामा की भावी है।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने एक लाइन गीत की सुनी। यह महफिल है किसकी? ज्ञान सागर की। जिसको फिर मनुष्य इन्द्र की महफिल कहते हैं - इन्द्रसभा। बहुत मनुष्य समझते हैं - इन्द्र पानी की वर्षा बरसाते हैं। बच्चे समझते हैं यह ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा की सभा है, इसमें परवाने बैठे हैं, जीते जी इनके बन जाने अर्थात् इस दुनिया से मर जाने के लिये क्योंकि जीव आत्माओं को यह पुरानी दुनिया पसन्द नहीं है। इसमें सब एक-दो से लड़ते रहते हैं। बाप कहते हैं - मैं स्वर्ग स्थापन करता हूँ। तो बच्चों में भी नम्बरवार हैं। कोई पुखराजपरी, कोई नीलम परी है। नाम तो बहुत हैं। यह भेंट की हुई है। कोई बच्चे अच्छे सेन्सीबुल बन औरों की सर्विस में लग जाते हैं। सर्विस पर भी तत्पर कौन होंगे? जो शमा पर पूरा फिदा हुए होंगे। यह बहुत बड़ी महफिल है। तुम जानते हो बाबा आत्माओं की महफिल में आया हुआ है। परन्तु इनको जो अच्छी रीति जानते हैं, वह इनके सम्मुख प्रैक्टिकल में हैं। इस समय कोटो में कोई ही जानते हैं। जो परवाने हैं वही जानेंगे, जो फिदा हो जाते हैं, बाबा के बन जाते हैं।
यह तो समझाया गया है - यह है जीते जी मरना। बाबा, मैं आपका हूँ। पहले हम आपके पास अशरीरी रहते हैं। फिर यहाँ आकर शरीर लेते हैं। बच्चों को जो भी ज्ञान मिलता है यह और कोई दे नहीं सकता क्योंकि बाप को नहीं जानते। तुम बच्चों को परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। गाया हुआ है - सभी वेद-शास्त्र आदि गीता के पत्ते हैं। सब मनुष्य मात्र इस माण्डवे में किसके पत्ते हैं? इस देवी-देवता धर्म से ही सब निकले हैं इसलिए तुम झाड़ के चित्र में देखेंगे कि शुरू में पत्ते नहीं हैं। पत्ते बाद में ही पैदा होते हैं। तो उन्हों को ऊपर दिखाया हुआ है। फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म का है। पहले थुर एक होता है फिर उनसे टाल-टालियां निकलती हैं, फिर पत्ते। बच्चों की बुद्धि में है कि यह विराट मनुष्य सृष्टि के धर्मों का झाड़ है। आजकल की गवर्मेन्ट धर्म को नहीं मानती। कहते हैं हम सब आपस में रह सकते हैं। परन्तु आपस में ठक-ठक कितनी है। लड़ाई आपस में चलती ही रहती है। जैसेकि लड़ाई का यज्ञ रचा हुआ है। कहाँ न कहाँ लड़ते-झगड़ते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। युक्ति ऐसी करते हैं कि आपस में लड़ मरें। आगे हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग-अलग थोड़ेही था। सब इकट्ठे थे। गवर्मेन्ट भी मजबूत थी। आपस में कोई लड़ नहीं सकते थे क्योंकि ऊपर में बड़े-बड़े नवाब होते थे। जैसे अब सारी दुनिया के लिये यू.एन. आदि बड़ी-बड़ी कमेटी हैं। परन्तु इन सबके लिये धणीधोरी तो कोई है नहीं। दो टुकड़े हो गये हैं। दु:ख वृद्धि को पाता ही रहता है। एक-दो को मारते ही रहते हैं। ड्रामा में देखो कैसा राज़ है। एक-दो से लड़ेंगे तो बाप पर थोड़ेही पाप लगेगा। हम साक्षी हो देखते हैं। तुम जानते हो सब लड़कर ख़त्म ही हो जाने वाले हैं। कोई बड़ा आदमी मर जाता है तो 8-10 रोज़ उसके लिये थोड़ा बहुत कार्यक्रम चलता है। हॉली डे आदि करते हैं। तुम्हारे लिये तो कुछ नहीं है। तुम तो फरिश्ते बन रहे हो। तुमको विनाश का भी दु:ख नहीं होता है। अब तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे फिर कौन किसको देखेंगे! यह राज़ तुम बच्चे ही जानते हो।
नई दुनिया में रहने वाले तो बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। यहाँ कोई मरे तो तुमको थोड़ेही दु:ख होगा। तुम तो साक्षी हो देखते हो - इसने जाकर दूसरा शरीर लिया अपना पार्ट बजाने के लिये। तुम्हारे में भी सब निश्चयबुद्धि नहीं हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते पांव से चोटी तक अब खुशी का पारा चढ़ रहा है, फिर कोई का कम, कोई का जास्ती। कोई को फिर पाई का भी नहीं चढ़ता, जैसे आटे में नमक। उनको फ़ीका ही कहेंगे। मालूम पड़ता है कि किन्हों को नारायणी नशा चढ़ता है। मात-पिता की सर्विस करते हैं। ऐसे नहीं, गृहस्थ व्यवहार में रह सर्विस नहीं कर सकते। वह तो और ही जास्ती सर्विस करेंगे, और ही जास्ती माँ-बाप का नाम भी बाला करते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहकर कमलफूल समान अचल-अडोल बनकर फिर औरों को भी बनाते हैं। तो उन्हों की महिमा जास्ती है। तुम तो शुरूआत में निकल पड़े। वह भी ड्रामा। भट्ठी बननी थी। उसमें से भी कोई कच्ची ईट निकली, कोई पक्की भी निकली। आई.सी.एस.के इम्तहान में सब थोड़ेही पास होते हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को बहुत पगार देना पड़ता है। यहाँ भी ऐसे है। बड़ी जायदाद देनी पड़ती है। मुख्य 8 पास होते हैं, फिर 108 की माला बनती है। पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है। रिजर्व कराया जाता है ना - फर्स्टक्लास, एयरकन्डीशन। एयर कन्डीशन में कभी गर्म हवा नहीं लगेगी। तुमको कोई भी इस दुनिया की गर्म हवा अर्थात् माया का वार न लगे, इतना मजबूत होना चाहिए। आठ तो बिल्कुल फर्स्टक्लास हैं फिर 108 हैं। नाम भी है महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे। हर एक समझ सकते हैं कि हम कौन-सी टिकेट खरीद कर रहे हैं। हर एक को टिकेट लेनी है। पुरुष को अपनी, स्त्री को अपनी टिकेट लेनी है। स्त्री को चांस जास्ती है क्योंकि पुरुष जो करते हैं तो उसका आधा हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्त्री जो सौदा करती है, वह कुछ भी देती है तो उसका हिस्सा पति को नहीं मिलता है क्योंकि पुरुष तो रचयिता है। पैसे उनके हाथ में रहते हैं। वह जो करेगा उसका हिस्सा स्त्री को मिल जाता है। स्वर्ग में तो दोनों मालिक रहते हैं। बच्चा एक होता है, वर्सा भी वह पाता है। कन्या भी अपना हिस्सा कायदे अनुसार ले लेती है। कल्प पहले जो कायदा चला है वही चलेगा। वहाँ की रस्म-रिवाज का ख्याल नहीं करना चाहिए। बाबा ने बहुत तो साक्षात्कार करा दिया है - कैसे राजधानी ट्रांसफर होती है। यहाँ ट्रांसफर होती है तो ब्राह्मण गुरूओं आदि को बुलाया जाता है। आगे की रस्म-रिवाज बहुत अच्छी थी। जब वानप्रस्थ लेते थे तो बच्चे को बड़े प्रेम से गद्दी पर बिठाते थे कि अब तुम कारोबार सम्भालो। अभी तो बिल्कुल बूढ़े हो जाते हैं तो भी छोड़ते नहीं हैं। आगे बच्चे मातृ-स्नेही होते थे। अब तो मातृ-द्रोही बन पड़े हैं। माँ की भी चोटी पकड़ बाहर निकाल देते हैं। इसको कहा जाता है धुन्धकारी, मातृ-द्रोही। सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती। तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए। महफिल की महसूसता तुमको यहाँ आयेगी। यह ज्ञान सागर तो जहाँ होगा वहाँ मेला होगा। नदियों का मेला होता है ना। तुम नदियाँ तो आपस में मिलती रहती हो। यह तो है ज्ञान सागर और नदियों का मेला। यह है जगत अम्बा सरस्वती, उनका भी नाम बाला है। माँ के पास भी कितने मिलने आते थे क्योंकि उसकी मुरली बहुत अच्छी थी। बच्चियाँ भी महसूस करती हैं कि मम्मा की मुरली अच्छी खैंचती थी।
यह है सागर और नदियों की महफिल। बहुत बच्चे आ जाते हैं। पहले सागर, फिर नदियाँ, छोटी नदियाँ या बड़े कैनाल आदि आदि होते हैं ना। तुम हर एक समझ सकते हो कि हम छोटी नदी हैं या बड़ी नदी? बड़ी-बड़ी नदियों को बुलाते हैं कि आकर भाषण करो। तो जरूर वह तीखे हैं। मम्मा को कितना बुलाते थे। शिवबाबा का मिला हुआ खज़ाना आकर दो। तुम बच्चियाँ जाकर ज्ञान-रत्नों का दान करती हो। ज्ञान का एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों में कोई ज्ञान के वर्शन्स नहीं हैं। अगर होते तो भारत बहुत साहूकार होता। तुमको तो रत्न मिलते हैं, जिनसे तुम 21 जन्म के लिये साहूकार बनते हो। अभी संगमयुग पर तुम सबसे ऊंचे हो। फिर सतयुग-त्रेता में तुम्हारी डिग्री कम हो जाती है। अब तुम ईश्वरीय दरबार में बैठे हो। तुम जानते हो बाबा 21 जन्मों का वर्सा देने वाला है। उनको ही सब याद करते हैं। दूसरे सब दु:ख देने वाले हैं। दु:ख देने वाली चीज़ को हमेशा भूला जाता है। हे बाबा, हमारे तो आप हो, दूसरा न कोई। परन्तु कृष्ण का नाम सुना है तो उनको ही याद करते हैं। तुम कृष्ण की राजधानी में थे। बाप इस कंसपुरी को कृष्णपुरी बना देते हैं। आसुरी पुरी से फिर दैवी पुरी बन जायेगी। फिर दिखाया है कि असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी, देवताओं की जीत हुई। देवतायें रहते हैं स्वर्ग में। वास्तव में तुम्हारी लड़ाई है 5 विकारों से। अभी रामायण की बड़ी धुनी लगेगी क्योंकि दशहरा आता है। गवर्मेन्ट भी मनाती है। राम लीला करते हैं परन्तु यह जानते नहीं कि रावण क्या चीज़ है।
कई बच्चे कहते हैं नेष्ठा में बिठाओ। वास्तव में याद तो चलते-फिरते करना है। परन्तु जो सारे दिन में याद नहीं करते, उनको बिठाया जाता है कि यहाँ बैठने से कुछ न कुछ याद करें। बहुत हैं जो सेन्टर्स में जब आते हैं तो याद में रहते हैं, घर गये तो ख़लास। याद करने की प्रैक्टिस नहीं है। बुद्धि और-और तरफ भटकती रहती है। बच्चों को समझाया गया है कि आत्मा स्टॉर है जिसको बिन्दी भी कहते हैं। स्टॉर में तो ऐसे कोने होते हैं। बिन्दी में नहीं होते। स्टॉर्स इसलिए कहते हैं क्योंकि भेंट की जाती है। लकी सितारे कहा जाता है। बिन्दी रूप आत्मा में ज्ञान की चमक है। आत्मा बिन्दी में सारा पार्ट है। बाप कहते हैं मुझ बिन्दी में यह-यह पार्ट है जो मैं भक्ति में बजाता आया हूँ। तुम बच्चों का सबसे जास्ती पार्ट है क्योंकि तुम आलराउन्ड चक्र लगाते हो। तो चक्रवर्ती राजा भी तुम बनेंगे। दु:ख हो, चाहे सुख हो - तुम ही पाते हो। मेरा पार्ट तुम्हारे जितना नहीं है। मैं वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। फिर भक्ति मार्ग में मेरी सर्विस शुरू होती है। याद भी करते हैं ड्रामानुसार, जिस-जिस देवता की पूजा करते हैं साक्षात्कार फिर भी मैं कराता हूँ। यह ड्रामा में मेरा पार्ट है। वह समझते हैं हमको इनसे साक्षात्कार होता है। इनमें भी भगवान् है। समझते हैं गणेश से साक्षात्कार हुआ तो गणेश में भी परमात्मा है। इससे ही सर्वव्यापी का ज्ञान उठा लिया है। और तुम सब बच्चे कहते हो हम सब बाबा को याद करते हैं अर्थात् सबमें बाबा की याद है। तो इससे भी सर्वव्यापी समझ लेते हैं। बाप कहते हैं मेरी याद में भी सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार रहते हैं। जितना जो याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। बाकी आत्मा तो हर एक में अपनी-अपनी व्यापक है। मैं कोई बच्चे में भी प्रवेश कर किसका भी कल्याण कर सकता हूँ। परन्तु उन्होंने फिर उल्टा अर्थ कर दिया है। ड्रामा में वह भी नूँध है। ड्रामा अनुसार सबको पार्ट मिला हुआ है। यह शास्त्र आदि बनाने का भी ड्रामा में पार्ट है। बनायेंगे वही जिन्होंने आगे बनाये थे। गीता सुनाते हैं फिर कल्प बाद ऐसे ही सुनायेंगे। तो अब बच्चों की महफिल में बाप बैठे हैं। जो मुझे जानते हैं मैं उन्हों के बीच में ही शोभता हूँ। बाकी जो जानते ही नहीं उस महफिल में बैठ क्या करेंगे? तुम भाषण आदि करते हो तो बहुत आते हैं। उनकी शमा के साथ महफिल नहीं कहेंगे। शमा के साथ महफिल तो यहाँ है। कोई फिदा होते हैं, फिर और तरफ बुद्धियोग चला जाता है। जब तक सम्पूर्ण बनें, बुद्धि जाती है। कर्मातीत अवस्था, सम्पूर्ण निर्विकारी अवस्था अभी नहीं कह सकते। वह अन्त में होगी। फिर यह पुराना शरीर छूट जायेगा। यह पुरानी खाल है। आत्मा इन पुरानी कर्मेन्द्रियों से काम लेती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा से मिला हुआ ख़ज़ाना सभी को बांटना है। अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान करके 21 जन्मों के लिये साहूकार बनना है।
2) अपनी अवस्था अचल-अडोल बनानी है। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कमल फूल समान बन बाप का नाम बाला करना है। सर्विस में तत्पर रहना है।
वरदान:-
सोचना, कहना और करना इन तीनों को समान बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव
बापदादा अब सभी बच्चों को समान और सम्पन्न देखना चाहते हैं। सम्पन्न बनने के लिए सोचना, कहना और करना तीनों समान हो। इसके लिए सब तैयारी भी करते हो, संकल्प भी है, इच्छा भी यही है। लेकिन यह इच्छा पूरी तब होगी जब और सब इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनेंगे। छोटी-छोटी अनेक प्रकार की इच्छायें ही इस एक इच्छा को पूर्ण करने नहीं देती हैं।
स्लोगन:-
अव्यक्त व कर्मातीत स्थिति का अनुभव करना है तो कथनी, करनी और रहनी को समान बनाओ।
14/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to make effort and buy an air-conditioned ticket. To obtain an air-conditioned ticket means to remain safe from the heat or attack of Maya.
Question:
Will you children experience sorrow or not from the great destruction? To whom will this sin be attributed?
Answer:
You cannot experience sorrow from this great destruction because you become angels. You have the knowledge that all souls now have to return home like a swarm of mosquitoes. You don't experience sorrow about anyone's death because you observe everything as detached observers. You know that souls are immortal. The sin of this destruction is not attributed to anyone. It is as though a sacrificial fire has been created for war. Everyone will fight and die and go back home. This is also destined in the drama.
Song:
The Flame has ignited in the happy gathering of moths.
Om Shanti
You children heard a line of the song. Whose gathering is this? The Ocean of Knowledge. People also call this the gathering of Indra, the Court of Indra. Many people think that Indra rains water. You children understand that this is the court of the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, and that you moths are sitting here to belong to Him while alive, that is, you are dead to this world because you embodied souls don't like this old world. Here, everyone continues to fight with one another. The Father says: I establish heaven. You children are numberwise too. Some are one type of gem and others are another type of gem. There are many names. This comparison has been made. Some children become very good and sensible and become engaged in serving others. Who would remain engaged in doing service? Those who have surrendered themselves to the Flame completely. This is a very big gathering. You know that Baba has come into the gathering of souls. However, those who know Him very well are personally in front of Him in a practical way. At this time, only a handful out of multimillions know this. Only those who are moths and who surrender themselves and belong to Baba know this. It has been explained to you that this is dying alive. Baba, I belong to You. At first, when we stay with You, we are bodiless. Then we come here and take bodies. The knowledge that you children receive cannot be given by anyone else because no one else knows the Father. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes and teaches you children. It has been said that all the Vedas and scriptures are leaves of the Gita. Whose leaves are all the human beings on this world stage? All have emerged from this deity religion. This is why you will see in the picture of the tree that there are no leaves at the beginning. The leaves grow later, and so they have been shown higher up. The foundation is the deity religion. At first, there is just the one trunk, then the branches and twigs emerge from that and then the leaves emerge. It is in the intellects of you children that this is the tree of the various religions of the human world. The Government of today doesn't believe in religion. They say that they can all live together with one another. However, there is so much conflict with one another. There is always some war going on between them. It is as though a sacrificial fire has been created for war. They continue to fight and quarrel somewhere or other. This is also fixed in the drama. They create such methods that they fight and kill one another. Earlier, Hindustan and Pakistan were not separate. They were all united and the Government was also strong. They couldn’t fight one another because they had big lords above them, just as there are now big UN. committees for the whole world. However, there is no lord or master for all of them. They have become divided into two. Sorrow continues to grow. They continue to kill one another. Just look at the secrets of the drama. If they fight one another, the sin of that would not be attributed to the Father. We observe everything as detached observers. You know that everyone is going to fight and die. When an eminent person dies, they have some special programmes for him for eight to ten days; they have a holiday etc. For you, there is nothing like that. You are becoming angels. You don't even feel sorrow about destruction. They will all now die like a swarm of mosquitoes, so who will look after whom? Only you children know this secret. Those who are to live in the new world have to be first class. If anyone here dies, you are not going to feel sorrow. You observe as detached observers that that soul went and took another body to play his part. Among you too, not everyone has faith in the intellect. While living at home, your mercury of happiness is now rising from your feet to your head. Some people have less intoxication and others have more. Some don't have even a pennyworth of intoxication; it is like a pinch of salt in a sackful of flour. Such ones would be called dry. You can tell which ones have the intoxication of becoming Narayan and are doing the Mother and Father's service. It isn't that they can't do service while living at home with their families. They can do even more service; they can glorify the name of the Parents even more. While living at home with their families, they live like a lotus. They become unshakeable and immovable and then make others the same too. So, there is greater praise of them. You emerged at the beginning. That too is the drama. A bhatthi had to be created. In that too, some weak bricks emerged and some strong bricks emerged. Not everyone passes the ICS examination because the Government would then have to pay them a large salary. It is the same here. A lot of property has to be given to them. Eight main ones pass. Then the rosary of 108 is created. You have to make effort and claim a high status. You have to reserve your first-class and air-conditioned tickets. You don't feel the heat in air-conditioned compartments. You should also not feel the heat or attack of Maya in this old world. You should become that strong. Eight pass with first class. Then there are the 108. There are the names ‘maharathis’ (elephant riders), ‘horse riders’ and ‘infantry’. Each one of you can understand which ticket you are buying. Each one of you has to buy a ticket. The husband has to buy his ticket and the wife has to buy her own ticket. The wife receives more chances because whatever the husband does, she receives half of that as her share. Her husband doesn't receive a share of whatever deal the wife makes, or whatever she gives, because the husband is the creator and the money is in his hands. However, whatever he does, his wife receives a share of that. In heaven, both are masters. They have one son and he receives the inheritance. According to the law, even the daughter claims her share. Whatever laws there were in the previous cycle, they are the ones that will continue. You should not be concerned about the customs and systems of that place. Baba has granted many visions of how the kingdom will be transferred. Here, when a transfer takes place, they invite brahmins and gurus etc. The earlier customs and systems used to be very good. When they went into retirement, they would sit their son on the throne with a lot of love and say: “You now look after everything.” Now, they don't let go of anything even when they have become very old. Earlier, children had a lot of love for their mother. Now they are against their mother. They even catch hold of their mother's plait and throw her out. This is known as having clouded vision and going against the mother. Such things don't happen in the golden age. You should have a lot of happiness. You have the feeling of the happy gathering here. There is a mela wherever this Ocean of Knowledge is. There is a mela of rivers. You rivers continue to meet among yourselves. This is the mela of the Ocean of Knowledge and the rivers. This one is Jagadamba Saraswati. Her name is also glorified. So many used to come to meet the mother because her murli was very good. The daughters also felt that Mama's murli used to attract everyone very much. This is the gathering of the Ocean and the rivers. Many children come. First, there is the Ocean, then the rivers and then there are the small rivers and canals. Each one of you can understand whether you are a small river or a big river. The big rivers are invited to come and give lectures. So they are definitely clever. They used to invite Mama so much: Come and give us the treasures you have received from Shiv Baba. You daughters go and donate the jewels of knowledge. Each version of knowledge is worth hundreds of thousands of rupees. There are no versions of knowledge in the scriptures. If there were, then Bharat would have been very wealthy. You now receive so many jewels with which you become wealthy for 21 births. Now, at the confluence age, you are the highest. Then, in the golden and silver ages, your degrees decrease. You are now sitting in God’s Court. You know that Baba is going to give you the inheritance for 21 births. Everyone remembers Him. All others are those who cause sorrow. Anyone who causes you sorrow is forgotten. O Baba, You alone and none other are mine. However, because they have heard Krishna’s name, they continue to remember him. You used to be in Krishna's kingdom. The Father makes this land of Kans into the land of Krishna; from the devilish land, it will become the divine land. They have also shown a battle taking place between devils and deities and the deities becoming victorious. Deities reside in heaven. In fact, your battle is with the five vices. There will now be continuous chanting of the Ramayana because Dashera is coming. Even the Government celebrates that. They have the Rama leela (divine activities of Rama), but they don't know what Ravan is. Some children say: Have someone conduct meditation for us. In fact, you have to have remembrance while walking and moving around. However, for those who don't have remembrance throughout the day, they are especially made to sit in meditation so that by sitting here, they have a little bit of remembrance. There are many who stay in remembrance when they go to a centre, but when they go back home, everything is finished. They don't have practise having remembrance. Their intellects continue to wander in other directions. It has been explained to you children that a soul is a star and it is also called a dot. A star has many sharp points, whereas a dot doesn’t. Souls are called stars to make a comparison. They are also called lucky stars. There is the sparkle of knowledge in the soul, the point. A whole part is in each soul, the point. The Father says: I, the point, have in Me such and such part which I have been playing on the path of devotion. You children have the biggest part because you go all round the whole cycle. So, you will be the ones who become kings, the rulers of the globe. Whether it is sorrow or happiness, you receive it. My part is not as much as yours. I go into the stage of retirement. Then My service begins on the path of devotion. Everyone remembers Me. According to the drama, whatever deities they worship, I am the One who grants them visions of those. This is in My part in the drama. They believe that they have been given visions by those deities and that there is God in them too. They believe that, because they had a vision of Ganesh, the Supreme Soul is in Ganesh. It was from this that they took the notion of omnipresence. All of you children say: All of us remember Baba, that is, there is remembrance of Baba in each one of us. That is why they believe Him to be omnipresent. The Father says: Everyone has remembrance of Me, numberwise, according to the effort they make. The more you remember Me, the more your sins will be absolved. There is a soul present in each one. I can enter any child and benefit anyone. However, a wrong meaning has been taken from that. That too is fixed in the drama. According to the drama, everyone has received his own part. It is also part of the drama for those scriptures etc. to be created. Those who wrote them earlier will write them again. They relate the Gita and they will relate the same Gita after a cycle. So, the Father is now sitting in the gathering of you children. It seems right for Me to be in the midst of those who know Me. However, what would be the use of Me sitting in a gathering of those who don’t know me? When you give lectures etc., so many people come. Theirs is not a happy gathering (mehfil) with the Flame. It is here that you have a happy gathering with the Flame. Some surrender themselves and then their intellects’ yoga becomes diverted somewhere else. Until you become perfect your intellects will keep wandering. You cannot say that you have the karmateet stage or the completely viceless stage now. That will be at the end. Then, you will shed your old bodies. This is an old skin. The soul does everything through these old physical organs. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Distribute to everyone the treasures you have received from Shiv Baba. Donate the imperishable jewels of knowledge and become wealthy for 21 births.
2. Make your stage unshakeable and immovable. While living at home with your family, become like a lotus and glorify the Father's name. Remain engaged in service.
Blessing:
May you be complete and perfect and like the Father, let your thinking, speaking and doing be the same.
BapDada now wishes to see all the children equal, complete and perfect. In order to become complete and perfect, let your thinking, speaking and doing, all three, be the same. You are making all preparations for this; you have the thought and it is also your desire. However, this desire will be fulfilled when you become ignorant of all other desires. All those tiny desires do not allow you to fulfil this one desire.
Slogan:
In order to experience the avyakt and karmateet stage, let your speaking, doing and life style be the same.
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