Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali - 11th - Sep 2018 )
11-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - घर-घर को स्वर्ग बनाने की जिम्मेवारी तुम बच्चों पर है, सबको पतित से पावन होने का लक्ष्य देना है, दैवीगुण धारण करने हैं''
 
प्रश्नः-
 
ईश्वरीय गोद में आने से तुम बच्चों को कौन सा अनुभव होता है?
 
उत्तर:-
 
मंगल मिलन मनाने का अनुभव ईश्वरीय गोद में आने वाले बच्चों को होता है। तुम जानते हो संगमयुग है ईश्वर से मिलन मनाने का युग। तुम ईश्वर से मिलन मनाकर भारत को स्वर्ग बना देते हो। इस समय तुम बच्चे सम्मुख मिलते हो। सारा कल्प कोई भी सम्मुख मिलन नहीं मना सकते। तुम्हारा यह बहुत छोटा सा ईश्वरीय कुल है, शिवबाबा है दादा, ब्रह्मा है बाबा और तुम बच्चे हो भाई-बहिन, दूसरा कोई संबंध नहीं।
 
गीत:-
 
नई उमर की कलियां........ 
 
ओम् शान्ति।
 
बाबा जब आते हैं तो पहले कुछ समय साइलेन्स में बैठना चाहिए क्योंकि पहले-पहले दान दिया जाता है याद का। याद से ही पतितों को पावन बनाना है। तुम बच्चे दान दे रहे हो और ले रहे हो। बाप आकर कांटों से कलियां बनाते हैं फिर कलियों से फूल बनते हैं। तुम जानते हो हमारी सर्विस ही है - हर एक को स्वर्ग के लायक बनाना। जैसे तुम बन रहे हो।
 
बाप आकर पहले हेल्थ, पीछे वेल्थ देते हैं। पहले शान्ति फिर सुख। वास्तव में सुख दोनों में है। तुम बच्चों को सुख और शान्ति दोनों चाहिए और जो सन्यासी आदि हैं वह सिर्फ शान्ति चाहते हैं। सन्यासी सुख नहीं चाहते हैं। सुख तो वह दे सकें। अगर शान्ति देवें तो भी अल्पकाल क्षण भंगुर सुख के लिए। कहते हैं कि सुख तो काग विष्टा समान है। सन्यासी बहुत करके शान्ति चाहते हैं मुक्ति के लिए। मुक्ति दूसरा कोई तो दे नहीं सकता। इसको बेहद की मुक्ति, बेहद की जीवनमुक्ति कहा जाता है, सो बेहद का बाप ही दे सकते हैं। तुम जानते हो इस समय सब कांटे हैं। कांटे चुभते हैं। बाप कहते हैं सब एक-दो को काम कटारी से मारते हैं। उनको पता नहीं है कि काम कटारी को हिंसा कहा जाता है। तुम विकार में जाते हो तो आदि-मध्य-अन्त एक-दो को दु: देते हो। यह है दु: की दुनिया। सुख की दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है - जबकि नई सृष्टि नया भारत है। भारतवासी जो देवी-देवताओं के पुजारी हैं, जानते हैं कि इन देवताओं का राज्य था जिसको स्वर्ग कहा जाता है। यह भी महसूसता आती है। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर उनकी महिमा गाते हैं। समझते हैं भारत के यह मालिक थे। भारत स्वर्ग था - यह भी महसूसता आती है, परन्तु हवा के मुआफिक। समझते तो हैं भारत में लक्ष्मी-नारायण के इतने मन्दिर बनाते हैं तो उन्हों की राजधानी थी। महाराजा-महारानी कहा जाता है। परन्तु कब थे सो भूल गये हैं। कितनी साधारण भूल है। कोई जास्ती टाइम नहीं हुआ है। पांच हजार वर्ष की बात है। क्राइस्ट, बुद्ध आदि को दो-अढ़ाई हजार वर्ष हुए हैं। उनके लिये ऐसे कहते हैं कि रीइनकारनेशन किया। यूँ तो री-इनकॉरनेट हरेक करते हैं। आत्मा आकर प्रवेश करती है इसको भी री-इनकारनेट कहेंगे। परन्तु पहले बड़ों का नाम गाया जाता है। कहा जाता है - परमपिता परमात्मा रीइनकारनेट करेंगे, तब आकर शरीर में प्रवेश करेंगे। रीइनकारनेट का अर्थ यह है। तो जो बड़े नामीग्रामी होते हैं उनके लिये यह कहा जाता है। जैसे बुद्ध का रीइनकारनेशन, क्राइस्ट का रीइनकारनेशन। बौद्धी और क्रिश्चियन का भारत से कने-क्शन देखने में आता है। गुरूनानक को 500 वर्ष के लगभग ही दिखाते हैं। उनका भी छोटा रीइनकारने-शन है। वह बड़े हैं। तो रीइनकारनेशन सब करते हैं। अब परमपिता परमात्मा को बुलाते हैं। परन्तु वह कब आयेगा, कैसे आयेगा - यह नहीं जानते। शरीर में तो जरूर आना होता है। परन्तु जन्म लेने कारण उनको रीइनकारनेशन कहा जाता है। छोटा बच्चा तो नहीं बनते हैं। सबसे बड़ा रीइनकारनेशन परमपिता परमात्मा का कहेंगे। गाते हैं - परमात्मा 24 अवतार लेते हैं। अब कह देते पत्थर-पत्थर में अवतार लिया। गिरते जाते हैं। जैसे भारत गिरता जाता है वैसे उनकी कथनी भी गिरती जाती है। बाप नई दुनिया का रचयिता है। सो जरूर नई और पुरानी के संगम पर आयेंगे। उनको सबसे बड़ा रीइनकारनेशन कहेंगे। शिव का सबसे बड़ा रीइनकारनेशन है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं हैं क्योंकि परमात्मा से बेमुख हुए हैं। निराकार से परिचित जरूर हैं परन्तु वह यह नहीं जानते कि परमात्मा कब आते हैं, क्या आकर करते हैं? ऐसे नहीं कि विष्णु का रीइनकारनेशन कहेंगे। देवी-देवता धर्म का रीइनकारनेशन नहीं कहेंगे। देवी-देवता धर्म की स्थापना कहेंगे।
 
विष्णु अवतरण का एक नाटक भी बनाते हैं। अब वास्तव में विष्णु अवतरण की तो बात ही नहीं। तुम अब विष्णु के कुल के बन रहे हो। ईश्वर का कुल है ना। यह शिव का बच्चा ब्रह्मा, ब्रह्मा के बच्चे तुम। इसको ईश्वरीय कुल कहा जाता है। परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं आकर तुमको अपना बनाता हूँ। मैं आकर तुम बच्चों का बाप बनता हूँ। हूँ तो सबका बाप। परन्तु अभी तुम ब्रह्मा द्वारा मेरे बने हो, इसलिये तुम मुझे दादा कहते हो। आत्माओं का बाप तो है ही। सब जानते हैं इस समय मैं आया हुआ हूँ। तुम ही अभी मिलते हो। बेहद के बाप से तब मिलते हो जब बाप जन्म देते हैं। अभी तुमको धर्म का बच्चा बनाया है ब्रह्मा द्वारा। विकार के तो बच्चे हो सकें। इतनी प्रजा है। बहनभाई कितने हैं तो यह सब मुख-वंशावली ठहरे ना। सन्यासियों की वंशावली नहीं होती है क्योंकि उनमें दादा-बाबा का कोई कनेक्शन नहीं है। यहाँ बाप भी है, दादा भी है। दादा इनको (बड़े भाई को) कहा जाता है। बाप आकर अपना बनाते हैं। तुम जानते हो हम ईश्वर की गोद में आये हैं। यह मंगल-मिलन है। कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि - इसको ही संगम कहा जाता है। संगम में मिलन होता है। जैसे 3 नदियों का संगम है। उसमें क्या होता है? गुरू लोग और जिज्ञासू का मंगल-मिलन होता है। वह तो हो गया जिस्मानी। गाया भी हुआ है - आत्मा और परमात्मा का मंगल-मिलन। यह सबसे अच्छा है। आत्मायें मिलती हैं - परमपिता परमात्मा से। इसमें पानी के नदी की बात नहीं है। यहाँ तुम बैठे हो। यह तुम्हारा बहुत भारी मंगल-मिलन है। आत्मायें भी चैतन्य हैं। परमपिता परमात्मा का यह लोन लिया हुआ शरीर है, इनको मंगल मिलन कहा जाता है। कुम्भ का मेला कहा जाता है ना। कुम्भ को भी संगम कहेंगे। 3 नदियों के संगम का नाम कुम्भ रख दिया है। सबसे बड़ा संगम कौन-सा है? सागर और नदियों का। सबसे बड़ी नदी है ब्रह्मपुत्रा। उसमें बाबा आते हैं इसलिये सागर और ब्रह्मपुत्रा नदी का इकट्ठा मेला तो है ही। अब कुम्भ का मेला है - संगम पर। तुम सब ज्ञान सागर बाप से मिलते हो, इसको ईश्वरीय कुम्भ का मेला कह सकते हैं। यह है आत्माओं और परमात्मा का संगम। कुम्भ वा संगम, बात एक ही है। तो तुम बच्चे जानते हो हम अपने लिये स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। हमको घर में पवित्र होकर रहना है। जहाँ पवित्रता है, वहाँ ही स्वर्ग कहेंगे। बच्चे पवित्र रहते हैं तो पवित्रता सुख-शान्ति है। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिये जैसे देवताओं की होती है। कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिये, इसको ही स्वर्ग कहेंगे। वही फिर स्थाई स्वर्ग बन जाता है। घर में ऐसा लायक बनना है, इसलिये कहा जाता है घर-घर को स्वर्ग बनाओ। तुम मनुष्यों को स्वर्ग में चलने लायक बनाते हो। तुम्हारे लिये ही गीत है - घर-घर को स्वर्ग बनाओ। सतयुग में घर-घर में स्वर्ग था, अब नहीं है। जो बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं उन्हों को अपने घर बैठे पतित से पावन बनने का लक्ष्य देना है।
 
यह बड़े ते बड़ा चैतन्य तीर्थ है। जहाँ शिवबाबा सागर है, वहाँ तुम आत्मायें गंगायें जरूर होंगी। यह सबसे बड़ा ऊंच ते ऊंच मेला है। वह सब हैं भक्ति मार्ग के मेले, यह है ज्ञान मार्ग का मेला। भक्ति मार्ग के मेले तो जन्म बाई जन्म लगते रहते हैं। ज्ञान मार्ग का मेला एक ही बार लगता है। यह है रूहानी मिलन। सुप्रीम रूह परमधाम से आकर बच्चों से मिलते हैं। सबसे अच्छी यात्रा या मेला यह है। यह चैतन्य सागर तो कहाँ भी जा सकते हैं। वह जड़ सागर तो कहाँ नहीं जाता। यह सागर जाता है। तुम नदियां भी जाती हो निमंत्रण पर। ज्ञान सागर इस ब्रह्मपुत्रा नदी के साथ चलते हैं। तुम भिन्न-भिन्न प्रकार की नदियां हो - कोई पवित्र हैं, कोई अपवित्र हैं। कोई-कोई समय ऐसे बहुत जाते हैं जो पवित्र नहीं रह सकते हैं। फिर भी आते तो हैं ना। बाहर के गृहस्थी भी आते हैं। एलाउ किया जाता है। ऐसे भी नहीं, सबको एलाउ करेंगे। कोई मित्र-सम्बन्धी आदि आते हैं, जिन्हों को उठाने के लिये एलाउ करते हैं। नहीं तो कायदे बहुत हैं। इन्द्रप्रस्थ में कोई पतित सकें। कोई भी पण्डा वा सब्जपरी आदि कोई भी पतित को साथ में ले नहीं सकती इसलिये बाप कहते हैं ख़बरदार रहना, सर्टीफिकेट तुमको मिलता है। किसको साथ ले आती हो या भेज देती हो, रेसपान्सिबिलिटी तुम्हारे पर है। यूँ तो सेन्टर्स पर तो निमंत्रण भी देते हैं। कितने पतित आते होंगे। सेन्टर पर पतित आयें तब तो उनको पावन बनाओ। यहाँ तो सागर बैठा हुआ है तो नियम रखे हुए हैं। नब्ज देखी जाती है। डॉक्टर्स सर्जन तो भिन्न-भिन्न होते हैं ना। मम्मा-बाबा वा अनन्य बच्चे बात करेंगे तो झट पता लगेगा कि बुद्धि में बैठता है वा नहीं। तुम कोई को भी समझायेंगे कि दो बाप हैं तो झट मानेंगे। युक्ति बतलाई जाती है। परमपिता परमात्मा को तो सब याद करते हैं। हम फलाने बाप के बच्चे हैं। सिर्फ उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते। यह तो तुम बच्चे समझ गये हो कि जिस-जिस नाम-रूप से जो मनुष्य आते हैं, उसी नाम-रूप से 5 हजार वर्ष बाद फिर आना है जरूर। क्राइस्ट का जो चित्र है, हूबहू फिर उसी समय ही हो सकता। ऐसा और किसी मनुष्य का हो नहीं सकता। कृष्ण का जो चित्र है वह फिर और किसी मनुष्य रूप में हो सके। आत्मा भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल में जन्म लेते-लेते अब पतित हो गई है, उसको फिर पावन बनाते हैं।
 
तुम जानते हो कल्याणकारी बाप है, अकल्याणकारी रावण है। सबको सद्गति देने वाला बाप है। फिर इसमें मनुष्य तो क्या सब चीज़ों की सद्गति हो जाती है। नर्क का विनाश, स्वर्ग की स्थापना होती है। जो कल्प पहले आये थे - कोई पंजाबी, कोई पारसी आते हैं ना, सभी को निमंत्रण देना है। बाप आया हुआ है - ढिंढोरा पीटने में भी हर्जा नहीं है। तुम्हारे चित्र भी बड़े अच्छे हैं। अभी तुम मन्दिर लायक बनते हो। अब भूतों को निकालने में बड़ी मेहनत है। लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लिये विकारी अवगुण निकालने में कितनी मेहनत लगती है। कोई को काम का भूत, कोई को क्रोध का भूत, किसको मोह का भूत थप्पड़ मार देते हैं। एकदम गिर पड़ते हैं। लोभवश भी गिर पड़ते हैं। अच्छे-अच्छे घर की बच्चियां मिठाई देखेंगी तो छिपाकर खा लेंगी। लोभ ने भी कितनों को नुकसान पहुँचाया है। लोभ के वश ही चोरी करते हैं। पहले तुम भट्ठी में थे। अभी तो सबको अपने घर में भट्ठी बनानी पड़े। बाप ने एक ही बड़ी भट्ठी बनाई। अभी तो कहते हैं पहले 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। आजकल किसका भट्ठी में बैठना बड़ा मुश्किल है। सेन्टर में भी आते हैं तो रंग चढ़ाते हो फिर घर में जाने से उड़ जाता है। संगदोष लग जाता है। अभी तो बड़ी मेहनत है।
 
अभी तुम बच्चे जानते हो हम ईश्वरीय कुल में बैठे हैं। दादा, बाबा और हम भाई-बहन हैं। ब्राह्मण कुल सर्वोत्तम गाया हुआ है। उन ब्राह्मणों को भी तुम ज्ञान दे सकते हो - ब्राह्मण हैं उत्तम चोटी, यह संगमयुगी ब्राह्मण ही फिर देवता बनते हैं, पहले तो देवताओं से भी ऊंच ब्राह्मण हैं, चोटी तो ऊंची ठहरी ना, तुम ब्राह्मण देवताओं की पूजा करते हो, अपने को पुजारी, उनको पूज्य समझते हो। तुम उन पुजारियों, ब्राह्मणों को भी यह समझा सकते हो। तुम तो हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण संगमयुगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली हो, फिर तुम सो देवता बनते हो। स्वर्ग का देवता जरूर परमपिता परमात्मा ही बनायेंगे। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1. अन्दर के अवगुणों की जांच कर उन्हें निकालना है। संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है। देवताई गुण धारण कर स्वयं को लायक बनाना है।
 
2. घर-घर को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। भूतों को बाप की याद से भगाना है। बाप के साथ मंगल मिलन मनाते रहना है।
 
वरदान:-
 
सहज विधि द्वारा विधाता को अपना बनाने वाले सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर भव
 
भाग्य विधाता को अपना बनाने की विधि है-बाप और दादा दोनों के साथ संबंध। कई बच्चे कहते हैं हमारा तो डायरेक्ट निराकार से कनेक्शन है, साकार ने भी तो निराकार से पाया हम भी उनसे सब कुछ पा लेंगे। लेकिन यह खण्डित चाबी है, सिवाए ब्रह्माकुमार कुमारी बनने के भाग्य बन नहीं सकता। साकार के बिना सर्व भाग्य के भण्डारे का मालिक बन नहीं सकते क्योंकि भाग्य विधाता भाग्य बांटते ही हैं ब्रह्मा द्वारा। तो विधि को जानकर सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर बनो।
 
स्लोगन:-
 
स्वयं से, सेवा से, सर्व से सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट लो तब सिद्धि स्वरूप बनेंगे।
 
11/09/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, you have the responsibility of making every home into heaven. Give everyone the aim of becoming pure from impure. Imbibe divine virtues.
 
Question:
 
What do you children experience by coming into God's lap?
 
Answer:
 
Children who come into God's lap experience the celebration of an auspicious meeting. You know that the confluence age is the age to celebrate a meeting with God. You celebrate a meeting with God and make Bharat into heaven. You children meet God personally at this time. Throughout the whole cycle, no one else can ever celebrate a personal meeting. This is your very small Godly clan. Shiv Baba is the Grandfather and Brahma is the father and you children are brothers and sisters. There are no other relationships.
 
Song:
 
The buds of the new age. 
 
Om Shanti
 
When Baba comes, you should first sit in silence for some time because, first of all, a donation of remembrance is given. It is only by them having remembrance that impure ones are made pure. You children are making a donation and receiving one. The Father comes and changes thorns into buds and the buds then become flowers. You know that your service is to make each one worthy of heaven, just as you are becoming worthy of that. The Father comes and first gives you health and then gives you wealth. There is first peace and then happiness. In fact, there is happiness in both. You children want both peace and happiness. All the sannyasis etc. just want peace. Sannyasis don't want happiness; they cannot give happiness. Even if they do give peace, that is for momentary happiness. They say that happiness is like the droppings of a crow. Sannyasis generally want peace to attain liberation. No one else can give you liberation. This is called unlimited liberation and unlimited liberation-in-life which only the unlimited Father can give. You know that at this time all are thorns. Thorns prick you. The Father says: They all kill one another with the sword of lust. They don't know that using the sword of lust is violence. When you indulge in vice, you cause one another sorrow from the beginning through the middle to the end. This is the world of sorrow. Heaven is called the world of happiness when the world is new and Bharat is new. The people of Bharat, who are worshippers of the deities, know that there used to be a kingdom of those deities which was called heaven. They do feel that. They go to a Lakshmi and Narayan Temple and sing their praise. They believe that they were the masters of Bharat. They feel that Bharat was heaven, but that is just for a short time, like a breeze. They do realise that since there are so many temples built to Lakshmi and Narayan, there must have been their kingdom too. They are called the emperor and empress. However, they have forgotten when they were that. This is such a simple mistake. It hasn't been a long time; it is a matter of just 5000 years ago. It is 2000 to 2500 years since Christ, Buddha etc. existed. It is said of them that they reincarnated. In fact, each one reincarnates. A soul comes and enters and that too is called a reincarnation. However, the names of the elders are remembered first. It is said: The Supreme Father, the Supreme Soul, will come and enter a body when He reincarnates. This is the meaning of reincarnation. This is said of those who are well known. For example, there are the reincarnations of Buddha and Christ. You can see Bharat’s connection with the Buddhists and the Christians. They show that Guru Nanak existed about 500 years ago. His reincarnation is only a small one, whereas those (Christ and Buddha) are big. So, everyone reincarnates. They call out to the Supreme Father, the Supreme Soul, but they don't know when or how He will come. He definitely has to enter a body. However, because He doesn't take a physical birth, that is called the Reincarnation. He doesn't become a small child. The biggest reincarnation is said to be that of the Supreme Father, the Supreme Soul. They sing that the Supreme Soul has 24 incarnations. They say that He also incarnated in every stone. They continue to fall down so much. Just as Bharat becomes degraded, whatever they say also continues to be degraded. The Father is the Creator of the new world so He would surely come at the confluence of the old and the new. His is called the biggest reincarnation of all. The reincarnation of Shiva is said to be the biggest of all. However, people don't understand this because they have turned their faces away from the Supreme Soul. They definitely know about Him being incorporeal, but they don't know when the Supreme Soul comes or what He does when He comes. It cannot be said that Vishnu has a reincarnation. The deity religion cannot be said to be a reincarnation. You would say that the deity religion is established. They create a play of the incarnation of Vishnu. In fact, there is no question of an incarnation of Vishnu. You are now becoming part of Vishnu's clan. This is God's clan. This Brahma is a child of Shiva and you are the children of Brahma. This is called the Godly clan. The Supreme Father, the Supreme Soul, says: I come and make you belong to Me. I come and become the Father of you children. I am everyone's Father anyway but you now belong to Me through Brahma, and this is why you call Me Dada (Grandfather). I am the Father of souls anyway. You all know that I have come at this time. Only now do you meet Me. You meet the unlimited Father when He gives you birth. I have now adopted you through Brahma. You cannot be children born through vice. There are so many people. There are so many brothers and sisters and so all of them are the mouth-born creation. “A dynasty of sannyasis” is not said because there is no connection of grandfather or father in that. Here, there is the father and also Dada (Grandfather). This one is also called Dada (elder brother). The Father comes and makes you belong to Him. You know that you have come into God's lap. This is an auspicious meeting. The end of the iron age and the beginning of the golden age is called the confluence age. The meeting takes place at the confluence age. There is a confluence of three rivers. What happens in that? There is the auspicious meeting between the gurus and their followers. That is physical. The auspicious meeting of souls and the Supreme Soul is remembered. This is the best; souls meet the Supreme Father, the Supreme Soul. There is no question of rivers of water in that. You are sitting here. This is your very important, auspicious meeting. Souls are living beings. The Supreme Father, the Supreme Soul, has taken this body on loan. This is called an auspicious meeting. It is said: The kumbh mela. A kumbh is also called a confluence. The meeting of the three rivers is named the Kumbh. What is the biggest confluence of all? That of the Ocean and the rivers. The biggest river is the Brahmaputra. Baba enters this one and so the meeting of the Ocean and the Brahmaputra is there anyway. It is now the kumbh mela of the confluence age. All of you meet the Father, the Ocean of Knowledge. This can be called the Godly kumbh mela. This is the meeting of souls with the Supreme Soul. Kumbh and confluence are one and the same thing. You children know that you are carrying out the establishment of heaven for yourselves. You have to remain pure while living at home. Where there is purity, that would be called heaven. When children remain pure, there is purity, peace and happiness. Your stage should be like that of the deities. You shouldn't have any defects. That is called heaven. That then becomes heaven permanently. You have to become that worthy at home. This is why it is said: Make every home into heaven. You make human beings worthy of going to heaven. It is sung of you: Make every home into heaven. In the golden age, there was heaven in every home. It is not that any more. You have to give the children who claim the inheritance from the Father the aim of becoming pure from impure while sitting at home. This is the biggest of all living pilgrimages where Shiv Baba, the Ocean, and you souls, the Ganges of knowledge, would definitely be. This is the biggest and the highest mela of all. All those melas are of the path of devotion, whereas this is the mela of the path of knowledge. The melas of the path of devotion continue for birth after birth, whereas the mela of the path of knowledge only takes place once. This is a spiritual meeting. The Supreme Soul comes from the supreme abode to meet His children. This is the best pilgrimage and mela. This living Ocean can go anywhere, whereas non-living oceans do not go anywhere. This Ocean goes. You rivers also go on invitations. The Ocean of Knowledge moves with this River Brahmaputra. All of you are different types of river: some of you are pure and some are impure. Sometimes, many of those who are unable to remain pure come. At least they come. Even householders living outside come. They are allowed to come. It is not that everyone would be allowed. When some friends or relatives come, they are allowed to come in order to be uplifted. Otherwise, there are many regulations. No one impure can come into the Court of Indra. No guide or angel can bring anyone impure with them. This is why the Father says: Remain cautious. You receive a certificate. When you bring someone with you or when you send someone, the responsibility is yours. In fact, the centres give invitations. So many impure ones must be going there. It is only when impure ones go to a centre that you can make them pure. The Ocean is sitting here and this is why there are the disciplines. Their pulse is felt. There are many different doctors and surgeons. When Mama, Baba or the special children speak to them, they can instantly tell whether something sits in their intellects or not. When you explain to them that there are two fathers, they would instantly accept it. They are given the method. Everyone remembers the Supreme Father, the Supreme Soul. We are children of such a Father. It is just that you don't know His occupation. You children have understood that whatever name and form a person comes with, he definitely has to have that name and form again after 5000 years. The picture of Christ can only be made identical to that at that time. The picture of another person could not be made like that. The form of Krishna cannot be the form of any other person. Souls have now become impure by taking different names, forms and places in different time periods. They are now being made pure. You know that the Father is the Benefactor and that Ravan is the one who causes you harm. It is the Father who gives everyone salvation. In that, it is not just human beings, but everything else also receives salvation. Hell is destroyed and heaven is established. Give invitations to whoever came in the previous cycle - Punjabis, Parsis etc. The Father has come. There is nothing wrong in beating the drums about this. Your pictures are very good. You are now becoming worthy of going to a temple. It requires a lot of effort to remove the evil spirits. It requires so much effort to remove the vices and defects in order to marry Lakshmi and Narayan. Some are slapped by the evil spirit of lust, some by the evil spirit of anger and others by the evil spirit of attachment. They then completely fall. They fall even because of greed. When some daughters from good homes see a sweet (mithai), they take it and secretly eat it. Greed has brought a loss to so many. They steal due to the influence of greed. At first you were in a bhatthi and everyone now has to create a bhatthi in their home. The Father created one big bhatthi. Now He says: You first have to stay in a bhatthi for seven days. Nowadays, it is very difficult for anyone to stay in a bhatthi. When someone goes to a centre he is coloured, but when he goes back home the colour fades away; there is the influence of bad company. It now requires a lot of effort. You children know that you are sitting in God's clan. There is Dada, Baba and you brothers and sisters. The Brahmin clan is remembered as the most elevated clan. You can also give knowledge to those brahmins: Brahmins are the highest, the topknot. Only these confluence-aged Brahmins become deities. First of all, the Brahmins are even higher than the deities. The topknot is the highest. You brahmins worship the deities, and you consider yourselves to be worshippers and them to be worthy of worship. You can explain this to those worshipper-priest brahmins in the temples. You are the true confluence-aged Brahmins. You are the mouth-born creation of Brahma. You are now becoming deities. It would definitely be the Supreme Father, the Supreme Soul, who makes you into deities of heaven. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Check the defects within yourself and remove them. Beware of the influence of bad company. Imbibe divine virtues and make yourself worthy.
 
2. Serve to make every home into heaven. Chase away the evil spirits by having remembrance of the Father. Continue to celebrate an auspicious meeting with the Father.
 
Blessing:
 
May you be filled with all the treasures of fortune and make the Bestower of Fortune belong to you by using the easy method.
 
The method to make the Bestower of Fortune belong to you is to have a relationship with both Bap and Dada. Some children say that they have a direct connection with the incorporeal One, that the corporeal one has attained everything from the incorporeal One, and that they too will attain everything from Him. However, that is like using a damaged key. Your fortune cannot be created without you becoming a Brahma Kumar or Kumari. Without the corporeal one, you cannot become a master of the treasure-store of all fortune because the Bestower of Fortune distributes fortune through Brahma. So, know the method and become filled with all the treasures of fortune.
 
Slogan:
 

Claim the certificate of contentment from yourself, from service and from everyone and you will become an embodiment of success.

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