Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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Details ( Page:- Murali - 05-Sep - 2018 )
05-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - सर्विस का शौक रखो, विशाल बुद्धि बन सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियां निकालो, जो बातें बिगर अर्थ हैं, उन्हें करेक्ट करो''
प्रश्नः-आत्मा जो अजामिल जैसी गंदी बन गई है उसको साफ करने का साधन क्या है?
उत्तर:-उसे ज्ञान मान सरोवर में डुबो दो, अगर ज्ञान सागर में डूबे रहे तो आत्मा की मैल साफ हो जायेगी।
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........
ओम् शान्ति।
बच्चों की बुद्धि में क्या आता है? कौन आया है? (बाप, टीचर, सतगुरू) मात-पिता अक्षर तो जरूर चाहिए। मात-पिता अक्षर भारत में प्रचलित है। तुम मात-पिता...... पीछे तुम कह सकते हो बाप-दादा। वैसे तो मात-पिता में बाप-दादा आ जाता है परन्तु नहीं, यह समझाने का तरीका है क्योंकि बाप है माँ भी जरूर चाहिए। अब माता पहले कौन है? यह है गुह्य ते गुह्य बात, जो कोई समझ न सके। क्या प्रजापिता ब्रह्मा होने से भी माता चाहिए? प्रजापिता ब्रह्मा के साथ कोई प्रजापत्नी भी चाहिए? नहीं। प्रजापत्नी नहीं चाहिए, क्योंकि यह मुख वंशावली हैं इसलिए ब्रह्मा की पत्नी कोई हो नहीं सकती। यह बहुत गुह्य और गम्भीर बातें हैं, इसे समझने और धारण करने के लिए बुद्धि चाहिए। यह एक ही बाप है जो बच्चों के सम्मुख आते हैं। तुम तो समझते हो मात-पिता बाप-दादा सम्मुख आया है। बच्चे बाहर में सर्विस करते हैं, सेन्टर्स पर जो रहते हैं वह यह नहीं समझेंगे कि मात-पिता, बाप-दादा सम्मुख आये हैं। वह समझेंगे फलानी बी.के. वा ब्रह्माकुमारी आई है। यह मम्मा एडाप्ट की हुई है। सबसे लक्की सितारा जगत अम्बा है, यह सम्भालने के लिए मुख्य है इसलिए इन पर कलष रहता है और यह (ब्रह्मा) तो हो गई ब्रह्म पुत्रा, मेल के रूप में। तो सरस्वती जरूर चाहिए। सरस्वती को ही जगत अम्बा कहा जाए। इस मेल को तो जगत अम्बा नहीं कहेंगे। यह बड़ा अच्छा राज़ है जो कोई भी गीता-भागवत में नहीं है। शास्त्रों में कहानियां बैठ लिखी हैं। 5 हजार वर्ष पहले वा 2500 वर्ष पहले क्या हुआ था सो बैठ लिखते हैं। वह नाम, रूप, देश, काल तो कुछ है नहीं। नाटक भी अनेक प्रकार के बनाते हैं। यह बाप बैठ सम्मुख अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे, हर एक बात को पूरा समझ जायें। इन गीतों में भी कई बिगर अर्थ अक्षर हैं। अब आकाश तत्व तो यह है, इसमें तो हम बैठे हैं। जिस पारलौकिक बाप को सब याद करते हैं वह कोई आकाश तत्व से आते नहीं हैं। अगर कृष्ण की आत्मा कहें वह तो यहाँ ही है। सब मुख्य-मुख्य आत्मायें, धर्म स्थापक आदि यहाँ ही हैं। कृष्ण की आत्मा भी 84 वें जन्म में यहाँ ही है। उनकी आत्मा को तो बुला न सकें। यह परमपिता परमात्मा को बुलाया जाता है कि आओ, अपना महतत्व निर्वाणधाम छोड़कर वहाँ से आओ। तुम आत्माओं का सिंहासन तो महतत्व है। आकाश में तो तुम जीव आत्मायें रहती हो। यह माण्डवा है, खेल चलने का। जब गीत सुनते हो, दिल में आपेही करेक्ट करते जाओ। यह तो जिन्होंने नाटक बनाये हैं उन्होंने ही फिर गीत बनाये हैं। फिल्म शूट करने वालों को भी समझाना चाहिए। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा राय देते हैं सर्विस करने लिए। यह ड्रामा जिसने बनाया है, उन्हें समझाना चाहिए। उनसे मिलना चाहिए। इतनी समझ चाहिए। बाप तो डायरेक्शन देंगे। बाप को तो जाकर नहीं पूछना है। बाप तुम बच्चों को डायरेक्शन देंगे - ऐसे-ऐसे करो, श्रीमत पर चलो। (गीत) वास्तव में धरती यह भारत खण्ड है। भारत में ही उनका आना होता है। भारत ही उनका बर्थ प्लेस है। सभी उस निराकार फादर को ही बुलाते हैं। कृष्ण तो सबका फादर नहीं है। और मुरली जो दिखाते हैं वह कोई काठ की तुतारी तो नहीं है, जो कृष्ण के हाथ में देते हैं। मुरली तो वास्तव में ज्ञान की है।
गॉडेज ऑफ नॉलेज सरस्वती को कहते हैं। राधे को नहीं कहेंगे, कृष्ण को भी नहीं कहेंगे। यह तो जोड़ी है बाप और बच्चे की। सरस्वती को कहा जाता है गॉडेज ऑफ नॉलेज। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा भी गॉड ऑफ नॉलेज होना चाहिए। लेकिन ब्रह्मा के लिए तो गाया नहीं जाता। गॉड इज नॉलेजफुल कहा जाता है। ब्रह्मा नॉलेजफुल नहीं, गॉड इज नॉलेजफुल। परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है तो जरूर अपने बच्चों को ज्ञान देंगे। पहले-पहले इनमें प्रवेश कर इन द्वारा दूसरों को देते हैं, इनमें सब लक्की सितारे आ जाते हैं। ज्ञान सूर्य, फिर ज्ञान चन्द्रमा यह (ब्रह्मा) हुए, फिर चाहिए ज्ञान चन्द्रमा के नज़दीक एक सितारा, जो चन्द्रमा के सामने खड़ा रहता है। वह बहुत तीखा होता है। उनको ज्ञान लक्की सितारा कहेंगे। उनका नाम सरस्वती रखा हुआ है। सरस्वती बेटी हो गई ना। यह तो बाप भी हुआ, बड़ी नदी भी हुई। बहुत बड़ी नदी है। सब नदियों का मेल सागर में होता है। सागर और नदियों का मेला होता है। सरस्वती भी सागर में मिलती है। उनका मेला नहीं लगता है। मेला ब्रह्म पुत्रा नदी का लगता है। यह नदी वन्डरफुल है, मेल है। नदी तो फीमेल को कहा जाता है। यह गुह्य राज़ बहुत समझने लायक है। परन्तु यह बातें पहले-पहले कोई को नहीं बतानी चाहिए। पहले तो लौकिक मात-पिता, पारलौकिक मात-पिता का राज़ समझाना चाहिए। लौकिक मात-पिता से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता आया है। यह तो पक्का याद रहना चाहिए। दूसरा कोई दो बाप का राज़ समझा न सके। वह तो जानते ही नहीं। गाते हैं - तुम मात-पिता....... अब पिता सर्वव्यापी है तो माता कहाँ गई? यह समझने की बात है ना। मात-पिता चाहिए ना। मात-पिता कहा जाता है निराकार को। परन्तु यह समझते नहीं कि इनको मात-पिता क्यों कहा जाता है! वह तो गॉड फादर है। फिर कहते हैं एडम और ईव। एडम ही ईव है, यह नहीं समझते। प्रजापिता ब्रह्मा वही फिर माता हो जाती है। एडम और ईव अथवा आदम-बीबी कहते हैं। परन्तु अर्थ नहीं समझ सकते हैं। बच्चे समझ सकते हैं आदम-बीबी वास्तव में यह है। बीबी सो आदम है। इनको बीबी-आदम दोनों कह देते हैं। वह तो है बाप। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। भारत में गाते भी हैं तुम मात-पिता..... ऐसे ही सुनी-सुनाई पर गाते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते।
सतयुग को बहुत दूर ले गये हैं। लाखों वर्ष कह देते हैं। लांग लांग भी कितना? कहानी तो नज़दीक की ही सुनाई जाती है। तुम समझा सकते हो लांग-लांग एगो यानी 5 हजार वर्ष पहले इस भारत में देवी-देवताओं का अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य था। और कोई राज्य नहीं था। यह अक्षर कोई विद्वान, आचार्य कह नहीं सकते। देवी-देवताओं का राज्य था, मालूम होना चाहिए कैसे स्थापन हुआ? लक्ष्मी-नारायण कैसे बनें? कैसे उन्हों की राजाई स्थापन हुई? उनके पहले तो कलियुग था। बरोबर कलियुग का अन्त अब है और कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा। सतयुग सामने आ गया है। जो लांग-लांग था वह सामने आ गया। 84 जन्म लेते-लेते अब कलियुग का अन्त आकर हुआ है। अभी तुमको कहेंगे 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का सतयुग में राज्य था, अभी नहीं है। अभी टाइम आकर पूरा हुआ है। फिर से लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है, यह तुम्हारी बुद्धि में है। जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। यह है समझाने की बात। यह तो सच्ची गीता आदि इसलिए लिखी जाती है कि कोई पढ़कर रिफ्रेश होते रहें। यह जानते हैं जो लिखा जाता है वह फिर प्राय:लोप हो जायेगा। यह सच्ची गीता भी नहीं रहेगी। जो तुम लिखते हो वह सच्चा ज्ञान प्राय:लोप हो जाना है और साथ-साथ शास्त्र भी सब प्राय:लोप हो जायेंगे। सतयुग-त्रेता में शास्त्र होते नहीं। फिर कल्प पहले जैसे द्वापर से बने थे वैसे बनने लग पड़ेंगे। यह है भक्ति मार्ग की सामग्री। रचना की सामग्री बहुत बड़ी है। तुम ज्ञान सेकेण्ड में ले लेते हो। सारी रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। अंगे-अखरे (तिथि-तारीख सहित) पूरा हिसाब-किताब है। 84 जन्म सब नहीं लेते हैं। कोई 70 लेते, कोई 60 लेते, कोई दो भी लेते हैं। वह सारा मिनीमम और मैक्सीमम का हिसाब है। पीछे आने वालों के जरूर नम्बरवार थोड़े-थोड़े जन्म होंगे। उसका फिर विस्तार करना फालतू हो जाता है। तुम बच्चे नटशेल में समझ सकते हो। 84 लाख जन्म तो हैं नहीं, 84 जन्म भी हर एक नहीं ले सकते हैं। ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं 84 का चक्र है। 84 लाख जन्मों का चक्र नहीं गाया जाता। (गीत) पाप कपट की छाया पड़ गई है। अब रावण का राज्य है ना। आत्मा पर मैल की छाया पड़ते-पड़ते अब बिल्कुल ही अजामिल हो गये हैं। इतनी मैल चढ़ी है जो साफ होती ही नहीं। उस मैल को निकालने लिए फिर गाया हुआ है ज्ञान मानसरोवर, उसमें डूबा रहे। जैसे जंक लगती है तो उनको उतारने के लिए घासलेट में डाला जाता है। यह भी जंक लगी है इसलिए ज्ञान सागर में डूबे रहो। कोई पानी की नदी वा सागर की बात नहीं है। ज्ञान सागर जो ज्ञान देते हैं उस नॉलेज में तत्पर रहना है। गृहस्थ व्यवहार को भी सम्भालना है। उसमें कोई मत चाहिए तो लेते रहो। हर एक का कर्मबन्धन अपना-अपना है। सर्जन सबके लिए एक ही दवा नहीं देते हैं। हर एक का कर्मबन्धन, हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है। यह 5 विकारों की बीमारी महाभारी है। इस बीमारी को कोई जानते ही नहीं हैं। यह कब से शुरू होती है? आत्मा को बीमारी लगने से शरीर को भी बीमारी लग जाती है। आत्मा में दु:ख पड़ता है तो शरीर में भी पड़ जाता है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। वह तो भक्ति मार्ग का भक्ति काण्ड है। भक्ति का भी बाबा ने बताया है कि पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति फिर रजोगुणी व्यभिचारी भक्ति। फिर व्यभिचारी तमोगुणी भक्ति। जैसी-जैसी भक्तों की अवस्था, वैसी भक्ति भी हो जाती है। ज्ञान भी ऐसे उतरता है। पहले 16 कला फिर 14 कला फिर 12 कला ...प्रालब्ध जो बनती है, वह फिर उतरती जाती है। तुम बच्चे जानते हो यह कमाई है। कमाई में विघ्न पड़ते हैं। दशायें बदलती हैं। पूछते हैं हमारे ऊपर कौनसी दशा बैठी हुई है? फिर वह लोग बतलाते हैं। इस सच्ची कमाई में भी बच्चों पर दशायें बैठती हैं। कोई पर राहू की दशा बैठती है, काला मुंह कर लेते हैं। बृह्स्पति की दशा थी फिर माया ने थप्पड़ लगाया तो राहू की दशा बैठ गई। काम में गिरा और फट से राहू का ग्रहण लगा। ताला बन्द हो जाता है। यह है गुप्त कड़ी सजा। वह फिर कभी कह नहीं सकेंगे कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। सन्यासी भी काम महाशत्रु के कारण ही स्त्री को छोड़ चले जाते हैं। यह भी निवृत्ति मार्ग की पवित्रता भारतवासियों के लिए अच्छी है। भारतवासी ही पवित्र से अपवित्र बनते हैं तो उन्हों को थमाने के लिए यह सन्यासी हैं। मरम्मत के लिए यह पवित्रता है। पवित्रता की ताकत से ही सृष्टि इतना चलती है। अभी तो वे भी पतित बन पड़े हैं। तुम्हें उनकी भी सर्विस करनी है। सर्विस का तुम बच्चों को बहुत-बहुत शौक रहना चाहिए।
बेकायदे कोई भी चलन नहीं चलनी है। भल पुरुषार्थी हो, सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है। कुछ न कुछ पाप होते रहते हैं। बाप की आज्ञा न माना यह भी बड़ा पाप है। बाप का फ़रमान है निरन्तर मुझे याद करो। जानता हूँ कि कर नहीं सकेंगे। परन्तु तुम पूरा पुरुषार्थ ही नहीं करते हो। जो करेंगे वह अच्छा पद पायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहना है। आत्मा पर कोई बीमारी न लगे, इसकी सम्भाल करनी है।
2) सच्ची कमाई करनी और करानी है। कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलनी है। राहू की दशा कभी न बैठे इसके लिए बाप के फ़रमान पर सदा चलना है।
वरदान:-स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में करने वाले मायाजीत, सफलतामूर्त भव
जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रूप में गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र के समान हों। जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म नहीं हो सकते। स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी ही है सफलता स्वरूप। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होने के कारण सफलता मूर्त होंगे और जो सफलतामूर्त हैं वह हर कदम में पदमापदम पति हैं।
स्लोगन:-खुशी के समर्थ संकल्पों की रचना करो तो तन-मन से सदा खुश रहेंगे।
05/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, have an interest in doing service. Become those with broad intellects and invent different ways of doing service. Correct the things that are meaningless.
Question:In what way can souls who have become as dirty as Ajamil be cleansed?
Answer:Soak them in the Mansarovar of knowledge. All the dirt on the souls will be removed if they continue to soak in the ocean of knowledge.
Question:What is the biggest sin for Brahmins?
Answer:For a Brahmin it is a very big sin not to obey the Father’s orders. The Father’s first order is: Remember Me constantly. However, it is in this that some children fail and Maya then makes them commit one sin or another.
Song:Leave Your throne in the sky and come down to earth.
Om Shanti
What is it that enters the children’s intellects? Who has come? (The Father, the Teacher and the Satguru). The words ‘Mother and Father’ are definitely needed. The words ‘Mother and Father’ are famous in Bharat. First say ‘Mother and Father’ and after that you can say ‘BapDada’. In fact, Mother and Father are included in BapDada. Nevertheless, this is just by way of explanation, because, although He is the Father, a mother is also definitely needed. First of all, who is the mother? This is the deepest aspect of all, which no one can understand. Would a mother still be required together with Prajapita Brahma, the Father of Humanity? Together with Prajapita Brahma, the Father of Humanity, would Prajapatni (wife of the Father of Humanity) also be required? No, a mother of humanity is not required because these children are mouth-born. This is why there cannot be Brahma’s wife. These aspects are very deep and subtle and you need a good intellect to understand and imbibe them. There is the one and only Father who comes personally in front of you children. You understand that the Mother and Father, BapDada, has now come personally in front of you. Children who live at the centres and who do service outside would not feel that the Mother and Father, BapDada, has come to them personally. They would think that such-and-such a Brahma Kumari has come. This Mama has been adopted. The luckiest star of all is Jagadamba. She has been appointed the main one to look after the children. This is why the urn of knowledge has been placed on her head. This Brahma is the Brahmaputra River. He has a male form, and so Saraswati is definitely needed. It is Saraswati who is called the World Mother. This male cannot be the World Mother. This is a very deep secret, which is not found in any Gita or Bhagawad (scriptures). They have written many stories in the scriptures. They have written about what happened 5000 years ago and what happened 2500 years ago, but they have given no information whatsoever about name, form, land or time. They have also written all sorts of plays. The Father personally sits here and explains everything clearly so that you children can fully understand every aspect. Even those songs have some meaningless words in them. The element of sky is here and we are sitting below it. The Father from beyond, whom everyone remembers, does not come from the element of sky. If this refers to the Krishna soul, he is already here. All the main souls and founders of the different religions are here. The Krishna soul, now in his 84th birth, is also here. His soul cannot be invoked. It is the Supreme Father, the Supreme Soul, who is invoked: Come! Leave Your great element of light, the land of nirvana, and come down here! The throne of you souls is the great element of light. It is you human souls who live under the element of sky. This is the stage on which the play is performed. While listening to any song, let your hearts continue to correct the words as you hear them. Those who produced plays have had those songs written. You should also explain to those who shoot films. You need a very broad intellect for this. Baba advises you how to do service. You should explain to those who write those dramas. You should go and meet them. You need to have at least this much understanding. The Father gives directions. He does not go and speak to them. The Father gives you children directions: Do this and that and follow shrimat. (Song: Leave Your throne in the sky and come down to earth). In fact ‘earth’ is the land of Bharat, because it is the land of Bharat where He comes. Bharat is his birthplace. Everyone calls out to that incorporeal Father. Krishna is not the Father of everyone. The flute (murli) portrayed is not that wooden flute that is put in Krishna’s hands. The flute is in fact the flute of knowledge. Saraswati is called the goddess of knowledge. They do not call Radhe that or say it of Krishna. This couple is the father and child. Saraswati is called the goddess of knowledge. So, there would surely also be Prajapita Brahma, the Brahmaputra, the god of knowledge. However, Brahma is not praised in this way. It is said, “God is knowledge-full.” Brahma is not knowledge-full. No; God is knowledge-full. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. Therefore, He would definitely give knowledge to His children. Firstly, He enters this one and then gives knowledge to others through him. All of you lucky stars are included in this. He is the Sun of Knowledge and it is this one (Brahma) who is the Moon of Knowledge. Then, a star is needed close to the Moon of Knowledge, one that stands alongside the moon. That star is very bright. That star is called the lucky star of knowledge and has been named Saraswati. So, Saraswati is the daughter. This one is the father as well as the largest river. He is a very big river. All the rivers merge into the ocean. There is a mela (confluence) of the rivers and the ocean. The Saraswati River also merges into the ocean, but there is no mela of that. The mela of the Brahmaputra River takes place. This male river that has now emerged is wonderful because rivers are normally female. These deep secrets are worth understanding very clearly, but you should not explain this aspect to anyone at first. First of all, you should explain the secret of the physical mother and father and the Mother and Father from beyond. You have continued to receive temporary, short-lived inheritances of happiness from your physical mothers and fathers. You should remember this very firmly. No one else can explain the secrets of the two fathers, because they don’t know them. They sing: “You are the Mother and Father.” Now, if the Father is omnipresent, where is the Mother? This is something that has to be understood. A mother and father are needed. The incorporeal One is called the Mother and Father, but people don’t understand why He is called the Mother and Father. He is God, the Father. Although they say “Adam and Eve” they do not understand that Adam himself is Eve, that Prajapita Brahma himself becomes a mother. Adam and Eve are also called Adam and Bibi, but people do not understand the meaning of that. You children can understand that Adam and Bibi are in fact this one. Bibi is Adam. This one is called both Adam and Bibi. That One is the Father. These are very complicated matters. People of Bharat sing “You are the Mother and Father”. They just sing whatever they hear; they do not understand the meaning of it at all. They have moved the golden age very far back into the past. They say that it existed thousands of years ago. It is said, “Long, long ago”, but how long ago? Stories are usually told of the recent past. You can explain that “Long, long ago” means 5000 years ago when there was the undivided, unshakeable kingdom of happiness and peace of the deities in Bharat. There were no other kingdoms at that time. No scholars or pundits would say these words. People should know how the kingdom of deities was established, how Lakshmi and Narayan were created and how their kingdom was established. Before that, there was the iron age. It is now truly the end of the iron age and, after this, the golden age will come. The golden age is now in front of us. That which was “long, long ago” is now in front of us. Having taken 84 births, you have reached the end of the iron age. Now you are told: Five thousand years ago, there was the golden-aged kingdom of Lakshmi and Narayan; it does not exist now. That time-period has now ended and the kingdom of Lakshmi and Narayan is now being established once again. This is now in your intellects. You are making effort for this. These things have to be explained. This true Gita is being written down so that whoever reads it can be refreshed by it. You know that whatever is written now will disappear. The true Gita will not remain either. All the things you write about this true knowledge will disappear and, along with that, all the scriptures will also disappear. There are no scriptures in the golden and silver ages. They will be written again as they were a cycle ago, in the copper age onwards. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. The paraphernalia of creation is vast, and yet you take this knowledge within a second. You know about the whole of creation from its beginning, through its middle to its end. There is the full account with dates and times etc. Not everyone takes 84 births; some take 70 and some 60; some even take only two births. There is the full account of the minimum and maximum numbers of births. Those who come later will take fewer births, numberwise. To go into the details of this would be useless. You children understand in a nutshell. There cannot be 8.4 million births and not everyone can take 84 births. It is simply said that the cycle is 84 births. The cycle is not said to be 8.4 million births. (A song was played). The shadow of sin and deception has been cast. It is now the kingdom of Ravan. The shadow of dirt gradually settled on souls and souls have now become as totally sinful as Ajamil. So much dirt has settled on souls that they cannot be cleansed. In order to remove that dirt, it is sung, “Soak in the Mansarovar of knowledge”. Just as something rusty is put into paraffin for all the rust to be removed from it, so souls, too, have become rusty. Therefore, continue to remain soaking in the ocean of knowledge. This is not a question of a river or ocean of water. Remain engaged in the knowledge that the Ocean of Knowledge gives you. You also have to take care of your household and family. If you need to ask advice concerning that, then continue to take it. Each one of you has your own individual bondage of karma. The Surgeon doesn’t prescribe the same medicine for everyone. Everyone has their own karmic bondages and everyone has their own illness. This illness of five vices is extremely serious. No one recognises this illness. When does it begin? Once the soul is affected by this illness, the body also becomes affected. When the soul is affected by sorrow, the body also becomes affected. These things are not mentioned in the scriptures. All of that is the activity of the path of devotion. In reference to devotion, Baba has also explained that it is at first unadulterated. Then devotion becomes rajoguni, semi-adulterated, and that later becomes tamoguni, fully adulterated devotion. As is the stage of devotees, so accordingly is the worship they do. In knowledge too, you descend in the same way. First, you are 16 celestial degrees, then 14 and then 12. In this way the reward that you had accumulated continues to fall away. You children understand that this is an income. Obstacles arise and omens change in earning an income. They ask: “What omens are prevailing over us?” and those people would tell them. So, while earning this true income, there are also omens over you children. Some experience bad omens of Rahu and they dirty their faces. They had the omens of Brahashpati (Omens of Jupiter) over them. Then, when Maya slapped them, there were the bad omens of Rahu over them. As soon as souls indulge in vice, they experience bad omens; their intellects become locked. This is an incognito, severe punishment. Then, such souls would never be able to say, “God says that lust is the greatest enemy”. Sannyasis too leave their wives because of lust being the greatest enemy. That purity of the path of isolation is also beneficial for the people of Bharat. It is the people of Bharat who become impure from pure, so those sannyasis play the roles of giving them support. Their purity is for supporting Bharat. It is because of their power of purity that the world lasts this long. Even they have now become impure. Therefore, you have to serve them as well. You children should have a great interest in doing service. You must not behave in any way against the law. All of you are effort-makers; none of you has become perfect yet. One sin or another continues to be committed. To disobey the Father’s orders is also a very big sin. The Father’s order is: Remember Me constantly. I know that you are not able to do this, but that is because you don’t make full effort. Those who do this will achieve a good status. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to become free from the illness of the five vices, you must continue to take advice from the Surgeon. You souls must be careful that you do not catch any illness.
2. Earn this true income and also inspire others to do so. Do not behave in any way against the law. Always follow the Father's orders so that you never become eclipsed by the bad omens of Rahu.
Blessing:May you become a conqueror of Maya and an embodiment of success by spinning the discus of self-realisation and performing every act in the form of a divine activity.
Just as every act of the Father is remembered as a divine act, in the same way, let your every act be a divine activity. Those who have become spinners of the discus of self-realisation, the same as the Father, can never perform ordinary actions. The sign of a spinner of the discus of self-realisation is that he is an embodiment of success. Whatever tasks they carry out, success would be merged in those. Because those who are spinners of the discus of self-realisation are conquerors of Maya, they are embodiments of success and those who are embodiments of success are multimillionaires in their every step.
Slogan:Create powerful thoughts of happiness and you will remain constantly happy in your body and mind.
''मीठे बच्चे - सर्विस का शौक रखो, विशाल बुद्धि बन सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियां निकालो, जो बातें बिगर अर्थ हैं, उन्हें करेक्ट करो''
प्रश्नः-आत्मा जो अजामिल जैसी गंदी बन गई है उसको साफ करने का साधन क्या है?
उत्तर:-उसे ज्ञान मान सरोवर में डुबो दो, अगर ज्ञान सागर में डूबे रहे तो आत्मा की मैल साफ हो जायेगी।
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........
ओम् शान्ति।
बच्चों की बुद्धि में क्या आता है? कौन आया है? (बाप, टीचर, सतगुरू) मात-पिता अक्षर तो जरूर चाहिए। मात-पिता अक्षर भारत में प्रचलित है। तुम मात-पिता...... पीछे तुम कह सकते हो बाप-दादा। वैसे तो मात-पिता में बाप-दादा आ जाता है परन्तु नहीं, यह समझाने का तरीका है क्योंकि बाप है माँ भी जरूर चाहिए। अब माता पहले कौन है? यह है गुह्य ते गुह्य बात, जो कोई समझ न सके। क्या प्रजापिता ब्रह्मा होने से भी माता चाहिए? प्रजापिता ब्रह्मा के साथ कोई प्रजापत्नी भी चाहिए? नहीं। प्रजापत्नी नहीं चाहिए, क्योंकि यह मुख वंशावली हैं इसलिए ब्रह्मा की पत्नी कोई हो नहीं सकती। यह बहुत गुह्य और गम्भीर बातें हैं, इसे समझने और धारण करने के लिए बुद्धि चाहिए। यह एक ही बाप है जो बच्चों के सम्मुख आते हैं। तुम तो समझते हो मात-पिता बाप-दादा सम्मुख आया है। बच्चे बाहर में सर्विस करते हैं, सेन्टर्स पर जो रहते हैं वह यह नहीं समझेंगे कि मात-पिता, बाप-दादा सम्मुख आये हैं। वह समझेंगे फलानी बी.के. वा ब्रह्माकुमारी आई है। यह मम्मा एडाप्ट की हुई है। सबसे लक्की सितारा जगत अम्बा है, यह सम्भालने के लिए मुख्य है इसलिए इन पर कलष रहता है और यह (ब्रह्मा) तो हो गई ब्रह्म पुत्रा, मेल के रूप में। तो सरस्वती जरूर चाहिए। सरस्वती को ही जगत अम्बा कहा जाए। इस मेल को तो जगत अम्बा नहीं कहेंगे। यह बड़ा अच्छा राज़ है जो कोई भी गीता-भागवत में नहीं है। शास्त्रों में कहानियां बैठ लिखी हैं। 5 हजार वर्ष पहले वा 2500 वर्ष पहले क्या हुआ था सो बैठ लिखते हैं। वह नाम, रूप, देश, काल तो कुछ है नहीं। नाटक भी अनेक प्रकार के बनाते हैं। यह बाप बैठ सम्मुख अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे, हर एक बात को पूरा समझ जायें। इन गीतों में भी कई बिगर अर्थ अक्षर हैं। अब आकाश तत्व तो यह है, इसमें तो हम बैठे हैं। जिस पारलौकिक बाप को सब याद करते हैं वह कोई आकाश तत्व से आते नहीं हैं। अगर कृष्ण की आत्मा कहें वह तो यहाँ ही है। सब मुख्य-मुख्य आत्मायें, धर्म स्थापक आदि यहाँ ही हैं। कृष्ण की आत्मा भी 84 वें जन्म में यहाँ ही है। उनकी आत्मा को तो बुला न सकें। यह परमपिता परमात्मा को बुलाया जाता है कि आओ, अपना महतत्व निर्वाणधाम छोड़कर वहाँ से आओ। तुम आत्माओं का सिंहासन तो महतत्व है। आकाश में तो तुम जीव आत्मायें रहती हो। यह माण्डवा है, खेल चलने का। जब गीत सुनते हो, दिल में आपेही करेक्ट करते जाओ। यह तो जिन्होंने नाटक बनाये हैं उन्होंने ही फिर गीत बनाये हैं। फिल्म शूट करने वालों को भी समझाना चाहिए। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा राय देते हैं सर्विस करने लिए। यह ड्रामा जिसने बनाया है, उन्हें समझाना चाहिए। उनसे मिलना चाहिए। इतनी समझ चाहिए। बाप तो डायरेक्शन देंगे। बाप को तो जाकर नहीं पूछना है। बाप तुम बच्चों को डायरेक्शन देंगे - ऐसे-ऐसे करो, श्रीमत पर चलो। (गीत) वास्तव में धरती यह भारत खण्ड है। भारत में ही उनका आना होता है। भारत ही उनका बर्थ प्लेस है। सभी उस निराकार फादर को ही बुलाते हैं। कृष्ण तो सबका फादर नहीं है। और मुरली जो दिखाते हैं वह कोई काठ की तुतारी तो नहीं है, जो कृष्ण के हाथ में देते हैं। मुरली तो वास्तव में ज्ञान की है।
गॉडेज ऑफ नॉलेज सरस्वती को कहते हैं। राधे को नहीं कहेंगे, कृष्ण को भी नहीं कहेंगे। यह तो जोड़ी है बाप और बच्चे की। सरस्वती को कहा जाता है गॉडेज ऑफ नॉलेज। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा भी गॉड ऑफ नॉलेज होना चाहिए। लेकिन ब्रह्मा के लिए तो गाया नहीं जाता। गॉड इज नॉलेजफुल कहा जाता है। ब्रह्मा नॉलेजफुल नहीं, गॉड इज नॉलेजफुल। परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है तो जरूर अपने बच्चों को ज्ञान देंगे। पहले-पहले इनमें प्रवेश कर इन द्वारा दूसरों को देते हैं, इनमें सब लक्की सितारे आ जाते हैं। ज्ञान सूर्य, फिर ज्ञान चन्द्रमा यह (ब्रह्मा) हुए, फिर चाहिए ज्ञान चन्द्रमा के नज़दीक एक सितारा, जो चन्द्रमा के सामने खड़ा रहता है। वह बहुत तीखा होता है। उनको ज्ञान लक्की सितारा कहेंगे। उनका नाम सरस्वती रखा हुआ है। सरस्वती बेटी हो गई ना। यह तो बाप भी हुआ, बड़ी नदी भी हुई। बहुत बड़ी नदी है। सब नदियों का मेल सागर में होता है। सागर और नदियों का मेला होता है। सरस्वती भी सागर में मिलती है। उनका मेला नहीं लगता है। मेला ब्रह्म पुत्रा नदी का लगता है। यह नदी वन्डरफुल है, मेल है। नदी तो फीमेल को कहा जाता है। यह गुह्य राज़ बहुत समझने लायक है। परन्तु यह बातें पहले-पहले कोई को नहीं बतानी चाहिए। पहले तो लौकिक मात-पिता, पारलौकिक मात-पिता का राज़ समझाना चाहिए। लौकिक मात-पिता से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता आया है। यह तो पक्का याद रहना चाहिए। दूसरा कोई दो बाप का राज़ समझा न सके। वह तो जानते ही नहीं। गाते हैं - तुम मात-पिता....... अब पिता सर्वव्यापी है तो माता कहाँ गई? यह समझने की बात है ना। मात-पिता चाहिए ना। मात-पिता कहा जाता है निराकार को। परन्तु यह समझते नहीं कि इनको मात-पिता क्यों कहा जाता है! वह तो गॉड फादर है। फिर कहते हैं एडम और ईव। एडम ही ईव है, यह नहीं समझते। प्रजापिता ब्रह्मा वही फिर माता हो जाती है। एडम और ईव अथवा आदम-बीबी कहते हैं। परन्तु अर्थ नहीं समझ सकते हैं। बच्चे समझ सकते हैं आदम-बीबी वास्तव में यह है। बीबी सो आदम है। इनको बीबी-आदम दोनों कह देते हैं। वह तो है बाप। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। भारत में गाते भी हैं तुम मात-पिता..... ऐसे ही सुनी-सुनाई पर गाते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते।
सतयुग को बहुत दूर ले गये हैं। लाखों वर्ष कह देते हैं। लांग लांग भी कितना? कहानी तो नज़दीक की ही सुनाई जाती है। तुम समझा सकते हो लांग-लांग एगो यानी 5 हजार वर्ष पहले इस भारत में देवी-देवताओं का अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य था। और कोई राज्य नहीं था। यह अक्षर कोई विद्वान, आचार्य कह नहीं सकते। देवी-देवताओं का राज्य था, मालूम होना चाहिए कैसे स्थापन हुआ? लक्ष्मी-नारायण कैसे बनें? कैसे उन्हों की राजाई स्थापन हुई? उनके पहले तो कलियुग था। बरोबर कलियुग का अन्त अब है और कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा। सतयुग सामने आ गया है। जो लांग-लांग था वह सामने आ गया। 84 जन्म लेते-लेते अब कलियुग का अन्त आकर हुआ है। अभी तुमको कहेंगे 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का सतयुग में राज्य था, अभी नहीं है। अभी टाइम आकर पूरा हुआ है। फिर से लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है, यह तुम्हारी बुद्धि में है। जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। यह है समझाने की बात। यह तो सच्ची गीता आदि इसलिए लिखी जाती है कि कोई पढ़कर रिफ्रेश होते रहें। यह जानते हैं जो लिखा जाता है वह फिर प्राय:लोप हो जायेगा। यह सच्ची गीता भी नहीं रहेगी। जो तुम लिखते हो वह सच्चा ज्ञान प्राय:लोप हो जाना है और साथ-साथ शास्त्र भी सब प्राय:लोप हो जायेंगे। सतयुग-त्रेता में शास्त्र होते नहीं। फिर कल्प पहले जैसे द्वापर से बने थे वैसे बनने लग पड़ेंगे। यह है भक्ति मार्ग की सामग्री। रचना की सामग्री बहुत बड़ी है। तुम ज्ञान सेकेण्ड में ले लेते हो। सारी रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। अंगे-अखरे (तिथि-तारीख सहित) पूरा हिसाब-किताब है। 84 जन्म सब नहीं लेते हैं। कोई 70 लेते, कोई 60 लेते, कोई दो भी लेते हैं। वह सारा मिनीमम और मैक्सीमम का हिसाब है। पीछे आने वालों के जरूर नम्बरवार थोड़े-थोड़े जन्म होंगे। उसका फिर विस्तार करना फालतू हो जाता है। तुम बच्चे नटशेल में समझ सकते हो। 84 लाख जन्म तो हैं नहीं, 84 जन्म भी हर एक नहीं ले सकते हैं। ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं 84 का चक्र है। 84 लाख जन्मों का चक्र नहीं गाया जाता। (गीत) पाप कपट की छाया पड़ गई है। अब रावण का राज्य है ना। आत्मा पर मैल की छाया पड़ते-पड़ते अब बिल्कुल ही अजामिल हो गये हैं। इतनी मैल चढ़ी है जो साफ होती ही नहीं। उस मैल को निकालने लिए फिर गाया हुआ है ज्ञान मानसरोवर, उसमें डूबा रहे। जैसे जंक लगती है तो उनको उतारने के लिए घासलेट में डाला जाता है। यह भी जंक लगी है इसलिए ज्ञान सागर में डूबे रहो। कोई पानी की नदी वा सागर की बात नहीं है। ज्ञान सागर जो ज्ञान देते हैं उस नॉलेज में तत्पर रहना है। गृहस्थ व्यवहार को भी सम्भालना है। उसमें कोई मत चाहिए तो लेते रहो। हर एक का कर्मबन्धन अपना-अपना है। सर्जन सबके लिए एक ही दवा नहीं देते हैं। हर एक का कर्मबन्धन, हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है। यह 5 विकारों की बीमारी महाभारी है। इस बीमारी को कोई जानते ही नहीं हैं। यह कब से शुरू होती है? आत्मा को बीमारी लगने से शरीर को भी बीमारी लग जाती है। आत्मा में दु:ख पड़ता है तो शरीर में भी पड़ जाता है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। वह तो भक्ति मार्ग का भक्ति काण्ड है। भक्ति का भी बाबा ने बताया है कि पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति फिर रजोगुणी व्यभिचारी भक्ति। फिर व्यभिचारी तमोगुणी भक्ति। जैसी-जैसी भक्तों की अवस्था, वैसी भक्ति भी हो जाती है। ज्ञान भी ऐसे उतरता है। पहले 16 कला फिर 14 कला फिर 12 कला ...प्रालब्ध जो बनती है, वह फिर उतरती जाती है। तुम बच्चे जानते हो यह कमाई है। कमाई में विघ्न पड़ते हैं। दशायें बदलती हैं। पूछते हैं हमारे ऊपर कौनसी दशा बैठी हुई है? फिर वह लोग बतलाते हैं। इस सच्ची कमाई में भी बच्चों पर दशायें बैठती हैं। कोई पर राहू की दशा बैठती है, काला मुंह कर लेते हैं। बृह्स्पति की दशा थी फिर माया ने थप्पड़ लगाया तो राहू की दशा बैठ गई। काम में गिरा और फट से राहू का ग्रहण लगा। ताला बन्द हो जाता है। यह है गुप्त कड़ी सजा। वह फिर कभी कह नहीं सकेंगे कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। सन्यासी भी काम महाशत्रु के कारण ही स्त्री को छोड़ चले जाते हैं। यह भी निवृत्ति मार्ग की पवित्रता भारतवासियों के लिए अच्छी है। भारतवासी ही पवित्र से अपवित्र बनते हैं तो उन्हों को थमाने के लिए यह सन्यासी हैं। मरम्मत के लिए यह पवित्रता है। पवित्रता की ताकत से ही सृष्टि इतना चलती है। अभी तो वे भी पतित बन पड़े हैं। तुम्हें उनकी भी सर्विस करनी है। सर्विस का तुम बच्चों को बहुत-बहुत शौक रहना चाहिए।
बेकायदे कोई भी चलन नहीं चलनी है। भल पुरुषार्थी हो, सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है। कुछ न कुछ पाप होते रहते हैं। बाप की आज्ञा न माना यह भी बड़ा पाप है। बाप का फ़रमान है निरन्तर मुझे याद करो। जानता हूँ कि कर नहीं सकेंगे। परन्तु तुम पूरा पुरुषार्थ ही नहीं करते हो। जो करेंगे वह अच्छा पद पायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहना है। आत्मा पर कोई बीमारी न लगे, इसकी सम्भाल करनी है।
2) सच्ची कमाई करनी और करानी है। कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलनी है। राहू की दशा कभी न बैठे इसके लिए बाप के फ़रमान पर सदा चलना है।
वरदान:-स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में करने वाले मायाजीत, सफलतामूर्त भव
जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रूप में गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र के समान हों। जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म नहीं हो सकते। स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी ही है सफलता स्वरूप। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होने के कारण सफलता मूर्त होंगे और जो सफलतामूर्त हैं वह हर कदम में पदमापदम पति हैं।
स्लोगन:-खुशी के समर्थ संकल्पों की रचना करो तो तन-मन से सदा खुश रहेंगे।
05/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, have an interest in doing service. Become those with broad intellects and invent different ways of doing service. Correct the things that are meaningless.
Question:In what way can souls who have become as dirty as Ajamil be cleansed?
Answer:Soak them in the Mansarovar of knowledge. All the dirt on the souls will be removed if they continue to soak in the ocean of knowledge.
Question:What is the biggest sin for Brahmins?
Answer:For a Brahmin it is a very big sin not to obey the Father’s orders. The Father’s first order is: Remember Me constantly. However, it is in this that some children fail and Maya then makes them commit one sin or another.
Song:Leave Your throne in the sky and come down to earth.
Om Shanti
What is it that enters the children’s intellects? Who has come? (The Father, the Teacher and the Satguru). The words ‘Mother and Father’ are definitely needed. The words ‘Mother and Father’ are famous in Bharat. First say ‘Mother and Father’ and after that you can say ‘BapDada’. In fact, Mother and Father are included in BapDada. Nevertheless, this is just by way of explanation, because, although He is the Father, a mother is also definitely needed. First of all, who is the mother? This is the deepest aspect of all, which no one can understand. Would a mother still be required together with Prajapita Brahma, the Father of Humanity? Together with Prajapita Brahma, the Father of Humanity, would Prajapatni (wife of the Father of Humanity) also be required? No, a mother of humanity is not required because these children are mouth-born. This is why there cannot be Brahma’s wife. These aspects are very deep and subtle and you need a good intellect to understand and imbibe them. There is the one and only Father who comes personally in front of you children. You understand that the Mother and Father, BapDada, has now come personally in front of you. Children who live at the centres and who do service outside would not feel that the Mother and Father, BapDada, has come to them personally. They would think that such-and-such a Brahma Kumari has come. This Mama has been adopted. The luckiest star of all is Jagadamba. She has been appointed the main one to look after the children. This is why the urn of knowledge has been placed on her head. This Brahma is the Brahmaputra River. He has a male form, and so Saraswati is definitely needed. It is Saraswati who is called the World Mother. This male cannot be the World Mother. This is a very deep secret, which is not found in any Gita or Bhagawad (scriptures). They have written many stories in the scriptures. They have written about what happened 5000 years ago and what happened 2500 years ago, but they have given no information whatsoever about name, form, land or time. They have also written all sorts of plays. The Father personally sits here and explains everything clearly so that you children can fully understand every aspect. Even those songs have some meaningless words in them. The element of sky is here and we are sitting below it. The Father from beyond, whom everyone remembers, does not come from the element of sky. If this refers to the Krishna soul, he is already here. All the main souls and founders of the different religions are here. The Krishna soul, now in his 84th birth, is also here. His soul cannot be invoked. It is the Supreme Father, the Supreme Soul, who is invoked: Come! Leave Your great element of light, the land of nirvana, and come down here! The throne of you souls is the great element of light. It is you human souls who live under the element of sky. This is the stage on which the play is performed. While listening to any song, let your hearts continue to correct the words as you hear them. Those who produced plays have had those songs written. You should also explain to those who shoot films. You need a very broad intellect for this. Baba advises you how to do service. You should explain to those who write those dramas. You should go and meet them. You need to have at least this much understanding. The Father gives directions. He does not go and speak to them. The Father gives you children directions: Do this and that and follow shrimat. (Song: Leave Your throne in the sky and come down to earth). In fact ‘earth’ is the land of Bharat, because it is the land of Bharat where He comes. Bharat is his birthplace. Everyone calls out to that incorporeal Father. Krishna is not the Father of everyone. The flute (murli) portrayed is not that wooden flute that is put in Krishna’s hands. The flute is in fact the flute of knowledge. Saraswati is called the goddess of knowledge. They do not call Radhe that or say it of Krishna. This couple is the father and child. Saraswati is called the goddess of knowledge. So, there would surely also be Prajapita Brahma, the Brahmaputra, the god of knowledge. However, Brahma is not praised in this way. It is said, “God is knowledge-full.” Brahma is not knowledge-full. No; God is knowledge-full. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. Therefore, He would definitely give knowledge to His children. Firstly, He enters this one and then gives knowledge to others through him. All of you lucky stars are included in this. He is the Sun of Knowledge and it is this one (Brahma) who is the Moon of Knowledge. Then, a star is needed close to the Moon of Knowledge, one that stands alongside the moon. That star is very bright. That star is called the lucky star of knowledge and has been named Saraswati. So, Saraswati is the daughter. This one is the father as well as the largest river. He is a very big river. All the rivers merge into the ocean. There is a mela (confluence) of the rivers and the ocean. The Saraswati River also merges into the ocean, but there is no mela of that. The mela of the Brahmaputra River takes place. This male river that has now emerged is wonderful because rivers are normally female. These deep secrets are worth understanding very clearly, but you should not explain this aspect to anyone at first. First of all, you should explain the secret of the physical mother and father and the Mother and Father from beyond. You have continued to receive temporary, short-lived inheritances of happiness from your physical mothers and fathers. You should remember this very firmly. No one else can explain the secrets of the two fathers, because they don’t know them. They sing: “You are the Mother and Father.” Now, if the Father is omnipresent, where is the Mother? This is something that has to be understood. A mother and father are needed. The incorporeal One is called the Mother and Father, but people don’t understand why He is called the Mother and Father. He is God, the Father. Although they say “Adam and Eve” they do not understand that Adam himself is Eve, that Prajapita Brahma himself becomes a mother. Adam and Eve are also called Adam and Bibi, but people do not understand the meaning of that. You children can understand that Adam and Bibi are in fact this one. Bibi is Adam. This one is called both Adam and Bibi. That One is the Father. These are very complicated matters. People of Bharat sing “You are the Mother and Father”. They just sing whatever they hear; they do not understand the meaning of it at all. They have moved the golden age very far back into the past. They say that it existed thousands of years ago. It is said, “Long, long ago”, but how long ago? Stories are usually told of the recent past. You can explain that “Long, long ago” means 5000 years ago when there was the undivided, unshakeable kingdom of happiness and peace of the deities in Bharat. There were no other kingdoms at that time. No scholars or pundits would say these words. People should know how the kingdom of deities was established, how Lakshmi and Narayan were created and how their kingdom was established. Before that, there was the iron age. It is now truly the end of the iron age and, after this, the golden age will come. The golden age is now in front of us. That which was “long, long ago” is now in front of us. Having taken 84 births, you have reached the end of the iron age. Now you are told: Five thousand years ago, there was the golden-aged kingdom of Lakshmi and Narayan; it does not exist now. That time-period has now ended and the kingdom of Lakshmi and Narayan is now being established once again. This is now in your intellects. You are making effort for this. These things have to be explained. This true Gita is being written down so that whoever reads it can be refreshed by it. You know that whatever is written now will disappear. The true Gita will not remain either. All the things you write about this true knowledge will disappear and, along with that, all the scriptures will also disappear. There are no scriptures in the golden and silver ages. They will be written again as they were a cycle ago, in the copper age onwards. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. The paraphernalia of creation is vast, and yet you take this knowledge within a second. You know about the whole of creation from its beginning, through its middle to its end. There is the full account with dates and times etc. Not everyone takes 84 births; some take 70 and some 60; some even take only two births. There is the full account of the minimum and maximum numbers of births. Those who come later will take fewer births, numberwise. To go into the details of this would be useless. You children understand in a nutshell. There cannot be 8.4 million births and not everyone can take 84 births. It is simply said that the cycle is 84 births. The cycle is not said to be 8.4 million births. (A song was played). The shadow of sin and deception has been cast. It is now the kingdom of Ravan. The shadow of dirt gradually settled on souls and souls have now become as totally sinful as Ajamil. So much dirt has settled on souls that they cannot be cleansed. In order to remove that dirt, it is sung, “Soak in the Mansarovar of knowledge”. Just as something rusty is put into paraffin for all the rust to be removed from it, so souls, too, have become rusty. Therefore, continue to remain soaking in the ocean of knowledge. This is not a question of a river or ocean of water. Remain engaged in the knowledge that the Ocean of Knowledge gives you. You also have to take care of your household and family. If you need to ask advice concerning that, then continue to take it. Each one of you has your own individual bondage of karma. The Surgeon doesn’t prescribe the same medicine for everyone. Everyone has their own karmic bondages and everyone has their own illness. This illness of five vices is extremely serious. No one recognises this illness. When does it begin? Once the soul is affected by this illness, the body also becomes affected. When the soul is affected by sorrow, the body also becomes affected. These things are not mentioned in the scriptures. All of that is the activity of the path of devotion. In reference to devotion, Baba has also explained that it is at first unadulterated. Then devotion becomes rajoguni, semi-adulterated, and that later becomes tamoguni, fully adulterated devotion. As is the stage of devotees, so accordingly is the worship they do. In knowledge too, you descend in the same way. First, you are 16 celestial degrees, then 14 and then 12. In this way the reward that you had accumulated continues to fall away. You children understand that this is an income. Obstacles arise and omens change in earning an income. They ask: “What omens are prevailing over us?” and those people would tell them. So, while earning this true income, there are also omens over you children. Some experience bad omens of Rahu and they dirty their faces. They had the omens of Brahashpati (Omens of Jupiter) over them. Then, when Maya slapped them, there were the bad omens of Rahu over them. As soon as souls indulge in vice, they experience bad omens; their intellects become locked. This is an incognito, severe punishment. Then, such souls would never be able to say, “God says that lust is the greatest enemy”. Sannyasis too leave their wives because of lust being the greatest enemy. That purity of the path of isolation is also beneficial for the people of Bharat. It is the people of Bharat who become impure from pure, so those sannyasis play the roles of giving them support. Their purity is for supporting Bharat. It is because of their power of purity that the world lasts this long. Even they have now become impure. Therefore, you have to serve them as well. You children should have a great interest in doing service. You must not behave in any way against the law. All of you are effort-makers; none of you has become perfect yet. One sin or another continues to be committed. To disobey the Father’s orders is also a very big sin. The Father’s order is: Remember Me constantly. I know that you are not able to do this, but that is because you don’t make full effort. Those who do this will achieve a good status. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to become free from the illness of the five vices, you must continue to take advice from the Surgeon. You souls must be careful that you do not catch any illness.
2. Earn this true income and also inspire others to do so. Do not behave in any way against the law. Always follow the Father's orders so that you never become eclipsed by the bad omens of Rahu.
Blessing:May you become a conqueror of Maya and an embodiment of success by spinning the discus of self-realisation and performing every act in the form of a divine activity.
Just as every act of the Father is remembered as a divine act, in the same way, let your every act be a divine activity. Those who have become spinners of the discus of self-realisation, the same as the Father, can never perform ordinary actions. The sign of a spinner of the discus of self-realisation is that he is an embodiment of success. Whatever tasks they carry out, success would be merged in those. Because those who are spinners of the discus of self-realisation are conquerors of Maya, they are embodiments of success and those who are embodiments of success are multimillionaires in their every step.
Slogan:Create powerful thoughts of happiness and you will remain constantly happy in your body and mind.
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