Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-09-19 23:50:33
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Aug- 2018 ( UID: 180907052613 )
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN |
Name Parameters For Grading |
Achievement (Score) |
Minimum Limit for A grade |
Calculation of Mark |
1 |
Count of Raters ( Auto Calculated ) |
0 |
5 |
0 |
2 |
Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) |
3787901 |
2500 |
1 |
3 |
Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) |
2271 |
15 |
0 |
4 |
Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
40% |
0 |
5 |
Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
60% |
0 |
6 |
Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
50% |
0 |
7 |
Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
55% |
0 |
|
Grand Total Score & Article Grade |
|
|
---
|
SI |
Score Rated by Viewers |
Rating given by (0) Users |
(a) |
Topic Information:- |
NAN% |
(b) |
Writing Skill:- |
NAN% |
(c) |
Grammer:- |
NAN% |
(d) |
Vocabulary Strength:- |
NAN% |
(e) |
Choice of Photo:- |
NAN% |
(f) |
Choice of Topic Heading:- |
NAN% |
(g) |
Keyword or summary:- |
NAN% |
(h) |
Material copied - Originality:- |
NAN% |
|
Your Total Rating & % |
NAN% |
Details ( Page:- Murali 29-Aug- 2018 )
29-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - 21 जन्मों के लिए पुण्य का खाता जमा करना है, योगबल से पापों के खाते को भस्म करना है इसलिए अन्तर्मुखी बनो"
प्रश्नः-
किस श्रीमत का पालन करने से वाणी से परे जाने का पुरुषार्थ सहज हो जायेगा?
उत्तर:-
श्रीमत कहती है - बच्चे, अन्तर्मुखी हो जाओ, बाहर से कुछ भी न बोलो। इस श्रीमत को पालन करेंगे तो सहज ही वाणी से परे जा सकेंगे। जितना याद करेंगे, स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे उतना कमाई जमा होती जायेगी। याद के लिए अमृतवेले का समय बहुत अच्छा है। उस समय उठकर अन्तर्मुखी बन आत्म स्वरूप में स्थित होकर बैठ जाओ।
गीत:-
तूने रात गँवाई........
ओम् शान्ति।
यह कौन समझाते हैं कि अन्तर्मुखी हो जाओ, बाहर से कुछ भी न बोलो, अपनी आत्मा के स्वरूप में स्थित होकर बैठो? बाप बच्चों से कहते हैं मुख से कुछ भी बोलो नहीं। राम-राम आदि तो बहुत कहते आये परन्तु उस कहने से भी मनुष्य पावन नहीं बन सकते। मनुष्य पतित से पावन तब बन सकते जब पतित-पावन बाप की श्रीमत पर चलें। पतित-पावन कहने से बाप याद आता है। बाप कहते है कि तुम बरोबर पतित थे ना। अब तुम पावन बन रहे हो। सतयुग में कोई पतित होता नहीं। पांच हजार वर्ष पहले जब भारत पावन था तो एक ही धर्म था। बाप तो सुख की ही सृष्टि रचेंगे ना। भारत सुखधाम था। लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता आदि के मन्दिर सतयुग-त्रेता की निशानी हैं। सतयुग में बरोबर लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी थी। यही भारत था जिसमें सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी का राज्य चलता था, जो अब फिर से स्थापन हो रहा है। इसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। यह मनुष्य ही तो जानेंगे। मनुष्य नहीं जानते तो जानवर से भी बदतर कहा जाता है। बाप को जानने लिए कितने धक्के खाते हैं, परन्तु जान नहीं सकते। तुम बाप के बच्चे बने हो तो बाप अपना परिचय देते हैं। पहले परिचय नहीं था तो इसका परिणाम क्या हुआ? आरफन, नास्तिक, निधन के बन जाते हैं। अभी तुम बाप के बने हो, बाप से वर्सा ले रहे हो। बड़ा भारी वर्सा है, 21 जन्म स्वर्ग की राजधानी मिलती है, कोई कम बात है क्या! लक्ष्मी-नारायण को पांच हजार वर्ष हुआ राज्य करते। फिर से हिस्ट्री रिपीट होती है।
बाप समझाते हैं - मेरी श्रीमत पर चलो, अन्तर्मुखी बनो, बाहरमुखी मत बनो। अब इस समय है घोर अन्धियारा, इनको रात कहा जाता है। अभी सवेरा आ रहा है। कलियुग अन्त को घोर अन्धियारा, सतयुग आदि को घोर सोझरा कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर जबकि सभी मनुष्य पतित हैं। अभी तुम बच्चों को सदा सुख का वर्सा देने आया हूँ। विनाश सामने खड़ा है। बहुत गई थोड़ी रही.... इसलिए अब जल्दी-जल्दी पुरुषार्थ कर बेहद के बाप से वर्सा लो, जैसे सब ले रहे हैं। सब पुरुषार्थी हैं। अब सबको स्वीट होम, वाणी से परे जाना है। वह है हम आत्माओं का घर, निर्वाणधाम। धाम में कोई एक नहीं रहते। जितनी भी जीव आत्मायें हैं,, वे सभी शरीर छोड़ जायेंगे अपने घर बाबा के पास। वह है निराकारी झाड़। जैसे चित्र में भी झाड़ दिखाया जाता है। वह है हम आत्माओं का घर - शान्तिधाम। फिर हम आयेंगे सुखधाम। अभी 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है, कलियुग के बाद सतयुग जरूर आयेगा ना। द्वापर के बाद कलियुग जरूर आयेगा। बाप कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ, पुरानी दुनिया का विनाश कराता हूँ। जब तक नई दुनिया स्थापन हो जाए तब तक इस पुरानी दुनिया में रहना पड़े। जब तक नया मकान बन जायें तब तक पुराने मकान में बैठे रहते हैं ना। फिर जब नया बन जाये फिर पुराने को तोड़ा जाता है। यह भी पुरानी चीज़ है ना। इसके विनाश के लिए यह है महाभारत लड़ाई। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। आत्मा ही समझती है - जिस्मानी नॉलेज भी आत्मा सीखती है ना। आत्मा कहती है मैं प्रिन्सीपाल हूँ, सर्जन हूँ। आत्मा की नॉलेज न होने कारण देह-अभिमानी हो जाते हैं। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। तुम बच्चे समझते हो शिवबाबा हम आत्माओं को समझा रहे हैं। हम आत्मा यह पुराना शरीर छोड़ फिर नया जाकर लेंगी। अभी हम श्याम हैं फिर सुन्दर बनेंगे। सुन्दर से श्याम बनते हैं। 84 जन्म लग जाते हैं। फिर बाबा काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाए गोल्डन एज का मालिक बना देते हैं। बेहद का बाप जरूर बेहद का वर्सा देगा ना। बाप तो ऊंच ते ऊंच है। कहते हैं बच्चों के लिए वैकुण्ठ की सौगात लाये है। हथेली पर बहिश्त लाया हूँ। सेकेण्ड में तुम साक्षात्कार कर लेते हो। कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। जरूर ब्रह्मा के बच्चे हैं और शिवबाबा के पोत्रे हैं। तुम कहते हो हम शिवबाबा से वर्सा लेते हैं। वही सर्व का सद्गति दाता है। राजयोग सिखलाते हैं। निराकार कैसे सिखलाये, इसलिए आरगन्स द्वारा पढ़ाते हैं। सृष्टि चक्र की नॉलेज देते हैं। जिसको परम आत्मा, सुप्रीम सोल कहते हैं उसकी ही सारी महिमा है। ज्ञान का सागर, पतित-पावन वह है तो जरूर आना पड़े। तुमको भी मास्टर सुप्रीम अथवा पावन बनाते हैं। वह है बेहद का बाप जिसको सभी भक्त बुलाते हैं। सभी भक्तों का बाप वह भगवान् है - परमपिता परमात्मा। अगर उनको सर्वव्यापी कह देते तो फिर वर्सा कैसे मिलेगा? मनुष्य को भगवान् नहीं कह सकते। कृष्ण को भी दैवीगुणधारी मनुष्य कहा जाता है, वह है फर्स्ट प्रिन्स। सभी उनको झूले में झुलाते हैं। शिवबाबा को कभी झुलाते नहीं होंगे क्योंकि वह कभी बच्चा बनता ही नहीं। यह तो साक्षात्कार कराते हैं समझाने के लिए - हम तुम्हारा बच्चा हूँ, तुम हमको अपना वारिस बनायेंगे, बलिहार जायेंगे तो मैं भी बलिहार जाऊंगा। बलिहार जाते हो तो जैसे मैं तुम्हारा बालक हो गया।
मनुष्यों में कितनी अन्धश्रद्धा है जहाँ तहाँ माथा टेकते रहते हैं इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। नवरात्रि में बहुत गुड़ियां बनायेंगे। उनके आक्यूपेशन का किसको पता नहीं है। 4-6 भुजा वाली देवी थोड़ेही होती है और फिर तलवार आदि दे देते हैं। देवतायें हिंसक थोड़ेही होते हैं। शास्त्रवादियों ने उन्हें भी हिंसक बना दिया है। नेपाल में भी काली को पूजते हैं फिर ऐसे है थोड़ेही। मम्मा ऐसी काली जीभ वाली है थोड़ेही। मनुष्य तो मनुष्य ही होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी। बस, और कोई चीज़ ही नहीं है फिर 8-10 भुजा वाले कहाँ से आये! यह सब भक्ति मार्ग के अलंकार बनाते हैं। पैसा कमाने के लिए कुछ तो चाहिए ना। फिर किस्म-किस्म के चित्र बैठ बना देते हैं। वहाँ ही देखो सुन्दर कृष्ण का मन्दिर, वहाँ ही सांवरे कृष्ण का मन्दिर। कारण तो चाहिए ना। कितनी अन्धश्रद्धा है! अब भक्ति मार्ग खत्म हो ज्ञान मार्ग जिंदाबाद होता है। बाकी समय तो थोड़ा है, सबको मरना तो जरूर है। पुत्र-पोत्रे वारिस बनने नहीं हैं। वहाँ तुमको यह ज्ञान ही नहीं रहेगा कि संगम पर हमने राजाई के लिए यह पुरुषार्थ किया था। वहाँ तो पवित्र सृष्टि चल पड़ती है। यहाँ तुम जानते हो कि बरोबर हम बाबा की राजधानी के हकदार हैं। वहाँ यह पता नहीं रहेगा कि कौन-से कर्म किये थे, कैसे बनें - यह सब भूल जाता है। वहाँ पतित होते ही नहीं, जो पावन बनने के लिए गुरू की दरकार पड़े। बाप पैर धोकर बच्चों को तख्त पर बिठाते हैं। गुरू चाहिए सद्गति के लिए। वहाँ तो है ही सद्गति। गुरू की दरकार ही नहीं। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, देह-अभिमान में न रहो। मैं आत्मा अभी डॉक्टर के रूप में हूँ, मैं आत्मा मजिस्ट्रेट हूँ फिर यह शरीर छोड़ने के बाद पता नहीं क्या बनूँगा? हम इस शरीर द्वारा पढ़ते हैं। आत्मा ही इन आरगन्स द्वारा पढ़ती है, आत्मा ही सुनती है - यह समझने की बातें हैं, न कि दन्त कथायें हैं।
बाप कहते हैं यह सारी दुनिया कब्रिस्तान होनी है। अब जागो, नहीं तो भंभोर को आग लगने के समय हाय-हाय करेंगे। परन्तु कुछ भी कर नहीं सकेंगे, काल खा जायेगा, त्राहि-त्राहि करके रह जायेंगे। सजायें भी बहुत खायेंगे। अभी हमें पापों का खाता ख़लास कर पुण्य के खाते को जमा करना है। नयेसिर 21 जन्मों के लिए जमा करना है। जमा होगा बाप को याद करने से। पुराना खाता चुक्तू हो जाना चाहिए। ज्ञान कितना सहज है! तुम्हारी रोज कितनी कमाई होती है! जितना जो याद करते हैं, स्वदर्शन चक्र फिराते हैं तो अथाह कमाई करते हैं, अनगिनत। वहाँ कोई गिनती थोड़ेही होती है। अभी झोपड़ियों में बैठे हैं फिर महलों में बैठेंगे। फ़र्क तो रहता है ना - झोपड़ी और महल में। ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया स्थापन हो जायेगी तो पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। अभी की बात है ना। राजधानी की स्थापना हो जायेगी फिर जिसने जितना पुरुषार्थ किया सो किया फिर विनाश हो जायेगा इसलिए अब ग़फलत नहीं करनी चाहिए। सवेरे उठकर याद में बैठ जाना चाहिए। जितना याद का चार्ट रखो उतना अच्छा है और फिर उतना ही ऊंच पद पायेंगे। शिवबाबा के गले का हार बनेंगे। दिल दर्पण में देखना है कि मैं लायक बना हूँ - लक्ष्मी-नारायण को वरने? हम बाबा-मम्मा जैसी सर्विस करते हैं? किस्म-किस्म के फूल हैं। यह बागवान बाबा का ह्युमन गुलशन है। कहेंगे - देखो, कुमारका, मनोहर कितने अच्छे-अच्छे फूल हैं! यह रतन ज्योत है। बाबा इस बगीचे को देखते फिर उस बगीचे में जाकर फूलों को देखते हैं। बागवान जांच करते हैं फूलों की, तो बच्चों को फालो करना चाहिए - नम्बर वन, टू फूल कौन-कौन हैं? ऐसा बनना चाहिए। 21 जन्मों के लिए राजाई पद पाना कोई कम बात थोड़ेही है! अथाह सुख हैं। विश्व का मालिक बनना है। यह स्कूल है। उस जिस्मानी पढ़ाई के साथ यह रूहानी पढ़ाई करो। टीचर्स के हमेशा अच्छे मैनर्स होते हैं। ऑनेस्ट होते हैं। स्कूल में अन्धश्रद्धा की बात नहीं। वहाँ बैरिस्टरी पढ़ते, इन्जीनियरिंग पढ़ते। यहाँ तुम राजाओं का राजा बनने के लिए पढ़ते हो। सन्यासी तो कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। बस, खेल ही खत्म। बेहद का बाप बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो। तुम बहुत सर्विस कर सकते हो।
वहाँ भी एज्युकेशन डिपार्टमेन्ट है। यह भी गॉडली एज्युकेशन डिपार्टमेन्ट है। तुम बच्चे हो राजऋषि। वह तो घरबार छोड़ देते हैं। तुम घर में रहते सारी दुनिया का त्याग करते हो। तुम्हारी बुद्धि में अब नई दुनिया है, जो बाप ही बनाते हैं, इसलिए बाप कहते हैं तुम मुझे याद करो, यह पुरानी दुनिया ख़लास हो जायेगी। यह रूहानी कॉलेज अथवा हॉस्पिटल भी बहुत बड़ा है, जिससे तुम एवरेहल्दी, एवरवेल्दी बनते हो। घर-घर में तुम यह हॉस्पिटल अथवा कॉलेज खोल सकते हो, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं। सिर्फ तीन पैर पृथ्वी के चाहिए। अच्छा!
मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठकर याद में जरूर बैठना है, इसमें ग़फलत नहीं करनी है। पुण्य का खाता जमा करना है।
2) एम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रख अच्छे मैनर्स धारण करने हैं। रूहानी पढ़ाई जरूर करनी है। अन्तर्मुखी होकर रहना है।
वरदान:-न्यारे और प्यारे पन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनने वाले निरन्तर योगी भव
मैं बाप का कितना प्यारा हूँ - इसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा न्यारे हैं, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। जो सदा बाप के प्यारे हैं उसकी निशानी है स्वत: याद। प्यारी चीज़ स्वत: और निरन्तर याद रहती है। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज़ है। ऐसी प्रिय वस्तु भूल कैसे सकते! भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-जो अपने नाम-मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में रहते हैं वही परोपकारी हैं।
29/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to accumulate your accounts of charity for 21 births and burn your accounts of sin with the power of yoga. Therefore, become introverted.
Question:
By following which shrimat will you easily be able to make the effort of going beyond sound?
Answer:
Shrimat says: Children, become introverted; do not say anything. When you follow this shrimat, you will easily be able to go beyond sound. The more you stay in remembrance and spin the discus of self-realisation, the more income you will accumulate. The time of amrit vela is very good for remembrance. Wake up at that time, sit down, become introverted and stabilise yourself in your original religion.
Song:
You spent the night in sleeping and the day in eating.
Om Shanti
Who is telling you to become introverted, not to say anything, but to sit, stabilised in the form of a soul? The Father says to the children: Don’t say anything. You have been saying "Rama Rama" a great deal, but human beings are not able to become pure by saying that. Human beings can become pure from impure when they follow the shrimat of the Purifier Father. By saying, “Purifier”, you remember the Father. The Father says: You truly were impure. You are now becoming pure. There is no one impure in the golden age. Five thousand years ago, when Bharat was pure, there was just the one religion. The Father would only create a world of happiness. Bharat was the land of happiness. The temples to Lakshmi and Narayan, Rama and Sita are signs of the golden and silver ages. In the golden age, there truly was the dynasty of Lakshmi and Narayan. There was this Bharat in which there were the kingdoms of the sun and moon dynasties and they are now being established once again. This is called world history and geography. Only human beings would know this. When human beings don't know this, they are said to be worse than animals. They stumble around so much in order to know the Father, but they can't know Him. You have become the children of the Father and so He gives you His introduction. At first, you didn't have His introduction, and so what was the consequence of that? You became orphans, atheists without the Lord and Master. You now belong to the Father and so you are claiming your inheritance from the Father. The inheritance you receive is huge: you receive the kingdom of the golden age for 21 births. Is this a small thing? It is 5000 years since Lakshmi and Narayan used to rule the kingdom. History repeats. The Father explains: Follow My shrimat, become introverted. Do not become extroverted. At this time, there is extreme darkness. This is called the night. The dawn is now coming. The end of the iron age is called extreme darkness and the beginning of the golden age is called extreme light. The Father says: I only come at the confluence age when all human beings are impure. I have now come to give you children the inheritance of constant happiness. Destruction is just ahead. A lot of time has gone by and only a little remains. Therefore, now make effort quickly and claim your inheritance from the unlimited Father, as everyone is doing. All are effort-makers. Everyone now has to go back to the sweet home, beyond sound. That is the home of us souls, the land of nirvana. There wouldn’t be just one person living in a land. All the living human souls (embodied souls) that exist now will all shed their bodies and go to their home, to Baba. That is the incorporeal tree. The tree has been shown in the picture. That is the home of us souls, the land of peace. Then we will go to the land of happiness. The cycle of 84 births is now coming to an end. After the iron age, the golden age will definitely come. After the copper age, the iron age will definitely come. The Father says: I come at the confluence age of every cycle. I inspire the destruction of the old world. Until the new world is established you have to stay in this old world. Until the new house is built, you still have to live in the old one. Then, when the new house is built, the old one is demolished. These are also old things, are they not? There is this Mahabharat War for the destruction of it. The Father sits here and explains to you children. It is souls that understand. It is souls that study worldly knowledge. A soul says: I am a principal, a surgeon. Because of not having knowledge of souls, there is body consciousness. It is each soul that carries the sanskars. You children understand that Shiv Baba is explaining to you souls. We souls will shed our old bodies and take new ones. From being ugly we will now become beautiful. From ugly you are now once again becoming beautiful. We take 84 births, and then Baba removes us from the pyre of lust and sits us on the pyre of knowledge and makes us into the masters of the golden age. The unlimited Father would surely give you the unlimited inheritance. The Father is the Highest on High. He says: I have brought the gift of Paradise for you children. I have brought heaven on the palm of My hand. You have a vision of that in a second. There are so many Brahma Kumars and Kumaris. They are definitely the children of Brahma and the grandchildren of Shiv Baba. You say: We are claiming our inheritance from Shiv Baba. He alone is the Bestower of Salvation for All. He is teaching us Raja Yoga. How would the incorporeal One teach us Raja Yoga? This is why He teaches us through these organs. He gives us the knowledge of the world cycle. All the praise is of the One who is called the Supreme Soul. He is the Ocean of Knowledge and the Purifier and so He definitely has to come. He makes you “master supreme” and pure. He is the unlimited Father to whom all devotees call out. The Father of all the devotees is God, the Supreme Father, the Supreme Soul. If He were omnipresent as they say, how would you receive the inheritance? Human beings cannot be called God. Krishna is also called a human being with divine virtues. He is the first prince. Everyone rocks him in a cradle. No one ever rocks Shiv Baba because He never becomes a child. He just grants a vision to explain to you that He is your Child: If you make Me your Heir and surrender to Me, I will also surrender Myself to you. When you surrender to Me, it is as though I have become your Child. Human beings have so much blind faith. They continue to bow down here and there. That is called the worship of dolls. At Navratri (nine days festival of worshipping the goddesses) they make many dolls. No one knows their occupation. There cannot be a goddess with four or six arms; they even put a sword in her hand. Deities are not violent. Scholars of the scriptures have portrayed them as violent. They worship Kali in Nepal, but she isn't like that. Mama is not like that Kali with a long tongue. Human beings are human beings. Brahma, Vishnu and Shankar are residents of the subtle region, that’s all. There is nothing else. So, how could there be anyone with eight or ten arms. They made all of those ornaments on the path of devotion. They need some means of earning money. Therefore, they sit and create so many types of image. In the one place they have a temple to the beautiful Krishna and also a temple to the ugly Krishna. There has to be a reason for that. There is so much blind faith. The path of devotion is coming to an end and the path of knowledge is becoming victorious. There is very little time and everyone definitely has to die. Your children and grandchildren won’t become your heirs. There, you won't even have the knowledge that you made effort for the kingdom at the confluence age. There, the pure world continues. Here, you know that you are truly the ones who have a right to Baba's kingdom. There, you won't know what actions you performed or how you became that. You will have forgotten all of this. There are no impure ones there that they would need a guru to become pure. A father washes the children's feet and sits them on the throne. A guru is needed for salvation. There, there is already salvation and so there is no need for a guru. The Father says: Consider yourself to be a soul. Do not stay in body consciousness. I, the soul, am a doctor. I, the soul, am a magistrate. I don't know what I will become after shedding this body. We are studying through these bodies. The soul studies through these organs. It is the soul that listens. These matters have to be understood; they are not tall stories. The Father says: The whole world has to become a graveyard. Now, wake up! Otherwise, at the time the haystack is set on fire, there will be cries of distress. However, you won't be able to do anything at that time. Death will eat you up. You will just remain there crying out in distress. There will also be a lot of punishment. We now have to end our accounts of sin and accumulate our accounts of charity. We have to accumulate anew everything for 21 births. It will be accumulated by remembering the Father. Your old accounts have to be settled. Knowledge is so easy. You earn such an income every day. To the extent that you remember Baba and spin the discus of self-realisation, so you accumulate plenty of income; it is countless. There, you don't count anything. You are now sitting in huts whereas later you will sit in palaces. There is a difference, is there not, between a hut and a palace? When the new world has been established through Brahma, the old world will be destroyed. This refers to the present time. When the kingdom is established, whatever effort each one of you was able to make will have been made and destruction will take place. Therefore, you mustn't make any mistakes now. Wake up early in the morning and sit in remembrance. The more you keep a chart of remembrance, the better it will be and you will then claim a high status accordingly. You will become the garland around Shiv Baba's neck. Look in the mirror of your heart to see if you have become worthy of marrying Lakshmi or Narayan. Am I doing service like Mama and Baba? There are different types of flower. This is the human garden of Baba, the Master of the Garden. It would be said: Look! Kumarka and Manohar are such good flowers! This one is a ratan-jyot (jewel of light). Baba sees this garden and then goes into the other garden and looks at the flowers. The Master of the Garden checks the flowers and so the children should follow Him. Who are the number one and two flowers? You have to become like them. To claim a royal status for 21 births is not a small thing. There is plenty of happiness. You have to become the masters of the world. This is a school. Together with a worldly education, study this spiritual education. Teachers always have good manners; they are honest. In schools, there is no question of blind faith. There, they study to become barristers or engineers. Here, you are studying to become kings of kings. Sannyasis say that God is omnipresent. The game ends there. The unlimited Father explains to you children: Children, remain pure in this final birth. You can do a lot of service. There is an education department for schools, and this too is the Godly education department. You children are Raja Rishis. Those people leave their homes and families. You live at home and renounce the whole world. You have the new world, which only the Father creates, in your intellect. This is why the Father says: Remember Me. This old world is to end. This spiritual college-cum-hospital through which you become ever healthy and ever wealthy is very large. You can open this hospital-cum-college in every home. There is no expense in this. You simply need three square feet of land. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Wake up early in the morning and definitely sit in remembrance.Don't be careless about this. Accumulate your account of charity.
2. While keeping your aim and objective in your intellect, imbibe good manners. Definitely study the spiritual study and become introverted.
Blessing:
May you be a constant yogi and, with the speciality of being loving and detached, be loved by the Father.
You can find out how much you are loved by the Father from how detached you are. If you are a little detached but otherwise trapped, then you will be loved to that extent. The sign of those who are constantly loved by the Father is that they have natural remembrance. Something that is loved is remembered naturally and constantly. So, this is someone whom you love every cycle. How can you forget someone so lovely! You only forget Him when you begin to consider someone or something even lovelier than the Father. If you constantly love the Father, you will then become constant yogis.
Slogan:
Those who renounce their names, respect and honour and engage themselves in unlimited service are those who have mercy and compassion for others.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.