Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 01-Aug- 2018 | 125037 | 2018-09-07 17:27:03 | |
2 | Murali 02-Aug- 2018 | 115306 | 2018-09-07 17:27:03 | |
3 | Murali 03-Aug- 2018 | 122767 | 2018-09-07 17:27:03 | |
4 | Murali 04-Aug- 2018 | 131649 | 2018-09-07 17:27:03 | |
5 | Murali 05-Aug- 2018 | 122005 | 2018-09-07 17:27:03 | |
6 | Murali 06-Aug- 2018 | 122804 | 2018-09-07 17:27:03 | |
7 | Murali 07-Aug- 2018 | 120104 | 2018-09-07 17:27:03 | |
8 | Murali 08-Aug- 2018 | 127824 | 2018-09-07 17:27:03 | |
9 | Murali 09-Aug- 2018 | 127466 | 2018-09-07 17:27:03 | |
10 | Murali 10-Aug- 2018 | 121746 | 2018-09-07 17:27:03 | |
11 | Murali 11-Aug- 2018 | 122692 | 2018-09-07 17:27:03 | |
12 | Murali 12-Aug- 2018 | 111683 | 2018-09-07 17:27:03 | |
13 | Murali 13-Aug- 2018 | 123920 | 2018-09-07 17:27:03 | |
14 | Murali 14-Aug- 2018 | 111398 | 2018-09-07 17:27:03 | |
15 | Murali 15-Aug- 2018 | 128503 | 2018-09-07 17:27:03 | |
16 | Murali 16-Aug- 2018 | 127280 | 2018-09-07 17:27:03 | |
17 | Murali 17-Aug- 2018 | 107136 | 2018-09-07 17:27:03 | |
18 | Murali 18-Aug- 2018 | 120726 | 2018-09-07 17:27:03 | |
19 | Murali 19-Aug- 2018 | 108991 | 2018-09-07 17:27:03 | |
20 | Murali 20-Aug- 2018 | 124686 | 2018-09-07 17:27:03 | |
21 | Murali 21-Aug- 2018 | 119352 | 2018-09-07 17:27:03 | |
22 | Murali 22-Aug- 2018 | 131894 | 2018-09-07 17:27:03 | |
23 | Murali 23-Aug- 2018 | 124657 | 2018-09-07 17:27:03 | |
24 | Murali 24-Aug- 2018 | 130080 | 2018-09-07 17:27:03 | |
25 | Murali 25-Aug- 2018 | 132241 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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27 | Murali 27-Aug- 2018 | 125337 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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29 | Murali 29-Aug- 2018 | 114297 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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Details ( Page:- Murali 22-Aug- 2018 )
22-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम अभी टिवाटे पर खड़े हो, एक तरफ है दु:खधाम, दूसरे तरफ है शान्तिधाम और तीसरे तरफ है सुखधाम, अब जज करो हमें किधर जाना है?"
प्रश्नः-किस निश्चय के आधार पर तुम बच्चे सदा हर्षित रह सकते हो?
उत्तर:-
सबसे पहला निश्चय चाहिए कि हम किसके बने हैं! बाप का बनने में कोई वेद-शास्त्र आदि पुस्तकें पढ़ने की दरकार नहीं है। दूसरा निश्चय चाहिए कि हमारा कुल सबसे श्रेष्ठ देवता कुल है - इस स्मृति से सारा चक्र याद आ जायेगा। बाप और चक्र की स्मृति में रहने वाले सदा हर्षित रहेंगे।
गीत:-
किसी ने अपना बनाके मुझको......
ओम् शान्ति।
तुम बच्चों को तो पहले-पहले खुशी होती है - हम किसके बने हैं! ऐसे नहीं कहेंगे हम गुरू के बने हैं। बनना होता है बाप का। शरीर छोड़कर भी फिर बाप का बनना होता है। यहाँ भी बाप का बनना है। वेद-शास्त्र आदि किसकी दरकार नहीं। बच्चा पैदा हुआ तो बाप समझते हैं मेरी मिलकियत का यह मालिक है। सम्बन्ध की बात है। तुम बच्चे भी जानते हो हम वास्तव में पहले भी पारलौकिक बाप शिवबाबा के बच्चे हैं। पहले हम आत्मा हैं, पीछे हमको शरीर मिलता है। तुमको शरीर तो है। अब तुमको बेहद का बाप मिला है। उसने आकर अपना परिचय दिया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं और कोई संबंध नहीं। बाप के बच्चे बने हो। यह कहते हैं मैं कोई गुरू-गोसाई नहीं हूँ। बोर्ड पर भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम लिखा हुआ है तो जरूर बाप भी होगा। लिखते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। यह संबंध हुआ ना। माँ बाप का सम्बन्ध चाहिए। गाते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे...... आत्मा को जैसे वह अविनाशी याद है। हम आपके जब बालक बनेंगे तब हम वर्सा लेंगे। अभी तुम जानते हो हम मात-पिता के बने हैं। हम शिवबाबा के बच्चे हैं तो जरूर बाप और वर्सा याद आता है। तुमको कोई पुस्तक आदि नहीं पढ़ाया जाता, तुमको सिर्फ निश्चय कराया जाता है। बाप के बने हो तो अब उनको याद करो।
बाप कहते हैं मेरे को याद करने से तुम ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। कितनी सहज बात है। विशालबुद्धि होना चाहिए ना। और तो कुछ नहीं समझाते हैं सिर्फ अपने कुल की बात ही बतलाते हैं कि कैसे हम 84 के चक्र में आते हैं। बाकी वेद-शास्त्र आदि पढ़ने से भी तुमको छुड़ाते हैं। बाप को ही याद करते रहना है। यह भी बुद्धि में है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? उसके आदि-मध्य-अन्त को जानने से ही तुम ऊंच ते ऊंच बनते हो। स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुमको सदैव के लिए हर्षितमुख बनाता हूँ। कितनी सहज बात है। परन्तु फिर भी भूल जाते हो। क्या कारण है? माँ-बाप को कभी बच्चे भूलते नहीं हैं। बाप और वर्से को याद करो तो सदैव हर्षित रहेंगे। जब कोई दु:ख होता है तो बाप को ही याद करते हैं। जरूर बाप ने सुख दिया है। कोई दु:ख देते हैं तो कहते हैं हाय बाबा, हाय भगवान्। हर जन्म में हाय-हाय करते आये हो। अब तो तुम बच्चों को बिल्कुल सहज समझाते हैं। भल तुम तन्दरुस्त न भी हो, कितने भी बीमार हो तो भी तुम सर्विस कर सकते हो। जैसे बीमारी में मनुष्य को कहते हैं राम-राम कहो। तुम भी बीमारी में फिर औरों को बोलो - शिवबाबा को याद करो। यह जरूर औरों को याद कराना पड़े। मरने की हालत में भी तुम यह नॉलेज औरों को दे सकते हो। परमात्मा के तुम बच्चे हो, उनको याद करो। शिवबाबा बेहद का बाप है, वही वर्सा देंगे। सर्विस का शौक होगा तो मरने समय भी किसको ज्ञान देंगे। ऐसे नहीं, हॉस्पिटल में पड़े रहें और मुख बन्द हो जाए। मुख से कुछ न कुछ निकलता रहे। कितनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए। बीमारी में भी बहुत सर्विस कर सकते हैं। मित्र-सम्बन्धी आयेंगे उनको भी कहेंगे परमात्मा को याद करो। वही सबका रखवाला है इसलिए शिवबाबा को याद करो। वह एक है। वर्सा भी सबको एक से मिलता है। लौकिक सम्बन्ध में वर्सा मेल को मिलता है। कन्या है ही 100 ब्राह्मणों से उत्तम। पवित्र को दान दिया जाता है। तुम कन्यायें सबसे पवित्र हो इसलिए कहते हैं हम कन्या को दान देते हैं। वह बड़ा दान समझते हैं। वास्तव में वह कोई दान होता नहीं। दान तो अभी तुम करते हो। कहते हो हम अपनी कन्या शिवबाबा को देते हैं, स्वर्ग की महारानी बनने के लिए। परन्तु कन्या भी ऐसी अच्छी पढ़ी लिखी हो, अपने दैवी कुल की हो जो समझाने से झट समझ जाये। सर्विसएबुल चाहिए। छोटे बच्चों को तो नहीं सम्भालना है। कोई को भी समझाना बड़ा सहज है कि शिवबाबा तुम्हारा बेहद का बाप है। चित्र सामने हैं। देखो, यह ऐसा सतयुग का वर्सा पा रहे हैं। इन लक्ष्मी-नारायण को वर्सा कहाँ से मिला? कितनी सहज बात है इसलिए बाबा बड़े चित्र भी बनवा रहे हैं। अभी यह नाटक पूरा होता है। हमने 84 जन्मों का पार्ट बजाया, अब वापिस बाबा के पास जाते हैं फिर नई दुनिया में आयेंगे। हमारा बाबा नई दुनिया का रचयिता है, उसका हमको मालिक बनाते हैं। आपको भी तरीका बतलाते हैं कि बेहद बाप से सदा सुख का वर्सा तुमको कैसे मिलेगा? एक तो समझाओ मैं आत्मा हूँ। मैं आत्मा खाती हूँ, मैं आत्मा चलती हूँ। यह बड़ी अच्छी प्रैक्टिस चाहिए। देह-अभिमान टूट जाये, देह-अभिमानी को लौकिक सम्बन्ध याद आयेंगे। देही-अभिमानी को पारलौकिक बाप ही याद पड़ेगा। उठते-बैठते-चलते यह बुद्धि में रखना है - मैं आत्मा हूँ। बाप की मत पर चलना है। शिवबाबा मत दे रहे हैं - अपने को आत्मा समझो। मेहनत करनी है। स्वर्ग के भाती तो बनेंगे। परन्तु थोड़े में खुश नहीं हो जाओ। भल स्वर्ग में तो जायेंगे। परन्तु पक्के मातेले बनो। मातेला उनको कहा जाता है जो बापदादा को ही याद करते। दूसरा कोई याद पड़ता तो वह सौतेले हो जाते हैं। बहुत हैं जिनको दोनों याद पड़ते रहते हैं। यह बाप है अविनाशी स्वर्ग का वर्सा देने वाला। यह भी कुल है, वह भी कुल है। उनसे तो दु:ख ही मिलता है। बाकी अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता है। अब बुद्धि से जज करना है - हम किस तरफ जा रहे हैं और किस तरफ जायें? लौकिक तरफ वा पारलौकिक तरफ? बुद्धि कहती है पारलौकिक बाप के बनकर हम क्यों नहीं स्वर्ग तरफ जायें? लौकिक सम्बन्ध से जीते जी मरना है। पारलौकिक बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे। यहाँ तो नर्क के मालिक बनते हैं। अब आत्मा कहती है बुद्धि को कहाँ जोड़े? अपने शान्तिधाम, सुखधाम में जायें या यहाँ जायें? वास्तव में यहाँ जायें..... यह उठना ही नहीं चाहिए। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर रहे हैं। अब तो हम पारलौकिक बाप को कभी छोड़ेंगे नहीं।
यहाँ तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। तुम्हारा लौकिक सम्बन्ध कोई है नहीं। बुद्धि कहती है हम तो बाबा के साथ मुक्तिधाम-शान्तिधाम जायें। सवेरे उठ ऐसे-ऐसे बैठ विचार सागर मंथन करना चाहिए। बैठने से बड़ा मजा आयेगा। अब किस तरफ जाना चाहिए? नर्क तरफ क्यों जायें? यह माया बड़ा धोखा देती है। अभी तो तुम्हारे पास एम ऑब्जेक्ट है। अभी तुम किनारे पर हो, जानते हो इस तरफ तो दु:ख ही दु:ख है, उस तरफ 21 जन्मों का सुख है। बाप कहते हैं मेरे को याद करो क्योंकि मेरे पास आना है। माया कहती है दुनिया तरफ जाओ। कहाँ जायें? रास्ता तो मिला है। एक तरफ है स्वर्ग में जाने का रास्ता, दूसरी तरफ है नर्क में जाने का रास्ता। टिवाटा होता है ना। तीन गली के बीच में टिवाटा होता है। अब हम किस तरफ जायें? एक गली है मुक्ति की, एक गली है जीवनमुक्ति की और एक है नर्क की। जैसे तीन नदियों का संगम है। तीन वाटिकायें हैं। एक वाटिका में हम हैं। टिवाटे का मिसाल अच्छा है। अब कहाँ जायें? नर्क का तो विनाश होना है। यहाँ दु:ख बहुत है। अभी हम टिवाटे पर खड़े हैं। पीछे तो नहीं हटेंगे।
दु:ख की गली से निकाल बाबा ने टिवाटे पर खड़ा किया है। दु:खधाम की गली से तो तुम जन्म-जन्मान्तर पास कर आये हो। अब बुद्धि कहती है मुक्ति-जीवनमुक्ति तरफ जायें। मुक्तिधाम में तो सदैव के लिए बैठना नहीं है। ऐसे नहीं, हम पार्ट से छूट जायें, आयें ही नहीं। पार्ट से छूटना नहीं हो सकता। ड्रामा अनुसार आयेंगे जरूर। तो फिर मच्छरों सदृश्य मरेंगे। इतना दु:ख देखा है तो फिर इतना सुख भी देखना चाहिए। ड्रामा में बाबा ने वजन ठीक रखा है, जिनका पार्ट ही थोड़ा है, आये एक दो जन्म लिए, यह गये। अभी तुम टिवाटे पर खड़े हो। वह शान्तिधाम, वह सुखधाम। अगर शान्तिधाम जाना चाहते हो तो शान्ति-धाम को याद करते रहो। मुक्ति को तो याद करना पड़े ना। पिछाड़ी वालों को मुक्तिधाम में जास्ती रहने कारण मुक्तिधाम ही जास्ती याद पड़ेगा। तुमको जीवनमुक्तिधाम याद पड़ता है। स्वर्ग में हम जल्दी जायें। वह चाहते हैं हम मुक्ति में रहें। अच्छा, बाप को याद करते रहो इसमें भी कल्याण है। निर्वाणधाम में रहना चाहते, सुखधाम नहीं आना चाहते तो इससे समझ जायेंगे, इनका पार्ट नहीं दिखता है। तुम तो सुख-धाम जाने वाले टिवाटे पर खड़े हो। पुरुषार्थ करते हो।
मनुष्यों को तुम्हारा सच्चा योग पसन्द आयेगा। अच्छा, बाप को याद करते रहो। चक्र को भी याद करने की दरकार नहीं। यह ज्ञान सब धर्म वालों के लिए है। समझते हैं ड्रामा अनुसार जिन्होंने जितना लिया है वही आकर अपना पद ले लेंगे। मुक्तिधाम जाना चाहते हैं तो बाप को याद करो। अगर चाहो हम सदैव सुखी रहें तो वहाँ शान्ति भी है, सुख भी है। जो जिस तरफ का होगा उनको वह वर्सा लेना है। सर्व का मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो बाप है ना। एक-दो जन्म लेने होंगे तो इसमें ही सुख भी देखेंगे, दु:ख भी देखेंगे। जैसे मच्छर आया और गया। वह कोई अमूल्य जीवन नहीं कहेंगे। तुम तो सदैव हर्षित रहने वाले हो। तुम लाइट हाउस हो खड़े हो। दोनों रास्ता दिखा सकते हो। चाहे मुक्तिधाम चलो, चाहे मुक्ति-जीव-नमुक्ति दोनों को याद करो। इसमें शास्त्र आदि पढ़ने की कोई दरकार नहीं। कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है क्योंकि सीढ़ी नहीं चढ़ी है। छोटेपन में पढ़ना अच्छा होता है क्योंकि बुद्धि अच्छी होती है। कोई की याद नहीं रहती है। तुम सब कुमारियां हो, तुम्हें और कुछ करना नहीं है, सिर्फ पढ़ाई में लग जाओ, बस, बेड़ा पार है। यह बातें बेहद का बाप ही समझाते हैं जो फिर हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। चित्र भी हैं हमको ऐसा बनना है। बाप कहते हैं इस पढ़ाई से तुम सो देवता बनेंगे। अभी यह खेल पूरा होना है। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में पड़े हैं। तुम अब सोझरे में हो। बाप ने आकर नींद से जगाया है। यह बुद्धि को, आत्मा को जगाया जाता है। बाप आकरके जगाते हैं - जागो, सुखधाम के लिए पुरुषार्थ करो। जो तुम्हारे कुल के होंगे वह आते रहेंगे, वृद्धि को पाते जायेंगे। तुम्हारी प्रजा कितनी बनती है, तुम हिसाब लगा सकते हो? नहीं। कोई कितना सुनते हैं, कोई थोड़ा सुनकर चले जाते हैं। हिसाब थोड़ेही निकाल सकते हैं। बड़ी माला, छोटी माला, साहूकार, प्रजा कैसे बनती है, कौन बनते हैं, वह सब बुद्धि में है। मुख्य सूर्यवंशी महाराजा-महारानी कौन बनेंगे, फिर चन्द्रवंशी कौन बनेंगे, कितनी प्रजा बनना है - सब बातें तुमको यहाँ बतलाई जाती हैं। सारे झाड़ अथवा सभी धर्मों के चक्र के बीच से कैसे टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं, अभी भी पत्ते निकलते रहते हैं। वहाँ निराकारी दुनिया एकदम खाली हो जायेगी। फिर विनाश होना चाहिए। बड़ी लड़ाई में करोड़ों मरे होंगे, अनगिनत। यहाँ तो कितने ख़लास होंगे। बाकी थोड़े सतयुग में आकर राज्य करेंगे। अभी तो कितने मनुष्य हैं। अन्न ही इतना नहीं।
तुम बच्चे जानते हो - बाबा आते ही हैं संगम पर। बाप समझाते हैं - बच्चे, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। हर बात में राय पूछते जाओ। हर एक का हिसाब-किताब अपना-अपना है। श्रीमत अविनाशी सर्जन से लेते जाओ। सबको अपनी-अपनी दवाई बतायेंगे। समझाया जाता है - यह दुनिया ख़लास हुई पड़ी है। अब बाप को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। बाप आये ही हैं नर्क का विनाश कर स्वर्ग की स्थापना करने। हम आपको भी राय देते हैं, श्री श्री से मिली हुई श्रीमत हम आपको भी देते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्विस का शौक रखना है। बीमारी में भी बाप की याद में रहना है और दूसरों को भी याद दिलाना है। मुख से ज्ञान दान करते रहना है।
2) पक्का मातेला बनना है अर्थात् एक बाप की ही याद में रहना है। सवेरे-सवेरे उठ विचार सागर मंथन करना है। दूसरा कोई भी याद न आये।
वरदान:-स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को भी बांधने वाले गायन योग्य भव
भक्ति मार्ग में गायन है कि गोपियों ने भगवान को भी बंधन में बांध दिया। यह है स्नेह और भावना का बंधन, जो चरित्र रूप में गाया जाता है। आप बच्चे इस समय बेहद के कल्प वृक्ष में स्नेह और भावना की रस्सी से बाप को भी बांध देते हो, इसका ही गायन भक्ति मार्ग में चलता है। बाप फिर इसके रिटर्न में स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं, इसी झूले में सदा झूलते रहो।
स्लोगन:-स्वयं को हर परिस्थिति में मोल्ड करने वाले ही सच्चे गोल्ड हैं।
22/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you are now standing at a T-junction. On one side is the land of sorrow, on the second side is the land of peace and on the third side, the land of happiness. Now judge (decide) where you want to go.
Question:
On the basis of which faith can you children remain constantly cheerful?
Answer:
The first faith you need to have is who it is that you now belong to. After belonging to the Father, there is no need to read the Vedas, scriptures or religious books. The other faith you need is that your clan is the most elevated deity clan. With this awareness you can remember the whole cycle. Those who maintain the awareness of the Father and the cycle will remain constantly cheerful.
Song:
Someone made me belong to Him and taught me how to smile.
Om Shanti
You children first of all have the happiness of who it is that you now belong to. It would not be said that you now belong to a guru. You have to belong to the Father. Even after you leave your body, you will then belong to another father. Here, too, you have to belong to the Father. There is no need for any Vedas or scriptures. As soon as a child is born, his father understands that the child is a master of his property. It is a matter of relationship. You children also know that, in fact, you are first of all the children of the Father from beyond, Shiv Baba. First, we are souls, and then we receive bodies. You each have a body and you have now found the unlimited Father. He has come and given you His introduction. You say: Baba, I belong to You and there are no other relationships. You have become the children of the Father. This one says: I am not a guru etc. On the board, the name Brahma Kumars and Kumaris is written and so there would surely also be the father. You write that you are Brahma Kumars and Kumaris. This is a relationship. There has to be the relationship with the Mother and Father. It is sung: You are the Mother and Father and we are Your children. It is as though the soul remembers this eternally. When we become Your children, we will claim our inheritance. You know that you now belong to the Mother and Father. You are the children of Shiv Baba and so you definitely remember the Father and the inheritance. You are not taught from any religious books etc. You are just made to have faith. You now belong to the Father. Therefore, remember Him. The Father says: By remembering Me, you will become like them (Lakshmi and Narayan). This is so easy. You should have broad and unlimited intellects. He doesn’t explain anything else to you. He just tells you about your clans and how you go around the cycle of 84 births. He liberates you from studying the Vedas and scriptures etc. You have to continue to remember the Father. It is in your intellects how the world cycle turns. By knowing its beginning, middle and end, you become the highest on high; you become the masters of heaven. I make you cheerful for all time. This is so easy, but you still forget it. What is the reason for this? Children never forget their parents. Remember the Father and the inheritance and you will always remain cheerful. When there is sorrow, people remember the Father. The Father definitely gave you happiness. When someone causes sorrow, they say: Oh Baba! Oh God! You have been crying out in distress every birth. Everything is now explained to you children very easily. Even though you may not be healthy, even though you may be very ill, you can still do service. When someone is ill, people tell him to chant the name of Rama. Here, too, even when you are ill, you can tell others: Remember Shiv Baba. You definitely have to remind others of this. You can give this knowledge to others even if you are dying. You are children of the Supreme Soul. Remember Him! Shiv Baba is the unlimited Father and He alone will give you the inheritance. When you have an interest in doing service, you would give knowledge to others even when you are dying. It shouldn’t be that you lie in hospital and stop speaking. Let something or other continue to emerge from your mouth. Your stage should be very good. Even when you are ill you can do a lot of service. When your friends and relatives come to visit you, you should tell them: Remember the Supreme Soul. He alone is the Protector of All. Therefore, remember Shiv Baba. He is the only One. Everyone receives the inheritance from just the One. In worldly relationships, the males receive an inheritance. A kumari is considered to be more elevated than a hundred brahmins. Donations are made to those who are pure. You kumaris are the purest of all. This is why it is said: I am donating my daughter. That is considered to be a great donation. In fact, that is not a donation. You are now making a donation. You say: I am giving my daughter to Shiv Baba for her to be made into an empress of heaven. However, the kumari should also be well educated. She should be someone from our deity clan who can quickly understand everything as soon as it is explained to her. She has to be serviceable. Baba is not going to look after little children. It is very easy to explain to anyone: Shiv Baba is your unlimited Father. The pictures are in front of you. Look, you are claiming the inheritance of this golden age. From where did Lakshmi and Narayan receive their inheritance? This is so easy and this is why Baba is having large pictures made. This play is now coming to an end. We have played our parts of 84 births. We are now going back to Baba and we will then go into the new world. Our Baba is the Creator of the new world. He is making us into the masters of that world. We are showing you the way you can receive the inheritance of constant happiness from the unlimited Father. Firstly, explain: I am a soul. I, the soul, am eating. I, the soul, am walking. You have to practise this very well. Body consciousness has to be broken. Those who are body conscious remember their physical relatives. Those who are soul conscious only remember their Father from beyond. While sitting, walking, moving around, let it remain in your intellect: I am a soul. You have to follow the Father’s directions. Shiv Baba is giving you directions: Consider yourself to be a soul. You have to make effort. You will become members of heaven. However, you mustn’t become happy with just a little. Although you will go to heaven, you have to become real children. Those who only remember BapDada are said to be real children. If anyone else is remembered, then you are stepchildren. There are many who continue to remember both. That One is the Father who gives you the imperishable inheritance of heaven. There is this clan and there is also that clan. You receive sorrow from that clan. However, you receive the inheritance of temporary happiness. You can now judge with your intellect: In which direction am I going? Where should I go? Towards the worldly (lokik) or beyond the world (Parlokik)? The intellect says: After belonging to the Father from beyond, why should I not go to heaven? You have to die alive to your worldly relatives. By belonging to the Father from beyond, you will become the masters of heaven. Here, you become the masters of hell. The soul says: Where should I connect my intellect? Should I go to our lands of peace and happiness or should I go here? In fact, there should not even be the thought to go here (land of sorrow). You have been staying here for birth after birth. We will now never let go of the parlokik Father. You children are personally sitting here in front of the Father. You have no worldly relatives. Your intellects say: We will go to Baba in the land of liberation and the land of peace. You should wake up in the early morning hours and sit and churn in this way. You will enjoy yourselves a great deal by sitting at that time. In which direction should I now go? Why should I go to hell? Maya deceives you a great deal in this. You now have an aim and objective. You are now standing on the shore. You know that there is nothing but sorrow on this side. On that side, there is happiness for 21 births. The Father says: Remember Me, because you have to come to Me. Maya says: You have to go to the world. Where should I go? You have found the path. On one side is the path to heaven and on the other side is the path to hell. There is the T-Junction. A T-junction is where three roads meet. In which direction should we now go? One road is to liberation, the second is to liberation-in-life and the third is to hell. This is like a confluence of three rivers. There are junctions of three roads and we are standing at one of those junctions. The example of the T-junction is good. Where should we now go? Hell is to be destroyed; there is a lot of sorrow here. We are now standing at the T-junction. We are not going to move backwards. Baba has removed us from the road of sorrow and brought us to the T-junction. You have come here having passed along the road of sorrow for birth after birth. Your intellects now say: We should go to liberation and liberation-in-life. We are not going to sit in the land of liberation for all time. It isn’t that we become free from playing our parts and do not come down again. It is not possible to become free from your part. According to the drama, you will definitely come down again and then return like a swarm of mosquitoes. Those who have seen so much sorrow should also be able to see just as much happiness. Baba has put an equal balance in the drama: There are even those who have small parts and only come here for one or two births and then go back. You are now standing at the T-junction. That is the land of peace and the other is the land of happiness. If you wish to go to the land of peace, then continue to remember the land of peace. You have to remember liberation. Those who come down later remember the land of liberation more because they have stayed in the land of liberation for a longer period of time. You would remember the land of liberation-in-life: We should go to heaven quickly. Those people desire to stay in liberation. Achcha. Just continue to remember the Father; there is benefit in that too. If someone wants to stay in the land of nirvana and doesn’t want to go to the land of happiness, then, you can understand that that one’s part (of heaven) is not visible. You are standing at the junction of the road leading to the land of happiness. You are making effort. People will like your true yoga. Achcha. Continue to remember the Father. There is no need to remember the cycle. This knowledge is for those of all religions. You understand that however much everyone claimed according to the drama, they will come and claim their status again. If you want to go to the land of liberation, remember the Father. If you want to remain constantly happy, there is peace and happiness there. Wherever someone belongs, he has to claim that inheritance. The Father is the Bestower of Liberation and Liberation-in-life for all. If someone is only going to take one or two births, he will experience both happiness and sorrow in that, just as a mosquito comes and goes. That is not called an invaluable life. You are those who remain constantly cheerful. You are lighthouses standing here. You can show both paths. You can go to the land of liberation or you can remember both: the land of liberation and the land of liberation-in-life. There is no need to study the scriptures etc. for this. This is very easy for the kumaris because they haven’t climbed that ladder. It is good to study in childhood because the intellect is good then; you don’t remember anyone else at that time. All of you are kumaris. You don’t have to do anything else. Simply become busy studying, that’s all! The boat will go across. Only the unlimited Father who makes us into the masters of heaven explains this to us. You have the pictures of what you have to become. The Father says: You will become deities through this study. This play is now going to end. People are in extreme darkness. You are now in the light. The Father has come and awakened you from sleep. This is awakening the intellect, the soul. The Father comes and awakens you: Wake up and make effort for the land of happiness. Those who belong to your clan will continue to come and there will continue to be expansion. You could calculate how many are becoming your subjects, but no, some listen to a lot, whereas others leave after hearing just a little. You cannot calculate this. You have everything in your intellects as to who becomes part of the big rosary, the small rosary, how the wealthy and ordinary subjects are created and who become those. Here, you are told all of the things about who will become the main sun-dynasty emperors and empresses, who will become part of the moon dynasty, how many subjects will be created, how the branches, twigs and leaves etc. emerge from the middle of the whole tree, that is, the cycle of all the religions. Leaves continue to emerge even now. The incorporeal world will then become completely empty and destruction will take place. Millions will die in the great war; countless will die. So many will die here, but only a few will come and rule in the golden age. There are now so many people. There isn’t even enough food for them all. You children know that Baba comes at the confluence age. The Father explains: Children, you have to perform actions for your livelihood. Continue to ask for advice about everything. Each one’s karmic accounts are his own. Continue to ask for shrimat from the eternal Surgeon. He will give each of you your own individual medicine. It is explained that this world has already ended. Now remember the Father and your boat will go across. The Father has come to destroy hell and to establish heaven. We are giving you advice. We are also giving you the shrimat that we have received from Shri Shri. The Father says: Remember Me and you will become the masters of heaven. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Have an interest in doing service. Stay in remembrance of the Father even in illness. Remind others to stay in remembrance. Continue to donate knowledge through your mouth.
2. Become real children, that is, stay in remembrance of the one Father. Wake up early in the morning and churn the ocean of knowledge. Do not remember anyone else.
Blessing:
May you be worthy of praise by tying even God with a bond of love and faith.
On the path of devotion, it is remembered that the gopis even tied God with a bond. That was a bond of love and faith which has been remembered as a divine activity. At this time, you children tie God to the kalpa tree with the strings of love and faith and this is remembered on the path of devotion. In return for this, the Father puts the strings of love and faith on to the seat of His heart throne. He makes it into a swing and gives it to you children. Constantly continue to swing in this swing.
Slogan:
Those who mould themselves to every situation are real gold.
"मीठे बच्चे - तुम अभी टिवाटे पर खड़े हो, एक तरफ है दु:खधाम, दूसरे तरफ है शान्तिधाम और तीसरे तरफ है सुखधाम, अब जज करो हमें किधर जाना है?"
प्रश्नः-किस निश्चय के आधार पर तुम बच्चे सदा हर्षित रह सकते हो?
उत्तर:-
सबसे पहला निश्चय चाहिए कि हम किसके बने हैं! बाप का बनने में कोई वेद-शास्त्र आदि पुस्तकें पढ़ने की दरकार नहीं है। दूसरा निश्चय चाहिए कि हमारा कुल सबसे श्रेष्ठ देवता कुल है - इस स्मृति से सारा चक्र याद आ जायेगा। बाप और चक्र की स्मृति में रहने वाले सदा हर्षित रहेंगे।
गीत:-
किसी ने अपना बनाके मुझको......
ओम् शान्ति।
तुम बच्चों को तो पहले-पहले खुशी होती है - हम किसके बने हैं! ऐसे नहीं कहेंगे हम गुरू के बने हैं। बनना होता है बाप का। शरीर छोड़कर भी फिर बाप का बनना होता है। यहाँ भी बाप का बनना है। वेद-शास्त्र आदि किसकी दरकार नहीं। बच्चा पैदा हुआ तो बाप समझते हैं मेरी मिलकियत का यह मालिक है। सम्बन्ध की बात है। तुम बच्चे भी जानते हो हम वास्तव में पहले भी पारलौकिक बाप शिवबाबा के बच्चे हैं। पहले हम आत्मा हैं, पीछे हमको शरीर मिलता है। तुमको शरीर तो है। अब तुमको बेहद का बाप मिला है। उसने आकर अपना परिचय दिया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं और कोई संबंध नहीं। बाप के बच्चे बने हो। यह कहते हैं मैं कोई गुरू-गोसाई नहीं हूँ। बोर्ड पर भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम लिखा हुआ है तो जरूर बाप भी होगा। लिखते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। यह संबंध हुआ ना। माँ बाप का सम्बन्ध चाहिए। गाते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे...... आत्मा को जैसे वह अविनाशी याद है। हम आपके जब बालक बनेंगे तब हम वर्सा लेंगे। अभी तुम जानते हो हम मात-पिता के बने हैं। हम शिवबाबा के बच्चे हैं तो जरूर बाप और वर्सा याद आता है। तुमको कोई पुस्तक आदि नहीं पढ़ाया जाता, तुमको सिर्फ निश्चय कराया जाता है। बाप के बने हो तो अब उनको याद करो।
बाप कहते हैं मेरे को याद करने से तुम ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। कितनी सहज बात है। विशालबुद्धि होना चाहिए ना। और तो कुछ नहीं समझाते हैं सिर्फ अपने कुल की बात ही बतलाते हैं कि कैसे हम 84 के चक्र में आते हैं। बाकी वेद-शास्त्र आदि पढ़ने से भी तुमको छुड़ाते हैं। बाप को ही याद करते रहना है। यह भी बुद्धि में है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? उसके आदि-मध्य-अन्त को जानने से ही तुम ऊंच ते ऊंच बनते हो। स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुमको सदैव के लिए हर्षितमुख बनाता हूँ। कितनी सहज बात है। परन्तु फिर भी भूल जाते हो। क्या कारण है? माँ-बाप को कभी बच्चे भूलते नहीं हैं। बाप और वर्से को याद करो तो सदैव हर्षित रहेंगे। जब कोई दु:ख होता है तो बाप को ही याद करते हैं। जरूर बाप ने सुख दिया है। कोई दु:ख देते हैं तो कहते हैं हाय बाबा, हाय भगवान्। हर जन्म में हाय-हाय करते आये हो। अब तो तुम बच्चों को बिल्कुल सहज समझाते हैं। भल तुम तन्दरुस्त न भी हो, कितने भी बीमार हो तो भी तुम सर्विस कर सकते हो। जैसे बीमारी में मनुष्य को कहते हैं राम-राम कहो। तुम भी बीमारी में फिर औरों को बोलो - शिवबाबा को याद करो। यह जरूर औरों को याद कराना पड़े। मरने की हालत में भी तुम यह नॉलेज औरों को दे सकते हो। परमात्मा के तुम बच्चे हो, उनको याद करो। शिवबाबा बेहद का बाप है, वही वर्सा देंगे। सर्विस का शौक होगा तो मरने समय भी किसको ज्ञान देंगे। ऐसे नहीं, हॉस्पिटल में पड़े रहें और मुख बन्द हो जाए। मुख से कुछ न कुछ निकलता रहे। कितनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए। बीमारी में भी बहुत सर्विस कर सकते हैं। मित्र-सम्बन्धी आयेंगे उनको भी कहेंगे परमात्मा को याद करो। वही सबका रखवाला है इसलिए शिवबाबा को याद करो। वह एक है। वर्सा भी सबको एक से मिलता है। लौकिक सम्बन्ध में वर्सा मेल को मिलता है। कन्या है ही 100 ब्राह्मणों से उत्तम। पवित्र को दान दिया जाता है। तुम कन्यायें सबसे पवित्र हो इसलिए कहते हैं हम कन्या को दान देते हैं। वह बड़ा दान समझते हैं। वास्तव में वह कोई दान होता नहीं। दान तो अभी तुम करते हो। कहते हो हम अपनी कन्या शिवबाबा को देते हैं, स्वर्ग की महारानी बनने के लिए। परन्तु कन्या भी ऐसी अच्छी पढ़ी लिखी हो, अपने दैवी कुल की हो जो समझाने से झट समझ जाये। सर्विसएबुल चाहिए। छोटे बच्चों को तो नहीं सम्भालना है। कोई को भी समझाना बड़ा सहज है कि शिवबाबा तुम्हारा बेहद का बाप है। चित्र सामने हैं। देखो, यह ऐसा सतयुग का वर्सा पा रहे हैं। इन लक्ष्मी-नारायण को वर्सा कहाँ से मिला? कितनी सहज बात है इसलिए बाबा बड़े चित्र भी बनवा रहे हैं। अभी यह नाटक पूरा होता है। हमने 84 जन्मों का पार्ट बजाया, अब वापिस बाबा के पास जाते हैं फिर नई दुनिया में आयेंगे। हमारा बाबा नई दुनिया का रचयिता है, उसका हमको मालिक बनाते हैं। आपको भी तरीका बतलाते हैं कि बेहद बाप से सदा सुख का वर्सा तुमको कैसे मिलेगा? एक तो समझाओ मैं आत्मा हूँ। मैं आत्मा खाती हूँ, मैं आत्मा चलती हूँ। यह बड़ी अच्छी प्रैक्टिस चाहिए। देह-अभिमान टूट जाये, देह-अभिमानी को लौकिक सम्बन्ध याद आयेंगे। देही-अभिमानी को पारलौकिक बाप ही याद पड़ेगा। उठते-बैठते-चलते यह बुद्धि में रखना है - मैं आत्मा हूँ। बाप की मत पर चलना है। शिवबाबा मत दे रहे हैं - अपने को आत्मा समझो। मेहनत करनी है। स्वर्ग के भाती तो बनेंगे। परन्तु थोड़े में खुश नहीं हो जाओ। भल स्वर्ग में तो जायेंगे। परन्तु पक्के मातेले बनो। मातेला उनको कहा जाता है जो बापदादा को ही याद करते। दूसरा कोई याद पड़ता तो वह सौतेले हो जाते हैं। बहुत हैं जिनको दोनों याद पड़ते रहते हैं। यह बाप है अविनाशी स्वर्ग का वर्सा देने वाला। यह भी कुल है, वह भी कुल है। उनसे तो दु:ख ही मिलता है। बाकी अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता है। अब बुद्धि से जज करना है - हम किस तरफ जा रहे हैं और किस तरफ जायें? लौकिक तरफ वा पारलौकिक तरफ? बुद्धि कहती है पारलौकिक बाप के बनकर हम क्यों नहीं स्वर्ग तरफ जायें? लौकिक सम्बन्ध से जीते जी मरना है। पारलौकिक बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे। यहाँ तो नर्क के मालिक बनते हैं। अब आत्मा कहती है बुद्धि को कहाँ जोड़े? अपने शान्तिधाम, सुखधाम में जायें या यहाँ जायें? वास्तव में यहाँ जायें..... यह उठना ही नहीं चाहिए। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर रहे हैं। अब तो हम पारलौकिक बाप को कभी छोड़ेंगे नहीं।
यहाँ तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। तुम्हारा लौकिक सम्बन्ध कोई है नहीं। बुद्धि कहती है हम तो बाबा के साथ मुक्तिधाम-शान्तिधाम जायें। सवेरे उठ ऐसे-ऐसे बैठ विचार सागर मंथन करना चाहिए। बैठने से बड़ा मजा आयेगा। अब किस तरफ जाना चाहिए? नर्क तरफ क्यों जायें? यह माया बड़ा धोखा देती है। अभी तो तुम्हारे पास एम ऑब्जेक्ट है। अभी तुम किनारे पर हो, जानते हो इस तरफ तो दु:ख ही दु:ख है, उस तरफ 21 जन्मों का सुख है। बाप कहते हैं मेरे को याद करो क्योंकि मेरे पास आना है। माया कहती है दुनिया तरफ जाओ। कहाँ जायें? रास्ता तो मिला है। एक तरफ है स्वर्ग में जाने का रास्ता, दूसरी तरफ है नर्क में जाने का रास्ता। टिवाटा होता है ना। तीन गली के बीच में टिवाटा होता है। अब हम किस तरफ जायें? एक गली है मुक्ति की, एक गली है जीवनमुक्ति की और एक है नर्क की। जैसे तीन नदियों का संगम है। तीन वाटिकायें हैं। एक वाटिका में हम हैं। टिवाटे का मिसाल अच्छा है। अब कहाँ जायें? नर्क का तो विनाश होना है। यहाँ दु:ख बहुत है। अभी हम टिवाटे पर खड़े हैं। पीछे तो नहीं हटेंगे।
दु:ख की गली से निकाल बाबा ने टिवाटे पर खड़ा किया है। दु:खधाम की गली से तो तुम जन्म-जन्मान्तर पास कर आये हो। अब बुद्धि कहती है मुक्ति-जीवनमुक्ति तरफ जायें। मुक्तिधाम में तो सदैव के लिए बैठना नहीं है। ऐसे नहीं, हम पार्ट से छूट जायें, आयें ही नहीं। पार्ट से छूटना नहीं हो सकता। ड्रामा अनुसार आयेंगे जरूर। तो फिर मच्छरों सदृश्य मरेंगे। इतना दु:ख देखा है तो फिर इतना सुख भी देखना चाहिए। ड्रामा में बाबा ने वजन ठीक रखा है, जिनका पार्ट ही थोड़ा है, आये एक दो जन्म लिए, यह गये। अभी तुम टिवाटे पर खड़े हो। वह शान्तिधाम, वह सुखधाम। अगर शान्तिधाम जाना चाहते हो तो शान्ति-धाम को याद करते रहो। मुक्ति को तो याद करना पड़े ना। पिछाड़ी वालों को मुक्तिधाम में जास्ती रहने कारण मुक्तिधाम ही जास्ती याद पड़ेगा। तुमको जीवनमुक्तिधाम याद पड़ता है। स्वर्ग में हम जल्दी जायें। वह चाहते हैं हम मुक्ति में रहें। अच्छा, बाप को याद करते रहो इसमें भी कल्याण है। निर्वाणधाम में रहना चाहते, सुखधाम नहीं आना चाहते तो इससे समझ जायेंगे, इनका पार्ट नहीं दिखता है। तुम तो सुख-धाम जाने वाले टिवाटे पर खड़े हो। पुरुषार्थ करते हो।
मनुष्यों को तुम्हारा सच्चा योग पसन्द आयेगा। अच्छा, बाप को याद करते रहो। चक्र को भी याद करने की दरकार नहीं। यह ज्ञान सब धर्म वालों के लिए है। समझते हैं ड्रामा अनुसार जिन्होंने जितना लिया है वही आकर अपना पद ले लेंगे। मुक्तिधाम जाना चाहते हैं तो बाप को याद करो। अगर चाहो हम सदैव सुखी रहें तो वहाँ शान्ति भी है, सुख भी है। जो जिस तरफ का होगा उनको वह वर्सा लेना है। सर्व का मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो बाप है ना। एक-दो जन्म लेने होंगे तो इसमें ही सुख भी देखेंगे, दु:ख भी देखेंगे। जैसे मच्छर आया और गया। वह कोई अमूल्य जीवन नहीं कहेंगे। तुम तो सदैव हर्षित रहने वाले हो। तुम लाइट हाउस हो खड़े हो। दोनों रास्ता दिखा सकते हो। चाहे मुक्तिधाम चलो, चाहे मुक्ति-जीव-नमुक्ति दोनों को याद करो। इसमें शास्त्र आदि पढ़ने की कोई दरकार नहीं। कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है क्योंकि सीढ़ी नहीं चढ़ी है। छोटेपन में पढ़ना अच्छा होता है क्योंकि बुद्धि अच्छी होती है। कोई की याद नहीं रहती है। तुम सब कुमारियां हो, तुम्हें और कुछ करना नहीं है, सिर्फ पढ़ाई में लग जाओ, बस, बेड़ा पार है। यह बातें बेहद का बाप ही समझाते हैं जो फिर हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। चित्र भी हैं हमको ऐसा बनना है। बाप कहते हैं इस पढ़ाई से तुम सो देवता बनेंगे। अभी यह खेल पूरा होना है। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में पड़े हैं। तुम अब सोझरे में हो। बाप ने आकर नींद से जगाया है। यह बुद्धि को, आत्मा को जगाया जाता है। बाप आकरके जगाते हैं - जागो, सुखधाम के लिए पुरुषार्थ करो। जो तुम्हारे कुल के होंगे वह आते रहेंगे, वृद्धि को पाते जायेंगे। तुम्हारी प्रजा कितनी बनती है, तुम हिसाब लगा सकते हो? नहीं। कोई कितना सुनते हैं, कोई थोड़ा सुनकर चले जाते हैं। हिसाब थोड़ेही निकाल सकते हैं। बड़ी माला, छोटी माला, साहूकार, प्रजा कैसे बनती है, कौन बनते हैं, वह सब बुद्धि में है। मुख्य सूर्यवंशी महाराजा-महारानी कौन बनेंगे, फिर चन्द्रवंशी कौन बनेंगे, कितनी प्रजा बनना है - सब बातें तुमको यहाँ बतलाई जाती हैं। सारे झाड़ अथवा सभी धर्मों के चक्र के बीच से कैसे टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं, अभी भी पत्ते निकलते रहते हैं। वहाँ निराकारी दुनिया एकदम खाली हो जायेगी। फिर विनाश होना चाहिए। बड़ी लड़ाई में करोड़ों मरे होंगे, अनगिनत। यहाँ तो कितने ख़लास होंगे। बाकी थोड़े सतयुग में आकर राज्य करेंगे। अभी तो कितने मनुष्य हैं। अन्न ही इतना नहीं।
तुम बच्चे जानते हो - बाबा आते ही हैं संगम पर। बाप समझाते हैं - बच्चे, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। हर बात में राय पूछते जाओ। हर एक का हिसाब-किताब अपना-अपना है। श्रीमत अविनाशी सर्जन से लेते जाओ। सबको अपनी-अपनी दवाई बतायेंगे। समझाया जाता है - यह दुनिया ख़लास हुई पड़ी है। अब बाप को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। बाप आये ही हैं नर्क का विनाश कर स्वर्ग की स्थापना करने। हम आपको भी राय देते हैं, श्री श्री से मिली हुई श्रीमत हम आपको भी देते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्विस का शौक रखना है। बीमारी में भी बाप की याद में रहना है और दूसरों को भी याद दिलाना है। मुख से ज्ञान दान करते रहना है।
2) पक्का मातेला बनना है अर्थात् एक बाप की ही याद में रहना है। सवेरे-सवेरे उठ विचार सागर मंथन करना है। दूसरा कोई भी याद न आये।
वरदान:-स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को भी बांधने वाले गायन योग्य भव
भक्ति मार्ग में गायन है कि गोपियों ने भगवान को भी बंधन में बांध दिया। यह है स्नेह और भावना का बंधन, जो चरित्र रूप में गाया जाता है। आप बच्चे इस समय बेहद के कल्प वृक्ष में स्नेह और भावना की रस्सी से बाप को भी बांध देते हो, इसका ही गायन भक्ति मार्ग में चलता है। बाप फिर इसके रिटर्न में स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं, इसी झूले में सदा झूलते रहो।
स्लोगन:-स्वयं को हर परिस्थिति में मोल्ड करने वाले ही सच्चे गोल्ड हैं।
22/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you are now standing at a T-junction. On one side is the land of sorrow, on the second side is the land of peace and on the third side, the land of happiness. Now judge (decide) where you want to go.
Question:
On the basis of which faith can you children remain constantly cheerful?
Answer:
The first faith you need to have is who it is that you now belong to. After belonging to the Father, there is no need to read the Vedas, scriptures or religious books. The other faith you need is that your clan is the most elevated deity clan. With this awareness you can remember the whole cycle. Those who maintain the awareness of the Father and the cycle will remain constantly cheerful.
Song:
Someone made me belong to Him and taught me how to smile.
Om Shanti
You children first of all have the happiness of who it is that you now belong to. It would not be said that you now belong to a guru. You have to belong to the Father. Even after you leave your body, you will then belong to another father. Here, too, you have to belong to the Father. There is no need for any Vedas or scriptures. As soon as a child is born, his father understands that the child is a master of his property. It is a matter of relationship. You children also know that, in fact, you are first of all the children of the Father from beyond, Shiv Baba. First, we are souls, and then we receive bodies. You each have a body and you have now found the unlimited Father. He has come and given you His introduction. You say: Baba, I belong to You and there are no other relationships. You have become the children of the Father. This one says: I am not a guru etc. On the board, the name Brahma Kumars and Kumaris is written and so there would surely also be the father. You write that you are Brahma Kumars and Kumaris. This is a relationship. There has to be the relationship with the Mother and Father. It is sung: You are the Mother and Father and we are Your children. It is as though the soul remembers this eternally. When we become Your children, we will claim our inheritance. You know that you now belong to the Mother and Father. You are the children of Shiv Baba and so you definitely remember the Father and the inheritance. You are not taught from any religious books etc. You are just made to have faith. You now belong to the Father. Therefore, remember Him. The Father says: By remembering Me, you will become like them (Lakshmi and Narayan). This is so easy. You should have broad and unlimited intellects. He doesn’t explain anything else to you. He just tells you about your clans and how you go around the cycle of 84 births. He liberates you from studying the Vedas and scriptures etc. You have to continue to remember the Father. It is in your intellects how the world cycle turns. By knowing its beginning, middle and end, you become the highest on high; you become the masters of heaven. I make you cheerful for all time. This is so easy, but you still forget it. What is the reason for this? Children never forget their parents. Remember the Father and the inheritance and you will always remain cheerful. When there is sorrow, people remember the Father. The Father definitely gave you happiness. When someone causes sorrow, they say: Oh Baba! Oh God! You have been crying out in distress every birth. Everything is now explained to you children very easily. Even though you may not be healthy, even though you may be very ill, you can still do service. When someone is ill, people tell him to chant the name of Rama. Here, too, even when you are ill, you can tell others: Remember Shiv Baba. You definitely have to remind others of this. You can give this knowledge to others even if you are dying. You are children of the Supreme Soul. Remember Him! Shiv Baba is the unlimited Father and He alone will give you the inheritance. When you have an interest in doing service, you would give knowledge to others even when you are dying. It shouldn’t be that you lie in hospital and stop speaking. Let something or other continue to emerge from your mouth. Your stage should be very good. Even when you are ill you can do a lot of service. When your friends and relatives come to visit you, you should tell them: Remember the Supreme Soul. He alone is the Protector of All. Therefore, remember Shiv Baba. He is the only One. Everyone receives the inheritance from just the One. In worldly relationships, the males receive an inheritance. A kumari is considered to be more elevated than a hundred brahmins. Donations are made to those who are pure. You kumaris are the purest of all. This is why it is said: I am donating my daughter. That is considered to be a great donation. In fact, that is not a donation. You are now making a donation. You say: I am giving my daughter to Shiv Baba for her to be made into an empress of heaven. However, the kumari should also be well educated. She should be someone from our deity clan who can quickly understand everything as soon as it is explained to her. She has to be serviceable. Baba is not going to look after little children. It is very easy to explain to anyone: Shiv Baba is your unlimited Father. The pictures are in front of you. Look, you are claiming the inheritance of this golden age. From where did Lakshmi and Narayan receive their inheritance? This is so easy and this is why Baba is having large pictures made. This play is now coming to an end. We have played our parts of 84 births. We are now going back to Baba and we will then go into the new world. Our Baba is the Creator of the new world. He is making us into the masters of that world. We are showing you the way you can receive the inheritance of constant happiness from the unlimited Father. Firstly, explain: I am a soul. I, the soul, am eating. I, the soul, am walking. You have to practise this very well. Body consciousness has to be broken. Those who are body conscious remember their physical relatives. Those who are soul conscious only remember their Father from beyond. While sitting, walking, moving around, let it remain in your intellect: I am a soul. You have to follow the Father’s directions. Shiv Baba is giving you directions: Consider yourself to be a soul. You have to make effort. You will become members of heaven. However, you mustn’t become happy with just a little. Although you will go to heaven, you have to become real children. Those who only remember BapDada are said to be real children. If anyone else is remembered, then you are stepchildren. There are many who continue to remember both. That One is the Father who gives you the imperishable inheritance of heaven. There is this clan and there is also that clan. You receive sorrow from that clan. However, you receive the inheritance of temporary happiness. You can now judge with your intellect: In which direction am I going? Where should I go? Towards the worldly (lokik) or beyond the world (Parlokik)? The intellect says: After belonging to the Father from beyond, why should I not go to heaven? You have to die alive to your worldly relatives. By belonging to the Father from beyond, you will become the masters of heaven. Here, you become the masters of hell. The soul says: Where should I connect my intellect? Should I go to our lands of peace and happiness or should I go here? In fact, there should not even be the thought to go here (land of sorrow). You have been staying here for birth after birth. We will now never let go of the parlokik Father. You children are personally sitting here in front of the Father. You have no worldly relatives. Your intellects say: We will go to Baba in the land of liberation and the land of peace. You should wake up in the early morning hours and sit and churn in this way. You will enjoy yourselves a great deal by sitting at that time. In which direction should I now go? Why should I go to hell? Maya deceives you a great deal in this. You now have an aim and objective. You are now standing on the shore. You know that there is nothing but sorrow on this side. On that side, there is happiness for 21 births. The Father says: Remember Me, because you have to come to Me. Maya says: You have to go to the world. Where should I go? You have found the path. On one side is the path to heaven and on the other side is the path to hell. There is the T-Junction. A T-junction is where three roads meet. In which direction should we now go? One road is to liberation, the second is to liberation-in-life and the third is to hell. This is like a confluence of three rivers. There are junctions of three roads and we are standing at one of those junctions. The example of the T-junction is good. Where should we now go? Hell is to be destroyed; there is a lot of sorrow here. We are now standing at the T-junction. We are not going to move backwards. Baba has removed us from the road of sorrow and brought us to the T-junction. You have come here having passed along the road of sorrow for birth after birth. Your intellects now say: We should go to liberation and liberation-in-life. We are not going to sit in the land of liberation for all time. It isn’t that we become free from playing our parts and do not come down again. It is not possible to become free from your part. According to the drama, you will definitely come down again and then return like a swarm of mosquitoes. Those who have seen so much sorrow should also be able to see just as much happiness. Baba has put an equal balance in the drama: There are even those who have small parts and only come here for one or two births and then go back. You are now standing at the T-junction. That is the land of peace and the other is the land of happiness. If you wish to go to the land of peace, then continue to remember the land of peace. You have to remember liberation. Those who come down later remember the land of liberation more because they have stayed in the land of liberation for a longer period of time. You would remember the land of liberation-in-life: We should go to heaven quickly. Those people desire to stay in liberation. Achcha. Just continue to remember the Father; there is benefit in that too. If someone wants to stay in the land of nirvana and doesn’t want to go to the land of happiness, then, you can understand that that one’s part (of heaven) is not visible. You are standing at the junction of the road leading to the land of happiness. You are making effort. People will like your true yoga. Achcha. Continue to remember the Father. There is no need to remember the cycle. This knowledge is for those of all religions. You understand that however much everyone claimed according to the drama, they will come and claim their status again. If you want to go to the land of liberation, remember the Father. If you want to remain constantly happy, there is peace and happiness there. Wherever someone belongs, he has to claim that inheritance. The Father is the Bestower of Liberation and Liberation-in-life for all. If someone is only going to take one or two births, he will experience both happiness and sorrow in that, just as a mosquito comes and goes. That is not called an invaluable life. You are those who remain constantly cheerful. You are lighthouses standing here. You can show both paths. You can go to the land of liberation or you can remember both: the land of liberation and the land of liberation-in-life. There is no need to study the scriptures etc. for this. This is very easy for the kumaris because they haven’t climbed that ladder. It is good to study in childhood because the intellect is good then; you don’t remember anyone else at that time. All of you are kumaris. You don’t have to do anything else. Simply become busy studying, that’s all! The boat will go across. Only the unlimited Father who makes us into the masters of heaven explains this to us. You have the pictures of what you have to become. The Father says: You will become deities through this study. This play is now going to end. People are in extreme darkness. You are now in the light. The Father has come and awakened you from sleep. This is awakening the intellect, the soul. The Father comes and awakens you: Wake up and make effort for the land of happiness. Those who belong to your clan will continue to come and there will continue to be expansion. You could calculate how many are becoming your subjects, but no, some listen to a lot, whereas others leave after hearing just a little. You cannot calculate this. You have everything in your intellects as to who becomes part of the big rosary, the small rosary, how the wealthy and ordinary subjects are created and who become those. Here, you are told all of the things about who will become the main sun-dynasty emperors and empresses, who will become part of the moon dynasty, how many subjects will be created, how the branches, twigs and leaves etc. emerge from the middle of the whole tree, that is, the cycle of all the religions. Leaves continue to emerge even now. The incorporeal world will then become completely empty and destruction will take place. Millions will die in the great war; countless will die. So many will die here, but only a few will come and rule in the golden age. There are now so many people. There isn’t even enough food for them all. You children know that Baba comes at the confluence age. The Father explains: Children, you have to perform actions for your livelihood. Continue to ask for advice about everything. Each one’s karmic accounts are his own. Continue to ask for shrimat from the eternal Surgeon. He will give each of you your own individual medicine. It is explained that this world has already ended. Now remember the Father and your boat will go across. The Father has come to destroy hell and to establish heaven. We are giving you advice. We are also giving you the shrimat that we have received from Shri Shri. The Father says: Remember Me and you will become the masters of heaven. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Have an interest in doing service. Stay in remembrance of the Father even in illness. Remind others to stay in remembrance. Continue to donate knowledge through your mouth.
2. Become real children, that is, stay in remembrance of the one Father. Wake up early in the morning and churn the ocean of knowledge. Do not remember anyone else.
Blessing:
May you be worthy of praise by tying even God with a bond of love and faith.
On the path of devotion, it is remembered that the gopis even tied God with a bond. That was a bond of love and faith which has been remembered as a divine activity. At this time, you children tie God to the kalpa tree with the strings of love and faith and this is remembered on the path of devotion. In return for this, the Father puts the strings of love and faith on to the seat of His heart throne. He makes it into a swing and gives it to you children. Constantly continue to swing in this swing.
Slogan:
Those who mould themselves to every situation are real gold.
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