Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 01-Aug- 2018 | 125037 | 2018-09-07 17:27:03 | |
2 | Murali 02-Aug- 2018 | 115306 | 2018-09-07 17:27:03 | |
3 | Murali 03-Aug- 2018 | 122767 | 2018-09-07 17:27:03 | |
4 | Murali 04-Aug- 2018 | 131649 | 2018-09-07 17:27:03 | |
5 | Murali 05-Aug- 2018 | 122005 | 2018-09-07 17:27:03 | |
6 | Murali 06-Aug- 2018 | 122804 | 2018-09-07 17:27:03 | |
7 | Murali 07-Aug- 2018 | 120104 | 2018-09-07 17:27:03 | |
8 | Murali 08-Aug- 2018 | 127824 | 2018-09-07 17:27:03 | |
9 | Murali 09-Aug- 2018 | 127466 | 2018-09-07 17:27:03 | |
10 | Murali 10-Aug- 2018 | 121746 | 2018-09-07 17:27:03 | |
11 | Murali 11-Aug- 2018 | 122692 | 2018-09-07 17:27:03 | |
12 | Murali 12-Aug- 2018 | 111683 | 2018-09-07 17:27:03 | |
13 | Murali 13-Aug- 2018 | 123920 | 2018-09-07 17:27:03 | |
14 | Murali 14-Aug- 2018 | 111398 | 2018-09-07 17:27:03 | |
15 | Murali 15-Aug- 2018 | 128503 | 2018-09-07 17:27:03 | |
16 | Murali 16-Aug- 2018 | 127280 | 2018-09-07 17:27:03 | |
17 | Murali 17-Aug- 2018 | 107136 | 2018-09-07 17:27:03 | |
18 | Murali 18-Aug- 2018 | 120726 | 2018-09-07 17:27:03 | |
19 | Murali 19-Aug- 2018 | 108991 | 2018-09-07 17:27:03 | |
20 | Murali 20-Aug- 2018 | 124686 | 2018-09-07 17:27:03 | |
21 | Murali 21-Aug- 2018 | 119352 | 2018-09-07 17:27:03 | |
22 | Murali 22-Aug- 2018 | 131894 | 2018-09-07 17:27:03 | |
23 | Murali 23-Aug- 2018 | 124657 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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Details ( Page:- Murali 09-Aug- 2018 )
09-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महफिल में, यह बहुत बड़ी महफिल है, इस महफिल में तुम परवाने शमा पर फिदा हो पावन बनते हो"
प्रश्नः-यदि बच्चों का पुरुषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
उत्तर:-
कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान से पकड़ लेती है इसलिए पुरुषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।
गीत:-महफिल में जल उठी शमा........ ओम् शान्ति।
परमपिता परमात्मा शिव को शमा भी कहते हैं। नाम बहुत डाल देते हैं तो मनुष्य मूंझ गये हैं। आत्मा भी ज्योति स्वरूप है। अब तुम जागती ज्योत बन रहे हो। शमा आई है। यह महफिल तो बहुत बड़ी है। कोई तो आकर बाप का बनते हैं। बाप का बन जीते जी फिदा हो जाते हैं। देह-अभिमान छोड़ा तो आप मुये मर गई दुनिया। आप कौन? आत्मा। आत्मा शरीर को छोड़ देती है। तो सारी दुनिया उनके लिए जैसे मर गई। अभी बाप भी कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। हम तो बाप के हैं। शरीर का भान मिटा देना है। मनुष्य मरते हैं तो देह सहित सब कुछ भूल जाते हैं। समझते हैं शरीर छोड़ा तो तैलुक टूटा। शरीर के साथ ही तैलुक (नाता) है। तुम शरीर होते हुए अशरीरी रहते हो क्योकि तुम्हारा तैलुक अब बाप से हो गया। तुमको राजयोग सिखलाने लिए बाप ने भी शरीर धारण किया है। महफिल में आये हैं। तुम्हारे में भी कोई पूरा जानते हैं कोई अधूरा, कोई तो कुछ नहीं जानते। बाप कहते हैं मैं इस रचना में आया हुआ हूँ। यह बातें मनुष्य ही समझेंगे। भारतवासी जानते हैं शिव जयन्ती भी है। शिव है परमपिता परमात्मा, सभी आत्माओं का बाप। वह आते हैं जरूर, मन्दिर भी हैं। मन्दिर तो ढेर बनते हैं। जैसे क्राइस्ट तो एक था, उनकी यादगार में जड़ चित्र कितने ढेर बनाये हैं। यह भी परमपिता परमात्मा, जिनको पतित-पावन कहते हैं, उनके मन्दिर हैं।
यह है अभी पतित दुनिया की महफिल, फिर होगी पावन दुनिया की महफिल। पावन दुनिया में तो वह आते नहीं। पावन दुनिया की महफिल बहुत छोटी होती और सुखी होते हैं इसलिए वहाँ आने की दरकार नहीं। आना है बड़ी महफिल में। उनका नाम ही है पतित-पावन। यह है पतित दुनिया, फिर पावन दुनिया भी है। उसी नई दुनिया में जरूर थोड़े होंगे। तुम बच्चों में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सच्ची-सच्ची सर्विस करते हैं। सच्चाई की सर्विस का सबूत भी निकलता है। तो बाप महफिल में आये हैं। वह है पतितों को पावन बनाने वाला। कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। भारत अविनाशी बाप का अविनाशी बर्थ प्लेस है। मनुष्य भूल गये हैं - शिवबाबा कब आया था? उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। आते भी हैं पतित शरीर में। उनकी महिमा कितनी भारी है - शिवाए नम:। तुम्हारी महिमा भी अपरमअपार है। वैकुण्ठ की कैसे स्थापना करते हैं, जिस वैकुण्ठ की भी महिमा अपरमअपार है। तुम बच्चे ही यह जानते हो और ऐसे वैकुण्ठ में जाने लिए पुरुषार्थ करते हो। परन्तु तुम्हारा पुरुषार्थ बड़ा ठण्डा चींटी मार्ग का देखते हैं।
माया किसको कान से, नाक से पकड़ती रहती है। किसको भी छोड़ती नहीं है। सोचते भी हैं ऐसे शिवबाबा को निरन्तर याद करें। जैसे पत्नि पति को कितना याद करती है, यह तो पतियों का पति है, बाबा है। ऐसे बाबा को कितना याद करना चाहिए, ऐसे बाबा की हम कितनी महिमा गायें, गीत आदि में भी शिवबाबा की कितनी महिमा करते हैं। तेरी महिमा अपरमअपार है। इतनी महिमा क्यों गाई जाती, कोई कारण तो होगा ना। तुम जानते हो बाप ही भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत को कितना ऊंच बनाते हैं। रावण फिर नीच बना देते हैं। बाप आकर सुखी बनाते हैं। दोज़क से बहिश्त बना देते हैं। ऐसे बाप को कोई जानते नहीं। पतित तो सारी दुनिया है। भल अशोका होटल के सुख आदि हैं परन्तु यह सब तो अल्पकाल के लिए हैं। यह है मृगतृष्णा समान राज्य। पाई का भी इसमें सुख नहीं, दु:ख ही दु:ख है। सतयुग में राजा-रानी तथा प्रजा कितने सुखी रहते हैं। अभी तो कितना दु:खी हैं। कितनी रिश्वत खाते, कितने पाप आदि करते हैं। भारत दैवी सम्प्र दाय था। भारत की महिमा बड़ी जबरदस्त है, जो अब तुम जानते हो। भगवान् की महिमा गाते हैं। याद करते हैं परन्तु जानते नहीं। अरे, भगवान् कहते हो तो भगवान् का पूरा नाम चाहिए ना! उनका नाम है शिव। उनकी सारी महिमा है। मनुष्य उनके नाम, रूप, देश, काल को जानते नहीं। कह देते उनका नाम, रूप है नहीं। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा परमधाम का रहने वाला है। नाम, रूप, देश बतलाते भी हैं परन्तु देह-अभिमान होने कारण उनको याद नहीं करते हैं। याद करते भी हैं तो बिगर समझ। गाते हैं तुम मात-पिता.......। तुम समझा सकते हो लौकिक मात-पिता तो है ना, फिर यह कौन से मात-पिता हैं? पिता कैसे सृष्टि को रचते हैं, कैसे मुख वंशावली रच उन्हीं को राज्य-भाग्य देते हैं - सो तो तुम ही जानों, और न जाने कोई। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। तुम समझते हो शिवबाबा ब्रह्मा तन से आकर पढ़ाते हैं। शिवबाबा की ही इतनी भारी महिमा है। ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखाकर हमको बैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। जरूर ब्रह्मा-सरस्वती पहले-पहले जाकर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। जगत अम्बा और जगत पिता बैठे हैं। वही विश्व के मालिक बनेंगे। उनके साथ कुमार-कुमारियां भी हैं। यह देलवाड़ा मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है। यह मन्दिर आदि तो पहले के बने हुए हैं। अभी हम भेंट करते हैं। हमारे ही यादगार का पूरा यह मन्दिर है।
तो यह शिवाए नम: गीत तो जरूर रखना चाहिए। दो-चार गीत फर्स्ट क्लास रख लेने चाहिए। यह बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं - दिल होती है बाबा की याद में रहकर खायें परन्तु भूल जाते हैं। वो तो कहते हैं मैं अभोक्ता हूँ। उनको यह नहीं आता है कि यह अच्छा है वा बुरा है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुम बच्चों को पतित से पावन बनाने क्योंकि रावण ने तुम्हारे ऊपर जीत पहन ली है। अब फिर उस पर जीत पानी है। रावण तुमको कौड़ी जैसा बनाकर देवाला निकाल देते हैं। भारत का अब देवाला है ना। फिर तुमको सालवेन्ट बनाता हूँ। इनसालवेन्ट बुद्धि मनुष्य ही बनते हैं। तो यह शिवाए नम: का गीत बड़ा अच्छा है, नम्बरवन उनकी महिमा है। फिर भारत की भी महिमा है। वन्डरफुल भारत था। गाते तो हैं ना - स्वर्ग था। हीरे-जवाहरों के महल थे। फिर वह कहाँ गये? माया की कैसे प्रवेशता हुई? सतयुग में देवी-देवतायें धर्म श्रेष्ठ, कर्म श्रेष्ठ थे। भ्रष्ट कर्म कराने वाली माया वहाँ होती नहीं। और यहाँ के पुरुषार्थ की प्रालब्ध तुम पाते हो। तुमको कोई दु:ख होने की बात ही नहीं। पाप करने की दरकार नहीं। यहाँ तो पैसे के लिए कितने पाप करते हैं। वहाँ तो बहुत धन रहता है। बेहद की राजाई है ना। गाया जाता है भारत दैवी राज-स्थान था। जब दैवी राजस्थान था तो देवी-देवताओं का धर्म श्रेष्ठ था। बाप आकर श्रेष्ठ देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। तुम जानते हो हम श्रेष्ठ बन रहे हैं, तो कोई पाप का काम नहीं करना है। डर रहना चाहिए। अच्छे-अच्छे बच्चों को माया नाक से पकड़ पाप करा देती है। अभी तुम जानते हो महफिल में बाप आये हैं, कैसे मुख वंशावली बनाए उनको श्रेष्ठ बनाते हैं। जरूर शरीर को तो लोन लेना ही पड़े। कहते हैं मैं साधारण तन में आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते, मैं बतलाता हूँ। इनका नाम ब्रह्मा रख दिया है। ब्रह्मा में ही प्रवेश करता हूँ क्योंकि ब्रह्मा द्वारा स्थापना करनी है। ऐसे थोड़ेही बौद्धी, इस्लामी वा सिक्ख में प्रवेश करेंगे। बाप कहते हैं मुझे उस तन में प्रवेश करना है, जो पहले-पहले सूर्यवंशी श्री नारायण था फिर उनको ही बनाता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। यह है ज्ञान काण्ड। ज्ञान बाप ही देते हैं। फिर वहाँ भक्ति का नाम-निशान नहीं। ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग कहा जाता है। आधाकल्प भक्ति काण्ड आधाकल्प ज्ञान काण्ड चलता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। पतित बनना ही है। बच्चों को अच्छे-अच्छे राज़ समझाये जाते हैं। गाते भी हैं भगवान् आकर भक्तों को साथ ले जाते हैं। परमपिता परमात्मा को याद करते हैं - बाबा आओ, माया रूपी जंजीरों से आकर छुड़ाओ, हमको लिबरेट करो। जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं सबको लिबरेट करते हैं। फिर वहाँ दैवी माँ-बाप मिलेंगे। तुम देवी-देवता बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा भी प्योर हो जायेगी। अभी तुम्हारी आत्मा पतित बनी है, सो फिर पावन बनेगी। अनेक प्रकार के चित्र हैं, जिसका आक्यूपेशन कुछ भी नहीं। जैसे गुड़ियों की पूजा करते हैं। मैं न गुड्डा हूँ, न गुड्डी हूँ, मैं तो हूँ ही निराकार। गुड्डा और गुड्डी मनुष्य हैं, मैं नहीं बनता हूँ। मुझे निराकार ही कहते हैं। तुम गुड्डे-गुड्डी अभी बहुत दु:खी हो, बैकुण्ठ में तुम बहुत सुखी थे। सुख की महिमा अपरमअपार है। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, रूठ पड़ते हैं। ब्राह्मणों में से भी बहुत रूठते हैं। रूठकर वर्सा पाने को ही छोड़ देते हैं। अरे, तुमको वर्सा बाप से लेना है ना! यह हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, पढ़ाई है। बाबा ने बड़ा सहज समझाया है। भल तुम कहाँ नहीं आ सकते हो, अच्छा, मुरली तो मंगाकर पढ़ सकते हो। इसमें ऩुकसान की कोई बात नहीं है। बाकी हाँ, पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। सर्विस का सबूत ही नहीं तो मुरली भेजकर क्या करेंगे? मुरली पढ़ी जाती है धारण करने के लिए। अगर एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं तो फिर क्या कर सकेंगे? बाबा को याद ही नहीं करते हैं। कोई पाप करते हैं तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। बाप कुछ नहीं करते हैं। बाप तो समझाते हैं - तुमको बहुत मीठा बनना है, कोई को दु:खी मत करो। अन्त में तुम बच्चे बहुत मीठा, बाप जैसे बन जायेंगे। पुरुषार्थ करना है। दिल से पूछना है - किसको तंग तो नहीं करते हैं? हमसे कोई नाराज़ तो नहीं होते? यूँ बाहर वाले तो बहुत नाराज़ होंगे।
तुम ब्राह्मण कुल भूषणों को मुरली रोज़ जरूर सुननी चाहिए। मुरली नहीं सुनेंगे तो धारणा कैसे होगी? मुरली नहीं सुनते हैं तो जरूर समझो - वह बख्तावर नहीं। मुरली को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। ब्राह्मणियों को भी मुरली शिवबाबा से मिलती है ना। उनसे कनेक्शन रखना है। डायरेक्ट मुरली तो भेजें लेकिन फिर आप समान भी बनाकर तो दिखाओ। बाप को याद करते रहो। बाप की याद औरों को दिलाते रहो। समाचार दो तो पता पड़े। नहीं तो कैसे समझेंगे कि बाप की सर्विस कर रहे हो? सबूत जरूर चाहिए सर्विस का। मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। टेप्स भी मुरलीधर बनती हैं ना। यह एक्यूरेट मुरली सुना सकती है। तुम नहीं सुना सकेंगे। तो क्या करना चाहिए? औंरों के कल्याण के लिए टेप रिकॉर्ड मशीन लेकर देनी चाहिए। इतने सब सुनेंगे तो उन सबका फल देने वाले को बहुत मिलेगा। ले करके देंगे भी वह जिनको इसके रहस्य का पता होगा। इस मुरली सुनने से तुम राजाई पद पाते हो। और कोई का भाषण सुनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे क्या? अथवा मनुष्य से देवता थोड़ेही बनेंगे। यह तो फर्स्टक्लास दान करना है, जिससे 21 जन्मों के लिये बहुतों का कल्याण होता है। टेप रिकॉर्ड लेकर देना वा मकान लेकर देना कितनी अच्छी सर्विस है। बच्चे बैठ सर्विस करेंगे। मकान फिर भी तुम्हारा ही रहेगा, उसका फल तुमको मिलेगा। वहाँ रिटर्न में बड़े-बड़े महल मिल जायेंगे। वह समय आयेगा जो तुम बच्चों को तो बहुत मकान मिलेंगे। चरणों मे झुकते रहेंगे। मकान भी हम क्या करेंगे? हमको तो सिर्फ सर्विस करनी है। मकान लो फिर मुफ्त में पैसा भरकर क्यों दो - सौदागर भी तो यह पक्का है। सेन्सीबुल सौदागर है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे लक्की ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।
2) पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए। एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।
वरदान:-निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव
सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
स्लोगन:-जो बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं वही सच्चे होलीहंस हैं।
09/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the Father has come into the gathering of the iron age. This is a huge gathering. In this gathering you moths sacrifice yourselves to the Flame and become pure.
Question:
What is the reason why, even now, the efforts of some children are as slow as an ant?
Answer:
Some children have the habit of sulking. They sulk with the Father and stop studying. Then, Maya catches hold of them by their nose or ears. This is why there is no progress in their effort; it remains at the pace of an ant. You children should have an interest in becoming a murlidhar (one who relates the murli). You have to listen to it and relate it to others. You have to show the results. The children who miss the murli and have no value for this study can never become fortunate.
Song:
The Flame has ignited in the gathering of the moths.
Om Shanti
The Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, is also called the Flame. Many names have been given to Him, and so people have thereby become confused. Souls too are images of light. You are now becoming constantly ignited lights. The Flame has come into this huge gathering. This gathering is very large. Some come and belong to the Father. They belong to the Father and sacrifice themselves while alive. Once you renounce body consciousness you are dead to the world and the world is dead for you. Who are you? Souls. When souls leave their bodies, it is as though the whole world is dead for them. The Father now tells you: Consider yourself to be souls. We belong to the Father. You have to end the awareness of the body. When people die, they forget everything including their bodies. If they have left their bodies, all their connections are broken. Connections only exist while having a body. You remain bodiless even while in a body, because your connection is now with the Father. The Father has also adopted a body in order to teach you Raja Yoga. He has come into the gathering. Among you, a few understand this fully, some partially, and some don’t understand anything at all. The Father says: I have come into this creation. Only human beings will understand these things. The people of Bharat do know about the birthday of Shiva. Shiva is the Supreme Father, the Supreme Soul, the Father of all souls. He definitely comes because there are also temples to Shiva. Many temples have been built to Him. Just as there was only one Christ, and countless physical images of him have been created as memorial to him, so those are temples to the Supreme Father, the Supreme Soul, the One called the Purifier. This is now the gathering of the impure world and there will then be the gathering of the pure world. He does not come into the pure world. The gathering in the pure world will be a very small and happy one. This is why there is no need for Him to come there. He has to come into a large gathering. He is called the Purifier. This is the impure world and then there is also the pure world. There would surely be fewer people in that new world. You children do true service, numberwise, according to the effort you make. The proof of true service also becomes apparent. So the Father has come into the gathering. He is the Purifier of the impure. It is said: “Charity begins at home.” Bharat is the eternal birthplace of the eternal Father. People have forgotten when Shiv Baba came. He is called the Purifier and He enters an impure body. His praise is so great: Salutations to Shiva. Your praise is also limitless. How does He establish heaven, the heaven that is given limitless praise? Only you children know this and you are making effort to go to such a Paradise. However, your efforts seem to be very cold and at the pace of an ant. Maya continues to catch hold of some by their nose and some by their ears. She doesn’t leave anyone alone. You do realise that you should remember Shiv Baba constantly, just as a wife remembers her husband. This Baba is the Husband of all husbands. So, how much you should remember such a Baba! How much you should praise such a Baba! People sing so much praise of Shiv Baba in songs etc: Your praise is limitless. Why is so much praise sung of Him? There must be a reason for this. You know that the Father alone is the one who makes Bharat into heaven. He makes Bharat so elevated. Ravan then makes it degraded. The Father comes and makes you happy. He makes hell into heaven. No one knows that Father. The whole world is impure. Although there is happiness etc. in the Ashoka Hotel (hotel without sorrow), all of that is temporary. This kingdom is like a mirage. The happiness here is not even worth a penny. There is nothing but sorrow. In the golden age, the king, queen and subjects all remain very happy. Now they are all very unhappy. People take so many bribes. People commit so many sins. Bharat was the community of deities. You now know that the praise of Bharat was very great. People also sing praise of God. They remember Him but they do not know Him. Oh! but since you speak of God, you should know His full name. His name is Shiva. All the praise belongs to Him. People do not know His name, form, land or time. They say that He doesn’t have a name or form. They say that the Supreme Father, the Supreme Soul, lives in the supreme abode. They even speak of His name, form and land, but, because of being body conscious, they do not remember Him. Even if they do remember Him, it is without any understanding. They sing: You are the Mother and Father. You can explain that they have physical mothers and fathers. So, which Mother and Father are they referring to in that song? Only you understand how the Father creates the world, how He creates the mouth-born children and how He gives them their fortune of the kingdom. Only you know this; no one else knows it, but you are also numberwise in this. You understand that Shiv Baba comes and teaches you through the body of Brahma. There is such great praise of Shiv Baba alone. He teaches us Raja Yoga through Brahma and makes us into the masters of heaven. It is surely Saraswati and Brahma who will first become Lakshmi and Narayan. The World Mother and the World Father are sitting here; it is they who will become the masters of the world. There are also kumars and kumaris with them. This Dilwala Temple has been built so beautifully. Those temples etc. were built earlier. We are now able to compare ourselves with them because those temples are our complete memorials. You should definitely keep the song ‘Salutations to Shiva’. You should keep two to four first-class songs. This Baba tells you his experience: Although my heart wants to eat in remembrance of Baba, I forget. That One says: I am beyond experiencing anything. It doesn’t occur to Him whether something is good or bad. The Father says: I only come in order to make you children pure from impure because Ravan has conquered you. You now have to gain victory over him again. Ravan makes you like shells and bankrupts you. Bharat is now bankrupt and I am now making you solvent. It is the intellects of human beings that become insolvent. So this song: “Salutations to Shiva” is very good. His praise is number one. There is also the praise of Bharat. Bharat was wonderful . They also sing: Bharat was heaven and there were palaces of gold and diamonds there. So where did they go? How did Maya enter you? In the golden age, the religion and the actions of the deities were elevated. Maya, who inspires you to do corrupt things, doesn’t exist there. You will reap your reward there for the effort you make here. There is no question there of anything causing you sorrow and there is no need to commit sin. Here, people commit so many sins for the sake of money. There, you have a great deal of wealth. It is an unlimited kingdom. It is sung that Bharat was the land of divine kings. When there was the land of divine kings, the religion of the deities was elevated. The Father has come and is creating the elevated deity religion. You understand that you are becoming elevated and that you mustn’t do anything sinful. There should be fear of committing sin. Maya catches hold of very good children by the nose and makes them commit sin. You know that the Father has now come into this gathering and that He creates the mouth-born children and makes them elevated. He definitely has to take a body on loan. He says: I enter an ordinary body. This one doesn’t know his own births, and so I tell him. I have given him the name Brahma. I only enter Brahma, because I have to carry out establishment through Brahma. It is not that I enter a Buddhist, a Muslim or a Sikh. The Father says: I have to enter the body of the one who was the sun-dynasty Shri Narayan at the beginning and I make him that again. He does not know his own births. This is the path of knowledge. It is the Father who gives this knowledge. Then there will be no trace or mention of the path of devotion. It is said: The path of knowledge and the path of devotion. For half a cycle there is devotional activity and for half a cycle there is the activity of knowledge. It is also fixed in the drama for everyone to become impure. Very good secrets are being revealed to you children. It is remembered that God comes and takes the devotees back with Him. They remember the Supreme Father, the Supreme Soul: Baba, come and free us from the chains of Maya! Liberate us! He liberates all your friends and relatives. There, you souls will have divine mothers and fathers. You will become deities. All of you souls will also become pure. You souls are now impure and are becoming pure again. On the path of devotion there are all sorts of images of those who have no occupation. It is as though they worship dolls. I am neither a male doll nor a female doll. I am incorporeal anyway. Human beings are male and female dolls; I do not become that. I am known as the incorporeal One. You male and female dolls are very unhappy now. When you were in Paradise, you were very happy. The praise of that happiness is limitless, but some children repeatedly forget this and start sulking. Many of the Brahmins also sulk. By sulking, they abandon their inheritance. Ah! but you have to claim your inheritance from the Father. This study is that of the imperishable jewels of knowledge. Baba has explained very clearly. If you cannot go to a centre, you can at least ask for the murlis to be sent to you and read them. There is no harm in that. However, you have to make effort to do service and give the proof of it. If there is no proof of service, what would be achieved by sending you murlis? Murlis are studied for knowledge to be imbibed. If you listen to it through one ear and let it out of the other, what can be done? Some do not even remember Baba. When anyone commits a sin, the intellect becomes locked. The Father doesn’t do anything. The Father simply explains: You have to become very sweet. You must not cause sorrow for anyone. At the end, you children will become very sweet, like the Father. However, you have to make effort. Ask your heart: Do I trouble anyone? Is anyone upset with me? Those outside will become very upset. You, the decoration of the Brahmin clan, definitely have to listen to the murli every day. If you do not listen to the murli, how would you imbibe it? If you do not listen to the murli you are considered to be unfortunate. You should never stop listening to the murli. Brahmin teachers also receive Shiv Baba’s murli, and so you have to stay in connection with them. You can receive the murli directly, but you also have to make others similar to yourself and give the proof of that. Continue to remember the Father and continue to remind others of the Father. Give your news to the Father so that He knows. Otherwise, how could it be known that you’re doing the Father’s service? Proof of service is definitely needed. You need to have an interest in becoming a murlidhar. The tape recorders also become murlidhars; they are able to relate the murli accurately. You cannot do that. So, what should you do? In order to benefit others, you could give them a tape recording machine. If many people listen to the tape recorder, the one who gave it will receive a lot of fruit. However, only those who understand the significance of this will buy one and give it to them. You can claim a royal status by listening to the murli. Would you become the masters of heaven by listening to the lectures of others? You would not be able to become deities from ordinary human beings. By your giving this first-class donation, many can receive benefit for 21 births. To purchase a tape recorder and donate it or to purchase a building and donate it is very good service. It is the children who would sit and do service. The building would remain yours, but you would receive the fruit of its use. In return for that, you will receive huge palaces there. The time will come when you children will be offered many buildings and people will continually bow down at your feet. What would we do with those buildings then? We simply want to do service. Why should we accept a building and then have to spend money on it? This Businessman is clever. He is such a sensible Businessman. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, the lucky stars of knowledge,love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada.The spiritual Father says Namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. While remaining in the body, break your connections with everyone and make effort to become bodiless. Make your intellect forget everything of the world.
2. Make effort and give the proof of your service. Listen to the murli and also study it so that you can imbibe it. You mustn’t allow it to go in one ear and out of the other.
Blessing:
May you go fast in service and claim a first number with the speciality of being a humble instrument and thereby become an embodiment of success.
While moving forward in service, if you are aware of the speciality of being a humble instrument, you will then become an embodiment of success. Just as you are clever in running around for service, in the same way, become clever in these two specialities and you will go fast in service and come first by doing this. Do service while staying within the line of the codes of conduct of Brahmin life and considering yourself to be a spiritual server and you will become an embodiment of success. You will not have to labour.
Slogan:Those who constantly imbibe jewels of knowledge with their intellects are true holy swans.
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महफिल में, यह बहुत बड़ी महफिल है, इस महफिल में तुम परवाने शमा पर फिदा हो पावन बनते हो"
प्रश्नः-यदि बच्चों का पुरुषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
उत्तर:-
कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान से पकड़ लेती है इसलिए पुरुषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।
गीत:-महफिल में जल उठी शमा........ ओम् शान्ति।
परमपिता परमात्मा शिव को शमा भी कहते हैं। नाम बहुत डाल देते हैं तो मनुष्य मूंझ गये हैं। आत्मा भी ज्योति स्वरूप है। अब तुम जागती ज्योत बन रहे हो। शमा आई है। यह महफिल तो बहुत बड़ी है। कोई तो आकर बाप का बनते हैं। बाप का बन जीते जी फिदा हो जाते हैं। देह-अभिमान छोड़ा तो आप मुये मर गई दुनिया। आप कौन? आत्मा। आत्मा शरीर को छोड़ देती है। तो सारी दुनिया उनके लिए जैसे मर गई। अभी बाप भी कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। हम तो बाप के हैं। शरीर का भान मिटा देना है। मनुष्य मरते हैं तो देह सहित सब कुछ भूल जाते हैं। समझते हैं शरीर छोड़ा तो तैलुक टूटा। शरीर के साथ ही तैलुक (नाता) है। तुम शरीर होते हुए अशरीरी रहते हो क्योकि तुम्हारा तैलुक अब बाप से हो गया। तुमको राजयोग सिखलाने लिए बाप ने भी शरीर धारण किया है। महफिल में आये हैं। तुम्हारे में भी कोई पूरा जानते हैं कोई अधूरा, कोई तो कुछ नहीं जानते। बाप कहते हैं मैं इस रचना में आया हुआ हूँ। यह बातें मनुष्य ही समझेंगे। भारतवासी जानते हैं शिव जयन्ती भी है। शिव है परमपिता परमात्मा, सभी आत्माओं का बाप। वह आते हैं जरूर, मन्दिर भी हैं। मन्दिर तो ढेर बनते हैं। जैसे क्राइस्ट तो एक था, उनकी यादगार में जड़ चित्र कितने ढेर बनाये हैं। यह भी परमपिता परमात्मा, जिनको पतित-पावन कहते हैं, उनके मन्दिर हैं।
यह है अभी पतित दुनिया की महफिल, फिर होगी पावन दुनिया की महफिल। पावन दुनिया में तो वह आते नहीं। पावन दुनिया की महफिल बहुत छोटी होती और सुखी होते हैं इसलिए वहाँ आने की दरकार नहीं। आना है बड़ी महफिल में। उनका नाम ही है पतित-पावन। यह है पतित दुनिया, फिर पावन दुनिया भी है। उसी नई दुनिया में जरूर थोड़े होंगे। तुम बच्चों में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सच्ची-सच्ची सर्विस करते हैं। सच्चाई की सर्विस का सबूत भी निकलता है। तो बाप महफिल में आये हैं। वह है पतितों को पावन बनाने वाला। कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। भारत अविनाशी बाप का अविनाशी बर्थ प्लेस है। मनुष्य भूल गये हैं - शिवबाबा कब आया था? उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। आते भी हैं पतित शरीर में। उनकी महिमा कितनी भारी है - शिवाए नम:। तुम्हारी महिमा भी अपरमअपार है। वैकुण्ठ की कैसे स्थापना करते हैं, जिस वैकुण्ठ की भी महिमा अपरमअपार है। तुम बच्चे ही यह जानते हो और ऐसे वैकुण्ठ में जाने लिए पुरुषार्थ करते हो। परन्तु तुम्हारा पुरुषार्थ बड़ा ठण्डा चींटी मार्ग का देखते हैं।
माया किसको कान से, नाक से पकड़ती रहती है। किसको भी छोड़ती नहीं है। सोचते भी हैं ऐसे शिवबाबा को निरन्तर याद करें। जैसे पत्नि पति को कितना याद करती है, यह तो पतियों का पति है, बाबा है। ऐसे बाबा को कितना याद करना चाहिए, ऐसे बाबा की हम कितनी महिमा गायें, गीत आदि में भी शिवबाबा की कितनी महिमा करते हैं। तेरी महिमा अपरमअपार है। इतनी महिमा क्यों गाई जाती, कोई कारण तो होगा ना। तुम जानते हो बाप ही भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत को कितना ऊंच बनाते हैं। रावण फिर नीच बना देते हैं। बाप आकर सुखी बनाते हैं। दोज़क से बहिश्त बना देते हैं। ऐसे बाप को कोई जानते नहीं। पतित तो सारी दुनिया है। भल अशोका होटल के सुख आदि हैं परन्तु यह सब तो अल्पकाल के लिए हैं। यह है मृगतृष्णा समान राज्य। पाई का भी इसमें सुख नहीं, दु:ख ही दु:ख है। सतयुग में राजा-रानी तथा प्रजा कितने सुखी रहते हैं। अभी तो कितना दु:खी हैं। कितनी रिश्वत खाते, कितने पाप आदि करते हैं। भारत दैवी सम्प्र दाय था। भारत की महिमा बड़ी जबरदस्त है, जो अब तुम जानते हो। भगवान् की महिमा गाते हैं। याद करते हैं परन्तु जानते नहीं। अरे, भगवान् कहते हो तो भगवान् का पूरा नाम चाहिए ना! उनका नाम है शिव। उनकी सारी महिमा है। मनुष्य उनके नाम, रूप, देश, काल को जानते नहीं। कह देते उनका नाम, रूप है नहीं। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा परमधाम का रहने वाला है। नाम, रूप, देश बतलाते भी हैं परन्तु देह-अभिमान होने कारण उनको याद नहीं करते हैं। याद करते भी हैं तो बिगर समझ। गाते हैं तुम मात-पिता.......। तुम समझा सकते हो लौकिक मात-पिता तो है ना, फिर यह कौन से मात-पिता हैं? पिता कैसे सृष्टि को रचते हैं, कैसे मुख वंशावली रच उन्हीं को राज्य-भाग्य देते हैं - सो तो तुम ही जानों, और न जाने कोई। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। तुम समझते हो शिवबाबा ब्रह्मा तन से आकर पढ़ाते हैं। शिवबाबा की ही इतनी भारी महिमा है। ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखाकर हमको बैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। जरूर ब्रह्मा-सरस्वती पहले-पहले जाकर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। जगत अम्बा और जगत पिता बैठे हैं। वही विश्व के मालिक बनेंगे। उनके साथ कुमार-कुमारियां भी हैं। यह देलवाड़ा मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है। यह मन्दिर आदि तो पहले के बने हुए हैं। अभी हम भेंट करते हैं। हमारे ही यादगार का पूरा यह मन्दिर है।
तो यह शिवाए नम: गीत तो जरूर रखना चाहिए। दो-चार गीत फर्स्ट क्लास रख लेने चाहिए। यह बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं - दिल होती है बाबा की याद में रहकर खायें परन्तु भूल जाते हैं। वो तो कहते हैं मैं अभोक्ता हूँ। उनको यह नहीं आता है कि यह अच्छा है वा बुरा है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुम बच्चों को पतित से पावन बनाने क्योंकि रावण ने तुम्हारे ऊपर जीत पहन ली है। अब फिर उस पर जीत पानी है। रावण तुमको कौड़ी जैसा बनाकर देवाला निकाल देते हैं। भारत का अब देवाला है ना। फिर तुमको सालवेन्ट बनाता हूँ। इनसालवेन्ट बुद्धि मनुष्य ही बनते हैं। तो यह शिवाए नम: का गीत बड़ा अच्छा है, नम्बरवन उनकी महिमा है। फिर भारत की भी महिमा है। वन्डरफुल भारत था। गाते तो हैं ना - स्वर्ग था। हीरे-जवाहरों के महल थे। फिर वह कहाँ गये? माया की कैसे प्रवेशता हुई? सतयुग में देवी-देवतायें धर्म श्रेष्ठ, कर्म श्रेष्ठ थे। भ्रष्ट कर्म कराने वाली माया वहाँ होती नहीं। और यहाँ के पुरुषार्थ की प्रालब्ध तुम पाते हो। तुमको कोई दु:ख होने की बात ही नहीं। पाप करने की दरकार नहीं। यहाँ तो पैसे के लिए कितने पाप करते हैं। वहाँ तो बहुत धन रहता है। बेहद की राजाई है ना। गाया जाता है भारत दैवी राज-स्थान था। जब दैवी राजस्थान था तो देवी-देवताओं का धर्म श्रेष्ठ था। बाप आकर श्रेष्ठ देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। तुम जानते हो हम श्रेष्ठ बन रहे हैं, तो कोई पाप का काम नहीं करना है। डर रहना चाहिए। अच्छे-अच्छे बच्चों को माया नाक से पकड़ पाप करा देती है। अभी तुम जानते हो महफिल में बाप आये हैं, कैसे मुख वंशावली बनाए उनको श्रेष्ठ बनाते हैं। जरूर शरीर को तो लोन लेना ही पड़े। कहते हैं मैं साधारण तन में आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते, मैं बतलाता हूँ। इनका नाम ब्रह्मा रख दिया है। ब्रह्मा में ही प्रवेश करता हूँ क्योंकि ब्रह्मा द्वारा स्थापना करनी है। ऐसे थोड़ेही बौद्धी, इस्लामी वा सिक्ख में प्रवेश करेंगे। बाप कहते हैं मुझे उस तन में प्रवेश करना है, जो पहले-पहले सूर्यवंशी श्री नारायण था फिर उनको ही बनाता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। यह है ज्ञान काण्ड। ज्ञान बाप ही देते हैं। फिर वहाँ भक्ति का नाम-निशान नहीं। ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग कहा जाता है। आधाकल्प भक्ति काण्ड आधाकल्प ज्ञान काण्ड चलता है। यह भी ड्रामा में नूँध है। पतित बनना ही है। बच्चों को अच्छे-अच्छे राज़ समझाये जाते हैं। गाते भी हैं भगवान् आकर भक्तों को साथ ले जाते हैं। परमपिता परमात्मा को याद करते हैं - बाबा आओ, माया रूपी जंजीरों से आकर छुड़ाओ, हमको लिबरेट करो। जो भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं सबको लिबरेट करते हैं। फिर वहाँ दैवी माँ-बाप मिलेंगे। तुम देवी-देवता बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा भी प्योर हो जायेगी। अभी तुम्हारी आत्मा पतित बनी है, सो फिर पावन बनेगी। अनेक प्रकार के चित्र हैं, जिसका आक्यूपेशन कुछ भी नहीं। जैसे गुड़ियों की पूजा करते हैं। मैं न गुड्डा हूँ, न गुड्डी हूँ, मैं तो हूँ ही निराकार। गुड्डा और गुड्डी मनुष्य हैं, मैं नहीं बनता हूँ। मुझे निराकार ही कहते हैं। तुम गुड्डे-गुड्डी अभी बहुत दु:खी हो, बैकुण्ठ में तुम बहुत सुखी थे। सुख की महिमा अपरमअपार है। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, रूठ पड़ते हैं। ब्राह्मणों में से भी बहुत रूठते हैं। रूठकर वर्सा पाने को ही छोड़ देते हैं। अरे, तुमको वर्सा बाप से लेना है ना! यह हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, पढ़ाई है। बाबा ने बड़ा सहज समझाया है। भल तुम कहाँ नहीं आ सकते हो, अच्छा, मुरली तो मंगाकर पढ़ सकते हो। इसमें ऩुकसान की कोई बात नहीं है। बाकी हाँ, पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। सर्विस का सबूत ही नहीं तो मुरली भेजकर क्या करेंगे? मुरली पढ़ी जाती है धारण करने के लिए। अगर एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं तो फिर क्या कर सकेंगे? बाबा को याद ही नहीं करते हैं। कोई पाप करते हैं तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। बाप कुछ नहीं करते हैं। बाप तो समझाते हैं - तुमको बहुत मीठा बनना है, कोई को दु:खी मत करो। अन्त में तुम बच्चे बहुत मीठा, बाप जैसे बन जायेंगे। पुरुषार्थ करना है। दिल से पूछना है - किसको तंग तो नहीं करते हैं? हमसे कोई नाराज़ तो नहीं होते? यूँ बाहर वाले तो बहुत नाराज़ होंगे।
तुम ब्राह्मण कुल भूषणों को मुरली रोज़ जरूर सुननी चाहिए। मुरली नहीं सुनेंगे तो धारणा कैसे होगी? मुरली नहीं सुनते हैं तो जरूर समझो - वह बख्तावर नहीं। मुरली को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। ब्राह्मणियों को भी मुरली शिवबाबा से मिलती है ना। उनसे कनेक्शन रखना है। डायरेक्ट मुरली तो भेजें लेकिन फिर आप समान भी बनाकर तो दिखाओ। बाप को याद करते रहो। बाप की याद औरों को दिलाते रहो। समाचार दो तो पता पड़े। नहीं तो कैसे समझेंगे कि बाप की सर्विस कर रहे हो? सबूत जरूर चाहिए सर्विस का। मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। टेप्स भी मुरलीधर बनती हैं ना। यह एक्यूरेट मुरली सुना सकती है। तुम नहीं सुना सकेंगे। तो क्या करना चाहिए? औंरों के कल्याण के लिए टेप रिकॉर्ड मशीन लेकर देनी चाहिए। इतने सब सुनेंगे तो उन सबका फल देने वाले को बहुत मिलेगा। ले करके देंगे भी वह जिनको इसके रहस्य का पता होगा। इस मुरली सुनने से तुम राजाई पद पाते हो। और कोई का भाषण सुनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे क्या? अथवा मनुष्य से देवता थोड़ेही बनेंगे। यह तो फर्स्टक्लास दान करना है, जिससे 21 जन्मों के लिये बहुतों का कल्याण होता है। टेप रिकॉर्ड लेकर देना वा मकान लेकर देना कितनी अच्छी सर्विस है। बच्चे बैठ सर्विस करेंगे। मकान फिर भी तुम्हारा ही रहेगा, उसका फल तुमको मिलेगा। वहाँ रिटर्न में बड़े-बड़े महल मिल जायेंगे। वह समय आयेगा जो तुम बच्चों को तो बहुत मकान मिलेंगे। चरणों मे झुकते रहेंगे। मकान भी हम क्या करेंगे? हमको तो सिर्फ सर्विस करनी है। मकान लो फिर मुफ्त में पैसा भरकर क्यों दो - सौदागर भी तो यह पक्का है। सेन्सीबुल सौदागर है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे लक्की ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।
2) पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए। एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।
वरदान:-निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव
सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
स्लोगन:-जो बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं वही सच्चे होलीहंस हैं।
09/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the Father has come into the gathering of the iron age. This is a huge gathering. In this gathering you moths sacrifice yourselves to the Flame and become pure.
Question:
What is the reason why, even now, the efforts of some children are as slow as an ant?
Answer:
Some children have the habit of sulking. They sulk with the Father and stop studying. Then, Maya catches hold of them by their nose or ears. This is why there is no progress in their effort; it remains at the pace of an ant. You children should have an interest in becoming a murlidhar (one who relates the murli). You have to listen to it and relate it to others. You have to show the results. The children who miss the murli and have no value for this study can never become fortunate.
Song:
The Flame has ignited in the gathering of the moths.
Om Shanti
The Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, is also called the Flame. Many names have been given to Him, and so people have thereby become confused. Souls too are images of light. You are now becoming constantly ignited lights. The Flame has come into this huge gathering. This gathering is very large. Some come and belong to the Father. They belong to the Father and sacrifice themselves while alive. Once you renounce body consciousness you are dead to the world and the world is dead for you. Who are you? Souls. When souls leave their bodies, it is as though the whole world is dead for them. The Father now tells you: Consider yourself to be souls. We belong to the Father. You have to end the awareness of the body. When people die, they forget everything including their bodies. If they have left their bodies, all their connections are broken. Connections only exist while having a body. You remain bodiless even while in a body, because your connection is now with the Father. The Father has also adopted a body in order to teach you Raja Yoga. He has come into the gathering. Among you, a few understand this fully, some partially, and some don’t understand anything at all. The Father says: I have come into this creation. Only human beings will understand these things. The people of Bharat do know about the birthday of Shiva. Shiva is the Supreme Father, the Supreme Soul, the Father of all souls. He definitely comes because there are also temples to Shiva. Many temples have been built to Him. Just as there was only one Christ, and countless physical images of him have been created as memorial to him, so those are temples to the Supreme Father, the Supreme Soul, the One called the Purifier. This is now the gathering of the impure world and there will then be the gathering of the pure world. He does not come into the pure world. The gathering in the pure world will be a very small and happy one. This is why there is no need for Him to come there. He has to come into a large gathering. He is called the Purifier. This is the impure world and then there is also the pure world. There would surely be fewer people in that new world. You children do true service, numberwise, according to the effort you make. The proof of true service also becomes apparent. So the Father has come into the gathering. He is the Purifier of the impure. It is said: “Charity begins at home.” Bharat is the eternal birthplace of the eternal Father. People have forgotten when Shiv Baba came. He is called the Purifier and He enters an impure body. His praise is so great: Salutations to Shiva. Your praise is also limitless. How does He establish heaven, the heaven that is given limitless praise? Only you children know this and you are making effort to go to such a Paradise. However, your efforts seem to be very cold and at the pace of an ant. Maya continues to catch hold of some by their nose and some by their ears. She doesn’t leave anyone alone. You do realise that you should remember Shiv Baba constantly, just as a wife remembers her husband. This Baba is the Husband of all husbands. So, how much you should remember such a Baba! How much you should praise such a Baba! People sing so much praise of Shiv Baba in songs etc: Your praise is limitless. Why is so much praise sung of Him? There must be a reason for this. You know that the Father alone is the one who makes Bharat into heaven. He makes Bharat so elevated. Ravan then makes it degraded. The Father comes and makes you happy. He makes hell into heaven. No one knows that Father. The whole world is impure. Although there is happiness etc. in the Ashoka Hotel (hotel without sorrow), all of that is temporary. This kingdom is like a mirage. The happiness here is not even worth a penny. There is nothing but sorrow. In the golden age, the king, queen and subjects all remain very happy. Now they are all very unhappy. People take so many bribes. People commit so many sins. Bharat was the community of deities. You now know that the praise of Bharat was very great. People also sing praise of God. They remember Him but they do not know Him. Oh! but since you speak of God, you should know His full name. His name is Shiva. All the praise belongs to Him. People do not know His name, form, land or time. They say that He doesn’t have a name or form. They say that the Supreme Father, the Supreme Soul, lives in the supreme abode. They even speak of His name, form and land, but, because of being body conscious, they do not remember Him. Even if they do remember Him, it is without any understanding. They sing: You are the Mother and Father. You can explain that they have physical mothers and fathers. So, which Mother and Father are they referring to in that song? Only you understand how the Father creates the world, how He creates the mouth-born children and how He gives them their fortune of the kingdom. Only you know this; no one else knows it, but you are also numberwise in this. You understand that Shiv Baba comes and teaches you through the body of Brahma. There is such great praise of Shiv Baba alone. He teaches us Raja Yoga through Brahma and makes us into the masters of heaven. It is surely Saraswati and Brahma who will first become Lakshmi and Narayan. The World Mother and the World Father are sitting here; it is they who will become the masters of the world. There are also kumars and kumaris with them. This Dilwala Temple has been built so beautifully. Those temples etc. were built earlier. We are now able to compare ourselves with them because those temples are our complete memorials. You should definitely keep the song ‘Salutations to Shiva’. You should keep two to four first-class songs. This Baba tells you his experience: Although my heart wants to eat in remembrance of Baba, I forget. That One says: I am beyond experiencing anything. It doesn’t occur to Him whether something is good or bad. The Father says: I only come in order to make you children pure from impure because Ravan has conquered you. You now have to gain victory over him again. Ravan makes you like shells and bankrupts you. Bharat is now bankrupt and I am now making you solvent. It is the intellects of human beings that become insolvent. So this song: “Salutations to Shiva” is very good. His praise is number one. There is also the praise of Bharat. Bharat was wonderful . They also sing: Bharat was heaven and there were palaces of gold and diamonds there. So where did they go? How did Maya enter you? In the golden age, the religion and the actions of the deities were elevated. Maya, who inspires you to do corrupt things, doesn’t exist there. You will reap your reward there for the effort you make here. There is no question there of anything causing you sorrow and there is no need to commit sin. Here, people commit so many sins for the sake of money. There, you have a great deal of wealth. It is an unlimited kingdom. It is sung that Bharat was the land of divine kings. When there was the land of divine kings, the religion of the deities was elevated. The Father has come and is creating the elevated deity religion. You understand that you are becoming elevated and that you mustn’t do anything sinful. There should be fear of committing sin. Maya catches hold of very good children by the nose and makes them commit sin. You know that the Father has now come into this gathering and that He creates the mouth-born children and makes them elevated. He definitely has to take a body on loan. He says: I enter an ordinary body. This one doesn’t know his own births, and so I tell him. I have given him the name Brahma. I only enter Brahma, because I have to carry out establishment through Brahma. It is not that I enter a Buddhist, a Muslim or a Sikh. The Father says: I have to enter the body of the one who was the sun-dynasty Shri Narayan at the beginning and I make him that again. He does not know his own births. This is the path of knowledge. It is the Father who gives this knowledge. Then there will be no trace or mention of the path of devotion. It is said: The path of knowledge and the path of devotion. For half a cycle there is devotional activity and for half a cycle there is the activity of knowledge. It is also fixed in the drama for everyone to become impure. Very good secrets are being revealed to you children. It is remembered that God comes and takes the devotees back with Him. They remember the Supreme Father, the Supreme Soul: Baba, come and free us from the chains of Maya! Liberate us! He liberates all your friends and relatives. There, you souls will have divine mothers and fathers. You will become deities. All of you souls will also become pure. You souls are now impure and are becoming pure again. On the path of devotion there are all sorts of images of those who have no occupation. It is as though they worship dolls. I am neither a male doll nor a female doll. I am incorporeal anyway. Human beings are male and female dolls; I do not become that. I am known as the incorporeal One. You male and female dolls are very unhappy now. When you were in Paradise, you were very happy. The praise of that happiness is limitless, but some children repeatedly forget this and start sulking. Many of the Brahmins also sulk. By sulking, they abandon their inheritance. Ah! but you have to claim your inheritance from the Father. This study is that of the imperishable jewels of knowledge. Baba has explained very clearly. If you cannot go to a centre, you can at least ask for the murlis to be sent to you and read them. There is no harm in that. However, you have to make effort to do service and give the proof of it. If there is no proof of service, what would be achieved by sending you murlis? Murlis are studied for knowledge to be imbibed. If you listen to it through one ear and let it out of the other, what can be done? Some do not even remember Baba. When anyone commits a sin, the intellect becomes locked. The Father doesn’t do anything. The Father simply explains: You have to become very sweet. You must not cause sorrow for anyone. At the end, you children will become very sweet, like the Father. However, you have to make effort. Ask your heart: Do I trouble anyone? Is anyone upset with me? Those outside will become very upset. You, the decoration of the Brahmin clan, definitely have to listen to the murli every day. If you do not listen to the murli, how would you imbibe it? If you do not listen to the murli you are considered to be unfortunate. You should never stop listening to the murli. Brahmin teachers also receive Shiv Baba’s murli, and so you have to stay in connection with them. You can receive the murli directly, but you also have to make others similar to yourself and give the proof of that. Continue to remember the Father and continue to remind others of the Father. Give your news to the Father so that He knows. Otherwise, how could it be known that you’re doing the Father’s service? Proof of service is definitely needed. You need to have an interest in becoming a murlidhar. The tape recorders also become murlidhars; they are able to relate the murli accurately. You cannot do that. So, what should you do? In order to benefit others, you could give them a tape recording machine. If many people listen to the tape recorder, the one who gave it will receive a lot of fruit. However, only those who understand the significance of this will buy one and give it to them. You can claim a royal status by listening to the murli. Would you become the masters of heaven by listening to the lectures of others? You would not be able to become deities from ordinary human beings. By your giving this first-class donation, many can receive benefit for 21 births. To purchase a tape recorder and donate it or to purchase a building and donate it is very good service. It is the children who would sit and do service. The building would remain yours, but you would receive the fruit of its use. In return for that, you will receive huge palaces there. The time will come when you children will be offered many buildings and people will continually bow down at your feet. What would we do with those buildings then? We simply want to do service. Why should we accept a building and then have to spend money on it? This Businessman is clever. He is such a sensible Businessman. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, the lucky stars of knowledge,love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada.The spiritual Father says Namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. While remaining in the body, break your connections with everyone and make effort to become bodiless. Make your intellect forget everything of the world.
2. Make effort and give the proof of your service. Listen to the murli and also study it so that you can imbibe it. You mustn’t allow it to go in one ear and out of the other.
Blessing:
May you go fast in service and claim a first number with the speciality of being a humble instrument and thereby become an embodiment of success.
While moving forward in service, if you are aware of the speciality of being a humble instrument, you will then become an embodiment of success. Just as you are clever in running around for service, in the same way, become clever in these two specialities and you will go fast in service and come first by doing this. Do service while staying within the line of the codes of conduct of Brahmin life and considering yourself to be a spiritual server and you will become an embodiment of success. You will not have to labour.
Slogan:Those who constantly imbibe jewels of knowledge with their intellects are true holy swans.
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