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Type: Article
Created By: Bk Ganapati
Title: Non-believer become beleiver
Unique Id: 180522111922 Create Time: 2018-05-22 22:19:22 Update Time: 25-05-2018 20:48:20 Category: Philosophy Subcategory: Story Summary: Nastik to astik, Atheist to Theis
Table of Content of This Article
Page No Photo Page Name
1 Image Medicine Shop keeper
2 Image Sant Maluka Das
Article Image
Details ( Page:- Medicine Shop keeper )
?नास्तिक बना आस्तिक

.हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी  एक मेडिकल दुकान का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है।
.वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था। दिन--दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।
.उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था,
.खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर घर या दुकान में ताश खेलता था।
.एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए और अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी, बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था।
.बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे।
.तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।
.हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।
.ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए.
.बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी। यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है।
.इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे। बारिश भी थोड़ा थम चुकी थी,
.उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा,
.ताश के खेल को पूरा कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।
.उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया।
.लड़का खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था।
.थोड़ी देर बाद लाइट गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है,*
.जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था, और ताश खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा।*
.अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।*
.उस लड़के के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी।
.लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
.एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?
.उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए ?
.सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।
.घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके परमपिता परमात्मा शिव की तस्वीर दुकान के उदघाटन के वक्त लगाई थी,
.
पिता से हुई बहस में पिता जी की कही एक बात उसे याद आयी कि जीवन मे भगवान को एक बार आजमा के जरूर देखना वह है या नही पता पड़ जायेगा।

उन्होंने कहा था कि भगवान सर्वशक्तिमान है और वह सर्वज्ञ अर्थात सब कुछ जानने वाला है कभी कोई बड़ी संकट आये ,जिसका हल आपसे हो पाए, ऐसा असम्भव कार्य परमात्मा को सौप कर देखना।

हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा।
उसने कई बार अपने पिता को परमपिता परमात्मा की तस्वीर के सामने बैठकर ,कई बार मैडिटेशन के दौरान बात करते हुए देखा था।

उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे परमात्मा शिवलिंग की तस्वीर को देखा और सामने बैठकर अपनी दुविधा सुनाकर सौपने लगा तू सच मे है तो वह दवाई उसके माँ तक पहुचने पाए।

थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम को पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा।

पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी.. बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँच भी गया था,

बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी ? लड़के ने उदास होकर पूछा।

हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं ? हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई !

पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं है, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।
.
हरिराम को उस बिचारे पर दया आई। कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।
.
अब हरिराम की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।
.
अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था।
*जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह कि प्यास रही ,ताकि परमात्मा से फिर से कुछ नया वार्तालाप कर सकूं।

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Details ( Page:- Sant Maluka Das )
*अजगर करै चाकरी…*
*अजगर करै  चाकरीपंछी करै  काम,*
*दास मलूका कह गएसबके दाता राम।*
.
शुरू में संत मलूकदास नास्तिक थे यानी ईश्वर के होने में उनका कतई विश्वास नहीं था। उन्हीं दिनों की बात है, उनके गांव में एक साधु आकर टिक गया। प्रतिदिन सुबह सुबह गांव वाले साधु का दर्शन करते और उनसे रामायण सुनते।
एक दिन मलूकदास भी पहुंचे। उस समय साधु ग्रामीणों को राम की महिमा बता रहा था- राम दुनिया के सबसे बड़े दाता हैं। वे भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय देते हैं।
साधु की बात मलूकदास के पल्ले नहीं पड़ी। उन्होंने तर्क पेश किया, ”क्षमा करें महात्मन! यदि मैं चुपचाप बैठकर राम का नाम लूं, काम नहीं करूं, तब भी क्या राम भोजन देंगे?
अवश्य देंगे।साधु ने विश्वास दिलाया

यदि मैं घनघोर जंगल में अकेला बैठ जाऊं, तब?“
तब भी राम भोजन देंगे।साधु ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया।
बात मलूकदास को लग गई। पहुंच गए जंगल में और एक घने पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ गए। चारों तरफ ऊंचे ऊंचे पेड़ थे। कंटीली झाड़ियां थीं। जंगल दूर दूर तक फैला हुआ था।
धीरे धीरे खिसकता हुआ सूर्य पश्चिम की पहाड़ियों के पीछे छुप गया। चारों तरफ अंधेरा फैल गया। मगर मलूकदास को भोजन मिला वे पेड़ से ही उतरे। सारी रात बैठे रहे। दूसरे दिन दूसरे पहर घोर सन्नाटे में मलूकदास को घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई पड़ी। वे सतर्क बैठ गए। थोड़ी देर में चमकदार पोशाकों में कुछ राजकीय अधिकारी उधर आते हुए दिखे, वे सभी पेड़ के नीचे घोड़ों से उतर पड़े, लेकिन ठीक उसी समय, जब एक अधिकारी थैले से भोजन का डिब्बा निकाल रहा था, शेर की भयंकर दहाड़ सुनाई दी। दहाड़ का सुनना था कि घोड़े बिदरकर भाग गए। अधिकारियों ने पहले तो स्तब्ध होकर एक दूसरे को देखा फिर भोजन छोड़कर वे भी भाग गए।

मलूकदास पेड़ से यह सब देख रहा था। वह शेर की प्रतीक्षा करने लगा। मगर दहाड़ कर शेर दूसरी तरफ चला गया।
मलूकदास को लगा, राम ने उसकी सुन ली है, अन्यथा इस घोर जंगल में भोजन कैसे पहुंचता? मगर मलूकदास तो मलूकदास ठहरे! डतरकर भला भोजन क्यों करने लगे।
तीसरे पहर के लगभग डाकुओें का एक दल उधर से गुजरा। पेड़ के नीचे चमकादा चांदी के बरतनों में विभिन्न व्यंजनों के रूप में पड़े हुए भोजन को देखकर वे ठिठक गए।
डाकुओं के सरदार ने कहा, ”भगवान की लीला देखो, हम लोग भूख हैं और इस निर्जन वन में सुंदर डिब्बों में भोजन रखा है। आओ, पहले इससे निपट लें।
डाकू स्वभावतः शक्की होते हैं, एक साथी ने सावधान किया, ”सरदार, इस सुनसान जंगल में भोजन का मिलना मुझे तो रहस्मय लग रहा है, कहीं इसमें विष हो।
तब तो भोजन लाने वाला आसपास कहीं छिपा होगा। पहले उसे तलाशा जाए।सरदार ने आदेश दिया।
डाकू इधर उधर बिखरने लगे, तब तक एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ गई। उसने सरदार को बताया।
सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं। उसने घुड़क कर कहा, ”अरे दुष्ट! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है। चल नीचे उतर।
सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गया, मगर उतरा नहीं। वहीं से बोला, ”व्यर्थ दोष क्यों मढ़ते हो? भोजन में विष नहीं है।
यह झूठा है।सरदार के एक साथी ने कहा, ”पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ, झूठ सच का पता अभी चल जाता है।
आनन फानन में तीन चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखाकर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया।
मलूकदास ने भोजन कर लिया। फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया। डाकुओें ने उन्हें छोड़ दिया। इस घटना के बाद वे पक्के ईष्वर के भक्त हो गए।
गांव पहुंचकर मलूकदास ने सर्वप्रथम जिस दोहे की रचना की, वह आज भी प्रसिद्ध है
*अजगर करै चाकरी, पंछी करै काम,*
*दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।*

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